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एरिका फर्नांडिस ने ‘कसौटी जिंदगी 2’ के बंद होने पर दिया ये बड़ा बयान

टीवी जगत का सबसे चर्चित शो कसौटी जिंदगी 2 अब बंद होने वाला है. इस शो को काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला था. लेकिन अब अचानक यह शो बंद होने जा रहा है. इसे लेकर इस शो के दर्शक उदास भी हैं. हाल ही में इस शो में लीड रोल में नजर आने वाली एक्ट्रेस एरिका फर्नाडिस ने एक रिपोर्ट से बात चीत करते हुए अपने बातों को रखने की कोशिश की है.

एरिका ने बात करते हुए कहा की हर अच्छी चीज का अंत होता है. चाहे वो कोई आपका शो ही क्यों न हो  हर नई चीज को लाने के लिए पुरानी चीजों को हटाना पड़ता है. मैं इस बात से बिल्कुल भी दुखी नहीं हूं कि यह शो सालों तक चलेगा या फिर इसे बंद कर दिया जाएगा. हम एक्टर है यह हमारे कंट्रोल में बिल्कुल भी नहीं है. यह सब शो के मेकर्स के हाथ में है. वह कौन सा फैसला कब लेने वाले हैं.

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आगे उन्होंने बात चीत करते हुए बताया कि पहले पार्ट में बहुत अच्छा रिस्पॉन्स मिला था दूसरे के मुकाबले हालांकि शो के दूसरे पार्ट्स में उतना ज्यादा अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिल पाया है. एरिका ने कहा यह भी जरुरी नहीं है कि जो चीज 20 साल पहले बहुत अच्छी चल रही थी वो आज भी अच्छी चले. उस वक्त की ऑडियंस अलग थी और आज की ऑडियंस अलग है. इस तरह शो में बहुत कुछ अलग बदलाव भी हुए हैं.

 

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बता दें कि यह शो 3 अक्टूबर 2020 को ऑफ एयर हो रहा है. हाल ही में एरिका ने अपनी फोटो शेयर करते हुए फैंस को प्रेरणा के किरदार के लिए धन्यवाद दिया है. उन्होंने लिखा है कि प्रेरणा के किरदार के लिए मुझे ढ़ेर सारा प्यार देने के लिए धन्यवाद.

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बता दें कि कसौटी जिंदगी 2 साल 2018 सितंबर में शुरू हुआ था. शो में पार्थ समथान अनुराग बासु के किरदार में थें.

पौष्टिकता से भरपूर राजगिरा

राजगिरा को रामदाना या चौलाई भी कहते?हैं. यह पौष्टिकता के मामले में कई अनाजों से बेहतर है. गेहूं व चावल में जितनी प्रोटीन, कैल्शियम, वसा व आयरन की मात्रा पाई जाती है, उस से ज्यादा राजगिरा में होती है.

राजगिरा में दूध के मुकाबले दोगुना कैल्शियम होता है. यह ब्लड कोलेस्ट्राल रोकने में मददगार है. राजगिरा व गेहूं के आटे को मिला कर बनी रोटी को एक पूर्ण भोजन माना जाता है. इस के दानों को फुला कर कई तरह की खाने की चीजें तैयार की जाती है. इस से बने लड्डू लोग बहुत पसंद करते?हैं. इस के अलावा बेकरी में तैयार चीजें जैसे बिस्कुट, केक, पेस्ट्री वगैरह भी इस से बनाए जाते?हैं. इस की पत्तियों में औक्जलेट व नाइट्रेट की मात्रा कम होने की वजह से यह एक ताकतवर व अच्छी तरह पचने वाला हरा चारा माना जाता?है. सूखा सहन करने की कूवत की वजह से इस के उत्पादन पर

बढ़ती गरमी का असर कम पड़ता?है. इसलिए राजगिरा की खेती को फायदेमंद माना जाता है.

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राजगिरा की खेती खासतौर से उत्तरपश्चिमी हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है, लेकिन अब देश के कई भागों में इसे बोया जाता है. इस की खेती गुजरात और राजस्थान में भी की जाती है. राजस्थान में करीब 70 हेक्टेयर में इस की खेती होती?है. वहां जालोर व सिरोही इस की खेती के लिए खास हैं. गुजरात के डीसा में राजगिरा की बहुत बड़ी मंडी है. सिद्धपुर में भी राजगिरा काफी मात्रा में होता है.

राजगिरा की खेती की जानकारी

बोआई : इस की बोआई अक्तूबर के आखिरी हफ्ते से नवंबर के पहले पखवाड़े तक करना ठीक रहता है.

उन्नत किस्में : आरएमए 4 व आरएमए 7.

खेत की तैयारी : राजगिरा का बीज काफी छोटा होता?है. इस के लिए खेत को अच्छी तरह जुताई कर के तैयार करें. खेत में?ढेले नहीं होने चाहिए.

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खाद व उर्वरक : अच्छी सड़ी हुई 8-10 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के 1 महीने पहले कम से कम 3 साल में 1 बार जरूर डालें. अच्छी फसल के लिए 60 किलोग्राम नाइट्रोजन व 40 किलोग्राम फास्फोरस दें. नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फास्फोरस की पूरी मात्रा बोआई के समय डालें. बची नाइट्रोजन की आधी मात्रा 2 भागों में बांट कर पहली व दूसरी सिंचाई के साथ दें.

बीज की मात्रा व बोआई : बोआई के लिए 15 से 20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर काफी होता?है. बीज बिलकुल हलका व बारीक होता है, इसलिए बीज में बारीक मिट्टी मिला कर बोआई करने से बीज की मात्रा काबू में रहेगी. कतार से कतार की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर रखें और बीजों को 1.5 से 2.0 सेंटीमीटर गहरा बोएं.

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सिंचाई : राजगिरा को 4-5 सिंचाइयों की जरूरत होती है. बोआई के बाद पहली सिंचाई 5-7 दिनों बाद और बाद में 15 से 20 दिनों के अंतर पर जरूरत के हिसाब से करें.

निराईगुड़ाई : खरपतवार नियंत्रण के लिए बोआई के 15-20 दिनों बाद पहली और 35 से 40 दिनों बाद दूसरी निराईगुड़ाई करें. अगर पौधे ज्यादा हों तो पहली निराई के साथ बेकार के पौधों को निकाल कर पौधों के बीच की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर कर दें.

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कटाई : फसल 120 से 135 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. पकने पर फसल पीली पड़ जाती है. समय पर कटाई नहीं करने पर दानों के झड़ने का खतरा बना रहता है. फसल को काटते व सुखाते समय ध्यान रखें कि दानों के साथ मिट्टी न मिले.

Nutrition Special: कोलस्ट्रौल और ब्लड प्रेशर कम करता है अखरोट

आजकल ड्राई फ्रूट का डिब्बा भेंट करने को लोग स्टेटस सिंबल के तौर पर देखने लगे हैं. मिठाइयां बीते दिनों की बात हो गयी है. मिठाइयां जल्दी खराब हो जाती हैं, जबकि  ड्राई फ्रूट्स महीनों चलते हैं. जाड़े में ड्राई फ्रूट्स खाना सेहत के लिए अच्छा होता है. बादाम, काजू, किशमिश, बादाम, पिस्ता हर मेवे की अपनी खासियत होती है. और सबसे खास होता है अखरोट. तो इस बार आप अपनी सेहत को चुस्त दुरुस्त रखने के लिए ड्राई फ्रूट्स के डिब्बों में से अखरोट निकाल कर अपने खाने के लिए रख लें. अखरोट न केवल आपका कोलेस्ट्रौल कम करेगा, बल्कि आपका ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल रखेगा. अखरोट में फाइबर और ओमेगा-3 फैटी एसिड्स होते हैं. यह तत्व आपको सेहत से जुड़ी कई समस्याओं से आराम दिलाता है.

1- डाइजेशन सुधरता है

अखरोट में फाइबर्स की भरपूर मात्रा होती है, इस कारण इसके सेवन से डाइजेस्टिव सिस्टम ठीक रहता है. अपने डाइजेशन को ठीक रखने के लिए हर रोज फाइबर खाना जरूरी है. सिर्फ यही नहीं, अखरोट में प्रोटीन्स की भी कोई कमी नहीं.

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2- बेहतर नींद

अखरोट में मेलाटोनिन नामक कम्पाउंड मौजूद है, इस कारण इसके सेवन से नींद भी अच्छी आती है. अपनी डाइट में अखरोट शामिल करें और फिर देखें, आपको रात को कैसे चैन की नींद आती है.

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3- ब्रेन हेल्थ

अखरोट में ओमेगा-3 फैटी एसिड्स भी मौजूद हैं, जिसके चलते दिमाग भी स्वस्थ रहता है. मेमोरी और ब्रेन हेल्थ के लिए अखरोट बढ़िया है.

4- मजबूत बाल

अखरोट में फैटी एसिड्स, सेलेनियम, जिंक और बायोटिन की भरपूर मात्रा मौजूद है, इस कारण इसे खाने से बाल मजबूत होते हैं और उनमें शाइन भी आती है.

5- ब्लड प्रेशर कम करने के लिए

चूंकि अखरोट ओमेगा-3 फैटी एसिड्स का स्रोत है, ऐसे में इसे खाने से कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम भी ठीक रहता है. रिसर्च की मानें तो हर रोज कुछ अखरोट खाने से हाई ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल होने लगता है.

6- कोलेस्ट्रौल कम करता है

अखरोट के हर रोज सेवन से हाई कोलेस्ट्रॉल भी कम होता है, क्योंकि इसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड्स और फाइबर्स की भरपूर मात्रा मौजूद है.

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7- कैंसर का रिस्क कम

अखरोट का सेवन करने से कैंसर का रिस्क भी कम होता है. कई स्टडीज के मानें तो हर रोज कुछ अखरोट खाने से प्रोस्टेट कैंसर होने का खतरा टल सकता है. जानवरों पर रिसर्च करने के बाद पता चला कि इसे खाने से ब्रेस्ट कैंसर का रिस्क भी कम होता है.

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8- मजबूत हड्डियां

अखरोट में एक बहुत जरूरी फैटी एसिड मौजूद है – अल्फा लिनोलेनिक एसिड, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है. अखरोट में ओमेगा-3 फैटी एसिड के कारण इन्फ्लेमेशन कम होती है और हड्डियां मजबूत होती हैं.

डबल क्रौस-भाग 1 : एक ऐसी कहानी जो आपको हैरान कर देगी

रोज की तरह सिटी पार्क में मौर्निंग वाक करते हुए इंद्र ने सोमेन को देखा तो उन्हें आवाज दी. इंद्र की आवाज सुन कर वह रुक गए. सोमेन कोलकाता के ही रहने वाले थे, जबकि इंद्र बिहार के. केंद्र सरकार की नौकरी होने की वजह से वह प्रमोशन और ट्रांसफर ले कर करीब 20 साल पहले कोलकाता आ गए थे और वहीं सैटल हो गए थे.

इंद्र और सोमेन एक ही औफिस में काम करते थे. सोमेन से इंद्र की जानपहचान हुई तो दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना शुरू हो गया. फिर तो दोनों परिवारों में काफी घनिष्ठता हो गई थी. दोनों इसी साल रिटायर हुए थे. सोमेन की एक ही बेटी थी, जो शादी के बाद पति के साथ अमेरिका चली गई थी.

इंद्र का भी एक ही बेटा था, जो आस्ट्रेलिया में नौकरी कर रहा था. बच्चों के बाहर होने की वजह से दोनों अपनीअपनी पत्नी के साथ रह रहे थे. इंद्र की आवाज सुन कर सोमेन रुके तो नजदीक पहुंच कर उन्होंने पूछा, ‘‘तुम तो 2 सप्ताह के लिए मसूरी गए थे. अभी तो 4-5 दिन हुए हैं. वहां मन नहीं लगा क्या, जो लौट आए?’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है. हम लोग वहां पहुंचे ही थे कि अमेरिका से बेटी का फोन आ गया. तुम्हें तो पता ही है कि वह मां बनने वाली है. उस की डिलिवरी में कौंप्लीकेशंस हैं, इसलिए उस ने मां को फौरन बुला लिया.’’ सोमेन ने कहा.

‘‘लेकिन तुम तो कह रहे थे कि अभी डिलीवरी में 3 महीने बाकी हैं. भाभीजी के लिए 2 महीने बाद की टिकट भी बुक करा रखी थी?’’

‘‘हां, लेकिन बेटी के बुलाने पर एजेंट से उस की तारीख चेंज करा कर कल रात को ही उन्हें कोलकाता एयरपोर्ट से भेज दिया. अब तो 6 महीने से पहले आने वाली नहीं है. जरूरत पड़ी तो और भी रुक सकती हैं. ग्रीन कार्ड है न, वीजा का भी कोई चक्कर नहीं था.’’

‘‘तुम क्यों नहीं गए?’’ इंद्र ने पूछा.

‘‘मैं कुछ दिनों पहले ही तो लौटा हूं. अब डिलिवरी के समय जाऊंगा. फिर घर में थोड़ा काम भी लगवा रखा है. एक 2 रूम का सेट बनवा रहा हूं. कुछ किराया आ जाएगा. देखो न, आजकल कितनी महंगाई है.’’

‘‘चलो ठीक है, हम दोनों ही हैं. एकदूसरे से मिल कर मन लगा रहेगा.’’ इंद्र ने कहा.

‘‘भाई, जरा कामवाली विमला को बता देना कि मैं आ गया हूं, इसलिए मेरे यहां भी काम करने आ जाएगी. उसे तो यही पता है कि मैं 2 हफ्ते बाद आऊंगा. और बताओ, भाभीजी कैसी हैं?’’ सोमेन ने पूछा.

‘‘मेरी पत्नी को भी अचानक मायके जाना पड़ा. उस की मां को लकवा मार गया है. वह बिस्तर पर पड़ी हैं. अब तुम्हारी भाभी भी 4-5 महीने से पहले आने वाली नहीं है. चलो, चाय मेरे यहां से पी कर जाना.’’ इंद्र ने कहा.

‘‘चाय तुम बनाओगे?’’ सोमेन ने पूछा.

‘‘तुम्हें चाय पीने से मतलब. कौन बनाएगा, इस की चिंता क्यों कर रहे हो?’’

वैसे भी मौर्निंग वाक के बाद दोनों दोस्त किसी एक के घर ही चाय पीते थे. सोमेन इंद्र के साथ उस के घर पहुंचा. इंद्र ने ताला खोल कर सोमेन को ड्राइंगरूम में बैठाया. सोमेन को किचन में बरतनों के खटरपटर की आवाज सुनाई दी तो पूछा, ‘‘इंद्र, देखो किचन में बिल्ली है क्या?’’

किचन से विमला की आवाज आई, ‘‘हां, मैं ही बिल्ली हूं.’’

इतना कह कर उस ने 2 कप चाय ला कर मेज पर रख दिया. इंद्र ने उस की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘तुम्हारी भाभी मेरे खानेपीने, कपड़े धोने आदि का काम इसे सौंप गई हैं. मैं ने इसे पीछे के दरवाजे की चाबी दे रखी है. मेरे न रहने पर यह पीछे से आ कर अपना काम करने लगती है. इसीलिए तो हमारे आते ही चाय मिल गई.’’ इस के बाद उन्होंने विमला से कहा, ‘‘तुम ने अपनी चाय हमें दे दी, अपने लिए दूसरी बना लेना.’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं अपने लिए चाय बना लूंगी.’’ कह कर विमला जाने लगी तो सोमेन ने कहा, ‘‘विमला, मैं तुम्हें संदेश भिजवाने वाला था कि मेरे यहां भी आ जाना. बरतन, झाड़ू और पोंछा के अलावा मेरा भी खाना बना देना.’’

‘‘यहां के लिए तो मेमसाहब कह कर गई हैं कि साहब के सारे काम कर देना. आप की मेमसाहब के कहे बगैर मैं किचन का काम नहीं कर सकती.’’ विमला ने कहा.

‘‘ठीक है, अभी तो वह रास्ते में होंगी, कल आओगी तो मैं उन से तुम्हारी बात करा दूंगा.’’ सोमेन ने कहा.

इंद्र ने सोमेन को बताया कि उन की पत्नी के कहने पर ही विमला घर के सारे काम करने को तैयार हुई थी. पीछे वाले दरवाजे की चाबी देने का सुझाव भी उन्हीं का था, ताकि मैं घर में न भी रहूं तो यह आ कर काम कर दे. पहले तो इस ने बहुत नखरे दिखाए, पर जब उन्होंने कहा कि इसी के भरोसे साहब को छोड़ कर जा रही हूं, तब जा कर यह तैयार हुई.

अगले दिन सोमेन ने फोन पर वीडियो कालिंग कर के पत्नी की विमला से बात करा दी. सोमेन की पत्नी को भी उस की खुशामद करनी पड़ी. उन्होंने कहा कि साहब को बाहर का खाना बिलकुल सूट नहीं करता, इसलिए अपना घर समझ कर वह साहब का खयाल रखे.

इस पर विमला ने नखरे दिखाते हुए कहा था, ‘‘ठीक है, आप इतना कह रही हैं तो मैं आप के घर को अपने जैसा ही समझूंगी. आप इत्मीनान रखें, साहब को भूखा नहीं रहने दूंगी. पर इंदरजी के यहां भी सारा काम करना पड़ता है, इसलिए थोड़ी देरसबेर हो सकती है. फिर भी मैं सारे काम कर दूंगी.’’

विमला को दोनों घरों के बैक डोर की चाबी मिल गई. वह अंदर ही अंदर बहुत खुश थी, क्योंकि दोनों घरों में जम कर खानेपीने को मिल रहा था. अब वह थोड़ा बनठन कर साफसुथरे कपड़े पहन कर बालों में खुशबूदार तेल डाल कर आने लगी थी. वह हमेशा खुश दिखती थी और इंद्र तथा सोमेन से खूब हंसहंस कर बातें करती थी.

हठधर्मी भगवा सरकार का सदन पर कब्जा

बहुमत के नशे में मदहोश नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की भगवा सरकार अपने तालिबानी रवैए व हठधर्मिता पर अब खुलकर उतर आई है. इस का ताजा नमूना यह है कि उस ने रविवार, 20 सितंबर को दिनदहाड़े संसद को हड़प लिया. इस कृत्य की अगुआई राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश प्रसाद सिंह ने की. जिस कुरसी को न्याय की पीठ माना जाता है, वह सदन के भीतर अन्याय की सब से बड़ी किरदार बनती नजर आई.

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने न केवल 70 वर्षों के लोकतंत्र के इतिहास, परंपरा और संवैधानिक नियमों का उल्लंघन किया, बल्कि देशवासियों समेत पूरे विपक्ष को यह बता दिया कि संसद अब उन की नहीं रही. जरमनी में जिस काम के लिए हिटलर को रीचस्टैग में आग लगवानी पड़ी थी, मोदी ने बगैर वैसा किए ही उस को हासिल कर लिया. और जनता की संसद को उस से छीन लिया गया.

राज्यसभा में जिस तरीके से कृषि विधेयक ‘पारित’ हुआ है उस ने इस बात को साबित कर दिया है कि अब सरकार को न तो विपक्ष की जरूरत है, न संसद की, और उस से आगे बढ़ कर, न किसी चुनाव की. लेकिन चूंकि देश के भीतर लोकतंत्र के भ्रम को बनाए रखना है और कौर्पोरेट की सत्ता की वैधता के लिए यह जरूरी शर्त है, इसलिए कहने के लिए संसद भी होगी, चुनाव भी होगा, प्रतिनिधि भी चुने जाएंगे. लेकिन, उन की भूमिका जैसी सरकार चाहेगी वैसी ही होगी. यानी, वे सदन के भीतर जनता के प्रतिनिधि नहीं, बल्कि श्रोता मात्र होंगे.

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उन को सैलरी मिलेगी और सारी सुखसुविधाएं भी मुहैया कराई जाएंगी, लेकिन न तो वे सवाल पूछ सकेंगे और न ही अपनी राय रख सकेंगे. यानी, संसद के नाम पर महज फसाद होगा और सदन के संचालन की सिर्फ औपचारिकता निभाई जाएगी. केवल एक आदमी के मन की बात होगी. बाकी लोग उस के लिए काम कर रहे होंगे.

पूंजीवादी लोकतंत्र संकट के दौर में किस तरह नंगा हो सकता है, राज्यसभा की घटना इस की खुली नजीर है. क्या लोकतंत्र इसी को कहते हैं? जिस देश की 65 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर हो और जिस की अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसान हों उन के लिए सरकार कोई कानून बनाए लेकिन उन के किसी नुमाइंदे से पूछा तक न जाए. क्या यह किसी जिंदा लोकतंत्र में संभव है? संविधान में किसी बिल के लिए साफसाफ लिखा है कि उस को पारित कराने से पहले उस के तमाम हितधारकों से बातचीत करनी होगी.

उन के साथ संबंधित मंत्रालय के अधिकारी बैठेंगे और उन से विचारविमर्श करेंगे और फिर उन की राय के मुताबिक सदन में जनप्रतिनिधियों के बीच बहस करवा कर उसे पारित कराने की कोशिश की जाएगी. जबकि, मौजूदा हुकूमत ने किसी किसान या फिर उस के नेता से रायमशवरे की बात तो दूर, सदन में कानूननिर्माताओं तक को अपना पक्ष रखने नहीं दिया.

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आखिर क्या जल्दबाजी थी इस विधेयक को पारित कराने की? कोरोना महामारी के दौर में सरकार अध्यादेश लाती है और फिर उस अध्यादेश को येनकेनप्रकारेण संसद से पास कराना चाहती हैं. किस का या किस बात का दबाव है तालिबानी सरकार के ऊपर?

अगर विधेयक को तानाशाही तरीके से पास कराना था तो उस से अच्छा था कि बगैर सदन की बैठक बुलाए ही उस के पारित होने की घोषणा कर दी जाती. लेकिन हठधर्मी सरकार को तो देश को अपनी ताकत भी दिखानी थी, चंबल के डाकुओं की तरह विधेयक को लूट ले जाना था.

दरअसल, राज्यसभा में सरकार अल्पमत में थी और उसे किसी भी तरीके से इस विधेयक को पारित होते देखना था. लिहाजा, उस ने हर उस काम को किया जो सामान्य स्थितियों में नहीं किया जा सकता था. मसलन, उपसभापति किसी सुल्ताना डाकू के किरदार में आ गए. और फिर उन्हें न तो संविधान से कुछ लेनादेना था, न सदन संचालन के नियमों से और न ही विपक्षी सदस्यों के अधिकारों से कोई मतलब था. बस, उन के ऊपर नरेंद्र मोदी के विधेयक को पारित कराने का भूत सवार था.

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लिहाजा, पहले उन्होंने सदन की कार्यवाही को आगे बढ़ाने की विपक्ष की मांग को खारिज कर दिया. फिर विपक्ष के जिन कुछ सदस्यों को अभी अपनी बात रखनी थी उन्हें ऐसा करने से रोक दिया और विपक्षी सदस्यों ने जब विधेयक पर मतदान की मांग उठाई और टीएमसी के डेरेक ओ ब्रायन और डीएमके के त्रिची शिवा सदन के कुएं के पास पहुंच कर उपसभापति को सदन का और्डर दिखाने की कोशिश की तो मार्शल के बल पर उन्हें दरकिनार कर दिया गया.

इस बीच, राज्यसभा टीवी पर न केवल पहले विपक्षी सदस्यों के भाषण को म्यूट किया गया, बल्कि कुछ देर बाद पूरी कार्यवाही को ब्लैकआउट कर दिया गया. और इस तरह से सदन में विपक्ष के वोट के विभाजन की मांग को दरकिनार कर विधेयक के ध्वनिमत से पारित होने की घोषणा कर दी गई. न तो किसी के संशोधन लिए गए और न ही उस पर कोई चर्चा हुई और न ही कृषि मंत्री ने उन का कोई जवाब दिया.

सारी चीजों को ताक पर रख कर विधेयक को पारित मान लिया गया, जबकि नियम यह है कि किसी भी विधेयक पर अगर सदन का एक भी सदस्य मतदान की मांग करता है तो सभापति/उपसभापति की यह जिम्मेदारी बन जाती है कि वे उस पर वोटिंग कराएं.

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उल्लेखनीय है कि इसी सरकार के कार्यकाल में ट्रांसजैंडरों से जुड़े मसले पर एक विधेयक आया था, जिस में सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों सहमत थे और विधेयक पारित होने के रास्ते में कोई अड़चन नहीं थी, लेकिन एक सदस्य ने वोटिंग की मांग कर दी. सत्तापक्ष के रविशंकर प्रसाद ने पीठासीन अधिकारी से उस सदस्य की मांग को पूरा करने की गुजारिश की थी और फिर वोटिंग के बाद ही वह विधेयक पारित हो सका.

लेकिन यहां एक नहीं, 2 नहीं, 10 नहीं, बल्कि पूरा विपक्ष मतदान की मांग कर रहा था. फिर भी कुरसी पर बैठे उपसभापति ने उस को सिरे से खारिज कर दिया. संसद के 70 वर्षों के इतिहास में शायद ही कभी ऐसा देखा गया हो. हां, कुछ प्रदेशों की विधानसभाओं में जरूर सत्तारूढ़ दलों से जुड़े स्पीकर कभीकभी इस तरह की हरकतों को अंजाम देते रहे हैं, लेकिन उसे कभी भी सही नहीं माना गया. लेकिन देश के सर्वोच्च सदन में और जिस की अपनी एक ऐतिहासिक विरासत है उसे एक म्युनिसिपलिटी और विधानसभा की कचहरी में बदल देना न केवल लोकतंत्र और संविधान का बल्कि इस देश की जनता का खुला अपमान है.

यही नहीं, यह काम उस शख्स द्वारा अंजाम दिया गया जिस का पत्रकारिता में कभी अच्छे संपादकों में नाम शुमार किया जाता था. लेकिन बुराई एक दिन में नहीं आती है और पतित होने का भी सिलसिला होता है. संपादक की कुरसी पर रहते हुए भी हरिवंश सुपारियां लेने का काम करते थे. हालांकि, यह बात बहुत कम लोग जानते हैं और जो जानते भी हैं, अभी तक उसे बाहर नहीं लाना चाहते. कभी वे सत्ता की सुपारी लेते थे तो कभी अपने मालिक ऊषा मार्टिन की. सुपारी कभी अखबार ‘प्रभात खबर’ के लिए विज्ञापन लाने के तौर पर होती थी और कभी मालिक को कोयला खनन का पट्टा दिलाने के लिए. हरिवंश की सत्ता और कौर्पोरेट की यह दलाली पीएम मोदी को भी भा गई.

मोदी ने हरिवंश के जरिए एक तीर से कई शिकार किए. एक तरफ मंत्रिमंडल से हटाए गए कुछ ठाकुर मंत्रियों के चलते ठाकुर बिरादरी की नाराजगी को दूर करने की कोशिश की तो दूसरी तरफ एक उदारवादी जमात के शख्स को अपने खेमे में कर के एक बड़ा संदेश देने का काम किया और यह शख्स अगर सीधे कौर्पोरेट के लिए काम करना शुरू कर दे, फिर तो सोने पर सुहागा है. और अब वही हुआ. हरिवंश के बारे में बताया तो यहां तक जा रहा है कि ऊषा मार्टिन में इन का शेयर है. उस में ये कुछ परसैंट के हिस्सेदार हैं. लिहाजा, अगर किसानों के खिलाफ जा कर कौर्पोरेट के पक्ष में उन्होंने कुछ किया है तो अपनी बिरादरी का ही साथ दिया है. ऐसे में उन से भला किसी को क्यों शिकायत होगी.

कांग्रेस समेत 12 दलों ने उपसभापति हरिवंश के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है. कांग्रेस ने कहा कि जिस तरह से बिल पास किया गया है, वह लोकतंत्र की हत्या है. इतिहास में यह दिन काली स्याही से लिखा जाएगा. पार्टी ने इन बिलों को किसानों को बरबाद कर देने वाला और संघीय ढांचे के खिलाफ कहा है. साथ ही, इसे संविधान की मूल भावना से छेड़छाड भी बताया है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने पत्रकारों से कहा कि 12 पार्टियों ने उपसभापति हरिवंश के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है, क्योंकि बिल को पास कराने में सदन में लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाई गई हैं व लोकतंत्र की हत्या की गई है. पटेल ने आगे बताया कि उन्होंने राज्यसभा में कहा, ‘आज सदन की कार्रवाई स्थगित करिए, कल बाकी मंत्री जवाब देंगे और उस पर डिवीजन भी होगा. लेकिन उपसभापति ने वह बात तो नहीं मानी. हम समझ सकते हैं, लेकिन उस के साथसाथ जो हम ने डिवीजन की मांग की थी, वह भी उन्होंने नहीं मानी. वोटिंग अलाउ नहीं की. उन का जो तालिबानी रवैया था उस के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है.’

कांग्रेस नेता ने कहा कि जो बिल पास किया गया है और केंद्र सरकार जो कानून लाने जा रही है, वह न सिर्फ किसानों के विरोध में है बल्कि संघीय ढांचे के खिलाफ भी है. कृषि राज्यों का विषय है. जीएसटी की वजह से राज्य पहले से ही परेशान हैं और उन के जो रेवेन्यू हैं, उन्हें कम करने की कोशिश की गई है. संविधान की जो स्पिरिट है, सरकार ने उस पर प्रहार किया है. पहले सरकार जो एक्वीजिशन एक्ट लाई थी, उस पर काफी हंगामा हुआ था, किसान भी काफी नाराज थे. सो, सरकार को उसे वापस लेना पड़ा था. सरकार, दरअसल, जमीनों को कौर्पोरेट को देना चाहती थी, वह जब नहीं कर पाई, तो भाजपाशासित कई राज्यों में कानून ले आई. सरकार किसानों के खेत और जमीन कौर्पोरेट सैक्टर को देना चाहती है.

अहमद पटेल ने आगे कहा कि एपीएमसी एक्ट को खत्म करने की कोशिश हो रही है. इस से एमएसपी को भी धक्का पहुंचेगा. प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि मिनिमम सपोर्ट प्राइस (एमएसपी) को मैक्सिमम सैलिंग प्राइस देंगे. उन की यह बात गलत और तथ्यहीन है. अहमद पटेल ने कहा कि कांग्रेस के खिलाफ जो आरोप लगा रहे हैं कि इस के मैनिफैस्टो में भी एपीएमसी को खत्म करने की बात की गई है, वह लोगों को भ्रमित करने की कोशिश है. काफी मेहनत कर के हमारे चुनावी घोषणापत्र को पढ़ने की जरूरत है. मोदी और भाजपा वालों ने आधाअधूरा पढ़ा है. चुनावी घोषणापत्र में कांग्रेस ने एपीएमसी की बात की है. उस के साथसाथ हम ने किसानों के लिए सेफगार्ड भी रखे हुए हैं. कम से कम 22 पौइंट्स है. वे 20 मुद्दों की बात नहीं करते, सिर्फ 2 मुद्दों की बात करते हैं.

राज्यसभा सांसद प्रतापसिंह बाजवा ने बताया कि हाउस में उन्होंने कहा कि यह ‘वारंट औफ डेथ’ है किसानों का. विशेषतौर से पंजाब, हरियाणा और वेस्टर्न यूपी के जो किसान हैं, उन्होंने 55 साल इस देश के गरीबों का पेट पाला है. सरकार का यह रवैया बहुत अफसोसजनक है. एक तरफ तो हम कोरोना से जूझ रहे हैं, तकरीबन एक लाख लोग हर रोज बीमार हो रहे हैं, दूसरी तरफ चीन के साथ वार जैसी सिचुएशन है. 50 हजार हमारे जवान गलवान वैली में हैं. ऐसे में सरकार को इतनी जल्दी क्या थी. सरकार के कृषि मंत्री ने स्टेक होल्डर से बात नहीं की. स्टेक होल्डर किसान हैं. हजारों की तादाद में किसान पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में सड़कों पर हैं, उन के साथ बात की जानी चाहिए थी. आप ने तो हरसिमरत कौर से बात कर ली, सुखबीर सिंह से बात कर ली और चौटाला से कर ली. चौटाला रह गए, बादल छोड़ गए. हरसिमरत कौर ने आप का मंत्रिमंडल छोड़ दिया.

वरिष्ठ नेता अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि 2006 में सब से पहले बिहार में एपीएमसी एक्ट समाप्त किया गया था और उस के बाद की जो स्थिति है बिहार की, उसे देखासमझा जा सकता है. पूरे देश में बिहार के किसान सब से ज्यादा डिस्ट्रेस सेल में अपना अनाज बेचते हैं. हर साल हजारों ट्रकों में लदकर चावलगेहूं बिहार से निकल कर पंजाब व हरियाणा की मंडियों में आता है. ट्रेडर्स मुनाफाखोरी करते हैं. किसानों की पौकेट में जो न्यूनतम समर्थन मूल्य जाता था, वह ट्रेडर्स की पौकेट में जाता है. रूरल इकोनौमी को बिहार में जो बूस्ट मिलना चाहिए था, वह बूस्ट ट्रेडर्स को मिल रहा है. इसी तरह के हालात पूरे देश में होने वाले हैं.

किसानविरोधी इस कानून के चलते देशभर में अन्नदाताओं की हालत अब और भी बदतर हो जाएगी. दरअसल, राज्यसभा के उपसभापति ने विपक्ष को अनदेखा करते हुए सदन पर कब्ज़ा सा कर लिया था और मोदी सरकार के बिल को पारित करवा लिया. जिस तरह से बिल पास किया गया है उस से साफ है कि सदन के भीतर लोकतंत्र की हत्या की गई है, लोकतंत्र को शर्मसार किया गया है.

मासूम का अपहरण

ढाई वर्षीय विवेक अपने घर के बाहर से गायब हो गया था. पुलिस ने बच्चा बरामद कर के उसे अपहृत करने वाली पूजा को तो पकड़ लिया, लेकिन अपहरण का उद्देश्य वह पता नहीं कर पाई.

उत्तर प्रदेश का मऊ जिला बुनाई और कढ़ाई के लिए मशहूर है. यहां की कढ़ाईबुनाई की कला के चर्चे देश में ही नहीं, विदेशों तक में सुने जाते हैं. यहां के अधिकांश लोगों की रोजीरोजगार का साधन साड़ी बुनाई ही है. इतनी बड़ी पहचान रखने वाला यह जिला सांप्रदायिक उन्माद के लिए भी कभीकभी सुर्खियों में आ जाता है. इसलिए संप्रदाय विशेष के पर्वत्यौहारों पर यहां कड़ी सुरक्षा व्यवस्था होने के साथ चप्पेचप्पे पर पुलिस की पैनी नजर होती है.

19 अक्तूबर, 2018 को विजयदशमी का पर्व था. इस मौके पर शहर में आकर्षक सजावट के साथ मेला भी लगा हुआ था. मेले की वजह से पुलिस की सक्रियता अन्य दिनों की अपेक्षा उस दिन कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी.

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शहर के ही थाना दक्षिण टोला के थानाप्रभारी इंसपेक्टर धीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव सुबह 10 बजे के करीब अपने कार्यालय में बैठे थे, तभी एक आदमी बदहवास स्थिति में उन के पास आया. उस के पीछेपीछे कुछ और लोग भी कार्यालय में आ गए. वह हाथ जोड़ कर रोते हुए बोला, ‘‘साहब, मेरे जिगर के टुकडे़ को बचा लीजिए. सुबह से उस का कोई पता नहीं चल पा रहा है.’’

इतना कहकह कर वह फूटफूट कर रो पड़ा.

इंसपेक्टर धीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने उस आदमी को कुरसी पर बैठने के लिए इशारा करते हुए कहा, ‘‘आप घबराइए मत, पहले मन को शांत होने दीजिए, फिर मुझे बताएं कि आखिर हुआ क्या है आप के बेटे को, ताकि मैं आप की मदद कर सकूं.’’

उस पर इंसपेक्टर की बातों का असर हुआ. स्वयं को संभाल कर वह अपने आंसुओं को हथेलियों से पोंछते हुए बोला, ‘‘साहब मेरा नाम रिंकू यादव है और मैं दशई पोखरा मोहल्ले में रहता हूं. मेरा ढाई साल का लड़का विवेक आज सुबह घर के बाहर से ही गायब हो गया है. हम लोग सुबह से उसे ढूंढढूंढ कर थक गए हैं. लगता है, उस का किसी ने अपहरण कर लिया है.’’

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इतना कह रिंकू फिर से इंसपेक्टर श्रीवास्तव के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो कर रोने लगा. ढाई साल के बच्चे के गायब होने की बात सुन कर वह भी दंग रह गए, क्योंकि इतना बड़ा बच्चा अकेला कहीं दूर भी नहीं जा सकता था. उन्होंने रिंकू से पूछा, ‘‘अच्छा, यह बताओ तुम्हें किसी पर कोई शक बगैर या किसी से कोई रंजिश वगैरह तो नहीं है.’’

रिंकू कुछ बोलता, उस से पहले ही उस के साथ आए लोगों ने कहा, ‘‘नहीं साहब, इस का किसी से कोई झगड़ा नहीं है. जरूर किसी ने बच्चे का अपरहण किया है.’’

इंसपेक्टर धीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने रिंकू यादव की तरफ से अज्ञात के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज कर लिया और इस की विवेचना एसआई अब्दुल कादिर खां को सौंप दी. इस के बाद वह दशहरा मेले की तरफ निकल गए.

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वहां से जाने के बाद भी इंसपेक्टर श्रीवास्तव के मन में एक सवाल बारबार कौंध रहा था कि आखिर ढाई साल के मासूम का अपहरण कोई क्यों करेगा. इस की 2 ही वजह दिखाई दे रही थी, पहली दुश्मनी और दूसरी फिरौती. ऐसे ही तमाम सवाल उन के जेहन में रहरह कर घूम रहे थे.

दिनदहाड़े एक मासूम के गायब होने की खबर से शहर में तरहतरह की चर्चाएं होने लगी थीं. कोई बच्चों को गायब करने वाले गिरोह की शहर में सक्रियता बढ़ने का अंदेशा जता रहा था तो कोई तांत्रिकों आदि पर शक कर रहा था.

जितने मुंह उतनी बातें होनी शुरू हो गई थीं. इस मामले में इंसपेक्टर धीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने उच्चाधिकारियों को अवगत कराने के साथ अपने खास मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया, ताकि जल्द से जल्द इस केस का खुलासा हो सके.

उस दिन विजयादशमी का पर्व सकुशल संपन्न कराने के बाद अब उन का पूरा ध्यान अपहृत बच्चे का पता लगाने में लग गया. पुलिस को इस बात का डर था कि कहीं बच्चे के गायब होने का मामला कोई गंभीर रूप न ले ले, इसलिए वह इस में किसी भी प्रकार की कोताही नहीं चाहते थे.

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इस केस की जांच कर रहे एसआई अब्दुल कादिर खां ने भी जांच को आगे बढ़ाते हुए अपने खास मुखबिरों को इस दिशा में लगा दिया. इस से पहले वह गायब बच्चे के पिता रिंकू के घर गए.

अपने स्तर से पूरी छानबीन करते हुए उन्होंने उन के परिवार के लोगों से हर एक छोटीबड़ी जानकारी एकत्र की लेकिन उन्हें ऐसे कोई जानकारी नहीं मिली पाई, जिस के आधार पर कोई क्लू मिल सके.

इधर 2 दिन बीत जाने के बाद भी जब पुलिस को विवेक के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो शहर के लोगों में आक्रोश बढ़ने लगा था. मामला अखबारों में सुर्खियां बनने लगा तो कई संगठनों के लोगों ने मिल कर इसे राजनैतिक मंच के जरिए आंदोलन में तब्दील करने की योजना तैयार कर ली.

इस से पुलिस के भी कान खड़े हो गए. इंसपेक्टर श्रीवास्तव खुद भी गोपनीय स्तर से मासूम विवेक की खोजबीन में जुटे हुए थे. उन का मानना था कि ज्यादा होहल्ला मचाने से हो सकता है विवेक को गायब करने वाले सावधान हो जाएं, इसलिए वह अपनी गतिविधि को गोपनीय रखते हुए आगे बढ़ रहे थे.

पुलिस को आशंका थी कि हो न हो विवेक को फिरौती के लिए अगवा किया गया हो. लेकिन पुलिस की यह आशंका भी बेकार साबित हुई. क्योंकि 2 दिन बीतने के बाद भी विवेक के घर वालों को ऐसा कोई मैसेज या फिरौती का फोन नहीं आया था.

वांछित रहे पुराने अपराधियों की फाइलों को खंगालने के साथसाथ पुलिस ने छोटीमोटी वारदातों में शामिल अपराधियों पर भी नजर रखना शुरू कर दिया. लेकिन इस के बाद भी पुलिस के हाथ खाली के खाली ही रहे.

पुलिस को ऐसी कोई भी कड़ी हाथ लगती हुई नहीं दिखाई दे रही थी, जिस से वह आगे बढ़ पाए. बावजूद इस के पुलिस ने हौसला नहीं खोया और विवेक का पता लगाने में जुटी रही. इसी बीच विवेचना कर रहे एसआई अब्दुल कादिर खां को उन के एक अतिकरीबी मुखबिर ने एक महत्त्वपूर्ण सूचना दी.

इस सूचना के बाद उन्होंने इस बारे में थानाप्रभारी इंसपेक्टर धीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव को भी बता दिया. इस के बाद इंसपेक्टर श्रीवास्तव के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम ने 22 अक्तूबर को दोपहर के समय कांशीराम आवास योजना के अंतर्गत बनी कालोनी के फ्लैट नंबर 120 में दबिश दी. उस फ्लैट में रह रही पूजा गौड़ नामक महिला के पास से पुलिस ने मासूम विवेक को बरामद कर लिया.

विवेक को सकुशल बरामद करने के साथ मौके से पकड़ी गई पूजा गौड़ को पुलिस अपने साथ थाने आई. बच्चा बरामद करने की सूचना थानाप्रभारी ने एसपी ललित कुमार सिंह व सीओ (नगर) राजकुमार को भी दे दी. इंसपेक्टर श्रीवास्तव ने पूजा गौड़ से पूछताछ की तो वह पुलिस को गुमराह करने के लिए इधरउधर की बातें बनाती रही.

वह कहती रही कि यह बच्चा उसे गली में भटकते हुए दिख गया था. उसे उठा कर वह अपने फ्लैट पर ले आई थी. लेकिन जब पुलिस ने पूजा गौड़ से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि वह बच्चे को बेचने के मकसद से उस का अपहरण कर के लाई थी. उस से पूछताछ के बाद ढाई वर्षीय विवेक के अपहरण की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

मऊ जिले के सरायलखंसी थाना क्षेत्र में एक जगह है कंधेरी, जहां कांशीराम आवासीय योजना के तहत एक आवासीय कालोनी है. इस कालोनी में ऐसे लोगों को फ्लैट आवंटित किए गए थे, जिन के पास रहने के लिए कोई घर नहीं था. दिव्यांग, गरीब व दबेकुचले लोगों को प्राथमिकता के आधार पर फ्लैट आवंटित किए गए थे.

इसी कालोनी के फ्लैट नंबर 180 में सुनील गौड़ की पत्नी पूजा गौड़ रहती थी. वह मूलरूप से ब्रह्मस्थान, थाना रसड़ा, जनपद बलिया की रहने वाली थी. सरायलखंसी की कांशीराम कालोनी में वह किराए पर रहती थी.

आसपास के लोगों की मानें तो पूजा की गतिविधियां पहले से ही संदिग्ध लगती थीं. उस के यहां कई अजनबी लोगों का आनाजाना लगा रहता था. कालोनी में रहने वाले ज्यादातर लोग मेहनतमजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालते थे, सो उन्हें दिन भर कमधंधे से ही फुरसत नहीं होती थी. उन्हें पूजा के बारे में जो संदिग्ध जानकारी मिली थी, उस तरफ उन्होंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

पूजा एक गरीब परिवार से थी, लेकिन उस की महत्त्वाकांक्षाएं ऊंची थीं. वह भी ऐश की जिंदगी गुजारना चाहती थी, लेकिन उस के सामने समस्या यह थी कि इस के लिए पैसे कहां से आएं.

काफी सोचनेविचारने के बाद उस के दिमाग में आइडिया आया कि क्यों न किसी बच्चे को चुरा कर बेच दिया जाए. इस के लिए वह गलीमोहल्लों में घूम कर छोटे बच्चे को तलाशने लगी.

उधर पूजा ने विवेक का अपहरण तो कर लिया था, लेकिन उस के सामने एक समस्या यह थी कि वह बच्चा रो रहा था. कालोनी में रहने वाले लोगों ने पूजा के कमरे से छोटे बच्चे के रोने की आवाज सुनी तो पहले तो उन्होंने सोचा उस के घर कोई रिश्तेदार आया होगा, जिस का बच्चा रो रहा है.

इसलिए किसी ने इस पर ज्यादा गौर करने की जहमत नहीं उठाई. लेकिन जब यह आवाज बराबर आने लगी और उस के कमरे से कोई आताजाता भी नहीं दिखा तो लोगों को शक होने लगा. लेकिन बेकार के पचडे़ में पड़ने के बजाए लोग खामोश रहे.

लेकिन इसी बीच कुछ प्रमुख समाचारपत्रों में एक ढाई साल के बच्चे के गायब होने की खबर को पढ़ कर पूजा के पड़ोसियों के कान खड़े हो गए. उन्हीं में से किसी ने यह जानकारी पुलिस के एक मुखबिर को दी, जिस ने यह बात एसआई अब्दुल कादिर खान तक पहुंचा दी. जिस के बाद पुलिस ने पूजा के फ्लैट में दबिश दे कर पूजा को बच्चे सहित हिरासत में ले लिया.

पूजा जानती थी कि छोटे बच्चे को आसानी से गोद में उठाया जा सकता है, जिस पर किसी को शक भी नहीं होगा. 19 अक्तूबर, 2018 की शाम विवेक अपने घर के पास खेल रहा था, तभी वहां से गुजर रही पूजा ने मौका देख उसे उठा लिया था और सीधे उसे अपने फ्लैट पर ले गई थी.

इधर जब काफी देर तक विवेक कहीं नहीं दिखाई दिया तो उस की मां मनोरमा ने आसपास के घरों में जा कर पूछताछ की. सभी पड़ोसियों ने इस बात से इनकार किया, जिस से मनोरमा बहुत परेशान हो गई. पिता रिंकू ने भी उसे संभावित जगहों पर देखा. विवेक उन का एकलौता बेटा था.

काफी खोजबीन के बाद भी जब विवेक का कोई पता नहीं चला तो वह अपने साथ पड़ोस के कुछ लोगों को ले कर थाना दक्षिण टोला पहुंच गया और थानाप्रभारी को बेटे के गायब होने की जानकारी दी.

पूजा को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस उस का इतिहास खंगालने के साथ यह भी पता लगाने की कोशिश की कि पूजा के तार बच्चा चुराने वाले किसी गिरोह से तो नहीं जुड़े थे. पर पूजा ने बताया कि वह किसी गिरोह को नहीं जानती. पूजा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. कुछ लोग तो पूजा के चरित्र भी अंगुलियां उठा रहे थे.

इस मामले का त्वरित खुलासा करने के लिए एसपी ललित कुमार सिंह ने थानाप्रभारी दक्षिण टोला धीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव, एसआई अब्दुल कादिर खान, कांस्टेबल राजेंद्र कुमार मौर्य, त्रिभुवननाथ यादव को उन की इस सफलता के लिए पीठ थपथपाते हुए 15 हजार रुपए का नकद पुरस्कार देने की घोषणा की.   ?

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

डबल क्रौस-भाग 3 : एक ऐसी कहानी जो आपको हैरान कर देगी

सोमेन ने इंडिया लौट कर इंद्र को बताया कि पत्नी के लौटने में अभी देर है. उधर इंद्र की पत्नी ने कहा था कि मां के पास किसी न किसी का रहना जरूरी है. उस के भाई का लड़का 12वीं कक्षा में है. बोर्ड की परीक्षा के बाद ही उन की भाभी आ कर संभालेंगी. इंद्र भी कुछ दिनों के लिए अपनी सास से मिलने चला गया था.

दोनों दोस्तों की पत्नियां बारबार फोन कर के विमला को दोनों का खयाल रखने के लिए कहती रहती थीं. विमला को और क्या चाहिए था. उस की तो पांचों अंगुलियां घी में थीं. विमला ने दोनों की पत्नियों से कहा था, ‘‘आप को पता होना चाहिए कि मैं उम्मीद से हूं. डिलिवरी के समय कुछ दिनों तक मैं काम पर नहीं आ सकूंगी. तब कोशिश करूंगी कि कोई कामवाली आ कर काम कर जाए.’’

विमला इंद्र और सोमेन से कहती थी कि डाक्टर ने फल और टौनिक लेने के लिए कहा है, क्योंकि बच्चा काफी कमजोर है. आखिर यह उन का ही तो खून है. भले ही शंकर का कहलाए, लेकिन इसे बढि़या खानापीना मिलते रहना चाहिए. डाक्टर कहते हैं कि पेट चीर कर डिलिवरी होगी. काफी पैसा लगेगा उस में.

इंद्र और सोमेन यही समझ रहे थे कि विमला के पेट में उन्हीं का अंश पल रहा है, इसलिए चुपचाप विमला को बरदाश्त कर रहे थे. हमेशा ही मन में डर बना रहता था कि अगर विमला का मुंह खुल गया तो वे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. उन्हें यह भी विश्वास था कि विमला को ज्यादा पैसों का लालच नहीं है, वरना वह चाहती तो और भी हथकंडे अपना कर ब्लैकमेल कर सकती थी.

एक दिन सोमेन ने कहा, ‘‘विमला, तेरे मर्द को भी तो बच्चे की चिंता होनी चाहिए न?’’

‘‘वह नशेड़ी कुछ नहीं करेगा. यह बच्चा आप ही का है, आप चाहें तो चल कर टेस्ट करा लें.’’

‘‘नहीं, टेस्ट की कोई जरूरत नहीं है.’’

विमला की डिलिवरी का समय नजदीक आ गया. उस ने इंद्र से कहा, ‘‘डाक्टर ने कहा है कि औपरेशन से बच्चा होगा. काफी खर्च आएगा साहब. हम कहां से इतना पैसा लाएंगे?’’

इसी बहाने विमला ने इंद्र और सोमेन से मोटी रकम वसूली. दोनों से 3 सप्ताह की छुट्टी मांगते हुए उस ने कहा कि वे कहें तो वह एक टेंपरेरी कामवाली का इंतजाम कर दे. रिश्ते में उस की चचिया सास लगती है, पर जरा बूढ़ी है. वह सफाई से भी नहीं रहती, लेकिन उन का काम चल जाएगा.

दोनों ने मना कर दिया कि किसी तरह वे काम चला लेंगे.

दोनों दोस्त अकसर देर तक साथ बैठ कर बातें करते और टोस्ट, खिचड़ी, पोहा आदि खा कर काम चलाते. कभीकभी होटल जा कर खा आते. इसी तरह 3 सप्ताह बीत गए. एक दिन विमला सोमेन के यहां आई. इंद्र भी वहीं बैठा था. उन्होंने कहा, ‘‘चलो भई, आज से अब विमला घर संभालेगी. हम लोग इतने दिनों में बिलकुल थक गए. अरे तेरा बच्चा कैसा है, बेटा हुआ या बेटी?’’

‘‘9 महीने पेट में पाला, मुआ बड़ा बेदर्द निकला. मरा हुआ पैदा हुआ. इतना बड़ा चीरा भी लगा पेट में.’’ विमला रोने का नाटक करते हुए साड़ी में हाथ लगा कर बोली, ‘‘दिखाऊं आप लोगों को?’’

‘‘नहीं…नहीं, ठीक है, औपरेशन हुआ है तो चीरा तो लगा ही होगा. कहां हुआ था औपरेशन?’’ सोमेन ने पूछा.

दोनों दोस्तों को यह जान कर शांति मिली कि बच्चा मरा पैदा हुआ. अगर जीवित होता तो पता नहीं आगे चल कर यह क्या गुल खिलाती. अचानक विमला के मुंह से बेमन से निकल गया, ‘‘सिटी हौस्पिटल में. औपरेशन में बहुत खून निकल गया. डाक्टर ने एकदो महीने खूब फलफूल, टौनिक खाने को बोला है. आप लोगों का मुंह देख कर मैं जल्दी चली आई, वरना कोई दूसरी औरत होती तो ऐसे में उठने का नाम न लेती.’’

सोमेन ने उसे हजार रुपए देते हुए कहा, ‘‘ठीक है, अपने खानेपीने का ध्यान रखना और अभी ज्यादा काम मत करना.’’

इंद्र ने भी उसे हजार रुपए दिए. विमला अब रोज काम पर आने लगी. पर किसी की हिम्मत नहीं हुई कि वह उस से अपने शरीर की भूख मिटाने की बात करता. वे यही सोच रहे थे कि अभी यह अस्वस्थ है.

एक दिन विमला सोमेन के यहां कपड़े धो रही थी. उस की साड़ी ढीली हो कर नाभि से नीचे खिसक गई थी. सोमेन की नजर पड़ी तो उस ने विमला से पूछा, ‘‘तुम्हारे औपरेशन का दाग बड़ी जल्दी ठीक हो गया?’’

‘‘नहीं, अभी कहां ठीक हुआ है, चीरा तो और नीचे है. दिखाऊं खोल कर? पर डरती हूं कि कहीं देख कर आप को भूख लग गई तो?’’

‘‘नहीं…नहीं, देख कर क्या करूंगा. तुम अपना काम करो.’’ सोमेन ने कहा.

विमला को ले कर सोमेन के मन में शंका हुई. उस ने इंद्र को यह बात बताई. एक दिन घूमतेघामते दोनों दोस्त सिटी हौस्पिटल जा पहुंचे. वहां विमला की डिलिवरी के बारे में पूछा तो पता चला कि ऐसी कोई औरत वहां कभी नहीं आई थी.

दोनों को बहुत आश्चर्य हुआ. इस के अलावा विमला का पूजाघर की सफाई न करने से सोमेन को लगा कि उस समय जरूर उस का पीरियड चल रहा होगा. दोनों ने यह तो समझ लिया कि यह सब विमला का नाटक था, पर उन की मजबूरी थी कि वे कुछ कह नहीं सकते थे. उन्हें डर था कि कहीं विमला मुंह न खोल दे. कम से कम विमला के साथ उन के संबंध का राज तो छिपा रहेगा. उन्हें अब यह भी शक था कि इस नाटक में भोलाभाला दिखने वाला शंकर भी शामिल था.

कुछ दिनों बाद दोनों की पत्नियां आ गईं. सभी सोमेन के घर बैठे थे. विमला ने दोनों की पत्नियों से कहा, ‘‘अब आप संभालिए साहब लोगों को. मैं थक गई दोनों घरोें को संभालतेसंभालते.’’

सोमेन की पत्नी ने कहा, ‘‘हां विमला, तुम ने हम दोनों के घरों की अच्छी तरह देखभाल की है. मैं तुम्हारे लिए अमेरिका से गिफ्ट ले कर आई हूं. अभी तो बैग खोला नहीं है, कल याद कर के ले लेना.’’

इंद्र की पत्नी ने भी कहा, ‘‘हां, मैं भी अपने मायके से तुम्हारे लिए कुछ लाई हूं.’’

इंद्र और सोमेन भी वहीं बैठे थे. उन्होंने एकदूसरे को सवालिया नजरों से देखा. वे समझ रहे थे कि विमला ने क्या डबल क्रौस की चाल चली है.     ?

 

डबल क्रौस-भाग 2 : एक ऐसी कहानी जो आपको हैरान कर देगी

विमला देखने में साधारण थी. उस की उम्र 35 साल के करीब थी. उस का पति शंकर भी दोनों घरों में माली का काम करता था. वह काफी दुबलापतला मरियल सा था. अगर 3-4 लोग एक साथ जोर से फूंक दें तो वह उड़ सकता था. स्वभाव से वह भोलाभाला और एकदम सीधासादा था.

विमला दोनों दोस्तों से खूब चिकनीचुपड़ी बातें करती हुई अपनी अदाओं से उन्हें लुभाती रहती. कभी चायपानी देते वक्त जानबूझ कर पल्लू गिरा कर अपने वक्षस्थल दिखाने की कोशिश करती तो कभी किचन में बौलीवुड के भड़काऊ गीत ‘बीड़ी जलइले जिगर से…जिगर मा बड़ी आग है’ गुनगुनाने लगती. इसी तरह महीना बीत गया.

एक दिन विमला सुबह इंदर के यहां थोड़ा देर से आई. इंद्र ने वजह पूछी तो उस ने कहा, ‘‘कल रात आप के दोस्त के यहां देर हो गई. वह बहुत देर तक बातें करते रहे. कह रहे थे कि एक भूख तो मिट जाती है, लेकिन दूसरी का क्या करूं? यह दूसरी भूख क्या होती है साहब?’’

‘‘बस, यही समझ लो कि शंकर तुम से पेट और देह दोनों की भूख मिटा लेता है. वैसे दूसरी भूख तो सभी को लगती है, मुझे भी लगती है. पर मुझ बूढ़े को कौन पूछता है? क्या सचमुच हम इतने बूढ़े हो गए हैं?’’ इंद्र ने विमला को चाहत भरी नजरों से ताकते हुए कहा.

‘‘नहीं साहब, आप को देख कर तो कोई नहीं कह सकता कि आप रिटायर्ड हैं. रही बात मेरे मर्द की तो उस के शरीर में कहां दम है. फिर रात में पी कर आता है और लुढ़क जाता है. 5 साल हो गए, एक औलाद तक नहीं दे पाया. मैं अपना मर्द और एक बेटा छोड़ कर इस के साथ शहर आई थी कि यह मुझे उस से ज्यादा खुश रखेगा, लेकिन यह उस से भी बेकार निकला.’’

‘‘सचमुच.’’ इंद्र ने विमला को बांहों में भर कर कहा, ‘‘सोमेन से कुछ मत बताना. चलो, कमरे में चलते हैं.’’

इस के बाद जो नहीं होना चाहिए था, वह हो गया. इस के 2 दिनों बाद विमला सोमेन के यहां दिन में न जा कर रात में गई. सोमेन के पूछने पर उस ने कहा, ‘‘आप के दोस्त के यहां आज बहुत काम था, इसलिए देर होने पर वहीं से अपने घर चली गई थी. मर्द भी तो भूखा बैठा था.’’

‘‘अच्छा चलो, बुड्ढे को दिन भर उपवास करा दिया, जल्दी खाना बना कर पेट की भूख मिटाओ.’’

‘‘बूढ़े हों आप के दुश्मन, आप का तो क्या गठीला बदन है. आप को सिर्फ पेट की ही भूख मिटानी है?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब क्या, आप ने ही तो कहा था कि एक और भूख होती है. फिर मेमसाहब ने भी अपने जैसा खयाल रखने को कहा था.’’

‘‘अरे भई, तू तो बड़ी समझदार हो गई है.’’ कह कर सोमेन ने विमला को बांहों में भर कर चूम लिया. उस ने भी कोई ऐतराज नहीं किया तो उन्होंने कहा, ‘‘चलो बैड पर, पेट की भूख की बाद में सोचेंगे.’’

उस दिन विमला सोमेन के साथ भी हमबिस्तर हो गई. रात को जाते समय सोमेन ने कहा, ‘‘देखो, इस बात की चर्चा इंद्र से भूल कर भी मत करना.’’

‘‘बिलकुल नहीं करूंगी, मैं इतनी बेवकूफ नहीं हूं कि इस तरह की बात किसी से कह दूं.’’ कह कर विमला चली गई.

एक दिन विमला ने अपने पति शंकर से कहा, ‘‘हमारे दोनों साहब आजकल कुछ ज्यादा ही रंगीनमिजाज हो रहे हैं. अगर तुम मेरा साथ दो तो मैं इन दोनों का ठीक से इलाज कर दूं.’’

इस के बाद उस ने शंकर से अपनी योजना बता दी. उस ने हामी भरते हुए कहा, ‘‘ऐसा हुआ तो अपने दिन सुधर जाएंगे.’’

इस तरह विमला 2 महीने के अंदर ही दोनों दोस्तों की घरवाली बन गई. उधर दोनों की पत्नियां विमला को फोन कर के समझाती रहती थीं कि साहब को किसी तरह की तकलीफ न होने पाए. विमला भी उन्हें निश्चिंत रहने को कहती थी. तीसरा महीना होतेहोते उस ने एक दिन सोमेन से कहा, ‘‘मैं ने सावधानी बरतने को कहा था, पर आप माने नहीं. मुझे गर्भ ठहर गया है.’’

‘‘इस में चिंता की क्या बात है, तुम शादीशुदा हो, यह बच्चा शंकर का होगा.’’

‘‘उस का कहां से होगा, उस नामर्द को तो 5 साल से झेल रही हूं. असली मर्द तो आप मिले हैं. इस में कोई शक नहीं कि मेरे पेट में आप का ही अंश है.’’

‘‘अच्छा चुप रह. यह जिस का भी हो, कहलाएगा तो शंकर का ही. अगर तुम चाहो तो मैं डाक्टर से कह कर इसे गिरवा दूं.’’

‘‘ना बाबा, बड़ी मुश्किल से तो यह दिन देखने को मिला है. आप चिंता न करें, आप का नाम नहीं लूंगी.’’

कुछ दिनों बाद विमला ने अपने गर्भवती होने की बात इंद्र से भी कह दी. उस ने भी कहा, ‘‘घबराती क्यों है, इस का शंकर ही बाप कहलाएगा.’’

विमला ने दोनों दोस्तों को अपने गर्भवती होने की बात बता कर ठगना शुरू कर दिया. अपना फूला हुआ पेट दिखा कर कभी डाक्टर से इलाज और दवादारू के पैसे लेती तो कभी छुट्टी ले कर बैठ जाती. धीरेधीरे उस के पेट का फूलना बढ़ता गया. एक दिन सोमेन ने कहा, ‘‘जरा पूजाघर की सफाई अच्छे से कर दे.’’

विमला ने कहा, ‘‘आज बहुत काम है, बाद में कर दूंगी.’’

एक महीने बाद फिर सोमेन ने पूजाघर साफ करने को कहा तो फिर वही जवाब मिला. सोमेन बेटी की डिलिवरी के समय एक महीने के लिए अमेरिका चला गया. डिलिवरी के बाद डाक्टर ने सलाह दी कि बेबी कमजोर है, इसलिए एक साल तक डे केयर में न दे कर उस की परवरिश घर में ही की जाए.

पनीर से बनाएं ये टेस्टी डिश

पनीर हमारे सेहत के लिए बहुत लाभदायक है. आइए जानते हैं पनीर से कुछ खास तरह के डिश बनाना. जो जो आपके परिवार वालों के साथ-साथ रिश्तेदारों को भी पसंद आएगा.

सामाग्री

तीन से चार टमाटर

दो प्याज

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एक गाजर

थोड़ी सी मटर

एक शिमलामिर्च

अदरक

लहसुन

धनिया

200 ग्राम पनीर

एक छोटी चम्मच कसूरी मेथी

पावभाजी मसाला

नमक

ऑयल

मक्खन

जीरा

हल्दी

कश्मीरी लाल मिर्च

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समाग्री

पनीर भाजी मसाला बनाने के लिए सबसे पहले प्याज, गाजर व शिमलामिर्च को बारीक काट लें.

-इसके बाद आप टमाटर को काटने की जगह कद्दूकस करें. अब आप अदरक और लहसुन को कद्दूकस करें.

-इसके बाद आप पनीर को काटकर उसमें थोड़ा सा नमक और अदरक−लहसुन के रस को उसके ऊपर डालें और हाथों की मदद से मिक्स करें. अब एक बाउल में कसूरी मेथी और करीबन डेढ़ चम्मच पावभाजी मसाला डालकर चम्मच की मदद से मिक्स करें.

-अब कड़ाही में थोड़ा सा ऑयल व दो टेबलस्पून बटर डालें. अब एक छोटा चम्मच जीरा डालें. जब जीरा चटक जाए तो इसमें प्याज डालें. साथ ही इसमें हल्दी व कश्मीरी लाल मिर्च एकबार मिक्स करें. अब इसमें अदरक−लहसुन का पेस्ट डालें.

-अब इसमें गाजर, शिमलामिर्च और मटर डालकर मिक्स करें और पकने दें. अब आप इसमें कद्दूकस किए हुए टमाटर व नमक डालकर मिक्स करें और ढककर सब्जी को पकाएं. बीच−बीच में सब्जी को चलाते रहें ताकि वह जल ना जाए.

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-अब इसे मैशर की मदद से मिक्स करें. जब सब्जियां अच्छी तरह मिक्स हो जाएं तब इसमें कसूरी मेथी और पावभाजी मसाला के मिश्रण को इसमें डालें. अब आप थोड़ा पनीर कद्दूकस करें. साथ ही इसमें पनीर के कुछ टुकड़े डालकर मिक्स करें.

-अब इसमें थोड़ा सा पानी डालकर इसकी कंसिस्टेंसी को भाजी जैसी बनाएं. आखिरी में ताजा कटा हुआ हरा धनिया डालें.

-आखिरी में आप इसे परांठा, लच्छा परांठा या फिर पाव के साथ खा सकते हैं.

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