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Netflix पर रिलीज होगी मणि रत्नम की ‘‘नवरस’’, जानें क्यों 40 एक्टर्स ने फ्री में की एक्टिंग

कोरोना महामारी की पहली और दूसरी लहर ने फिल्म उद्योग से जुड़े दिहाड़ी मजदूरों की कमर तोड़कर रख दी. दिहाड़ी मजदूरों पर आए संकट का अहसास कर मशहूर फिल्मकार मणि रत्नम ने फिल्म निर्माता जयेंद्र पंचमकेसन के साथ मिलकर दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग से जुड़े सभी दिहाड़ी मजदूरों को सबसे पहले एक संगठन की तरफ से 1500 रूपए का राशन दिलवाया. उसके बाद एक नौं खंडो की तमिल भाषा की एंथोलॉजी फिल्म ‘‘नवरस’’ निर्माण किया.

इस फिल्म से होने वाली आय को फिल्म जगत से जुड़े सभी दिहाड़ी मजदूरों में वितरित की जाएगी. यह एंथोलॉजी फिल्म ‘‘नवरस’’ आगामी छह अगस्त को ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘नेटफ्लिक्स’’ पर स्ट्रीम होगी, जिसका ट्रेलर जारी किया जा चुका है.

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इस अनूठी पहली पर खुद मणि रत्नम कहते हैं-‘‘जयेंद्र और मैं लंबे समय से साथ हैं, वर्षों से विभिन्न कारणों से धन जुटा रहे हैं. महामारी में हमने फोन पर बात कर फैसला किया कि हमें फिल्म उद्योग से जुड़े लोगों के लिए कुछ करना चाहिए. क्योंकि हमारी इंडस्ट्री से जुड़े दिहाड़ी मजदूर बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं.

40 दिग्गज एक्टर्स ने फ्री में किया काम

बहुत लंबे समय से काम नहीं हुआ है.इसके लिए सिर्फ हमें ही नहीं बल्कि पूरी इंडस्ट्री को एक साथ आने की जरूरत थी. इसलिए हमने इन सभी अभिनेताओं और निर्देशकों से बात की, सभी तैयार हो गए. जिस पर हम सभी को गर्व है.’’

एंथोलॉजी फिल्म में सभी नौ निर्देशकों, 40 कलाकारों व बड़े तकनीशियनों ने मुफ्त में काम किया है. इसे स्वीकार करते हुए मणि रत्नम कहते हैं- ‘‘जी हां! उत्पादन लागत और उन श्रमिकों को, जिनके लिए ‘नवरस’ बनाया गया, को ही भुगतान किया गया था, लेकिन बाकी ने व्यावहारिक रूप से मुफ्त में काम किया. उन्होंने हमें हर चीज के लिए समय दिया, यह काफी आश्चर्यजनक था, यह आपको विनम्र बनाता है.’’

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फिल्म में दिखेंगे जीवन के नौ रस 

यह पूरे तमिल मनोरंजन उद्योग को एक साथ लाने का एक ऐतिहासिक क्षण होगा. इसका टीजर जारी किया जा चुका है.फिल्म ‘‘नवरस’‘, नौ मानवीय भावनाओं पर आधारित है, जिसमें क्रोध, करुणा, साहस, घृणा, भय, हँसी, प्रेम, शांति और आश्चर्य का समावेष है.

इस फिल्म में समाहित खंडो का निर्देशन अरविंद स्वामी, बिजॉय नांबियार, गौतम वासुदेव मेनन, कार्तिक नरेन, कार्तिक सुब्बाराज, प्रियदर्शन, रथिंद्रन प्रसाद, सरजुन और वसंत साईं जैसे दिग्गज व अपने क्षेत्र के माहिर निर्देशकों ने किया है. जबकि इन कहानियों में मुख्य भूमिकाएं सूर्या, सिद्धार्थ, विजय सेतुपति, प्रकाश राज, प्रसन्ना, विक्रांत, रेवती, नित्या मेनन, ऐश्वर्या राजेश सहित लगभग 40 कलाकारों निभायी हैं.

इस फिल्म के पहले लुक टीजर को प्रतिष्ठित फिल्म निर्माता भारत बाला द्वारा तैयार किया गया है, जो कि नौ लघु फिल्मों में खूबसूरती से कैद की गई मानवीय भावनाओं की पेचीदगियों को पूरी तरह से प्रदर्शित करता है.

Romantic Story: गिरफ्त-अचानक मनीषा के जिंदगी में किस तरह का तूफान आया- भाग 2

‘अरे मां, अब तो मैं ज्यादा तलाभुना खाना भी नहीं खाती हूं.’

‘हां…हां, पता है. पर यहां तेरी मनमानी नहीं चलेगी, समझी,’ मां ने उसे प्यारभरी फटकार लगाई.

‘अरे, फोन बज रहा है,’ कमरे में रखा उस का मोबाइल बज रहा था. लो, मां को याद किया तो उन का फोन भी आ गया. इसी को शायद टैलीपैथी कहते हैं. वह तेजी से अंदर गई. अरे, यह तो सुशांत का फोन है, पर इस समय कैसे. अकसर उस का फोन तो रात 10 बजे के बाद ही आता था और अगर पास में प्रिया सो रही हो तो वह बाहर बालकनी में बैठ कर आराम से घंटे भर बातें करती थी पर इस समय, वह चौंकी थी.

‘‘हां सुशांत, बस, मैं कल निकल रही हूं अजमेर के लिए, थोड़ाबहुत सामान पैक किया है,’’ मोबाइल उठाते ही उस ने कहा था.

‘‘मनीषा, मैं ने इसीलिए तुम्हें फोन किया था कि तुम अब अपना प्रोग्राम बदल देना, देखो, अदरवाइज मत लेना पर मैं ने बहुत सोचा है और आखिर इस निर्णय पर पहुंचा हूं कि मैं अभी शादी नहीं कर पाऊंगा इसलिए…’’

‘‘क्या कह रहे हो सुशांत? मजाक कर रहे हो क्या?’’ मनीषा समझ नहीं पा रही थी कि सुशांत कहना क्या चाह रहा है.

‘‘यह मजाक नहीं है मनीषा, मैं जो कुछ कह रहा हूं, बहुत सोचसमझ कर कह रहा हूं. अभी मेरी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि शादी कर सकूं.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हो सुशांत, हम लोग सारी बातें पहले ही तय कर चुके हैं और अच्छीखासी जौब है तुम्हारी. फिर मैं भी जौब करूंगी ही. हम लोग मैनेज कर ही लेंगे और हां, यह तो सोचो कि शादी की सारी तैयारियां हो चुकी हैं. पापा ने वहां सारी बुकिंग करा दी है. कैटरिंग, हलवाई सब को एडवांस दिया जा चुका है.’’

‘‘तभी तो मैं कह रहा हूं…’’ सुशांत ने फिर बात काटी थी, ‘‘देखो मनीषा, अभी तो टाइम है, चीजें कैंसिल भी हो सकती हैं और फिर शादी के बाद तंगी में रहना कितना मुश्किल होगा. इच्छा होती है कि हनीमून के लिए बाहर जाएं. बढि़या फ्लैट, गाड़ी सब हों, मैं ने तुम्हें बताया था न कि मेरी एक फ्रैंड है शोभा, उस से मैं अकसर राय लेता रहता हूं. उस का भी यही कहना है, चलो, तुम्हारी उस से भी बात करा दूं. वह यहीं बैठी है.’’

शोभा, कौन शोभा. क्या सुशांत की कोई गर्लफ्रैंड भी है. उस ने तो कभी बताया नहीं… मनीषा के हाथ कांपने लगे. तब तक उधर से आवाज आई. ‘‘हां, कौन, मनीषा बोल रही हैं, हां, मैं शोभा, असल में सुशांत यहीं हमारे घर में पेइंगगैस्ट की तरह रह रहे हैं, तुम्हारा अकसर जिक्र करते रहते हैं. फोटो भी दिखाया था तुम्हारा. बस, शादी के नाम पर थोड़े परेशान हैं कि अभी मैनेज नहीं हो पाएगा. अपने घरवालों से तो कहने में हिचक रहे थे तो मैं ने ही कहा कि तुम मनीषा से ही बात कर लो. वह समझदार है, तुम्हारी तकलीफ समझेगी.’’

मनीषा तो जैसे आगे कुछ सुन ही नहीं पा रही थी. कौन है यह शोभा और सुशांत क्यों इसे सारी बातें बताता रहा है. उस का माथा भन्नाने लगा. ‘‘देखिए, आप सुशांत को फोन दें.’’

‘‘हां सुशांत, तुम अपने घरवालों से बात कर लो.’’

‘‘पर मनीषा…’’ सुशांत कह रहा था, पर मनीषा ने तब तक मोबाइल बंद कर दिया था. 2 बार घंटी बजी थी, पर उस ने फोन उठाया ही नहीं.

‘ओफ, क्या सोचा था और क्या हो गया. अब वह क्या करे. सुहावने सपनों का महल जैसे भरभरा कर गिर गया. अब अजमेर जा कर मांपापा से क्या कहेगी,’ उस का दिमाग काम नहीं कर रहा था.

मोबाइल की घंटी लगातार घनघना रही थी. नहीं, उसे अब सुशांत से कोई बात नहीं करनी और वह गर्लफैंड. वह खुद को बुरी तरफ अपमानित अनुभव कर रही थी. कहां तो अभी इतनी तेज भूख लग रही थी, लेकिन अब भूखप्यास सब गायब हो गई थी. कोई रास्ता सूझ नहीं रहा था कि अब क्या करे? मांपापा को फोन पर तो यह सब बताना ठीक नहीं रहेगा, वे लोग घबरा जाएंगे. मां तो वैसे ही ब्लडप्रैशर की मरीज हैं.

और उसे यह भी नहीं पता कि आखिर वह शोभा है कौन? सुशांत उस के कहने भर से शादी स्थगित कर रहा है या फिर शादी के लिए मना ही कर रहा है.

ठीक है, उसे भी ऐसे आदमी के साथ जिंदगी नहीं बितानी है, अच्छा हुआ अभी सारी बातें सामने आ गईं और उस ने नौकरी से अभी रिजाइन नहीं दिया वरना मुश्किल हो जाती.

पर चारों तरफ सवाल ही सवाल थे और वह कोईर् उत्तर नहीं खोज पा रही थी.

रोतेरोते उस की आंखें सूज गई थीं.

‘नहीं, उसे कमजोर नहीं पड़ना है, जब उस की कोई गलती ही नहीं है तो वह क्यों हर्ट हो,’ यह सोच कर वह उठी ही थी कि मोबाइल की घंटी फिर बजने लगी थी. सुशांत का ही फोन होगा. अब फोन मुझे स्विचऔफ करना होगा, यह सोच कर उस ने मोबाइल उठाया. पर यह तो सरलाजी थीं, सुशांत की मां. अब ये क्या कह रही हैं.

उधर से आवाज आ रही थी, ‘‘हां, मनीषा बेटी, मैं हूं सरला.’’

‘‘हां, आंटी,’’ बड़ी मुश्किल से उस ने अपनी रुंधि हुई आवाज को रोका.

‘‘बेटी, यह मैं क्या सुन रही हूं, अभीअभी सुशांत का फोन आया था. अरे बेटे, शादी क्या कोई मजाक है. क्यों मना कर रहा है वह. उस के पापा तो इतने नाराज हुए कि उन्होंने उस का फोन ही काट दिया. अब पता नहीं यह शोभा कौन है और क्यों वह इस के बहकावे में आ रहा है, पर बेटी, मेरी तुम से विनती है, तुम एक बार बात कर के उसे समझाओ.’’

‘‘आंटी, अब मैं क्या कर सकती हूं,’’ मनीषा ने अपनी मजबूरी जताते हुए कहा.

‘‘बेटा, तू तो बहुत कुछ कर सकती है, तू इतनी समझदार है, एक बार बात कर उस से. अब हम तो तुझे अपनी बहू मान ही चुके हैं.’’

‘‘ठीक है आंटी, मैं देखूंगी,’’ कह कर मनीषा ने मोबाइल स्विचऔफ कर दिया था. अब नहीं करनी उसे किसी से भी बात. अरे, क्या मजाक समझ रखा है. बेटा कुछ कहता है तो मां कुछ और, और मैं क्यों समझाऊं किसी को. मैं ने क्या कोई ठेका ले रखा सब को सुधारने का, मनीषा का सिरदर्द फिर से शुरू हो गया था, रातभर वह सो भी नहीं पाई.

फिर सुबहसुबह उठ कर बालकनी में आ गई. अभी सूर्योदय हो ही रहा था. ‘नहीं, कुछ भी हो उसे उस शोभा को तो मजा चखाना ही है, भले ही यह शादी हो या नहीं, पर यह शोभा कौन होती है अड़ंगे लगाने वाली. वह एक बार तो बेंगलुरु जाएगी ही,’ सोचते हुए उस ने मोबाइल से ही बेंगलुरु की फ्लाइट का टिकट बुक करा लिया था. फिर तैयार हो कर उस ने सुशांत को फोन कर दिया, वह अब औफिस आ चुका था.

Family Story: माय डैडी बेस्ट कुक

“सुनो! पेपर सोप और सैनीटाईजर पर्स में रख लिया है ना… और मास्क मत उतारना… दूरी बनाकर ही अपना काम करना है और हाथ बार-बार धोती रहना…” दो दिन के लिए टूर पर जाती विजया को पति कैलाश बस में बिठाने तक हिदायतें दे रहा था.

“हाँ बाबा! सब याद रखूँगी… और तुम भी अपना और निक्कू का खयाल रखना… संतरा को टाइम पर आने को कह देना ताकि आप दोनों को खाने-पीने की परेशानी ना हो…” विजया ने भी अपनी हिदायतों का पिटारा खोल दिया. बस चल दी तो कैलाश हाथ हिलाकर विदा करता हुआ पार्किंग की तरफ बढ़ गया.

“स्कूल बंद होने के कारण बच्चों को घर में संभाले रखना कितना मुश्किल होता है… लेकिन कोई बात नहीं… दो दिन की ही तो बात है… संभाल लूँगा… फिर संतरा तो है ही…” मन ही मन सोचता… योजना बनाता… कैलाश घर की तरफ बढ़े जा रहा था. घर आकर देखा तो संतरा अपना काम निपटा रही थी.

“संतरा ना हो तो हम बाप-बेटे को दूध-ब्रेड से ही काम चलाना पड़े.” सोचते हुये कैलाश ने भी अपना टिफिन पैक करवाया और निक्कू को संतरा के पास छोडकर ऑफिस के लिए निकल गया.

“पापा! कार्टून चलाने दो ना.” रात को निक्कू ने कैलाश के हाथ से रिमोट लेने की जिद की.

“अभी ठहरो. आठ बजे हमारे प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करने वाले हैं, उसके बाद.” कैलाश ने रिमोट वापस अपने कब्जे में कर लिया. मन मसोस कर निक्कू भी वहीं बैठकर भाषण समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगा.

“आज रात बारह बजे से पूरे देश में सम्पूर्ण लॉकडाउन किया जाएगा. समस्त देशवासियों से विनती है कि जो जहां है, वो वहीं रहकर इसमें सहयोग करे.” प्रधानमंत्री का उद्बोधन सुनते ही कैलाश के माथे पर पसीने की बूंदें छलछला आई. उसने तुरंत विजया को फोन लगाया.

“सुना तुमने! आज रात से पूरे देश में लॉकडाउन होने जा रहा है.” कैलाश के स्वर में चिंता थी.

“हाँ सुना! लेकिन तुम फिक्र मत करो. हमारा विभाग आवश्यक सेवाओं में शामिल है इसलिए ऑफिस बंद नहीं होगा.” विजया ने पति को आश्वस्त करने की कोशिश की.

“वो सब तो ठीक है लेकिन लॉकडाउन में तुम वापस कैसे आओगी?” कैलाश ने उत्तेजित होते हुये कहा.

“देखते हैं. कुछ न कुछ उपाय तो करना ही पड़ेगा. तुम फिक्र मत करो. बस! अपना और निक्कू का खयाल रखना. गुड नाइट.” कहते हुये विजया ने फोन काट दिया लेकिन कैलाश की चिंता दूर नहीं हुई. पूरी रात करवट बदलते-बदलते बीती. सुबह फोन की घंटी से आँख खुली. देखा तो संतरा का फोन था.

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“साहब! हमारे मोहल्ले में एक आदमी कोरोना का मरीज निकला है. आसपास कर्फ़्यू लगा दिया गया है. मैं नहीं आ सकूँगी.” संतरा की बात सुनते ही कैलाश की नींद उड़ गई. वह फौरन बिस्तर से बाहर आया और निक्कू के कमरे में गया. निक्कू अभी तक सो रहा था. उसके चेहरे पर मासूमियत बिखरी थी. कैलाश को उस पर प्यार उमड़ आया.

“कितना बेपरवाह होता है बचपन भी.” कैलाश ने निक्कू के बालों में हाथ फिरा दिया. निक्कू ने आँखें खोली.

“दूध कहाँ है?” निक्कू ने कहा तो कैलाश को याद आया कि निक्कू दूध पीने के बाद ही फ्रेश होने जाता है. वह रसोई की तरफ लपका. दूध गर्म करके उसमें चॉकलेट पाउडर मिलाया और निक्कू को दिया. पहला घूंट भरते ही निक्कू ने मुँह बिचका दिया.

“आज इसका टेस्ट अजीब सा हैं. मुझे नहीं पीना.” निक्कू ने गिलास उसे वापस थमा दिया. कैलाश ने रसोई में रखे दूध को सूंघा तो उसमें से खट्टी-खट्टी गंध आ रही थी.

“उफ़्फ़! रात में दूध को फ्रिज में रखना भूल गया. विजेता ही ये सब काम निपटाती है इसलिए दिमाग में ही नहीं आया.” सोचते हुये कैलाश कुछ परेशान सा हो गया और दूध की व्यवस्था के बारे में सोचने लगा.

भाषण में कहा गया था कि आवश्यक दुकानें खुली रहेंगी. याद आते ही  कैलाश ने तुरंत गाड़ी निकाली और दूध पार्लर से दूध के पैकेट लेकर आया. घर पहुँचते ही मेल चेक किया तो पता चला कि आज से आधे कर्मचारी ही ऑफिस आएंगे. उसे आज नहीं कल ऑफिस जाना है. उसने राहत की सांस ली और दूध गर्म करने लगा. इस बीच मोबाइल पर अपडेट्स देखना भी चालू था. सर्रर्रर्र… से दूध उबल कर स्लैब पर बिखर गया तो कैलाश ने अपना माथा पीट लिया. मोबाइल एक तरफ रखकर वह रसोई साफ करने लगा.

“घर संभालना किसी मोर्चे से कम नहीं.” अचानक ही उसका मन विजया और संतरा के प्रति आदर से भर उठा.

“पापा! आज नाश्ते में क्या है?” निक्कू रसोई के दरवाजे पर खड़ा था.

“अभी तो ब्रेड-जैम से काम चला ले बेटा. लंच में बढ़िया खाना खिलाऊंगा.” कैलाश ने उसे किसी तरह राजी किया और ब्रेड पर जैम लगाकर निक्कू को नाश्ता दिया. दो-तीन ब्रेड खुद भी खाकर वह अपना लैपटाप लेकर बैठ गया और ऑफिस के काम को अपडेट करने लगा.

“पापा! खाने में क्या बनाओगे? आपको आता तो है ना बनाना?” निक्कू ने पूछा तो कैलाश सचमुच सोच में पड़ गया. उसे तो कुछ बनाना आता ही नहीं. बेचारी विजेता कितना चाहती थी कि कभीकभार वह भी रसोई में उसकी मदद करे लेकिन उसने तो अपने हिस्से का काम संतरा के सिर डालकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली थी.

कैलाश रसोई में घुसा. आटे का डिब्बा निकालकर परात में आटा साना और उसे गूंधने की कोशिश करने लगा. कभी आटे में पानी ज्यादा तो कभी पानी में आटा ज्यादा… किसी तरह पार पाई तो देखा कि इतना आटा तो वे दोनों पूरे सप्ताह भी खत्म नहीं कर सकेंगे.

“चलो ठीक ही है, रोज-रोज की एक्सर्साइज़ से मुक्ति मिली.” सोचते हुये कैलाश ने सिंक में अपने हाथ धोये और फ्रिज में से सब्जी निकालने लगा. लौकी… करेला… टिंडे… नाम सुनते ही निक्कू मना में सिर हिला रहा था. कैलाश भी खुश था क्योंकि उसे ये सब बनाना भी कहाँ आता था. किसी तरह आलू पर आकार बात टिकी तो कैलाश ने भी राहत की सांस ली.

धो-काटकर आलू कूकर में डाले. मसाले और थोड़ा पानी डालकर कूकर बंद कर दिया. सीटी पर सीटी बज रही थी लेकिन कैलाश को कुछ भी अंदाज नहीं था कि गैस कब बंद की जाये. थोड़ी देर में कूकर में से जलने की गंध आने लगी तो कैलाश ने भागकर गैस बंद कि. ठंडा होने पर जब कूकर खुला तो माथा पीटने के अलावा कुछ भी शेष नहीं था. सब्जी तो जली ही, कूकर भी साफ करने लायक नहीं बचा था. निक्कू का मुँह फूला सो अलग.

किसी तरह दो मिनट नूडल बना-खाकर भूख मिटाई गई लेकिन कैलाश ने ठान लिया था कि आज रात वह निक्कू को शाही डिनर जरूर करवाएगा.

शाम को जब विजया का फोन आया तो कैलाश ने झेंपते हुये दिन की घटना का जिक्र किया. सुनकर वह भी हँसे बिना नहीं रह सकी.

“अच्छा सुनो! उस खट्टी गंध वाले दूध का क्या करूँ?” कैलाश ने पूछा.

“एकदम सही समय पर याद दिलाया. तुम उसे गर्म करके उसमें एक नीबू निचोड़ दो. पनीर बन जाए तो उसके पराँठे सेक लेना.” विजेता ने आइडिया दिया तो कैलाश भी खुश हो गया. उसने विडियो कॉल पर विजेता की निगरानी में पनीर बनाया और उसे एक कपड़े में बांधकर कुछ देर के लिए लटका दिया. दो घंटे बाद जब पनीर का सारा पानी निकल गया तो विजया की मदद से उसने पनीर का भरावन भी तैयार कर लिया. अब शाम को कैलाश पूरी तरह से बेटे को शाही डिनर खिलाने के लिए तैयार था.

आटा तो दोपहर से गूँथा हुआ ही था, कैलाश ने खूब सारा भरावन भर के परांठा बेला और निक्कू की तरफ गर्व से देखते हुये उसे तवे पर पटक दिया.

“पापा! करारा सा बनाना.” निक्कू भी बहुत उत्साहित था. तभी कैलाश का फोन बजा और वह कॉल लेने चला गया. नेटवर्क कमजोर होने के कारण कैलाश फोन लेकर बालकनी में आ गया. बात खत्म करके जब वह रसोई में आया तो तवे से उठते धुएँ को देखकर घबरा गया. उसने भागकर पराँठे को पलटा लेकिन तवा बहुत गर्म था और जल्दबाज़ी में उसे चिमटा कहाँ याद आता। नतीजन! पराँठे को छूते ही उसका हाथ जल गया और हड़बड़ाहट में पनीर के भरावन वाला प्याला स्लैब से नीचे गिर गया.

“गई भैंस पानी में!” कैलाश ने सिर धुन लिया. निक्कू का मूड तो खराब होना ही था.

“पापा प्लीज! आपसे नहीं होगा. मम्मी को बुला लीजिये.” निक्कू रोने लगा. वह अब कैलाश के हाथ का बना कुछ भी अंटशंट नहीं खाना चाहता था. निक्कू को खुश करने के लिए कैलाश ने ऑनलाइन खाने की तलाश की लेकिन उसे नाउम्मीदी ही हाथ लगी.

तभी उसे याद आया कि ऐसी ही कई परिस्थितियों में विजया झटपट मटरपुलाव बना लिया करती है. निक्कू भी शौक से खा लेता है. कैलाश ने फटाफट चावल धोये और थोड़े से मटर छील लिये. गैस पर कूकर भी चढ़ा दिया लेकिन फिर वही समस्या… कूकर में पानी कितना डाले और कितनी देर पकाये…

तुरंत हाथ फोन की तरफ बढ़े और विजया का नंबर डायल हुआ लेकिन कैलाश ने तुरंत फोन काट दिया. वह बार-बार अपने अनाड़ीपन का प्रदर्शन कर उसे परेशान नहीं करना चाहता था. घड़ी की तरफ देखा तो अभी नौ ही बजे थे. उसने संतरा को फोन लगाया.

“अरे साब! पुलाव बनाना कौन बड़ा काम है. पहले घी डालकर लोंग-इलाइची तड़का लो फिर चावल और जितना चावल लिया, ठीक उससे दुगुना पानी डालो… मसाले डालकर दो सीटी कूकर में लगाओ और पुलाव तैयार…” संतरा ने हँसते हुये बताया तो कैलाश को आश्चर्य हुआ.

“ये औरतें भी ना! कमाल होती हैं… कैसे उँगलियों पर हिसाब रखती हैं.” कैलाश ने सोचा. लेकिन तभी उसे कुछ और याद आ गया.

“और मसाले? उनका क्या हिसाब है?” कैलाश ने तपाक से पूछा.

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“मसलों का कोई हिसाब नहीं होता साब. आपका अपना स्वाद ही उनका हिसाब है. पहले अपने अंदाज से जरा कम मसाले डालिए, फिर चम्मच में थोड़ा सा लेकर चख लीजिये… कम-बेसी हो तो और डाल लीजिये.” संतरा ने उसी सहजता से बताया तो कैलाश को पुलाव बनाना बहुत आसान लगने लगा.

और हुआ भी यही. यह डिश उसकी उम्मीद से कहीं बेहतर बनी थी. खाने के बाद निक्कू के चेहरे पर आई मुस्कान देखकर कैलाश का आत्मविश्वास लौटने लगा.

अगले दिन कैलाश को ऑफिस जाना था. पूरा दिन निक्कू अकेला घर पर रहेगा यह सोचकर ही वह परेशान हो गया. उसने रात को सोने से पहले ही निक्कू को आवश्यक हिदायतें देकर उसे सावधानी से घर पर रहने के लिए समझा दिया था.

आज कैलाश अपने हर काम में अतिरिक्त सावधानी बरत रहा था. दूध गर्म करके निक्कू को उठाना… फिर वेज सैंडविच का नाश्ता और लंच के लिए आलू का परांठा… ये सब करने में उसने यू ट्यूब की पूरी-पूरी मदद ली. विजया जैसा उँगलियाँ चाटने वाला तो नहीं लेकिन हाँ! काम चलाऊ खाना बन गया था.

शाम को घर वापस आते हुये जब उसने एक परचून की दुकान खुली देखी तो गाड़ी रोक ली. मुँह पर मास्क लगाकर वह भीतर गया और एक पैकेट मैदा और आधा किलो छोले खरीद लिए. साथ ही इमली का छोटा पैकेट भी. कई बार विजया ने उससे ये सामान मंगवाया है जब वो छोले-भटूरे बनाती है.

“निक्कू को बहुत पसंद हैं. कल सुबह मुझे ऑफिस नहीं जाना है. निक्कू को सरप्राइज दूँगा. शाम तक विजया आ ही जाएगी.” मन ही मन खुश होता हुआ अपनी प्लानिंग समझाने और छोले-भटूरे बनाने की विधि पूछने के लिए उसने विजया को फोन लगाया.

“सॉरी कैलाश! हमें अभी वापस आने की परमिशन नहीं मिली. लगता है तुम्हें कुछ दिन और अकेले संभालना पड़ेगा.” विजया के फोन ने उसे निराश कर दिया. आँखों के सामने तवा… कड़ाही… भगोना… चकला और बेलन नाचने लगे. मन खराब हो गया लेकिन घर पहुँचते ही जिस तरह निक्कू उससे लिपटा, वह सारा अवसाद भूल गया.

“पापा! आज हम दोनों मिलकर खाना बनाएँगे. आप रोटी बनाना और मैं डिब्बे में से अचार निकालूँगा…” निक्कू ने हँस कर कहा तो उसे फिर से जोश आ गया.

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“लेकिन मैं गोल रोटी नहीं बना सकता…” कैलाश ने मुँह बनाया.

“कोई बात नहीं. पेट में जाकर गोल हो जाएगी.” निक्कू खिलखिलाया तो कैलाश दुगुने जोश से भर गया. रात को दोनों ने आम के मीठे अचार के साथ पराँठे खाये. पराँठों की शक्ल पर ना जाया जाए तो स्वाद इतना बुरा भी नहीं था.

कैलाश ने रात को छोले भिगो दिये. सुबह दही डालकर भटूरे के लिए मैदा भी गूँध लिया. थोड़ा ठीला रह गया था लेकिन चल जाएगा. प्याज-टमाटर काटकर रख लिए. इमली को छानकर उसका गूदा अलग कर लिया. ये सारी तैयारी उसने निक्कू के जागने से पहले ही कर ली.अब छोले बनाने की रेसिपी देखने के लिये उसने यू ट्यूब खोला.

“छोला रेसिपी” टाइप करते ही बहुत सी लिंक स्क्रीन पर दिखाई देने लगी. सभी में सबसे पहला निर्देश था- “सबसे पहले नमक-हल्दी डालकर छोले उबाल लें.” यही तो सबसे बड़ी समस्या थी कि छोले कैसे उबालें… कितना पानी डाले… कितनी देर पकाये… कूकर को कितनी सीटी लगाए…

उसने विजया की अलमारी में से कुछ पत्रिकाएँ निकाली जिन्हें वह रेसिपी के लिये संभाल कर रखती है. उन्हीं में से एक में उसे छोले-भटूरे बनाने की रेसिपी मिल गई. कैलाश खुश हो गया लेकिन पहला वाक्य पढ़ते ही फिर से माथा ठनक गया. लिखा था- “सबसे पहले छोले उबाल लें.” यानी समस्या तो अब भी जस की तस थी.

“विजया को फोन लगाए बिना नहीं बैठेगा.” सोचकर उसने विजया को फोन लगाया.

“बहुत आसान है कैलाश! छोलों में दो उंगल ऊपर तक पानी डालो. फिर नमक-हल्दी डालकर दो चम्मच घी भी डाल देना. अब कूकर में प्रेशर आने दो. एक सीटी आते ही गैस को सिम कर देना. आधा घंटा पकने देना. छोले उबल जाएंगे.” विजया ने जिस सहजता से बताया उसे सुनकर कैलाश को लगा कि छोले बनाना सचमुच बहुत आसान है.

छोले उबल चुके थे. बाकी का काम रेसिपी बुक और यू ट्यूब की मदद से हो जाएगा. कैलाश ने गैस पर कड़ाही चढ़ा दी. एक तरफ रेसिपी बुक खुली थी, दूसरी तरफ यू ट्यूब पर विडियो चल रहा था. कैलाश उन्हें देख-पढ़कर पूरी तन्मयता से छोले बनाने में जुट गया.

तेल गरम होने पर पहले प्याज, लहसुन और अदरक का पेस्ट डाला फिर सब्जी वाले मसाले डालकर उन्हें अच्छी तरह से पकाया. उबले हुये छोले कड़ाही में डालते समय कैलाश के चेहरे पर मुस्कान तैर गई. पिछले घंटे भर की सारी घटनाएँ आँखों के सामने घूम गई.

इमली का गूदा डालकर जब कैलाश ने चम्मच में लेकर छोले चखे तो उसे यकीन ही नहीं हुआ कि वह भी इतने स्वादिष्ट छोले बना सकता है.

अब बारी थी भटूरे बनाने की. कैलाश ने रेस्टोरेंट जैसे बड़े-बड़े भटूरे बेलने की कोशिश की लेकिन कामयाबी नहीं मिली. तभी उसे निक्कू की बात याद आ गई- “रोटी गोल नहीं बनी… कोई बात नहीं. पेट में जाकर गोल हो जाएंगी.” कैलाश मुस्कुरा दिया.

“बड़े भटूरे जरूरी तो नहीं… छोटों में भी वही स्वाद आएगा.” कैलाश ने एक छोटा सा भटूरा बेला और सावधानी से गर्म तेल में छोड़ दिया. कचोरी की तरह फूलकर भटूरा कड़ाही में नाचने लगा और इसके साथ ही कैलाश भी.

“तो आज हमारे निक्कू राजा के लिए एक खास सरप्राइज़ है.” कैलाश ने उसे दूध का गिलास थमा कर उठाया.

“क्या?” निक्कू ने पूछा.

“छोले-भटूरे.”

“तो क्या मम्मी आ गई?” निक्कू खुश हो गया.

“नहीं रे! पापा की  तरफ से है.” निक्कू बुझ गया. कैलाश मुस्कुरा दिया.

“निक्कू! सरप्राइज़ तैयार है.” कैलाश प्लेट में छोले-भटूरे लेकर खड़ा था. निक्कू को यकीन नहीं हो रहा था. वह खुशी के मारे उछल पड़ा. पहला कौर मुँह में डालने ही वाला था कि कैलाश बोला- “आहा! गर्म है… जरा आराम से.”

निक्कू खाता जा रहा था… उसकी आँखें फैलती जा रही थी… चेहरे पर संतुष्टि के भाव लगातार बढ़ते जा रहे थे और इसके साथ ही कैलाश के चेहरे की मुस्कान भी. उसने विजया को विडियो पर कॉल लगाई और उसे यह दृश्य दिखाया. वह भी हँस दी.

“पापा! आप एक अच्छे कुक बन सकते हो.” निक्कू ने अपनी उंगली और अंगूठे को आपस में मिलाकर “लाजवाब” का इशारा किया तो विडियो पर ऑनलाइन विजया ने तालियाँ बजकर बेटे की बात का समर्थन किया.

“तुम आराम से आना… हमारी फिक्र मत करना… हम मैनेज कर लेंगे…” कैलाश ने विजया से कहा. उसे आज परीक्षा में पास होने जैसी खुशी हो रही थी.

“माय डैडी इज द बेस्ट कुक.” निक्कू ने एक निवाला कैलाश के मुँह में डालकर कहा. स्वाद सचमुच लाजवाब था. कैलाश ने विजया की तरफ देखकर अपनी कॉलर ऊंची की और बाय करते हुये फोन काट दिया.

 तरक्की: मनोहर साहब को श्वेता से क्या उम्मीद थी

श्वेता की नौकरी को आज पूरे 2 साल हो गए थे, पर वही तनख्वाह, वही ओहदा, कोई तरक्की नहीं.

श्वेता एक सीधीसादी लड़की थी. कम बोलना, बेवजह किसी को फालतू मुंह न लगाना उस की आदत में ही शामिल था. दफ्तर के मालिक मनोहर साहब जब भी उसे बुलाते, वह नजरें झुकाए हाजिर हो जाती.

‘‘श्वेता…’’

‘‘जी सर.’’

‘‘तुम काम खत्म हो जाने पर फुरसत में मेरे पास आना.’’

‘‘जी सर,’’ कहते हुए श्वेता दरवाजा खोलती और बाहर अपने केबिन की तरफ बढ़ जाती. उस ने कभी भी मनोहर साहब की तरफ ध्यान से देखा भी नहीं था कि उन की आंखों में उस के लिए कुछ है.

अगले महीने तरक्की होनी थी. पूरे दफ्तर में मार्च के इस महीने का सब को इंतजार रहता था.

मनोहर साहब अपने दफ्तर में बैठे श्वेता के बारे में ही सोच रहे थे कि शायद 2 साल के बाद वह उन से गुजारिश करेगी. पिछले साल भी उन्होंने उस की तरक्की नहीं की थी और न ही तनख्वाह बढ़ाई थी, जबकि उस का काम बढि़या था.

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इस बार मनोहर साहब को उम्मीद थी कि श्वेता के कहने पर वे उस की तरक्की कर उसे अपने करीब लाएंगे, जिस से वे अपने मन की बात कह सकेंगे, पर श्वेता की तरफ से कोई संकेत न मिलने की वजह से वे काफी परेशान थे. आननफानन उन्होंने मेज पर रखी घंटी जोर से दबाई.

‘‘जी साहब,’’ कहता हुआ चपरासी विपिन हाजिर हो गया.

‘‘विपिन, देखना श्वेता क्या कर रही है? अगर वह खाली हो तो उसे मेरे पास भेज दो.’’

मनोहर साहब ने बोल तो दिया, पर वे समझ नहीं पा रहे थे कि उस से क्या कहेंगे, कैसे बात करेंगे. वे अपनी सोच में गुम थे कि तभी श्वेता भीतर आई.

मनोहर साहब उस के गदराए बदन को देखते हुए हड़बड़ा कर बोले, ‘‘अरे, बैठो, तुम खड़ी क्यों हो?’’

‘‘जी सर,’’ कहते हुए श्वेता कुरसी पर बैठ गई.

मनोहर साहब बोले, ‘‘देखो श्वेता, तुम काबिल और समझदार लड़की हो. तुम इतनी पढ़ाईलिखाई कर के टाइप राइटर पर उंगलियां घिसती रहो, यह मैं नहीं चाहता.

‘‘मैं तुम्हें अपनी सैक्रेटरी बनाना चाहता हूं.’’

‘‘क्या,’’ इस शब्द के साथ श्वेता का मुंह खुला का खुला रह गया. वह अपने भीतर इतनी खुशी महसूस कर रही थी कि मनोहर साहब के चेहरे पर उभरे भावों को देख नहीं पा रही थी.

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‘‘ठीक है सर. कब से काम संभालना है?’’ यह पूछते हुए श्वेता के चेहरे पर बिखरी खुशी की लाली उस की खूबसूरती में निखार ला रही थी, जिस का मजा उस के मनोहर साहब भरपूर उठा रहे थे.

‘‘कल से ही तुम यह काम संभाल लो,’’ यह कहते हुए मनोहर साहब को ध्यान भी नहीं रहा कि अभी इस महीने में 5 दिन बाकी हैं, उस के बाद पहली तारीख आएगी.

मनोहर साहब के ‘कल से’ जवाब के बदले में श्वेता ने कहा, ‘‘ठीक है सर…’’ और जाने के लिए कुरसी छोड़ कर खड़ी हो गई, पर सर की आज्ञा का इंतजार था.

थोड़ी देर बाद मनोहर साहब बोल पड़े, ‘‘ठीक है, तुम जाओ.’’

श्वेता को मानो इसी बात का इंतजार था. वह अपनी इस खुशी को अपने परिवार में बांटना चाहती थी. वह अपना पर्स टटोलते हुए अपने केबिन में पहुंची और वहां सभी कागज वगैरह ठीक कर के घर के लिए चल पड़ी.

श्वेता अपने परिवार के पसंद की खाने की चीजें ले कर घर पहुंची. रास्ते में उस के जेहन में वे पल घूम रहे थे, जब 3 साल पहले उस के पिताजी की मौत हो गई थी. एक साल तक मां ही परिवार की गाड़ी चलाती रही थीं.

श्वेता ने बीए पास करते ही नौकरी शुरू कर दी थी, ताकि उस की दोनों छोटी बहनें पढ़ सकें. एक छोटा भाई सागर था, जो अभी तीसरी क्लास में था.

श्वेता के 12वीं के इम्तिहान के बाद ही सागर का जन्म हुआ था. तीनों बहनों का लाड़ला था सागर, पर पिता का प्यार उसे नहीं मिल सका था.

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श्वेता को अपनी सोच में गुम हुए पता न चला कि घर आ चुका था.

‘‘रोको भैया, रोको, मुझे यहीं उतरना है,’’ कहते हुए श्वेता ने पैकेट संभाले हुए आटोरिकशा का पैसा चुकता किया और घर की सीढि़यों पर चढ़ते ही घंटी बजाई.

छोटी बहन संगीता ने दरवाजा खोला. सब से छोटी बहन सरोज भी उस के साथ थी. दीदी के हाथों में पैकेट देख कर दोनों बहनें हैरान थीं.

अभी वे कुछ कहतीं, उस से पहले श्वेता बोल पड़ी, ‘‘लो सरोज, आज हम सब बाहर का खाना खाएंगे.’’

इस के बाद वे तीनों भीतर आ कर मां के पास बैठ गईं.

मां भी श्वेता कोे देख रही थीं, तभी वह बोली, ‘‘मां, आज मैं बहुत खुश हूं. अब आप को चिंता नहीं करनी पड़ेगी. आप खुले हाथों से खर्च कर सकती हैं. अब मुझे 10,000 रुपए तनख्वाह मिला करेगी.’’

श्वेता की बातें सुन कर मां और ज्यादा हैरान हो गईं.

श्वेता ने आगे कहा, ‘‘मैं अपनी बहनों को इंजीनियर और डाक्टर बनाऊंगी. अब इन की पढ़ाई नहीं रुकेगी,’’ कहते हुए श्वेता के चेहरे पर ऐसे भाव आ गए जो पिता की मौत के बाद कालेज छोड़ते हुए आए थे.

श्वेता की तरक्की से पूरा दफ्तर हैरान था. काम्या तो इस बात से हैरान थी कि श्वेता ने कैसे मनोहर साहब से अपनी तरक्की करवा ली. अगर उसे पता होता कि ‘मनोहर साहब’ भी मैनेजर जैसे हैं, तो वह अपना ब्रह्मपाश मनोहर सर पर ही चलाती. वह फालतू ही मैनेजर के चक्कर में पड़ गई. उसे अपनेआप पर गुस्सा आ रहा था.

काम्या चालबाज लड़की थी. उस ने आते ही मैनेजर को अपने मायाजाल में फांस कर अपनी तरक्की करा ली थी, पर यह सब दफ्तर का कोई मुलाजिम नहीं जानता था. वह वहां सामान्य ही रहती थी, भले ही अपनी पूरी रात मैनेजर के साथ बिताती थी.

एक दिन काम्या ने श्वेता से कह दिया कि बहुत लंबा तीर मारा है तुम ने सीधीसादी बन कर, पर श्वेता उस का मतलब न समझ पाई.

4 महीने बीत चुके थे. एक दिन किसी समारोह में श्वेता भी मनोहर साहब के साथ गई. साहब बहुत खुश नजर आ रहे थे. दफ्तर का ही कार्यक्रम था. श्वेता से उन की खुशी छुपी नहीं रही. उस ने पूछ ही लिया, ‘‘सर, आज कोई खास बात है क्या?’’

‘‘हां श्वेता, तुम्हारे लिए खुशखबरी है,’’ कहते हुए वे मुसकराने लगे.

‘‘मेरे लिए क्या…’’ हैरान श्वेता देखती रह गई.

समारोह खत्म होने पर ‘तुम साथ चलना’ कहते हुए श्वेता का जवाब जाने बिना मनोहर साहब दूसरी तरफ चले गए. पर वह विचलित हो गई कि आखिर क्या बात होगी?

समारोह तकरीबन 4 बजे खत्म हुआ और साहब के साथ गाड़ी में चल पड़ी, वह राज जानने जो उस के साहब को खुश किए था और उसे भी कोई खुशी मिलने वाली थी. एक फ्लैट के सामने गाड़ी रुकी और साहब ताला खोलने लगे.

अंदर हाल में दीवान बिछा था, सोफे भी रखे थे. ऐसा लग रहा था कि यहां कोई रहता है. सभी चीजें साफसुथरी लग रही थीं.

‘‘बैठो,’’ मनोहर साहब ने कहा तो वह भी बैठ गई और साहब की तरफ देखने लगी.

‘‘देखो श्वेता, तुम बहुत ही समझदार लड़की हो. अब मैं जो भी कहने जा रहा हूं, उसे ध्यान से सुनना और समझना. अगर तुम्हें मेरी बातें या मैं बुरा लगूं तो तुम मेरा दफ्तर छोड़ कर आराम से जा सकती हो. अब मेरी बातें बड़े ही ध्यान से सुनो…’’

श्वेता मनोहर साहब की बातें समझ नहीं पा रही थी कि वे क्या कहना चाहते हैं और उस से क्या चाहते हैं. कानों में मनोहर साहब की आवाज पड़ी, ‘‘सुनो श्वेता, मैं तुम से पतिपत्नी का रिश्ता बनाना चाहता हूं. तुम मुझे अच्छी लगती हो. तुम में वे सारे गुण मौजूद हैं, जो एक पत्नी में होने चाहिए. मेरा एक 3 साल का बेटा है, उसे मां की जरूरत है. अगर तुम मेरी बात मान लोगी तो यहां जिंदगीभर राज करोगी. सोचसमझ कर मुझे अभी आधे घंटे में बताओ. तब तक मैं कुछ चायकौफी का इंतजाम करता हूं,’’ कहते हुए वे कमरे से बाहर जा चुके थे.

श्वेता क्या करे, इनकार की गुंजाइश बिलकुल नहीं थी. दूसरी नौकरी तलाशने तक घर तबाह हो जाएगा, हां कहती है तो बिना जन्म दिए मां का ओहदा मिल जाएगा. तरक्की के इतने सारे अनचाहे उपहारों को वह संभाल पाएगी. उस ने अपनेआप से सवाल किया.

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‘‘लो, चाय ले लो,’’ कहते हुए वे उस के करीब बैठ चुके थे और उस की पीठ पर हाथ फेरने लगे. उस ने विरोध भी नहीं किया. उसे अपनी बहनों को डाक्टर और इंजीनियर जो बनाना था.

शरीर की हलचल पर काबू न रखते हुए वह मनोहर साहब की गोद में लुढ़क गई. आखिर उसे भी तो कुछ देना था साहब को, उन की इतनी मेहरबानियों की कीमत.

थोड़े देर में वे दोनों एकदूसरे में डूब गए. श्वेता को कुछ भी बुरा नहीं लग रहा था.

मनोहर साहब की पत्नी मर चुकी थी. वे किसी ऐसी लड़की की तलाश में थे, जो उस के बच्चे को अपना कर उसे प्यार दे सके. श्वेता में उसे ये गुण नजर आए, वरना उस की औकात ही क्या थी.

3 हफ्ते में दोनों की शादी हो गई. शादी में पूरा दफ्तर मौजूद था. सभी मनोहर साहब की तारीफ कर रहे थे कि चलो रिश्ता बनाया तो निभाया भी, वरना आजकल कौन ऐसा करता है.

काम्या भीतर ही भीतर हाथ मल रही थी और पछता रही थी. उस से रहा नहीं गया. श्वेता के कान में शब्दों की लडि़यां उंड़ेल दीं. ‘‘श्वेता, लंबा हाथ मारा है, नौकर से मालकिन बन बैठी.’’

श्वेता के चेहरे पर हलकी सी दर्द भरी मुसकान रेंग गई. वह खुद नहीं समझ पा रही थी कि ‘लंबा हाथ मारा है’ या ‘लुट गई है’.

‘‘मम्मी, गुड इवनिंग,’’ यह आवाज एक मासूम बच्चे सौरभ की थी, जो बहुत ही प्यारा था. मनोहर साहब उस का हाथ पकड़े खड़े थे. शायद मांबेटे का एकदूसरे से परिचय कराने के लिए, पर बिना कुछ पूछे श्वेता ने सौरभ को उठा कर अपने सीने से लगा लिया, क्योंकि उसे अपनी तरक्की से कोई गिला नहीं था. उसे तरक्की में मिले तोहफों से यह तोहफा अनमोल था.

संपादकीय

21 जून को उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर में 3 युवकों द्वारा एक लड़की के घर में जबरन घुस जाना और दूसरी मंजिल से उसे फेंक देना क्योंकि वह उन की छींटाकशी का विरोध करती थी कोई अनूठी बात नहीं हैं. यह सारे देश में होता रहता है. लड़कियों को अगर मांबाप अकेले नहीं निकलने देते तो उस का कारण यही है कि इस देश में हर कोने में कोई वहशी छिपा है जो इतना कामुक है कि आगापीछा देखे बिना कभी भी कुछ भी कर देता है.

आमतौर पर तो दोषी पकड़ा ही नहीं जाता क्योंकि बलात्कार हो जाने पर भी लड़की चुप ही रहती है. उसे मालूम है कि हल्ला मचाने का अर्थ है कि अपना व अपना भविष्य खराब कर लेना. बलात्कारी अंग भंग भी कर सकता है और बुरी तरह बदनाम भी कर सकता है.

यह कोई नई बात नहीं है. रामायण तक में ऐसा प्रंसग है. जब विश्वमित्र रामलक्ष्मण को अपने साथ आश्रम में ले जा रहे होते हैं तो रास्ते में पड़ रहे एक नगर की कथा सुनाई. उस नगर के राजा कुश नाम की कन्याएं अत्यंत रूपवती थीं. उन कन्याओं को एक उद्यान में देख कर वायु देवता ने उन्हें कहा कि वे सभी उस की पत्नियां बन जाएं तो वे अश्रय यौवन…..और अमर बन जाएंगी. (बालकांड, कुशनाम कन्योपाख्यान) इन युवतियों ने इंकार कर दिया कि उन के विवाह का फैसला तो उन के पिता करेंगे. इस पर गुस्सा हो कर वायु ने उन के शरीर में प्रवेश कर उन्हें लुंज कर दिया और वे कुरूप और कुबड़ी हो गई. ठीक वैसे जैसे तेजाब फेंक कर 2 मंजिल से फेंक कर आज भी किया जाता है.

आज के डरपोक मातापिताओं की तरह ….के राजा कुशनाम ने भी लड़कियों को कहा कि उन्होंने वायु को क्षमा कर के ठीक किया क्योंकि ‘श्रमा स्त्री का भूषण है.Ó राजा ने किसी तरह उन कन्याओं का विवाह किया.

सवाल यही है कि पौराणिक युग से आज तक क्यों युवतियों के भोग्या माना जाता है कि जब चाहा उन्हें इस्तेमाल किया, उन का मनमाने से विवाह कर डाला. धर्म इस तरह के अचारण पर स्वीकृति की मोहर क्यों लगाता है. इस से अच्छा तो आज का कानून है जो औरतों के बराबर का अधिकार देता है चाहे उस अधिकार के इस्तेमाल में हजार व्यवधान हों.

यह ठीक है कि कुछ बातें प्रकृति ने दी हैं पर जैसे चोरी होने पर लोग अपना अपमान होना नहीं समझते. वैसे ही लड़कियां बलात्कार होने पर अपने को अपमानित क्यों समझें? वे तो पीडि़ता हैं और उन्हें  शिकायत करने का सामाजिक व कानूनी अधिकार होना चाहिए. बलात्कारी इसीलिए ङ्क्षचता नहीं करते क्योंकि उन्हें मालूम है कि आमतौर पर वायु देवता की तरह लड़कियां व उन के पिता क्षमा कर देंगे.

Manohar Kahaniya: एक्स ब्यूटी क्वीन का मायाजाल

सौजन्या-मनोहर कहानियां

3जून, 2021 की बात है. सरिया व्यापारी घासीराम चौधरी जब जयपुर में श्यामनगर थाने पहुंचा, तो उसे गेट पर संतरी खड़ा मिला. उस ने संतरी से पूछा, ‘‘एसएचओ मैडम बैठी हैं क्या?’’ संतरी ने उस पर एक नजर डालते हुए पूछा, ‘‘मैडम से क्या काम है?’’‘‘भाईसाहब, एक रिपोर्ट दर्ज करानी है, इसलिए मैडम से मिलना है.’’ घासीराम ने संतरी को अपने हाथ में लिए कागज दिखाते हुए कहा.

‘‘मैडम तो अपने औफिस में बैठी हैं. अगर आप को रिपोर्ट लिखानी है तो वहां ड्यूटी औफिसर के पास चले जाओ.’’ संतरी ने हाथ से इशारा करते हुए घासीराम से कहा. ‘‘भाईसाहब, रिपोर्ट लिखाने वहां चला तो जाऊंगा, लेकिन पहले मैं एक बार मैडम से मिलना चाहता हूं.’’ घासीराम ने विनती करते हुए कहा.
‘‘ठीक है, आप की जैसी मरजी. मैडम अपने औफिस में बैठी हैं. जा कर मिल लो.’’ संतरी ने घासीराम को हाथ के इशारे से थानाप्रभारी का कमरा बता दिया.

घासीराम थानाप्रभारी के कमरे के सामने जा कर एक बार ठिठका. फिर गेट खोल कर सीधा उन के कमरे में चला गया. सामने एसएचओ संतरा मीणा किसी फाइल को पढ़ रही थीं. कमरे में आगंतुक की आहट सुन कर उन्होंने सिर उठा कर देखा तो सामने 40-45 साल का एक शख्स खड़ा था. उन्होंने उस से पूछा, ‘‘बताएं, क्या काम है?’’‘‘मैडम, मैं बड़ी परेशानी में फंसा हुआ हूं. एक महिला मुझ से नजदीकियां बढ़ा कर लाखों रुपए ऐंठ चुकी है और अब बलात्कार का झूठा मामला दर्ज कराने की धमकी दे रही है.’’ घासीराम ने खड़ेखड़े ही अपनी व्यथा बताई.

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‘‘आप कुरसी पर बैठ जाओ और बताओ कि आप कौन हैं और आप को ब्लैकमेल करने वाली महिला कौन है?’’ मैडम ने अपने हाथ में पकड़ी फाइल को बंद कर मेज पर रखते हुए उस से कहा.‘‘मैडम, मेरा नाम घासीराम चौधरी है. जयपुर में निर्माण नगर की पार्श्वनाथ कालोनी में रहता हूं और सरियों का व्यापारी हूं.’’ घासीराम ने कुरसी पर बैठते हुए अपना परिचय दिया.‘‘ठीक है, घासीरामजी, आप के साथ हुआ क्या है, वह बताएं?’’ एसएचओ ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘अगर आप को कोई ब्लैकमेल कर रहा है तो हम काररवाई करेंगे.’’

‘‘मैडम, मैं इसी उम्मीद से आप के पास आया हूं.’’ घासीराम ने चेहरे पर संतोष के भाव ला कर कहा, ‘‘मैडम, परेशानी यह है कि उस महिला का पति आप के पुलिस डिपार्टमेंट में ही हैडकांस्टेबल है. इसलिए मुझे संदेह है कि पुलिस कोई काररवाई करेगी या नहीं?’’‘‘घासीरामजी, अपराधी कोई भी हो. अपराधी सिर्फ अपराधी होता है. पति के पुलिस डिपार्टमेंट में होने से किसी महिला को अपराध करने की छूट नहीं मिल जाती है.’’ थानाप्रभारी मीणा ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘आप के साथ क्या वाकयात पेश आए हैं, तफसील से सारी बात बताओ.’’

थानाप्रभारी के आश्वासन पर घासीराम ने प्रियंका चौधरी से मुलाकात होने और बाद में उस से किसी न किसी बहाने से लाखों रुपए ऐंठने और अब बलात्कार का झूठा मामला दर्ज करवाने की धमकी देने तक की सारी बातें विस्तार से बता दीं.घासीराम से सारा वाकया सुनने के बाद थानाप्रभारी संतरा मीणा ने उस से कहा, ‘‘आप सारी बातें लिख कर दे दें. हम रिपोर्ट दर्ज कर लेंगे. जांच में जो भी दोषी मिलेगा, उस पर काररवाई होगी.’’‘‘मैडम, मैं तहरीर लिख कर लाया हूं.’’ घासीराम ने कुछ कागज उन की ओर बढ़ाते हुए कहा.थानाप्रभारी ने उन कागजों पर सरसरी नजर डाली. फिर घंटी बजा कर अर्दली को बुलाया. अर्दली कमरे में आया, तो उसे वे कागज दे कर कहा, ‘‘इन साहिबान को ड्यूटी औफिसर के पास ले जाओ और ड्यूटी औफिसर से कहना कि यह रिपोर्ट दर्ज कर लें.’’

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थानाप्रभारी ने घासीराम को अर्दली के साथ जाने का इशारा किया. घासीराम कुरसी से उठ कर मैडम को धन्यवाद देता हुआ ड्यूटी औफिसर के पास चला गया. पुलिस ने उसी दिन उस की रिपोर्ट दर्ज कर ली.
घासीराम की ओर से दर्ज कराई रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह था कि सन 2016 में प्रियंका चौधरी अपने पति रामधन चौधरी के साथ एक दिन उस के घर आई थी. प्रियंका राजस्थान के टोंक जिले की रहने वाली थी. घासीराम की ससुराल भी टोंक जिले में प्रियंका के गांव के पास ही थी. इसलिए घासीराम की पत्नी सीता उसे पहचान गई. प्रियंका को वह अच्छी तरह जानती थी. शादी होने के बाद सीता जयपुर आ गई थी.

प्रियंका उस दिन जयपुर में पहली बार सीता के घर आई थी. सीता ने अपने पति घासीराम का परिचय प्रियंका से कराते हुए कहा कि यह मेरी छोटी बहन जैसी है. प्रियंका कहां चूकने वाली थी. उस ने घासीराम की ओर मुसकरा कर देखते हुए सीता से कहा कि दीदी, अब मैं इन को जीजाजी ही कहूंगी. जीजासाली का रिश्ता बनने पर घासीराम मंदमंद मुसकरा कर रह गए.इस दौरान प्रियंका ने भी अपने पति का परिचय कराया कि ये रामधन चौधरीजी पुलिस में हैडकांस्टेबल हैं. सीता के पीहर वालों के प्रियंका के परिवार वालों से गांव में अच्छे संबंध थे. इसलिए सीता और घासीराम ने प्रियंका और उस के पति रामधन की खूब आवभगत की.

बातों ही बातों में प्रियंका ने घासीराम से कहा, ‘‘जीजाजी, हम जयपुर में किराए का मकान तलाश कर रहे हैं, लेकिन हमें कोई अच्छा मकान नहीं मिल रहा है. आप की नजर में कोई अच्छा मकान हो तो हमें किराए पर दिलवा दीजिए.’’ प्रियंका आई घासीराम के संपर्क में प्रियंका को किराए के मकान की जरूरत का पता लगने पर सीता ने अपने पति से कहा कि अपना गौतम मार्ग निर्माण नगर वाला फ्लैट खाली पड़ा है, वो इन्हें ही किराए पर दे दो. हमें इन से अच्छा किराएदार और कौन मिलेगा?

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पत्नी से बात करने के बाद घासीराम ने प्रियंका को अपना निर्माण नगर वाला फ्लैट किराए पर दे दिया. इस के बाद प्रियंका का घासीराम के घर आनाजाना शुरू हो गया. कई बार प्रियंका पूरेपूरे दिन सीता के घर पर ही रहती और उस के साथ घर के कामों में भी हाथ बंटाती थी.सीता के घर पर लगातार आनेजाने से प्रियंका ने उस के परिवार की तमाम जानकारियां हासिल कर लीं. घासीराम के व्यापार और कमाई वगैरह की जानकारी भी ले ली.

प्रियंका जब सीता के घर आती थी, तब अगर घासीराम मिल जाते तो वह जीजाजी जीजाजी कह कर चुहलबाजी भी कर लेती थी. घासीराम भी कभीकभी अपनी पत्नी के साथ प्रियंका के फ्लैट पर चले जाते. इस तरह दोनों परिवारों में घनिष्ठ संबंध बन गए.आरोप है कि कुछ दिनों बाद प्रियंका ने किसी काम से घासीराम को अपने फ्लैट पर बुलाया. घर पर प्रियंका अकेली थी. घासीराम ने उस के पति रामधन के बारे में पूछा तो प्रियंका ने बताया कि वे कहीं गए हुए हैं. इस दौरान अकेली प्रियंका ने घासी से नजदीकियां बढ़ाने की बातें कीं.

नजदीकियों से हुई जेब खाली बाद में धीरेधीरे उस ने घासी से नजदीकियां बढ़ा लीं. एक बार प्रियंका ने घासी से कहा कि जीजाजी, आप के पास पैसे की कोई कमी नहीं है. हमारा कुछ सहयोग कर दोगे तो हम भी जयपुर में एक फ्लैट या मकान ले लेंगे. इस के लिए जितना लोन मिलेगा, लेंगे और बाकी पैसे आप उधार दे देना. घासीराम ने उस समय उसे टाल दिया. बाद में प्रियंका और उस के पति रामधन ने घासीराम के मकान के पास ही फ्लैट खरीद लिया. घासीराम ने बताया कि यह फ्लैट खरीदने और वुडन वर्क के नाम पर प्रियंका ने उस से 49 लाख रुपए ले लिए. इस रकम के बदले प्रियंका और उस के पति ने उसे ब्लैंक चैक दिए और स्टांप पेपर पर लिखित लेनदेन किया. इस फ्लैट की किस्त 28 हजार रुपए महीना थी.

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इस बीच, सन 2019 में जयपुर में हुए आयोजन में प्रियंका मिसेज इंडिया राजस्थान चुनी गई. ब्यूटी पीजेंट पौश इंफोटेनमेंट के इस आयोजन में 100 से ज्यादा महिलाओं ने भाग लिया था. फाइनल के अलगअलग राउंड में 27 महिलाओं ने भागीदारी की थी. इस में प्रियंका चौधरी विनर घोषित हुई थी.बाद में प्रियंका फ्लैट के लोन के रुपए जमा कराने की बात कह कर घासीराम से रुपए मांगने लगी और नहीं देने पर बलात्कार का मामला दर्ज कराने की धमकी देने लगी.

घासीराम डर गया. वह झूठे केस में जेल जाने और व्यापार बरबाद होने की चिंता में दबाव में आ गया. वह समयसमय पर प्रियंका को लाखों रुपए देता रहा और उस की फरमाइशें पूरी करता रहा. प्रियंका की फरमाइश पर घासी ने उसे 30 लाख रुपए के जेवर भी दिलवा दिए. उसे नई लग्जरी कार दिलवाई.
घासी के पैसों से ही प्रियंका ने अपने फ्लैट में महंगे सोफे, एसी, एलईडी और दूसरे कीमती सामान ले लिए. बच्चों की फीस के नाम पर 5 लाख रुपए लिए. प्रियंका ने अपनी बेटियों के नाम सुकन्या योजना के पैसे भी घासीराम से ही जमा करवाए.

घासीराम का आरोप है कि प्रियंका और उस के पति रामधन ने अलगअलग बहाने से उस से करीब सवा करोड़ रुपए ऐंठ लिए थे. इस के बाद प्रियंका उस से 400 गज का प्लौट मांग रही थी.
इसी साल अप्रैल में वाट्सऐप काल कर प्रियंका ने घासी से प्लौट दिलाने की बात कही थी. वह जिस प्लौट की बात कर रही थी, उस की कीमत करीब डेढ़ करोड़ रुपए के आसपास थी.
घासीराम ने प्लौट दिलाने से इनकार कर दिया तो उस ने बलात्कार का मामला दर्ज कराने की धमकी दी. प्रियंका की धमकियों से डर कर घासीराम ने उस के खाली चैक और स्टांप पेपर उसे लौटा दिए.

प्रियंका ने कराई रिपोर्ट दर्ज

बाद में पूर्व मिसेज इंडिया राजस्थान प्रियंका चौधरी ने 21 मई, 2021 को श्यामनगर थाने में घासीराम के खिलाफ एक रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस में कहा कि घासीराम 20 मई को मेरे घर पर आया और गालीगलौज की. घर में घुसने से रोकने पर मारपीट करने लगा. मैं ने बचाव किया तो हाथ पर काट खाया. मेरे सीने और पेट पर लात मारी. मैं नीचे भाग कर आई. मेरी बहन और बेटियों के चिल्लाने पर आसपास के लोग बाहर आ गए, तब वह वहां से भाग गया. बाद में मुझे और मेरे पति को जान से मारने की धमकी दी. मुझ से कहा कि तेजाब फेंक कर जला दूंगा. पुलिस ने प्रियंका की रिपोर्ट पर मामला दर्ज कर उस का मैडिकल कराया.

आरोप है कि घासीराम के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद प्रियंका ने उसे धमकी दी कि यह तो ट्रेलर है. चाहती तो बलात्कार का मामला भी दर्ज करा सकती थी और अब भी करा सकती हूं. राजीनामा करने के लिए वह 400 गज का प्लौट और रुपए मांग रही थी. प्रियंका की धमकियों और उस की डिमांड से परेशान हो कर घासीराम ने 3 जून, 2021 को प्रियंका और उस के पति रामधन चौधरी के खिलाफ श्यामनगर थाने में मामला दर्ज करा दिया.

डीसीपी (दक्षिण) हरेंद्र महावर ने इस हाईप्रोफाइल मामले की जांच के लिए एडिशनल डीसीपी अवनीश कुमार, सोडाला एसीपी भोपाल सिंह भाटी के निर्देशन और श्यामनगर थानाप्रभारी संतरा मीणा के नेतृत्व में पुलिस टीम गठित की. इस टीम में एएसआई जयसिंह, कांस्टेबल राजेश और महिला कांस्टेबल बीना व बाला कुमारी को शामिल किया गया.पुलिस ने जांचपड़ताल के बाद हनीट्रैप का मामला बताते हुए 12 जून, 2021 को 33 वर्षीया पूर्व मिसेज इंडिया राजस्थान प्रियंका चौधरी को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उसे रिमांड पर ले कर पूछताछ की.पूछताछ के आधार पर पुलिस ने प्रियंका के कब्जे से 3 एसी, एलईडी और लैपटौप आदि बरामद किए. पुलिस ने 13 जून को उसे अदालत में पेश किया. अदालत ने उसे जेल भेज दिया.

लग्जरी लाइफ थी प्रियंका की

प्रियंका चौधरी के ब्यूटी क्वीन बनने से जेल जाने तक का सफर उस के लग्जरी लाइफ जीने के सपनों से भरा रहा है. टोंक जिले के एक छोटे से गांव की रहने वाली प्रियंका सरकारी स्कूल में पढ़ी थी. वह भले ही गांव में रहती थी, लेकिन उस का रूपसौंदर्य सब से अलग था. प्रियंका को अपनी सुंदरता पर नाज था, लेकिन गांव में रहने के कारण वह अपने सपनों की उड़ान नहीं भर पा रही थी. सन 2008 में उस की शादी रामधन से हो गई. रामधन राजस्थान पुलिस में नौकरी करता है. रामधन जैसे गबरू जवान को पति के रूप में पा कर प्रियंका मन ही मन निहाल हो उठी. रामधन भी खुश था और प्रियंका भी. समय अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता रहा. प्रियंका ने 2 बेटियों को जन्म दिया.

प्रियंका के अपने सपने थे. वह महत्त्वाकांक्षी थी, इसलिए शादी के बाद भी वह पढ़ाई करती रही. पति पुलिस में नौकरी करता था, लेकिन उस की तनख्वाह से उस के शौक पूरे नहीं हो सकते थे. उस ने अपने शौक पूरे करने के लिए जयपुर में रहने का फैसला किया. वह 2016 में जयपुर आ गई. 2019 में जब उसे पता चला कि जयपुर में मिसेज इंडिया राजस्थान कांटेस्ट हो रहा है, तो उस ने इस में भाग लेने का फैसला किया. रूपसौंदर्य में वह किसी से कम नहीं थी. इसलिए उसे पूरा भरोसा था कि वह कंटेस्ट जीतेगी. हुआ भी वही. प्रियंका मिसेज इंडिया राजस्थान चुनी गई.

आरोप है कि ब्यूटी क्वीन बनने के बाद प्रियंका की दबी हुई महत्त्वाकांक्षाएं हिलोरें मारने लगीं. उस के लग्जरी लाइफ जीने के सपने उड़ान भरने लगे. पति की तनख्वाह से ऐशोआराम की जिंदगी संभव नहीं थी. इसलिए उस ने घासीराम से नजदीकियां बढ़ाईं. वह उस से समयसमय पर रुपए ऐंठती रही.2 बेटियों के भविष्य के नाम पर जब उस ने घासीराम पर 400 गज का प्लौट दिलाने का दबाव बनाया तो बात बिगड़ गई. नतीजा यह हुआ कि प्रियंका को जेल जाना पड़ा. लग्जरी लाइफ जीने की शौकीन प्रियंका के पास लग्जरी गाड़ी, फ्लैट है. उस की 2 बेटियां महंगे स्कूलों में पढ़ती हैं.

ब्यूटी क्वीन हुई गिरफ्तार

प्रियंका कितनी पाकसाफ है, यह अदालत तय करेगी, लेकिन उस की गिरफ्तारी को ले कर पुलिस पर आरोप लग रहे हैं. पुलिस ने घासीराम की रिपोर्ट पर प्रियंका को गिरफ्तार कर लिया. उस से न तो किसी तरह की कोई अश्लील वीडियो बरामद हुई और न ही कोई दूसरी आपत्तिजनक सामग्री मिली, जिस से यह साबित हो कि प्रियंका उस आधार पर उसे बलात्कार के झूठे मामले में फंसाने की धमकी दे रही थी. पुलिस ने घासीराम के मोबाइल में रिकौर्ड बातचीत के आधार पर उसे गिरफ्तार कर लिया. पैसों के लेनदेन के मामले में पुलिस जांचपड़ताल कर रही है. दूसरी तरफ, प्रियंका ने 21 मई को श्यामनगर थाने में घासीराम के खिलाफ घर आ कर मारपीट करने और तेजाब डालने की धमकी देने का जो मामला दर्ज कराया था, उस पर पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की.

पुलिस का कहना है कि इस मामले की अभी जांच चल रही है. घटनास्थल पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गई हैं. उस में घासीराम कहीं नजर नहीं आ रहा है. उस आवासीय परिसर में रहने वाले लोगों ने भी मारपीट की घटना होने से इनकार किया है.क्षेत्र में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि आखिर प्रियंका के हाथ व्यापारी घासीराम की ऐसी कौन सी कमजोर कड़ी हाथ लग गई थी, जिस से उस ने लाखों रुपए प्रियंका को आसानी से दे दिए. वरना बिना किसी लालच व स्वार्थ के कोई किसी पर इतनी बड़ी राशि खर्च नहीं कर सकता. जरूर कोई तो ऐसा राज है, जिसे केवल घासीराम और प्रियंका ही जानते हैं. अब देखना यह है कि पुलिस जांच में वह राज सामने आ सकेगा या नहीं.

बहरहाल, घासीराम की रिपोर्ट पर पुलिस ने प्रियंका के साथ उस के पति रामधन चौधरी के खिलाफ भी मामला दर्ज किया है. रामधन टोंक जिले में हैडकांस्टेबल के पद पर तैनात है. कथा लिखे जाने तक पुलिस को रामधन के खिलाफ इस मामले में कोई सबूत नहीं मिले थे.

Romantic Story: गिरफ्त-अचानक मनीषा के जिंदगी में किस तरह का तूफान आया- भाग 1

मनीषा को सामान रखते देख कर प्रिया ने पूछ ही लिया, ‘‘तो क्या, कर ली अजमेर जाने की पूरी तैयारी?’’

‘‘अरे नहीं, पूरी कहां, बस जो सामान बिखरा पड़ा है उसे ही समेट रही हूं. अभी तो एक बैग ले कर ही जाऊंगी, जल्दी वापस भी तो आना है.’’

‘‘वापस,’’ प्रिया यह सुन कर चौंकी थी, ‘‘तो क्या अभी रिजाइन नहीं कर रही हो?’’

‘‘नहीं.’’

मनीषा ने जोर से सूटकेस बंद किया और सुस्ताने के लिए बैड पर आ कर बैठ गई थी.

‘‘बहुत थक गई हूं यार, छोटेछोटे सामान समेटने में ही बहुत टाइम लग जाता है. हां, तो तू क्या कह रही थी. रिजाइन तो मैं बाद में करूंगी, पहले पुणे में जौब तो मिल जाए.’’

‘‘अरे, मिलेगी क्यों नहीं, सुशांत जीजान से कोशिश में लग जाएगा, अब तुझे वह यहां थोड़े ही रहने देगा,’’ प्रिया ने उसे छेड़ा था और मनीषा मुसकरा कर रह गई.

मनीषा और प्रिया इस महिला हौस्टल में रूममेट थीं और दोनों यहां गुरुग्राम में जौब कर रही थीं. मनीषा की शादी अगले महीने होनी तय हुई थी, इसलिए वह छुट्टी ले कर जाने की तैयारी में थी.

‘‘बाय द वे,’’ प्रिया ने उसे फिर छेड़ा था, ‘‘तू अब सुशांत के खयालों में उलझी रह और अपनी पैकिंग भी करती रह, मैं नीचे जा रही हूं. क्या तेरे लिए कौफी ऊपर ही भिजवा दूं? अरे मैडम, मैं आप ही से कह रही हूं.’’ प्रिया ने उसे झकझोरा था.

‘‘हां…हां, सुन रही हूं न, कौफी के साथ कुछ खाने के लिए भी भेज देना, मुझे तो अभी पैकिंग में और समय लगेगा,’’ मनीषा बोली.

‘‘मैं सोच रही हूं कि आज रीना के कमरे में ही डेरा जमाऊं, कुछ काम भी करना है लैपटौप पर,’’ प्रिया बोली.

‘‘हां…हां…जरूर,’’ मनीषा के मुंह से निकल ही गया था.

‘‘वह तो तू कहेगी ही, अच्छा है रात को सुशांत से अकेले में आराम से चैट करती रहना.’’ मैं चली. हां, यह जरूर कह देना कि यह सब प्रिया की मेहरबानी से संभव हुआ है.’’

‘‘अरे हां, सब कहूंगी,’’ मनीषा हंस पड़ी थी. प्रिया के जाने के बाद उस ने बचा हुआ सामान समेटा और सोचने लगी, ‘चलो, अब ठीक है. छुट्टी के बाद ही लौटेंगे तो कम से कम सामान तो पैक ही मिलेगा.’

हाथमुंह धो कर उस ने कपड़े बदले. तब तक प्रिया ने कौफी के साथ कुछ सैंडविच भी भिजवा दिए थे. कौफी पी कर वह कमरे के बाहर बनी छोटी सी बालकनी में आ गई थी.

शाम को अंधेरा बढ़ने लगा था पर नीचे बगीचे में लाइट्स जल रही थीं जिस से वातावरण काफी सुखद लग रहा था. झिलमिलाती रोशनी को देखते हुए वह बालकनी में ही कुरसी खींच कर बैठ गई थी.

तो आखिर शादी तय हो ही गई थी उस की. सुशांत को याद करते ही पता नहीं कितनी यादें दिलोदिमाग पर छाने लगी थीं.

पता नहीं उस के साथ लंबे समय तक क्या होता रहा. पापा ने कई लड़के देखे, कहीं लड़का पसंद नहीं आया तो कहीं दहेज की मांग, तो किसी को लड़की सांवली लगती.

चलचित्र की तरह सबकुछ आंखों के सामने घूमने लगा था. हां, रंग थोड़ा दबा हुआ जरूर था उस का पर पढ़ाई में तो वह शुरू से ही अव्वल रही. इंजीनियरिंग कर के एमबीए भी कर लिया. अच्छी नौकरी मिल गई. फिर आत्मनिर्भर होते ही व्यक्तित्व में भी तो निखार आ ही जाता है.

अब तो हौस्टल की दूसरी लड़कियां भी कहती हैं, ‘अरे, रंग कुछ दबा हुआ है तो क्या, पूरी ब्यूटी क्वीन है हमारी मनीषा.’

एकाएक उस के होंठों पर मुसकान खिल गई थी. सुशांत ने तो उसे देखते ही पसंद कर लिया था. फिर उस की मां और मौसी दोनों आईं और शगुन कर गईं.

अब तो 15 दिनों बाद सगाई और शादी दोनों एकसाथ ही करने का विचार था.

तय यह हुआ कि सुशांत का परिवार और रिश्तेदार 2 दिन पहले ही अजमेर पहुंच जाएं. पापा ने उन के लिए एक पूरा रिसौर्ट बुक करा दिया था. घर के रिश्तेदारों के लिए पास के एक दूसरे बंगले में ठहरने का इंतजाम था.

कल ही मां ने फोन पर सूचना दी थी, ‘मनी, सारी तैयारियां हो चुकी हैं. बस, अब तू छुट्टी ले कर आजा. घर पर तेरा ही इंतजार है.’

‘हां मां, आ तो रही हूं, परसों पहुंच जाऊंगी आप के पास,’ मां तो पता नहीं कब से पीछे पड़ी थीं.

‘बहुत कर ली नौकरी, अब घर आ कर कुछ दिन हमारे पास रह. शादी के बाद तो ससुराल चली ही जाएगी. और हां, लड़कियां शादी से पहले हलदीउबटन सब करवाती हैं. तू भी ब्यूटी पार्लर जा कर यह सब करवाना.’

‘चली जाऊंगी मां, 15 दिन बहुत होते हैं अपना हुलिया संवारने को,’ मनीषा बोली.

उस ने बात टाली थी. पर मां की याद आते ही बहुत कुछ घूम गया था दिमाग में. एक माने में मां की बात सही भी थी, अपनी पढ़ाई और फिर नौकरी के सिलसिले में वह काफी समय घर से बाहर ही रही. और अब शादी कर के घर से दूर हो जाएगी तो वे भी चाहती हैं कि बेटी कुछ दिन उन के पास भी रह ले. चलो, अब मां भी खुश हो जाएंगी. कह भी रही थीं कि मेरी पसंद के सारे व्यंजन बना कर खिलाएंगी मुझे.

Romantic Story: चुभन -मीना का पति उससे परेशान क्यों था – भाग 3

सन्न रह गई मीना. शायद यह आईना उसे मैं ही दिखा सकता था. आंखें फाड़फाड़ कर वह मुझे देखने लगी.

‘‘धन्य मानो स्वयं को जो तुम्हें इतना चाहने वाले भाईभाभी मिले हैं, नाज उठाने वाले मांबाप मिले हैं और हर जिद पूरी करने वाला पति मिला है जो अपनी हर इच्छा मार कर भी तुम्हारी जिद पूरी करता है.

‘‘तुम तो बस, यही चाहती हो कि हर कोने में तुम्हारा ही अधिकार हो. मायके का यह कमरा हो या ससुराल का घर, हर इनसान बस, तुम्हारे ही चाहने पर कुछ चाहे या न चाहे. मीना, यह भी जान लो कि इनसान का हर कर्म, हर व्यवहार एक दिन पलट कर वापस आता है. इतना जहर न बांटो कि हर दिशा से बस, जहर ही पलट कर तुम्हारे पास वापस आए.’’

रो पड़ा था मैं यह सोच कर कि कैसे इस पत्थर को समझाऊं. सामने खिड़की के पार मजदूर बच्चे खेल रहे थे, हाथ पकड़ कर मैं मीना को खिड़की के पास ले आया और बोला, ‘‘वह देखो, सामने उन बच्चों को. सोच सकती हो वे कैसी गरमीसर्दी सह रहे हैं. कूलर की ठंडी हवा में चैन से बैठी हो न, सोचो अगर उन्हीं मजदूरों के घर तुम्हारा जन्म होता तो आज यही जलते कंकर तुम्हारा बिस्तर और यही पत्थर तुम्हारी रोजीरोटी होते तब कहां होते सब नाजनखरे? यह सब चोंचले तभी तक हैं जब तक सब सहते हैं.

‘‘तुम विनय की पत्नी का इतना अपमान करती हो, आज अगर वह तुम्हें कान से पकड़ कर बाहर निकाल दे तब कहां जाएगी तुम्हारी यह जिद, तुम्हारा लड़नाझगड़ना. क्यों मेरे साथसाथ इन सब का भी जीना हराम कर रखा है तुम ने?’’

अपना अनिश्चित भविष्य देख कर मैं घबरा गया था शायद, इसीलिए जैसे गया था वैसे ही लौट आया. किसी को मेरे वहां जाने का पता भी न चला.

विनय बारबार फोन कर के ‘क्या हुआ, कैसे हुआ’ पूछता रहा. क्या कहूं मैं उस से? कैसे कहूं कि मेरी पत्नी उस की पत्नी का अपमान किस सीमा तक करती है.

शाम ढल आई. इतवार की पूरी छुट्टी जैसे रोते शुरू हुई थी वैसे ही बीत गई. रात के 8 बज गए. द्वार पर दस्तक हुई. देखा तो हाथ में बैग पकड़े मीना खड़ी थी. क्या सोच कर उस का स्वागत करूं कि घर की लक्ष्मी लौट आई है या मेरी जान को घुन की तरह चाटने वाली मुसीबत वापस आ गई है.

‘‘तुम?’’

बिना कुछ कहे मीना भीतर चली गई. शायद विनय छोड़ कर बाहर से ही लौट गया हो. दरवाजा बंद कर मैं भी भीतर चला आया. दिल ने खुद से प्रश्न किया, कैसे कोई बात शुरू करूं मैं मीना से? कोई भी तो द्वार खुला नजर नहीं आ रहा

था मुझे.

हाथ का बैग एक तरफ पटक वह बाथरूम में चली गई. वापस आई तब लगा उस की आंखें लाल हैं.

‘‘चाय पिओगी या सीधे खाना ही खाओगी? वैसे खाना भी तैयार है. खिचड़ी खाना तुम्हें पसंद तो नहीं है पर मेरे लिए यही आसान था सो 15 दिन से लगभग यही खा रहा हूं.’’

आंखें उठा कर मीना ने मुझे देखा तो उस की आंखें टपकने लगीं. चौंकना पड़ा मुझे क्योंकि यह रोना वह रोना नहीं था जिस पर मुझे गुस्सा आता था. पहली बार मुझे लगा मीना के रोने पर प्यार आ रहा है.

‘‘अरे, क्या हुआ, मीना? खिचड़ी नहीं खाना चाहतीं तो कोई बात नहीं, अभी कुछ अच्छा खाने के लिए बाजार से लाते हैं.’’

बात को हलकाफुलका बना कर जरा सा सहज होने का प्रयास किया मैं ने, मगर उत्तर में ऐसा कुछ हो गया जिस का अनुभव मैं ने शादी के 3 साल बाद पहली बार किया कि समर्पित प्यार की ऊष्मा क्या है. स्तब्ध रह गया मैं. गिलेशिकवे सुनसुन कर जो कान पक गए थे उन्हीं में एक नई ही शिकायत का समावेश हुआ.

‘‘आप मुझे लेने क्यों नहीं आए इतने दिन? आज आए भी तो बिना मुझे साथ लिए चले आए?’’

‘‘तुम वापस आना चाहती थीं क्या?’’

हैरान रह गया मैं. बांहों में समा कर नन्ही बालिका सी रोती मीना का चेहरा ऊपर उठाया. लगा, इस बार कुछ बदलाबदला सा है. मुझे तो सदा यही आभास होता रहता था कि मीना को कभी प्यार हुआ ही नहीं मुझ से.

‘‘तुम एक फोन कर देतीं तो मैं चला आता. मुझे तो यही समझ में आया कि तुम आना ही नहीं चाहती हो.’’

सहसा कह तो गया मगर तभी ऐसा भी लगा कि मैं भी कहीं भूल कर रहा हूं. मेरे मन में सदा यही धारणा रही जो भी मिल जाए उसी को सरआंखों पर लेना चाहिए. प्रकृति सब को एकसाथ सबकुछ नहीं देती लेकिन थोड़ाथोड़ा तो सब को ही देती है. वही थोड़ा सा यदि बांहों में चला आया है तो उसे प्रश्नोत्तर में गंवा देना कहां की समझदारी है. क्या पूछता मैं मीना से? कस कर बांहों में बांध लिया. ऐसा लगा, वास्तव में सबकुछ बदल गया है. मीना का हावभाव, मीना की जिद. कहीं से तो शुरुआत होगी न, कौन जाने यहीं से शुरुआत हो.

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तभी फोन की घंटी बजी और किसी तरह मीना को पुचकार कर उसे खुद से अलग किया. दूसरी तरफ विनय का घबराया सा स्वर था. वह कह रहा था कि मीना बिना किसी से कुछ कहे ही कहीं चली गई है. परेशान थे सब, शायद उन्हें यह उम्मीद नहीं थी कि वह मेरे पास लौट आएगी. मेरा उत्तर पा कर हैरान रह गया था विनय.

उलटे वह मुझे ही लताड़ने लगा कि पिछले 4-5 घंटे से मीना तुम्हारे पास थी तो कम से कम एक फोन कर के तो मुझे बता देते.

उस के 4-5 घंटे घर से बाहर रहने की बात सुन कर मैं भौचक्का रह गया क्योंकि मीना मेरे पास तो अभी आई है.

एक नया ही सत्य सामने आया. कहां थी मीना इतनी देर से?

उस के मायके से यहां आने में तो 10-15 मिनट ही लगते हैं. मीना से पूछा तो वह एक नजर देख कर खामोश हो गई.

‘‘तुम दोपहर से कहां थीं मीना, तुम्हारे घर वाले कितने परेशान हैं.’’

‘‘पता नहीं कहां थी मैं.’’

‘‘यह तो कोई उत्तर न हुआ. अपनी किसी सहेली के पास चली गई थीं क्या?’’

‘‘मुझ से कौन प्यार करता है जो मैं किसी के पास जाती. लावारिस हूं न मैं, हर कोई तो नफरत करता है मुझ से…मेरा तो पति भी पसंद नहीं करता मुझे.’’

फिर से वही तेवर, वही रोनापीटना, मगर इस बार विषय बदल गया सा लगा. मन के किसी कोने से आवाज उठी कि पति पसंद नहीं करता उस का कारण भी तुम जानती हो. जब इतना सब पता चल गया है तुम्हें तो क्या यह पता नहीं चलता कि पति की पसंद कैसे बना जाए.

प्रत्यक्ष में धीरे से मीना का हाथ पकड़ा और पूछा, ‘‘मीना, कहां थीं तुम दोपहर से?’’

मेरे गले से लग पुन: रोने लगी मीना. किसी तरह शांत हुई, उस के बाद जो उस ने बताया उसे सुन कर तो मैं दंग ही रह गया.

मीना ने बताया कि घर की चौखट लांघते समय समझ नहीं पाई कि कहां जाऊंगी. आप ने सुबह ठीक ही कहा था, मेरी जिद तब तक ही है जब तक कोई मानने वाला है. मेरे अपने ही हैं जो मेरी हर खुशी पूरी करना चाहते हैं. 4 घंटे स्टेशन पर बैठी आतीजाती गाडि़यां देखती रही…कहां जाती मैं?

विस्मित रह गया मैं मीना का चेहरा देख कर. सत्य है, जीवन से बड़ा कोई अध्यापक नहीं और इस संसार से बड़ी कोई पाठशाला कहीं हो ही नहीं सकती. सीखने की चाह हो तो इनसान यहां सब सीख लेता है. निभाना भी और प्यार करना भी. यह जो सख्ती विनय के परिवार ने अब दिखाई है वही बचपन में दिखा दी होती तो मीना इतनी जिद्दी कभी नहीं होती. हम ही हैं जो कभीकभी अपना नाजायज लाड़प्यार दिखा कर बच्चों को जिद्दी बना देते हैं.

‘‘एक बार तो जी में आया कि गाड़ी के नीचे कूद कर अपनी जान दे दूं. समझ नहीं पा रही थी कि मैं कहां जाऊं,’’ मीना ने कहा और मैं अनिष्ट की सोच कर ही कांप गया.

पसीने से भीग गया मैं. ऐसी कल्पना कितनी डरावनी लगती है. मेरी यह हालत देख कर मीना बोली, ‘‘अजय, क्या हुआ?’’ और वह मेरी बांह पकड़ कर हिला रही थी.

‘‘अजय, आप मेरी बात सुन कर परेशान हो गए न. जो सच है वही तो बता रही हूं…आज जो सब हुआ वही तो…’’

मैं ने कस कर छाती में भींच लिया मीना को. मीना जोश में आ कर कोई गलत कदम उठा लेती तो मेरी हालत कैसी होती. मैं ऐसा कैसे कर पाया मीना के साथ. 15 दिन तक हालचाल भी पूछने नहीं गया और आज सुबह जब गया भी तो यह भी कह आया कि मीना का पति भी मीना से प्यार नहीं करता. रो पड़ा मैं भी अपनी नादानी पर. एक नपातुला व्यवहार तो मैं भी नहीं कर पाया न.

‘‘अजय, आप पसंद नहीं करते न मुझे?’’

‘‘मुझे माफ कर दो, मीना, मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था.’’

‘‘आप ने अच्छा किया जो ऐसा कहा. आप ऐसा नहीं कहते तो मुझे कुछ चुभता नहीं. कुछ चुभा तभी तो आप के पास लौट पाई.

‘‘मैं जानती थी, आप मुझे माफ कर देंगे. मैं यह भी जानती हूं कि आप मुझ से बहुत प्यार करते हैं. आप ने अच्छा किया जो ऐसा किया. मुझे जगाना जरूरी था.’’

हैरानपरेशान तो था ही मैं, मीना के शब्दों पर हक्काबक्का और स्तब्ध भी. स्वर तो फूटा ही नहीं मेरे होंठों से. बस, मीना के मस्तक पर देर तक चुंबन दे कर पूरी कथा को पूर्णविराम दे दिया. जो नहीं हुआ उस का डर उतार फेंका मैं ने. जो हो गया उसी का उपकार मान मैं ने ठंडी सांस ली.

‘‘मैं एक अच्छी पत्नी और एक अच्छी मां बनने की कोशिश करूंगी,’’ रोतेरोते कहने लगी मीना और भी न जाने क्याक्या कहा. अंत भला तो सब भला लेकिन एक चुभन मुझे भी कचोट रही थी कि कहीं मेरा व्यवहार अनुचित तो नहीं था.

 

 

ऑक्सीजन की उपलब्धता के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग में यूपी ने पकड़ी रफ्तार

प्रदेश में कोरोना की तीसरी लहर को ध्‍यान में रखते हुए सरकार ने अस्‍पतालों में सभी पुख्‍ता इंतजाम कर लिए हैं. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के हर जिले में एक-एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र या जिला अस्पताल में ऑक्सीजन जेनरेटर्स युद्धस्‍तर पर लगाए जा रहे हैं. अस्पतालों में नौ हजार से अधिक पीडियाट्रिक आईसीयू (पीकू) बेड तैयार किए जा चुके हैं. योगी सरकार ने निर्णयों से प्रदेश में अब कोरोना की दूसरी लहर पूरी तौर पर नियंत्रित है. दूसरे प्रदेशों के मुकाबले ‘योगी के यूपी मॉडल’ से संक्रमण पर तेजी से लगाम लगी है. कम समय में कोरोना वायरस के नए वेरिएंट जीनोम सिक्वेंसिंग की तेजी से जांच की जा रही है.

केजीएमयू लखनऊ में 109 सैम्पल की जीनोम सिक्वेंसिंग कराई गई. प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक 107 सैंपल में कोविड की दूसरी लहर वाले पुराने डेल्टा वैरिएंट की पुष्टि ही हुई है, जबकि 02 सैम्पल में कप्पा वैरिएंट पाए गए. दोनों ही वैरिएंट प्रदेश के लिए नए नहीं हैं. प्रदेश में ट्रेसिंग से संक्रमण का प्रसार भी न्यूनतम स्‍तर पर है.

जीनोम सिक्वेंसिंग की सुविधा से लैस केन्‍द्र की होगी स्‍थापना

कोरोना वायरस के परीक्षण के लिए प्रदेश में जीनोम सिक्वेंसिंग की सुविधा का लगातार विस्‍तार किया जा रहा है. जल्‍द ही प्रदेश में इस सुविधा से लैस केंद्र की स्थापना भी की जाएगी. सरकार ने पहले ही प्रदेश में जीनोम  सिक्वेंसिंग के दायरे को बढ़ाते हुए बीएचयू,  केजीएमयू,  सीडीआरआई,  आईजीआईबी, राम मनोहर लोहिया संस्‍थान में जीनोम परीक्षण की व्यवस्था की है.

15 अगस्‍त तक यूपी में 536 ऑक्‍सीजन प्‍लांट होंगें क्रियाशील 

यूपी ऑक्सीजन उपलब्धता में आत्मनिर्भर हो रहा है. प्रदेश में 536 ऑक्‍सीजन प्‍लांट पर तेजी से काम किया जा रहा है जिसमें से अब तक  146 ऑक्सीजन प्लांट प्रदेश में क्रियाशील हो चुके हैं. प्रदेश में ऑक्सीजन जेनरेटर के जरिए 15 फीसदी ऑक्सीजन की 3300 बेडों पर आपूर्ति हो रही है. विभिन्न औद्योगिक समूहों की ओर से ऑक्सीजन प्लांट, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर उपलब्‍ध कराने में  मदद की गई है. अनेक औद्योगिक समूहों व इकाइयों ने ‘हेल्थ एटीएम’ उपलब्ध कराने के लिए आगे आए हैं. इन अत्याधुनिक मशीनों के जरिए से लोग बॉडी मास इंडेक्स, ब्लड प्रेशर , मेटाबॉलिक ऐज, बॉडी फैट, हाईड्रेशन, पल्स रेट, हाइट, मसल मास, शरीर का तापमान, शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा, वजन सहित कई पैरामीटर की जांच कर सकते हैं.

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