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क्रेटा का इंटीरियर है सबसे अलग, जानें इसकी खासियत

नई हुंडई क्रेटा के इंटीरियर की बात करें तो यह बेहद ही शानदार तरीके से डिजाइन किया गया है, जिसमें दो पैनोरमिक सनरूफ दिया गया है. दरअसल, जब आप पैनोरमिक सनरूफ को ओपन करेंगे तो कार के अंदर बैठकर आप बाहर की चीजों को बड़े आराम से देख पाएंगे.

हुंडई क्रेटा के अंदर वौइस से जुड़ा एक ऐसा फीचर दिया गया है, जिससे आप जब भी सनरूफ को ओपन या बंद करना चाहते हैं तो वह वौइस फीचर के जरिए एक्टिवेट या बंद किया जा सकेगा. इन सभी विशेषताओं को देखते हुए अपने सफर को कहें #RechargeWithCreta.

आश्रम के बाद अनुप्रिया गोयंका की मर्डर मिस्ट्री “अनकही” 26 सितंबर से “इरोज नाउ” पर

सिनेमाघर बंद होने के चलते “इरोज नाउ” पर लगभग हर सप्ताह एक या दो फीचर अथवा लघु  फिल्में लगातार परोसी जा रही हैं. अभी 21 सितंबर को विचारोत्तेजक फिल्म “हलाहल” का प्रसारण “इरोज नाउ” पर शुरू हुआ था .और अब “इरोज नाउ” पर ही 26 सितंबर से पृथ्वी राठी गुप्ता और अनुश्री द्वारा निर्देशित मर्डर मिस्ट्री प्रधान लघु फिल्म “अनकही” आएगी ,जिसमें “आश्रम” फेम अनुप्रिया गोयंका के साथ टीवी कलाकार हितेन तेजवानी, साहिबान अजीम, आयुष्मान सचदेवा, अश्विन मिश्रा, रवि खेमू और अशोक पंडित की अहम भूमिकाएं है.

“अनकही” कहानी है दिल्ली में लगातार हो रही क्रूर तम हत्याओं की .पिछले 12 महीने के अंदर सीरियल किलर द्वारा दिल्ली में 11 महिलाओं की क्रूरता पूर्वक हत्या की जा चुकी है. शहर में महिलाओं की सुरक्षा की लड़ाई के साथ हर चीज उस वक्त भयानक मोड़ ले लेती है, जब छह संदिग्धों को एक दूसरे के खिलाफ 12 घंटे के अंदर एक गैरेज में बंद कर दिया जाता है ,जिससे हत्यारे का पता लगाया जा सके. उसके बाद एक ऐसा रोमांचक रहस्य सामने आता है ,जो क्रमिक हत्याओं से घिरे पूरे शहर को दहला देता है. फिल्म का क्लाइमैक्स दर्शकों को बहुत कुछ सोचने पर विवश करेगा.

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“इरोज नाउ’ की मुख्य कंटेंट अधिकारी रिद्धिमा लुल्ला का दावा है कि “अनकहीं” बहुत ही अलग तरह की मनोरंजक कहानी वाली फिल्म है.

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जबकि कई फीचर फिल्मों के अलावा “आश्रम” सहित कई वेब सीरीज में अपने अभिनय का डंका बजा चुकी अभिनेत्री अनुप्रिया गोयंका कहती है -“यह एक दिलचस्प क्राइम तीन ल फिल्म है.’ इरोज नाउ’ की इस फिल्म का हिस्सा बनकर मैं काफी खुश हूं.”

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वहीं टीवी से पहली बार डिजिटल मीडिया में प्रवेश कर रहे अभिनेता हितेन तेजवानी कहते हैं -“यह फिल्म दिल्ली में हो रही तमाम हत्याओं के रहस्य से पर्दा उठाती है. इसमें कई उतार-चढ़ाव और मोड़ हैं. यह अपराध व रोमांच की ऐसी रोचक कहानी है कि मैंने बिना देर किए इसके साथ जुड़ने के लिए हामी भर दी थी.”

‘इश्क में मरजांवा’ एक्टर राहुल सुधीर को हुआ कोरोना, फैंस हुए परेशान

जैसे –जैसे समय बीत रहा है कोरोना वायरस अपने चपेट में सभी मनोरंजन जगत के लोगों को ले रहा है. कोरोना वायरस की चपेट में आए दिन कोई न कोई सितारा आ ही जाता है. हाल ही खबर आई है कि सीरियल ‘इश्क में मरजांवा’ के एक्टर राहुल सुधीर भी कोरोना के चपेट में आ गए हैं.

राहुल सुधीर इस शो में वंश राय सिंधानिया का किरदार निभा रहे हैं. सारी गाइडलाइन्स और नियमों का पालन करने बाद भी उन्हें कोरोना हो गया.

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एक दिन पहले ही राहुल सुधीर ने सेट पर ही अपना कोरोना टेस्ट करवाया है. जिसके बाद उनका रिपोर्ट पॉजिटीव निकला है. कोरोना रिपोर्ट पॉजिटीव आने के बाद राहुल सुधीर अपने घर पर ही आइसोलेट कर रहे हैं. वह कुछ दिनों तक सेट पर नजर नहीं आएंगे. कुछ दिनों का उन्होंने ब्रेक लिया है.


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ऐसे में फैंस राहुल सुधीर को  शो में काफी मिस करने वाले हैं. उम्मीद है वह शो में जल्द वापसी करेंगे. गौरतलब है कि सीरियल इश्क में मरजावां को काफी पसंद किया जा रहा है. सोशल मीडिया पर भी इसकी फैन फॉलोविंग काफी ज्यादा लोकप्रिय हो गई है. इससे पता चलता है कि सीरियल में राहुल का ना होना कितना बड़ा नुकसान है.

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राहुल के साथ हैली शाह भी शो में नजर आ रही हैं. जिसे फैंस काफी ज्यादा पसंद करते हैं. इन दोनों की जोड़ी पर्दे पर खूब पसंद कि जाती है. लोगों को इन दोनों को एक साथ देखना अच्छा लगता है. हालांकि अभी कुछ दिनों तक दोनों सेथ नहीं नजर आएंगे.इश्क में मरजावां एक्टर राहुल सुधीर को हुआ कोरोना, फैंस हुए परेशान

सृष्टि रोड़े ने मनाया अपना जन्मदिन, करणवीर बोहरा कि बेटियों ने बनाया खास

बिग बॉस फेम एक्ट्रेस सृष्टी रोड़े ने बीते दिनों अपना जन्मदिन मनाया है. सृष्टी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपनी जन्मदिन की तस्वीर को शेयर किया है जिसे खूब पसंद किया जा रहा है.

सृष्टी को गुलाब के फूल बहुत ज्यादा पसंद है. उनके फैंस ने उन्हें गुलाब के फूल जन्मदिन पर भेजे हैं. जिसे पाकर वह बहुत ज्यादा खुश नजर आ रही हैं. सृष्टि इस बात का जिक्र बिग बॉस के घर में भी कर चुकी हैं कि उन्हें गुलाब के फूल बहुत ज्यादा पसंद है.

सृष्टि अपने बर्थ डे के सरप्राइज को देखकर फूले नहीं समा रही थी. वहीं करणवीर बोहरा और उनकी वाइफ टीजे सृष्टि को बहुत लंबे समय से जानते हैं. उन्होंने सृष्टि को घर बुलाकर एक खास सरप्राइज दे दिया जिसे पाकर सृष्टि बेहद खुश हुई.

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करणवीर बोहरा की पत्नी टीजे ने अपने घर पर ही सृष्टि के लिए केक बेक किया था जिसे देखकर सृष्टी फूली नहीं समा रही थीं.

वहीं यह बर्थ डे तब और ज्यादा स्पेशल बन गया जब करणवीर और टीजे की जुड़वा बेटियां सृष्टि के लिए दुआ कि और फिर केक काटने के लिए कहा. विएना और बेला का क्यूट अंदाज देखकर सृष्टि इमोशनल हो गई थीं.

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Happy Birthday To Meeee ??????Woke up like thisss ??? thank you so much everyone for making it so special ???

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बच्चों का प्यार देखकर सृष्टि भी बच्ची बन गई और दोनों को खूब सारा प्यार दिया. जहां करणवीर बोहरा के परिवार ने सृष्टि के बर्थ डे को खास बना दिया. वहीं जब घर पहुंची सृष्टि तो उन्हें एक और सरप्राइज मिला जिसे देखकर वह एकबार फिर खुशी से झूम उठी.

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वहीं सृष्टि रोड़े के फैंस उन्हें लगातार सोशल मीडिया के जरिए बधाई दे रहे हैं. सृष्टि रोड़े ने कुछ वक्त पहले ही इस तस्वीर को अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर किया है जिसे फैंस खूब ज्यादा लाइक और शेयर कर रहे हैं. फैंस को भी सृष्टि का यह अंदाज खूब पसंद आ रहा है.

पपीते से  बना पपेन काम  का

किसी भी फसल से ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना किसानों का खास मकसद होता है. यही बात पपीते पर भी लागू होती है. पपीते के फलों व दूध की अलगअलग अहमियत होती है. पपीते का सुखाया हुआ दूध ‘पपेन’ कहलाता है, जो सफेद या हलके क्रीम रंग और हलकी तीखी गंध वाला पाउडर होता है. बाजार में यह पपायोटिन, पपायड, कैरायड वगैरह नामों से जाना जाता है.

व्यापारिक लिहाज से यह फायदेमंद पदार्थ है, जिसे घरों, भोजनालयों और उद्योगों वगैरह में कई तरह से प्रयोग में लाया जाता है. मछली का तेल निकालने में भी यह बहुत कारगर है.

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इस के उपचार से काफी मात्रा में तेल निकलता है, जिस में विटामिन ए व डी ज्यादा होता है. अमेरिका में जौ की ठंडरोधक शराब (चिलप्रूफ बियर) के उत्पादन में इसे उपयोग किया जाता है.

कपड़ा धुलाई उद्योग में कपड़ों से धूल, जमा हुआ मैल, चिकनाई व धब्बे साफ करने में भी यह काम आता है. कपड़ा उद्योग में ऊन व रेशम को सिकुड़ने, खरोंच से बचाने व चमकदमक बनाए रखने के लिए पपेन का इस्तेमाल किया जाता है. यह दूध और कन्फैक्शनरी उद्योगों में बेहतरीन पनीर बनाने और ‘च्यूइंगम’ उत्पादन में भी कारगर होता है.

पपेन में कीटनाशक गुण होने के कारण यह आंतों के गोल कृमि वगैरह का नाश करने में खास असरदार होता है. दाद, दानेदार खुजली, एक्जिमा, झुर्रियां व जख्मों के न भरने जैसी बीमारियों के इलाज में भी इस का इस्तेमाल किया जाता है.

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पपेन का दूध निकालना

वैसे तो जड़ों के अलावा पपीते के सभी भागों में दूध पाया जाता है, लेकिन पपेन के व्यापारिक उत्पादन के लिए हरे फलों से दूध निकालते हैं. दूध निकालने के लिए हरे व बड़े आकार के पूरी तरह विकसित फलों में ही चीरा लगाते हैं, क्योंकि इस अवस्था में चीरा लगाने पर फल सामान्य रूप से बढ़ते और पकते हैं. इस से इस की उपज और महक पर कोई खास असर नहीं पड़ता.

चीरा लगाने के लिए एक खास तरह का चाकू इस्तेमाल करते हैं, जिस के द्वारा चीरा तकरीबन 2.5 से 3 मिलीमीटर गहरा होता है. ज्यादा गहरा चीरा लगाने से फफूंदी लग कर फल सड़ सकते हैं.

चीरा लगाने से पहले दूध जमा करने के लिए एक खास प्लास्टिक का छाता फलों के नीचे सूत की डोरी से पत्तियों की डंठलों में बांध कर टांग देते हैं.

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फल पर हर बार लंबाई में 3 या 4 चीरे लगा कर हफ्ते में 2 बार दूध निकालते हैं. इस तरह फल के पूरे जीवनकाल में 13-14 बार दूध निकाला जाता है.

चीरा लगाते ही फलों से दूध बहने लगता है और वह प्लास्टिक के छाते व फलों की सतह पर चिपकने लगता है. छाते और फलों पर चिपके इस दूध को रबड़ या प्लास्टिक के करछे द्वारा बालटी में जमा कर के तुरंत कार्य कक्ष में पहुंचाते हैं.

दूध निकालने का यह काम सुबह के वक्त में ही किया जाना चाहिए, क्योंकि सूरज के चढ़ते जाने के साथसाथ दूध का बहना भी कम होता जाता?है. अगर बगीचे की जमीन सूख गई हो तो दूध निकालने से 2 दिन पहले उस की अच्छी सिंचाई कर देने से ज्यादा दूध मिलता है.

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इस तरह एक बार में प्राप्त जमा हुआ दूध आमतौर पर फलों के वजन का लगभग फीसदी होता है.

पपेन का उत्पादन

बालटी में जमा करते ही दूध में वजन के मुताबिक 0.3 फीसदी सोडियम बाईसल्फाइट मिला कर खूब चलाते हैं. इस के बाद दूध को तुरंत स्टेनलैस स्टील के बरतन, जिस में स्टेनलैस स्टील का विद्युत चालित विलोडक (मथने वाला चम्मच) लगा हो, में डाल कर खूब मिलाते हैं.

इस में 1 अनुपात 5 भार व आयतन के हिसाब से 95 फीसदी इथाइल अलकोहल थोड़ाथोड़ा कर के डालते जाते हैं व विलोडक से चलाते रहते हैं.

यह प्रक्रिया 3 बार की जाती है. फिर बाद में बचे सारे अलकोहल को उस में डाल कर खूब मिला देते हैं. इसे 4 घंटे के लिए रख देते हैं. इस के बाद ऊपर का तरल पदार्थ साइफन विधि से अलग कर के बैठे हुए पदार्थ को स्टेनलैस स्टील के वसकिट सैंट्रीफ्यूज (एक किस्म की टोकरी), जिस की सारी दीवारों पर ह्वाइटमैन नं. 1 फिल्टर पेपर लगा हो, से छान लेते हैं.

इस तरह अलकोहल से ठोस पदार्थ अलग कर के बचे अलकोहल युक्त भाग को ड्रमों में बंद कर के रख देते हैं.इस ठोस पदार्थ को ऊपर प्रयोग किए गए अलकोहल के 5वें भाग आयतन के एसीटोन में भली प्रकार मिला कर आधे घंटे के लिए रख देते हैं. फिर स्टेनलैस स्टील के वसकिट सैंट्रीफ्यूज द्वारा ठोस भाग को तरल भाग से अलग कर के तरल भाग को ड्रमों में बंद कर के रख देते हैं.

प्राप्त ठोस भाग को 40 डिगरी सैंटीग्रेड पर वायु शून्य भट्टी में महक दूर होने तक सुखाते हैं. इस सूखे ठोस पदार्थ को पीस कर छानने से प्राप्त पपेन सफेद और बेहद क्रियाशील होता है. इस काम में इस्तेमाल होने वाले अलकोहल और एसीटोन को बारबार प्रयोग किया जा सकता है.

पपेन उत्पादन पर आगे की गई खोजों के बाद विकसित विधि में अलकोहल और एसीटोन का इस्तेमाल नहीं किया गया. जमा करते ही पपीते के ताजे दूध में 0.6 फीसदी सोडियम बाईसल्फाइट को अच्छी तरह मिला कर प्रैशर से चलने वाली वायु भट्टी में

50 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर सुखा कर और फिर पीस कर बारीक पाउडर बना लेते हैं.जमा हुआ गीला दूध सूखने के बाद तकरीबन 25 फीसदी रह जाता है, जिस मेंफीसदी तक नमी रह सकती है. इस में छठा भाग यानी 15-16 फीसदी ही पपेन होता है.

पपेन को रंगहीन और अधिक क्रियाशील बनाने के लिए दूध निकालने से बनाने तक किए जाने वाले कामों में धातु के चाकू, बरतनों और उपकरणों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

दूध को धूप में सुखाने के बजाय विद्युत भट्ठियों में तुरंत सुखाना चाहिए, क्योंकि धूप में सुखाने में अधिक समय लगता है. सुखाने का काम कम तापमान पर करना चाहिए, क्योंकि ज्यादा गरमी से इस के एंजाइम नष्ट हो जाते हैं.

डब्बाबंदी और?भंडारण

पपेन को ऐसे वायुरुद्ध (एयरटाइट) डब्बे में रखना चाहिए, जिस के भीतर पौलीथिन शीट लगी हो. डब्बाबंदी के बाद उस का भंडारण ठंडी व सूखी जगह पर करना चाहिए, जहां सूरज की रोशनी न पड़ती हो. डब्बों का आकार बाजार की मांग के मुताबिक होना चाहिए.

उपज

आमतौर पर एक हेक्टेयर में लगे पपीते पेड़ों से 35 से 40 टन फल और तकरीबन 830 किलोग्राम पपेन हासिल किया जा सकता है. इस तरह पपीते के फलों के साथसाथ का उत्पादन कर के किसान दोहरा मुनाफा कमा सकते हैं.

त्रिशंकु – भाग 3 : नवीन के फूहड़पन और रुचि के सलीकेपन की अनूठी कहानी

उन का विवाह रुचि की जिद से हुआ था, घर वालों की रजामंदी से नहीं. यही कारण था कि वे हर पल जहर घोलने में लगे रहते थे और उन्हें दूर करने, उन के रिश्ते में कड़वाहट घोलने में सफल हो भी गए थे.

काम करने वाली महरी दरवाजे पर आ खड़ी हुई तो वह उठ खड़ा हुआ और सोचने लगा कि उस से ही कितनी बार कहा है कि जरा रोटी, सब्जी बना दिया करे. लेकिन उस के अपने नखरे हैं. ‘बाबूजी, अकेले आदमी के यहां तो मैं काम ही नहीं करती, वह तो बीबीजी के वक्त से हूं, इसलिए आ जाती हूं.’

नौकर को एक बार रुचि की मां ले गई थी, फिर वापस भेजा नहीं. तभी रुचि ने यह महरी रखी थी.

नवीन के बाबूजी को गुजरे 7 साल हो गए थे. मां वहीं ग्वालियर में बड़े भाई के पास रहती थीं. भाभी एक सामान्य घर से आई थीं, इसलिए कभी तकरार का प्रश्न ही न उठा. उस के पास भी मां मिलने कई बार आईं, पर रुचि का सलीका उन के सरल जीवन के आड़े आने लगा. वे हर बार महीने की सोच कर हफ्ते में ही लौट जातीं. वह तो यह अच्छा था कि भाभी ने उन्हें कभी बोझ न समझा, वरना ऐसी स्थिति में कोई भी अपमान करने से नहीं चूकता.

वैसे, रुचि का मकसद उन का अपमान करना कतई नहीं होता था, लेकिन सभ्य व्यवहार की तख्ती अनजाने में ही उन पर यह न करो, वह न करो के आदेश थोपती तो मां हड़बड़ा जातीं. इतनी उम्र कटने के बाद उन का बदलना सहज न था. वैसे भी उन्होंने एक मस्त जिंदगी गुजारी थी, जिस में बच्चों को प्यार से पालापोसा था, हाथ में हर समय आदेश का डंडा ले कर नहीं.

रुचि के जाने के बाद उस ने मां से कहा था कि वे अब उसी के पास आ कर रहें, लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया था, ‘बेटा, तेरे घर में कदम रखते डर लगता है, कोई कुरसी भी खिसक जाए तो…न बाबा. वैसे भी यहां बच्चों के बीच अस्तव्यस्त रहते ज्यादा आनंद आता है. मैं वहां आ कर क्या करूंगी, इन बूढ़ी हड्डियों से काम तो होता नहीं, नाहक ही तुझ पर बोझ बन जाऊंगी.’

रुचि के जाने के बाद नवीन ने उस के मायके फोन किया था कि वह अपनी आदतें बदलने की कोशिश करेगा, बस एक बार मौका दे और लौट आए. पर तभी उस के पिता की गर्जना सुनाई दी थी और फोन कट गया था. उस के बाद कभी रुचि ने फोन नहीं उठाया था, शायद उसे ऐसी ही ताकीद थी. वह तो बच्चों की खातिर नए सिरे से शुरुआत करने को तैयार था पर रुचि से मिलने का मौका ही नहीं मिला था.

शाम को दफ्तर से लौटते वक्त बाजार की ओर चला गया. अचानक साडि़यों की दुकान पर रुचि नजर आई. लपक कर एक उम्मीद लिए अंदर घुसा, ‘हैलो रुचि, देखो, मैं तुम्हें कुछ समझाना चाहता हूं. मेरी बात सुनो.’

पर रुचि ने आंखें तरेरते हुए कहा, ‘मैं कुछ नहीं सुनना चाहती. तुम अपनी मनमानी करते रहे हो, अब भी करो. मैं वापस नहीं आऊंगी. और कभी मुझ से मिलने की कोशिश मत करना.’

‘ठीक है,’ नवीन को भी गुस्सा आ गया था, ‘मैं बच्चों से मिलना चाहता हूं, उन पर मेरा भी अधिकार है.’

‘कोई अधिकार नहीं है,’ तभी न जाने किस कोने से उस की मां निकल कर आ गई थी, ‘वे कानूनी रूप से हमारे हैं. अब रुचि का पीछा छोड़ दो. अपनी इच्छा से एक जाहिल, गंवार से शादी कर वह पहले ही बहुत पछता रही है.’

‘मैं रुचि से अकेले में बात करना चाहता हूं,’ उस ने हिम्मत जुटा कर कहा.

‘पर मैं बात नहीं करना चाहती. अब सबकुछ खत्म हो चुका है.’

उस ने आखिरी कोशिश की थी, पर वह भी नाकामयाब रही. उस के बाद कभी उस के घर, बाहर, कभी बाजार में भी खूब चक्कर काटे पर रुचि हर बार कतरा कर निकल गई.

नवीन अकसर सोचता, ‘छोटीछोटी अर्थहीन बातें कैसे घर बरबाद कर देती हैं. रुचि इतनी कठोर क्यों हो गई है कि सुलह तक नहीं करना चाहती. क्यों भूल गई है कि बच्चों को तो बाप का प्यार भी चाहिए. गलती किसी की भी नहीं है, केवल बेसिरपैर के मुद्दे खड़े हो गए हैं.

‘तलाक नहीं हुआ, इसलिए मैं दोबारा शादी भी नहीं कर सकता. बच्चों की तड़प मुझे सताती रहेगी. रुचि को भी अकेले ही जीवन काटना होगा. लेकिन उसे एक संतोष तो है कि बच्चे उस के पास हैं. दोनों की ही स्थिति त्रिशंकु की है, न वापस बीते वर्षों को लौटा सकते हैं न ही दोबारा कोशिश करना चाहते हैं. हाथ में आया पछतावा और अकेलेपन की त्रासदी. आखिर दोषी कौन है, कौन तय करे कि गलती किस की है, इस का भी कोई तराजू नहीं है, जो पलड़ों पर बाट रख कर पलपल का हिसाब कर रेशेरेशे को तौले.

वैसे भी एकदूसरे पर लांछन लगा कर अलग होने से तो अच्छा है हालात के आगे झुक जाएं. रुचि सही कहती थी, ‘जब लगे कि अब साथसाथ नहीं रह सकते तो असभ्य लोगों की तरह गालीगलौज करने के बजाय एकदूसरे से दूर हो जाएं तो अशिक्षित तो नहीं कहलाएंगे.’

रुचि को एक बरस हो गया था और वह पछतावे को लिए त्रिशंकु की भांति अपना एकएक दिन काट रहा था. शायद अभी भी उस निपट गंवार, फूहड़ और बेतरतीब इंसान के मन में रुचि के वापस आने की उम्मीद बनी हुई थी.

वह सोचने लगा कि रुचि भी तो त्रिशंकु ही बन गई है. बच्चे तक उस के खोखले सिद्धांतों व सनक से चिढ़ने लगे हैं. असल में दोषी कोई नहीं है, बस, अलगअलग परिवेशों से जुड़े व्यक्ति अगर मिलते भी हैं तो सिर्फ सामंजस्य के धरातल पर, वरना टकराव अनिवार्य ही है.

क्या एक दिन रुचि जब अपने एकांतवास से ऊब जाएगी, तब लौट आएगी? उम्मीद ही तो वह लौ है जो अंत तक मनुष्य की जीते रहने की आस बंधाती है, वरना सबकुछ बिखर नहीं जाता. प्यार का बंधन इतना कमजोर नहीं जो आवरणों से टूट जाए, जबकि भीतरी परतें इतनी सशक्त हों कि हमेशा जुड़ने को लालायित रहती हों. कभी न कभी तो उन का एकांतवास अवश्य ही खत्म होगा.

त्रिशंकु – भाग 2: नवीन के फूहड़पन और रुचि के सलीकेपन की अनूठी कहानी

वैसे भी नवीन, रुचि को कभी संजीदगी से नहीं लेता था, यहां तक कि हमेशा उस का मजाक ही उड़ाया करता था, ‘देखो, कुढ़कुढ़ कर बालों में सफेदी झांकने लगी है.’

तब वह बेहद चिढ़ जाती और बेवजह नौकर को डांटने लगती कि सफाई ठीक से क्यों नहीं की. घर तब शीशे की तरह चमकता था, नौकर तो उस की मां ने जबरदस्ती कन्नू के जन्म के समय भेज दिया था.

सुबह की थोड़ी सब्जी पड़ी थी, जिसे नवीन ने अपने अधकचरे ज्ञान से तैयार किया था, उसी को डबलरोटी के साथ खा कर उस ने रात के खाने की रस्म पूरी कर ली. फिर औफिस की फाइल ले कर मेज पर बैठ गया. बहुत मन लगाने के बावजूद वह काम में उलझ न सका. फिर दराज खोल कर बच्चों की तसवीरें निकाल लीं और सोच में डूब गया, ‘कितने प्यारे बच्चे हैं, दोनों मुझ पर जान छिड़कते हैं.’

एक दिन स्नेहा से मिलने वह उस के स्कूल गया था. वह तो रोतेरोते उस से चिपट ही गई थी, ‘पिताजी, हमें भी अपने साथ ले चलिए, नानाजी के घर में तो न खेल सकते हैं, न शोर मचा सकते हैं. मां कहती हैं, अच्छे बच्चे सिर्फ पढ़ते हैं. कन्नू भी आप को बहुत याद करता है.’

अपनी मजबूरी पर उस की पलकें नम हो आई थीं. इस से पहले कि वह जीभर कर उसे प्यार कर पाता, ड्राइवर बीच में आ गया था, ‘बेबी, आप को मेम साहब ने किसी से मिलने को मना किया है. चलो, देर हो गई तो मेरी नौकरी खतरे में पड़ जाएगी.’

उस के बाद तलाक के कागज नवीन के घर पहुंच गए थे, लेकिन उस ने हस्ताक्षर करने से साफ इनकार कर दिया था. मुकदमा उन्होंने ही दायर किया था पर तलाक का आधार क्या बनाते? वे लोग तो सौ झूठे इलजाम लगा सकते थे, पर रुचि ने ऐसा करने से मना कर दिया, ‘अगर गलत आरोपों का ही सहारा लेना है तो फिर मैं सिद्धांतों की लड़ाई कैसे लड़ूंगी?’

तब नवीन को एहसास हुआ था कि रुचि उस से नहीं, बल्कि उस की आदतों से चिढ़ती है. जिस दिन सुनवाई होनी थी, वह अदालत गया ही नहीं था, इसलिए एकतरफा फैसले की कोई कीमत नहीं थी. इतना जरूर है कि उन लोगों ने बच्चों को अपने पास रखने की कानूनी रूप से इजाजत जरूर ले ली थी. तलाक न होने पर भी वे दोनों अलगअलग रह रहे थे और जुड़ने की संभावनाएं न के बराबर थीं.

नवीन बिस्तर पर लेटा करवटें बदलता रहा. युवा पुरुष के लिए अकेले रात काटना बहुत कठिन प्रतीत होता है. शरीर की इच्छाएं उसे कभीकभी उद्वेलितकर देतीं तो वह स्वयं को पागल सा महसूस करता. उसे मानसिक तनाव घेर लेता और मजबूरन उसे नींद की गोली लेनी पड़ती.

उस ने औफिस का काफी काम भी अपने ऊपर ले लिया था, ताकि रुचि और बच्चे उस के जेहन से निकल जाएं. दफ्तर वाले उस के काम की तारीफ में कहते हैं, ‘नवीन साहब, आप का काम बहुत व्यवस्थित होता है, मजाल है कि एक फाइल या एक कागज, इधरउधर हो जाए.’

वह अकसर सोचता, घर पहुंचते ही उसे क्या हो जाया करता था, क्यों बदल जाता था उस का व्यक्तित्व और वह एक ढीलाढाला, अलमस्त व्यक्ति बन जाता था?

मेजकुरसी के बजाय जब वह फर्श पर चटाई बिछा कर खाने की फरमाइश करता तो रुचि भड़क उठती, ‘लोग सच कहते हैं कि पृष्ठभूमि का सही होना बहुत जरूरी है, वरना कोई चाहे कितना पढ़ ले, गांव में रहने वाला रहेगा गंवार ही. तुम्हारे परिवार वाले शिक्षित होते तो संभ्रांत परिवार की झलक व आदतें खुद ही ही तुम्हारे अंदर प्रकट हो जातीं पर तुम ठहरे गंवार, फूहड़. अपने लिए न सही, बच्चों के लिए तो यह फूहड़पन छोड़ दो. अगर नहीं सुधर सकते तो अपने गांव लौट जाओ.’

उस ने रुचि को बहुत बार समझाने की कोशिश की कि ग्वालियर एक शहर है न कि गांव. फिर कुरसी पर बैठ कर खाने से क्या कोई सभ्य कहलाता है.

‘देखो, बेकार के फलसफे झाड़ कर जीना मुश्किल मत बनाओ.’

‘अरे, एक बार जमीन पर बैठ कर खा कर देखो तो सही, कुरसीमेज सब भूल जाओगी.’

नवीन ने चम्मच छोड़ हाथ से ही चावल खाने शुरू कर दिए थे.‘बस, बहुत हो गया, नवीन, मैं हार गई हूं. 8 वर्षों में तुम्हें सुधार नहीं पाई और अब उम्मीद भी खत्म हो गई है. बाहर जाओ तो लोग मेरी खिल्ली उड़ाते हैं, मेरे रिश्तेदार मुझ पर हंसते हैं. तुम से तो कहीं अच्छे मेरी बहनों के पति हैं, जो कम पढ़ेलिखे ही सही, पर शिष्टाचार के सारे नियमों को जानते हैं. तुम्हारी तरह बेवकूफों की तरह बच्चों के लिए न तो घोड़े बनते हैं, न ही बर्फ की क्यूब निकाल कर बच्चों के साथ खेलते हैं. लानत है, तुम्हारी पढ़ाई पर.’

नवीन कभी समझ नहीं पाया था कि रुचि हमेशा इन छोटीछोटी खुशियों को फूहड़पन का दरजा क्यों देती है? वैसे, उस की बहनों के पतियों को भी वह बखूबी जानता था, जो अपनी टूटीफूटी, बनावटी अंगरेजी के साथ हंसी के पात्र बनते थे, पर उन की रईसी का आवरण इतना चमकदार था कि लोग सामने उन की तारीफों के पुल बांधते रहते थे.

शादी से पहले उन दोनों के बीच 1 साल तक रोमांस चला था. उस अंतराल में रुचि को नवीन की किसी भी हरकत से न तो चिढ़ होती थी, न ही फूहड़पन की झलक दिखाई देती थी, बल्कि उस की बातबात में चुटकुले छोड़ने की आदत की वह प्रशंसिका ही थी. यहां तक कि उस के बेतरतीब बालों पर वह रश्क करती थी. उस समय तो रास्ते में खड़े हो कर गोलगप्पे खाने का उस ने कभी विरोध नहीं किया था.

नींद की गोली के प्रभाव से वह तनावमुक्त अवश्य हो गया था, पर सो न सका था. चिडि़यों की चहचहाहट से उसे अनुभव हुआ कि सवेरा हो गया है और उस ने सोचतेसोचते रात बिता दी है.

चाय का प्याला ले कर अखबार पढ़ने बैठा, पर सोच के दायरे उस की तंद्रा को भटकाने लगे. प्लेट में चाय डालने की उसे इच्छा ही नहीं हुई, इसलिए प्याले से ही चाय पीने लगा.

शादी के बाद भी सबकुछ ठीक था. उन के बीच न तो तनाव था, न ही सामंजस्य का अभाव. दोनों को ही ऐसा नहीं लगा था कि विपरीत आदतें उन के प्यार को कम कर रही हैं. नवीन भूल से कभी कोई कागज फाड़ कर कचरे के डब्बे में फेंकने के बजाय जमीन पर डाल देता तो रुचि झुंझलाती जरूर थी पर बिना कुछ कहे स्वयं उसे डब्बे में डाल देती थी. तब उस ने भी इन हरकतों को सामान्य समझ कर गंभीरता से नहीं लिया था.

अपने सीमित दायरे में वे दोनों खुश थे. स्नेहा के होने से पहले तक सब ठीक था. रुचि आम अमीर लड़कियों से बिलकुल भिन्न थी, इसलिए स्वयं घर का काम करने से उसे कभी दिक्कत नहीं हुई.

हां, स्नेहा के होने के बाद काम अवश्य बढ़ गया था पर झगड़े नहीं होते थे. लेकिन इतना अवश्य हुआ था कि स्नेहा के जन्म के बाद से उन के घर में रुचि की मां, बहनों का आना बढ़ गया था. उन लोगों की मीनमेख निकालने की आदत जरूरत से ज्यादा ही थी. तभी से रुचि में परिवर्तन आने लगा था और पति की हर बात उसे बुरी लगने लगी थी. यहां तक कि वह उस के कपड़ों के चयन में भी खामियां निकालने लगी थी.

Nutrition Special: क्या आपको पता है नारियल पानी के ये 8 फायदे

दिन की शुरुआत होते ही बेतहाशा गर्मी और उमस से हर कोई परेशान रहता  है. दिन बेहद बोझिल लगने लगता  है और साथ में थकान भी बहुत महसूस होती  है. इससे बचने  के लिए जरूरी है कि आप नारियल पानी का सेवन करें. नारियल पानी में एंटीऔक्सिडेंट्स और पोषक तत्व होते हैं जो कि शरीर को स्वस्थ रखते हैं. नारियल पानी में विटामिन सी, मैग्नीशियम, मैग्नीज, पोटैशियम, सोडियम और कैल्शियम भी भरपूर मात्रा में होता है. नारियल पानी पीने से एसिडिटी में भी राहत मिलती है .गर्भवती महिलाओं के लिये भी नारियल पानी बहुत लाभदायक होता है ऐसे ही कई बीमारियों के लिये लाभकारी है नारियल पानी .

  1. डायरिया मे फायदेमंद :
  2. नारियल पानी पीने से शरीर मे पानी की कमी नहीं रहती. डायरिया ,उलटी ,दस्त जैसी बीमारी से शरीर मे पानी की कमी आ जाती है अगर आप नारियल पानी का सेवन करते हैं तो  आपको फायदेमंद रहेगा. साथ ही  जरूरी लवणों पोषक तत्वों की मात्रा भी संतुलित बनी रहेगी.

2. गर्भवती महिलाओं के लिये है नारियल पानी बेहतर:

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गर्भवती महिलाओं को अधिक मात्रा में तरल पदार्थों की जरूरत होती है. ” नारियल पानी शरीर में रक्त की मात्रा को बढ़ाने, टौक्सिन निकालने और रक्तचाप को कम करने में  मदद करता  है. गर्भावस्था की पहले तीन महीने में नारियल पानी के सेवन से सुबह में जी मिचलाना (मौर्निग सिकनेस), कब्ज और थकान दूर करने में फायदेमंद साबित होता है . साथ ही यह प्रतिरोधक क्षमता को सुधरता है .

3. हाई ब्लड प्रेशर:

नारियल मे मौजूद विटामिन सी, पोटैशियम और मैग्नीशियम हाई ब्लड-प्रेशर को नियंत्रित रखता है .इसका एंटी-औक्सीडेंट गुण ब्लड  सर्कुलेशन को अच्छा करता है. कोलेस्ट्रौल और फैट-फ्री होने के कारण ये दिल के लिये बहुत  अच्छा होता है .

4. डायबिटीज मे फायदेमंद :

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डायबिटीज मे शुगर लेवल बढ़ने के  कारण शरीर में इंसुलिन हार्मोन की कमी होती है. नारियल पानी में पाया जाने वाला एंटीऔक्सिडेंट्स इंसुलिन के स्राव में मदद करता है. इसलिए यह डायबिटीज के रोगी के लिए काफी फायदेमंद होता है .

5. किडनी स्टोन मे दिलाए राहत:

किडनी मे पत्थरी बनने का कारण  कैल्शियम, औक्सलेट और अन्य कई तत्वों को मिलने से क्रिस्टल बनता है जो की पत्थरी का रूप ले  लेता है. नारियल पानी इन क्रिस्टल्स को गला देता  है और पथरी को जल्दी बाहर निकालने में मदद करता है .

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6. वजन करें कम:

यह पूरी तरह से फैट रहित होता है. इसके सेवन से पेट भरा रहता  है और भूख कम लगती है.

7. बुढ़ापा करें दूर:

इसमें पाए जाने वाले साइटोकिन्स नई कोशिकाओं के निर्माण को बढ़ावा देते हैं, जिससे ढलती उम्र के लक्षण जल्दी नहीं  दिखाई देते .

8. सुबह खाली पेट सेवन सबसे फायदेमंद:

सुबह के वक्त खाली पेट नारियल पानी पीना सबसे उपयुक्त माना जाता है.क्योंकि इससे एसिडिटी की समस्या मे भी आराम मिलता है  अगर आप वजन कम करने की कोशिश में जुटे हैं तो खाना खाने से पहले इसे पीना फायदेमंद साबित होता   है.

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कब न पिएं…………………………….

सर्दी जुखाम,जोड़ो के दर्द  मे नहीं पिएं क्योंकि इसका तासीर ठंडा होता है .कसरत करने के तुरंत बाद नहीं पिएं क्योंकि कसरत के बाद हमें ज्यादा सोडियम वाले पर्दार्थ का सेवन करना चाहिये लेकिन इसमे सोडियम की मात्रा कम होती है .

ज्यादा मात्रा में पीने से पेट दर्द की शिकायत व कमजोरी भी महसूस  हो सकती है.

मेरा देवर मुझे पसंद करता है,कई दफा वह मेरे साथ ऐसी हरकतें करता है जो मेरे पति को नागवार गुजरती हैं, क्या करूं?

सवाल
मैं अपने पति से बहुत प्यार करती हूं. समस्या यह है कि उन का भाई यानी मेरा देवर मुझे बहुत पसंद करता है. कई दफा वह मेरे साथ कुछ ऐसा व्यवहार कर जाता है जो मेरे पति को नागवार गुजरता है. मैं देवर को भी नाराज नहीं करना चाहती. क्या करूं?

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जवाब
आप को पहले इस मामले में स्वयं क्लियर होना होगा. यदि आप अपने पति से प्यार करती हैं तो फिर इस प्यार को बनाए रखने के लिए दूसरे रिश्तों से एक मर्यादित दूरी बना कर रखें. अपने देवर से स्पष्ट तौर पर कह दें कि आप उन्हें सिर्फ देवर के तौर पर देखती हैं और वह आप को ले कर किसी तरह की ख्वाहिशें न पाले.

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अकसर देवर भाभी के अवैध रिश्ते जिंदगी में तूफान ले आते हैं. पति की भावनाओं का खयाल रखें. मुमकिन हो तो आप दोनों पति पत्नी कहीं अलग एक छोटा सा फ्लैट ले लें ताकि देवर से थोड़ी दूरी कायम हो जाए. हर वक्त साथ रहने से इस तरह के नाजुक रिश्तों में गलतफहमियां बढ़ने के आसार बढ़ जाते हैं.

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