आज देश में ममता बनर्जी को ले करके यह बात कही जा रही है कि आगामी समय में देश की प्रधानमंत्री हो सकती है पश्चिम बंगाल में जिस तरीके से उन्होंने “खेला” दिखाया उससे जहां भाजपा के होश उड़ गए वहीं सारा विपक्ष ममता बनर्जी का मुरीद बन गया. मगर सबसे बड़ा सत्य यह है कि ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल में ऐतिहासिक विजय भारतीय जनता पार्टी और देश की केंद्रीय सरकार को रास नहीं आई है. शायद यही कारण है कि नंदीग्राम में एक बार जीत की घोषणा हो जाने के बाद चुनाव आयोग से अंततः ममता बनर्जी को पराजय का सर्टिफिकेट मिला. जहां भाजपा 200 प्लस की बात कर रही थी चारों खाने चित हो गई तो ममता बनर्जी की छवि को धूल में मिलाने और आगामी समय में केंद्रीय सत्ता में उनकी महत्वपूर्ण भागीदारी को रोकने के लिए मानो एक चक्रव्यूह बुना जा रहा है.
जी हां! आज जैसा कि देशभर में माना जा रहा है भाजपा किसी भी हद तक ममता बनर्जी को रोकना चाहती है. अगर ममताको संपूर्ण केंद्रीय सरकार की ताकत, पैसा खर्च किए जाने के बाद भी नहीं रोक पाई है तो यह संकेत है कि भाजपा की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. और आप माने या ना माने यह सच है कि भाजपा यह तय कर चुकी है चाहे जो भी हो जाए सत्ता हाथ से नहीं जाने देंगे. अब इसके लिए जो रणनीति बनाई जा रही है उसका उत्तराखंड से आगाज हो गया है देखिए क्या और कैसे?
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उपचुनाव नहीं होंगे!!!
पश्चिम बंगाल में हाल ही में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए हैं .यहां कुल 292 विधानसभा सीटें हैं. अब नंदीग्राम में पराजय के पश्चात ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए 6 माह के भीतर किसी एक विधानसभा सीट से चुनाव में जीत दर्ज करनी होगी. वरना पश्चिम बंगाल में संवैधानिक संकट की स्थिति खड़ी हो जाएगी. इसी को लेकर के जहां ममता बनर्जी रणनीतिक तैयारी कर रही हैं वहीं भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकार भी घर में खामोश बैठे हुए नहीं हैं!
भाजपा और उसके रणनीतिकारों का एक ही लक्ष्य है – किसी भी तरह आने वाले समय में ममता बनर्जी चुनाव में विजयी ना हो. या फिर…. इसके लिए रणनीति यह है कि देश में उपचुनाव 6 माह के लिए टाल दिया जाए और कोरोनावायरस के कारण चुनाव आयोग को बहुत ही सहजता के साथ निवेदन करके केंद्र सरकार और विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा यह कर सकते हैं.
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अब आप कल्पना करिए कि अगर ऐसा हुआ तो ममता बनर्जी का भविष्य क्या होगा?
मगर अभी चुनाव आयोग और केंद्र सरकार ने पत्ते नहीं खोले हैं. जहां आप पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी भवानीपुर से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हैं. क्योंकि यहां से ममता के कृषि मंत्री शोभन देव चट्टोपाध्याय ने इस्तीफा दे दिया है और यहां उपचुनाव की तैयारी जारी है. मगर इसके बावजूद यह माना जा रहा है कि भाजपा ने राजनीति की चौपड़ पर एक ऐसा खेल खेलने की रणनीति बनाई है जो आजाद भारत में कम से कम अभी तक तो नहीं खेली गई है. देश के एक चुने गए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी छवि को लेकर के चिंतित भाजपा और उसके बड़े नेता आखिर क्या खिचड़ी पका रहे हैं इस पर राजनीति के कुल पतियों की निगाह लगी हुई है. अब लाख टके का सवाल यह है कि आखिर आगामी समय में क्या होगा. देखिए! हम कुछ तथ्य आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं.
तीरथ सिंह रावत की बलि!
उत्तराखंड में कभी हाल ही में भाजपा ने तीरथ सिंह रावत को रातो रात मुख्यमंत्री बना दिया था. जो विधानसभा चुनाव नहीं लड़ पाए और उन्हें विधायक रहने के लिए उपचुनाव का सामना करना था. इस तुरूप के पत्ते के माध्यम से भारतीय जनता पार्टी ने देश भर में यह संदेश देने का काम किया है कि देश में कोरोना कोविड 19 की स्थिति है तो चुनाव ना हो.
अब संविधानिक संकट को देखते हुए भाजपा ने रातों-रात पत्ते फेंट दिए और एक नए शख्स को मुख्यमंत्री की शपथ दिला दी. कुल जमा यह की संदेश यह है कि उपचुनाव के हालात अभी देश में नहीं है! ऐसे में सीधा निशाना ममता बनर्जी है जिनको आगामी 4 माह के भीतर मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए भवानीपुर से उप चुनाव जीतना होगा. अब जब चुनाव आयोग हाथ खड़ा कर लेता है तो क्या होगा यह समझने वाली बात है. कुल मिलाकर यह माना जा रहा है कि भाजपा के नेता और केंद्र सरकार विशेष रूप से गृह मंत्री अमित शाह चाहते हैं कि किसी भी हाल में ममता बनर्जी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं होनी चाहिए.
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क्या देश में ऐसे हालात बन सकते हैं कि उपचुनाव से चुनाव आयोग हाथ खड़ा कर ले. लेकिन केंद्र सरकार के आग्रह और निवेदन के बाद क्या सुप्रीम कोर्ट भी इस पर मुहर लगा देगी. अगर ऐसा होता है तो ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना होगा और तब शायद अमित शाह और भाजपा की रणनीति सफल हो जाएगी.