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Laws : ट्रांसजेंडर, सरोगेसी जैसे विषय और 1947 के बाद के कानून

Laws :  इस शृंखला में 1947 के बाद की सरकारों की नीतियों और उन के दैनिक कामकाज, राजनीति या विदेशी मामलों और भ्रष्टाचार की समीक्षा नहीं की जा रही है. इस शृंखला का उद्देश्य यह परखना है कि 1947 के बाद केंद्र सरकार ने जो कानून बनाए या संविधान संशोधन किए उन से समाज सुधार हुआ तो वह क्या है. केवल सरकार चलाने के उद्देश्य से बनाए गए किसी कानून की समीक्षा नहीं की जा रही है, इस में वे कानून हैं जिन का जनता और समाज पर व्यापक असर पड़ा.

 क्या कानून हमेशा समाज सुधार का रास्ता दिखाते हैं या कभीकभी सत्ता के इरादों का मुखौटा बन जाते हैं? 2014 से 2024 के बीच बने कानूनों की तह में झांकें तो भारतीय लोकतंत्र की तसवीर कुछ अलग ही नजर आती है.

संसद का सब से प्रमुख कार्य कानून बनाना होता है. दूसरा, यह कि जनता के दैनिक मुद्दों और सरकार के कामकाज पर बहस हो सके. कानूनों के जरिए समाज में उठने वाले मतभेद और संघर्ष दूर किए जा सकते हैं तो वहीं जनता को विभाजित भी किया जा सकता है. यह सत्ता में बैठे लोगों के हाथों और उन के विवेक पर निर्भर है.

1947 के बाद सत्ता में बैठे लोगों के हाथों उन के विवेक से बने कानूनों को देखने सम?ाने के बाद यह कहा जा सकता है कि 2014 के पहले बने बहुत से कानूनों के जरिए समाज सुधार की दिशा में काफी काम हुआ. इस की चर्चा पिछली किस्तों में इस शृंखला में की गई है. इस शृंखला में उन कानूनों की बात नहीं की गई जो सरकार चलाने के लिए बनाए जाते हैं, उन कानूनों में ऐसे कानून भी थे जिन्होंने जनता के हक छीने थे पर इस शृंखला में उन की बात नहीं की गई है.

वर्ष 2014 से 2024 तक बहुमत में मौजूद हिंदुओं के लिए बने कानूनों में समाज सुधार का कोई कानून बना हो, यह पता करना मुश्किल काम है. सही समाज सुधार वाले कानून तब बनते जब संसद को लोकतांत्रिक तरीके से चलाया जाता. इस दौरान विपक्ष की आवाज को बंद करने का काम तो किया ही गया, सत्तापक्ष के सांसदों को भी किसी बिल या सामाजिक सरोकार के मुद्दे पर बोलने का मौका नहीं मिला.

फैसलों की कोई समीक्षा न मंत्रिमंडल में हुई न संसद में

एक तरह से नरेंद्र मोदी की भारी बहुमत वाली सरकार का शासन वैसा ही रहा जैसा रामराज में था. बिना अपनी बात रखने का मौका दिए सीता का निष्कासन हुआ. लक्ष्मण को मृत्युदंड दिया गया. बिना भाइयों की मौजूदगी के राम का राज्याभिषेक करने की चेष्टा की गई. श्रवण कुमार की हत्या के लिए राजा दशरथ ने कोई दंड नहीं भोगा. शंबूक के वेद कंठस्थ करने पर दंड देने के लिए कोई पूछताछ नहीं की गई.

प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने सामान्य हिंदू राजाओं जैसे काम किए. उन के फैसलों की कोई समीक्षा मंत्रिमंडल में हुई संसद में. जो कहा, वही कानून बन गया. उन्होंने संसद के नए भवन का शिलान्यास और उद्घाटन राजाओं के जैसे खुद ही किया. यहां तक कि उन्होंने देश के सर्वोच्च नागरिक यानी महामहिम राष्ट्रपति को भी उन के दलित या आदिवासी होने के कारण इन अवसरों पर आगे नहीं रखा.

सैकुलरिज्म यानी धर्मनिरपेक्षता को भुला कर अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास और उद्घाटन भी उन्होंने खुद ही किए. इन 10 सालों के दौरान नरेंद्र मोदी धार्मिक राजा के रूप में ही नजर आए. भारतीय जनता पार्टी, जो पहले जनसंघ के नाम से थी, के मूल मुद्दे जम्मूकश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना, अयोध्या में राममंदिर निर्माण और देश में समान नागरिक संहिता कानून लागू करना थे. नरेंद्र मोदी ने केंद्र में अपने 10 वर्षों के राज में इन पर ही काम किया. समाज सुधार का कानून उन की सरकार के लिए कोई मुद्दा नहीं था. ये काम समाज के सुधार के नहीं थे क्योंकि इन से रोजमर्रा के जीवन पर कोई असर नहीं पड़ा.

संसद चली नहीं, कैसे बने कानून

2014 से 2019 तक चली 16वीं लोकसभा के दौरान कुल 17 सत्रों में 331 बैठकें हुईं. विपक्षी दलों के सांसदों के साथ सत्तापक्ष का व्यवहार ठीक होने के कारण गतिरोध बना रहा और हंगामे हुए. सो, 127 से ज्यादा घंटे हंगामों के भेंट चढ़ गए. नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने सवर्ण वोटबैंक को खुश करने के लिए 10 फीसदी गरीब सवर्णों को आरक्षण देने का काम इसी लोकसभा में किया. इसे सवर्णों के समाज सुधार का काम कहा जा सकता है.

इस के लिए संविधान में अनुच्छेद 15 (6) और 16 (6) को संशोधित किया गया. मंडल आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद आरक्षण 50 फीसदी हो गया था. उसे कम करने के लिए ऊंची जातियों के गरीबों के लिए यह 10 फीसदी आरक्षण लाया गया. एक तरह से यह सीमित समाज सुधार था क्योंकि सवर्णों की यह शिकायत बढ़ रही थी कि उन से ज्यादा संपन्न दूसरीतीसरी पीढ़ी के एससी और ओबीसी वाले आरक्षण पाने के बाद शिक्षा संस्थानों में प्रवेश ले सरकारी नौकरियां हासिल कर रहे हैं.

एक तरह से यह कदम गलत नहीं है क्योंकि चाहे इस से भाजपा के मूल वोटरों को ही संतुष्टि मिले, समाज में इन मुद्दों को ले कर विवाद रहे, यह गलत हैसरकार का काम किसी भी तरह समाज के हर बड़े हिस्से को संतुष्ट रखना होता है क्योंकि देश तभी उन्नति करता है. समर्थ, जातिगत उच्चता का भाव रखने वालों को लौलीपौप दे कर संसद के इस संशोधन से हजारों युवाओं को थोड़ा संतोष हुआ कि पिछड़ों और दलितों का हिस्सा कुछ कम हुआ.

16वीं और 17वीं लोकसभा यानी 2014 से 2024 में जो कानून बने वे शोरगुल के बीच और पर्याप्त बहस के बिना पारित किए गए. ये कानून सरकार ने जल्दबाजी में बनाए. 92 की संख्या में बने ये कानून केवल शासन करने के लिए बनाए गए. इन के अलावा वे कानून बनाए गए जिन का धार्मिक वोटबैंक बढ़ाने में उपयोग किया जा सके.

17वीं लोकसभा में तमाम ऐसे काम हुए जिन से सरकार की मनमरजी करने का पता चलता है. किसी कानून को बनाने से पहले उस के बिल को सदन में चर्चा के लिए पेश किया जाता है. चर्चा में समय लगता है. कई बार आपसी विचारविमर्श के चलते लंबे समय तक इन बिलों पर चर्चा होती रहती है. 17वीं लोकसभा के कार्यकाल के दौरान 58 फीसदी बिल 2 सप्ताह के भीतर पारित कर दिए गए. इस का मतलब यह है कि इन पर पूरी तरह चर्चा नहीं हुई. देश के अलगअलग सांसदों की राय नहीं ली गई. संसद में बहस का कोई मतलब नहीं रह गया.

जम्मूकश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 और महिला आरक्षण विधेयक 2023 तो पेश होने के 2 दिनों के भीतर ही पारित कर दिए गए. 35 फीसदी विधेयक लोकसभा में एक घंटे से भी कम की चर्चा अवधि के साथ पारित कर दिए गए. 20 फीसदी से कम विधेयक समितियों को भेजे गए जहां कुछ सांसद पूरी चर्चा कर के अपनी सिफारिशें सदनों को देते हैं. 16 फीसदी विधेयक ही विस्तृत समीक्षा के लिए समितियों को भेजे गए.

2019 से 2023 के बीच औसतन लगभग 80 फीसदी बजट पर भी बिना चर्चा के ही मतदान हो गया. वर्ष 2023 में तो पूरा बजट ही बिना चर्चा के पारित कर दिया गया. 13 दिसंबर, 2023 को 2001 में संसद पर हुए आतंकी हमले की बरसी के अवसर पर गंभीर सुरक्षा उल्लंघन का मामला सामने आया जब लोकसभा में शून्यकाल के दौरान 2 युवा सागर शर्मा मनोरंजन डी सार्वजनिक दीर्घा से सभाकक्ष में कूद आए और उन्होंने रंगीन धुंआ छोड़ते कनस्तरों से पीला धुंआ छोड़ते हुए नारेबाजी की.

विपक्षी सांसद संसद में 2 लोगों के घुस आने की घटना पर बहस कराए जाने की मांग कर रहे थे. इस मांग को करने वाले 141 सासंदों को संसद से निकाला गया था. इन में 95 लोकसभा और 46 राज्यसभा के सांसद थे. इस से पहले इतनी बड़ी संख्या में सांसदों का निलंबन कभी नहीं हुआ था.

जिन सांसदों को निलंबित किया गया था उन में महुआ मोइत्रा जैसी नई सांसद से ले कर मनोज ?, जयराम रमेश, रणदीप सिंह सुरजेवाला, प्रमोद तिवारी, फारूक अब्दुल्ला, शशि थरूर, मनीष तिवारी, डिंपल यादव जैसे अनुभवी दिग्गज सांसद भी शामिल थे जो बहसों में जम कर भाग लेते थे. 2014 से ले कर 2024 तक सदन में नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाया गया था जिस से कि विपक्ष की आवाज को दबाया जा सके.

अधर में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग

2014 में इस की शुरुआत में न्याय प्रणाली को प्रभावित करने की कोशिश के तहत ही एनजेएसी एक्ट लाया गया.

सुप्रीम कोर्ट की नियुक्तियां अपने हाथों में करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा भी था कि भारत सरकार न्यायिक नियुक्तियों में अपनी अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका के लिए दबाव बना रही है. ‘कौलेजियम सिस्टमपिछले 25 वर्षों से भारतीय न्यायिक स्वतंत्रता को सुरक्षा देता रहा है. मोदी सरकार इस के खिलाफ रही है.

मोदी सरकार ने अगस्त 2014 में संसद में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग यानी एनजेएसी विधेयक 2014 के साथ संविधान (99वां संशोधन) विधेयक 2014 पारित किया जिस में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कौलेजियम प्रणाली के स्थान पर एक स्वतंत्र आयोग के गठन का प्रावधान था.

यह अधिनियम कौलेजियम प्रणाली के बजाय उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कहने को पारदर्शी विविध प्रक्रिया तय करने के लिए लाया गया था लेकिन असल में इस का उद्देश्यकौलेजियम सिस्टमको ध्वस्त करना था और प्रधानमंत्री के हाथों में नियुक्ति करने का अधिकार सौंपना था. यह कानून बन नहीं सका. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह संशोधन संविधान के मूल ढांचों के खिलाफ है.

काले कानून जैसी थी नोटबंदी

 नरेंद्र मोदी की सरकार किस तरह मनमाने फैसले कर रही थी, इस का एक बडा उदाहरण 2016 में हुई नोटबंदी भी थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8 नवंबर, 2016 को अचानक रात 8 बजे टीवी पर आए और देश में नोटबंदी लागू कर दी. इस के तहत 1,000 और 500 रुपए के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया. इस के बदले 500 और 2 हजार रुपए के नए नोट चलन में लाए गए.

मोदी सरकार का यह फैसला बिना किसी तैयारी, संसद में सलाह या बहस के लिया गया था. भारतीय रिजर्व बैंक तक को सही तरह से इसे लागू करने का समय नहीं मिला. जिन घरों में शादियां होनी थीं, जिन के घर में कोई बीमार पड़ गया, जिन को किसी भी तरह की इमरजैंसी आई वे परेशान हुए. बैंकों और एटीएम के सामने लंबीलंबी लाइनें लगीं.

तमाम सारी दिक्कतों के कारण 100 से अधिक लोग मारे गए थे. नोटबंदी के फैसले के खिलाफ 58 याचिकाएं कोर्ट में दाखिल की गई थीं. जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बैंच ने कहा कि आर्थिक फैसलों को बदला नहीं जा सकता और यह कहते याचिकाओं को खारिज कर दिया था.

कालाधन सामाजिक समस्या नहीं है. यह सरकारी समस्या है. जिस धन पर सरकार को टैक्स नहीं मिला हो, वह कालाधन हो जाता है. रिश्वत के अलावा बाकी सारा धन असल में मेहनत की कमाई होती है पर सरकार उसे कालाधन कहती है क्योंकि उस पर इन्कम टैक्स, सेल्स टैक्स, औक्ट्रौय आदि नहीं दिए गए या कम दिए गए. नोटबंदी लागू होने के पहले ही दिन से लग रहा था कि इस से कालाधन समाप्त नहीं हो पाएगा.  

नोटबंदी के 8 साल बीतने के बाद भी देश की अर्थव्यवस्था में कालाधन बना हुआ है. रिश्वतखोरी खत्म नहीं हुई है. आतंकवाद अभी भी चल रहा है. आज केवल 500 रुपए के नोट चलन में हैं. 2 हजार रुपए का नोट चलन से बाहर कर दिया गया है. जब चलन से बाहर ही करना था तो इस को चलाया क्यों गया था? यह सवाल सामने है.

अभी भी आतंकवाद खत्म नहीं हुआ है. नोटबंदी जिन कारणों से लागू की गई वे जस के तस मौजूद हैं. समाज को नुकसान हुआ क्योंकि छोटे व्यापारियों का कामधंधा ठप सा हो गया. लाखों औरतों द्वारा छिपाया गया पैसा बाहर निकाल कर पतिबेटों के हवाले करना पड़ा. लाइन में लग सकने वालों ने कमाया पर जो लाइनों में नहीं लग सकते थे उन्हें सरकारी लूट का खमियाजा उठाना पड़ा.

पिंडारी डाकुओं की तरह लोगों के वर्षों से जमा पैसे छीन लिए गए. समाज आज भी कराह रहा है. यह समाज सुधार नहीं, समाज विध्वंस का कदम था.

जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स 2017

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) एक मूल्य वर्धित कर (वैट) है जो केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा वस्तुओं सेवाओं पर सामूहिक रूप से लगाया जाता है. केंद्रीय जीएसटी (सीजीएसटी) और राज्य जीएसटी (एसजीएसटी) वाली दोहरी संरचना के बाद, जीएसटी परिषद द्वारा तैयार राजस्व वितरण में जीएसटी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

जीएसटी परिषद केंद्र और राज्यों के केंद्रीय वित्त मंत्री, राजस्व या वित्त के प्रभारी केंद्रीय राज्यमंत्री, वित्त या कराधान के प्रभारी मंत्री या प्रत्येक राज्य सरकार द्वारा नामित किसी अन्य मंत्री का एक संयुक्त मंच है, जो जीएसटी से संबंधित महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर संघ और राज्यों से सिफारिशें करता है. इस में भारतीय जनता पार्टी का भारी बहुमत है और विपक्षी दलों की सरकारों की के बराबर सुनवाई होती है. जनता को जिस सुधार की जरूरत होती है उस की तो चर्चा भी नहीं होती.

यह बात अपनी जगह सही है कि जीएसटी ने कर बाधाओं को कम किया है. पिछली कर प्रणाली में विनिर्माण और उत्पादन के हर चरण में कर जोड़ा जाता था जिस से वस्तु का मूल्य मार्जिन बढ़ जाता था. ‘कर पर करकी प्रणाली को खत्म करने और हर स्तर पर रिश्वतखोरी देरी को रोकने के लिए यह कागजों पर सुधार का काम था.

जीएसटी प्रणाली शुरू की गई थी जिस से कि रिश्वत बारबार देनी पड़े. लेकिन जो पैसा सरकार के रिश्वतखोर खाते थे, अब वह पैसा चार्टर्ड अकाउंटैंटों और कंप्यूटर औपरेटरों को देना पड़ जाता है क्योंकि उन के बिना जीएसटी रिटर्न नहीं भरा जा सकता. इस से समाज को कोई लाभ हुआ हो, बेरोजगारी घटी हो, सरकारी रिश्वतखारी कम हुई हो ऐसा दावा नहीं किया जा सकता.

जीएसटी लागू होने से छोटे कारोबार खत्म हो गए हैं. जिस बिजनैसमैन को जीएसटी नहीं देना उसे भी अपने बिजनैस का हिसाबकिताब रखने के लिए अकाउंटैंट रखना पड़ता है.

मुसलिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2018

मुसलिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2018 को साधारण तौर पर तीन तलाक कानून के रूप में जाना जाता है. सरकार इस कानून को समाज सुधार से जोड़ती है. असल में यह कानून मुसलिम पतियों को जेल भेजने वाला कानून है.

जेल जाने के बाद महिला का जीवन थाना, कचहरी और कानून के बीच फंस जाता है. इस विधेयक में मुसलिम महिलाओं को तीन तलाक से संरक्षण देने के साथ पुरुषों को दंड देने का प्रावधान भी किया गया.

मुसलिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक दिसंबर 2017 में लोकसभा में पारित हो गया था, लेकिन राज्यसभा में यह पारित नहीं हो सका था. इस के बाद सरकार ने इस मुद्दे पर अध्यादेश जारी किया जिसे राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी. सरकार ने नए सिरे से मुसलिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2018 के रूप में लोकसभा में पेश किया. यह पारित हो गया.

इस कानून में तीन तलाक के मामले को दंडनीय अपराध माना गया है, जिस में 3 साल तक की सजा हो सकती है. मजिस्ट्रेट को पीडि़ता का पक्ष सुनने के बाद सुलह कराने और जमानत देने का अधिकार है. मुकदमे से पहले पीडि़ता का पक्ष सुन कर मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकता है. पीडि़ता उस के रक्त संबंधी और विवाह से बने उस के संबंधी ही पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करा सकते हैं.

इस विधेयक की धारा 3 के अनुसार, लिखित या किसी भी इलैक्ट्रौनिक विधि से एकसाथ तीन तलाक कहना अवैध तथा गैरकानूनी होगा.

तीन तलाक कोतलाकबिद्दतभी कहा जाता है. इसेइंस्टैंट तलाकया मौखिक तलाक भी कहते हैं. इस में पति एक ही बार में तीन बार तलाक, तलाक, तलाक कह कर तलाक ले लेता था.

मोदी सरकार ने अगर समाज सुधार के लिए यह कानून बनाया होता तो उसे हिंदुओं की शादी और विवाद के मसलों को जल्द सुलझाने के लिए भी कानून बनाना चाहिए था. पारिवारिक अदालतों में दिनप्रतिदिन हिंदू पतिपत्नी विवाद के मामले बढ़ते जा रहे हैं. इस के कारण नए युवा लड़केलड़कियां शादी करने से डरने लगे हैं. वे अकेले रहने को प्राथमिकता देने लगे हैं. इस समस्या को हल करने की जरूरत है.

यह कानून मुसलिम समाज को सीमित राहत देने वाला है पर 3 तलाक देने का अपराधीकरण करना इस का लाभ समाप्त कर गया. कोई औरत अपने बच्चों के बाप को जेल भेजने की कोशिश आसानी से नहीं करती.

इस कानून का असर उलटा हुआ है. जहां उत्तर प्रदेश में 1985 से अगस्त 2019 तक 63,400 मामले अदालतों में पहुंचे थे, नए कानून बनने के बाद सिर्फ 281 मामले अब तक दर्ज हुए हैं. मुसलिम पुरुष नए कानून से बचने के लिए औरतों को यों ही छोड़ रहे हैं. बहुत कम मामलों में औरतें थानों में पहुंच रही हैं. जो उत्तर प्रदेश में हुआ है वैसा ही अन्य राज्यों में हुआ है.

मुसलिम औरतें सुरक्षित हैं, यह तो नहीं कहा सकता है, हां, हिंदू पुरुष खुश हैं कि मुसलिम पति तुरंत तलाक नहीं दे सकता. यह मामला समाज सुधार का कम हिंदूमुसलिम विवाद का ज्यादा है.

नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019

2019 में ही नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) बना. इस को सब से ज्यादा अल्पसंख्यक विरोधी कानून माना जाता है जो भारत में मुसलिम प्रवासियों को अन्य धार्मिक समूहों के समान नागरिकता के रास्ते से वंचित करता है.

नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के तहत, 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आने वाले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने का मौका दिया गया.

नागरिकता संशोधन कानून असल में भारतीय जनता पार्टी के मूल मुद्दे हिंदूमुसलिम विवाद को जिंदा रखने का था. इसे समाज सुधार या नागरिकता प्रदान करने वाला कानून कहना गलत होगा. इस प्रकार के कानून यूरोप में यहूदियों को परेशान करने के लिए एडोल्फ हिटलर के जरमनी में सत्ता में आने के दौरान कई देशों में बने थे.

जम्मूकश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मूकश्मीर को विशेष दर्जा देता था. 1947 से भारत और पाकिस्तान के बीच यह विवाद का विषय रहा है. जम्मूकश्मीर 17 नवंबर, 1952 से 31 अक्तूबर, 2019 तक भारत के एक राज्य के रूप में था और अनुच्छेद 370 ने इसे एक अलग संविधान, एक राज्य ध्वज और आंतरिक प्रशासन की आजादी दे रखी थी. अनुच्छेद 370 शुरू से ही राजनीतिक मुद्दा था, सामाजिक नहीं. कश्मीर की जनता को इस कानून से कोई खास लाभ था, बाकी देश की जनता को कोई खास नुकसान था.

अब भी जम्मूकश्मीर में चुनाव के बाद वहां पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल करने के लिए संघर्ष चल रहा है. ऐसे में राज्य का विकास कैसे होगा, यह बड़ा सवाल है जो अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद भी बना हुआ है. वहां का हिंदू समाज, जो कश्मीर छोड़ कर आया था, इस नए संविधान संशोधन कानूनों के बाद लौटा नहीं है.

भारतीय कृषि अधिनियम 2020

जिस जमींदारी को आजादी के पहले दशक में समाप्त किया गया था और जमीनों को किसानों में बांटा गया था जिस से जमीन की मिल्कियत का बंटवारा हुआ था, उसे सरकार द्वारा 2020 में पिछले दरवाजे से कंपनियों को जमींदार बनाने के लिए तीन कृषि कानून बना डाले गए थे. इन को कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम 2020, कृषक (सशक्तीकरण संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम 2020 और आवश्यक वस्तुएं संशोधन अधिनियम 2020 के नाम से जाना गया. लोकसभा ने 17 सितंबर, 2020 को और राज्यसभा ने 20 सितंबर, 2020 को विधेयकों को मंजूरी दी. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 27 सितंबर, 2020 को अपनी सहमति दी.

किसानों को डर था कि इस से सरकार द्वारा गारंटीकृत मूल्य सीमा समाप्त हो जाएगी. जिस से उन्हें अपनी फसलों के लिए मिलने वाली कीमतें कम हो जाएंगी और ग्रामीण समाज और गरीब हो जाएगा.

इस के चलते इन तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध, प्रदर्शन और धरना शुरू हो गया. 12 जनवरी, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी और कृषि कानूनों से संबंधित किसानों की शिकायतों पर गौर करने के लिए एक समिति बना दी.

2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों से पहले 19 नवंबर, 2021 को टैलीविजन संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माफी मांगते हुए इन कानूनों को निरस्त करने की बात कह दी. इस के बाद संसद में ये कानून वापस ले लिए गए. इन जबरदस्ती के कानूनों को वापस लेने का कार्य सुधार का कहना चाहें तो कह सकते हैं.

ट्रांसजैंडर्स अधिकारों व संरक्षण अधिनियम 2019

मोदी सरकार ने समाज सुधार वाला कोई कानून बनाया है तो वह ट्रांसजैंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 है जिसे 26 नवंबर, 2019 को पारित किया. यह अधिनियम ट्रांसजैंडर व्यक्तियों के अधिकारों और कल्याण की रक्षा के लिए बनाया गया है. इस अधिनियम के तहत, ट्रांसजैंडर व्यक्तियों को कई तरह के अधिकार लाभ दिए गए हैं जो उन्हें आम लोगों की गिनती में लाते हैं.

इस के तहत, ट्रांसजैंडर को खुद अपनी लिंग पहचान चुनने की अनुमति है. ट्रांसजैंडर व्यक्ति को पहचान प्रमाणपत्र जारी किया जाता है. इस प्रमाणपत्र के लिए जिला मजिस्ट्रेट को आवेदन करना होता है. अधिनियम के तहत, ट्रांसजैंडर व्यक्तियों को शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा और सार्वजनिक परिवहन जैसी सुविधाओं का लाभ दिया जाता है.

सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021

यह औरतों का अपने बदन पर पूरा हक होने संबंधी एक कानून है. देश में बांझापन की समस्या तेजी से बढ़ती जा रही है. ऐसे में सरोगेसी को सरल बनाने की जरूरत थी. मोदी सरकार ने इस कानून में भी समाज सुधार की जगह पर इस को उलझने वाला काम किया है. सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021 भारत में सरोगेसी से जुड़े कानूनी, नैतिक और सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने वाला विधाई ढांचा है. यह अधिनियम सरोगेसी की प्रथा को कानूनी करने के लिए बनाया गया है पर इस ने औरतों की कोख पर कब्जा कर लिया.

इस अधिनियम के तहत, केवल परोपकारी सरोगेसी की अनुमति है. इस में सरोगेट को कोई आर्थिक लाभ नहीं मिलता. इस बिंदु में उलझन हैं, इस कानून के अनुसार सरोगेसी के लिए पात्रता मानदंड तय किए गए हैं. सरोगेसी के लिए राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड और राज्य सरोगेसी बोर्ड के गठन किए गए हैं. इन के दखल से सरोगेसी कराने वालों की गोपनीयता नहीं रह पाएगी.

सरोगेसी प्रक्रिया से पैदा हुए बच्चे को इच्छुक दंपती का जैविक बच्चा माना जाएगा. पर सरोगेसी से जुड़े अपराधों के लिए 10 साल तक की जेल और 10 लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है.

वाणिज्यिक सरोगेसी करना या उस का विज्ञापन करना अपराध माना जाएगा. सरोगेट मां का शोषण करना सरोगेट बच्चे को छोड़ना, उस का शोषण करना या उस से संबंध तोड़ना अपराध माना जाएगा.

सरोगेसी में सरकार और कानून की जगह पर महिला को फैसले लेने का हक होना चाहिए जो इस कानून में नहीं है. सरकार सोचती है कि औरतों को अपने बदन पर पूरा हक नहीं है. हक तो सरकार का है. सरोगेसी के अंतर्गत गर्भ में किस का भ्रूण पल रहा है, यह सरकारी बोर्ड तय करेगा. चोरीछिपे सरोगेसी के मामले इस से बढ़ेंगे, इस में शक नहीं है. यह कदम औरतों के हक छीनने वाला है.

न्यायिक कानून में बदलाव

आईपीसी और सीआरपीसी को बदल कर मोदी सरकार ने 3 आपराधिक कानून साल 2023 में भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता नाम से बनाए. इन को एक क्रांतिकारी कदम के रूप में प्रचारित किया जा रहा है.

असल में यह इंग्लिश नामों का हिंदीकरण से अधिक कुछ नहीं है. इन से पुलिस और न्याय व्यवस्था पर असर पड़ने वाला नहीं है. इस की वजह से उल?ानें बढ़ गई हैं.

भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संहिता 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की जगह ले ली. 650 से ज्यादा जिला न्यायालयों और 16,000 पुलिस थानों के लिए यह नई व्यवस्था चुनौती जैसी थी. इन चुनौतियों का नुकसान जेल में बंद आरोपी को झेलना पडे़गा क्योंकि उस की जमानत को ले कर इन कानूनों में कोई वादा नहीं किया गया है.

ये कानून केवल बदलाव मात्र के लिए हैं. इन से समाज पर कोई असर पड़ेगा, यह समझ नहीं रहा है.

महिला आरक्षण अधिनियम 2023

मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में महिला वोटरों को खुश करने के लिए महिला आरक्षण अधिनियम 2023 पारित किया. यह कानून कैसे और कब लागू होगा, इस का किसी को पता नहीं है. महिला आरक्षण कानून बनाने के लिए संविधान में 106वां संशोधन भी अधिनियम 2023 में किया गया. इस के तहत, लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए एकतिहाई सीटें आरक्षित की जाएंगी. यह आरक्षण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा.

महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों का रोटेशन हर परिसीमन के बाद किया जाएगा. पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण पहले से है. 73वें संशोधन अधिनियम के तहत पंचायती राज निकायों में कुल सीटों में से एकतिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं. जो काम पहले की सरकारों ने किया उन की सही नकल भी मोदी सरकार नहीं कर पाई. उस के पास इस बात का जवाब नहीं है कि महिला आरक्षण कब से लागू होगा.

कहां है समाज सुधार

2019 से 2024 के दूसरे कार्यकाल में नरेंद्र मोदी की सरकार ने जो कानून बनाए उन में समाज सुधार की जगह पर हिंदू राष्ट्र निर्माण को मजबूत करने का प्रयास किया. सरकार ने जिस तरह से सांसदों और विपक्ष को हाशिए पर रखने का काम किया उस का फल उसे 2024 के लोकसभा चुनाव में मिला.

2014 से 24 के बीचखाता बही मोदी ने जो कहा वही सहीकी तर्ज पर कानून बने. 2024 में भाजपा 240 सीटें जीत कर बैसाखी सरकार चला रही है. जहां हर कानून बनाने से पहले उस को वापस लेना पड़ रहा है. अगर उस ने समाज सुधार के लिए कानून बनाए होते तो यह होता

Bollywood Movies : ‘पुष्पा 2 द रूल’ कमाई के मामले में झुका नहीं 

Bollywood Movies : कई दर्शकों में पहली बार ऐसा हुआ कि दिसंबर माह के पहले सप्ताह ही नहीं दूसरे सप्ताह में भी एक भी हिंदी यानी  Bollywood  फिल्म रिलीज नहीं हुई. दिसंबर माह के पहले सप्ताह में तेलुगु फिल्म ‘पुष्पा 2: द रूल’ का हिंदी में डब हो कर रिलीज होना तय था और इस फिल्म के ट्रेलर व फिल्म के रिलीज से पहले  बौलीवुड के हर फिल्मकार के हाथपांव फूल गए थे और किसी ने भी ‘पुष्पा 2: द रूल’ के साथ अपनी फिल्म को रिलीज करने की हिम्मत ही नहीं जुटाई.

पहले सप्‍ताह से लेकर दूसरे सप्‍ताह तक का हिसाबकिताब

पहले सप्ताह ‘पुष्पा 2ः द रूल’ के केवल हिंदी संस्करण ने इतनी बंपर कमाई  की कि बौलीवुड के फिल्मकारों ने दिसंबर माह के दूसरे सप्ताह यानी  13 दिसंबर को अपनी फिल्म को रिलीज न करने में ही अपनी इज्जत समझी.मगर दूसरे सप्ताह देश के हिंदी भाषी क्षेत्र के 40 सिनेमाघरों में 3 दिन तक राज कपूर जन्मशताब्दी मनाते हुए राज कपूर के निर्देशन में बनी चुनिंदा 10 फिल्में दिखाई गई, जिन्हें अच्छा रिसपौंस मिला, अन्यथा दिसंबर माह के दूसरे सप्ताह भी पूरे देश में ‘पुष्पा 2 द रूल’ का ही डंका बजता रहा.

लगभग 1050 करोड़ रुपए का कलेक्शंस

 पिछले एक दशक से Bollywood की फिल्में महज 3 दिन में ही दम तोड़ती रही हैं,लेकिन ‘पुष्पा 2 द रूल’ ने दूसरे सप्ताह भी बौक्स औफिस पर जबरदस्त कलेक्शन कर कई नए रिकौर्ड बना डाले. दो सप्ताह के अंदर सिर्फ भारत में लगभग 1050 करोड़ रुपए का कलेक्शंस रहा. सिर्फ हिंदी भाषा में इस फिल्म ने  दो सप्ताह में 632 करोड़ 50 लाख रुपए नेट कलेक्शन किया.

 इस में से यदि पहले सप्ताह के 426 करोड़ रुपए घटा दिए जाएं तो दूसरे सप्ताह सिर्फ हिंदी भाषा में इस फिल्म ने 206 करोड़ रुपए नेट कलेक्शन किया. यह अपने आप में बहुत बड़ा रिकौर्ड है. जबकि दो सप्ताह के अंदर यानी 15 दिन में पूरे विश्व में इस फिल्म ने 1508 करोड़ रुपए बौक्स औफिस पर एकत्र किए. पहले सप्ताह यानी 8 दिन में 1067 करोड़ रुपए बौक्स औफिस पर एकत्र किए थे.

तेलुगु फिल्म कह कर विरोध

अगर पहले सप्ताह के कलेक्शंस को घटा दिया जाए ता दूसरे सप्ताह, 7 दिन के अंदर पूरे विश्व भर से ‘पुष्पा 2 द रूल’ ने बौक्स औफिस पर 441 रुपए एकत्र कर एक रिकौर्ड बनाया.

यह तब हुआ जब पहले सप्ताह में टिकट दरों में जो बढ़ोतरी की गई थी, उसे दूसरे सप्ताह घटा दिया गया. इतना ही नहीं दूसरे सप्ताह में Bollywood  के फिल्म मेकरों ने ‘पुष्पा 2 द रूल’ के खिलाफ तेलुगु फिल्म कह कर विरोध भी किया. परदे के पीछे काफी हलचल होती रही, जिस के चलते दिसंबर से तीसरे सप्ताह 20 सितंबर से ‘पीवीआर आयनौक्स’ मल्टीपलैक्स चैन ने पूरे हिंदी भाषी क्षेत्रो में ‘पुष्पा 2 द रूल’ को उतार कर सिर्फ Bollywood Movie रिलीज करने का ऐलान किया.अब  तीसरे सप्ताह  20 दिसंबर से हौलीवुड फिल्म ‘मुफासा द लायन किंग’ के अलावा अनिल शर्मा निर्देशित फिल्म ‘वनवास’ रिलीज हुई है.

अब देखना होगा कि तीसरे सप्ताह उंट किस करवट बैठता है और बौलीवुड फिल्म ‘वनवास’ क्या रंग दिखाती है. 20 दिसंबर के दिन ‘वनवास’ की थिएटरों मे जो हालात नजर आई, उस से तो यही अनुमान लग रहा है कि पूरे सप्ताह भर में भी ‘वनवास’ अपनी लागत वसूल नहीं कर पाएगी.

Lifestyle tips : जब कोई ऊंचे पद का अकड़ दिखाएं, इनको आजमाएं

 Lifestyle tips : क्या आप के आसपास भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो अपने सरकारी नौकरी या फिर बड़े ओहदे का रोब झाड़ते हैं? अगर जवाब हां में है, तो यह कोई नई बात नहीं है.

इस मसले पर आशिमा का कहना है, “मेरी आर्मी कालोनी है. वहां बड़ी पोस्ट से रिटायर लोग रहते हैं, लेकिन अब भी उन में वही रोब है, जो अपनी नौकरी के समय हुआ करता होगा. आज भी वे अपने आगे किसी को कुछ समझते. उन की बीवियां तक अपने पति के नीचे रैंक वाले की बीवी से सीधे मुंह बात तक नहीं करती हैं. उन्हें लगता है ये हम से जूनियर हैं. कई बार ये बातें बहुत अखरती हैं और इसी वजह से हम उन्हें अपनी किटी पार्टी का हिस्सा नहीं बनाते.”

Lifestyle tips : बात रुतबे की

सवाल है कि रिटायर होने के बाद भी बहुत से लोग अपना रुतबा क्यों नहीं छोड़ पाते हैं? दरअसल, ऐसे लोगों का नजरिया शुरू से खुद को बौस मनाने का होता है. घर हो या बाहर हर जगह इन का रुतबा होता है. इन्हें अपनी नौकरी में शुरू से लोगों ने सलाम ठोंका होता है, इसलिए रोब झाड़ना इन की फितरत का एक हिस्सा बन जाता है.

अगर ये लोग सही ढंग से भी बात करें, तो भी लगता है कि जैसे तड़ी में बोल रहे हैं. इनकी आवाज और स्टाइल ही कुछ ऐसा हो जाता है कि रोब लगता है. दूसरे शब्दों में कहें तो इतने सालों तक लोगों से अपने तरीके और अपनी शर्तों पर काम करवाने की आदत के तहत रोब झाड़ना इन की आदत में शुमार हो जाता है.

ऐसे लोगों को डर हो जाता है कि कहीं यह रुतबा रिटायरमैंट के बाद कम न हो जाए, इसलिए अभी भी लोगों को अपने से दबा कर और झुका कर रखना इन्हें पसंद होता है. यही वजह है रिटायर होने के बाद भी जब ऐसे लोग किसी सोशल समारोह का हिस्सा बनते हैं, तो पहले की तरह ही तने हुए और अकड़ में लोगों से मिलते हैं.

कई बार कुछ लोग अपना रुतबा छोड़ कर सब से घुलनेमिलने की कोशिश भी करते हैं, तो साथ वाले लोग उन से बात करने से कतराते हैं या फिर बचते हैं,क्योंकि वे खुद को उन के काबिल नहीं समझते या यों कहें की उन के साथ सहज नहीं हो पाते हैं. उन के आगे उन्हें सोचसमझ कर बोलना पड़ता है, इसलिए लगता है कि ऐसे लोगों को क्या अपने ग्रुप में शामिल करना.

 इन के साथ कैसा बरताव करें

ऐसे लोगों के वही बोरिंग किस्से एक कान से सुनें और दूसरे कान से निकाल दें. आप अगर इन्हें टोकेंगे, तो भी ये नहीं मानने वाले, उलटा आप उन से दुश्मनी कर बैठेंगे, इसलिए अच्छा यही है कि इन की बातों को नजरअंदाज करें.

बहुत से लोग ऐसे लोगों की बातें और अकड़ के चलते इतने आहत हो जाते हैं कि उन्हें लगता है वे जिंदगी में कुछ खास अच्छा नहीं कर पाए, इसलिए हर कोई उन्हें ही नीचे देखता है. लेकिन आप अपने परिवार वालों के लिए बहुत खास हैं. उन के साथ रहें, उन का खयाल रखें. ऐसे लोगों की बातों में न आएं. अगर आप उन्हें तवज्जुह नहीं देंगे, तो वे भी आप के सामने रोब मारना कम कर देंगे.

खुद को कमतर न समझें

ये भले ही कितने बड़े अफसर क्यों न रहे हों, लेकिन इस से आप का कोई लेनादेना नहीं है. उन की जिंदगी अलग है और आप की अलग, इसलिए उन के राजसी तौरतरीकों के चक्कर में पड़ने से बचें.

अगर आप उन्हें अपना दोस्त कहते हैं, तो उन्हें यह बात समझाएं कि हर वक्त आप के रोब झाड़ने की आदत हर किसी को पसंद नहीं आती. इस वजह से लोग आप से दूर हो रहे हैं. अगर वे समझदार होंगे तो बिना बुरा माने आप की बात को समझेंगे और अपनी आदत में बदलाव लाएंगे.

गलत को गलत कहने से न ही तो आप किसी की बेइज्जती कर रहे हैं और न ही किसी को नीचे देखा रहे हैं, इसलिए अगर इन लोगों की कोई बात गलत लग रही है, तो बिंदास हो कर विरोध करें. आप को इस का पूरा हक है.

Atul Subhash & Nikita Case: ससुराल वालों ने सताया, इंजीनियर दामाद ने मौत को गले लगाया

Atul Subhash & Nikita Case : बिहार के समस्तीपुर में रहने वाले अतुल सुभाष पेशे से एआई इंजीनियर थे. उन के परिवार में मां पार्वती, पिता पवन कुमार और भाई विकास हैं. अतुल बैंगलुरु की एक कंपनी में बड़े पद काम करते थे. वे बैंगलुरु के ही मंजूनाथ लेआउट अपार्टमैंट में रहते थे.

साल 2019 में एक मैट्रिमोनी साइट से मैच मिलने के बाद अतुल ने उत्तर प्रदेश के जौनपुर की रहने वाली निकिता सिंघानिया से शादी की थी. वह भी आईटी कंपनी में काम करती थी. निकिता के घर में उस की मां और पिता थे. पिता दिल के मरीज थे. 10 साल से उन का पीजीआई अस्पताल में इलाज चल रहा था. इसी वजह से अतुल और निकिता की शादी बड़ी जल्दबाजी में हो गई थी.

साल 2020 में उन्हें एक बेटा हुआ. इस के कुछ दिन बाद से ही दोनों के बीच अनबन शुरू हो गई. निकिता साल 2021 में बेटे को ले कर बैंगलुरु छोड़ कर जौनपुर चली गई.

इसी बीच निकिता के पिता की मौत हो गई. तभी निकिता ने आरोप लगाया कि अतुल ने दहेज में 10 लाख रुपए की मांग की थी, जिस के चलते उस के पिता को सदमा लगा और उन की मौत हो गई.

अतुल की पत्नी निकिता सिंघानिया ने पहली बार अतुल, उन के भाई और मातापिता के खिलाफ साल 2022 में दहेज उत्पीड़न के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कराई थी. जौनपुर पुलिस के मुताबिक, 24 अप्रैल, 2022 को निकिता ने सुभाष के खिलाफ स्थानीय कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया था.

पुलिस के मुताबिक, निकिता ने 24 अप्रैल, 2022 को दहेज के लिए सताने और मारपीट करने का आरोप लगाते हुए जौनपुर में शिकायत दर्ज कराई थी, जिस में पति, सास, ससुर और देवर को आरोपी बनाया था.

निकिता ने कहा कि उस ने 26 अप्रैल, 2019 को वाराणसी जिले में हिंदू रीतिरिवाजों के अनुसार अतुल से शादी की थी, मगर दहेज में 10 लाख रुपए की मांग को ले कर अतुल और उस के परिवार वाले उसे मारतेपीटते थे. निकिता ने दावा किया था कि अतुल शराब पी कर उसे पीटते थे. वे उसे धमका कर उस के खाते से पूरी तनख्वाह अपने खाते में डलवा लेते थे.

निकिता ने दावा किया था कि बाद में ससुराल के लोगों से परेशान उस के पिता की अचानक तबीयत खराब हो गई थी और 17 अगस्त, 2019 को दिल का दौरा पड़ने से उन की मौत हो गई.

 

Atul Subhash & Nikita Case  : तब की महिला उपनिरीक्षक प्रियंका ने मामले की जांच कर 30 अगस्त, 2022 को कोर्ट में आरोपपत्र दायर कर दिया था. निकिता ने दहेज उत्पीड़न, हत्या की कोशिश, अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने जैसे कई आरोप लगाए थे.

इस के बाद अतुल और निकिता का मामला फैमली कोर्ट में चलने लगा, जहां निकिता ने 40,000 रुपए महीना के गुजारा भत्ता के अलावा 2-4 लाख रुपए की और मांग की.

अतुल कुछ समय तक इस पैसे को देता रहा. इन मुकदमों के लिए उस को हर पेशी पर जौनपुर आना पड़ता था. 2 साल में 120 पेशी उस की लगी थीं.

निकिता के रिश्तेदार सुरेंद्र सिंघानिया के मुताबिक, निकिता और अतुल की शादी तकरीबन 5 साल पहले हुई थी और शादी के बाद दोनों बैंगलुरु में काम करते थे और वहीं रहते थे. उन का एक बेटा भी हुआ.

सुरेंद्र ने कहा कि पिछले 2 साल से निकिता अतुल से तलाक लेना चाहती थी और इसी के मद्देनजर उस ने जौनपुर की अदालत में 3-4 मामले भी दायर किए थे.

उन्होंने कहा कि फिलहाल निकिता अपने बेटे के साथ दिल्ली में रहती है और वहीं काम करती है.

सुरेंद्र ने यह भी कहा कि दोनों के बीच विवाद के चलते निकिता गुजारा भत्ता चाहती थी और अतुल इसे देने के पक्ष में नहीं था, जबकि जौनपुर की अदालत में लगातार मामले की तारीखें दी जा रही थीं.

निकिता के वकील दिनेश मिश्रा ने बताया कि निकिता ने अतुल के खिलाफ कई मामले दर्ज कराए थे, जिन में से एक अहम मामला पारिवारिक कोर्ट में लंबित है.

उन्होंने कहा कि इस मामले में निकिता ने अपने और बच्चे के भरणपोषण के लिए कोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन कोर्ट ने पत्नी को गुजारा भत्ता देने का निर्देश देने से इनकार कर दिया, हालांकि, बच्चे के भरणपोषण के लिए हर महीने 40,000 रुपए देने का आदेश दिया था.

सवाल उठता है कि जब पत्नी भी नौकरी कर रही है तो क्या उस को गुजारा भत्ता दिया जा सकता है? सैक्शन 24 के तहत अंतरिम गुजारा भत्ता देने के लिए कह सकता है. वेतन का 20 फीसदी गुजारा भत्ता दिया जा सकता है. यह अदालत के विवेक पर निर्भर करता है.

फैमिली कोर्ट ज्यादातर मसलों में औरतों का पक्ष ज्यादा लेती है. न्याय व्यवस्था में खामियों के चलते छोटेछोटे मसले सालोंसाल चलते हैं, जिन से आरोपी पक्ष जलील होता रहता है. कई बार वह घातक कदम उठा लेता है.

खुदकुशी के बाद चर्चा में आया मसला

अतुल सुभाष ने 9 दिसंबर, 2024 को इंटरनैट पर 1 घंटा, 20 मिनट का वीडियो जारी कर बताया था कि उस के पास खुदकुशी के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है.

खुदकुशी के बाद पड़ोसियों ने उन के घर का दरवाजा तोड़ा तो उन की बौडी फंदे पर लटकी मिली. कमरे में ‘जस्टिस इज ड्यू’ यानी ‘इंसाफ होना बाकी है’ लिखी एक तख्ती मिली. पुलिस को घर से 24 पन्ने का एक सुसाइड नोट मिला, जिन में चार पन्ने हाथ से और 20 कंप्यूटर से प्रिंट किए गए थे.

24 पेज के इस लैटर में अतुल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से इंसाफ की गुहार लगाई है. अतुल ने देश के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की खामियों के बारे में लिखा और मर्दों के खिलाफ झूठे केस दर्ज कराने के ट्रेंड के बारे में बताया. एक और नोट में उन्होंने लिखा कि वे अपनी पत्नी की तरफ से दायर कराए गए सभी मामलों के लिए खुद को बेकुसूर बता रहे हैं.

इन में दहेज प्रतिरोध कानून और महिलाओं के खिलाफ अत्याचार का केस शामिल है. उन्होंने कहा कि मैं कोर्ट से रिक्वैस्ट करता हूं कि इन झूठे केसों में मेरे मातापिता और भाई को परेशान करना बंद करें.

Atul  Subhash ने सुसाइड से पहले रिकौर्ड किए गए वीडियो में पूरा मामला बताया. उन्होंने कहा कि 2019 में एक मैट्रिमोनी साइट से मैच मिलने के बाद शादी की थी. अगले साल उन्हें एक बेटा हुआ. उन की पत्नी और पत्नी का परिवार उन से हमेशा पैसों की डिमांड करता रहता था, जो वे पूरी भी करते थे.

उन्होंने लाखों रुपए अपनी पत्नी के परिवार को दिए थे, लेकिन जब उन्होंने और पैसे देना बंद कर दिया तो पत्नी 2021 में उन के बेटे को ले कर बैंगलुरु छोड़ कर चली गई.

मैं उसे हर महीने 40,000 रुपए देता हूं, लेकिन अब वह बच्चे को पालने के लिए खर्च के तौर पर 2-4 लाख रुपए महीने की डिमांड कर रही है. मेरी पत्नी मुझे मेरे बेटे से न तो मिलने देती है, न कभी बात कराती है. पूजा या कोई शादी हो, निकिता हर बार कम से कम 6 साड़ी और एक गोल्ड सैट मांगती थी.

मैं ने अपनी सास को 20 लाख रुपए से ज्यादा दिए, लेकिन उन्होंने कभी नहीं लौटाए. पत्नी ने दहेज और पिता के मर्डर का आरोप लगा कर केस दर्ज कराया.

इसके अगले साल पत्नी ने उन के और उन के परिवार के लोगों के खिलाफ कई मामले दर्ज कराए. इन में मर्डर और अप्राकृतिक सेक्स का केस भी शामिल था. अतुल ने कहा कि उन की पत्नी ने आरोप लगाया कि उन्होंने 10 लाख रुपए दहेज मांगा था, जिस के चलते उस के पिता का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया.

Atul  Subhash ने कहा कि यह आरोप किसी फिल्म की खराब कहानी जैसा है, क्योंकि मेरी पत्नी पहले ही कोर्ट में सवालजवाब में इस बात को स्वीकार कर चुकी है कि उस के पिता लंबे समय से गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे और पिछले 10 साल से दिल की बीमारियों और डायबिटीज के लिए पीजीआई में उन का इलाज चल रहा था. डाक्टरों ने उन्हें जीने के लिए कुछ ही महीने का समय दिया था, तभी हम ने जल्दबाजी में शादी की थी.

अतुल ने कहा कि मेरी पत्नी ने ये केस सैटल करने के लिए पहले 1 करोड़ रुपए की डिमांड की थी, लेकिन बाद में इसे बढ़ा कर 3 करोड़ रुपए कर दिया. उन्होंने कहा कि जब इस 3 करोड़ रुपए की डिमांड के बारे में उन्होंने जौनपुर की फैमिली कोर्ट की जज को बताया तो उन्होंने भी पत्नी का साथ दिया.

अतुल ने कहा कि मैं ने जज को बताया कि एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि देश में बहुत सारे मर्द झूठे केस की वजह से आत्महत्या कर रहे हैं, तो पत्नी ने बीच में कहा कि तुम भी आत्महत्या क्यों नहीं कर लेते हो?

इस बात पर जज हंस पड़ीं और कहा कि ये केस झूठे ही होते हैं, तुम परिवार के बारे में सोचो और केस को सैटल करो. मैं केस सेटल करने के 5 लाख रुपए लूंगी.

अतुल ने बताया कि जब इस मामले को ले कर उस ने सास से बात की, तो सास ने कहा कि तुम ने अभी तक सुसाइड नहीं किया. मुझे लगा आज तुम्हारे सुसाइड की खबर आएगी.

इस पर अतुल ने उन्हें जवाब दिया कि मैं मर गया तो तुम लोगों की पार्टी कैसे चलेगी. उस की सास ने जवाब दिया कि तुम्हारा बाप पैसे देगा. पति के मरने के बाद सब पत्नी का होता है. तुम्हारे मांबाप भी जल्दी मर जाएंगे. उस में भी बहू का हिस्सा होता है. पूरी जिंदगी तेरा पूरा खानदान कोर्ट के चक्कर काटेगा.

अतुल ने कहा कि इस के बाद मैं सोचने लगा कि मेरे कमाए हुए पैसे से मुझे और मेरे परिवार को ही परेशान किया जा रहा. मुझे लगता है कि मेरे लिए मर जाना ही बेहतर होगा, क्योंकि जो पैसे मैं कमा रहा हूं उस से मैं अपने ही दुश्मन को बलवान बना रहा हूं. मेरा कमाया हुआ पैसा मुझे ही बरबाद करने में लग रहा है.

मेरे ही टैक्स के पैसे से यह अदालत, यह पुलिस और पूरा सिस्टम मुझे और मेरे परिवार और मेरे जैसे और भी लोगों को परेशान करेगा. मैं ही नहीं रहूंगा तो न तो पैसा होगा और न ही मेरे मांबाप और भाई को परेशान करने की कोई वजह होगी.

Atul  Subhash ने यह भी कहा कि मेरी आखिरी ख्वाहिश यह है कि मेरे बेटे को मेरे मातापिता को दे दिया जाए. मेरी पत्नी के पास कोई वैल्यू नहीं है, जो वह मेरे बेटे को दे पाए. यहां तक कि वह तो उसे पालने के काबिल भी नहीं है. इस के अलावा मेरी पत्नी को मेरे मृत शरीर के पास भी न आने दिया जाए. मेरी अस्थियों का विसर्जन भी तब हो, जब मुझे इस केस में इंसाफ मिले, नहीं तो मेरी अस्थियों को गटर में बहा दिया जाए.

अतुल ने अपनी आखिरी इच्छा में लिखा ‘मेरे केस की सुनवाई का लाइव टैलीकास्ट हो. पत्नी मेरा शव न छू सके. जब तक प्रताड़ित करने वालों को सजा न हो, मेरी अस्थियां विसर्जित न हों. यदि भ्रष्ट जज, मेरी पत्नी और उस के परिवार वालों को कोर्ट बरी कर दे तो मेरी अस्थियां उसी अदालत के बाहर किसी गटर में बहा दी जाएं. मेरे बेटे की कस्टडी मेरे मातापिता को दी जाए.’

अतुल का कहना था कि उस के बयान को मृत्यु के पहले का बयान मान कर सुबूत समझा जाए.

Atul  Subhash की पत्नी और परिवार पर कायम हुआ मुकदमा

अतुल सुभाष की खुदकुशी के बाद पुलिस ने 4 लोगों पर एफआईआर दर्ज की, जिस में अतुल की पत्नी निकिता सिंघानिया, सास निशा सिंघानिया, साले अनुराग सिंघानिया और चाचा ससुर सुशील सिंघानिया का नाम है. अतुल के भाई विकास कुमार ने बैंगलुरु के मराठाहल्ली पुलिस स्टेशन में शिकायत की थी.

इसी के आधार पर पुलिस ने पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 108 (आत्महत्या के लिए उकसाना), धारा 3(5) (जब दो या ज्यादा लोग शामिल हों तो सामूहिक जिम्मेदारी बनती है) का केस दर्ज किया है.

क्या है दहेज कानून

अतुल सुभाष की बात इसलिए उठ गई, क्योंकि उस ने खुदकुशी कर ली. हमारे देश और समाज में कानून से कम भावनाओं से ज्यादा काम लिया जाता है. ऐसे में आज ऐसा लग रहा है जैसे पूरा देश दहेज कानून के खिलाफ है.

दहेज निषेध अधिनियम 1961 में दहेज प्रथा पर रोक लगाने और दहेज से जुड़े शोषण उत्पीड़न को रोकने के लिए बनाया गया था. इस को 1 जुलाई, 1961 से लागू किया गया था. इस कानून के तहत, दहेज देने और लेने दोनो को अपराध बनाया गया था. यह कानून पूरे भारत में हर जाति या धर्म पर लागू होता है. समयसमय पर जरूरत के हिसाब से इस कानून में संशोधन भी किए गए हैं.

दहेज प्रथा पर अंकुश लगाने के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में धारा 498 ए और धारा 304 बी शामिल की गईं. साल 2005 में घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम पारित किया गया.

वैसे तो इस कानून का मकसद समाज से दहेज की बुराई को खत्म करना था. इस के लागू होने के बाद भी दहेज समस्या का समाधान नहीं हुआ. यह समस्या और बढ़ती गई. विडंबना यह है कि दहेज का विवाद होने पर केवल दहेज मांगने वाले पर ही मुकदमा होता है. दहेज देने वाले से सवाल नहीं किया जाता है.

दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के तहत दहेज लेने या देने पर कम से कम 5 साल की जेल और कम से कम 15,000 रुपए का जुर्माना हो सकता है.

दहेज मांगने पर कम से कम 6 महीने की जेल और 10,000 रुपए तक का जुर्माना हो सकता है. दहेज उत्पीड़न के मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत 3 साल की जेल और जुर्माना हो सकता है.

अगर किसी महिला की शादी के 7 साल के अंदर दहेज उत्पीड़न की वजह से मौत हो जाती है, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी के तहत पति और रिश्तेदारों को कम से कम 7 साल की जेल से लेकर उम्रकैद हो सकती है. अगर कोई लड़की के पति और ससुराल वाले उसे स्त्रीधन सौंपने से मना करते हैं, तो धारा 406 के तहत 3 साल की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकता है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट लखनऊ बैंच के एडवोकेट राजेश तिवारी कहते हैं, “शादी में जो नकद और उपहार दिए जाते हैं, उन को स्त्री धन मान लिया जाता है. जब कोई मुकदमा होता है तो यही सब दहेज मान लिया जाता है. अब ज्यादातर मामलों में दहेज के साथ ही साथ घरेलू हिंसा की धारा की तहत भी मुकदमा लिखा दिया जाता है.

“जब से घरेलू हिंसा कानून बना है इस के गलत इस्तेमाल की घटनाएं बढ़ गई हैं, जिन पर बारबार सुप्रीम कोर्ट भी चिंता जता चुका है. सरकार से भी इस कानून में बदलाव के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, लेकिन सरकार ने बदलाव किया नहीं है.

“जब नया कानून बन रहा था तक उम्मीद की जा रही थी कि कुछ राहत मिलेगी, लेकिन धाराओं की संख्या बदलने के अलावा इस में सुधारात्मक कदम नहीं उठाया गया है.”

सुप्रीम कोर्ट उठा रहा सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक मतभेदों से पैदा हुए घरेलू विवादों में पति और उस के घर वालों को आईपीसी की धारा 498ए में फंसाने की बढ़ती सोच पर गंभीर चिंता जताई.

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने 10 दिसंबर को कहा कि धारा 498ए (घरेलू प्रताड़ना) पत्नी और उसके परिजनों के लिए हिसाब बराबर करने का हथियार बन गई है. इस के पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों को चेतावनी दी थी कि वे यह तय करें कि घरेलू क्रूरता (डोमैस्टिक वौयलैंस) के मामलों में पति के दूर के रिश्तेदारों को बेकार में न फंसाया जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मौजूदा कानून में संशोधन करने को कहा था. धारा 498 ए (बीएनएस की धारा 85 और 86) पर अकसर सवाल उठते रहे हैं. माना जाता है कि इन का इस्तेमाल औरतें अपने पति और ससुराल वालों को आपराधिक मामलों में फंसाने के लिए करती हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू विवाद में झूठे मुकदमों में फंसाने पर चिंता जताई. कोर्ट ने कहा कि ऐसे झूठे मुकदमों से भले ही वे बरी हो जाएं, लेकिन जो जख्म उन्हें मिलते हैं, वे कभी नहीं भर सकते.

अगस्त में बॉम्बे हाईकोर्ट ने 498ए के गलत इस्तेमाल पर चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि दादादादी और बिस्तर पर पड़े लोगों को भी फंसाया जा रहा है. मई महीने में केरल हाईकोर्ट ने कहा था कि पत्नियां अकसर बदला लेने के लिए पति और उस के परिवार के सदस्यों के खिलाफ ऐसे मामले दर्ज करवा देती हैं.

जुलाई, 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने 498ए का गलत इस्तेमाल रोकने के लिए तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. तब सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि जांचपड़ताल के बाद ही पुलिस गिरफ्तारी का ऐक्शन ले सकती है.

साल 2022 में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसे ले कर कुछ निर्देश जारी किए थे. तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, अगर किसी औरत के साथ क्रूरता हुई है, तो उसे क्रूरता करने वाले लोगों के बारे में भी बताना होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पीड़ित औरत को साफ बताना होगा कि किस समय और किस दिन उस के साथ पति और उस की ससुराल वालों ने किस तरह की क्रूरता की है. केवल यह कह देने से कि उसके साथ क्रूरता हुई है, इस से धारा 498ए का मामला नहीं बनता है.

जुलाई 2022 में झारखंड हाईकोर्ट ने कहा था कि धारा 498ए को शादीशुदा औरतों को उन के पति और ससुराल वालों की क्रूरता से बचाने के लिए लाया गया था, लेकिन अब इस का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है.

कानून की धाराएं बदलीं व्यवस्था नहीं

खुदकुशी करने वाले एआई इंजीनियर अतुल सुभाष ने सुसाइड नोट में जौनपुर की फैमिली कोर्ट की जज रीता कौशिक पर सैटलमैंट कराने के बदले में 5 लाख रुपए की रिश्वत मांगने का आरोप लगाया है. उन्होने यह भी लिखा कि वहां मौजूद पेशकार 500 से 1,000 रुपए तक की घूस मुकदमे में सुविधाजनक तारीख लेने के बदले ले लेता था. इस ने एक तरह से न्याय व्यवस्था की पूरी पोल खोल दी है.

 

क्यों लगता है धारा 377 का आरोप

अतुल सुभाष की पत्नी निकिता ने आईपीसी की धारा 377 का इस्तेमाल भी किया है. यह धारा अप्राकृतिक यानि अननैचुरल सैक्स की वजह से लगाई जाती है.

यह धारा बताती है कि 2 बालिगों में रजामंदी से बने अप्राकृतिक संबंध अपराध हैं. ऐसा साबित होने पर 10 साल से ले कर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है. जब यह धारा लगती है तो कोर्ट जल्दी जमानत नहीं देती है. ऐसे में बदला लेने के लिए पतिपत्नी संबंधों में भी इस धारा का इस्तेमाल किया जाता है.

जमानत देने में क्या है दिक्कत

दहेज और घरेलू हिंसा के मामलों में ही कोर्ट जमानत देने में देरी करती है. दूसरे कानूनों में भी जमानत देने से कोर्ट परहेज करती है. ऐेसे में कोर्ट को नए तरीके से मुकदमों को देखना चाहिए. जमानत को ले कर भी सुप्रीम कोर्ट कई बार कह चुकी है कि जल्दी जमानत दे दी जाए. इस के बाद भी सालोंसाल जमानत नहीं मिलती है. जमानत देने में कोई दिक्कत नहीं होती है. जब फैसला हो तब सजा दें.

Jobs : सरकारी नहीं प्राइवेट नौकरियों के पीछे भाग रहे हैं यूथ

विनय कुमार रिलांयस के शोरूम में फ्लोर मैनेजर के रूप में काम करता है. 3 साल लखनऊ में काम करने के बाद उस का ट्रांसफर बाराबंकी हो गया. 5 साल नौकरी करते बीत गए. इस बीच उस की शादी हुई.

6 महीने पहले उस की पत्नी अपने परिवार वालों के साथ मुंबई घूमने गई थी. वहां उस का एक्सीडैंट हो गया. अनजान शहर में कोई सहारा नहीं था. विनय को भी मुंबई पहुंचने में देर लग रही थी.

Mediclaim की सुविधाएं

विनय ने यह बात अपनी कंपनी के एचआर महकमे को बताई और छुट्टी देने को कहा. वहां से विनय को मुंबई के उन अस्पतालों की लिस्ट दी गई, जहां उस की पत्नी बिना कोई पैसा दिए भरती हो सकती थी. विनय को कंपनी की तरफ से मैडिक्लेम दिया गया था, जिस में उस का और उस के परिवार का इलाज कैशलैस हो सकता था.

विनय ने अपनी पत्नी को अस्पताल पहुंचने को कहा. अस्पताल वालों ने मैडिक्लेम के लिए एक ईमेल रिलायंस कंपनी के एचआर को किया. वहां से तत्काल यह जवाब आ गया कि विनय की पत्नी का इलाज कंपनी के खर्च पर होगा.

जब तक लखनऊ से विनय मुंबई पहुंचा, तब तक उस की पत्नी नेहा का इलाज शुरू हो चुका था. वह तकरीबन एक हफ्ता अस्पताल में रही और बिना किसी खर्च के उस का इलाज चला. सारा खर्च अस्पताल को रिलायंस कंपनी की तरफ से दिया गया.

इस बात की जानकारी जब नेहा के पिता और घर वालों को हुई तो उन को बहुत हैरत हो रही थी कि प्राइवेट कंपनी में काम करने वालों कोे इस तरह की सुविधाएं भी मिलती हैं.

विनय और नेहा की जब शादी हो रही थी, तो विनय का प्राइवेट नौकरी में काम करना एक मुद्दा था. नेहा के घर वालों ने बहुत मन मार कर यह शादी की थी. वे हमेशा की सोचते थे कि सरकारी नौकरी में जो सुख है, वह प्राइवेट में नहीं है.

विनय जिस तरह से हंसीखुशी से रहता था, पत्नी नेहा को भी पूरी आजादी थी. उस से सब ठीक हो गया था. नेहा के साथ हुए एक्सीडैंट में जिस तरह से रिलायंस कंपनी ने मैडिकल सुविधा अनजानशहर में मुहैया कराई, उस से प्राइवेट नौकरी की अहमियत को बता दिया था.

सरकारी  Jobs  की फजीहत 

विनय एक अकेला उदाहरण नहीं है. अशोक साहू उत्तर प्रदेश सरकार के पीडब्लूडी महकमे में जूनियर इंजीनियर है. कानपुर में जब उस की जौब लगी, तो उस के घर वाले बहुत खुश थे कि सरकारी नौकरी लग गई है. अब अच्छी कमाई तो होगी ही शादी में अच्छा दहेज मिलेगा. हुआ भी यही. रमा के साथ अच्छी शादी हुई. बढ़िया लेनेदेन हुआ. अशोक की ससुराल वाले खुश थे कि सरकारी इंजीनियर दमाद मिला है. शादी के कुछ दिन तक सब सही चला. इस बीच अशोक का तबादला औरेया जिले में हो गया. एक तो औरैया पिछड़ा जिला था, उस पर वहां ठेकेदारों के साथ काम करना मुश्किल था.

अशोक का स्वभाव बदलने लगा. अब गलत संगत में वह शराब भी पीने लगा था. अकसर मीटिंग में वह डांट खाता था, जिस से वह चिड़चिड़ा होने लगा था. इस का असर घर पर पड़ने लगा था. बातबात में उस का अपनी पत्नी रमा से झगड़ा होने लगा.

इस बीच उस को एक बेटी हुई. रमा अपनी ससुराल में सास और ससुर के साथ रही. वहां भी अशोक जब छुट्टी पर आता, तो आपस में झगड़े ही होते थे. अशोक के ऊपर बड़े अफसरों और ठेकेदारों का दबाव था, जिस को वह सहन नहीं कर पाता था. उस का गुस्सा घर वालों पर निकलता था. अब रमा जब पति के साथ रहती है, तो भी झगड़ा होता है और जब अलग रहती है, तब भी झगड़ा होता है.

पैसा होते हुए भी रमा की घर में कोई इज्जत नहीं थी. अशोक बातबात पर उस की बेइज्जती करता था. 5 साल में अशोक पूरी तरह से बदल गया था.

हमेशा खुशदिल और स्मार्ट रहने वाले अशोक उलझे बाल, बिना शेव किए औफिस जाता था. उस का पेट भी निकल आया था. कहीं से भी उस को देख नहीं लगता था कि वह 70-80 हजार महीने की तनख्वाह पाने वाला अशोक है. उस से अच्छा तो वह सेल्समैन लगता था, जो प्राइवेट नौकरी में 12-15 हजार का महीने की तनख्वाह पाता है.

सरकारी पति पा कर भी न तो रमा खुश थी और न ही सरकारी नौकरी कर के अशोक को अच्छा लग रहा था. अब वह प्राइवेट नौकरी करने लायक भी नहीं रह गया था.

सुख छीन रहा सरकारी Jobs का तनाव

सरकारी नौकरी में तनाव कई वजहों से होता है. सरकारी नौकरी करने वालों की जिंदगी में बहुत उतारचढ़ाव होते हैं, जिस से उनमें तनाव और चिंता बढ़ जाती है. सरकारी नौकरों पर अफसर, नेताओं और दबदबे वाले ठेकेदारों का असर होता है. सरकारी मुलाजिमों को बहुत संभल कर चलना पड़ना है, जिस से उन का तनाव बढ़ता है. तनाव का असर उन की निजी जिंदगी पर पड़ता है.

सरकारी औफिस में अब काम का समय पहले जैसा 10 से 5 का नहीं रह गया है. वहां भी डिजिटल अटैंडस लगने लगी है. कई महकमों में इस का शुरूआत में बहुत विरोध हुआ था.

सरकारी नौकरी का सब से बड़ा लालच रिश्वत मिलने का होता है. पर आज के दौर में रिश्वत लेना बड़ा मुश्किल होता है. कई बार उस का वीडियों देने वाला बना लेता है.

औफिसों में भी जगहजगह कैमरे लगे होते हैं. पहले रिश्वत लेने की शिकायत उसी के महकमे में करनी पड़ती थी, पर अब वीडियो बड़ा सुबूत होता है. कई बार रिश्वत लेते वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते हैं, जिन से महकमे का ऐक्शन तो होता ही है, सार्वजनिक बदनामी भी होती है.

आसान नहीं रह गया बचना

लखनऊ के दुबग्गा इलाके में विजिलैंस ने पीडब्ल्यूडी महकमे के जेई सत्येंद्र यादव को एक लाख रुपए रिश्वत लेते गिरफ्तार किया. सत्येंद्र ने ठेकेदार महेंद्र कुमार त्रिपाठी से 40 लाख रुपए का बिल पास करने के लिए 10 लाख रुपए की घूस मांगी थी. ठेकेदार ने विजिलैंस महकमे को सूचना दी और सत्येंद्र को रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया गया.

हरदोई में घटिया सड़क बनाने के आरोपों में पीडब्लूडी के 16 इंजिनियरों के निलंबन के बाद विजिलैंस ने उसी यूनिट के जेई सत्येंद्र यादव को गिरफ्तार किया.

सत्येंद्र का कहना था कि महेंद्र ने बिल बढ़ाकर बनाए हैं. इन्हें पास कवाने के लिए 10 लाख रुपए देने होंगे, रकम में सहायक अभियंता का भी हिस्सा है. आरोपी जेई के खिलाफ थाना उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान लखनऊ सैक्टर में मुकदमा दर्ज कर विजिलैंस टीम आगे के ऐक्शन में जुट गई है.

इस तरह की घटनाएं अब आम होने लगी हैं. इन मुकदमों से छुटकारा आसान काम नहीं रह गया है. एक बार मुकदमा होते ही घर परिवार की समाज में बदनामी होती है.

रिश्वत का घालमेल

रिश्वत लेने वाले सरकारी मुलाजिम भी अब बचने के नएनए रास्ते तलाशने लगे हैं. वे किसी तीसरे के जरीए पैसा लेने की कोशिश करते हैं. यह तीसरा महकमे का न होने के चलते पकड़े जाने पर भी उन पर आंच नहीं आती है.

पीडब्लूडी महकमे में काम कराने वाले एक ठेकेदार बताते हैं कि इंजीनियर साहब जब नीली पैंसिल दिखाते थे, तो उस का मतलब एक लाख, पीली पैंसिल का मतलब 3 लाख और लाल पैंसिल का मतलब 5 लाख रुपए रिश्वत होता था. यह रकम वे उन के एक करीबी रिश्तेदार अपने घर में लेते थे.

पुलिस वालों ने गांव में प्रधान या किसी ठेकेदार को अपना ‘वह’ बना रखा हुआ है. शहरों में छोटे नेता उन के बिचैलिए होते हैं. कई सिपाही रैंक के मुलाजिम भी इस काम को करते हैं. मोबाइल पर कोडवर्ड में बात होती है. हर किसी के पास सरकारी मोबाइल के अलावा एक अपना निजी नंबर भी होता है. सारी बातचीत इसी नंबर पर होती है.

मोबाइल में हो रही बातचीत रिकौर्ड न हो रही हो, इस के लिए एक एप आता है. यह एप तुरंत यह सिगनल दे देता है कि बातचीत दूसरी तरफ रिकौर्ड हो रही है. ऐसे में सावधान हुआ जा सकता है.

प्राइवेट में भी है जौब सिक्योरिटी

आज के दौर में प्राइवेट मुलाजिमों में भी जौब सिक्योरिटी है. कोई भी कंपनी अपने मुलाजिम को निकालने से बचती है. नए मुलाजिम को काम सिखाना आसान नहीं होता है. पैंशन और ग्रेच्युटी और छुट्टियों का लीव इन कैशमैंट भी होता है. मैडिकल सुविधाएं भी मिलती हैं. ऐसे में सरकारी और प्राइवेट मुलाजिमों के बीच लंबाचौड़ा फर्क नहीं रह गया है. अब लोग प्राइवेट जौब से रिटायर होने लगे हैं.

सरकारी मुलाजिमों को मिलने वाली सुविधाएं कई बार उन के मरने के बाद भी असर डालती हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में राज्य आपदा मोचन बल वाहिनी (एसडीआरएफ) लखनऊ में 27 साल का अजय सिपाही की नौकरी कर रहा था. वह आगरा के अछनेरा थाना इलाके के गांव मांगुरा के रहने वाला था और साल 2019 में पीएसी में भरती हुआ था. वह अपनी 24 साल की पत्नी नीलम के साथ लखनऊ में एसडीआरएफ कैंप के बाहर प्रधान रह चुके रामू के मकान में 10 महीने से किराए पर रह रहा था.

अजय ने 3 साल पहले न्यू आगरा के नगला पदी के रहने वाले अमर सिंह की बेटी नीलम से शादी की थी. नीलम के पिता फल विक्रेता हैं. नीलम 2 महीने के पेट से थी. एक दिन दोनों ने खुदकुशी कर ली. पुलिस की तफतीश में पता चला कि नीलम ने पहले फंदा लगाया. यह देख कर अजय ने नीलम को फंदे से उतारा और फिर खुदकुशी कर ली.

इस की सूचना जब उन के घर वालों को दी गई तो अलग ही कहानी सामने आई. सिपाही अजय के पिता निरंजन को यकीन नहीं हो रहा है कि उनबका बेटा खुदकुशी कर सकता है.

निरंजन का कहना था कि पिछले 3 साल से अजय शादी की बात करने पर टाल देता था. इस बार दीवाली पर वह 5 दिन की छुट्टी ले कर घर आया था. उस का रिश्ता तय करने कुछ लोग आए थे. पहली बार उस ने शादी तय करने के लिए कहा था.

ऐसे में अजय किसी और से शादी कैसे कर लेगा? पिता ने आरोप है कि उन के बेटे को फंसाया गया है. अजय की सैलरी हड़पने के लिए साजिश रची गई है. अजय के एक भाई अमित मुंबई में कस्टम महकमे में इंस्पैक्टर हैं. अजय प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी भी कर रहा था. अजय ने अपनी मां को नौमिनी बनाया था. बाद मे पता चला कि उस ने अपनी पत्नी को नौमिनी बना लिया था. अब उस के अपने घर वालों से संबंध मधुर नहीं रह गए थे.

पिता निरंजन के मुताबिक, 3 साल से बेटा घर पैसे नहीं भेज रहा था. 2 साल पहले उस की पोस्टिंग लखनऊ में हुई थी.

अजय ने मंदिर में नीलम से शादी की थी. घटना की जानकारी पर नीलम का छोटा भाई जीवन पोस्टमार्टम हाउस पहुंचा. जीवन भी एक साल से एसडीआरएफ के मैस में काम कर रहा है. उस की नौकरी अजय ने ही लगवाई थी.

नीलम 6 भाईबहनों में दूसरे नंबर पर थीं. पतिपत्नी का आपस में विवाद भी होता था. घटना के दिन भी विवाद हुआ था. अजय बाहर चला गया था. तभी नीलम ने गले में फंदा लगा लिया. अजय जब लौटा तो नीलम फंदे पर लटकी मिली. अजय ने पत्नी को फंदे से उतारा और फिर खुद भी जान दे दी.

अब अजय का परिवार नीलम को अजय की पत्नी मानने से इनकार कर रहा है. अजय के पिता को लग रहा है कि अगर उन्होंने ने नीलम को अजय की पत्नी मान लिया तो कहीं नीलम के परिवार का दावा अजय की जायदाद पर बन जाए.

Government Jobs से बढ़ती दहेज की डिमांड

सरकारी मुलाजिमों के मसले में कई बार ऐसा देखा गया है कि नौकरी के मिलने वाले लाभ के लिए घर वाले उस की पत्नी को अपनाने से बचते हैं. लड़के के घर वालों को इस तरह की सोेच से बचना चाहिए, जिस से मरने के बाद के विवाद खड़े न हो सकें.

सरकारी नौकरी करने वालों का क्रेज बढ़ने से उन के परिवार के लोग दहेज की मांग बढ़ा देते हैं. वैसे यह दहेज किसी मुसीबत से कम नहीं होता है. किसी भी तरह का विवाद होने के बाद सब से पहला मुकदमा दहेज का लिखा जाता है, जिस में पूरे परिवार के लोग परेशान होते है.

अगर बहू ने ससुराल में खुदकुशी भी कर ली तो भी उस की हत्या का आरोप ससुराल वालों पर लगता है. उन को सालोंसाल जेल में रहना पड़ता है. दहेज में जो नकद मिलता भी है उस से ज्यादा पैसा शादी में खर्च हो जाता है. शादी में सुख का आधार दहेज या सरकारी नौकरी नहीं आपसी तालमेल होता है.

दहेज ही ही तरह रिश्वतखोरी भी अब मुसीबत की वजह बन गई है. ऐसे में सरकारी नौकरी में शांति कम है, जबकि प्राइवेट नौकरी में खुशहाल जिंदगी होती है. घरपरिवार के साथ समय बिताने का मौका मिलता है. सरकारी नौकरी जैसे खतरे प्राइवेट जौब में नहीं होते हैं, इसलिए यहां तनाव कम होता है. बौस का दबाव नहीं रहता है.

समाज को भी अपना नजरिया बदलना चाहिए. प्राइवेट जौब में भी आगे बढ़ने के मौके होते हैं, बशर्ते की सही तरह से मेहनत और ईमानदारी से काम किया जाए.

Hindi Story Collection : मौत की दोषी मैं

Hindi Story Collection : शची अपने पति पल्लव के अधीनस्थ कर्मचारियों से रिश्वत ले कर उन का प्रमोशन, ट्रांसफर आदि कार्य करने के लिए पल्लव को बाध्य करती थी, लेकिन एक दिन वक्त ने उस के साथ ऐसा क्रूर मजाक किया कि उस के पास अपनी गलती पर सिर्फ पछताने के और कुछ न बचा.

‘‘मिश्राजी, अब तो आप खुश हैं न, आप का काम हो गया…आप का यह काम करवाने के लिए मुझे काफी पापड़ बेलने पड़े,’’ शची ने मिठाई का डब्बा पकड़ते हुए आदतन कहा.

‘‘भाभीजी, बस, आप की कृपा है वरना इस छोटी सी जगह में बच्चों से दूर रहने के कारण मेरा तो दम ही घुट जाता,’’मिश्राजी ने खीसें निपोरते हुए कहा.

शची की निगाह मिठाई से ज्यादा लिफाफे पर टिकी थी और उन के जाते ही वह लिफाफा खोल कर रुपए गिनने लगी. 20 हजार के नए नोट देख कर चेहरे की चमक दोगुनी हो गई थी.

शची के पति पल्लव ऐसी जगह पर कार्यरत थे कि विभाग का कोई भी पेपर चाहे वह ट्रांसफर का हो या प्रमोशन का या फिर विभागीय खरीदारी से संबंधित, बिना उन के दस्तखत के आगे नहीं बढ़ पाता था. बस, इसी का फायदा शची उठाती थी. शुरू में पल्लव शची की ऐसी हरकतों पर गुस्सा हो जाया करते थे, बारबार मना करते थे, आदर्शों की दुहाई देते थे पर लोग थे कि उन के सामने दाल न गलती देख, घर पहुंच जाया करते थे और शची उन का काम करवाने के लिए उन पर दबाव बनाती, यदि उन्हें ठीक लगता तो वे कर देते थे.

बस, लोग मिठाई का डब्बा ले कर उन के घर पहुंचने लगे…शची के कहने पर फिर गिफ्ट या लिफाफा भी लोग पकड़ाने लगे. इस ऊपरी कमाई से पत्नी और बच्चों के चेहरे पर छाई खुशी को देख कर पल्लव भी आंखें बंद करने लगे. उन के मौन ने शची के साहस को और भी बढ़ा दिया. पहले अपना काम कराने के लिए लोग जितना देते शची चुपचाप रख लेती थी किंतु जब इस सिलसिले ने रफ्तार पकड़ी तो वह डिमांड भी करने लगी.

पत्नी खुश, बच्चे खुश तो सारा जहां खुश. पहले जहां घर में पैसों की तंगी के कारण किचकिच होती रहती थी वहीं अब घर में सब तरह की चीजें थीं. यहां तक कि बच्चों के लिए अलगअलग टीवी एवं मोटर बाइक भी थीं. शची जब अपनी कीमती साड़ी और गहनों का प्रदर्शन क्लब या किटी पार्टी में करती तो महिलाओं में फुसफुसाहट होती थी पर किसी का सीधे कुछ भी कहने का साहस नहीं होता था.

कभी कोई कुछ बोलता भी तो शची तुरंत कहती, ‘‘अरे, इस सब के लिए दिमाग लड़ाना पड़ता है, मेहनत करनी पड़ती है, ऐसे ही कोई नहीं कमा लेता.’’ कहते हैं लत किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती और जब यही लत अति में बदल जाती है तो दिमाग फिरने लगता है. यही शची के साथ हुआ. पहले तो जो जितना दे जाता वह थोड़ी नानुकुर के बाद रख लेती लेकिन अब काम के महत्त्व को समझते हुए नजराने की रकम भी बढ़ाने लगी थी.

शची की समझ में यह भी आ गया है कि आज सभी को जल्दी है तथा सभी एकदूसरे को पछाड़ कर आगे भी बढ़ना चाहते हैं. और इसी का फायदा शची उठाती थी. कंपनी को अपने स्टाफ के लिए कुछ नियुक्तियां करनी थीं. पल्लव उस कमेटी के प्रमुख थे. जैसा कि हमेशा से होता आया था कि मैरिट चाहे जो हो, जो चढ़ावा दे देता था उसे नियुक्तिपत्र मिल जाता था तथा अन्य को कोई न कोई कमी बता कर लटकाए रखा जाता था.

एक जागरूक प्रत्याशी ने इस धांधली की सूचना सीबीआई को दे दी और उन्होंने उस प्रत्याशी के साथ मिल कर अपनी योजना को अंजाम दे दिया. वह प्रत्याशी मिठाई का डब्बा ले कर पल्लव के घर गया. उस दिन शची कहीं बाहर गई हुई थी अत: दरवाजा पल्लव ने ही खोला.

उस ने उन्हें अभिवादन कर मिठाई का डब्बा पकड़ाया और कहा, ‘‘सर, सेवा का मौका दें.’’

‘‘क्या काम है?’’ पल्लव ने प्रश्नवाचक नजर से उसे देखते हुए पूछा. ‘‘सर, मैं ने इंटरव्यू दिया था.’’ ‘‘तो क्या तुम्हारा चयन हो गया है?’’

‘‘जी हां, सर, पर नियुक्तिपत्र अभी तक नहीं मिला है.’’

‘‘कल आफिस में आ कर मिल लेना. तुम्हारा काम हो जाएगा.’’

‘‘धन्यवाद, सर, लिफाफा खोल कर तो देखिए, इतने बहुत हैं या कुछ और का इंतजाम करूं.’’

‘‘अरे, इस की क्या जरूरत थी… जितना भी है ठीक है,’’

पल्लव ने थोड़ा झिझक कर कहा क्योंकि उन के लिए यह पहला मौका था…यह काम तो शची ही करती थी. ‘‘सर, यह तो मेरी ओर से आप के लिए एक तुच्छ भेंट है. प्लीज, एक बार देख तो लीजिए,’’ उस प्रत्याशी ने नम्रता से सिर झुकाते हुए कहा.

पल्लव ने रुपए निकाले और गिनने शुरू कर दिए. तभी भ्रष्टाचार निरोधक दस्ते के लोग बाहर आ गए और पल्लव को धरदबोचा तथा पुलिस कस्टडी में भेज दिया. शची जब घर लौटी तो यह सब सुन कर उस ने अपना माथा पीट लिया. उसे पल्लव पर गुस्सा आ रहा था कि उन्होंने उसी के सामने रुपए गिनने क्यों शुरू किए…लेते समय सावधानी क्यों नहीं बरती. थोड़ा सावधान रहते तो मुंह पर कालिख तो नहीं पुतती.

लोग तो करोड़ों रुपए का वारान्यारा करते हैं पर फिर भी नहीं पकड़े जाते और यहां कुछ हजार रुपयों के लिए नौकरी और इज्जत दोनों जाती रहीं. इच्छाएं इस तरह उस का मानमर्दन करेंगी यह उस ने सोचा भी नहीं था. जानपहचान के लोग अब बेगाने हो गए थे. वास्तव में वह स्वयं सब से कतराने लगी थी. सब उस की अपनी वजह से हुआ था. पल्लव तो सीधेसीधे काम से काम रखने वाले थे पर उस की आकांक्षाओं के असीमित आकाश की वजह से पल्लव को यह दिन देखना पड़ा है.

शची ने यह सोच कर कि पैसे से सबकुछ संभव है, शहर का नामी वकील किया पर उस ने शची से पहले ही कह दिया, ‘‘मैडम, मैं आप को भुलावे में नहीं रखना चाहता. आप के पति रंगेहाथों पकड़े गए हैं अत: केस कमजोर है पर हां, मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करूंगा.’’ पल्लव अलग से परेशान थे क्योंकि उन की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. आश्चर्य तो शची को तब होता था जब उसे अपने पति से मिलने के लिए ही नजराना चुकाना पड़ता था. ‘‘तो क्या सारा तंत्र ही भ्रष्ट है. अगर यह सच है तो यह सब दिखावा किस लिए?’’

अपने वकील को यह बात बताई तो वह बोला, ‘‘मैडम, आज के दौर में बहुत कम लोग ईमानदार रह गए हैं. जो ईमानदार हैं उन्हें भी हमारी व्यवस्था चैन से नहीं रहने देती. आप जिन लोगों की बात कर रही हैं वे भी कहीं नौकरी कर रहे हैं, उन्हें भी अपनी नौकरी बचाने के लिए कुछ मामले चाहिए… अब उस में कौन सा मुरगा फंसता है यह व्यक्ति की असावधानी पर निर्भर है.’’

उधर पल्लव सोच रहे थे कि नौकरी गई तो गई, पूरे जीवन पर एक कलंक अलग से लग गया. जिन बीवीबच्चों के लिए मैं ने यह रास्ता चुना वही उसे अब दोष देने लगे हैं. शची तो चेहरे पर झुंझलाहट लिए मिलने आ भी रही थी पर बच्चे तो उन से मिलने तक नहीं आए थे. क्या सारा दोष उन्हीं का है? कितने अच्छे दिन थे जब शची के साथ विवाह कर के वह इस शहर में आए थे. आफिस जाते समय शची उन से शाम को जल्दी आने का वादा ले लिया करती थी. दोनों की शामें कहीं बाहर घूमने या सिनेमा देखने में गुजरती थीं. अकसर वे बाहर खा कर घर लौटा करते थे. हां, उन के जीवन में परेशानी तब शुरू हुई जब विनीत पैदा हुआ.

अभी विनीत 2 साल का ही था कि विनी आ गई और वे 2 से 4 हो गए लेकिन उन की कमाई में कोई खास फर्क नहीं आया. हमेशा हंसने वाली शची अब बातबात पर झुंझलाने लगी थी. पहले जहां वह सजधज कर गरमागरम नाश्ते के साथ उन का स्वागत किया करती थी अब बच्चों की वजह से उसे कपड़े बदलने का भी होश नहीं रहता था. पल्लव समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें? बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिल करवाने के लिए डोनेशन चाहिए था. उस स्कूल की मोटी फीस के साथ दूसरे ढेरों खर्चे भी थे…कैसे सबकुछ होगा? कहां से पैसा आएगा…यह सोचसोच कर शची परेशान हो उठती थी.

उन्हीं दिनों उन के एक मातहत का ट्रांसफर दूसरी जगह हो गया. उस ने पल्लव से निवेदन किया तो उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उस का ट्रांसफर रुकवा दिया था. इस खुशी में वह मिठाई के साथ 2 हजार रुपए भी घर दे गया. अब शची उन से इस तरह के काम करवाने का आग्रह करने लगी थी. शुरू में तो वह झिझके भी पर धीरेधीरे झिझक दूर होती गई और वह भी अभ्यस्त हो गए थे. ऊपर की कमाई के पैसों से शची के चेहरे पर आई चमक उन्हें सुकून पहुंचा जाती थी…साथ ही बच्चों की जरूरतें भी पूरी होने लगी थीं.

खूब धूमधाम से उन्होंने पिछले साल ही विनी का विवाह किया था…विनीत भी इसी वर्ष इंजीनियरिंग कर जाब में लगा है. अच्छीभली जिंदगी चल रही थी कि एकाएक वर्षों की मेहनत पर ग्रहण लग गया. तब पल्लव को भी लगने लगा था कि भ्रष्टाचार तो हर जगह है… अगर वह भी थोड़ाबहुत कमा लेते हैं तो उस में क्या बुराई है. फिर वह किसी से मांगते तो नहीं हैं, अगर कुछ लोग अपना काम होने पर कुछ दे जाते हैं तो यह तो भ्रष्ट आचरण नहीं हुआ. लगता है, उन के साथ किसी ने धोखा किया है या उन्हें जानबूझ कर फंसाया गया है.

कहते तो यही हैं कि लेने वाले से देने वाला अधिक दोषी है पर देने वाला अकसर बच निकलता है जबकि अपना काम निकलवाने के लिए बारबार लालच दे कर वह व्यक्ति को अंधे कुएं में उतरने के लिए प्रेरित करता है और प्यास बुझाने को आतुर उतरने वाला यह भूल जाता है कि कुएं में स्वच्छ जल ही नहीं गंदगी के साथसाथ कभीकभी जहरीली गैसें भी रहती हैं और अगर एक बार आदमी उस में फंस जाए तो उस से बच पाना बेहद मुश्किल होता है. बच भी गया तो अपाहिजों की तरह जिंदगी बितानी पड़ जाती है.

अब पल्लव को महसूस हो रहा था कि बुराई तो बुराई है. किसी के दिल को दुखा कर कोई सुखी नहीं रह सकता. उन्होंने अपना सुख तो देखा पर जिसे अपने सुखों में कटौती करनी पड़ी, उन पर क्या बीतती होगी…इस पर तो उन का ध्यान ही नहीं गया था. मानसिक द्वंद्व के कारण पल्लव को हार्टअटैक पड़ गया था. सीबीआई ने अपने अस्पताल में ही उन्हें भरती कराया किंतु हालत सुधरने के बजाय बिगड़ती ही जा रही थी. शची, जो इस घटना के लिए, सारी परेशानी के लिए उन्हें ही दोषी मानती रही थी…उन की बिगड़ती हालत देख कर परेशान हो उठी.

पहले जब शची ने पल्लव की बिगड़ती हालत पर सीबीआई का ध्यान आकर्षित किया था तो उन में से एक ने हंसते हुए कहा था, ‘डोंट वरी मैडम, सब ठीक हो जाएगा. यहां आने पर सब की तबीयत खराब हो जाती है.’ उस समय उस की शिकायत पर किसी ने ध्यान नहीं दिया लेकिन दूसरे दिन जब वह मिलने गई तो पल्लव को सीने में दर्द से तड़पते पाया. शची से रहा नहीं गया और वह सीबीआई के सीनियर आफिसर के केबिन में दनदनाती हुई घुस गई तथा गुस्से में बोली, ‘आप की कस्टडी में अगर पल्लव की मौत हो गई तो लापरवाही के लिए मैं आप को छोड़ूंगी नहीं. आखिर कैसे हैं आप के डाक्टर जो वास्तविकता और नाटक में भेद नहीं कर पा रहे हैं.’ शची की बातें सुन कर वह सीनियर अधिकारी पल्लव के पास गया और उन की हालत देख कर उन्हें नर्सिंग होम में शिफ्ट कर दिया पर तब तक देर हो चुकी थी.

डाक्टर ने पल्लव को भरती तो कर दिया पर अभी वह खतरे से खाली नहीं थे. रोतेरोते शची की आंखें सूज गई थीं. कोई भी तो उस का अपना नहीं था. ऐसे समय बच्चों ने भी शर्मिंदगी जताते हुए आंखें फेर ली थीं. इस दुख की घड़ी में बस, उस की छोटी बहन विभा जबतब उस से मिलने आ जाया करती थी जो बहन को समझाबुझा कर कुछ खिला जाया करती थी. शची टूट एवं थक चुकी थी. जाती भी तो जाती कहां?

घर अब वीरान खंडहर बन चुका था. अत: वह वहीं अस्पताल में स्टूल पर बैठे पति को एकटक निहारती रहती थी. पल्लव को सांस लेने में शिकायत होने पर आक्सीजन की नली लगाई गई थी. सदमा इनसान को इस हद तक तोड़ सकता है, आज उसे महसूस हो रहा था. पति की हालत देख कर शची परेशान हो जाती पर कर भी क्या सकती थी. पल्लव की यह हालत भी तो उसी के कारण हुई है. मन में हलचल मची हुई थी.

तर्कवितर्क चल रहे थे. कभी पति को इतना असहाय उस ने महसूस नहीं किया था. दोनों बच्चे अपनीअपनी दुनिया में मस्त थे. पल्लव की गिरफ्तारी की खबर सुन कर उन दोनों ने अफसोस करना तो दूर, शर्मिंदगी जताते हुए किनारा कर लिया था पर बीमार पल्लव को देख कर रहा नहीं गया तो एक बार फिर उन की बीमारी के बारे में उस ने बच्चों को बताया.

विनी ने रटारटाया वाक्य दोहरा दिया था, ‘ममा, मैं नहीं आ सकती, डैड की वजह से मैं घर के सदस्यों से नजर नहीं मिला पा रही हूं…आखिर डैड को ऐसा करने की आवश्यकता ही क्या थी?’ आना तो दूर कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया विनीत की भी थी. शची समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. बच्चों के मन में पिता के प्रति बनी छवि ध्वस्त हो गई थी…पर क्या वह नहीं जानते थे कि पिता के इतने कम वेतन में तो उन की सुरसा की तरह नित्य बढ़ती जरूरतें व इच्छाएं पूरी नहीं हो सकती थीं.

शची को अपनी कोख से जन्मी संतानों से नफरत होने लगी थी. कितने स्वार्थी हो गए हैं दोनों…पिता तो पिता उन्हें मां की भी चिंता नहीं रही…उस मां की जिस ने उन के अरमानों को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास किए, उन्हीं के लिए गलत रास्ता अपनाया, हर सुखसुविधा दी…अच्छे से अच्छे स्कूल में शिक्षा दिलवाई, धूमधाम से विवाह किया…यहां तक कि दहेज में विनी को जब कार दी थी तब तो उस ने नहीं पूछा कि ममा, इतना सब कैसे कर पा रही हो. ‘तुम बच्चों को क्यों दोष दे रही हो शची?’

उस के मन ने उस से पूछा, ‘उन्होंने तो वही किया जिस के वह आदी रहे थे… जैसे माहौल में तुम ने उन्हें पाला वैसे ही वह बनते गए. क्या तुम ने कभी किसी कमी का एहसास उन्हें कराया या तंगी में रहने की शिक्षा दी…पल्लव तो आदर्शवादी रहे थे, चोरीछिपे किए तुम्हारे काम से नाराज भी हुए थे तब तो तुम्हीं कहा करती थीं कि मैं सिर्फ वेतन में घर का खर्च नहीं चला सकती…तुम तो कुछ नहीं कर रहे हो, जो भी कर रही हूं वह मैं कर रही हूं…और हम मांग तो नहीं रहे…अगर थोड़ाबहुत कोई अपनी खुशी से दे जाता है तो आप को बुरा क्यों लगता है?’

अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन वह बोल पड़ी, ‘पर मैं ऐसा तो नहीं चाहती थी.’ ‘ठीक है, तुम ऐसा नहीं चाहती थीं पर क्या तुम्हें पता नहीं था कि जो जैसा करता है उस का फल उसे भुगतना ही पड़ता है’ अपनी आत्मा के साथ हुए वादविवाद से अब शची को एहसास हो गया था कि उसी ने बुराई को प्रश्रय दिया था. पल्लव के विरोध करने पर तकरार होती पर अंतत: जीत उस की ही होती. पल्लव चुप हो जाते फिर घर में खुशी के माहौल को देख कर वह भी उसी के रंग में रंगते गए. अगर वह पल्लव को मजबूर नहीं करती, उन की सीमित आय में ही घर चलाती और बच्चों को भी वैसी ही शिक्षा देती तो आज पल्लव का यह हाल न होता…कहीं न कहीं पल्लव के इस हाल के लिए वही दोषी है. पल्लव ने उस की खातिर बुराई का मुखौटा तो पहन लिया था पर शायद मन के अंदर की अच्छाई को मार नहीं पाए थे तभी तो अपनी छीछालेदर सह नहीं पाए और बीमार पड़ गए पर अब पछताए होत क्या जब चिडि़यां चुग गईं खेत. पल्लव की हिचकी ने उस के मन में चल रहे अंधड़ को रोका. उन्हें तड़पते देख कर वह डाक्टर को बुलाने भागी और जब तक डाक्टर आए तब तक सब समाप्त हो चुका था.

उस की आकांक्षाओं के आकाश ने उस का घरसंसार उजाड़ दिया था. खबर सुन कर विभा भागीभागी आई और उसे देखते ही शची चीत्कार कर उठी, ‘‘पल्लव की मौत के लिए मैं ही दोषी हूं…मैं ही उन की हत्यारिन हूं… पल्लव निर्दोष थे…मेरी गलती की सजा उन्हें मिली…’’ शची का मर्मभेदी प्रलाप सुन कर विभा समझ नहीं पा रही थी कि कैसे उसे संभाले. सचाई का एहसास एक न एक दिन सब को होता है पर यहां देर हो गई थी.

लेखिका –  सुधा आदेश

Latest Hindi Stories :  एक और परिणीता

Latest Hindi Stories :  अपने चेहरे की विकृति के कारण स्वर्णा अपने सहयोगियों के तानों से परेशान हो चुकी थी लेकिन शिवेन के लिए उस की यह विकृति कोई माने नहीं रखती थी. शिवेन के उदार स्वभाव से हैरान स्वर्णा के सामने यह राज तब खुला जब वह शिवेन की अनुपस्थिति में उस के घर पहुंची. शिवेन दत्त के चार्ज लेते ही पूरे दफ्तर में खलबली मच गई कि दादा अडि़यल इनसान हैं. हां, चपरासी और मेकैनिक खुश हैं. दोनों की खुशी की वजह अलगअलग हैं. चपरासी तो इसलिए खुश हैं कि बाबुओं की तीमारदारी से उन्हें अब कुछ राहत मिलेगी.

मेकैनिक खुश हैं कि शिवेन दत्त तकनीकी जानकारी रखते हैं और उन का चयन योग्यता के आधार पर हुआ है, किसी की सिफारिश से नहीं. दूर संचार विभाग के मैनेजर पद पर आंखें तो बहुत से लोग गड़ाए बैठे थे मगर इन में से एक भी तकनीकी जानकारी नहीं रखता था और विभाग को ऐसे इंजीनियर की तलाश थी जो आज के तेज रफ्तार संचार माध्यमों का सही ढंग से संचालन कर सके. इसीलिए चयन कार्यक्रम में पूरी तरह से पारदर्शिता बरती गई. दूर संचार विभाग में काम करने वाली महिलाओं का अपना एक संगठन भी था जिस की अध्यक्ष स्वर्णा कपूर थी.

वह बोलती कम पर लिखती अधिक थी. आएदिन किसी न किसी पुरुषकर्मी की शिकायत लिख कर वह अधिकारी के पास भेजती रहती थी और पुरुषकर्मी अपना शिकायतीपत्र पी.ए. को कुछ दे कर हथिया लेते थे. कहने का मतलब यह कि स्वर्णा कपूर किसी का कुछ भी बिगाड़ नहीं सकी. नई झाड़ू जरा जोरदार सफाई करती है. इस कहावत को ध्यान में रखते हुए सभी पुरुषकर्मी कुछ अधिक चौकन्ने हो गए थे. शिवेन दत्त ने स्वर्णा कपूर को पहली बार तब देखा जब वह लंबी छुट्टी मांगने उन के पास आई. साड़ी का पल्लू शौल की तरह लपेटे वह किसी मूर्ति की तरह मेज के पास जा खड़ी हुई. शिवेन दत्त खामोशी की उस मूर्ति को देखते ही हतप्रभ रह गए.

स्वर्णा पलकें झुकाए दृढ़ स्वर में बोली, ‘‘अगर आप छुट्टी मंजूर नहीं करेंगे तो मैं नौकरी से इस्तीफा दे दूंगी, क्योंकि मैं कभी छुट्टी नहीं लेती हूं.’’

शिवेन दत्त जैसे जाग पड़े, ‘‘तो फिर आज क्यों? और वह भी इतनी लंबी छुट्टी ली जा रही है?’’
‘‘एम.ए. फाइनल की परीक्षा देनी है मुझे.’’ शाम को काम खत्म कर शिवेन जाने लगे तो अपने पी.ए. से पूछ बैठे, ‘‘कब से हैं मिसेज कपूर यहां?’’

‘‘5 बरस तो हो ही गए हैं. पर सर, आप इन्हें मिसेज नहीं मिस कहिए.’’
‘‘शटअप,’’ शिवेन ने डांट दिया.
बचपन में मैनिंजाइटिस होने से स्वर्णा का मुंह टेढ़ा हो गया और जवानी में वह हताश व कुंठित थी, क्योंकि दोनों छोटी बहनों की शादी हो चुकी थी. स्वर्णा को सितार सिखाने वाली महिला, जिसे पति की जगह दूर संचार विभाग में नौकरी मिली थी, ने स्वर्णा को दूर संचार विभाग में काम करने का रास्ता दिखाया और वह टेलीफोन आपरेटर बन गई. शिवेन का अपने विभाग पर ऐसा दबदबा कायम हुआ कि हर बात में निंदा करने वाले भी अब उन की बात मानने लगे. यही नहीं, उन्होंने अपनी मेजकुरसी हाल में ही एक ओर लगवा ली ताकि सब को उन के होने का एहसास बना रहे.

उन से खार खाने वाले अधेड़ उम्र के सहकर्मी भी उन के विनम्र स्वभाव से दब गए. 3 महीने पलक झपकते ही निकल गए. स्वर्णा जब लौट कर दफ्तर आई तो किसी पुराने मनचले ने फब्ती कसी, ‘‘डिगरी पर डिगरी लिए जाओ, बरात नहीं आने वाली.’’ इस फब्ती से प्रथम श्रेणी में डिगरी हासिल करने का गर्व व खुशी मटियामेट हो गई. स्वर्णा ने एक बार फिर अपने आंसू पी लिए. शिवेन के पी.ए. ने जा कर जब यह छिछोरा व्यंग्य उन्हें सुनाया तो वह भी तिलमिला पड़े पर वह जानते थे कि स्वर्णा उन से कहने नहीं आएगी.

अगली बार वह स्वर्णा के सामने से गुजरे तो अनायास रुक गए और एक अभिभावक की तरह उन्होंने नम्र स्वर में पूछा, ‘‘पास हो गईं?’’ ‘‘जी,’’ स्वर्णा ने गरदन नीची किए ही उत्तर दिया. ‘‘मिठाई नहीं खिलाओगी?’’
‘‘जी, पापाजी से कह दूंगी.’’ अगले दिन स्वर्णा मिठाई का कटोरदान ले कर शिवेन की मेज के सामने जा खड़ी हुई तो वह कुछ झेंप से गए.

‘‘अरे, आप…मैं ने तो यों ही कह दिया था.’’ ‘‘मैं ने खुद बनाए हैं,’’ स्वर्णा उत्साह से बोली.
शिवेन ने 1 लड्डू उठा लिया और कहा कि बाकी लड्डुओं को अपने सहकर्मियों में बांट दो. इस के कुछ दिन बाद ही सरकारी आदेश आया कि रात की ड्यूटी के लिए कुछ टेलीफोन आपरेटर रखे जाएंगे जिन्हें तनख्वाह के अलावा अलग से भत्ता मिलेगा. मौजूदा कर्मचारियों को प्राथमिकता दी जाएगी. स्वर्णा ने रात की शिफ्ट में काम करने का मन बनाया तो मिसेज ठाकुर भी उस के साथ हो लीं. तय हुआ कि रात को आते समय दफ्तर के ही सरकारी चौकीदार को कुछ रुपए महीना दे देंगी ताकि वह उन को घर तक छोड़ जाया करेगा.

यह सबकुछ इतना गोपनीय ढंग से हुआ कि विभाग में किसी को पता ही नहीं चला. स्वर्णा को अपनी जगह न देख कर शिवेन ने पूछताछ की तो पता चला कि स्वर्णा और मिसेज ठाकुर ने शाम की शिफ्ट ली है. उस रात जब दोनों ड्यूटी खत्म कर बाहर निकलीं तो जहां उन का रिकशा और चपरासी खड़ा होता था वहां शिवेन अपनी जीप ले कर खुद खड़े थे. दोनों को जीप में बैठने का आदेश दिया और खुद चालक की सीट पर बैठ कर जीप चलाने लगे. पहले स्वर्णा को उस के घर छोड़ा फिर मिसेज ठाकुर जब अकेली रह गईं तो उन्हें आड़े हाथों लिया.

अपनी सफाई में मिसेज ठाकुर ने सारा सच उगल दिया. ‘‘सर, आप समझने की कोशिश कीजिए. दफ्तर के लोगों ने स्वर्णा का जीना दूभर कर दिया था. कौन क्या कहता है आप को शायद इस का आभास नहीं है.’’ ‘‘एक कुंआरी लड़की का रात को बाहर अकेले काम पर जाना क्या ठीक है?’’ ‘‘नहीं, मगर यहां उसे कोई छेड़ता तो नहीं है. रामदेवजी बाप की तरह उसे स्नेह देते हैं. मैं उस के साथ हूं. रिकशे वाले को मैं पिछले 15 साल से जानती हूं.’’ ‘‘अच्छा, आप लोगों को रात के समय घर छोड़ने के लिए कल से आरिफ रोज जीप ले कर आएगा,’’ शिवेन बोले, ‘‘कुछ ही दिनों में मैं आप लोगों के लिए एक वैन का इंतजाम करा दूंगा.’’ कभीकभी शिवेन विभाग में दौरा करने आते तो स्वर्णा से हालचाल पूछ लेते. धीरेधीरे शिवेन स्वर्णा से इधरउधर की भी बातें करने लगे. मसलन, कौनकौन से लेखक तुम्हें पसंद हैं, कहांकहां घूमी हो, क्याक्या तुम्हारी अभिरुचि है.

स्वर्णा उत्तर देने में झिझकती. मिसेज ठाकुर ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘मित्रता बुरी नहीं होती. बातचीत से आत्मविश्वास पनपता है.’’ एक दिन रामदेव ने कहा, ‘‘बेटी, शिवेन को तुम्हारी बड़ी चिंता रहती है,’’ और उस पर गहरी नजर डाल दी. स्वर्णा संभल गई. अगली बार जब शिवेन उस के पास बैठ कर शहर में लगी फिल्मों की बात करने लगे तो वह झुंझला कर बोली, ‘‘सर, मेरे पास इतना समय नहीं है कि फिल्में देखती फिरूं.’’ उस की इस बेरुखी से शिवेन शर्मिदा हो चुपचाप वहां से हट गए. स्वर्णा का मन फिर काम में नहीं लगा. अनमनी सी सोचने लगी कि सब तो उस के चेहरे का इतिहास पूछते हैं, फिर सहानुभूति जताते हैं और उस के अंदर की वेदना को जगा कर अपना मनोरंजन करते हैं. लेकिन इस व्यक्ति ने कभी भी उस से वह सबकुछ नहीं पूछा जो और लोग पूछते हैं. शिवेन फिर दिखाई नहीं दिए. अगर आते भी थे तो रामदेव से औपचारिक पूछताछ कर के चले जाते थे. उधर स्वर्णा की बेचैनी बढ़ने लगी. हर रोज उस की आंखें बारबार दरवाजे की ओर उठ जातीं. इतने सरल, स्वच्छ इनसान पर उस ने यह कैसा वार किया. क्या बुरा था. दो बातें ही तो वह करते थे. हंसनामुसकराना जुर्म है क्या.

वह तो उस के संग हंसते थे न कि उस पर. अपने ही अंतर्द्वंद्व में उलझी स्वर्णा को जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो एक दिन बिना किसी को कुछ बताए उस ने एक छोटा सा पत्र लिख कर डाक द्वारा शिवेन को भिजवा दिया. कई दिनों तक कोई उत्तर नहीं आया. फिर एक पत्र उस के घर के पते पर सरकारी लिफाफे में आया जिस में उसे एक नए पद के साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था. दिल्ली से आए 3 उच्च अधिकारियों ने उस का साक्षात्कार लिया और वह सहायक प्रबंधक के रूप में चुन ली गई. शिवेन के सामने वाले कमरे में अब उस की मेज लगा दी गई थी.

उसे प्रबंधन व नियंत्रण की सारी जानकारी शिवेन स्वयं देने लगे. वह एक चतुर शिष्या की तरह सब ग्रहण करती गई. ऊपर से भले ही सबकुछ शांत था पर अंदर ही अंदर इस नई नियुक्ति को ले कर दफ्तर में काफी उथलपुथल थी. आतेजाते किसी ने वही पुराना राग छेड़ दिया, ‘‘यार, नया न सही, 4 बच्चों वाला ही सही.’’ स्वर्णा तिलमिला कर रह गई. घर आने के बाद रोरो कर उस ने अपनी आंखें सुजा लीं. दशहरे पर शिवेन ने 15 दिन की छुट्टी ली तो उन की गैरमौजूदगी में स्वर्णा बिना किसी सहायता के विभाग सुचारु रूप से चलाती रही. इसी दौरान एक दिन घर पर शिवेन का फोन आया.

दफ्तर के बाबत औपचारिक बातें करने के बाद उसे बाजार की एक बड़ी दुकान के बाहर मिलने को कहा. स्वर्णा ने घर में किसी को कुछ नहीं बताया और मिलने चली गई. शिवेन ने उस की पसंद से अपनी मां और बहन के लिए कपड़ों की खरीदारी की. फिर दोनों एक रेस्तरां में बैठ कर इधरउधर की बातें करते रहे.

बातों के सिलसिले में ही स्वर्णा पूछ बैठी, ‘‘बच्चों के लिए कुछ नहीं लिया आप ने?’’ ‘‘नहीं,’’ शिवेन एकदम खिलखिला कर हंस दिए और बोले, ‘‘किस के बच्चे? मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है.’’ स्वर्णा अविश्वास से बोली, ‘‘दफ्तर में तो सब कहते हैं कि आप 4 बच्चों के बाप हैं.’’ ‘‘स्वर्णा, मेरी उम्र 36 साल हो गई है पर मैं कुंआरा हूं. अगर एक 30 साल की स्त्री कुंआरी हो तो लोग कहते हैं कि किसी ने उसे पसंद नहीं किया. मगर एक पुरुष अविवाहित रहे तो जानती हो लोग उस के विषय में क्या सोचते हैं…मैं शादीशुदा हूं यही भ्रम बना रहे तो अच्छा है.’’ शिवेन ने अपना हृदय खोल कर रख दिया था और स्वर्णा जीवन में पहली बार किसी की राजदार बनी थी. 2 दिन बाद शिवेन ने स्वर्णा को अपने साथ सिनेमा देखने के लिए आमंत्रित किया. इस बार भी वह घर से बहाना बना कर शिवेन के साथ चली गई. यद्यपि इस तरह घर वालों से झूठ बोल कर जाने पर उस के मन ने उसे धिक्कारा था मगर इस खतरे में बाजी जीत जाने का स्वाद भी था. कोई उसे भी चाह रहा था, यह एहसास होते ही उस के सपने अंगड़ाई लेने लगे थे. वह सुबह उठती तो अपनी उनींदी मुसकान उसे समेटनी पड़ती. कहीं कोई कुछ पूछ न ले. अगली शाम वह उसी दुकान पर गई और अपने लिए सुंदर साडि़यां खरीद लाई. फिर जाने क्या सोच कर अपनी मां के लिए ठीक वैसी ही साड़ी खरीदी जैसी शिवेन की मां के लिए उस ने पसंद की थी. मां को ला कर साड़ी दी तो वह उदास स्वर में बोलीं, ‘‘क्या मेरी तकदीर में बेटी की कमाई की साड़ी ही लिखी है?’’ ‘‘मां, तुम यह क्यों नहीं समझ लेतीं कि मैं तुम्हारा बेटा हूं.’’ स्वर्णा अपनी खुशी में मिसेज ठाकुर को शरीक करने के लिए उन के घर की ओर चल दी. धीरेधीरे उन्हें सबकुछ बता दिया. वह गंभीर हो गईं. समझाते हुए बोलीं, ‘‘स्वर्णा, तुम जवान लड़की हो. आगेपीछे सोच कर कदम उठाना. शिवेन बड़े ओहदे वाला इनसान है.

क्या तुम्हें अपनी बिरादरी के सामने स्वीकार करेगा? कहीं ऐसा न हो कि जिस दिन उसे अपनी बिरादरी की कोई अच्छी लड़की मिले तो तुम्हें फटे कपड़े की तरह छोड़ दे. थोड़े दिनों की खुशी के लिए जीवन भर का दुख मोल लेना कहां की समझदारी है? अब अगर शिवेन बुलाए तो मत जाना.’’ अगली बार शिवेन ने फोन पर उसे अपने घर आने के लिए कहा. स्वर्णा ने पहली बार टाल दिया. लेकिन दूसरी बार शिवेन ने फिर बुलाया तो उस ने मिसेज ठाकुर को बताया. सुनते ही वह भड़क उठीं. ‘‘देखा न, घर पर बुला रहा है. इस का इरादा कतई नेक नहीं है, कुछ करना पड़ेगा.’’ ‘‘दीदी, अगर मैं नहीं गई तो भी वह बदला निकाल सकते हैं. मेरी नौकरी और पदोन्नति का भी तो खयाल करो. सब उन्हीं की मेहरबानी है. टेलीफोन पर उन की बातों से ऐसा नहीं लगता कि उन का कोई बुरा इरादा होगा. समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं क्या न करूं.’’

‘‘ठीक से सोच लो, स्वर्णा. जाना तो तुम्हें कल है.’’ मिसेज ठाकुर के घर से लौटते समय आगे की सोच कर उस का गला सूखा जा रहा था. मन का तनाव उस की नसनस में बह रहा था. अनायास उस ने महसूस किया कि वह नितांत अकेली है. उस के आसपास के सभी व्यक्ति, जो उस पर अधिकार जताते हैं, किसी न किसी डर के अधीन हैं. अपनीअपनी सामाजिकता से बंधे पालतू पशुओं की तरह एक नियत जीवनयापन कर रहे हैं. दादी को जातबिरादरी का डर, पिताजी को अपने कर्तव्य से गिर जाने का डर, मां को इन दोनों को नाराज करने का डर और इन सब के नीचे, लगभग कुचला हुआ उस का अपना अस्तित्व था. इन सब के विपरीत उस के मन को एक शिवेन ही तो था जो बादलों तक उड़ा ले जा रहा था.

शिवेन का खयाल आते ही उस का अंगअंग झंकृत हो उठा. सहसा उसे लगा कि वह इतनी हलकी है कि कोई शिला उसे पूरी तरह दबा दे, नहीं तो वह उड़ जाएगी. वह अपने ही हाथपैरों को कस कर समेटे गठरी सी बनी खिड़की के बाहर देखती कब सो गई उसे पता ही न चला. सुबह आंख खुली तो उस की नजर सामने अलमारी पर पड़ी जिस के एक खाने में उस की दोनों छोटी बहनों के विवाह की तसवीरें रखी थीं. उन के ठीक बीच में एक बंगाली दूल्हादुलहन की जोड़ी रखी थी जो वर्षों पहले उस ने एक मेले से खरीदी थी. सुबह उस ने अपना फैसला फोन पर मिसेज ठाकुर को सुनाया. वह बोली, ‘‘चलो, मैं तुम्हारे साथ चलती हूं. तुम आगे जा कर दरवाजा खुलवाना. बाहर ही खड़ी रह कर बात करना. यदि अंदर आने के लिए शिवेन जोर दें तो बताना मैं भी साथ हूं. रिकशे वाला भी हमारा अपना है. यदि जरूरत पड़ी तो शोर मचा देंगे.’’ हिम्मत कर के स्वर्णा शिवेन के घर चल दी. मिसेज ठाकुर भी रिकशे में पीछेपीछे हो लीं. शिवेन का मकान कई गलियों से गुजरने के बाद मिला था. स्वर्णा ने दरवाजा खटखटाया. अंदर से एक स्त्री कंठ ने कहा, ‘‘कौन है, दरवाजा खुला है, आ जाओ.’’ स्वर्णा ने अपना नाम बताया और दरवाजा जरा सा खोला तो वह पूरा ही खुल गया. सामने आंगन में बैठी एक अधेड़ उम्र की महिला उसे बुला रही थी. स्वर्णा ने दरवाजा खुला ही छोड़ दिया क्योंकि उस के ठीक सामने 10 गज की दूरी पर मिसेज ठाकुर उसे अपने रिकशे में बैठेबैठे देख सकती थीं. ‘‘बेटी शेफाली, देखो, स्वर्णा आई है.’’ शेफाली धड़धड़ाती हुई सीढि़यों से उतरी और स्वर्णा को प्रेम से गले लगाया. ‘‘शिबू ने बताया था कि आप आएंगी. वह कोलकाता गया है. परसों आ जाएगा. आइए, बैठिए.’’ शेफाली को देख कर स्वर्णा का मुंह खुला का खुला रह गया, क्योंकि उस का ऊपर का होंठ बीच में से कटा हुआ था. इस के बाद भी शेफाली ने सहज ढंग से उस की खातिर की. मांजी के पास रखे बेंत के मूढ़ों पर दोनों बैठीं बातचीत करती रहीं. नाश्ता किया और फिर शेफाली उसे अपना घर दिखाने के लिए अंदर ले गई. स्वर्णा ने देखा कि शिवेन के कमरे में ढेरों पुस्तकें पड़ी थीं. एक कोने में सितार रखा था. शेफाली ने बताया, ‘‘शिबू मुझ से 3 साल छोटा है और वह तुम को बेहद पसंद भी करता है. इस से पहले शिवेन ने कभी अपनी शादी की बात नहीं की थी.

तुम पहली लड़की हो जो उस के जीवन में आई हो. ‘‘आज से 20 साल पहले जब पिताजी का देहांत हुआ था तब मैं 19 साल की थी और शिवेन 16 का रहा होगा. इतनी छोटी उम्र में ही उस पर मेरी शादी का बोझ आ पड़ा. मेरा ऊपर का होंठ जन्म से ही विकृत था. विकृति के कारण रिश्तेदारों ने मेरे योग्य जो वर चुने उन में से कोई विधुर था, कोई अपंग. स्वयं अपंग होते हुए भी लोग मुझे देख कर मुंह बना लेते थे. ‘‘एक दिन एक आंख से अपंग व्यक्ति ने जब मुझे नकार दिया तो शिवेन उसे बहुत भलाबुरा कहते हुए बोला कि चायमिठाई खाने आ जाते हैं, अपनी सूरत नहीं देखते. ‘‘इस बात को ले कर हमारे रिश्तेदारों ने हमें बहुत फटकारा. बस, उसी दिन मैं ने शिवेन को बुला कर कह दिया कि बंद करो यह नाटक.

मुझे किसी से शादी नहीं करनी है. शिवेन रोते हुए बोला, ‘ऐसा मत सोचिए, दीदी. मैं अपना फर्ज पूरा नहीं करूंगा तो समाज यही कहेगा कि बाप रहता तो बेटी कुंआरी तो न बैठी रहती,’’’ शेफाली स्वर्णा को बता रही थी. ‘‘ बाबा मेरी शादी करवा सकते थे क्या?’’ क्या उन के पास देने के लिए लाखों रुपए का दहेज था?’ मैं ने शिवेन से पूछा, ‘अभी तू छोटा है तभी फर्ज की बात कर रहा है. कल को जब तू शादी लायक होगा तो क्या तू मेरी जैसी लड़की से शादी कर लेगा? दूसरों को क्यों लज्जित करता है?’ ‘‘बस, उसी दिन से उस ने शपथ ले ली कि विकृत चेहरे वाली लड़की से ही शादी करूंगा.’’

थोड़ा रुक कर शेफाली फिर बोली, ‘‘स्वर्णा, जिस दिन पहली बार उस ने तुम्हें देखा था उसी दिन शिबू ने तुम से शादी के लिए अपना मन बना लिया था. इस पर तुम इतनी गुणी निकलीं. अब तुम्हारी बारी है. घरबार भी तुम ने देख लिया है. बोलो, क्या कहती हो?’’

स्वर्णा ने दोनों हाथों से अपना मुंह ढांप लिया. उस की रुलाई फूट पड़ी. शेफाली ने उसे गले से लगाया. स्वर्णा चुपचाप उठी, साड़ी का पल्लू पीछे से खींच कर सर ढक लिया और घुटनों के बल बैठ कर मांजी के पांव छुए. स्वर्णा जाते समय धीरे से शेफाली से बोली, ‘‘आज से चौथे दिन मैं आप सब का अपने घर पर इंतजार करूंगी.’’

Best Hindi Stories : शादी की सेकंड इनिंग

Best Hindi Stories: मानसी का मन बेहद उदास था. एक तो छुट्टी दूसरे चांदनी का ननिहाल चले जाना और अब चांदनी के बिना अकेलापन उसे काट खाने को दौड़ रहा था. मानसी का मन कई तरह की दुश्ंिचताओं से भर जाता. सयानी होती बेटी वह भी बिन बाप की. कहीं कुछ ऊंचनीच हो गया तो. चांदनी की गैरमौजूदगी उस की बेचैनी बढ़ा देती. कल ही तो गई थी चांदनी. तब से अब तक मानसी ने 10 बार फोन कर के उस का हाल लिया होगा. चांदनी क्या कर रही है? अकेले कहीं मत निकलना. समय पर खापी लेना. रात देर तक टीवी मत देखना. फोन पर नसीहत सुनतेसुनते मानसी की मां आजिज आ जाती.

‘‘सुनो मानसी, तुम्हें इतना ही डर है तो ले जाओ अपनी बेटी को. हम क्या गैर हैं?’’ मानसी को अपराधबोध होता. मां के ही घर तो गई है. बिलावजह तिल का ताड़ बना रही है. तभी उस की नजर सुबह के अखबार पर पड़ी. भारत में तलाक की बढ़ती संख्या चिंताजनक…एक जज की इस टिप्पणी ने उस की उदासी और बढ़ा दी. सचमुच घर एक स्त्री से बनता है. एक स्त्री बड़े जतन से एकएक तिनका जोड़ कर नीड़ का निर्माण करती है. ऐसे में नियति उसे जब तहसनहस करती है तो कितनी अधिक पीड़ा पहुंचती है, इस का सहज अनुमान लगा पाना बहुत मुश्किल होता है. आज वह भी तो उसी स्थिति से गुजर रही है. तलाक अपनेआप में भूचाल से कम नहीं होता. वह एक पूरी व्यवस्था को नष्ट कर देता है पर क्या नई व्यवस्था बना पाना इतना आसान होता है. नहीं…जज की टिप्पणी निश्चय ही प्रासंगिक थी.

पर मानसी भी क्या करती. उस के पास कोई दूसरा रास्ता न था. पति घर का स्तंभ होता है और जब वह अपनी जिम्मेदारी से विमुख हो जाए तो अकेली औरत के लिए घर जोड़े रखना सहज नहीं होता. मानसी उस दुखद अतीत से जुड़ गई जिसे वह 10 साल पहले पीछे छोड़ आई थी. उस का अतीत उस के सामने साकार होने लगा और वह विचारसागर में डूब गई. उस की सहकर्मी अचला ने उस दिन पहली बार मानसी की आंखों में गम का सागर लहराते देखा. हमेशा खिला रहने वाला मानसी का चेहरा मुरझाया हुआ था. कभी सास तो कभी पति को ले कर हजार झंझावातों के बीच अचला ने उसे कभी हारते हुए नहीं देखा था. पर आज वह कुछ अलग लगी. ‘मानसी, सब ठीक तो है न?’ लंच के वक्त उस की सहेली अचला ने उसे कुरेदा. मानसी की सूनी आंखें शून्य में टिकी रहीं. फिर आंसुओं से लबरेज हो गईं.

‘मनोहर की नशे की लत बढ़ती ही जा रही है. कल रात उस ने मेरी कलाई मोड़ी…’ इतना बतातेबताते मानसी का कंठ रुंध गया. ‘गाल पर यह नीला निशान कैसा…’ अचला को कुतूहल हुआ. ‘उसी की देन है. जैकेट उतार कर मेरे चेहरे पर दे मारी. जिप से लग गई.’ इतना जालिम है मानसी का पति मनोहर, यह अचला ने सपने में भी नहीं सोचा था.  मानसी ने मनोहर से प्रेम विवाह किया था. दोनों का घर आसपास था इसलिए अकसर उन दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. एक रोज मनोहर मानसी के घर आया तो मानसी की मां पूछ बैठीं, ‘कौन सी क्लास में पढ़ते हो?’ ‘बी.ए. फाइनल,’ मनोहर ने जवाब दिया था. ‘आगे क्या इरादा है?’ ‘ठेकेदारी करूंगा.’ मनोहर के इस जवाब पर मानसी हंस दी थी. ‘हंस क्यों रही हो? मुझे ढेरों पैसे कमाने हैं,’ मनोहर सहजता से बोला. उधर मनोहर ने सचमुच ठेकेदारी का काम शुरू कर दिया था. इधर मानसी भी एक स्कूल में पढ़ाने लगी.

24 साल की मानसी के लिए अनेक रिश्ते देखने के बाद भी जब कोई लायक लड़का न मिला तो उस के पिता कुछ निराश हो गए. मानसी की जिंदगी में उसी दौरान एक लड़का राज आया. राज भी उसी के साथ स्कूल में पढ़ाता था. दोनों में अंतरंगता बढ़ी लेकिन एक रोज राज बिना बताए चेन्नई नौकरी करने चला गया. उस का यों अचानक चले जाना मानसी के लिए गहरा आघात था. उस ने स्कूल छोड़ दिया. मां ने वजह पूछी तो टाल गई. अब वह सोतेजागते राज के खयालों में डूबी रहती.

करवटें बदलते अनायास आंखें छलछला आतीं. ऐसे ही उदासी भरे माहौल में एक दिन मनोहर का उस के घर आना हुआ. डूबते हुए को तिनके का सहारा. मानसी उस से दिल लगा बैठी. यद्यपि दोनों के व्यक्तित्व में जमीनआसमान का अंतर था पर किसी ने खूब कहा है कि खूबसूरत स्त्री के पास दिल होता है दिमाग नहीं, तभी तो प्यार में धोखा खाती है. मनोहर से मानसी को तत्काल राहत तो मिली पर दीर्घकालीन नहीं.

मांबाप ने प्रतिरोध किया. हड़बड़ी में शादी का फैसला लेना उन्हें तनिक भी अच्छा न लगा. पर इकलौती बेटी की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा. मानसी की सास भी इस विवाह से नाखुश थीं इसलिए थोड़े ही दिनों बाद उन्होंने रंग दिखाने शुरू कर दिए. मानसी का जीना मुश्किल हो गया. वह अपना गुस्सा मनोहर पर उतारती. एक रोज तंग आ कर मानसी ने अलग रहने की ठानी. मनोहर पहले तो तैयार न हुआ पर मानसी के लिए अलग घर ले कर रहने लगा.

यहीं मानसी ने एक बच्ची चांदनी को जन्म दिया. बच्ची का साल पूरा होतेहोते मनोहर को अपने काम में घाटा शुरू हो गया. हालात यहां तक पहुंच गए कि मकान का किराया तक देने के पैसे न थे. हार कर उन्हें अपने मांबाप के पास आना पड़ा. मानसी ने दोबारा नौकरी शुरू कर दी. मनोहर ने लगातार घाटे के चलते काम को बिलकुल बंद कर दिया. अब वह ज्यादातर घर पर ही रहता. ठेकेदारी के दौरान पीने की लत के चलते मनोहर ने मानसी के सारे गहने बेच डाले.

यहां तक कि अपने हाथ की अंगूठी भी शराब के हवाले कर दी. एक दिन मानसी की नजर उस की उंगलियों पर गई तो वह आपे से बाहर हो गई, ‘तुम ने शादी की सौगात भी बेच डाली. मम्मी ने कितने अरमान से तुम्हें दी थीं.’ मनोहर ने बहाने बनाने की कोशिश की पर मानसी के आगे उस की एक न चली. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा होने लगा. तभी मानसी की सास की आवाज आई, ‘शोर क्यों हो रहा है?’ ‘आप के घर में चोर घुस आया है.’

वह जीने से चढ़ कर ऊपर आईं. ‘कहां है चोर?’ उन्होंने चारों तरफ नजरें दौड़ाईं. मानसी ने मनोहर की ओर इशारा किया, ‘पूछिए इन से… अंगूठी कहां गई.’ सास समझ गईं. वह कुछ नहीं बोलीं. उलटे मानसी को ही भलाबुरा कहने लगीं कि अपने से छोटे घर की लड़की लाने का यही नतीजा होता है. मानसी को यह बात लग गई. वह रोंआसी हो गई. आफिस जाने को देर हो रही थी इसलिए जल्दीजल्दी तैयार हो कर इस माहौल से वह निकल जाना चाहती थी.

शाम को मानसी घर आई तो जी भारी था. आते ही बिस्तर पर निढाल पड़ गई. अपने भविष्य और अतीत के बारे में सोचने लगी. क्या सोचा था क्या हो गया. ससुर कभीकभार मानसी का पक्ष ले लेते थे पर सास तो जैसे उस के पीछे पड़ गई थीं. एक दिन मनोहर कुछ ज्यादा ही पी कर आया था. गुस्से में पिता ने उसे थप्पड़ मार दिया. ‘कुछ भी कर लीजिए आप, मैं  पीना  नहीं  छोड़ूंगा. मुझे अपनी जिंदगी की कोई परवा नहीं. आप से पहले मैं मरूंगा. फिर नाचना मानसी को ले कर इस घर में अकेले.’ शराब अधिक पीने से मनोहर के गुरदे में सूजन आ गई थी. उस का इलाज उस के पिता अपनी पेंशन से करा रहे थे. डाक्टर ने तो यहां तक कह दिया कि अगर इस ने पीना नहीं छोड़ा तो कुछ भी हो सकता है. फिर भी मनोहर की आदतों में कोई बदलाव नहीं आया था. मानसी ने लाख समझाया, बेटी की कसम दी, प्यार, मनुहार किसी का भी उस पर कोई असर नहीं हो रहा था.

बस, दोचार दिन ठीक रहता फिर जस का तस. मानसी लगभग टूट चुकी थी. ऐसे ही उदास क्षणों में मोबाइल की घंटी बजी. ‘हां, कौन?’ मानसी पूछ बैठी. ‘मैं राज बोल रहा हूं. होटल अशोक के कमरा नं. 201 में ठहरा हूं. क्या तुम किसी समय मुझ से मिलने आ सकती हो,’ उस के स्वर में निराशा का भाव था. राज आया है यह जान कर वह भावविह्वल हो गई. उसे लगा इस बेगाने माहौल में कोई एक अपना हमदर्द तो है. वह उस से मिलने के लिए तड़प उठी.

आफिस न जा कर मानसी होटल पहुंची. दरवाजे पर दस्तक दी तो आवाज आई, ‘अंदर आ जाओ.’ राज की आवाज पल भर को उसे भावविभोर कर गई. वह 5 साल पहले की दुनिया में चली गई. वह भूल गई कि वह एक शादीशुदा है.  मानसी की अप्रत्याशित मौजूदगी ने राज को खुशियों से भर दिया. ‘मानसी, तुम?’ ‘हां, मैं,’ मानसी निर्विकार भाव से बोली, ‘कुछ जख्म ऐसे होते हैं जो वक्त के साथ भी नहीं भरते.’ ‘मानसी, मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं.’ ‘पर क्या तुम मुझे वह वक्त लौटा सकते हो जिस में हम दोनों ने सुनहरे कल का सपना देखा था?’ राज खामोश था.

मानसी कहती रही, ‘किसी औरत के लिए पहला प्यार भुला पाना कितना मुश्किल होता है, शायद तुम सोच भी नहीं सकते हो. वह भी तुम्हारा अचानक चले जाना…कितनी पीड़ा हुई मुझे…क्या तुम्हें इस का रंचमात्र भी गिला है?’ ‘मानसी, परिस्थिति ही ऐसी आ गई कि मुझे एकाएक चेन्नई नौकरी ज्वाइन करने जाना पड़ा. फिर भी मैं ने अपनी बहन कविता से कह दिया था कि वह तुम्हें मेरे बारे में सबकुछ बता दे.’ थोड़ी देर बाद राज ने सन्नाटा तोड़ा, ‘मानसी, एक बात कहूं. क्या हम फिर से नई जिंदगी नहीं शुरू कर सकते?’ राज के इस अप्रत्याशित फैसले ने मानसी को झकझोर कर रख दिया. वह खामोश बैठी अपने अतीत को खंगालने लगी तो उसे लगा कि उस के ससुराल वाले क्षुद्र मानसिकता के हैं. सास आएदिन छोटीछोटी बातों के लिए उसे जलील करती रहती हैं, वहीं ससुर को उन की गुलामी से ही फुर्सत नहीं. कौन पति होगा जो बीवी की कमाई खाते हुए लज्जा का अनुभव न करता हो.

‘क्या सोचने लगीं,’ राज ने तंद्रा तोड़ी. ‘मैं सोच कर बताऊंगी,’ मानसी उठ कर जाने लगी तो राज बोला, ‘मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’ आज मानसी का आफिस में मन नहीं लग रहा था. ऐसे में उस की अंतरंग सहेली अचला ने उस का मन टटोला तो उस के सब्र का बांध टूट गया. उस ने राज से मुलाकात व उस के प्रस्ताव की बातें अचला को बता दीं. ‘तेरा प्यार तो मिल जाएगा पर तेरी 3 साल की बेटी का क्या होगा? क्या वह अपने पिता को भुला पाएगी? क्या राज को सहज अपना पिता मान लेगी?’ इस सवाल को सुन कर मानसी सोच में पड़ गई.  ‘आज तुम भावावेश में फैसला ले रही हो. कल राज कहे कि चांदनी नाजायज औलाद है तब. तब तो तुम न उधर की रहोगी न इधर की,’ अचला समझाते हुए बोली.

‘मैं एक गैरजिम्मेदार आदमी के साथ पिसती रहूं. आफिस से घर आती हूं तो घर में घुसने की इच्छा नहीं होती. घर काट खाने को दौड़ता है,’ मानसी रोंआसी हो गई. ‘तू राज के साथ खुश रहेगी,’ अचला बोली. ‘बिलकुल, अगर उसे मेरी जरूरत न होती तो क्यों लौट कर आता. उस ने तो अब तक शादी भी नहीं की,’ मानसी का चेहरा चमक उठा. ‘मनोहर के साथ भी तो तुम ने प्रेम विवाह किया था.’ ‘प्रेम विवाह नहीं समझौता. मैं ने उस से समझौता किया था,’ मानसी रूखे मन से बोली. ‘मनोहर क्या जाने, वह तो यही समझता होगा कि तुम ने उसे चाहा है. बहरहाल, मेरी राय है कि तुम्हें उसे सही रास्ते पर लाने का प्रयास करना चाहिए. वह तुम्हारा पति है.’

‘मैं ने उसे सुधारने का हरसंभव प्रयास किया. चांदनी की कसम तक दिलाई.’ ‘हताशा या निराशा के भाव जब इनसान के भीतर घर कर जाते हैं तो सहज नहीं निकलते. तू उसे कठोर शब्द मत बोला कर. उस की संगति पर ध्यान दे. हो सकता है कि गलत लोगों के साथ रह कर वह और भी बुरा हो गया हो.’ ‘आज तू मेरे घर चल, वहीं चल कर इत्मीनान से बातें करेंगे.’

इतना बोल कर अचला अपने काम में जुट गई. अचला के घर आ कर मानसी ने देर से आने की सूचना मनोहर को दे दी. ‘राज के बारे में और तू क्या जानती है?’ अचला ने चाय का कप बढ़ाते हुए पूछा. ‘ज्यादा कुछ नहीं,’ मानसी कप पकड़ते हुए बोली. ‘सिर्फ प्रेमी न, यह भी तो हो सकता है कि वह तेरे साथ प्यार का नाटक कर रहा हो. इतने साल बाद वह भी यह जानते हुए कि तू शादीशुदा है, क्यों लौट कर आया? क्या वह नहीं जानता कि सबकुछ इतना आसान नहीं. कोई विवाहिता शायद ही अपना घर उजाड़े?’ अचला बोली, ‘जिस्म की सड़न रोकने के लिए पहले डाक्टर दवा देता है और जब हार जाता है तभी आपरेशन करता है. मेरा कहा मान, अभी कुछ नहीं बिगड़ा है.

अपने पति, बच्चों की सोच. शादी की है अग्नि के सात फेरे लिए हैं,’ अचला का संस्कारी मन बोला. मानसी की त्योरियां चढ़ गईं, ‘क्या निभाने की सारी जिम्मेदारी मेरी है, उस की नहीं. क्या नहीं किया मैं ने. नौकरी की, बच्चे संभाले और वह निठल्लों की तरह शराब पी कर घर में पड़ा रहता है. एक गैरजिम्मेदार आदमी के साथ मैं सिर्फ इसलिए बंधी रहूं कि हमारा साथ सात जन्मों के लिए है,’ मानसी का गला भर आया. ‘मैं तो सिर्फ तुम्हें दुनियादारी बता रही थी,’ अचला ने बात संभाली.

‘मैं ने मनोहर को तलाक देने का मन बना लिया है,’ मानसी के स्वर में दृढ़ता थी. ‘इस बारे में तुम अपने मांबाप की राय और ले लो. हो सकता है वे कोई बीच का रास्ता सुझाएं,’ अचला ने कह कर बात खत्म की.  मानसी के मातापिता उस के फैसले से दुखी थे.

‘बेटी, तलाक के बाद औरत की स्थिति क्या होती है, तुम जानती हो,’ मां बोलीं. ‘मम्मी, इस वक्त मेरी जो मनोस्थिति है, उस के बाद भी आप ऐसा बोल रही हैं,’ मानसी दुखी होते हुए बोली. ‘क्या स्थिति है, जरा मैं भी तो सुनूं,’ मानसी की सास तैश में आ गईं. वहीं बैठे मनोहर के पिता ने इशारों से पत्नी को चुप रहने के लिए कहा. ‘तलाक से तुम्हें क्या हासिल हो जाएगा,’ मानसी के पापा बोले. ‘सुकून, शांति…’ दोनों शब्दों पर जोर देते हुए मानसी बोली. ‘अब आप ही समझाइए भाई साहब,’ मानसी के पापा उस के ससुर से हताश स्वर में बोले. ‘मैं ने तो बहुत कोशिश की.

पर जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो कोई क्या कर सकता है,’ उन्होंने एक गहरी सांस ली. मनोहर वहीं बैठा सारी बातें सुन रहा था. ‘मनोहर तुम क्या चाहते हो? मानसी के साथ रहना या फिर हमेशा के लिए अलगाव?’ मानसी के पापा वहीं पास बैठे मनोहर की तरफ मुखातिब हो कर बोले. क्षणांश वह किंकर्तव्यविमूढ़ बना रहा फिर अचानक बच्चों की तरह फूटफूट कर रोने लगा. उस की दशा पर सब का मन द्रवित हो गया.

‘मैं क्या हमेशा से ऐसा रहा,’ मनोहर बोला, ‘मैं मानसी से बेहद प्यार करता हूं. अपनी बेटी चांदनी को एक दिन न देखूं तो मेरा दिल बेचैन हो उठता है.’

‘जब ऐसी बात है तो उसे दुख क्यों देता है,’ मानसी की मां बोलीं.

‘मम्मी, मैं ने कई बार कोशिश की पर चाह कर भी अपनी इस लत को छोड़ नहीं पाया.’

मनोहर के इस कथन पर सब सोच में पड़ गए कि कहीं न कहीं मनोहर के भीतर भी अपराधबोध था. यह जान कर सब को अच्छा लगा. मनोहर को अपने परिवार से लगाव था. यही एक रोशनी थी जिस से मनोहर को पुन: नया जीवन मिल सकता था.

मानसी की मां उसे एकांत में ले जा कर बोलीं, ‘बेटी, मनोहर उतना बुरा नहीं है जितना तुम सोचती हो. आज उस की जो हालत है सब नशे की वजह से है. नशा अच्छेअच्छे के विवेक को नष्ट कर देता है. मैं तो कहना चाहूंगी कि तुम एक बार फिर कोशिश कर के देखो. उस की जितनी उपेक्षा करोगी वह उतना ही उग्र होगा. बेहतर यही होगा कि तुम उसे स्नेह दो. हो सके तो मां जैसा अपनत्व दो. एक स्त्री में ही सारे गुण होते हैं. पत्नी को कभीकभी पति के लिए मां भी बनना पड़ता है.’

मानसी पर मां की बातों का प्रभाव पड़ा. इस बीच उस की सास ने कुछ तेवर दिखाने चाहे तो मनोहर ने रोक दिया, ‘आप हमारे बीच में मत बोलिए.’

‘क्या तुम शराब पीना छोड़ोगे?’ अपने पिता के यह पूछने पर मनोहर ने सिर झुका लिया.

‘तुम्हारे गुरदे में सूजन है. तुम्हें इलाज की सख्त जरूरत है. मैं तुम्हें दिल्ली किसी अच्छे डाक्टर को दिखाऊं तो तुम मेरा सहयोग करोगे?’ वह आगे बोले.

मनोहर मानसी की तरफ याचना भरी नजरों से देख कर बोला, ‘बशर्ते मानसी भी मेरे साथ दिल्ली चलेगी.’

‘मेरे काम का हर्ज होगा,’ मानसी बोली.

‘देख लिया पापा. इसे अपने काम के अलावा कुछ सूझता ही नहीं,’ मनोहर अपने ससुर की तरफ मुखातिब हो कर कुछ नाराज स्वर में बोला.

‘बेटी, उसे तुम्हारा सान्निध्य चाहिए. तुम पास रहोगी तो उसे बल मिलेगा,’ मानसी के पिता बोले.

मानसी 10 दिन दिल्ली रह कर आई तो मनोहर काफी रिलेक्स लग रहा था. उस ने शराब पीनी छोड़ दी थी. ऐसा मानसी का मानना था लेकिन हकीकत कुछ और थी. मनोहर अब चोरी से नशा करता था.

एक रोज किसी बात पर दोनों में तकरार हो गई. पतिपत्नी की रिश्ते के लिहाज से ऐसी तकरार कोई माने नहीं रखती. मानसी के सासससुर दिल्ली गए थे. मनोहर को बहाना मिला. वह बाहर निकला तो देर रात तक आया नहीं. उस रात मानसी बेहद घबराई हुई थी. ‘अचला, मनोहर अभी तक घर नहीं आया. वह शाम से निकला है,’ वह फोन पर सुबकने लगी.

‘अकेली हो?’ अचला ने पूछा.

‘हां, घबराहट के मारे मेरी जान सूख रही है. उसे कुछ हो गया तो?’

अचला ने अपने पति को जगा कर सारा वाकया सुनाया तो वह कपड़े पहन कर मनोहर की तलाश में बाहर निकला. 10 मिनट बाद मानसी का फिर फोन आया, ‘अचला, मनोहर घर के बाहर गिरा पड़ा है. मुझे लगता है कि वह नशे में धुत्त है. अपने पति से कहो कि वह आ कर किसी तरह उसे अंदर कर दें.’

अगली सुबह मानसी आफिस आई तो वह अंदर से काफी टूटी हुई थी. मनोहर ने उस के विश्वास के साथ छल किया था जिस का उसे सपने में भी भान न था. कुछ कहने से पहले ही मानसी की आंखें डबडबा गईं. ‘बोल, अब मैं क्या करूं. सब कर के देख लिया. 5 साल कम नहीं होते. ठेकेदारी के चलते मेरे सारे गहने बिक गए. जिस पर मैं ने उसे अपनी तनख्वाह से मोटरसाइकिल खरीद कर दी कि कोई कामधाम करेगा…’

अचला विचारप्रक्रिया में डूब गई, ‘तुम्हें परिस्थिति से समझौता कर लेना चाहिए.’

अचला की इस सलाह पर मानसी बिफर पड़ी, ‘यानी वह रोज घर बेच कर पीता रहे और मैं सहती रहूं. क्यों? क्योंकि एक स्त्री से ही समझौते की अपेक्षा समाज करता है. सारे सवाल उसी के सामने क्यों खड़े किए जाते हैं?’

‘क्योंकि स्त्री की स्थिति दांतों के बीच फंसी जीभ की तरह होती है.’

‘पुरुष की नहीं जो स्त्री के गर्भ से निकलता है. स्त्री चाहे तो उसे गर्भ में ही खत्म कर सकती है,’ मानसी की त्योरियां चढ़ गईं.

‘हम ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि कोई भी स्त्री अपनी कृति नष्ट नहीं कर सकती.’

‘यही तो कमजोरी है हमारी जिस का नाजायज फायदा पुरुष उठाता रहा.’

‘तलाक ले कर तुझे मिलेगा क्या?’

‘एक स्वस्थ माहौल जिस की मैं ने कामना की थी. अपनी बेटी को स्वस्थ माहौल दूंगी. उसे पढ़ाऊंगी, स्वावलंबी बनाऊंगी,’ मानसी के चेहरे से आत्म- विश्वास साफ झलक रहा था.

‘कल वह भी किसी पुरुष का दामन थामेगी?’ अचला ने सवालिया निगाह से देखा.

‘पर वह मेरी तरह कमजोर नहीं होगी. वह झूठे आदर्श, प्रथा, परंपरा ढोएगी नहीं, बल्कि उस का आत्मसम्मान सर्वोपरि होगा.’

‘मानसी, तू जवान है, खूबसूरत है, कैसे बच पाएगी पुरुषों की कामुक नजरों से? भूखे भेडि़यों की तरह सब मौका तलाशेंगे.’

‘ऐसा कुछ नहीं होगा. अगर हम अंदर से अविचलित रहें तो मजाल है जो कोई हमारी तरफ नजर उठा कर भी देखे,’ मानसी के दृढ़निश्चय के आगे अचला निरुत्तर थी.

अदालत में मानसी ने जब तलाक की अरजी दी तो एक पल के लिए सभी स्तब्ध रह गए. किसी को भरोसा नहीं था कि मानसी इतने बड़े फैसले को साकार रूप देगी. उधर जब मनोहर को तलाक का नोटिस मिला तो वह भी सकते में आ गया.

‘आखिर उस ने अपनी जात दिखा ही दी. मैं तो पहले ही इस शादी के खिलाफ थी. जिस लड़की का माथा चौड़ा हो उस के पैर अच्छे नहीं होते,’ मनोहर की मां मुंह बना कर बोलीं.

‘तुम्हारे बेटे ने कौन सा अपनी जात का मान रखा,’ मनोहर के पिता उसी लहजे में बोले.

‘तुम तो उसी कुलकलंकिनी का पक्ष लोगे,’ वह तत्काल असलियत पर आ गई, ‘अच्छा है, इसी बहाने चली जाए. बेटे की शादी धूमधाम से करूंगी. मेरा बेटा उस के साथ कभी भी सुखी नहीं रहा,’ टसुए बहाते मनोहर की मां बोलीं.

‘इस गफलत में मत रहना कि तुम्हारा बेटा पुरुष है इसलिए उस के हर गुनाह को लोग माफ कर देंगे. मानसी पर उंगली उठेगी तो मनोहर भी अछूता नहीं रहेगा,’ मनोहर के पिता बोले.

‘मैं यह सब नहीं मानती. बेटा खरा सोना होता है. लड़की वाले दरवाजा खटखटाएंगे,’ मनोहर की मां ऐंठ कर बोलीं.

‘शादी तो बाद में होगी पहले इस नोटिस का क्या करें,’ मनोहर की ओर मुखातिब होते हुए उस के पिता बोले.

मनोहर किंकर्तव्यविमूढ़ बना रहा.

‘यह क्या बोलेगा?’ मनोहर की मां तैश में बोलीं.

‘तुम चुप रहो,’ मनोहर के पिता ने डांटा, ‘यह मनोहर और मानसी के बीच का मामला है.’

मनोहर बिना कुछ बोले ऊपर कमरे में चला गया. कदाचित वह भी इस अनपेक्षित स्थिति के लिए तैयार न था. रहरह कर उस के सामने कभी मानसी तो कभी चांदनी का चेहरा तैर जाता. उसे मानसी खुदगर्ज और घमंडी लगी. जिसे अपनी कमाई पर गुमान था. जब मानसी अलग रहने के लिए जाने लगी थी तो मनोहर और उस के पिता ने उसे काफी समझाया था. परिवार की मानमर्यादा का वास्ता दिया पर वह टस से मस न हुई.

10 रोज बाद मनोहर मानसी के घर आया.

‘मानसी, मैं तुम्हारे पैर पड़ता हूं. घर चलो. लोग तरहतरह की बातें करते हैं.’

मनोहर के कथन को नजरअंदाज करते हुए मानसी की त्योरियां चढ़ गईं, ‘तुम यहां भी आ गए. मैं अब उस घर में कभी नहीं जाऊंगी.’

‘मैं शराब को हाथ तक नहीं लगाऊंगा.’

‘तुम ने आज भी पी है.’

‘क्या करूं, तुम सब के बगैर जी नहीं लगता,’ उस का स्वर भीग गया.

‘मैं हर तरह से देख चुकी हूं. अब कोई गुंजाइश नहीं,’ मानसी ने नफरत से मुंह दूसरी तरफ फेर लिया.

‘तो ठीक है, देखता हूं कैसे लेती हो तलाक,’ मनोहर पैर पटकते हुए चला गया.

कोर्ट के कई चक्कर काटने के बाद जिस दिन मानसी को फैसला मिलने वाला था उस रोज दोनों ही पक्ष के लोग थे. मनोहर व उस के मांबाप. इधर मानसी के मम्मीपापा. मनोहर की मां को छोड़ कर सभी के चेहरे लटके हुए थे. जज ने कहा, ‘अभी भी मौका है, आप अपने फैसले पर फिर से विचार कर सकती हैं.’

मानसी ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘सर, यह क्या बोलेगी. औरत पर हाथ उठाने वाला आदमी पति के नाम पर कलंक है. बेहतर होगा आप अपना फैसला सुनाएं,’ मानसी का वकील बोला.

‘आप थोड़ी देर शांत हो जाइए. मुझे इन के मुख से सुनना है,’ जज ने हाथ से इशारा किया.

क्षणांश चुप्पी के बाद मानसी बोली, ‘सर, मनोहर और मेरे बौद्धिक स्तर नदी के दो किनारों की तरह हैं जो कभी भी एक नहीं हो सकते.’

जज ने अपना फैसला सुना दिया. यानी तलाक. मनोहर इस फैसले से खुश न था. उस का जी हुआ कि मानसी का गला घोंट दे. वह मानसी को थप्पड़ मारने जा रहा था कि उस के पिता बीच में आ गए. ‘खबरदार, जो हाथ लगाया. तेरा और उस का रिश्ता खत्म हो चुका है.’

तलाक की खबर पा कर मनोहर के बड़े भाईबहन, जो दूसरे शहरों में थे, आ गए.

‘तू ने जीतेजी हम सब को मार डाला,’ भाई राकेश बोला, ‘क्या मुंह दिखाएंगे समाज में.’

मनोहर की बहन प्रतिमा मानसी के घर आई. मानसी ने उन्हें ससम्मान बिठाया.

‘मानसी, मुझे इस फैसले से दुख है. न मेरा भाई ऐसा होता न ही तुम्हें ऐसा कठोर कदम उठाने के लिए विवश होना पड़ता. मैं उस की तरफ से तुम से माफी मांगती हूं,’ प्रतिमा भरे मन से बोली.

‘दीदी, आप दिल छोटा मत कीजिए. मुझे किसी से कोई गिलाशिकवा नहीं.’

‘मुझे चांदनी की चिंता है. मेरा तो उस से रिश्ता खत्म नहीं हुआ,’ चांदनी के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए प्रतिमा बोली.

‘दीदी, खून के रिश्ते क्या आसानी से मिटाए जा सकते हैं,’ मानसी भी भावुक हो उठी.

प्रतिमा उठ कर जाने लगी तो मानसी बोली, ‘चांदनी के लिए आप हमेशा बूआ ही रहेंगी.’

दरवाजे तक आतेआते भरे मन से प्रतिमा बोली, ‘मानसी, कागज पर लिख या मिटा देने से रिश्ते खत्म नहीं हो जाते. तुम्हारे और मनोहर के बीच रिश्तों की एक कड़ी है जिसे मिटाया नहीं जा सकता.’

मनोहर प्राय: अपने कमरे में गुमसुम पड़ा रहता. न समय पर खाता न पीता. अब उस ने ज्यादा ही शराब पीनी शुरू कर दी. पैसा पिता से लड़झगड़ कर ले लेता. पहले जब कभी मानसी रोकटोक लगाती थी तो वह पीना कम कर देता. अब तो वह भी न रही. निरंकुश दिनचर्या हो गई थी उस की. एक दिन शराब पी कर आया तो अपनी मां से उलझ गया :

‘तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद की है. तुम ने हमेशा मानसी से नफरत की है. उस के खिलाफ मुझे भड़काया.’

‘उलटा चोर कोतवाल को डांटे. मानसी मेरी नहीं तेरी वजह से गई है. बेटा, जो औरत ससुराल की देहरी लांघती है वह औरत नहीं वेश्या होती है. तेरे सामने तो एक लंबी जिंदगी पड़ी है. तेरा ब्याह अच्छे घराने में कराऊंगी,’ मनोहर की मां की आंखों में अजीब सी चमक थी.

‘नहीं करना है मुझे ब्याह,’ मनोहर धम्म से सोफे पर गिर पड़ा.

मनोहर की हालत दिनोदिन बिगड़ने लगी. एक दिन अपनी मां को ढकेल दिया. वह सिर के बल गिरतेगिरते बचीं.

तंग आ कर उस के पिता ने अपने बड़े बेटे राकेश को बंगलौर से बुलाया.

 

‘अब तुम ही संभालो, राकेश. मैं हार चुका हूं,’ मनोहर के पिता के स्वर में गहरी हताशा थी.

‘मनोहर, तुम पीना छोड़ दो,’ राकेश बोला.

‘नहीं छोड़ूंगा.’

‘तुम्हारी हर जरूरत पूरी होगी बशर्ते तुम पीना छोड़ दो.’

राकेश के कथन पर मनोहर बोला, ‘मुझे कुछ नहीं चाहिए सिवा चांदनी और मानसी के.’

‘मानसी अब तुम्हारी जिंदगी में नहीं है. बेहतर होगा तुम अपनी आदत में सुधार ला कर फिर से नई जिंदगी शुरू करो. मैं तुम्हें अपनी कंपनी में काम दिलवा दूंगा.’ मुझे शादी नहीं करनी.’

‘मत करो शादी पर काम तो कर सकते हो.’

मनोहर पर राकेश के समझाने का असर पड़ा. वह शून्य में एकटक देखतेदेखते अचानक बच्चों की तरह फफक कर रो पड़ा, ‘भैया, मैं ने मानसी को बहुत कष्ट दिए. मैं उस का प्रायश्चित्त करना चाहता हूं. मैं अपनी फूल सी कोमल बेटी को मिस करता हूं.’

‘चांदनी अब भी तुम्हारी बेटी है. जब कहो तुम्हें उस से मिलवा दूं, पर…’

‘पर क्या?’

‘तुम्हें एक जिम्मेदार बाप बनना होगा. किस मुंह से चांदनी से मिलोगे. वह तुम्हें इस हालत में देखेगी तो क्या सोचेगी,’ राकेश कहता रहा, ‘पहले अपने पैरों पर खड़े हो ताकि चांदनी भी गर्व से कह सके कि तुम उस के पिता हो.’

उस रोज मनोहर को आत्मचिंतन का मौका मिला. राकेश उसे बंगलौर ले गया. उस का इलाज करवाया. जब वह सामान्य हो गया तो उस की नौकरी का भी बंदोबस्त कर दिया. धीरेधीरे मनोहर अतीत के हादसों से उबरने लगा.

इधर मानसी के आफिस के लोगों को पता चला कि उस का  तलाक हो गया है तो सभी उस पर डोरे डालने लगे. एक दिन तो हद हो गई जब स्टाफ के ही एक कर्मचारी नरेन ने उस के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया. नरेन कहने लगा, ‘मैं तुम्हारी बेटी को अपने से भी ज्यादा प्यार दूंगा.’

मानसी चाहती तो नरेन को सबक सिखा सकती थी पर वह कोई तमाशा खड़ा नहीं करना चाहती थी. काफी सोचविचार कर उस ने अपना तबादला इलाहाबाद करवाने की सोची. वहां मां का भी घर था. यहां लोगों की संदेहास्पद दृष्टि हर वक्त उस में असुरक्षा की भावना भरती.

इलाहाबाद आ कर मानसी निश्ंिचत हो गई. शहर से मायका 10 किलोमीटर दूर गांव में था. मानसी का मन एक बार हुआ कि गांव से ही रोजाना आएजाए. पर भाईभाभी की बेरुखी के चलते कुछ कहते न बना. मां की सहानुभूति उस के साथ थी पर भैया किसी भी सूरत में मानसी को गांव में नहीं रखना चाहते थे क्योंकि उस के गांव में रहने पर अनेक तरह के सवाल उठते और फिर उन की भी लड़कियां बड़ी हो रही थीं. इस तरह 10 साल गुजर गए. चांदनी भी 15 की हो गई.

तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी तो मानसी अतीत से जागी. वह चौंक कर उठी और जा कर दरवाजा खोला तो भतीजे के साथ चांदनी खड़ी थी.

‘‘क्या मां, मैं कितनी देर से दरवाजा खटखटा रही थी. आप सो रही थीं क्या?’’

‘‘हां, बेटी, कुछ ऐसा ही था. तू हाथमुंह धो ले, मैं कुछ खाने को लाती हूं,’’ यह कह कर मानसी अंदर चली गई.

एक दिन स्कूल से आने के बाद चांदनी बोली, ‘‘मम्मी, मेरे पापा कहां हैं?’’

मानसी क्षण भर के लिए अवाक् रह गई. तत्काल कुछ नहीं सूझा तो डपट दिया.

‘‘मम्मी, बताओ न, पापा कहां हैं?’’ वह भी मानसी की तरह जिद्दी थी.

‘‘क्या करोगी जान कर,’’ मानसी ने टालने की कोशिश की.

‘‘इतने साल गुजर गए. जब भी पेरेंट्स मीटिंग होती है सब के पापा आते हैं पर मेरे नहीं. क्यों?’’

अब मानसी के लिए सत्य पर परदा डालना आसान नहीं रहा. वह समय आने पर स्वयं कहने वाली थी पर अब जब उसे लगा कि चांदनी सयानी हो गई है तो क्या बहाने बनाना उचित होता?

‘‘तेरे पिता से मेरा तलाक हो चुका है.’’

‘‘तलाक क्या होता है, मम्मी?’’ उस ने बड़ी मासूमियत से पूछा.

‘‘बड़ी होने पर तुम खुद समझ जाओगी,’’ मानसी ने अपने तरीके से चांदनी को समझाने का प्रयत्न किया, ‘‘बेटी, तेरे पिता से अब मेरा कोई संबंध नहीं.’’

‘‘वह क्या मेरे पिता नहीं?’’

मानसी झल्लाई, ‘‘अभी पढ़ाई करो. आइंदा ऐसे बेहूदे सवाल मत करना,’’ कह कर मानसी ने चांदनी को चुप तो करा दिया पर वह अंदर ही अंदर आशंकित हो गई. अनेक सवाल उस के जेहन में उभरने लगे. चांदनी कल परिपक्व होगी. अपने पापा को जानने या मिलने के लिए अड़ गई तो? कहीं मनोहर से मिल कर उस के मन में उस के प्रति मोह जागा तो? कल को मनोहर ने, उस के मन में मेरे खिलाफ जहर भर दिया तो कैसे देगी अपनी बेगुनाही का सुबूत. कैसे जिएगी चांदनी के बगैर?

मानसी जितना सोचती उस का दिल उतना ही डूबता. उस की स्थिति परकटे परिंदे की तरह हो गई थी. न रोते बनता था न हंसते. अचला को फोन किया तो वह बोली, ‘‘तू व्यर्थ में परेशान होती है. वह जो जानना चाहती है, उसे बता दे. कुछ मत छिपा. वैसे भी तू चाह कर भी कुछ छिपा नहीं पाएगी. बेहतर होगा धीरेधीरे बेटी को सब बता दे,’

मानसी एक रोज आफिस से घर आई तो देखा कि चांदनी के पास अपने नएनए कपड़ों का अंबार लगा था. चांदनी खुशी से चहक रही थी.

‘‘ये सब क्या है?’’ मानसी ने तनिक रंज होते हुए पूछा.

‘‘पापा ने दिया है.’’

‘‘हर ऐरेगैरे को तुम पापा बना लोगी,’’ मानसी आपे से बाहर हो गई.

‘‘मम्मी, वह मेरे पापा ही थे.’’

तभी मानसी की मां कमरे में आ गईं तो वह बोली, ‘‘मां, सुन रही हो यह क्या कह रही है.’’

‘‘ठीक ही तो कह रही है. मनोहर आया था,’’ मानसी की मां निर्लिप्त भाव से बोलीं.

‘‘मां, आप ने ही उसे मेरे घर का पता दिया होगा,’’ मानसी बोली.

‘‘हर्ज ही क्या है. बेटी से बाप को मिला दिया.’’

‘‘मां, तुम ने यह क्या किया? मेरी वर्षों की तपस्या भंग कर दी. जिस मनोहर को मैं ने त्याग दिया था उसे फिर से मेरी जिंदगी में ला कर तुम ने मेरे साथ छल किया है,’’ मानसी रोंआसी हो गई.

‘‘मांबाप अपनी औलाद के साथ छल कर ही नहीं सकते. मनोहर ने फोन कर के सब से पहले मुझ से इजाजत ली. उस ने काफी मन्नतें कीं तब मैं ने उसे चांदनी से मिलवाने का वचन दिया. आखिरकार वह इस का पिता है. क्या उसे अपनी बेटी से मिलने का हक नहीं?’’ मानसी की मां ने स्पष्ट किया, ‘‘मनोहर अब पहले जैसा नहीं रहा.’’

‘‘अतीत लौट कर नहीं आता. मैं ने उस के बगैर खुद को तिलतिल कर जलाया. 10 साल कैसे काटे मैं ही जानती हूं. चांदनी और मेरी इज्जत बची रहे उस के लिए कितनी रातें मैं ने असुरक्षा के माहौल में काटीं.’’

‘‘आज भी तुम क्या सुरक्षित हो. खैर, छोड़ो इन बातों को…चांदनी से मिलने आया था, मिला और चला गया,’’ मानसी की मां बोलीं.

‘‘कल फिर आया तो?’’

‘‘तुम क्या उस को मना कर दोगी,’’ तनिक रंज हो कर मानसी की मां बोलीं, ‘‘अगर चांदनी ने जिद की तो? क्या तुम उसे बांध सकोगी?’’

मां के इस कथन पर मानसी गहरे सोच में पड़ गई. सयानी होती बेटी को क्या वह बांध सकेगी? सोचतेसोचते उस के हाथपांव ढीले पड़ गए. लगा जैसे जिस्म का सारा खून निचोड़ दिया गया हो. वह बेजान बिस्तर पर पड़ कर सुबकने लगी. मानसी की मां ने संभाला.

अगले दिन मानसी हरारत के चलते आफिस नहीं गई. चांदनी भी घर पर ही रही. मम्मीपापा के बीच चलने वाले द्वंद्व को ले कर वह पसोपेश में थी. आखिर सब के पापा अपने बच्चों के साथ रहते हैं फिर उस के पास रहने में मम्मी को क्या दिक्कत हो रही है? यह सवाल बारबार उस के जेहन में कौंधता रहा. मानसी ने सफाई में जो कुछ कहा उस से चांदनी संतुष्ट न थी.

एक रोज स्कूल से चांदनी घर आई तो रोने लगी. मानसी ने पूछा तो सिसकते हुए बोली, ‘‘कंचन कह रही थी कि उस की मां तलाकशुदा है. तलाकशुदा औरतें अच्छी नहीं होतीं.’’

मानसी का जी धक से रह गया. परिस्थितियों से हार न मानने वाली मानसी के लिए बच्चों के बीच होने वाली सामाजिक निंदा को बरदाश्त कर पाना असह्य था. इनसान यहीं हारता है. उत्तेजित होने की जगह मानसी ने प्यार से चांदनी के सिर पर हाथ फेरा और बोली, ‘‘तुझे क्या लगता है कि तेरी मां सचमुच गंदी है?’’

‘‘फिर पापा हमारे साथ रहते क्यों नहीं?’’

‘‘तुम्हारे पापा और मेरे बीच अब कोई संबंध नहीं है,’’ मानसी अब कुछ छिपाने की मुद्रा में न थी.

‘‘फिर वह क्यों आए थे?’’

‘‘तुझ से मिलने,’’ मानसी बोली.

‘‘वह क्यों नहीं हमारे साथ रहते हैं?’’ किंचित उस के चेहरे से तनाव झलक रहा था.

‘‘नहीं रहेंगे क्योंकि मैं उन से नफरत करती हूं,’’ मानसी का स्वर तेज हो गया.

‘‘मम्मी, क्यों करती हो नफरत? वह तो आप की बहुत तारीफ कर रहे थे.’’

‘‘यह सब तुम्हें भरमाने का तरीका है.’’

‘‘मम्मी, जो भी हो, मुझे पापा चाहिए.’’

‘‘अगर न मिले तो?’’

‘‘मैं ही उन के पास चली जाऊंगी. और अपने साथ तुम्हें भी ले कर जाऊंगी.’’

‘‘मैं न जाऊं तो…’’

‘‘तब मैं यही समझूंगी कि आप सचमुच में गंदी मम्मी हैं.’’

चांदनी के कथन पर मानसी एकाएक चिल्लाई. मां का रौद्र रूप देख कर वह बच्ची सहम गई. मानसी की आंखों से अंगारे बरसने लगे. उसे लगा जैसे किसी ने भरे बाजार में उसे नंगा कर दिया हो. गहरी हताशा के चलते उस के सामने अंधेरा छाने लगा. उसे सपने में भी उम्मीद न थी कि चांदनी से यह सुनने को मिलेगा. जिसे खून से सींचा, जिस के लिए न दिन देखा न रात, जो जीने का एकमात्र सहारा थी, उसी ने उसे अपनी नजरों से गिरा दिया. मनोहर उसे इतना प्रिय लगने लगा और आज मैं कुछ नहीं.

मानसी यह नहीं समझ पाई कि मनोहर से उस के संबंध खराब थे बेटी के नहीं. मनोहर उसे पसंद नहीं आया तो क्या चांदनी भी उसी नजरों से देखने लगे. बच्चे तो सिर्फ प्रेम के भूखे होते हैं. चांदनी को पिता का प्यार चाहिए था बस.

रात को मनोहर का फोन आया, ‘‘मानसी, मैं मनोहर बोल रहा हूं.’’

सुन कर मानसी का मन कसैला हो गया.

‘‘मिल गई तसल्ली,’’ वह चिढ़ कर बोली.

‘‘मुझे गलत मत समझो मानसी. मैं चाह कर भी तुम लोगों को भुला नहीं पाया. चांदनी मेरी भी बेटी है.’’

‘‘शराब पी कर हाथ छोड़ते हुए तुम्हें अपनी बेटी का खयाल नहीं आया,’’ मानसी बोली.

‘‘मैं भटक गया था,’’ मनोहर के स्वर में निराशा स्पष्ट थी.

‘‘नया घर बसा कर भी तुम्हें चैन नहीं मिला.’’

‘‘घर, कैसा घर…’’ मनोहर जज्बाती हो गया, ‘‘मानसी, सच कहूं तो दोबारा घर बसाना आसान नहीं होता. अगर होता तो क्या अब तक तुम नहीं बसा लेतीं. सिर्फ कहने की बात है कि पुरुष के लिए सबकुछ सहज होता है. उन्हें भी तकलीफ होती है जब उन का बसाबसाया घर उजड़ता है.’’

मनोहर के मुख से ऐसी बातें सुन कर मानसी का गुस्सा ठंडा पड़ गया. मनोहर काफी बदला लगा. उस ने अब तक शादी नहीं की. यह निश्चय ही चौंकाने वाली बात थी. मनोहर के साथ बिताए मधुर पल एकाएक उस के सामने चलचित्र की भांति तैरने लगे. कैसे उस ने अपनी पहली कमाई से उस के लिए कार खरीदी थी. तब उसे मनोहर का पीना बुरा नहीं लगता था. अचानक वक्त ने करवट ली और सब बदल गया. अतीत की बातें सोचतेसोचते मानसी की आंखें सजल हो उठीं.

‘‘मम्मी, आप को मेरे साथ पापा के पास चलना होगा वरना मैं उन्हें यहीं बुला लूंगी,’’ चांदनी ने बालसुलभ हठ की.

तभी मनोहर की बहन प्रतिमा आ गईं. 10 साल के बाद पहली बार वह आई थीं. उन्हें आया देख कर मानसी को अच्छा लगा. दरवाजे पर आते समय प्रतिमा ने चांदनी की कही बातें सुन ली थीं.

‘‘तलाक ले कर तुम ने कौन सा समझदारी का परिचय दिया था?’’

‘‘दीदी, आप तो जानती थीं कि तब मैं किन परिस्थितियों से गुजर रही थी,’’ मानसी ने सफाई दी.

‘‘और आज, क्या तुम उस से मुक्त हो पाई हो. औरत के लिए हर दिन एक जैसे होते हैं. सब उसी को सहना पड़ता है,’’ प्रतिमा ने दुनियादारी बताई.

‘‘दीदी, आप कहना क्या चाहती हैं?’’

‘‘बाप के साए से बेटी महरूम रहे, क्या यह उस के प्रति अन्याय नहीं,’’ प्रतिमा बोली.

‘‘मैं ने कब रोका था,’’ कदाचित मानसी का स्वर धीमा था.

‘‘रोका है, तभी तो कह रही हूं. 10 साल मनोहर ने अकेलेपन की पीड़ा कैसे झेली यह मुझ से ज्यादा तुम नहीं जान सकतीं. मैं ने सख्त हिदायत दे रखी थी कि वह तुम से न मिले, न ही फोन पर बात करे. जैसा किया है वैसा भुगते.’’

‘‘दूसरी शादी कर लेते. क्या जरूरत थी अकेलेपन से जूझने की,’’ मानसी बोली.

‘‘यही तो हम औरतें नहीं समझतीं. हम हमेशा मर्द में ही खोट देखते हैं. जरा सी कमी नजर आते ही हजार लांछनों से लाद देते हैं,’’ प्रतिमा किंचित नाराज स्वर में बोलीं. एक पल की चुप्पी के बाद उस ने फिर बोलना शुरू किया, ‘‘आज उस ने अपनी बेटी के लिए मेरी हिदायतों का उल्लंघन किया. जीवन एक बार मिलता है. हम उसे भी ठीक से नहीं जी पाते. अहं, नफरत और न जाने क्याक्या विकार पाले रहते हैं अपने दिलों में.’’

‘‘मुझ में कोई अहं नहीं था,’’ मानसी बोली.

‘‘था तभी तो कह रही हूं कि प्यार, मनुहार और इंतजार से सब ठीक किया जा सकता है. आखिर मनोहर रास्ते पर आ गया कि नहीं. अब वह शराब को हाथ तक नहीं लगाता. अपने काम के प्रति समर्पित है,’’ प्रतिमा बोलीं.

‘‘काम तो पहले भी वह अच्छा करते थे,’’ मानसी के मुख से अचानक निकला.

‘‘तब कहां रह गई कसर. क्या छूट गया तुम दोनों के बीच जिस की परिणति अलगाव के रूप में हुई. तुम ने एक बार भी नहीं सोचा कि बच्ची बड़ी होगी तो किसे गुनहगार मानेगी. तुम ने सोचा बाप को शराबी कह कर बेटी को मना लेंगे… पर क्या ऐसा हुआ? क्या खून के रिश्ते आसानी से मिटते हैं? मांबाप औलाद के लिए सुरक्षा कवच होते हैं. इस में से एक भी हटा नहीं कि असुरक्षा की भावना घर कर जाती है बच्चों में. ऐसे बच्चे कुंठा के शिकार होते हैं.’’

‘‘आप कहना चाहती हैं कि तलाक ले कर मैं ने गलती की. मनोहर मेरे खिलाफ हिंसा का सहारा ले और मैं चुप बैठी रहूं…यह सोच कर कि मैं एक औरत हूं,’’ मानसी तल्ख शब्दों में बोली.

‘‘मैं ऐसा क्यों कहूंगी बल्कि मैं तुम्हारी जगह होती तो शायद यही फैसलालेती पर ऐसा करते हुए हमारी सोच एकतरफा होती है. हम कहीं न कहीं अपनी औलाद के प्रति अन्याय करते हैं. दोष किसी का भी हो पर झेलना तो बच्चों को पड़ता है,’’ प्रतिमा लंबी सांस ले कर आगे बोलीं, ‘‘खैर, जो हुआ सो हुआ. वक्त हर घाव को भर देता है. मैं एक प्रस्ताव  ले कर आई हूं.’’

मानसी जिज्ञासावश उन्हें देखने लगी.

‘‘क्या तुम दोनों पुन: एक नहीं हो सकते?’’

एकबारगी प्रतिमा का प्रस्ताव मानसी को अटपटा लगा. वह असहज हो गई. दोबारा जब प्रतिमा ने कहा तो उस ने सिर्फ इतना कहा, ‘‘मुझे सोचने का मौका दीजिए,’’

प्रतिमा के जाने के बाद वह अजीब कशमकश में फंस गई. न मना करते बन रहा था न ही हां. बेशक 10 साल उस ने सुकून से नहीं काटे सिर्फ इसलिए कि हर वक्त उसे अपनी और चांदनी के भविष्य को ले कर चिंता लगी रहती. एक क्षण भी चांदनी को अपनी आंखों से ओझल होने नहीं देती. उसे हमेशा इस बात का भय बना रहता कि अगर कुछ ऊंचनीच हो गया तो किस से कहेगी? कौन सहारा बनेगा? कहने को तो तमाम हमदर्द पुरुष हैं पर उन की निगाहें हमेशा मानसी के जिस्म पर होती. थोड़ी सी सहानुभूति जता कर लोग उस का सूद सहित मूल निकालने पर आमादा रहते.

अंतत: गहन सोच के बाद मानसी को लगा कि अपने लिए न सही, चांदनी के लिए मनोहर का आना उस की जिंदगी में निहायत जरूरी है. हां, थोड़ा अजीब सा मानसी को अवश्य लगा कि जब मनोहर फिर उस की जिंदगी में आएगा तो कैसा लगेगा? लोग क्या सोचेंगे? कैसे मनोहर का सामना करूंगी. क्या वह सब भूल जाएगा? क्या भूलना उस के लिए आसान होगा? टूटे हुए धागे बगैर गांठ के नहीं बंधते. क्या यह गांठ हमेशा के लिए खत्म हो पाएगी?

एक तरफ मनोहर के आने से उस की जिंदगी में अनिश्चितता का माहौल खत्म होगा, वहीं भविष्य को ले कर उस के मन में बुरेबुरे खयाल आ रहे थे. कहीं मनोहर फिर से उसी राह पर चल निकला तो? तब तो वह कहीं की नहीं रहेगी. प्रतिमा से उस ने अपनी सारी दुश्ंिचताओं का खुलासा किया. प्रतिमा ने उस से सहमति जताई और बोलीं, ‘‘मैं तुम से जबरदस्ती नहीं करूंगी. मनोहर से मिल कर तुम खुद ही फैसला लो.’’

मनोहर आया. दोनों में इतना साहस न था कि एकदूसरे से नजरें मिला सकें. मानसी की मां और प्रतिमा दोनों थीं पर वे उन दोनों को भरपूर मौका देना चाहती थीं, दोनों दूसरे कमरे में चली गईं.

‘‘मानसी, मैं ने तुम्हारे साथ अतीत में जो कुछ भी सलूक किया है उस का मुझे आज भी बेहद अफसोस है. यकीन मानो मैं ने कोई पहल नहीं की. मैं आज भी तुम्हारे लायक खुद को नहीं समझता. अगर चांदनी का मोह न होता…’’

‘‘उस के लिए विवाह क्या जरूरी है,’’ मानसी ने उस का मन टटोला.

‘‘बिलकुल नहीं,’’ वह उठ कर जाने लगा. कुछ ही कदम चला होगा कि मानसी ने रोका, ‘‘क्या हम अपनी बच्ची के लिए नए सिरे से जिंदगी नहीं शुरू कर सकते?’’

मानसी के अप्रत्याशित फैसले पर मनोहर को क्षणांश विश्वास नहीं हुआ. वह एक बार पुन: मानसी के मुख से सुनना चाहता था. मानसी ने जब अपनी इच्छा फिर दोहराई तो उस की भी आंखों से खुशी के आंसू बह निकले.

जिस दिन दोनों एक होने वाले थे अचला भी आई. उसे तो विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि ऐसा भी हो सकता है. सुबह का भूला शाम को लौटे तो उसे भूला नहीं कहते. दरअसल, सब याद कर के ही नहीं, कुछ भूल कर भी जिंदगी जी जा सकती है.

मनोहर और मानसी ने उस अतीत को भुला दिया, जिस ने उन दोनों को पीड़ा दी. चांदनी इस अवसर पर ऐसे चहक रही थी जैसे नवजात परिंदा अपनी मां के मुख में अनाज का दाना देख कर.

 

 

 

Best Hindi Story : वैसी वाली फिल्म

Best Hindi Story : सौरभ दफ्तर के काम में बिजी था कि अचानक मोबाइल फोन की घंटी बजी. मोबाइल की स्क्रीन पर कावेरी का नाम देख कर उस का दिल खुशी से उछल पड़ा.

कावेरी सौरभ की प्रेमिका थी. उस ने मोबाइल फोन पर ‘हैलो’ कहा, तो उधर से कावेरी की आवाज आई, ‘तुम्हारा प्यार पाने के लिए मेरा मन आज बहुत बेकरार है. जल्दी से घर आ जाओ.’

‘‘तुम्हारा पति घर पर नहीं है क्या?’’ सौरभ ने पूछा.

‘नही,’ उधर से आवाज आई.

‘‘वह आज दफ्तर नहीं आया, तो मुझे लगा कि वह छुट्टी ले कर तुम्हारे साथ मौजमस्ती कर रहा है,’’ सौरभ मुसकराते हुए बोला.

‘ऐसी बात नहीं है. वह कुछ जरूरी काम से अपने एक रिश्तेदार के घर आसनसोल गया है. रात के 10 बजे से पहले लौट कर नहीं आएगा, इसीलिए मैं तुम्हें बुला रही हूं. तनमन की प्यास बुझाने के लिए हमारे पास अच्छा मौका है. जल्दी से यहां आ जाओ.’

‘‘मैं शाम के साढ़े 4 बजे तक जरूर आ जाऊंगा. जिस तरह तुम मेरा प्यार पाने के लिए हर समय बेकरार रहती हो, उसी तरह मैं भी तुम्हारा प्यार पाने के लिए बेकरार रहता हूं.

‘‘तुम्हारे साथ मुझे जो खुशी मिलती है, वैसी खुशी अपनी पत्नी से भी नहीं मिलती है. हमबिस्तरी के समय वह एक लाश की तरह चुपचाप पड़ी रहती है, जबकि तुम प्यार के हर लमहे में खरगोश की तरह कुलांचें मारती हो. तुम्हारी इसी अदा पर तो मैं फिदा हूं.’’

थोड़ी देर तक कुछ और बातें करने के बाद सौरभ ने मोबाइल फोन काट दिया और अपने काम में लग गया.

4 बजे तक उस ने अपना काम निबटा लिया और दफ्तर से निकल गया.

सौरभ कावेरी के घर पहुंचा. उस समय शाम के साढ़े 4 बज गए थे. कावेरी उस का इंतजार कर रही थी.

जैसे ही सौरभ ने दरवाजे की घंटी बजाई, कावेरी ने झट से दरवाजा खोल दिया. मानो वह पहले से ही दरवाजे पर खड़ी हो.

वे दोनों वासना की आग से इस तरह झुलस रहे थे कि फ्लैट का मेन दरवाजा बंद करना भूल गए और झट से बैडरूम में चले गए.

कावेरी को बिस्तर पर लिटा कर सौरभ ने उस के होंठों को चूमा, तो वह भी बेकरार हो गई और सौरभ के बदन से मनमानी करने लगी.

जल्दी ही उन दोनों ने अपने सारे कपड़े उतारे और धीरेधीरे हवस की मंजिल की तरफ बढ़ते चले गए.

अभी वे दोनों मंजिल पर पहुंच भी नहीं पाए थे कि किसी की आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘यह सब क्या हो रहा है?’’

वे दोनों घबरा गए और झट से एकदूसरे से अलग हो गए.

सौरभ ने दरवाजे की तरफ देखा, तो बौखला गया. दरवाजे पर कावेरी का पति जयदेव खड़ा था. उस की आंखों से अंगारे बरस रहे थे.

उन दोनों को इस बात का एहसास हुआ कि उन्होंने मेन दरवाजा बंद नहीं किया था.

कावेरी ने झट से पलंग के किनारे रखे अपने कपड़े उठा लिए. सौरभ ने भी अपने कपड़े उठाए, मगर जयदेव ने उन्हें पहनने नहीं दिया.

जयदेव उन को गंदीगंदी गालियां देते हुए बोला, ‘‘मैं चुप रहने वालों में से नहीं हूं. अभी मैं आसपड़ोस के लोगों को बुलाता हूं.’’

कावेरी ने जयदेव के पैर पकड़ लिए. उस ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘प्लीज, मुझे माफ कर दीजिए. अब ऐसी गलती कभी नहीं करूंगी.’’

‘‘मैं तुम्हें हरगिज माफ नहीं कर सकता. तुम तो कहती थीं कि मैं कभी किसी पराए मर्द को अपना बदन छूने नहीं दूंगी. फिर अभी सौरभ के साथ क्या कर रही थीं?’’

कावेरी कुछ कहती, उस से पहले जयदेव ने सौरभ से कहा, ‘‘तुम तो अपनेआप को मेरा अच्छा दोस्त बताते थे. यही है तुम्हारी दोस्ती? दोस्त की पत्नी के साथ रंगरलियां मनाते हो और दोस्ती का दम भरते हो. मैं तुम्हें भी कभी माफ नहीं करूंगा.

‘‘फोन कर के मैं तुम्हारी पत्नी को बुलाता हूं. उसे भी तो पता चले कि उस का पति कितना घटिया है. दूसरे की पत्नी के साथ हमबिस्तरी करता है.’’

‘‘प्लीज, मुझे माफ कर दो. मेरी पत्नी को कावेरी के बारे में पता चल जाएगा, तो वह मुझे छोड़ कर चली जाएगी.

‘‘मैं कसम खाता हूं कि अब कभी कावेरी से संबंध नहीं बनाऊंगा,’’ सौरभ ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

सौरभ के गिड़गिडाने का जयदेव पर कोई असर नहीं हुआ. उस ने सौरभ से कहा, ‘‘मैं तुम दोनों को कभी माफ नहीं कर सकता. तुम दोनों की करतूत जगजाहिर करने के बाद आज ही कावेरी को घर से निकाल दूंगा. उस के बाद तुम्हारी जो मरजी हो, वह करना. कावेरी से संबंध रखना या न रखना, उस से मुझे कोई लेनादेना नहीं.’’

जयदेव चुप हो गया, तो कावेरी फिर गिड़गिड़ा कर उस से माफी मांगने लगी. सौरभ ने भी ऐसा ही किया. जयदेव के पैर पकड़ कर उस से माफी मांगते हुए कहा कि अगर वह उसे माफ नहीं करेगा, तो उस के पास खुदकुशी करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह जाएगा, क्योंकि वह अपनी पत्नी की नजरों में गिर कर नहीं जी पाएगा.

आखिरकार जयदेव पिघल गया. उस ने सौरभ से कहा, ‘‘मैं तुम्हें माफ तो नहीं कर सकता, मगर जबान बंद रखने के लिए तुम्हें 3 लाख रुपए देने होंगे.’’

‘‘3 लाख रुपए…’’ यह सुन कर सौरभ की घिग्घी बंध गई. उस का सिर भी घूमने लगा.

बात यह थी कि सौरभ की माली हालत ऐसी नहीं थी कि वह जयदेव को 3 लाख रुपए दे सके. उसे जितनी तनख्वाह मिलती थी, उस से परिवार का गुजारा तो चल जाता था, मगर बचत नहीं हो पाती थी.

सौरभ ने अपनी माली हालत के बारे में जयदेव को बताया, मगर वह नहीं माना. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी माली हालत से मुझे कुछ लेनादेना नहीं है. अगर तुम मेरा मुंह बंद रखना चाहते हो, तो रुपए देने ही होंगे.’’

सौरभ को समझ नहीं आ रहा था कि वह इस मुसीबत से कैसे निबटे?

सौरभ को चिंता में पड़ा देख कावेरी उस के पास आ कर बोली, ‘‘तुम इतना सोच क्यों रहे हो? रुपए बचाने की सोचोगे, तो हमारी इज्जत चली जाएगी. लोग हमारी असलियत जान जाएंगे.

‘‘तुम खुद सोचो कि अगर तुम्हारी पत्नी को सबकुछ मालूम हो जाएगा, तो क्या वह तुम्हें माफ कर पाएगी?

‘‘वह तुम्हें छोड़ कर चली जाएगी, तो तुम्हारी जिंदगी क्या बरबाद नहीं हो जाएगी? मेरी तो कोई औलाद नहीं है. तुम्हारी तो औलाद है, वह भी बेटी. अभी उस की उम्र भले ही 6 साल है, मगर बड़ी होने के बाद जब उसे तुम्हारी सचाई का पता चलेगा, तो सोचो कि उस के दिल पर क्या गुजरेगी. तुम से वह इतनी ज्यादा नफरत करने लगेगी कि जिंदगीभर तुम्हारा मुंह नहीं देखेगी.’’

सौरभ पर कावेरी के समझाने का तुरंत असर हुआ. वह जयदेव को 3 लाख रुपए देने के लिए राजी हो गया, मगर इस के लिए उस ने जयदेव से एक महीने का समय मांगा. कुछ सोचते हुए जयदेव ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें एक महीने की मुहलत दे सकता हूं, मगर इस के लिए तुम्हें कोई गारंटी देनी होगी.’’

‘‘कैसी गारंटी?’’ सौरभ ने जयदेव से पूछा.

‘‘मैं कावेरी के साथ तुम्हारा फोटो खींच कर अपने मोबाइल फोन में रखूंगा. बाद में अगर तुम अपनी जबान से मुकर जाओगे, तो फोटो सब को दिखा दूंगा.’’

मजबूर हो कर सौरभ ने जयदेव की बात मान ली. जयदेव ने कावेरी के साथ सौरभ का बिना कपड़ों वाला फोटो खींच कर अपने मोबाइल में सेव कर लिया.

शाम के 7 बजे जब सौरभ कावेरी के फ्लैट से बाहर आया, तो बहुत परेशान था. वह लगातार यही सोच रहा था कि 3 लाख रुपए कहां से लाएगा?

सौरभ कोलकाता का रहने वाला था. उलटाडांगा में उस का पुश्तैनी मकान था. उस की शादी अनीता से तकरीबन 8 साल पहले हुई थी.

सौरभ की पत्नी अनीता भी कोलकाता की थी. अनीता जब बीए के दूसरे साल में थी, तभी उस के मातापिता ने उस की शादी सौरभ से कर दी थी. सौरभ ने उस की पढ़ाई छुड़ा कर उसे घर के कामों में लगा दिया. अनीता भी आगे नहीं पढ़ना चाहती थी, इसलिए तनमन से घर संभालने में जुट गई थी.

शादी के समय सौरभ के मातापिता जिंदा थे, मगर 2 साल के भीतर उन दोनों की मौत हो गई थी. तब से अनीता ने घर की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी.

मगर शादी के 5 साल बाद अचानक सौरभ ने अपना मन अनीता से हटा लिया था और वह मनचाही लड़की की तलाश में लग गया था.

बात यह थी कि एक दिन सौरभ ने अपने दोस्त के घर ब्लू फिल्म देखी थी. उस के बाद उस का मन बहक गया था. ब्लू फिल्म की तरह उस ने भी मजा लेने की सोची थी.

उसी दिन दोस्त से ब्लू फिल्म की सीडी ले कर सौरभ घर आया. बेटी जब सो गई, तो टैलीविजन पर उस ने अनीता को फिल्म दिखाना शुरू किया.

कुछ देर बाद अनीता समझ गई कि यह कितनी गंदी फिल्म है. फिल्म बंद कर के वह सौरभ से बोली, ‘‘आप को ऐसी गंदी फिल्म देखने की लत किस ने लगाई?’’

‘‘मैं ने यह फिल्म आज पहली बार देखी है. मुझे अच्छी लगी, इसलिए तुम्हें दिखाई है कि फिल्म में लड़की ने अपने मर्द साथी के साथ जिस तरह की हरकतें की हैं, उसी तरह की हरकतें तुम मेरे साथ करो.’’

‘‘मुझ से ऐसा नहीं होगा. मैं ऐसा करने से पहले ही शर्म से मर जाऊंगी.’’

‘‘तुम एक बार कर के तो देखो, शर्म अपनेआप भाग जाएगी.’’

‘‘मुझे शर्म को भगाना नहीं, अपने साथ रखना है. आप जानते नहीं कि शर्म के बिना औरतें कितनी अधूरी रहती हैं. मेरा मानना है कि हर औरत को शर्म के दायरे में रह कर ही हमबिस्तरी करनी चाहिए.

‘‘आप अपने दिमाग से गंदी बातें निकाल दीजिए. हमबिस्तरी में अब तक जैसा चलता रहा है, वैसा ही चलने दीजिए. सच्चा मजा उसी में है. अगर मुझ पर दबाव बनाएंगे, तो मैं मायके चली जाऊंगी.’’

उस समय तो सौरभ की बोलती बंद हो गई, मगर उस ने अपनी चाहत को दफनाया नहीं. उस ने मन ही मन ठान लिया कि पत्नी न सही, कोई और सही, मगर वह मन की इच्छा जरूर पूरी कर के रहेगा.

उस के बाद सौरभ मनचाही लड़की की तलाश में लग गया. इस के लिए एक दिन उस ने अपने दोस्त रमेश से बात भी की. रमेश उसी कंपनी में था, जिस में वह काम करता था.

रमेश ने सौरभ को सुझाव दिया, ‘‘तुम्हारी इच्छा शायद ही कोई घरेलू औरत पूरी कर सके, इसलिए तुम्हें किसी कालगर्ल से संबंध बनाना चाहिए.’’

सौरभ को रमेश की बात जंच गई. कुछ दिन बाद उसे एक कालगर्ल मिल भी गई.

एक दिन सौरभ रात के 9 बजे कालगर्ल के साथ होटल में गया. वह कालगर्ल के साथ मनचाहा करता, उस से पहले ही होटल पर पुलिस का छापा पड़ गया. सौरभ गिरफ्तारी से बच न सका.

सौरभ ने पत्नी को बताया था कि एक दोस्त के घर पार्टी है. पार्टी रातभर चलेगी, इसलिए वह अगले दिन सुबह ही घर आ पाएगा या वहीं से दफ्तर चला जाएगा. इसी वजह से पत्नी की तरफ से वह बेखौफ था.

गिरफ्तारी की बात सौरभ ने फोन पर रमेश से कही, तो अगले दिन उस ने जमानत पर उसे छुड़ा लिया.

सौरभ को लगा था कि उस की गिरफ्तारी की बात कोई जान नहीं पाएगा. मगर ऐसा नहीं हुआ. न जाने कैसे धीरेधीरे दफ्तर के सारे लोगों को इस बात का पता चल गया. शर्मिंदगी से सौरभ कुछ दिनों तक अपने दोस्तों से नजरें नहीं मिला पाया, लेकिन 2-3 महीने बाद वह सामान्य हो गया. इस में उस के एक दोस्त जयदेव ने मदद की था.

जयदेव 6 महीने पहले ही पटना से तबादला हो कर यहां आया था. कालगर्ल मामले में सौरभ दफ्तर में बदनाम हो गया था, तो जयदेव ने ही उसे टूटने से बचाया था.

एक दिन जयदेव उसे अकेले में ले गया और तरहतरह से समझाया, तो उस ने अपने दोस्तों से मुकाबला करने की हिम्मत जुटा ली.

अब दफ्तर में सारे दोस्त सौरभ से पहले की तरह अच्छा बरताव करने लगे, तो सौरभ ने जयदेव की खूब तारीफ की और उस से दोस्ती कर ली.

दोस्ती के 6 महीने बीत गए, तो एक दिन जयदेव सौरभ को अपने घर ले गया.

जयदेव की पत्नी कावेरी को सौरभ ने देखा, तो उस की खूबसूरती पर लट्टू  हो गया.

कुछ देर तक कावेरी से बात करने पर सौरभ ने महसूस किया कि वह जितनी खूबसूरत है, उस से ज्यादा खुले विचार की है.

सौरभ जयदेव के घर से जाने लगा, तो कावेरी उसे दरवाजे पर छोड़ने आई. कावेरी उस से बोली, ‘जब भी मौका मिले, आप  बेखटक आइएगा. मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’

उस समय जयदेव वहां पर नहीं था, इसलिए सौरभ ने मुसकराते हुए मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘क्या मैं जयदेव की गैरहाजिरी में भी आ सकता हूं?’’

‘‘क्यों नहीं? आप का जब जी चाहे आ जाइएगा, मैं स्वागत करूंगी.’’

‘‘तब तो मैं जरूर आऊंगा. देखूंगा कि उस की गैरहाजिरी में आप मेरा स्वागत कैसे करती हैं?’’

‘‘जरूर आइएगा. देखिएगा, मैं आप को निराश नहीं होनें दूंगी. तनमन से स्वागत करूंगी. जो कुछ चाहिएगा, वह सबकुछ दूंगी. घर जा कर सौरभ कावेरी की बात भूल गया. भूलता क्यों नहीं? उस की बात को उस ने मजाक जो समझ लिया था.’’

एक हफ्ता बाद जयदेव के कहने पर सौरभ उस के घर फिर गया. मौका पा कर कावेरी ने उस से कहा, ‘‘आप तो अपने दोस्त की गैरहाजिरी में आने वाले थे? मैं इंतजार कर रही थी. आप आए क्यों नहीं? कहीं आप मुझ से डर तो नहीं गए?’’

सौरभ सकपका गया. वह कावेरी से कुछ कहता, उस से पहले वहां जयदेव आ गया. फिर तो चाह कर भी वह कुछ कह न सका.

उस के बाद सौरभ यह सोचने पर मजबूर हो गया कि कहीं कावेरी उसे चाहती तो नहीं है?

बेशक कावेरी उस की पत्नी से ज्यादा खूबसूरत थी, मगर वह उस के दोस्त की पत्नी थी, इसलिए वह कावेरी पर बुरी नजर नहीं रखना चाहता था. फिर भी वह उस के मन की चाह लेना चाहता था.

3 दिन बाद ही सुबहसवेरे दफ्तर से छुट्टी ले कर सौरभ कावेरी के घर पहुंच गया.

सौरभ को आया देख कावेरी चहक उठी, ‘‘मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरे रूप का जादू आप पर इतनी जल्दी असर करेगा.’’

सौरभ ने भी झट से कह दिया, ‘‘आप का जादू मुझ पर चल गया है, तभी तो मैं दोस्त की गैरहाजिरी में आया हूं.’’

‘‘आप ने बहुत अच्छा किया. देखिएगा, मैं आप को निराश नहीं करूंगी. मैं जानती हूं कि आप अपनी पत्नी से खुश नहीं हैं, वरना कालगर्ल के पास जाते ही क्यों? मैं आप को वह सबकुछ दे सकती हूं, जो अपनी पत्नी से आप को नहीं मिला.’’

सौरभ हैरान रह गया. उस ने कभी नहीं सोचा कि कोई औरत इस तरह खुल कर अपने दिल की बात किसी मर्द से कह सकती है.

सौरभ कावेरी से कुछ कहता, उस से पहले ही वह बोली, ‘‘आप मुझे बेहया समझ रहे होंगे. मगर ऐसी बात नहीं है. बात यह है कि मैं आप को अपना दिल दे बैठी हूं…

‘‘दरअसल, जिस तरह आप अपनी पत्नी से संतुष्ट नहीं हैं, उसी तरह मैं भी अपने पति से संतुष्ट नहीं हूं. जब मैं ने आप को देखा, तो न जाने क्यों मुझे लगा कि अगर आप मेरी जिंदगी में आ जाएंगे, तो मेरी प्यास भी बुझ जाएगी.’’

कावेरी को सौरभ ने बुरी नजर से कभी नहीं देखा था. मगर कावेरी ने जब उसे अपने दिल की बात कही, तो उसे लगा कि उस से संबंध बनाने में कोई बुराई नहीं है.

उस के बद सौरभ ने अपनेआप को आगे बढ़ने से रोका नहीं. झट से उस ने कावेरी को बांहों में भर लिया. उस के होंठों और गालों को चूम लिया.

कावेरी ने कोई विरोध नहीं किया. कुछ देर बाद वह बोली, ‘‘आप बैडरूम में चलिए, मैं दरवाजा बंद कर के आती हूं.’’

सौरभ बैडरूम में चला गया. दरवाजा बंद कर कावेरी बैडरूम में आई, तो सौरभ ने बगैर देर किए उसे बांहों में भर लिया. उस के बाद दोनों अपनीअपनी हसरतों को पूरा करने में लग गए.

सौरभ जैसा चाहता था, कावेरी ने ठीक उसी तरह से उस की हवस को शांत किया.

सौरभ ने कावेरी की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘मुझे आप से जो प्यार मिला है, वह मैं कभी नहीं भूल सकता.’’

‘‘यही हाल मेरा भी है सौरभजी. मेरी शादी हुए 5 साल बीत गए हैं. देखने में मेरे पति हट्टेकट्टे भी हैं, मगर उन से मैं कभी संतुष्ट नहीं हुई. अब मैं आप से एक गुजारिश करना चाहिती हूं.’’

‘‘गुजारिश क्यों? हुक्म कीजिए. मैं आप की हर बात मानूंगा,’’ कहते हुए सौरभ ने कावेरी के होंठों को चूम लिया.

‘‘आप शादीशुदा हैं. मैं भी शादीशुदा हूं. हम चाह कर भी कभी एकदूसरे से शादी नहीं कर सकते, लेकिन मैं चाहती हूं कि हम दोनों का संबंध जिंदगीभर बना रहे. हम दोनों कभी जुदा न हों. क्या ऐसा हो सकता है?’’

कावेरी ने जैसे उस के दिल की बात कह दी हो, इसलिए झट से उस ने कहा, ‘‘क्यों नहीं हो सकता. मैं भी तो यही चाहता हूं.’’

उस दिन के बाद जब भी मौका मिलता, सौरभ दफ्तर न जा कर कावेरी के घर चला जाता था.

इस तरह 4 महीने बीत गए. इस बीच सौरभ ने 7-8 बार कावेरी से हमबिस्तरी की. हर बार कावेरी ने उसे पहले से ज्यादा मस्ती दी.

सौरभ ने यह मान लिया था कि कावेरी के साथ उस का संबंध जिंदगीभर चलेगा. दोनों के बीच कोई दीवार नहीं आएगी, मगर उस का सोचा नहीं हुआ. आज जो कुछ भी हुआ, उस की सोच से परे था.

सौरभ अपने घर आया, तो वह बहुत परेशान था. अनीता ने उस की परेशानी ताड़ ली. अनीता ने उस से पूछ लिया, ‘‘क्या बात है? आप बहुत परेशान दिखाई दे रहे हैं?’’

सौरभ ने बहाना बना दिया, ‘‘परेशान नहीं हूं. थका हुआ हूं.’’

सौरभ ने अनीता पर शक तो नहीं होने दिया, मगर उसी दिन से उस की सुखशांति छीन गई. दिनरात वह इस फिराक में रहने लगा कि 3 लाख रुपए का इंतजाम वह कैसे करे?

25 दिन बीत गए, मगर रुपए का इंतजाम नहीं हुआ, तो सौरभ ने मकान पर रुपए लेने का फैसला किया.

सौरभ मकान पर रुपए लेता, उस से पहले अनीता को सबकुछ मालूम हो गया. वह चुप रहने वालों में से नहीं थी.  वह सौरभ से बोली, ‘‘मुझे पता चला है कि आप मकान पर 3 लाख रुपए लेना चाहते हैं. सच बताइए कि रुपए की ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी कि आप को मकान गिरवी रखना पड़ रहा है? कहीं आप किसी बजारू लड़की के चक्कर में तो नहीं पड़ गए हैं.’’

सौरभ घबरा गया. उस ने सच छिपाने की बहुत कोशिश की, लेकिन अनीता के सामने उस की एक न चली.

‘‘मैं जानती थी कि आप का शौक एक दिन आप को डुबो देगा.’’

‘‘कैसा शौक?’’ सौरभ हकला गया.

‘‘ब्लू फिल्म की तरह हरकतें करने का शौक,’’ सौरभ हैरान रह गया.

‘‘मैं जानती हूं कि आप अपना शौक पूरा करने के लिए कालगर्ल के साथ होटल में गए थे. वहां रेड पड़ी और पुलिस ने आप को गिरफ्तार कर लिया. अगले दिन आप के दोस्त ने आप को जमानत पर छुड़ाया. मैं ने आप से इसलिए कुछ नहीं कहा कि शर्मिंदगी से आप मुझ से नजरें नहीं मिला पाएंगे.’’

अब सौरभ ने भी अपनी गलती मानने मे देर नहीं की. कावेरी के साथ अपने नाजायज संबंध के बारे में सबकुछ बताने के बाद अनीता से उस ने माफी मांगी. उस से कहा कि वह ऐसी गलती नहीं करेगा.

‘‘मैं तो आप को माफ करूंगी ही, क्योंकि मैं अपना घर तोड़ना नहीं चाहती. मगर सवाल है कि कावेरी के चक्रव्यूह से आप कैसे निकलेंगे?’’

‘‘कैसा चक्रव्यूह?’’

‘‘आप अभी तक यही समझ रहे हैं कि कावेरी के साथ हमबिस्तरी करते समय उस के पति ने आप को अचानक देख लिया और आप के साथ सौदा कर लिया?’’

‘‘मैं तो यही समझ रहा हूं,’’ सौरभ बोला.

लेकिन सच यह नहीं है. मेरी सोच यह है कि कावेरी और उस के पति ने मिल कर आप को फंसाया है. अगर ऐसा नहीं होता, तो उस का पति आप के साथ सौदा क्यों करता? पत्नी की बेवफाई देख कर उसे अपने घर से निकाल देता या माफ कर देता. आप के साथ सौदा किसी भी हाल में नहीं करता.’’

कुछ सोचते हुए अनीता ने कहा, ‘‘जो होना था, वह तो हो गया. अब आप चिंता मत कीजिए. कावेरी के चक्रव्यूह से मैं आप को निकालूंगी.’’

‘‘आप तो जानते ही हैं कि मेरा मौसेरा भाई जयंत पुलिस इंस्पैक्टर है. जब उसे सारी बात बताऊंगी, तो वह हकीकत का पता लगा लेगा और सबकुछ ठीक भी कर देगा.’’

उसी दिन अनीता सौरभ के साथ जयंत से मिली. सारी बात जानने के बाद जयंत अगले दिन से छानबीन में जुट गया.

4 दिन बाद जयंत ने अनीता को फोन पर कहा, ‘‘छानबीन करने के बाद मैं ने जयदेव और कावेरी को गिरफ्तार कर लिया है. दोनों ने अपनाअपना गुनाह कबूल कर लिया है. अब जीजाजी को किसी से डरने की जरूरत नहीं है.

‘‘दरअसल, जयदेव और कावेरी का यही ध्ांधा था. कोलकाता से पहले दोनों पटना में थे. वहां कई लोगों को अपना शिकार बनाने के बाद जयदेव ने अपना ट्रांसफर कोलकाता करा लिया था.

‘‘जब जीजाजी को कालगर्ल के साथ पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था, तो उन के दफ्तर के ही किसी ने थाने में उन्हें देख लिया और दफ्तर में सब को बता दिया.

‘‘दफ्तर बदनाम हो गया, तो जयदेव ने उन्हें अपना अगला शिकार बनाने का फैसला कर लिया.

‘‘अपनी योजना के तहत जयदेव ने पहले जीजाजी से दोस्ती की, उस के बाद उन्हें अपनी पत्नी कावेरी से मिलाया.

‘‘उस के बाद कावेरी ने अपना खेल शुरू किया. उस ने जीजाजी पर अपने रूप का जादू चलाया और उन के साथ वही सब किया, जो अब तक औरों के साथ करती आई थी.’’

जयदेव और कावेरी की सचाई जानने के बाद सौरभ ने राहत की सांस ली. अनीता को अपनी बांहों में भर कर उस की खूब तारीफ की.

अनीता ने भी सौरभ को निराश नहीं किया. रात में बिस्तर पर उस ने शर्म छोड़ कर उस के साथ वैसा ही सबकुछ किया, जिस की चाह में वह कावेरी के चंगुल में फंस गया था.

भरपूर मजे के बाद सौरभ ने अनीता से कहा, ‘‘तुम तो सबकुछ कर सकती हो, फिर उस दिन जब मैं ने ऐसा करने के लिए कहा था, तो मना क्यों किया था?’’

‘‘सिर्फ मैं ही नहीं, हर पत्नी अपने पति के साथ ऐसा कर सकती है, मगर सभी ऐसा करती नहीं हैं, कुछ ही करती हैं.’’

‘‘जिस तरह मेरा मानना है कि औरतों को शर्म के दायरे में रह कर हमबिस्तरी करनी चाहिए, उसी तरह बहुत सी पत्नियां ऐसा मानती हैं. इसी वजह से बहुत सी पत्नियां ब्लू फिल्म की तरह हरकतें नहीं करतीं.’’

‘‘मैं ने आज शर्म की दीवार तोड़ कर आप का मनचाहा तो कर डाला, मगर बराबर नहीं कर सकती, क्यों कि मुझे बेहद शर्म आती है.’’

अनीता के चुप होते ही सौरभ ने कहा, ‘‘अब इस की जरूरत भी नहीं है. मैं समझ गया कि गलत चाहत में लोग बरबाद हो जाते हैं. मैं अपनी गलत चाहत को आदत नहीं बनाना चाहता, इसलिए हमबिस्तरी के समय वैसा ही सबकुछ चलेगा, जैसा अब तक चलता रहा है.’’

अनीता खुशी से सौरभ से लिपट गई. सौरभ ने भी उसे अपनी बांहों में कस लिया.

Story In Hindi : मीटिंग पर मीटिंग

Story In Hindi :  मीटिंग चल रही है, साहब व्यस्त हैं. सुबह से शाम तक और शाम से कभीकभी रात तक, साहब मीटिंग करते रहते हैं. मीटिंग ही इन का जीवन है, इन का खानापानी है और इन का शौक है. ये जोंक की तरह इस से चिपके रहते हैं. मीटिंग का छौंक इन की जिंदगीरूपी खाने को स्वादिष्ठ व लजीज बनाता है. इस छौंक के बिना इन्हें सब फीकाफीका लगता है. यह इन की आन, बान व शान है, इन की जान है. मीटिंग में ये जिंदगी जी रहे हैं तो मीटिंग में इन से डांट खा रहे बैठे लोग खून का घूंट पी रहे हैं.

मीटिंग में इतना बकते हैं, फिर भी ये थकते नहीं हैं. पता नहीं कौन सी चक्की का आटा खाते हैं कि इतनी ऊर्जा रहती है. सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक मीटिंग करतेकरते, उस में बकबकाते भी थकते नहीं हैं. मीटिंग दे रहे लोग, हां दे रहे लोग ही कहना पड़ेगा, क्योंकि ये मीटिंग लेते हैं तो कोई न कोई तो देता होगा, थक जाते हैं. उन्हें उबासी आने लगती है लेकिन साहब को कुछ नहीं होता है. ये बहुसंख्य को डांट और अल्पसंख्य को शाबाशी भी देते रहते हैं. बल्कि जैसेजैसे मीटिंग आगे बढ़ती जाती है, वे और ज्यादा चैतन्य होते जाते हैं. शायद, डांटने को बांटने से उन में ऊर्जा का भंडार बढ़ता जाता है. हां, शायद, इसीलिए पत्नियों में ऊर्जा ज्यादा रहती है, दिनभर पति को किसी न किसी बात में वे डांटती जो रहती हैं.

साहब का नामकरण मीटिंग कुमार कर देना चाहिए. क्योंकि इस के बिना ये जी नहीं सकते. कहा जाता है कि किसी अफसर से यदि दुश्मनी निभानी है तो उसे मीटिंग से वंचित कर दो. जैसे कि मछली की जल के बाहर जान निकल जाती है, लगभग वैसा ही बिना मीटिंग के अफसर हो जाता है. मीटिंग उस की औक्सीजन है. जो जितना बड़ा, वो उतनी ज्यादा मीटिंग लेता है या जो जितनी ज्यादा मीटिंग ले, वो उतना बड़ा अधिकारी होता है. हां, इसीलिए आप ने देखा होगा कि बड़े अफसर का खुद का बड़ा मीटिंगहौल होता है और छोटे का तो फटेहाल सा होता है.

मीटिंग से इन्हें इतना प्यार है, दुलार है कि इस के नएनए ईजाद इन्होंने कर लिए हैं. बस, मीटिंग होनी चाहिए, वो वीडियो कौन्फ्रैंसिंग से हो या फेस टू फेस हो. कभी रिव्यू मीटिंग तो कभी ज्यादा लोगों को बुला कर सम्मेलन कर लेते हैं. कुल मिला कर मीटिंग्स होनी ही हैं. कभी प्रशिक्षण कर लेंगे और धीरे से वहां मीटिंग के फौर्म में भी आ जाएंगे. कभी ये अपने दफ्तर में मीटिंग करते हैं तो कभी फील्ड में जा कर करते हैं.

मीटिंग का उद्देश्य तो है कि योजनाओं, कार्यक्रमों का बेहतर क्रियान्वयन हो कर आम जनता का भला हो, उस का काम त्वरित गति से हो, उसे चक्करबाजी से मुक्ति मिले, लेकिन आम आदमी जब अपने काम से दफ्तर आता है, उसे पता लगता है कि साहब मीटिंग कर रहे हैं, उसे इंतजार करना पड़ता है. इंतजार करतेकरते वह थक जाता है तो उसे लगता है कि यह मीटिंग नहीं, उस के जैसे आम आदमी से चीटिंग है. वह सोचने को मजबूर हो जाता है कि जब उस का काम नहीं हो पा रहा है तो यह मीटिंग किस काम की. जिन की सैटिंग है या जो खातिरदारी कर देते हैं, उन का तो काम हो जाता है लेकिन जिन की नहीं, उन को साहब मीटिंग में हैं कह कर टरकाया जाता है. फिर भी आम आदमी मुए पेट की खातिर इंतजार करता है.

आज के अधिकारी मीटिंग अधिकारी हो गए हैं. काम कम, मीटिंग ज्यादा. आम आदमी बड़ा भौचक है. कई सरकारें आईं और चली गईं. कोई इन मीटिंगों को कम नहीं कर पाया, और न ही उस की समस्याएं सुलझीं. उसे यह दलील दी जाती है कि तुम्हारी समस्याएं चूंकि बढ़ती जा रही हैं, इसलिए मीटिंगों की संख्या भी बढ़ती जा रही है.

आखिर तुम कोई समस्या बताते हो तो एक आदमी या अधिकारी या विभाग तो उस को सुलझा नहीं सकता है, तो इसलिए फिर मीटिंग करनी पड़ती है. तुम्हें यदि हमारा मीटिंग करना पसंद नहीं आता है तो हम कभी मीटिंग नहीं करेंगे. हमें मालूम है कि इस से हमें कितनी तकलीफ होगी और फिर मत कहना कि आप की समस्याएं दूर करने के लिए हम कुछ नहीं कर रहे.

वैसे, यदि कोई पार्टी अगले चुनाव में अपने घोषणापत्र में यह बात रख दे कि वह सत्ता में आई तो मीटिंग पर प्रतिबंध लगवा देगी, तो गंगू दावा करता है कि वह पार्टी चुनाव जीत जाएगी.

मीटिंग में बोरियत से बचने के लिए मीटिंग दे रहे अधिकारी नाना तरह के उपक्रम करते हैं. आजकल सब से अच्छा खिलौना तो मोबाइल है. मीटिंग ले रहा अधिकारी अपनी बात करता रहता है और मीटिंग दे रहे अधिकारी मोबाइल पर एसएमएस करते रहते हैं या गेम्स खेलते रहते हैं. वे सोचते हैं कि अच्छा, बहुत बनता है, मैं इस के साथ गेम खेलता हूं, ये हमारे साथ मीटिंग का गेम खेलता रहता है.

आप ने देखा ही है कि विधानसभा की मीटिंग से उकता कर तो कुछ विधायक रंगबिरंगी क्लिपिंग देखने में फंस गए थे. कुछ अधिकारी पत्रिका या किताब ला कर चुपचाप पढ़ते रहते हैं. कुछ अधिकारी अपनी चित्रकारी की योग्यता का बेजोड़ प्रदर्शन करते रहते हैं. कुछ अधिकारी मौका देख कर बीच में गायब हो जाते हैं और आखिर में फिर चुपचाप वापस भी आ जाते हैं. मीटिंग में कुछ अपनी नींद पूरी कर लेते हैं.

गड़बड़ केवल ऐसे लोगों के साथ होती है जो नींद में थोड़े गहरे जा कर खर्राटे मारने से नहीं चूकते. बस, यही चूक मीटिंग ले रहे अधिकारी के कान खड़े कर देती है. उक्त प्रकार के कलाकार अधिकारियों से दूसरों को सीखने की जरूरत है.

गंगू का तो कहना है कि देश की सब से बड़ी समस्या यदि कोई है तो वह मीटिंग ही है. हर शहर में, कसबे में हर जगह कोई न कोई मीटिंग चल रही है. इसी मीटिंग कल्चर से सम्मेलन व सभाएं निकल कर आई हैं और फिर आप ने देखा है कि ये कितनी खतरनाक हो सकती हैं. चीन के टियानअनमन चौक पर हुआ जमावड़ा या मिस्र में 2 साल पहले काहिरा में हुआ प्रदर्शन या अभी हो रहा प्रदर्शन, ये कइयों की बलि ले कर ही मानता है. न कभी मीटिंग हुआ करती और न लोगों ने यह सीखा होता, तो फिर यह खूनखराबा भी नहीं होता. रामलीला मैदान, दिल्ली में आप देख ही चुके हैं कि कैसे रामदेव को मीटिंग को सभा में बदलने के कारण भागना पड़ा था.

अब यदि इन मीटिंगों की संख्या नहीं रुकी, तो वह दिन दूर नहीं जब लोग कहेंगे कि मीटिंग नहीं, यह हमारे साथ चीटिंग हो रही है. वैसे, गंगू के पास इस का समाधान है, सरकार को अलग से एक मीटिंग डिपार्टमैंट बना देना चाहिए और कुछ मीटिंग अधिकारी इस में नियुक्त कर देने चाहिए जिन का केवल काम ही हो कि मीटिंग करें और करवाएं और हर विभाग अपने यहां से भी एक अधिकारी को मीटिंग अधिकारी नामांकित कर देना चाहिए जिस का केवल और केवल काम होगा मीटिंग में भाग लेना और बाकी लोगों को फ्री कर के उन्हें काम करने देना. जब सत्कार अधिकारी हो सकता है तो मीटिंग अधिकारी क्यों नहीं हो सकता? इस से मीटिंग की महत्ता भी कम नहीं होगी और बाकी अधिकारीगण इस से मुक्त हो कर अपने काम में लग जाएंगे.

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