लेखक- रवि प्रकाश 

आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, सोहांव, बलिया के अध्यक्ष, प्रोफैसर रवि प्रकाश मौर्य ने धान की खेती करने वाले किसानों को अभी से कंडुआ रोग से सावधान रहने की सलाह दी है.

उन्होंने बताया कि पौधे से बाली निकलने के समय धान पर कंडुआ रोग का असर बढ़ने लगता है. इस रोग के कारण धान के उत्पादन पर बुरा असर पड़ने की संभावना बनी रहती है.

धान की बालियों पर होने वाले रोग को आम बोलचाल की भाषा में लेढ़ा रोग, बाली का पीला रोग से किसान जानते हैं. वैसे, अंगरेजी में इस रोग को फाल्स स्मट और हिंदी में मिथ्या कंडुआ रोग के नाम से जाना जाता है.

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यह रोग अक्तूबर माह के मध्य से नवंबर माह तक धान की अधिक उपज देने वाली प्रजातियों में आता है. परंतु मौसम में बदलाव के कारण पूर्वांचल के कई जनपदों में अभी से यह रोग बालियों में देखा जा रहा है. जब वातावरण में काफी नमी होती है, तब इस रोग का प्रकोप अधिक होता है. धान की बालियों के निकलने पर इस रोग के लक्षण दिखाई देने लगते हैं. रोग ग्रसित धान का चावल खाने पर स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. प्रभावित दानों के अंदर रोगजनक फफूंद अंडाशय को एक बड़े कटु रूप में बदल देता है, बाद में जैतूनी हरे रंग के हो जाते है.

इस रोग के प्रकोप से दाने कम बनते हैं और उपज में 10 से 25 प्रतिशत की कमी आ जाती है. मिथ्या कंडुआ रोग से बचने के लिए नियमित खेत की निगरानी करते रहें. यूरिया की मात्रा आवश्यकता से अधिक न डालें.

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