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सुभा का विवाह जल्दी ही सुशांत से तय हो गया. सुशांत मध्यवर्गीय परिवार का लड़का था और एक प्राइवेट फर्म में काम करता था. चूंकि लड़के वालों की कोई मांग नहीं थी, इसीलिए सुभा  के मातापिता ने जल्दी ही विवाह भी  कर दिया.

विवाह के बाद जब पहली बार सुभा मायके गई तो सुना कि लेखा का विवाह सुमंत से करने को कुमुद के ससुराल वाले राजी नहीं हुए. यह सुन कर सुभा तुरंत ही लेखा से मिलने उस के घर गई. लेखा बहुत उदास थी और सुभा को देखते ही उस की आंखों में आंसू आ गए. पीठ पर हाथ फेरते हुए सुभा ने उसे मौन दिलासा दिया.

सुभा मायके से ससुराल गई तो अपनी गृहस्थी में ऐसी रमी कि लेखा और सुमंत यादों के धुंधले साए बन कर रह गए. फिर सुना कि लेखा का विवाह तय हो गया है. लेखा की शादी में सुभा इसलिए नहीं पहुंच सकी क्योंकि तब वह गर्भवती थी. पत्र के साथ लेखा के लिए मनीऔर्डर भेज कर उस के उत्तर का इंतजार करती रही जो लगभग 6 महीने बाद आया.

लेखा ने लिखा था, ‘नरेश अच्छे हैं. घर वाले भी अच्छे हैं. लेकिन सभी पर सास का अंकुश है. बहुत पैसे वाले लोग हैं और दीदी की ससुराल से रिश्तेदारी भी है, इसीलिए इन लोगों को सुमंत के बारे में पता है. नरेश मु झ से खिंचेखिंचे रहते हैं. मैं नहीं जानती, क्यों. हो  सकता है सुमंत के कारण वे मु झ से नाराज हों.’

पत्र पढ़ कर सुभा चिंता में डूब गई. जवानी की बचकानी भूलें कब कहां पीठ में छुरी बन कर गड़ जाएं, कोई नहीं जानता. सो, प्यार से सम झाते हुए उस ने लेखा को लिखा :‘प्रिय लेखा,

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