अनेक शहरों से कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों की आत्महत्या की खबरें आ रही हैं. मगर ‘विश्व आत्महत्या प्रतिरोध दिवस‘ अर्थात 10 सितंबर, 2020 को छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले से जब यह खबर आई कि एक कोरोना मरीज ने आत्महत्या कर ली तो छत्तीसगढ़ में हड़कंप मच गया.

यह समाचार सुर्खियां तो बना, मगर सरकार को जिस संवेदना के साथ इस मसले को लेना चाहिए, वैसे हालात नहीं दिखे.

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सनद रहे कि छत्तीसगढ़ में मई से अगस्त माह के बीच राज्य के अलगअलग ‘क्वारंटीन सैंटर‘ में 6 लोगों ने आत्महत्या कर ली. यही नहीं, पिछले महीने राजधानी रायपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में एक कोरोना वायरस संक्रमित मरीज ने ऊपरी मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली थी. वहीं जांजगीर चांपा जिले के कोविड 19 केयर सैंटर में एक अन्य मरीज ने भी आत्महत्या की थी.

दरअसल, एकएक आत्महत्या, यह सचाई बताती है कि ‘कोरोना वायरस‘ के परिदृश्य के पीछे हमारा समाज, हमारी व्यवस्था किस कदर अमानवीय हो चुकी है. शासन व्यवस्था एक कठोर पत्थर में तबदील हो गई है, जिसे अपने अवाम से कोई इत्तेफाक नहीं. चाहे वह आत्महत्या ही क्यों न कर ले.

आइए, आप को छत्तीसगढ़ के जिला मुंगेली के उस शख्स की दारुण कथा बताते हैं, जिस ने कोरोना वायरस के डर से कथित रूप से आत्महत्या कर ली:
मुंगेली जिले के मातृ एवं शिशु अस्पताल लोरमी में एक युवक ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. दुबले पर दो आषाढ़ यह कि उधर सुबह उस युवक की मौत की खबर मिलते ही मां भी सदमे में आ गई.

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बलौदाबाजार निवासी 47 साला अनिल जायसवाल लोरमी में किराए के मकान में रहते हुए धान भूसा की सप्लाई का काम किया करता था. बुखार की वजह से 50 बिस्तर वाले अस्पताल में वह भरती था. उस का उपचार पिछले 3 दिनों से चल रहा था. अचानक उस ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली.

सवाल यह है कि लोरमी के सरकारी अस्पताल में 24 घंटे इमर्जैंसी सेवाएं दी जा रही हैं और स्वास्थ्य कर्मचारी भी हर वक्त तैनात रहते हैं. इस के बाद भी फांसी के फंदे में झूल कर युवक ने आत्महत्या कैसे कर ली? आखिर इस का दोषी कौन है?

मृतक बीते 7 सितंबर, 2020 को डायबिटीज और बुखार की शिकायत पर अस्पताल में भरती कराया गया था. उस का शासन के स्वास्थ्य विभाग द्वारा इलाज जारी था.

आइसोलेशन वार्ड में अपने ही गमछे से फांसी लगा कर आत्महत्या कर लेना कई सवालों को समाज के सामने रख रहा है और पूछ रहा है कि आखिर एक कोरोना मरीज की आत्महत्या का दोषी कौन है?

कोरोना संक्रमण के पहले और बाद

दरअसल, कोरोना वायरस संक्रमण फैल जाने के बाद मरीज को जिस तरीके का सामाजिक, पारिवारिक और मानवीय संबल मिलना चाहिए नहीं मिल पा रहा है. शासकीय अस्पतालों में भी हमारे चिकित्सक स्टाफ का व्यवहार कितना अमानवीय है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है. ऐसे में कोरोना वायरस संक्रमण के बाद जो मानसिक स्थिति बनती है, वह किसी को भी आत्महत्या की ओर धकेल सकती है.

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अनिल जायसवाल के मामले में कुछ तथ्य सामने आए हैं. लोरमी के बीएमओ डाक्टर जीएस दाऊ के मुताबिक, युवक को डायबिटीज और बुखार की शिकायत पर अस्पताल में भरती किया गया था, इसी बीच अपने ही गमछे से उस ने आत्महत्या कर ली. पुलिस टीम की मौजूदगी में पंचनामा के बाद कोरोना टेस्ट किया गया, जिस की रिपोर्ट पौजिटिव आई है.

मामले की सूचना मिलते ही डीएसपी नवनीत कौर और थाना प्रभारी केसर पराग समेत पुलिस टीम ने घटना स्थल पर पहुंच कर मुआयना किया और फिर सारा मामला मानो समाप्त हो गया. जबकि होना यह चाहिए कि इस गंभीर मसले पर शासनप्रशासन को जांच बैठा कर यह समझना चाहिए कि आखिर अनिल जायसवाल के ‘आत्महत्या‘ करने के पीछे कारण क्या था.

इस बारे में सामाजिक कार्यकर्ता रमाकांत श्रीवास के मुताबिक, अगर एक बेहद बीमार को सकारात्मक माहौल मिलता, चिकित्सकीय परामर्श मिलता, संबल मिलता, तो वह कतई आत्महत्या नहीं करता. मगर हमारे देश में शासकीय अमला जैसा आम लोगों से व्यवहार करता है, उस में अगर कोई कोरोना मरीज आत्महत्या कर ले तो इस में आश्चर्य की क्या बात है?

हाईकोर्ट के अधिवक्ता डा. उत्पल अग्रवाल के अनुसार, संक्रमण के इस समय में कोरोना मरीजों के साथ जैसा व्यवहार दिखाई देना चाहिए, दिखाई नहीं पड़ता. यही कारण है कि देशभर में कोरोना मरीज आत्महत्या करते दिखाई दे रहे हैं, जो हमारे लिए दुर्भाग्य की बात है.

लगातार होती आत्महत्या आज सरकार के साथसाथ सामाजिक संगठनों के लिए एक चुनौती है.

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