भारत के अलावा अर्जेंटीना, फ्रासं, कनाडा, रूस, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, जर्मनी, तुर्की व यूक्रेन वगैरह देशों  में भी जौ की खेती की जाती है. यह गेहूं से ज्यादा सहनशील पौधा है. इसे कई तरह की मिट्टियों में उगाया जा सकता है. जौ का भूसा चारे के काम में लाया जाता  है. यह हरा व सूखा दोनों रूपों में जानवरों को खिलाने में इस्तेमाल किया जाता है.  सिंचित दशा में जौ की खेती गेहूं के मुकाबले ज्यादा फायदेमंद है.

बीज : जौ की बोआई के लिए जो बीज प्रयोग में लाया जाए, वह रोग मुक्त, प्रमाणित व इलाके के मुताबिक उन्नत किस्म का होना चाहिए. बीजों में किसी दूसरी किस्म के बीज नहीं मिले होने चाहिए. बोने से पहले बीज के अंकुरण फीसदी का परीक्षण जरूर कर लेना चाहिए. यदि जौ का प्रमाणित बीज न मिले तो बीजों का उपचार जरूर करना चाहिए.

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खेत की तैयारी : जौ की बोआई के लिए 2-3 बार देशी हल या तवेदार हल से जुताई करनी चाहिए. मिट्टी को भुरभुरा कर देना चाहिए, जिस से बीजों का अंकुरण अच्छी तरह से हो सके.

बोने का समय : जौ रबी मौसम की फसल है, जिसे सर्दी के मौसम में उगाया जाता है. उत्तराखंड के अलगअलग भागों में जौ का जीवनकाल अलगअलग रहता है. आमतौर पर जौ की बोआई अक्तूबर से दिसंबर तक की जाती है. असिंचित क्षेत्रों में 20 अक्तूबर से 10 नवंबर तक जौ की बोआई करनी चाहिए, जबकि सिंचित क्षेत्रों में 25 नवंबर तक बोआई कर देनी चाहिए. पछेती जौ की बोआई 15 दिसंबर तक कर देनी चाहिए.

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