लेखिका- स्नेहा सिंह
सिर्फ यही नहीं कि पुरुषों के साथ महिलाएं कंधे से कंधा मिला कर आगे बढ़ रही हैं बल्कि वे पुरुषों से ज्यादा मेहनत करने वाली भी साबित हुई हैं, लेकिन फिर भी उच्च पदों पर उन की संख्या कम है. ऐसा क्यों ? हर क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ रही है. पर, टीचिंग और लीगल को छोड़ कर टौप पर महिलाएं कम ही हैं. आज कौर्पोरेट का दौर है. फौर्च्यून की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की एक हजार टौप कंपनियों के सीईओ में 94 प्रतिशत पुरुष हैं. मतलब, पढ़ाई और कैरियर बनाने की तीव्र इच्छा होने के बावजूद महिलाएं टौप यानी सीईओ पद पर मात्र 6 प्रतिशत ही हैं.
आज कौर्पोरेट वर्ल्ड में जो महिलाएं हैं, उन्होंने पुरुषों की तरह ही एसटीईएम की डिग्री के साथ मैनेजमैंट की भी डिग्री ले रखी है. उन्होंने पुरुषों की ही तरह चुनौतियों का सामना किया है. इन में से एकतिहाई महिलाओं को अन्य महिला लीडरों से प्रेरणा मिली है. परंतु आश्चर्य की बात यह है कि उन में पुरुषों के बराबर योग्यता होने के बावजूद उन्हें टौप पर पहुंचने में 30 प्रतिशत अधिक समय लगता है. इस से उन की उम्र अधिक हो जाती है. हालांकि, पुरुषों की अपेक्षा महिलाए काफी हार्डवर्कर हैं, इस के बावजूद टौप पर इन की हिस्सेदारी कम क्यों है, यह सोचने की बात है?
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दरअसल, टैलेंटेड और कैरियर ओरिएंटेड ज्यादातर महिलाएं अपनी एक लक्ष्मणरेखा पहले से ही खींच रखती हैं. एक निश्चित पद पर पहुंचने के बाद टौप पर पहुंच कर भारी जिम्मेदारी उठाने के लिए वे तैयार नहीं होतीं. इस के पीछे वजह यह है कि पद के साथ आने वाली चुनौतियां, तनाव व समय की अनिश्चितता जैसे मौकों से जूझने के बजाय वे एक सुरक्षित और आरामदायक कैरियर पर पूर्णविराम लगाना पसंद करती हैं.
ऐसी तमाम महिलाएं हैं जिन में पावर और महत्त्वाकांक्षा तो होती है, पर धीरज नहीं होता, जिस से वे पीछे हट जाती हैं. सीईओ इंद्रा नूई का कहना है कि सीईओ बनना कोई थोड़े दिनों की प्रक्रिया नहीं है. यह पद लंबा धैर्य, मेहनत और क्षमता मांगता है. एजुकेशन और हिसाबकिताब के अलावा कम्युनिकेशन, टैक्नोलौजी, न्यू आइडिया और नौलेज जैसी अनेक चीजें लीडरशिप के लिए जरूरी हैं.
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इकोनौमिक टाइम्स के सर्वे के अनुसार, आज जो बैस्ट सीईओ हैं, वे बैस्ट स्कूल और यूनिवर्सिटी के पढ़े हैं. परिवार में आज भी पुरुषों को इस बारे में अधिक प्रोत्साहित किया जाता है. कंपनियां स्कूल और कालेज को महत्त्व देती हैं, इसलिए कमजोर कालेज व यूनिवर्सिटीज की पढ़ी महिलाएं इस रेस में पीछे रह जाती हैं. अब तक जो फीमेल सीईओ रही हैं, उन में से 50 प्रतिशत महिलाओं ने कंपनी की कमाई कम कराई है. जबकि, कंपनी के लिए तो प्रौफिट महत्त्वपूर्ण है. ऐसे में कंपनियां फीमेल सीईओ क्यों पसंद करेंगी.
लाखोंअरबों रुपए की पूंजी वाली अनेक लोगों के जीवन को संवारती कंपनियों को लीडर आत्मनिर्भर और आत्मविश्वास वाला चाहिए. छोटेछोटे काम महिलाएं स्वयं कर लेती हैं, पर बड़े काम और निर्णय लेने में वे डिपैंडेबल बन जाती हैं. कुछ ऐसे निर्णय हैं जो वे खुद नहीं ले पातीं. शायद वे ऐसे निर्णय लेने से डरती हैं. खतरा उठाने के बदले सुरक्षा इन महिलाओं का मूलभूत गुण है. जबकि कंपनी के लिए खतरा उठाना जरूरी है.
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लीडरशिप में महिलाएं पीछे
न्यूरो साइंस का मानना है कि इस बारे में पुरुष और महिलाओं के सोचने में अंतर है, जैसे कि पुरुष महिलाओं की अपेक्षा समस्या को जल्दी पहचान कर हल कर लेते हैं.
महिलाएं इमोशनली जबकि पुरुष लौजिकली सोचते हैं. परिणामस्वरूप, उन का मैथ्स अच्छा होता है. महिलाएं दुखी जल्दी होती हैं, जबकि पुरुष उसी बात को हलके में ले सकते हैं. महिलाएं भूगोल, नक्शा, दिशा आदि याद रखने और साहस करने में भी पुरुषों की अपेक्षा पीछे हैं. इन बायलौजिकल कारणों से भी महिलाएं लीडर के रूप में पीछे रह जाती हैं.
अमेरिकी अखबार ‘द वाल स्ट्रीट जर्नल’ के एक सर्वे से पता चला है कि महिलाएं सीईओ इसलिए कम हैं क्योंकि पुरुषों में उत्साह, महत्त्वाकांक्षा और प्रभुत्व के गुण अधिक होते हैं. पुरुष कुदरती लीडर हैं, इसलिए वे आगे रहते हैं. दूसरे, वास्तविक कारण यह है कि ग्रुप फेवरिज्म, बोर्डरूम में 70 प्रतिशत पुरुष होते हैं, जो महिला सीईओ का समर्थन करने से कतराते हैं. 786 मेल सीईओ के सर्वे में 33 प्रतिशत पुरुषों ने महिला सीईओ का विरोध किया था.
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आज हम सभी को ऐसा लगता है कि महिलाएं सैल्फ प्रमोशन में आगे हैं, पर बिजनैस में पुरुष अपनी क्वालिटीज अधिक असरकारी रूप से प्रस्तुत कर सकता है, जो महिलाएं नहीं कर सकतीं. वहीं, एकदो बार निष्फल होने पर महिलाएं हार मान कर पीछे हट जाती हैं. पुरुषों के लिए हार को जीत में बदलना स्वाभिमान और अस्तित्व का सवाल बन जाता है. जिस तरह हारा जुआरी दोबारा खेलता है, उसी तरह पुरुष निष्फलता के बाद दोहरी ताकत से सफलता के लिए प्रयास करता है.
हर महिला में यह मानसिक और वैचारिक भिन्नता नहीं है. पढ़ाई, मेहनत और लीडरशिप जैसे गुण पुरुषों की ही तरह होने के बावजूद आखिर वे टौप पर नहीं पहुंच पातीं. इस का एक सब से महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि आज भी जैंडर बायस और सोशल फैक्टर है. शादी, घर और बच्चों के लिए महिलाओं की भूमिका आज भी महत्त्वपूर्ण है. ऐसे तमाम पुरुष हैं जिन के लिए महिलाएं आज भी शिकार हैं. महिलाएं पुरुषों के साथ उन की तरह खेल खेल नहीं सकतीं. कौर्पोरेट पौलिटिक्स खेलना जिस की आदत नहीं, वह महिला हो या पुरुष, टौप पर पहुंचने में सफल नहीं हो सकता. कंपनी के काम से सीईओ के रूप में विदेश भी जाना पड़ सकता है, जिसे अनेक महत्त्वाकांक्षी महिलाएं टाल देती हैं.
जेपी मौर्गन की पूर्व सीईओ डिना डबलन के अनुसार, महिला टौप पर पहुंचने के बाद माइनौरिटी में आ जाती है और उस के लिए मैजौरिटी को डील करना मुश्किल होता है. हार्वर्ड की रिसर्च के अनुसार, अगर महिलाएं सीईओ होती हैं तो उन के साथ काम करने वाले पुरुषों का आत्मविश्वास कम होता है. इसलिए वे महिलाओं को पछाड़ते हैं. ऐसे तमाम कारणों की वजह से महिला सीईओ कम हैं.
अगर महिलाओं को सीईओ जैसे उच्च पद पर विराजना है तो खुद को निखारना, तराशना और व्यवस्थित करना होगा. जैसा कि फेसबुक की सीईओ (इंडिया) क्रिथिका रेड्डी कहती हैं कि जिन्हें टौप पर पहुंचना है, उन्हें खतरा उठाने से डरना नहीं चाहिए, खतरा ही अवसर प्रदान करता है और हर स्थिति के लिए तैयार रहना ही लीडरशिप का पहला गुण है. महिलाओं को भूल करने, सीखने और महत्त्वाकांक्षा के साथ सच्ची दिशा में मेहनत करने की सलाह ऐक्सिस बैंक की सीईओ भी देती हैं.
जरा गौर करें
अगर महिलाओं को सीईओ के रूप में छलांग मारनी है तो जिस क्षेत्र में टौप पर पहुंचना है, उस क्षेत्र की वे बैस्ट एजुकेशन लें. हर मामले में तैयार रहें, कभी भी कोई सवाल आए, उस का हल आप के पास तैयार होना चाहिए.
अपने कैरियर की आप मालिक हैं, यह सोच कर आगे बढ़ें.अगर आप को आगे जाना है, तो अन्य से अलग बनिए.प्रौपर प्रश्न खुद से भी और अन्य से भी पूछती रहें.
आत्मविश्वास और आत्मश्रद्धा का कोई विकल्प नहीं है. भली बनें.वहीं, कंपनियां भी वर्क्स विद फैमिलीज, अफोर्डेबल चाइल्ड केयर, केचीस, पेड पेरैंटल लीव और फ्लैक्सी टाइम आदि की सुविधा दें तो महिलाएं पारिवारिक समस्याओं का सामना करती हुईं टैंशनफ्री हो कर आगे बढ़ने के बारे में सोच सकती हैं.
शिवानी को चुन्नी चढ़ाने की रस्म के लिए उस के ससुराल से लगभग 30 लोग आए थे. हमारी ओर से भी इतने ही सदस्य रहे होंगे, जिन में से एक जूली थी. हमारा घर विशेष रूप से बड़ा नहीं है. इतने लोग किस तरह उस में समा गए वह जूली के लिए एक अलग ही अनुभव था. परंतु उस से भी अधिक उस के मन को प्रफुल्लित कर डाला था चुन्नी के झीने कपड़े के पीछे छिपे नए परिवार के संरक्षण के भाव ने.
शिवानी के विवाह के कुछ समय बाद जूली ने मुझे सूचना दी कि उस के विवाह की 40वीं वर्षगांठ आने वाली है जिस पर वह एक आयोजन करेगी, ‘‘अभी से डायरी में लिख कर रख लो, 20 अगस्त. तुम्हें अपने पति के साथ आना होगा. स्थान है बुश म्यूज होटल.’’
बुश म्यूज होटल को कौन नहीं जानता. 150 साल पुराना है वह होटल. कहते हैं कि एक समय बड़ी संख्या में घोड़ागाडि़यां खड़ी करने की व्यवस्था उस से ज्यादा किसी अन्य होटल में नहीं थी. समय के साथ हुए परिवर्तनों के कारण अब ग्राहक घोड़ागाडि़यों के बदले कारों में आते थे. जूली ने मुझे बताया कि उस के लिए होटल के मैनेजर ने वही कमरा नंबर101 बुक कर दिया था, जिस में उस ने 40 वर्ष पूर्व अपनी सुहागरात मनाई थी.
यद्यपि वह होटल आबादी वाले क्षेत्र में नहीं था, मैं उस के सामने से अनगिनत बार गुजर चुकी थी. भीतर जाने का वह पहला अवसर था. वह एक भव्य होटल है, इस का आभास इमारत में जाने वाली सड़क पर जाते ही हो गया. होटल का मुख्यद्वार मुख्य सड़क पर नहीं, होटल के पिछवाड़े था. उस तक जाने के लिए एक लंबी, पतली सड़क बनी थी, जो दोनों ओर फूलों की क्यारियों में ढक गई लगती थी. उन क्यारियों के पार मखमली घास के मैदान थे जो टेम्स नदी के तट तक फैले हुए थे. अभी मैं और मेरे पति मानवनिर्मित उस प्राकृतिक सौंदर्य के प्रबल प्रभाव को अपने चारों ओर अनुभव कर ही रहे थे कि जा पहुंचे मुख्यद्वार के सामने. वह एक होटल का नहीं, किसी प्राचीन ग्रीक मंदिर का द्वार लगा.
प्रवेश करने पर स्वागत करने वालों की छोटी सी टोली दिखाई दी, जो अपनेआप में महत्त्वपूर्ण नहीं थी, परंतु जो वहां हुआ वह बड़ा नाटकीय था. स्वागतियों का सरदार एक लंबा, तगड़ा पहरेदार लगता था. उस ने लाल रंग की सुगठित वरदी पहनी हुई थी और वह प्रत्येक मेहमान के आगमन की घोषणा कर रहा था. अभी मैं इस दृश्य को अपनी आंखों में भर ही रही थी कि घोषणा सुनाई दी, ‘सावधान, सर्वमान्य श्रीमती और श्री मजूमदार पधार रहे हैं.’ उस घोेषणा में लयबद्धता थी, एकरूपता थी, यदि आप मेहमान हैं तो अवश्य ही माननीय होंगे.
जिस परिसर में मेहमान एकत्र हो रहे थे वह भोजकक्ष से सटा था. वहीं पर सब के लिए अल्पाहार और पेय आदि की व्यवस्था थी. उस की छत से लटकता, तराशे कांच से बना हुआ विशाल झाड़फानूस अपने चारों ओर एक भव्य आभा बिखेर रहा था. वे प्रकाशपुंज सचमुच एक विचित्र विलासमय गरिमा से भरे थे. जूली और उस का पति कीथ, मेहमानों का स्वागत बड़ी तन्मयता से कर रहे थे. जब जूली की नजर मुझ पर पड़ी, वह उस विशाल कमरे में एकत्र लगभग 300 मेहमानों को लांघ कर मेरी ओर लपकी. उस ने मुझे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया और बोली, ‘‘मैं तुम्हें बता नहीं सकती कि तुम्हें यहां देख कर मुझे कितनी प्रसन्नता हो रही है.’’
फिर वह मुझे अपनी बचपन की सहेली डौरिस की ओर खींच कर ले गई, ‘‘मैं ने तुम दोनों को एक ही मेज पर रखा है. मुझे विश्वास है कि तुम दोनों एकदूसरे से बात करने में नहीं थकोगी.’’
जूली ने ठीक ही कहा था. डौरिस जूली की बचपन की सहेली थी. प्राथमिक शिक्षा से ले कर विश्वविद्यालय तक वे साथ ही पढ़ी थीं. बिना किसी भूमिका के डौरिस ने मुझ से कहा, ‘‘क्या तुम मेरे हैट के बारे में नहीं पूछोगी?’’
पुआल से बना, डौरिस के कंधों पर पूरी तरह छाया वह हैट मुझे कुछ पुराना सा लगा. मेरी समझ में नहीं आया कि क्या कहूं.
‘‘हां, अवश्य बताइए. एकदम बिरला लगता है,’’ मैं बोली.
‘‘वह तो है. यह हैट मैं ने जूली के विवाह पर पहना था.’’
‘‘क्या कहा, 40 साल पुराना, मैं नहीं मानती.’’
‘‘मेरा विश्वास करो. चाहो तो बाद में जूली से पूछ लेना. लेकिन इस हैट की कहानी यहीं समाप्त नहीं हो जाती. जब जूली की शादी हुई, मैं फैशन के मामले में बिलकुल नादान थी. विवाह के अवसर पर जब मैं चर्च पहुंची तो मैं ने देखा कि मेरे अलावा सभी स्त्रियों ने हैट लगाए हुए थे. मेरे असमंजस को मेरी दादी ने भांप लिया और अपना हैट उतार कर मेरे सिर पर रख दिया.’’
‘‘अविश्वसनीय, इस का मतलब यह हुआ कि न केवल तुम ने इसे 40 वर्ष पूर्व जूली के विवाह में पहना बल्कि यह उस से भी पुराना है.’’
‘‘हां, इस के किनारों पर लगी पाइपिंग के अतिरिक्त यह वैसा का वैसा है, जैसा मेरी दादी ने मुझे दिया था.’’
धीरेधीरे सभी मेहमानों से मेरी दुआसलाम हो गई. जूली की मौसी की पुत्री अपने पति पाम्पडूस के साथ ग्रीस से आई थी. जूली के पति के भाई विलियम और उस की पत्नी न्यूयार्क से आए थे. पीटर आस्ट्रेलिया से, डेविड हौंगकौंग से. आयरलैंड, जरमनी, स्पेन और इटली से भी रिश्तेदार आए थे. इंगलैंड और स्कौटलैंड से आए मेहमानों की संख्या अधिक थी.
स्पष्ट था कि उस पार्टी में परिवार और घनिष्ठ मित्रों के अलावा कोई और व्यक्ति नहीं था. जूली ने मुझे इतना निकट समझा, इस के लिए मुझे स्वयं पर गर्व हुआ.
मेहमानों के इस जमावड़े में एक थी जूली की भांजी, कैथरीन. वह विकलांग थी और ह्वील चेयर पर आई थी. सभी रिश्तेदार उस से मिलने के लिए होड़ लगाते मालूम हो रहे थे. 23 वर्षीय कैथरीन के पैरों की बनावट कुछ ऐसी थी कि कुछ देर के लिए खड़ी तो अवश्य हो सकती थी परंतु अधिक चलफिर नहीं सकती थी. वह आयकर विभाग में काम करती थी और अपनी अपंगता के होते हुए भी एक विचित्र प्रकार के आत्मविश्वास से भरी लगती थी.
जब हम भोज के लिए अपनी पूर्वनिर्धारित मेज पर पहुंचे तो उस पर तैनात वेटर ने मेरा विशेष स्वागत किया. ‘‘निश्ंिचत रहिए, आप दोनों के लिए शाकाहारी भोजन की विशेष व्यवस्था की गई है. आशा है आप को हमारा व्यंजन चुनाव पसंद आएगा.’’
‘‘ओह, धन्यवाद, हम ने तो इस बारे में सोचा भी नहीं था. मुझे विश्वास है कि सबकुछ स्वादिष्ठ ही होगा.’’
हमारी मुख्य तश्तरियों पर व्यंजन सूची के अतिरिक्त एक पुस्तिका रखी थी. मैं ने उसे उठाया, तो जाना कि वह एक व्यंजन नुस्खा पुस्तक थी. डौरिस ने मेरे कान में कहा, ‘‘इस पुस्तक को जूली के वृहत परिवार ने तैयार किया है, सभी ने उस के लिए कुछ न कुछ लिखा है. पुस्तक तो एक बहाना है जिस के माध्यम से उन लोगों ने 1 लाख पाउंड एकत्र किए जिस से एक घर खरीद कर उसे आधुनिक सुविधाओं से संपन्न कर कैथरीन को सौंप दिया. मेरा अनुमान है कि वृहत परिवार के प्रत्येक वयस्क सदस्य ने औसतन 1 हजार पाउंड इस काम के लिए दिए थे.’’
उस कल्पनातीत उदारता की बात सुन कर मेरे मन में जूली के परिवार के प्रति एक विशेष आदरभाव उभर आया. कोई दिखावा नहीं, कोई आडंबर नहीं. एक पारिवारिक समस्या थी, जिस का आकलन किया गया और फिर सभी ने यथासामर्थ्य उस के लिए योगदान किया. न दया, न भावनाओं का अतिरेक और न ही कृत्य के लिए प्रशंसा की चाह.
भोज की समाप्ति और चायकौफी परोसे जाने के बीच एक परदे पर जूली और कीथ के वैवाहिक जीवन की झलकियां छायाचित्रों के माध्यम से प्रस्तुत की गईं. पृष्ठभूमि में आवाज शायद मार्क की थी. हरेक चित्र एक पूरी कहानी था. उस चित्रमाला में उन के पहले मकान का चित्र था. पालतू बिल्ली थी. कीथ के मातापिता, भाईबहन और उन के बच्चों को यथोचित स्थान दिया गया था. मार्क और फियोना के बापटाइज होने, उन के प्रथम दिन स्कूल जाने आदि महत्त्वपूर्ण दिनों की यादें गुथी थीं. वरौनिका का पहली बार घुड़सवारी करने का प्रयत्न, 3 टांग की दौड़ और तैराकी में जीते पुरस्कार, सभी दर्ज थे. और अंत में कीथ के साथ जूली का चित्र उस पोशाक में जिसे पहन कर वह पहली बार कीथ से मिली थी.
इस के बाद सारी रोशनियां बंद कर दी गईं. भोजकक्ष पूरी तरह अंधेरे में डूब गया था. और तब 2-3 क्षण के अंतराल के बाद मंच रोशनियों से जगमगा गया. उस चमकीले प्रकाशपुंज में स्नान करती एक कन्या खड़ी थी. समझने और पहचानने में सभी को कठिनाई हुई. वह जूली नहीं, 15 वर्षीया वरौनिका थी, वही पोशाक पहने हुए जिसे पहन कर जूली पहली बार कीथ से मिली थी. लाल रंग की उस लंबी पोशाक में व्याप्त सफेद रंग की वृत्ताकार बुंदकियां छठे दशक के फैशन की प्रदर्शनी करती जान पड़ती थीं. सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से भर गया था.
कुछ क्षण उस कृत्रिम ज्योत्स्ना में स्नान करने के बाद वरौनिका मंच से नीचे उतर आई. वह बारीबारी से हरेक मेज पर गई और वहां बैठे लोगों के साथ उस ने बड़े चाव से छायाचित्र खिंचवाए. जब वह मेरे पास पहुंची तो मैं ने उस से कहा, ‘‘वरौनिका, तुम इस ड्रैस में बहुत सुंदर लग रही हो.’’
वह इतरा कर खड़ी हो गई, ‘‘हां, ठीक अपनी दादी की तरह.’’
मैं ने उस का माथा चूमा. मैं कल्पना की अपनी दुनिया में चली गई और सोचने लगी कि क्या मेरी अपनी पौत्री मेरी किसी पोशाक को इतने गर्व से पहनेगी?
‘‘तुम जानती हो शशि, मैं ऐसा नहीं कह सकती,’’ जूली ने कहा, ‘‘और यदि कहा, तो तुम जानती हो कि मुझे क्या उत्तर मिलेगा. तुम्हारा बस चले तो इस देश में भी वैसा ही हो जाए.’’
इस के बाद हम दोनों के लिए काम करना कठिन हो गया. हम दोनों उस काल्पनिक उत्तर के बारे में सोचसोच कर बहुत देर तक हंसती रहीं.
हमारी गपशप सहकर्मियों या शिकायत करने वालों की चर्चा तक ही सीमित नहीं रहती थी. हम लोग अकसर हर विषय पर बातें करते थे. कंपनी की गपशप पर कानाफूसी, अखबारों में छपी चटपटी खबरें, पारिवारिक गतिविधियां, सभी कुछ. जूली के 2 बच्चे थे. 1 बेटा और 1 बेटी. बेटे का नाम मार्क था. वह विवाह के बाद अपनी पत्नी फियोना के साथ रहता था. बेटी सिमोन का विवाह तो अवश्य हुआ परंतु 1 ही वर्ष के भीतर तलाक हो गया था. उस के बाद वह वापस अपने मातापिता के साथ रहने लगी थी. एक दिन जब जूली काम पर आई तो उस के चेहरे को देख कर मैं समझ गई कि अवश्य ही कुछ बात है. पूछने पर उस ने बताया कि वह मार्क से तंग आ गई है. जूली के अनुसार मार्क और फियोना पिछले बृहस्पतिवार उस के घर आए थे. उन्होंने केवल इतना बताया कि वे लंबे सप्ताहांत के लिए प्राग जा रहे हैं और अपनी पुत्री, वरौनिका को हमारे पास छोड़ गए.
‘‘यह तो ठीक है कि वरौनिका हमें प्रिय है,’’ जूली ने बताया, ‘‘और उस की देखभाल करना कुछ कठिन नहीं परंतु उन्हें यह तो सोचना चाहिए कि हमारी भी अपनी जिंदगी है. हम पूरे सप्ताह वरौनिका के साथ ही लगे रहे. कहीं भी नहीं जा पाए.’’
मेरे मुंह से निकल गया था, ‘‘जूली, मुझे तो खेद इस बात का रहता है कि मेरी बेटी की अभी तक शादी नहीं हुई है. मैं तो उस दिन की बेसब्री से प्रतीक्षा करती हूं जब वह अपने बच्चों को मेरे पास छोड़ कर जाने की स्थिति में हो.’’
‘‘शायद यह संस्कृतियों का अंतर है,’’ जूली ने कहा, ‘‘मैं मानती हूं कि नई पीढ़ी को आगे बढ़ते देखने से बड़ा सुख तो कोई दूसरा नहीं परंतु मार्क और फियोना को भी तो हमारी सुविधा का ध्यान रखना चाहिए. हमेशा यह मान लेना कि हमें किसी भी तरह की कोई कठिनाई नहीं होगी, यह भी तो ठीक नहीं.’’
जूली के उत्तर पर मुझे काफी आश्चर्य हुआ, क्योंकि मैं जानती थी कि यदि उसे सचमुच किसी बात की चिंता है तो यह कि किस तरह सिमोन का भी घर दोबारा बस जाए. वह उसे किसी न किसी तरह ऐसे स्थानों पर भेजती रहती थी जहां उस की मुलाकात किसी अच्छे युवक से हो जाए. वह स्वयं हर मुलाकात में न केवल पूरी रुचि लेती थी बल्कि उस के बारे में मुझे भी आ कर बताती थी.
एक दिन जब जूली काम पर आई तो उसे देखते ही मैं समझ गई कि कुछ गड़बड़ है. पहले तो वह टालमटोल करती रही किंतु अंत में उस ने बताया, ‘‘सिमोन की बात फिर एक बार टूट गई. लगभग 3 सप्ताह पहले सिमोन के बौयफ्रैंड ने उसे एक रौक म्यूजिक कंसर्ट में उस के साथ चलने को कहा था. उसी दिन सिमोन की एक पक्की सहेली का जन्मदिन भी था. वैसे भी सिमोन को रौक म्यूजिक ज्यादा पसंद नहीं. जब सिमोन ने अपनी मजबूरी बताई तो बौयफ्रैंड ने कुछ नहीं कहा. वह अकेला ही चला गया. उस के बाद उस की ओर से कुछ सुनाई नहीं दिया. न फोन, न मैसेज. सिमोन ने कई बार संपर्क करने की कोशिश की. परंतु कोई उत्तर नहीं.
‘‘गत रविवार को वह हिम्मत कर के उस स्थान पर गई जहां उस का बौयफ्रैंड अकसर शाम बिताता है. वहां उस ने उसे एक लड़की के साथ देखा. सिमोन को गुस्सा तो बहुत आया परंतु कोई हंगामा खड़ा न करने के विचार से वहां से चुपचाप चली आई. शायद बौयफ्रैंड ने उसे देख लिया था. कुछ समय बाद सिमोन के मोबाइल पर संदेश छोड़ दिया, ‘सौरी’.’’
मैं ने पूछा, ‘‘कोई स्पष्टीकरण?’’
‘‘नहीं. केवल यह कि वह लड़की उस की रुचियों को ज्यादा अच्छी तरह समझती है. शशि, मुझे तब से लगातार ऐसा महसूस हो रहा है कि सिमोन नहीं, मैं अपने लिए जीवनसाथी ढूंढ़ने में असफल हो गई हूं.’’
मेरे अपने परिवार में भी अपनी पुत्री शिवानी के लिए वर ढूंढ़ने की प्रक्रिया जोरशोर से चल रही थी. मैं भी जूली को हर छोटीबड़ी घटना की जानकारी देती रहती थी. किस तरह हम विज्ञापनों में से कुछ नाम चुनते, उन के परिवारों से संपर्क करते और आशा करते कि इस बार बात बन जाए. किस तरह ऐसे परिवारों में से कुछ से 4-5 की टोली हमारे घर आती.
कुछ परिवार लड़कालड़की को सीधा संपर्क करने की सलाह देते. मैं सोचती कि चाहे संपर्क सीधा करें या परिवार के साथ आएं, बात तो आगे बढ़ाएं.
आशानिराशा के हिंडोले में महीनों तक झूलने के बाद, जब आखिरकार शिवानी की स्वीकृति से एक परिवार में उस का संबंध होना निश्चित हो गया तो मेरी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा. मैं ने जूली को भी यह शुभ समाचार सुनाया. वह प्रसन्न हो कर बोली, ‘‘बधाई. मैं शिवानी के विवाह में अवश्य सम्मिलित होऊंगी. और याद रहे, मैं तुम्हारी परंपराओं से बहुत प्रभावित हूं. उन के बारे में अधिक से अधिक जानना चाहती हूं. इसलिए तुम मुझे विवाह के सभी छोटेबड़े कार्यक्रमों के लिए निमंत्रित करती रहना.’’
विवाह के कार्यक्रमों की शृंखला में एक था भात. उस दिन मेरे भाई और भाभी सपरिवार भात ले कर आए थे. मेरी सूचना के आधार पर जूली सुबह से ही हमारे घर आ गई थी. मेरे हर काम में वह साथ रही. वह सबकुछ देखनासमझना चाहती थी. जब भातइयों की टोली को हमारे घर के दरवाजे पर रोक दिया गया तो जूली आश्चर्यचकित उत्सुकता के साथ मुझ से आ सटी थी. उस ने देखा कि किस प्रकार भातइयों को एक पटरे पर खड़ा कर के बारीबारी से उन की आरती उतारी गई और किस प्रकार भात की सामग्री भेंट की गई. उस में वस्त्र, आभूषण और मिठाइयां व अन्य उपहार सम्मिलित थे. अवसर मिलने पर मैं ने जूली को बताया, ‘‘इसी प्रकार बेटी के पिता के भाईबहनों की ओर से भी उपहार आएंगे. ये परंपराएं सभी को साथ ले कर चलने की भावना से विकसित हुई हैं. वृहत परिवार की प्रतिभागिता का एक परिष्कृत रूप तो है ही, साथ में विवाह पर होने वाले खर्चों को बांटने का अनूठा तरीका भी है. दादादादी, नानानानी, चाचाचाची, मामामामी, फूफाफूफी सभी खर्च के बोझ को बांटने के काम में उत्साह के साथ भाग लेते हैं,’’ मेरे इस स्पष्टीकरण से जूली बहुत प्रभावित हुई थी.
लेखक- रवि प्रकाश
आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, सोहांव, बलिया के अध्यक्ष, प्रोफैसर रवि प्रकाश मौर्य ने धान की खेती करने वाले किसानों को अभी से कंडुआ रोग से सावधान रहने की सलाह दी है.
उन्होंने बताया कि पौधे से बाली निकलने के समय धान पर कंडुआ रोग का असर बढ़ने लगता है. इस रोग के कारण धान के उत्पादन पर बुरा असर पड़ने की संभावना बनी रहती है.
धान की बालियों पर होने वाले रोग को आम बोलचाल की भाषा में लेढ़ा रोग, बाली का पीला रोग से किसान जानते हैं. वैसे, अंगरेजी में इस रोग को फाल्स स्मट और हिंदी में मिथ्या कंडुआ रोग के नाम से जाना जाता है.
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यह रोग अक्तूबर माह के मध्य से नवंबर माह तक धान की अधिक उपज देने वाली प्रजातियों में आता है. परंतु मौसम में बदलाव के कारण पूर्वांचल के कई जनपदों में अभी से यह रोग बालियों में देखा जा रहा है. जब वातावरण में काफी नमी होती है, तब इस रोग का प्रकोप अधिक होता है. धान की बालियों के निकलने पर इस रोग के लक्षण दिखाई देने लगते हैं. रोग ग्रसित धान का चावल खाने पर स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. प्रभावित दानों के अंदर रोगजनक फफूंद अंडाशय को एक बड़े कटु रूप में बदल देता है, बाद में जैतूनी हरे रंग के हो जाते है.
इस रोग के प्रकोप से दाने कम बनते हैं और उपज में 10 से 25 प्रतिशत की कमी आ जाती है. मिथ्या कंडुआ रोग से बचने के लिए नियमित खेत की निगरानी करते रहें. यूरिया की मात्रा आवश्यकता से अधिक न डालें.
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इस के बाद भी खेत में रोग के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत कार्बंडाजिम 50 डब्लूपी 200 ग्राम अथवा प्रोपिकोनाजोल-25 डब्ल्यूपी 200 ग्राम को 200 लिटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करने से रोग से नजात मिलेगी. बहुत ज्यादा रोग फैल गया हो, तो रसायन का छिड़काव न करें. कोई फायदा नहीं होगा. रोग वाले बीज को अगली बार प्रयोग न करे.
त्योहार के मौसम में कई बार आपको घर पर बनाकर मीठा खाने का मन करता है. ऐसे में आपको बताने जा रहे हैं कच्चे पपीते का हलवा बनाना.
सामग्री−
तीन कप कच्चा पपीता कद्दूकस किया हुआ
येलो फूड कलर आप्शनल
पिस्ता व बादाम गार्निशिंग के लिए
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आधा कप खोया
चीनी एक कप
दो टेबलस्पून घी
विधि−
–पपीते का हलवा बनाने के लिए पहले आप पैन में घी डालकर गर्म करें. जब यह गर्म हो जाए तो मीडियम फ्लेम पर इसमें कद्दूकस किया हुआ पपीता डालकर करीबन दस मिनट के लिए चलाते हुए पकाएं.
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-जब पपीता थोड़ा साफ्ट हो जाए तो इसमें चीनी व खोया डालकर मिलाएं. आप चाहें तो इस समय इलायची पाउडर या केवड़ा एसेंस भी मिला सकते हैं. यह पूरी तरह आपके टेस्ट पर निर्भर है.
-जब चीनी मेल्ट होने लगे तो इसमें फूड कलर मिलाएं. यह भी पूरी तरह ऑप्शनल है. अगर आप चाहें तो इसे स्किप भी कर सकते हैं. कुछ देर में आपका हलवा बनकर तैयार हो जाएगा. इसके बाद गैस को बंद करें और इसमें बारीक कटे बादाम, काजू और पिस्ता डालें.
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-आपका टेस्टी कच्चे पपीते का हलवा बनकर तैयार है. आप इस रेसिपी को आसानी से बनाकर खा सकते हैं.
जूली से मेरी पहली मुलाकात वर्षों पहले तब हुई थी जब मैं ने इंगलैंड के एक छोटे शहर से स्थानीय जल आपूर्ति कंपनी के मरम्मत एवं देखभाल विभाग में काम करना शुरू किया था. हमारे विभाग का अध्यक्ष ऐरिक, मुझे एकएक कर के सभी कर्मियों के पास ले गया और उन से मेरा परिचय कराया. पहले परिचय में इतने नाम और चेहरे कैसे याद हो सकते थे, परंतु वह एक अनिवार्य औपचारिकता थी, जिसे ऐरिक निभा रहा था.
जब हम एक महिला के पास पहुंचे, वह दूरभाष पर किसी व्यक्ति का संदेश ले रही थी. दूसरी ओर से कोई चिल्लाए जा रहा था, और वह ‘जी हां’ और ‘हूं’ आदि से अधिक कुछ कह नहीं पा रही थी. ऐरिक और मैं थोड़ा हट कर प्रतीक्षा में खड़े हो गए थे. आखिरकार वह एकतरफा वार्त्ता समाप्त हुई.
‘‘ये हैं जूली, हमारे विभाग की मणि. ये न हों तो हम न जाने क्या करें,’’ ऐरिक ने परिचय कराया, ‘‘जूली यहां आने वाली सभी शिकायतें एकत्र करती हैं.’’
‘‘पहले तो इतनी शिकायतें नहीं आती थीं. जो आती थीं उन का समाधान ढूंढ़ना भी कठिन नहीं होता था. परंतु अब तो जैसे लोगों को शिकायत करने का शौक ही हो गया है,’’ जूली मुसकराई.
‘‘ये हैं शशि मजूमदार. आशा है मैं ने उच्चारण ठीक किया,’’ ऐरिक ने कहा, ‘‘ये आप के और इंजीनियरों की टोलियों के बीच कड़ी का काम करेंगी. आशा है आप दोनों महिलाएं एकदूसरे का काम पसंद करेंगी.’’
जूली मेरी ही तरह छोटे कद की, इकहरे बदन वाली थी. आयु में मुझ से 7-8 वर्ष अधिक थी, परंतु दूर से दिखने वाले कुछ अंतरों के बावजूद हमारी रुचियों में बहुत समानता थी. हम ने न केवल एकदूसरे को पसंद किया बल्कि शीघ्र ही मित्र भी बन गईं. यद्यपि जूली की मेज इमारत की पहली मंजिल पर थी और मैं बैठती थी तीसरी मंजिल पर, फिर भी चाहे मिनट दो मिनट के लिए ही सही, हम दिन में 1-2 बार अवश्य मिलती थीं. लंच तो सदैव ही साथ करती थीं और खूब गपें मारती थीं.
जूली दिन में प्राप्त हुई शिकायतों का सारांश तैयार कर के मेरे पास भेज देती थी. उन में से अधिकांश बिल की भरपाई या आपूर्ति काटे जाने आदि से संबंधित होती थीं, जिन्हें मैं सीधे वित्त विभाग को भेज देती थी. कुछ पत्रों का उत्तर ‘असुविधा के लिए क्षमायाचना’ होता, जिन्हें जनसंपर्क विभाग के लोग संभालते थे. शेष मरम्मत और रखरखाव की समस्याओं से जुड़े होते थे. उन्हें मैं ऐरिक के इंजीनियरों की टोलियों के पास भेज देती ताकि उपयुक्त कार्यवाही की जा सके.
बहुधा जूली शिकायत करने वालों के चटपटे किस्से सुनाती. ऐसे ही टैलीफोन पर मुआवजे के लिए गरजने वाले एक आदमी की नकल करते हुए जूली ने कहा, ‘‘पिछले 4 सालों में 2 बार बरसात का पानी मेरे घर में घुस चुका है. दोनों बार सारे कालीन खराब हुए और फर्नीचर भी बरबाद हुआ.’’
फिर जरा रुक कर उस ने आगे कहा, ‘‘अब अगर मौसम बदल जाने के कारण बरसात अधिक होने लगे तो वह बेचारा क्या करे जल आपूर्ति कंपनी से खमियाजा लेने के अतिरिक्त. घर की ड्योढ़ी 4-5 इंच ऊंची करना या बरसात होने से कुछ समय पहले रेत से भरी 3-4 बोरियां अपने दरवाजे के सामने रखना तो बड़े झंझट का काम था, जो उस की सोच से बाहर भी था.’’
‘‘बेचारा,’’ हम दोनों के मुंह से एक साथ निकला.
इसी प्रकार एक दिन जूली ने एक स्त्री की करुण गाथा सुनाई. उस दिन वाटर सप्लाई कंपनी के लोग आ कर उस के घर का पानी का कनैक्शन बंद कर गए थे. वह नाराजगी से भरी सीधी टैलीफोन पर थी, ‘मेरे परिवार में 2 छोटे बच्चे हैं, एक पति. कैसे उन का पालन करूं? आप लोग मनमानी करते हो. किसी की सुविधाअसुविधा का तनिक भी ध्यान नहीं. बस, उठे और टोंटी बंद कर डाली,’ सुबकतेसुबकते वह स्त्री मुझे संबोधित कर के बोली, ‘मिस, यदि मेरी जगह आप होतीं तो क्या करतीं?’ जूली ने मुझे बताया कि उस ने उस स्त्री से कुछ नहीं कहा. फिर बड़े नाटकीय ढंग से मेरे अति निकट आ कर बोली, ‘‘मैं अपना बिल अवश्य चुकाती और यह नौबत आने ही न देती.’’
एक व्यक्ति के गरजनेभड़कने की कथा जूली अकसर सुनाती थी. उस दिन वह बड़े उत्साह से आ कर बोली, ‘‘आज वही आदमी फिर फोन पर था. वही, जो पहाड़ी पर बने एक मकान की छठी मंजिल पर बने एक फ्लैट में रहता है. आज वह फिर भड़का, ‘गरमियां शुरू हो गई हैं और बरसात भी कई दिनों से नहीं हुई है. बताओ कि किस दिन से पानी का राशन शुरू होगा?’ मैं ने कहा, ‘श्रीमानजी, हमारी कोई नीति पानी का राशन करने की नहीं है. सूखे की स्थिति में पानी का प्रैशर घट जाने के कारण कुछ ऊंचे स्थानों में पानी घंटे दो घंटे के लिए नहीं पहुंच पाता. लेकिन बताइए कि क्या पानी आज भी बंद है?’ उस ने कहा कि आज तो बंद नहीं है. इस पर मैं थोड़ा झुंझला गई और मैं ने कहा, ‘तो आज क्यों फोन कर रहे हो?’ उस ने तुरंत फोन रख दिया.’’
मैं ने जूली को सलाह दी, ‘‘यदि वह व्यक्ति दोबारा फोन करे तो उस से कहना कि उस के लिए यह अच्छा है कि वह इस शहर में रहता है. यदि वह भारत जैसे देश के किसी शहर में जा कर एक पहाड़ी पर बने मकान की ऊंची मंजिल में फ्लैट ले कर रहे तो जितने समय यहां पानी नहीं आता उतने समय आए पानी से उसे काम चलाना पड़ेगा.’’
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में महिलाएं अपनी सेहत के प्रति लापरवाह होती जा रही हैं. इस से घर और कैरियर दोनों के बीच तालमेल बैठाए रखना उन के लिए चुनौती बनता जा रहा है. सेहत का ध्यान न रखने की वजह से महिलाएं कम उम्र में ही कई बीमारियों की शिकार हो जाती हैं, जिन्हें लाइफस्टाइल डिसऔर्डर बीमारियां भी कहा जा सकता है. इस के बारे में मुंबई के फोर्टिस हौस्पिटल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञा डा. वंदना सिन्हा बताती हैं कि बीमारियां कभी भी अचानक नहीं होतीं. उन का अलार्म तो पहले ही बज चुका होता है, जिसे महिलाएं नजरअंदाज करती रहती हैं. ये बीमारियां तो दरअसल युवावस्था से ही शुरू हो जाती हैं. महिलाओं के बदले लाइफस्टाइल की वजह से उन का मोटापा भी खूब बढ़ा है, जिस की वजहें जंक फूड का अत्यधिक सेवन, समय से भोजन न करना, डाइटिंग करना आदि हैं. इन से हारमोनल बैलेंस बिगड़ता है.
आजकल करीब 40% महिलाओं में पौलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम भी पाया जाता है. इस में ओवरीज ठीक से काम नहीं करतीं और हारमोनल संतुलन बिगड़ता है, जिस से चेहरे और बौडी पर अधिक हेयर ग्रो होने लगता है. त्वचा रफ हो जाती है और ऐक्ने का प्रभाव दिखता है. एक सर्वे के मुताबिक, आज के दौर में 75% महिलाओं का कोई न कोई लाइफस्टाइल डिसऔर्डर है. इस से 42% को पीठ दर्द, मोटापा, डिप्रैशन, डायबिटीज, हाइपरटैंशन की शिकायत है. ऐसा न हो इस के लिए लड़कियों को किशोरावस्था से ही लाइफस्टाइल में परिवर्तन करना आवश्यक है, जिस के लिए सही व्यायाम, सही डाइट, मोटापे को न बढ़ने देना आदि सभी विषयों पर मातापिता को ध्यान देना आवश्यक है, क्योंकि ये आदतें ऐसी हैं, जिन्हें उन्हें कम उम्र से ही अभ्यास में लाना जरूरी है.
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कम उम्र में दिल का दौरा
डा. वंदना बताती हैं कि दिल की बीमारी का खतरा भी महिलाओं में तेजी से बढ़ रहा है. आजकल 24-25 साल की उम्र में भी लड़कियों को दिल का दौरा पड़ जाता है, जो चिंता का विषय है. अगर लड़कियां ओवरवेट हैं, तो वे पतला होने के लिए खाना छोड़ देती हैं. तब जरूरत से कम खाना खाने पर वे ऐनीमिया और हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होने से बारबार इन्फैक्शन की शिकार होती हैं. इस के अलावा जब लड़कियों का स्वास्थ्य खराब रहने लगता है, तो वे मानसिक बीमारी की शिकार हो जाती हैं, जिस में डिप्रैशन, सुसाइडल टैंडैंसी आदि प्रमुख हैं. दरअसल, इस उम्र में पीयर प्रैशर अधिक होता है, जिस से बौयफ्रैंड या रिलेशनशिप न होने पर वे अपनेआप को कमतर समझना आदि को अपने अंदर पाल लेती हैं. क्या सही क्या गलत है यह समझना उन के लिए मुश्किल हो जाता है, तो वे दोस्तों की संगत में जाती हैं, जहां सही राय नहीं मिल पाती. ऐसे में मातापिता ही उन्हें सही दिशानिर्देश दे सकते हैं. युवावस्था में स्ट्रैस लैवल बढ़ने की वजह से नींद में कमी आती है, जिसे स्लीपिंग डिसऔर्डर कहते हैं. आजकल की लड़कियों में स्मोकिंग, ड्रिंकिंग की आदत भी बढ़ चुकी है, जो उन के लिए खतरनाक है.
विटामिन डी की कमी
विटामिन डी की कमी भी आजकल की युवतियों और महिलाओं में कौमन है. डा. वंदना का कहना है कि इस से महिलाओं में मैंस्ट्रुअल समस्या बढ़ रही है और शहरी क्षेत्रों में इस की संख्या अधिक है. विटामिन डी की कमी से महिलाओं को और भी कई गंभीर बीमारियों की शुरुआत हो जाती है. मसलन इम्यूनिटी का कम हो जाना, इनफर्टिलिटी का बढ़ना, मधुमेह की बीमारी, पीरियड की अनियमितता, स्तन कैंसर आदि. ओवरी के सही फंक्शन के लिए विटामिन डी जरूरी है. अत्यधिक दर्द के साथ पीरियड होने पर ऐंड्रोमैट्रियौसिस का खतरा रहता है, जिस में ओवरी में सिस्ट बन जाता है, जिस से आगे चल कर इनफर्टिलिटी बढ़ती है. यह समस्या आजकल 15 से 25 वर्ष की लड़कियों में अधिक देखने को मिल रही है, जो विटामिन डी की कमी की वजह से हो रही है. ये सभी बीमारियां लाइफस्टाइल की वजह से हैं, जिस का परिणाम स्ट्रैस है. विटामिन डी पूरे शरीर के लिए जरूरी है. यह हमारे शरीर में कैल्सियम के स्तर को नियंत्रित करता है.
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संक्रमण का खतरा
सक्रमण की बीमारी भी आजकल महिलाओं में अधिक है. आजकल के युवा कम उम्र में अनप्रोटैक्टेड सैक्स में लिप्त होते हैं, तो उन के मल्टीपल सैक्सुअल पार्टनर्स भी होते हैं. ऐसे में हाइजीन पर ध्यान न देने से वे इन्फैक्शन के शिकार हो जाते हैं. जबकि पर्सनल हाइजीन पर अधिक ध्यान देना आवश्यक है. महिलाएं आजकल जेनाइटल ट्यूबरकुलोसिस की शिकार भी हो रही हैं. इस बीमारी की जब तक सही जांच न हो पता नहीं चलता. इस बीमारी के तहत वे मां नहीं बन पातीं. अगर गर्भधारण करती भी हैं, तो बच्चा पूरे 9 महीने नहीं ठहरता. बायोप्सी से इस का पता चलता है. कई जगह पर तो इस की जांच भी संभव नहीं होती. लाइफस्टाइल से जुड़ी सब से खतरनाक बीमारी हार्ट डिजीज है. अधिकतर महिलाएं शहरों में कामकाजी हैं. उन के खाने में फैट अधिक होता है और वे व्यायाम नहीं करतीं, इसलिए उन का कोलैस्ट्रौल लैवल बढ़ जाता है. इस से कम उम्र में ही हाई ब्लडप्रैशर, डायबिटीज, थायराइड आदि सब दिखने लगता है. डा. वंदना कहती हैं कि पहले जो बीमारी 45 वर्ष के बाद दिखती थी अब 27-28 साल की उम्र में ही दिखने लगी है. कामकाजी महिलाओं में स्ट्रैस लैवल काफी बढ़ चुका है.
मेनोपौज के बाद बीमारी बढ़ने की वजह कम उम्र में अपना ध्यान न रखना है. कुछ बीमारियां आनुवंशिक होती हैं. पर अधिकतर हमारे लाइफस्टाइल की वजह से ही होती हैं. मैटाबौलिज्म ठीक न रहने की वजह से रोगप्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. इस से बीमारियां दिनोंदिन बढ़ती जाती हैं. अगर शुरू से ही कुछ खास बातों पर ध्यान दिया जाए तो इन बीमारियों से काफी हद तक बचा जा सकता है. डा. वंदना के अनुसार, इस के लिए कुछ टिप्स निम्न हैं:
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– 30 मिनट फिजिकल ऐक्टिविटी हर दिन करें.
– 10 मिनट ब्रीदिंग ऐक्सरसाइज अवश्य करें. सुबह 5 मिनट शाम को 5 मिनट.
– रोज 10 से 15 गिलास पानी अवश्य पीएं.
– शुगर वाले खाद्यपदार्थ कम खाएं, प्रोटीन अधिक लें.
– फाइबर, कार्बोहाइड्रेट और कौंप्लैक्स कार्बोहाइड्रेट को डाइट में जरूर शामिल करें. फैट को कम से कम लें.
– चाय, कौफी अधिक न पीएं. ग्रीन टी का सेवन करें, जो स्वास्थ्य के लिए अच्छी है.
– स्ट्रैस लैवल कम करने के लिए अपने लिए समय निकालें. अपनी मनपसंद की किताबें व पत्रिकाएं पढ़ें और मूवी आदि देखें, जिस से आप को खुशी मिले.
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– सर्वाइकल कैंसर का वैक्सिन 11-12 साल की उम्र में अवश्य लगवाएं.
मोटापे को बढ़ने से रोकना बेहद जरूरी है. अगर यह समस्या आनुवंशिक है, तो डाक्टर की सलाह के आधार पर दिनचर्या बनाएं और फिट रहें.
भारत दुनिया में प्याज का दूसरा सब से बड़ा उत्पादक है. प्याज सब्जी व मसाले की खास फसल है. इसे अकेले या दूसरी सब्जियों के साथ मिला कर खाया जाता है. प्याज का जमीन के अंदर का भाग व पत्तियां खाने में इस्तेमाल की जाती हैं. सब्जी बनाने में व सलाद के अलावा इस के औषधीय गुण के कारण इस का अपना अलग महत्त्व है. प्याज में कार्बोहाइड्रेट के साथसाथ कई प्रकार के तत्त्व जैसे सल्फर, कैल्शियम, प्रोटीन व विटामिन सी आदि काफी मात्रा में पाए जाते हैं.
भारत में उगाई जाने वाली सब्जियों में प्याज सब से ज्यादा पसंद किया जाता है. भारत में प्याज की खेती करीब 4.8 लाख हेक्टेयर रकबे में की जाती है. जून 2016 में इस की फसल का 2.1 करोड़ टन का रिकार्ड उत्पादन हुआ. मध्य प्रदेश भारत का सब से बड़ा प्याज उत्पादक प्रदेश है. हाल के सालों में वैज्ञानिक अपने शोध से जहां एक तरफ प्याज में नई तकनीक और संकर किस्मों को विकसित कर के उत्पादन बढ़ाने में लगे हैं, वहीं किसान खेती के नए तरीके अपना कर ज्यादा उत्पादन लेने की कोशिश में हैं.
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मिट्टी व जलवायु
प्याज की खेती के लिए बलुई दोमट व चिकनी दोमट मिट्टी होने के साथ अच्छा जल निकास भी होना चाहिए. मिट्टी का पीएच मान 6.5-7.5 अच्छा रहता है. जब तापमान 12-22 डिगरी सेल्सियस होता है, उस दौरान पौधे की बढ़वार होती है. लेकिन 20 से 21 डिगरी सेल्सियस बल्ब बनने के लिए और 30 से 35 डिगरी सेल्सियस तापमान फसल पकने के लिए ठीक माना जाता है.
उन्नत किस्में : प्याज की कुछ उन्नत किस्में हैं अर्का निकेतन, अर्का बिंदु, अर्का प्रगति, पूसा रेड, पूसा रत्नार, पूसा माधवी, पूसा व्हाइट, फ्लैट एग्रीफाउंड, डार्करेड, एन 53, निफाद 53, हिसार 2, पंजाब सिलेक्शन,
पंजाब रेडराउंड, कल्याणपुर रेडराउंड व उदयपुर 102 वगैरह.
हाइब्रिड प्रजातियां : अर्का कीर्तिमान, अर्का लालिमा व अर्का पीतांबर वगैरह.
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रोपाई
रबी मौसम में बोई जाने वाली प्याज की नर्सरी अक्तूबरनवंबर में डालते हैं और पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च से जून के महीने में यह काम करते हैं. बीजों को पूरी तरह से तैयार नर्सरी में डालते हैं. नर्सरी में तैयार पौधों को लगाने के लिए खेत को छोटेछोटे टुकड़ों में बांट लेना चाहिए और उस के बाद पौधों को रोपना चाहिए. लाइन और पौधे के बीच की दूरी कम से कम 8 से 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. इस से खरपतवार निकालने व सिंचाई में आसानी होती है. बीजों को बोने से पहले थायरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम या बाविस्टीन 2 से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.
बीज की दर
प्याज की फसल के लिए नर्सरी तैयार करने के लिए 7 से 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत होती है.
पौध तैयार करना
पौधशाला के लिए चुनी हुई जगह की पहले जुताई करें. इस के बाद उस में सही मात्रा में गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट डालना चाहिए. पौधशाला का आकार 3 मीटर × 0.75 मीटर रखा जाता है और 2 क्यारियों के बीच 60 से 70 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है, जिस से खेती के काम आसानी से किए जा सकें. खेत के 1/20 भाग में नर्सरी तैयार की जानी चाहिए.
पौधशाला के लिए रेतीली दोमट मिट्टी मुनासिब रहती है. पौध शैय्या में बीजों को 2 से 3 सेंटीमीटर मोटी छनी हुई महीन मिट्टी व सड़ी गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद से ढक देना चाहिए. बोआई से पहले शैय्या को 250 गेज की पालीथीन से ढक कर सूरज की गरमी से उपचारित कर लें. बीजों को हमेशा लाइनों में बोना चाहिए. इस के बाद क्यारियों पर कंपोस्ट व सूखी घास की पलवार बिछा देते हैं. इस प्रकार 45 से 55 दिनों के तैयार पौधे पहले से तैयार खेत में रोप देने चाहिए.
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खेत की तैयारी : खेत में मिट्टी पलटने वाले हल से 1 बार जुताई कर के 3 से 5 जुताइयां देशी हल से करने के बाद खेत को समतल व भुरभुरा बना लेना चाहिए. खेत की आखिरी जुताई के दौरान 20 टन सड़ी गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट को खेत में मिला देना चाहिए.
खाद की मात्रा : प्याज के सफल उत्पादन के लिए खाद व उर्वरकों की ज्यादा मात्रा की जरूरत होती है. फसल में खाद व उर्वरक का इस्तेमाल जांच के आधार पर ही करना चाहिए. गोबर की सड़ी खाद 20 से 25 टन बोआई व रोपाई से 1 या 2 महीने पहले खेत में डालनी चाहिए. इस के अलावा 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस व 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगती है. 50 किलोग्राम नाइट्रोजन और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत में पौध लगाने से पहले छिड़काव कर के देनी चाहिए और 50 किलोग्राम बची नाइट्रोजन का रोपाई के 30 से 45 दिनों बाद खेत में छिड़काव करना चाहिए.
सिंचाई : रोपाई के एकदम बाद खेत में हलकी सिंचाई देनी चाहिए और रोपाई के तीसरे दिन अच्छी व गहरी सिंचाई करनी चाहिए और यदि मिट्टी में पानी सोखने की अच्छी कूवत हो तो 15 दिनों के अंतर पर खेत में पानी लगाते रहना चाहिए. इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शल्क कंद बनने के समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए.
खरपतवारों की रोकथाम : प्याज एक शाकीय फसल है, इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि कम से कम रसायनों का इस्तेमाल किया जाए, लिहाजा खरपतवारों को निराईगुड़ाई कर के खेत से निकाल देना चाहिए. फिर भी बेहद जरूरी होने पर तालिका में बताई गई रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल करना चाहिए.
खुदाई व देखभाल : रोपाई के 3 से 5 महीने बाद फसल खुदाई लायक हो जाती है. खुदाई के 10 से 15 दिनों पहले खेत में सिंचाई बंद कर देनी चाहिए. फिर खुरपी या कुदाल से खुदाई करनी चाहिए. उस के बाद 3 से 4 दिनों के लिए प्याज को छायादार जगह पर सुखाने के बाद उस का तना 2 सेंटीमीटर ऊपर से काट कर हटा देना चाहिए.
उत्पादन : बढि़या देखरेख के बाद अच्छी फसल से 30 से 45 टन प्याज प्रति हेक्टेयर मिल जाता है. उत्पादन प्रजातियों व देखरेख के अनुसार कम भी हो सकता है.
भंडारण : प्याज के भंडारण के लिए हवादार व छायादार जगह के साथसाथ सूखी जगह का होना जरूरी है. भंडारण के लिए अंधेरा कमरा भी ठीक रहता है. भंडारित प्याज को समयसमय पर पलटते रहना चाहिए और खराब व सड़े प्याज को तुरंत निकाल कर बाहर कर देना चाहिए. मुमकिन हो तो मैलिक हाईड्राजाइड 2000 से 2500 पीपीएम का छिड़काव कर देना चाहिए. इस से प्याज की सड़न व गलन को कम किया जा सकता है.
प्याज के खास कीट
प्याज का मैगट : इस कीट की मादा पौधों की जड़ों के आसपास जमीन में अंडे देती है, जो 2-7 दिनों में फूट जाते हैं. अंडों से निकलने वाले मैगट पत्तियों के डंठलों से होते हुए जमीन में जा कर पौधों के शल्क कंदों के मुलायम तंतुओं को खाते हैं, इस से पौधे पीले पड़ कर सूखने लगते हैं.
रोकथाम : रोगी खेत में काटाप हाइड्रोक्लोराइड 4जी की 10 किलोग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन पर बिखेर कर सिंचाई कर दें. बढ़ते हुए पौधों पर मिथोमिल 40 एसपी की 1.0 किलोग्राम मात्रा या ट्रायजोफास 40 ईसी की 750 मिलीलीटर मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने पर नए निकले हुए मैगट मर जाते हैं. रसाद कीट : इस कीट के बड़े व बच्चे दोनों ही पौधों की पत्तियों को खुरच कर व उन का रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं, जो बाद में पीलेसफेद रंग के निशानों में बदल जाते हैं, जिस से पत्तियां चमकीली सफेद दिखाई देने लगती हैं. ऐसी पत्तियां बाद में ऐंठ कर व मुड़ कर सूख जाती हैं.
रोकथाम : प्याज की कीटरोधी प्रजातियां उगानी चाहिए. कीड़ों के ज्यादा प्रकोप की दशा में 150 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल को 500-600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
तंबाकू की इल्ली : इस कीट की मादा पत्तियों की निचली सतह पर 250-300 अंडे समूहों में देती है. ये अंडे भूरे बालों से ढके रहते हैं और इन में से 3 से 5 दिनों में पीलापन लिए गहरे भूरे रंग की इल्लियां निकल कर प्याज की पत्तियों को खा कर नुकसान पहुंचाती हैं. इस का प्रकोप होने पर पूरा पौधा मर जाता है. कभीकभी यह कीट 50-60 फीसदी तक नुकसान पहुंचाता है.
रोकथाम : प्रकाश ट्रैप को लगा कर बड़े कीड़ों को पकड़ कर खत्म कर देना चाहिए. ज्यादा कीड़ों की दशा में इंडोक्साकार्ब 14.5 एसपी की 500 मिलीलीटर मात्रा या लैम्डा सायहेलोथ्रिन 50 ईसी की 300 मिलीलीटर मात्रा का 500 से 600 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
चने का कटुआ कीट : मादा अक्तूबर महीने से पत्तियों की निचली सतहों, तनों और गीली मिट्टी में अंडे देना शुरू कर देती है. ये दिन के समय खेत में ढेलों में छिपी रहती है और रात में नुकसान पहुंचाती है. इल्लियां जितना खाती हैं, उस से ज्यादा काटकाट कर बरबाद करती हैं.
रोकथाम : मिथाइल पैराथियान 5 फीसदी धूल का 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए. कीट का ज्यादा प्रकोप होने पर अल्कामेथ्रिन 10 ईसी की 250 मिलीलीटर मात्रा का 500-600 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
मूंगफली का कर्ण कीट : इस कीट की मादा 21 से 139 तक अंडे देती है, जो 7-10 दिनों में फूट जाते हैं. इस कीट के बच्चे व बड़े दोनों ही अपने कुतरने व चुभाने वाले अंगों से पत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं.
रोकथाम : खेत में पौधों की रोपाई से पहले 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिथाइल पैराथियान 2 फीसदी धूल डालने से इस कीड़े के प्रकोप को कम किया जा सकता है.
मटर का पर्ण सुरंग कीड़ा : मादा मक्खी पत्तियों के तंतुओं में छेद बना कर अंडे देती है. ये अंडे 3-4 दिनों फूट जाते हैं और उन से मैगट निकाल कर पत्तियों के ऊपरी सिरे की ओर से सुरंग बना कर उस के हरे उतकों को खा कर नुकसान पहुंचाते हैं, जिस से पत्तियां सूख जाती हैं. बाद में इस का प्रकोप पत्तियों के निचले भाग पर होता है. इस के असर से पत्तियां टेढ़ी दिखाई देने लगती हैं.
रोकथाम : सूखी हुई जमीन पर इस का प्रकोप ज्यादा होता है, इसलिए समय से पानी देना चाहिए. लैम्डा सायहेलोथ्रिन 5 ईसी की 300 मिलीलीटर मात्रा या फेंथोएट 50 ईसी की 1.0 लीटर मात्रा का 500 से 600 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
प्याज के खास रोग
आर्द्रपतन रोग : इस रोग से प्याज के पौधे को काफी नुकसान होता है. बीज का जमाव न होना, जमाव के बाद जमीन के अंदर के हिस्से का गल जाना, पौधशाला में बीज डालने के बाद जमाव कम होना आदि इस
रोग की खास पहचान हैं. रोगी बीज काफी मुलायम हो जाता है और दबाने पर आसानी से फट जाता है. उगते हुए पौधे जमीन की सतह के पास ही टूट कर नीचे गिर जाते हैं. जड़ें सड़ जाती हैं.
रोकथाम : पौधशाला में बोआई से पहले बीजों को कार्बंडाजिम की 2.5 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित करना चाहिए. टाइकोडर्मा की 125 ग्राम मात्रा को गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद में मिला कर 200 वर्गमीटर रकबे की दर से पौधशाला को शोधित कर लें.
बैगनी धब्बा : इस रोग से पत्तियों के बीच का भाग बैगनी रंग का हो जाता है. यदि आप उसे हाथों से छुएं तो काले रंग का चूर्ण हाथ में चिपका हुआ दिखाई देता है. रोगी पत्तियां झुलस कर गिर जाती हैं. प्याज के बीज तने पर रोग लगने के कारण रोगी जगह से टूट कर गिर जाते हैं. रोगी पौधों में यदि बीज बन गए तो सिकुड़े हुए होते हैं. रोगी पौधों के कंद सड़ने लगते हैं. रोकथाम : 2 से 3 साल का सही फसल चक्र अपनाएं. रोग की पहचान दिखाई देते ही मैंकोजेब की 2.0 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर 2 बार छिड़काव करें.
मृदुरोमिल आसिता : इस से पत्तियों पर अंडे के आकार से ले कर आयताकार दाग दिखाई पड़ते हैं. ये दाग समान दशाओं में पत्तियों के करीब अगले आधे भाग पर सफेद कोहरे की तरह छा जाते हैं. पत्तियां पीली हो कर मुरझा जाती हैं. रोग की उग्र दशा में पौधे बौने, बेआकार और पीले हो जाते हैं.
रोकथाम : फसल की अगेती प्रजातियों का चुनाव करें. रोग की पहचान दिखाई देते ही फसल पर मैंकोजेब 0.25 फीसदी या थीरम 0.1 फीसदी या कैप्टाफाल 0.1 फीसदी का घोल बना कर छिड़काव करें.
कंडुआ : इस रोग के कारण पत्तियों और बीजपत्रों में काले रंग के भरे हुए दाग बनते हैं. रोगी पत्तियां नीचे की तरफ मुड़ जाती हैं. पुराने पौधों पर शल्कों के नीचे के भाग पर भारी संख्या में उठे हुए फफोले दिखाई पड़ते हैं. इन धब्बों के फटने पर काले रंग का चूर्ण निकलता है. रोगी पौधे 3-4 हफ्ते बाद मर जाते हैं.
रोकथाम : ऐसे पौधों को देखते ही पालीथीन की थैली से ढक कर सावधानीपूर्वक उखाड़ कर मिट्टी में दबा दें. बीजों को बोने से पहले विटावैक्स 2.5 ग्राम या टेबूकोनाजोल 1.0 ग्राम से प्रति किलोग्राम की दर से शोधित करें. ठ्ठ
प्याज में खरपतवारों की रोकथाम
दवा मात्रा किलोग्राम व्यावसायिक उत्पाद दर दवा के छिड़काव का समय प्रति हेक्टेयर उत्पाद प्रति हेक्टेयर
फ्लूक्लोरेलीन 1.0 बसाली 45 ईसी 2.2 लीटर रोपाई के 2 से 3 दिनों पहले छिड़काव कर के मिट्टी में मिलाएं. उस के बाद इन फसलों की रोपाई कर के हलकी सिंचाई करें.
पैंडीमिथेलीन 1.0 स्टांप 30 ईसी 3.3 लीटर इन फसलों की रोपाई से पहले छिड़काव करें. उस के बाद पौध लगा कर हलकी सिंचाई करें.
आक्सीफ्लोरफैन 0.25 गोल 25 ईसी 1.0 लीटर इन फसलों की रोपाई से पहले छिड़काव करें. उस के बाद पौध लगा कर हलकी सिंचाई करें.
एकता कपूर का सुपरनैचुरल शो ‘नागिन 5’ में आएं दिन कुछ न कुछ नया ड्रामा दिखने को मिलता है. कुछ समय पहले ही शरद मल्होत्रा ने इस बात की जानकारी दी थी की उन्हें कोरोना हो गया है और वह कुछ दिनों तक खुद को सेल्फ कोरेंटाइन रखे हुए हैं.
वहीं फैंस शरद मल्होत्रा की वापसी का इंतजार कर रहे थें. अब खबर आ रही है कि शरद मल्होत्रा की कोरोना रिपोर्ट निगेटीव आ चुकी है. जिसके बाद से वह शो पर वापसी कर सकते हैं. तो अब फैंस को ज्यादा देर तक इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है. वह अपने जल्द ही शो में वापस कर सकते हैं.
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शरद मल्होत्रा ने शो में अपनी टीम के साथ वापसी कर सकते हैं. इस बात का खुलासा खुद शरद मल्होत्रा ने किया है. उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक अलग तस्वीर को साझा किया है. जिसमें उनके लुक को फैंस बहुत ज्यादा पसंद करते हैं.
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इस तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा है कि वीर मैं तुमसे जल्द ही मिलने आ रहा हूं. इस तस्वीर को देखने के बाद फैंस खुशी से झूमने लगे हैं.
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इस तस्वीर के बाद सोशल मीडिया पर शरद इज बैक के नारे लग रहे हैं और वेलकम बैक शरद के नारे लगा रहा है.
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कुछ फैंस कह रहे हैं कि हमें इंतजार है वीर की वापसी का. स्वागत है आपका.