लेखक-  डा. बालाजी विक्रम, डा. पूर्णिमा सिंह सिकरवार

फलों के उत्पादन में भारत चीन के बाद दूसरे नंबर पर आता है. फलों के उत्पादन में अग्रणी होने के लिए हम सभी को नए व पुराने बागों में नई तकनीकों और उचित देखभाल की जरूरत पर जोर देना पड़ेगा. जैसे कि बागों को लगाने की सघन पद्धति व पुराने बागों में उत्पादकता में बढ़ोतरी की जा सकती है.

यह है तकनीक

जीर्णोद्धार तकनीक द्वारा पुराने घने व कम फायदेमंद पौधों में नए प्रवाह की तादाद बढ़ा कर पौधों को दोबारा उत्पादक बनाया जाता है.

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इस तकनीक से पौधों की कैनोपी प्रबंधन द्वारा ज्यादा से ज्यादा फल देने वाली शाखाओं में बढ़ोतरी की जाती है, जिस के बाद पुराने बागों से दोबारा अच्छी उपज (प्रति पौधा) मिलती है.

बागों का चुनाव

ऐसा देखा गया है कि आम की 50-55 साल व अमरूद, आंवला व लीची 25-30 साल बाद पेड़ों की शाखाएं बढ़ कर दूसरे पेड़ों को छूने लगती हैं. नतीजतन, सूरज की रोशनी पेड़ों के पर्णीय भागों में सही से नहीं पहुंच पाती है, जिस की कमी में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कमजोर हो जाती है. नतीजतन, कल्ले पतले और बीमार हो जाते हैं.

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यही नहीं, ऐसे बागों में कीट व बीमारियों का प्रकोप भी ज्यादा होता है, जिन का नियंत्रण कर पाना मुश्किल हो जाता है और बाग उत्पादन की नजर से बेकार हो जाते हैं. ऐसे पेड़ों की कटाईछंटाई कर के बागों को दोबारा उत्पादक बनाया जा सकता है.

बागों में कटाईछंटाई

माली और हालात के नजरिए से बेकार हो चुके पेड़ों की सभी गैरजरूरी शाखाओं को दिसंबर से जनवरी महीने में काटना फायदेमंद होता है.

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