राजगिरा को रामदाना या चौलाई भी कहते?हैं. यह पौष्टिकता के मामले में कई अनाजों से बेहतर है. गेहूं व चावल में जितनी प्रोटीन, कैल्शियम, वसा व आयरन की मात्रा पाई जाती है, उस से ज्यादा राजगिरा में होती है.
राजगिरा में दूध के मुकाबले दोगुना कैल्शियम होता है. यह ब्लड कोलेस्ट्राल रोकने में मददगार है. राजगिरा व गेहूं के आटे को मिला कर बनी रोटी को एक पूर्ण भोजन माना जाता है. इस के दानों को फुला कर कई तरह की खाने की चीजें तैयार की जाती है. इस से बने लड्डू लोग बहुत पसंद करते?हैं. इस के अलावा बेकरी में तैयार चीजें जैसे बिस्कुट, केक, पेस्ट्री वगैरह भी इस से बनाए जाते?हैं. इस की पत्तियों में औक्जलेट व नाइट्रेट की मात्रा कम होने की वजह से यह एक ताकतवर व अच्छी तरह पचने वाला हरा चारा माना जाता?है. सूखा सहन करने की कूवत की वजह से इस के उत्पादन पर
बढ़ती गरमी का असर कम पड़ता?है. इसलिए राजगिरा की खेती को फायदेमंद माना जाता है.
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राजगिरा की खेती खासतौर से उत्तरपश्चिमी हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है, लेकिन अब देश के कई भागों में इसे बोया जाता है. इस की खेती गुजरात और राजस्थान में भी की जाती है. राजस्थान में करीब 70 हेक्टेयर में इस की खेती होती?है. वहां जालोर व सिरोही इस की खेती के लिए खास हैं. गुजरात के डीसा में राजगिरा की बहुत बड़ी मंडी है. सिद्धपुर में भी राजगिरा काफी मात्रा में होता है.
राजगिरा की खेती की जानकारी
बोआई : इस की बोआई अक्तूबर के आखिरी हफ्ते से नवंबर के पहले पखवाड़े तक करना ठीक रहता है.
उन्नत किस्में : आरएमए 4 व आरएमए 7.
खेत की तैयारी : राजगिरा का बीज काफी छोटा होता?है. इस के लिए खेत को अच्छी तरह जुताई कर के तैयार करें. खेत में?ढेले नहीं होने चाहिए.
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खाद व उर्वरक : अच्छी सड़ी हुई 8-10 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के 1 महीने पहले कम से कम 3 साल में 1 बार जरूर डालें. अच्छी फसल के लिए 60 किलोग्राम नाइट्रोजन व 40 किलोग्राम फास्फोरस दें. नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फास्फोरस की पूरी मात्रा बोआई के समय डालें. बची नाइट्रोजन की आधी मात्रा 2 भागों में बांट कर पहली व दूसरी सिंचाई के साथ दें.
बीज की मात्रा व बोआई : बोआई के लिए 15 से 20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर काफी होता?है. बीज बिलकुल हलका व बारीक होता है, इसलिए बीज में बारीक मिट्टी मिला कर बोआई करने से बीज की मात्रा काबू में रहेगी. कतार से कतार की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर रखें और बीजों को 1.5 से 2.0 सेंटीमीटर गहरा बोएं.
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सिंचाई : राजगिरा को 4-5 सिंचाइयों की जरूरत होती है. बोआई के बाद पहली सिंचाई 5-7 दिनों बाद और बाद में 15 से 20 दिनों के अंतर पर जरूरत के हिसाब से करें.
निराईगुड़ाई : खरपतवार नियंत्रण के लिए बोआई के 15-20 दिनों बाद पहली और 35 से 40 दिनों बाद दूसरी निराईगुड़ाई करें. अगर पौधे ज्यादा हों तो पहली निराई के साथ बेकार के पौधों को निकाल कर पौधों के बीच की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर कर दें.
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कटाई : फसल 120 से 135 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. पकने पर फसल पीली पड़ जाती है. समय पर कटाई नहीं करने पर दानों के झड़ने का खतरा बना रहता है. फसल को काटते व सुखाते समय ध्यान रखें कि दानों के साथ मिट्टी न मिले.