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मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग का हब बन रहा उत्तर प्रदेश

बीते चार वर्षों में उत्तर प्रदेश की आईटी नीति ने देश में कमाल किया है. इस नीति के चलते राज्य में डिजिटल इंडिया अभियान ने गति पकड़ी है. आईटी मैन्यूफैक्चरिंग के सेक्टर में रिकार्ड निवेश हुआ है. और अब उत्तर प्रदेश मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग में देश का प्रमुख केंद्र बनने की दिशा में बढ़ चला है. राज्य में ओप्पो, वीवो, सेमसंग, लावा और फ़ॉरमी जैसी तमाम कंपनियां ने मोबाइल फोन का निर्माण करने में पहल की है. अब वह दिन दूर नहीं है, जब इन देशी और विदेशी कंपनियों के भरोसे यूपी मोबाइल फोन मैन्यू फैक्चरिंग का सबसे बड़ा हब बन जाएगा. देश के करोड़ों लोग यूपी में बने सैमसंग, वीवो, ओप्पो और लावा के मोबाइल हैंडसेट से बात करते हुए दिखाई देंगे.

यह दावा अब देश के बड़े औद्योगिक संगठनों से जुड़े उद्योगपति कर रहे हैं. इन औद्योगिक संगठनों के पदाधिकरियों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में डिजिटल इंडिया अभियान के तहत मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है. इलेक्ट्रॉनिक मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में प्रदेश सरकार की इन्वेस्टमेंट फ्रेंडली नीतियों की वजह से बड़ी कंपनियों ने राज्य में बड़ा निवेश किया हैं.

प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री एवं प्रवक्ता सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि कुछ साल पहले तक राज्य में मोबाइल हैंडसेट के निर्माण में सूबे का नाम तक नहीं लिया जाता था. वर्ष 2014 में देश में मात्र छह करोड़ मोबाइल हैंडसेटों का निर्माण होता था. फिर वर्ष 2015 -16 में 11 करोड़ और 2016-17 में 17.5 करोड़ मोबाइल हैंडसेट का निर्माण देशभर में हुआ. अब 12 करोड़ मोबाइल हैंडसेट का निर्माण यमुना एक्सप्रेसवे विकास प्राधिकरण (यीडा) में स्थापित की जा रही वीवो की फैक्ट्री जल्दी ही होने लगेगा. यीडा के सेक्टर 24 में वीवो मोबाइल प्राइवेट लिमिटेड 7000 करोड़ रुपए का निवेश का मोबाइल हैंडसेट बनाने की फैक्ट्री लगा रही है. 169 एकड़ भूमि पर लगाई जा रही इस फैक्ट्री के प्रथम चरण में छह करोड़ मोबाइल सेट बनाए जाएंगे. दूसरे चरण में इस फैक्ट्री की क्षमता  बढ़ाई जाएगी, ताकि इस फैक्ट्री में हर वर्ष 12 करोड़ मोबाइल हैंडसेट बनाए जा सके. वीवो की इस फैक्ट्री में 60 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा. वीवो की इस फैक्ट्री में बनाए जाने वाले हर मोबाइल से जीएसटी के रूप में सरकार को राजस्व प्राप्त होगा.

वीवो के अलावा चीन की बड़ी कंपनी ओप्पो मोबाइल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड 2000 करोड़ रुपए का निवेश का ग्रेटर नोयडा में स्मार्ट फोन बनाएगी. ग्रेटर नोयडा में ही होलिटेच इंडिया प्राइवेट लिमिटेड में मोबाइल फोन डिस्प्ले यूनिट लगाने का फैसला किया है. 1772 करोड़ का निवेश कर बनाए जाने वाली मोबाइल फोन डिस्प्ले यूनिट के लिए भूमि आंवटित हो चुकी है. नोएडा में लावा इलेक्ट्रानिक्स ने अपनी फैक्ट्री लगाकर वहां मोबाइल हैंडसेट बना रही है. सैमसंग ने भी बीते साल अपनी फैक्ट्री नोएडा में मोबाइल फोन मैन्यूफैक्चरिंग की फैक्ट्री लगाई है. इसके अलावा प्रदेश सरकार की मैन्यूफैक्चरिंग पालिसी 2017 से प्रभावित होकर फ़ॉरमी ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड ग्रेटर नोएडा में और  केएचवाई इलेक्ट्रानिक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड नोएडा में मोबाइल हैंडसेट बनाने की फैक्ट्री लगा रही हैं. चीन की विख्यात कंपनी सनवोडा इलेक्ट्रानिक्स ने भी ग्रेटर नोएडा में स्मार्टफोन, लिथियम बैटरी और प्लास्टिक मोबाइल केस बनाने की फैक्ट्री लगाने में रूचि दिखाई है. 1500 करोड़ का निवेश कर सनवोडा को ग्रेटर नोएडा में अपनी फैक्ट्री लगाने का निर्णय किया है. यूपी में लगाई जा रही मोबाइल फोन मैन्यूफैक्चरिंग की इन फैक्ट्रियों को देख कर अब यह कहा जा रहा है कि देश में मोबाइल हैंडसेट के लिए अभी तक जो कंपनियां चीन की मैन्यूफैक्चरिंग इकाइयों पर निर्भर थीं, वह अब उत्तर प्रदेश  में अपने ब्रांड के मोबाइल हैंडसेट बनवा रही हैं. इनमें ओप्पो, वीवो, सैमसंग, लावा और फ़ॉरमी जैसी कंपनियां शामिल हैं. यही सभी कंपनियां करोड़ों मोबाइल हैंडसेट हर साल बनाएंगी. देश में मोबाइल हैंडसेट की आधे से अधिक मांग को सूबे में लगाई जा रही कंपनियों से ही पूरी होगी.

मोबाइल हैंडसेट बनाने के लिए राज्य में हो रहे इस निवेश पर इलेक्ट्रॉनिक व सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) महकमें का अफसरों का कहना है कि प्रदेश सरकार की आईटी और मैन्यूफैक्चरिंग पालिसी 2017 तथा मोबाइल हैंडसेट निर्माण  के क्षेत्र में आए इस बदलाव ने प्रदेश में मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में बड़ा निवेश हुआ है. इस वजह से नौकरियों के नए अवसर पैदा हुए हैं. अब जैसे-जैसे प्रदेश में इलेक्ट्रॉनिक व मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग का आधार बढ़ेगा, राज्य में ज्यादा-ज्यादा लोगों के लिए नौकरियों के अवसर पैदा होंगे. इन अधिकारियों के अनुसार, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र देश में अपने यहां मोबाइल हैंडसेट के निर्माण को बढ़ावा दे रहे हैं. गर्व करने वाले बात यह है कि मोबाइल कंपनियों को आकर्षित करने में अब तक सबसे आगे उत्तर प्रदेश सरकार है. यूपी के नोएडा और ग्रेटर नोएडा में कई कंपनियां ने अपना प्लांट लगा रही हैं. कई कंपनियों ने अपनी फैक्ट्री लगाने के लिए आगे आयी हैं. अब इन सारी कंपनियों के सहारे जल्दी ही यूपी बनेगा मोबाइल फोन बनाने का सबसे बड़ा हब देश में बन जाएगा.

दिमाग स्वस्थ तो आप स्वस्थ

लेखिका-डा. रुचि शर्मा

जनवरी 2020 में हम ने चीन में आए महामारी की खबर सुनी और हमें लगा अरे, यह तो बहुत बुरा हुआ और हम अपनी जिंदगियां जीते रहे. इस के बाद शुरू हुआ 2020 और हमारा जीवन पूरी तरह बदल गया.

महामारी का भारी असर हमारे काम, जीवनशैली और व्यवहार पर हुआ है. अर्थव्यवस्था का लगभग हर क्षेत्र प्रभावित हुआ. इस बीमारी ने कई बदलावों के लिए मजबूर किया है जबकि इन के लिए हम मानसिक व शारीरिक रूप से तैयार नहीं हो पा रहे हैं.

अनिश्चितता के माहौल में जो स्थिति है उस से हमारे विश्वास और बोध को चुनौती मिली है. परिणामस्वरूप भय, चिंता, तनाव और अवसाद पैदा हो गया है. कोविड के कारण लाखों लोगों की नौकरी चली गई. उन के प्रियजनों का जीवन भी प्रभावित हुआ है.

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कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ा. हमारी सामाजिक और आर्थिक मुश्किलें बढ़ गई हैं.

आज के वक्त में हर किसी को चाहिए कि वह उत्साहित और प्रेरित रहे, सकारात्मक रहे क्योंकि हर सुरंग के अंत में रोशनी होती है और यह मुश्किल समय भी निकल जाएगा. बदलती परिस्थिति ने  हमारी जीवनशैली और जीवन की वास्तविकता बदल दी है. भविष्य पर मंडराती अनिश्चितता के साथसाथ इस परिस्थिति ने हमारे विश्वास व अनुभूतियों को चुनौती दी है जिस से सर्वव्यापी भय, चिंता और दुख का माहौल है.

मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं में बढ़ोतरी की वजह से जो लोग पहले से ही मनोवैज्ञानिक बीमारी के शिकार थे या जिन के परिवार में ऐसी समस्याएं पहले से मौजूद थीं उन्हें बड़ी ही मुश्किल व चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करना पड़ा. मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं की आवृत्ति और तीव्रता में इस बढ़ोतरी के बावजूद हम इन के बारे में बात करने से मुकरते हैं और मदद मांगने की जरूरत को तवज्जुह नहीं देते.

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अफसोस यह है कि मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में उठने वाली इन गंभीर चुनौतियों से निबटने के लिए कोई भी टीका या उपचार नहीं तैयार किया जा रहा. समय की मांग है कि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से लड़ने के लिए दिमाग को मजबूत बनाया जाए.

आप के मस्तिष्क की तरह आप का मन भी आप के लिए महत्त्वपूर्ण है. यह यादों को संजोता है, आप के इमोशंस को संचालित करता है और शरीर के हर मूवमैंट को साइकोलौजिकली सपोर्ट भी करता है. हम जो कुछ भी करते हैं उस में हमारा मन जरूर शामिल होता है. नतीजतन, शरीर के किसी अन्य भाग की तरह ही इस की भी देखभाल करने की आवश्यकता होती है.

हैल्दी लाइफ के लिए माइंड का हैल्दी होना बहुत जरूरी है. इस के लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनाने की जरूरत है.

–   शरीर के लिए ही नहीं, बल्कि दिमाग के लिए भी सही आहार जरूरी है. कई वैज्ञानिक शोधों में पाया गया है कि मानव के दिमाग की स्मृति,  भ्रम और व्याकुलता सीधे उस की खाने की आदतों से जुड़ी होती है.

– शारीरिक व्यायाम का मैंटल हैल्थ पर सीधा प्रभाव पड़ता है. वर्कआउट रक्त प्रवाह और मैमोरी में सुधार करता है. यह मस्तिष्क में रासायनिक परिवर्तनों को उत्तेजित करता है जो सीखने व सोचने की शक्ति को बढ़ाता है.

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– नींद आप को ऊर्जावान बनाती है. यह आप की मनोदशा और इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाती है. इस से हमारी याददाश्त में सकारात्मक परिवर्तन आता है. सोते समय हमारा दिमाग बहुत सी कड़वी व गैरजरूरी यादों को भूल जाता है.

– हैल्दी माइंड के लिए सोशल कनैक्शन जरूरी है. दोस्तों के साथ घूमना, बातचीत करना सिर्फ टाइमपास ही नहीं, इस से ब्रेनहैल्थ  सुधरता भी है.

–  मैंटल वर्कआउट आप के मैंटल फंक्शन में सुधार कर सकता है. पहेलियां सु झाना, सुडोकू खेलना और शतरंज जैसे खेल आप के दिमाग को शेप में रखते हैं. इन से आप की याददाश्त भी बढ़ती है.

–    ब्रेन के फंक्शन में गिरावट न आए, इस के लिए मैडिकली चौकन्ने रहें. बहुत सारी बीमारियां, जैसे कि टाइप 2 मधुमेह, मोटापा और उच्च रक्तचाप आदि मानव के दिमाग पर बहुत बुरा असर डालती हैं. सो, इन बीमारियों पर कंट्रोल रखें. शराब, धूम्रपान आदि नशों से दूर रहें. साथ ही, अपने शरीर को मोटापे से बचाएं.

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– लाइफ एंजौय करें. चिंता और तनाव आप के मानसिक स्वास्थ्य पर भारी असर डालते हैं. तनाव में रहने वाला व्यक्ति का शरीर और दिमाग जल्दी थक जाता है व अच्छी तरह से काम नहीं करता.

आज मस्तिष्क स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना बहुत जरूरी है. ब्रेन हैल्थ में सुधार व्यक्ति के ओवरऔल स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है. इसलिए दिमाग की मजबूती को बनाए रखें और लाइफ की मुश्किलों को आसानी से टैकल करें.

Family Story :सपनों की आंधी -भाग 2

सुभा का विवाह जल्दी ही सुशांत से तय हो गया. सुशांत मध्यवर्गीय परिवार का लड़का था और एक प्राइवेट फर्म में काम करता था. चूंकि लड़के वालों की कोई मांग नहीं थी, इसीलिए सुभा  के मातापिता ने जल्दी ही विवाह भी  कर दिया.

विवाह के बाद जब पहली बार सुभा मायके गई तो सुना कि लेखा का विवाह सुमंत से करने को कुमुद के ससुराल वाले राजी नहीं हुए. यह सुन कर सुभा तुरंत ही लेखा से मिलने उस के घर गई. लेखा बहुत उदास थी और सुभा को देखते ही उस की आंखों में आंसू आ गए. पीठ पर हाथ फेरते हुए सुभा ने उसे मौन दिलासा दिया.

सुभा मायके से ससुराल गई तो अपनी गृहस्थी में ऐसी रमी कि लेखा और सुमंत यादों के धुंधले साए बन कर रह गए. फिर सुना कि लेखा का विवाह तय हो गया है. लेखा की शादी में सुभा इसलिए नहीं पहुंच सकी क्योंकि तब वह गर्भवती थी. पत्र के साथ लेखा के लिए मनीऔर्डर भेज कर उस के उत्तर का इंतजार करती रही जो लगभग 6 महीने बाद आया.

लेखा ने लिखा था, ‘नरेश अच्छे हैं. घर वाले भी अच्छे हैं. लेकिन सभी पर सास का अंकुश है. बहुत पैसे वाले लोग हैं और दीदी की ससुराल से रिश्तेदारी भी है, इसीलिए इन लोगों को सुमंत के बारे में पता है. नरेश मु झ से खिंचेखिंचे रहते हैं. मैं नहीं जानती, क्यों. हो  सकता है सुमंत के कारण वे मु झ से नाराज हों.’

पत्र पढ़ कर सुभा चिंता में डूब गई. जवानी की बचकानी भूलें कब कहां पीठ में छुरी बन कर गड़ जाएं, कोई नहीं जानता. सो, प्यार से सम झाते हुए उस ने लेखा को लिखा :‘प्रिय लेखा,

‘पिछली सब बातें भुला कर सच्चे मन से पति एवं परिवार की सेवा कर. पति के प्रति समर्पित हो कर जीने से ही पत्नी को सुख मिलता है.’ पत्र के साथ सुभा ने अपने 6 महीने के बेटे रोमी की एक फोटो भी रख दी. तुरंत ही लौटती डाक से लेखा का उत्तर आ गया.

‘जिज्जी, कितना प्यारा है तुम्हारा बेटा, रोमी. दिल कर रहा है, गोदी में ले लूं. सच जिज्जी, मु झे भी ऐसा ही गोलमटोल बेटा चाहिए.’ और भी न जाने क्याक्या लिखा था, जिसे पढ़ कर सुभा हंसती रही. फिर तो दोनों बहनों के बीच पत्रों का जो सिलसिला शुरू हुआ वह लंबे समय तक चलता रहा.

एक दिन पता लगा कि लेखा मां बनने वाली है. बड़े उत्साहभरे अंदाज में लेखा ने लिखा था, ‘जिज्जी, मैं जानती हूं कि मु झे रोमी जैसा गोलमटोल बेटा होगा.’

किंतु फिर खबर आई कि लेखा को बेटी हुई है. उस के बाद उस के पत्र बड़ी देर से आने लगे. अपनी नन्ही बच्ची को अच्छी तरह संभालना उस से हो नहीं पाता था, इसलिए सास उस से नाखुश रहती थी. एक दिन लेखा का पत्र आया जिस के अंत में लिखा था, ‘सब ठीक हो जाएगा, जिज्जी, तुम चिंता मत करना.’

लेखा के बारे में सोच कर सुभा जब कभी तनावग्रस्त होती, सुशांत उसे सम झाते कि धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. लेखा के प्रति सुभा के लगाव को वे अब तक अच्छी तरह सम झ चुके थे.

उस के बाद जिंदगी की गाड़ी ने कुछ ऐसी तेज रफ्तार पकड़ी कि दोनों के बीच पत्रों का आदानप्रदान बहुत कम हो गया. सुभा को 2 साल के अंतर पर 2 बेटे और हुए. अपने 3 बेटों के लालनपालन में वह इतनी व्यस्त रहने लगी कि पत्र लिखना टल जाता था. लेखा की दूसरी संतान भी बेटी ही हुई थी.

सुभा उस की बेटियों की फोटो अवश्य मंगवाती थी.चंद्रकला की भांति बढ़ती लेखा की बेटियां लेखा जैसी ही सुंदर थीं. बड़ी बेटी 14 साल की और छोटी 9 साल की होने वाली थी. तभी सुना कि लेखा फिर मां बनने वाली है, क्योंकि सास को पोते की चाह थी.

फिर एक दिन सुभा ने फोन कर के लेखा को खबर दी कि उस के पति सुशांत सहारनपुर में लकड़ी की फैंसी चीजों का एक शोरूम खोल रहे हैं और अगले महीने वह सुबह जल्दी चल कर साढ़े9 बजे के लगभग वे दोनों सहारनपुर पहुंच गए. लेखा की खुशी का ठिकाना न था. आज कितने सालों बाद वह अपनी प्यारी बहन से मिली तो अनायास ही उन की आखें भर आईं.

सुशांत यह देख हंस कर बोले, ‘यह भरतमिलाप खत्म हो तो हम भी आगे बढ़ें.’‘सौरी, जीजाजी,’ अपनी आंखें पोंछती लेखा एक ओर हट कर बोली, ‘आइए, अंदर आइए, दरअसल जिज्जी को इतने अरसे के बाद देखा है इसीलिए…’ और भावातिरेक में आगे के शब्द मुंह से ही नहीं निकले.

नरेश एक ओर चुपचाप खड़ा था. उस की भावभंगिमा से ऐसा नहीं लगा कि वह सुभा और सुशांत के आने से खुश है.लेखा के घर में सुभा को सब से अधिक आकर्षित किया उस की दोनों बेटियों ने, जो अपनी मां की देखभाल इस तरह कर रही थीं मानो वह कोई छोटी बच्ची हो. जब लेखा ने दूध का गिलास लेने से मना किया तो 9 साल की अर्पिता डांटने की मुद्रा में बोली, ‘पीती हो कि नहीं, ममा.’

फिर सुभा की ओर देख कर बोली, ‘रोज दूध पीने में बच्चों की तरह तंग करती हैं, ममा.’सुभा को यह सब देख कर बड़ा ही अच्छा लगा. लेखा की बड़ी बेटी निकिता रसोई में घुसी नाश्ता तैयार कर रही थी. सुभा भी वहीं चली गई.

‘लाओ बेटी, मैं करती हूं.’‘अरे नहीं मौसी, आप बैठिए. मैं तो रोज ही करती हूं. ममा की तबीयत ठीक नहीं रहती है, डाक्टर ने उन्हें पूरी तरह आराम करने को कहा है.’

14 वर्ष की निकिता जिस सम झदारी से बातें कर रही थी और बात करतेकरते हाथ भी चलाती जा रही थी, उसे देख कर सुभा हैरान थी. सचमुच घर में लड़कियों का होना कितना जरूरी होता है. अपने लड़कों से भला ऐसी उम्मीद वह कभी कर सकती है?

लगभग पूरे दिन सुभा और सुशांत लेखा के घर रुके और उतनी ही देर में सुभा में उस की दोनों बेटियों को इतना स्नेह हो गया कि उस के वापस लौटने तक दोनों जिद करने लगीं, ‘मौसी, कुछ दिन रहने आइए न. ममा आप को कितना याद करती हैं और आप की बात करकर के रोती हैं.’

‘उसे रोने मत दिया करो, बेटी,’ सुभा आंसू पोंछती हुई बोली, ‘उसे इस समय हमेशा खुश रहने की जरूरत है.’और फिर दोनों बच्चियों के सिर पर प्यार से हाथ फेर तथा लेखा को गले लगा कर सुभा वहां से चल दी. चलतेचलते वह लेखा से बोली, ‘सच, तू समय की बलवती है.’

किंतु उत्तर में लेखा के चेहरे पर पीड़ामिश्रित मुसकान देख वह सहम गई और धीरे से उस का हाथ दबा कर बोली, ‘क्या बात है, लेखा? खुश क्यों नहीं रहती?’‘जिज्जी, इस बार भी बेटा नहीं हुआ तो नरेश और उन की मां मु झे माफ  नहीं करेंगे.’

‘बस, कुछ महीने रुक जा. चांद सा बेटा होगा तेरी गोद में,’ सुभा उस का उत्साह बढ़ाते हुए बोली और बाहर गाड़ी में आ बैठी. सुशांत भी नरेश से विदा ले कर आ गए. गाड़ी चलातेचलाते वे बोले, ‘अजीब रूखा सा आदमी है, नरेश. एक बार भी फिर आने को नहीं कहा. न ही खुल कर मिला. कैसी गुजरती होगी लेखा की इस के साथ? तुम तो कहती थीं, लेखा बहुत खुशमिजाज लड़की है.’

‘मैं ने सच ही कहा था, सुशांत. सुभा बोली, ‘लेखा के मुंह से तो हंसी के  झरने ही फूटते रहते थे. उस के ठहाके किसी को भी हंसाए बिना नहीं छोड़ते थे. लेकिन अब तो वह एक खामोश, उदास मूरत बन कर रह गई है. कहां क्या गलत हो गया सुशांत, मेरी लेखा के साथ?’ और फिर पति का हाथ पकड़ सुभा रो पड़ी.

‘जिंदगी और समय पर किसी का बस नहीं है, सुभा. इसे सम झो, कब और कैसे पहले से सोचा हुआ सब बदल जाता है, कोई नहीं कह सकता. जिंदगी के साथ तालमेल बैठा कर सम झौता तो करना ही पड़ता है.’

‘वही तो कर रही है लेखा,’ कातर स्वर में बोली सुभा, ‘क्या हाल हो गया है उस का. कितनी बीमारियां उसे लग गई हैं, फिर भी सास और पति की लड़के की चाह की खातिर सूली पर टंगी है. अन्यथा 2 फूल जैसी बेटियों के होते तीसरे बच्चे की जरूरत ही क्या थी.’अपना बायां हाथ सुभा की पीठ पर रखे सुशांत खामोशी से गाड़ी चलाते रहे. आगे का रास्ता दोनों ने खामोशी से ही काटा.

 

विनाश की ओर चिरौंजी, संरक्षण और संवर्घन जरूरी

लेखक-डा. आरके आनंद,  डा. सिया राम, डा. एके यादव

पर्यावरण असंतुलित हो गया और कई वृक्ष प्रजातियां खत्म होने के कगार पर पहुंच गईं. इन्हीं में से चिरौंजी भी एक है बढ़ती हुई जनसंख्या, पर्यावरण असंतुलन और प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित दोहन आज हमारे समाज के लिए सब से बड़ी चुनौती है. विकास के इस युग में वन संपदा क्षीण होती जा रही है, क्योंकि हम सभी ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई की, नतीजतन पर्यावरण असंतुलित हो गया और कई वृक्ष प्रजातियां खत्म होने के कगार पर पहुंच गईं, इन्हीं में से चिरौंजी भी एक है.

दशकों पहले उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर व सोनभद्र जिले, मध्य प्रदेश, ?ारखंड और छत्तीसगढ़ के जंगलों में चिरौंजी के वृक्षों की प्रचुरता थी, लेकिन जैसेजैसे जनंसख्या बढ़ती गई लोगो नें अपनी बढ़ती जरूरतों के लिए वृक्षों की अंधाधुंध कटाई की और वृक्षों से चिरौंजी हासिल करने के लिए वृक्षों का अनुचित दोहन किया. नतीजतन ये वृक्ष खत्म होते गए जिस के कारण चिरौंजी का फल महंगा व दुर्लभ होता गया और यह वृक्ष प्रजाति विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई है, इसलिए आज जरूरत हैं इस क्षेत्र में जो वृक्ष बचे हैं उन को प्राथमिकता के आधार पर संरक्षित करें व नए वृक्षों का कृषि वानिकी पद्धति में रोपण कर के प्रजाति को विनाश की ओर जाने से रोक सकें.

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चिरौंजी, जिस का वानस्पतिक नाम बुचनेनिया लंजन है, एनाकार्डिएसी कुल का वृक्ष है. विभिन्न क्षेत्रों में इस को विभिन्न नामों जैसे चिरौंजी, पियार, चार, चरौली, प्रियाल, मोरडा आदि से पुकारते हैं. जल भराव व पाला बरदाश्त न कर पाने वाला यह वृक्ष शुष्क व अर्द्ध शुष्क जलवायु वाली लाल मृदायुक्त पहाडि़यों और मैदानों में साल, सागौन व अन्य मिश्रित शुष्क पर्णपाती वनों में पाया जाता है.

यह एक मध्यम आकार का वृक्ष है, जिस का वितान और शाखाएं छोटी होती हैं. इस की छाल गहरे धूसर (ग्रे) रंग की होती है जो छोटेछोटे आयताकार प्लेटों में विभाजित रहती है. इस की  पत्तियां मोटी रोएंदार, खुरदरी, 10-25 सैंटीमीटर लंबी गोलाई लिए हुए व 4-8 सैंटीमीटर तक चौड़ी होती हैं. इस के पौधों में फलत 12-13 सालों में शुरू होती है.

आम जैसा बौर इस में जनवरीमार्च में आता है, जिन पर मार्चअप्रैल में फल लग जाते हैं जो मईजून में पक कर तैयार हो जाते हैं.

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फल छोटे आकार के आम की तरह गुठलीदार, गोलाकार 1.0-1.3 सैंटीमीटर व्यास के होते है, जिन पर 2-3 मिलीमीटर मोटी गूदे की परत होती है. कच्चे फल हरे रंग के तथा पकने पर गहरे कत्थई भूरे रंग के हो जाते हैं. गुठली चटकाने पर 2 भागों में बंट जाती है, जिस के अंदर चिरौंजी गिरी निकलती हैं.

 खात्मे की वजह  और बचाव

चिरौंजी के धीरेधीरे खात्मे के निम्नलिखित प्रमुख कारण माने जाते हैं :

* अराष्ट्रीयकृत लघु वनोपज होने के कारण जंगलों से इस के एकत्रीकरण की पूरी स्वतंत्रता है जंगलों व आसपास के निवासियों खास कर आदिवासियों द्वारा चिरौंजी फल एकत्र कर बिचौलियों को बेचे जाते हैं, जिन से थोक व्यापारी संपर्क कर एकत्र करते हैं.

जल्दी से जल्दी व ज्यादा से ज्यादा मात्रा में फल एकत्र करने की कोशिश में इस व्यवसाय में लगे लोग फलों के पूरी तरह से पकने के पहले ही, फलों को एकएक न तोड़ कर पूरी की पूरी शाखाएं ही तोड़ देते हैं जिस से पेड़ों का फलत क्षेत्र हर साल कम होता जा रहा है.

* फलों के असमय तोड़ लेने, गिरे फलों को गिलहरियों व चूहों द्वारा खा लिए जाने और गिरे फलों के धूप में पड़े रहने के कारण प्राकृतिक जनन भी रुक जाता है.

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* खराब अंकुरण क्षमता, धीमी वृद्धि व बीमारियों और पाले के प्रति संवेदनशीलता भी इस के खराब प्राकृतिक जनन की वजह है. इन्हीं वजहों से जंगलों के इस के पौधों की संख्या दिनप्रतिदिन कम होती जा रही है और नए पौधे यदाकदा ही देखने मे आते हैं. यही वजह है इस के नए पौधों को वनीकरण के अंतर्गत रोपित न किया जाना भी है.

इतना उपयोगी पेड़ होने के बावजूद देश के किसी भी हिस्से में इस वृक्ष के संगठित बाग नहीं हैं और न ही इस दिशा में अभी तक ठोस प्रयास किए जा रहे हैं. बताई गई सभी वजह से इस की संगठित बागबानी के प्रति लोगों में उत्साह कम है, जिस से दिनोंदिन चिरौंजी के वृक्षों की संख्या में कमी हो रही है और प्रजाति खात्मे के कगार पर खड़ी हो गई है. चिरौंजी की गिरती दशा को सुधारने के लिए यह सही समय है वरना बहुत देर हो जाएगी.

तेजी से विनाश की ओर अग्रसर चिरौंजी को बचाने के लिए ठोस व प्रभावशाली उपाय तत्काल शुरू किए जाने की जरूरत है. इन में से प्रमुख उपाय ये हैं :

* चिरौंजी के मिलने वाली जगहों के आसपास रहने वाले किसानों व आदिवासियों को चिरौंजी संरक्षण के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए जिस से वे फल तोड़ते समय पौधों को नष्ट न करें. चिरौंजी में नई वृद्धि कम व धीमी होती है, इसलिए मोटी शाखाओं को कटने से बचाया जाना जरूरी है. नए उग रहे पौधों को संरक्षित किए जाने की कोशिश की जानी चाहिए. इस तरह के उपायों को यथास्थान सरंक्षण कहते हैं.

* किसान अपने खेतों की मेंड़ों पर इन पौधों को कृषि वानिकी के अंतर्गत रोपित कर इस के संरक्षण में योगदान कर सकते हैं तथा इन वृक्षों को घर के आसपास व बाग के रूप में रोपित कर भी संरक्षित किया जा सकता है. इन सब के लिए जरूरी है कि अच्छी क्वालिटी वाले पौधों की और नवीनतम वृक्षारोपण तकनीकि की. इस के रोपण हेतु नर्सरी व कर्षण क्रियाएं इस तरह हैं :

बीज एकत्रीकरण व भंडारण

बीज एकत्रीकरण के लिए हमेशा मध्यम आयु तथा अच्छे वितान वाले वृक्षों का चयन करना चाहिए. मईजून महीने में केवल ताजे गिरे हुए या हाथ से तोड़ फलों को ही एकत्र करना चाहिए. पके हुए फलों को 24 घंटे पानी मे भिगो कर ऊपरी गूदा निकाल देना चाहिए और बीज को धो कर छाया में सुखा लें व तुरंत नर्सरी में बोआई कर दें. इस का बीच अंकुरण बहुत ही कम होता है, इसलिए ज्यादा बीज की जरूरत होती हैं.

नर्सरी तैयार करना

इस की नर्सरी को हमेशा जल निकास युक्त व हलकी छाया वाली जगह पर बनाना चाहिए इस के लिए पौलीथिन की थैलियों में 1-2 बीज प्रति पालीबैग मईजून के महीने में बोआई कर देना चाहिए.

चिरौंजी बीज के ऊपर एक कठोर आवरण होता है जिस वजह से अंकुरण बहुत ही कम होता है. चिरौंजी के अंकुरण पर किए गए अध्ययन से यह पता चला है कि बीज अंकुरण हेतु बोआई से पहले बीज के खोल को छोटी हथौड़ी की मदद से हलका सा चिटका लेना चाहिए, उस के बाद चिटके बीज को 6 से 7 घंटे तक ठंडे पानी में भिंगो कर ही बोआई की जानी चाहिए.

चूंकि इस की नर्सरी तैयार होने में तकरीबन 1 साल का समय लगता है, इसलिए बड़े आकार की पौलीथिन की थैलियों में नर्सरी तैयार करना ज्यादा उचित होगा. इस के लिए पौलीथिन की थैलियों में लाल मिट्टी, बालू व सड़ी गोबर की खाद 1:1:1.5 के अनुपात में मिला कर भरनी चाहिए और यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पौलीथिन की थैलियों के निचले हिस्से में छोटेछोटे छेद जरूर हों. अंकुरण पूरा होने में तकरीबन एक महीने का समय लगता है. गरमी के मौसम में पौधों को गरम हवा व तेज धूप से बचा कर रखना चाहिए व समयसमय पर सिंचाई का खास ध्यान रखना चाहिए. सर्दी में पाले से भी बचाव जरूरी है.

पौधों की पत्तियों मे कवकजनित रोगों  का भी प्रकोप देखा गया है, इसलिए ऐसी हालात में तत्काल फफूंदनाशी/कवकनाशी रसायन का छिड़काव करना सही रहता है.

पौधों का रोपण व कर्षण क्रिया

कृषि वानिकी के तहत चिरौंजी के रोपण हेतु 12 मीटर×12 मीटर की दूरी पर, अप्रैलमई महीने में गड्ढों की खुदाई करनी चाहिए. गड्ढों का आकार 1 मीटर × 1 मीटर × 1 मीटर होना चाहिए. गरमी में खुदाई करने से गड्ढों की मिट्टी का सूरज के प्रकाश द्वारा उपचार हो जाता है व दीमक और अन्य हानिकारक कीट नष्ट हो जाते हैं.

जून के पखवारे में गोबर की सड़ी हुई खाद, मिट्टी व नीम की खली के मिश्रण से गड्ढों की भराई कर देनी चाहिए.

बारिश शुरू होने के तकरीबन एक हफ्ते बाद उक्त विधि से तैयार गड्ढे में तकरीबन 2 साल उम्र के पौधों को गड्ढों के केंद्र में रोपित कर देते हैं. शुरू के सालों में पौधों की निराईगुड़ाई जरूरी है. पौधों के आसपास थाला बना कर सड़ी हुई गोबर की खाद व उर्वरक देने से अच्छी फसल आती है.

कृषि वानिकी में चिरौंजी

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर व सोनभद्र जनपदों और ?ारखंड, छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश में किसानों के खेतों में चिरौंजी के वृक्ष प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं, जिन के साथ फसलों को उगाया जाता है. पर वृक्षों की कम संख्या तथा चिरौंजी की बढ़ती मांग को देखते हुए विंध्य क्षेत्र या पूर्वी उत्तर प्रदेश के दूसरे हलकी मृदा व ऊंची भूमि वाले क्षेत्रों में चिरौंजी युक्त कृषि वानिकी को व्यवस्थित व वैज्ञानिक रूप से अपनाने की जरूरत है. इस के लिए खेतों में बृहद रूप से चिरौंजी वृक्षारोपण की जरूरत है.

कृषि वानिकी पद्धति में चिरौंजी का रोपड़ 12 मीटर × 12 मीटर की दूरी पर किया जा सकता है, और 2 पंक्तियों के बीच खाली पड़ी जगह पर कृषि फसलों जैसे, तिल, चना, अलसी, उर्द, मूंग सरसों व वातावरण के अनुकूल कम पानी की जरूरत वाली सब्जियों की खेती सफलता पूर्वक पहले 8-10 सालों तक की जा सकती है. उस के बाद जब चिरौंजी के पौधे ज्यादा उम्र के हो जाएं तथा छाया देने लगें तब छाया प्रिय औषधीय फसलों जैसे, अवश्वगंधा, सतावर, कालमेघ, कलिहारी आदि की खेती भी की जा सकती है, जिस से चिरौंजी फल के साथ औषधीय उत्पाद भी हासिल कर अच्छी आय ली जा सकती है.

रोपण के तकरीबन 7-8 साल बाद पौधों से बौर व फल निकलना शुरू हो जाता है तथा 11.12 सालों बाद  चिरौंजी का अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है. माध्यम आयु के एक वृक्ष से हर साल तकरीबन 4.5 किलोग्राम से ज्यादा चिरौंजी गिरी हासिल की जा सकती है, जिस से अच्छी आमदनी होती है.

इस तरह यदि किसान चिरौंजी युक्त कृषि वानिकी को अपनाएं व इस का वनीकरण करें एवं प्राकृतिक वनों में इस के वृक्षों से सावधानीपूर्वक फल एकत्र करें, उपलब्ध वृक्षों में खादपानी दें और उन का संरक्षण करें तो हम इस के वृक्षों को क्षेत्र से खत्म होने से बचाने के साथसाथ खेती से अच्छी आमदनी भी हासिल कर सकते हैं.   न

भारत भूमि युगे युगे: किसके बेबी का बम्प

टीएमसी सांसद और खूबसूरत अभिनेत्री नुसरत जहां का अपने उद्योगपति पति निखिल जैन से विवाद और अलगाव सीता परित्याग जैसा एक दुखद उदाहरण है जिस ने कट्टरपंथियों की यह मंशा पूरी कर दी है कि अंतधार्मिक और अंतर्जातीय शादियां, खासतौर से सैलिब्रिटीज की, ज्यादा से ज्यादा फ्लौप हों.

आरोपप्रत्यारोप ठीक वैसे ही हैं जैसे आमतौर पर आम पतिपत्नियों के बीच होते हैं. लेकिन निखिल का यह आरोप गंभीर है कि नुसरत के पेट में पल रहा बच्चा उन का नहीं है. इस पर बेबाक नुसरत की खामोशी हैरान कर देने वाली है.

नुसरत पूरी बेफिक्री से बेबी बम्प प्लांट करती दिखीं तो सहज लगा कि यह फैशन भी है और बिजनैस भी है. वे तुर्की में हुई अपनी शादी को शादी मानने ही को तैयार नहीं जिस से लगता है कि नुसरत दांपत्य को एक परिपक्व महिला के तौर पर नहीं ले पा रहीं. इस अलगाव से प्रेमियों में अच्छा मैसेज नहीं गया है जो इस कपल को एक मिसाल के तौर पर देखते थे.

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फेल हुए पासवान 

चिराग पासवान के पास अब अपने पिता रामविलास पासवान के जमाने के संस्मरण भर बचे हैं जिन्हें सुनतेसुनाते उन्हें अपने नाकाम होने की कसक भी सालती रहेगी. चाचा पशुपति कुमार पारस ने लोजपा को दोफाड़ कर उन्हें वही  झटका दिया है जो महाभारत के युद्ध में कई चाचाओं ने अपने भतीजों को दिए थे.

युवा चिराग की दुर्गति तो उसी दिन से शुरू हो गई थी जब उन्होंने खुद को नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते दलित हितों की बलि चढ़ा दी थी. पटना में 16 अक्तूबर, 2020 को तो जोशीले चिराग अपनी 42 इंच की छाती चीर कर भी दिखाने को तैयार थे. चिराग अभी तक अपने पिता की मेहनत की खा रहे थे लेकिन उन्होंने पिता से सीखा कुछ नहीं कि कैसे जमीनी राजनीति करते दोस्ती और दुश्मनी मैनेज की जाती है और इस से भी अहम बात अपने वोटरों को कैसे साध कर रखा जाता है.

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टिकाऊ हैं टिकैत

किसान आंदोलन 8वें महीने में दाखिल हो रहा है जिसे ले कर सरकार और गोदी मीडिया खासे परेशान हैं कि सबकुछ कर के देख लिया लेकिन किसान बेशर्मी की हद तक जीवट हैं जो अपने नेता राकेश टिकैत के नेतृत्व में टिके ही हैं. सरकार की नई सिरदर्दी टिकैत की यह हुंकार है कि यूपी में भाजपा को हराएंगे.

इस चुनौती या धमकी को मोदी, योगी और शाह की तिकड़ी हलके में लेने की गलती नहीं कर सकती जो बंगाल की जली है और उत्तर प्रदेश को फूंकफूंक कर पी रही है. किसानों का कहना साफ है कि काले कानून वापस होने तक वे टस से मस नहीं होंगे.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कम जिद्दी नहीं जिन्होंने बेवजह इन बेतुके कानूनों, जिन के बगैर भी काम चल सकता है, को नाक का सवाल बना रखा है. ऐसे में टिकैत का यह कहना सच के ज्यादा करीब लगता है कि देश को सरकार नहीं, बल्कि कुछ कंपनियां चला रहीं हैं. लंबा खिंचता यह आंदोलन पंजाब के साथ उत्तर प्रदेश के चुनावों में भी भाजपा की नैया डुबो दे तो बात कतई हैरानी की न होगी.

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धर्म का मर्म

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय अयोध्या में संपन्न हो रहे जमीन घोटालों को ले कर घिरते जा रहे हैं. भोपाल के कांग्रेसी विधायक पी सी शर्मा ने उन के खिलाफ थाने में मामला दर्ज कराया तो एक उपशंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने भी अपना धार्मिक ज्ञान बघारा कि प्राचीन मंदिरों की खरीदफरोख्त नहीं की जा सकती और प्राणप्रतिष्ठित मूर्तियां कहां से आ रही हैं वगैरह.

गौर से देखें तो फसाद की असल जड़ जमीन घोटाले कम, उन की रकम का विधिवत बंटवारा न होना ज्यादा है. दुनियाभर में धार्मिक आयोजन और धर्मस्थल निर्माण आस्था के चलते नहीं, बल्कि कमाई के लिए ज्यादा होते हैं.

सब से पुराना और लोकप्रिय धर्म का धंधा कम लागत और तगड़े मुनाफे वाला है जिस पर दानदक्षिणा चढ़ाने वाले भक्त एतराज नहीं जताते, बल्कि, उस का उपयोग करने वाले दलाल आपस में  झगड़ बैठते हैं और तब मर्म उजागर  होता है.

मजाक: औनलाइन श्रद्धांजलि

लेखक-डा. आर एस खरे 

मिस्टर धनराज नहीं रहे. कोरोना से जंग हार गए. वे अपने उद्योगपति बेटे के पास दिल्ली गए थे. जाने से पहले मु झ से मिलने आए थे. उम्र का तकाजा दे कर मैं ने उन्हें कोरोना से आगाह किया तो बोले, ‘कपिलजी, मैं योगगुरु बाबाजी का चेला हूं. रोज उन का बनाया काढ़ा पीता हूं और नाक में तेल की बूंद डालता हूं. बाबाजी की कोरोना किट सदैव मेरे साथ चलती है.’

मैं ने कहा, ‘धनराजजी, फिर भी सावधानी में ही सम झदारी है. बहुत जरूरी न हो, तो कुछ दिनों के लिए दिल्ली जाना टाल दीजिए. अभी कोविड की दूसरी लहर वहां पीक पर है. अस्पतालों में औक्सीजन और रेमडेसिवियर इंजैक्शन की मारामारी है.’

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‘अरे कपिलजी, पैसे वालों के लिए कहीं कोई कमी नहीं. मेरा बेटा वनराज बता रहा था कि जरूरत पड़ने पर ‘खान चाचा होटल’ से ब्लैक में औक्सीजन सिलैंडर मिल जाते हैं और रेमडेसिवियर इंजैक्शन तो प्राइवेट अस्पताल का स्टोर इंचार्ज चौगुनी कीमत ले कर घर पहुंचा देता है. अपने भोपाल के हमीदिया अस्पताल से चोरी हुए रेमडेसिवियर भी तो दिल्ली में ही मिले थे.’

‘धनराजजी, वह तो ठीक है पर पेशेंट को भरती होने के लिए खाली बैड भी तो मिलना चाहिए. वहां तो खाली बैड ही नहीं मिल रहे.’

‘कपिलजी, वीआईपी के लिए सभी बड़े अस्पताल कुछ बैड रिजर्व रखते हैं. आंकड़ों में दिखाने के लिए कुछ डमी मरीजों को कोरोना बैड आवंटित दिखाए जाते हैं और बड़े आसामी के आते ही उसे डिस्चार्ज कर बैड उपलब्ध हो जाता है.’’

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पुत्रमोह के वशीभूत हो वे हवाईमार्ग से दिल्ली पहुंच गए. चौथे दिन फोन पर वे हांफ रहे थे, ‘कपिलजी, आप की सलाह न मान कर बड़ी गलती कर दी. हालात यहां बद से बदतर हैं. वनराज 2 दिनों से अस्पताल में खाली बैड की कोशिश कर रहा है. आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिल रहा. राज्य और केंद्र कोर्ट के सामने कुत्तेबिल्ली की तरह लड़ रहे हैं. बेटा दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री से भी मिला. चुनाव में दिए चंदे का हवाला भी दिया. पर मंत्री कहता है कि वह ऐसे समय में दिल्ली वाले अपने वोटर को पहले बैड दिलाएगा, भोपाल वाले को नहीं. अब बताइए, ‘एक देश एक आत्मा’ के नारे का क्या करें?’’

अगले दिन धनराजजी थोड़ा खुश नजर आए. ‘कपिलजी, तगड़े डोनेशन से अच्छे अस्पताल में बैड मिल गया है. अब जल्दी ही ठीक हो कर वापस आऊंगा.‘अच्छी बात है धनराजजी. पर निगाह रखिएगा कि नकली रेमडेसिवियर इंजैक्शन न लगे.’

2 दिनों बाद खबर आई कि एक प्रतिष्ठित निजी चिकित्सालय में औक्सीजन की कमी से 25 कोरोना मरीजों की मौत हो गई. मैं चिंता में पड़ गया. वहीं तो धनराजजी भी एडमिट थे.

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वनराज से बड़ी मुश्किल से संपर्क हुआ तो वह फूटफूट कर रोने लगा. उन अभागे 25 में धनराजजी भी थे.   त्रयोदशी के एक दिन पहले वनराज का फोन आया. उत्साहित हो कर बोला, ‘‘अंकल, कल पापा की त्रयोदशी पर औनलाइन श्रद्धांजलि का कार्यक्रम रखा है. सायं 4 से 5 बजे तक. जूम मीटिंग के लिए आईडी और पासवर्ड भेज रहा हूं. एक बहुत अच्छे मौडरेटर को हायर किया है.

‘‘एकएक मिनट का समय ही श्रद्धांजलि व्यक्त करने के लिए रहेगा. रिश्तेदारों तथा पापा के दोस्तों को मिला कर 180 लोग हो गए हैं.‘‘यदि आप को जूम डाउनलोड करने में कठिनाई हो तो पड़ोस के किसी स्टूडैंट को बुला लीजिएगा. आप बुजुर्ग लोगों को अभी तक नई तकनीक की पकड़ नहीं है. पर छोटे से छोटा विद्यार्थी भी इस सब में एक्सपर्ट है. अंकल, फोन रखता हूं. अभी और लोगों को भी इनवाइट करना है.’’

मैं सोचने लगा, श्रद्धांजलि के कार्यक्रम में मौडरेटर का क्या काम? फिर अपने मन को सांत्वना दी कि हो सकता है बड़े शहरों में यह नया फैशन चल रहा हो. यह भी इवैंट मैनेजमैंट का हिस्सा बन गया हो.

अगले दिन लैपटौप पर औनलाइन श्रद्धांजलि प्रोग्राम से जुड़ गया. स्क्रीन पर धनराजजी की एक फोटो फूलों से सजी टेबल पर रखी थी. नीचे गद्दों पर श्वेत वस्त्रों में परिवार के सदस्य बैठे थे. पहले भजनमंडली ने एक सुर में मधुर भजन गाया. संचालन कर रहे मौडरेटर ने धनराजजी के रिश्तेदारों का परिचय कराया. फिर श्रद्धांजलि देने के लिए परिचय के साथ वक्ताओं के नाम पुकारने शुरू किए. मौडरेटर जिस का नाम पुकारता वह माइक अनम्यूट कर बोलना शुरू कर देता. कुछ वक्ता सजधज कर तैयार हो कर अपनेअपने घरों में बैठे थे तो कुछ कैजुअल कपड़ों में बैठे थे. कुछ वक्ता बोलतेबोलते भावुक हो जाते. कुछ तो रोने भी लगते. कुछ धनराजजी से अपने बचपन की मित्रता का हवाला देते, तो कुछ नौकरी में साथ रहने का. कोई वक्ता समय से अधिक बोलता, तो मौडरेटर समयसीमा की याद दिलाता.

चंडीगढ़ के भाटियाजी ने तो हद ही कर दी, बोले, ‘‘धनराज मेरा जिगरी यार था. हम लोग साथ बैठ कर पीते तो पीते ही जाते. पीजी करने के बाद वह नौकरी में चला गया और मैं बिजनैस में आ गया. मेरे बेटेबहू मेरा बड़ा खयाल रखते हैं. बेटा मैडिकल स्टोर चलाता है और बहू वकालत करती है. मैं ने बेटे से बोल रखा है कि लालच में पड़ कर महंगे दामों में रेमडेसिविर न बेचना.’’

उन के लगातार बोलते जाने से मौडरेटर को हस्तक्षेप करना पड़ा, ‘‘भाटियाजी, हम समयसीमा से बंधे हैं और वक्ता बहुत हैं. कृपा कर के अपनी श्रद्धांजलि जल्दी पूरी करें.’’भाटियाजी ने अपने दोनों पोते और पोतियों के बारे में बताना शुरू किया तो मौडरेटर ने वनराज की ओर देखा और इशारा पा कर भाटियाजी को म्यूट कर दिया.

अगले वक्ता भोपाल से शास्त्रीजी को पुकारा गया. शास्त्रीजी ने पहले तो संस्कृत में अनेक श्लोक पढ़े, फिर जीवनमृत्यु के गूढ़ रहस्य के दर्शन की व्याख्या करने लगे. प्रवचन लंबा होते देख मौडरेटर को फिर आग्रह करना पड़ा और फिर वैसा ही वनराज का इशारा सम झते ही उस ने उन का माइक भी म्यूट करते हुए अगले वक्ता को आमंत्रित कर दिया.

बनारस और प्रयागराज के वक्ताओं ने तो धनराजजी के सिनेमा प्रेम का इतने विस्तार से विवरण दिया कि शायद सिनेमा पर निबंध लिख रहे हों. फिर उन्होंने 60-70 के दशक की प्रमुख फिल्मों के हीरोहीरोइनों के बारे में बताना शुरू किया तो इस बार मौडरेटर को थोड़े कठोर शब्दों में प्रार्थना करनी पड़ी, ‘‘वक्तागण यह ध्यान रखें कि वे धनराजजी को कोराना से हुए उन के आकस्मिक निधन पर श्रद्धांजलि देने हेतु सभा में बोल रहे हैं. 5 बज चुके हैं और अभी 130 वक्ता शेष हैं. अब अधिकतम हमें 20 मिनट में यह सभा समाप्त करनी है. सो, अब हम सिर्फ परिवार के लोगों को ही बोलने का अवसर दे पाएंगे.’’

तभी स्क्रीन पर दिखाई दिया कि धनराजजी के अधिकांश मित्र भुनभुनाते और पैर पटकते हुए उठ कर चले गए.

मैं सोचने लगा कि अब जबकि औनलाइन श्रद्धांजलि का चलन बढ़ गया है तो वक्ताओं को प्रशिक्षित किया जाना जरूरी है कि उन्हें कब, कितना, कहां, क्या पर कैसे बोलना है.

मैं 50 वर्षीय महिला हूं, मुझे कोविड हुआ था ,लेकिन अब मैं ठीक हो गई हूं, क्या मैं वैक्सीन लगवा सकती हूं?

सवाल

मैं 50 वर्षीय महिला हूं, मैं कोविड-19 से संक्रमित हुई थी लेकिन अब रिकवर हो चुकी हूं. जानना चाहती हूं कि अब मैं कब वैक्सीन लगवा सकती हूं?

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जवाब

इस बारे में हुई स्टडीज की मानें तो अगर किसी व्यक्ति को कोविड-19 संक्रमण होता है तो उस के शरीर में नैचुरल इम्यूनिटी बन जाती है जो 90 से 180 दिन तक बनी रह सकती है. हालांकि हर व्यक्ति में नैचुरल इम्यूनिटी का समय अलगअलग होता है और वह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप को कैसा इन्फैक्शन हुआ था. लिहाजा, कोविड से संक्रमित होने वाले मरीजों को भी वैक्सीन जरूर लेनी चाहिए लेकिन डाक्टर की सलाह से.

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बहुत अच्छी बात है कि आप उन बच्चों को ले कर चिंतित हैं. पड़ोसी होने के नाते आप ने अपना फर्ज निभाया है. अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी ली और दोस्त के बच्चों का पूरापूरा ध्यान रख रहे हैं. आज कोरोना ने लोगों में दूरी बढ़ा दी है लेकिन यह दूरी मन की दूरी नहीं बननी चाहिए. वे बच्चे अभी बहुत छोटे हैं. उन्हें पूरी देखभाल और प्यार की जरूरत है जो काम अब आप ही कर सकते हैं.

हम मानते हैं कि कहना आसान है क्योंकि 2 बच्चों की जिम्मेदारी लेना बहुत बड़ा काम है लेकिन यह सोचिए कि 2 जिंदगियां संवार कर कितना नेक काम आप करेंगे. इस मुसीबत की घड़ी में जब नजदीकी रिश्तेदार भी पीठ दिखा रहे हैं तो पड़ोसी होने के नाते आप जो कुछ भी कर रहे हैं वह इंसानियत है.

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बच्चों को तसल्ली दें कि आप उन के साथ हैं, फिक्र की कोई बात नहीं. मातापिता का न रहना बच्चों के लिए वज्रपात है लेकिन उन्हें अब आप को संभालना है. दोस्त की जो भी सेविंग्स वगैरह है वही अब उन बच्चों के भविष्य में काम आएगी, तो सारे कागजात वगैरह देखें और गलत हाथों में जाने से बचाएं. लालची रिश्तेदारों से बच्चों को सावधान रहने की हिदायत दें कि किसी की बातों में न आएं और कुछ भी गलत अंदेशा होने पर आप से बात करें.

माना कि वक्त ने बहुत बुरा किया है लेकिन हर रात के बाद सुबह होती है, यही सोच कर अपनी जिम्मेदारी निभाएं. बच्चों की हिम्मत बनिए और खुद भी हिम्मत रखें. खुद को स्वस्थ और सुरक्षित रखिए.

Family Story :सपनों की आंधी

रणनीतिक वनवास या नजरकैद में: आखिर कहां और किस हालत में हैं जैक मा ?

एक ऐसा शख्स जो कल तक किंग साइज लाइफस्टाइल का प्रमोटर था,जो अपने हजारों कर्मचारियों और निवेशकों के साथ पार्टियां करता था,नाचता गाता था और तथाकथित चीनी अर्थव्यवस्था व बिजनेस मॉडल का पोस्टर ब्वाय था.वह अचानक से एकांतप्रेमी हो गया है.क्या यह सब कुछ स्वाभाविक है या इसके पीछे चीन की वैचारिक क्रूरता का वही पुराना काला चेहरा है,जो पहले भी कई लोगों के साथ ऐसा ही खेल खेलता रहा है.

पिछले एक दशक से दिन दूनी रात चौगुनी रफ़्तार से चमकती चीनी कंपनी अली बाबा और उसके संस्थापक जैक मा पर पिछले साल 24 अक्टूबर 2020 को तब गाज गिरी जब वह शंघाई में अपनी एक और कंपनी एंट ग्रुप का आईपीओ [इनिशियल पब्लिक ओफरिंग ] लाने के पहले शेयर बाजार के अधिकारियों के साथ मीटिंग कर रहे थे.इस मीटिंग के दौरान जैक मा ने चीन की सरकारी बैंकों और वित्तीय नियामकों की कड़ी आलोचना करते हुए न केवल इन्हें ब्याजखोर कहा बल्कि बीबीसी के मुताबिक़ तो जैक मा ने व्यंग्यात्मक लहजे में यह भी कहा, ‘चीन के बैंक “प्य़ादे जैसी सोच के साथ” काम करते हैं.सरकारी अधिकारी रेलवे स्टेशन को चलाने के तरीकों से एयरपोर्ट चलाते हैं.’ जैक की इस टिप्पणी ने न केवल बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े चीनी अफसरशाहों को नाराज़ किया बल्कि माना जाता है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का भी उनकी इस टिप्पणी ने ध्यान खींचा.

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इस कारण चीन की सत्ता्रूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी जैक मा पर भड़क उठी.जैक की इस आलोचना को चीन के वित्तीय संस्थानों की आलोचना न मानकर कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना समझा गया.इसके बाद से ही जैक मा के दुर्दिन शुरू हो गए.उनके समूचे बिजनेस साम्राज्य के विरुद्ध असाधारण प्रतिबंध लगाये जाने लगे.नवंबर 2020 में चीनी अधिकारियों ने जैक मा को जोरदार झटका देते हुए उनके एंट ग्रुप के प्रस्तावित 37 अरब डॉलर के आईपीओ को निलंबित कर दिया.वास्तव में इसी आईपीओ के लांचिंग की तैयारी के सिलसिले में वह चीन के बैंकिंग व वित्तीय अधिकारियों के साथ वह मीटिंग कर रहे थे,जिसमें उन्होंने चीन के सरकारी बैंकों और नियामक संस्थाओं की आलोचना की थी.

जैक मा को चीनी सरकार का दिया गया यह झटका सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रहा.उनके साथ काम करने वाले कई करीबियों को रेग्यूलेटर ने समन भेजकर बुलाया और पुलिस इंट्रोगेशन के अंदाज में उनसे कारोबारी अनियमितताओं की पूछताछ की गयी. फिर इन्हीं पूछताछ के आधार अलीबाबा के खिलाफ़ ‘एंटी-मोनोपोली’ अधिनियम के मुताबिक़ 18.3 अरब युआन [करीब 2.8 अरब अमरीकी डॉलर] का जुर्माना लगा दिया गया.अगर दुनिया के मशहूर बिजनेस अखबार वॉल स्ट्रीट जनरल की रिपोर्ट पर भरोसा करें तो जैक मा के एंट ग्रुप के आईपीओ को रद्द करने का आदेश सीधे चीनी राष्ट्र्पति शी जिनपिंग से आया था.

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यही नहीं विदेशों में अपनी क्रिसमस पार्टी के लिए मशहूर रहे जैक मा से साफ़ कह दिया गया कि वह तब तक चीन से बाहर न जाएं,जब तक कि उनके अलीबाबा ग्रुप के खिलाफ चल रही जांच को पूरा नहीं कर लिया जाता. इसके बाद से जैक मा जनवरी 2021 तक कहीं नहीं दिखे.कयास लगाए जाने लगे कि उन्हें उनके घर में ही नज़बंद कर दिया गया है या हिरासत में ले लिया गया है.कुछ लोग तो उनके जिंदा होने पर भी कयास लगा रहे थे.लेकिन अंततः जैक मा दिखे पहले 20 जनवरी 2021 को एक चैरिटी इवेंट के वीडियो में, फिर फरवरी 2021 में वह एक चीनी द्वीप पर गॉल्फ़ खेलते नज़र आए.

ब्लूमबर्ग बिलेनायर इंडेक्स के मुताबिक़ अरबपतियों की दुनियावी सूची में 27 वें नंबर पर काबिज जैक मा उनके एक करीबी जोसेफ त्साई के मुताबिक़ आजकल एकांत जीवन जी रहे हैं.अलीबाबा के उपाध्यक्ष त्साई कहते हैं, ‘मेरी उनसे करीब करीब हर दिन हमारे अपने आंतरिक संदेश प्लेटफोर्म के जरिये बात होती है.वह इन दिनों अपने पुराने शौक पूरे कर रहे हैं.’लेकिन भले त्साई जैक मा के कितने ही निकट सहयोगी क्यों न हों यह बात गले नहीं उतरती कि जो व्यक्ति अपनी पूरी जिंदगी में बेहद सोसलाइट रहा हो, वह अचानक एकांतजीवी हो जाय खासकर एक ऐसे समय जब उनका समूचा उद्योग साम्राज्य चरमरा रहा हो.जो जैक मा चीन के सबसे अमीर व्यक्ति थे, वह अचानक कुछ महीनों में फिसलकर चौथे स्थान आ गये हैं. हूरून ग्लोबल रिच लिस्ट 2020 और 2019 में जैक मा और उनका परिवार चीन में सबसे अमीर परिवार था, अब इसी सूची में वह चौथे स्थान पर हैं. ताजा सूची में बोतलबंद पानी बनाने वाली कंपनी नोनग्फूच स्प्रिंग के मालिक झोंग शानशान, टेनसेंट कंपनी के मालिक पोनी मा और ई कॉमर्स कंपनी पिनडूओडुओ के मालिक कोलिन हुआंग जैक मा से ऊपर हैं.जबकि अभी दो साल पहले ये तीनों उद्योगपति जैक मा से मीलो पीछे थे.

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पिछले साल जैक मा चीन के ही नहीं एशिया के सबसे अमीर व्यक्ति बनने वाले थे.उनकी कंपनी अलीबाबा दुनिया की सबसे बड़ी तेज विकास कर रही कंपनियों में से एक है. इसकी पहुंच दुनियाभर के 80 करोड़ लोगों तक है.ऑनलाइन शोपिंग, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और क्लाउड कंप्यूटिंग जैसी कई सर्विसेज अलीबाबा देती है.लेकिन सरकार की आलोचना करने के बाद से अलीबाबा अब चीन के भीतर ही संकट में हैं.उसकी कई एंगल से जांच हो रही है और ऐसी जांचों का नतीजा सबको मालूम होता है.अगर जैक मा ने 24 अक्टूबर 2020 को सरकार की वित्तीय नीतियों की और चीन की बैंकिंग कार्यपद्धति की आलोचना नहीं की होती तो नवंबर 2020 में एंट ग्रुप शंघाई स्टॉक मार्केट में दुनिया की सबसे बड़ी हिस्सेदारी लाने की तैयारी में था. लेकिन इतने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट की योजना बनाने वाले जैक मा के बारे में अब उनके सहयोगी ही कह रहे हैं, वह एकांत जीवन में अपने छूटे हुए शौक पूरे कर रहे हैं.क्या यह बात गले से उतरती है ?

उतर भी सकती थी अगर चीन में सरकार से नजर मिलने वाले उद्योपतियों का पहले भी ऐसा ही एकांतवास न हुआ होता.गौरतलब है कि चीन में जिस भी व्यक्ति ने सरकार की नीतियों की आलोचना की है, वह पहले भी ऐसे ही गायब होता रहा है या अचानक अपराधी साबित हो जाता रहा है. प्रॉपर्टी बिजनसमैन रेन झिकियांग भी ऐसे ही तब लापता हो गए थे,जब उन्होंने कोरोना महामारी से सही से न निपट पाने के लिए शी जिनपिंग को ‘मसखरा’ कह दिया था.इसके बाद ही उन्हें 18 साल के लिए जेल में डाल दिया गया. ऐसे ही एक और सरकार आलोचक अरबपति शिआन जिआनहुआ वर्ष 2017 से नजरबंद हैं.ऐसे में जैक मा का अचानक एकांतप्रेमी होना अपने पीछे जरूर कोई कहानी छिपाए है ?

Family Story :सपनों की आंधी -भाग 1

जब से सुभा की चचेरी बहन लेखा की मौत हुई, वह रातरातभर सो नहीं पाती है. 2 महीने से यह सिलसिला चल रहा है. सुशांत के सम झाने के बावजूद रात होते ही सुभा घबराने लगती और पति को जगा कर कहती, ‘अभीअभी लेखा यहां आई थी.’

पत्नी की इस मनोस्थिति से सुशांत परेशान थे. डाक्टरों का कहना था कि सुभा का अवचेतन मन जब इस सत्य को मान लेगा कि लेखा सचमुच अब इस दुनिया में नहीं है तो सब ठीक हो जाएगा. चूंकि लेखा का मृत शरीर सुभा ने अपनी आंखों से देखा नहीं, इसीलिए यह परेशानी है.

आज रात भी ऐसा ही हुआ. लगभग  2 बजे सुभा ने सुशांत को जगाया. बोली, ‘‘लेखा यहां आई थी, मैं ने उस से बातें की हैं.’’‘‘सुभा, यह तुम्हारा भ्रम है. सो जाओ और मु झे भी सोने दो. सुबह औफिस जाना है,’’ कह कर सुशांत करवट बदल कर सो गए.

किंतु सुभा फिर नहीं सो पाई. उस की बंद आंखों में लेखा के साथ अपने पहले के दिन सजीव हो उठे थे.लेखा और सुभा दोनों चाचाताऊ की बेटियां थीं. फिर भी उन में प्रेम सगी बहनों जैसा था. दोनों एकदूसरे की परछाईं बनी हमेशा साथसाथ रहती थीं. सुभा बड़ी थी और लेखा छोटी, इसीलिए वह सुभा को ‘जिज्जी’ कह कर पुकारती थी.

फिर परिवार में बिखराव आया तो लेखा के पिता ने अलग मकान ले लिया. छोटे भाई का इस तरह साथ छोड़ कर जाना बड़े भाई को बुरी तरह अखर रहा था. उस पर से सुभा रोज उन से कहती, ‘बाबूजी, मैं लेखा के घर खेलने जाऊं?’

‘कोई जरूरत नहीं वहां जाने की,’ जवाब मिलता.अपने पिता का नाराजगीभरा उत्तर  सुन कर सुभा मुंह लटकाए छत पर  चली जाती.एक दिन स्कूल से लौट कर सुभा खाना खा रही थी कि ‘जिज्जी… जिज्जी…’ की पुकार कानों में पड़ी. हाथ का कौर थाली में रख कर सुभा बाहर की ओर भागी तो लेखा आ कर उस से लिपट गई. फिर दूसरे पल अलग हो कर नकली गुस्से से बोली, ‘जाओ जिज्जी, मैं नहीं बोलती. तुम मु झ से मिलने क्यों नहीं आईं?’

‘बाबूजी जाने नहीं देते,’  कहती हुई सुभा उसे छत पर खींच ले गई. दोनों बहनों को जाने कितनी बातें करनी थीं पर मां बारबार दोनों को नीचे बुला रही थी.नीचे आते ही लेखा अपनी ताई से लिपट गई. बोली, ‘बड़ी मां, मु झे चीनीभरा परांठा बना कर दो न. मां नहीं बनाती हैं. जब कहो तो वे ब्रैड पर जैम लगा कर दे देती हैं.’

उस की भोली फरमाइश पर ताई ने  झटपट मीठा परांठा बना कर उसे खिलाया.लेखा अपने ताऊ और ताई की लाड़ली थी. वह जब ताऊ के पास बैठती तो हंसी का पिटारा खोल देती. उस का घर से चले जाना उस के ताऊ को बहुत अखरता था और आज जब वे औफिस से शाम को घर पहुंचे तो लेखा दौड़ कर उन से लिपट गई.

‘अभी तक मु झ से मिलने क्यों नहीं आई,’ ताऊ ने पूछा तो वह उन के कान से मुंह सटा कर बोली, ‘बाबूजी तो कहते हैं, चली जाओ मगर मां कहती थीं, पहले सुभा को आने दो. फिर कैसे आती?’

लेखा की बात सुन कर ताऊ का दिल भर आया. बड़ों की खींचतान में नाहक ही ये बच्चियां गेहूं में घुन की तरह पिस रही हैं. और उस दिन से दोनों लड़कियों पर से सारे प्रतिबंध हटा दिए गए. घर बहुत दूरदूर नहीं थे, सो लेखा आते ही अपनी ताई से कहती, ‘जिज्जी को मेरे यहां भेज दो न, बड़ी मां. मु झे उस के बिना अच्छा नहीं लगता.’

‘तू ही रुक जा यहां,’ प्यार से सुभा कहती, लेकिन मां का डर लेखा पर हावी था. वह जानती थी कि उस का वहां रुकना मां को बिलकुल पसंद नहीं आएगा.उस दिन लेखा के यहां से अपने घर वापस लौट कर सुभा बहुत अनमनी थी. काश, उस के पास भी लेखा जैसा ही सबकुछ होता.

रात को खाना खाते समय सुभा अपनी मां से बोली, ‘अम्मा, हम कब नया घर लेंगे?’‘नया घर? क्यों?’ मां ने हैरानी से पूछा.‘चाची का घर कितना सुंदर है. हमारा घर तो टूटाफूटा है.’इस पर सुभा की मां एक गहरी सांस ले कर बोली, ‘उन के पास पैसा है, बेटा. हमारे पास इतना पैसा नहीं है.’

‘लेकिन हमारे पास पैसा क्यों नहीं है? कैसे अच्छेअच्छे कपड़े हैं लेखा के पास, मेरे तो सब कपड़े पुराने हैं,’ कहती सुभा रो पड़ी.‘अरे, तो इस में रोने की क्या बात है? तु झे भी नए कपड़े खरीद देंगे. चल, अब खाना खा कर पढ़ने बैठ.’ ‘हुंह, जब भी कुछ कहो तो बस, यही कहा जाता है कि जाओ, पढ़ने बैठो.’

किंतु बचपन के नासम झ दिनों को बीतते देर ही कहां लगती है. दोनों लड़कियां बड़ी हो रही थीं.लेखा की बड़ी बहन कुमुद का विवाह तय हो गया था. चूंकि लड़के का घराना बहुत पैसे वाला है, इसलिए सारी तैयारियां उन के स्तर के अनुरूप ही की जा रही थीं.

लेखा के सुंदर कपड़ों को देख कर सुभा का मन होता कि उस के लिए भी वैसे कपड़े बनें किंतु वैसे ही महंगे कपड़े खरीदना सुभा के मातापिता की सामर्थ्य के बाहर था. एक हीनभावना से ग्रस्त सुभा उदास रहने लगी, क्योंकि विवाह की उस चहलपहल में हर जगह लेखा ही लेखा छाई थी. बड़ी शान से अपनी दीदी और जीजाजी के बीच में बैठ कर लेखा ने फोटो खिंचवाए और फिर दूर खड़ी सुभा को भी आवाज दी, ‘जिज्जी, तुम भी आओ न.’

 

लेकिन उस के बुलाने पर भी सुभा फोटो खिंचवाने नहीं गई. उसे अपने कपड़े ठीक नहीं लगे.विवाह के बाद जब कुमुद पहली बार मायके आई तो उस का देवर सुमंत भी घूमने के लिए साथ आ गया. आयु में वह लेखा से 2 साल बड़ा था. दोनों के बीच जल्दी ही दोस्ती हो गई. दोनों दिनभर एकसाथ रहते. इस बीच लेखा को सुभा से मिलने की याद नहीं आई और सुभा अपने को उपेक्षित अनुभव करती रही. फिर एक दिन लेखा ने सुभा के कान में धीरे से कहा, ‘जानती हो, जिज्जी, सुमंत मु झ से शादी करेगा.’

 

लेखा के मुंह से इतनी बड़ी बात सुन कर सुभा चौंक कर बोली, ‘क्या चाची मानेंगी, तुम और कुमुद दीदी एक ही घर में…’ ‘सुमंत कहता है कि वह सब को मना लेगा,’ कह कर लेखा हंस पड़ी.सुभा के मन में गुदगुदी सी होने लगी.

अब लेखा रोज कोई न कोई नया किस्सा सुभा को सुनाती. 12 दिन तक सुमंत वहां रहा और लेखा के साथसाथ सुभा भी कल्पना के ऊंचे आकाश में उड़ान भरती रही.

सुमंत के जाने के बाद शाम को लेखा जब सुभा से मिली तो बड़ी ही खुश थी. सुभा को छत पर ले गई और बोली, ‘जानती हो, जिज्जी, सुमंत ने मु झे गुड बाय कहा और चुंबन भी  लिया था.’

 

जाने कैसे सुभा का विवेक जागा और उस ने लेखा को पहली बार सम झाया, ‘यह सब ठीक नहीं है, लेखा. चाची को यदि पता लगा तो? मां कहती हैं कि जब तक शादी न हो जाए, किसी लड़के से ऐसा संबंध ठीक नहीं.’‘क्या जिज्जी, तुम भी बस कुएं की मेंढक हो. आजकल कितनी लव मैरिज हो रही हैं, जानती भी हो?’ आंखें नचा कर लेखा बोली.

 

उस के बाद बहुत दिनों तक लेखा सुभा के घर नहीं आई.धीरेधीरे और 2 साल बीत गए. लेखा की प्रेम कहानी कहां तक पहुंची, यह सुभा नहीं जान सकी, क्योंकि लेखा ने आना बंद कर दिया था. इसी दौरान उस के विवाह की बातें घर में होने लगी थीं.

 

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