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मासिक धर्म कोई पाप नहीं

कुछ दिनों पूर्व मैंने अपनी टीनेजर बेटी के साथ एकदुकान से  सेनेटरी पैड्स का एक पैकेट खरीदा. दुकानदार ने एक काली पॉलीथीन में पैक करके मुझे वह पैकेट थमा दिया. इसे देखकर मेरी बेटी बोली, ” मां सेनेटरी पैड्स कोई गन्दी चीज़ होती है.” मेरे मना करने पर उसने अगला प्रश्न किया” फिर हमेशा इन्हें काली पॉलीथीन में रखकर क्यों दिया जाता है जब कि बच्चों और बड़ों के डायपर तो ऐसे ही दे दिए जाते हैं.’

” बात तो तुम्हारी सही है परन्तु अभी इस तथ्य को समाज को समझने में कई वर्ष लग जाएंगे कि सेनेटरी पैड्स और दूसरे पैड्स में कोई अंतर नहीं होता.”

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 मैंने उसे तो उत्तर दे दिया परन्तु स्वयम ही सोच में पड़ गयी क्योंकि पिछले 40 वर्ष से मै स्वयम यही दंश झेलती आयी हूँ. मुझे याद है मैंने जब बचपन में एक बार मां से पैड्स को पेपर में पैक करके देने का कारण पूछा था तो वे झुंझलाते हुए बोलीं थीं, ‘अरे आदमी लोग देखेंगे तो अच्छा नहीं लगेगा न.” उस वक़्त मैं भी चुप हो गयी थी. परन्तु आज की पीढ़ी बहुत जागरूक है और तार्किक है एम बी ए की छात्रा प्रगति कहती है,” जिस मासिक धर्म से इस सृष्टि का निर्माण होता है उसे लोगों के द्वारा गन्दी नजरों से देखना उनकी गन्दी सोच को ही परिलक्षित करता है.”  इसी प्रकार के विचार एक गृहिणी नमिता के हैं वे कहतीं हैं, ‘”जब मुझे पहली बार पीरियड्स हुए तो मां मुझे एक कमरे में ले गईं और बोलीं, अब ये हर माह होगा और ध्यान रखना घर में किसी को पता न चले….मैं सहम गयी और मुझे लगा कि ये बहुत बुरी चीज है इसीलिए मुझे किसी के सामने इसका जिक्र नहीं करना है परन्तु जब मेरी बेटी को पहली बार पीरियड्स हुए तो मैंने उसे कहा, “ये एक जैविक क्रिया है जो संसार की हर महिला को होती है इसके होने का तातपर्य है कि आपका प्रजनन तंत्र दुरुस्त है इस दौरान स्वच्छता का ध्यान रखना है शरीर के लोअर पार्ट को आराम देना है.'” अपनी बात को और अधिक स्पष्ट करती हुई वह आगे कहती है जैसे नहाना, धोना, और नित्य कर्म करना  दैनिक क्रियाकलाप है उसी प्रकार मासिक धर्म भी  हम महिलाओं का मासिक क्रियाकलाप है इसमें छुपाने या गन्दा जैसा क्या है.” आई टी इंजीनियर रश्मि अपने मुखर शब्दों में कहती हैं, “यदि एक माह भी लडक़ी को नियमित पीरियड्स नहीं आएं तो अभिभावक उसे डॉक्टर के पास लेकर दौड़ते हैं और इलाज करवाते हैं, जिन पीरियड्स के न आने पर महिला संतानोत्पत्ति तक नहीं कर पाती उन पीरियड्स में गन्दा जैसा क्या है मुझे समझ नहीं आता ये केवल पिछड़ी और दकियानूसी सोच है और कुछ नहीं.”

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क्यों देखा जाता है मासिक धर्म को गन्दी नजर से

मासिक धर्म को गन्दा या घृणास्पद माने जाने का सबसे बड़ा कारण हमारे धार्मिक ग्रन्थ हैं जिनमें मासिक धर्म को लेकर अनेको भ्रांतियों का वर्णन किया गया है. न केवल हिन्दू बल्कि सभी धर्मों में महिलाओं के मासिक धर्म को अपवित्र माना गया है जिससे इस दौरान महिलाएं अशुद्ध हो जातीं हैं.

हिन्दूधर्म ग्रन्थों में महिलाओं के मासिक धर्म  को इंद्र के द्वारा किये गए ब्रह्महत्या के पाप का एक हिस्सा माना जाता है. उसी पाप के परिणामस्वरूप स्त्री को मासिक धर्म होता है अतः धर्म ग्रन्थों में रजस्वला को पापी माना गया है इसीलिए रजस्वला स्त्री मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकतीं. इस दौरान स्त्रियों के लिए नियम सयंम बरतने और  अनेकों कार्य करना निषिद्ध बताते हुए उन्हें एक अशुद्ध और अश्पृश्य प्राणी माना गया है. अंगिरस स्मृति (पद 35)के अनुसार मासिक धर्म समाप्त होने के चौथे दिन शुद्धि स्नान के बाद स्त्रियां पुनः शुद्ध हो जातीं है और तब वे किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में भाग ले सकतीं हैं.

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कुछ समय पूर्व केरल के सबरीमाला मंदिर में रजस्वला स्त्रियों (10 से 50 वर्ष) के प्रवेश को लेकर बहुत हंगामा हुआ और  सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय दिया कि “हर उम्र की महिला को मंदिर में प्रवेश की अनुमति है.” परन्तु इस निर्णय के विरोध में प्रदेश में भारी प्रदर्शन हुये और लगभग 50 पुनर्विचार याचिकायें दाखिल की गईं और अब ये मामला कोर्ट में लंबित है. यहां भी 10 से 50 वर्ष की महिलाओं को प्रवेश न दिए जाने का कारण मासिक धर्म के दौरान उनका अशुद्ध होना ही है क्योंकि मंदिर में विराजे भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी हैं और अशुद्ध महिलाओं की उन पर छाया भी नहीं पड़नी चाहिए.

अनुष्ठान के नाम पर छलावा

भारत के कई प्रान्तों में जब लड़की प्रथम बार रजस्वला होती है तो निकट के रिश्तेदारों और परिचितों को बुलाकर विभिन्न आयोजन करके खुशियां मनाई जाती हैं. तमिलनाडु में इस आयोजन को “मंजल नीरातु विझ” नाम से जाना जाता है. मेहमानों को बुलाकर लड़की को हल्दी के पानी से स्नान कराया जाता है और घर के पास नारियल, नीम और आम के पत्तो से बनी झोपड़ी बनायी जाती है जिसमें मासिक धर्म के दौरान लड़की को रहना होता है. फिर 9 वें, 11 वें और 15 वें दिन पुनः आयोजन करके लड़की को सिल्क की साड़ी और ज्वैलरी पहनाई जाती है अर्थात अब वह शुद्व हो गयी.

इसी प्रकार के आयोजन आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और असम में पृथक पृथक नामों से किये जाते हैं जिन्हें खुशी मनाने का प्रतीक बताया जाता है  परन्तु वास्तव में यह एक छलावा मात्र है क्योंकि यहां भी पीरियड्स के दौरान लड़की का झूठा खाना कुत्ते तक को न दिए जाने का अंधविश्वास है क्योंकि ये माना जाता है कि रजस्वला का जूठा भोजन खाने से कुत्ते के पेट में दर्द हो जाएगा. लड़की को एक कमरे में ही निवास करना होता है, उसे खाने के अलग बर्तन और सोने के लिए अलग गद्दा दिया जाता है. यद्यपि वर्तमान में शहरी क्षेत्रों में इस प्रकार के आयोजन भले ही  मृत प्राय हो चुके हैं परन्तु इसके पीछे जुड़े अंधविश्वास आज भी जस के तस बरकरार हैं.

कैसे कैसे अंधविश्वास

अगस्त माह में मालवा क्षेत्र की महिलाएं ऋषि पंचमी नामक एक व्रत करतीं हैं जिसका उद्देश्य मासिक धर्म के दौरान अनजाने में हुए किसी पाप से मुक्ति पाना होता है. यहां पाप से तात्पर्य मासिक धर्म के दौरान रसोईघर अथवा मंदिर के किसी वस्तु को छूने से है. क्योंकि ऋषिपंचमी व्रत की कथा ही इस प्रकार है कि ,”एक ब्राह्मण कन्या मासिक धर्म के दौरान किसी प्रतिबंध को नहीं मानती थी तो कुछ समय बाद उसके शरीर में कीड़े पड़ गए फिर उसने सात ऋषियों की मूर्ति बनाकर पूजा की तब कहीं जाकर उसे अपने इस पाप से मुक्ति मिली. इस प्रकार के धार्मिक अंधविश्वास मासिक धर्म को एक पाप की संज्ञा देकर महिलाओं के अंदर भय उत्पन्न करने का काम करते हैं और इसी भय के कारण वे अपने ही शरीर की इस स्वाभाविक क्रिया को गंदा मानने लगतीं हैं.

धार्मिक ग्रंथों में इस दौरान महिलाओं को अचार न छूने, पेड़ पौधों विशेषकर तुलसी, नीम आदि में पानी न डालने और न ही छूने, रसोईघर में न जाने, पूजा पठन करने, धार्मिक स्थलों पर न जाने, नए कपड़े न पहनने, घड़े को हाथ न लगाने, पति के साथ बिस्तर पर न सोने जैसे अन्य अनेकों कार्य न करने को कहा गया है क्योंकि इस दौरान वे अशुद्ध और अपवित्र हो जातीं हैं. आश्चर्यजनक रूप से आज भी शहरी शिक्षित महिलाएं तक इनमें से अधिकांश नियमों का खुशी खुशी पालन करतीं हैं.

क्या है मासिक धर्म

स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर श्रीमती सुधा अस्थाना कहती हैं,”पीरियड्स स्त्री के शरीर में प्रतिमाह होने वाली एक आवश्यक और स्वाभाविक जैविक क्रिया है जिसका नियमित और उचित उम्र पर होना आवश्यक है. इसमें अपवित्र और अशुद्ध जैसा कुछ नहीं होता वे आगे कहतीं हैं, “पुराने समय में स्त्रियों का बहुत शोषण होता था, न तो दर्द निवारक दवाइयां थीं और न पैड्स  तो उन दिनों में उनके स्वास्थ्य की दृष्टि से अलग कमरे में सुकून से रहने के लिए कहा जाता था. इसके अतिरिक्त कई बार स्त्रियों के पति इस अवस्था में भी संसर्ग करना नहीं छोड़ते थे अतः उन्हें आराम देने के लिए इस प्रकार की व्यवस्था की गई परन्तु बाद में हमारे ही धर्म ने उसमें अंधविश्वासों का पुलिंदा जोड़ दिया. अपनी बात को वे और स्पष्ट करतीं हैं,”अचार न छूना, खाना न बनाना, मंदिर न जाना या पूजा न करना, साफ कपड़े न छूना, बिस्तर पर न सोना ये सब कोरे अंधविश्वास हैं. इनका मासिक धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है.”

एक सच्चाई यह भी

स्वास्थ्य के नजरिए को परे रखकर यदि विचार किया जाए तो मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को घर की प्रत्येक गतिविधि से पृथक करने का कारण था कि प्राचीनकाल में एक  राजा के अनेकों पत्नियां होतीं थीं ऐसे में रजस्वला पत्नी को गन्दा, अस्पृश्य और अशुद्ध बताकर घर के एक कोने में डालकर बाकियों के साथ वे मजे करते थे. इस प्रकार महिलाओं से स्वयम को शक्तिशाली बताने का और उन पर शासन करने का एक प्रयास भी था परन्तु आश्चर्य इस बात का है कि इतने वर्षों बाद भी महिलाएं पुरुषों के द्वारा बनाये गए उन्हीं उसूलों को खुशी खुशी मानने में गर्व का अनुभव करतीं हैं और जो महिलाएं इन अंधविश्वासयुक्त नियम कायदों का पालन नहीं करतीं उन्हें अमर्यादित और असंस्कारी माना जाता है.

आवश्यकता है दिमाग से सोचने की

आज तकनीक और विज्ञान का युग है ऐसे में सदियों पुराने दकियानूसी और अंधविश्वास से परिपूर्ण नियम कायदों पर चलना कोरी मूर्खता है. इस संदर्भ में हम महिलाओं को ही आगे आना होगा अपनी सोच को तर्कशील बनाकर इन सड़ी गली परम्परा और मान्यताओं को समूल उखाड़ फेंकना होगा ताकि आने वाली पीढ़ी को एक स्वस्थ विचारधारा दे सकें.अपनी विचारधारा को परिष्कृत करके इस विषय में अधिक से अधिक जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है. बालिकाओ को प्रारम्भ से ही इस प्रकार की शिक्षा और संस्कार दिए जाने चाहिए ताकि वे इसे एक गन्दगी और पाप नहीं बल्कि अपने शरीर की एक सहज स्वाभाविक और आवश्यक  क्रिया मानकर गर्व अनुभव करें.

अब कंगना के निशाने पर आई अनुष्का शर्मा , जानें क्या है पूरा मामला

भारत के पूर्व कप्तान  सुनील गावस्कर के कमेंट के बाद से अनुष्का शर्मा लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं. अनुष्का शर्मा के बारे में सुनील गावस्कर ने नेशनल  टावी पर कमेंट किया था. जिसके बाद अनुष्का शर्मा भी छुप नहीं बैठी थीं उन्होंने भी लंबा सा पोस्ट लिखकर सुनील गावस्कर को जाहिर किया था कि उन्हें यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा.

जिसके बाद से अनुष्का शर्मा को सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जाने लगा था. लगातार कई तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही थी जिसमें अनुष्का क्रिकेट के मैदान में विराट कोहली के साथ नजर आ रही थीं.

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वहीं मामला तब और ज्यादा  दिलचस्प हो गया जब बॉलीवुड क्वीन कंगना रनौत इस मैदान में खुलकर सामने आ गई. कंगना ने एक ट्विट करते हुए सीधा निशाना अनुष्का शर्मा पर साधा है.

कंगना ने अपने टविट में लिखा है कि अनुष्का तुम उस वक्त बिल्कुल चुप थी जब लोग मुझे हरामखोर कह रहे थें. लेकिन आज वैसी ही बेइज्जती तुम्हारी भी हो रही है. लोग तुम्हारे बारे में ऐसी वैसी बातें कर रहे हैं. मैं इस बात की निंदा करती हूं कि सुनील गावस्कर को तुम्हारा नाम क्रिकेट से नहीं जोड़ना चाहिए था. यह बहुत गलत है. यहां मैं यही कहना चाहूंगी कि तुम्हारा फेमिनिज्म बहुत सिमित है.

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दूसरे ट्विट में कंगना ने लिखा कि घटिया सोच वालों का कुछ नहीं हो सकता जिनको सुनील गावस्कर के कमेंट में एडल्ट नजर आ रहा है. ऐसे लोगों का कुछ नहीं हो सकता है.

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वहीं अनुष्का शर्मा इन दिनों दुबई में हैं. वह अपने पति विराट कोहली के साथ एंजॉय कर रही हैं. आए दिन अनुष्का शर्मा अपने सोशल मीडिया पर अलग-अलग पोस्ट शेयर करती रहती हैं.

जल्द ही अनुष्का विराट मां- पापा बनने वाले हैं. उन्होंने इस बात की सूचना कुछ वक्त पहले ही दिया था. फैंस को विराट के बच्चे का इंतजार हैं.

Crime Story: जिंदगी का आखिरी पड़ाव

लेखक प्रकाश पुंज

सौजन्य- मनोहर कहानियां

13अगस्त, 2020 की सुबह रुद्रपुर जिले के गांव रामबाग का रहने वाला भवतोष मंडल घूमने के लिए घर  से निकला. वह सड़क पर पहुंचा तो उस की नजर करनैल सिंह के ट्यूबवैल पर जा कर ठहर गई. ट्यूबवैल के सामने एक चटाई बिछी थी, जिस पर 2 लोग पड़े थे.

जिज्ञासावश भवतोष मंडल नजदीक पहुंच गया. उन दोनों को देखते ही उन का माथा ठनका. क्योंकि उन में एक उस का बेटा राहुल मंडल था और दूसरी युवती थी, जो गांव के ही डालचंद की बेटी प्रेमा थी. बेटे को प्रेमा के पास  लेटा देख उन का परेशान होना स्वाभाविक था.

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राहुल रात से ही घर से गायब था. इस से पहले कि भवतोष की समझ में कुछ आता, उस ने अपने बेटे को उठाने की कोशिश की तो वह नहीं उठा. उस ने उसे बारबार उस का नाम ले कर उठाया. लेकिन वह नहीं उठा. आखिरकार भवतोष मंडल ने राहुल का हाथ पकड़ कर उसे उठाने की कोशिश की तो पता चला उस का शरीर ठंडा पड़ कर पूरी तरह अकड़ गया है. भवतोष मंडल समझ गया कि उस का बेटा मर चुका है.

भवतोष ने बेटे की मौत की जानकारी अपने बड़े बेटे सचिन को देते हुए घटनास्थल पर पहुंचने को कहा. घर वहां से कुछ ही दूर था. खबर मिलते ही उस के घर वाले फौरन घटनास्थल पर पहुंच गए.

इस जानकारी ने पूरे गांव में सनसनी फैला दी. सुबहसुबह यह खबर मिलते ही गांव के लोग घटनास्थल पर जमा हो गए. अपनी बेटी की मौत की खबर सुन कर डालचंद भी घटनास्थल पर पहुंच गया. लोगों ने एक बार फिर से दोनों को ठीक से चैक किया तो उन्हें लगा कि प्रेमा की अभी सांस चल रही है.

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तभी किसी ने 108 नंबर पर फोन कर के सरकारी एंबुलेंस बुला ली. एंबुलेंस दोनोें को जिला अस्पताल ले गई.अस्पताल में दोनों का चैकअप  किया गया तो पता चला दोनों की ही मौत हो चुकी है. युवकयुवती की मृत्यु की सूचना पुलिस को दे दी गई. सूचना मिलते ही दिनेशपुर थानाप्रभारी दिनेश सिंह फर्त्याल ने इस मामले से अपने उच्चाधिकारियों को भी अवगत करा दिया और मौके पर पहुंच गए.

घटना की जानकारी मिलते ही बाजपुर सीओ दीपशिखा अग्रवाल भी जिला अस्पताल पहुंचीं और उन्होंने घटना से संबंधित जानकारी हासिल की. उस वक्त घटनास्थल पर युवक और युवती दोनों के परिवार वाले मौजूद थे. पुलिस ने इस संबंध में उन से जानकारी जुटाई.

थानाप्रभारी दिनेश फर्त्याल ने घटनास्थल पर बारीकी से निरीक्षण किया. वहां से पुलिस को 2 चीजें मिलीं. एक सिंदूर की डिब्बी और दूसरा कीटनाशक का डिब्बा. घटनास्थल पर काफी दूर तक सिंदूर बिखरा पड़ा था.

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साफ जाहिर था कि कीटनाशक खाने से पहले सिंदूर से युवती की मांग भरी गई थी. उस के बाद ही दोनों ने जहर खा कर खुदकुशी की थी.

इस मामले को ले कर पुलिस ने प्रेमा के घर वालों से विस्तार से जानकारी ली तो पता चला कि प्रेमा शादीशुदा और एक बच्चे की मां थी. वह काफी समय से मायके में ही रह रही थी. उस की बड़ी बहन ने पुलिस को बताया कि राहुल और प्रेमा के बीच काफी समय से प्रेम प्रसंग चल रहा था. अचानक ऐसा क्या हुआ कि दोनों ने जहर खा कर खुदकुशी कर ली, यह जानकारी किसी को नहीं थी.

मामले की तह तक जाने के लिए पुलिस ने हरसंभव प्रयास किया, लेकिन कोई सच्चाई सामने नहीं आई. हालांकि पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रेमी युगल के परिवार वालों के साथसाथ युवती के ससुराल वालों से भी संपर्क साधने की कोशिश की, लेकिन ससुराल वालों के दिल्ली में रहने की वजह से कोई जानकारी हासिल नहीं हो पाई.

इस मामले में दोनों ही परिवारों में से किसी ने भी लिखित तहरीर पुलिस को नहीं दी, जिस के कारण थाने में कोई मुकदमा दर्ज नहीं हुआ.

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पुलिस जांच में जो सच्चाई सामने आई, वह प्रेम प्रसंग की एक ऐसी कहानी थी, जिस की सजा युवती के नवजात शिशु को ताउम्र झेलनी पड़ेगी. साथ ही प्रेमी युगल के इस आत्मघाती कदम ने 3 परिवारों को गमगीन कर दिया था.

उत्तराखंड के जिला रुद्रपुर के गदरपुर दिनेशपुर मार्ग पर एक गांव रामबाग है. इस गांव में ज्यादातर बंगालियों की आबादी है, जिन में अधिकांश लोग दूसरों के खेतों में काम कर के अपनी गुजरबसर करते हैं. डालचंद का परिवार इसी रामबाग गांव में रहता था.

डालचंद के 4 बच्चों में पूनम उर्फ प्रेमा तीसरे नंबर की थी. राहुल और प्रेमा ने गांव के स्कूल में साथसाथ पढ़ाई की थी. दोनों का एकदूसरे के घर पर भी आनाजाना था. लेकिन तब तक दोनों को प्रेम की भाषा की कोई समझ नहीं थी. यही कारण था कि प्रेमा की पढ़ाई बंद होने के बाद दोनों कुछ दिनों में एकदूसरे को भुला बैठे.

प्रेमा ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस की सुंदरता लोगों की नजरों में उतरने लगी. लगभग 3 साल पहले की बात है, शिवरात्रि के दिन डालचंद अपने परिवार के साथ दिनेशपुर में लगने वाले मेले में गया हुआ था. वहीं पर उस की मुलाकात दुलाल से हुई. डालचंद और दुलाल एकदूसरे से अच्छी तरह परिचित थे. वहीं पर दुलाल के घर वालों ने प्रेमा को देखा.

प्रेमा की सुंदरता दुलाल के बेटे दुर्जो सिकदार के मन को भा गई. दुर्जो ने मन बना लिया था कि चाहे कुछ भी हो वह शादी करेगा तो प्रेमा से करेगा. इस के बाद वह प्रेमा के चक्कर में पड़ कर उस का पीछा करने लगा.

दुर्जो सिकदार जानता था कि वह अपने परिवार की इजाजत के बिना कुछ नहीं कर सकता. उस के पिता दुलाल वैसे भी उस की शादी करने की तैयारी कर रहे थे. तभी एक दिन दुर्जो ने अपने पिता को अपने दिल की बात बताते हुए प्रेमा से शादी करने की इच्छा बताई.

दुलाल जानता था कि डालचंद का परिवार उस के परिवार के स्तर का नहीं है, लेकिन बेटे की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा. एक दिन डालचंद से मुलाकात कर दुलाल ने अपने बेटे की शादी उस की बेटी प्रेमा से करने की इच्छा जताई.

उस की इच्छा जान कर डालचंद को खुशी हुई. क्योंकि वह जानता था कि दुलाल का परिवार अच्छा खातापीता था. रामबाग के अलावा दिनेशपुर में भी उन का मकान था. डालचंद बेटी की शादी दुर्जो से करने के लिए तैयार हो गया. दोनों परिवारों की रजामंदी के बाद करीब 3 साल पहले दुर्जो और प्रेमा शादी के बंधन में बंध गए. शादी के कुछ दिनों तक दोनों दिनेशपुर में परिवार वालों के साथ रहे. तब तक सब कुछ ठीक चलता रहा. बाद में दुर्जो अपनी बीवी प्रेमा को साथ ले कर दिल्ली चला गया.

दुर्जो की मां पारुल बाहरी दिल्ली के नरेला की जेजे कालोनी में रहती थी. पारुल ने वहीं पर अपना मकान भी बना रखा था. वहां रह कर वह किसी फैक्ट्री में काम करती थी.

हालांकि प्रेमा देखनेभालने में भी सुंदर थी और सब काम भी होशियारी से करती थी. लेकिन पारुल उसे शुरू से अपने परिवार के लायक नहीं समझती थी. क्योंकि वह एक सामान्य परिवार से थी. इसी वजह से दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना भी बहुत कम होता था.

दुर्जो ने प्रेमा के साथ अपनी मरजी से शादी की थी. दिल्ली जाने के बाद भी वह हर समय उसी से चिपका रहता था. उस की मां पारुल ने कई बार उसे समझा कर कोई कामधाम करने को कहा. लेकिन उस ने मां की एक न सुनी. जब अपनी

ही औलाद नाकारा हो तो इंसान को गुस्सा आता ही है. यही पारुल के साथ भी हुआ.

वह थकीहारी काम से घर लौटती तो बेटा अपनी बीवी के साथ गुलछर्रे उड़ाता मिलता. जबकि घर का कामकाज भी पारुल को ही करना पड़ता था. उसी कामकाज को ले कर सासबहू में अनबन रहने लगी. दोनों के बीच विवाद बढ़ा

तो पारुल ने बेटे और बहू को गांव भेज दिया. दुर्जो प्रेमा को ले कर गांव तो चला आया लेकिन उस का वहां पर मन नहीं लगा. उस के कुछ समय बाद वह पुन: प्रेमा को ले कर दिल्ली चला गया. दिल्ली जा कर वह काम भी करने लगा था. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. लेकिन प्रेमा एक बार सास की नजरों में गिरी तो फिर से सास का प्यार हासिल नहीं कर पाई.

इसी के चलते दिल्ली से प्रेमा का मन उचट गया. वह फिर से दुर्जो से गांव जाने की जिद करने लगी. उसी दौरान प्रेमा प्रेगनेंट हुई. जब यह खबर दुर्जो को लगी तो वह बहुत खुश हुआ. लेकिन उस की मां पारुल के दिल पर तो जैसे छुरियां चल गई थीं. उस ने प्रेमा को परेशान करना शुरू किया.

अपनी सास के जुल्मों से तंग आ कर प्रेमा अपने मायके आ गई. मायके में ही उस ने बेटे को जन्म दिया. डिलिवरी के दौरान प्रेमा को अस्पताल में एडमिट कराना पड़ा. अस्पताल में जो भी खर्च हुआ, वह डालचंद ने अपने पास से किया था. डालचंद ने फोन कर के बच्चे के जन्म की खुशखबरी दुर्जो के घर को दी. लेकिन इस के बावजूद उस के परिवार का कोई सदस्य नवजात और बहू से मिलने तक नहीं आया.

प्रेमा के बच्चे के जन्म के बाद उस का नामकरण भी डालचंद ने कराया. बच्चे का नाम पप्पू रखा गया था. पप्पू जब काफी समझदार हो गया तो एक दिन दुर्जो आया और प्रेमा व बच्चे को दिल्ली ले गया. प्रेमा को उम्मीद थी कि घर में पोते के आने की खुशी में सब ठीक हो जाएगा. लेकिन पारुल को इस से कोई फर्क नहीं पड़ा.

वह पहले की तरह ही प्रेमा और उस के बच्चे के साथ दुर्व्यवहार करती रही. मां के व्यवहार को देखनेसमझने के बावजूद दुर्जो में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह कुछ कह पाता. जब प्रेमा अपनी सास से ज्यादा परेशान हो गई तो उस ने दुर्जो से उसे फिर से गांव छोड़ने की जिद की. जबकि दुर्जो किसी भी कीमत पर गांव जाने को तैयार न था.

इसी दौरान देश में लौकडाउन लगा तो सभी अपनेअपने घरों में कैद हो कर रह गए. पारुल का काम बंद हुआ तो वह भी घर में रहने लगी. घर में पैसे की कमी आई तो पारुल का स्वभाव और भी चिड़चिड़ा हो गया. अब प्रेमा पारुल को एक आंख नहीं सुहाती थी. उस ने दुर्जो से उसे उस के मायके छोड़ आने को कहा.

लेकिन लौकडाउन के चलते कुछ नहीं हो सकता था. लौकडाउन के चलते सासबहू के बीच विवाद काफी बढ़ गया था, पारुल ने कई बार उस पर हाथ भी उठाया. लेकिन प्रेमा मजबूरी में सब कुछ सहन करती रही. जब सास की ज्यादती कुछ ज्यादा ही बढ़ गई तो वह किसी तरह दिल्ली से अपने मायके रामबाग जा पहुंची. अपने घर पहुंच कर उस ने अपनी सास के जुल्मों की कहानी अपने घर वालों को सुनाई.

लेकिन मायके वालों के सामने सब से बड़ी मजबूरी पैसे की थी. वह चाह कर भी इस मामले में कुछ नहीं कर सकते थे. इसी बात को ले कर डालचंद दिनेशपुर में रह रहे दुलाल से जा कर मिला. लेकिन दुलाल की भी बीवी के सामने कुछ बोलने की हिम्मत नहीं थी.

डालचंद ने इसी बात को ले कर गांव में पंचायत भी बैठाई. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. तब से प्रेमा अपने मायके में ही रह रही थी. रामबाग आने के दौरान एक दिन उस की मुलाकात राहुल मंडल से हुई. राहुल मंडल प्रेमा को देख कर काफी खुश हुआ. एक बच्चे को जन्म देने के बाद प्रेमा के रंगरूप में और भी निखार आ गया था. दोनों काफी अरसे के बाद मिले तो फिर से दोनों की पहली मोहब्बत जाग उठी. राहुल अभी भी कुंवारा था.

राहुल से मिल कर प्रेमा ने अपनी जिंदगी की सारी दुख भरी दास्तान उसे सुना दी. प्रेमा के दुख के बारे में जान कर राहुल का दिल परेशान हो उठा. उस के बाद पे्रमा और राहुल का मिलनाजुलना बढ़ गया. राहुल से मुलाकात होते ही प्रेमा अपने अतीत के दिनों को भुला कर उस से प्यार करने लगी. दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ा तो प्रेमा ने ससुराल और मायके वालों की परवाह किए बिना ही आगे की जिंदगी राहुल के साथ बिताने की ठान ली.

दोनों अपने परिवार वालों की नजरों से छिपतेछिपाते मिलने के साथ ही मोबाइल पर भी बात करने लगे. हालांकि राहुल जानता था कि अभी प्रेमा का दुर्जो से तलाक नहीं हुआ है. इस के बावजूद वह उस की मोहब्बत में इतना पागल हो गया कि किसी भी कीमत पर उसे छोड़ने को तैयार नहीं था.

दोनों की प्रेम कहानी एक दिन राहुल के घर वालों के सामने आई तो उन्हें बहुत बुरा लगा. उन्होंने राहुल को समझाने की कोशिश की. लेकिन उस ने घर वालों की एक नहीं मानी. इस से घर वालों ने उस से बात करनी बंद कर दी. लेकिन प्रेमा और राहुल के बीच प्रेमकहानी यूं ही बराबर चलती रही.

यह बात डालचंद के सामने आई तो वह भी परेशान रहने लगा. उस ने प्रेमा को समझाने की कोशिश की, लेकिन उस ने अपने पिता से साफ शब्दों में कह दिया कि वह किसी भी कीमत पर दुर्जो के साथ नहीं रहेगी.

डालचंद बेटी के दर्द को समझता था. इसलिए उस ने प्रेमा और राहुल के प्रेम संबधों के बीच आना ठीक नहीं समझा. दोनों के बीच चल रही प्रेम कहानी का धीरेधीरे परिवार में सभी को पता चल गया.

उसी दौरान एक दिन प्रेमा अपने बच्चे पप्पू को साथ ले कर राहुल के घर जा पहुंची. उस ने सब के सामने राहुल से प्यार करने वाली बात बता कर उस के साथ शादी करने की बात कही. शादी की बात सुनते ही राहुल के घर वाले बिगड़ गए. उन का साफ कहना था कि वह तो पहले से ही शादीशुदा और एक बच्चे की मां है. फिर ऐसे में राहुल के साथ शादी कैसे कर सकती है. लेकिन प्रेमा अपनी बात पर अड़ी थी.

काफी समझाने के बाद भी जब प्रेमा नहीं मानी तो राहुल ने डालचंद को फोन किया. यह बात सुनते ही राहुल के घर पर काफी लोग इकट्ठा हो गए. वहां मौजूद लोगों ने राहुल और प्रेमा दोनों को समझाने की कोशिश की, लेकिन दोनों में से एक भी किसी की बात मानने को तैयार नहीं था. दोनों की जिद को देखते हुए दोनों के परिवार वालों ने उन्हें घर से बाहर कर दिया. राहुल प्रेमा को साथ ले कर गांव से निकल गया.

गांव से जाने के बाद राहुल ने दिनेशपुर में ही किराए का एक कमरा ले लिया और वहीं से काम करने लगा था. हालांकि राहुल के घर से चले जाने के बाद उस के घर वालों को कोई फर्क नहीं पड़ा था. लेकिन डालचंद और उस की बीवी अपनी बेटी और उस के बेटे को ले कर चिंता में रहने लगे थे.

ममता जागी तो एक दिन प्रेमा की मां ने अपना गुस्सा ठंडा कर के प्रेमा से मोबाइल पर बात की. हालांकि राहुल मेहनती था, लेकिन लौकडाउन के चलते उसे कहीं काम नहीं मिला तो वह भी आर्थिक तंगी से गुजरने लगा.

यह बात जान कर प्रेमा की मां ने उन्हें फिर से अपने गांव बुला लिया. गांव आते ही राहुल अपने घर चला गया और प्रेमा अपनी मां के घर आ कर रहने लगी. राहुल के घर आने के बाद उस के घर वालों ने उस से सीधे मुंह बात तक नहीं की. न तो कोई उस से खानेपीने के बारे में पूछता था और न ही किसी तरह की बात करता था.

घर वालों के रवैए की वजह से उस का मन अशांत रहने लगा था. जब कभी उस का मन दुखी होता तो वह प्रेमा से मोबाइल पर बात कर अपने मन को समझा लेता था. यही हाल प्रेमा का भी था.

राहुल के प्यार के सामने वह अपनी अतीत की जिंदगी को पूरी तरह से भूल कर उसी की बन कर रहना चाहती थी. इस के बावजूद उस के घर वालों ने उसे समझाया, लेकिन तब तक वह राहुल के प्यार में इतनी डूब चुकी थी कि उस के बिना उसे अपनी जिंदगी बेकार लगने लगी थी.

राहुल उस का पहला प्यार था. जिस के साथ रह कर वह अपनी जिंदगी का अगला सफर काटना चाहती थी. लेकिन जल्दी ही उसे लगने लगा कि पारिवारिक अड़चनों के सामने उन की जिंदगी का सफर इतना आसान नहीं है.

गुजरते समय के साथ दोनों को लगने लगा था कि सामाजिक बंधन उन्हें कभी एक नहीं होने देंगे. प्रेमा जानती थी कि राहुल के बिना उस की जिंदगी निरर्थक है. दुर्जो के परिवार वालों के दुर्व्यवहार

से वह पहले ही टूट चुकी थी, जिस के साथ वह एक पल भी गुजारने को तैयार नहीं थी. दोनों पर पारिवारिक दबाव बढ़ना शुरू हुआ, लेकिन इस के बावजूद दोनों चोरीछिपे मिलते रहे. लेकिन एक दिन ऐसा भी आया जब दोनों जिंदगी की कांटों भरी राह पर चलतेचलते टूट गए.

प्रेमा के परिवार ने अपनी बेटी की दुख भरी जिंदगी से तंग आ कर उसे पूरी छूट दे दी. लेकिन उसे केवल राहुल का साथ ही चाहिए था. जिस की राहोें मे उस के परिवार वाले कांटा बने हुए थे.

जब दोनों सामाजिक बंधनों से पूरी तरह से तंग आ गए तो वे जिंदगी के आखिरी पड़ाव की ओर चल पड़े. उन्होंने सोचा कि जीते जी दुनिया वाले एक नहीं होने देंगे, लेकिन साथ मरने से तो कोई नहीं रोक सकता.

राहुल अपने परिवार वालों के व्यवहार से ज्यादा ही तंग आ गया था. उस ने कई बार खुद को संभाला, अपना दुख अपनी प्रेमिका के साथ साझा किया. लेकिन शाम आतेआते वह इतना थक गया कि उस ने जिंदगी और मौत की राह में मौत का रास्ता चुना. उस शाम उस ने प्रेमा से कई बार बात की.

यह 13 अगस्त, 2020 की बात है. शाम होते ही प्रेमा घर से निकली, तो छोटी बहन ने उसे टोका, ‘‘दीदी कहां जा रही हो?’’

जाते समय उस ने इतना ही कहा कि लौट कर आई तो बताऊंगी कहां जा रही हूं. उस के बाद उस ने अपने मासूम पप्पू के सिर पर हाथ रख कर प्यार जताया. फिर निकल पड़ी दुनिया के आखिरी सफर की ओर.

राहुल ने प्रेमा को जिस स्थान पर बुलाया था, वहां से दोनों के घरों तक रास्ता जाता था. राहुल प्रेमा के आने से पहले ही ट्यूबवैल के पास रखी प्लास्टिक की चटाई उठा लाया था. ताकि जिंदगी के आखिरी रास्ते पर गुजरने से पहले वह अपनी प्रेमिका प्रेमा के साथ कुछ पल गुजार सके.

चटाई पर बैठ कर दोनों ऐसे मिले कि जिंदगी के सारे गिलेशिकवे दूर हो गए हों. जुदाई के पलों में दोनों की आंखों से आंसुओं की बरसात हो रही थी. दोनों ने एकदूसरे की आंखों के आंसू रोकने की लाख कोशिश की. लेकिन आंसुओं के सैलाब के आगे कुछ नहीं कर पाए. प्रेमा ने अपने आप को संभाला और हाथ में दबी सिंदूर की डिब्बी उस के हाथ में थमा दी.

राहुल ने कांपते हाथों से डिब्बी खोल कर उस की मांग में सिंदूर भर दिया. मांग में सिंदूर भरते ही प्रेमा ने राहत की सांस ली. फिर बोली, राहुल काश! जिंदगी में पहली बार तुम्हारे हाथों से मेरी मांग में सिंदूर भरा गया होता तो तुम्हारी उम्र शायद इतनी कम न होती. प्रेमा की बात सुन कर राहुल भावुक हो उठा. उस के बाद उस ने अपने हाथ में लिया कीटनाशक आधा गले से नीचे उतार लिया,फिर वही शीशी उस ने प्रेमा की ओर बढ़ा दी.

दोनों ही प्रेम की आखिरी राहों में जहर का प्याला पी कर निकल गए. पलभर के लिए दोनों गले मिले और फिर दोनों ने मौत की राह पकड़ ली. उस दिन जन्माष्टमी थी. गांव में जन्माष्टमी का कार्यक्रम भी था. जिस की वजह से न तो राहुल के परिवार ने ही उस की परवाह की और न ही प्रेमा के परिवार वालों ने.

प्रेमा की मां ने उस की चिंता जताई तो डालचंद ने उसे समझा दिया कि वह जरूर राहुल के साथ होगी. इस के बाद दोनों निश्चिंत हो कर सो गए.

अगली सुबह दोनों के घर वालों को दोनों की मौत की खबर मिली. दोनों के मोबाइल उसी चटाई पर पड़े मिले.

फोन से इस घटना की जानकारी पे्रेमा की ससुराल दिल्ली भेज दी गई थी, लेकिन वहां से कोई नहीं आया और न ही दिनेशपुर में रह रहे दुर्जो के घर वाले इस शोक में शामिल हुए. प्रेमा का डेढ़ वर्षीय मासूम इस समय अपनी ननिहाल में पल रहा है. लेकिन दुर्जो ने अपनी सगी औलाद का मुंह देखने की भी जरूरत नहीं समझी.

इस प्रेम कहानी का दुखद अंत तो हो गया, लेकिन गांव वालों की जुबान पर एक ही बात थी कि अगर उन्हें साथसाथ रहना ही था तो घर वापस क्यों आए. मौत को गले लगाने से तो अच्छा था कि दोनों कहीं दूर चले जाते.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में बदमाशों की चुंगल में फंस जाएगी नायरा, कार्तिक को बचाने की करेगी हर कोशिश

महीनों बाद ये रिश्ता क्या कहलाता है सीरियल में हाई वोल्टेज ड्रामा की शुरुआत हो चुकी है. इस सीरियल में कुछ महीनों से ऐसा दिखाया जा रहा था कि  जबसे कार्तिन और नायरा की जिंदगी में कृष्णा की एंट्री हुई है उसने उनके लाइफ को हेल बना दिया है.

बता दें कि पिछले एपिसोड में दिखाया गया है कि नायरा अपने घर से यह कहकर निकलती है कि उसे शक हो रहा है कि कार्तिक कृष्णा के घर पर ही है. वह गोयनका हाउस से कार्तिक को ढ़ूढ़ने के लिए अकेले ही निकल जाती है.

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एक रिपोर्ट के मुताबिक बताया गया है कि जब नायरा कार्तिक के घर जा रही होगी इसी बीच बदमाश उन्हें मिल जाएगा वहीं कार्तिक और कृष्णा खुद को उस बदमाश से बचाने के लिए जंगल में जा छिपेंगे तो वहीं नायरा कृष्णा के घर की दीवार को टप कर जाना चाहेगी और वह इसी बीच फंस जाएगी . इधर उसकी रहात ज्यादा खराब होने लगेगी तभी उसे ख्याल आएगी की चाहे कुछ भी हो डाए कार्तिक को कुछ नहीं होना चाहिए तभी उसे अपने होने वाले बच्चे का भी ख्याल आएगा कि नहीं मुझे अपने बच्चे को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाना है.

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इसके बाद जब नायरा को कृष्णा के घर पर कोई नहीं मिलेगा तो वह जंगल में ढ़ूढ़ते –ढूंढ़ते जाएगी तभी उसे अचानक कार्तिक का पर्स दिखेगा. जिसे देखते ही उसका शक यकीन में बदल जाएगा.

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वहीं खबर यह भी हो कि मोहसीन खान इस सीरियल को जल्द ही अलविदा कहने वाले हैं तो कहीं इसके बाद उनकी मौत न हो जाएं. फैंस को इस बात का भी डिर सता रहा है. खैर सारी बातें तो आपको आगे सीरिल देखने के बाद पता चलेगी देखते हैं आगे क्या होगा.

कड़ी- भाग 1 : रिश्तों की कड़ियां जब उलझती हैं तो उलझती ही जाती हैं

बृहस्पति की शाम को विवेक को औफिस से सीधे अपने घर आया देख कर निकिता चौंक गई.

‘‘खैरियत तो है?’’

‘‘नहीं दीदी,’’ विवेक ने बैठते हुए कहा, ‘‘इसीलिए आप से और निखिल जीजाजी से मदद मांगने आया हूं, मां मुझे लड़की दिखाने ले जा रही है.’’

निखिल ठहाका लगा कर हंस पड़ा और निकिता भी मुसकराई.

‘‘यह तो होना ही है साले साहब. गनीमत करिए, अमेरिका से लौटने के बाद मां ने आप को 3 महीने से अधिक समय दे दिया वरना रिश्तों की लाइन तो आप के आने से पहले ही लगनी शुरू हो गई थी.’’

‘‘लेकिन मैं लड़की पसंद कर चुका हूं जीजाजी और यह फैसला भी कि शादी करूंगा तो उसी से.’’

‘‘तो यह बात मां को बताने में क्या परेशानी है, लड़की अमेरिकन है क्या?’’

‘‘नहीं जीजाजी. आप को शायद याद होगा, दीदी, जब मैं अमेरिका से आया था तो एयरपोर्ट पर मेरे साथ एक लड़की भी बाहर आई थी?’’

निकिता को याद आया, विवेक के साथ एक लंबी, पतली युवती को आते देख कर उस ने मां से कहा था, ‘विक्की के साथ यह कौन है, मां? पर जो भी हो दोनों की जोड़ी खूब जम रही है.’ मां ने गौर से देख कर कहा था, ‘जोड़ी भले ही जमे मगर बन नहीं सकती. यह जस्टिस धरणीधर की बेटी अपूर्वा है और इस की शादी अमेरिका में तय हो चुकी है, शादी से पहले कुछ समय मांबाप के साथ रहने आई होगी’.

निकिता ने मां की कही बात विवेक को बताई. ‘‘तय जरूर हुई है लेकिन शादी होगी नहीं. मेरी तरह अपूर्वा को भी अमेरिका में रहना पसंद नहीं है और वह हमेशा के लिए भारत लौट आई है,’’ निकिता की बात सुन कर विवेक ने कहा.

‘‘उस ने यह फैसला तुम से मुलाकात के बाद लिया?’’

‘‘मुझ से तो उस की मुलाकात प्लेन में हुई थी, दीदी. बराबर की सीट थी, सो, इतने लंबे सफर में बातचीत तो होनी ही थी. मेरे से यह सुन कर कि मैं हमेशा के लिए वापस जा रहा हूं, उस ने बताया कि उस का इरादा भी वही है. उस के बड़े भाई और भाभी अमेरिका में ही हैं.

‘‘पिछले वर्ष घरपरिवार अपने बेटे के पास बोस्टन गया था. वहां जस्टिस धर को पड़ोस में रहने वाला आलोक अपूर्वा के लिए पसंद आ गया. अपूर्वा के यह कहने पर कि उसे अमेरिका पसंद नहीं है, उस की भाभी ने सलाह दी कि बेहतर रहे कि वीसा की अवधि तक अपूर्वा वहीं रुक कर कोई अल्पकालीन कोर्स कर ले ताकि उसे अमेरिका पसंद आ जाए. सब को यह सलाह पसंद आई. संयोग से आलोक के मातापिता भी उन्हीं दिनों अपने बेटे से मिलने आ गए और सब ने मिल कर आलोक और अपूर्वा की शादी की बात पक्की कर दी और यह तय किया कि शादी आलोक का प्रोजैक्ट पूरा होने के बाद करेंगे.

‘‘अपूर्वा को आलोक या उस के घर वालों से कोई शिकायत नहीं है. बस, अमेरिका की भागदौड़ वाली जिंदगी खासकर ‘यूज ऐंड थ्रो’ वाला रवैया कोशिश के बावजूद भी पसंद नहीं आ रहा. भाईभावज ने कहा कि वह बगैर आलोक से कुछ कहे, पहले घर जाए और फिर कुछ फैसला करे. मांबाप भी उस से कोई जोरजबरदस्ती नहीं कर रहे मगर उन का भी यही कहना है कि वह रिश्ता तोड़ने में अभी जल्दबाजी न करे क्योंकि आलोक के प्रोजैक्ट के पूरे होने में अभी समय है. तब तक हो सकता है अपूर्वा अपना फैसला बदल ले. यह जानते हुए कि उस का फैसला कभी नहीं बदलेगा, अपूर्वा आलोक को सच बता देना चाहती है ताकि वह समय रहते किसी और को पसंद कर सके.’’

‘‘उस के इस फैसले में आप का कितना हाथ है साले साहब?’’

‘‘यह उस का अपना फैसला है, जीजाजी. हालांकि मैं ने उस से शादी करने का फैसला प्लेन में ही कर लिया था मगर उस से कुछ नहीं कहा. टैनिस खेलने के बहाने उस से रोज सुबह मिलता हूं. आज उस के कहने पर कि समझ नहीं आ रहा मम्मीपापा को कैसे समझाऊं कि आलोक को ज्यादा समय तक अंधेरे में नहीं रखना चाहिए, मैं ने कहा कि अगर मैं उन से उस का हाथ मांग लूं तो क्या बात बन सकती है तो वह तुरंत बोली कि सोच क्या रहे हो, मांगो न. मैं ने कहा कि सोचना मुझे नहीं, उसे है क्योंकि मैं तो हमेशा नौकरी करूंगा और वह भी अपने देश में ही. सो, आलोक जितना पैसा कभी नहीं कमा पाऊंगा. उस का जवाब था कि फिर भी मेरे साथ वह आलोक से ज्यादा खुश और आराम से रहेगी.’’

‘‘इस से ज्यादा और कहती भी क्या, मगर परेशानी क्या है?’’ निखिल ने पूछा.

‘‘मां की तरफ से तो कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि अपूर्वा की मां शीला से उन की जानपहचान है…’’

‘‘वही जानपहचान तो परेशानी की वजह है, दीदी,’’ विवेक ने बात काटी, ‘‘मां कहती हैं कि अपूर्वा की मां ने उन्हें जो बताया है वह सुनने के बाद वे उसे अपनी बहू कभी नहीं बना सकतीं.’’

‘‘शीला धर से मां की मुलाकात सिर्फ महिला क्लब की मीटिंग में होती है और बातचीत तभी जब संयोग से दोनों बराबर में बैठें. मैं नहीं समझती कि इतनी छोटी सी मुलाकात में कोई भी मां अपनी बेटी के बारे में कुछ आपत्तिजनक बात करेगी.’’

‘‘मां उन से मिली जानकारी को आपत्तिजनक बना रही हैं जैसे लड़की की उम्र मुझ से ज्यादा है…’’

‘‘तो क्या हुआ?’’ निकिता ने बात काटी, ‘‘लगती तो तुम से छोटी ही है और आजकल इन बातों को कोई नहीं मानता. मैं समझाऊंगी मां को.’’

‘‘यही नहीं और भी बहुतकुछ समझाना होगा, दीदी,’’ विवेक ने उसांस ले कर कहा, ‘‘फिलहाल तो शनिवार की शाम को गुड़गांव में जो लड़की देखने जाने का कार्यक्रम बना है, उसे रद करवाओ.’’

‘‘मुझे तो मां ने इस बारे में कुछ नहीं बताया.’’

‘‘कुछ देर पहले मुझे फोन किया था कि शनिवारइतवार को कोई प्रोग्राम मत रखना क्योंकि शनिवार को गुड़गांव जाना है लड़की देखने और अगर पसंद आ गई तो इतवार को रोकने की रस्म कर देंगे. मैं ने टालने के लिए कह दिया कि अभी मैं एक जरूरी मीटिंग में हूं, बाद में फोन करूंगा. मां ने कहा कि जल्दी करना क्योंकि मुझे निक्की और निखिल को भी चलने के लिए कहना है.’’

निखिल फिर हंस पड़ा,

‘‘यानी मां ने जबरदस्त नाकेबंदी की योजना बना ली है. पापा भी शामिल हैं इस में?’’

‘‘शायद नहीं, जीजाजी. सुबह मैं और पापा औफिस जाने के लिए इकट्ठे ही निकले थे. तब मां ने कुछ नहीं कहा था.’’

‘‘मां योजना बनाने में स्वयं ही सिद्धहस्त हैं. उन्हें किसी को शामिल करने या बताने की जरूरत नहीं है. उन के फैसले के खिलाफ पापा भी नहीं बोल सकते,’’ निकिता ने कहा.

‘‘तुम्हारा मतलब है साले साहब को गुड़गांव लड़की देखने जाना ही पड़ेगा,’’ निखिल बोला.

‘‘जब उसे वहां शादी करनी ही नहीं है तो जाना गलत है. तुम कई बार शनिवार को भी काम करते हो विवेक, सो, मां से कह दो कि तुम्हें औफिस में काम है और फिर चाहे अपूर्वा के साथ या मेरे घर पर दिन गुजार लो.’’

पुराने बागों को नया बनाएं मुनाफा बढ़ाएं

लेखक-  डा. बालाजी विक्रम, डा. पूर्णिमा सिंह सिकरवार

फलों के उत्पादन में भारत चीन के बाद दूसरे नंबर पर आता है. फलों के उत्पादन में अग्रणी होने के लिए हम सभी को नए व पुराने बागों में नई तकनीकों और उचित देखभाल की जरूरत पर जोर देना पड़ेगा. जैसे कि बागों को लगाने की सघन पद्धति व पुराने बागों में उत्पादकता में बढ़ोतरी की जा सकती है.

यह है तकनीक

जीर्णोद्धार तकनीक द्वारा पुराने घने व कम फायदेमंद पौधों में नए प्रवाह की तादाद बढ़ा कर पौधों को दोबारा उत्पादक बनाया जाता है.

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इस तकनीक से पौधों की कैनोपी प्रबंधन द्वारा ज्यादा से ज्यादा फल देने वाली शाखाओं में बढ़ोतरी की जाती है, जिस के बाद पुराने बागों से दोबारा अच्छी उपज (प्रति पौधा) मिलती है.

बागों का चुनाव

ऐसा देखा गया है कि आम की 50-55 साल व अमरूद, आंवला व लीची 25-30 साल बाद पेड़ों की शाखाएं बढ़ कर दूसरे पेड़ों को छूने लगती हैं. नतीजतन, सूरज की रोशनी पेड़ों के पर्णीय भागों में सही से नहीं पहुंच पाती है, जिस की कमी में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कमजोर हो जाती है. नतीजतन, कल्ले पतले और बीमार हो जाते हैं.

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यही नहीं, ऐसे बागों में कीट व बीमारियों का प्रकोप भी ज्यादा होता है, जिन का नियंत्रण कर पाना मुश्किल हो जाता है और बाग उत्पादन की नजर से बेकार हो जाते हैं. ऐसे पेड़ों की कटाईछंटाई कर के बागों को दोबारा उत्पादक बनाया जा सकता है.

बागों में कटाईछंटाई

माली और हालात के नजरिए से बेकार हो चुके पेड़ों की सभी गैरजरूरी शाखाओं को दिसंबर से जनवरी महीने में काटना फायदेमंद होता है.

कटाईछंटाई विधि

पुराने, घने और माली नजरिए से बेकार पेड़ों की सभी गैरजरूरी शाखाओं की पहले से ही निशानदेही कर लेते हैं. बाद में कुछ चुनी हुई शाखाओं को जमीन से 4-5 मीटर की ऊंचाई पर चाक या सफेद पेंट से निशानदेही कर देते हैं. फिर दिसंबर महीने में उन शाखाओं को जमीनी सतह से तकरीबन 4 से 5 मीटर की ऊंचाई पर आरी या मशीनरी आरी से कटाई कर देते हैं.

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पौधों के बीच में स्थित घनी शाखाओं, सूखी, बीमार व आड़ीतिरछी शाखाओं को उन के निकलने की जगह से ही काट देते हैं. पर्णीय क्षेत्र के विकास के लिए पेड़ पर मात्र 3 से 4 कटी शाखाएं ही रखते हैं. पुराने बाग के पेड़ों की कटाई एकसाथ या एकांतर पंक्तियों में करते हैं.

शाखा काटते समय सावधानियां

शाखाओं को काटते समय यह सावधानी जरूर रखनी चाहिए कि शाखाएं गैरजरूरी रूप से निचले भाग से फट न जाएं. साफसफाई करने के लिए पौधों की शाखाओं को तेज धार वाली आरी या मशीन ‘प्रूनिंग सा’ की मदद से काटते हैं, इसलिए पहले आरी से नीचे की तरफ लगभग 15-20 सैंटीमीटर कटाई करें, फिर टहनी के ऊपरी भाग से कृंतन यानी कटाई करते हैं.

तेज हवा या आंधीतूफान के समय पेड़ों की कटाई न करें. शाखाओं को काटते समय यह जरूर देख लें कि कही ततैया या फिर मधुमक्खी वगैरह के छत्ते तो नहीं हैं.

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कटे भाग की करें देखभाल

कृंतन यानी काटरने के तुरंत बाद ही 1 किलोग्राम फफूंदीनाशक दवा 250 ग्राम अंडी का तेल या पानी में गाढ़ा घोल का लेप शाखाओं के कटे हुए भाग पर लगाते हैं, ताकि सूक्ष्म जीवाणुओं और रोगों का संक्रमण न हो सके. कटाई के बाद पौधों के तनों में चूने से पुताई कर देते हैं. ऐसा करने से गोंद निकलने व छाल फटने की समस्या कम हो जाती है. पौधों के कटे हुए शिरों पर पौलीथिन बांधना चाहिए. इस के बाद फरवरी महीने के बीच में पेड़ों के तनों के पास थाले व सिंचाई की नालियां जरूर बना देनी चाहिए.

कटाई के बाद प्रबंधन

कटाई के बाद पेड़ों में 3 किलोग्राम यूरिया, 3 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 1.5 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश प्रति पेड़ की दर से थाले में इस्तेमाल करते हैं. इन खादों में सिंगल सुपर फास्फेट व म्यूरेट औफ पोटाश की पूरी मात्रा और यूरिया की आधी मात्रा फरवरी के आखिर में थालों में डालते हैं. उस के बाद जून महीने के आखिर में बचे यूरिया की मात्रा व 250 ग्राम बोरैक्स, 250 ग्राम जिंक सल्फेट और 250 ग्राम कौपर सल्फेट देते हैं.

इस के अलावा जुलाई के पहले हफ्ते में 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ 100 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति पेड़ डालना फायदेमंद होता है. इन उर्वरकों की मात्रा प्रतिवर्ष दिए जाने की सलाह दी जाती है.

कटाई और जल प्रबंधन

पेड़ों की सिंचाई मध्य मार्च से मानसून आने तक 10-12 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए. सिंचाई थालों में करनी चाहिए. बूंदबूंद सिंचाई करना फायदेमंद होता है.

इस विधि से बिजली, पानी और समय की बहुत ज्यादा बचत होती है. सारा खेत भी ज्यादा कीचड़ भरा नहीं होता और पौधों की जड़ में पानी मिलता है, जहां मिलना चाहिए. नमी बचाने के लिए थालों में पुआल की पलवार को बिछाना चाहिए.

कल्लों का विरलीकरण

दिसंबर महीने में हुए कृंतन के तकरीबन 3-4 महीने बाद इन छांटी हुई शाखाओं पर नए कल्ले निकलते हैं, जिन का वांछित विरलीकरण जरूरी है. स्वस्थ कल्लों युक्त खुले पर्णीय क्षेत्र के विकास के लिए शाखाओं के बाहरी और

8-10 स्वस्थ कल्ले प्रति शाखा रख कर शेष अवांछित कल्लों को जून से अगस्त महीने में हटा दिया जाता है.

इस विरलीकरण के बाद फफूंदनाशक दवा कौपर औक्सीक्लोराइड (3 ग्राम प्रति लिटर पानी में) के घोल का छिड़काव करना जरूरी है, जिस से शाखाओं को फफूंदनाशक बीमारियों से बचाया जा सकता है.

कीट व रोग प्रबंधन

बाग की समयसमय पर निराईगुड़ाई करते रहना चाहिए. समुचित देखरेख की कमी में कृंतित वृक्ष तनाभेदक कीट से ग्रसित हो जाता है. कीट द्वारा बनाए सुराख में लोहे की पतली तीली डाल कर तनाबेधक कीट व गिडारों को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए. साथ ही, कीटनाशी दवा डाईक्लोरोवास में भीगे रूई के फाहों को छेद में रख कर गीली मिट्टी से बंद कर देते हैं. इस प्रकार इस कीट का नियंत्रण किया जा सकता है.

नए कल्लों को पत्ती खाने वाला कीट ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है. कीटनाशी दवा मोनोक्रोटोफास 36 ईसी (2 ग्राम प्रति लिटर पानी) का 10-12 दिन के अंतराल पर 2 छिड़काव कर के इस कीट का नियंत्रण किया जा सकता है.

अंतरफसलीय चक्र महत्त्व

जीर्णोद्धार के बाद बगीचे की जमीन काफी खाली हो जाती है, जिस में तरहतरह की अंतरफसल जैसे जायद में लौकी, खीरा व अन्य सब्जियां, खरीफ में मूंग, उड़द व अन्य दलहनी फसलें और रबी में मटर, सरसों, राजमा, पत्तागोभी, मेथी वगैरह फसलों की सफल खेती की जा सकती है.  इस से किसानों को आमदनी के साथसाथ बगीचे की मिट्टी में भी सुधार होता है.

अंतरशस्य फसल पौधों के पूर्ण छत्रक विकास होने तक लगाई जा सकती है. उस के बाद छाया में होने वाली फसलों जैसे हलदी, अदरक वगैरह की सफल खेती भी की जा सकती है.

पुष्पन व फलन

कटाईछंटाई के बाद पेड़ों की सघन व समयसमय पर देखभाल करने से कृंतित शाखाओं पर निकलने वाले कल्ले तकरीबन

2 साल बाद पुष्पन व फल में आने लगते हैं. प्रयोगों के आधार पर पाया गया कि कृंतित पेड़ों से गुणवत्तायुक्त इस तरह जीर्णोद्धार विधि द्वारा पुराने व अनुत्पादक बाग 20-25 साल के लिए दोबारा फायदेमंद हो जाते हैं.

कड़ी- भाग 3 : रिश्तों की कड़ियां जब उलझती हैं तो उलझती ही जाती हैं

‘‘देखिए धर साहब, अपनी इज्जत तो सभी को प्यारी होती है खासकर अभिजात्य वर्ग की महिलाओं को अपने सोशल सर्किल में,’’ निखिल ने नम्रता से कहा, ‘‘जबरदस्ती करने से तो वे बुरी तरह बिलबिला जाएंगी और उन के ताल्लुकात अपूर्वा और विवेक के साथ हमेशा के लिए बिगड़ सकते हैं.’’

‘‘अपूर्वा और विवेक से ही नहीं, मेरे और केशव नारायण से भी बिगड़ेंगे लेकिन इन सब फालतू बातों से डर कर हम बच्चों की जिंदगी तो खराब नहीं कर सकते न?’’

‘‘कुछ खराब करने की जरूरत नहीं है, धर साहब. धैर्य और चतुराई से बात बन सकती है,’’ निखिल ने कहा, ‘‘मैं यह प्रतियोगिता जीतने की खुशी के बहाने आप को सपरिवार क्लब में डिनर पर आमंत्रित करूंगा और अपनी ससुराल वालों को भी. फिर देखिए मैं क्या करता हूं.’’

जस्टिस धर ने अविश्वास से उस की ओर देखा. निखिल ने धीरेधीरे उन्हें अपनी योजना बताई. जस्टिस धर ने मुसकरा कर उस का हाथ दबा दिया.

निखिल का निमंत्रण सुकन्या ने खुशी से स्वीकार कर लिया. क्लब में बैठने की व्यवस्था देख कर उस ने निखिल से पूछा कि कितने लोगों को बुलाया है?

‘‘केवल जस्टिस धरणीधर के परिवार को?’’

‘‘उन्हें ही क्यों?’’ सुकन्या ने चौंक कर पूछा.

‘‘क्योंकि जस्टिस धर ने मैच जीतने की खुशी में मुझ से दावत मांगी थी. सो, बस, उन्हें बुला लिया और लोगों को बगैर मांगे छोटी सी बात के लिए दावत देना अच्छा नहीं लगता न,’’ निखिल ने समझाने के स्वर में कहा.

तभी धर परिवार आ गया. विवेक और अपूर्वा बड़ी बेतकल्लुफी से एकदूसरे से मिले और फिर बराबर की कुरसियों पर बैठ गए, जस्टिस धर ने आश्चर्य व्यक्त किया, ‘‘तुम एकदूसरे को जानते हो?’’

‘‘जी पापा, बहुत अच्छी तरह से,’’ अपूर्वा ने कहा, ‘‘हम दोनों रोज सुबह टैनिस खेलते हैं.’’

‘‘और तकरीबन 24 घंटे बराबर की कुरसियों पर बैठे रहे हैं अमेरिका से लौटते हुए,’’ विवेक ने कहा.

‘‘शीलाजी, आप ने शादी से पहले कुछ समय अपने साथ गुजारने को बेटी को दिल्ली बुला ही लिया?’’ सुकन्या ने पूछा.

‘‘नहीं आंटी, मैं खुद ही आई हूं,’’ अपूर्वा बोली, ‘‘मम्मी तो अभी भी वापस जाने को कह रही हैं लेकिन मैं नहीं जाने वाली. मुझे अमेरिका पसंद ही नहीं है.’’

‘‘लेकिन तुम्हारी सगाई तो अमेरिका में हो चुकी है,’’ सुकन्या बोली.

‘‘सगाईवगाई कुछ नहीं हुई है,’’ जस्टिस धर बोले, ‘‘बस, हम ने लड़का पसंद किया और उस के मांबाप ने हमारी लड़की. लड़का फिलहाल किसी प्रोजैक्ट पर काम कर रहा है और जब तक प्रोजैक्ट पूरा न हो जाए वह सगाईशादी के चक्कर में पड़ कर ध्यान बंटाना नहीं चाहता. एक तरह से अच्छा ही है क्योंकि उस के प्रोजैक्ट के पूरे होने से पहले ही मेरी बेटी को एहसास हो गया है कि वह कितनी भी कोशिश कर ले उसे अमेरिका पसंद नहीं आ सकता.’’

‘‘विवेक की तरह,’’ केशव नारायण ने कहा, ‘‘इस के मामा ने इसे वहां व्यवस्थित करने में बहुत मदद की थी, नौकरी भी अच्छी मिल गई थी लेकिन जैसे ही यहां अच्छा औफर मिला, यह वापस चला आया.’’

‘‘सुव्यवस्थित होना या अच्छी नौकरी मिलना ही सबकुछ नहीं होता, अंकल,’’ अपूर्वा बोली, ‘‘जिंदगी में सकून या आत्मतुष्टि भी बहुत जरूरी है जो वहां नहीं मिल सकती.’’

‘‘यह तो बिलकुल विवेक की भाषा बोल रही है,’’ निकिता ने कहा.

‘‘भाषा चाहे मेरे वाली हो, विचार इस के अपने हैं,’’ विवेक बोला.

‘‘यानी तुम दोनों हमखयाल हो?’’ निखिल ने पूछा.

‘‘जी, जीजाजी, हमारे कई शौक और अन्य कई विषयों पर एक से विचार हैं.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है,’’ निखिल शीला और सुकन्या की ओर मुड़ा, ‘‘आप इन दोनों की शादी क्यों नहीं कर देतीं.’’

‘‘क्या बच्चों वाली बातें कर रहे हो निखिल?’’ सुकन्या ने चिढ़े स्वर में कहा, ‘‘ब्याहशादी में बहुतकुछ देखा जाता है. क्यों शीलाजी?’’

‘‘आप ठीक कहती हैं, सिर्फ मिजाज का मिलना ही काफी नहीं होता,’’ शीला ने हां में हां मिलाई.

‘‘और क्या देखा जाता है?’’ निखिल ने चिढ़े स्वर में पूछा. ‘‘कुल गोत्र, पारिवारिक स्तर, और योग्यता वगैरा, वे तो दोनों के ही खुली किताब की तरह सामने हैं बगैर किसी खामी के…’’

‘‘फिर भी यह रिश्ता नहीं हो सकता,’’ सुकन्या और शीला एकसाथ बोलीं.

‘‘क्योंकि इस पर वरवधू की माताओं के महिला क्लब के सदस्यों की स्वीकृति की मुहर नहीं लगी है,’’ जस्टिस धर ने कहा.

‘‘यह तो आप ने बिलकुल सही फरमाया, जज साहब,’’ केशव नारायण ठहाका लगा कर हंसे, ‘‘वही मुहर तो सुकन्या और शीलाजी की मानप्रतिष्ठा का प्रतीक है.’’ दोनों महिलाओं ने आग्नेय नेत्रों से अपनेअपने पतियों को देखा, इस से पहले कि वे कुछ बोलतीं, निखिल बोल पड़ा, ‘‘उन की मुहर मैं लगवा दूंगा, उन्हें एक बढि़या सी दावत दे कर जिस में विवेक और अपूर्वा सब के पांव छू कर आशीर्वाद के रूप में स्वीकृति प्राप्त कर लेंगे.’’

‘‘आइडिया तो बहुत अच्छा है, निखिल, लेकिन कन्या और वर की माताओं की समस्या का हल नहीं है,’’ जस्टिस धर ने उसांस ले कर कहा, ‘‘असल में शीला ने सब को बताया हुआ है कि उस का होने वाला दामाद अमेरिका में रहता है.’’

‘‘यह बात तो है,’’ निखिल कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘आप ने सब को लड़के का नाम वगैरा बताया है आंटी?’’

‘‘नहीं, बस इतना ही बताया था कि अमेरिका में अनिल के पड़ोस में रहता है. हमें अच्छा लगा और हम ने अपूर्वा के लिए पसंद कर लिया.’’

‘‘उस के मांबाप के बारे में बताया था?’’

‘‘कुछ नहीं. किसी ने पूछा भी नहीं.’’

‘‘तो फिर तो समस्या हल हो गई, साले साहब भी तो अमेरिका से ही लौटे हैं, इन्हें अनिल का पड़ोसी बना दीजिए न. आप ने तो विवेक का अमेरिका का एड्रैस अपनी सहेलियों को नहीं दिया हुआ न, मां?’’ निखिल ने सुकन्या से पूछा.

‘‘हमारी सहेलियों को यह सब पूछने की फुरसत नहीं है, निखिल. लेकिन वे इतनी बेवकूफ भी नहीं हैं कि तुम्हारी बचकानी बातें सुन कर यह मान लें कि विवेक वही लड़का है जो शीलाजी अमेरिका में पसंद कर के आई थीं,’’ सुकन्या ने झल्ला कर कहा, ‘‘वे मुझ से पूछेंगी नहीं कि मैं ने यह, बात उन सब को क्यों नहीं ताई?’’

‘‘क्योंकि आप नहीं चाहती थीं कि जब तक सगाईशादी की तारीख पक्की न हो, वे सब आप दोनों को समधिन बना कर क्लब के अनौपचारिक माहौल और आप के रिश्तों को खराब करें,’’ निखिल बोला.

‘‘यह बात तो निखिलजी ठीक कह रहे हैं, सुकन्या और पिछली मीटिंग में ही किसी के पूछने पर कि आप ने विवेक के लिए कोई लड़की पसंद की या नहीं. आप ने कहा था कि लड़की तो पसंद है लेकिन जिस से शादी करनी है उसे तो फुरसत मिले. विवेक आजकल बहुत व्यस्त है,’’ शीला ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘‘तो अगली मीटिंग में कह दीजिएगा कि विवेक को फुरसत मिल गई है और फलां तारीख को उस की सगाई है. अगली मीटिंग से पहले तारीख तय कर लीजिए,’’ निखिल ने कहा.

‘‘वह तो हमें अभी तय कर लेनी चाहिए, क्यों धर साहब?’’ केशव नारायण ने पूछा.

‘‘जी हां, इस से पहले कि कोई और शंका उठे.’’

‘‘तो ठीक है आप लोग तारीख तय करिए, हम लोग पीने के लिए कोई बढि़या चीज ले कर आते हैं,’’ निखिल उठ खड़ा हुआ. ‘‘चलो विवेक, अपूर्वा और निक्की तुम भी आ जाओ.’’

‘‘कमाल कर दिया जीजाजी आप ने भी,’’ विवेक ने कुछ दूर जाने के बाद कहा. ‘‘समझ नहीं पा रहा आप को जादूगर कहूं या जीनियस?’’

‘‘जीनियसवीनियस कुछ नहीं, साले साहब,’’ निखिल मुसकराया, ‘‘मैं तो महज एक अदना सी कड़ी हूं आप दोनों का रिश्ता जोड़ने वाली.’’

‘‘अदना नहीं, अनमोल कड़ी, जीजाजी,’’ अपूर्वा विह्वल स्वर में बोली.

कड़ी- भाग 2: रिश्तों की कड़ियां जब उलझती हैं तो उलझती ही जाती हैं

‘‘औफिस में वाकई काम है, दीदी. लेकिन उस से समस्या हल नहीं होगी. मां लड़की वालों को यहां बुला लेंगी.’’

‘‘तुम चाहो तो मां को समझाने के लिए विवेक के साथ जा सकती हो, निक्की. मैं बच्चों को खाना खिलाने के बाद सुला भी दूंगा.’’

‘‘तब तो मां और भी चिढ़ जाएंगी कि मैं ने दीदी से उन की शिकायत की है. फिलहाल तो दीदी को मुझे यह समझाना है कि गुड़गांव वाला परिच्छेद खुलने से पहले बंद कैसे करूं. और जब मां मेरी शिकायत दीदी से करें तो वह कैसे बात संभालेंगी,’’ विवेक ने कहा.

निकिता ने विवेक को समझाया कि वह मां से कह दे कि न तो वह उन की मरजी के बगैर शादी करेगा और न अपनी मरजी के बगैर. सो, लड़की देखने जाने का सवाल ही नहीं उठता.

घर जाने के बाद विवेक का फोन आया कि मां बहुत बिगड़ीं कि अगर वह कह कर भी लड़की देखने नहीं गईं तो उन की क्या इज्जत रह जाएगी. तो मैं ने कह दिया कि मेरी इज्जत का क्या होगा जब मैं वादा तोड़ कर शादी करूंगा? पापा ने मेरा साथ दिया कि मां ने तो सिर्फ प्रस्ताव रखा है और मैं वादा कर चुका हूं. सो, मां गुड़गांव वालों को फिलहाल तो लड़के की व्यस्तता का बहाना बना कर टाल दें.

जैसा निकिता का खयाल था, अगली सुबह मां का फोन आया कि वह किसी तरह भी समय निकाल कर उन से मिलने आए. निकिता तो इस इंतजार में थी ही, वह तुरंत मां के घर पहुंच गई. मां ने उसे उत्तेजित स्वर में सब बताया, गुड़गांव वाली डाक्टर लड़की की तारीफ की और कहा, ‘‘महज इसलिए कि अमेरिका के रहनसहन पर विवेक और अपूर्वा के विचार मिलते हैं और वह उसी से शादी करना चाहता है, मैं उस लड़की को अपने घर की बहू नहीं बना सकती.’’

‘‘पापा क्या कहते हैं?’’

‘‘उन के लिए तो जस्टिस धरणीधर के घर बेटे की बरात ले कर जाना बहुत गर्व और खुशी की बात है,’’ मां ने चिढ़े स्वर में कहा.

‘‘तो आप किस खुशी में बापबेटे की खुशी में रुकावट डाल रही हैं, मां?’’

‘‘क्योंकि सब सहेलियों में मजाक तो मेरा ही बनेगा कि सुकन्या को बेटे से बड़ी लड़की ही मिली अपनी बहू बनाने को.’’

‘‘आप ने अपनी सहेलियों को विवेक की उम्र बताई है?’’

‘‘नहीं. उस का तो कभी जिक्र ही नहीं आया.’’

‘‘तो फिर उन्हें कैसे पता चलेगा कि अपूर्वा विवेक से बड़ी है क्योंकि लगती तो छोटी है?’’

‘‘शीलाजी कहती थीं कि लड़का उन के बेटे का पड़ोसी है. सो, शादी तय होने के बाद अकसर ही वह उन के घर आता होगा और लड़की उस के घर जाती होगी. क्या गारंटी है कि लड़की कुंआरी है?’’

‘‘अमेरिका से विक्की जो पिकनिक वगैरा की फोटो भेजा करता था उस में उस के साथ कितनी लड़कियां होती थीं? आप क्या अपने बेटे के कुंआरे होने की गारंटी ले सकती हैं?’’ सुकन्या के चुप रहने से निकिता की हिम्मत बढ़ी.

‘‘गुड़गांव वाली लड़की के बायोडाटा के अनुसार, वह भी किसी विशेष ट्रेनिंग के लिए 2 वषों के लिए अमेरिका गई थी. सो, गारंटी तो उस के बारे में भी नहीं ली जा सकती. अपूर्वा को नापसंद करने के लिए आप को कोई और वजह तलाश करनी होगी, मां.’’

‘‘यही वजह क्या काफी नहीं है कि वह विवेक से बड़ी है और मांबाप का तय किया रिश्ता नकार रही है?’’

तभी निकिता का मोबाइल बजा. निखिल का फोन था पूछने को कि मां निकिता को समझा सकी या नहीं और सब सुनने पर बोला कि यह क्लब की सहेलियों वाली समस्या तो शायद अपूर्वा की मां के साथ भी होगी. सो, बेहतर रहेगा कि दोनों सहेलियों को एकसाथ ही समझाया जाए.

‘‘मगर यह होगा कैसे?’’ निकिता ने पूछा.

‘‘साथ बैठ कर सोचेंगे. फिलहाल तुम मां से ज्यादा मत उलझो और किसी बहाने से घर वापस चली जाओ. मैं विवेक को शाम को वहीं बुला लेता हूं,’’ कह कर निखिल ने फोन रख दिया.

जैसा कि अपेक्षित था, सुकन्या ने पूछा. ‘‘किस का फोन था?’’

‘‘निखिल का पूछने को कि शाम को कुछ लोगों को डिनर पर बुला लें?’’

‘‘तो तू ने क्या कहा?’’

‘‘यही कि जरूर बुलाएं. मैं जाते हुए बाजार से सामान ले जाऊंगी और निखिल के लौटने से पहले सब तैयारी कर दूंगी.’’

‘‘और मैं ने जो तुझे अपनी समस्या सुलझाने व बापबेटे को समझाने को बुलाया है, उस का क्या होगा?’’  सुकन्या ने चिढ़े स्वर में पूछा.

‘‘आप की तो कोई समस्या ही नहीं है, मां. आप सीधी सी बात को उलझा रही हैं और आप के एतराज से जब मैं खुद ही सहमत नहीं हूं तो पापा या विक्की को क्या समझाऊंगी?’’ कह कर निकिता उठ खड़ी हुई. सुकन्या ने भी उसे नहीं रोका. शाम को निखिल व विवेक इकट्ठे ही घर पहुंचे.

‘‘अपूर्वा को सब बात बता कर पूछता हूं कि क्या उस की मां के साथ भी यह समस्या आएगी,’’ विवेक ने निखिल की बात सुनने के बाद कहा और बरामदे में जा कर अपूर्वा से मोबाइल पर बात करने लगा.

‘‘आप का कहना सही है, जीजाजी, अपूर्वा कहती है कि घर में सिर्फ मां ही को उस का रिश्ता तोड़ने पर एतराज है वह भी इसलिए कि लोग, खासकर उन की महिला क्लब की सहेलियां, क्या कहेंगी. रिश्ता तो खैर टूट ही रहा है क्योंकि जस्टिस धर ने अपने बेटे को आलोक से बात करने को कह दिया है. लेकिन मेरे साथ रिश्ता जोड़ने में भी उस की मां जरूर अडं़गा लगाएंगी, यह तो पक्का है,’’ विवेक ने कहा.

‘‘आलोक से रिश्ता खत्म हो जाने दो, फिर तुम्हारे से जोड़ने की प्रक्रिया शुरू करेंगे. मां के कुछ कहने पर यही कहो कि कुछ दिनों तक सिवा अपने काम के, तुम किसी और विषय पर सोचना नहीं चाहते. अपूर्वा को आश्वासन दे दो कि उस की शादी तुम्हीं से होगी,’’ निखिल ने कहा.

‘‘मगर कैसे? 2 जिद्दी औरतों को मनाना आसान नहीं है, निखिल,’’ निकिता ने कहा.

‘‘पापा को तो बीच में डालना नहीं चाहता क्योंकि तब मां उन से और अपूर्वा दोनों से चिढ़ जाएंगी,’’ निखिल कुछ सोचते हुए बोला. ‘‘पापा से इजाजत ले कर मैं ही जस्टिस धरणीधर से बात करूंगा.’’

‘‘मगर पापा या जस्टिस धर की ओर से तो कोई समस्या है ही नहीं,’’ विवेक ने कहा.

‘‘मगर जिन्हें समस्या है, उन दोनों को एकसाथ कैसे धाराशायी किया जा सके, यह तो उन से बात कर के ही तय किया जा सकता है. फिक्र मत करो साले साहब, मैं उसी काम की जिम्मेदारी लेता हूं जिसे पूरा कर सकूं,’’ निखिल ने बड़े इत्मीनान से कहा, ‘‘जस्टिस धर के साथ खेलने का मौका तो नहीं मिला लेकिन बिलियर्ड्स रूम में अकसर मुलाकात हो जाती है. सो, दुआसलाम है. उसी का फायदा उठा कर उन से इस विषय में बात करूंगा.’’

कुछ दिनों के बाद क्लब में आयोजित एक बिलियर्ड प्रतियोगिता जीतने पर जस्टिस धर ने उस के खेल की तारीफ की, तो निखिल ने उन्हें अपने साथ कौफी पीने के लिए कहा और उस दौरान उन्हें विवेक व अपूर्वा के बारे में बताया.

जस्टिस धर के यह कहने पर कि उन्हें तो अपूर्वा के लिए ऐसे ही घरवर की तलाश है. सो, वे विवेक और उस के पिता केशव नारायण से मिलना चाहेंगे. निखिल ने कहा कि वे तो स्वयं ही उन से मिलना चाहते हैं, लेकिन समस्या सुकन्या के एतराज की है, महिला क्लब के सदस्यों को ले कर और यह समस्या अपूर्वा की माताजी की भी हो सकती है.

‘‘अपूर्वा की माताजी के महिला क्लब की सदस्यों ने तो मेरी नाक में दम कर रखा है,’’ जस्टिस धर ने झल्ला कर कहा, ‘‘शीला स्वयं भी नहीं चाहती कि अपूर्वा शादी कर के अमेरिका जाए लेकिन सब सहेलियों को बता चुकी है कि उस का होने वाला दामाद अमेरिका में इंजीनियर है. सो, उन के सामने अपनी बात बदलना नहीं चाहती, इसलिए अपूर्वा को समझा रही है कि फिर अमेरिका जाए और आलोक को बहलाफुसला कर भारत में रहने को मना ले.

अपूर्वा को यह संभव नहीं लगता क्योंकि उसे और आलोक को अभी तक तो एकदूसरे से कोई ऐसा लगाव है नहीं कि वह ग्रीनकार्ड वापस कर के भारत आ जाए. और अब जब उसे विवेक पसंद आ गया है तो वह कोशिश भी नहीं करेगी. हमें जबरदस्ती ही करनी पड़ेगी दोनों औरतों के साथ.’’

Nutrition Special: सेहत के लिए वरदान है टमाटर

15वीं शताब्दी में अमेरिका के रोलको द्वीप पर सब से पहले लाललाल रंग के टमाटरों को देख कर लोगों ने इसे एक जहरीला फल समझा था. इस का खाने के रूप में प्रयोग काफी बाद में हुआ. आज टमाटर के बिना हम खाना बनाने की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. टोमैटो कैचअप के बिना तो सैंडविच, पिज्जा, बर्गर, नूडल्स सब फीके लगते हैं.

टमाटर का पुराना वानस्पतिक नाम लाइकोपोर्सिकान एस्कुलैंटम था. वर्तमान साइंस इसे सोलेनम लाइको पोर्सिकान कहती है. यह बैगन की प्रजाति की सब्जी है. मैक्सिको के लोग टमाटर को ‘लव एपल’ कहते थे. जब पहली बार टमाटर के पौधे को मैक्सिको के लोग भारत लाए तो भारतीयों ने इसे ‘विलायती बैगन’ कहा. धीरेधीरे टमाटर भारतीय रसोई का किंग बन गया. आज टमाटर विश्व में सब से ज्यादा प्रयोग की जाने वाली सब्जी है. सलाद, सूप, सब्जी, अचार, चटनी, कैचअप हर चीज में टमाटर का प्रयोग आज दुनियाभर में होता है.

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टमाटर के गुणकारी तत्त्व

टमाटर में भरपूर मात्रा में कैल्शियम, फास्फोरस व विटामिन सी पाया जाता है. हैरत की बात यह है कि टमाटर का स्वाद तो अम्लीय (खट्टा) होता है, लेकिन यह शरीर में क्षारीय (खारी) प्रतिक्रियाओं को जन्म देता है. इस के खट्टे स्वाद का कारण यह है कि इस में साइट्रिक एसिड और मैलिक एसिड पाया जाता है, जिस के कारण यह प्रत्यम्ल (एंटासिड) के रूप में काम करता है.

एसिडिटी की शिकायत होने पर टमाटरों की खुराक बढ़ाने से यह शिकायत दूर हो जाती है. टमाटर में विटामिन ए भी काफी मात्रा में पाया जाता है, जो आंखों के लिए बहुत लाभकारी है. टमाटर खट्टामीठा, पाचक और शक्तिवर्द्धक होने के साथ ही अतिसार, उदर रोग व मोटापा रोकने में कारगर है. इस को खाने से पाचनशक्ति बढ़ती है और गैस की शिकायत दूर होती है.

टमाटर इतने पौष्टिक होते हैं कि सुबह नाश्ते में केवल 2 टमाटर संपूर्ण भोजन के बराबर माने जाते हैं. यह पूरे शरीर के छोटेमोटे विकारों को दूर कर देता है. टमाटर के नियमित सेवन से श्वास नली बिलकुल साफ रहती है. चिकित्सकों का मानना है कि टमाटर खाने से खांसी व बलगम साफ हो जाता है. इस के सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है. इस में लौह तत्त्व की मात्रा दूध से दोगुनी व अंगूर, मौसमी, तरबूज, खरबूजा आदि फलों से ज्यादा होती है.

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टमाटर में कैल्शियम, चूना, गंधक, साइट्रिक एसिड इत्यादि तत्त्व बहुतायत में होते हैं. टमाटर जहां विटामिन की खान है, वहीं स्वाद का राजा भी है जो भूख बढ़ाने में सहयोग करता है.

टमाटर के सेवन से कब्ज दूर होता है, रक्त विकार से मुक्ति मिलती है व गठिया, सूखा, एक्जिमा जैसे रोगों में आराम मिलता है. लेकिन, अधिक मात्रा में टमाटर का सेवन नुकसानदायक है. इस के अत्यधिक सेवन से पथरी, जोड़ों में दर्द, सिरदर्द, कमर में दर्द तथा प्रदर रोग हो जाते हैं. संतुलित मात्रा में नियमित टमाटर का सेवन किया जाना ही स्वास्थ्यवर्द्धक है.

कैंसर में फायदेमंद है टमाटर

टमाटर खाने से कैंसर का खतरा कम होता है. लंदन की यूनिवर्सिटी औफ पोट्समाउथ द्वारा भारतीय मूल के शोधकर्ता की अगुआई में वैज्ञानिकों की एक टीम ने यह दावा किया है कि पके टमाटर में एक ऐसा पौष्टिक तत्त्व पाया जाता है जो प्रोस्टेट कैंसर की कोशिकाओं की वृद्धि को न केवल रोकता है, बल्कि उन को समाप्त भी कर देता है. इस शोध में वैज्ञानिकों ने टमाटर में पाए जाने वाले लाइकोपीन तत्त्व के प्रभावों की जांच की.

अध्ययन में यह निष्कर्ष निकला कि टमाटर को लाल रंग देने वाला लाइकोपीन कैंसर कोशिकाओं को फैलने और अन्य स्वस्थ कोशिकाओं को खराब होने से रोकता है. रिसर्च से साबित हुआ है कि अगर आप एक हफ्ते में 10 बार टमाटर खाते हैं, तो कैंसर होने का खतरा 45 फीसदी कम हो जाता है. इतना ही नहीं, टमाटर को सलाद के रूप में लेने से पेट के कैंसर का रिस्क 60 फीसदी तक घट जाता है.

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डाइट ऐक्सपर्ट्स हरे टमाटर की तुलना में लाल टमाटर को ज्यादा फायदेमंद बताते हैं क्योंकि फ्राई करने पर लाइकोपीन और शक्तिशाली हो जाता है. रिसर्च से यह भी पता लगा है कि टमाटर को तेल में फ्राई करने के बावजूद उस के न्यूट्रिएंट्स खत्म नहीं होते. लाइकोपीन के अलावा, टमाटर में पोटैशियम, विटामिन बी 6 और फौलेट भी होते हैं, जो दिल की सेहत के लिए बेहद जरूरी हैं. इतना ही नहीं, टमाटर में 2 एंटीएजिंग कंपाउंड्स  आईकोपीन और बीटा कैरोटिन भी होते हैं.

अब आप जब भी टमाटर खरीदने जाएं, तो लाल टमाटर ही चुनें. इन में बीटा कैरोटिन व आईकोपीन की मात्रा बहुत अधिक होती है. वैसे, अगर आप अपना वजन कम करने के बारे में सोच रही हैं, तो भी लाललाल टमाटर आप के लिए फायदेमंद हैं. इस में फाइबर ज्यादा व कैलोरीज कम होती हैं, जो वजन घटाने में मदद करती हैं. इस में मौजूद बीटा कैरोटिन शरीर की चरबी को घटाने में मददगार होता है. इस में मौजूद विटामिन ए आप की त्वचा, बालों, हड्डियों व दांतों को हैल्दी रखने का काम करता है.

सौंदर्य की खान है टमाटर

टमाटर त्वचा संबंधी कई समस्याओं को जड़ से खत्म करता है. इस को खाने और चेहरे पर इस का रस मलने से सनबर्न और टैन खत्म होता है. टमाटर में पाया जाने वाला लाइकोपीन तत्त्व त्वचा को अल्ट्रावौयलेट किरणों के हानिकारक प्रभाव से बचाता है. टमाटर नैचुरल सनस्क्रीन के रूप में काम करता है.

गरमी में रूखी और बेजान त्वचा से महिलाएं काफी परेशान रहती हैं. ऐसे में सौंदर्य प्रसाधनों की जगह बेहतर होगा अगर आप घरेलू उपचार करें और इस में टमाटर आप का सब से बड़ा मददगार साबित होगा. टमाटर, जिसे सुपरफूड कहा जाता है, की मदद से आप की स्किन शाइनी और मुलायम बन सकती है.

अगर आप की स्किन के पोर्स खुल गए हैं, तो आप को टमाटर का जूस पीना चाहिए और इसे चेहरे पर भी लगाना चाहिए. टमाटर का जूस चेहरे पर एस्ंिट्रजैंट के रूप में काम करता है. एक टेबलस्पून टमाटर के जूस में 4-5 बूंदें नीबू के रस की डालें और चेहरे पर लगाएं. बाद में गुनगुने पानी से चेहरा धो लें. खुले पोर्स की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा.

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ब्लैकहैड प्रभावित हिस्से पर टमाटर के स्लाइस को रगड़ने से आप इस परेशानी से छुटकारा पा सकते हैं. टमाटर सैलुलर डैमेज से लड़ते हैं, नमी को बरकरार रखते हैं, जिस से झुर्रियों को आने से रोका जा सकता है. यही नहीं, टमाटर में मौजूद एसिड आप के पिंपल्स को कम करने और त्वचा को साफ करने में मदद करता है.

औषधि है टमाटर

  • टमाटर सिर्फ सब्जी नहीं, बल्कि यह अपनेआप में एक संपूर्ण औषधि है. टमाटर खाने से कई प्रकार के रोगों का उपचार होता है –
  • बच्चों को सूखा रोग होने पर आधा गिलास टमाटर के रस का सेवन प्रतिदिन कराने से फायदा होता है.
  • 2-3 पके हुए टमाटरों का नियमित सेवन करने से बच्चों का विकास शीघ्र होता है.
  • गठिया रोग में एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अजवाइन का चूर्ण मिला कर सुबहशाम पीने से लाभ होता है.
  • गर्भवती महिलाओं के लिए सुबह एक गिलास टमाटर के रस का सेवन फायदेमंद होता है.
  • डायबिटीज व दिल के रोगों में भी टमाटर बहुत उपयोगी होता है.
  • टमाटर का प्रयोग कैंसर को दूर रखता है.
  • टमाटर के नियमित सेवन से पेट साफ रहता है.
  • कफ होने पर टमाटर का सेवन अत्यंत लाभदायक है.
  • पेट में कीड़े होने पर सुबह खाली पेट टमाटर में पिसी हुई कालीमिर्च मिला कर खाने से कीड़े मर कर निकल जाते हैं.
  • भोजन करने से पहले 2 या 3 पके टमाटरों को काट कर उस में पिसी हुई कालीमिर्च, सेंधा नमक व हरा धनिया मिला कर खाएं. इस से चेहरे पर लाली आती है व पौरुष शक्ति बढ़ती है.
  • टमाटर के गूदे में कच्चा दूध व नीबू का रस मिला कर चेहरे पर लगाने से चेहरे पर चमक आती है.
  • टमाटर के सेवन से आंखों व मूत्राशय संबंधी रोग, पुराने कब्ज व चमड़ी के रोगों का उपचार होता है.
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