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मन का मीत-भाग 2 : हर्ष के मोहपाश में कैसे बंधती गई तान्या

मेरी मम्मी को मेरे अकेले मुंबई रहने में समस्या दिख रही थी. अत: वे भी मेरे साथ मुंबई आ गईं. मेरे पापा के बौस के बड़े भाई अमेरिकी नागरिक हैं. उन का बेटा अमेरिका में नौकरी करता था. उन्होंने अपने बेटे समीर के रिश्ते के लिए पापा से संपर्क किया. उन्होंने बताया कि समीर से शादी के बाद मुझे भी जल्द ही अमेरिका का ग्रीन कार्ड और नागरिकता मिल जाएगी. आननफानन में मेरी शादी हो गई. मैं अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में आ गई. फिर मुझे जल्द ही ग्रीन कार्ड भी मिल गया.

मेरे पति समीर गूगल कंपनी में काम करते थे. मुझे भी यहां नौकरी मिल गई. अमेरिका में काफी बड़ा बंगला, 4-4 महंगी गाडि़यां और अन्य सभी ऐशोआराम की सुविधाएं उपलब्ध थीं. मैं समीर की पत्नी भी बन गई और जब उस की मरजी होती उस के लिए पत्नी धर्म का पालन भी करती. पर मर्दों के प्रति जो मन में एक खौफ था बचपन से उस के चलते अकसर उदासीनता छाई रहती.

हम दोनों के विचार भी भिन्न थे. समीर शुरू से अमेरिकन संस्कृति में पलाबढ़ा था. यही कारण रहा होगा हम दोनों में असमानता का पर मैं ने महसूस किया कि आज तक उस ने कभी मुझे प्यार भरी नजरों से नहीं देखा, न ही मेरी तारीफ में कभी दो शब्द कहे. अपने साथ मुझे बाहर पार्टियों में भी वह बहुत कम ले जाता. मैं कभी कुछ कहना चाहती तो मेरी पूरी बात सुने बिना बीच में ही झिड़क देता या कभी सुन कर अनसुना कर देता. मेरी भावनाएं उस के लिए कोई माने नहीं रखतीं. काफी दिनों तक पति से हमबिस्तर होने पर भी मुझे वैसा कोई आनंद नहीं होता जैसा फिल्मों में देखती थी.

मेरे औफिस में एक नए भारतीय इंजीनियर ने जौइन किया था. पहले दिन उस का सब से परिचय हुआ, हर्षवर्धन नाम था उस का. उसे औफिस में सब हर्ष कहते थे. हम दोनों के कैबिन आमनेसामने थे. मैं ने महसूस किया कि अकसर वह मुझे देखता रहता. कभी मैं भी उस की तरफ देखने लगती. जब दोनों की नजरें मिलतीं, तो हम दोनों नजरें झुका लेते.

पर पता नहीं क्यों हर्ष का यों देखना मुझे बुरा नहीं लगता और मैं भी जब उसे देखती मन में खुशी की लहर सी उठती थी. मुझे लगता कि कोई तो है जिसे मुझ में कुछ तो दिखा होगा. अभी तक दोनों में वार्त्तालाप नहीं हुआ था. लंच टाइम में औफिस की कैंटीन में दोनों का आमनासामना भी होता, नजरें मिलतीं बस. कभी उस के चेहरे पर हलकी सी मुसकान होती जिसे देख कर मैं नजरें चुरा लेती.

इस बीच मैं प्रैगनैंट हुई. हर्ष और मैं दोनों उसी तरह से नजरें मिलाते रहे. मैं ने देखा कैंटीन

में कभीकभी उस की नजरें मेरे बेबीबंप पर जा टिकतीं तो मैं शर्म से आंखें फेर लेती या उस से दूर चली जाती. कभी बीचबीच में वह काम के सिलसिले में टूअर पर जाता तो मेरी नजरें उसे ढूंढ़तीं. कुछ दिनों बाद मैं मैटर्निटी लीव पर चली गई.

इसी बीच मैं ने फेसबुक पर हर्ष का फ्रैंडशिप रिक्वैस्ट देखा. पहले तो मुझे आश्चर्य हुआ कि न बोल न चाल और सीधे दोस्त बनना चाहता है. 2-3 दिनों तक मैं भी इसी उधेड़बुन में रही कि उस की रिक्वैस्ट स्वीकार करूं या नहीं. फिर मेरा मन भी अंदर से उसे मिस कर रहा था. अत: मैं ने उस की रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट कर ली. फौरन उस का पोस्ट आया कि थैंक्स तान्या. आई मिस यू.

मैं ने भी मी टू लिख दिया. फिलहाल मैं ने उस दिन इतने पर ही फेसबुक लौग आउट कर दिया. मैं आंखें बंद कर देर तक उस के बारे में सोचती रही.

पता नहीं क्यों आमनेसामने हर्ष को मुझ से या फिर मुझे भी हर्ष से बात करने में संकोच होता, पर मुझे अब रोज हर्ष का फेसबुक पर इंतजार रहता. मेरा पति समीर भी जानता था मेरे एफबी फ्रैंड के बारे में, पर यह एक आम बात है. कोई शक या आश्चर्य की बात नहीं है. उसे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था.

इसी बीच हर्ष ने बताया कि वह बोकारो का रहने वाला है. बीटैक करने के बाद अमेरिका एक स्टूडैंट वीजा पर आया था और मास्टर्स करने के बाद ओपीटी पर है. अमेरिका में साइंस, टैक्नोलौजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स (एसटीईएम) में स्नातकोत्तर करने पर कम से कम 12 महीने तक की औप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (ओपीटी) का अवसर दिया जाता है जिस दौरान वे नौकरी करते हैं. अगर इसी बीच किसी कंपनी द्वारा उन्हें जौब वीजा एच 1 बी मिल जाता है तब वे 3 साल के लिए और यहां नौकरी कर सकते हैं वरना वापस अपने देश जाना पड़ता है.

हर्ष और मेरे बीच फेसबुक संपर्क बना हुआ था. इसी बीच मैं ने एक बेटे को जन्म दिया. हम लोगों ने उस का नाम आदित्य रखा, पर घर में उसे आदि कहते हैं. हर्ष ने मुझे और समीर को बधाई संदेश भेजा. मेरे घर पर पार्टी हुई पर मैं हर्ष को चाह कर भी नहीं बुला सकी. औफिस कुलीग के लिए अलग से एक होटल में पार्टी दी गई. उस में हर्ष भी आमंत्रित था. उस ने आदि के लिए ‘टौएज रस’ और ‘मेसी’ दोनों स्टोर्स के 100-100 डौलर्स के गिफ्ट कार्ड दिए थे ताकि मैं अपनी पसंद के खिलौने व कपड़े आदि ले सकूं. पहली बार इस पार्टी में उस से आमनेसामने बातें हुईं.

उस ने मुझे बधाई देते हुए धीरे से कहा, ‘‘तान्या, तुम वैसे ही सुंदर हो पर प्रैगनैंसी में तो तुम्हारी सुंदरता में चार चांद लग गए थे. मैं तुम्हें मिस कर रहा हूं. औफिस कब जौइन कर रही हो?’’

घर की छत पर नर्सरी से करें खूब कमाई

भारत में प्रकृति प्रेम एक बहुत ही जानापहचाना और शौकिया काम है. यह इतना आसान है कि लोग दोचार पौधे लगा कर ही सही, पर पेड़पौधे संभालना और उन को प्यार करना जानते तो हैं ही. यह कम मेहनत वाला तो है, पर बड़ा ही लाभदायक व्यवसाय भी बन रहा है.

अकसर होता यह है कि हम लोग जगह की कमी होने पर अपने घर की छत पर ही शौकिया तौर पर बागबानी करते हैं और प्राकृतिक प्रेम से अपना मन सराबोर करते हैं. गमलों की मदद से अपने पसंदीदा फूल या सब्जियां लगाने के साथ ही और भी कई तरह के पौधे लगाते हैं.

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मगर, ऐसी ही एक महिला के साथ एक सच्ची घटना हुई और उन्होंने अपनी सुस्त और शौकिया बागबानी को तेज रफ्तार देते हुए अपनी पूरी छत को ही एक शानदार हरीभरी नर्सरी में तबदील कर दिया.

महानगर की यह महिला मीना बिलकुल ही हैरान रह गईं, जब उन की छत पर लगे गमले बहुत जल्दी उन को मुनाफा देने लगे.हुआ यों कि एक दोपहर इन के पास पड़ोस के किसी युवक ने कुछ कढ़ी पत्तों की मांग की. उदार स्वभाव के चलते वे बोलीं, ‘‘उधर छत पर गमले में पेड़ लगा है, आप जरूरत के हिसाब से खुद ही तोड़ लीजिए.’’

जब यह युवक कढ़ी पत्ता लेने छत पर गया, तो उस ने गौर किया कि वहां पर आसपास के गमले में इसी मीठे नीम यानी कढ़ी पत्ते के कुछ छोटेछोटे पौधे पनप रहे थे. युवक यह बताने उस महिला के पास दोबारा दौड़ादौड़ा गया और उचित कीमत दे कर वो छोटेछोटे कढ़ी पत्ते के पौधे खरीदने की बात करने लगा.

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तब वे महिला उस युवक के मुंह से पौधों की ऐसी शानदार कीमत देख कर  हैरान थीं. तब उस युवक ने बताया कि आप जानती नहीं कि आप के पास शानदार प्रजाति का बहुत खुशबूदार मीठा नीम यानी कढ़ी पत्ता है. इस के बीज से पनपे ये पौधे नायाब हैं. साथ ही, यह भी बताया कि कढ़ी पत्तों का इस्तेमाल नमकीन, मठरी और औषधि के तौर पर किया जाता है. इस के पत्ते काफी खुशबूदार होते हैं. इस का उपयोग पोहे, दाल, सब्जी और अनेक व्यंजनों में भी किया जाता है.

कढ़ी पत्तों की बढ़त करने के लिए बस कुछ छोटेछोटे गमले चाहिए. उस महिला ने उसी दिन से छत पर पौधों का विस्तार देना शुरू कर दिया और महज 2 महीने बाद कमाल हो गया, जब तरहतरह के पेड़पौधे खूब हो गए तो स्वाभाविक सी बात थी कि रंगबिरंगी तितलियों का झुंड वहां आने लगा. सब को खबर लग गई, तो लोग फोटोग्राफी वर्कशौप के लिए किराया दे कर कुछ घंटों के लिए छत का उपयोग करने लगे. उस महिला की तो चांदी ही चांदी थी. उस की छत उस की सुरक्षा छतरी तो थी ही, उस को एक नियमित और अच्छी आमदनी भी देने लगी थी यानी छत अब एक बैंक भी बन गई.

आज पूरी दुनिया में विश्व स्तर पर हरियाली अपनाने पर जोर दिया जा रहा है. यद्यपि, पौध उत्पादन मुख्य रूप से बीज वगैरह से अधिक होता है. लेकिन कुछ सैक्यूलैंट पौधे बहुत ही कम लागत में भी मनपसंद कमाई कराने में अहम योगदान देते हैं.

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कुछ सजावटी पौधे समयसमय पर आयोजित होने वाली प्रदर्शनी में फटाफट बिक जाते हैं. इन को विकसित करना बहुत ही सस्ता, सुंदर व टिकाऊ भी है. इन का एक तना मिट्टी में रोप दीजिए और कुछ ही दिनों में यह लहलहाने लगता है.

कोई भी व्यक्ति नर्सरी का कारोबार शुरू कर सकता है. हालांकि, इस कारोबार को शुरू करने से पहले उचित योजना और प्रबंधन की आवश्यकता होती है. पर, पैसा और मेहनत बाकी कामों की तुलना में ज्यादा नहीं चाहिए.वैसे, एक बात और कि नर्सरी के काम में मेहनत जितनी अधिक की जाए, उतना ही मुनाफे में निखार आता है.

तो चलिए जानते हैं कि कैसे शुरू करें घर की छत पर नर्सरी :-

सब से पहला काम है छत पर जगह को नाप कर उस के लिए उपयुक्त गमले आदि चुनना.

शुरू में खाली बोतलें, गत्ते के बड़े डब्बे, मटके वगैरह में पौधे विकसित कर के उन को अच्छे गमलों में लगा कर बेचा जा सकता है.

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नर्सरी बनाने के लिए मुख्य और सब से अहम बात एक उपयुक्त व्यवस्था का चयन करना है.

कहने का मतलब यह है कि कम जगह पर अधिक पौधे आ जाएं और ऐसी व्यवस्था हो कि बड़े गमलों में सागसब्जी के बीज डाल कर पौध विकसित हो जाएं. ऐसा तकरीबन सभी नर्सरी वाले करते हैं.

मिसाल के तौर पर, बड़े से ड्रम में अगर क्रौटन के तने रोप दिए हैं, तो उन में धनिया, सौंफ, अजवायन आदि के बीज डाल कर पैदावार ले सकते हैं. यह रूम फ्रेशनर के तौर पर खूब बिकते हैं. यह इस व्यवसाय का सब से जरूरी या बेसिक हिस्सा है कि अच्छी कमाई उत्पादन के लिए, यदि आप के पास अपनी खुद की सूझबूझ है तो बेहतर होगा कि आप हर समय अपनी सोच के हिसाब से प्रयोग करते रहें. अब आप की विशेषता उन पौधों की प्रजाति पर निर्भर करती है, जिन्हें आप उगाना चाहते हैं. नर्सरी के लिए पौधे चुनते समय कुछ बातों का खास ध्यान रखें –

पहले-पहले किसी ऐसे थोक विक्रेता के पास जाएं, जो मामूली कीमत पर आप को अधिक से अधिक पौधे दे दे. साथ ही, आप को राय भी दे. थोक विक्रेता कई एकड़ की जमीन पर कारोबार करते हैं तो यह छोटे उद्यमी के लिए कई बार बहुत मददगार साबित होते हैं.

मिसाल के तौर पर, थोक विक्रेता से खाद और बीज आदि भी साधारण दर पर मिल जाती है. इस तरह कदम बढ़ाते हुए चलेंगे तो नर्सरी के लिए पौधे, बीज, गमले, मिट्टी खरीदने से ले कर सींचने तक आप को काफी खर्चा नहीं करना पड़ेगा.

सामान्य तौर पर इस काम के लिए 10,000-12,000 रुपए का निवेश ही काफी है, लेकिन आप नएनए प्रयोग करने के शौकीन हैं, तो आप अपनी सहूलियत के हिसाब से जमापूंजी का इस्तेमाल कर सकते हैं, अन्यथा आप बैंक लोन के बारे में भी विचार कर सकते हैं. वैसे, वर्तमान में बैंक भी लघु उद्यम के लिए लोन देते हैं. साथ ही, और भी अनेक योजनाओं के तहत नगरनिगम, ग्राम पंचायत व कोओपरेटिव संस्थाएं लघु उद्योग के लिए कर्ज देती हैं.

सामान एकत्र करने के बाद अपने काम और योजना को लागू करना नर्सरी में सब से मुख्य काम होता है. बारबार अपने अनुकूल ग्राहक भी खोजना और इस तरफ सोचविचार कर योजना बनाना भी एक लाभदायक काम है, जिस में कुछ खर्च नहीं होता, पता लगा कर बीज लगाना, पौधे  का चयन करना और यह खोजबीन करना कि कम पानी में अधिक रहने वाले पौधे सब से ज्यादा हों, ऐसे पौधे हाथोंहाथ बिक जाते हैं.

यह उपाय अचानक ही बहुत मुनाफा दे सकता है. पिछले 5 सालों के आंकड़े यह बताते हैं कि विवाह, जन्मदिन, सेवानिवृत्ति, सम्मान समारोह, राष्ट्रीय समारोहों में नर्सरी से लाखों की संख्या में पौधे खरीदे गए, जिन में वे पौधे अधिक लिए गए, जो कम पानी मांगते हैं.

एक बार गुड़गांव में यह घटना हुई कि सजावटी प्राकृतिक पौधे एक नर्सरी मालिक ने पुरानी बोतलें काट कर बस यों ही दर्जनों की संख्या में लगा रखे थे. वे ऐसे पौधे थे, जो सप्ताह में एक बार पानी मांगते थे. अचानक एक विवाह समारोह स्थल से एक प्रतिनिधि आया और 10 गुना कीमत दे कर वे पौधे खरीद कर ले गया.

दरअसल, आप को पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि नर्सरी के जरीए आप किस तरह से आमदनी हासिल करना चाहते हैं. मसलन, आप पौधे बेचना चाहते हैं या बीज, घास या बेल या फिर सब्जियों के पौधे या सिर्फ विदेशी पौधे.

आप अपनी नर्सरी में नीबू की प्रजाति, आम, अमरूद, अनार, लेमनग्रास, तुलसी, गिलोय, लौकी, कद्दू, मिर्च, टमाटर, कढ़ी पत्ता, पालक, गेंदा, सदाबहार, जीनिया,  क्रौटन आदि चीजें उगा सकते हैं और कुछ लताएं भी लगा दीजिए, जो हर समय मिल जाती हैं. अब तो उन लताओं के पास ऊंचाई पर उगने वाले विदेशी पौधे भी अच्छी तरह विकसित हो जाते हैं.

अगर आप बीज लगा कर छोटेछोटे पौधे का उत्पादन कर के उन्हें बेचना चाहते हैं, तो इस के लिए अच्छी तरह खोजबीन कर लें, तब ही किसी बीज का चयन करें. वहीं अगर आप सिर्फ पौधे बेच कर पैसे कमाने के इच्छुक हैं, तो आप को किसी बडे़ खेत वाले किसान से एक करार कर लेना चाहिए और वहां से हर महीने पौधे ला कर अपनी छत पर विकसित कर के बेचना अच्छा रहेगा. नर्सरी बन गई, मगर पौधे के लिए निरंतर मिट्टी तैयार करते रहना भी बहुत महत्वपूर्ण पहलू है. पौधे मिट्टी पर ही तो निर्भर हैं. पौधे के लिए गमले या मिट्टी तैयार करने के लिए मामूली कीमत में मिट्टी आसानी से उपलब्ध होती है. हालांकि यह जमीन खरीदने जैसा महंगा भी नहीं है. इस के लिए एक से बढ़ कर एक कई आसान तरीके हैं. हमेशा यह सुनिश्चित करें कि गमले या थाले पर्याप्त और विशाल हों, ताकि बीज को उस में अंकुरित होने में किसी तरह की परेशानी न हो.

अगर आप चाहते हैं कि आप का कारोबार अच्छा चले, तो आप को इन पौधों  का सही तरह से खयाल रखना होगा. अच्छे और उच्च गुणवत्ता वाले बीजों  के लिए जरूरी है गोबर की खाद या पत्तों की खाद. यह इसलिए जरूरी है कि कभी कोई कीड़े आदि लग जाएं, तो गमलों की मिट्टी को बदलना भी पड़ता है. यह बहुत कठिन नहीं है, 4-5 मिनट में गमले की मिट्टी बदली जा सकती है.

सब से मुख्य काम है मार्केटिंग

नर्सरी कारोबार का आखिरी और सब से मुख्य काम है मार्केट की तलाश करना. इस के लिए आप सब से पहले अपने लोकल मार्केट में कस्टमर तलाशें. विभिन्न जगहों पर आप के पौधे और बीज बिक सकते हैं. कई ऐसे संस्थान भी हैं, जो पौधे या बीज खरीदते रहते हैं.

हर साल जून से अगस्त माह तक लाखों निजी संस्थान पेड़ लगाते हैं. हर जिले के सैकड़ों सरकारी संस्थान पेड़पौधे और बीज रोपने का काम करते हैं. यह तो सब को पता ही है कि हर नगर में नगरपालिका को बरसात के मौसम में कम से कम एक से दो लाख पौधे लगाने होते हैं, यह अनिवार्य है कि संख्या दोगुनी और चौगुनी भी हो सकती है. अगर आप अखबार पर नजर रखें या खुद इन सरकारी, गैरसरकारी दफ्तरों में जा कर थोड़ी सी भी मेहनत करते हैं, तो आप की सालभर की लागत इन 4 महीनों में ही निकल सकती है.

अगर आप को अपने काम के लिए बाजार अपने आसपास ही मिल जाता है, तो इस से आप का परिवहन खर्च बच जाएगा और आप की आमदनी भी अधिक होगी. अगर आप सामाजिक हैं, तो आप के मित्र भी आप की ग्राहक संख्या में इजाफा कर सकते हैं.

हैप्पी न्यू ईयर : निया को ले कर माधवी की सोच कैसे बदल गई

नियाऔफिस के लिए तैयार हो रही थी. माधवी वैसे तो ड्राइंगरूम में पेपर पढ़ रही थीं पर उन का पूरा ध्यान अपनी बहू निया की ओर ही था. लंबी, सुडौल देहयष्टि, कंधों तक कटे बाल, अच्छे पद पर कार्यरत अत्याधुनिक निया उन के बेटे विवेक की पसंद थी. माधवी को भी इस प्रेमविवाह में आपत्ति करने का कोई कारण नहीं मिला था. इतनी समझ तो वे भी रखती हैं कि इकलौते योग्य बेटे ने यों ही कोई लड़की पसंद नहीं की होगी. उन्होंने मूक सहमति दे दी थी पर पता नहीं क्यों उन्हें निया से दिल से एक दूरी महसूस होती थी. वे स्वयं उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में अकेली रहती थीं.

पति श्याम सालों पहले साथ छोड़ गए थे. विवेक की नौकरी मुंबई में थी. उस ने जब भी साथ रहने के लिए कहा था, माधवी ने यह कह कर टाल दिया था, ‘‘सारा जीवन यहीं तो बिताया है, पासपड़ोस है, संगीसाथी हैं. वहां मुंबई में शायद मेरा मन न लगे. तुम दोनों तो औफिस में रहोगे दिन भर. अभी ऐसे ही चलने दो, जरूरत हुई तो तुम्हारे पास ही आऊंगी. और कौन है मेरा.’’ साल में एकाध बार वे मुंबई आ जाती हैं पर यहां उन का मन सचमुच नहीं लगता. दोनों दिन भर औफिस रहते, घर पर भी लैपटौप या फोन पर व्यस्त दिखते. साथ बैठ कर बातें करने का समय दोनों के पास अकसर नहीं होता. ऊपर से निया का मायका भी मुंबई में ही था. कभी वह मायके चली जाती तो घर उन्हें और भी खाली लगता.

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नया साल आने वाला था. इस बार वे मुंबई आई हुई थीं. निया ने भी फोन पर कहा था, ‘‘यहां आना ही आप के लिए ठीक होगा. मेरठ की ठंड से भी आप बच जाएंगी.’’ निया से उन के संबंध कटु तो बिलकुल भी नहीं थे पर निया उन से बहुत कम बात करती थी. माधवी को लगता था कि शायद विवेक उन्हें जबरदस्ती मुंबई बुला लेता है और निया को शायद उन का आना पसंद न हो. निया की सोच बहुत आधुनिक थी.

‘‘पतिपत्नी दोनों कामकाजी हों तो घरबाहर दोनों के काम दोनों मिल कर ही संभालते हैं,’’ यह माधवी ने निया के मुंह से सुना था तो उस की स्पष्टवादिता पर बड़ी हैरान हुई थीं. निया को वे मन ही मन खूब जांचतीपरखती और उस की बातों पर मन ही मन हैरान सी रह जातीं. सोचतीं, अजीब मुंहफट लड़की है. आधुनिकता और आत्मनिर्भरता ने इन लड़कियों का दिमाग खराब कर दिया है.

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कल ही कह रही थी, ‘‘विवेक, मैं बहुत थक गई हूं. तुम ही सब का खाना लगा लो.’’ उन्हें तो थकेहारे बेटे पर तरस ही आ गया. फौरन कहा, ‘‘अरे, तुम दोनों आराम से फ्रैश हो लो. मैं खाना लगा लूंगी. श्यामा सब बना कर तो रख ही गई है. बस, लगाना ही तो है,’’ और फिर उन्होंने सब का खाना टेबल पर लगाया.

पिछले संडे को सुबह उठते ही कह रही थी, ‘‘विवेक, आज पूरा दिन रैस्ट का मूड है, श्यामा के हाथ के खाने का मूड नहीं है. नाश्ता बाहर से ले आओ और लंच भी और्डर कर देना.’’ माधवी ने पूछ लिया, ‘‘निया, मैं बना दूं कुछ?’’

निया ने हमेशा की तरह संक्षिप्त सा उत्तर दिया, ‘‘नहीं मां, आप रैस्ट कीजिए.’’ मुझ से तो पता नहीं क्यों इतना कम बोलती है यह लड़की. अभी 2 साल ही तो हुए हैं विवाह को. सासबहू वाला कोई झगड़ा भी कभी नहीं हुआ, फिर इतनी गंभीर क्यों रहती है. ऐसा भी क्या सोचसमझ कर बात करना, माधवी अपनी सोच के दायरे में उलझी सी रहतीं.

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माधवी को मुंबई आए 10 दिन हो रहे थे. निया नए साल पर सब दोस्तों को घर पर बुला कर पार्टी करने के मूड में थी. विवेक भी खूब उत्साहित था. पर अगले ही पल क्या हो जाए, किसे पता होता है. शाम को अचानक बाथरूम में माधवी का पैर फिसला तो वे चीख पड़ीं. विवेक और निया भागे आए. दर्द की अधिकता से माधवी के आंसू बह निकले थे. उन्हें फौरन हौस्पिटल ले जाया गया. पैर में फ्रैक्चर हो गया था. प्लास्टर चढ़ाया गया.

माधवी को इस बेबसी में रोना आ रहा था. घर आ कर भी 2-3 दिन सो न सकीं. बड़ी बेचैन थीं. डाक्टर को घर पर ही बुलाया गया. उन का ब्लडप्रैशर हाई था, पूर्ण आराम और दवा के लिए निर्देश दे डाक्टर चला गया. विवेक उन्हें आराम करने के लिए कह लैपटौप पर व्यस्त हो गया. माधवी को इस तकलीफ में जीने की आदत डालने में कुछ दिन लग गए. पहले निया के मना करने पर भी कुछ न कुछ इधरउधर करते हुए अपना समय बिता लेती थीं, अब तो अकेलापन और बढ़ता लग रहा था. एक संडे को वे चुपचाप अपने रूम में लेटी थीं. अचानक उन का मन हुआ कि वाकर की सहायता से ड्राइंगरूम तक जा कर देखें. यह टू बैडरूम फ्लैट था. वे बड़ी हिम्मत से वाकर के सहारे अपने रूम से बाहर निकलीं तो उन्हें बच्चों के रूम से निया का तेज स्वर सुनाई दिया. उन का दरवाजा पूरी तरह बंद नहीं था. न चाहते हुए भी उन्होंने निया की बात पर ध्यान दिया.

निया तेज स्वर में कह रही थी, ‘‘मां तुम्हारी है, तुम्हें सोचना चाहिए.’’ माधवी को तेज झटका लगा, मन आहत हुआ कि इस का मतलब मेरा अंदाजा सही था कि निया को मेरा यहां आना पसंद नहीं. अब? इतना स्वाभिमान तो मुझ में भी है कि बेटेबहू के घर अवांछित सी नहीं रहूंगी. फिर फैसला कर लिया कि जल्द ही वापस चली जाएगी. अकेली रह लेंगी पर यहां नहीं आएंगी. इसलिए निया इतनी गंभीर रहती है.

उन की आंखों से मजबूरी और अपमान से आंसू बहने लगे. चुपचाप अपने रूम में आ कर लेट गईं. थोड़ी देर बाद निया उन के लिए शाम की चाय ले कर आई तो उन्होंने उस के चेहरे पर नजर भी नहीं डाली. निया ने कहा, ‘‘मां, उठिए, चाय लाई हूं.’’

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‘‘ले लूंगी, तुम रख दो.’’ निया चाय रख कर चली गई. माधवी का दिल भर आया, कोई उन से पूछने वाला भी नहीं कि वे क्यों उदास, दुखी हैं. थोड़ी देर में उन्होंने ठंडी होती चाय पी ली और विवेक को आवाज दी. विवेक आ कर गंभीर मुद्रा में बैठ गया. उन्हें बेटे पर बड़ा तरस आया. सोचा,पिसते हैं बेटे मां और पत्नी के बीच.बेटा भी क्या करे. नहीं वह बेटे की गृहस्थी में तनाव का कारण नहीं बनेगी, सोच माधवी बोलीं, ‘‘विवेक प्लास्टर कटते ही मेरा टिकट करवा देना.’’

विवेक चौंका, ‘‘क्या हुआ, मां?’’ ‘‘बस, जाने का मन कर रहा है.’’

‘‘ठीक हो जाओ, चली जाना. अभी तो टाइम लगेगा,’’ कह कर विवेक चला गया.

ठंडी सांस भर कर माधवी अपने विचारों में डूबतीउतरती रहीं. 27 दिसंबर की शाम को तीनों साथ ही डिनर कर रहे थे. माधवी ने यों ही पूछ लिया, ‘‘बेटा, तुम्हारी न्यू ईयर पार्टी का क्या हुआ?’’ ‘‘निया ने कैंसिल कर दी, मां.’’

‘‘क्यों? तुम लोग तो इतने खुश थे?’’ ‘‘बस, निया ने मना कर दिया.’’

‘‘पर क्यों, बेटा?’’ ‘‘सब आएंगे, शोरशराबा होगा, आप डिस्टर्ब होंगी, आप को आराम की जरूरत है.’’ निया ने जवाब दिया.

‘‘अरे नहीं, मुझे तो अच्छा लगेगा, घर में रौनक होगी, बहुत बोर हो रही हूं मैं तो, तुम लोग आराम से नए साल का स्वागत करो, मजा आएगा.’’ निया बहुत हैरान हुई, ‘‘सच? मां? आप डिस्टर्ब नहीं होंगी?’’

‘‘बिलकुल भी नहीं.’’ निया ने मुसकरा कर थैंक्स मां कहा तो माधवी को अच्छा लगा.

फिर कहा, ‘‘बस, मेरे जाने का टिकट भी करवा दो अब.’’ निया ने कहा, ‘‘नहीं, अभी तो आप की फिजियोथेरैपी भी होगी कुछ दिन.’’

माधवी उफ, कह कर चुप हो गईं. प्रत्यक्षतया तो सब सामान्य था पर माधवी अनमनी थीं. अब माधवी से दिन नहीं कट रहे थे. कभीकभी बेबस, बेचैन सी हो जातीं. मन रहा था अब. बहू उन्हें रखना नहीं चाहती, बेटा मजबूर है, यह बात दिल को कचोटती रहती थी.

31 दिसंबर की पार्टी की तैयारी में निया व्यस्त हो गई. विवेक भी हर बात, हर काम मेंयथासंभव साथ दे रहा था. दोनों के करीब 15 दोस्त आने वाले थे. बैठेबैठे जितना संभव था माधवी भी हाथ बंटा रही थीं. खाने की कुछ चीजें बना ली थीं, कुछ और्डर कर दी थीं. दोपहर तक सारी तैयारी के बाद लंच कर के माधवी थोड़ी देर अपने रूम में आ कर लेट गईं. अभी 3 बजे थे.

20 मिनट के लिए उन की आंख भी लग गई. उठी तो चाय की इच्छा हुई. पर फिर सोचा कि बेटाबहू आराम कर रहे होंगे, वे थक गए होंगे. अत: वह खुद ही चाय बना लेंगी. अपने वाकर के साथ वे धीरे से उठीं तो बेटेबहू के कमरे से तेज आवाजें सुन कर ठिठक गईं, वे सुनने की कोशिश करने लगीं कि क्या फिर मेरी उपस्थिति को ले कर दोनों में झगड़ा हो रहा है? रात को तो पार्टी है और अब यह झगड़ा, वह भी उस के कारण? आंसू बह निकले.

निया की आवाज बहुत स्पष्ट थी, ‘‘मां को कहने दो, तुम कैसे मां को वापस भेजने के लिए तैयार हो? मां इतनी शांत, स्नेहिल हैं, उन से किसी को क्या दिक्कत हो सकती है? वे दिन भर अकेली रहती हैं, उन का मन नहीं लगता होगा. तभी उस दिन अपना टिकट करवाने के लिए कहा होगा. मैं ने अपने औफिस में बात कर ली है. जब तक उन का प्लास्टर नहीं उतरता मैं वर्क फ्रौम होम कर रही हूं. बहुत ही जरूरी होगा किसी दिन तब चली जाऊंगी. तुम बेटे हो कर भी उन्हें भेजने की बात कैसे मान जाते हो? और कौन है उन का? वे अब कहीं नहीं जाएंगी, यहीं रहेंगी हमारे साथ.’’ मन में उठे भावों के उतारचढ़ाव से वाकर पकड़े माधवी के तो हाथ ही कांप गए, चुपचाप आ कर अपने बैड पर धम्म से बैठ गईं कि वह क्या सोच रही थी और सच क्या था.

वह कितना गलत सोच रही थी. क्या उस ने अपने मन के दायरे इतने सीमित कर लिए थे कि निया के गंभीर स्वभाव, उस की आधुनिकता को ही जांचनेपरखने में लगी रही. उस के मन की गहराई तक तो वह पहुंच ही नहीं पाई.

उफ, उस दिन भी तो निया यही कह रही थी कि मां तुम्हारी है, तुम्हें सोचना चाहिए. सच ही तो है कि कई बार आंखें जो देखती हैं, कान जो सुनते हैं वही सच नहीं होता. वह तो निया के कम बोलने, गंभीर स्वभाव को अपनी उपेक्षा समझती रही पर यह तो निया का स्वभाव है, क्या बुराई है इस में? उस के दिल में तो उस के लिए इतना अपनापन और प्यार है, आज निया जैसी बहू पा कर तो वह धन्य हो गई. आंखों से अब कुछ स्पष्ट नहीं दिख रहा था, सब कुछ धुंधला सा गया था. खुशी और संतोष के आंसू जो भरे थे आंखों में.

तभी निया चाय ले कर अंदर आ गई. माधवी को विचारमग्न देखा, पूछा, ‘‘क्या सोच रही हैं, मां?’’ माधवी को कुछ समझ नहीं आया तो ‘हैप्पी न्यू ईयर’ कहते हुए मुसकरा कर अपनी बांहें फैला दीं.

कुछ न समझते हुए भी उन की बांहों में समाते हुए कहा, ‘‘यह क्या मां, अभी से?’’ माधवी खुल कर हंस दीं, ‘‘हां, अचानक अपने दिल में अभी से नववर्ष का उल्लास, उत्साह अनुभव कर रही हूं.’’

नए साल का स्वागत नई उमंग से करने के लिए माधवी अब पूरी तरह से तैयार थीं. निया के सिर पर अपना स्नेहभरा हाथ फिरा कर मुसकराते हुए चाय का आनंद लेने लगीं.

व्यवहार ‘ना’ कहने की कला और इस का फायदा

लेखिका- स्नेहा सिंह 

‘ना’ एक सरल शब्द है जो महज एक अक्षर का है लेकिन ज्यादातर लोगों के लिए दूसरे के सामने ना उच्चारण कर पाना कठिन होता है. आइए जानें कुछ तरीके जिन्हें अपना कर आप ‘ना’ कहने की कला में हिचकेंगे नहीं और अपना जीवन आसान बना सकेंगे. हम को अकसर ऐसा लगता है कि अगर कोई अपना थोड़ा बदल जाए या हमारी सुनने लगे तो परिस्थितियां काफी आसान हो जाएंगी.

ऐसी शिकायत लगभग हर आदमी की होती है. पर, इस तरह की सारी जिम्मेदारी हम सभी दूसरे पर डालते हैं. हम दुखी हैं, इस के लिए भी कोई दूसरा आदमी ही जिम्मेदार है. दूसरों पर आरोप लगाना या अपनी तकलीफों के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराना, यह मनुष्य का स्वभाव है. खासकर जब आदमी मुश्किलों में होता है, तब ऐसा ही लगता है. हम इस ‘अगर और ‘तब’ के चक्कर में न पड़ें, तो दूसरों के प्रति हमारी जो शिकायतें हैं, वे अपनेआप खत्म हो जाएंगी. यह हैरानी की ही बात है कि हम खुद को बदलने के बजाय दूसरे को बदलने के बारे में सोचते हैं. अगर हम खुद प्रयास करें,

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तो परिस्थितियों को बेहतर बना सकते हैं. परिस्थितियों को सुधारने का एक दूसरा उपाय भी है और वह है मौके पर ‘ना’ कहना. ‘ना’ कहने की भी एक रीति होती है. इस कला को सीखना अतिआवश्यक है. परिस्थितियों को बदलने की जरूरत नहीं है. दूसरी बात यह कि जब हम व्यस्त होते हैं तो हमें धीरज और आराम की जरूरत होती है. इस के लिए हमें बारबार ‘ना कहने की जरूरत पड़ सकती है. महत्त्वपूर्ण कामों के लिए अपनी ऊर्जा को बचाना जरूरी है. यह बात जानते हुए भी हम ‘ना’ कर नहीं पाते और दुखी होते हैं. ना कहने की कला में आप माहिर हैं तो कभी भी आप तनाव में नहीं रहेंगे. सभी आप को सक्षम और कुशल मानेंगे. लोग आप के नेतृत्व में काम करने के लिए तैयार रहेंगे.

ना कहना मुश्किल क्यों हम सभी जब ‘ना’ कहते हैं तो उसी के साथ अनेक तरह के भावनात्मक बोझ तले दब जाते हैं. उस समय न कही जा सकने वाली तमाम बातें दोनों पक्षों के मन में होती हैं. इसलिए, जब हम ‘ना’ कहते हैं तो तनाव में आ जाते हैं. उसी तरह सुनने वाले के मन में भी निराशा व तनाव का जन्म होता है. वहीं, तमाम वक्ता, नेता आदि ‘ना’ कहने की कला में निपुण होते हैं तभी वे सफलतापूर्वक ना कर पाते हैं. उन से ‘ना’ सुनने वालों के मन में किसी तरह की नकारात्मक भावना पैदा नहीं होती. उलटे, लोग उन से प्रेरित, सम्मानित और प्रशस्त होने की बात का अनुभव करते हैं. इन महानुभावों का काम अपने प्रशंसकों या कर्मचारियों को प्रेरित करना होता है, जिसे वे अच्छी तरह करते हैं. जब आप सभी को खुश कर के काम कराने वाले शक्तिमान होते हैं, तब कोई तनाव नहीं होता है. इस प्रक्रिया में प्रेमपूर्वक ‘ना’ कहने की चेष्टा भी शामिल है. ‘ना’ कहने का फायदा जब आप ‘ना कहने के बदले ‘हां’ कहते हैं तो आप के उस ‘हां’ का कोई महत्त्व या मूल्य नहीं रहता. जबकि, एक प्रकार की शंका रहती है. इसलिए जब आप गंभीरतापूर्वक ‘ना’ कहते हैं, तब ‘ना’ कहने की हिम्मत करने के बाद लोग आप के शब्दों में वजन देखते हैं. उस में दृढ़ता दिखाई देती है.

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‘ना’ कहने से ऊर्जा को इकट्ठा किया जा सकता है किसी संस्था या व्यक्ति के पास सभी काम कराने की शक्ति या समय नहीं होता. नेता के रूप में आप को अपने महत्त्वपूर्ण कामों पर ध्यान केंद्रित करना है. आप के ध्येय से आप का ध्यान हट जाए, ऐसी बातों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है. समय की अपेक्षा ऊर्जा अधिक महत्त्वपूर्ण है. यदि आप उसे संभाल नहीं सकते तो आप अपने ध्येय को पूरा नहीं कर सकते. ‘ना’ कहने की आदत जो लोग प्यार से ‘ना’ कह सकते हैं, वे अपने ध्येय को अच्छी तरह पूरा कर सकते हैं. ऐसे लोग हमेशा अपने काम के बारे में सोचते हैं. अगर आप प्रेमपूर्वक ‘ना’ कहते हैं तो उस ‘ना’ में अनेक अन्य नकारात्मक बातें होंगी जो सामने के व्यक्ति पर ज्यादा से ज्यादा नकारात्मक प्रभाव डालेंगी. इसलिए आप ‘ना’ कहने के बारे में विस्तार से बताएं.

अगर फिर ऐसी स्थिति आती है तो आप सामने वाले व्यक्ति को समय से अपने कार्यक्रम के बारे में बताएं, जिस से आप को अपने आयोजन के लिए पूरा समय मिल सके. आप की इस धारणा का आप के साथी या कर्मचारी भी अनुसरण करेंगे, जिस से आप को आगे किसी तरह की परेशानी नहीं होगी. ‘ना’ कहने के अभ्यास की 3 विधियां विशेषज्ञों के अनुसार ‘ना’ कहने से नकारात्मक लोग हतोत्साहित होते हैं, इसलिए इस का उपयोग नहीं करना चाहिए. पर अपने यहां लोग नग्न सत्य सुनना चाहते हैं. इसलिए ‘ना’ का ना हो, यह कहने का कोई अर्थ नहीं रहता. निष्फल होने वाली योजनाओं के पीछे अपना समय न बरबाद करें. भले ही उस समय सुनने वाले को आप की बात बुरी लगे, पर समय आने पर वह आप की बात को समझेगा और आप का आभार मानेगा. जिस योजना में कोई दम या उम्मीद न हो, उस के पीछे समय बरबाद करने के बजाय वह समय किसी महत्त्वपूर्ण काम में लगाएं.

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बड़बोलेपन से छुटकारा पाएं आप नेता या मार्गदर्शक की भूमिका में हैं तो आप को पहल करना जरूरी है. मान लीजिए, आप को किसी से बात करनी है तो सर्वप्रथम मन में जो धारणाएं हैं, उन्हें व्यक्त कर दीजिए. सामने वाला व्यक्ति काम का है, फिर भी मन में तमाम नकारात्मक बातें आती हैं, शायद यह मानव के स्वभाव में है. मन में जो नकारात्मक बातें हैं, उन के लिए खुद से ये सवाल पूछें- द्य क्या आप को जिस आदमी से बात करनी है, वह बेकार है? सवाल का जवाब ‘ना’ में आता है तो सोचो कि वह आदमी आप के लिए अत्यंत उपयोगी है. अगर वह बेकार है तो उसे विदा कर दीजिए. द्य अगर कोई नुकसान हुआ है तो उस में आप की क्या जिम्मेदारी थी, इस बात पर विचार करें. अगर कुछ है तो उसे सामने वाले व्यक्ति के सामने स्वीकार करें. द्य उस प्रोजैक्ट से आप ने क्या सीखा है, भविष्य में उस का क्या उपयोग हो सकता है, इस बात पर विचार करें. अपने सहयोगियों या कर्मचारियों से बात करें.

इस तरह मिलने से वे खुश होंगे. तमाम सफलताओं में दूसरी निष्फलताएं भी मिली होती हैं. द्य क्या आप निष्फल प्रोजैक्ट के असर से मुक्त हो गए हैं? अगर नहीं मुक्त हुए हैं तो पहला काम यह कीजिए. द्य जब भी आप अपने टीममेट से बात करें, उस का निरुत्साह दूर करने की कोशिश करें. ‘तुम मेरा काम ठीक से नहीं कर सके,’ इस बात को उस के दिमाग से निकालें. आप अपनी नकारात्मकता को दूर करें. इस के बाद उसे भी इस से बाहर निकालें. ‘अभी आप इस काम में नए हैं, इसलिए खुद को दोष मत दीजिए’ जैसी बातें कहें. परिस्थिति की हकीकत की ओर उस का ध्यान आकर्षित करें. महत्त्वपूर्ण काम सौंपें नकारात्मकता से मुक्त करने के लिए साथी को तुरंत कोई महत्त्वपूर्ण काम सौंपें. अन्य काम पर ध्यान केंद्रित होने से वह पुरानी निष्फलता को भूल जाएगा. आप अपना थोड़ा समय ‘ना’ कहने और बाकी का समय ‘हां’ कहने यानी सहयोग के मार्गदर्शन करने में लगाएं.

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आप के भरोसे और उत्साह से वह आप का काम ज्यादा मेहनत से करेगा क्योंकि इस से उसे प्रेरणा मिलेगी. भुलाने में मदद करें जिस तरह आप ने अपनी निष्फलता को भुलाया है, उसी तरह उसे भुलाने में मदद कीजिए. आप में सकारात्मक ऊर्जा कैसे आती है, उसे समझाएं. उसे बताएं कि आप निराशा से किस तरह निकल कर सफलता की ओर बढ़े हैं. यह निष्फलता ही आप को सफलता की ओर ले जाएगी. आप उसे मेहनत करने के लिए प्रेरित करें. जिस में आप को विश्वास नहीं, उस पर आप की टीम भी विश्वास नहीं करेगी. जबकि ‘हां’, ‘ना’ या ‘शायद’ ये सब परिस्थिति का एकमात्र जवाब नहीं होते. कितनी बार ‘हां परंतु’ जैसे भाव भी होते हैं, जो ‘ना’ जैसी परिस्थिति पैदा होने से रोकते हैं. यहीं नेतृत्व का गुण उपयोगी साबित होता है. चाहे जैसी भी परिस्थिति हो, आप अपनी टीम का उत्साह बनाए रखें.

Crime Story: चक्रव्यूह में पत्रकार

सौजन्य- सत्यकथा

उस दिन अगस्त, 2020 की 24 तारीख थी. रात के करीब 8 बज रहे थे. हिंदी न्यूज चैनल ‘सहारा समय’ के पत्रकार रतन सिंह कुछ देर पहले ही बलिया मुख्यालय से अपने घर फेफना आए थे.

वह अपने पिता बदन सिंह से किसी घरेलू मामले पर बातचीत कर रहे थे, तभी गांव की प्रधान सीमा सिंह के पति सुशील सिंह का भाई सोनू ंिसंह आ गया. उस ने रतन सिंह को घर के बाहर बुला कर कुछ मिनट बात की. फिर रतन सिंह उस के साथ चले गए. बदन सिंह भी अन्य कामों में व्यस्त हो गए.

रतन सिंह को गए अभी आधा घंटा ही बीता था कि किसी ने जोरजोर से उन का दरवाजा पीटना शुरू कर दिया. बदन सिंह ने दरवाजा खोला तो सामने उन का भतीजा अभिषेक खड़ा था. वह बेहद घबराया हुआ था. उस की हालत देख बदन सिंह ने पूछा, ‘‘क्या बात है अभिषेक, इतने घबराए हुए क्यों हो?’’

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‘‘चाचा…चाचा, जल्दी चलो प्रधान के घर. रतन भैया को गोलियों से छलनी कर दिया है. 8-10 लोगों ने भैया को पीटा, फिर मौत के घाट उतार दिया.’’

अभिषेक की बात सुन कर बदन सिंह सन्न रह गए. वह भाईभतीजों व पड़ोस के लोगों के साथ ग्रामप्रधान सीमा सिंह के आवास पर पहुंचे. प्रधान का घर थाना फेफना से मात्र 50 कदम दूर था. घर के बाहर ही खून से लथपथ रतन सिंह का शव पड़ा था और हमलावर फरार थे. बेटे का शव देख कर बदन सिंह फूटफूट कर रो पड़े. इस के बाद तो उन के घर पर कोहराम मच गया.

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घटनास्थल के पास ही थाना था, इस के बावजूद पुलिस वहां नहीं आई थी. बदन सिंह को पता चला कि झगड़े के समय प्रभारी निरीक्षक शशिमौली पांडेय आए थे, पर वह बिना किसी हस्तक्षेप के वापस चले गए थे. बदन सिंह समझ गए कि बेटे की हत्या में इंपेक्टर की मिलीभगत है. फिर भी उन्होंने पहले थाना फेफना फिर डायल 112 पर बेटे की हत्या की सूचना दी.

चूंकि रतन सिंह एक टीवी चैनल के पत्रकार थे. इसलिए उन की हत्या से फेफना कस्बे से ले कर बलिया तक सनसनी फैल गई और लोग घटनास्थल की ओर दौड़ पड़े. देखते ही देखते घटनास्थल पर भीड़ जुट गई. प्रिंट और इलैक्ट्रौनिक मीडिया के लोग भी वहां आ गए.

चूंकि अपराधियों ने युवा पत्रकार की हत्या कर कानूनव्यवस्था को खुली चुनौती दी थी, इसलिए बलिया पुलिस में हड़कंप मच गया था. हत्या की सूचना पा कर एसपी देवेंद्र नाथ दुबे, एएसपी संजीव कुमार यादव तथा सीओ चंद्रकेश सिंह भी घटनास्थल आ गए थे.

फेफना थानाप्रभारी इंसपेक्टर शशिमौली पांडेय वहां पहले से मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया था. हत्या को ले कर जनता में रोष था. इसलिए सुरक्षा के नजरिए से अतिरिक्त फोर्स को भी बुलवा लिया गया. एसपी देवेंद्र नाथ दुबे ने सहयोगियों के साथ घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. रतन सिंह के सिर, सीने व पेट में गोलियां लगी थीं, जिस से उन की मौके पर ही मौत हो गई थी.

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शरीर के अन्य हिस्सों पर भी चोटों के निशान थे, जिस से स्पष्ट था कि हत्या से पहले उन के साथ मारपीट की गई थी. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर मौके से साक्ष्य जुटाए.

बदन सिंह ने पुलिस को बताया कि रात 8 बजे प्रधान सीमा सिंह के पति सुशील सिंह का भाई सोनू सिंह घर आया था. वह रतन को किसी बहाने सुशील सिंह के घर ले गया. वहां 8-10 लोग मौजूद थे. उन लोगों ने पहले रतन सिंह को लाठीडंडों से पीटा, फिर गोलियां दाग कर मौत की नींद सुला दिया.

7 महीने पहले भी इन लोगों ने रतन सिंह से झगड़ा किया था. रतन ने उन के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी. तब इन लोगों ने मामले को रफादफा करने का दबाव डाला था. समझौता न करने पर जान से मारने की घमकी दी थी. हत्या में शामिल पट्टीदार अरविंद सिंह से जमीनी विवाद भी चल रहा था.

बदन सिंह ने आरोप लगाया कि थानाप्रभारी शशिमौली पांडेय भी अपराधियों से मिले हैं. इसलिए उन के विरुद्ध भी काररवाई की जाए.

इधर पुलिस अधिकारियों ने तमाम लोगों से पूछताछ की, जिस से पता चला कि पत्रकार रतन सिंह की हत्या जमीनी विवाद में हुई है.

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घटनास्थल का निरीक्षण करने और पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच मृतक रतन सिंह का शव पोस्टमार्टम के लिए बलिया जिला अस्पताल भिजवा दिया. फिर उन्होंने फेफना थानाप्रभारी शशिमौली पांडेय को आदेश दिया कि वह थाने में मृतक के घरवालों की तहरीर पर यथाशीघ्र मुकदमा दर्ज करें.

आदेश पाते ही थानाप्रभारी शशिमौली पांडेय ने मृतक के पिता बदन सिंह की तहरीर पर आईपीसी की धारा 147/148/149/302 के तहत सोनू सिंह, अरविंद सिंह, दिनेश सिंह, तेज बहादुर सिंह, वीर बहादुर सिंह, प्रशांत सिंह उर्फ हीरा, विनय सिंह उर्फ मोती, सुशील सिंह उर्फ झाबर, अनिल सिंह, उदय सिंह सहित 10 लोगों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया.

रिपोर्टकर्ता बदन सिंह ने फेफना थानाप्रभारी शशिमौली पांडेय पर कई गंभीर आरोप लगाए थे. एसपी देवेंद्र नाथ दुबे ने शशिमौली को सस्पेंड कर के थाने का चार्ज इंसपेक्टर राजीव कुमार मिश्र को सौंप दिया. कार्यभार संभालते ही वह सक्रिय हो गए. उन्होंने अभियुक्तों की टोह में अपने खास खबरियों को लगा दिया.

पुलिस अधिकारियों ने पत्रकार रतन सिंह हत्याकांड को चुनौती के रूप में लिया और खुलासे के लिए एएसपी संजीव कुमार यादव की निगरानी में एक पुलिस टीम का गठन किया.

इस टीम में थानाप्रभारी राजीव कुमार मिश्र, सीओ चंद्रकेश सिंह, एसओजी प्रभारी राजकुमार सिंह, एसआई ओम प्रकाश चौबे, हेडकांस्टेबल श्याम सुंदर यादव, विवेक यादव, सूरज सिंह तथा बलराम तिवारी को शामिल किया गया.

इस गठित पुलिस टीम ने 24 अगस्त की रात में ही ताबड़तोड़ छापेमारी कर 6 नामजद अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया. पकड़े गए अभियुक्तों में सोनू सिंह, अरविंद सिंह, दिनेश सिंह, वीर बहादुर सिंह, सुशील सिंह तथा विनय सिंह थे.

पूछताछ में इन सभी ने हत्या में शामिल होने का जुर्म कुबूल कर लिया. साथ ही यह भी बताया कि विवाद के दौरान रतन सिंह पर फायर प्रशांत सिंह उर्फ हीरा ने किया था. पुलिस ने पूछताछ के बाद सभी को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया और बलिया कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

25 अगस्त, 2020 को जब प्रमुख समाचार पत्रों में रतन सिंह हत्याकांड का मामला सुर्खियों में छपा तो बलिया से ले कर लखनऊ तक सनसनी फैल गई.एक ओर पत्रकार संगठन सक्रिय हुए तो दूसरी ओर राजनीतिक पार्टियां हमलावर हुईं. फेफना कस्बा तथा उस के आसपास के गांव वाले भी रोष में आ कर धरनाप्रदर्शन में जुट गए.

उधर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संज्ञान में यह मामला आया तो उन्होंने फेफना विधायक तथा खेल राज्यमंत्री उपेंद्र तिवारी से सारी जानकारी हासिल की फिर ट्वीट कर रतन सिंह की हत्या पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए परिवार के प्रति संवेदना प्रकट की. साथ ही पीडि़त परिवार को 10 लाख रुपए की आर्थिक मदद की घोषणा की.

इस के बाद खेल राज्यमंत्री उपेंद्र तिवारी मृतक पत्रकार के परिवार से मिलने फेफना पहुंचे. वहां मृतक की पत्नी प्रियंका के आंसुओं के सैलाब को देख कर वह भावुक हो गए. उन्होंने प्रियंका सिंह को धैर्य बंधाया और 10 लाख रुपए मुख्यमंत्री की तरफ से तथा 5 लाख रुपए किसान दुर्घटना बीमा का दिलाने का आश्वासन दिया. साथ ही एक लाख रुपए स्वयं अपनी तरफ से दिए.

लेकिन प्रियंका और उस के परिवार ने इस रकम को नाकाफी बताया और मंत्री महोदय से सरकार से 50 लाख रुपए तथा सरकारी नौकरी दिलाने की बात कही.इस पर उपेंद्र तिवारी ने प्रियंका सिंह को मुख्यमंत्री से मिलाने को कहा. इधर पुलिस ने फरार चल रहे 4 अभियुक्तों पर 25-25 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया. पुलिस को अदालत से गैरजमानती वारंट मिल गया था. पुलिस टीम अभियुक्तों की तलाश में छापे तो मार रही थी, पर वह पकड़ में नहीं आ रहे थे.

27 अगस्त, 2020 की रात 11 बजे प्रभारी निरीक्षक राजीव कुमार मिश्रा गश्त पर थे, तभी उन्हें मुखबिर से सूचना मिली कि मुख्य अभियुक्त प्रशांत सिंह उर्फ हीरा एकौनी तिराहे पर है. इस सूचना पर उन्होंने पुलिस टीम को बुला लिया और एकौनी तिराहे पर पहुंच गए.

पुलिस को देख कर वह रसड़ा की ओर भागा. पुलिस ने पीछा किया तो उस ने फायर कर दिया, पर पुलिस ने उसे दबोच लिया. पूछताछ में उस ने अपना नाम प्रशांत सिंह उर्फ हीरा निवासी फेफना बताया.

प्रशांत सिंह ने बताया कि वह रतन सिंह की हत्या में शामिल था. उस ने ही रतन पर फायर किया था. गिरफ्तारी से बचने के लिए वह बनारस भागने की फिराक में था, लेकिन पकड़ा गया. पुलिस ने उस के पास से एक अवैध पिस्टल .32 बोर तथा एक जिंदा व एक मिस कारतूस बरामद किया.

29 अगस्त की सुबह 5 बजे पुलिस टीम ने मुखबिर की सूचना पर शेष बचे 3 अन्य अभियुक्तों को वंधैता गेट से गिरफ्तार कर लिया.  गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों ने अपना नाम तेजबहादुर सिंह, अनिल सिंह व उदय सिंह बताया. उन के पास से पुलिस ने 2 कुल्हाड़ी व एक लाठी बरामद की.

पूछताछ में तीनों ने रतन सिंह की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. पुलिस ने कुल्हाड़ी व लाठी को साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. इस तरह पुलिस ने सभी 10 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.पुलिस जांच में पत्रकार रतन सिंह की हत्या के पीछे की जो कहानी प्रकाश में आई, उस का विवरण इस प्रकार है.

बलिया जिले का एक कस्बा है फेफना. बदन सिंह अपने परिवार के साथ इसी कस्बे में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी आशा सिंह के अलावा 2 बेटे पवन सिंह, रतन सिंह तथा बेटी सरला सिंह थी. बदन सिंह बड़े काश्तकार थे, अत: उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. उन का एक पुश्तैनी मकान था, दूसरा मकान उन्होंने फेफना-रसड़ा मार्ग पर बनवाया था. वह नए मकान मेें रहते थे.

बदन सिंह के बड़े बेटे की मौत हो चुकी थी. छोटा बेटा रतन सिंह पढ़ालिखा स्मार्ट युवक था. रतन सिंह की पत्नी का नाम प्रियंका सिंह था. वह 2 बच्चों की मां थी, बेटा युवराज (10 वर्ष) तथा बेटी परी (4 वर्ष). प्रियंका सिंह खुशमिजाज घरेलू महिला थी.

रतन सिंह बलिया मुख्यालय पर हिंदी टीवी चैनल सहारा समय में कार्यरत थे. वह सुबह 9 बजे घर से निकलते थे और रात 8 बजे तक घर वापस आ पाते थे.

रतन सिंह के पुश्तैनी मकान के पास कुछ जमीन थी. इस जमीन पर उन का पट्टीदार अरविंद सिंह कब्जा करना चाहता था. वह उस जमीन पर घासफूस, भूसा आदि रख देता था. ग्रामप्रधान सीमा सिंह का पति सुशील सिंह तथा देवर सोनू सिंह अरविंद सिंह का साथ देते थे.

सोनू सिंह की दोस्ती प्रशांत सिंह उर्फ हीरा से थी, जो दिनेश सिंह का बेटा था. हीरा अपराधी प्रवृत्ति का था और अवैध शराब का कारोबार करता था. रतन सिंह शराब माफिया के संबंध में खबरें प्रसारित करते रहते थे सो हीरा, रतन सिंह से खुन्नस रखता था और अरविंद सिंह को उन के खिलाफ उकसाता रहता था.

इसी विवादित जमीन को ले कर 26 दिसंबर, 2019 को अरविंद सिंह और बदन सिंह में झगड़ा, मारपीट और फायरिंग हुई. तब रतन सिंह ने अरविंद सिंह, प्रशांत सिंह उर्फ हीरा तथा दिनेश सिंह सहित 5 लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 147/148/149/504/506/307 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी.

इस घटना के बाद दोनों पक्षों में खुन्नस और बढ़ गई. चूंकि दबंग प्रशांत सिंह उर्फ हीरा को इस मामले में जेल जाना पड़ा था, सो वह मन ही मन रतन सिंह को मिटा कर उस के बाप बदन सिंह का घमंड चूर कर देना चाहता था. वह धीरेधीरे अरविंद सिंह व अन्य लोगों को रतन सिंह के खिलाफ भड़काने लगा था.

आखिर सब ने मिल कर रतन सिंह के खिलाफ एक योजना बना ली.24 अगस्त, 2020 की रात 8 बजे प्रशांत सिंह उर्फ हीरा ने अपने पिता दिनेश सिंह, चाचा अरविंद सिंह, प्रधान के पति सुशील सिंह, उस के छोटे भाई सोनू सिंह तथा अन्य साथी उदय सिंह, अनिल सिंह, तेजबहादुर सिंह, वीर बहादुर सिंह तथा विनय सिंह को प्रधान के घर बुलाया.

इस के बाद सब ने एक बार फिर मंत्रणा की. फिर पुराने मामले में समझौते के बहाने रतन सिंह को सोनू सिंह की मार्फत बुलवा लिया.  रतन सिंह के आने पर समझौते को ले कर बातचीत शुरू हो गई.

पर बात बनने के बजाय बढ़ गई. इस पर सब मिल कर रतन सिंह को पीटने लगे. किसी ने लाठी से तो किसी ने कुल्हाड़ी से प्रहार किया.रतन सिंह चीखने लगे और थाना फेफना को फोन करने लगे. इस पर हीरा ने उन का फोन छीन लिया और बोला, ‘‘पत्रकार, आज तू चक्रव्यूह में फंस गया है. अब निकल नहीं पाएगा.’’

यह कहते हुए हीरा ने रतन सिंह पर 3 फायर झोंक दिए. रतन सिंह जमीन पर गिर गए और वहीं दम तोड़ दिया. हत्या करने के बाद सभी आरोपी फरार हो गए. फायरिंग की आवाज सुन कर कुछ लोग प्रधान के घर के बाहर पहुंचे. वहां रतन सिंह का शव देख कर सभी चकित रह गए. उन लोगों में अभिषेक भी था, जो बदन सिंह का भतीजा था. उस ने भाग कर यह खबर चाचा को दी.

29 अगस्त, 2020 को थाना फेफना पुलिस ने अभियुक्त प्रशांत सिंह उर्फ हीरा, उदय सिंह, अनिल सिंह तथा तेजबहादुर सिंह को बलिया की जिला अदालत में पेश किया, जहां से चारों को जिला जेल भेज दिया गया.

Osteoporosis : कमजोर न होने दें हड्डियां

पहले हम ज्यादातर अपने परिवार में या फिर पड़ोस में बुजुर्गों को ही औस्टियोपोरोसिस की वजह से बांह, पैर या फिर कूल्हे के फ्रैक्चर आदि से पीडि़त देखते थे, लेकिन अब औस्टियोपोरोसिस के लक्षण अपनी उम्र के बमुश्किल तीसरे दशक में पहुंचे युवाओं में भी दिखने लगे हैं. डाक्टर इस की वजह जीवनशैली में शारीरिक श्रम की कमी बताते हैं, जिस में व्यक्ति ज्यादातर समय बिना कोई मेहनत का काम किए बैठा रहता है.

औफिस से निकल कर अपनी कार की तरफ जाते वक्त 37 साल की शिल्पा का टखना मुड़ गया. शुरू में उन्होंने इसे मामूली मोच माना. लेकिन बाद में उन के टखने की हड्डी में हलके फ्रैक्चर का पता चला. बोन डैंसिटी टैस्ट से पता चला कि उन की हड्डियां 69 साल की महिला की हड्डियों जैसी कमजोर हैं. इस की प्रमुख वजह उन की बिना श्रम वाली जीवनशैली थी. चलने के नाम पर वे रोज घर से निकल कर लिफ्ट तक और फिर अपनी कार तक और शाम को अपने औफिस से निकल कर कार पार्किंग तक ही चलती थीं.

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औस्टियोपोरोसिस के ये लक्षण अब 50 साल से कम आयु के लोगों में भी देखे जाने लगे हैं. जबकि 20 साल पहले तक ऐसे ज्यादातर मामले 60 साल से ज्यादा की उम्र वालों में दिखते थे. उम्र बढ़ने की सामान्य प्रक्रिया के तहत पुरुष और महिलाएं दोनों में ही 35 साल की आयु के बाद बोन डैंसिटी 0.3 से 0.5% तक घट जाती है.

हड्डियों को बनाने वाले खनिजों की मात्रा कम होने से हड्डियां हलकी होने लगती हैं, जिस से उन में कमजोरी आने लगती है. इसे ही औस्टियोपोरोसिस कहते हैं. शरीर रचना विज्ञान की वजह से ये लक्षण पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा दिखते हैं. मगर जीवनशैली में आए बदलाव की वजह से अब शहरी युवाओं में भी इस के लक्षण ज्यादा दिखने लगे हैं.

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युवाओं में बढ़ते मामले

कैल्सियम और विटामिन डी की कमी औस्टियोपोरोसिस की मूल वजह है. आधुनिक जीवनशैली ऐसी हो गई है कि लोग कैल्सियम का कम सेवन करते हैं. सूर्य की किरणें भी शरीर तक कम ही पहुंच पाती हैं. इस से शरीर में विटामिन डी की कमी हो जाती है. इस के अलावा शारीरिक श्रम की कमी और धूम्रपान जैसी बुरी आदतों ने भी शहरी युवाओं में औस्टियोपोरोसिस की आशंका को बढ़ाया है.

यकीनन टैक्नोलौजी ने लोगों की जिंदगी को आसान बनाया है. लेकिन यह भी सच है कि अपनी रुतबा दिखाने के लिए लोग वाहन खरीदना जरूरी समझते हैं, जिस के चलते पास के स्टोर से भी कोई सामान लाने के लिए पैदल जाने के बजाय कार से जाते हैं. फिर साइकिल से औफिस जाना भी अब न के बराबर हो गया है.

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इसी तरह लोग अब सीढि़यों से जाने की जगह लिफ्ट का ज्यादा उपयोग करते हैं. पानी की आसान उपलब्धता की वजह से हैंडपंप से मेहनत कर के पानी निकालने की भी अब लोगों को जहमत नहीं उठानी पड़ती. होम डिलिवरी के आज के युग में परचून का सामान खुद लाने की नौबत भी नहीं आती. इन सारी वजहों ने लोगों में शारीरिक श्रम का स्तर 20 साल पहले की तुलना में काफी कम कर दिया है.

हड्डियों को कमजोर करने की यही प्रमुख वजहें हैं. लंबे समय तक हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए फायदेमंद खुराक के अलावा समुचित व्यायाम भी बहुत जरूरी है. हड्डियां चूंकि एक सजीव ऊतक होती हैं, इसलिए इन्हें व्यायाम के जरीए मजबूत बनाया जा सकता है.

उम्र के तीसरे दशक से हड्डियों में खनिजों की जो कमी होनी शुरू होती है, उसे व्यायाम के जरीए रोका जा सकता है. व्यायाम करने वालों की हड्डियां उन लोगों से ज्यादा मजबूत होती हैं, जो किसी तरह का व्यायाम नहीं करते. मगर ध्यान रहे कि सभी व्यायाम हड्डियों के लिए फायदेमंद नहीं होते. ऐसा व्यायाम जिस में भार उठाया जाता है, हड्डियों के लिए खासा फायदेमंद होता है.

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गांवों में रहने वाले पुरुषों और महिलाओं की हड्डियां शहरों में रहने वालों से कहीं ज्यादा मजबूत होती हैं. इस की वजह यह है कि कठोर मेहनत वहां की जीवनशैली का हिस्सा है.

भार उठाने वाले व्यायाम

भार उठाने वाले व्यायाम हड्डियों के लिए काफी लाभप्रद होते हैं. इन से हड्डियों की क्षमता खुदबखुद बढ़ने लगती है. ऐसी कोई भी गतिविधि जो आप के शरीर को गुरुत्वाकर्षण के विरोध में ताकत लगाने के लिए बाध्य करे, भार उठाने वाला व्यायाम कहलाती है. इन से हड्डियों की क्षमता तो बढ़ती ही है, साथ ही वे मजबूत भी होती हैं. मगर ऐसे व्यायामों की तीव्रता व्यक्ति के शरीर की क्षमता पर निर्भर करती है. अत: यह भी ध्यान रखना चाहिए कि शरीर की क्षमता को धीरेधीरे बढ़ाया जाए.

भार उठाने का प्रशिक्षण: इस के तहत भार उठाने का अभ्यास किया जाता है, लेकिन इसे स्वस्थ लोगों द्वारा ही किया जाना चाहिए. इस व्यायाम से न केवल मांसपेशियां मजबूत होती हैं, बल्कि हड्डियों की क्षमता भी बढ़ती है. ऐसी महिलाएं और पुरुष जिन्होंने अपनी उम्र के दूसरे दशक से ही ऐसे व्यायाम करने शुरू कर दिए हों, वे अपेक्षाकृत ज्यादा स्वस्थ और मजबूत होते हैं.

सैर: अगर आप को रोमांच पसंद हो, तो फिर मजा लीजिए हाइकिंग, ट्रैकिंग और माउंटेनियरिंग का. इन से न सिर्फ आप का शौक पूरा होगा, बल्कि आप की हड्डियां भी मजबूत होंगी.

डांस और ऐरोबिक्स: जिन्हें डांस का शौक हो, उन के लिए रोज इसे करने से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता. डांस करना मजा तो देता ही है, हड्डियों और मांसपेशियों के लिए भी फायदेमंद है. आप ऐरोबिक्स भी कर सकते हैं.

दौड़ना: दौड़ना कई वजहों से अच्छा व्यायाम है. इस से व्यक्ति का वजन नियंत्रित रहता है. हृदय का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है. हड्डियों और मांसपेशियों में भी मजबूती आती है.

सीढि़यां चढ़ना: हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत करने और स्टैमिना बढ़ाने का यह अचूक तरीका है. लिफ्ट के बजाय रोज सीढि़यों का उपयोग करना बेहतरीन व्यायाम है.

तेज चलना: स्वास्थ्य या दूसरी वजहों से जो लोग इन में से कोई भी व्यायाम करने की स्थिति में नहीं हैं, उन्हें रोज 30 मिनट तक तेज चलना चाहिए. हड्डियों और मांसपेशियों पर इस का अच्छा असर पड़ता है.

 

– डा. राजीव के. शर्मा सर्जन, इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल

सीरियल ‘राधाकृष्ण‘ से किंशुक वैद्य, इशिता गांगुली और कृप सूरी की विदायी और कार्तिक मालवीय बने इसका हिस्सा

‘‘स्टार भारत’’पर पिछले दो  वर्षांे से हर सोमवार से शुक्रवार रात नौ बजे प्रसारित हो रहे सीरियल‘‘राधाकृष्ण’’में कहानी में बदलाव के चलते इस सीरियल से किंशुक वैद्य,इशिता गांगुली और कृप सूरी की विदाई होने जा रही हैं,वहीं नई कहानी में नए किरदार को निभाते हुए कार्तिकेय मालवीय नजर आने वाले हैं.
जी हाॅ! सीरियल‘‘राधाकृष्ण’’से तीन कलाकारों किंशुक वैद्य,इशिता गांगुली और कृप सूरी की विदाई जरुर हुई है,मगर बिना किसी मनमुटाव के.वास्तव में अब सीरियल की कहानी को एक अलग ढर्रे पर ले जाया जा रहा है,जहां अब अर्जुन या द्रौपदी के किरदार नजर नहीं  आएंगे, इसीलिए इन किरदारों को निभाने वाले कलाकार भी इस सीरियल को बायबाय कर चुके है.
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इस संबंध में किंशुक वैद्य कहते हैं-‘‘मैं लोकप्रिय सीरियल ‘राधाकृष्ण‘ में अर्जुन की भूमिका निभाना एक शानदार यात्रा रही है.इस सीरियल में कृष्ण और अर्जुन की दोस्ती के अनकहे पहलू को सुंदर कहानी के साथ पेश किया गया. अपने सह-कलाकारों के साथ सेट पर समय बिताना और उनके साथ विभिन्न दृश्यों की तैयारी करके वास्तव में एक खुशी मिलती थी.अर्जुन की भूमिका ने मुझे एक ही किरदार को अलग-अलग लुक्स के साथ गहराई तक समझने का एक महान अनुभव दिया.मैं हमेशा इन यादों को संजो कर रखॅूंगा,और इस शानदार अवसर के लिए मैं ‘स्वास्तिक प्रोडक्शंस’और ‘स्टार भारत’का शुक्रिया अदा करना चाहूंगा।“

वहीं द्रौपदी की भूमिका निभाने वाली इशिता गांगुली और उनके किरदार का इस सीरियल से नाता खत्म हो रहा है.वह कहती हैं-‘‘मैं तो इस सीरियल से विदाई  के लिए तैयार थी.हमें पता था कि जैसे ही इस कहानी में महाभरत का ट्ैक खत्म होगा,वैसे ही हमारे किरदार यानी कि द्रौपदी के साथ ही इस सीरियल से मेरी विदाई भी होनी ही है.मुझे तो लगता ही नही है कि हमने इस सीरियल के लिए दो वर्ष तक श्ूाटिंग की,हमें तो लगता है कि अभी कुछ दिन पहले ही मैं इस सीरियल के संग जुड़ी थीं. हम सीरियल ‘राधाकृष्ण‘की इस बड़ी यात्रा का एक छोटा सा हिस्सा थी। मैंने मल्लिका,सुमेध, किंशुक, मल्हार, कृप, अंकित और अन्य कलाकारों संग सेट पर एक बेहतरीन बॉन्ड बनाया. हम एक साथ बहुत समय बिताते थे.मैं पहले भी पौराणिक शोज का हिस्सा रही हूँ,लेकिन वहाँ मौजूद कलाकारों के साथ कभी इतना लंबा समय नहीं बिताया.प्रोडक्शन,डायरेक्शन और  क्रिएटिव की पूरी टीम ने हमारा खूब स्वागत किया कर हमें प्यार दिया.परिणामतः मैं शूटिंग के आखिरी दिन भावुक हो गयी.मैं इन सभी प्रतिभाशाली सह-कलाकारों और टीम के बाकी लोगों का मिस करुँगी.मुझे द्रौपदी ने बहुत शक्तिशाली महसूस कराया.मुझे दर्शकों का भरपूर प्यार मिला और विभिन्न कलाकृतियों के साथ उन्होंने जो सहयोग दिखाया, वह वाकई अद्भुत था.“
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सीरियल‘राधाकृष्ण‘की कहानी का कायाकल्प होने के बाद अब सुमेध के पुत्र के किरदार में कार्तिकेय मालवीय नजर आएंगे.इसके अलावा राधाकृष्ण एक साथ होंगे.  गोलोक में कृष्ण की वापसी खुशी की वापसी को चिह्नित करेगा और दर्शकों में भी जश्न का माहौल पैदा करेगा.

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सीरियल ‘राधाकृष्ण‘ का हिस्सा बनने को उत्साहित कार्तिक मालवीय ने कहा-‘‘मैं सीरियल ‘राधाकृष्ण’का हिस्सा बनकर उत्साहित हॅूं.यह मेरा सौभाग्य है कि इसमें मुझे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर मिला है.मैं अपने किरदार के साथ पूरा न्याय करने का प्रयास करूँगा और इस महाकाव्य पौराणिक सीरियल का हिस्सा बनने और इस शानदार अवसर के लिए सभी का आभारी हूँ. ‘‘

बिहार विधानसभा चुनाव -2020 महागठबंधन का रोजगार उन्मुख घोषणापत्र

बिहार विधानसभा चुनाव में राजद,कांग्रेस व वाम दलों को लेकर बने महागठबंधन ने जारी अपने संयुक्त घोषणा पत्र में, सरकार बनते ही 10 लाख लोगों को रोजगार देने का वादा किया है. इस अवसर पर पटना के मौर्या होटल में आयोजित संयुक्त प्रेस वार्ता में महागठबंधन के नेताओं ने कहा कि यह  संकल्प पत्र है. इन नेताओं ने बिहार की नीतीश सरकार को सभी मोर्चों पर विफल बताया और कहा कि इस सरकार ने जनहित के कामों की अनदेखी की है जिस कारण अब प्रदेश की जनता इस सरकार से हर हाल में मुक्ति चाहती है.

पत्रकारों से बात करते हुए तेजस्वीी यादव ने कहा कि महागठबंधन की सरकार बनी तो शपथग्रहण करते ही दस लाख बेरोजगारों को नौकरी देने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी . गौरतलब है महागठबंधन में शामिल तमाम दलों ने इस साझे घोषणापत्र में अपनी साझी प्राथमिकताएं तय की हैं,इस घोषणापत्र में किसी दल की नितांत निजी मान्यताओं को जगह नहीं दी गयी ,जिनसे बाकी दल इत्तफाक नहीं रखते. यही वजह है कि साझे घोषणापत्र वामदलों की बातों और रोजगार संबंधी रणनीति को ही प्राथमिकता दी गयी है . साझा विकास कार्यक्रम मुख्यतः रोजगार की समस्या को संबोधित है.

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इसमें उन सामाजिक तनावों को संबोधित करने से अमूमन बचा गया है जो हाल के महीनों एनआरसी जैसे मुद्दों के कारण पूरे देश चर्चा का विषय रहे हैं. घोषणापत्र में नीतीश कुमार को विशेष रूपसे घेरने की कोशिश की गयी है . इसमें कहा गया है कि नीतीश कुमार पिछले 15 साल से राज्य के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन आज तक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिला पाए. यही नहीं उन्होंने साल  2015 में वायदा किया था कि वह सरकार बनाने के बाद प्रदेश में विशेष रूपसे औद्योगिक वातावरण तैयार करेंगे और सभी बीमार उद्योगों को जीवनदान देंगे लेकिन हकीकत यह है कि चाहे राज्य के बीमार शुगर मिल हो या  जूट अथवा पेपर मिल सब के सब ठप हैं. मालूम हो कि बिहार में मकई, लीची, गन्नेस, केले आदि की खेती देश में नंबर वन होती है,लेकिन भरपूर उत्पाचदन के बावजूद प्रदेश में एक भी फूड प्रोसेसिंग यूनिट नहीं है.

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जाहिर है राजद के संयुक्त घोषणापत्र में इन सभी चीजों पर विशेष रूपसे ध्यादन देने का वायदा किया गया है. इस तरह संयुक्त घोषणापत्र में रोजगार पैदा करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी है. शायद लॉकडाउन के बाद बड़े पैमाने पर प्रदेश में प्रवासी मजदूरों की हुई वापसी को भी ध्यान में रखकर इस मुद्दे को प्राथमिकता दी गयी है . क्योंकि बिहार में प्रवासी मजदूरों के साथ जिस तरह का व्योहार किया गया,उससे वे काफी आहत हैं . तेजस्वी  यादव कहते हैं, ‘सरकार का ध्याान न तो प्रवासियों पर रहा और न ही अब बाढ़ प्रभवितों पर है. प्रदेश के 18 जिले और करीब 85 लाख जनता बाढ़ से हर वर्ष प्रभावित होती है.  लेकिन आज तक केंद्र सरकार का कोई दल उनके नुकसान का आकलन करने तक नहीं आया. लगता है कि नीतीश की सरकार को कोई परवाह नहीं है,उन्हें सिर्फ अपनी कुर्सी की चिंता है.’

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तेजस्वीा यादव मुख्य मंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए यह भी कहते हैं, ‘ वह सेवा और मेवा की बात करते हैं लेकिन उनके राज में बिहार में 60 घोटाले हो गए. सृजन घोटाले के आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं. चाहे भ्रष्टाघचार का मामला हो या अपराध का, सरकार हर मोर्चे पर पूरी तरह से फेल है. साल 2015 में जब कांग्रेस, राजद और जद यू की सरकार थी तब के 18 महीने और उसके बाद भाजपा के साथ सरकार बनने के कार्यकाल के दौरान हुई आपराधिक वारदातों की तुलना कर लीजिये सब पता चल जाएगा कि सुशासन बाबू का शासन कितना सुशासन है . एनसीआरबी के आंकड़ों साफ़ पता चलता है कि बिहार में नीतीश के कार्यकाल में कितना अपराध बढ़ा है.’

बॉक्स संयुक्त घोषणापत्र की प्रमुख बातें

अगर बिहार में महागठबंधन की सरकार बनती है तो छात्रों से परीक्षाओं के लिए भरे जाने वाले आवेदन फार्म पर फीस पूरी तरह से माफ़ होगी. नौजवानों को परीक्षा केंद्रों तक जाने का किराया सरकार देगी. हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि केवल बिहार के भीतर ही या बिहार के बाहर भी. वैसे राज्य विधानसभा चुनाव का घोषणापत्र है,इसलिए सैधांतिक रूप से लगता है,यह बिहार तक ही सीमित होगा. घोषणापत्र में कहा गया है कि महागठबंधन की सरकार कामगारों का राज्य से पलायन रोंकने की हर संभव कोशिश करेगी. घोषणापत्र के मुताबिक़ विधानसभा के पहले ही  सत्र में केंद्र के कृषि संबंधी तीनों बिल के प्रभाव से बिहार के किसानों को मुक्ति दिलायी जायेगी. प्रदेश में कर्पूरी श्रम सहायता केंद्र खोलें जायेंगे जिसके जरिये बेरोजगारों की मदद करना आशान होगा. घोषणापत्र में एक और संवेदनशील मुद्दे को छुआ गया है कि शिक्षकों के लिए समान काम का समान वेतन दिया जाएगा,साथ ही जीविका दीदियों का मानदेय दोगुना करने का वादा भी किया गया है.

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में दिखेगा इमोशनल ड्रामा, कायरव पूछेगा अपने मां-पापा से सवाल

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है देखने वाले फैंस के लिए खुशखबरी है कि इस सीरियल में एक नया ट्विस्ट देखने को मिलेगा. इस सीरियल में नायरा और कार्तिक के लाइफ में कुछ इमोशनल ड्रामा देखने को मिलेगा.

दरअसल, सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में कुछ ऐसा देखने को मिलेगा जिसके बारे में आपने कभी सोचा भी नहीं होगा. नायरा और कार्तिक के जीवन में कायरव की वापसी हो गई है. वह आते से ही अपने मैं- पापा से कहता है कि वह उनसे प्यार नहीं करते है.

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इस बात का जिक्र सीरियल के नए प्रोमो में दिखाया गया है साथ ही प्रोमो में यह दिखाया गया है कि वह कृष्णा से नफरत करता है.

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इसे देखने के बाद फैंस सीरियल को देखने के लिए काफी ज्यादा उत्साहित नजर आ रहे हैं. फैंस को पता है कि अब इस सीरियल में धमाल होने वाला है.

गोयनका हाउस में कुछ वक्त पहले ही कायरव की वापसी हुई है आते ही सभी के जीवन में उसने अपने सवाल से भूचाल ला दिया है. जिसके बाद घरवाले परेशान है कि आखिर कैरव क्यों ऐसा सवाल पूछ रहा है.

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वहीं कुछ वक्त पहले खबर ये भी आई थी कि कार्तिक यानी मोहसिन खान जल्द ही इस सीरियल को अलविदा कहने वाले हैं. इसमें देखना यह है कि कायरव को कैसे उसके मम्मी पापा- समझाते हैं क्या वह वाकई में एक अच्छे पेरेंट्स बन पाएंगे.

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फैंस को इतंजार है इस सीरियल के नेक्स्ट एपिसोड का.

वायरल हुआ नेहा कक्कड़ की शादी का कार्ड, फैंस ने बताया पब्लिसिटी स्टंट

फिल्म इंडस्ट्री में शादियों का सीजन शुरू हो चुका है ऐसे में आएं दिन कुछ न कुछ नई खबर आती ही रहती है. ऐसे में इन दिनों नेहा कक्कड़ और रोहन प्रीत सिंह की शादी काफी चर्चा में बनी हुई है.

हर रोज इनकी शादी को लेकर नई खबर आ जाती है. नेहा कक्कड़ ने इंडियाज राइजिंग स्टार में रोहनप्रीत के साथ खुलकर अपनी शादी का इजहार किया था.

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जिसके बाद से सोशल मीडिया पर आए दिन नई-नई खबर इनकी शादी को लेकर आने लगी. खबर है कि जल्द ही दोनों शादी के बंधन में बंधने वाले हैं.

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इन दिनों सोशल मीडिया पर इन दोनों के शादी का कार्ड खूब वायरल हो रहा है . अगर वायरल हो रहे शादी के कार्ड की माने तो इन दोनों की शादी 26 अक्टूबर 2020 को है. शादी के कार्ड में वेन्यू का भी जिक्र किया गया है जिसमें बताया गया है कि होटल मोहाली एयरपोर्ट से नजदीक है. हालांकि यह कार्ड असली है या फेक है अभी तक इसके बारे में कोई खबर नहीं आई है.

 

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वहीं शादी की खबरों की बीच लोग यह कयास लगा रहे हैं कि यह पब्लिक स्टंट भी हो सकता है. दरअसल 21 अक्टूबर को नेहा कक्कड़ का नया एलबम नेहा द ब्याह रिलीज होने वाला है. लोगों का मानना है कि इस एलबम को हिट करने के लिए पब्लिसिटी स्टंट किया जा रहा है.

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