Hindi Kahaniyan : वे नए शहर में आए हैं. निशा खुश दिख रही है. कारण एक आवासीय सोसायटी में उन्हें एक छोटा सा फ्लैट भी जल्दी मिल गया था. निशा और पीर मोहम्मद पहले दिल्ली में रहते थे, जहां पीर एक छोटे से कारखाने में पार्टटाइम अकाउंटैंट की नौकरी में था. इसी तरह वह 1-2 और दुकानों में अकाउंट्स का काम देखता था. लेकिन कोरोनाकाल में वह काफी परेशानियों से गुजरा था. पीर मोहम्मद ने भी उस दौरान व्हाट्सऐप ग्रुप बना कर कुछ जरूरतमंदों की सहायता की थी. लोगों को राशन दिलाने में भी लगा रहा, लेकिन कोरोना का दूसरा वर्ष अप्रैल माह और भी भयावह था.
वजीर ए आजम के भाषण से मुल्क में इतनी आत्मनिर्भरता फैल चुकी थी, जहां प्रत्येक व्यक्ति अपनी रक्षा स्वयं करता दिखा, जहां अपनी जान की रक्षा स्वयं के कंधों पर थी. लोगों की मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा था. कोरोना रोकथाम का पहले साल का लौकडाउन कम भयावह न था. सड़कों पर लोग अपने परिवार के साथ मीलों पैदल चल रह रहे थे. सांसद, विधायक, पार्षद सब नदारद दिखे थे. तब पीर मोहम्मद ने अपने मित्र पैगंबर अली से कहा था,”भाई साहब, बस स्टैंड, बिजली के खंभों, चौराहों पर जो आएदिन बड़ेबड़े फ्लैक्स लगा कर लोगों को ईद, बकरीद, दीवाली, होली, रक्षाबंधन, क्रिसमस, बुधपूर्णिमा, डा.अंबेडकर जयंती की मुबारकबाद देते थे आखिर अब वे सभी कहां चले गए? मंदिर और मसजिद के नाम पर चंदा लेने वाले नहीं दिखते, जो सुबहसुबह गलियों में मंदिर निर्माण के लिए चंदा इक्कठा करते घूमते थे? ऐसे जुझारू नेता और स्वयंसेवक सामाजिक कार्यकर्ता आखिर कहां हैं इस वक्त?”
तब पैगंबर अली ने कहा था, “भाई, लगता है, सब कोरोना वायरस से निबट गए.”
मुल्क में औक्सीजन, बैड, दवाइयों के कारण लोग मर रहे थे, जिस से श्मशान और कब्रिस्तान में लंबीलंबी लाइनें लग रही थीं. हालात यह था कि श्मशान में अधजली बौडी पड़ी रहती थीं क्योंकि लोगों के पास साधन न थे, न थीं लकड़ियां. ऐसी स्थितियां लोगों को विचलित कर देती थीं. बहुतेरे मृत शरीर गंगा नदी के रेत में दफन दिख रहे थे जिन्हें जानवर खा रहे थे. बहुत भयानक मंजर. ऐसी खबरें देख कर निशा बहुत दुखी होती थी. घबराहट होता था उस के मन में.
पीर मोहम्मद जब भी फोन उठाते कोई न कोई अप्रिय घटना उसे व्हाट्सऐप से मिल ही जाती थी. अब तो उसे अपना फोन उठाने में भी डर लगने लगा था.
अप्रैल में ही पीर मोहम्मद के बहुत करीब फादर जौय का इंतकाल हो गया था. पीर मोहम्मद को उन से एक लगाव सा था. जब पीर मोहम्मद दिल्ली में था तो फादर जौय ने उस के बच्चे के स्कूल ऐडमिशन में उस की मदद की थी. फादर जौय की कोरोना से मौत की खबर सुन कर पीर मोहम्मद बहुत रोया था.
अप्रैल तक पूरे मुल्क में करोना से 2 लाख से ज्यादा लोग मर चुके थे. मई 2022 में ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा कि भारत में कोरोना से 47 लाख लोगों की मौत हुई है.
पीर मोहम्मद निशा से कहता, “समाज कितना असंवेदनशील हो गया है, तभी तो हम इन मौतों को रुपए की गिनती से देख रहे हैं. ₹2 लाख कम हो सकते हैं, लेकिन 2 लाख लोगों का मर जाना बहुत भयावह है. इन दोनों में बहुत अंतर है. कोरोना बहुत बड़ी त्रासदी बना. इस से लड़ने में हमारा सिस्टम पूरी तरह नाकाम दिख रहा है. क्या इस सिस्टम की जवाबदेही नहीं है? इस सरकार की जवाबदेही नहीं है?
जब सरकार पूरे मुल्क में लौकडाउन लगा सकती है, तो संसाधनों की उपलब्धता क्यों नहीं कर सकती? कोरोना ने दिखाया है कि हमारी सरकार और हम लोगों की नैतिकता बिलकुल समाप्त हो चुकी है. एक सांसद जिन को 1 महीने में लगभग ₹2 लाख से अधिक वेतन मिलता है, तो आखिर किसलिए? दूसरी तरफ सत्ता आंदोलनकारियों को जेलों में ठूंस चुकी थी. सरकार तानाशाही तरीके से कोरोनाकाल में ही 3 नए कृषि कानून को ले आई थी. कोरोनाकाल में ही किसान आंदोलन में सक्रिय हो गए, क्योंकि यह उन के लिए जीने और मरने की बात थी.
भारतीय समाज से लोककल्याणकारी व्यवस्था का लगभग अंत होता सा दिखा. यह तो नवउदारवाद है जहां सरकारी नीति में पूंजीपतियों जैसी सोच हावी हो जाना. जहां सरकार कहे कि हम ने मुफ्त में कोरोना के टीके लगाए हैं.
निशा और पीर मोहम्मद के लिए यह शहर तो नया था. आसपास के घरों की कुछ महिलाओं से निशा की हायहैलो तो हो ही चुकी है जबकि समाज में एक सोशल डिस्टैंस नामक तत्त्व स्थापित हो चुका था. वैसे सामाजिक दूरियां तो पहले भी थीं पर उन में कुछ कानूनी अंकुश था. लेकिन अब तो स्वस्थ्यतौर पर लोग एकदूसरे से दूरी रख सकते हैं. यहां पीर मोहम्मद को कुछ बेहतर नौकरी मिल गई थी. बेचारे ने बड़ी मेहनत की थी, लेकिन उम्र तेजी से भागता है. उस ने तो सरकारी नौकरी प्राप्त करने की बहुत दिनों तक आशा की थी. इस नए शहर में उन्होंने अपने बेटे बबलू का ऐडमिशन वहीं के एक कौन्वेंट स्कूल में करा दिया था.
निशा यहां खुश इसलिए भी थी क्योंकि लगभग 8 वर्षों बाद उसे अपना एक फ्लैट मिला था जिसे वह अपना तो कह ही सकती थी. वैसे, वह किराए पर भी खुश थी, लेकिन अपने स्वयं के फ्लैट की बात ही अलग होती है. निशा किराए के घर को भी चमका कर रखती थी. पहले वाली मकानमालकिन कहती कि अरे, पीर मोहम्मद, तेरी बींदणी बहुत अच्छी है. साफसफाई पर ज्यादा ध्यान देती है. निशा पीर मोहम्मद के प्रति एक समर्पित और शिक्षित गृहिणी थी. शादी के 9 वर्ष होने वाले थे, लेकिन निशा के चेहरे की त्वचा आज भी 24 की ही लगती थी. अब तो उस का बेटा बबलू भी 7 वर्ष का हो चुका है.
चूंकि अब वे नए शहर में आए हैं, पीर मोहम्मद की नौकरी पहले से कुछ बेहतर जरूर थी. निशा को पार्क और पेड़पौधे बड़े प्रिय लगते. वह अकसर सोचती थी कि अपना घर होने पर बागवानी करेगी. लेकिन उस ने अपने नए फ्लैट को काफी अच्छे से सजा दिया था. अब नियमित तो नहीं, लेकिन एक रोज छोड़ कर सोसायटी से कुछ दूर एक बहुत बड़े सिटी पार्क में बबलू को ले कर जाती. बबलू खुश होता. उस को दौड़नेकूदने का एक बड़ा सा स्पेस मिल जाता था. निशा के साथ कभीकभी सोसायटी की कुछ महिलाएं भी साथ जाती थीं. लेकिन उन में एक सामाजिक दूरी रहती थी. एक तो कोरोना और दूसरा धार्मिक और जातीयता का क्योंकि एक महिला ने निशा से उस के धर्म के बारे में पूछा था, तब निशा ने कहा था हम मुसलमान हैं.
एक दूसरी मुसलिम महिला ने उस से उस की धार्मिक जाति भी पूछी, तब निशा ने उसे बताया था कि हम ‘शाह’ हैं, तब उस ने उसे कमतर दृष्टि से देखा था. निशा सोचती है कि हिंदू वर्ग में मुसलमानों के नाम से भेदभाव है. लेकिन मुसलिम समुदाय में भी क्या जाति को ले कर भेद नहीं है? निशा सोचती है कि क्या पसमांदा मुसलमान दोहरी मार के शिकार नहीं हैं?
उस दिन से सोसाइटी में और भी सोशल डिस्टैंस बढ़ गया था. वैसे, कोई न कोई महिला पार्क में घूमते जाते वक्त दिख ही जाती. कुछ का साथ न सही, दूसरी तरफ कोरोनाकाल में पार्क में भीड़ भी कम ही दिखती थी.
एक रोज निशा बबलू को ले कर पार्क गई थी. बबलू अन्य बच्चों के साथ लुकाछिपी खेलने लगा. कुछ बच्चों की मांएं आवश्यक काम होने की वजह से घर चली गईं. लेकिन बबलू घर चलने को तैयार नहीं था. वह कहता, “मम्मी, खेलो न…”
निशा ने कहा, “ठीक है, छिप जाओ.” इस तरह वह खेलने लगी.
जब निशा की दोबारा बारी आई और वह बबलू को खोजने लगी, तो पता नहीं कहां जा कर छिप गया, मिल ही नहीं रहा था.
बबलू कहां हो…बबलू…बबलू… लेकिन कहीं से कोई आवाज ही नहीं आई. शाम ढलने लगी थी. निशा ने देखा कि बगल में एक पार्क और है, जो कुछ छोटा है और जिस में बंदर, शेर, हिरन, भालू की आकृति भी बनी हुई थी. निशा सोचने लगी कि क्या पता उस के अंदर तो नहीं चला गया है. निशा ने उस छोटे पार्क में जा कर आवाज लगाई “बबलू… बबलू…” लेकिन कुछ पता नहीं.
अब उसे बहुत घबराहट होने लगी थी. सोचने लगी कि पीर मोहम्मद को फोन करूं या न करूं. पीर मोहम्मद तो काफी गुस्सा होंगे और वह रोने लगी क्योंकि पार्क भी खाली हो रहा था. वैसे ही उस में कम लोग थे. पार्क में सन्नाटा पसर रहा था जहां कुछ देर पहले कुछ शोरगुल और बच्चों की किलकारियां वातावरण में गूंज रही थीं, वहीं शाम ढलने को थी. लाइटें कुछ कुछ दूरी पर थीं. एक बड़ी ऊंची लाइट भी थी पर पार्क में सन्नाटा पसर गया था.
निशा ने सब जानवरों की आकृतियों के पास जा कर देखा, लेकिन बबलू नहीं मिला. अब वह रोने लगी. तभी पीछे से किसी आदमी ने आवाज दी कि क्या हुआ मैडम? निशा ने उसे बताया कि मैं अपने बेटे बबलू को खोज रही हूं, जो उस बड़े पार्क में खेल रहा था, मिल ही नहीं रहा है.
उस आदमी ने कहा,”आप उसे वहीं खोजें. बच्चा बाहर तो नहीं गया होगा.”
वह निशा के साथ बड़े पार्क में गया. निशा ने देखा कि बबलू बेंच पर बैठा रो रहा है. उधर से एक सुरक्षाकर्मी भी आता दिखा. निशा बबलू को देख कर जोरजोर से रोने लगी थी. उस ने उसे चूमा और सीने से लगा लिया था,”कहां चला गया था?”
बबलू ने कहा, “मैं तो यहीं था,” वह भी हिचकियां लेले कर रो रहा था.
“मैं तो हाइड ऐंड सिक खेल रह था,” बबलू पता नहीं क्यों अकेले में बातें किया करता है. निशा अकसर यह बात पीर मोहम्मद से पूछती थी. बबलू ने उसी पार्क में एक कुआं दिखाया जो लगभग 4 फुट ऊंचे ईंटों से घेरा गया था और लोहे के ग्रिल से ढंका हुआ था ताकि कोई बच्चा उस में न गिर जाए और न कोई उस पर चढ़ पाए. बबलू उस कुएं के पीछे छिप गया था.
निशा ने कहा,”बेटा, ऐसा नहीं करते. अकेले बच्चों को राक्षस ले जाता है. जब मम्मी आवाज लगा रही थी तो क्या आप ने सुना नहीं?”
“नहीं मम्मी, मैं तो हाइड ऐंड सिक खेल रहा था.”
इस के बाद निशा बबलू को ले कर पार्क से बाहर आई. साथ में वह आदमी भी आया था. उस की उम्र लगभग 40 की होगी. निशा ने उस से कहा,”आप का एहसान है, मुझे तो उस समय कुछ समझ ही नहीं आ रहा था आखिर मैं करूं तो क्या? एक तो नया शहर है. पता नहीं क्या उलटासीधा दिमाग में घूमने लगा था.”
व्यक्ति ने कहा, “आप नए हैं यहां?”
“जी…” निशा ने उसे बताया कि वह सैक्टर-बी में नई बनी सोसायटी में रहती है.
निशा ने उसे अपना फोन नंबर भी दिया. वह कुछ आगे बढ़ गई तभी उसे याद आया कि अरे, मैं ने तो उन का नाम भी नहीं पूछा.
उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो वह आदमी जा रहा था. उस ने आवाज लगाई और जब उस ने देखा तो निशा ने उस को हाथ हिलाया. वह ज्यादा दूर नहीं गया था. वह उस के पास आया तो निशा बोली,”सौरी, मैं ने तो आप का नाम ही नहीं पूछा, क्या नाम है आप का?”
“सरफराज खान.”
पीर मोहम्मद घर पहुंच चुका था. वह निशा पर कोई पाबंदी नहीं चाहता था. दूसरी बात यह भी थी कि वह घर से ज्यादा निकलती भी नहीं थी. दिल्ली शहर में जब वे रहते थे तो वहां उन के कुछ रिश्तेदार भी रहते थे. अगर निशा उन के घर जाती तो जाने से पहले वह पीर मोहम्मद को बता देती थी. औफिस से आने के बाद पीर मोहम्मद अगर सिंक में किचन के जूठे बरतन देखता तो उसे साफ कर देता था. चाय भी बना कर पी लेता था. आज जब निशा नहीं आई थी तो वह समझ गया था कि कुछ काम होगा उसे, क्योंकि निशा ने उन्हें बता दिया था कि वह बबलू को पार्क में ले जा रही है. निशा एक जिम्मेदार औरत है.
दरअसल, वह अपनी उम्र से ज्यादा समझदार हो गई थी. शादी कर के आई तो उस के कम खर्चे को ले कर पीर मोहम्मद अकसर दुखी भी हो जाता था. जब कभी दोनों बाजार जाते तो वह अपने लिए कुछ न खरीदती. पीर मोहम्मद उसे बारबार कहता कि कुछ तो खरीद लो, लेकिन वह नहीं खरीदती. पीर मोहम्मद को अंदर से रोने जैसा भाव हो जाता था.
निशा ने उसे देख कर कहा,”कब आए?”
“थोड़ी देर हुआ है. क्यों बबलू, आज तो मजा आया होगा?”
निशा ने कहा, “आप ने कुछ लिया?”
“हां, चाय बनाई थी, लेकिन तुम तो जानती हो कि तुम्हारे हाथ की चाय पीए बगैर लगता ही नहीं है कि चाय पी है.”
निशा और पीर मोहम्मद का विवाह अरैंज्ड से लव मैरिज बन गया था. जब दोनों की शादी की बात चली तो दोनों ने एकदूसरे से मिले बगैर ही शादी कर ली. पीर मोहम्मद और निशा का एकदूसरे से फोन पर बातचीत से ही बहुत लगाव हो गया था. इतना लगाव कि उन्होंने एकदूसरे को देखना भी मुनासिब नहीं समझा था. पीर मोहम्मद के साथ रहतेरहते निशा के सालों गुजर गए थे. इन वर्षों में निशा ने पीर मोहम्मद से कुछ डिमांड न की, क्योंकि वह पीर मोहम्मद की माली हालात को अच्छी तरह समझती थी. दूसरी तरफ वह बहुत संकोची थी. उसे लगता कि कोई उस बात को बोल न दे. कोई ताना न मार दे. वह किसी बात को ले कर गंभीर हो जाती है. वह किसी भी बात को बहुत जल्दी दिल पर लगा लेती. बहुत संवेदनशील रहती थी वह.
साल 2 साल में कभी कपड़े खरीद लिए नहीं तो कोई डिमांड नहीं. कहीं घूमना भी नहीं जाना होता.
निशा को याद है जब उस की शादी हुई थी, तो पीर मोहम्मद ने कहा था कि वह उसे आगरा ले कर जाएगा, लेकिन उस के पास इतने पैसे ही नहीं हुए कि ले कर जाए. 3 महीने बाद वह अपने मायके चली गई थी. जब वापस आई तो 1 साल के बाद पीर मोहम्मद उसे घुमाने ले गया था. उस समय निशा 2 महीने से पेट से थी. पीर मोहम्मद दहेज तो नहीं लेना चाहता था, लेकिन सामाजिक रूढ़ियों में वह दवाब में आ गया था. उस के अंदर भी कुछ दहेज को ले कर एक लालच समा गया था था फिर भी अपनी तरफ से कुछ भी डिमांड नहीं कर सका. लेकिन शादी के बाद उस ने निशा के मातापिता को सरेआम बेइज्जत किया, पारिवारिक व सामाजिक रूढ़ियों के दबाव में क्योंकि कोई कितना भी आदर्शवादी बने, लेकिन इस व्यवस्था से निकलना मुश्किल हो जाता है. ऐसा नहीं है कि लोग नहीं निकले हैं. पीर मोहम्मद परिवर्तनवादी प्रक्रिया में जरूर था. सब से बड़ी बात तो यह थी कि उस ने कुछ मांगा भी नहीं था, लेकिन घर वालों की तानाकशी के प्रभाव में आ ही गया था. लेकिन वह एक अच्छा इंसान है जो केयर तो करता है लेकिन उस में व्यक्ति को पहचानने की समझ नहीं. वह निशा से कहता कि किसी चीज की आवश्यकता है तो उसे कह दे. लेकिन निशा कहती कि जैसे मैं आप की दिल की बात समझ जाती हूं तो आप क्यों नहीं समझ पाते? यह दोनों का बहुत बड़ा विरोधाभाष लगता है.
शादी के बाद बाद वे 2-3 बार ही लोकल घूमने गए थे. इतने सालों में वे पीर मोहम्मद के साथ 2 बार ही सिनेमा देखने गई थी. लेकिन निशा पीर मोहम्मद को बहुत प्यार करती थी जबकि पीर मोहम्मद उस से उतना प्यार नहीं करता था. लेकिन वह उस के बगैर रह भी नहीं सकता था. जब निशा उस से नाराज हो जाती या बात करना बंद कर देती तब पीर मोहम्मद बैचन हो जाता.
प्यार बिलकुल अंधा होता है, जो व्यक्ति उस के अंदर उस में समाहित हो जाता है उस से निकलना एक सच्चे और संवेदनशील व्यक्ति के लिए बहुत मुश्किल होता है. शादी से पहले एक बार फोन पर पीर मोहम्मद ने निशा से कहा था, “इस बार जब तुम्हारे पापामम्मी आए तो अपना फोटो जरूर भेज देना.”
लेकिन जब उस के मम्मीपापा आए, तो फोटो नहीं ले कर आए थे. इस पर पीर मोहम्मद ने निशा से अपनी नाराजगी जाहिर की थी. सच्चा प्यार वही कर सकता है, जो संवेदनशील है. देश, अपने और समाज के प्रति इस के विपरीत कोई नहीं. प्यार किसी की जान नहीं लेता. प्यार न ही किसी के शरीर का भूखा होता है. प्यार तो समर्पण है एकदूसरे के लिए. प्यार किसी के प्रति इर्ष्या भी नहीं है. अगर कोई किसी को प्यार करता तो वह उस को दुख नहीं दे सकता. न उस को हानि पहुंचा सकता है. प्यार किसी का रूपरंग भी नहीं देखता है, लेकिन इस को जीवन में ढाल लेना ही जीवन को समझ लेना होता है. इसी प्रकार समाज और देश है. इस के प्रति सच्चा समर्पण किसी व्यक्ति को किसी भी स्तर से दुखी न करना है.
लेकिन जब शादी में पीर मोहम्मद ने निशा को पहली बार देखा तो उसे लगा कि कैसी लड़की से शादी हो रही है, इस के तो सिर के बाल झङ गए हैं. निशा अपने बालों को सामने से ढंक कर रखती थी, जोकि उस पर बहुत भद्दा लगता था. शुरू में निशा में पीर मोहम्मद को कुछ विशेष आकर्षण नहीं दिखा था. लेकिन वह कुछ कर नहीं सकता था क्योंकि शादी हो चुकी थी. अब वह उस के बंधन में बंध चुका था, अगर वह उस को पहले देख लेता तो शायद शादी न करता. लेकिन वह उस से बेहद प्रेम करने लगा था, निशा उस से ज्यादा प्रेम करती थी.
पीर मोहम्मद को स्त्रियों के घने बाल बहुत अच्छे लगते थे. अपनी शादी के बाद वह सोचता है चि क्या उपाय करें, जिस से निशा के बाल घने हो जाएं. तब वस बाजार से अपनी हैसियत के अनुसार बाल घने और गंजापन दूर करने के लिए तरहतरह के तेल खरीद कर लाने लगा. उस के सिर पर मलिश भी करता. वह मालिश करता तो निशा को बुरा लगता था. लेकिन पीर मोहम्मद ने उसे बता दिया था कि उसे घने बाल अच्छे लगते हैं और छोटे बौब कट जैसे.
एक बात और थी कि पीर मोहम्मद भी कोई बहुत विशेष न था. लेकिन समाज हमेशा सुंदर बहू की कामना करता है चाहे लड़का कैसा भी हो. लेकिन निशा दब्बू लड़की नहीं थी. यह चाहत तो पीर मोहम्मद में थी. पर निशा सुंदर थी. दूसरी बात यह भी थी कि निशा उसे बहुत खराखरा सुना भी देती थी, उस के फुजूलखर्ची जोकि वह नहीं करता था लेकिन अनावश्यक कोई सामान मंगा ले आना. अपने खर्चे को ताक पर रख कर दूसरों को दे देना. पीर मोहम्मद दिखावटी भी था.
एक दिन निशा ने उस से कहा,”तुम्हारे साथ इतने वर्ष हो गए कभी कुछ डिमांड न की. क्या तुम बच्चे की ख्वाहिश भी पूरी नहीं कर सकते हो?”
लेकिन अब दोनों की स्थितियां बदल चुकी थीं. अब पीर मोहम्मद के पास पहले से बेहतर नौकरी थी. पीर अब 40 का हो गया था और निशा 34 की, लेकिन सचाई तो यह भी थी कि निशा ने उस के साथ बहुत समझौता किया था. पीर मोहम्मद एक अच्छा इंसान तो था लेकिन उस में शुरूशुरू में मेल ईगो भी था, कुछ घमंडी भी, जबकि उस के पास कुछ न था. पर उस ने अपने मेल ईगो धीरेधीरे समाप्त कर लिया.
निशा जब पार्क से आई, तो बबलू को ले कर बाथरूम में चली गई थी, क्योंकि भारत में जब से कोरोना फैला, लोगों में एक दूरी सी बन गई. अब सोशल डिस्टैंस ज्यादा ही हो गया है. हाथ धोना, मुंह धोना, कपड़े बदलना… खासकर बाहर से आने के बाद तो यह एक नियमित दिनचर्या है. निशा सोचती कि क्या यह सामाजिक दूरी पहले कम थी, जो कोरोना की आड़ में और ज्यादा हुई है? मुसलमानों से मिलनेजुलने में खासतौर पर शहरी वर्ग में एक संशय पहले ही था जो अब ज्यादा बढ़ गया है. सीएए और एनसीआर के विरोध के बाद खासतौर पर मुसलिम मोहल्लों को मुल्क विरोधी गतिविधियों के तौर पर जानना कुछ लोगों की मनोस्थिति थी जबकि कोरोना को रोकने का उपाय सरकार ढूंढ़ नहीं पा रही थी.
जल्दीजल्दी बबलू के हाथमुंह धो कर बाथरूम से निशा ने उसे बाहर भेज दिया था और पीर मोहम्मद ने उसे दूसरे कपड़े पहना दिए थे. अब बबलू उस के साथ खेलने लगा था.
कुछ देर के बाद निशा पीर मोहम्मद के लिए चाय ले कर आई. वह बबलू के साथ खेल रहा था. बबलू को दूध और कुछ बिस्कुट दिए थे. दोनों चाय पीने लगे, तब निशा ने पीर मोहम्मद को पार्क वाली घटना बताई कि बबलू कैसे गुम हो गया था, गुम क्या उस की शरारत थी.
एक आदमी ने मदद की, सहयोग किया खोजने में. इस पर पीर मोहम्मद गुस्सा हुआ, लेकिन जल्दी ही शांत हो गया क्योंकि वह जानता था कि उस का गुस्सा निशा के सामने नहीं चल सकता. चलेगा तो उसे ही सौरी बोलना पड़ेगा नहीं तो निशा गुमशुम हो जाएगी. घर का सब काम करेगी लेकिन उस से पहले जैसा व्यवहार नहीं करेगी. निशा ने अपने को पहले से बहुत बदल लिया है फिर पीर मोहम्मद उस को समझ ही चुका था.
उस ने कहा “देखो यार, नया शहर है, हम किसी को ज्यादा जानते नहीं हैं. तुम ने मुझे फोन क्यों नहीं किया?”
निशा ने कहा, “मैं काफी डर गई थी और कुछ समझ ही नहीं आ रहा था.”
“चलो, कोई बात नहीं, अब खुश हो जाओ. क्या नाम था उस आदमी का?”
“सरफराज खान….”
“छुट्टी वाले दिन उस को खाने पर बुलाना. मेरे पास तो उस का फोन नंबर भी नहीं है,” पीर मोहम्मद ने कहा.
2 दिन के बाद सरफराज ने निशा को फोन किया और मिलने की इच्छा जाहिर की. निशा संकोच करते हुए उसे टाल न सकी, क्योंकि उस दिन का एहसान था. निशा ने उसे अगले दिन मिलने की बात कही. कहा कि वह सुबह बच्चे को स्कूल वैन तक छोड़ने आती है, उस के बाद मिलेगी. क्योंकि वह भी सैक्टर-बी में ही रहता था. निशा बबलू को छोड़ने के बाद उस से मिली. सरफराज बहुत खुश हुआ और वह उस के लिए चाय बना कर भी लाया. निशा ने देखा कि उस के फ्लैट में बहुत सी पैंटिंग थी. निशा ने पूछा,”क्या आप आर्टिस्ट हैं?”
उस ने कहा,”जी, पहले मैं विदेश में रहता था अब फिर कुछ वर्षों से यहां हूं. वहां कुछ व्यापर भी करता था. उस ने निशा की भी पैंटिंग दिखाई जो उस ने बनाई थी, जब उस के आंखों में आंसू आ गए थे जो बहुत आकर्षित कर रह था. निशा की बड़ीबड़ी आंखें जो बिलकुल दूध की भांति सफेद दिखती थी, अपनी सचाई को बखान कर रही थी. निशा ने जब वे पैंटिंग्स देखी तो बहुत ज्यादा खुश हुई.
निशा ने उस से पूछा,’यह कब की पैंटिंग हैं?”
उस ने कहा,”जब आप बबलू को खोज रही थीं और आप के आंखों में आंसू थे तब मैं ने फोटो लिया था.”
निशा ने कहा,”आप ने कब फोटो ले ली.”
उस ने कहा, “उसी शाम को. हम तो कलाकार हैं, चेहरा देख कर याद कर लेते हैं फिर भी फोटो ले लेते हैं ताकि कुछ गलत न हो. मैं एक फोटोग्राफर भी हूं.”
निशा ने कल्पना भी न की थी कि कोई व्यक्ति उस की इतनी अच्छी पैंटिंग बनाएगा. अब चाय खत्म हो चुकी थी.
सरफराज ने पूछा,”चाय कैसी लगी?”
निशा ने कहा, “पैंटिंग के मुकाबले तो बिलकुल रद्दी थी. सही बता रही हूं. मैं झूठी तारीफ नहीं करती.”
“फिर तो आप की हाथ की चाय पीनी पड़ेगी.”
“क्यों नहीं?”
“कभी हमारे घर आएं. पीर मोहम्मद भी आप से मिलना चाहते हैं?”
“लेकिन मुझे तो अभी पीनी है. प्लीज…प्लीज…”
निशा ने समय देखा, अभी सुबह के 9 बजे थे. बबलू की स्कूल वैन तो दोपहर 1 बजे आती है. सरफराज के आग्रह में बहुत आकर्षण था. उस में एक अनुरोध था, निशा मना नहीं कर पाई.
निशा को लगा कि यह ऐसे कह रहा है जैसे कल यह यहां नहीं होगा. निशा ने उस से पूछा, “आप अकेले रहते हैं?”
उस ने कहा, “जी, अब कोई नहीं करीबी हैं, मगर नाम के.”
निशा ने उस की ओर देखा. उस ने कहा,” चलिए, मैं आप को अपना किचन दिखता हूं,” फिर उस ने निशा को दूध, चीनी और चायपत्ती दी.
निशा ने उस से कहा, “आप के पास अदरक नहीं है क्या?”
उस ने कहा,”नहीं.”
“अदरक से स्वाद बढ़ जाता है,” निशा ने कहा.
चाय पीने के बाद सरफराज ने कहा,”अद्भुत, ऐसी चाय मैं ने अपने जीवन में आज तक नहीं पी है.”
निशा ने सरफराज से कहा, “कोरोना महामारी के पहले वर्ष हम दिल्ली में थे. बहुत बुरा दौर था. सब्जी वाले, फल वाले गलीगली भटकते थे. पीर मोहम्मद बगैर राशनकार्ड धारक जोकि राशन कूपन प्राप्त करने की प्रतीक्षा में रहते, उन्हें राशन दिलाने में लगे रहते थे. बहुत चिंतित रहते थे कि उन्हें कैसे राशन मिले?”
सरफराज ने कहा,”जी, यहां भी यही हाल था. पुलिस वाले सब्जी बाजार और थोक मंडी में लोगों को पीटते. उस दौरान मैं ने बहुत सी फोटो ली हैं. लोगों की कुछ सहायता की. लेकिन सरकार नाकाम दिखी. इस सैक्टर-बी कालोनी को जब आप पार करेंगी तो एक लेबर चौक है, वहां के दिहाड़ी मजदूर बदहाल एवं परेशान थे. सस्ती दरों में सब्जी भी बिक रही थी. कुछ राशन दुकानदार फायदा भी उठा रहे थे. इस महामारी में गरीब ज्यादा परेशान और बदहाल था, दूसरी तरफ भक्त कह रहे थे सरकार सभी जमातियों के पिछवाड़े को लाल कर देगी. खैर, सब मुद्दों को छोङ कर, जनता थाली उत्सव के बाद, कोरोना दीपोत्सव…”
निशा ने कहा, “क्या मूर्खता चरम पर नहीं पहुंच गई है? लेकिन सरकार संविदा में कार्यरत लोग, बेरोजगार दिव्यांग और दृष्टिबाधितों के लिए कुछ नहीं करती दिखी. बहुत से लोगों के हिसाब से कोरोना वायरस, मुसलिम आतंकवादियों ने भारत के खिलाफ एक साजिश रची थी, जो हिंदुओं को खत्म कर देना चाहते थे और भारत में तबाही फैलाना चाहते थे. इसलिए उन का मानना था कि उन्हें मुसलमानों से संपर्क नहीं रखना चाहिए. ऐसी बातें गांवों, कसबों में सांप्रदायिक तत्त्वों द्वारा फैलाई जा रही थीं, जिस सें मीडिया ने अहम भूमिका अदा की थी.”
एक दिन लोकल मार्केट में पीर मोहम्मद और निशा की मुलाकात सरफराज से हुई. निशा ने पीर मोहम्मद को बताया कि यही हैं सरफराज, जो उस दिन बबलू को खोजने में मदद की थी.”
तभी पीर मोहम्मद ने कहा,”कल रविवार है. शाम को आइए न खाना साथ खाएं.”
रविवार को सरफराज निशा के घर पर आया. पीर मोहम्मद ने उस का खुले दिल से स्वागत किया. उस ने पीर मोहम्मद को बताया कि यह शहर उस के लिए पुराना है, लेकिन मैं अब बिलकुल अकेला रह गया हूं. हमारा घर इसी शहर में था और दशकों पहले मम्मीपापा का इंतकाल हो चुका है. कुछ रिलेटिव हैं, लेकिन वे दूरदूर रहते हैं. कुछ दूसरे शहर में हैं. पहले मैं कनाडा में रहता था, अब यही हूं. वहां से आने के बाद ही मैं ने यहां फ्लैट लिया था. जब से यहां हूं नहीं तो कुछ दिनों में ही बहुत दूर चला जाऊंगा.”
पीर मोहम्मद ने पूछा,”मतलब कहां?”
“कनाडा, और कहां…”
उस रोज सरफराज निशा की पैंटिंग भी ले कर आया था, जिसे देख कर पीर मोहम्मद भी बहुत खुश हुआ,”अरे जनाब, आप तो मकबूल फिदा हुसैन जैसे कलाकार हैं. क्या पैंटिंग बनाई है. इस में जीवंतता है. ऐसा लगता है कि कब बोल पड़ेगी पैंटिंग.”
इस के बाद सरफराज जब भी उधर से गुजरता वह उस से मिल लेता था.
निशा बबलू को जब स्कूल छोड़ने जाती तो सरफराज फोन कर देता. निशा उस के घर चली जाती. जब निशा सरफराज के घर जाती तो उस की डिमांड रहती की चाय बना कर पिला दे. अब तो सरफराज ने अदरक भी खरीद कर रख ली थी.
निशा सोचती कि आखिर वह उस की बात मना क्यों नहीं कर पाती है. निशा के न मना करने का कारण यह भी था कि सरफराज छोटी उम्र में ही अनाथ हो चुका था. दूसरी बात यह भी थी कि निशा को उस से कुछ लगाव सा हो गया था. कोई था ही नहीं उस का इस दुनिया में जिस से वह अपने दिल की बात कह सके.
निशा जब उस के घर जाती तो वह कुछ नई पैंटिंग्स दिखाता. कुछ फोटो दिखाता. उस रोज निशा को जब उस ने फोन किया और घर आने की बात कही तो निशा ने मना कर दिया था. निशा ने उस से कहा था कि दूसरे दिन देखेगी. मगर फिर दूसरे दिन निशा उस के घर गई.
सरफराज ने अपनी आदतानुसार चाय पीने की ख्वाहिश जाहिर की. निशा जब चाय बना कर लाई तो उस रोज सरफराज ने उस को उपहारस्वरूप झुमके देने की ख्वाहिश जाहिर की. निशा ने कहा कि यह क्या है? इस का मतलब यह नहीं है कि मैं आप को चाय बना कर दे रही हूं या आप से बात कर ले रही हूं, तो आप मुझे यह सब देंगे. लेकिन वह बहुत रिक्वैस्ट करने लगा कि उसे पहन ले. यह उस की आखिरी इच्छा है.
निशा ने कहा,”मैं इसे नहीं लूंगी लेकिन पहन लेती हूं, आप की खुशी के लिए. वैसे, आप की आखिरी इच्छा क्या है?”
सरफराज बोला,”यही कि कलपरसों मैं कनाडा जा सकता हूं.”
निशा को उस के इस व्यवहार से बहुत आश्चर्य हो रहा था और अपनेआप पर गुस्सा भी. पर सरफराज का अनुरोध वह टाल न पाई थी.
जब निशा वे झुमके पहन कर आई तो सरफराज बहुत खुश दिख रहा था, जैसे उस की अंतिम इच्छा पूरी हो गई हो. वे झुमके निशा पर बहुत खिल रहे थे.
निशा ने सरफराज से कहा, “खुश…”
वह चाहता था कि वह निशा की फोटो इस झुमके के साथ बनाए. इस के लिए उस ने निशा की फोटो ली. निशा का रंग सावंला जरूर था, लेकिन चेहरे पर बहुत चमक और तेज था. लगता ही नहीं था कि निशा एक बच्चे की मां है.
निशा ने पूछा,”आप मेरी फोटो क्यों बनाना चाहते हैं? अरे आप अभी तो जवान हैं, शादी क्यों नहीं कर लेते? मैं आप के लिए कोई अच्छी सी लड़की देखती हूं.”
सरफराज ने कहा,”नहीं, अब बहुत देर हो चुकी है. मतलब कि अब कौन शादी करेगा?”
झुमके के संदर्भ में निशा झेंप जरूर गई थी. उसे कुछ समझ नहीं आया था कि आखिर यह है क्या? दोस्ती का अर्थ यह तो नहीं होता. लेकिन दोस्ती का अर्थ बहुत कुछ भी होता है.
निशा ने कहा,”अब मुझे चलना चाहिए,” वह झुमके निकालने के लिए हाथ ऊपर उठाई तो सरफराज ने कहा,”नहीं, यह आप के लिए ही हैं.”
“क्यों?”
“आप अच्छी लगती हैं मुझे,” सरफराज ने कहा.
सरफराज ने कहा,”एक बात कहूं, आप बुरा तो नहीं मानोगी?”
“क्या?”
“मुझे आप से प्यार हो गया है, पता ही नहीं चला आप कब दिल के करीब आ गईं? कहते हैं न कि प्यार तो प्यार है, जो किसी बंधन में नहीं बंधा होता. मुझे पता है आप शादीशुदा हैं फिर भी आप से प्यार हो गया है.”
निशा का गुस्सा फूट पड़ा,”आखिर यह क्या है? मैं जिसे केवल दोस्त समझती हूं, जिस का दुनिया में कोई नहीं है. कुछ साथ एक सहानुभूति का दे रही थी. उसे अपना समझ कर चाय बना दे रही हूं, तो इस का आशय यह नहीं होना चाहिए. आइंदा आप मुझ से न मिलें और न ही मैं आप से मिलूंगी. हद है…अजीब आदमी हैं.”
निशा उस के दरवाजे से बाहर निकल चुकी थी. वह अपने घर आ चुकी थी लेकिन उसे सरफराज से कुछ लगाव तो जरूर हो गया था. निशा ने यह बात पीर मोहम्मद को नहीं बताई. वह जानती है कि पीर मोहम्मद भले ही खुले विचारों का है फिर भी वह जानती थी कि किसी भी पुरुष को यह बुरा लगेगा क्योंकि मेल ईगो भी तो कुछ चीज होता है. लेकिन 2 रोज बाद सरफराज ने निशा को फोन किया. उस ने मिलने की इच्छा जाहिर की. उस ने कहा कि वह अब यहां से जा रहा है फिर कभी वापस नहीं आएगा.
निशा मिलने से पहले हिचकी लेकिन उस रोज गुस्से से वहां निकल आई थी, जो झुमके उस ने पहनी थी उसे वापस करना था इसलिए वह सरफराज से मिलने उस के घर जा पहुंची.
जब निशा सरफराज से मिली तो उस ने उस दिन के लिए माफी मांगी.
उस ने कहा, “क्या करे वह, उस के वश में नहीं रहा. क्या आप मुझे अपने हाथ की चाय नहीं पिलाएंगी?”
निशा ने संकोच करते हुए कहा,”आखिरी बार.”
उस ने कहा,”बिलकुल, आखिरी बार.”
निशा ने चाय बना कर सरफराज को दी. निशा ने झुमके निकाल कर उस के टेबल पर रख दिए.
उस ने कहा,”प्लीज, इसे तो ले लीजिए. एक यादगार रहेगा, जरूरी नहीं है कि अब मैं कभी मिलूंगा. निशानी के तौर पर रख लीजिए.”
निशा उस की तरफ देख रही थी. उस ने निशा के हाथ में झुमके रखे और निशा के माथे पर किस कर दिया. तभी निशा ने उसे झटका दिया. सरफराज ने फिर निशा के माथे को किस किया.
निशा को उस का किस और उस के पकड़ने में एक ऐसा आकर्षण लगा कि वह उस के कंट्रोल में कब चली गई उसे पता ही नहीं चला और वे एकदूसरे में समाहित हो गए. ऐसा लग रहा था कि वे एकदूसरे के लिए ही बने हों. जैसे निशा को एक सच्चे प्रेमी और सरफराज को एक प्रेमिका की तलाश थी. दोनों अब एकदूसरे के प्रति समर्पित दिख रहे थे.
सुबह के 12 बजने वाले थे. 1 बजे बबलू को स्कूल से भी लाना था. वह जल्द से जल्द वहां से निकली. उसे दरवाजे तक छोड़ने भी आया था सरफराज.
निशा उसे भूल नहीं पा रही थी. वह अंदर से बहुत परेशान थी, सोच रही थी कि आखिर ऐसा कैसे हो गया? निशा इस बात पर हैरान थी कि सरफराज कैसे उस की दिल की बात को समझ लेता था, जो पीर मोहम्मद आज तक न समझ सका. क्या यह आसान है एक स्त्री के लिए? वह पूरी रात सोचती रही.
3-4 दिन गुजर गए न सरफराज का फोन आया और न ही निशा ने उस को फोन किया था. चौथे दिन निशा स्वयं सरफराज के घर गई तो देखा दरवाजा बंद था. कुछ देर वह वहीं खड़ी रही. वह घंटी बजा रही थी कि तभी बगल से एक औरत आई. उस ने कहा,”सरफराजजी ने इस फ्लैट की चाबी दी थी, उन्होंने कहा था कि निशा नाम की कोई आएगी तो उन्हें यह चाबी दे देना. क्या आप का नाम निशा है?”
निशा ने कहा, “जी.”
“सरफराज कब गए कनाडा?”
उस ने कहा, “पता नहीं.”
निशा फ्लैट खोल कर सरफराज के घर में घुसी. घर में कुछ अधूरी पैंटिंग थी, उसे वहां एक खत भी मिला. लिखा था :
“अजीज निशा,
“जब खत आप को मिलेगा, शायद मैं इस दुनिया में न रहूं. आप से मिल कर जीने की चाह बढ़ गई थी, जिस से मैं कुछ महीने और जीवित रहा. मैं ने तो आप को पार्क में देखा था, आप को देख कर ही प्रेम हो गया था. आप की बड़ीबड़ी आंखें. उन आखों में सचाई, बात करने का तरीका. आप के अपनत्व ने मुझे आप की ओर आकर्षित कर दिया था. मेरा इलाज सिटी अस्पताल में चल रहा था. मैं ने आप को बताया नहीं, उस के लिए माफी. मुझे कैंसर है, अब मेरे पास समय नहीं बचा है. डाक्टर हर बार कुछ महीने का समय बताते थे. लगता है, वह समय पूरा हो गया है.”
घर आने पर निशा ने पीर मोहम्मद को अपने साथ घटित और सरफराज के साथ शारीरिक संबंध वाली बात सचाई के साथ बता दी थी. उस ने सोचा था कि पीर मोहम्मद उसे छोड़ देगा. सब सुन कर पीर मोहम्मद सिटी अस्पताल पहुंचा फिर उस के कुछ रिश्तेदारों का पता किया. फोन कर के बताया की सरफराज अब नहीं रहे. लेकिन उन्होंने अपनी असमर्थता बताई. बाद में पीर मोहम्मद ने लोकल लोगों के साथ मिल कर उस का सुपुर्देखाक करवाया. फिर वह घर आया और पहले दिन तो उस ने निशा से बात न की, दूसरे दिन कुछ देर सोचता रहा पीर मोहम्मद, फिर उस ने निशा से कहा,”चलो, कोई नहीं, इसे एक सपना समझ कर भूल जाओ. मैं तुम से बैगर बात किए रह ही नहीं सकता.”
पीर मोहम्मद ने निशा से कहा, “दूसरी तरफ जब एक पुरुष किसी औरत के साथ शारीरिक संबंध बना लेता है, किसी दूसरी महिला को प्राप्त करने के बारे में सोच सकता है या किसी के प्रति आकर्षित हो सकता है तो महिला क्यों नहीं हो सकती? मैं इसे कोई अपराध नहीं है मानता कि तुम ने कुछ गलत किया. यह तुम्हारे वश में था ही नहीं.
“एक मरते हुए व्यक्ति में प्यार की एक तड़प थी. एक बात मैं कहूं, सच में वह तुम से मुझ से कहीं अधिक प्यार करता था वह. किसी व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बन जाना एक स्वाभाविक घटना है. यह जरूरी नहीं है कि औरत इस बंधन में बंधे. पर यह जरूर है कि तुम सरफराज को भूल जाओ, लेकिन तुम्हारा शरीर उसे कभी नहीं भूल पाएगा, ऐसा मुझे लगता है.”