“सुनो! पेपर सोप और सैनीटाईजर पर्स में रख लिया है ना… और मास्क मत उतारना… दूरी बनाकर ही अपना काम करना है और हाथ बार-बार धोती रहना…” दो दिन के लिए टूर पर जाती विजया को पति कैलाश बस में बिठाने तक हिदायतें दे रहा था.

“हाँ बाबा! सब याद रखूँगी… और तुम भी अपना और निक्कू का खयाल रखना… संतरा को टाइम पर आने को कह देना ताकि आप दोनों को खाने-पीने की परेशानी ना हो…” विजया ने भी अपनी हिदायतों का पिटारा खोल दिया. बस चल दी तो कैलाश हाथ हिलाकर विदा करता हुआ पार्किंग की तरफ बढ़ गया.

“स्कूल बंद होने के कारण बच्चों को घर में संभाले रखना कितना मुश्किल होता है… लेकिन कोई बात नहीं… दो दिन की ही तो बात है… संभाल लूँगा… फिर संतरा तो है ही…” मन ही मन सोचता… योजना बनाता… कैलाश घर की तरफ बढ़े जा रहा था. घर आकर देखा तो संतरा अपना काम निपटा रही थी.

“संतरा ना हो तो हम बाप-बेटे को दूध-ब्रेड से ही काम चलाना पड़े.” सोचते हुये कैलाश ने भी अपना टिफिन पैक करवाया और निक्कू को संतरा के पास छोडकर ऑफिस के लिए निकल गया.

“पापा! कार्टून चलाने दो ना.” रात को निक्कू ने कैलाश के हाथ से रिमोट लेने की जिद की.

“अभी ठहरो. आठ बजे हमारे प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करने वाले हैं, उसके बाद.” कैलाश ने रिमोट वापस अपने कब्जे में कर लिया. मन मसोस कर निक्कू भी वहीं बैठकर भाषण समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगा.

“आज रात बारह बजे से पूरे देश में सम्पूर्ण लॉकडाउन किया जाएगा. समस्त देशवासियों से विनती है कि जो जहां है, वो वहीं रहकर इसमें सहयोग करे.” प्रधानमंत्री का उद्बोधन सुनते ही कैलाश के माथे पर पसीने की बूंदें छलछला आई. उसने तुरंत विजया को फोन लगाया.

“सुना तुमने! आज रात से पूरे देश में लॉकडाउन होने जा रहा है.” कैलाश के स्वर में चिंता थी.

“हाँ सुना! लेकिन तुम फिक्र मत करो. हमारा विभाग आवश्यक सेवाओं में शामिल है इसलिए ऑफिस बंद नहीं होगा.” विजया ने पति को आश्वस्त करने की कोशिश की.

“वो सब तो ठीक है लेकिन लॉकडाउन में तुम वापस कैसे आओगी?” कैलाश ने उत्तेजित होते हुये कहा.

“देखते हैं. कुछ न कुछ उपाय तो करना ही पड़ेगा. तुम फिक्र मत करो. बस! अपना और निक्कू का खयाल रखना. गुड नाइट.” कहते हुये विजया ने फोन काट दिया लेकिन कैलाश की चिंता दूर नहीं हुई. पूरी रात करवट बदलते-बदलते बीती. सुबह फोन की घंटी से आँख खुली. देखा तो संतरा का फोन था.

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“साहब! हमारे मोहल्ले में एक आदमी कोरोना का मरीज निकला है. आसपास कर्फ़्यू लगा दिया गया है. मैं नहीं आ सकूँगी.” संतरा की बात सुनते ही कैलाश की नींद उड़ गई. वह फौरन बिस्तर से बाहर आया और निक्कू के कमरे में गया. निक्कू अभी तक सो रहा था. उसके चेहरे पर मासूमियत बिखरी थी. कैलाश को उस पर प्यार उमड़ आया.

“कितना बेपरवाह होता है बचपन भी.” कैलाश ने निक्कू के बालों में हाथ फिरा दिया. निक्कू ने आँखें खोली.

“दूध कहाँ है?” निक्कू ने कहा तो कैलाश को याद आया कि निक्कू दूध पीने के बाद ही फ्रेश होने जाता है. वह रसोई की तरफ लपका. दूध गर्म करके उसमें चॉकलेट पाउडर मिलाया और निक्कू को दिया. पहला घूंट भरते ही निक्कू ने मुँह बिचका दिया.

“आज इसका टेस्ट अजीब सा हैं. मुझे नहीं पीना.” निक्कू ने गिलास उसे वापस थमा दिया. कैलाश ने रसोई में रखे दूध को सूंघा तो उसमें से खट्टी-खट्टी गंध आ रही थी.

“उफ़्फ़! रात में दूध को फ्रिज में रखना भूल गया. विजेता ही ये सब काम निपटाती है इसलिए दिमाग में ही नहीं आया.” सोचते हुये कैलाश कुछ परेशान सा हो गया और दूध की व्यवस्था के बारे में सोचने लगा.

भाषण में कहा गया था कि आवश्यक दुकानें खुली रहेंगी. याद आते ही  कैलाश ने तुरंत गाड़ी निकाली और दूध पार्लर से दूध के पैकेट लेकर आया. घर पहुँचते ही मेल चेक किया तो पता चला कि आज से आधे कर्मचारी ही ऑफिस आएंगे. उसे आज नहीं कल ऑफिस जाना है. उसने राहत की सांस ली और दूध गर्म करने लगा. इस बीच मोबाइल पर अपडेट्स देखना भी चालू था. सर्रर्रर्र… से दूध उबल कर स्लैब पर बिखर गया तो कैलाश ने अपना माथा पीट लिया. मोबाइल एक तरफ रखकर वह रसोई साफ करने लगा.

“घर संभालना किसी मोर्चे से कम नहीं.” अचानक ही उसका मन विजया और संतरा के प्रति आदर से भर उठा.

“पापा! आज नाश्ते में क्या है?” निक्कू रसोई के दरवाजे पर खड़ा था.

“अभी तो ब्रेड-जैम से काम चला ले बेटा. लंच में बढ़िया खाना खिलाऊंगा.” कैलाश ने उसे किसी तरह राजी किया और ब्रेड पर जैम लगाकर निक्कू को नाश्ता दिया. दो-तीन ब्रेड खुद भी खाकर वह अपना लैपटाप लेकर बैठ गया और ऑफिस के काम को अपडेट करने लगा.

“पापा! खाने में क्या बनाओगे? आपको आता तो है ना बनाना?” निक्कू ने पूछा तो कैलाश सचमुच सोच में पड़ गया. उसे तो कुछ बनाना आता ही नहीं. बेचारी विजेता कितना चाहती थी कि कभीकभार वह भी रसोई में उसकी मदद करे लेकिन उसने तो अपने हिस्से का काम संतरा के सिर डालकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली थी.

कैलाश रसोई में घुसा. आटे का डिब्बा निकालकर परात में आटा साना और उसे गूंधने की कोशिश करने लगा. कभी आटे में पानी ज्यादा तो कभी पानी में आटा ज्यादा… किसी तरह पार पाई तो देखा कि इतना आटा तो वे दोनों पूरे सप्ताह भी खत्म नहीं कर सकेंगे.

“चलो ठीक ही है, रोज-रोज की एक्सर्साइज़ से मुक्ति मिली.” सोचते हुये कैलाश ने सिंक में अपने हाथ धोये और फ्रिज में से सब्जी निकालने लगा. लौकी… करेला… टिंडे… नाम सुनते ही निक्कू मना में सिर हिला रहा था. कैलाश भी खुश था क्योंकि उसे ये सब बनाना भी कहाँ आता था. किसी तरह आलू पर आकार बात टिकी तो कैलाश ने भी राहत की सांस ली.

धो-काटकर आलू कूकर में डाले. मसाले और थोड़ा पानी डालकर कूकर बंद कर दिया. सीटी पर सीटी बज रही थी लेकिन कैलाश को कुछ भी अंदाज नहीं था कि गैस कब बंद की जाये. थोड़ी देर में कूकर में से जलने की गंध आने लगी तो कैलाश ने भागकर गैस बंद कि. ठंडा होने पर जब कूकर खुला तो माथा पीटने के अलावा कुछ भी शेष नहीं था. सब्जी तो जली ही, कूकर भी साफ करने लायक नहीं बचा था. निक्कू का मुँह फूला सो अलग.

किसी तरह दो मिनट नूडल बना-खाकर भूख मिटाई गई लेकिन कैलाश ने ठान लिया था कि आज रात वह निक्कू को शाही डिनर जरूर करवाएगा.

शाम को जब विजया का फोन आया तो कैलाश ने झेंपते हुये दिन की घटना का जिक्र किया. सुनकर वह भी हँसे बिना नहीं रह सकी.

“अच्छा सुनो! उस खट्टी गंध वाले दूध का क्या करूँ?” कैलाश ने पूछा.

“एकदम सही समय पर याद दिलाया. तुम उसे गर्म करके उसमें एक नीबू निचोड़ दो. पनीर बन जाए तो उसके पराँठे सेक लेना.” विजेता ने आइडिया दिया तो कैलाश भी खुश हो गया. उसने विडियो कॉल पर विजेता की निगरानी में पनीर बनाया और उसे एक कपड़े में बांधकर कुछ देर के लिए लटका दिया. दो घंटे बाद जब पनीर का सारा पानी निकल गया तो विजया की मदद से उसने पनीर का भरावन भी तैयार कर लिया. अब शाम को कैलाश पूरी तरह से बेटे को शाही डिनर खिलाने के लिए तैयार था.

आटा तो दोपहर से गूँथा हुआ ही था, कैलाश ने खूब सारा भरावन भर के परांठा बेला और निक्कू की तरफ गर्व से देखते हुये उसे तवे पर पटक दिया.

“पापा! करारा सा बनाना.” निक्कू भी बहुत उत्साहित था. तभी कैलाश का फोन बजा और वह कॉल लेने चला गया. नेटवर्क कमजोर होने के कारण कैलाश फोन लेकर बालकनी में आ गया. बात खत्म करके जब वह रसोई में आया तो तवे से उठते धुएँ को देखकर घबरा गया. उसने भागकर पराँठे को पलटा लेकिन तवा बहुत गर्म था और जल्दबाज़ी में उसे चिमटा कहाँ याद आता। नतीजन! पराँठे को छूते ही उसका हाथ जल गया और हड़बड़ाहट में पनीर के भरावन वाला प्याला स्लैब से नीचे गिर गया.

“गई भैंस पानी में!” कैलाश ने सिर धुन लिया. निक्कू का मूड तो खराब होना ही था.

“पापा प्लीज! आपसे नहीं होगा. मम्मी को बुला लीजिये.” निक्कू रोने लगा. वह अब कैलाश के हाथ का बना कुछ भी अंटशंट नहीं खाना चाहता था. निक्कू को खुश करने के लिए कैलाश ने ऑनलाइन खाने की तलाश की लेकिन उसे नाउम्मीदी ही हाथ लगी.

तभी उसे याद आया कि ऐसी ही कई परिस्थितियों में विजया झटपट मटरपुलाव बना लिया करती है. निक्कू भी शौक से खा लेता है. कैलाश ने फटाफट चावल धोये और थोड़े से मटर छील लिये. गैस पर कूकर भी चढ़ा दिया लेकिन फिर वही समस्या… कूकर में पानी कितना डाले और कितनी देर पकाये…

तुरंत हाथ फोन की तरफ बढ़े और विजया का नंबर डायल हुआ लेकिन कैलाश ने तुरंत फोन काट दिया. वह बार-बार अपने अनाड़ीपन का प्रदर्शन कर उसे परेशान नहीं करना चाहता था. घड़ी की तरफ देखा तो अभी नौ ही बजे थे. उसने संतरा को फोन लगाया.

“अरे साब! पुलाव बनाना कौन बड़ा काम है. पहले घी डालकर लोंग-इलाइची तड़का लो फिर चावल और जितना चावल लिया, ठीक उससे दुगुना पानी डालो… मसाले डालकर दो सीटी कूकर में लगाओ और पुलाव तैयार…” संतरा ने हँसते हुये बताया तो कैलाश को आश्चर्य हुआ.

“ये औरतें भी ना! कमाल होती हैं… कैसे उँगलियों पर हिसाब रखती हैं.” कैलाश ने सोचा. लेकिन तभी उसे कुछ और याद आ गया.

“और मसाले? उनका क्या हिसाब है?” कैलाश ने तपाक से पूछा.

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“मसलों का कोई हिसाब नहीं होता साब. आपका अपना स्वाद ही उनका हिसाब है. पहले अपने अंदाज से जरा कम मसाले डालिए, फिर चम्मच में थोड़ा सा लेकर चख लीजिये… कम-बेसी हो तो और डाल लीजिये.” संतरा ने उसी सहजता से बताया तो कैलाश को पुलाव बनाना बहुत आसान लगने लगा.

और हुआ भी यही. यह डिश उसकी उम्मीद से कहीं बेहतर बनी थी. खाने के बाद निक्कू के चेहरे पर आई मुस्कान देखकर कैलाश का आत्मविश्वास लौटने लगा.

अगले दिन कैलाश को ऑफिस जाना था. पूरा दिन निक्कू अकेला घर पर रहेगा यह सोचकर ही वह परेशान हो गया. उसने रात को सोने से पहले ही निक्कू को आवश्यक हिदायतें देकर उसे सावधानी से घर पर रहने के लिए समझा दिया था.

आज कैलाश अपने हर काम में अतिरिक्त सावधानी बरत रहा था. दूध गर्म करके निक्कू को उठाना… फिर वेज सैंडविच का नाश्ता और लंच के लिए आलू का परांठा… ये सब करने में उसने यू ट्यूब की पूरी-पूरी मदद ली. विजया जैसा उँगलियाँ चाटने वाला तो नहीं लेकिन हाँ! काम चलाऊ खाना बन गया था.

शाम को घर वापस आते हुये जब उसने एक परचून की दुकान खुली देखी तो गाड़ी रोक ली. मुँह पर मास्क लगाकर वह भीतर गया और एक पैकेट मैदा और आधा किलो छोले खरीद लिए. साथ ही इमली का छोटा पैकेट भी. कई बार विजया ने उससे ये सामान मंगवाया है जब वो छोले-भटूरे बनाती है.

“निक्कू को बहुत पसंद हैं. कल सुबह मुझे ऑफिस नहीं जाना है. निक्कू को सरप्राइज दूँगा. शाम तक विजया आ ही जाएगी.” मन ही मन खुश होता हुआ अपनी प्लानिंग समझाने और छोले-भटूरे बनाने की विधि पूछने के लिए उसने विजया को फोन लगाया.

“सॉरी कैलाश! हमें अभी वापस आने की परमिशन नहीं मिली. लगता है तुम्हें कुछ दिन और अकेले संभालना पड़ेगा.” विजया के फोन ने उसे निराश कर दिया. आँखों के सामने तवा… कड़ाही… भगोना… चकला और बेलन नाचने लगे. मन खराब हो गया लेकिन घर पहुँचते ही जिस तरह निक्कू उससे लिपटा, वह सारा अवसाद भूल गया.

“पापा! आज हम दोनों मिलकर खाना बनाएँगे. आप रोटी बनाना और मैं डिब्बे में से अचार निकालूँगा…” निक्कू ने हँस कर कहा तो उसे फिर से जोश आ गया.

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“लेकिन मैं गोल रोटी नहीं बना सकता…” कैलाश ने मुँह बनाया.

“कोई बात नहीं. पेट में जाकर गोल हो जाएगी.” निक्कू खिलखिलाया तो कैलाश दुगुने जोश से भर गया. रात को दोनों ने आम के मीठे अचार के साथ पराँठे खाये. पराँठों की शक्ल पर ना जाया जाए तो स्वाद इतना बुरा भी नहीं था.

कैलाश ने रात को छोले भिगो दिये. सुबह दही डालकर भटूरे के लिए मैदा भी गूँध लिया. थोड़ा ठीला रह गया था लेकिन चल जाएगा. प्याज-टमाटर काटकर रख लिए. इमली को छानकर उसका गूदा अलग कर लिया. ये सारी तैयारी उसने निक्कू के जागने से पहले ही कर ली.अब छोले बनाने की रेसिपी देखने के लिये उसने यू ट्यूब खोला.

“छोला रेसिपी” टाइप करते ही बहुत सी लिंक स्क्रीन पर दिखाई देने लगी. सभी में सबसे पहला निर्देश था- “सबसे पहले नमक-हल्दी डालकर छोले उबाल लें.” यही तो सबसे बड़ी समस्या थी कि छोले कैसे उबालें… कितना पानी डाले… कितनी देर पकाये… कूकर को कितनी सीटी लगाए…

उसने विजया की अलमारी में से कुछ पत्रिकाएँ निकाली जिन्हें वह रेसिपी के लिये संभाल कर रखती है. उन्हीं में से एक में उसे छोले-भटूरे बनाने की रेसिपी मिल गई. कैलाश खुश हो गया लेकिन पहला वाक्य पढ़ते ही फिर से माथा ठनक गया. लिखा था- “सबसे पहले छोले उबाल लें.” यानी समस्या तो अब भी जस की तस थी.

“विजया को फोन लगाए बिना नहीं बैठेगा.” सोचकर उसने विजया को फोन लगाया.

“बहुत आसान है कैलाश! छोलों में दो उंगल ऊपर तक पानी डालो. फिर नमक-हल्दी डालकर दो चम्मच घी भी डाल देना. अब कूकर में प्रेशर आने दो. एक सीटी आते ही गैस को सिम कर देना. आधा घंटा पकने देना. छोले उबल जाएंगे.” विजया ने जिस सहजता से बताया उसे सुनकर कैलाश को लगा कि छोले बनाना सचमुच बहुत आसान है.

छोले उबल चुके थे. बाकी का काम रेसिपी बुक और यू ट्यूब की मदद से हो जाएगा. कैलाश ने गैस पर कड़ाही चढ़ा दी. एक तरफ रेसिपी बुक खुली थी, दूसरी तरफ यू ट्यूब पर विडियो चल रहा था. कैलाश उन्हें देख-पढ़कर पूरी तन्मयता से छोले बनाने में जुट गया.

तेल गरम होने पर पहले प्याज, लहसुन और अदरक का पेस्ट डाला फिर सब्जी वाले मसाले डालकर उन्हें अच्छी तरह से पकाया. उबले हुये छोले कड़ाही में डालते समय कैलाश के चेहरे पर मुस्कान तैर गई. पिछले घंटे भर की सारी घटनाएँ आँखों के सामने घूम गई.

इमली का गूदा डालकर जब कैलाश ने चम्मच में लेकर छोले चखे तो उसे यकीन ही नहीं हुआ कि वह भी इतने स्वादिष्ट छोले बना सकता है.

अब बारी थी भटूरे बनाने की. कैलाश ने रेस्टोरेंट जैसे बड़े-बड़े भटूरे बेलने की कोशिश की लेकिन कामयाबी नहीं मिली. तभी उसे निक्कू की बात याद आ गई- “रोटी गोल नहीं बनी… कोई बात नहीं. पेट में जाकर गोल हो जाएंगी.” कैलाश मुस्कुरा दिया.

“बड़े भटूरे जरूरी तो नहीं… छोटों में भी वही स्वाद आएगा.” कैलाश ने एक छोटा सा भटूरा बेला और सावधानी से गर्म तेल में छोड़ दिया. कचोरी की तरह फूलकर भटूरा कड़ाही में नाचने लगा और इसके साथ ही कैलाश भी.

“तो आज हमारे निक्कू राजा के लिए एक खास सरप्राइज़ है.” कैलाश ने उसे दूध का गिलास थमा कर उठाया.

“क्या?” निक्कू ने पूछा.

“छोले-भटूरे.”

“तो क्या मम्मी आ गई?” निक्कू खुश हो गया.

“नहीं रे! पापा की  तरफ से है.” निक्कू बुझ गया. कैलाश मुस्कुरा दिया.

“निक्कू! सरप्राइज़ तैयार है.” कैलाश प्लेट में छोले-भटूरे लेकर खड़ा था. निक्कू को यकीन नहीं हो रहा था. वह खुशी के मारे उछल पड़ा. पहला कौर मुँह में डालने ही वाला था कि कैलाश बोला- “आहा! गर्म है… जरा आराम से.”

निक्कू खाता जा रहा था… उसकी आँखें फैलती जा रही थी… चेहरे पर संतुष्टि के भाव लगातार बढ़ते जा रहे थे और इसके साथ ही कैलाश के चेहरे की मुस्कान भी. उसने विजया को विडियो पर कॉल लगाई और उसे यह दृश्य दिखाया. वह भी हँस दी.

“पापा! आप एक अच्छे कुक बन सकते हो.” निक्कू ने अपनी उंगली और अंगूठे को आपस में मिलाकर “लाजवाब” का इशारा किया तो विडियो पर ऑनलाइन विजया ने तालियाँ बजकर बेटे की बात का समर्थन किया.

“तुम आराम से आना… हमारी फिक्र मत करना… हम मैनेज कर लेंगे…” कैलाश ने विजया से कहा. उसे आज परीक्षा में पास होने जैसी खुशी हो रही थी.

“माय डैडी इज द बेस्ट कुक.” निक्कू ने एक निवाला कैलाश के मुँह में डालकर कहा. स्वाद सचमुच लाजवाब था. कैलाश ने विजया की तरफ देखकर अपनी कॉलर ऊंची की और बाय करते हुये फोन काट दिया.

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