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परित्यक्ता
बच्चों की चिंता ने उस के पैरों की गति को और बढ़ा दिया. उस का घर आने से पहले ही बाबूलाल किराने वाले की दुकान पड़ती थी, जहां से उसे कुछ किराना भी लेना था.
भाग - 1
कजरी का हृदय चीत्कार कर रहा था, समाज की उस सोच पर जहां औरत सिर्फ एक भोग्या है. बहुत कोशिश की उस ने सब समेटने की, लेकिन मजबूरी हर तरफ से उसे नोचने को तैयार बैठी थी.
भाग - 2
कुछ दिनों शांत बैठ कर दीनू फिर से वही काम दोहरा रहा था. कजरी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वह क्या करे.
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