आयुष्मान जबसे दिल्ली आया है घर के खाने से दूर हो गया है. सुबह ब्रेड बटर और अंडा, दोपहर में औफिस की कैंटीन से मैगी या ब्रेड पकौड़ा-चटनी और रात में सरदार जी के ढाबे पर तीखे मसालेदार सब्जी-रोटी. जब इससे मन उकता जाता है तो पीजा या मोमोज से काम चला लेता है. शुरू में तो उसको बाहर का खाना बहुत अच्छा लगा. जब अपने घर में था तब मम्मी चावल, दाल, रोटी के साथ घिया, तोरई, कद्दू, भिंडी जैसी सब्जियां खिलाती थीं. बड़ा फीका-फीका सा लगता था सब. दिल्ली में नौकरी लगी तो आयुष्मान कुछ ज्यादा ही चटोरा हो गया. चाहता तो शाम को घर लौट कर चावल-दाल बना सकता था, मगर उसने खाना बनाने का कोई झंझट नहीं पाला. जिस पीजी में रहता था उसके नीचे खाने-पीने के अनेक ढाबे थे, हर तरह का खाना मिलता था, मगर इस चटोरेपन का खामियाजा आयुष्मान को जल्दी ही भुगतना पड़ा.

आजकल खाने के बाद उसके सीने में भयानक दर्द और जलन शुरू हो जाती है. खाना खाने के बाद देर तक ऐसा लगता है जैसे खाना सीने पर ही धरा है. हजम ही नहीं हो रहा. कभी-कभी तो जलन इतनी तीव्र हो जाती है कि मुंह में मिर्ची जैसा पानी आने लगता है और फिर उल्टी हो जाती है. रात देर तक उसको डकारें आती रहती हैं, गैस पास होती रहती है. इस चक्कर में वह ठीक से सो भी नहीं पाता. डायजीन की न जाने कितनी बोतलें खाली कर चुका है मगर जलन से छुटकारा नहीं मिलता. गैस की वजह से सिर और शरीर भी दुखता रहता है.

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