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Crime Story: संजू की आरजू

श्रीनाथ यादव उर्फ नाथे जितना सीधासादा और सज्जन युवक था, उतना ही मेहनती था. जिसकाम में एक बार जुट जाता, उसे खत्म किए बगैर चैन नहीं आता था. लोग उस की तारीफ करते थे कि काम के प्रति लगन हो तो श्रीनाथ जैसी. इस पर श्रीनाथ कहता, किसान जब तक खेत को अपने पसीने से नहीं सींचता, उस की पैदावार में खुशबू नहीं आती.

गांव वाले श्रीनाथ के मुंह पर कम पीठ पीछे अधिक तारीफ किया करते थे. एक दिन ऐसी ही तारीफ श्रीनाथ की पत्नी संजू के सामने मुन्ना कर रहा था, ‘‘भाभी, मेरे घर वाले कहते हैं मेहनत करने का सबक श्रीनाथ से लो. एक बार जिस काम को करने लगे, उसे पूरा किए बगैर दम नहीं लेता.’’

पति की प्रशंसा सुन कर संजू मुसकराई, लेकिन बोली कुछ नहीं. मुन्ना ने समझा, संजू मन ही मन गदगद हो रही है, इसलिए उस ने तारीफ के पुल बांधना जारी रखा, ‘‘सच भाभी, श्रीनाथ भैया जिस तरह मेहनत करते हैं, उसी को कहते हैं किसी काम में अपने आप को झोंक देना. गांव का हर आदमी तारीफ करता है श्रीनाथ भैया की.’’

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‘‘हां, सुबह से देर शाम तक खेत में ही जुटे रहते हैं,’’ संजू का जी जला तो वह कुढ़ कर बोली, ‘‘जो करना चाहिए वह तो करते नहीं. लोगों को दिखाने के लिए दिन भर खेतों में फावड़ा चलाते हैं.’’

मुन्ना के दिमाग में बिजली सी कौंधी कि ‘जो करना चाहिए वह तो करते नहीं’ का क्या मतलब. कहीं ऐसा तो नहीं कि श्रीनाथ को जो करना चाहिए, वह नहीं करता.

अपने मन की कल्पना से कोई नतीजा निकाल लेना उचित नहीं था. अत: शब्दों की गहराई में पहुंचने के लिए मुन्ना ने संजू के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा, ‘‘भाभी,मैं तुम्हारी बात समझ नहीं पा रहा हूं. श्रीनाथ भैया कौन सा काम नहीं करते, जो उन्हें करना चाहिए.’’

संजू ने अपने मन की भड़ास निकालने के लिए मुंह खोला ही था कि उस की ननद सुमित्र वहां आ गई. इस से दोनों की बातों पर विराम लग गया. सुमित्रा कुछ देर तक उन दोनों के पास बैठी बातें करती रही, उस के बाद वह मुन्ना को अपने साथ अपने घर ले गई.

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उत्तर प्रदेश के जनपद अमेठी के थाना जगदीशपुर के गांव पूरे आधार में राजाराम यादव का परिवार रहता था. परिवार में पत्नी विशना देवी और 4 बेटे रामउदित, रामदत्त, श्रीदत्त और श्रीनाथ उर्फ नाथे व 2 बेटियां फूलकला और सुमित्रा थीं.

फूलकला सब से बड़ी थी तो सुमित्रा सब से छोटी. राजाराम खेतीकिसानी का काम करते थे. उसी से परिवार का भरणपोषण होता था. उन्होंने एक के बाद एक सभी बच्चों का विवाह कर दिया सिवाय श्रीनाथ के.

श्रीनाथ का विवाह भी उस की छोटी बहन सुमित्रा ने कराया था. दरअसल, सुमित्रा का विवाह अमेठी के ही जामो थाना क्षेत्र के गांव बसंतपुर में रामशंकर से हुआ था.

बसंतपुर में सुमित्रा की ससुराल के पड़ोस में संजू नाम की युवती रहती थी. उस की मां का देहांत हो चुका था. पिता गुलरे यादव थे. संजू की बड़ी बहन मंजू का विवाह हो चुका था. घर में सिर्फ बापबेटी रहते थे.

सुमित्रा और संजू की आपस में खूब पटती थी. यही वजह थी कि सुमित्रा उसे अपनी भाभी बनाने को तैयार हो गई. बड़े भाई श्रीनाथ के लिए संजू के रिश्ते की बात सुमित्रा ने अपने परिवार में छेड़ी तो सभी ने संजू को देखा. वह सभी को पसंद आ गई. इस के बाद संजू और श्रीनाम की शादी हो गई. यह बात करीब 12 साल पहले की है.

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संजू को ससुराल आए कुछ ही महीने बीते थे कि उसके पिता गुलरे का देहांत हो गया. पिता की मौत के बाद घर में कोई दीयाबाती करने वाला भी नहीं रहा. इस पर श्रीनाथ संजू के साथ अपनी ससुराल में आ कर रहने लगा.

ससुराल में सिर्फ रहने को मकान था, खेतीबाड़ी कुछ थी नहीं, इसलिए श्रीनाथ दूसरे लोगों के खेतों पर काम कर के अपनी आजीविका चलाने लगा. कालांतर में संजू 2 बेटियों की मां बनी.

2 बेटियों के जन्म के बाद खर्चा बढ़ा तो श्रीनाथ और ज्यादा मेहनत करने लगा. अधिक मेहनत से वह शिथिल पड़ने लगा, जोकि संजू को रास नहीं आ रहा था. उस की शारीरिक जरूरत पूरी नहीं होती तो झुंझला उठती. इसी में वह श्रीनाथ से लड़ बैठती. इस सब को ले कर दोनों में अनबन रहने लगी.

श्रीनाथ के फुफेरे मामा सत्यनारायण यादव का लड़का था मुन्ना उर्फ घनश्याम यादव, जो अमेठी के थाना शिवरतनगंज के गांव लंगोटीपुर में रहता था. मुन्ना पेशे से प्लंबर था. वह 4 भाइयों में सब से बड़ा था. एक बहन थी, उस की मौत हो चुकी थी. मुन्ना का विवाह रानी से हुआ था, उस से उस के 2 बच्चे थे.

बसंतपुर से लंगोटीपुर के बीच की दूरी लगभग 14 किलोमीटर थी. अधिक दूरी न होने के कारण मुन्ना अकसर बाइक से श्रीनाथ और सुमित्रा के घर उन से मिलने आयाजाया करता था. दोनों के घर पासपास ही थे.

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वह संजू के पास अधिक रुकता था क्योंकि वहां संजू के अलावा घर में कोई नहीं होता था. श्रीनाथ काम पर चला जाता था. बेटियां या तो स्कूल में होतीं या बाहर कहीं खेल रही होती थीं. उस के आने का उद्देश्य भी संजू से मिलने और उस के साथ समय बिताने का होता था.

संजू उस के दिल को बहुत ही ज्यादा भा गई थी. दोनों के बीच वैसे भी देवरभाभी का रिश्ता था तो दोनों में खुल कर बातचीत और हंसीमजाक हो जाती थी. मुन्ना जब भी संजू के घर आता तो खुश हो कर ही जाता था.

एक दिन संजू ने बातों ही बातों में मुन्ना से कहा, ‘‘तुम्हारे भैया को जो करना चाहिए, वह तो करते नहीं.’’

संजू की इस बात से मुन्ना को सोच के अंधे कुएं में धकेल दिया था. मुन्ना के दिमाग में सीधी सी एक बात आ रही थी कि कि संजू भाभी श्रीनाथ भैया से संतुष्ट नहीं है. यदि वह संतुष्ट होती तो ऐसी बात नहीं कहती. इस से पहले कि वह संजू से इस बात के मायने समझता, तभी वहां सुमित्रा आ गई. फिर कुछ देर बाद वह वहां से चला गया.

मुन्ना ने बहुत सोचा, पर वह संजू की असंतुष्टि का कारण नहीं जान सका. उसे सुमित्रा पर भी झुंझलाहट हो रही थी, जिस ने उसी समय वहां आ कर उन की चर्चा पर विराम लगा दिया था.

संजू की असंतुष्टि का कारण जानने के लिए मुन्ना देर रात तक माथापच्ची करता रहा. उस के बाद यह सोच कर सो गया कि कल जा कर संजू से जरूर पूछेगा.

दूसरे दिन फिर दोपहर में वह अपनी बाइक से बसंतपुर पहुंच गया. घर में रोज की तरह संजू अकेली थी. दोनों ने दिल से मुसकान बिखेर कर एकदूसरे का अभिवादन किया. उस के बाद मुन्ना के मन की बात होंठों से फिसल गई, ‘‘भाभी, तुम कल कह रही थीं कि श्रीनाथ भैया वह काम नहीं करते जो उन को करना चाहिए. आखिर ऐसा कौन सा काम है जो भैया नहीं करते?’’

संजू ने गहरी नजरों से मुन्ना को देखा, उस के बाद मुसकरा कर बोली, ‘‘कल से इसी उधेड़बुन में लगे हो क्या कि भाभी का ऐसा कौन सा काम है जो उन के पति नहीं करते.’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ नहीं है,’’ मुन्ना ने फौरन बात संभाली, ‘‘कोई बात अधूरी रह जाए तो मेरे मन को मथती रहती है. कल तुम बताने जा रही थीं कि सुमित्रा आ गई.’’

संजू ने मुन्ना की आंखों में आंखें डाल कर प्रश्न किया, ‘‘उसी बात को जानने के लिए बेचैन हो.’’‘हां भाभी,’’ मुन्ना बोला, ‘‘श्रीनाथ भैया की तो पूरे गांव में तारीफ होती है कि आज का काम वह कल पर नहीं छोड़ते. पूरी लगन व मेहनत से अपनी जिम्मेदारी पूरी करते हैं. इस के विपरीत तुम्हारा कहना है कि भैया वह काम नहीं करते जो उन को करना चाहिए.’’

संजू के मुंह से आह सी निकली, ‘‘बता दूंगी तो उस से क्या फायदा होगा. जो काम वह नहीं करते, वह क्या तुम कर दोगे?’’मुन्ना के बदन में सनसनी सी होने लगी. संजू का रूपलावण्य मुन्ना को लुभाता रहा था. हालांकि उस की पत्नी भी सुंदर थी लेकिन बीवी की सुंदरता पति को हमेशा ही तो अपने पाश में जकड़ कर नहीं रख सकती.

मुन्ना को भी रूपसी पत्नी घर की मुर्गी दाल बराबर लगने लगी थी. मन में कामुकता के भाव जागे तो उस ने निश्चय कर लिया कि यदि संजू शारीरिक रूप से असंतुष्ट हुई तो वह उस की संतुष्टि के लिए तुरंत स्वयं को पेश कर देगा. वह उत्साह से भर कर बोला, ‘‘अपने होते हुए भाभी को परेशान थोड़े ही देख सकता हूं. काम बोल कर तो देखो, मैं कर दूंगा.’’

संजू ने तुरंत अपनी बांहें मुन्ना के गले में डाल दीं, ‘‘करो.’’मुन्ना के शरीर में सिहरन तो दौड़ी, संजू के इस अप्रत्याशित प्रस्ताव से नासमझ बनते हुए वह बोला, ‘‘क्या करूं?’  ‘‘वही जो एक मर्द किसी औरत के साथ करता है.’’ संजू ने कहा.

मुन्ना के शरीर में दौड़ रही कामुक सिहरन में इजाफा हुआ. इस के बावजूद मन पर अजीब सी बदहवासी तारी थी. इसी वजह से कुछ करना चाह कर भी कुछ न कर सका.

मुन्ना को सूखे ठूंठ की तरह खड़ा देख कर संजू ने ही पहल की. वह अपने चेहरे को उस के इतना करीब ले आई कि सांसों से सांसें टकराने लगीं. उस के बाद वह आवाज को नशीली बना कर बोली, ‘‘मैं दुख के अंधेरे में जी रही हूं. मेरी आरजू है कि तुम मेरी देह से आत्मा तक सुख की रोशनी भर दो.’’

इस के साथ ही उस ने मुन्ना के होंठ चूम लिए.अब शक की गुंजाइश नहीं रह गई कि संजू प्यासी नार थी. उस ने मुन्ना के होंठ चूम कर सीधा संदेश दिया कि वह देवरभाभी के बीच होने वाला साधारण मजाक नहीं कर रही थी. बल्कि उसे देह सुख की तलाश थी. इस के लिए उस ने मुन्ना को चुना था.

संजू ने होंठ चूमे तो मुन्ना का हौसला बढ़ गया. उस ने भी बांहें संजू के गले में डाल दीं और उस की आंखों में देखते हुए मुसकराया, ‘‘तो यह है वो काम, जो श्रीनाथ भैया नहीं करते.’’

‘‘और नहीं तो क्या, कोई पत्नी क्या यूं ही दूसरे के बाजुओं का सहारा तलाश करती है. मजबूरी में उसे ऐसा करना पड़ता है,’’ शब्दों की शक्ल में संजू के मुंह से उस का दर्द निकला, ‘‘वह तो अपनी सारी एनर्जी खेतों में ही खर्च कर देते हैं. जिस्म भी इस कदर थका लेते हैं कि नहाधो कर खाना खाने के बाद सीधा बिस्तर सूझता है.’’ अपना दुखड़ा सुनाते हुए संजू ने मुन्ना से सीधा प्रश्न पूछ लिया, ‘‘क्या तुम भी अपनी बीवी से दूरदूर रहते हो?’’

‘‘नहीं भाभी, हम दोनों बराबर एकदूसरे की जरूरतों का खयाल रखते हैं.’’‘लेकिन मेरे पतिदेव को मेरी जरूरतों का खयाल रत्ती भर नहीं.’’संजू को बांहों में कस कर अपने से सटाते हुए मुन्ना बोला, ‘‘फिक्र मत करो भाभी, अब तुम्हारा काम मैं कर दिया करूंगा.’’

संजू अपना चेहरा पास ले आई. इतना पास कि दोनों की सांसें एकदूसरे के चेहरे से टकराने लगीं. संजू ने हौले से पूछा,‘‘कब हो जाएगा.’’  ‘‘आज, बल्कि यह कहो कि अभी.’’

‘‘औरत की जवानी किसी तूफान से कम नहीं होती. एक तूफान घर में और एक तूफान बाहर,’’ संजू ने शोखी से आंखें नचाईं, ‘‘2 तूफानों को संभालने में तुम तो नहीं डूब जाओगे.’’

‘‘भाभी, ईश्वर ने मर्दों को बनाया ही है हसीन तूफानों से टकराने और उसे शांत करने के लिए.’’‘‘ठीक है आज आजमा ही लेती हूं तुम को.’’इस के बाद दोनों ने अपनी मर्यादाएं लांघ दीं. तूफान थमने के बाद संजू मुन्ना को प्रशंसा की दृष्टि से देख रही थी. क्योंकि मुन्ना उस की कसौटी पर खरा उतरा था.

उस दिन के बाद से उन के बीच लगभग हर रोज ही अनैतिक खेल खेला जाने लगा.31 जुलाई, 2020 की सुबह 7 बजे बसंतपुर गांव के बाहर प्राइमरी स्कूल के पास एक बाग में गांव वालों ने एक व्यक्ति की लाश देखी. लाश देख कर उस की पहचान हो गई. लाश श्रीनाथ यादव की थी. पता चलते ही श्रीनाथ की पत्नी संजू, बहन सुमित्रा वहां पहुंच गई और रोनेबिलखने लगी.

श्रीनाथ के भाइयों को घटना की सूचना देने के बाद स्थानीय थाना जामो में भी घटना की सूचना दे दी गई. सूचना पा कर इंसपेक्टर संजय सिंह अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

मृतक श्रीनाथ के गले पर किसी तेज धारदार हथियार से वार किए गए थे, जिस कारण उस की मौत हुई थी. घटनास्थल का निरीक्षण करने पर कुछ दूरी पर 2 रक्तरंजित चाकू व शराब के खाली पव्वे पड़े मिले, जो इंसपेक्टर सिंह ने अपने कब्जे में ले लिया.

इसी बीच सूचना पा कर एसपी दिनेश सिंह, एएसपी दयाराम सरोज और सीओ अर्पित कपूर भी घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश व घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद पुलिस अधिकारियों ने घर वालों से पूछताछ की. इसी बीच श्रीनाथ के सभी भाई भी वहां पहुंच गए.

श्रीनाथ के बड़े भाई रामउदित यादव ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि संजू और श्रीनाथ के ममेरे भाई घनश्याम यादव उर्फ मुन्ना के बीच अवैध संबंध थे. इन दोनों ने ही श्रीनाथ की हत्या की है.

पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने इंसपेक्टर संजय सिंह को आवश्यक दिशानिर्देश दिए, फिर वापस चले गए. इंसपेक्टर संजय सिंह ने जरूरी काररवाई के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी और थाने लौट गए.

थाने आ कर रामउदित की लिखित तहरीर के आधार पर उन्होंने संजू और मुन्ना यादव के खिलाफ भादंवि की धारा 302/34 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इस के बाद इंसपेक्टर संजय सिंह ने संजू को हिरासत में ले कर महिला आरक्षी की उपस्थिति में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने श्रीनाथ की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया.

इस घटना को अंजाम उस के प्रेमी मुन्ना यादव ने अपने रिश्तेदार रंजय यादव और साथी संदीप रावत के साथ मिल कर दिया था.

इस के बाद 2 अगस्त, 2020 की सुबह सवा 8 बजे इंसपेक्टर संजय सिंह ने तीनों को कृष्णानगर चौराहे से गिरफ्तार कर लिया. उन के पास से हत्या में प्रयुक्त बाइक नंबर यूपी33 एडी 0265 भी बरामद हो गई. थाने ला कर सब से एक साथ पूछताछ की गई तो कत्ल की सारी कहानी सामने आ गई.

गलत काम की गठरी अधिक दिनों तक बंधी नहीं रहती. एक न एक दिन उस की गांठ खुलती ही है. संजू और मुन्ना के अवैध संबंधों की गठरी भी खुल गई थी.

एक दिन दोपहर में मुन्ना श्रीनाथ के घर पहुंचा तो 2 मिनट पहले ही संजू नहा कर बाथरूम से निकली थी. संजू का भीगा रूप देख कर मुन्ना की तबियत मचल गई. मुन्ना और संजू मस्ती में सराबोर हो कर एकदूसरे में गुंथ गए. जोश में यह भी भूल गए कि मकान का मुख्यद्वार खुला है.

उस दिन दोनों की पोल खुलनी थी, सो खुले दरवाजे से श्रीनाथ बेधड़क भीतर आ गया. उस ने संजू और मुन्ना को देखा तो सदमे से कुछ क्षण जड़ बना रहा. उस के बाद पूरी शक्ति से गरजा, ‘‘मुन्नाऽऽ.’’

उस की आवाज सुनते ही संजू और मुन्ना अलग हो गए. श्रीनाथ ने उस दिन दोनों की खूब लानतमलामत की. दोनों ने माफी मांग कर आगे ऐसा न करने का वादा किया. तब श्रीनाथ शांत हुए.

उस दिन के बाद कुछ दिन तक तो दोनों नहीं मिले लेकिन फिर से पुराने ढर्रे पर आ गए. संजू मुन्ना के साथ जिंदगी बिताने के सपने देख रही थी. लेकिन यह सपना श्रीनाथ के रहते पूरा नहीं हो सकता था.

घटना से एक साल पहले संजू ने श्रीनाथ को खाने में जहर दे कर मारने की कोशिश की, लेकिन श्रीनाथ की किस्मत अच्छी थी, वह बच गया. लेकिन इस घटना से श्रीनाथ के घर वाले भी संजू और मुन्ना के अवैध संबंधों के बारे में जान गए थे.

संजू ने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी. समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा. समय के साथसाथ संजू और मुन्ना की तड़प भी बढ़ती जा रही थी. श्रीनाथ उन के रास्ते का पत्थर था, जिसे हटाए बिना उन का बेधड़क मिलना संभव नहीं था. इसलिए संजू और मुन्ना ने इस बार पूरी योजना के साथ श्रीनाथ को रास्ते से हटाने की सोची.

दोनों ने हत्या की योजना बनाई. इस योजना में मुन्ना ने अपने गांव के ही एक साथी संदीप रावत और रिश्तेदार रंजय यादव निवासी गांव पूरे अवसान

थाना मोहनगंज, अमेठी को भी शामिल कर लिया.

योजनानुसार 30 जुलाई, 2020 की शाम मुन्ना संदीप और रंजय को अपनी बाइक पर बैठा कर बसंतपुर के लिए चल दिया. रास्ते में उस ने सब्जी काटने वाले 2 चाकू और शराब के पव्वे ले लिए. बसंतपुर गांव के बाहर प्राइमरी स्कूल के पास एक बाग में पहुंच कर मुन्ना ने श्रीनाथ को शराब पीने के लिए बुलाया. श्रीनाथ शाम 7 बजे के करीब घर से निकला तो संजू भी उस के साथ हो ली.

श्रीनाथ के वहां पहुंचने पर सब ने मिल कर शराब पी. श्रीनाथ को जानबूझ कर अधिक पिलाई गई.

उस के नशे में होते ही मुन्ना ने रंजय और संदीप की मदद से श्रीनाथ को दबोच लिया. संजू भी उन की मदद करने लगी. मुन्ना ने अपने साथियों की मदद से दोनों चाकुओं से श्रीनाथ का गला रेत दिया, जिस से उस की मौत हो गई. उसे मौत के घाट उतारने के बाद दोनों चाकू वहीं पास में फेंक कर तीनों बाइक से फरार हो गए. संजू भी वापस घरआ गई.  कानूनी लिखापढ़ी के बाद इंसपेक्टर संजय सिंह ने आरोपियों को न्यायालय में पेश किया, वहां से चारों को जेल भेज दिया गया.

त्रिशंकु – भाग 1: नवीन के फूहड़पन और रुचि के सलीकेपन की अनूठी कहानी

नवीन को बाजार में बेकार घूमने का शौक कभी नहीं रहा, वह तो सामान खरीदने के लिए उसे मजबूरी में बाजारों के चक्कर लगाने पड़ते हैं. घर की छोटीछोटी वस्तुएं कब खत्म होतीं और कब आतीं, उसे न तो कभी इस बात से सरोकार रहा, न ही दिलचस्पी. उसे तो हर चीज व्यवस्थित ढंग से समयानुसार मिलती रही थी.

हर महीने घर में वेतन दे कर वह हर तरह के कर्तव्यों की इतिश्री मान लेता था. शुरूशुरू में वह ज्यादा तटस्थ था लेकिन बाद में उम्र बढ़ने के साथ जब थोड़ी गंभीरता आई तो अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझने लगा था.

बाजार से खरीदारी करना उसे कभी पसंद नहीं आया था. लेकिन विडंबना यह थी कि महज वक्त काटने के लिए अब वह रास्तों की धूल फांकता रहता. साइन बोर्ड पढ़ता, दुकानों के भीतर ऐसी दृष्टि से ताकता, मानो सचमुच ही कुछ खरीदना चाहता हो.

दफ्तर से लौट कर घर जाने को उस का मन ही नहीं होता था. खाली घर काटने को दौड़ता. उदास मन और थके कदमों से उस ने दरवाजे का ताला खोला तो अंधेरे ने स्वागत किया. स्वयं बत्ती जलाते हुए उसे झुंझलाहट हुई. कभी अकेलेपन की त्रासदी यों भोगी नहीं थी. पहले मांबाप के साथ रहता था, फिर नौकरी के कारण दिल्ली आना पड़ा और यहीं विवाह हो गया था.

पिछले 8 वर्षों से रुचि ही घर के हर कोने में फुदकती दिखाई देती थी. फिर अचानक सबकुछ उलटपुलट हो गया. रुचि और उस के संबंधों में तनाव पनपने लगा. अर्थहीन बातों को ले कर झगड़े हो जाते और फिर सहज होने में जितना समय बीतता, उस दौरान रिश्ते में एक गांठ पड़ जाती. फिर होने यह लगा कि गांठें खुलने के बजाय और भी मजबूत सी होती गईं.

सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए नवीन ने फ्रिज खोला और बोतल सीधे मुंह से लगा कर पानी पी लिया. उस ने सोचा, अगर रुचि होती तो फौरन चिल्लाती, ‘क्या कर रहे हो, नवीन, शर्म आनी चाहिए तुम्हें, हमेशा बोतल जूठी कर देते हो.’

तब वह मुसकरा उठता था, ‘मेरा जूठा पीओगी तो धन्य हो जाओगी.’ ‘बेकार की बकवास मत किया करो, नाहक ही अपने मुंह की सारी गंदगी बोतलों में भर देते हो.’

यह सुन कर वह चिढ़ जाता और एकएक कर पानी की सारी बोतलें निकाल जूठी कर देता. तब रुचि सारी बोतलें निकाल उन्हें दोबारा साफ कर, फिर भर कर फ्रिज में रखती.

जब बच्चे भी उस की नकल कर ऐसा करने लगे तो रुचि ने अपना अलग घड़ा रख लिया और फ्रिज का पानी पीना ही छोड़ दिया. कुढ़ते हुए वह कहती, ‘बच्चों को भी अपनी गंदी आदतें सिखा दो, ताकि बड़े हो कर वे गंवार कहलाएं. न जाने लोग पढ़लिख कर भी ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं?’

बच्चों का खयाल आते ही उस के मन के किसी कोने में हूक उठी, उन के बिना जीना भी कितना व्यर्थ लगता है.

रुचि जब जाने लगी थी तो उस ने कितनी जिद की थी, अनुनय की थी कि वह बच्चों को साथ न ले जाए. तब उस ने व्यंग्यपूर्वक मुंह बनाते हुए कहा था, ‘ताकि वे भी तुम्हारी तरह लापरवाह और अव्यवस्थित बन जाएं. नहीं नवीन, मैं अपने बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकती. मैं उन्हें एक सभ्य व व्यवस्थित इंसान बनाना चाहती हूं. फिर तुम्हारे जैसा मस्तमौला आदमी उन की देखभाल करने में तो पूर्ण अक्षम है. बिस्तर की चादर तक तो तुम ढंग से बिछा नहीं सकते, फिर बच्चों को कैसे संभालोगे?’

नवीन सोचने लगा, न सही सलीका, पर वह अपने बच्चों से प्यार तो भरपूर करता है. क्या जीवन जीने के लिए व्यवस्थित होना जरूरी है? रुचि हर चीज को वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत करने की आदी थी.

विवाह के 2 वर्षों बाद जब स्नेहा पैदा हुई थी तो वह पागल सा हो गया था. हर समय गोदी में लिए उसे झुलाता रहता था. तब रुचि गुस्सा करती, ‘क्यों इस की आदत बिगाड़ रही हो, गोदी में रहने से इस का विकास कैसे होगा?’

रुचि के सामने नवीन की यही कोशिश रहती कि स्नेहा के सारे काम तरतीब से हों पर जैसे ही वह इधरउधर होती, वह खिलंदड़ा बन स्नेहा को गुदगुदाने लगता. कभी घोड़ा बन जाता तो कभी उसे हवा में उछाल देता.

वह सोचने लगता कि स्नेहा तो अब 6 साल की हो गई है और कन्नू 3 साल का. इस साल तो वह कन्नू का जन्मदिन भी नहीं मना सका, रुचि ने ही अपने मायके में मनाया था. अपने दिल के हाथों बेबस हो कर वह उपहार ले कर वहां गया था पर दरवाजे पर खड़े उस के पहलवान से दिखने वाले भाई ने आंखें तरेरते हुए उसे बाहर से ही खदेड़ दिया था. उस का लाया उपहार फेंक कर पान चबाते हुए कहा था, ‘शर्म नहीं आती यहां आते हुए. एक तरफ तो अदालत में तलाक का मुकदमा चल रहा है और दूसरी ओर यहां चले आते हो.’

‘मैं अपने बच्चों से मिलना चाहता हूं,’ हिम्मत जुटा कर उस ने कहा था.

‘खबरदार, बच्चों का नाम भी लिया तो. दे क्या सकता है तू बच्चों को,’ उस के ससुर ने ताना मारा था, ‘वे मेरे नाती हैं, राजसी ढंग से रहने के अधिकारी हैं. मेरी बेटी को तो तू ने नौकरानी की तरह रखा पर बच्चे तेरे गुलाम नहीं बनेंगे. मुझे पता होता कि तेरे जैसा व्यक्ति, जो इंजीनियर कहलाता है, इतना असभ्य होगा, तो कभी भी अपनी पढ़ीलिखी, सुसंस्कृत लड़की को तेरे साथ न ब्याहता, वही पढ़ेलिखे के चक्कर में जिद कर बैठी, नहीं तो क्या रईसों की कमी थी. जा, चला जा यहां से, वरना धक्के दे कर निकलवा दूंगा.’

वह अपमान का घूंट पी कर बच्चों की तड़प मन में लिए लौट आया था. वैसे भी झगड़ा किस आधार पर करता, जब रुचि ने ही उस का साथ छोड़ दिया था. वैसे उस के साथ रहते हुए रुचि ने कभी यह नहीं जतलाया था कि वह अमीर बाप की बेटी है, न ही वह कभी अपने मायके जा कर हाथ पसारती थी.

रुचि पैसे का अभाव तो सह जाती थी, लेकिन जब जिंदगी को मस्त ढंग से जीने का सवाल आता तो वह एकदम उखड़ जाती और सिद्धांतों का पक्ष लेती. उस वक्त नवीन का हर समीकरण, हर दलील उसे बेमानी व अर्थहीन लगती. रुचि ने जब अपने लिए घड़ा रखा तो नवीन को महसूस हुआ था कि वह चाहती तो अपने पिता से कह कर अलग से फ्रिज मंगा सकती थी पर उस ने पति का मान रखते हुए कभी इस बारे में सोचा भी नहीं.

नवीन ने रुचि की व्यवस्थित ढंग से जीने की आदत के साथ सामंजस्य बैठाने की कोशिश की पर हर बार वह हार जाता. बचपन से ही मां, बाबूजी ने उसे अपने ऊपर इतना निर्भर बना कर रखा था कि वह अपनी तरह से जीना सीख ही न पाया. मां तो उसे अपनेआप पानी भी ले कर नहीं पीने देती थीं. 8 वर्षों के वैवाहिक जीवन में वह उन संस्कारों से छुटकारा नहीं पा सका था.

रिद्धि डोगरा के बर्थ डे पर एक साथ पार्टी करते दिखें ‘नागिन-5’ के ये जानी दुश्मन

कोरोना काल में सितारे अपनी जिंदगी की छोटी-छोटी खुशियों को सेलिब्रेट करते नजर आ रहे हैं. बीते दिन टीवी अदाकारा रिद्धी डोगरा ने अपना जन्मदिन सेलिब्रेट किया है. जिसमें उनके खास दोस्त उनके साथ नजर आ रहे थें.

बीते दिनों ही उन्होंने अपने जन्मदिन को मनाया है. जिसमें वह बेहद ज्यादा एक्साइटेंड नजर आ रही थी. जन्मदिन  के समय रिद्धि डोगरा अपने दोस्तों के साथ पोज देती नजर आ रही हैं.

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सोशल मीडिया पर वायरल हो रही तस्वीर लगातार लाइम लाइट बटोर रही है. फैंस भी इस तस्वीर को देखकर काफी कमेंट कर रहे हैं. दरअसल रिद्धि डोगरा अपने घर पर ही पार्टी का आयोजन किया था जिसमें नागिन 5 के सभी विलेन एक साथ मस्ती करते नजर आ रहे हैं.

 

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Jab #satyug or #kalyug party mein miley ? naagin dance to banta hai ??? @dheerajdhoopar @colorstv @voot #naagin5 #jaimathur

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यहां हम बात कर रहे हैं मोहित सहगल और धीरज कपूर की जो पार्टी में पूरे मूड में नजर आ रहे हैं.ये तो हर कोई जानता है कि सीरियल में मोहित सहगल और धीरज कपूर एक दूसरे के दुश्मन है. वायरल हुई तस्वीर में मोहित सहगल और धीरज कपूर एक दूसरे के साथ धमाल मचाते नजर आ रहे हैं.

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फैंस रिद्धि डोगरा और मोहित सहगल को एक साथ खूब पसंद कर रहे हैं. दोनों की जोड़ी सोशल मीडिया पर छाई हुई है. दोनों पार्टी में अपनी पत्नियों के साथ पहुंचे हैं. सभी साथ में एक –दूसरे के साथ खुश नजर आ रहे हैं. जिससे एक –दूसरे के साथ प्यार बाटते नजर आ रहे हैं.

वहीं तस्वीर में रिद्धि डोगरा कमाल की लग रही हैं. सभी को एक साथ खूब पसंद किया जा रहा है इस तस्वीर को देखकर मालूम होता है कि रिद्धि डोगरा बर्थ डे बेहद खास रहा होगा.

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रिद्धि डोगरा के बर्थ डे को खास बनाने के लिए पहुंचे ये सितारे , फैंस कर रहे तारीफ

नेहा कक्कड़ का बोल्ड लुक देखकर फिदा हुए फैंस ,किया ऐसा कमेंट

नेहा कक्कड़ आए दिन गाने के नए जेनेरेशन को आगे बढ़ाकर एक नई पहचान देती हैं. नेहा जो भी गाना अपने आवाज में गाती हैं वह सुपरहिट हो जाता है. नेहा कक्कड़ के सभी गाने लोगों को खूब पसंद आते हैं वहीं यंगस्टर्स भी नेहा के गाने के खूब दीवाने हैं.

नेहा सोशल मीडिया पर अपने फैंस के बीच हमेशा एक्टिव रहती हैं. नेहा कक्कड़ इंस्टाग्राम पर हर वक्त नए-नए पोस्ट शेयर करती रहती हैं. जिससे फैंस उन्हें खूब पसंद करते हैं. यहीं नहीं नेहा जो भी ड्रेस पहनती है वह सोशल मीडिया ट्रेंड करने लगता है. फैंस नेहा के ड्रेस को कॉपी करना शुरू कर देते हैं.

 

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Caption? ? #TaaronKeShehar Make Up: @ritikavatsmakeupandhair Hair: @kimberly._.chu Styled by @uttam.bhagat ? @piyushmehraofficial

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हालांकि नेहा कक्कड़ ने इस बार अपनी कातिलाना आदाओं से सभी के बीच कहर ढ़ा रही हैं. नेहा का यह नया लुक फैंस को बहुत पसंद आ रहा है. नेहा ने यह तस्वीर अपने इंस्टाग्राम पर शेयर की है.

स्पोर्ट्स ब्रा में नेहा को देखकर फैंस भी तरह-तरह के कमेंट कर रहे हैं. गौरतलब है नेहा कि अदाएं देखकर कुछ फैंस की धड़कने बढ़ गई हैं.

 

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#SaiyaanJi Session ♥️? @yoyohoneysingh @singhstamusic @hommiedilliwala & Your Nehu ? @tseries.official

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फैंस जमकर नेहा के हुस्न की तारीफ करते नजर आ रहे हैं. वहीं नेहा के एक फैंस ने कमेंट किया है कि ‘हाय ये गर्मी’ जो सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा वायरल हो रहा है.

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बता दें कि नेहा कक्कड़ आज अपनी पहचान अपनी मेहनत के दम पर बना पाई हैं. नेहा एक गरीब परिवार की लड़की हैं. उन्होंने एक छोटे से शहर से अपनी यात्रा शुरू कि थी लेकिन आज वह लाखों दिलों की धड़कन हैं. नेहा के साथ-साथ उनके भाई –बहन भी गाना गाते है. नेहा के भाई जो गाना लिखते हैं नेहा उस गाने को अपनी आवाज देती हैं. आज नेहा की आवाज पर पूरा देश गर्व महसूस करता है.

डिनर में बनाए शिमला मिर्च और मूंगफली की लाजवाब सब्ज़ी, जानिए इसकी रेसिपी

शिमला मिर्च बच्चों को जल्दी पसंद नहीं आता है लेकिन यह हमारे लिए हेल्दी होता है. आइए जानते हैं शिमला मिर्च के साथ मूंगफली डालकर सब्जी कैसे बनाएं.

सामग्री

3- शिमला मिर्च

1 टमाटर कटा हुआ

1 प्याज़ कटा हुआ

1 टेबलस्पून- मूंगफली

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¼ चम्मच- जीरा

¼ टीस्पून- हल्दी पाउडर

स्वादानुसार नमक

¼ टीस्पन- चिकन मसाला पाउडर

-शिमला मिर्च को अच्छी तरह से धोकर काट लें.अब कड़ाही में मूंगफली को सूखा भूनकर निकाल लें और थोड़ा ठंडा होने पर छिलका निकालकर मिक्सर में दरदरा पीस लें.अब कड़ाही में तेल गरम करके जीरा, हींग और प्याज़ का तड़का लगाएं.

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-प्याज़ हल्का गुलाबी हो जाए तो उसमें शिमला मिर्च डालकर मध्यम आंच पर 5 मिनट तक भूनें.कुकिंग एक्सपर्ट्स के मुताबिक, सब्ज़ियों को मध्यम आंच पर भूनने से वह अच्छी तरह पक जाती हैं और उसके पौष्टिक तत्व भी नष्ट नहीं होते हैं.

-अब इसमें एक कटा टमाटर डालकर भूनें.टमाटर थोड़ा पक जाए तो हल्दी, लालमिर्च, नमक और चिकन मसाला डालकर ढंककर पकाएं.बीच-बीच में चलाती रहें.जब शिमला मिर्च अच्छी तरह पक जाए तो इसमें दरदरी पिसी हुई मूंगफली डालकर अच्छी तरह मिक्स करें.2 मिनट चलाने के बाद गैस बंद कर दें.

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-गरम-गरम सादे परांठे या मेथी के परांठे के साथ यह सब्ज़ी बहुत स्वादिष्ट लगती है.वैसे इसे आप लंच में दाल-राइस के साथ भी सर्व कर सकती हैं.लंच और डिनर के लिए यह परफेक्ट सब्ज़ी है.

-कुकिंग एक्सपर्ट्स के मुताबिक, मूंगफली मिक्स कर देने से शिमला मिर्च का कसैला स्वाद चला जाता है और फिर बच्चे भी इसे बहुत चाव से खाएंगे.

मिलन- भाग 1: क्या थी जयति की जयंत से सच छिपाने की मंशा

जयंत आंगन में खड़े हो कर जोरजोर से पुकारने लगे, ‘‘मां, ओ मां, आप कहां हैं?’’

‘‘कौन? अरे, जयंत बेटे, तुम कब आए? इस तरह अचानक, सब खैरियत तो है?’’ अंदर से आती हुई महिला ने जयंत को अविश्वसनीय दृष्टि से देखते हुए पूछा.

‘‘जी, मांजी, सब ठीक है,’’ जयंत ने आगे बढ़ कर महिला के पैर छूते हुए कहा तो उन्होंने उस के सिर पर प्यार से हाथ रख दिया.

‘‘मां, जानती हैं, इस बार मैं अकेला नहीं आया. देखिए तो, मेरे साथ कौन है, आप की बहू, जयति,’’ कहते हुए जयंत ने मेरी ओर इशारा कर दिया.

‘‘क्या? तुम ने शादी कर ली?’’ मां हैरानी से मेरा मुआयना करते हुए बोलीं. और फिर ‘‘तुम यहीं ठहरो, मैं अभी आई,’’ कह कर अंदर चली गईं.

‘तो ये हैं, जय की मांजी,’ मैं मन ही मन बुदबुदा उठी. मेरे दिल की धड़कन बढ़ने लगी. घबरा कर जयंत की ओर देखा. वे मेरी तरफ ही देख रहे थे. उन्होंने मुसकरा कर मुझे आश्वस्त किया. तभी हाथ में थाली लिए मांजी आ गईं.

‘‘भई, मेरे घर बहू आई है…पहले इस का स्वागत तो कर लूं,’’ कहते हुए मांजी मेरे पास आ गईं और थाली को चारों तरफ घुमाने लगीं. मैं उन के पांव छूने को झुकी ही थी कि उन्होंने मुझे अपनी बांहों में थाम लिया और माथे को चूमने लगीं. क्षणभर पहले मेरे मन में जो शंका थी, वह अब दूर हो चुकी थी. वे हम दोनों को


सामने वाले कमरे में ले गईं. कमरा बहुत साधारण था. सामने एक दीवान लगा था. एक तरफ 2 कुरसियां, एक मेज और दूसरी तरफ लोहे की अलमारी रखी थी. मांजी ने हमें दीवान पर बैठाया और बीच में स्वयं बैठ गईं. फिर मुझे प्यार से निहारते हुए बोलीं, ‘‘जय बेटा, कहां से ढूंढ़ लाया यह खूबसूरत हीरा? मैं तो दीपक ले कर तलाशती, फिर भी ऐसी बहू न ला पाती.’’

‘‘मांजी, मुझे माफ कर दीजिए. मुझे आप को बिना बताए यह शादी करनी पड़ी,’’ जयंत रुके, मेरी तरफ देखा, मानो आगे बात कहने के लिए शब्द तलाश रहे हों. फिर बोले, ‘‘दरअसल, जयति के पिताजी को अचानक दिल का दौरा पड़ा और डाक्टर ने बताया कि उन का अंतिम समय निकट है. इसलिए उन का मन रखने के लिए हमें तुरंत शादी करनी पड़ी.’’ मैं जानती थी, जयंत अपराधबोध से ग्रस्त हैं. वे मां के कदमों के पास जा बैठे और उन की गोद में सिर रख कर बोले, ‘‘आप ने मेरी शादी को ले कर बहुत से सपने देखे होंगे…पर मैं ने सभी एकसाथ तोड़ दिए. मैं ने आप को बहुत दुख दिया है, मुझे माफ कर दीजिए,’’ कहते हुए वे रोने लगे.

‘‘पगला कहीं का…अभी भी बच्चे की तरह रोता है. चल अब उठ, बहू क्या सोचेगी. तू मुंह धो, मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ उन्होंने प्यार से इन्हें उठाते हुए कहा. मांजी के साथ मेरी यही मुलाकात थी. जयंत ने ठीक ही कहा था. मांजी सब से निराली हैं. उन के चेहरे पर तेज है और वाणी में मिठास है. वे तो सौंदर्य, सादगी व ममता की प्रतिमा हैं. शीघ्र ही मेरे मन में उन की एक अलग जगह बन गई. हमें मांजी के पास आए लगभग एक सप्ताह हो गया था. हमारी छुट्टियां समाप्त हो रही थीं. जयंत एक बड़ी फर्म में व्यवसाय प्रबंधक थे और मैं अर्थशास्त्र की व्याख्याता थी. हम दोनों ही चाहते थे कि मांजी हमारे साथ मुंबई चलें. जयंत अनेक बार प्रयत्न भी कर चुके थे, पर वे कतई तैयार न थीं. एक दिन चाय पीते हुए मैं ने ही बात प्रारंभ की, ‘‘मांजी, हम चाहते हैं कि आप हमारे साथ चलें.’’

‘‘नहीं बहू, मैं अभी नहीं चल सकती. मुझे यहां ढेरों काम हैं,’’ उन्होंने टालते हुए कहा.

‘‘ठीक है, आप अपने जरूरी काम निबटा लीजिए, तब तक मैं यहीं हूं. जयंत चले जाएंगे,’’ मैं ने चाय की चुसकी लेते हुए बात जारी रखी.

‘‘लेकिन जयति,’’ उन्होंने कहना चाहा, पर मैं ने बात काट कर बीच में ही कहा, ‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं, आप को हमारे साथ मुंबई चलना ही होगा.’’ मैं दृढ़ता से, बिना उन्हें कुछ कहने का मौका दिए कहती गई, ‘‘मांजी, मेरी माताजी बचपन में ही चल बसीं. उन के बारे में मुझे कुछ भी याद नहीं. मुझे कभी मां का प्यार नहीं मिला. अब जब मुझे मेरी मांजी मिली हैं तो मैं किसी भी कीमत पर उन्हें खो नहीं सकती.

‘‘जय ने मुझे बताया कि आप मुंबई इसलिए नहीं जाना चाहतीं, क्योंकि वहां पिताजी रहते हैं,’’ मैं ने क्षणभर रुक कर जयंत को देखा. उन के चेहरे पर विषाद स्पष्ट देखा जा सकता था. पर मैं ने इसे नजरअंदाज करते हुए कहना जारी रखा, ‘‘मांजी, आप अतीत से भाग नहीं सकतीं. कभी न कभी तो उस का सामना करना ही पड़ेगा. खैर, कोई बात नहीं, यदि आप मुंबई न जाना चाहें तो जयंत कहीं और नौकरी देख लेंगे. लेकिन तब तक मैं आप के पास यहीं रहूंगी.’’ मैं ने उन के दिल पर भावनात्मक प्रहार कर डाला. मैं जानती थी कि उन को यह बरदाश्त नहीं होगा कि मैं जयंत से अलग रहूं. मांजी तड़प उठीं. मानो मैं ने उन की दुखती रग छेड़ दी हो. वे बोलीं, ‘‘जयति, मैं ने सदा तुम्हारे ससुर का बिछोह झेला है. जयंत 5 वर्ष का था, जब इस के पिता ने किसी दूसरी स्त्री की खातिर मुझे घर से निकाल दिया. तब से इस छोटे से शहर में अध्यापिका की नौकरी करते हुए न जाने कितनी कठिनाइयां उठा कर इसे पाला है. जो दर्द मैं ने 20 बरसों तक झेला है, उसे इतनी जल्दी नहीं भूल सकती. कभी भी अपने पति से दूर मत होना. मैं यहीं ठीक हूं,’’ उन के शब्दों में असीम पीड़ा व आंखों में आंसू थे.

‘‘यदि आप हम दोनों को खुश देखना चाहती हैं तो आप को चलना ही होगा,’’ मैं ने उन की आंखों में झांकते हुए दृढ़ता से कहा. उस दिन मेरी जिद के आगे मांजी को झुकना ही पड़ा. वे हमारे साथ मुंबई आ गईं. यहां आते ही सारे घर की जिम्मेदारी उन्होंने अपने ऊपर ले ली. वे हमारी छोटी से छोटी जरूरत का भी ध्यान रखतीं. जयंत और मैं सुबह साथसाथ ही निकलते. मेरा कालेज रास्ते में पड़ता था, सो जयंत मुझे कालेज छोड़ कर अपने दफ्तर चले जाते. मेरी कक्षाएं 3 बजे तक चलती थीं. साढ़े 3 बजे तक मैं घर लौट आती. जयंत को आतेआते 8 बज जाते. अब मेरा अधिकांश समय मांजी के साथ ही गुजरता. हमें एकदूसरे का साथ बहुत भाता. मैं ने महसूस किया कि हालांकि मांजी मेरी हर बात में दिलचस्पी लेती हैं, लेकिन वे उदास रहतीं. बातें करतेकरते न जाने कहां खो जातीं. उन की उदासी मुझे बहुत खलती. उन्हें खुश रखने का मैं भरसक प्रयत्न करती और वे भी ऊपर से खुश ही लगतीं लेकिन मैं समझती थी कि उन का खुश दिखना सिर्फ दिखावा है.

एक रात मैं ने जयंत से इस बात का जिक्र भी किया. वे व्यथित हो गए और कहने लगे, ‘‘मां को सभी दुख उसी इंसान ने दिए हैं, जिसे दुनिया मेरा बाप कहती है. मेरा बस चले तो मैं उस से इस दुनिया में रहने का अधिकार छीन लूं. नहीं जयति, नहीं, मैं उसे कभी माफ नहीं कर सकता. उस का नाम सुनते ही मेरा खून खौलने लगता है.’’ जयंत का चेहरा क्रोध से तमतमाने लगा. मैं अंदर तक कांप गई. क्योंकि मैं ने उन का यह रूप पहली बार देखा था.

फिर कुछ संयत हो कर जयंत ने मेरा हाथ पकड़ लिया और भावुक हो कर कहा, ‘‘जयति, वादा करो कि तुम मां को इतनी खुशियां दोगी कि वे पिछले सभी गम भूल जाएं.’’ मैं ने जयंत से वादा तो किया लेकिन पूरी रात सो न पाई, कभी मां का तो कभी जयंत का चेहरा आंखों के आगे तैरने लगता. लेकिन उसी रात से मेरा दिमाग नई दिशा में घूमने लगा. अब मैं जब भी मांजी के साथ अकेली होती तो अपने ससुर के बारे में ही बातें करती, उन के बारे में ढेरों प्रश्न पूछती. शुरूशुरू में तो मांजी कुछ कतराती रहीं लेकिन फिर मुझ से खुल गईं. उन्हें मेरी बातें अच्छी लगने लगीं. एक दिन बातों ही बातों में मैं ने जाना कि लगभग 7 वर्ष पहले वह दूसरी औरत कुछ गहने व नकदी ले कर किसी दूसरे प्रेमी के साथ भाग गई थी. पिताजी कई महीनों तक इस सदमे से उबर नहीं पाए. कुछ संभलने पर उन्हें अपने किए पर पछतावा हुआ. वे पत्नी यानी मांजी के पास आए और उन से लौट चलने को कहा. लेकिन जयंत ने उन का चेहरा देखने से भी इनकार कर दिया. उन के शर्मिंदा होने व बारबार माफी मांगने पर जयंत ने इतना ही कहा कि वह उन के साथ कभी कोई संबंध नहीं रखेगा. हां, मांजी चाहें तो उन के साथ जा सकती हैं. लेकिन तब पिताजी को खाली लौटना पड़ा था. मैं जान गई कि यदि उस वक्त जयंत अपनी जिद पर न अड़े होते तो मांजी अवश्य ही पति को माफ कर देतीं, क्योंकि वे अकसर कहा करती थीं, ‘इंसान तो गलतियों का पुतला है. यदि वह अपनी गलती सुधार ले तो उसे माफ कर देना चाहिए.’

मैं ने मांजी से यह भी मालूम कर लिया कि पिताजी की मुंबई में ही प्लास्टिक के डब्बे बनाने की फैक्टरी है. अब मैं ने उन से मिलने की ठानी. इस के लिए मैं ने टैलीफोन डायरैक्ट्री में जितने भी उमाकांत नाम से फोन नंबर थे, सभी लिख लिए. अपनी एक सहेली के घर से सभी नंबर मिलामिला कर देखने लगी. आखिरकार मुझे पिताजी का पता मालूम हो ही गया. दूसरे रोज मैं उन से मिलने उन के बंगले पर गई. मुझे उन से मिल कर बहुत अच्छा लगा. लेकिन यह देख कर दुख भी हुआ कि इतने ऐशोआराम के साधन होते हुए भी वे नितांत अकेले हैं. उस के बाद मैं जबतब पिताजी से मिलने चली जाती, घंटों उन से बातें करती. मुझ से बात कर के वे खुद को हलका महसूस करते क्योंकि मैं उन के एकाकी जीवन की नीरसता को कुछ पलों के लिए दूर कर देती. पिताजी मुझे बहुत भोले व भले लगते. उन के चेहरे पर मासूमियत व दर्द था तो आंखों में सूनापन व चिरप्रतीक्षा. वे मां व जयंत के बारे में छोटी से छोटी बात जानना चाहते थे. मैं मानती थी कि पिताजी ने बहुत बड़ी भूल की है और उस भूल की सजा निर्दोष मां व जयंत भुगत रहे हैं. पर अब मुझे लगने लगा था कि उन्हें प्रायश्चित्त का मौका न दे कर जयंत पिताजी, मां व खुद पर अत्याचार कर रहे हैं.

शीघ्र ही मैं ने एक कदम और उठाया. शाम को मैं मां के साथ पार्क में घूमने जाती थी. पार्क के सामने ही एक दुकान थी. एक दिन मैं कुछ जरूरी सामान लेने के बहाने वहां चली गई और मां वहीं बैंच पर बैठी रहीं.

‘‘विजया, विजया, तुम? तुम यहां कैसे?’’ तभी किसी ने मां को पुकारा. अपना नाम सुन कर मांजी एकदम चौंक उठीं. नजरें उठा कर देखा तो सामने पति खड़े थे. कुछ पल तो शायद उन्हें विश्वास नहीं हुआ, लेकिन फिर घबरा कर उठ खड़ी हुईं.

‘‘जयंत की पत्नी जयति के साथ आई हूं. वह सामने कुछ सामान लेने गई है,’’ वे बड़ी कठिनाई से इतना ही कह पाईं.

‘‘कब से यहां हो? तुम खड़ी क्यों हो गईं?’’ उन को जैसे कुछ याद आया, फिर अपनी ही धुन में कहने लगे, ‘‘इस लायक तो नहीं कि तुम मुझ से कुछ पल भी बात करो. मैं ने तुम पर क्याक्या जुल्म नहीं किए. कौन सा ऐसा दर्द है जो मैं ने तुम्हें नहीं दिया. प्रकृति ने तो मुझे नायाब हीरा दिया था, पर मैं ने ही उसे कांच का टुकड़ा जान कर ठुकरा दिया.’’ क्षणभर रुक कर आगे कहने लगे, ‘‘आज मेरे पास सबकुछ होते हुए भी कुछ नहीं है. नितांत एकाकी हूं. लेकिन यह जाल तो खुद मैं ने ही अपने लिए बुना है.’’ पुराने घाव फिर ताजा हो गए थे. आंखों में दर्द का सागर हिलोरें ले रहा था. दोनों एक ही मंजिल के मुसाफिर थे. तभी मां ने सामने से मुझे आता देख कर उन्हें भेज दिया. उस दिन के बाद मैं किसी न किसी बहाने से पार्क जाना टाल जाती. लेकिन मां को स्वास्थ्य का वास्ता दे कर जरूर भेज देती.

इसी तरह दिन निकलने लगे. मांजी रोज छिपछिप कर पति से मिलतीं. पिताजी ने कभी यह जाहिर नहीं किया कि वे मुझे जानते हैं. लेकिन मुझे अब आगे का रास्ता नहीं सूझ रहा था. समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए? जब काफी सोचने पर भी उपाय न सूझा तो मैं ने सबकुछ वक्त पर छोड़ने का निश्चय कर डाला. लेकिन एक दिन पड़ोसिन नेहा ने टोका, ‘‘क्या बात है जयति, तुम आजकल पार्क नहीं आतीं. तुम्हारी सास भी किसी अजनबी के साथ अकसर बैठी रहती हैं.’’

‘‘बस नेहा, आजकल कालेज का काम कुछ ज्यादा है, इसलिए मांजी चाचाजी के साथ चली जाती हैं,’’ मैं ने जल्दी से बात संभाली. लेकिन नेहा की बात मुझे अंदर तक हिला गई. अब इसे टालना संभव नहीं था. इस तरह तो कभी न कभी जयंत के सामने बात आती ही और वे तूफान मचा देते. मैं ने निश्चय किया कि यह खेल मैं ने ही शुरू किया है, इसलिए मुझे ही खत्म भी करना होगा. लेकिन कैसे? यह मुझे समझ नहीं आ रहा था. उस रात मैं ठीक से सो न सकी. सुबह अनमनी सी कालेज चल दी. रास्ते में जयंत ने मेरी सुस्ती का कारण जानना चाहा तो मैं ने ‘कुछ खास नहीं’ कह कर टाल दिया. लेकिन मैं अंदर से विचलित थी. कालेज में पढ़ाने में मन न लगा तो अपने औफिस में चली आई. फिर न जाने मुझे क्या सूझा. मैं ने कागज, कलम उठाया और लिखने लगी…

‘‘प्रिय जय,

‘‘मेरा इस तरह अचानक पत्र लिखना शायद तुम्हें असमंजस में डाल रहा होगा याद है, एक बार पहले भी मैं ने तुम्हें प्रेमपत्र लिखा था, जिस में पहली बार अपने प्यार का इजहार किया था. उस दिन मैं असमंजस में थी कि तुम्हें मेरा प्यार कुबूल होगा या नहीं. ‘‘आज फिर मैं असमंजस में हूं कि तुम मेरे जज्बातों से इंसाफ कर पाओगे या नहीं. ‘‘जय, मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं लेकिन मैं मांजी से भी बहुत प्यार करने लगी हूं. यदि उन से न मिली होती तो शायद मेरे जीवन में कुछ अधूरापन रह जाता. ‘‘मांजी की उदासी मुझ से देखी नहीं गई, इसलिए पिताजी की खोजबीन करनी शुरू कर दी. अपने इस प्रयास में मैं सफल भी रही. मैं पार्क में उन की मुलाकातें करवाने लगी. लेकिन मां को मेरी भूमिका का जरा भी भान नहीं था.

‘‘अब वे दोनों बहुत खुश हैं. मांजी बेसब्री से शाम होने की प्रतीक्षा करती हैं. वे तो शायद उन मुलाकातों के सहारे जिंदगी भी काट देंगी. लेकिन तुम्हें याद है, जब 2 महीने पहले मैं सेमिनार में भाग लेने बेंगलुरु गई थी तब एक सप्ताह बाद लौटने पर तुम ने कितनी बेताबी से कहा था, ‘जयति, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, तुम मुझे फिर कभी इस तरह छोड़ कर मत जाना. तुम्हारी उपस्थिति मेरा संबल है.’ ‘‘तब मैं ने मजाक में कहा था, ‘मांजी तो यहां ही थीं. वे तुम्हारा मुझ से ज्यादा खयाल रखती हैं.’ ‘‘‘वह तो ठीक है जयति, मांजी मेरे लिए पूजनीय हैं, लेकिन तुम मेरी पूजा हो,’ तुम भावुकता से कहते गए थे. ‘‘याद है न सब? फिर तुम यह क्यों भूल जाते हो किमांजी की जिंदगी में हम दोनों में से कोई भी पिताजी की जगह नहीं ले सकता. क्या पिताजी उन की पूजा नहीं, उन की धड़कन नहीं? ‘‘जब मांजी को उन से कोई शिकवा नहीं तो फिर तुम उन्हें माफ करने वाले या न करने वाले कौन होते हो? यह तो किसी समस्या का हल नहीं कि यदि आप के घाव न भरें तो आप दूसरों के घावों को भी हरा रखने की कोशिश करें. ‘‘जय, तुम यदि पिताजी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम इतना तो कर सकते हो कि उन से नफरत न करो. मांजी तो सदैव तुम्हारे लिए जीती रहीं, हंसती रहीं, रोती रहीं. तुम सिर्फ एक बार, सिर्फ एक बार अपनी जयति की खातिर उन के साथ हंस लो. फिर देखना, जिंदगी कितनी सरल और हसीन हो जाएगी. ‘‘मेरे दिल की कोई बात तुम से छिपी नहीं. जिंदगी में पहली बार तुम से कुछ छिपाने की गुस्ताखी की. इस के लिए माफी चाहती हूं.

‘‘तुम जो भी फैसला करोगे, जो भी सजा दोगे, मुझे मंजूर होगी.

‘‘तुम्हारी हमदम,

जयति.’’

पत्र को दोबारा पढ़ा और फिर चपरासी के हाथों जयंत के दफ्तर भिजवा दिया. उस दिन मैं कालेज से सीधी अपनी सहेली के घर चली गई. शायद सचाई का सामना करने की हिम्मत मुझ में नहीं थी. रात को घर पहुंचतेपहुंचते 10 बज गए. घर पहुंच कर मैं दंग रह गई, क्योंकि वहां अंधकार छाया हुआ था. मेरा दिल बैठने लगा. मैं समझ गई कि भीतर जाते ही विस्फोट होगा, जो मुझे जला कर खाक कर देगा. मैं ने डरतेडरते भीतर कदम रखा ही था कि सभी बत्तियां एकसाथ जल उठीं. इस से पहले कि मैं कुछ समझ पाती, सामने सोफे पर जयंत को मातापिता के साथ बैठा देख कर चौंक गई. मुझे अपनी निगाहों पर विश्वास नहीं हो रहा था. मैं कुछ कहती, इस से पहले ही जयंत बोल उठे, ‘‘तो श्रीमती जयतिजी, आप ने हमें व मांजी को अब तक अंधेरे में रखा…इसलिए दंड भुगतने को तैयार हो जाओ.’’

‘‘क्या?’’

‘‘तुम पैकिंग शुरू करो.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘भई, जाना है.’’

‘‘कहां?’’

‘‘हमारे साथ मसूरी,’’ जयंत ने नाटकीय अंदाज से कहा तो सभी हंस पड़े.

मिलन- भाग 3: क्या थी जयति की जयंत से सच छिपाने की मंशा

‘‘अब वे दोनों बहुत खुश हैं. मांजी बेसब्री से शाम होने की प्रतीक्षा करती हैं. वे तो शायद उन मुलाकातों के सहारे जिंदगी भी काट देंगी. लेकिन तुम्हें याद है, जब 2 महीने पहले मैं सेमिनार में भाग लेने बेंगलुरु गई थी तब एक सप्ताह बाद लौटने पर तुम ने कितनी बेताबी से कहा था, ‘जयति, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, तुम मुझे फिर कभी इस तरह छोड़ कर मत जाना. तुम्हारी उपस्थिति मेरा संबल है.’ ‘‘तब मैं ने मजाक में कहा था, ‘मांजी तो यहां ही थीं. वे तुम्हारा मुझ से ज्यादा खयाल रखती हैं.’ ‘‘‘वह तो ठीक है जयति, मांजी मेरे लिए पूजनीय हैं, लेकिन तुम मेरी पूजा हो,’ तुम भावुकता से कहते गए थे. ‘‘याद है न सब? फिर तुम यह क्यों भूल जाते हो किमांजी की जिंदगी में हम दोनों में से कोई भी पिताजी की जगह नहीं ले सकता. क्या पिताजी उन की पूजा नहीं, उन की धड़कन नहीं? ‘‘जब मांजी को उन से कोई शिकवा नहीं तो फिर तुम उन्हें माफ करने वाले या न करने वाले कौन होते हो? यह तो किसी समस्या का हल नहीं कि यदि आप के घाव न भरें तो आप दूसरों के घावों को भी हरा रखने की कोशिश करें. ‘‘जय, तुम यदि पिताजी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम इतना तो कर सकते हो कि उन से नफरत न करो. मांजी तो सदैव तुम्हारे लिए जीती रहीं, हंसती रहीं, रोती रहीं. तुम सिर्फ एक बार, सिर्फ एक बार अपनी जयति की खातिर उन के साथ हंस लो. फिर देखना, जिंदगी कितनी सरल और हसीन हो जाएगी. ‘‘मेरे दिल की कोई बात तुम से छिपी नहीं. जिंदगी में पहली बार तुम से कुछ छिपाने की गुस्ताखी की. इस के लिए माफी चाहती हूं.

‘‘तुम जो भी फैसला करोगे, जो भी सजा दोगे, मुझे मंजूर होगी.

‘‘तुम्हारी हमदम,

जयति.’’

पत्र को दोबारा पढ़ा और फिर चपरासी के हाथों जयंत के दफ्तर भिजवा दिया. उस दिन मैं कालेज से सीधी अपनी सहेली के घर चली गई. शायद सचाई का सामना करने की हिम्मत मुझ में नहीं थी. रात को घर पहुंचतेपहुंचते 10 बज गए. घर पहुंच कर मैं दंग रह गई, क्योंकि वहां अंधकार छाया हुआ था. मेरा दिल बैठने लगा. मैं समझ गई कि भीतर जाते ही विस्फोट होगा, जो मुझे जला कर खाक कर देगा. मैं ने डरतेडरते भीतर कदम रखा ही था कि सभी बत्तियां एकसाथ जल उठीं. इस से पहले कि मैं कुछ समझ पाती, सामने सोफे पर जयंत को मातापिता के साथ बैठा देख कर चौंक गई. मुझे अपनी निगाहों पर विश्वास नहीं हो रहा था. मैं कुछ कहती, इस से पहले ही जयंत बोल उठे, ‘‘तो श्रीमती जयतिजी, आप ने हमें व मांजी को अब तक अंधेरे में रखा…इसलिए दंड भुगतने को तैयार हो जाओ.’’

‘‘क्या?’’

‘‘तुम पैकिंग शुरू करो.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘भई, जाना है.’’

‘‘कहां?’’

‘‘हमारे साथ मसूरी,’’ जयंत ने नाटकीय अंदाज से कहा तो सभी हंस पड़े.

 

Nutrition Special: जानें, प्रोटीन के संबंध में 8 जरूरी बातें

प्रोटीन हमारे शरीर की मांसपेशियों के निर्माण के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. यह न सिर्फ मांसपेशियों का निर्माण करता है बल्कि आपको फिट रखने का भी काम करता है. यह ग्लाइकोजन के स्तर को मैंटेन रखकर शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है. प्रोटीन का मुख्य कार्य शरीर की आधारभूत संरचना की स्थापना एवं एंजाइम के रूप में शरीर की जैव रासायनिक क्रियाओं का संचालन करना होता है. आपको बता दें कि अगर आप 1 ग्राम प्रोटीन लेते हैं तो उससे आप के शरीर को 4.1 कैलोरी प्राप्त होती है.

लेकिन किसी भी फिटनेस एंथोसिएस्ट को सिर्फ यही जानना जरूरी नहीं है बल्कि उन्हें प्रोटीन के 8 महत्वपूर्ण तत्वों से भी वाकिफ होना जरूरी है ताकि वे बौडी भी बना पाए और खुद को फिट भी रख सकें.

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तो आइए, इस संबंध में हम हरीश कुमार शर्मा  से जानते हैं, जो इक्विलिब्रियम प्रो. जिम (फरीदाबाद स्थित एशियन हौस्पिटल) में हैल्थ एंड फिटनेस कंसलटेंट हैं.

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  1. एक सामान्य स्वस्थ व्यक्ति को अपने शरीर के प्रति किलोग्राम का 1.2 से  1.5 ग्राम प्रोटीन लेना चाहिए. मतलब अगर व्यक्ति का वजन 50 किलोग्राम है तो उसे 150 ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन अपने पूरे दिन की डाइट में लेना चाहिए और एक खिलाड़ी या कसरत करने वाले  व्यक्ति को 1.5 ग्राम से लेकर 2 ग्राम प्रति किलोग्राम शरीर के भार के हिसाब से लेना चाहिए. यदि घर के खाने से यह प्रोटीन प्राप्त हो जाता है तो अतिरिक्त प्रोटीन की आवशयकता नहीं होती है.

2. यदि आप का  उद्देश्य मांसपेशियों को सुडोल और साइज बढ़ाना है तो प्रोटीन की अपने शरीर के भार के अनुसार मात्रा को 5 -6  बार के खाने में लें.  इससे शरीर को बराबर अनुपात में प्रोटीन मिल पाता है.

3.  यदि आप कम्पीटिशन लेवल के हिसाब से एक्सरसाइज करते हैं तो आप फैट फ्री मास यानी शरीर के कुल वजन का वसा के बिना जो भार है , उसका 2 से 2.5 ग्राम प्रोटीन लेना चाहिए, जिससे निरंतर जिम करने से मसल्स की मांसपेशियों का आकार समान बना रहेगा.

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4. कुछ लोगों का मानना  है कि ज्यादा प्रोटीन लेने से किडनी पर गलत प्रभाव पड़ता है. जबकि हमारे लिए ये जान लेना जरूरी है कि यदि आप का व्यायाम करने का स्तर अधिक है तो मात्रा के अनुसार प्रोटीन किडनी और किसी भी अंग पर असर नहीं करेगा.

5.  पेशेवर एथलीट और बौडी बिल्डर्स यदि प्रचुर मात्रा में प्रोटीन लेते हैं तो उनका मूड अच्छा रहता है.  इससे अतिरिक्त वसा को भी कम करने में मदद मिलती है.

6. प्रोटीन वे खनिज हैं, जो शरीर के विकास तथा उसके रखरखाव के लिए आवश्यक है.  प्रोटीन शरीर में जाकर अमीनो एसिड बन जाता है.  प्रोटीन का निर्धारित मात्रा में सेवन से न केवल मांसपेशियों बल्कि त्वचा , बाल, नाख़ून भी स्वस्थ रहते हैं.

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7.  कुछ लोग सोचते हैं कि प्रोटीन की मात्रा केवल मांसाहारी भोजन में होती है जबकि एक सम्पूर्ण शाकाहारी व्यक्ति भी अपने आहार से प्रतिदिन प्रोटीन की मात्रा की पूर्ति कर सकता है.

8. मांसपेशियों को बनाने के लिए न सिर्फ प्रोटीन की जरुरत होती है बल्कि एक संतुलित आहार की जरूरत होती है, जिसमे प्रोटीन की मात्रा सबसे अधिक होती है.  उचित मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स , फैट्स, , मिनरल्स , विटामिन्स और पानी की भी मात्रा आवश्यक है.

मिलन- भाग 2: क्या थी जयति की जयंत से सच छिपाने की मंशा

‘‘यदि आप हम दोनों को खुश देखना चाहती हैं तो आप को चलना ही होगा,’’ मैं ने उन की आंखों में झांकते हुए दृढ़ता से कहा. उस दिन मेरी जिद के आगे मांजी को झुकना ही पड़ा. वे हमारे साथ मुंबई आ गईं. यहां आते ही सारे घर की जिम्मेदारी उन्होंने अपने ऊपर ले ली. वे हमारी छोटी से छोटी जरूरत का भी ध्यान रखतीं. जयंत और मैं सुबह साथसाथ ही निकलते. मेरा कालेज रास्ते में पड़ता था, सो जयंत मुझे कालेज छोड़ कर अपने दफ्तर चले जाते. मेरी कक्षाएं 3 बजे तक चलती थीं. साढ़े 3 बजे तक मैं घर लौट आती. जयंत को आतेआते 8 बज जाते. अब मेरा अधिकांश समय मांजी के साथ ही गुजरता. हमें एकदूसरे का साथ बहुत भाता. मैं ने महसूस किया कि हालांकि मांजी मेरी हर बात में दिलचस्पी लेती हैं, लेकिन वे उदास रहतीं. बातें करतेकरते न जाने कहां खो जातीं. उन की उदासी मुझे बहुत खलती. उन्हें खुश रखने का मैं भरसक प्रयत्न करती और वे भी ऊपर से खुश ही लगतीं लेकिन मैं समझती थी कि उन का खुश दिखना सिर्फ दिखावा है.

एक रात मैं ने जयंत से इस बात का जिक्र भी किया. वे व्यथित हो गए और कहने लगे, ‘‘मां को सभी दुख उसी इंसान ने दिए हैं, जिसे दुनिया मेरा बाप कहती है. मेरा बस चले तो मैं उस से इस दुनिया में रहने का अधिकार छीन लूं. नहीं जयति, नहीं, मैं उसे कभी माफ नहीं कर सकता. उस का नाम सुनते ही मेरा खून खौलने लगता है.’’ जयंत का चेहरा क्रोध से तमतमाने लगा. मैं अंदर तक कांप गई. क्योंकि मैं ने उन का यह रूप पहली बार देखा था.

फिर कुछ संयत हो कर जयंत ने मेरा हाथ पकड़ लिया और भावुक हो कर कहा, ‘‘जयति, वादा करो कि तुम मां को इतनी खुशियां दोगी कि वे पिछले सभी गम भूल जाएं.’’ मैं ने जयंत से वादा तो किया लेकिन पूरी रात सो न पाई, कभी मां का तो कभी जयंत का चेहरा आंखों के आगे तैरने लगता. लेकिन उसी रात से मेरा दिमाग नई दिशा में घूमने लगा. अब मैं जब भी मांजी के साथ अकेली होती तो अपने ससुर के बारे में ही बातें करती, उन के बारे में ढेरों प्रश्न पूछती. शुरूशुरू में तो मांजी कुछ कतराती रहीं लेकिन फिर मुझ से खुल गईं. उन्हें मेरी बातें अच्छी लगने लगीं. एक दिन बातों ही बातों में मैं ने जाना कि लगभग 7 वर्ष पहले वह दूसरी औरत कुछ गहने व नकदी ले कर किसी दूसरे प्रेमी के साथ भाग गई थी. पिताजी कई महीनों तक इस सदमे से उबर नहीं पाए. कुछ संभलने पर उन्हें अपने किए पर पछतावा हुआ. वे पत्नी यानी मांजी के पास आए और उन से लौट चलने को कहा. लेकिन जयंत ने उन का चेहरा देखने से भी इनकार कर दिया. उन के शर्मिंदा होने व बारबार माफी मांगने पर जयंत ने इतना ही कहा कि वह उन के साथ कभी कोई संबंध नहीं रखेगा. हां, मांजी चाहें तो उन के साथ जा सकती हैं. लेकिन तब पिताजी को खाली लौटना पड़ा था. मैं जान गई कि यदि उस वक्त जयंत अपनी जिद पर न अड़े होते तो मांजी अवश्य ही पति को माफ कर देतीं, क्योंकि वे अकसर कहा करती थीं, ‘इंसान तो गलतियों का पुतला है. यदि वह अपनी गलती सुधार ले तो उसे माफ कर देना चाहिए.’

मैं ने मांजी से यह भी मालूम कर लिया कि पिताजी की मुंबई में ही प्लास्टिक के डब्बे बनाने की फैक्टरी है. अब मैं ने उन से मिलने की ठानी. इस के लिए मैं ने टैलीफोन डायरैक्ट्री में जितने भी उमाकांत नाम से फोन नंबर थे, सभी लिख लिए. अपनी एक सहेली के घर से सभी नंबर मिलामिला कर देखने लगी. आखिरकार मुझे पिताजी का पता मालूम हो ही गया. दूसरे रोज मैं उन से मिलने उन के बंगले पर गई. मुझे उन से मिल कर बहुत अच्छा लगा. लेकिन यह देख कर दुख भी हुआ कि इतने ऐशोआराम के साधन होते हुए भी वे नितांत अकेले हैं. उस के बाद मैं जबतब पिताजी से मिलने चली जाती, घंटों उन से बातें करती. मुझ से बात कर के वे खुद को हलका महसूस करते क्योंकि मैं उन के एकाकी जीवन की नीरसता को कुछ पलों के लिए दूर कर देती. पिताजी मुझे बहुत भोले व भले लगते. उन के चेहरे पर मासूमियत व दर्द था तो आंखों में सूनापन व चिरप्रतीक्षा. वे मां व जयंत के बारे में छोटी से छोटी बात जानना चाहते थे. मैं मानती थी कि पिताजी ने बहुत बड़ी भूल की है और उस भूल की सजा निर्दोष मां व जयंत भुगत रहे हैं. पर अब मुझे लगने लगा था कि उन्हें प्रायश्चित्त का मौका न दे कर जयंत पिताजी, मां व खुद पर अत्याचार कर रहे हैं.

शीघ्र ही मैं ने एक कदम और उठाया. शाम को मैं मां के साथ पार्क में घूमने जाती थी. पार्क के सामने ही एक दुकान थी. एक दिन मैं कुछ जरूरी सामान लेने के बहाने वहां चली गई और मां वहीं बैंच पर बैठी रहीं.

‘‘विजया, विजया, तुम? तुम यहां कैसे?’’ तभी किसी ने मां को पुकारा. अपना नाम सुन कर मांजी एकदम चौंक उठीं. नजरें उठा कर देखा तो सामने पति खड़े थे. कुछ पल तो शायद उन्हें विश्वास नहीं हुआ, लेकिन फिर घबरा कर उठ खड़ी हुईं.

‘‘जयंत की पत्नी जयति के साथ आई हूं. वह सामने कुछ सामान लेने गई है,’’ वे बड़ी कठिनाई से इतना ही कह पाईं.

‘‘कब से यहां हो? तुम खड़ी क्यों हो गईं?’’ उन को जैसे कुछ याद आया, फिर अपनी ही धुन में कहने लगे, ‘‘इस लायक तो नहीं कि तुम मुझ से कुछ पल भी बात करो. मैं ने तुम पर क्याक्या जुल्म नहीं किए. कौन सा ऐसा दर्द है जो मैं ने तुम्हें नहीं दिया. प्रकृति ने तो मुझे नायाब हीरा दिया था, पर मैं ने ही उसे कांच का टुकड़ा जान कर ठुकरा दिया.’’ क्षणभर रुक कर आगे कहने लगे, ‘‘आज मेरे पास सबकुछ होते हुए भी कुछ नहीं है. नितांत एकाकी हूं. लेकिन यह जाल तो खुद मैं ने ही अपने लिए बुना है.’’ पुराने घाव फिर ताजा हो गए थे. आंखों में दर्द का सागर हिलोरें ले रहा था. दोनों एक ही मंजिल के मुसाफिर थे. तभी मां ने सामने से मुझे आता देख कर उन्हें भेज दिया. उस दिन के बाद मैं किसी न किसी बहाने से पार्क जाना टाल जाती. लेकिन मां को स्वास्थ्य का वास्ता दे कर जरूर भेज देती.

इसी तरह दिन निकलने लगे. मांजी रोज छिपछिप कर पति से मिलतीं. पिताजी ने कभी यह जाहिर नहीं किया कि वे मुझे जानते हैं. लेकिन मुझे अब आगे का रास्ता नहीं सूझ रहा था. समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए? जब काफी सोचने पर भी उपाय न सूझा तो मैं ने सबकुछ वक्त पर छोड़ने का निश्चय कर डाला. लेकिन एक दिन पड़ोसिन नेहा ने टोका, ‘‘क्या बात है जयति, तुम आजकल पार्क नहीं आतीं. तुम्हारी सास भी किसी अजनबी के साथ अकसर बैठी रहती हैं.’’

‘‘बस नेहा, आजकल कालेज का काम कुछ ज्यादा है, इसलिए मांजी चाचाजी के साथ चली जाती हैं,’’ मैं ने जल्दी से बात संभाली. लेकिन नेहा की बात मुझे अंदर तक हिला गई. अब इसे टालना संभव नहीं था. इस तरह तो कभी न कभी जयंत के सामने बात आती ही और वे तूफान मचा देते. मैं ने निश्चय किया कि यह खेल मैं ने ही शुरू किया है, इसलिए मुझे ही खत्म भी करना होगा. लेकिन कैसे? यह मुझे समझ नहीं आ रहा था. उस रात मैं ठीक से सो न सकी. सुबह अनमनी सी कालेज चल दी. रास्ते में जयंत ने मेरी सुस्ती का कारण जानना चाहा तो मैं ने ‘कुछ खास नहीं’ कह कर टाल दिया. लेकिन मैं अंदर से विचलित थी. कालेज में पढ़ाने में मन न लगा तो अपने औफिस में चली आई. फिर न जाने मुझे क्या सूझा. मैं ने कागज, कलम उठाया और लिखने लगी…

‘‘प्रिय जय,

‘‘मेरा इस तरह अचानक पत्र लिखना शायद तुम्हें असमंजस में डाल रहा होगा याद है, एक बार पहले भी मैं ने तुम्हें प्रेमपत्र लिखा था, जिस में पहली बार अपने प्यार का इजहार किया था. उस दिन मैं असमंजस में थी कि तुम्हें मेरा प्यार कुबूल होगा या नहीं. ‘‘आज फिर मैं असमंजस में हूं कि तुम मेरे जज्बातों से इंसाफ कर पाओगे या नहीं. ‘‘जय, मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं लेकिन मैं मांजी से भी बहुत प्यार करने लगी हूं. यदि उन से न मिली होती तो शायद मेरे जीवन में कुछ अधूरापन रह जाता. ‘‘मांजी की उदासी मुझ से देखी नहीं गई, इसलिए पिताजी की खोजबीन करनी शुरू कर दी. अपने इस प्रयास में मैं सफल भी रही. मैं पार्क में उन की मुलाकातें करवाने लगी. लेकिन मां को मेरी भूमिका का जरा भी भान नहीं था.

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