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Raj Kapoor ने ‘बौबी’ की डिंपल, ‘राम तेरी गंगा मैली’ की मंदाकिनी के जरिए उठाए बड़े मुद्दे

Raj Kapoor नेहरुवादी सामाजिक सोच को ले कर चल रहे थे लेकिन उन की लगभग हर फिल्म के लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास साम्यवादी विचारधारा से प्रेरित थे. यह एक वजह भी है कि राज कपूर की फिल्मों में समाजवादी मिश्रण नजर आया और उन्होंने वर्ग संघर्षों से जनित आम लोगों पर हो रहे सामाजिक बदलाओं को परदे पर उतारा.

अब हिंदी फिल्में बेहूदगी परोसने पर उतर आई हैं, जबकि राज कपूर ने हमेशा सामाजिक मुद्दों, सामाजिक सरोकारों से जुड़ी फिल्मों का ही निर्माण किया. राज कपूर ने सदैव अपनी फिल्मों में सामाजिक अन्याय की दुनिया में आम आदमी के भाग्य पर केंद्रित सामाजिक संदेशों के साथ रोमांस का मिश्रण करती फिल्मों का ही निर्माण किया था.

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Raj Kapoor का सफर

राज कपूर ने अपनी पहली फिल्म ‘आग’ से ही नई तरह की कहानी कहने की शुरुआत की और आवारा और श्री 420 जैसी फिल्मों में सामाजिक मुद्दों को संबोधित किया, जिस से वह स्वतंत्रता के बाद के सिनेमाई प्रतिभा के प्रतीक बन गए. उन की फिल्मों ने विभाजन के बाद के भारत की वास्तविकताओं, आम आदमी के सपनों और ग्रामीण-शहरी विभाजन की खोज की. जिस के चलते राज कपूर का सिनेमा भावना, नवीनता और मानवतावाद का पर्याय बन गया.
14 दिसंबर 1924 को पेशावर में जन्मे भारतीय सिनेमा जगत के शो मैन राज कपूर का जन्म शताब्दी है. Raj Kapoorके परिवार ने एनएफडीसी के साथ मिल कर 13 दिसंबर से 15 दिसंबर तक राजकपूर की सौंवी जयंती मनाई और इस अवसर पर देश के 40 सिनेमाघरों में दर्शकों ने कम कीमत पर राज कपूर की चुनिंदा 10 फिल्में दिखाई. अब 18 दिसंबर को मुंबई में फिल्म कलाकारों की संस्था ‘सिंटा’ ने राज कपूर की सौंवी जयंती पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया. अफसोस की बात है कि राज कपूर के परिवार ने या अन्य जो लोग राज कवूर की सौंवीं जयंती मनाते हुए उन की फिल्मों पर विचार गोष्ठी आदि का कोई आयोजन नहीं कर रही है.

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जिस से दर्शक राज कपूर और उन के सिनेमा को बेहतर ढंग से समझ सकते. जबकि Raj Kapoor के निर्देशन में बनी दूसरी फिल्म ‘बरसात’ से प्रेरित हो कर करण जोहर से ले कर आदित्य चोपड़ा तक कई फिल्म निर्देशक खुद फिल्में बना चुके हैं. यही सचाई है.
राज कपूर की 1949 में रिलीज फिल्म ‘बरसात’ के एक दृश्य में रेशमा का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री नरगिस, प्राण का किरदार निभाने वाले राज कपूर की तरफ गाना सुनते हुए दौड़ती है. जब 46 बाद 1995 में आदित्य चोपड़ा ने फिल्म ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’ निर्देशित की, तो उन्होंने फिल्म ‘बरसात’ के ही दृश्य को ज्यों का त्यों अपनी इस फिल्म में चिपका दिया. बरसात के दृश्य की ही तरह ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ में काजोल का किरदार सिमरन, शाहरुख खान के किरदार राज द्वारा बजाए गए संगीत को सुन कर सरसों के खेत की ओर खिंची चली आती है. लेकिन राज कपूर की सौंवी जयंती पर आदित्य चोपड़ा भी खामोश हैं.

राजकपूर की मूवीज और समाजिक मुद्दे

आग, आह, आवारा, बरसात, श्री 420, बूट पौलिश, अनाड़ी, अब दिल्ली दूर नहीं, जागते रहो, जिस देश में गंगा बहती है, मेरा नाम जोकर पर समाजवादी विचारधारा का असर दिखता है. उन्हें नेहरू युग के महत्वपूर्ण फिल्मकारों में गिना जाता है. लेकिन ‘बौबी’ से ले कर बाद की अपनी फिल्मों में राजकपूर शो मैन के तौर पर मशहूर हुए. वैसे हकीकत यह है कि नरगिस ने राज कपूर के साथ उन के निर्देशन में बनी पहली फिल्म आग से ले कर जब तक काम किया, तब तक राजकपूर की फिल्मों की दिशा एक अलग तरह की रही, लेकिन नरगिस का राज कपूर या यूं कहें कि आर के फिल्मस से दूरी बनाते ही राज कपूर के सिनेमा में कामुकता ने जगह ले ली. वास्तव में राज कपूर की फिल्मों खासकर ‘जागते रहो’, ‘श्री 420’ या ‘बूट पौलिश’ की कहानियां उस आदमी की थी, जिसे आज के सिनेमा में गायब कर दी गई हैं. आज भी हम विभाजित संसार में रहते हैं, पर अब यह सब फिल्मों में दिखाया नहीं जाता. ,मिडिल क्लास भी इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है.
Raj Kapoor निर्देशित फिल्म ‘श्री 420’ में राज का किरदार नायिका से कहता है ‘‘मैं अपना इमान बेचने आया हूं”. इस से फिल्मकार ने इस बात का अहसास कराया है कि हम कुछ खो रहे हैं. सही मायनो में देखा जाए तो यह जरुरी है कि इंसान महसूस करे कि वह समाज व देश के राजनीतिक हालातों से क्या खो और क्या पा रहा है. राज कपूर पर नेहरू युग की समाजिकता की बात करने व रूमानी होने के आरोप लगते हैं, मगर उन की फिल्मों पर गंभीरता से नजर डाली जाए, तो पता चलता है कि राज कपूर की शुरूआती फिल्में सामाजिक होते हुए राजनीति को भी गहराई के साथ छूती हैं. वह नेहरू युग की बात करते हैं, मगर नेहरु और उन के शासन को ले कर क्रिटिकल भी हैं, इस के लिए उन्होंने रूमनियत का सहारा लिया.

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नेहरू की नीतियों को ले कर क्रिटिकल होने के साथ ही राज कपूर ने अपनी कई फिल्मों में चेतावनी भी दी कि आने वाला वक्त में क्या हो सकता है. फिर चाहे वह फिल्म ‘श्री 420’ हो या ‘जिस देश में गंगा बहती है’ हो. तभी तो मशहूर फिल्मकार हृशिकेश मुखर्जी, राज कपूर को रोमांटिक सोशलिस्ट कहा करते थे.
वास्तव में आजादी के बाद जब पंडित जवाहर लाल नेहरु प्रधानमंत्री बने तो देश का मीडिया तीन धन्ना सेठों के हाथ में था, जिसे नेहरू की समाजिकता से तकलीफ थी. इसलिए भी मीडिया ने अप्रत्यक्ष रूप से राज कपूर पर सरकार परस्त और रूमानी होने के आरोप लगे थे. जबकि ऐसा नहीं था. राज कपूर ने नेहरू की खिलाफत की, पर रूमानी अंदाज में वह अपनी फिल्मों के गीत संगीत के माध्यम से.

नेहरू युग और राज कपूर की मूवीज

नेहरु युग, आजादी के बाद से 1964 तक का जो समय है, उस की जो रूमानियत है, देश निर्माण का जो एक नशा है, एक सपना है, उस को एक रूमानी रंग दे कर राज कपूर ने अपनी शुरूआती फिल्मों में पेश किया. उन की फिल्मों के माध्यम से उस वक्त का सामाजिक व ऐतिहासिक अध्ययन किया जा सकता है. उन की फिल्मों में सामान्य रूमानियत की बजाय उन में बहुत बड़ा मकसद जुड़ा रहा. ‘जिस देश में गंगा बहती है’ में यह सब बहुत खास तरीके से नजर आता है. राज कपूर की फिल्मों में मौजूद रूमानियत के पीछे एक गंभीर सोच है. उन के साहसिक प्रयास को अनदेखा नहीं किया जा सकता. इतना ही नहीं राज कपूर को व्यवसायिकता का भी अच्छा अहसास रहा. उन की रूामनियत में भी सामाजिकता है.
Raj Kapoor पूरी तरह से नेहरु वाली सामाजिक सोच को ले कर चल रहे थे. लेकिन उन की लगभग हर फिल्म के लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास पूरी तह से साम्यवादी विचारधारा के थे. यही वजह है कि राज कपूर की फिल्मों में यह मिश्रण नजर आता है, तभी तो उन की फिल्म ‘आवारा’ को सोवियत संघ, चीन, तुर्की सहित कई देशों में पसंद किया गया. इन देशों में फिल्म ‘आवारा’ को नया नाम ‘द वागाबांड’ दिया गया. राज कपूर एक मात्र ऐसे इंसान हैं, जो बिना पासपोर्ट या वीजा के सोवियत संघ जा पाए. इस के अलावा ‘आवारा’ को सोवियत संघ चीन सहित कई देशों में वहां की भाषा में रीमेक भी किया गया.

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यूं तो फिल्म ‘आवारा’ समाजिक सुधार की बात करती है. राज कपूर ने इस में सामाजिक और सुधारवादी विषयों को अपराध, रोमांटिक कौमेडी और संगीत मेलोड्रामा शैलियों के साथ मिश्रित किया है. लेकिन 1951 में प्रदर्शित राज कपूर के निर्देशन में बनी तीसरी फिल्म ‘आवारा’ आज की तारीख में बनाना या बनाने के बाद उसे सेंसर बोर्ड से पारित करना असंभव ही है. भारतीयों ने ‘आवारा’ को नेहरु सोशलिस्ट फिल्म की संज्ञा दी, जबकि सोवियत संघ व चीन जैसे देश के शासकों को फिल्म में साम्यवाद नजर आया. मगर इस फिल्म के कथानक की प्रेरणा सुन कर आप चौंक जाएंगे. जी हां ‘आवारा’ की कहानी हिंदू धर्म ग्रंथ ‘‘रामायण’’ से प्रेरित है.
‘रामायण’ में भगवान राम ने रावण द्वारा सीता का अपहरण कर लंका ले जाने पर रावण से युद्ध कर राम, सीता की अग्नि परीक्षा ले कर अयोध्या पहुंचते हैं. मगर एक धोबी की बात सुन कर वह अपनी पत्नी सीता का त्याग कर देते हैं. इसी तरह फिल्म ‘आवारा’ में वकील रघुनाथ, जो बाद में जज बनते हैं, भी अपनी पत्नी लीला का अपहरण व 4 दिन बाद अपहरणकर्ता द्वारा लीला को ससम्मान छोड़ दिए जाने पर भी परिवार के एक सदस्य की बात सुन कर रघुनाथ अपनी पत्नी लीला को सड़क पर भटकने के लिए त्याग देते हैं.

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रामायण में राम द्वारा सीता के बेटों लव कुश को अपनाने के बाद सीता धरती में समा जाती हैं, लगभग उसी तरह ‘आवारा’ में रघुनाथ, लीला के बेटे राज को अपने बेटे के रूप में स्वीकार करते हैं और अस्पताल में लीला देह त्याग देती है. इस कहानी के बावजूद साम्यवादी विचारधारा के पोषक देशों सोवियत संघ व चीन में भी इस फिल्म को काफी पसंद किया गया था. वास्तव में इस फिल्म में राज कपूर ने एक अहम मुद्दा यह भी उठाया है कि अमीरों के अपराधों पर ध्यान नहीं दिया जाता, जो कि सोवियत संघ व चीन जैसे साम्यवादी विचारधारा के देशों के शासकों को आकर्षित किया था. तभी तो इस फिल्म के चीन व अन्य देशों में रीमेक बनाए गए. विदेशों में ‘आवारा’ को ‘द वागाबांड’ नाम दिया गया था.

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फिल्म को वामपंथी दर्शन का उपदेशात्मक प्रचार बनने से रोकने में शंकर और जयकिशन की संगीत रचनाएं हैं, जिन्होंने दर्शकों को राशन की दुकानों पर लंबी लाइनों से दूर एक मधुर दुनिया में जाने में मदद की. चाहे वह अभावों से ग्रस्त जीवन से निराशा को दूर करने वाला फुर्तीला आवारा हूं, या रोमांटिक दम भर जो उधार मुंह फेरे, वो चंदा अपने जुनून के साथ स्क्रीन पर आग लगा रहा हो, फिल्म के कुछ गाने अभी भी प्रभावित कर सकते हैं आप एक खुशहाल जगह पर हैं, भले ही फिल्म का संदेश वर्तमान प्रासंगिकता के साथ घर कर जाता है.
फिल्म ‘आवारा’ पुरूष प्रधान समाज और पितृसत्तात्मक सोच का मुद्दा भी उठाती है. फिल्म में रीटा के किरदार नरगिस ने उसी व्यक्ति रघुनाथ के खिलाफ राज का बचाव करना चुना है जिस ने उसे शिक्षित किया और उसे वकील बनने में सक्षम बनाया. कोई ईर्ष्यापूर्ण कार्य नहीं है, लेकिन वह अपनी पितृसत्तात्मक मानसिकता को उजागर करने के लिए, रघुनाथ को समय में वापस ले जाती है, जब धार्मिक राम की तरह, उसने अपनी गर्भवती पत्नी को घर से बाहर निकालने के लिए सामाजिक दबाव डाला था क्योंकि उसे जग्गा डाकू द्वारा अपहरण कर लिया गया था. और चार दिन उन के घर में बिताए. जग्गा ने जस्टिस रघुनाथ से बदला लेने के लिए लीला का अपहरण कर लिया था, जिन्होंने एक बार उस के पिता के अपराधों के आधार पर उस के साथ गलत तरीके से न्याय किया था.

नारी सशक्तिकरण का मुद्दा

शिक्षा के माध्यम से नारी सशक्तिकरण का मुद्दा भी उठाया गया है. अगर लीला के छोटे बच्चे राज, जो कि गरीबी में पल रहा है, उसे अच्छी शिक्षा की व्यवस्था सरकार द्वारा दी जाती तो वह अपराध का रास्ता न चुनता. तो वही ‘आवारा’ के शुरूआती दृश्य में रीटा बनी नरगिस पुरुषों के प्रभुत्व वाले कोर्ट रूम में आत्मविश्वास से चलते हुए एक प्रभावशाली प्रवेश करती है. एक वकील का काला लबादा पहन कर, वह अपने बचपन के दोस्त राज का बचाव करती है, जिस ने स्कूल से निकाले जाने के बाद अपराध करना शुरू कर दिया था. फिल्म का यह दृश्य अपनेआप ही बहुत कुछ कह जाता है. देश के आज़ाद होने के 4 साल बाद बनी फिल्म ‘आवारा’ में दिखाया गया है कि कैसे बस्तियों में पल रहे बच्चे, बिना स्कूल गए, अपराधियों के लिए चारा बन जाते हैं. यही काम फिल्म के अंदर अपराधी जग्गा, राज के साथ करता है.
फिल्म मे ख्वाजा अहमद अब्बास लिखित भयानक विडंबनाओं से भरपूर शक्तिशाली संवाद ‘वर्ग दंभ’ की आलोचना करते हैं और अमीरों की वंचितों के साथ तुलना करते हैं. Raj Kapoor ने 73 साल पहले फिल्म ‘आवारा’ के माध्यम से संदेश दिया था कि यदि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को वर्ग, जाति और लिंग से परे सुलभ बनाया जा सके, तो विभाजनकारी आरक्षण की कोई आवश्यकता नहीं होगी. अफसोस हमारे देश के शुरुआती योजनाकारों ने इस पर अमल नहीं किया और अब करेंगे, ऐसा नजर नहीं आता. अब तो शिक्षा का पूरी तरह से व्यवसाई करण हो चुका है.

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Raj Kapoor की मूवीज के अमीरगरीब कौन

एक बार सिमी ग्रेवाल से बात करते हुए ‘आवारा’ को ले कर राज कपूर ने कहा था, ‘‘यह स्क्रिप्ट ठीक उसी समय आई थी, जब भारत एक नया विकास कर रहा था. सामाजिक अवधारणा, इस लाखों लोगों के लिए एक स्वीकार्यता, सिर्फ मुट्ठी भर अमीरों के लिए नहीं और बाकी वंचितों के लिए एक तरफ. और मूलतः आवारा एक बहुत मजबूत…कहानी ले कर आई थी जिस के किरदार बहुत गहन थे. यह किशोर रूमानियत थी. यह एक रूमानियत थी, जैसा शायद आपने परियों की कहानियों में पढ़ा होगा, सड़क का बिल्कुल आवारा आदमी, जिस के पास कुछ भी नहीं है, वह महलों की एक महिला के बारे में सपने देखता है. तो वर्गभेद का मुद्दा भी उभर कर आता है.
राज कपूर ने 1951 में फिल्म ‘‘आवारा’’ में ‘बचपन में बिछुड़ने और युवावस्था में फिर से मिलने की कहानी पेश की थी. स्कूल दिनों में राज व रीटा में प्यार होता है, पर बाद में यह दोनों बिछुड़ जाते हैं, पर युवा होने के बाद फिर राज व रीटा का मिलन व प्रेम के अंकुर जागृत होते हैं. जबकि कमर्शियल फिल्मों के मशहूर फिल्म सर्जक मन मोहन देसाई ने इसी मूल कथानक के इिर्दगिर्द 70 व 80 के दशक में कई फिल्में बनाई थी. लोग तो उन पर तंज करते हुए कहते थे कि मन मोहन देसाई की फिल्म में मेले में बिछुड़ना और 20 साल बाद मिलने के अलावा कुछ नहीं होता. इसीलिए कहा जाता है कि राज कपूर ने अपने जीवन कल में ओरिजिनल काम किया, उसी को सीख कर यदि बौलीवुड आगे बढ़े, तो भी बौलीवुड नई उंचाइयों की तरफ निरंतर बढ़ता रह सकता है.’

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नए राष्‍ट्र की बात करने वाला शोमैन Raj Kapoor

राज कपूर की फिल्म ‘‘आवारा’’ का गीत ‘‘सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ एक नए राष्ट्र के बारे में बात करता है, जो सोवियत संघ के सिद्धांतों को पूरी तरह से अपना रहा है, फिर भी दिल से भारतीय बना हुआ है और इसे शैलेन्द्र के शाश्वत गीतों, शंकर जयकिशन के जोशीले संगीत के अलावा और किसी ने नहीं दर्शाया. मुकेश का आसान गायन और निश्चित रूप से राज कपूर की औनस्क्रीन चार्ली चैप्लिन वाली छवि ‘राजू’ के रूप में एक शिक्षित व्यक्ति है जो तेजी से बढ़ती अनैतिक दुनिया में नौकरी की तलाश कर रहा है. यह निस्संदेह बहुत बाद में 1955 में हुआ था.
फिल्म ‘‘जागते रहो’ को ले लें. इस फिल्म के मुख्य प्रोटागानिस्ट, जिसे Raj Kapoor ने खुद ही निभाया है, के हिस्से संवाद लगभग अंत तक नहीं हैं. सिर्फ ‘मुझे पानी चाहिए’ जैसे एक दो संवाद हैं मगर प्रोटागानिस्ट बन कर वह हर घर में जा कर देख रहा है. इस तरह उस ने समाज के पूरे हलात पर रोशनी डाल दी. वह देखता है कि हर घर के अंदर जो अपराध हो रहा है, उसे करने वाले समाज के ‘सम्मानित’ लोग हैं. इस में नरगिस मेहमान कलाकार के तौर पर अंत में एक गाने में आती है और राज कपूर को पानी पिलाती है.

कुल मिला कर ‘जागते रहो’ और श्री 420 सामाजिक मुद्दा ले कर आती है, जिस में गुस्सा भी है. इन फिल्मों ने गलत पर सही की जीत की बात कही जाती रही. इस में प्रतीकात्मक बातें बहुत थीं. ‘श्री 420’ में एक तरफ शिक्षित गरीब व बेरोजगार प्रवासी युवक हैं, तो वहीं इस में क्रोनिकल कैपटलिस्ट यानी कि करप्ट सेठ सोनाचंद भी है. सेठ सोना चंद, नादिरा के किरदार के साथ मिल कर ताश के खेल में धोखाधड़ी करने से ले कर पोंजी कपनियों के माध्यम से और 100 रूपए में मकान देने के नाम पर धोखाधड़ी करते हैं. ‘श्री 420’ में जो कुछ राज कपूर ने चित्रित किया, वह आज भी शाश्वत सत्य है. राज कपूर ने फिल्म में युवा प्रवासी के मुद्दों और उस की नैतिक दुविधा को चित्रित करने के लिए व्यंग व हास्य का सहारा लिया है. फिल्म के एक दृश्य में गांधी, नेहरू, विवेकानंद भी नजर आते हैं. ‘दिल का हाल सुने दिल वाला…’ गाना बताता है कि जो क्लास का विभाजन है, वह कैसे मुद्दा बना रहा. बूट पौलिश में भी वही फ्लेवर है.

 

बच्‍चों के जीवन को भी बनाया फिल्म का हिस्‍सा Raj Kapoor ने

फिल्म ‘बूट पौलिस’ में राज कपूर ने चित्रित किया है कि जिन बच्चों के सामने जीवन जीने की चुनौती है,ऐसे अनाथ बच्चों को भीख मांगने का कटोरा पकड़ा दिया जाता है. उन के लिए शिक्षा, इज्जत से जीवन जीने के लिए कुछ नहीं किया जाता, जबकि यह दोनों मसले सरकार से जुड़े हैं. इस तरह उन्होंने नेहरु की कटु आलाचना की है. फिल्म ‘बूट पौलिश’ में जान चाचा का किरदार यही संदेश देता है कि भीख मांगना हमारा विकल्प नहीं हो सकता. हमारा विकल्प है काम. यह भीख की संस्कृति आज भी जीवित है. आज सरकारें जो रेवड़ियां बांट रही हैं कि 1500 रूपए देंगे या 2000 रूपए देंगें या बिजली का बिल माफ करेंगे. यह सब भीख की संस्कृति ही है. देश की सरकारें इस बात पर ध्यान नहीं देना चाहती कि लोगों को काम व नौकरी चाहिए, जिसे देने की बातें सरकारें नहीं कर रही हैं. पर राज कपूर ने उस दौर में कहा था कि अनाथ बच्चों को शिक्षा और काम के साथ सम्मानजनक जीवन चाहिए. कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि राज कपूर की फिल्में यथार्थ से दूर सपना बेचती हैं. फैंटसी परोसती हैं. यदि हम मान लें कि राज कपूर की फिल्मों में यह सब सपना था तो आज की फिल्मों में तो इस तरह का सपना भी नजर नहीं आता. राज कपूर की फिल्में इस बात की ओर इशारा करती हैं कि बिना सपनों के कोई भी समाज जीवित नहीं रह सकता. ‘बूट पौलिश’ का संदेश यही है कि अच्छा जीवन, शिक्षा और काम हर बच्चे का अधिकार है.
राज कपूर के सिनेमा को समझने से पहले इस बात को नजरंदाज नहीं किया जा सकता कि राज कपूर को गरीबी की समझ थी. वह नेपोकिड यानी कि नेपोटिजम की ही पैदाइश थे, मगर उन के पिता पृथ्वीराज कपूर ने राज कपूर की परवरिश सोने के चम्मच से नहीं की. राज कपूर को मुंबई की लोकल ट्रैन व बस में सफर करना पड़ा. राज कपूर को अपने पिता के निर्देश पर बौम्बे टौकीज स्टूडियो में निर्देशक केदार शर्मा के साथ बतौर सहायक काम करना पड़ा और वह भी ‘क्लैपर ब्वौय’ के रूप में. जब सेट पर राज कपूर से क्लैप देने में गलती हुई, तो केदार शर्मा ने उन के गाल पर थप्पड़ जड़ दिया था.

राज कपूर ने अपनी हर फिल्म में कई ऐसे मुद्दे उठाए, जो कि उन्हें एक अलग तरह का फिल्मकार बनाता है. राज कपूर ने 1949 में अपने निर्देशन में बनी दूसरी फिल्म ‘बरसात’ में प्रेम कहानी के माध्यम से ‘औरत केवल भोग्य नहीं’ के साथ ही उस वैश्या की कहानी भी बयां की, जिसे अपने नवजात शिशु की परवरिश के लिए वैश्या बनना पड़ता है. तो वहीं 1982 में रिलीज ‘बौबी’ में वर्ग संघर्ष का मुद्दा उठाया. सिर्फ ‘बौबी’ ही क्यों ‘मेरा नाम जोकर’ भी वर्ग भेद की समस्या पर आधारित है.
राजू एक सर्कस जोकर का बेटा है जिसे अपने पिता की विरासत में यह पेशा मिला है. विदूषक की भूमिका निभाते हुए, कपूर उस झूठ के बारे में एक सामाजिक आलोचना करते हैं जिस पर समाज स्थापित है, और उस झूठ के बारे में जो आम भारतीय कहते हैं. गरीबी और भुखमरी के खिलाफ संघर्ष करने के लिए जीना होगा. इतना ही नहीं ‘मेरा नाम जोकर’ में सर्कस में एक मात्र महिला मीना को स्त्री-द्वेषी और पितृसत्तात्मक संस्कृति से खुद को बचाने के लिए एक लड़के का रूप धारण करना पड़ता है.

विधवों की स्थिति पर प्रेमरोग जैसी सशक्‍त मूवी बनाई Raj Kapoor

‘प्रेम रोग’ में विधवा विवाह के साथ ही हिंदू समाज पर हावी अंधविश्वासों पर कुठाराघाट किया, जिन्हें अकसर प्राचीन रीतिरिवाजों, परंपराओं और प्रथाओं के रूप में सराहा जाता है.जिस देश में गंगा बहती है में राजनीतिक भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया गया. इस फिल्म में बिनोबा भावे के सिद्धांत के अनुसार डकैतों के आत्मसमर्पण का भी मुद्दा उठाया गया.नेहरू व इंदिरा युग की समाप्ति के बाद 1985 में ‘राम तेरी गंगा मैली’ प्रभावी रूप से उन की बेहतरीन फिल्मों में से आखिरी थी, ‘राम तेरी गंगा मैली’ में गंगा के बदलते रंगों का पता लगाया गया है क्योंकि यह गंगोत्री से उतर कर ऋषिकेश और वाराणसी तक जाती है और अंत में बंगाल में गंगासागर में समुद्र में मिल जाती है, जिस में मंदाकिनी द्वारा अभिनीत गंगा नाम की लड़की का जीवन दिखाया गया है. राजनीतिक लाभ के लिए गंगा की सफाई के मुद्दे का परदाफाश करने के साथ ही राजनीतिक व सामाजिक पाखंड पर भी रोशनी डाली है.

Funny Story : सास का दूसरा रूप पतिया सास

Funny Story :  कविता ने टाइम देखा. घड़ी को 6 बजाते देख चौंक गई. कपिल औफिस से आते ही होंगे. किट्टी पार्टी तो खत्म हो गई थी, पर सब अभी भी गप्पें मार रही थीं. किसी को घर जाने की जल्दी नहीं थी.

कविता ने अपना पर्स संभालते हुए कहा, ‘‘मैं चलती हूं, 6 बज गए हैं.’’

नीरा ने आंखें तरेरीं, ‘‘तुझे क्या जल्दी है? मियाबीवी अकेले हो. मुझे देखो, अभी जाऊंगी तो सास का मुंह बना होगा, यह सोच कर अपना यह आनंद तो नहीं छोड़ सकती न?’’

अंजलि ने भी कहा, ‘‘और क्या… कविता, तुझे क्या जल्दी है?  हम कौन सा रोजरोज मिलते हैं?’’

‘‘हां, पर कपिल आने वाले होंगे.’’

‘‘तो क्या हुआ? पति है, सास नहीं. आराम से बैठ, चलते हैं अभी.’’

कविता बैठ तो गई पर ध्यान कपिल और घर की तरफ ही था. दोपहर वह टीवी पर पुरानी मूवी देखने बैठ गई थी. सारा काम पड़ा रह गया था. घर बिखरा सा था. उस के कपड़े भी बैडरूम में फैले थे. ड्राइंगरूम भी अव्यवस्थित था.

वह तो 4 बजे तैयार हो कर पार्टी के लिए निकल आई थी. उसे अपनी सहेलियों के साथ मजा तो आ रहा था, पर घर की अव्यवस्था उसे चैन नहीं लेने दे रही थी.

वह बैठ नहीं पाई. उठ गई. बोली, ‘‘चलती हूं यार, घर पर थोड़ा काम है.’’

‘‘हां, तो जा कर देख लेना, कौन सी तेरी सास है घर पर, आराम से कर लेना,’’

सीमा झुंझलाई, ‘‘ऐसे डर रही है जैसे सास हो घर पर.’’

कविता मुसकराती हुई सब को बाय कह कर निकल आई. घर कुछ ही दूरी पर था. सोचा कि आज शाम की सैर भी नहीं हो पाई, हैवी खाया है, थोड़ा पैदल चलती हूं, चलना भी हो जाएगा. फिर वह थोड़े तेज कदमों से घर की तरफ बढ़ गई. सहेलियों की बात याद कर मन ही मन मुसकरा दी कि कह रही थीं कि सास थोड़े ही है घर पर… उन्हें क्या बताऊं चचिया सास, ददिया सास तो सब ने सुनी होंगी, पता नहीं पतिया सास किसी ने सुनी भी है या नहीं.

‘पति या सास’ पर वह सड़क पर अकेली हंस दी. जब उस का विवाह हुआ, सब सहेलियों ने ईर्ष्या करते हुए कहा था, ‘‘वाह कविता क्या पति पाया है. न सास न ससुर, अकेला पति मिला है. कोई देवरननद का चक्कर नहीं. तू तो बहुत ठाट से जीएगी.’’

कविता को भी यही लगा था. खुद पर इतराती कपिल से विवाह के बाद वह दिल्ली से मुंबई आ गई थी. कपिल ने अकेले जीवन जीया है, वह उसे इतना प्यार देगी कि वे अपना सारा अकेलापन भूल जाएंगे. बस, वह होगी, कपिल होंगे, क्या लाइफ होगी.

कपिल जब 3 साल के थे तभी उन के मातापिता का देहांत हो गया था. कपिल को उन के मामामामी ने ही दिल्ली में पालापोसा था, नौकरी मिलते ही कपिल मुंबई आ गए थे.

खूब रंगीन सपने संजोए कविता ने घरगृहस्थी संभाली तो 1 महीने में ही उसे महसूस हो गया कि कपिल को हर बात, हर चीज अपने हिसाब से करने की आदत है. हमेशा अकेले ही सब मैनेज करने वाले कपिल को 1-1 चीज अपनी जगह साफसुथरी और व्यवस्थित चाहिए होती थी. घर में जरा भी अव्यवस्था देख कर कर चिढ़ जाते थे.

कविता को प्यार बहुत करते थे पर बातबात में उन की टोकाटाकी से कविता को समझ आ गया था कि सासससुर भले ही नहीं हैं पर उस के जीवन में कपिल ही एक सास की भूमिका अदा करेंगे और उस ने अपने मन में कपिल को नाम दे दिया था पतिया सास.

कपिल जब कभी टूअर पर जाते तो कविता को अकेलापन तो महसूस होता पर सच में ऐसा ही लगता है जैसे अब घर में उसे बातबात पर कोई टोकेगा नहीं. वह अंदाजा लगाती है, सहेलियों को सास के कहीं जाने पर ऐसा ही लगता होगा. वह फिर जहां चाहे सामान रखती है, जब चाहे काम करती है. ऐसा नहीं कि वह स्वयं अव्यवस्थित इनसान है पर घर घर है कोई होटल तो नहीं. इनसान को सुविधा हो, आराम हो, चैन हो, यह क्या जरा सी चीज भी घर में इधरउधर न हो. शाम को डोरबैल बजते ही उसे फौरन नजर डालनी पड़ती है कि कुछ बिखरा तो नहीं है. पर कपिल को पता नहीं कैसे कहीं धूल या अव्यवस्था दिख ही जाती. फिर कभी चुप भी तो नहीं रहते. कुछ न कुछ बोल ही देते हैं.

यहां तक कि जब किचन में भी आते हैं तो कविता को यही लगता है कि साक्षात सासूमां आ गई हैं, ‘‘अरे यह डब्बा यहां क्यों रखती हो? फ्रिज इतना क्यों भरा है? बोतलें खाली क्यों हैं? मेड ने गैस स्टोव ठीक से साफ नहीं किया क्या? उसे बोलो कभी टाइल्स पर भी हाथ लगा ले.’’

कई बार कविता कपिल को छेड़ते हुए कह भी देती, ‘‘तुम्हें पता है तुम टू इन वन हो.’’

वे पूछते हैं, ‘‘क्यों?’’

‘‘तुम में मेरी सास भी छिपी है. जो सिर्फ मुझे दिखती है.’’

इस बात पर कपिल झेंपते हुए खुले दिल से हंसते तो वह भी कुछ नहीं कह पाती. सालों पहले उस ने सोच लिया था कि इस पतिया सास को जवाब नहीं देगी. लड़ाईझगड़ा उस की फितरत में नहीं था. जानती थी टोकाटाकी होगी. ठीक है, होने दो, क्या जाता है, एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल देती हूं. अब तो विवाह को 20 साल हो गए हैं. एक बेटी है, सुरभि. सुरभि के साथ मिल कर वह अकसर इस पतिया सास को छेड़ती रहती है. 2 ही तो रास्ते हैं या तो वह भी बहू बन कर इस पतिया सास से लड़ती रहे या फिर रातदिन होने वाली टोकाटाकी की तरफ ध्यान ही न दे जैसाकि वह सचमुच सास होने पर करती.

सुरभि भी क्लास से आती होगी. यह सोचतेसोचते वह अपनी बिल्डिंग तक पहुंची ही थी कि देखा कपिल भी कार से उतर रहे थे. कविता को देख कर मुसकराए. कविता भी मुसकराई और घर जा कर होने वाले वार्त्तालाप का अंदाजा लगाया, ‘‘अरे ये कपड़े क्यों फैले हैं? क्या करती हो तुम? 10 मिनट का काम था… यह सुरभि का चार्जर अभी तक यहीं रखा है, वगैरहवगैरह.’’

कपिल के साथ ही वह लिफ्ट से ऊपर आई. घर का दरवाजा खोल ही रही थी कि कपिल ने कहा, ‘‘कविता, कल मेड से दरवाजा साफ करवा लेना, काफी धूल जमी है दरवाजे पर.’’

‘‘अच्छा,’’ कह कर कविता ने मन ही मन कहा कि आ गई पतिया सास, कविता, सावधान.

Story Telling : गुप्‍ता हाउस

Story Telling : गरमी की छुट्टियों में मैं मम्मी के साथ अपनी मौसी के घर जब भी दिल्ली जाती तो रास्ते में बड़ेबड़े मकान दिखाई देते. शीशे की खिड़कियों पर डले परदे और बालकनी में लगे झूले, कुरसियां, पौधे, हैंगिंग लाइट और बड़ेबड़े सुंदर से मेन गेट और बाहर खड़े गार्ड्स व चमकती गाडि़यां दिखती थीं. मैं हमेशा सोचती कि इन मकानों में लोग अंदर कैसे रहते होंगे. इन मकानों को बस फिल्मों में ही देखा था और वैसी ही कल्पना की थी. पता नहीं, एक उत्सुकता सी थी हमेशा इन बड़े मकानों को अंदर से देखने की.

हमारे घर के सामने रहने वाले गुप्ता अंकल ने अपना घर बेच दिया और रातोंरात ही घर को ढहा दिया गया. अब मलबा ही मलबा था चारों ओर. दोचार दिनों बाद ही मलबा उठाने के लिए मजदूर भी आ गए. 10 दिनों में ही 5 सौ गज का प्लौट दिखाई देने लगा. मैं रोजाना अपने स्कूल से आ कर कमरे की खिड़की से मजदूरों को काम करते देखती. जब मम्मी खाने के लिए आवाज लगातीं, तभी मैं खिड़की से हटती. एक दिन स्कूल से आ कर मैं ने देखा कि प्लौट पर बहुत गहमागहमी है. कई लोग सिर पर कैप लगाए दिखाई दिए जो इंचीटेप से जमीन माप रहे थे. मम्मी ने बताया कि ये कैप लगाए लोग इंजीनियर हैं जो घर का डिजाइन बनाएंगे. किन्हीं अरोड़ा साहब ने यह घर खरीदा है और अब यहां बड़ा सा महलनुमा घर बनेगा. मैं सुन कर बड़ी खुश हो गई और सोचने लगी कि अब तो शायद मैं यह बड़ा सा मकान अंदर से देख पाऊं.

कभी तो कोई मौका मिलेगा अंदर जाने का. अब तो बड़े ही जोरशोर से काम चलने लगा. बहुत शोर रहने लगा. अब हमारे घर के अंदर तक आवाजें आती थीं. ईंटें, सीमेंट, लोहे के सरिये, मशीनें चलती रहतीं, मजदूर जोरजोर से बातें करते यानी खूब चहलपहल रहती थी रात तक. करीब 2 साल तक काम चला और मम्मी ने जैसा कहा था वैसा ही महलनुमा सुंदर सा मकान तैयार हुआ. आज मेरी स्कूल की छुट्टी थी और मैं ने देखा कि इस मकान के बाहर बड़ा सा शामियाना लगा था और पूरा घर शामियाने से चारों ओर से ढका हुआ था. मैं दौड़ कर मम्मी के पास गई तो पापा को मम्मी से बात करते सुना कि आज अरोड़ा साहब के मकान का मुहूर्त है. तभी यह शामियाना लगा है.

तब मैं ने उछलते हुआ पापा को टोका और पूछा, ‘‘फिर तो हम भी जाएंगे न, आखिर पड़ोसी हैं हम इन के?’’ पापा मुसकराए, बोले, ‘‘अरे नहीं बेटा, हमें नहीं बुलाया है उन्होंने. हमें तो जानते भी नहीं हैं ये लोग.’’ सुन कर मैं उदास हो गई और मन ही मन कल्पना करने लगी कि कैसे इस घर के लोग पार्टी करेंगे, घर अंदर से कैसा होगा? सब मजे कर रहे होंगे? बच्चे भागमभाग कर रहे होंगे? इतना बड़ा मकान है यह. काश, ये अरोड़ा अंकल हमें भी बुला लेते. मैं खिड़की के पास आ कर खड़ी हो गई और हसरतभरी निगाहों से मकान की तरफ देखने लगी. रात हो चली थी.

बस, लाइटें ही लाइटें थीं मकान की मंजिलों और शामियाने में और खूब तेज म्यूजिक बज रहा था. कुछ ज्यादा दिख नहीं पा रहा था कि अंदर क्या चल रहा है. दूर तक गाडि़यां दिख रही थीं. मेहमान खूबसूरत कपड़ों में अंदर जाते दिख रहे थे. मम्मी ने मु झे खाना खाने को बुलाया पर मेरा मन तो अरोड़ा अंकल के मकान के अंदर जाने को मचल रहा था. आज अपनी पसंद का खाना भी अच्छा नहीं लगा मु झे. रातभर सामने पार्टी चलती रही. मम्मी, पापा और मैं सो गए. सुबह मैं तैयार हो कर स्कूल चली गई. वापस आ कर खिड़की से मकान देखने लगी. मकान बाहर से सुंदर था पर घर में कोई दिखाई नहीं देता था. बस, गाडि़यां आतीजाती दिखती थीं कभीकभी. ज्यादातर बड़ा सा गेट बंद ही रहता था. इस मकान को देखतेदेखते अब मेरा मन भी उकता गया था. मैं अब अपना समय अपनी पढ़ाई में देने लगी.

इस मकान में अरोड़ा अंकल को आए पांचछह साल हो गए थे. मैं आज जब कालेज से वापस आ रही थी तो अरोड़ा अंकलजी के घर पर लाइटें लगी देखीं. रात को पापा ने बताया कि अगले महीने अरोड़ा अंकल के बेटे की शादी है. सुना है, बड़े ही अमीर घर से बहू आ रही है. ‘‘तो अभी से इतनी लाइटें क्यों लगा दीं?’’ मैं ने पूछा. ‘‘पूरे महीने फंक्शंस होंगे इन के यहां,’’ मम्मी बोलीं. ‘‘पर हमें क्या? हमें कौन सा बुलाएंगे?’’ मैं ने चिढ़ते हुए कहा. एक महीना यों ही निकल गया. बैंड बजने लगे. शहर के सभी अमीर लोग घर के बाहर इकट्ठे थे. घुड़चढ़ी हो रही थी. घर की सजावट से ले कर मेहमानों और अरोड़ा अंकलआंटीजी के कपड़े सब देखने लायक थे. बरात चली गई और चमकते हुए घर में शांति पसर गई. सुबह 4 बजे बैंडबाजा सुनाई दिया. मम्मी और मैं आंखें मलते हुए खिड़की पर पहुंचे. डोली आ गई थी. लंबी सी चमकती हुई गाड़ी रुकी और परी जैसी बहू उतरी. अरोड़ा आंटी अपने सभी रिश्तेदारों और मेहमानों के साथ अपने बहूबेटे को बड़े से गेट के अंदर ले गईं और गेट बंद हो गया. चारों ओर चुप्पी फैल गई और मम्मी वापस जा कर सो गईं. मैं अपने बैड पर लेटे हुए सोचने लगी कि अंदर कैसे सब बहू पर वारिवारि जा रहे होंगे. ढेरों गिफ्ट मिले होंगे बहू को. महल की रानी बन कर रहेगी यह तो. क्या समय है इस लड़की का.

नौकरचाकर आगेपीछे घूमेंगे इस के. गाड़ीबंगला, पैसा, शानोशौकत और क्या चाहिए एक लड़की को. इतना सुंदर और बड़ा घर यानी जो भी फिल्मों में देखा था उसी की कल्पना करते और ये सब सोचतेसोचते मैं सो गई. कई दिनों तक सामने गाडि़यां आतीजाती रहीं. कई दिनों बाद बाजार में अचानक से हमें सामने वाली गुप्ता आंटी मिलीं. हालचाल पूछने के बाद बोलीं, ‘‘हमारे जाने के बाद अब तो अरोड़ाजी बन गए हैं आप के पड़ोसी? पिछले साल शादी थी उन के बेटे की, आप लोग भी गए होंगे?’’ ‘‘नहींनहीं, आंटी. हम कहां गए थे. हमें थोड़ी बुलाया था और हम से तो वे लोग आज तक बोले भी नहीं. बस, गाड़ी आतीजाती दिखती हैं, फिर गेट बंद,’’ मैं ने तपाक से जवाब दिया. ‘‘ओह, वैसे मैं भी शादी में तो जा नहीं पाई थी, बस, थोड़ी देर के लिए ही इन के घर गई थी बहू की मुंहदिखाई के लिए. बड़े ही अमीर घर से बहू लाए हैं अरोड़ा साहब और ऊपर से इतनी सुंदर, सुशील और खूब पढ़ीलिखी. इन के पूरे परिवार में कोई भी इतना पढ़ालिखा नहीं है. बस, क्या ही बताऊं, समय ही बलवान है इन लोगों का तो. वैसे,

हम ने भी अपनी बेटी शिखा का रिश्ता तय कर दिया है. अगले महीने ही शादी है. आप सब को भी आना है. शादी का कार्ड देने आऊंगी मैं,’’ गुप्ता आंटी खुश होती हुई बोलीं. ‘‘हांहां जरूर आइएगा. यह तो बड़ी खुशी की बात है. अब चलते हैं, काफी देर हो गई है. आप भाईसाहब के साथ आइएगा हमारे घर. उन से मिले भी काफी समय हो गया है,’’ मम्मी ने गुप्ता आंटी से कह कर विदा ली और हम बाजार में आगे निकल गए. थोड़े दिनों बाद ही गुप्ता आंटी हमारे घर अपनी बेटी शिखा की शादी का कार्ड देने आईं. मम्मी को मु झे और पापा को साथ लाने का कह जल्दी ही चली गईं. मैं पापामम्मी के साथ शिखा की शादी में पहुंची. दूर से ही हौल में गुप्ता आंटी ने स्टेज से हमें देखा और अपनी ओर आने का इशारा किया. हम तीनों गुप्ता आंटी के पास पहुंचे. तभी आंटी ने कीमती से लहंगे में पास ही खड़ी खूबसूरत सी लड़की को नजदीक बुलाया और मेरी तरफ देखते हुए बोलीं, ‘‘निया बेटे, इस से मिलो यह शीनू है. तुम्हें एक बार देखना चाहती थी और तुम्हारे घर के सामने वाले घर में ही रहती है और शीनू, यह निया है, अरोड़ा अंकल की बहू.’’ ‘‘अच्छा, सच में,’’ निया ने कहा. मेरे कुछ कहने से पहले ही निया ने मु झे गले लगा लिया. ‘‘आप तो बहुत ही प्यारी हो, शीनू. आओ न कभी हमारे घर. खूब बातें करेंगे,’’ निया ने कहा. ‘‘हांहां, भाभी. जरूर. जल्दी ही आती हूं आप के यहां. आप अपना मोबाइल नंबर दे दें,’’ मैं ने कहा. घर वापस आ कर मैं तो उछल रही थी. मेरी तो खुशी का कोई ठिकाना न था.

मेरा तो मानो कोई सपना सच हो गया. अब तो मैं बड़े आराम से उस मकान में अंदर जा सकती हूं और अगर निया भाभी मेरी दोस्त बन गईं तो फिर तो मजा ही आ जाएगा. मैं रोज इस बड़े से मकान में जा पाऊंगी. ‘‘अरे, शादी से आ कर बड़ी ही खुश नजर आ रही हो तुम. क्या बात है? कपड़े बदल लो और सो जाओ. सुबह कालेज भी जाना है. एग्जाम्स भी हैं तुम्हारे,’’ मां ने कमरे में मु झे कौफी पकड़ाते हुए कहा. झटपट दिन बीत गए और एग्जाम्स भी नजदीक आ गए. मेरा सारा टाइम कालेज और पढ़ाई में ही बीतने लगा.

खिड़की से अरोड़ा अंकल का मकान देखे तो बहुत समय हो गया था. आज मेरा आखिरी पेपर था. कालेज से वापस आते समय मैं सोच रही थी कि कल फ्री हो कर कुछ अच्छा सा गिफ्ट ले कर निया भाभी से मिलने जाऊंगी. आते ही मैं ने मम्मी से पूछा, ‘‘मम्मा, कल मैं निया भाभी से मिलने सामने चली जाऊं?’’ ‘‘चली जाना. एक बार पापा से भी फोन कर के पूछ लो. सुबह ही भोपाल के लिए निकल गए हैं और अब एक हफ्ते बाद आएंगे. तुम्हारे पेपर का भी पूछ रहे थे. वैसे, पेपर कैसा हुआ तुम्हारा? जाने से पहले एक बार फोन भी कर लेना निया को. अच्छी लड़की है निया. कोई एटीट्यूड नहीं था लड़की में,’’ मम्मा ने कहा. ‘‘पेपर तो बहुत अच्छा हुआ है, मम्मा. फिकर नौट. अभी पापा को बताती हूं और हां, फोन कर के ही जाऊंगी निया भाभी के घर,’’ मैं ने हंसते हुए कहा.

कल मैं इस बड़े से मकान को अंदर से देख पाऊंगी. यह सोचसोच कर मैं बहुत ही खुश थी. सुबहसवेरे गाड़ी के हौर्न से मेरी नींद खुली. मम्मी घर में दिखाई नहीं दीं. मैं भाग कर अंदर खिड़की पर गई. देखा तो अरोड़ा अंकलजी के मकान के बाहर चारपांच पुलिस की गाडि़यां खड़ी थीं. भीड़ ही भीड़ थी सामने. मीडिया की गाडि़यां और शोर ही शोर था. तभी मम्मी ने मु झे आवाज लगाई. ‘‘आप कहां थीं, मम्मा? क्या हुआ है नीचे? यह पुलिस क्यों आई है? क्या हुआ है अरोड़ा अंकलजी के घर में?’’ मैं ने पूछा. ‘‘बेटे, निया भाभी नहीं रहीं. पता नहीं कैसेकैसे लोग हैं दुनिया में? नीचे सब बता रहे हैं कि बहुत तंग करते थे ससुराल वाले उस लड़की को. इतना दहेज लाई थी, पढ़ीलिखी थी, सुंदर थी. फिर भी उसे दहेज के लिए मारतेपीटते थे. अरोड़ा अंकल के बेटे को निया पसंद नहीं थी और पता चला है कि वह पहले से ही शादीशुदा था.

संतान न होने का ताना देते थे. मतलब हर तरह से परेशान थी वह और आज उस ने अपनी जान ही ले ली,’’ मम्मी ने सुबकते हुए बताया. मेरी आंखों से आंसू बह रहे थे. मु झे निया भाभी याद आ रही थीं. मैं ने अपने मोबाइल पर उन की डीपी देखी. विश्वास ही नहीं हो रहा था कि प्यारी सी, खूबसूरत सी लड़की अब दुनिया में नहीं थी. बड़े से मकान को अंदर से देखने का मेरा चाव एक झटके में ही खत्म हो गया. मकान बड़ा नहीं, हमारी सोच बड़ी होनी चाहिए. हमारा दिल बड़ा होना चाहिए. इतनी चमकदमक के पीछे कितना अंधकार है. निया भाभी के लिए लाए गिफ्ट को टेबल पर रख मैं ने खिड़की को बंद कर दिया.

Hindi Satire : पत्‍नी का डांट पौल्‍यूशन

Hindi Satire :  आजकल पूरे देश में प्रदूषण की समस्या का होहल्ला मचा है और देश की राजधानी को तो प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए नएनए प्रयोग आजमाए जा रहे हैं. ‘औडइवन’ अर्थात ‘समविषम’ के नुस्खों में हम सब की जान फंसी रही. ऐसे लाजवाब एक्सपेरीमैंट से हमारे क्रियाशील मस्तिष्क में भी एक क्रांतिकारी विचार उपजा है जिसे बिना किसी शुल्क के, मुफ्त में आप सभी से शेयर कर रहे हैं.

असल में इस लेख के माध्यम से हम प्रदूषण के समस्त ज्ञातअज्ञात रूपों से इतर, एक ‘सुपर स्पैशल प्रदूषण’ पर आप सभी का ध्यान आकर्षित करना चाह रहे हैं जिसे बेचारे हम सरीखे ‘सद्गृहस्थी’ 24×7 की तर्ज पर ‘नौनस्टौप’ भुगतते आए हैं. दुख की बात यह है कि इस प्रदूषण की समस्या पर लंबीचौड़ी फेंकने वाले विद्वानों की भी बोलती बंद है. इस में कोई आश्चर्य की बात भी नहीं.

पत्नीजी से डरना, उन की डांटफटकार सुनना हर पति महाशय का परम कर्तव्य है. इसे हम पावनधर्म इसलिए कह रहे हैं ताकि इस मजबूरी को साहित्यिक रूप में सम्मानपूर्वक प्रकट कर सकें. वरना विवशता तो यह है कि उन के आगे सब की बोलती बंद है. मंत्री हो या संत्री, अफसर हो या बेरोजगार, इस पैमाने के आगे सब एकसमान हैं.

अब हम ने सर्वजन हिताय में इस विषय पर बोलने की हिम्मत की है. श्रीमतीजी की प्रतिदिन की डांट से त्रस्त आ कर जनहित में हम ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर उठाने का बीड़ा उठाया है. हमें पता है, हमें नारी संगठनों से प्रतिरोध, उलाहने सहने पड़ेंगे लेकिन पत्नी पीडि़त संघों से हमें अटूट समर्थन, सम्मान और पुरस्कारों की भी आशा है. अब इस अघोषित प्रदूषण के खिलाफ ‘विसिल ब्लोअर’ की भूमिका निभाने की हम ने कमर कस ली है. सभी पतियों की यही रामकहानी है, सो आप प्रबुद्धगण हमारी दुखती रग को पकड़ चुके होंगे.

आप खुद सोचिए, रेल, बस, कारमोटर, स्कूटर, बाइक के कर्कश हौर्न, लाउडस्पीकर पर बजते कानफोड़ू संगीत अथवा रैली, धरनाप्रदर्शन करते आदरणीय नेताओं के भाषण ही ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं. जब घरों में पत्नीजी का संवाद डांटफटकार की प्रक्रिया, सप्तम स्वर में संपन्न होने लगे तो क्या इसे ‘स्पैशल होमली प्रदूषण’ की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए? डांट के रूप अनेक हो सकते हैं, बच्चों पर और खासकर पति महाशय पर डांट का रूप अकसर विस्फोटक ही होता है. भारतीय गृहस्थी दुनिया का 8वां अजूबा है. यह रेल की पटरियों की तरह साथसाथ चलती जरूर है लेकिन मिलती कहीं नहीं. अटकती, लटकती, मटकती, इतराती, बलखाती हुई निर्बाध रूप से भारतीय गृहस्थी लगातार गतिशील रहती है. यही कारण है कि हमारे यहां पतिपत्नी साथसाथ रह कर अपने विवाह की स्वर्ण, रजत अथवा प्लैटिनम जुबली मनाते हैं.

पतिपत्नी और डांट का चोलीदामन का साथ है. जहांजहां पत्नीजी की उपस्थिति पाई जाती है वहांवहां डांटफटकार का पाया जाना निश्चित है. अब इस दार्शनिक वाक्य से आप उस प्रदूषण की सहज कल्पना कर सकते हैं जिस के लिए पत्नीजी की डांटफटकार जिम्मेदार है. सुबह हमारी नींद पत्नीजी की उस लास्ट घोषणा से खुलती है जो अल्टीमेटम का अंतिम रूप जैसी होती है.

यह क्रिया इतनी बुलंद आवाज में संपन्न होती है कि बिना आलस से बिस्तर छूट जाता है. यह कार्य निबटते ही उलाहनों, कोसने और रुटीन रोनेधोने का कार्यक्रम चलने लगता है जो शीघ्र ही डांट में बदल कर ध्वनि प्रदूषण फैलाने लगता है. एक बानगी देखिए – ‘‘अजी सुनते हो, 8 बज गए, कब तक सोते रहोगे? फिर बाथरूम में जा कर बैठ जाओगे…बच्चों को भी स्कूल जाना होता है…ऐसी आरामतलबी है तो दोचार बाथरूम बनवाने की हैसियत कायम करते…’’

अब आप बताइए ऐसे ध्वनि प्रदूषण को हम किस श्रेणी में रखें? क्या हमारी यह डिमांड गलत अथवा अतार्किक है? पत्नीजी की चिल्लाहट, झल्लाहट समय और अवसर की मुहताज नहीं होती. जब मन किया, हमें सुधारने के लिए ऐसी डांटफटकार की डोज दिन में अनेक बार आवश्यक रूप से पिलाई जाती है. कई बार तो इस ‘होमली प्रदूषण’ से आसपास की बिल्ंिडगों के शीशे भी तड़क जाते हैं. इस उदाहरण से आप इस प्रदूषण की तीव्रता का सहज अनुमान लगा सकते हैं. पत्नीजी की डांट और शोरगुल से अकसर हमें गुस्सा और आक्रोश भी महसूस होता है लेकिन दिल को तब सुकून मिलता है जब पड़ोस से भी ऐसा ही ध्वनि प्रदूषण सुनने को मिलता है. मजे की एक बात और देखिए, जैसे ही हम शाम को घर आते हैं, श्रीमतीजी सीबीआई इंस्पैक्टर की भूमिका में हमारे समक्ष परिवार, कालोनी की रिपोर्ट प्रस्तुत करने लगती हैं. बच्चों की गतिविधियां, स्टडी, स्कूल, ट्यूशन, टीवी, कार्टून और इंटरनैट यूज से जुड़ी सब अपडेट सविस्तार प्रस्तुत करती हैं. अब यदि ऐसे महत्त्वपूर्ण लमहे पर हम ने जरा सी लापरवाही दिखा दी तो हमारा शिकार होना तय है – ‘‘मैं भी किस से बतिया रही हूं, इन्हें चिंता किस बात की है. मेरी बातें तो इन्हें बकवास लगती हैं. इन से बोलने का मतलब दीवारों से सिर फोड़ना है. अजी बहरे हो क्या, आप से ही पूछ रही हूं और आप अखबार में डूबे हो. सच्ची बात कह दो तो आप को सांप सूंघ जाता है. दीवारों से बात करूं या आप से, आप का कुछ नहीं हो सकता.’’

यदि घर पहुंचने में देर हो गई तो पुलिस अफसर अथवा सुप्रीम कोर्ट के सफल एडवोकेट की तरह हमें जिरह का सामना भी करना पड़ता है और यदि हम ने बुद्धिमानी से काम नहीं लिया तो डांट का ध्वनि प्रदूषण पूरी कालोनी को प्रदूषित करने लगता है. इस समय अकसर पूरा संवाद एकतरफा ही चलता है. हम होंठ चिपकाए भीगी बिल्ली की तरह इस संपूर्ण प्रक्रिया को जल्द से जल्द निबटा लेना चाहते हैं ताकि फटाफट डांटफटकार का क्रम शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो सके. इस स्थिति के लिए अकसर श्रीमतीजी खुद अपनेआप को ही कोसती हैं. वे दिनरात की मेहनत में सुधार कार्यक्रम चला कर भी हमें सुधार नहीं पाई हैं.

हमारी लाइफस्टाइल उन्हें जरा भी पसंद नहीं. हम ठहरे लापरवाह, गैर जिम्मेदार. उन की नजर में उन के प्रति हमारी तटस्थता किंतु हमारा रहस्यमय रोमांटिक नेचर उन्हें हमेशा शक के दायरे में फंसाए रखता है. इसलिए उन की नजर में चिल्लाना एकदम जायज है. वैसे, एक बात कहें, शर्त यह है कि आप हमारे राज को किसी से कहेंगे नहीं. रोजरोज की पत्नीजी की डांट से बचने के लिए हम ने अपने कानों में रूई ठूंसने का देशी जुगाड़ कर रखा है वरना अब तक तो हमारे कान के परदे फट गए होते.

अब समय आ गया है कि इस घरेलू प्रदूषण से मुक्ति के लिए समस्या समाधान पर पूरे देश में विचारमंथन हो. हम इस लेख के माध्यम से सरकार को एक मुफ्त की सलाह भी देना चाहते हैं. यदि इस पर अमल हो जाए तो बहुत संभव है इस प्रदूषण की समस्या न्यून रह जाएगी. अगर पतिपत्नी संवाद को भी ‘औडइवन’ सिस्टम से सीमितप्रतिबंधित कर दिया जाए तो पति जमात का उद्धार हो सकता है. महीने की औड तारीख को पत्नीजी बोलेंगी और इवन डेट को पति महाशय. सच कहूं तो इस से ‘सम्मान नागरिक संहिता’ का भी आदर्श रूप से पालन हो सकेगा वरना पतिपत्नी संवाद अकसर एकतरफा ही चलता है जो गुस्से की सीमा पार कर अकसर बम विस्फोट की तरह प्रदूषण फैलाने लगता है.

यह नियम यदि गृहस्थों पर लाद दिया जाए तो मूक पतियों को भी बोलने का कानूनी अधिकार मिल सकता है. कानों में रूई ठूंसने की तकनीक भी अब पुरानी पड़ चुकी है. समय की मांग को देखते हुए हमारे इस सुझाव पर तुरंत अमल होने की जरूरत है. इस से ‘पौल्यूशन फ्री होम’ का सपना भी साकार होगा.

एक तथ्य हम और स्पष्ट कर दें, पति की नजर से हम ने अपनी तहरीर रख दी है लेकिन सच में मेरा मन पत्नीजी का बहुत आभारी है. वे गुस्सा चाहे कितना भी करें लेकिन यह सच है कि हमारा जीवन उन्हीं पर निर्भर है. यदि एक दिन बीमार पड़ जाएं तो हमारे होश ठिकाने आ सकते हैं, फिर उन का चिल्लाना भी जायज है. आखिर वे भड़ास निकालें तो किस पर. दिनभर घरपरिवार के लिए खपती हैं तो उन की हम से अपेक्षा रखना स्वाभाविक है. सात फेरे लिए हैं, सात जन्मों का साथ है तो इतना अधिकार तो बनता है. हमारी इल्तजा बस इतनी सी है, सरकार इस प्रदूषण पर गौर फरमाए और पतियों को भी बोलने का अवसर प्रदान करे.

online hindi story : बुढ़ापे का इश्‍क

online hindi story : सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी ने लवलीन मुनरों को बांहों में भरा और एक जोरदार चुंबन उस के गाल पर जड़ा, फिर अपने होंठ उस के होंठों की तरफ बढ़ाए, तभी एक फ्लैशलाइट चमकी. दोनों ने सकपका कर सामने देखा, तभी दूसरी फ्लैशलाइट चमकी. फिर एक मोटरसाइकिल के स्टार्ट होने और तेजी से जाने की आवाज.

‘‘क्या हुआ है यह?’’ अपनेआप को सरदार साहब की बांहों से छुड़ाती लवलीन ने पूछा.

‘‘कोई शरारती फोटोग्राफर हमारी फोटो खींच कर भाग गया.’’

‘‘वह क्यों?’’ लवलीन मुनरों, जो स्थानीय विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर कक्षा में पढ़ाती थी और जिस की उम्र मात्र 22 साल थी, ने पूछा.

‘‘ब्लैकमेल करने के लिए. हमारे पास नमूने के तौर पर इन तसवीरों का एक सैट आएगा. फिर हमारे पास फोन आएगा, हम से पैसा मांगा जाएगा. पैसा नहीं देने पर इन तसवीरों को अखबारों में छपवाने व इंटरनैट पर जारी करने की धमकी दी जाएगी,’’ सरदार साहब ने विस्तार से समझाया.

‘‘इस से तो मैं बदनाम हो जाऊंगी,’’ चिंतातुर स्वर में लवलीन ने कहा.

‘‘हौसला रखो, ऐसे शरारती फोटोग्राफर, जिन को पपाराजी कहा जाता है, हर बड़े नगर में होते हैं. मुझे इन से निबटना आता है.’’

दोनों की शाम का मजा खराब हो गया था. दोनों समुद्र तट से सड़क के किनारे खड़ी गाड़ी में बैठे. कार न्यूयार्क की तरफ चल पड़ी.

सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी 60 बरस का था लेकिन तंदुरुस्ती के लिहाज से 40 साल का लगता था. वह न्यूयार्क में एक रैस्टोरेंट की शृंखला का मालिक था. वह कभी न्यूयार्क में टैक्सी चलाता था. फिर एक छोटा सा रैस्तरां खोला और धीरेधीरे तरक्की करता अब अनेक रैस्तराओं का मालिक था.

कारोबार अब दोनों बेटे देखने लगे थे. सरदार साहब के पास पैसा और समय काफी था. उस की पत्नी भी उसी की तरह 60 बरस की थी लेकिन वह एक बुढि़या नजर आती थी. वह अपना समय पोतेपोतियों को खिलाने में और घर की अन्य गतिविधियों में शिरकत कर बिताती थी. सरदारनी में यौन इच्छा नहीं रही थी लेकिन सरदार अब भी घोड़े के समान था. अपनी इच्छापूर्ति के लिए  वह कभी किसी कौलगर्ल, कभी किसी अन्य को बुलाता था. एक एजेंट के मारफत उस का संपर्क विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली अनेक श्वेतअश्वेत अमेरिकी छात्राओं से बन गया था. ऐसी बालाएं तफरीह और मौजमस्ती के लिए ऐसे जवां और ठरकी बूढ़ों के मनबहलाव के लिए आ जाती थीं. सरदार साहब शाम को ऐसी किसी लड़की को अपनी कार में ले कर किसी सुनसान समुद्र तट पर पहुंच जाता. समुद्र तट पर छितरे पाम के पेड़ों के पीछे, चट्टानों के पीछे, इधरउधर उन्हीं के समान चूमाचाटी, मौजमस्ती में लीन पड़े जोड़े होते थे.

अधिकांश जोड़े बेमेल होते थे. मर्द 60 साल का होता था जबकि लड़की  20-22 साल की. औरत 60 साल की होती थी, दिल बहलाने वाला छैला 25-30 का. अधिक उम्र वाला धनी होता था. कम उम्र वाला गरीब या मामूली हैसियत का. लवलीन मुनरों को उस के होस्टल के बाहर उतार कर ओंकार सिंह अपने घर, जो एक महल के समान बड़ी कोठी थी, में पहुंचा. वह चिंतातुर था. निकट भविष्य में स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ रहा था. कई साल स्थानीय निकाय का सदस्य चुना जाता रहा था. अब वह राज्य स्तर पर उभरना  चाहता था. बाद में सीनेटर बन अमेरिका की लोकसभा में जाना चाहता था.

कोई भी स्कैंडल अमेरिका में राजनीति के क्षेत्र में किसी का भविष्य एकदम बिगाड़ देता था. पपाराजी या शरारती फोटोग्राफर द्वारा खींची तसवीरें सार्वजनिक हो जाने पर सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी का राजनीतिक कैरियर एकदम तबाह कर सकती थीं.

डेनियल एक शरारती फोटोग्राफर या पपाराजी था. वह एक श्वेत अमेरिकी और नीग्रो मां की दोगली संतान था. उस का रंगरूप एक भारतीय जैसा था. पहले वह एक फोटोग्राफर के यहां असिस्टैंट था. बाद में उस ने अपना फोटोग्राफी का स्वतंत्र व्यवसाय आरंभ किया था. एक दफा एक कंपनी ने उस को विरोधी कंपनी की जासूसी के लिए कुछ तसवीरें खींचने को नियुक्त किया. तसवीरें कंपनी के डायरैक्टर की उस की प्रेमिका के साथ मौजमेले की थीं.

इस काम के बदले उस को मोटी धनराशि मिली थी. इस के बाद वह अपने साफसुथरे फोटोग्राफी के धंधे की आड़ में एक पपाराजी बन गया था. सुब्बा लक्ष्मी दक्षिण भारत से अमेरिका एक हाउस मेड के तौर पर आई थी. एक ही इलाके में रहते हुए उस की जानपहचान डेनियल से हो गई थी. दोनों में आंखें चार हो गई थीं. वह भी फोटोग्राफी सीख अब डेनियल के साथ फोटोग्राफी करती थी.

दोनों हर शाम कभी मोटरसाइकिल से, कभी कार द्वारा समुद्र तट पर व अन्य प्रेमालाप के लिए उपयुक्त दूसरे एकांत स्थलों पर पहुंच जाते थे. इन स्थलों पर अनेक बेमेल जोड़े प्रेमालाप में लीन होते थे. वे पहले उन की निगाहबानी करते थे. फिर अपना शिकार छांट कर उस जोड़े की अंतरंग तसवीरें इन्फ्रारैड कैमरे, जिन में फ्लैशलाइट की जरूरत नहीं पड़ती थी, से खींचते थे. फिर पार्टी को चौंकाने के लिए फ्लैशलाइट की चमक इधरउधर मारते और भाग जाते थे.

बाद में तसवीरें साधारण डाक से भेज कर फोन करते और ब्लैकमेल के तौर पर छोटीबड़ी रकम मांगते. पार्टी, जो आमतौर पर बूढ़ा धनपति या अमीर बुढि़या होती थी, बदनामी से बचने के लिए उन को चुपचाप पैसा दे देती थी.

‘‘यह सरदार सुना है काफी अमीर है,’’ आज डिजिटल कैमरे से खींची तसवीरों के पिं्रट देखते हैं,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने कहा.

‘‘हां, यह एक रैस्तरां की एक बड़ी शृंखला का मालिक है.’’

‘‘लड़की कौन है?’’

‘‘पता नहीं, मेरा अंदाजा है, कोई स्टूडैंट है. पैसा और मौजमस्ती के लिए लड़कियों का ऐसे बूढ़े या अधेड़ों के साथ मस्ती करना आम बात है.’’

‘‘तसवीरें तो सरदार को ही भेजनी हैं.’’

सरदार ओंकार सिंह ने गहरी नजरों से तसवीरों के सैट को देखा. वह कभी फोटोग्राफी का शौकीन था. टैक्सी चालक रहा था. कई साल अविवाहित रहते इच्छापूर्ति के लिए कौलगर्ल्स या अन्य औरतों से समागम करता रहा था.

लेकिन अब एक सम्मानित शहरी बन जाने पर, खासकर नगरपालिका का मेयर होते हुए और स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के लिए ऐसी तसवीरों का सार्वजनिक होना शर्मनाक था.

‘‘सरदार साहब, तसवीरें मिलीं आप को?’’ लैंडलाइन फोन पर डेनियल ने फोन कर के पूछा.

‘‘हां, क्या चाहते हो?’’

‘‘10 लाख डौलर.’’

‘‘दिमाग खराब हुआ है. ज्यादा से ज्यादा 500 डौलर.’’

‘‘सरदार साहब, आप की जो हैसियत है उस के लिहाज से 10 लाख डौलर ज्यादा नहीं हैं, ऊपर से आप स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ रहे हैं,’’ डेनियल के शब्दों में कुटिलता थी.

सरदार तिलमिलाया. यह पपाराजी सामने होता तो वह उस को कच्चा चबा डालता. उस ने फोन के कौलर आइडैंटिटी पर नजर डाली. फोन सार्वजनिक टैलीफोन बूथ से किया जा रहा था. ब्लैकमेलर चालाक था.

‘‘देखो, तुम ज्यादा हवा मत लो. अमेरिका में पपाराजी अपराध है. पुलिस में रिपोर्ट करते ही तुम अंदर हो जाओगे.’’

‘‘यह सब होतेहोते होगा. लेकिन आप की तसवीरें सार्वजनिक होते ही आप का राजनीतिक कैरियर खत्म हो जाएगा. साथ ही, बदनामी भी होगी.’’

‘तेरी ऐसी की तैसी, फोटोग्राफर,’’ सरदार फुफकारा.

‘‘ज्यादा गुस्सा सेहत के लिए खतरनाक होता है, खासकर 60 साल की उम्र में.’’ सरदार खामोश रहा.

‘‘सरदार साहब, कल शाम तक आप 1 लाख डौलर दे देना. नहीं तो तसवीरें पहले अखबार वालों को, फिर इंटरनैट पर जारी हो जाएंगी.’’

‘‘इस बात की क्या गारंटी है, तुम भविष्य में तसवीरें सार्वजनिक नहीं करोगे और दोबारा ब्लैकमेल नहीं करोगे?’’

‘‘सरदार साहब, ऐसी सूरत में आप पुलिस को रिपोर्ट कर सकते हैं.’’

‘‘पैसा कहां देना है?’’

‘‘आप फटाफट मुझे अपना मोबाइल फोन नंबर बताओ.’’

सरदार साहब ने नंबर बताया.

‘‘ओके. कल शाम आप जैसे रोज सैरसपाटे के लिए निकलते हैं, निकलेंगे. तब मैं रास्ते में आप को फोन कर के कहीं भी पेमैंट ले लूंगा.’’

अगली शाम सरदार अपनी कार पर समुद्र तट को निकला. डेनियल हैल्मेट पहनेपहने बाइक पर सवार हो पीछेपीछे चला. एक सुनसान स्थान पर फोन आते ही सरदार ने कार रोकी. डेनियल हैल्मेट पहने सामने आया. सरदार ने खिड़की खोल एक लिफाफा उस को थमा दिया.

पहली बार एक लाख डौलर मिले थे. अब से पहले ज्यादा से ज्यादा 5 या 10 हजार डौलर ही मिले थे. डेनियल का हौसला और लालच बढ़ गया.

अभी तक वह समुद्र तट पर चट्टानों के पीछे, यहांवहां पाम के नीचे प्रेमालाप में लीन प्रेमी जोड़ों की तसवीरें खींचता था. अब उस की निगाह समुद्र के बीच खड़े छोटेछोटे समुद्री जहाज, जिन्हें आम भाषा में याट कहा जाता था, पर पड़ी.

ये याट अमीर लोगों के थे जो इन पर समुद्र विहार करते थे. कई याटों पर सुरक्षाकर्मी थे.

‘‘क्यों न आज किसी याट पर चलें?’’ मोटरसाइकिल को एक तरफ खड़ी करते डेनियल ने कहा.

‘‘पागल हुए हो, पकड़े गए तो?’’

‘‘देखेंगे, अमीर लोग छिपछिप कर इन में कैसी रंगरेलियां मनाते हैं.’’

समुद्र तट पर अनेक जगह कटाफटा स्थान था. रेतीले सपाट समुद्र तट के बजाय ऐसा कटाफटा तट किश्तियों को बांधने के लिए उपयुक्त था. इस तट पर कई अमीर लोगों ने निजी पायर यानी सीमेंट के चबूतरे बना कर अपनीअपनी मोटरबोटें या चप्पुओं से चलने वाली नौकाएं बांध रखी थीं.

शाम का अंधेरा गहरा रहा था. एक किश्ती की रस्सी खोल, दोनों उस पर सवार हो, बीच समुद्र में बढ़ चले. कई याटों पर सुरक्षाकर्मी डैक पर टहल रहे थे. एक बड़े लग्जरी याट के डैक पर कोई नहीं था.

एक प्लेटफौर्म समुद्र के पानी से थोड़ा ऊपर था. यह एक खुली लिफ्ट थी. इस पर 4 व्यक्ति एकसाथ ऊपर आजा सकते थे. रस्सियों वाली एक सीढ़ी साथ ही लटक रही थी. दोनों किश्ती को एक हुक से बांध सीढि़यां चढ़ते हुए ऊपर पहुंच गए. डैक सुनसान था. चालक कक्ष भी सुनसान था. डैक से सीढि़यां नीचे जा रही थीं. सारा याट सुनसान जान पड़ता था.

डैक से नीचे के तल पर एक बड़ा हाल था. उस में एक तरफ बार बना था. खुली दराजों में तरहतरह की शराब की बोतलें सजी थीं. कई छोटेछोटे केबिन एक कतार में बने थे. एक केबिन में रोशनी थी.

दरवाजे के ऊपर वाले हिस्से में एक गोलाकार शीशा फिट था. दबेपांव चलते दोनों ने दरवाजे के करीब पहुंच कर शीशे से अंदर झांका. दोनों के मतलब का दृश्य था.

अधेड़ अवस्था का एक पुरुष एक नवयौवना सुंदरी के साथ सर्वथा… अवस्था में मैथुनरत था. डेनियल ने सुब्बा लक्ष्मी की तरफ देखा, वह निर्लिप्त भाव से मुसकराई.

डेनियल ने अपना कैमरा निकाला और दक्षता से तसवीरें खींचने लगा. अभिसारग्रस्त जोड़ा उन्माद उतर जाने के बाद अलगअलग हो, गहरी सांसें भरने लगा.

थोड़ी देर बाद दोनों ने कपड़े पहने और बाहर को लपके. डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी तुरंत बार काउंटर के पीछे जा छिपे. प्रेमी जोड़ा सीढि़यां चढ़ता ऊपर को गया. डेनियल ने शराब की 2 बोतलें उठा कर अपनी जैकेट की जेब में डाल लीं. दोनों दबे पांव चलते सीढि़यां चढ़ते डैक पर पहुंचे.

प्रेमी जोड़ा लिफ्ट पर सवार हो रहा था. डेनियल ने उन की इस मौके की तसवीर भी ले ली. प्रेमी जोड़ा मोटरबोट पर सवार हो तट की तरफ चला. दोनों भी उतर कर किश्ती पर सवार हुए.

‘‘एक चक्कर इस याट के इर्दगिर्द लगाते हैं?’’

‘‘क्यों?’’ सुब्बा लक्ष्मी ने पूछा.

‘‘याट किस का है? यह पता लगाना जरूरी है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘हर किश्ती या छोटेबड़े जहाज पर उस का नाम व रजिस्ट्रेशन नंबर होता है. बिना पंजीकृत हुए कोई मोटरबोट, छोटाबड़ा समुद्री जहाज, स्टीमर कहीं भी समुद्र या नदी में नहीं चल सकता. पंजीकरण दफ्तर से इस याट के मालिक का नाम पता चल जाएगा,’’ डेनियल ने समझाया.

पंजीकरण रिकौर्ड में याट जैक स्मिथ नाम के बड़े व्यापारी के नाम दर्ज था. वह कई फैक्टरियों का मालिक था.

उस की निगहबानी करने से उस को उस की प्रेमिका का नाम भी पता चल गया. वह एक अन्य व्यापारी एंड्र्यू डैक की पत्नी मारलीन डैक थी.

‘‘तसवीरों का सैट किस को भेजना है?’’

‘‘इस मामले में प्रेमीप्रेमिका दोनों ही अमीर हैं. मेरे विचार में एकएक सैट दोनों को भेज देते हैं,’’ डेनियल ने कहा.

‘‘लेकिन पैसा एक ही पार्टी से मिलेगा. 2 किश्तियों की सवारी से नुकसान होता है.’’

‘‘इस में दोनों पक्ष ही पैसे वाले हैं.’’

‘‘ज्यादा लालच अच्छा नहीं होता. आप इन से कितना पैसा मांगेंगे?’’

‘‘देखते हैं.’’

एंड्र्यू डैक अपनी फैक्टरी के दफ्तर जाने के लिए कार पर सवार हो रहा था कि उस को डाकिया एक लिफाफा थमा गया. लिफाफा उस की पत्नी के नाम था. लिफाफा एक पत्र के बजाय किसी और मैटर से भरा था.

उत्सुकतावश उस ने लिफाफा खोल डाला. मैटर देखते ही वह गंभीर हो उठा और चुपचाप कार में बैठ गया. उस के इशारे पर शोफर ने कार आगे बढ़ा दी.

एंड्र्यू डैक अपनी पत्नी की चरित्रहीनता से वाकिफ था. वह उस को तलाक देना चाहता था लेकिन उस को एकतरफा तलाक देने की कार्यवाही करने पर हरजाने के तौर पर काफी मोटी रकम देनी पड़ती.

बिना हरजाना दिए तलाक लेने के लिए या तो उस की पत्नी भी स्वेच्छा से तलाक लेती या फिर उस को चरित्रहीन साबित करने के लिए उस के खिलाफ कोई सुबूत होता.

उस ने कई महीनों तक एक प्राइवेट जासूसी फर्म से अपनी पत्नी की जासूसी करवाई थी लेकिन मारलीन डैक काफी चालाक थी. वह किसी पकड़ में नहीं आई.

अब संयोग से चरित्रहीनता को साबित करते फोटो उस के पास आ गए थे. एंड्र्यू डैक समझ गया कि यह किसी शरारती फोटोग्राफर यानी पपाराजी का काम था.

अभिसार करने वाले मर्द जैक स्मिथ को पहचानता था. जैक स्मिथ के खिलाफ एक बात यह थी कि वह अपने बूते पर अमीर नहीं बना था. वह घरजमाई था. उस की पत्नी धनी बाप की इकलौती संतान थी. उस ने जैक स्मिथ से प्रेमविवाह किया था.

ऐसी तसवीरें जैक स्मिथ की पत्नी और उस के ससुर के सामने आने पर उस का फौरन तलाक होना निश्चित था. इस तरह एंड्र्यू डैक के हाथ पत्नी और उस के प्रेमी दोनों को अर्श से फर्श पर लाने का सुबूत लग गया था.

वह अनुभवी था. उस को पता था कि बिना फोटो के नैगेटिव और उन को खींचने वाले फोटोग्राफर की गवाही के इन को अदालत में पक्का सुबूत साबित नहीं किया जा सकता था. अदालत में विरोधी पक्ष उन को ट्रिक फोटोग्राफी कह कर खारिज करवा सकता था.

‘‘कौन था यह पपाराजी?’’

जैक स्मिथ अपनी स्टेनो द्वारा लाई डाक देख रहा था. साधारण डाक अब कम आती थी.

‘‘सर, यह लिफाफा साधारण डाक से आया है.’’

किसी व्यावसायिक फोटोग्राफर द्वारा इस्तेमाल करने वाला लिफाफा था. तसवीरें देखते ही वह उछल पड़ा. उस के निजी याट पर इतनी सफाई से तसवीरें खींची गई थीं. उस को और मारलीन डैक को आभास तक न हुआ था.

तसवीरों के सार्वजनिक हो जाने के परिणाम के विचार से चिंतित हो उठा. उस की पत्नी और ससुर उस को बाहर निकाल एकदम सड़क पर खड़ा कर देंगे.

घबरा कर उस ने तुरंत मारलीन डैक को फोन किया.

‘‘क्या कह रहे हो? मैं ने तो हमेशा सावधानी बरती है. किसी जासूस को भी भनक तक नहीं हुई.’’

‘‘यह किसी जासूस का काम नहीं है. यह किसी प्रोफैशनल फोटोग्राफर का काम है, जिस का मकसद ऐसी तसवीरें खींच कर ब्लैकमेल करना होता है. मेरा अंदाजा है कि ऐसा लिफाफा तुम्हारे पास भी आया होगा,’’ जैक स्मिथ ने कहा.

‘‘मुझे तो नहीं मिला या पता नहीं, मेरे हसबैंड को डाकिया थमा गया हो,’’ मारलीन डैक ने चिंतित स्वर में कहा. पति को ऐसी तसवीरों का मिलना, मतलब बिना हरजाना दिए एकदम से तलाक.

‘‘यह शरारती फोटोग्राफर कौन है?’’ उस ने पूछा.

‘‘हौसला रखो, जल्द ही पैसे की मांग के लिए उस का फोन आएगा,’’ जैक स्मिथ ने धैर्य बंधाते हुए कहा जबकि वह खुद घबराया हुआ था.

उधर, सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी ने जल्दबाजी में ब्लैकमेलर को एक लाख डौलर दे तो दिए थे मगर बाद में उस को खुद पर गुस्सा आ रहा था. वह पाईपाई जोड़ कर अमीर बना था. पैसे की कीमत जानता था.

उस को उम्मीद थी कि पैसा लेने के लिए ब्लैकमेलर सामने आएगा. सारे न्यूयार्क के चप्पेचप्पे से वाकिफ होने के कारण वह हर व्यवसाय के प्रमुख व्यक्तियों को जानता था. शहर में फोटोग्राफर थे कितने? एक दफा ब्लैकमेलर का चेहरा सामने आ जाता, फिर वह पंजीकरण विभाग से उस की फोटो निकलवा उस को काबू कर लेता.

लेकिन डेनियल भी पूरा घाघ था. वह उस के सामने हैल्मेट पहने आया था और पैसे का पैकेट थामते ही ये जा, वो जा.

ओंकार सिंह अपने घनिष्ठ मित्र सरदार वरनाम सिंह, जो कभी उसी के समान टैक्सी चालक था और अब टैक्सियों का भारी बेड़ा रखता था और खुद टैक्सी न चला किराए पर देता था, के पास पहुंचा.

‘‘ओए, खोते दे पुत्तर, इस उम्र में लड़की जवानी दा चक्कर. कुछ तो शर्म कर,’’ सारा मामला जानने के बाद वरनाम सिंह ने उस को झिड़कते हुए कहा.

‘‘यार, तेरी भाभी सहयोग नहीं करती.’’

‘‘इस उम्र में परजाई क्या कर सकती है? तुझे चुम्माचाटी ही करनी थी तो बंद कमरे में करता, खुले समुद्र तट पर क्यों गया था? अब बता क्या चाहता है?’’

‘‘इस फोटोग्राफर को काबू करना है.’’

‘‘वह काबू आ भी जाए तब क्या करेगा. 1 लाख डौलर थमा दिए, अब चुपचाप गम खा ले. मामला सार्वजनिक हो गया तो तेरी बदनामी ही होगी.’’

लेकिन ओंकार सिंह पर इस नेक सलाह का कोई असर नहीं हुआ, वह यह नहीं भूल पा रहा था कि एक शरारती फोटोग्राफर ने इस तरह बदनामी करने की धमकी दे कर उस से 1 लाख डौलर झटक लिए हैं.

वह पुराना खिलाड़ी होते हुए भी मात खा गया था. अब वह हर हालत में उस को काबू करना चाहता था.

इधर, अब जैक स्मिथ के लैंडलाइन पर फोन आया.

‘‘क्या चाहते हो?’’‘‘10 लाख डौलर.’’

‘‘दिमाग खराब हुआ है.’’

‘‘जनाब, आप की माली हैसियत और सामाजिक हैसियत काफी ऊंची है, उस को देखते यह मामूली रकम है.’’

‘‘यों बदमाशी करते किसी की तसवीरें खींचना जुर्म है, पुलिस में रिपोर्ट कर दूं तो सीधे 10 साल के लिए नप जाओगे.’’

‘‘जनाब, ऐसी बातों में कुछ नहीं रखा. आप बताइए, रकम दे रहे हो या नहीं?’’

‘‘इतनी बड़ी रकम, ज्यादा से ज्यादा 10 हजार डौलर.’’

‘‘नहीं जनाब, पूरे 10 लाख डौलर. मैं कल फिर फोन करूंगा,’’ फोन कट गया.

जैक स्मिथ ने कौलर आइडैंटिटी की स्क्रीन पर नजर डाली. फोन किसी सार्वजनिक बूथ से किया गया था. उस ने टैलीफोन डायरैक्ट्री से नंबर खोजा. फोन जिस एरिया से आया था, उस को नोट कर लिया.

जैक स्मिथ के बाद डेनियल ने एंड्र्यू डैक को फोन किया. एंड्र्यू डैक जैसे उस के फोन का इंतजार कर रहा था. मरदाना आवाज सुनते डेनियल चौंका. उसे तो मारलीन डैक से बात करनी थी.

‘‘मुझे मैडम मारलीन डैक से बात करनी है.’’

‘‘मैं उस का पति बोल रहा हूं. तसवीरों का लिफाफा तुम ने ही भेजा था?’’

अब डेनियल उलझन में था. लिफाफा पत्नी के बजाय पति को मिल गया था. अब ब्लैकमेल कैसे करे. तसवीरें पति के सामने आ चुकी थीं. पत्नी अब पैसा किस बात का देगी?

‘‘हैलो, तुम ने ब्लैकमेल करने के इरादे से तसवीरें खींचीं. तुम कितना पैसा चाहते हो?’’ एंड्र्यू डेक के इस सीधे सवाल पर डेनियल सकपका गया. ऐसा सवाल मारलीन डैक करती तो समझ भी आता.

वह खामोश रहा.

‘‘देखो, अगर तुम इन तसवीरों के नैगेटिव और अदालत में गवाही देने को तैयार हो जाओ तो जो पैसा तुम मेरी पत्नी से चाहते हो वह मैं दूंगा.’’

‘‘गवाही, किस बात की गवाही?’’ उलझनभरे स्वर में डेनियल ने पूछा.

‘‘मुझे अपनी पत्नी को तलाक देना है. उस को चरित्रहीन साबित करने के लिए ऐसे फोटोग्राफ खींचने वाली गवाही चाहिए.’’

अब डेनियल को मामला समझ आ गया था. एंड्र्यू डैक काफी अधीर था. साधारण तरीके से तलाक का मुकदमा डालने पर उस को मोटा हरजाना देना पड़ता. लेकिन पत्नी के चरित्रहीन साबित हो जाने पर उस को बिना हरजाना दिए उस से तलाक मिल जाना था.

‘‘10 लाख डौलर.’’

‘‘पागल हुए हो. शरारती फोटोग्राफर को 500 डौलर, ज्यादा से ज्यादा 1 हजार मिल जाते हैं. यह एक अपराध है. मैं तुम्हें ज्यादा से ज्यादा 1 लाख डौलर दे सकता हूं.’’

‘‘ओके. मैं सोच कर तुम्हें दोबारा फोन करूंगा.’’

‘‘अब आप क्या करेंगे?’’ मारलीन डैक ने अपने प्रेमी जैक स्मिथ से पूछा.

‘‘इस पपाराजी का पता लगाऊंगा.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘अपने तरीके से. एक बार वह काबू में आ जाए.’’

अभी तक डेनियल ने जिन जोड़ों के अश्लील फोटो खींचे थे, वे किसी विशेष स्थिति में थे और खानदानी अमीर नहीं थे..

सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी टैक्सी चालक से तरक्की करता अमीर बना था और अब मेयर होते हुए स्टेट काउंसिल का उम्मीदवार था. इसलिए बदनामी से बचना चाहता था. दूसरा जैक स्मिथ मामूली हैसियत का था. वह प्रेमविवाह होने से पत्नी के मायके से मिले धन से बना अमीर था. उस की ऐसी तसवीरें सामने आने से उस का सब चौपट हो सकता था.

डेनियल एक ब्लैकमेलर था. उस का लालच भविष्य में क्या गुल खिला दे, इसलिए सरदार के लिए और जैक स्मिथ के लिए उस को काबू करना जरूरी था. सरदार ओंकार सिंह अपने दोस्त वरनाम सिंह के पास पहुंचा.

‘‘वरनाम सिंह, मुझे एक टैक्सी और चालक की वरदी दे दे.’’

‘‘क्यों, क्या दोबारा टैक्सी चालक का धंधा करना चाहता है?’’

‘‘नहीं, उस शरारती फोटोग्राफर को काबू करना है. वह एक ब्लैकमेलर है, भविष्य में लालच में पड़ कर दोबारा पंगा कर सकता है.’’ वरनाम सिंह ने हरी झंडी दी. टैक्सी चलाता ओंकार सिंह अपने घर पहुंचा.

‘‘अरे, आप ने दोबारा टैक्सी चालक का धंधा शुरू कर दिया?’’ उस की पत्नी ने उस को टैक्सी चालक की वरदी में और टैक्सी को देख कर हैरानी से पूछा.

‘‘नहीं, थोड़ा मनबहलाव के लिए कुछ दिन अपना पुराना धंधा करना चाहता हूं. अमीरी भोगतेभोगते बोर हो चला हूं.’’ पत्नी और बेटीबहुओं ने बुढ़ापे में चढ़ आई सनक समझ कर उस को नजरअंदाज कर दिया. उस शाम ओंकार सिंह अपनी लग्जरी कार में सैर करने नहीं निकला. वह टैक्सी चालक बन टैक्सी चलाता समुद्र तट पर पहुंचा.

वह जानता था ब्लैकमेलर यानी शरारती फोटोग्राफर अपना धंधा करने ‘बीच’ पर जरूर आएगा. उस ने सैकड़ों बार ऐसे फोटोग्राफरों को प्रेमालाप में लीन जोड़ों की गुप्त तसवीरें खींचते देखा था. मगर जब तक उस पर यही शरारत न आ पड़ी, उस ने उन का कोई नोटिस नहीं लिया था. अब ऐसा पंगा पड़ जाने से उस का दिमाग चौकन्ना हो गया था.

जैक स्मिथ मामूली हैसियत का था. मारलीन डेक से प्रेम शुरू होने से पहले वह अपनी पत्नी की तरफ पूरा ध्यान देता था. मगर मारलीन डेक उस की पत्नी की तुलना में युवा थी. दोनों में सिलसिला ठीक चल रहा था कि यह पपाराजी का पंगा पड़ गया. जिस लाइन पर सरदार ओंकार सिंह सोच रहा था उसी पर जैक स्मिथ भी सोच रहा था.

उस ने भी अनेक पपाराजी को इस तरह तसवीरें खींचते देखा था. मगर उस को अंदाजा नहीं था कि कोई उस के याट में घुस कर इस तरह तसवीरें खींचने का दुसाहस कर सकता था. एक बार दुसाहस करने पर ब्लैकमेलिंग का पैसा मिलने पर ब्लैकमेलर दोबारा लालच कर सकता था. इसलिए उस को काबू करना जरूरी था. इस घटना के बाद मारलीन डेक ने उस से मिलनाजुलना बंद कर दिया था.

जैक स्मिथ छोटामोटा धंधा करता था. वह सभी वाहन चलाना जानता था. सामान्य तौर पर अमीर बनने के बाद वह लग्जरी कार में चलता था. काफी समय बाद उस ने साधारण कपड़े पहने. सिर पर नौजवान लड़कों द्वारा पहनी जाने वाली टोपी और धूप का बड़ा चश्मा पहनने से उस का हुलिया बदल गया था. हैल्मेट पहने वह बाइक पर सवार हुआ और समुद्र तट पर जा पहुंचा.

सरदार ओंकार सिंह टैक्सी एक तरफ खड़ी कर टैक्सी चालक बना एक चट्टान पर बैठा था. उस की मुद्रा ऐसी थी मानो वह समुद्र तट पर सैरसपाटा करने आई अपनी सवारी के लौटने का इंतजार कर रहा हो. जैक स्मिथ ने बाइक एक पाम के पेड़ के समीप खड़ी कर दी. लौक कर के यों समुद्र तट पर टहलने लगा जैसे वह तनहाईपसंद हो और उस को अकेला घूमना पसंद हो.

पपाराजी की शरारत का शिकार हुए दोनों की लाइन एक ही थी. किसी पपाराजी, जो हमेशा अपने शिकार की खोज में रहता था और कभी यह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि वह कभी किसी की खोजी निगाहों का शिकार हो सकता है, को शिकार बनाने को ये दोनों तत्पर थे. सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी ने सतर्क निगाहों से अपने चारों तरफ देखा. विशाल समुद्र तट पर दिखने वालों को अनदेखा किए कई मेल और बेमेल प्रेमी जोड़े खुद में लीन थे और उन की निगहबानी करते दर्जनों शरारती फोटोग्राफर अपना काम बिना फ्लैशलाइट जलाए फोटो खींचने वाले कैमरों से कर रहे थे.

जैक स्मिथ भी अपनी सतर्क निगाहों से यह सब क्रियाकलाप देख रहा था. तभी उस को बीच समुद्र में खड़ी अपनी याट का ध्यान आया. जिस तरह से शरारती फोटोग्राफर चुपचाप अपना काम कर गया था, उसी तरह अगर वह भी एक चोर की तरह अपनी याट पर जाए तो? शाम का अंधेरा गहरे अंधेरे में बदल गया था. समुद्र का नीला पानी अब काले हीरे के समान चमक रहा था. उभरता चांद पानी की चमक को बढ़ा रहा था.

पायर पर बंधी चप्पुओं वाली एक नौका खोल कर उस पर बैठ चप्पू चलाता जैक स्मिथ बीच समुद्र में खड़ी अपनी याट की तरफ बढ़ता गया.

कोई उन की निगहबानी या जासूसी कर सकता था. इस से बेखबर डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी मोटरसाइकिल खड़ी कर समुद्र तट पर टहलने लगे. उन के हावभाव ऐसे थे मानो शाम बिताने आए 2 प्रेमी हों. गले या कंधे पर कैमरा लटकाए घूमने आना आम था. इसलिए यह पता चलना आसान नहीं था कि कौन शौकिया तसवीर खींचने वाला था और कौन शरारती फोटोग्राफर.

एक बारगी सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी को लगा कि उस का इस तरह जासूसी करने आना बेकार है. मगर वह धैर्य रखे था. चुपचाप प्रेमी जोड़ों की तसवीरें खींच रहे पपाराजी में उस की तसवीरें खींचने वाला कौन सा था.

‘‘एक चक्कर बीच समुद्र का लगाएं,’’ डेनियल ने कहा.

‘‘उसी याट का?’’

‘‘उस में अब क्या मिलेगा? वह प्रेमी जोड़ा सावधान हो चुका है. वैसे भी एक जगह चोरी करने के बाद चोर दोबारा वहां चोरी करने नहीं जाता.’’

डेनियल की इस मजाकिया टिप्पणी पर सुब्बा लक्ष्मी खिलखिला कर हंस पड़ी. आज पायर पर कोई चप्पुओं वाली नौका नहीं थी. मोटरबोटों पर ताला लगी जंजीरें लगी थीं. डेनियल आखिर एक चोर ही था. उस ने अपनी जेब से एक ‘मास्टर की’ निकाली. ताला खोला.

मोटरबोट समुद्र में दौड़ पड़ी. जहांतहां छोटेबड़े याट, लग्जरी बोट लंगर डाले खड़े थे. इन में क्याक्या हो रहा था यह इन में प्रवेश करने पर ही पता चल सकता था.

चप्पुओं वाली किश्ती चलाता जैक स्मिथ अपनी याट के समीप पहुंचा. याट पर भ्रमण के दौरान 8-10 आदमियों का स्टाफ होता था. खड़ी अवस्था में 1 या 2 व्यक्ति ही होते थे. आमतौर पर याट एक लवनैस्ट ही था.

अमीर बनने के बाद, जैक स्मिथ को अमीरों की तरह पर-स्त्री से संबंध रखने व कैप्ट या रखैल रखने का शौक लग गया था. थोड़ेथोड़े अंतराल पर वह किसी नई प्रेमिका को यहां ले आता था. यह सिलसिला ठीक चल रहा था. मगर अब एक पपाराजी द्वारा यों लवनैस्ट में प्रवेश कर तसवीरें खींच लेने से यह सिलसिला थम गया था.

उस के याट के समान अन्य याट भी या तो लवनैस्ट थे या फिर अन्य अवैध कामों के लिए मिलनेजुलने के स्थल. शहर में अवैध कामों, खासकर नशीले पदार्थों को बेचने और सप्लाई करने वालों को पुलिस या नशीले पदार्थों को नियंत्रण करने वालों की निगाहों में आने से बचने के लिए बीच समुद्र में खड़े छोटेबड़े याट या लग्जरी याट काफी सुविधाजनक थे.

शाम ढलने के बाद, रात के अंधेरे में छोटेबड़े स्मगलर अपनेअपने ठिकानों पर आ जाते. अधिकांश याट प्रभावशाली अमीरों के थे. इन पर एकदम छापा मारना मुश्किल था. शक की बिना पर किसी प्रभावशाली अमीर के याट पर छापा मारना उलटा पड़ जाता था. लेकिन खुफिया पुलिस और मादक पदार्थ नियंत्रण करने वाला विभाग अपनी निगरानी चुपचाप जारी रखता था. सादे और छद्म वेश में जहांतहां भूमि, समुद्र और समुद्र तट पर तैनात जासूस अपना काम चुपचाप करते थे. वे प्रेमालाप में लीन मेल या बेमेल जोड़ों को और उन की तसवीरें खींच कर भाग जाने का शरारती फोटोग्राफरों को कोई आभास तक न होने देते और उन की निगरानी करने के साथ उन की तसवीरें भी चुपचाप नई तकनीक से कैमरों से खींच लेते थे.

डेनियल समेत अन्य सभी शरारती फोटोग्राफरों का पुराना रिकौर्ड खुफिया विभाग के पास था. और साथ ही बीच पर आने वाले बेमेल प्रेमी जोड़ों का भी लेकिन इस विभाग को नशीले पदार्थों की रोकथाम से काम था. इसलिए न प्रेमी जोड़ों के काम में दखल देता और न ही पपाराजियों के. हां, उन की रोजाना रिपोर्ट पुलिस मुख्यालय में जरूर पहुंचती थी.

इन दिनों, जैक मारटीनो, जो एक अश्वेत अमेरिकी पुलिस अधिकारी था, इस विभाग का इंचार्ज था. जैक मारटीनो चुस्त अधिकारी था. वह अपनी कुरसी पर बैठा कौफी पी रहा था और साथ ही समुद्र तट पर छद्म वेश में तैनात व समुद्र में गश्त लगा रहे गश्ती दल की रिपोर्ट भी अपने कान पर लगे इयर फोन से सुन रहा था.

‘‘सर, आज समुद्र तट पर स्थानीय निकाय का मेयर सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी टैक्सी चलाता टैक्सी चालक की वरदी पहने आया है. वह एक चट्टान पर बैठा जैसे जासूसी कर रहा है,’’ जासूस ने रिपोर्ट दी.

‘‘वह पहले टैक्सी चालक था. कोई पंगा पड़ गया होगा, इसलिए यह छद्म रूप धारण किए है. आज उस के साथ कोई दिल बहलाने वाली नहीं आई?’’ जैक मारटीनो ने पूछा.

‘‘नहीं सर, कुछ दिन पहले एक पपाराजी इस की तसवीर खींच कर भागा था. उस के बाद इस का प्रेमालाप बंद है.’’

‘‘यह शायद उसी पपाराजी की फिराक में है. यह स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ रहा है. हो सकता है ब्लैकमेलिंग का चक्कर हो.’’

‘‘सर, वह पपाराजी जोड़ा भी समुद्र तट पर टहल रहा है.’’

‘‘उस पर भी नजर रखो.’’

‘‘सर, इन शरारती फोटोग्राफरों को काबू करने का और्डर क्यों नहीं करवाते.’’

‘‘अरे भाई, इन से ज्यादा कुसूरवार तो ये प्रेमी जोड़े हैं. इन में अधिकांश बूढ़े हैं और शहर की सम्मानित हस्तियां हैं. पपाराजी को पकड़ते ये सब भी उजागर होंगे तब बड़ा स्कैंडल बन जाएगा. हमारा काम तो नशीले पदार्थों की रोकथाम करना है.’’

‘‘ओके, सर.’’

चप्पुओं वाली किश्ती को अपनी याट के समीप रोक जैक स्मिथ ने पहले इधरउधर फिर याट के ऊपर देखा. जब भी वह आता था, मोबाइल फोन से स्टाफ को सूचना देता था. याट पर तैनात सुरक्षाकर्मी या केयरटेकर याट पर लगी लिफ्ट के प्लेटफौर्म को समुद्र के पानी के समतल कर देता था.

मगर आज जैक स्मिथ का इरादा चुपचाप आने का था. वह अपनी और मारलीन डेक की तसवीरें खींची जाने से क्षुब्ध था. किश्ती को एक हुक से बांधा. वह रस्सी वाली सीढ़ी की सीढि़यां चढ़ता ऊपर चला गया.

डेक सुनसान था. चालककक्ष में अंधेरा था. केयरटेकर और सुरक्षाकर्मी शायद नीचे थे. वह दबेपांव चलता नीचे जाने वाली सीढि़यों की तरफ बढ़ा. उस के कानों में अनेक लोगों के हंसनेखिलखिलाने की आवाज आई.

इतने सारे लोग, उस को क्रोध आने लगा. फिर अपने पर नियंत्रण रखता, वह दबेपांव सीढि़यां उतरता प्रथम तल पर पहुंचा. सीढि़यों की तरफ कूड़ाकरकट फेंकने का बड़ा ड्रम रखा था.

दबेपांव चलता वह उस ड्रम के पीछे बैठ गया और चोरनजरों से प्रथम तल के बड़े हाल में झांका. बार के लंबे काउंटर के सामने पड़ी ऊंची कुरसियों पर उस के दोनों मुलाजिम बैठे शराब के घूंट भर रहे थे. अन्य कुरसियों पर 6-7 हब्शी दिखने वाले आदमी बैठे थे. उन के हाथों में भी शराब के गिलास थे.

हाल के केंद्र में रखी मेज पर सफेद पदार्थ से भरी पौलिथीन की थैलियों का ढेर लगा था. वह उन का वार्त्तालाप सुनने लगा :

‘‘इस माल की पेमैंट कब मिलेगी?’’ एक नीग्रो ने पूछा.

‘‘अगली डिलीवरी के साथ,’’ दूसरे ने कहा.

‘‘अगली सप्लाई कब चाहते हो?’’

‘‘4 दिन बाद.’’

‘‘कहां?’’

‘‘इसी याट पर.’’

‘‘नो, नैवर, मैं एक ही जगह दोबारा नहीं आता,’’ सप्लाई करने वाले नीग्रो ने दृढ़ स्वर में कहा.

‘‘ठीक है, इस याट को समुद्र में कहीं और ले आएंगे. कहां लाएं?’’

‘‘मैं फोन कर के बता दूंगा.’’

‘‘ओके,’’ फिर अपना गिलास खाली कर सब खड़े हुए. जैक स्मिथ दबेपांव सीढि़यां चढ़ता डेक पर पहुंचा. वह चालक केबिन में घुस कर एक तरफ खड़ा हो गया.

सभी ऊपर आए. लिफ्ट से बारीबारी से सब नीचे गए. सुरक्षाकर्मी और केयरटेकर डेक पर खड़े हो कर बातें करने लगे :

‘‘आज का माल क्या है?’’

‘‘शायद कोकीन है.’’

‘‘कितनी कीमत का है?’’

‘‘पता नहीं. हमें तो हर फेरे के 10 हजार डौलर मिलने हैं.’’

‘‘एक हफ्ते से सेठ नहीं आया?’’

‘‘उस की और उस की ‘वो’ की किसी ने यहां तसवीरें खींच ली थीं. वह सेठ को ब्लैकमेल कर रहा है.’’

‘‘तुम को किस ने बताया?’’

‘‘परसों मैं सेठ के दफ्तर गया था. तभी फोन आया, मैं दरवाजे पर ही था. उस की बात सुन ली थी.’’

‘‘तसवीरें कैसे खींची गईं?’’

‘‘क्या पता? इसे छोड़, बता, अंदर रखा माल कब जाएगा?’’

‘‘सुबह से पहले कभी भी.’’

‘‘अब क्या करें?’’

‘‘बीच पर चलते हैं. यहां किसे आना है.’’

दोनों नीचे उतर कर मोटरबोट में सवार हुए. उन के जाते ही जैक स्मिथ केबिन से बाहर निकला और गंभीर हो, सोचने लगा.

कितनी अजीब स्थिति थी कि अपने ही याट में उस को एक चोर की तरह प्रवेश करना पड़ा था. उस के लवनैस्ट को उस के हरामखोर नौकर नशीले पदार्थों के सौदागरों को एक वितरण स्थल का ट्रांजिट माउंट के रूप में इस्तेमाल करवा धन कमा रहे हैं. अमेरिका में अन्य देशों की भांति नशीले पदार्थों का धंधा एक गंभीर अपराध था. ऐसा करने वालों को 40 साल तक की सजा हो सकती थी. याट में नशीला पदार्थ पकड़े जाने पर जैक स्मिथ कितनी भी सफाई देता, पुलिस उस का कतई ऐतबार न करती कि वह इस धंधे में शामिल नहीं था.

अभी तक वह पपाराजी द्वारा खींची गई तसवीरों से घबराया था. अब यह पंगा, जिस की उसे कल्पना भी नहीं, सामने आ गया था. वह धीमेधीमे सीढि़यां उतरता नीचे हाल में पहुंचा. इधरउधर तलाशी लेने पर उस को एक बैग कोने में मिल गया. बैग ठसाठस सफेद पाउडर जैसे नशीले पदार्थ, जो शायद कोकीन था, से भरा था. तभी उस के दिमाग में कौंधा कि अगर यह माल यहां से गायब हो जाए तब क्या होगा?

उस के हरामखोर नौकरों की अपनेआप शामत आ जाएगी. उस ने सारा हाल भी तलाशा. सारे कमरे तलाशे. याट दोमंजिला था. प्रथम तल के बाद ग्राउंड फ्लोर भी तलाशा. इंजनरूम भी. कहीं कोई और नशीला पदार्थ नहीं था उस ने एअरबैग उठाया और जैसे सीढि़यां चढ़ते आया था वैसे ही उतरता नीचे किश्ती में पहुंच गया. चप्पू चलाता वह पायर पर पहुंचा. उस की किस्मत अच्छी थी. उस पर न किसी मौजमेला करने वाले की नजर पड़ी न खुफिया पुलिस की.

पायर से काफी आगे घनी झाडि़यों का झुरमुट था. उस ने एअर बैग एक झाड़ी में छिपा दिया. फिर सधे कदमों से चलता अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हुआ और शहर की तरफ बढ़ चला. मोटरबोट से काफी देर विचरण करने के बाद डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी समुद्र में जहांतहां खड़े याटों की तरफ देखने लगे.

‘‘हर सुनसान दिखते याट में प्रेमी जोड़ा प्रेमालाप कर रहा हो, यह जरूरी तो नहीं है,’’ मोटरबोट का इंजन बंद कर के उस को समुद्र के पानी पर स्थिर करते सुब्बा लक्ष्मी ने कहा.

‘‘तुम्हारी बात ठीक है. पिछली बार ऐडवैंचर से हमें नया नजारा देखने को मिला था. इस बार देखते हैं क्या होता है.’’

‘‘अगर यह ऐडवैंचर हमें उलटा पड़ गया तो?’’

‘‘देखेंगे,’’ फिर उस ने एक बड़े लग्जरी याट की तरफ इशारा किया.

‘‘मोटरबोट का इंजन शोर करता है, इस को किश्ती के समान चलाते हैं,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने एयरजैटसी के लिए रखे चप्पुओं को मोटरबोट के हुक से फिट कर दिया. किश्ती के समान चप्पू खेते वे दोनों सुनसान दिखते याट के समीप पहुंचे.

इस याट पर भी एक लिफ्ट लगी थी. साथ ही रस्सियों वाली सीढ़ी. दोनों डेक पर पहुंचे. डेक सुनसान था. चालक कक्ष में अंधेरा था. दोनों नीचे जाने वाली सीढि़यों की तरफ बढ़े. तभी ऊपर आते भारी कदमों की आवाज सुनाई पड़ी. दोनों लपक कर चालक केबिन के पीछे जा छिपे.

चुस्त वरदी पहने हाथ में छोटीछोटी बंदूकें लिए 2 अश्वेत सुरक्षाकर्मी ऊपर आ गए और डेक के केबिन की रेलिंग के साथ लग कर गपशप मारने लगे.

डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी ने एकदूसरे की तरफ देखा. कहां आ फंसे.

‘‘तुम सो जाओ, मैं 2 घंटे पहरा दूंगा. फिर तुम्हारी बारी,’’ एक ने दूसरे से कहा.

‘‘तुम भी सो जाओ. यहां कौन आता है.’’

दोनों, डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी, डेक पर बिछी लकड़ी की बैंचों पर लेट कर सोने की तैयारी करने लगे.

‘‘नीचे उतर कर वापस चलो,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने कहा.

‘‘एक नजर नीचे मार आते हैं,’’ डेनियल ने कहा.

‘‘पंगा मत लो, मेरा कहना मानो,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने समझाया.

लेकिन डेनियल नहीं माना. विवश हो सुब्बा लक्ष्मी भी उस के पीछेपीछे सीढि़यां उतरती गई.

एक बड़े हाल में कुछ लोग, जिन में श्वेतअश्वेत दोनों थे, मेजों के गिर्द कुरसियों पर बैठे जुआ खेल रहे थे. एक बारबेक्यू एक तरफ बना था. उस पर मांस की बोटियां ग्रिल की जा रही थीं.

दोनों उस फ्लोर से उतर कर नीचे वाले फ्लोर पर पहुंचे. एक बड़े कमरे में कुछ लोग सफेद पाउडर को छोटेछोटे पाउचों में भर रहे थे. यहां नशीले पदार्थों का धंधा हो रहा था.

डेनियल ने सधे हाथों से उन के फोटो लिए. तभी ऊपर कुछ हल्लागुल्ला हुआ. डेक पर लेटे सुरक्षाकर्मी नीचे दौड़े आए. जुआ खेल रहे आपस में लड़ पड़े थे.

‘‘यहां हमारे मतलब का क्या है?’’ सुब्बा लक्ष्मी ने कहा. दोनों सीढि़यां चढ़ डेक पर आ गए. तभी सुरक्षाकर्मी भी ऊपर चढ़ आए. दोनों फिर चालक केबिन के पीछे चले गए.

जैक स्मिथ समुद्र तट से शहर को जाते एक सार्वजनिक टैलीफोन बूथ पर रुका. 10 सेंट का एक सिक्का कौइन बौक्स में डाला. डायरैक्टरी देख कर नशीले पदार्थों की रोकथाम करने वाले विभाग का नंबर डायल किया. झाड़ी में छिपाए बैग के बारे में बताया. गुमनाम रहते याटों पर चल रहे नशीले पदार्थों के धंधे के बारे में बताया.

जैक मारटीन ने तुरंत गश्ती दल को फोन किया. बैग बरामद हो गया. एक के बाद एक याट पर धावा बोला गया. अनेक पर यौनाचार हो रहा था. नशीले पदार्थ पकड़े गए. डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी को बच निकलने का मौका नहीं मिला. उन का धंधा

भी सामने आ गया. सरदार ओंकार सिंह ने पुलिस को पैसा खिला कर अपनी तसवीरें दबा दीं. ऐसा ही जैक स्मिथ ने किया. साथ ही दोनों ने इस तरह के मौजमेलों से तौबा की. एंड्र्यू डेक ने भारी हरजाना दे पत्नी को तलाक दे दिया. थोड़े दिन डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी को हिरासत में रहना पड़ा. लेकिन चूंकि उन की वजह से नशीले पदार्थों का धंधा सामने आया था, इसलिए पुलिस ने उन को चेतावनी दे कर छोड़ दिया.

दोनों थोड़े दिन शांत रहे, फिर इस निश्चय के साथ कि बड़ी मछली के चक्कर में न पड़ छोटामोटा शिकार ही पकड़ेंगे, दोनों का पपाराजी का धंधा फिर से चल पड़ा. बूढ़े, अधेड़ अपने मनबहलाव के लिए आते रहे, उन की तसवीरें खिंचती रहीं, ब्लैकमेलिंग का पैसा अदा होता रहा.

Sad Hindi Story : चीरहरण

Sad Hindi Story : रात का दूसरा पहर. दरवाजे पर आहट सुनाई पड़ी. कोई दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा था. आहट सुन कर नीतू की नींद उचट गई. वह सोचने लगी कि कहीं कोई जानवर तो नहीं, जो रात को अपने शिकार की तलाश में भटकता हुआ यहां तक आ पहुंचा हो?

तभी उसे दरवाजे के बाहर आदमी की छाया सी मालूम हुई. उस के हाथ दरवाजे पर चढ़ी सांकल को खोलने की कोशिश कर रहे थे. यह देख नीतू डर कर सहम गई. उस के पास लेटी उस की छोटी बहन लच्छो अभी भी गहरी नींद में सो रही थी. उस ने उसे जगाया नहीं और खुद ही हिम्मत बटोर कर दरवाजे तक जा पहुंची.

सांकल खोलने के साथ ही वह चीख पड़ी, ‘‘मलखान तुम… इतनी रात को तुम मेरे दरवाजे पर क्या कर रहे हो?’’ नीतू को समझते देर नहीं लगी कि इतनी रात को मलखान के आने की क्या वजह हो सकती है. वह कुछ और कहती, इस से पहले मलखान ने अपने हाथों से उस का मुंह दबोच लिया.

‘‘आवाज मत निकालना, वरना यहीं ढेर कर दूंगा,’’ कह कर मलखान पूरी ताकत लगा कर नीतू को बाहर तक घसीट लाया. आंगन के बाहर अनाज की एक छोटी सी कोठरी थी, जिस में भूसा भरा हुआ था. मलखान ने जबरदस्ती नीतू को भूसे के ढेर में पटक दिया. उस की चौड़ी छाती के बीच दुबलीपतली नीतू दब कर रह गई. मलखान उस पर सवार था.

‘‘पहले ही मान जाती, तो इतनी जबरदस्ती नहीं करनी पड़ती,’’ मलखान ने अपना कच्छा और लुंगी पहनते हुए कहा. लच्छो, जो नीतू से 2 साल छोटी थी, उस ने करवट ली, तो नीतू को अपनी जगह न पा कर उठ बैठी. दरवाजा भी खुला पड़ा था. उसे कुछ अनजाना डर सा लगा. मलखान पहले लच्छो के बदन से खेलने के चक्कर में था. 2 दिन पहले लच्छो ने उस के मुंह पर थूक दिया था, जब उस ने जामुन के पेड़ के नीचे उसे दबोचने की कोशिश की थी.

वह नीतू से ज्यादा ताकतवर और निडर थी. पर उस ने घुमा कर एक ऐसी लात मलखान की टांगों के बीच मारी कि वह ‘मर गया’ कह कर चीख पड़ा था. अचानक हुए इस हमले से मलखान बौखला गया था. वह सोच भी नहीं पाया था कि लच्छो इस तरह का हमला अचानक कर देगी. उस की मर्दानगी तब धरी की धरी रह गई थी. एक तरह से लच्छो ने उसे चुनौती दे डाली थी.

लच्छो उठी और दालान में पड़े एक डंडे को उठा लिया. वह धीरेधीरे आगे बढ़ने लगी. उस का शक सही निकला कि दीदी किसी मुसीबत में फंस गई हैं. मलखान उस समय अंधेरे में भागने की कोशिश कर रहा था कि अचानक लच्छो ने घुमा कर डंडा उस के सिर पर जड़ दिया.

डंडा पड़ते ही वह भागने लगा और भागतेभागते बोला, ‘‘सुबह देख लूंगा.’’ ‘‘क्या हुआ दीदी, तुम ने मुझे उठाया क्यों नहीं? कम से कम तुम मुझे आवाज ही लगा देतीं,’’ लच्छो रोते हुए बोली.

‘‘2 रोज पहले ही मैं ने इस की हजामत बना डाली थी, जब इस ने मुझ से छेड़छाड़ की थी.’’ ‘‘क्या…?’’ यह सुन कर नीतू तो चौंक गई.

‘‘हां दीदी, कई दिनों से वह मेरे पीछे पड़ा हुआ था. उस दिन भी वह मुझ से छेड़छाड़ करने लगा. उस दिन तो मैं ने उसे छोड़ दिया था, वरना उसी दिन उसे सबक सिखा देती,’’ लच्छो ने नीतू को सहारा दे कर उठाया और कमरे में ले गई.

दोनों बहनें एकसाथ रह कर प्राइमरी स्कूल के बच्चों को पढ़ाया करती थीं. कुछ साल पहले उन के पिता की मौत दिल का दौरा पड़ने से हो गई थी. वह बैंक में मुलाजिम थे. पिता की मौत के बाद उन की मां श्यामरथी देवी को वह नौकरी मिल गई थी. चूंकि बैंक गांव से काफी दूर शहर में था, इसलिए दोनों बेटियों को गांव में अकेले ही रहना पड़ रहा था. मां कभीकभार छुट्टी के दिनों में गांव आ जाया करती थीं. मलखान की नाक कट गई थी. एक को तो वह अपनी हवस का शिकार बना ही चुका था, पर दूसरी से बदला लेने के लिए तड़प रहा था.

एक दिन शाम के 7 बज रहे थे. दोनों बहनें खाना बनाने की तैयारी में थीं. मलखान ने अपने कुछ दोस्तों को जमा किया और लच्छो के घर पर धावा बोल दिया.

‘‘बाहर निकल, अब देख मेरा रुतबा. गांव में तेरी कैसी बेइज्जती करता हूं,’’ मलखान अपने साथियों के साथ लच्छो के घर में घुसता हुआ बोला. घर के अंदर मौजूद दोनों बहनें कुछ समझ पातीं, इस से पहले ही मलखान के साथियों ने लच्छो को पकड़ लिया और घसीटते हुए बाहर तक ले आए.

गांव की इज्जत गांव वालों के सामने नंगी होने लगी. मलखान गांव वालों के बीच चिल्लाचिल्ला कर कह रहा था, ‘‘ये दोनों बहनें जिस्मफरोशी करती हैं. इन की वजह से ही गांव की इज्जत मिट्टी में मिल गई है. हम लच्छो का मुंह काला कर के, इस का सिर मुंड़ा कर इसे गांव में घुमाएंगे.’’ दोनों बहनों का बचपन गांव वालों के बीच बीता था. गांव वालों के बीच पलबढ़ कर वे बड़ी हुई थीं. उन्हीं लोगों ने उन का तमाशा बना दिया था.

योजना के मुताबिक, गांव का हज्जाम भी समय पर हाजिर हो गया. नीतू को अपनी छोटी बहन के बचाव का तरीका समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे इन जालिमों के चंगुल से उसे बचाया जाए? वह सोच रही थी कि किसी तरह लच्छो की इज्जत बचानी है, यह सोच कर नीतू घर से निकल पड़ी. नीतू भीड़ को चीरते हुए अपनी बहन के पास जा कर खड़ी हो गई.

भीड़ में से आवाज उठी, ‘‘इस का भी सिर मुंड़वा दो.’’ नीतू पहले तो गांव वालों के बीच खूब रोईगिड़गिड़ाई. उस ने अपनेआप को बेकुसूर साबित करने के दावे पेश किए, पर किसी ने उस की एक न सुनी. बड़ेबूढ़े भी चुप्पी साध गए.

नीतू अपने घर से एक तेज खंजर उठा लाई थी. बात बिगड़ती देख उस ने वह खंजर तेजी से अपने पेट में घुसेड़ लिया. देखते ही देखते खून का फव्वारा फूट पड़ा. वह चीख कर कहे जा रही थी, ‘‘हम दोनों बहनें बेकुसूर हैं. मलखान ने ही एक दिन मेरी इज्जत लूट ली थी.’’

इसी बीच पुलिस की जीप वहां से गुजरी और वहां हो रहे तमाशे को देख कर रुक गई. नीतू ने मरने से पहले सारी बातें इंस्पैक्टर को बता दीं. कुसूरवार लोग पकड़े गए. पर नामर्द गांव वालों ने गांव की इज्जत को अपने ही सामने लुटते देखा. यह कलियुग का चीरहरण था

Romantic Story : इग्‍नोर करते ही हुई मुहब्‍बत

Romantic Story :  सुबह तारा जब विवेक  के आगोश से खुद को छुड़ा कर बाहर निकली तो विवेक के प्रति उस के मन में बसी सारी भ्रांतियां भी इस प्यार की गरमाहट में पिघल चुकी थीं और वह एक नई सुबह की किरणों की तरह नए जीवन के सपने बुनने लगी. वह यही सोच रही थी कि आखिर कैसे वह एक अनजाने से डर के कारण शादी के बाद भी पिछले 6 माह तक प्यार के इन सुनहरे लमहों को नहीं जी पाई थी क्योंकि सुहागरात के दिन ही उस ने अपने पति विवेक को एक ऐसी शर्त में बांध दिया था और उस की परीक्षा लेती रही. इस अनोखी शर्त में बंध कर दोनों इतने दिनों तक एकदूसरे का प्यार पाने के लिए तड़पते रहे.

सुबह की बयार भी तारा के जेहन में उमड़ रही लहरों को जैसे नई गति प्रदान कर रही थी और तारा की नैसर्गिक खूबसूरती में आज अजीब सी रौनक बढ़ आई थी जो पिछले 6 महीने में पहली बार ही दिखाई दी.

इन सुखद अनुभूतियों के साथ तारा उन कड़वी यादों के अतीत में खो गई जिन के कारण वह इतने दिनों तक एक घुटनभरी जिंदगी जीने को बाध्य हो गई थी.

2 बहनों और 1 भाई में सब से बड़ी तारा मम्मीपापा की सब से दुलारी होने के कारण बचपन से ही उसे जो भाता वही करती. अपनी मस्तीभरी जिंदगी में कब उस ने जवानी की दहलीज पर कदम रख दिया, उसे बिलकुल पता ही नहीं चला.
मजे से कट रही थी उस की जिंदगी, आंखों का तारा जो थी वह अपने मम्मीपापा की. उस के मम्मीपापा उसे पलकों पर बिठा कर रखते, वह भी सब पर जान छिड़कती और उन के प्रति अपना हर फर्ज निभाती.
हंसतेखेलते जब उस ने स्नातक की डिगरी अच्छे नंबरों से हासिल कर ली तो एक दिन मम्मी ने पूछा, ‘आगे क्या करने का इरादा है, बेटी?’
‘कुछ नहीं. बस, यों ही मस्ती करूंगी.’
‘मस्ती की बच्ची, मैं तो सोच रही हूं कि तेरी शादी कर दूं.’
‘नहीं मम्मी, अभी नहीं, क्यों अभी से ही मुझे अपने से दूर करने पर तुली हो?’ रोंआसी सी सूरत बना कर वह मम्मी की गोद में समा गई.
‘तो फिर कर लो कोई नौकरी, नहीं तो पापा तुम्हारी शादी कर देंगे,’ उस के बालों को सहलाते हुए मम्मी बोलीं.
‘नौ…क…री…ओके, डन. मम्मी, मैं आज से ही नौकरी की तैयारी करनी शुरू कर देती हूं. डिगरी में अच्छे अंक तो हैं ही, थोड़ी तैयारी करने पर नौकरी मिल ही जाएगी,’ उस ने चहक कर कहा.

‘तो फिर ठीक है. पर अगर 6 महीने में नौकरी नहीं मिली तो मैं तुम्हारे पापा को मना नहीं कर पाऊंगी,’ मम्मी ने उस के गालों को थपथपाते हुए कहा और अपने कमरे में चली गईं.

मम्मी के जाते ही तारा सोच में पड़ गई कि अब इस समस्या से कैसे निबटे. अखबार में तो कई रिक्तियां प्रकाशित होती हैं. क्यों न किसी अच्छी नौकरी के लिए आवेदन कर दिया जाए, यही सोच कर उस ने अखबार उठाया तो उस की नजर रिक्तियां कौलम में एक विज्ञापन पर पड़ी, ‘जरूरत है राज्य सरकार में परियोजना सहायक की. आवेदक को स्नातक होना अनिवार्य है और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होना चाहिए,’ यह देखते ही उस का चेहरा खिल उठा क्योंकि उस ने स्नातक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी, इसलिए उस ने फौरन आवेदन कर दिया.

कुछ ही दिनों में साक्षात्कार का बुलावा आया और वह पापा के साथ साक्षात्कार देने पहुंच गई. साक्षात्कार अच्छा हुआ और उसे उस के लखनऊ से दूर कानपुर में नौकरी की पेशकश की गई तो उस ने फौरन स्वीकार कर लिया कि चलो कम से कम 1-2 साल शादी के झंझट से मुक्ति मिली. थोड़े ही दिनों में उसे नियुक्तिपत्र मिल गया और तमाम औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उस ने नौकरी जौइन कर ली.

अब शुरू हुआ एक ऐसा सिलसिला जिस में सोमवार से शनिवार तक तो नौकरी में निकल जाते, फिर आती एक दिन की छुट्टी. इसलिए शनिवार आते ही तारा सारा काम जल्दीजल्दी निबटा कर दोपहर को ट्रेन पकड़ कर शाम तक लखनऊ हाजिर हो जाती, फिर सोमवार की सुबह इंटरसिटी से कानपुर पहुंच कर सीधे औफिस. यही अब तारा की साप्ताहिक दिनचर्या बन गई थी.
तारा अब अपने परिवार के साथ समय बिताना चाहती, पर व्यस्तता के कारण वह ऐसा कर नहीं पाती थी. इस तरह उस के जीवन में एक अजीब सा एकाकीपन या यों कहें कि एक खालीपन सा आ गया था जिसे वह चाह कर भी नहीं भर पा रही थी.
दिखने में सुंदर व स्मार्ट होने के कारण औफिस में वह सब की नजरों में चढ़ी रहती. एक दिन उस के एक वरिष्ठ सहयोगी रमेशजी ने उस से कहा, ‘बेटी, औफिस वाले तुम्हारे बारे में तरहतरह की गौसिप करते हैं, अकेली लड़की के बारे में अकसर ऐसी बातें तो होती ही रहती हैं. यदि तुम्हारी शादी हुई होती तो शायद लोग तुम्हारे बारे में ऐसी बातें न करते. तुम्हारी उम्र भी शादी की हो चुकी है. यदि हो सके तो जल्दी से शादी कर के सब का मुंह बंद कर दो.’
रमेशजी की बात सुन कर वह दंग रह  गई कि सामने मीठीमीठी बातें करने  वाले उस के सहयोगी उस के बारे में कैसे गंदे खयाल रखते हैं, पर वह नहीं चाहती थी कि अभी शादी के बंधन में बंधे क्योंकि इसी से बचने के लिए ही तो वह इतनी कष्टपूर्ण जिंदगी जी रही है. पर आखिर होनी को कौन टाल सकता है. समय ने करवट बदली और घर में भी शादी की चर्चा ने जोर पकड़ लिया. आखिरकार पापा ने लखनऊ में ही एक सरकारी अधिकारी विवेक से उस की शादी तय कर दी और उस से कहा कि वह चाहे तो उस से मिल कर अपनी पसंद बता दे. बुरी फंसी बेचारी, आखिरकार उसे हां करनी पड़ी और शादी की तारीख तय हो गई. मिलनेमिलाने के सिलसिले के बाद जब शादी का दिन नजदीक आया तो
1 माह की छुटटी ले कर वह अपने घर आ गई और शादी की तैयारियों में लग गई. घर में खुशी का माहौल था, घर की पहली शादी जो थी. भाई रोहन और बहन बबली तो हमेशा भागतेदौड़ते, व्यस्त नजर आते थे. घर में जीजाजी आने वाले थे, इसलिए दोनों बहुत खुश थे.

एक दिन तारा के मोबाइल पर   विवेक का फोन आया. फोन उठाते ही विवेक की आवाज आई, ‘जल्दी से तैयार हो जाओ, तारा, तुम्हारे लिए साडि़यां और गहने खरीदने बाजार चलना है.’

तारा को एक झटका सा लगा क्योंकि एक तो विवेक ने शादी तय होने के बाद से एक भी बार फोन नहीं किया और आज पहली बार फोन भी किया, वह भी ऐसे जैसे वह उस की होने वाली पत्नी नहीं बल्कि आया हो और कपड़े व गहने खरीद कर वह उस पर कोई उपकार कर रहा है. उसे गुस्सा तो बहुत आया परंतु उस ने कुछ कहने के बजाय बस इतना ही कहा, ‘ठीक है, मैं आधे घंटे में तैयार हो जाती हूं.’

‘ठीक है, तुम तैयार हो कर सहारागंज पहुंचो, मैं 1 घंटे में तुम्हें वहीं मिलूंगा,’ यह कह कर विवेक ने फोन काट दिया.
जिस रूखेपन से विवेक ने फोन पर उस से बात की थी, उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगा पर वह कुछ कहने के बजाय जल्दी से तैयार हुई और आटो पकड़ कर सहारागंज पहुंच गई. विवेक उसे वहीं मिल गया. अकेले में पहली मुलाकात, न कोई औपचारिकता और न ही कोई प्यारभरी बात. विवेक ने यह भी नहीं कहा कि चलो पिज्जाहट में चल कर पिज्जा खाते हैं और थोड़ा घूमते हैं. बस, उस ने कहा कि चलो, और दोनों हजरतगंज में खरीदारी करने निकल गए.
अपने दोस्तों से शादी के पूर्व मुलाकातों के कई रोमांटिक किस्से तारा ने सुन रखे थे पर उसे विवेक के इस व्यवहार से झटका लगा, उसे विवेक से ऐसी उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी. खरीदारी के दौरान भी विवेक तारा पर अपनी पसंद लादता रहा और उस ने वही खरीदा जो उसे पसंद था. तारा चाह कर भी कुछ बोल नहीं पाई. बस, वह विवेक के साथ घूमती रही. खरीदारी के बाद वह बेरुखे मन से उसे आटो पर बिठा कर चला गया. न कोई औपचारिकता, न कोई प्यार की बात.
तारा को लगा कि विवेक सचमुच रोमांटिक व्यक्ति नहीं है और उसे उस की पसंदनापसंद का बिलकुल भी खयाल नहीं है. यह सोचते हुए उस के मन में विवेक के प्रति कड़वाहट भर गई. उस ने सोचा कि जब विवेक ऐसा है तो उस के परिवार वाले कैसे होंगे और वह उन के साथ कैसे सामंजस्य बिठा पाएगी. पर अब वह कर भी क्या सकती थी, शादी बिलकुल करीब थी और वह घर में कोई हंगामा खड़ा नहीं करना चाहती थी.
शादी धूमधाम से संपन्न हुई. मम्मीपापा ने बड़े अरमान से अपनी सारी जमापूंजी इस शादी में लगा दी ताकि वर पक्ष को कोई शिकायत न हो. विदाई के वक्त सारा परिवार गाड़ी के आंखों से ओझल होने तक खूब रोया और वह भरे मन से ससुराल पहुंच गई. उस की सोच के विपरीत उस के ससुराल वालों ने पलकें बिछा कर उस का स्वागत किया और फिर शुरू हुई शादी के बाद की रस्मअदायगी.
शादी के पूर्व विवेक से मुलाकात ऐसी कड़वी यादें छोड़ गई थी कि जिस से पार पाना तारा के लिए मुश्किल था. वह दिनभर यही सोचती रही कि पहली मुलाकात से जो प्यार की मिठास घुलनी चाहिए उस ने कड़वाहट का रूप ले लिया और करीब आने के बजाय दिलों की दूरियां बढ़ गई थीं. बारबार उस के दिल में यही खयाल आ रहा था कि जो व्यक्ति उस के आत्मसम्मान का खयाल नहीं रख सकता, उस के साथ वह अपनी पूरी जिंदगी कैसे बिता पाएगी.
इसी बीच, सारी रस्मअदायगी पूरी होतेहोते काफी रात हो गई और सभी रिश्तेदार चले गए. अब विवेक की भाभी ने तारा को छेड़ते हुए सुहागरात के लिए उसे उस के कमरे में पहुंचा दिया और अपने कमरे में चली गईं. अंदर ही अंदर बेचैन तारा इस उधेड़बुन में थी कि ‘आखिर वह ऐसे शख्स, जिस के मन में उस के प्रति जरा सा भी प्यार नहीं है, कैसे उसे अपना सर्वस्व सौंप दे. हिंदू परंपरा में शादी के बाद उस के शरीर पर तो अब विवेक का हक था और वह उसे कैसे रोक सकती है?’ यह सोचते ही उस का चेहरा पीला पड़ने लगा.

इधर, विवेक के कुछ दोस्त उसे घेर कर पहली रात को ही ‘चिडि़या मार’ लेने की हिदायतें और नुस्खे बता रहे थे और विवेक भी सुहागरात के सपने बुनता हुआ रोमांचित हो रहा था. आखिरकार देर रात को उस के दोस्तों ने उसे कमरे में ढकेल दिया और अपनेअपने घर चले गए. विवेक के चेहरे पर तीव्र उत्तेजनाओं का ज्वार स्पष्ट नजर आ रहा था, मन तेजी से कमरे की ओर जाने को बेताब था किंतु शर्म, संकोच, संयम पारिवारिक मूल्यों की जंजीरों ने जैसे उस के पांव जकड़ रखे थे. धीरेधीरे सकुचाते हुए विवेक ने कमरे में प्रवेश किया और दरवाजा बंद कर बिस्तर की ओर बढ़ने लगा. तारा बिस्तर पर सिमटी सी, सकुचाई सी बैठी थी पर उस ने मन ही मन एक दृढ़ फैसला कर लिया था. विवेक ने सब से पहले तारा का घूंघट उठाया और उस का सुंदर चेहरा देख कर बोला, ‘तारा, आज सचमुच तुम बिलकुल चांद सी लग रही हो. आज से मैं तुम्हें तारा नहीं चंदा कहूंगा और तुम्हें संसार की सभी खुशियां देने का प्रयास करूंगा. आज से हम एक नई जिंदगी शुरू करने जा रहे हैं. बोलो, दोगी न मेरा साथ?’
विवेक के प्रति मन में कड़वाहट लिए तारा को जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दिया. विवेक ढेर सारी बातें करता रहा पर तारा यह सोचने में लगी रही कि आखिर वह विवेक को कैसे सबकुछ कह पाएगी.
अचानक विवेक को शरारत सूझी और दोस्तों की सलाह के अनुसार उस ने अपना हाथ तारा के कंधे पर रखा और फिर कंधे से नीचे सरकाना शुरू कर दिया. जैसे ही विवेक का हाथ नीचे आया, तारा उस का हाथ पकड़ते हुए बोली, ‘रुको विवेक…’
यह सुनते ही विवेक को जैसे सांप सूंघ गया. उस ने ऐसी कल्पना भी नहीं की थी कि सुहागरात के दिन उसे ऐसा सुनना पड़ेगा परंतु धैर्य से काम लेते हुए उस ने पूछा, ‘क्या बात है, चंदा?’
इतना सुनना था कि तारा शुरू हो गई, ‘विवेक, शायद इस के लिए यह समय सही नहीं है, क्योंकि हम अभी तक एकदूसरे को अच्छी तरह से समझ नहीं पाए हैं और ऐसे में मैं अपनेआप को तुम्हें सौंप नहीं सकती.
‘आज मैं ने एक फैसला लिया है कि हम 1 वर्ष तक जिस्मानी रिश्ता नहीं बनाएंगे. इस 1 वर्ष के दौरान मैं पूरी तरह से तुम्हें और तुम्हारे परिवार को समझने की कोशिश करूंगी और पूरे समर्पण के साथ तुम्हारे हर सुखदुख की साथी बनूंगी और तुम भी मेरे परिवार के सदस्यों के साथ घुलनेमिलने का प्रयास करोगे.
1 साल बाद यदि हमारा विश्वास अटूट रहा तो फिर हम हमेशा के लिए एक हो जाएंगे, वरना शायद हमारे रास्ते अलगअलग भी हो सकते हैं. ऐसे में मैं अपना सर्वस्व तुम्हें सौंप कर पछतावे में नहीं रहना चाहती.’
जैसे कोई बदले की भावना से प्रेरित हो कर बंदूक की सारी गोलियां दाग देता है और फिर एक लंबी सांस लेता है, कुछ ऐसे ही तारा एक ही सांस में सबकुछ विवेक को कह गई. तारा की बातें सुन कर विवेक को काटो तो खून नहीं. उस की हालत ऐसी हो गई थी कि उसे न कुछ कहते बनता था न ही सुनते. उस ने हाथ ऐसे हटाया मानो बिजली का झटका लग गया हो. उस समय उस ने कुछ न बोलना ही बेहतर समझा और चुपचाप तकिया उठा कर सोफे पर सोने चला गया.
अगले दिन सुबह जब दोनों कमरे से बाहर निकले तो विवेक की भाभी उन दोनों को छेड़ने लगी पर दोनों ने बिलकुल जाहिर नहीं होने दिया कि उन के बीच ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. तारा इन सब बातों को भूलते हुए घर के काम में लग गई और धीरेधीरे वह परिवार के सारे सदस्यों से घुलमिल गई और उस घर को अपना बना लिया परंतु विवेक के प्रति उस के मन में कड़वाहट वैसी ही बनी रही. दिन में तो सबकुछ ठीक चलता परंतु रात में न सिर्फ उन के बिस्तरों के बीच बल्कि उन के दिलों के बीच की दूरियां भी साफ नजर आतीं.
विवेक ने भी अपने औफिस से छुट्टी ले ली थी इसलिए वह दिनभर घर में ही रहता और बच्चों के साथ खेलता रहता. खेल की आड़ में ही वह कभीकभी तारा के शरीर से छेड़खानी भी कर देता. हालांकि विवेक के छूते ही उस के शरीर में करेंट सा दौड़ जाता पर वह चाह कर भी कुछ बोल नहीं पाती.
इसी बीच, तारा कई बार अपने मायके भी गई और विवेक को भी साथ ले गई. विवेक उसे वहां छोड़ आता पर वहां ज्यादा देर रुकता नहीं था. वह रोहन व बबली से भी ज्यादा बातें नहीं करता था. बस, गंभीर बना रहता था. यहां तक कि मम्मीपापा के साथ भी वह औपचारिक ही बना रहता. 1-2 दिन रहने के बाद विवेक आ कर उसे वापस ले आता. विवेक का यह व्यवहार भी तारा को पसंद नहीं आया और उस के मन में विवेक के प्रति कड़वाहट और बढ़ती चली गई.
इसी बीच छुट्टियां बीत जाने के बाद तारा ने फिर से औफिस जौइन कर लिया. सभी सहकर्मियों ने उसे बधाई दी पर तारा उन्हें क्या कहती? बस, मन से उस ने औफिस का काम शुरू कर दिया. दिन तो औफिस में बीत जाता पर रात आते ही तारा के मन में कई तरह के द्वंद्व शुरू हो जाते कि कहीं उस ने शादी कर के कोई गलती तो नहीं कर दी? क्या उसे अब इस रिश्ते से मुक्ति ले लेनी चाहिए जिस रिश्ते में उस के पति का उस में या उस के परिवार के प्रति कोई झुकाव न हो? वह अपनेआप से लड़ती रहती. पर वह अपना गम सुनाए तो किसे. जब उस के दोस्त उस की सुहागरात के बारे में तरहतरह की बातें पूछते और उसे छेड़ते तो तारा बनावटी कहानियां सुना कर सब को शांत कर देती.
इस दौरान, अकसर विवेक से फोन पर बातें भी होतीं पर रिश्तों की कड़वाहट इन बातों में साफ नजर आती. इस बीच वह कई बार लखनऊ भी आई और अपने घर जाने के बजाय सीधे ससुराल गई और ससुराल वालों को कभी इस का एहसास नहीं होने दिया कि उस के और विवेक के बीच कुछ अच्छा नहीं चल रहा. वह पूरे समर्पण के साथ अपने सासससुर की सेवा करती और बच्चों के साथ खेलती. घर के सारे लोग उस के व्यवहार से काफी प्रसन्न थे पर रात को विवेक के कमरे में आते ही कमरे में शांति छा जाती. विवेक ने भी कभी उसे छूने या उस के बिस्तर पर साथ सोने के लिए जबरदस्ती नहीं की.
तारा हमेशा यही सोचती रहती कि जिस तरह से उस ने विवेक के परिवार को अपना लिया है उसी तरह से विवेक भी उस के परिवार को अपना ले और उन के हर सुखदुख में शामिल हो.
यही सोच कर उस ने विवेक की पसंदनापसंद का पता लगा कर उस के अनुरूप खुद को ढालना शुरू कर दिया. जब उसे पता चला कि विवेक को डांस एवं म्यूजिक बहुत पसंद है तो उस ने औफिस के बाद एक डांस एवं म्यूजिक क्लास जौइन कर ली ताकि वह किसी मौके पर उसे सरप्राइज दे सके. और जल्दी ही वह मौका आ गया. विवेक के चाचा के लड़के की शादी में वह गई और उस ने बच्चों के साथ मिल कर खूब डांस व मस्ती की. विवेक को यह सब काफी अच्छा लगा पर वह हमेशा यही सोचता रहता कि आखिर तारा ने उस के साथ ऐसा क्यों किया.
विवेक का जन्मदिन भी करीब आ रहा था और तारा उस के लिए एक और सरप्राइज की योजना बना चुकी थी ताकि वह विवेक को सरप्राइज दे सके. अपनी योजना के अनुसार जन्मदिन के दिन उस ने पहले से ही घर के सारे सदस्यों को लखनऊ के एक रैस्तरां में भेज दिया. विवेक यही सोच रहा था कि तारा ने आज उसे जन्मदिन की बधाई तक नहीं दी. हर साल घर में भी सभी को उस का जन्मदिन याद रहता है पर आज सब बिना बताए अचानक चले कहां गए.
तभी तारा ने विवेक से कहा, ‘विवेक, मेरी सहेली प्रेरणा ने मुझे बुलाया है, क्या तुम मुझे उस के घर छोड़ दोगे?’
‘क्यों नहीं, चलो,’ बिना कुछ पूछे विवेक तारा को बाइक पर बैठा कर चल दिया.
रैस्तरां आते ही तारा ने विवेक से कहा कि चलो रैस्तरां में कौफी पीते हैं. यहां की कौफी बड़ी टेस्टी होती है.
जब विवेक और तारा कौफी का और्डर दे कर इंतजार कर रहे थे तभी पीछे से सारे बच्चों ने शोर मचाते हुए विवेक को घेर लिया और जोरजोर से चिल्लाने लगे, ‘हैप्पी बर्थडे टू यू विवेक चाचा.’
अब विवेक को समझ आया कि इस तूफान के पूर्व शांति का कारण यह था. अब तक सारा परिवार इकट्ठा हो चुका था, सब ने खूब ऐंजौय किया.
विवेक काफी खुश था. इस घटना से उस के मन में तारा के प्रति प्रेम और बढ़ गया. पर वह यह सोचने लगा कि वह कैसे तारा को खुश करे ताकि उस के मन का द्वेष मिटे और दोनों एक खुशहाल जीवन जी सकें. इस तरह शादी के 6 माह बीत गए पर तारा अब तक उस के करीब नहीं आई. तारा का जन्मदिन करीब था. विवेक ने भी सोचा कि वह तारा के जन्मदिन पर कानपुर जा कर उस के जन्मदिन को धूमधाम से मनाएगा.
यही सोच कर वह बिन बताए जन्मदिन के दिन सुबह ही तारा के घर पहुंच गया और उसे जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं और बोला, ‘आज छुट्टी ले लो तारा, हम लोग कहीं घूमने चलते हैं.’
जवाब में तारा ने कहा, ‘नहीं, विवेक, औफिस में काफी काम है और मैं पहले से बता कर भी नहीं आई हूं, इसलिए औफिस तो जाना ही पड़ेगा पर मैं कोशिश करूंगी कि दोपहर तक सारा काम निबटा कर आधे दिन की छुट्टी ले लूं.’
अचानक विवेक के कानपुर आ जाने से तारा अचंभित थी और औफिस में यही सोचती रही कि कहीं यह विवेक की कोई चाल तो नहीं क्योंकि वह तो यहां अकेले रहती है. इसलिए शायद वह इस का फायदा उठाना चाहता हो.
फिर भी अपने वादे के अनुसार वह दोपहर को छुट्टी ले कर घर आ गई और तैयार हो कर विवेक के साथ निकल गई. विवेक ने दिनभर घूमने व शाम को डिनर करने के बाद लखनऊ लौटने के बारे में कहा तो तारा ने फौरन हां कर दी और खुश होते हुए मन ही मन कहा, ‘चलो अच्छा हुआ, आज तो बच गई मैं.’
थोड़े ही दिन में सर्दियां शुरू हो गईं और रात को स्कूटी चलाने के कारण तारा को ठंड लगने से वायरल फीवर हो गया. जब उस ने विवेक को इस बारे में बताया तो वह फौरन कानपुर पहुंच कर तारा को बड़े प्यार से घर ले आया और तुरंत डाक्टर के पास ले गया. उस के चेहरे की घबराहट तारा साफसाफ पढ़ सकती थी. उसे यह एहसास हुआ कि विवेक को उस की चिंता है. उस ने अपने दफ्तर से छुट्टी ले ली और दिनभर तारा के पास ही बैठा रहता और रात को जब सब चले जाते तो वह जा कर सोफे पर सो जाता.
विवेक की प्यारभरी देखभाल से तारा जल्दी ठीक हो गई और कानपुर जाने के लिए तैयार हो गई तो विवेक ने कहा, ‘अभी नहीं, तुम काफी कमजोर हो गई हो, इसलिए थोड़े दिन आराम कर लो फिर चली जाना.’
इस प्यारभरे अनुरोध को वह टाल नहीं सकी. अगले ही दिन विवेक उसे मम्मीपापा से मिलाने ले गया. इस दौरान तारा ने महसूस किया कि विवेक बबली और रोहन के साथ काफी घुलमिल गया है और उन के साथ काफी हंसीमजाक कर रहा है. दूसरी ओर, इस बार मम्मीपापा के साथ भी उस का व्यवहार प्रेमभरा था.
तारा विवेक के चेहरे पर यह परिवर्तन साफ देख पा रही थी. परंतु उस ने सोचा कि अभी तो सिर्फ 6 माह ही बीते हैं, अभी तो वह पूरे 6 माह विवेक को परखेगी तभी उसे सच्चे मन से अपनाएगी.

2 दिन वहां रुकने के बाद विवेक रात को तारा को ले कर अपने घर लौट आया. कड़ाके की सर्दी में बाइक चलाने के कारण विवेक को सर्दी लग गई पर उस ने तारा को कुछ नहीं बताया और सोफे पर सोने चला गया.

तारा विवेक में आए परिवर्तन को ले कर काफी खुश थी और सुनहरे दिनों के सपने बुनते हुए पता नहीं कब उस की आंख लग गई.
रात को जोरजोर से कराहने की आवाज सुन कर उस की आंख खुली तो उस ने देखा कि विवेक ठंड से कंपकंपाते हुए सिकुड़ कर सोफे पर सोया है. यह देखते ही वह घबरा कर उठी और विवेक के पास जा कर उसे रजाई ओढ़ा कर बिस्तर पर लाने लगी तो विवेक ने कहा कि नहीं, मैं यहीं ठीक हूं, सुबह तक ठीक हो जाऊंगा.
तारा ने जबरदस्ती विवेक को बिस्तर पर ला कर लिटा दिया और तेजी से उस के पैर सहलाने लगी. पैर सहलाने से भी जब उस के शरीर की कंपन कम नहीं हुई तो वह बिना सोचेसमझे विवेक के सीने से लिपट गई और उसे जोर से जकड़ लिया. अचानक मिली नारी देह की गरमी से विवेक के शरीर की कंपन ठीक हो गई. आराम मिलते ही उस ने तारा से अलग होने के लिए उस की पकड़ ढीली करने को कहा तो तारा ने अपनी पकड़ और मजबूत करते हुए उसे जोर से जकड़ लिया और बोली, ‘बस, विवेक, तुम्हारे धैर्य का इम्तिहान अब खत्म हुआ, ऐसे ही पड़े रहो, बस.’
अब तक विवेक को आराम मिल चुका था. वह भावुक होते हुए बोला, ‘तारा, बचपन से ही मैं संकोची स्वभाव का हूं, मुझे कभी लड़कियों से बातें या दोस्ती करने का मौका ही नहीं मिला. इसलिए मैं कभी समझ ही नहीं पाया कि रिश्ते कैसे निभाए जाते हैं. यही कारण है कि मैं तुम से और तुम्हारे परिवार के सदस्यों से ज्यादा घुलमिल नहीं पाया परंतु जब तुम ने मेरे परिवार को अपना बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और मेरी हर पसंदनापसंद का खयाल रखा तो मैं ने सोचा कि जब तुम मेरे लिए इतना बदल सकती हो तो मैं तुम्हारे लिए क्यों नहीं बदल सकता. यही सोच कर मैं ने अपनेआप में बदलाव लाना शुरू कर दिया है.
‘बचपन से मैं ने सदैव ही आगे रहते हुए सभी कार्य किए थे और आगे रहने की इसी होड़ के चलते मुझे किसी की भावनाओं को समझने का मौका नहीं मिला और इसलिए तुम्हारे जज्बातों को न समझने की भूल कर बैठा. वैसे तारा, मैं तुम्हें कभी इग्नोर करना नहीं चाहता था,’ विवेक के स्वर में एक पश्चाताप मिश्रित दुख का भाव था, जिसे तारा ने बखूबी पढ़ लिया.
फिर वह तारा की आंखों में झांकते हुए बोला, ‘तारा, अभी कम से कम 6 महीने और तुम्हें मुझ से कोई खतरा नहीं है.’
उस की बातें सुन कर तारा अपनी आंखों में शरारत लिए विवेक के गालों को चूमते हुए बोली, ‘तारा नहीं, चंदा, तभी तो आप की चंदा कह रही है कि आप ने अपना इम्तिहान वक्त से पहले ही डिस्ंिटक्शन के साथ पास कर लिया है और इनाम के हकदार बन गए हैं. सच कहूं, विवेक,’ तारा ने सकुचाते हुए कहा, ‘मुझे भी तुम्हारे शादी के पहले के इग्नोरैंस की अपेक्षा बाद की दूरी बहुत खली, पिछले 6 महीने में हर रात मैं ने भी एक परीक्षा दी है, हर रात एक ही प्रश्न ने मेरी नींद उड़ा दी थी.’
‘कौन सा प्रश्न, चंदा?’ विवेक के चेहरे पर प्रश्नमिश्रित आश्चर्य के भाव थे.
तारा ने कहा, ‘यही कि मैं ने जो अनोखी शर्त रखी है वह सही है या गलत?’
यह कह कर विवेक की चंदा विवेक से लिपट गई. अब उन के जीवन में एक नई सुबह की शुरुआत हो चुकी है. और अनोखी शर्त अब जीवन के अनोखे आनंद में जैसे खो सी गई थी.

Online Scam : मेरे साथ औनलाइन डेटिंग स्कैम हुआ है. क्या करूं मैं?

Online Scam : कहीं एक दिन औनलाइनलाइन डेटि‍ंंगस्‍कैम आपकी समस्‍या भी न बन जाएं इसलिए सरिता में पूछे गए सवाल “मेरे साथ औनलाइन डेटिंग स्कैम हुआ है. क्या करूं मैं?”  के जबाव को समझें और सावधान रहें.  

जवाब : मैं 26 साल का हूं और एक डेटिंग ऐप पर कुछ दिनों पहले एक लड़की से मेरी चैट हुई. उस ने मुझे मिलने के लिए एक रैस्तरां सजैस्ट किया. मैं वहां उस से मिला और हम ने सिर्फ दो बर्गर, दो कोल्ड कौफी और फ्रैंच फ्राइज का और्डर दिया जिस का हमारी मीटिंग खत्म होने के बाद मुझे वेटर ने 18,000 रुपए का बिल पकड़ा दिया. इस में पता नहीं कितने तो टैक्स जोड़े हुए थे और सब चीजों की बढ़ाचढ़ा कर वैल्यू लिखी थी. मैं ने आनाकानी की तो मेरा कौलर पकड़ लिया गया. 10-12 बौक्सर टाइप लोग आ गए. डर कर मैं ने पैसे दे दिए. वह लड़की तो वहां से नौदोग्यारह हो गई. मैं समझ गया मेरे साथ स्कैम हुआ है.

मैं ने पुलिस थाने में जा कर वहां के अधिकारी को सारी बात बताई. उन्होंने कहा, ‘देखते हैं.’ लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया. मुझे कोई फोन पुलिस ने नहीं किया. मैं क्या करूं?

हम इसलिए अपनी पत्रिका सरिता, मुक्ता में डेटिंग ऐप्स पर होने वाली धोखाधड़ी से सावधान रहने के बारे में जानकारी देते रहते हैं. खैर, अगर स्थानीय पुलिस आप की शिकायत पर कार्यवाही नहीं कर रही है तो आप उच्च अधिकारियों जैसे कि डीसीपी या एसपी से सपंर्क करें.

औनलाइन पुलिस शिकायत पोर्टल या हैल्पलाइन नंबर का भी उपयोग कर सकते हैं. घटना का पूरा विवरण, रैस्टोरैंट का नाम, पता और लड़की के बारे में जानकारी पुलिस को दें. उस के साथ मिलने की जो चैट है उस का स्क्रीनशौट प्रूफ में शामिल करें, ताकि पुलिस कन्फर्म हो सके कि उसी ने उस रैस्टोरैंट का सजेशन दिया.

यदि रैस्तरां में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं तो पुलिस से वहां की फुटेज जांचने की मांग करें. यदि पुलिस से कोई मदद नहीं मिल रही है तो एक वकील से संपर्क करें. वकील आप की मदद एफआईआर दर्ज करवाने, मामले को अदालत में ले जाने में कर सकता है.

सोशल मीडिया पर पूरी घटना को सावधानीपूर्वक साझा करें. अपने परिवार और दोस्तों को इस घटना के बारे में बताएं ताकि वे आप की मदद कर सकें.

भविष्य में सतर्क रहें. डेटिंग ऐप्स का उपयोग करते समय किसी पर जल्दी भरोसा न करें. किसी जगह पर जाने से पहले उस की साख की जांच करें. अगर कोई परिस्थिति संदिग्ध लगे तो तुरंत वहां से हट जाएं.

Islamic Nations : ब्रापैंटी में घूम कर विरोध जता रही है इस्‍लामिक मुल्‍क की महिला

Islamic Nations : अमेरिका की सत्ता में हुए उलटफेर का असर भारत सहित पूरी दुनिया के देशों पर होगा खासकर उन मुसलिम देशों में अब कट्टरवाद बढ़ेगा जहां के शासक रूढि़वादी मानसिकता से ग्रस्त हैं और औरत को सिर्फ इस्तेमाल की वस्तु सम झते हैं.

शीरीन एबादी अपने देश ईरान से निर्वासित हो कर 2009 से ब्रिटेन में रह रही हैं. वे एक वकील, पूर्व न्यायाधीश और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. उन्होंने ईरान में कई मानवाधिकार केंद्रों की स्थापना की और ईरानी औरतों के अधिकारों के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. 2003 में शीरीन एबादी को लोकतंत्र और मानवाधिकारों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के अधिकारों, के लिए किए गए कार्यों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वे नोबेल पुरस्कार पाने वाली पहली ईरानी और पहली मुसलिम महिला हैं. एबादी की जिंदगी सीधी और आसान कभी नहीं रही. उन की निर्वासित जिंदगी ईरान में धार्मिक कट्टरवाद का ऐसा खूंखार चेहरा सामने लाती है जो मानवता को शर्मसार करता है.

बिलकुल वैसे ही कट्टरवाद की आग में आज अफगानिस्तान, पाकिस्तान, तुर्किस्तान, कजाखिस्तान, यूक्रेन, रूस, भारत और अमेरिका जैसे तमाम देश धधक रहे हैं. इस आग में महिलाएं ज्यादा झुलस रही हैं क्योंकि वे पुरुषों के अधीन हैं. शीरीन एबादी ने अपनी कई किताबों में इस बात का खुलासा किया है कि धार्मिक कट्टरता और रूढि़वादिता से ग्रस्त सरकारें अपनी जिद को पूरा करने के लिए लोगों को किसकिस तरह से प्रताडि़त करती हैं, खासकर औरतों को.

Islamic Nations : कई सालों तक अधिकारियों ने एबादी के पति, उन की बेटियों और बहन को निशाना बनाया. एबादी के पति को एक दिन अचानक गायब कर दिया गया. उस के बाद पुलिस ने उन्हें शराब, सैक्स और व्यभिचार के मामले में फंसा कर अदालत में पेश किया. इसलामी कानून में विवाह के बाहर सैक्स निषिद्ध है, लिहाजा अधिकारियों को उसे जेल ले जाने की खुली छूट मिल गई जहां उन्हें कोड़े मारे गए, व्यभिचार का दोषी ठहराया गया और फिर कोर्ट द्वारा उन्हें मौत की सजा सुनाई गई. लेकिन वे अधिकारियों के साथ एक सौदा कर के फांसी से बच गए.

अपनी स्वतंत्रता के बदले में एबादी के पति को एबादी की सार्वजनिक रूप से निंदा करनी पड़ी. उन को कहना पड़ा, ‘शीरीन एबादी नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने की हकदार नहीं थी. उसे पुरस्कार इसलिए दिया गया ताकि वह इसलामी गणराज्य को गिराने में मदद कर सके. वह पश्चिम, विशेष रूप से अमेरिका, की समर्थक है.’ एबादी लिखती हैं, ‘‘मैं ने अपनी कहानी इतनी खुल कर इसलिए बताई क्योंकि मैं दिखाना चाहती थी कि ईरान की सरकार क्या करने में सक्षम है. एक ऐसी सरकार जो मेरे बाल दिखने पर मु झे सड़कों पर कोड़े मार सकती है और इसलाम के नाम पर राजनीति के लिए एक सैक्सवर्कर को काम पर रखती है?’’

ईरान की शीरीन एबादी की कहानी हो या नरगिस मोहम्मदी की, पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई की या बंगलादेश की निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन की, ये तमाम नाम धार्मिक कट्टरवाद, महिला विरोधी और रूढि़वादी मानसिकता को उजागर करने वाली औरतों के हैं. लेकिन ये नाम अभी इतने कम हैं कि इन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है, जबकि धार्मिक कट्टरता पूरी दुनिया में बहुत तेजी से बढ़ रही है, जिस का पहला निशाना औरत है. धर्म औरत का सब से बड़ा शत्रु किसी ऐसे व्यक्ति के सत्ता के शीर्ष पर स्थापित होने, जो मानसिक रूप से रूढि़वादी और कट्टरपंथी हो, का सब से बुरा प्रभाव औरतों पर पड़ता है.

औरत चाहे भारत की, अमेरिका की हो, अफगानिस्तान, पाकिस्तान या ईरान जैसे देश की हो, सत्ता में धर्म के उभार ने उस की जिंदगी मुश्किल की है. एक औरत क्या पहने, क्या खाए, कैसे जिए, किस से मिले, किस से न मिले, किस से प्रेम करे, किस से विवाह करे, किस में आस्था रखे, किस में आस्था न रखे आदि तमाम बातें पुरुष तय करते हैं और उसे धर्मसम्मत बता कर स्त्री को अपने बनाए नियमों का पालन करने के लिए बाध्य करते हैं. जब किसी देश में सत्ताशीर्ष पर कोई ऐसा चालाक, रूढि़वादी, कट्टर और स्त्री को दोयम दर्जे पर रखने वाला व्यक्ति बैठता है तो उस देश के पुरुषों को स्त्री के प्रति बर्बरता करने का जैसे लाइसैंस मिल जाता है.

अगर कोई ऐसा देश है जिस में होने वाले परिवर्तनों का प्रभाव अन्य देशों पर भी पड़ता है तो अन्य देशों की स्त्रियां भी उसी प्रताड़ना से गुजरती हैं. हाल ही में अमेरिका में चुनाव संपन्न हुए हैं और डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति मनोनीत हुए हैं. ट्रंप के व्हाइट हाउस में लौटने से करोड़ों अमेरिकी महिलाओं को निराशा हुई है. दरअसल ट्रंप महिलाओं की बराबरी के व शारीरिक अधिकारों के पक्ष में नहीं हैं, जिन में एबौर्शन का अधिकार मुख्य रूप से शामिल है. ट्रंप का मानना है कि एबौर्शन पेट में पल रहे बच्चे की हत्या करना है. जबकि, आज की उदार व तार्किक महिलाएं इसे एक मूल अधिकार के रूप में देखती हैं और मानती हैं कि यह उन के अपने शरीर के स्वास्थ्य से जुड़ा एक अधिकार है और अपने शरीर के बारे में फैसला लेने का हक सिर्फ उन्हें ही होना चाहिए.

पिछले कार्यकाल में ट्रंप की पार्टी के कई सीनेटर्स ने देशभर में एबौर्शन पर बैन लगाने की इच्छा जाहिर की थी और कुछ राज्यों, जहां रिपब्लिकन पार्टी का राज है, में तो यह बैन है भी. ऐसे में महिलाओं ने ‘माय बौडी, माय चौइस’ स्लोगन के जरिए यह साफ कर दिया था कि उन के शरीर से जुड़े फैसले लेने का हक सिर्फ उन्हें ही होना चाहिए. लेकिन अब ट्रंप के सत्ता में लौटने पर इस स्लोगन पर महिलाओं के खिलाफ हेट स्पीच बढ़ रही है. ट्रंप की जीत के बाद सोशल मीडिया पर निक फुएंटेस नाम के एक यूजर ने लिखा, ‘योर बौडी, माय चौइस. फौरएवर.’ यानी कि ‘तुम्हारा शरीर, मेरी मरजी, हमेशा.’ ]ऐसा कहते हुए इस यूजर ने ‘माय बौडी, माय चौइस’ स्लोगन पर निशाना साधा.

इस के बाद सोशल मीडिया पर ट्रंप समर्थकों ने महिलाओं के खिलाफ जम कर हेट स्पीच उगली. दरअसल डोनाल्ड ट्रंप उस रूढि़वादी मानसिकता से ग्रस्त हैं जो चर्चों से निकल कर ईसाई धर्म की शुरुआत से समाज पर छाई रही है. महिला आजादी और महिला अधिकारों के खिलाफ उन्होंने कई ऐसे फैसले पिछले कार्यकाल में किए जिन्होंने अमेरिकी महिलाओं को सड़क पर आने के लिए मजबूर किया.

ट्रंप नस्लवादी मानसिकता से भी ग्रस्त हैं. अमेरिका में जबरन लाए गए गुलाम अफ्रीकियों की काली चमड़ी के प्रति उन के दिल में नफरत है, बिलकुल वैसे ही जैसे भारत में थोड़ी गोरी चमड़ी वाले सवर्णों के दिल में थोड़े काले दलितों के प्रति नफरत का गहरा भाव है. सत्ता में बैठा व्यक्ति दलितों को पांव की जूती सम झता है और अपने फायदे के लिए उस का इस्तेमाल करता है. अमेरिका में भी नस्लवादी नफरत सत्ता की देन है, जिसे यूरोप से गए श्वेत, व्हाइट्स, कट्टर और रूढि़वादी मानसिकता के शासक द्वारा बढ़ावा दिया जाता रहा है.

अमेरिका की सत्ता में हुए हालिया उलटफेर का असर भारत सहित पूरी दुनिया के देशों पर (कहीं कम कहीं ज्यादा) पड़ेगा, खासकर उन मुसलिम देशों पर जहां के शासक कट्टरता और रूढि़वादिता से ग्रस्त हैं और औरत को सिर्फ इस्तेमाल की वस्तु सम झते हैं. डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में लौटने से निसंदेह धर्म की सत्ता को बल मिलेगा क्योंकि उस के समर्थक, जिन्हें अब मागा (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) कहा जाने लगा है, धार्मिक कट्टरता से भरेपूरे हैं.

धर्म वह है जिस ने औरत के साथ कभी न्याय नहीं किया और उस को हथियार बना कर पुरुषों ने सदा नारी का शोषण किया. धर्म की सत्ता कायम होने पर पुरुष ने स्त्री को धार्मिक कर्मकांडों में उल झा कर, उसे घर की चारदीवारी में कैद कर उस की प्रगति को रोका है. वह दिनभर धार्मिक कार्य करे, पुरुष की सैक्स कामना शांत करे, उस के बच्चे पैदा करे, उन बच्चों की और परिवार की देखभाल करे, इस से ज्यादा स्त्री को कुछ हासिल न हो, धर्म की सत्ता का पूरा जोर इसी बात पर रहता है.

धर्म का फैलाव पैदा करता है मानसिक संकीर्णता भारत में भी मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य के क्षेत्र में तो न के बराबर काम हुए मगर देशभर में पूजापाठ, आरती, धार्मिक यात्राएं, व्रतत्योहारों की जैसे बाढ़ आ गई. अयोध्या में राम मंदिर बनने और उस का महिमामंडन करने व तीर्थयात्राओं के इर्दगिर्द ही पूरी शासनप्रशासन व्यवस्था सिमट कर रह गई है. होलीदीवाली जैसे त्योहार जो मोदी सरकार के सत्ता में आने से पहले तक मेलमिलाप और आपसी सौहार्द बढ़ाने वाले हुआ करते थे और जिन्हें हिंदूमुसलिम बिना विवाद के मनाते थे, वे अब एक धर्म द्वारा दूसरे के धर्म को नीचा दिखाने वाले बना डाले गए हैं.

अब हर चीज को धर्म के चश्मे से देखा और आंका जा रहा है. देशभर में हिंदू औरतें पूजापाठ, व्रत, त्योहार, आरती, धार्मिक यात्राओं, गंगास्नान आदि में लगा दी गई हैं. ट्रंप के अमेरिका की सत्ता में लौटने से मोदी सरकार की बांछें खिल गई हैं क्योंकि अब धर्म के नाम पर औरतों को दो सदी पीछे धकेलने का काम और आसान होगा. उदाहरण दिया जाएगा कि देखो, अमेरिका में भी ऐसा ही होता है.

अफगानिस्तान और ईरान जैसे देशों में भी ट्रंप के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने से धर्म के नाम पर औरतों पर जुल्म ढाने का काम आसान हो जाएगा. पहले अमेरिका दुनिया का नैतिक चौकीदार भी हुआ करता था. अब वह नैतिकता का नहीं बल्कि कट्टरता का सोल्जर हो गया है जो बंदूकों का, धर्म की कट्टरता का इस्तेमाल उसी तरह करेगा जैसा इसलामी देशों में होता है.

तालिबानी शासन में अफगानी औरतों की हालत : पहला दौर सब से बुरी हालत दुनिया में इसलामी देशों में औरतों की है. वहां औरतों की हालत अमेरिका में संभावित हालत और भारत की औरतों से कहीं ज्यादा बुरी है. अफगानिस्तान इस का केंद्र है. अफगानिस्तान पर कब्जा कर रूसी साम्राज्य को एशियाई महासागर तक पहुंचाने का सपना

1919 में कम्यूनिस्ट क्रांति से पहले वहां के सम्राटों का था. उन्हें रोकने के लिए भारत में राज कर रहे ब्रिटिश शासकों ने 3 इंडो-अफगान युद्ध लड़े जिन में वे बुरी तरह हारे. सोवियत रूस ने यह सपना साकार करना चाहा पर अफगानिस्तान ने विरोध किया और इसलामी कट्टरवादी एकता के सहारे शिकस्त दी. इन्होंने खुद को तालिबानी कहा.

तालिबान ऐसा कट्टरपंथी समूह है जो कई वर्षों के संघर्ष के बाद 1994 में उभरा. इस के कई सदस्य पूर्व मुजाहिदीन लड़ाके थे जिन्हें 80 और 90 के दशकों में अफगानिस्तान के गृहयुद्ध और रूसी कब्जे के दौरान पाकिस्तानी सेना ने प्रशिक्षित किया था. वे अफगानिस्तान को एक इसलामिक राज्य बनाने के उद्देश्य से इकट्ठे हुए और 1996 से 2001 तक इस कट्टरपंथी समूह ने अफगानिस्तान पर पूरा शासन किया और अमेरिकियों के अफगानिस्तान छोड़ने पर फिर सत्ता में हैं. तब से यह तालिबानी समूह मानवाधिकारों के हनन के लिए कुख्यात है, खासकर महिलाओं और लड़कियों के प्रति.

1996 में तालिबान के सत्ता में आने से पहले अफगानिस्तान एक पारंपरिक समाज था, जिस में एक खुलापन था, महिलाओं को अनेक अधिकार प्राप्त थे. 1970 के दशक में अफगान महिलाओं की भूमिका घरसमाज में वैसे तो पुरुष के अधीन ही थी मगर शिक्षण संस्थानों में, व्यवसायों में, मैडिकल व सिविल सेवाओं में उन का छोटा ही सही पर महत्त्वपूर्ण प्रतिशत था. वे शिक्षा प्राप्त कर रही थीं, अपने मनपसंद कपड़े पहनती थीं. मनपसंद स्थानों पर अकेले घूमने जाने में कोई रुकावट या डर उन्हें नहीं था.

1996 में तालिबान शासकों ने सत्ता में आने के बाद पहले दौर में ही अफगानिस्तान में इसलामिक शरिया कानून के अपने संस्करण को लागू किया और महिलाओं व लड़कियों पर अनेक प्रतिबंध लगाए. तालिबान ने महिलाओं को राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक जीवन में शामिल होने के अवसर से वंचित कर दिया. उन से निजी संपत्ति के अधिकार छीन लिए गए यानी औरतों को मर्दों के ऊपर आश्रित कर आर्थिक गुलाम बना दिया. नियम लागू किए गए कि लड़कियां स्कूल नहीं जा सकतीं.

बड़े क्रूर तरीके से उन पर ड्रैस कोड लागू कर उन्हें सिर से पांव तक बुर्के में रहने के लिए बाध्य किया गया. काबुल में अपने ग्राउंड और पहली मंजिल की खिड़कियों को ढकने का आदेश था ताकि अंदर की महिलाएं सड़क से दिखाई न दें. अगर कोई महिला घर से बाहर निकलती तो वह पूरे शरीर को बुर्के में लपेट कर किसी पुरुष रिश्तेदार के साथ ही निकल सकती थी. 27 सितंबर, 1996 को तालिबानी लड़ाकों ने काबुल पर कब्जा कर लिया क्योंकि अमेरिकी और पाकिस्तानी सेनाओं की सहायता से रूसियों को खदेड़ दिया गया था.

अफगानिस्तान की जनता तो रूसियों से मुक्त हो गई पर अफगानिस्तानी महिलाएं मर्दों की गुलाम बन गईं. रूसी शासन के दौरान औरतों को पूरी बराबरी मिली हो, ऐसा तो नहीं था, पर कम्यूनिस्ट रूस मूलतया बराबरी का समर्थक था और उस की कठपुतली काबुल सरकार औरतों के खिलाफ फतवे जारी नहीं करती थी.

अब निम्न कदम उठा लिए गए : 
1996 में पहले दौर में आते ही तालिबानियों ने औरतों को नौकरियों से निकाल दिया. लड़कियों के स्कूल बंद कर दिए गए और विश्वविद्यालयों से औरतों को निकाल बाहर फेंका.

औरतों को बिना नजदीकी पुरुष संबंधी के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई. घरों की खिड़कियों को बंद करने के साथ बाहर आने पर औरतों को बुर्के में ही निकलने का आदेश दिया गया.औरतें पुरुष डाक्टरों से इलाज नहीं करा सकती थीं. अस्पतालों में औरतों का इलाज केवल औरत डाक्टर ही कर सकती थीं. औरतों को बुरी तरह पीटना, खुले चौराहों पर कोड़े मारना, उन की हत्या कर देना इसलामी कानून का पालन करना था.

एक लड़की ने घर में लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया तो उस के घर वालों के सामने उस की हत्या कर दी गई. द्य एक लड़की जो किसी पुरुष के साथ थी, उस की पत्थर मारमार कर खुले मैदान में हत्या कर दी गई.एक बूढ़ी औरत की हत्या लोहे के तार से मारमार कर कर दी गई क्योंकि उस की एडि़यां दिख रही थीं. ये तालिबानी क्रूरता की चंद बानगियां हैं. अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के तहत अधिकांश महिलाएं पर्याप्त भोजन से वंचित रहीं और आज भी हैं. उन के पास नौकरी या आर्थिक आजीविका नहीं है. स्वास्थ्य देखभाल, विशेष रूप से प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल, सेवाओं तक उन की पहुंच बहुत कम या नहीं के बराबर है.

पुरुष बिना किसी दंड के घरेलू हिंसा कर सकते थे. पुरुषों को परिवार की महिला सदस्यों के साथ हिंसा करने या उसे घायल करने की छूट थी, यहां तक कि वे उन की हत्या भी कर सकते थे और इस के लिए उन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती थी, जैसे महिलाएं इंसान नहीं मुरगी या बकरा थीं, जिन्हें हलाल करना कोई जुर्म नहीं था.

Islamic Nations : इस के अलावा बलात्कार और अन्य प्रकार की हिंसा से पीडि़त महिलाओं पर नैतिक अपराध और व्यभिचार का आरोप लगाया जा सकता था और उन्हें सजा के तौर पर पत्थर मार कर मौत के घाट उतार दिया जाता था. तालिबानी शासन में अफगान महिलाओं के साथ उन के दैनिक जीवन के लगभग हर पहलू में क्रूरता की जाती थी. उदाहरण के लिए, 1996 में काबुल में एक महिला के अंगूठे का सिरा इसलिए काट दिया गया क्योंकि उस ने नेलपौलिश लगाई थी. महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने वाले और नियमों का उल्लंघन करने वाले पुरुषों के साथ भी क्रूरता होती थी.

अमेरिकी उदारता का दबाव पहले तालिबानी शासन के बाद ही अमेरिका व यूरोप के अन्य देशों में औरतों ने अफगान औरतों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी. अखबारों में लेख व रिपोर्टें छपने लगीं. अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर शोर हुआ. 2001 में तालिबानी क्रूरता के खिलाफ आवाज उठनी शुरू हुई तो अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप शुरू हुआ.

11 सितंबर, 2001 के न्यूयौर्क पर तालिबानी मुखिया ओसामा बिन लादेन द्वारा आयोजित आतंकवादी हमलों के तुरंत बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में हस्तक्षेप करते हुए एक अंतर्राष्ट्रीय सैन्य अभियान चलाया. दिसंबर 2001 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने अफगानिस्तान पर आक्रमण किया और तालिबानी सत्ता को उखाड़ फेंका.

तालिबान के कई सदस्य पड़ोसी देश पाकिस्तान भाग गए. 2001 में अफगानिस्तान की औरतें पहले तालिबान दौर की यातनाओं से आजाद हुईं. स्कूलों ने लड़कियों के लिए अपने दरवाजे खोले और महिलाएं काम पर वापस लौटीं. समानता की दिशा में प्रगति हुई. 2003 में नए संविधान में महिलाओं के अधिकारों को शामिल किया गया और 2009 में अफगानिस्तान ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा उन्मूलन कानून को अपनाया. हालांकि इस प्रगति के बावजूद अफगानी समाज में ग्रामीण व कसबाई इलाकों में महिलाओं के प्रति भेदभाव व्याप्त रहा.

2011 में अफगानिस्तान को महिलाओं के लिए ‘सब से खतरनाक देश’ बताया गया. 2001 में इस आजादी के बाद करीब 19 वर्षों तक अफगान महिलाओं ने खुली हवा में सांस ली. अफगान महिलाओं की राजनीतिक और व्यावहारिक दोनों स्थितियों में काफी सुधार हुआ. संयुक्त राज्य अमेरिका के मजबूत प्रोत्साहन के साथ 2 महिलाओं को अफगान अंतरिम प्राधिकरण में नियुक्त किया गया (डा. सिमा समर, एआईए उपाध्यक्ष और महिला मामलों की मंत्री; और डा. सुहैला सिद्दीक, सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री).

बाद में 24 जून को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति हामिद करजई की संक्रमणकालीन सरकार के मंत्रिमंडल में उन्हें फिर से नियुक्त किया गया, जबकि डा. सिमा समर को नए मानवाधिकार आयोग का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया गया. एक अन्य महिला हबीबा सोराबी ने महिला मामलों के मंत्रालय को संभाला. इस के अलावा आपातकालीन लोया जिरगा का आयोजन करने वाले 21 सदस्यीय आयोग में 3 महिलाओं को नियुक्त किया गया, जिस में उपाध्यक्ष डा. महबूबा होकुकमल भी शामिल थीं.

तालिबान ने सीमा पार पाकिस्तान में फिर एकजुट हो कर अपनी ताकत बढ़ाई और अपने निष्कासन के 10 साल से भी कम समय बाद वापस क्षेत्र पर कब्जा करना शुरू कर दिया. अगस्त 2021 तक, तालिबान फिर से सत्ता में लौट आया और पूरे देश में महिलाओं व लड़कियों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव का साम्राज्य फिर स्थापित हो गया.

अफगानिस्तान में तालिबान का दूसरा दौर इस बार तालिबान के कम सख्त होने के दावे के बावजूद एक बार फिर महिलाओं व लड़कियों को सार्वजनिक और सामाजिक जीवन से दूर कर दिया गया है. तालिबान ने महिलाओं और लड़कियों पर माध्यमिक विद्यालय में जाने, काम करने, टीवी पर आने, यहां तक कि पार्क में जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया. महिलाओं और धार्मिक व जातीय अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों का सम्मान करने के वादे के बावजूद तालिबान ने इसलामी कानून की कठोर व गलत व्याख्या लागू की. तालिबान के शासनकाल में अफगानिस्तान में प्रैस की स्वतंत्रता प्रतिबंधित है. इस के चलते अब तक 200 से अधिक समाचार संगठन बंद हो चुके हैं.

तालिबानी सरकार अपने खिलाफ किसी भी प्रदर्शन का हिंसक रूप से दमन करती है. प्रदर्शनकारियों और कार्यकर्ताओं पर नजर रखी जाती है और अकसर उन्हें गायब कर दिया जाता है. तालिबान ने एक ऐसे मंत्रालय की स्थापना की है जो उस के सद्गुण का प्रचार और बुराई की रोकथाम करता है.

नवंबर 2022 में तालिबान सरकार ने न्यायाधीशों को शरिया की अपनी व्याख्या को लागू करने का आदेश दिया. इस के कुछ हफ्तों बाद अधिकारियों ने सार्वजनिक रूप से कोड़े मारना और फांसी देना फिर से शुरू कर दिया. तालिबान के उत्पीड़न से डरे और दूसरे देशों में शरण लेने का विकल्प चुनने वाले अफगान भी चिंताजनक परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं.

पाकिस्तान में अफगान शरणार्थियों से एकत्रित साक्ष्यों से पता चलता है कि उन्हें गिरफ्तारियां, हिरासत और निर्वासन की धमकियों का सामना करना पड़ रहा है, जबकि अधिकांश के पास पहचान दस्तावेजों के लिए पंजीकरण प्रक्रिया में देरी होने के कारण वीजा की अवधि समाप्त हो गई है. विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि देश ने 2021 और 2022 में अपने वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 26 प्रतिशत खो दिया है. तालिबान की वापसी के बाद पहले महीनों में लाखों लोग गरीबी में चले गए. उन में से कई भुखमरी की ओर बढ़ रहे थे, जिन में 55 प्रतिशत आबादी भूख के गंभीर स्तर से पीडि़त थी.

खाद्य असुरक्षा की सब से खराब श्रेणियों में अफगानों की हिस्सेदारी 2024 तक घट कर 28 प्रतिशत हो गई है. कुपोषण का बो झ सब से ज्यादा गरीब परिवारों की लड़कियों पर पड़ा है. वहां लड़कियों में मृत्युदर लड़कों की तुलना में 90 प्रतिशत अधिक है. ईरान के इसलामिक राज में महिलाएं बदतर ईरान के हालात अफगानिस्तान जैसे तो नहीं हैं पर थोड़े ही कम हैं. इस के जवाब में पिछले कुछ सालों में ईरान में भी महिलाओं द्वारा ड्रैस कोड का विरोध बढ़ा है.

1979 की इसलामिक क्रांति के बाद, जिस में शाह मोहम्मद रजा पहलवी के शासन को उखाड़ फेंका गया, आयतुल्ला खोमैनी शासन में आ गए. ईरान में महिलाओं के लिए हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया. ईरान में लड़कियां स्कूलकालेज तो जा सकती हैं मगर उन को हिदायत है कि वे हिजाब में, अपने पूरे शरीर को ढांक कर ही घर से बाहर निकलें.

इस ड्रैस कोड को ले कर ईरानी औरतों में काफी आक्रोश है. ईरान में अनिवार्य ड्रैस कोड को ले कर साल 2022 में भी एक प्रोटैस्ट सामने आया था जहां महसा अमीनी की हिरासत में मौत होने के बाद महिलाओं ने अनिवार्य ड्रैस कोड के खिलाफ आवाज बुलंद की थी. हाल ही में 2 नवंबर, 2024 को एक ईरानी लड़की अहू दरयाई को यूनिवर्सिटी कैंपस में अपने कपड़े उतारने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया.

तेहरान यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली यह लड़की बिना हिजाब के यूनिवर्सिटी आई थी. वह यूनिवर्सिटी के सामने की सड़क पर जा रही थी. तभी ईरान की मोरल पुलिस कर्मचारियों ने उसे रोका और उस को थप्पड़ मारे. उस ने भी हाथ उठाया तो एक पुलिसकर्मी ने उस की कमीज फाड़ दी. फिर अहू दरयाई ने खुद ही अपनी पैंट उतार दी और ऐसे ही तेहरान की सड़कों पर चहलकदमी करती रही. बाद में पुलिस ने उस की निर्दयता से पिटाई की और उसे गिरफ्तार कर लिया. उस के बाद अहू दरयाई का क्या हुआ, वह कहां गई, इस का कोई खुलासा ईरान के समाचारपत्र नहीं करते.

सोशल मीडिया पर लड़की द्वारा सिर्फ ब्रापैंटी में घूमने की तसवीरें वायरल हुईं. कुछ सोशल मीडिया रिपोर्ट्स और प्रत्यक्षदर्शी कहते हैं कि उस लड़की को मोरल पुलिस ने बर्बरता से पीट कर कहा कि उस की इस हरकत पर वह मौत की सजा पा सकती है तो जवाब में अहू दरयाई बोली थी, ‘मैं सोए हुए ईरानी लोगों को जगाने के लिए अपनी कुर्बानी देना चाहती हूं कि तुम लोग उठो और इस निरंकुश शासन को उखाड़ फेंको.’

कहा जा रहा है कि बर्बर पिटाई के बाद अहू दरयाई का रेप कर उसे मौत के घाट उतारा जा चुका है. इस घटना के बाद से पूरे ईरान में जबरदस्त गुस्सा है. लोग अंदर ही अंदर सुलग रहे हैं और कभी भी बगावत हो सकती है. ईरानी पत्रकार मसीह अलीनेजाद ने एक्स पर इस घटना के संबंध में लिखा, ‘ईरान में यूनिवर्सिटी मोरैलिटी पुलिस ने अनुचित हिजाब के कारण एक छात्रा को परेशान किया लेकिन उस ने पीछे हटने से इनकार कर दिया. उस ने अपने शरीर को विरोध में बदल दिया, अपने कपड़े उतार दिए और कैंपस में मार्च किया.

उस ने एक ऐसी व्यवस्था को चुनौती दी जो लगातार महिलाओं के शरीर को नियंत्रित करती है. उस का यह कृत्य ईरानी महिलाओं की आजादी की लड़ाई की एक शक्तिशाली याद होगी.’ ईरानी महिलाओं ने हर जनआंदोलन में मर्दों का पूरा साथ दिया इस उम्मीद में कि उन्हें भी बराबर के लोकतांत्रिक अधिकार मिलेंगे, लेकिन राजनीति और व्यवस्था ने उन्हें हर बार ठगा और उन के दिमाग व शरीर पर बंदिशें लागू कीं.

1891 के तंबाकू विरोध से ले कर 1905-1911 के दरम्यान हुई संवैधानिक क्रांति तक में महिलाओं की महती भूमिका रही. इस संबंध में इब्राहिम तयमोरी की किताब ‘द टोबैको बायकौट’ में विस्तार से जिक्र किया गया है. इस आंदोलन में महिलाओं ने अपनी तमाम ज्वैलरी दे कर आंदोलन को मजबूती प्रदान की. मगर इस के बदले उन्हें कुछ नहीं हासिल हुआ.

जब मोजफ्फर अद-दीन शाह काजर ने नए संविधान पर हस्ताक्षर किए तो उस में महिलाओं की ओर से एजुकेशन को ले कर दिया गया प्रस्ताव शामिल नहीं था. इस के बाद ईरान में महिलाओं की लड़ाई संगठित तौर पर शुरू हुई. उसी दौरान कई महिलावादी संगठनों ने भी जन्म लिया. द एसोसिएशन औफ वुमंस फ्रीडम, सीक्रेट लीग औफ वुमेन, द वुमंस कमेटी जैसी संस्थाओं ने प्रतिरोध की आग को जिंदा रखा. नतीजतन आने वाले बरसों में लड़कियों के कई स्कूल ईरान में खुले. महिलाओं के लिए 20वीं सदी के ईरान में पहलवी शासक का वक्त कई लिहाज से बेहतर रहा.

Islamic Nations : 1936 में हिजाब बैन हुआ और 1963 में औरतों को वोट का अधिकार मिला. फैमिली प्रोटैक्शन कानून ने कई जरूरी सामाजिक समानताएं दिलाईं. लेकिन महिलाएं राजनीति में कदम बढ़ा पातीं, उस से पहले ही शाह का शासन 1979 में चला गया और देश इसलामिक रिपब्लिक बन गया. हालांकि इस की ख्वाहिश महिलाओं को भी थी. उन्हें इसलामिक रिपब्लिक में समान अधिकार मिलने की उम्मीद थी, लेकिन वे फिर निराश हुईं. इसलामिक रिपब्लिक में उन की आजादी पूरी तरह छीन ली गई.

जिन महिला संगठनों को इतनी मेहनत से खड़ा किया गया था, उन्हें रूढि़वादी और कट्टर सरकार ने बंद करा दिया. तमाम महिला वर्कर्स भूमिगत हो गईं. तब आधी आबादी के अधिकारों का जो दमन शुरू हुआ वह अभी तक जारी है. 20वीं सदी का पूरा इतिहास ईरानी महिलाओं के प्रतिरोध का गवाह रहा है. फरवरी 1994 में होमा दरबी नाम की महिला ने हिजाब उतार कर खुद को आग लगा ली.

2017 में विदा मोवहाद नाम की एक लड़की ने हिजाब को सार्वजनिक तौर पर उछाला और उस तसवीर ने ‘द गर्ल्स औन द रिवोल्यूशन स्ट्रीट’ नाम के आंदोलन की शुरुआत की. सोशल मीडिया के दौर में क्रांति का तरीका भी बदला. लिबरल ढंग से कपड़े पहनना, गीत गाना और डांस करना – ईरान में ये विरोध के नए तौरतरीके बने.

महसा अमीनी के बाद इस प्रतिरोध ने जो विस्तार पाया उसे सरकार तमाम कोशिशों के बाद भी दबा नहीं पाई. अमीनी की मौत के बाद 2022 के विरोध प्रदर्शनों में महिलाओं ने हैडस्कार्फ उछाले, बाल काटे, सैनिटरी पैड से सीसीटीवी कैमरों को ढक दिया. ऐसे ही एक प्रदर्शन के दौरान यूनिवर्सिटी की स्टूडैंट हमीद रेजा को गोली मारी गई थी. इंस्टाग्राम पर उस की आखिरी पोस्ट थी, ‘अगर इंटरनैट हमेशा के लिए बंद हो जाए तो यह मेरी अंतिम पोस्ट होगी. ‘

लौंग लिव वुमन, लौंग लिव फ्रीडम, लौंग लिव ईरान.’ 2022 के प्रदर्शनों के बाद ईरान में सख्ती बढ़ी है तो महिलाओं का विरोध भी तीव्र हुआ है. ईरान में करीब 20 लाख छात्राएं हैं. उन में से बहुतेरी दीवारों पर ग्रैफिटी बना कर और दूसरे कलात्मक तरीकों से अपनी आवाज उठा रही हैं. छात्राओं का कहना है कि यूनिवर्सिटी में हिजाब को ले कर पहले से ज्यादा सख्ती बरती जा रही है, निगरानी बढ़ गई है. हालांकि, समाज भी बदल रहा है.

साल 2020 का एक सर्वे बताता है कि 75 प्रतिशत ईरानियों ने हिजाब को जरूरी बनाए जाने का विरोध किया, जबकि इसलामी क्रांति के वक्त यह संख्या महज एकतिहाई थी. विरोध की दबी चिनगारी तेहरान यूनिवर्सिटी जैसी घटना के रूप में सामने आ जाती है. ईरानी महिलाएं प्रतिरोध करना कभी नहीं भूलीं, बस नाम और चेहरे बदल जाते हैं. मगर यह कब तक चलेगा? पितृसत्ता और धर्म की बेडि़यों से उन्हें कब मुक्ति मिलेगी, कहना मुश्किल है. खासकर अब जब दुनिया का बाप कहलाने वाले देश अमेरिका का शासन एक कट्टर और धार्मिक अंधता में ग्रस्त व्यक्ति के हाथ में आ गया है जो औरतों को मर्दों के लिए खिलौना मानता है, उन्हें पालतू बिल्ली मानता है और मुल्लाओं की तरह के पादरियों के बल पर सत्ता में आ बैठा है.

विश्व के अन्य मुसलिम देश दुनियाभर में 50 से अधिक मुसलिम देश हैं, इन में से अधिकतर देशों में मुसलिम महिलाओं की स्थिति दयनीय है. ईरान, ईराक हो या हो सीरिया, अफगानिस्तान, हर देश में महिलाओं को हिजाब पहनने, मर्दों की शारीरिक इच्छाओं को पूरा करने और उन के घरपरिवार की देखभाल करने के लिए प्रताडि़त किया जाता है. मुसलिम देशों में महिलाओं के ऊपर कई तरह की बंदिशें थोपी गई हैं.

मध्य अफ्रीकी गणराज्य में 61 फीसदी महिलाओं की स्थिति बहुत ही बुरी है. वहां पर अधिकतर महिलाओं का निकाह 14 साल की उम्र में ही कर दिया जाता है. इसी तरह से दक्षिणी अफ्रीकी देश सोमालिया में भी सिर्फ 2 फीसदी महिलाएं ही आधुनिक सुखसुविधाओं का लाभ उठा पाती हैं. सोमालिया की महिलाओं की मृत्युदर भी काफी उच्च है. हालात ये हैं कि वहां पर अगर एक लाख बच्चों का जन्म होता है तो उन में से 829 महिलाएं मार दी जाती हैं.

ऐसे ही चाड में मात्र 16 वर्ष की आयु में ही लड़कियों का निकाह कर देते हैं. चाड, अफ्रीका में हालात इतने बदतर हैं कि प्रति एक लाख बच्चों के जन्म पर 1,140 महिलाओं की मौत हो जाती है. वहीं सीरिया, पश्चिम एशिया, में भी स्थिति बहुत खराब है. सीरिया में एक लाख महिलाओं की मौत में 75 महिलाओं की मृत्यु हिंसा के कारण होती है. महिलाओं के साथ यौनहिंसा आम बात है. वहां नई क्रांति के बाद कुछ बदलेगा, इस की उम्मीद नहीं है. कांगो भी अफ्रीका महाद्वीप का लोकतांत्रिक गणराज्य है, जहां 51 फीसदी मुसलिम महिलाएं पुरुषों द्वारा प्रताडि़त की जाती हैं. आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो कांगो में प्रति 1,000 महिलाओं में से 124 महिलाएं मात्र 18 साल की आयु में ही मां बन जाती हैं.

सूडान में हालात बदतर

सूडान इसलामिक राष्ट्र है. वहां केवल 5 फीसदी महिलाएं ही ऐसी हैं जो खुद को आर्थिक रूप से सशक्त बना पाती हैं. वहां 100 में से एक गर्भवती महिला की मौत हो जाती है. क्षेत्रफल के आधार पर सूडान अफ्रीका का तीसरा सब से बड़ा देश है. इस की राजधानी खार्तूम है. सूडान की लगभग 91 प्रतिशत आबादी मुसलिम है. पुरुष कट्टरवाद के समर्थक हैं और औरतों पर हावी रहते हैं. गृहयुद्ध से जू झ रहे सूडान के हालात काफी खराब हैं.

खराब हालात का सब से बुरा असर महिलाओं पर पड़ा है. गरीबी, भुखमरी से जू झ रही बहुतेरी महिलाओं को खाने के लिए बलात्कार का शिकार होना पड़ रहा है करीब डेढ़ साल से चल रहे गृहयुद्ध में. हजारों लोगों की मौत के अलावा करीब एक करोड़ लोग विस्थापित हुए हैं. विस्थापितों में महिलाओं और बच्चों की हालत दयनीय है. देश की आधी से ज्यादा आबादी खाद्य असुरक्षा का सामना कर रही है.

अप्रैल 2023 में संघर्ष शुरू होने के बाद महिलाओं के साथ बड़े पैमाने पर बलात्कार की खबरें आने लगीं. सूडान का समाज इसलामिक कट्टरपंथ का शिकार रहा है. सूडान में महिलाओं की साक्षरता दर दुनिया में सब से कम है. अनुमान है कि दक्षिण सूडान में केवल 8 फीसदी महिलाएं ही साक्षर हैं. जबरन कम उम्र में शादी के जाल में फंसी लड़कियों को स्कूल की पढ़ाई जारी रखने की अनुमति नहीं है. वहां का पारिवारिक कानून बालविवाह को वैध मानता है. पत्नी को अपने पति का आज्ञाकारी होना आवश्यक है.

 

तुर्की में औरतों की हालत बहुत खराब

इस्तांबुल की ब्यूटीशियन एमीन डिरिकन ने एक अच्छी पत्नी बनने की भरपूर कोशिश की, लेकिन उस के पति को यह पसंद नहीं था कि वह काम करे, लोगों से मिलेजुले या उस के बगैर घर से अकेली बाहर जाए. एमीन ने जब भी अपने पति को सम झाने की कोशिश की, वह उस पर बुरी तरह भड़क गया. एमीन ने आखिरकार अपने मांबाप को वह घटना बताई थी जब उस के पति ने उसे जानवरों की तरह पीटा. उस ने बताया, ‘‘उन्होंने मु झे बांध दिया. मेरे हाथ, मेरे पैर पीछे से, जैसे जानवरों को बांधते हैं. फिर उस ने मु झे बैल्ट से पीटा और कहा, ‘तुम मेरी बात सुनोगी, मैं जो भी कहूंगा, तुम उस का पालन करोगी.’’

एमीन पति की हिंसा से परेशान हो कर अपने मातापिता के साथ रहने लगी. एक दिन एमीन का पति उस के मांबाप के घर पहुंचा. वह जोर दे कर बोला कि वह बदल गया है. एमीन ने उस पर भरोसा किया और उस को घर में आने दिया. घर में दाखिल होते ही वह रसोई में घुस गया जहां एमीन की मां काम कर रही थीं. उस ने एमीन की मां के बाल पकड़ कर उन्हें फर्श पर फेंक दिया और बंदूक निकाल कर एमीन पर फायर कर दिया. फिर वह बंदूक लिए उस की मां की तरफ पलटा और ट्रिगर दबाया पर गोली फंस गई. उस ने झुं झला कर बंदूक के पिछले हिस्से से उन के सिर पर वार किया. एमीन के पैर की मुख्य धमनी में गोली लगने से अत्यधिक रक्तस्राव के कारण उस का देहांत हो गया. आखिरी वक्त वह अपने पिता की बांहों में रोते हुए कह रही थी, ‘मैं मरना नहीं चाहती.’ यह अकेली एमीन की कहानी नहीं है. तुर्की की अधिकांश महिलाएं बलात्कार और औनरकिलिंग की शिकार हैं, खासकर कुर्दिस्तान में.

बुद्धिजीवियों और एजेंसियों द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि तुर्की के लोगों के साथसाथ तुर्की में रह रहे प्रवासी महिलाओं के साथ भी व्यापक घरेलू हिंसा होती है. तुर्की में महिलाओं की हत्या एक पुराना मुद्दा है. वर्ल्ड पौपुलेशन रिव्यू में बिस्कोलरली की रिपोर्ट की मानें तो दुनिया में सब से खूबसूरत महिलाएं तुर्की में पाई जाती हैं. तुर्की की 40 प्रतिशत महिलाओं ने शारीरिक यौनहिंसा का अनुभव किया है. लगभग दोतिहाई तुर्की महिलाओं के पास व्यक्तिगत आय नहीं है. श्रमबल में तुर्की महिलाओं की भागीदारी मात्र 24 प्रतिशत है.

तुर्की में महिलाओं को रोजगार और कुछ क्षेत्रों में शिक्षा में काफी भेदभाव का सामना करना पड़ता है. तुर्की देश में महिला हत्या पर आधिकारिक आंकड़े नहीं रखता है और महिलाओं की हत्याओं के बारे में कोई नियमित डेटा भी जारी नहीं करता है. अधिकांश आंकड़े गैरसरकारी मानवाधिकार संगठनों से आते हैं. दूसरे इसलामिक देशों में भी यही कहानी दोहराई जा रही है, कहीं कम, कहीं ज्यादा. ज्यादा तेल होने के कारण खाड़ी के मुसलिम देशों में औरतें शान से तो रहती हैं पर उन के अधिकार कम हैं. यह मसला इतना बड़ा है कि इस पर किताबों पर किताबें लिखी गई हैं. यहां तो सिर्फ एक झलकी दिखाई गई कि धार्मिक कट्टरता की शिकार दूसरे धर्मों के लोगों से ज्यादा अपने धर्म को मानने वाली, अपने बिस्तर पर सोने वाली, अपने बच्चों की मां, अपनी बेटी, अपनी खुद की मां सभी औरत होने के कारण शिकार बनती हैं.

Relationship Story : दौड़

Relationship Story : आ फिस जाने से पहले बेमन से निशा ने मोबाइल से अपनी ससुराल का नंबर मिलाया. फोन उस की सास ने उठाया.

‘‘नमस्ते, मम्मीजी. कल रात क्या आप सब लोग कहीं बाहर गए हुए थे?’’ अपनी आवाज में जरा सी मिठास लाते हुए निशा बोली.

‘‘हां, कविता के बेटे मोहित का जन्मदिन था इसलिए हम सब वहां गए थे. लौटने में देर हो गई थी.’’

कविता उस की बड़ी ननद थी. मोहित के जन्मदिन की पार्टी में उसे बुलाया ही नहीं गया, इस विचार ने उस के मूड को और भी ज्यादा खराब कर दिया.

‘‘मम्मी, रवि से बात करा दीजिए,’’ निशा ने जानबूझ कर रूखापन दिखाते हुए पार्टी के बारे में कुछ भी नहीं पूछा और अपने पति रवि से बात करने की इच्छा जाहिर की.

‘‘रवि तो बाजार गया है. उस से कुछ कहना हो तो बता दो.’’

‘‘मुझे आफिस में फोन करने को कहिएगा. अच्छा मम्मी, मैं फोन रखती हूं, नमस्ते.’’

‘‘सुखी रहो, बहू,’’ सुमित्रा का आशीर्वाद सुन कर निशा ने बुरा सा मुंह बनाया और फोन रख दिया.

‘बुढि़या ने यह भी नहीं पूछा कि मैं कैसी हूं…’ गुस्से में बड़बड़ाती निशा अपना पर्स उठाने के लिए बेडरूम की तरफ चल पड़ी.

 

कैरियर के हिसाब से आज का दिन निशा के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण व खुशी से भरा था. वह टीम लीडर बन गई है. यह समाचार उसे कल आफिस बंद होने से कुछ ही मिनट पहले मिला था. इसलिए इस खुशी को वह अपने सहकर्मियों के साथ बांट नहीं सकी थी.

आफिस में निशा के कदम रखते ही उसे मुबारकबाद देने वालों की भीड़ लग गई. अपने नए केबिन में टीम लीडर की कुरसी पर बैठते हुए निशा खुशी से फूली नहीं समाई.

रवि का फोन उस के पास 11 बजे के करीब आया. उस समय वह अपने काम में बहुत ज्यादा व्यस्त थी.

‘‘रवि, तुम्हें एक बढि़या खबर सुनाती हूं,’’ निशा ने उत्साही अंदाज में बात शुरू की.

‘‘तुम्हारा प्रमोशन हो गया है न?’’

‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’ निशा हैरान हो उठी.

‘‘तुम्हारी आवाज की खुशी से मैं ने अंदाजा लगाया, निशा.’’

‘‘मैं टीम लीडर बन गई हूं, रवि. अब मेरी तनख्वाह 35 हजार रुपए हो गई है.’’

‘‘गाड़ी भी मिल गई है. अब तो पार्टी हो जाए.’’

‘‘श्योर, पार्टी कहां लोगे?’’

‘‘कहीं बाहर नहीं. तुम शाम को घर आ जाओ. मम्मी और सीमा तुम्हारी मनपसंद चीजें बना कर रखेंगी.’’

रवि का प्रस्ताव सुन कर निशा का उत्साह ठंडा पड़ गया और उस ने नाराज लहजे में कहा, ‘‘घर में पार्टी का माहौल कभी नहीं बन सकता, रवि. तुम मिलो न शाम को मुझ से.’’

‘‘हमारा मिलना तो शनिवारइतवार को ही होता है, निशा.’’

‘‘मेरी खुशी की खातिर क्या तुम आज नहीं आ सकते हो?’’

‘‘नाराज हो कर निशा तुम अपना मूड खराब मत करो. शनिवार को 3 दिन बाद मिल ही रहे हैं. तब बढि़या सी पार्टी ले लूंगा.’’

‘‘तुम भी रवि, कैसे भुलक्कड़ हो, शनिवार को मैं मेरठ जाऊंगी.’’

‘‘तुम्हारे जैसी व्यस्त महिला को अपने भाई की शादी याद है, यह वाकई कमाल की बात है.’’

‘‘मुझे ताना मार रहे हो?’’ निशा चिढ़ कर बोली.

‘‘सौरी, मैं ने तो मजाक किया था.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ कि मेरठ रविवार की सुबह तक पहुंच जाओगे न?’’

‘‘आप हुक्म करें, साले साहब के लिए जान भी हाजिर है, मैडम.’’

‘‘घर से और कौनकौन आएगा?’’

‘‘तुम जिसे कहो, ले आएंगे. जिसे कहो, छोड़ आएंगे. वैसे तुम शनिवार की रात को पहुंचोगी, इस बात से नवीन या तुम्हारे मम्मीडैडी नाराज तो नहीं होंगे?’’

‘‘मुझे अपने जूनियर्स को टे्रनिंग देनी है. मैं चाह कर भी पहले नहीं निकल सकती हूं.’’

‘‘सही कह रही हो तुम, भाई की शादी के चक्कर में इनसान को अपनी ड्यूटी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.’’

‘‘तुम कभी मेरी भावनाओं को नहीं समझ सके,’’ निशा फिर चिढ़ उठी, ‘‘मैं अपने कैरियर को बड़ी गंभीरता से लेती हूं, रवि.’’

‘‘निशा, मैं फोन रखता हूं. आज तुम मेरे मजाक को सहन करने के मूड में नहीं हो. ओके, बाय.’’

रवि और निशा ने एम.बी.ए. साथसाथ एक ही कालिज से किया था. दोनों के बीच प्यार का बीज भी उन्हीं दिनों में अंकुरित हुआ.

 

रवि ने बैंक में पी.ओ. की परीक्षा पास कर के नौकरी पा ली और निशा ने बहुराष्ट्रीय कंपनी में. करीब 2 साल पहले दोनों ने घर वालों की रजामंदी से प्रेम विवाह कर लिया.

दुलहन बन कर निशा रवि के परिवार में आ गई. वहां के अनुशासन भरे माहौल में उस का मन शुरू से नहीं लगा. टोकाटाकी के अलावा उसे एक बात और खलती थी. दोनों अच्छा कमाते हुए भी भविष्य के लिए कुछ बचा नहीं पाते थे.

उन दोनों की ज्यादा कमाई होने के कारण हर जिम्मेदारी निभाने का आर्थिक बोझ उन के ही कंधों पर था. निशा इन बातों को ले कर चिढ़ती तो रवि उसे प्यार से समझाता, ‘हम दोनों बड़े भैया व पिताजी से ज्यादा समर्थ हैं, इसलिए इन जिम्मेदारियों को हमें बोझ नहीं समझना चाहिए. अगर हम सब की खुशियों और घर की समृद्धि को बढ़ा नहीं सकते हैं तो हमारे ज्यादा कमाने का फायदा क्या हुआ? मैडम, पैसा उपयोग करने के लिए होता है, सिर्फ जोड़ने के लिए नहीं. एकसाथ मिलजुल कर हंसीखुशी से रहने में ही फायदा है, निशा. सब से अलगथलग हो कर अमीर बनने में कोई मजा नहीं है.’

निशा कभी भी रवि के इस नजरिये से सहमत नहीं हुई. ससुराल में उसे अपना दम घुटता सा लगता. किसी का व्यवहार उस के प्रति खराब नहीं था पर वह उस घर में असंतोष व शिकायत के भाव से रहती. उस का व रवि का शोषण हो रहा है, यह विचार उसे तनावग्रस्त बनाए रखता.

निशा को जब कंपनी से 2 बेडरूम वाला फ्लैट मिलने की सुविधा मिली तो उस ने ससुराल छोड़ कर वहां जाने को फौरन ‘हां’ कर दी. अपना फैसला लेने से पहले उस ने रवि से विचारविमर्श भी नहीं किया क्योंकि उसे पति के मना कर देने का डर था.

फ्लैट में अलग जा कर रहने के लिए रवि बिलकुल तैयार नहीं हुआ. वह बारबार निशा से यही सवाल पूछता कि घर से अलग होने का हमारे पास कोई खास कारण नहीं है. फिर हम ऐसा क्यों करें?

‘मुझे रोजरोज दिल्ली से गुड़गांव जाने में परेशानी होती है. इस के अलावा सीनियर होने के नाते मुझे आफिस में ज्यादा समय देना चाहिए और ज्यादा समय मैं गुड़गांव में रह कर ही दे सकती हूं.’

निशा की ऐसी दलीलों का रवि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था.

अंतत: निशा ने अपनी जिद पूरी की और कंपनी के फ्लैट में रहने चली गई. उस के इस कदम का विरोध मायके और ससुराल दोनों जगह हुआ पर उस ने किसी की बात नहीं सुनी.

रवि की नाराजगी, उदासी को अनदेखा कर निशा गुड़गांव रहने चली गई.

 

रवि सप्ताह में 2 दिन उस के साथ गुजारता. निशा कभीकभार अपनी ससुराल वालों से मिलने आती. सच तो यह था कि अपना कैरियर बेहतर बनाने के चक्कर में उसे कहीं ज्यादा आनेजाने का समय ही नहीं मिलता.

अच्छा कैरियर बनाने के लिए अपने व्यक्तिगत जीवन की कठिनाइयों को निशा ने कभी ज्यादा महत्त्व नहीं दिया. अपने छोटे भाई नवीन की शादी में वह सिर्फ एक रात पहले पहुंचेगी, इस बात का भी उसे कोई खास अफसोस नहीं था. अपने मातापिता व भाई की शिकायत को उस ने फोन पर ऊंची आवाज में झगड़ कर नजरअंदाज कर दिया.

‘‘शादी में हमारे मेरठ पहुंचने की चिंता मत करो, निशा. आफिस के किसी काम में अटक कर तुम और ज्यादा देर से मत पहुंचना,’’ रवि के मोबाइल पर उस ने जब भी फोन किया, रवि से उसे ऐसा ही जवाब सुनने को मिला.

शनिवार की शाम निशा ने टैक्सी की और 8 बजे तक मेरठ अपने मायके पहुंच गई. अब तक छिपा कर रखी गई प्रमोशन की खबर सब को सुनाने के लिए वह बेताब थी. अपने साथ बढि़या मिठाई का डब्बा वह सब का मुंह मीठा कराने के लिए लाई थी. उस के पर्स में प्रमोशन का पत्र पड़ा था जिसे वह सब को दिखा कर उन की वाहवाही लूटने को उत्सुक थी.

टैक्सी का किराया चुका कर निशा ने अपनी छोटी अटैची खुद उठाई और गेट खोल कर अंदर घुस गई.

घर में बड़े आकार वाले ड्राइंगरूम को खाली कर के संगीत और नृत्य का कार्यक्रम आयोजित किया गया था. तेज गति के धमाकेदार संगीत के साथ कई लोगों के हंसनेबोलने की आवाजें भी निशा के कानों तक पहुंचीं.

 

निशा ने मुसकराते हुए हाल में कदम रखा और फिर हैरानी के मारे ठिठक गई. वहां का दृश्य देख कर उस का मुंह खुला का खुला रह गया.

निशा ने देखा मां बड़े जोश के साथ ढोलक बजा रही थीं. तबले पर ताल बजाने का काम उस की सास कर रही थीं.

रवि मंजीरे बजा रहा था और भाई नवीन ने चिमटा संभाल रखा था. किसी बात पर दोनों हंसी के मारे ऐसे लोटपोट हुए जा रहे थे कि उन की ताल बिलकुल बिगड़ गई थी.

उस की छोटी ननद सीमा मस्ती से नाच रही थी और महल्ले की औरतें तालियां बजा रही थीं. उन में उस की जेठानी अर्चना भी शामिल थी. अचानक ही रवि की 5 वर्षीय भतीजी नेहा उठ कर अपनी सीमा बूआ के साथ नाचने लगी. एक तरफ अपने ससुर, जेठ व पिता को एकसाथ बैठ कर गपशप करते देखा. अपनी ससुराल के हर एक सदस्य को वहां पहले से उपस्थित देख निशा हैरान रह गई.

उन के पड़ोस में रहने वाली शीला आंटी की नजर निशा पर सब से पहले पड़ी. उन्होंने ऊंची आवाज में सब को उस के पहुंचने की सूचना दी तो कुछ देर के लिए संगीत व नृत्य बंद कर दिया गया.

लगभग हर व्यक्ति से निशा को देर से आने का उलाहना सुनने को मिला.

मौका मिलते ही निशा ने रवि से धीमी आवाज में पूछा, ‘‘आप सब लोग यहां कब पहुंचे?’’

‘‘हम तो परसों सुबह ही यहां आ गए थे,’’ रवि ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

निशा ने माथे पर बल डालते हुए पूछा, ‘‘इतनी जल्दी क्यों आए? मुझे बताया क्यों नहीं?’’

रवि ने सहज भाव से बोलना शुरू किया, ‘‘तुम्हारी मम्मी ने 3 दिन पहले मुझ से फोन पर बात की थी. उन की बातों से मुझे लगा कि वह बहुत उदास हैं. उन्हें बेटे के ब्याह के घर में कोई रौनक नजर नहीं आ रही थी. तुम्हारे जल्दी न आ सकने की शिकायत को दूर करने के लिए ही मैं ने उन से सब के साथ यहां आने का वादा कर लिया और परसों से यहीं जम कर खूब मौजमस्ती कर रहे हैं.’’

‘‘सब को यहां लाना मुझे अजीब सा लग रहा है,’’ निशा की चिढ़ अपनी जगह बनी रही.

‘‘ऐसा करने के लिए तुम्हारे मम्मीपापा व भाई ने बहुत जोर दिया था.’’

 

निशा ने बुरा सा मुंह बनाया और मां से अपनी शिकायत करने रसोई की तरफ चल पड़ी.

मां बेटी की शिकायत सुनते ही उत्तेजित लहजे में बोलीं, ‘‘तेरी ससुराल वालों के कारण ही यह घर शादी का घर लग रहा है. तू तो अपने काम की दीवानी बन कर रह गई है. हमें वह सभी बड़े पसंद हैं और उन्हें यहां बुलाने का तुम्हें भी कोई विरोध नहीं करना चाहिए.’’

‘‘जो लोग तुम्हारी बेटी को प्यार व मानसम्मान नहीं देते, तुम सब उन से…’’

बेटी की बात को बीच में काट कर मां बोलीं, ‘‘निशा, तुम ने जैसा बोया है वैसा ही तो काटोगी. अब बेकार के मुद्दे उठा कर घर के हंसीखुशी के माहौल को खराब मत करो. तुम से कहीं ज्यादा इस शादी में तुम्हारी ससुराल वाले हमारा हाथ बंटा रहे हैं और इस के लिए हम दिल से उन के आभारी हैं.’’

मां की इन बातों से निशा ने खुद को अपमानित महसूस किया. उस की पलकें गीली होने लगीं तो वह रसोई से निकल कर पीछे के बरामदे में आ गई.

कुछ समय बाद रवि भी वहां आ गया और पत्नी को इस तरह चुपचाप आंसू बहाते देख उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा तो निशा उस के सीने से लग कर फफक पड़ी.

रवि ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘तुम अपने भाई की शादी का पूरा लुत्फ उठाओ, निशा. व्यर्थ की बातों पर ध्यान देने की क्या जरूरत है तुम्हें.’’

‘‘मेरी खुशी की फिक्र न मेरे मायके वालों को है न ससुराल वालों को. सभी मुझ से जलते हैं… मुझे अलगथलग रख कर नीचा दिखाते हैं. मैं ने किसी का क्या बिगाड़ा है,’’ निशा ने सुबकते हुए सवाल किया.

‘‘तुम क्या सचमुच अपने सवाल का जवाब सुनना चाहोगी?’’ रवि गंभीर हो गया.

निशा ने गरदन हिला कर ‘हां’ में जवाब दिया.

‘‘देखो निशा, अपने कैरियर को तुम बहुत महत्त्वपूर्ण मानती हो. तुम्हारे लक्ष्य बहुत ऊंचाइयों को छूने वाले हैं. आपसी रिश्ते तुम्हारे लिए ज्यादा माने नहीं रखते. तुम्हारी सारी ऊर्जा कैरियर की राह पर बहुत तेजी से दौड़ने में लग रही है…तुम इतना तेज दौड़ रही हो… इतनी आगे निकलती जा रही हो कि अकेली हो गई हो… दौड़ में सब से आगे, पर अकेली,’’ रवि की आवाज कुछ उदास हो गई.

‘‘अच्छा कैरियर बनाने का और कोई रास्ता नहीं है, रवि,’’ निशा ने दलील दी.

‘‘निशा, कैरियर जीवन का एक हिस्सा है और उस से मिलने वाली खुशी अन्य क्षेत्रों से मिलने वाली खुशियों के महत्त्व को कम नहीं कर सकती. हमारे जीवन का सर्वांगीण विकास न हो तो अकेलापन, तनाव, निराशा, दुख और अशांति से हम कभी छुटकारा नहीं पा सकते हैं.’’

‘‘मुझे क्या करना चाहिए? अपने अंदर क्या बदलाव लाना होगा?’’ निशा ने बेबस अंदाज में पूछा.

‘‘जो पैर कैरियर बनाने के लिए तेज दौड़ सकते हैं वे सब के साथ मिल कर नाच भी सकते हैं…किसी के हमदर्द भी बन सकते हैं. जरूरत है बस, अपना नजरिया बदलने की…अपने दिमाग के साथसाथ अपने दिल को भी सक्रिय कर लोगों का दिल जीतने की,’’ अपनी सलाह दे कर रवि ने उसे अपनी छाती से लगा लिया.

 

निशा ने पति की बांहों के घेरे में बड़ी शांति महसूस की. रवि का कहा उस के दिल में कहीं बड़ी गहराई तक उतर गया. अपने नजदीकी लोगों से अपने संबंध सुधारने की इच्छा उस के मन में पलपल बलवती होती जा रही थी.

‘‘मैं बहुत दिनों से मस्त हो कर नाची नहीं हूं. आज कर दूं जबरदस्त धूमधड़ाका यहां?’’ निशा की मुसकराहट रवि को बहुत ताजा व आकर्षक लगी.

रवि ने प्यार से उस का माथा चूमा और हाथ पकड़ कर हाल की तरफ चल दिया. उसे साफ लगा कि पिछले चंद मिनटों में निशा के अंदर जो जबरदस्त बदलाव आया है वह उन दोनों के सुखद भविष्य की तरफ इशारा कर रहा था.

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