Download App

खून से खेलता धर्म

भारतीय संस्कृति में धर्म और अंधविश्वास इस कदर लोगों के दिलोदिमाग में बसे हुए हैं कि वे आंखें बंद कर के आस्था के नाम पर कुछ भी कर गुजरते हैं. हिंदू मान्यताओं के अनुसार कुछ देवीदेवताओं को खुश करने का तरीका केवल रक्त यानी खून बहाना बताया गया है. पशु बलि से ले कर इनसानी खून तक का इस्तेमाल पत्थर की मूर्तियों को खुश करने में किया जाता है.

वैसे इन मान्यताओं का कोई ठोस आधार भले ही न हो मगर लोग इसे जीवन का एक हिस्सा मानते हैं. इस के अलावा शरीर को कष्ट पहुंचा कर अपने अपराध में आस्था दिखाना भी हिंदू मान्यता का ही एक अंग है. लोग बीमारी के इलाज से ले कर सुखशांति पाने तक के लिए किसी भी हद तक जा कर अपनेअपने भगवान को खुश करने की कोशिश करते हैं और यह सब होता है अंधविश्वास के चलते. पंडेपुजारी आम जनता को भगवान के नाम पर जम कर फुसलाते हैं. देवी- देवताओं का प्रकोप बता कर लोगों को भयभीत कर उन की अंधी आस्था से खिलवाड़ करते हैं.

उत्तराखंड के चंपावत जिले के देवीधुरा गांव में भी कुछ ऐसी ही परंपरा है. यहां बगवाल मेले का आयोजन किया जाता है. बगवाल पत्थर फेंकने को कहा जाता है. इसलिए इस मेले कोे बगवाल मेला कहते हैं. मान्यता के अनुसार हर साल रक्षाबंधन के दिन यहां के वाराहीदेवी मंदिर के पास अलगअलग जाति और समुदाय के लोग जमा होते हैं और 2 गुटों में बंट कर एकदूसरे पर पत्थरों से हमला करते हैं. यह मेला 13 दिन तक चलता है, लेकिन रक्षाबंधन के दिन यहां खासा उत्साह देखा जाता है. इस बगवाल कार्यक्रम में दोपहर के समय 10-15 मिनट के लिए यह खूनी खेल खेला जाता है.

ये भी पढ़ें- मोहब्बत के दुश्मन: भाग 2

परंपरा के अनुसार लोग एकदूसरे पर पत्थर फेंक कर एक इनसान के खून के बराबर खून बहाते हैं. कहा जाता है कि देवी ने जब देवीधुरा के जंगलों को 52 हजार वीर और 64 योगिनियों के आतंक से मुक्त कराया था तब नर बलि की मांग की. तब यह निश्चित हुआ था कि पत्थर मार कर एक इनसान के खून के बराबर खून बहा कर देवी को तृप्त किया जाएगा. उस समय से ही लोग हर साल यहां मैदान में जुट कर कुछ समय के लिए एकदूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं. इस खेल में जब मंदिर के पुजारी को विश्वास हो जाता है कि एक इनसान के बराबर खून बह गया है तब वह इसे रोकने की घोषणा करता है. अब कौन सा ऐसा धर्म है जो आस्था के नाम पर एक आदमी को दूसरे का खून बहाने को कहता है?

हर साल सैकड़ों की तादाद में लोग इस खूनी खेल में घायल हो जाते हैं मगर पंडेपुजारियों के बहकावे में आ कर सब भूल जाते हैं. इसी तरह का एक और मेला मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में लगता है. इस मेले को गोटमार मेला कहा जाता है. यहां भी हर साल 2 गांव, पनधुरा और स्वरगांव के लोग एकदूसरे पर पत्थरों से हमला करते हैं. इस मेले को लगभग 300 साल पुराना बताया जाता है.

यहां मान्यता है कि पनधुरा के राजा ने जब स्वरगांव की राजकुमारी को अपने साथ ले जाना चाहा था तब स्वरगांव के लोगों ने राजा पर पत्थर से हमला किया था पर चंडी देवी की कृपा से राजा बच गया. इसी के बाद यहां देवी का एक मंदिर बना, और तब से हर साल पत्थर मारने की यह प्रथा चली आ रही है. अब इस प्रथा के जरिए दोनों गांवों के युवा, अपने लिए दुलहन जीत में हासिल करते हैं. हर साल यहां लोग नदी के पास के मैदान पर एकत्र हो कर एकदूसरे पर पत्थरों से हमला करते हैं. बताया जाता है कि पिछले साल इस खेल में लगभग 800 लोग घायल हुए थे और एक व्यक्ति की मौत हो गई थी. इस को देखते हुए प्रशासन ने इस पर रोक लगा दी थी, लेकिन लोगों की मांग पर अब रोक हटा ली गई है.

हिंदू धर्म शास्त्रों में कहीं भी हिंसा को सही नहीं माना गया है. अहिंसा को ही यहां परम धर्म माना गया है. छान्दोग्य उपनिषद में भी कलियुग में हिंदू वैदिक रीति के नाम पर होने वाली हिंसा को सही नहीं ठहराया गया है. साथ ही पशु बलि का भी निषेध बताया गया है. इस के बाद भी समाज में अभी तक ऐसी मान्यताओं और इन के नाम पर होने वाली हिंसा लगातार जारी है.

इस से साफ हो जाता है कि ऐसे मेलों का आयोजन केवल रूढि़वादी मान्यताओं और झूठी कहानियों के बल पर लोगों को धर्म के नाम पर गुमराह कर केवल पैसा बटोरने की कोशिश से ज्यादा और कुछ नहीं है. ऐसे आयोजन के चलते इन जगहों पर पर्यटक पहुंचते हैं, जिस से लाखों का चढ़ावा आता है. इस के अलावा आसपास के गांवों के लोग आते हैं जिस से व्यापार बढ़ता है. इन्हीं कारणों के चलते धर्म के ठेकेदार ऐसे आयोजनों को बंद नहीं होने देना चाहते ताकि उन की धर्म की दुकान चलती रहे.

इनसान के जन्म के साथ ही धार्मिक कर्मकांडों की जो घुट्टी उसे पिलाई जाती है उस का सदियों पुराना इतिहास है. हजारों सालों से अंधविश्वास समाज और उस की मानसिकता में भरा हुआ है. अगर इस में थोड़ा सा भी परिवर्तन आने लगता है तो यही धर्म के सौदागर आगे आ कर लोगों को देवीदेवताओं के प्रकोप से डराने लगते हैं, ताकि समाज में कहीं से उन का बुना हुआ धार्मिक जाल टूटने न लगे. यह भारतीय समाज की विडंबना है कि यहां पढ़ेलिखे लोग भी इस तरह के प्रपंचों में पड़ कर अपनी और दूसरों की जान जोखिम में डालते हैं.

ये भी पढ़ें- करवाचौथ: परंपरा के नाम पर यह कैसा अंधविश्वास

केवल ये उदाहरण नहीं हैं, जो भारतीय समाज और हिंदू धर्म में अंधविश्वास को दर्शाते हैं बल्कि भारत के कोनेकोने में धर्म की आड़ में दुकानदारी चल रही है. इस तरह के पाखंड समाज को दीमक की तरह चाट रहे हैं, जिन से समाज की सोचनेसमझने की ताकत खोखली होती जा रही है.

पति पत्नी का परायापन: भाग 1

पंकज कज मिश्रा उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) के गांव भंगेल में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी शैली मिश्रा उर्फ निधि और एक 7 साल का बेटा था. पेशे से इलैक्ट्रिशियन पंकज नोएडा के ही सेक्टर-135 में स्थित जे.पी. कौसमोस सोसायटी में नौकरी करता था.

20 जून, 2019 की सुबह 8 बजे पंकज घर से काम पर जाने के लिए साइकिल पर निकला. कुछ देर बाद जब वह सेक्टर-132 स्थित एक आईटी कंपनी के नजदीक सुनसान जगह से गुजर रहा था, तभी मोटरसाइकिल से 2 लोग उस के पास पहुंचे और उन्होंने पंकज को रुकने का इशारा किया.

पंकज ने साइकिल रोक दी. इस से पहले कि पंकज बाइक सवारों को समझ पाता, उन में से एक ने पंकज पर गोली चला दी. गोली लगते ही पंकज साइकिल सहित वहीं गिर पड़ा. वहां से गुजर रहे किसी राहगीर ने इस की सूचना 100 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

चूंकि यह इलाका नोएडा के एक्सप्रैसवे थाने के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना एक्सप्रैसवे थाने को दे दी गई. सूचना मिलते ही थोड़े ही देर में एसआई अनूप कुमार यादव, दिनेश कुमार सोलंकी, गुरविंदर सिंह के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस पंकज को नजदीक के एक प्राइवेट अस्पताल ले गई, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. पुलिस ने मृतक के कपड़ों की तलाशी ली तो जेब में पहचान का कोई कागज नहीं मिला. जेब में सिर्फ एक मोबाइल फोन ही मिला. उस की शिनाख्त के लिए पुलिस ने मोबाइल फोन में मौजूद नंबरों पर काल करनी शुरू की.

इसी प्रयास में शारदा प्रसाद मिश्रा नाम के व्यक्ति से बात हुई. उस ने बताया कि यह नंबर उस के भाई पंकज मिश्रा का है जो नोएडा के भंगेल गांव में रहता है. पुलिस ने उसे अस्पताल बुला लिया ताकि लाश की शिनाख्त हो सके. शारदा प्रसाद अस्पताल पहुंच गया. पुलिस ने जब उसे उस युवक की लाश दिखाई तो उस ने उस की शिनाख्त अपने छोटे भाई पंकज मिश्रा के तौर पर कर दी.

ये भी पढ़ें- मोहब्बत के दुश्मन: भाग 2

उस ने पूछताछ के दौरान थानाप्रभारी भुवनेश कुमार को बताया कि पंकज जे.पी. कौसमोस सोसायटी में इलैक्ट्रिशियन का काम करता था और घटना के समय अपने काम पर जा रहा था. शिनाख्त हो जाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल भेज दी गई.

इस के बाद थानाप्रभारी भुवनेश कुमार फिर से वारदात वाली जगह पहुंचे. उन्होंने आसपास के लोगों से पूछताछ की तो कुछ लोगों ने बताया कि बाइक सवार 2 लोगों ने साइकिल सवार एक युवक को गोली मारी थी.

थानाप्रभारी भुवनेश कुमार ने शारदा प्रसाद मिश्रा की शिकायत पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ पंकज मिश्रा की हत्या का मामला दर्ज कर लिया. एसएसपी वैभवकृष्ण के निर्देश पर थानाप्रभारी भुवनेश कुमार टीम के साथ केस की जांच करने में जुट गए.

केस की गुत्थी सुलझाने के लिए उन्होंने जांचपड़ताल शुरू की. क्योंकि बदमाशों ने उस से किसी प्रकार की लूटपाट नहीं की थी, इसलिए इस संभावना को बल मिल रहा था कि शायद पंकज से किसी की कोई पुरानी रंजिश रही होगी, जिस के कारण मौका ताड़ कर उसे मौत के घाट उतार दिया गया.

पंकज भंगेल में एक किराए के मकान में रहता था. थानाप्रभारी पूछताछ के लिए उस के घर पर पहुंच गए. घर पर मृतक पंकज की पत्नी शैली मिश्रा मिली. थानाप्रभारी ने शैली मिश्रा से पंकज की दुश्मनी के बारे में पूछा तो उस ने किसी भी व्यक्ति के साथ रंजिश से साफ इनकार कर दिया.

मृतक के भाई शारदा प्रसाद मिश्रा से भी किसी से रंजिश आदि के बारे में पूछा गया. उस ने भी ऐसी किसी दुश्मनी से अनभिज्ञता जाहिर की. यह सब देख कर पुलिस ने हत्यारों तक पहुंचने के लिए अन्य संभावित कारणों के बारे में जांचपड़ताल की.

मृतक पंकज की पत्नी शैली मिश्रा से थानाप्रभारी ने और भी कई तरह के सवाल किए तो उस के बयानों में कुछ विरोधाभास मिला. इस पर पुलिस ने पंकज और शैली मिश्रा के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर गहन जांचपड़ताल की. पता चला कि शैली मिश्रा की एक मोबाइल नंबर पर अकसर बातें होती थीं.

जब उस मोबाइल नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई तो वह सुरेश सिधवानी नाम के एक युवक का निकला जो नोएडा के सेक्टर-82 में रहता था. पुलिस ने शैली से कुछ नहीं कहा, बल्कि सुरेश सिधवानी को पूछताछ के लिए उस के घर से उठा लिया. थाने में उससे सख्ती से उस के और शैली मिश्रा के बारे में पूछा गया तो उस ने सारा सच उगल दिया.

उस ने बताया कि पिछले 2 सालों से उस के और शैली मिश्रा के बीच गहरी दोस्ती है, जो अवैध संबंधों में बदल गई थी. उस ने और शैली ने योजना बना कर पंकज को रास्ते से हटाया है.

इस के बाद पुलिस ने शैली मिश्रा को भी भंगेल स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. वहां उस ने पहले से हिरासत में लिए गए सुरेश सिधवानी को देखा तो उस के चेहरे का रंग उतर गया. अब उस के सामने सच बोलने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. लिहाजा पूछताछ में शैली ने भी स्वीकार कर लिया कि पंकज की हत्या उसी के इशारे पर की गई थी.

दोनों से विस्तार से पूछताछ करने पर पंकज की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली-

मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला अयोध्या का रहने वाला पंकज मिश्रा पिछले कई सालों से अपनी पत्नी शैली और 7 साल के बेटे के साथ नोएडा के भंगेल गांव में रह रहा था. वह जे.पी. कौसमोस सोसायटी में इलैक्ट्रिशियन का काम करता था. वहां से उसे जो तनख्वाह मिलती थी, उस से परिवार का गुजारा मुश्किल से हो पाता था.

ये भी पढ़ें- मर्यादा की हद से आगे: भाग 2

घरगृहस्थी चलाने में आ रही दुश्वारियों से दोनों हमेशा परेशान रहते थे. शैली सुंदर होने के साथसाथ कुछ पढ़ीलिखी भी थी. उस ने सोचा कि बेटे को स्कूल छोड़ने के बाद वह दिन भर घर में अकेली पड़ीपड़ी बोर होती रहती है, इसलिए उसे कहीं पर दिन की नौकरी मिल जाए तो काफी कुछ दुश्वारियां कम हो जाएंगी.

उस दिन जब पंकज अपनी ड्यूटी करने के बाद घर लौटा तो शैली ने उस से अपने मन की बात कही. शैली की बात सुन कर पंकज सोच में डूब गया. उस का दिल इस बात की गवाही नहीं दे रहा था कि शैली घर की दहलीज लांघ कर कहीं नौकरी करने जाए.

लेकिन घर की परिस्थितियां इस बात की ओर इशारा कर रही थीं कि उस की तनख्वाह में घर बड़ी मुश्किलों से चलता है. कई बार मुश्किलें आने पर उसे अपनी जानपहचान वालों से रुपए उधार मांगने पड़ते हैं, जिन्हें बाद में चुकाना भी काफी कठिन हो जाता है.

अगले भाग में पढ़ें: शैली की नौकरी करने से पंकज को क्यों ऐतराज था ?

दमा का क्या है इलाज ?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 4 नवम्बर से ओड-ईवन नम्बर की गाड़ियों के अलग-अलग दिनों में सड़कों पर चलने का रूल फिर से लागू कर दिया है. पन्द्रह दिन तक यह नियम लागू रहेगा. वजह है वायु प्रदूषण. हर साल अक्टूबर-नवम्बर माह में एक ओर वायुमंडल में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है और दूसरी ओर अस्पतालों में सांस और दमे की बीमारियों से हांफते रोगियों की संख्या. दरअसल अक्टूबर-नवम्बर माह में दशहरा, दीवाली जैसे त्योहारों में पटाखों के इस्तेमाल से आकाश जहां धुएं से भर जाता है, वहीं इन्हीं दिनों में किसान अपने खेतों में परली यानी फसल की कटाई के बाद खेतों में बचे हुए अंश और कचरे को जलाते हैं, जिससे उत्पन्न धुआं वायु प्रदूषण को खतरनाक स्तर तक बढ़ा देता है. गाड़ियों और अन्य वाहनों का धुआं पहले ही वातावरण में होता है. ठंड और कोहरे की वजह से यह धुआं जल्दी साफ  नहीं हो पाता है और कई दिनों तक जमा रहता है. इसके कारण अस्थमा या दमे के रोगियों की हालत खराब हो जाती है. वहीं सांस की अन्य अनेक बीमारियां फैलने लगती हैं.

ठंड के मौसम में वायु प्रदूषण के कारण दमा यानी अस्थमा का अटैक और खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो बीते पांच सालों में अस्थमा की दवाइयों की बिक्री 43 फीसदी तक बढ़ गयी है. पिछले साल भी मरीजों की संख्या 15 प्रतिशत तक बढ़ गयी थी. विशेषज्ञों के अनुसार ठंड में प्रदूषणयुक्त सूखी हवा व वातावरण में वायरस की बढ़ोत्तरी से अस्थमा की समस्या ज्यादा गंभीर हो जाती है. ठंड के कारण सांस की नलियों में सूजन आ जाती है जिससे नलियां सिकुड़ जाती हैं, इसमें बलगम जमा होने से सांस लेने में दिक्कत पैदा होने लगती है.

ये भी पढ़ें- बदलती जीवनशैली का नतीजा है अर्थराइटिस

क्या है इलाज

दमा या अस्थमा के रोगियों को इन दिनों में घर में ही रहने की सलाह दी जाती है ताकि वे बाहर की प्रदूषित हवा से बचे रहें. इसके साथ ही गीले रूमाल से नाक और मुंह ढंकने की सलाह भी दी जाती है. बाजार में कई तरह के मास्क भी उपलब्ध होते हैं, जिनका इस्तेमाल लोग करते हैं. अस्थमा के रोग में डौक्टर ओरल दवाओं की जगह इन्हेलर को ज्यादा इफेक्टिव मानते हैं. इन्हेलेशन थेरेपी ज्यादा असरकारी है. इस थेरेपी में इन्हेलर पम्प में मौजूद कोरटिकोस्टेरौयड सांस की नलियों में जाता है और पैसेज को साफ करके सूजन को कम करता है. पैसेज खुलने से सांस ठीक तरीके से आने लगती है. सांस की नली की सूजन कम करने के लिए 25 से 100 माइक्रोग्राम कोरटिकोस्टेरौयड की ही जरूरत होती है, लेकिन ओरल दवाओं के जरिए 10 हजार माइक्रोग्राम दवा शरीर में चली जाती है. यानी टैबलेट के माध्यम से अस्थमा रोगी 200 गुना ज्यादा दवा की मात्रा ले लेता है. ये दवाएं पहले रक्त में घुलती हैं और फिर रक्त के माध्यम से फेफड़े तक पहुंचती हैं और तब इनका असर दिखायी देता है. लेकिन इन्हेलेशन थेरेपी में कोरटिकोस्टेरौयड सीधे फेफड़ों में पहुंचता है, और जल्दी काम करता है. लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए स्टेरौयड की आवश्यक मात्रा इन्हेलेशन थेरेपी से मिलती है. इसके अलावा खानपान में थोड़ा बदलाव करके भी अस्थमा के लक्षणों को कम किया जा सकता है.

ओमेगा-3 फैटी एसिड

ओमेगा-3 फैटी एसिड की मात्रा खाने में बढ़ाने से दमे की शिकायत को कंट्रोल किया जा सकता है. ओमेगा-3 फैटी एसिड साल्मन, ट्यूना, ट्राउट जैसी मछलियों, सूखे मेवों व अलसी में पाया जाता है. जाड़ों में अगर आप अपने खाने में इन चीजों की मात्रा बढ़ा दें तो दमा या श्वास सम्बन्धी रोगों के प्रकोप से बच सकते हैं. ओमेगा-3 फैटी एसिड हमारे फेफड़ों के लिए भी लाभदायक है. यह सांस की तकलीफ एवं घरघराहट के लक्षणों से भी निजात दिलाता है.

फोलिक एसिड

पालक, ब्रोकली, चुकंदर, शतावरी, मसूर की दाल में फोलेट होता है. हमारा शरीर फोलेट को फोलिक एसिड में तब्दील करता है. फोलेट फेफड़ों से कैंसर पैदा करने वाले तत्वों को हटाता है और फेफड़ों व श्वास नली को साफ रखता है.

विटामिन सी

संतरे, नींबू, टमाटर, कीवी, स्ट्राबेरी, अंगूर, अनानास व आम में भरपूर विटामिन सी होता है, सांस लेते वक्त शरीर को औक्सीजन देने और फेफड़ों से विषाक्त पदार्थों को निकालने में यह चीजें मदद करती हैं.

ये भी पढ़ें- अगर आप भी यंग और एक्टिव दिखना चाहती हैं, तो पढ़ें ये खबर

लहसुन

लहसुन में एल्लिसिन तत्व मौजूद होता है जो फेफड़ों से मुक्त कणों को दूर करने में मदद करता है. लहसुन संक्रमण से लड़ता है और फेफड़ों की सूजन को कम करता है.

बेरी

ब्लूबेरी, रसबेरी, ब्लैकबेरी में एंटीऔक्सिडेंट होते हैं. ये कैंसर से बचाने के लिए फेफड़ों से कार्सिनोजन को हटाते हैं. कैरोटिनायड एंटीऔक्सीडेंट अस्थमा के दौरों से राहत दिलाता है. फेफड़ों की कैरोटीनायड की जरूरत को पूरा करने के लिए गाजर, शकरकंद, टमाटर, पत्तेदार सब्जियों का सेवन करें. सर्दियों में सही इलाज, दवाओं व उचित खानपान से अस्थमा के लक्षणों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है.

एशिया फ्रूट लौजिस्टिका का सितंबर में हौंगकौंग में आयोजन

ताजा फलों और सब्जियों की उपज के क्षेत्र और उस से जुड़ी हुई वैल्यू चेन में एशिया फ्रूट लौजिस्टिका एक ऐसा अवसर मुहैया करा रहा है, जो अब तक कभी प्रदान नहीं किया गया है.  एशिया फ्रूट लौजिस्टिका का मकसद इस इंडस्ट्री से जुड़े कारोबारियों को नए कारोबारी बनाने और अंतर्राष्ट्रीय लैवल पर अपने नएनए प्रौडक्ट्स और आविष्कारों का प्रदर्शन करने का मौका मुहैया कराना है.

वार्षिक व्यापार प्रदर्शनी को एशिया के प्रमुख बाजारों में बड़ी तादाद में हाई क्वालिटी के प्रौडक्ट्स के खरीदारों को लुभाने के लिए जाना जाता है. इस प्रदर्शनी में बड़ी तादाद में लौजिस्टिक्स, टैक्नोलौजी और मशीनरी के क्षेत्र में काम करने वाले, कारोबारी भी हिस्सा लेते हैं.

पिछले साल इस व्यापार प्रदर्शनी में भारत की ओर से तीसरे नंबर पर सब से ज्यादा तादाद में लोगों ने?भाग लिया था. इस मेले में 6 फीसदी भारतीयों ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी. अपने कारोबार को आगे बढ़ाने में चेन पार्टनर और सर्विस प्रोवाइडर्स की अहम भूमिका पर जोर देते हुए एशिया फ्रूट लौजिस्टिका ने इस साल भारत में ताजा फल और सब्जियां बेचने वाले कारोबारियों और सप्लाई चेन के रिटेलरों से बड़ी तादाद में पंजीकरण आमंत्रित किए हैं.

ये भी पढ़ें- बैगन की नई किस्मों की ऐसे करें खेती

एशिया के प्रीमियम फ्रैश प्रोड्यूस शो पर टिप्पणी करते हुए एशिया फ्रूट लौजिस्टिका के भारतीय प्रतिनिधि कीथ सुंदरलाल ने कहा, ‘‘एशिया फ्रूट लौजिस्टिका दुनियाभर के खरीदारों और प्रदर्शनी लगाने में दिलचस्पी रखने वाली कंपनियों को आकर्षित करती है. यह विभिन्न कंपनियों के महत्त्वपूर्ण लोगों और प्रभाव डालने वाले व्यक्तियों को विश्व स्तर पर एकदूसरे से जुड़ने और साझीदारी का मौका मुहैया कराती है. 3 दिन तक चलने वाली यह व्यापार प्रदर्शनी सभी आकार की कंपनियों को उन के लिए नए सप्लायर्स की खोज और संबंधों के विकास के माध्यम से व्यापार के काफी और शानदार अवसर मुहैया कराती?है. ताजा फलों और सब्जियों की बिक्री के?क्षेत्र में तेजी से बदलते ट्रैंड्स और टैक्नोलौजी का पता लगाने के लिए इस व्यापार प्रदर्शनी में विभिन्न हितधारकों को?भागीदारी जरूर करनी चाहिए.

हाल ही में ट्रेड फेयर फ्रूट लौजिस्टिका का आयोजन 6 फरवरी से 8 फरवरी, 2019 तक जर्मनी के बर्लिन में किया गया?था. इस व्यापार प्रदर्शनी में 135 देशों के 78,000 ट्रेड विजिटर्स ने भाग लिया था. ताजा फलों और सब्जियों की मार्केटिंग के लिए फ्रूट लौजिस्टिका दुनिया की सब से प्रमुख प्रदर्शनी मानी जाती है. इस प्रदर्शनी में शिकरत करने वाले हर दूसरे आयोजक को इस साल शानदार बिजनैस डील करने का मौका मुहैया करा कर शानदार नतीजे हासिल किए हैं.

एशिया फ्रूट लौजिस्टिका के साथ कंपनी अपनी विशेषज्ञता से तेजी से बढ़ते और सब से ज्यादा संभावनाओं वाले एशियाई देशों में मार्केट में कारोबारियों को परिचित करा रही है. एशिया फ्रूट लौजिस्टिका में अपनी प्रौडक्ट और सर्विसेज की प्रदर्शनी लगाने में दिलचस्पी रखने वाले आयोजक एशिया फ्रूट लौजिस्टिका की आधिकारिक वैबसाइट पर जानकारी ले सकते हैं.

ये भी पढ़ें- खेत खलिहानों में चूहों की ऐसे करें रोकथाम

जानें, कैसे बनाएं ग्रिल्ड एगप्लांट

अगर आप कुछ नया डिश बनाना चाहते हैं तो ग्रिल्ड एगप्लांट डिश जरूर बनाएं. क्योंकि ये डिश बनाने में भी आसान है. इसे बनाने के लिए आपको बहुत कम चीजों की जरूरत है और टाइम भी कम लगेगा. तो चलिए जानते है ग्रिल्ड एगप्लांट इसे बनाने की रेसिपी.

सामग्री

4 स्लास एगप्लांट/ बैंगन

2 टी स्पून वर्जिन औलिव औइल

सी सौल्ट, जरूरत के हिसाब से

ग्रिल्ड एगप्लांट

ये भी पढ़ें- ऐसे बनाएं मखनी मटर मसाला

बनाने की वि​धि

बैंगन को अच्छी तरह धोकर इन्हें गोल-गोल स्लाइस में काटकर एक बड़े बोल में रख लें.

अब एक ग्रिल्ड पैन को गैस पर मध्यम आंच पर रखें और एक टी-स्पून वर्जिन औलिव औइल डालकर गर्म करें और तुरंत ही इसमें बैंगन के कटे हुए स्लाइस डाल दें.

इन सभी स्लाइस को दोनों तरफ से टोस्ट की तरह अच्छी तरह सेक लीजिए, जब तक ये गोल्डन ब्राउन ना हो जाएं. इसमें आपको 10 से 15 मिनट तक इन्हें उलट-पलटकर सेकना होगा.

जब सभी स्लाइस अच्छी तरह सिक जाएं तो इन्हें एक सर्विंग प्लेट में निकाल लें. अब इन पर थोड़ा-थोड़ा औलिव औइल और सौल्ट लगाएं और सर्व करें.

ये भी पढ़ें- घर पर बनाएं साउथ इंडियन चिकन

रोमिला थापर को परेशान किए जाने के ये हैं मायने

रोमिला थापर का गुनाह इतना भर नहीं है कि वे एक परम्परागत भारतीय महिला सरीखी नहीं दिखती हैं. एक ऐसी महिला जो पहली नजर में ही किसी न किसी एंगल से निरुपा राय कामिनी कौशल या सुलोचना जैसी दयनीय भारतीय (दरअसल में हिन्दू) न दिखे बल्कि प्रिया राजवंश, सोनी राजदान या सिम्मी ग्रेवाल सी राजसी आत्मविश्वास, ठसक और चमक दमक वाली दिखे. वह किसी भी लिहाज से जेएनयू में बने रहने लायक आज के दौर में हो ही नहीं सकती. गुनाहों की देवी रोमिला थापर का एक बड़ा गुनाह यह भी है कि उन्होंने अगस्त 2018 की किसी तारीख में आज के दौर और राजकाज की तुलना आपातकाल से करते यह तक कह डाला था कि वह आपातकाल कम खतरनाक था.

इसी 30 नवंबर को रोमिला 88 की हो जाएंगी लेकिन मुमकिन है वे जन्मदिन जेएनयू में न मना पाएं क्योंकि उनकी विदाई की तैयारियां कम से कम कागजों में तो पूरी हो गई हैं क्रिकेट की भाषा में कहें तो मैच का फैसला तो हो चुका है बस औपचरिकताए शेष हैं.

मुमकिन है आप भी कई लोगों की तरह रोमिला थापर के बारे में वो सब न जानते हों जो कि अब जानना जरूरी हो गया है जिससे यह पता चले कि क्यों वे सत्ता पक्ष और भगवा खेमे के निशाने पर आ गई हैं. अब तो हालांकि 2014 से ही गईं थीं लेकिन उनका नंबर अब आया है जो उन्हें बेहद षड्यंत्रपूर्वक तरीके से जेएनयू के बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारियां पूरी कर ली गईं हैं. और यह सब बेमकसद नहीं है मकसद उन्हीं की जुबानी हम आगे समझेंगे.

ये भी पढ़ें- स्वामी चिन्मयानंद: काम न आया दांवपेंच

असाधारण प्रतिभा की धनी

लखनऊ में जन्मी रोमिला ने पहले पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि ली और फिर लंदन यूनिवर्सिटी के स्कूल औफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज से साल 1958 में डाक्ट्रेट की उपाधि हासिल की. इतिहास में गहरी दिलचस्पी रखने वाली प्रतिभाशाली रोमिला ने कुरुक्षेत्र और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय इतिहास का गहन अध्ययन 1963 से लेकर 1970 तक किया. साल 1983 में रोमिला भारतीय इतिहास कांग्रेस की जनरल प्रेसिडेंट और फिर 1999 में ब्रिटिश अकादमी की कोरेस्पांडिंग फेलो चुनी गईं .

साल 2009 में उन्हें अमेरिकन एकेडमी औफ आर्ट्स एंड साइंसेज का फारेन फेलो सदस्य चुना गया था और 2017 में उन्हें सेंट एंटेनी कालेज औक्सफोर्ड का माननीय फेलो चयनित किया गया था.

लेकिन इस सब का यह मतलब नहीं कि उनका देश से नाता टूट गया था बल्कि ये उपाधियां और सम्मान तो उन्हें प्रदान किया गए थे नहीं तो दुनियाभर में प्राचीन भारतीय इतिहास की विशेषज्ञ मानी जाने वाली रोमिला थापर 1970 से लेकर 1993 तक जेएनयू में इतिहास की प्रोफेसर रहीं थीं और रिटायरमेंट के बाद उन्हें 1993 में ही प्रोफेसर इमेरेटिस का दर्जा दिया गया था. प्रोफेसर इमेरेटिस वह रिटायर्ड प्रोफेसर होता है जिसे कोई भी विश्वविद्यालय बतौर मेंटर नियुक्त कर सकता है .

यह एक अवैतनिक लेकिन गरिमामय पद होता है जिसमें प्रोफेसर इमेरेटिस को केबिन , स्टेशनरी और दूसरी जरूरी सुविधाएं ही मुहैया कराई जाती हैं. जाहिर है यह किसी भी प्रोफेसर की शैक्षणिक योग्यताओं उपलब्धियों और अनुभवों का सबसे बड़ा सम्मान होता है जो हर किसी को नहीं मिलता और न ही दिया जा सकता. गौरतलब और दिलचस्प बात यह भी है कि प्रोफेसर इमेरेटिस जिंदगी भर के लिए नियुक्त किया जाता है या होता है एक ही बात है .

विवाद और उसकी जड़

आमतौर पर रोमिला एक शांत स्वभाव वाली महिला हैं और बेवजह के विवादों में नहीं पड़ती लेकिन कुछ वजहों के चलते भगवा खेमे के लिए यह जरूरी हो गया था कि वह कोई वजह पैदाकर उन्हें पहले विवादों में घसीटे और फिर हल्ला मचाकर बाहर चलता करे. सितंबर के पहले सप्ताह में जेएनयू प्रशासन ने उनसे उनका सीवी यानि बायोडाटा मांगा तो उम्मीद के मुताबिक बहुत ज्यादा सार्वजनिक हलचल नहीं हुई थी. कैम्पस के कुछ छात्रों और प्रोफेसरों ने इसका विरोध जरूर किया था कि यह गैरजरूरी और राजनीति से प्रेरित है क्योंकि प्रोफेसर इमेरिटस से सीवी मांगा जाना उनका अपमान है वह भी रोमिला थापर से जो 45 सालों से भी ज्यादा वक्त से जेएनयू से जुड़ी हुई हैं.

रोमिला थापर ने भी इसका मुकम्मल और मुंहतोड़ लिखित जबाब दिया था .

लेकिन तयशुदा प्लान के मुताबिक जल्द ही वे लोग भी मैदान में कूद पड़े जो यह कह रहे थे कि इसमें हर्ज क्या है. इन लोगों जिनमें भाजपा के आईटी सेल के मुखिया भी शामिल हैं ने तरह तरह के तर्क अध्यादेश और नियम कायदे कानूनों का हवाला देते हवा बनाई कि रोमिला थापर को सीवी देना चाहिए. इन दलीलों में जगह जगह जेएनयू प्रशासन और संविधान का हवाला आया लेकिन जितना ये अपनी जिद पर अड़े रहे स्वभाविक तौर पर उसका विरोध भी हुआ. इस निरर्थक से प्रायोजित महाभारत में सबसे तीखी और दिलचस्प प्रतिक्रिया गीतकार जावेद अख्तर ने यह तंज कसते हुये दी कि वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सम्मानित इतिहासकार हैं जिनका सीवी दिल्ली की टेलीफोन डायरेक्ट्री से थोड़ा सा ही छोटा होगा. वे सिर्फ इस बात को पुख्ता करना चाहते हैं कि उनकी बीए की डिग्री है या नहीं क्योंकि यह अक्सर खो जाती है .

जावेद अख्तर के इस ट्वीट ने भक्तों के मुंह पर पट्टी बांध दी जो नहीं चाहते कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री का मामला तूल पकड़े.

ये भी पढ़ें- 5 ट्रिलियनी भव: चरमराती अर्थव्यवस्था में सरकारी मंत्र

हकीकत यह है 

रोमिला थापर की लिखी गई कई किताबों में से एक है भारत का इतिहास जिसमें उन्होंने तथाकथित हिन्दुत्व और उसके पाखंडों की जमकर बखिया कुछ इस तरह उधेड़ी है कि कोई इसे तर्कों से खारिज करना तो दूर की बात है तर्कों और तथ्यों से सटीक जवाब भी नहीं दे सकता. अगर आप रोमिला का लिखा कुछ भी पढ़ेंगे तो आपकी आस्था डगमगा भी सकती है. उनकी भाषा हालांकि दार्शनिकों जैसी भारी भरकम है लेकिन इतनी असहज भी नहीं है कि समझ न आए .

पहली बार रोमिला थापर को लेकर एक बड़ा हल्ला साल 2004 में मचा था जब उन्होंने एनसीआरटी की किताबों में फेरबदल को लेकर एतराज जताया था. यह एतराज बीफ को लेकर था रोमिला ने हिन्दू परम्परा में बीफ खाने के कुछ उदाहरण पेश किए थे. उन्होंने तब शतपथ ब्राह्मण और वशिष्ठ धर्मसूत्र के उद्धरण देकर साबित किया था कि प्राचीन काल में बीफ परोसने का चलन था. बृहदारण्यक उपनिषद उपनिषद का हवाला देते उन्होंने बताया था कि इसमें उल्लेख है कि दीर्घायु होने और तेजतर्रार संतान प्राप्ति के लिए चावल के साथ बछड़े का मांस या गौ मांस खाना चाहिए. तभी से उनके और दक्षिणपंथ के बीच एक स्थायी कटुता पसर गई थी जिसकी कसर अब निकाली जा रही है. जिसका तरीका हालांकि घटिया है लेकिन इसे यह कहते नहीं टाला जा सकता कि जंग, मोहब्बत और सियासत में सब जायज होता है. क्योंकि दक्षिण पंथ आजतक उनके उद्धरणों को नकार नहीं सका है.

यही वह बात और बातें हैं, जिनके चलते भगवा खेमा तिलमिलाया हुआ है. पांच बुद्धिजीवियों जिन्हें शहरी नक्सली कहते नजरबंद कर दिया गया था कि गिरफ्तारी पर उन्होंने आपातकाल का जिक्र किया था कि तब यानि 1975 के मुक़ाबले आज डर ज्यादा है. बक़ौल रोमिला उनका सीवी मांगे जाने की वजह आंशिक तौर पर व्यक्तिगत है, आज हमें ऐसा समाज बनाया जा रहा है जो स्वतंत्र विचारों के खिलाफ हो, जिस दुनिया में हम रह रहे हैं उस पर सवाल उठाने का विरोध करता हो. हमें बौद्धिक और शैक्षणिक जीवन को नीचा देखने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.

रोमिला के शाब्दिक और वैचारिक हमले के बाद जब दुनियाभर के शिक्षाविद उनके पक्ष में एकजुट होने लगे तो सरकार की तरफ से बचकानी दलीलें दी जाने लगीं. जरूरी यह लगने लगा कि मामला केवल बुद्धिजीवी वर्ग तक में सिमटा है इसलिए आम लोगों को इससे जोड़ने कोई धार्मिक प्रसंग लाया जाये जिससे रोमिला थापर जैसे इतिहासकारों को जलील किया जाकर हमेशा की तरह उन्हें भी बहिष्कृत करने में सहूलियत हो .

फिर आए युधिष्ठिर महाराज

यह मौका जल्द मिल भी गया जब 21 सितंबर से एक विडियो तेजी से वायरल और ट्रेंड होना शुरू हुआ. इस एक मिनिट के वीडियो में रोमिला थापर यह कहती नजर आ रहीं हैं कि महाभारत में युधिष्ठिर का चरित्र सम्राट अशोक से प्रेरित था. बस बहस छेड़ने यह काफी था . आस्थावान चूहों के हाथ चिंदी आ गई कि यह कैसे मुमकिन है क्योंकि महाभारत काल प्राचीन है और अशोक उसके बहुत बाद का है. सोशल मीडिया पर रोमिला थापर को धूर्त इतिहासकार कहते उनके ज्ञान पर सवाल उठने लगे. यह वीडियो कब किन हालातों में बना इस जानकारी से परे भक्तों ने तरह तरह के तंज रोमिला पर कसे लेकिन कुछ जानकारों ने माना भी कि कालखंड के हिसाब से यह मुमकिन भी है कि अशोक पहले हुआ और महाभारत काल बाद में हुआ या फिर काल्पनिक है.

सच कुछ भी हो लेकिन तर्क की जगह आस्था ने ले ली तो बीए पास और फेल हिंदुओं को भी यह कहने का मौका मिल गया कि इतिहास से छेड़छाड़ वामपंथी इतिहासकारों का पुराना शगल सनातन धर्म को बदनाम करने का है जबकि यह दुनिया का प्राचीनतम और वैज्ञानिक धर्म है . अपनी बात में दम लाने भक्तों ने कई ऊटपटांग दलीलें हमेशा की तरह दीं कि इन्टरनेट का आविष्कार तो महाभारत काल में ही हो गया था और श्राद्ध का महत्व यह है कि इसमें पितरों के बहाने कौवों को खीर एक खास मकसद से खिलाई जाती है. यहां इन बेसरपैर के किस्सें  कहानियों के उल्लेख के कोई माने नहीं लेकिन इनकी आड़ में रोमिला थापर को घेरने में जरूर हिंदूवादी खेमा कामयाब हो गया.

आस्था की अंधी आंधी में प्रसिद्ध इतिहासकार और माइथीलोजी के विशेषज्ञ देवदत्त पटनायक जैसी दर्जनों हस्तियों का यह स्पष्टीकरण सोशल मीडिया की भक्त गेंग का शिकार होकर रह गया कि रोमिला थापर जिस युधिष्ठिर नाम चरित्र का जिक्र कर रहीं हैं, वह महाभारत का है. जो 2000 साल पहले लिखा गया जबकि अशोक ने अपने शासनादेश 2300 साल पहले लिखे थे. यानी रोमिला गलत कुछ नहीं कह रहीं थीं.

ये भी पढ़ें- विसर्जन हादसा: ये खुद जिम्मेदार हैं अपनी मौत के या फिर भगवान

हकीकत तो यह है कि केंद्र सरकार की मुखर आलोचक रहीं रोमिला शिक्षा के निजीकरन और  संस्थानों की स्वायत्ता खत्म करने पर भी सरकार को घेरती रहीं हैं. वे दो टूक साबित कर चुकी हैं कि आर्य बाहरी आक्रांता थे, ये और ऐसी कई वजहों के चलते वे भगवा खेमे की आखो में खटक रहीं थीं लिहाजा उन्हें भी तरह तरह से परेशान किया जा रहा है. परेशान तो किसी न किसी तरीके से हर उस शख्स को किया जा रहा है जो सरकार की नीतियों रीतियों की आलोचना करता है और भगवा एजेंडे के नुकसान गिनाता है फिर रोमिला थापर तो हिन्दू राष्ट्र की मुहिम में घोषित रोड़ा हैं .

‘कसौटी जिंदगी के 2’: नई कोमोलिका का किरदार निभाएगी ये एक्ट्रेस

स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला सीरियल ‘कसौटी जिंदगी के 2’ में आपको लगातार महाट्विस्ट देखने को मिल रहा है. इधर प्रेरणा को अनुराग और मिस्टर बजाज दोनों की फिक्र लगी रहती है. एक ओर उसे अनुराग की फिक्र है तो दूसरी ओर वह मिस्टर बजाज के प्रति भी लौयल रहना चाहती है. आपको बता दें,  इस शो में जल्द ही ही कोमोलिका की रीएंट्री भी हो सकती है.

रिपोर्टस के मुताबिक अब कोमोलिका के किरदार में हिना खान नजर नहीं आएंगी. ऐसे में नई कोमोलिका के किरदार के लिए कई टीवी एक्ट्रेस के नाम सामने आए हैं. खबरों की माने तो इस सीरियल के मेकर्स ने कोमोलिका के किरदार के लिए एक्ट्रेस का चुनाव कर लिया है. जी हां, नई कोमोलिका का किरदार गौहर खान निभा सकती हैं.

ये भी पढ़ें- ‘मैं किसी चूहा दौड़ का हिस्सा कभी नही रहा’: प्रियांशु चटर्जी

जानकारी के मुताबिक इस सीरियल के लिए गौहर खान ने अपना लुक टेस्ट भी दे दिया है. जी हां लेकिन वह अभी इस प्रोजेक्ट को लेकर श्योर नहीं है क्योंकि उनके पास अभी ढेर सारे प्रोजेक्ट्स है. खबरों के मुताबिक मेकर्स गौहर को कोमोलिका के रुप में देखने के लिए काफी इच्छुक है.

गौहर खान ने  प्रोडक्शन हाउस को अपना लुक टेस्ट भी दे दिया है और वह लगातार इस सिलसिले में उनसे जुड़ी हुई है. लेकिन गौहर काफी कन्फ्यूज है क्योंकि उनके पास एक वेब सीरीज भी है. गौहर खान ‘बिग बौस 7’ में भी नजर आई थी.

ये भी पढ़ें- ‘नच बलिए 9’: मधुरिमा तुली और विशाल आदित्य सिंह के बीच मारा मारी

महिलाओं के लिए बेस्ट हैं ये 4 करियर औप्शन 

अपना टाइम आएगा !आएगा नहीं आ गया है जी हां अब हमारे देश की हर लड़की यही गा रही है क्योंकि चाहे टीचिंग हो ,फैशन हो ,या कार्पोरेट जगत हो ,या  डिफेन्स सेक्टर हो हर जगह लड़कियां अपनी जीत का  डंका बजा रही हैं. बजाएं भी क्यों न आज वो आत्म निर्भर हो गयी हैं अब चारदीवारी ही उनकी दुनिया नहीं रह गयी हैं  उपयुक्त शिक्षा और कम्युनिकेशन के साथ-साथ मौडर्न टेक्नोलौजी से महिलाएं  अपने सपनो को नई उड़ान दें रही हैं . अगर  आप भी बनाना  चाहती हैं अपनी पहचान तो आपकी सहूलियत के लिये करियर से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी यहां पेश हैं.

1. एयर होस्टेज के तौर पर करियर

ज्यादातर छात्र ऐसा कोर्स करना पसंद करते हैं जिसे करने के बाद तुरंत नौकरी मिल जाये. एयर होस्टेज का कोर्स उन्हीं मे से एक है. बतौर एयर होस्टेस आप एक बेहतरीन  करियर बना सकती  हैं.  12  वीं पास करने के  बाद  किसी भी मान्यता प्राप्त संस्थान से एयर होस्टेस ट्रेनिंग प्रोग्राम का कोर्स किया जा सकता है. इसमे उम्र सीमा 18-25 साल है. डोमेस्टिक से लेकर इंटरनेशनल और प्राइवेट एयलाइंस में काफी मौकै हैं. जरूरी है की आपके अंदर ये गुण अवश्य हों- जिम्मेदारी निभाना ,फिजिकली  फिट हों ताकि आप घंटों तक चेहरे पर मुस्कान लिए कार्य कर सकें ,प्रेजेंस  औफ माइंट, पौजिटिव एटीट्यूड और गुड सेंस औफ ह्यूमर आपके काम को और आसान बना देंगे.एयर होस्टेस की सैलरी 25 हजार से 40 हजार से शुरू होती है. सालाना 2-4 लाख पैकेज कमा सकती  हैं.

2. फैशन डिजाइनिंग के तौर  पर करियर

फैशन कभी पुराना नहीं होता है. कुछ साल पहले से फैशन टेक्नौलजी में ग्रेजुएशन करने का शौक यूथ में बढ़ता नजर आ रहा है. और आपका क्रिएटिव नजरियां इस फील्ड मे चार चांद लगा देता है पहले  इंटरनेशनल डिजाइनर का इस फील्ड मे ज्यादा दबदबा था लेकिन अब भारतीय डिज़ाइनर भी इस रेस मे शामिल हो गये हैं इस कोर्स को करने के लिए जरूरी है कि फैब्रिक्स, कलर्स और स्टाइल के मिलान के लिए आपके पास आर्टिस्टिक व्यू-प्वाइंट के साथ ही असाधारण विज़ुअलाइज़ेशन क्षमतायें होनी चाहि. आज कपड़ों से लेकर, जूते, चश्में और ज्वैलरी  और हर एक क्षेत्र में डिजाइनर्स की डिमांड है. 12 वीं पास कर के फैशन डिजाइनिंग में बैचलर की डिग्री.  एक कुशल और टैलेंटेड फैशन डिज़ाइनर को अपैरल कंपनियों, एक्सपोर्ट हाउसेज और रा मेटीरियल इंडस्ट्री में एक स्टाइलिस्ट या डिज़ाइनर के तौर पर जौब मिल सकती है

3. जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन में करियर

अगर आप चीजों को एक अलग ही नजरिये से देखते है और आपको लेखन में खास दिलचस्पी है तो आप इस क्षेत्र   मे बड़ा नाम कमा सकती हैं . पत्रकारिता और मास कम्युनिकेशन की फील्ड में कोई कोर्स करके आप प्रिंट, रेडियो, वेब, एंटरटेनमेंट, जनसंपर्क आदि से जुड़कर अपना करियर संवार सकती  है. इस फील्ड से जुड़े कई कोर्स है जैसे बैचलर डिग्री, मास्टर डिग्री और डिप्लोमा कोर्सेस. इसके अलावा एमफिल और पीएचडी जैसे कोर्से भी इस फील्ड में उपलब्ध है. अगर आप फ्रेशर्स है तो शुरूआत मे  15 से 20 हजार रूपये महीने आसानी से पा सकते है. और  2 से 3 साल के अनुभव के बाद 30- 40 हजार रूपये महीने तक कमाएं जा सकते है. साथ ही आप  घर बैठे फ्रीलांसिंग भी कर सकती हैं .

4. टीचिंग के तौर पर करियर

टीचिंग एक ऐसा करियर है जो महिलाओं के लिये बेहद उम्दा माना गया है. इसे काफी नोबल प्रोफेशन माना जाता  है. टीचिंग करियर को हम कई लेवल्स में बांट सकते हैं. जैसे नर्सरी स्कूल टीचर, प्राइमरी/मिडिल स्कूल टीचर और हाई स्कूल टीचर. इनके लिये योग्यता भी अलग अलग है टीचिंग में करियर बनाने के लिए 12वीं/ग्रेजुएशन के बाद आपको इनमें से एक कोर्स करना होगा – एनटीटी कोर्स, बी॰एल॰एडकोर्स, डी॰एल॰एड कोर्स, बी॰पी॰एड कोर्स, डीपीई कोर्स, बीएड कोर्स. इसमे सैलरी आपकी योग्यता पर निर्भर करती है. प्राइवेट और गोवेर्मेंट दोनों सेक्टर मे उज्वल भविष्य है.

‘मैं किसी चूहा दौड़ का हिस्सा कभी नही रहा’: प्रियांशु चटर्जी

‘टी सीरीज’ की म्यूजिकल फिल्म ‘तुम बिन’ और डा. चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्म ‘‘पिंजर’’ से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपने करियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता प्रियांशु चटर्जी अब 27 सितंबर को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘‘लिटिल बेबी’’ में एक अनोखे किरदार में नजर आने वाले हैं. फिल्म ‘‘लिटिल बेबी’’ में एक पिता और उसकी बेटी के रिश्ते की कहानी को काफी संवेदनशील तरीके से फिल्माया गया है. तो वहीं प्रियांशु चटर्जी ‘‘जी 5’’ की वेब सीरीज में मनोवैज्ञानिक डौक्टर करण के किरदार में नजर आ रहे हैं.

प्रस्तुत है प्रियांशु चटर्जी से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश

आपके करियर के अब तक के टर्निंग प्वाइंट क्या रहे?

मेरे करियर का सबसे बड़ा और पहला टर्निंग प्वाइंट दिल्ली से मुंबई आना रहा. यहां आकर सीरियल व विज्ञापन फिल्में करना रहा. उसके बाद ‘तुम बिन’ की सफलता के बाद जिस तरह का काम मैं करना चाहता था, उस तरह का काम करने का अवसर मिला. मेरे करियर में दूसरा टर्निंग प्वाइंट ‘‘पिंजर’’रही. फिल्म ‘पिंजर’ की रिलीज के बाद लोगों को लगा कि मैं संजीदा और संवेदनशील किरदारों को भी बड़ी सहायता से निभा सकता हूं. डांस में तो माहिर हूं ही. उसके बाद मेरा टर्निंग प्वाइंट तब आया, जब 2005 में महेश भट्ट निर्मित और तनूजा चंद्रा निर्देशित फिल्म ‘‘फिल्मस्टार’’ की. उसके बाद मैंने ‘कोई मेरे दिल मे है’, ‘उत्थान’ कई फिल्में की. फिर एक टर्निंग प्वौइंट तब आया,  जब अपर्णा सेन, गौतम घोष और रितुपर्णो घोष ने मुझे बंगाल बुलाया. मैंने ‘मोनर मानुष’, ‘भोरेर अलो’, ‘इति मृणालिनी’,‘ पांच अध्याय’ जैसी कुछ बेहतरीन बंगला फिल्में की. बंगाल में कम बजट की,  मगर बेहतरीन सब्जेक्ट वाली फिल्में करके मजा आ गया. बंगला फिल्मों में मैंने उन विषयों पर काम किया, जिन विषयों पर काम करने की कलाकार के तौर पर मेरी जरूरत थी. हकीकत यह है कि बांगला फिल्मों में काम करते हुए कलाकार के तौर पर मेरी ग्रोथ हुई. अपर्णा सेन और रितुपर्णो घोष के साथ काम करके मैंने बहुत कुछ सीखा. मैंने बंगला फिल्मों में काम करके धन नहीं कमाया, मगर बतौर कलाकार रचनात्मक संतुष्टि बहुत मिली. आर्टिस्टिक संतुष्टि मिली. सीखने को मिला. वहां मुझे समझ में आया कि फिल्म की शूटिंग से पहले वर्कशौप कितने जरुरी हैं. फिर मेरे करियर में टर्निंग प्वाइंट तब 2015 में तब आया, जब मैंने ‘‘हेट स्टोरी 3’’ व ‘‘बादशाहो’’ जैसी कमर्शियल फिल्में की. इन कमर्शियल फिल्मों में भी मैंने कुछ रोचक किरदार निभाए, जो कि पहले नहीं किए थे. मैंने अब तक अपने आपको कहीं दोहराया नहीं है. वैसे तो बौलीवुड में हर शुक्रवार और हर फिल्म रिलीज के साथ ही आपके करियर व आपकी जिंदगी को एक नया बदलाव दे ही देती है. हर शुक्रवार एक नया मोड़ दे देता है. बीच में मुझे एक पंजाबी फिल्म ‘‘सिरफिरे’’ करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. मैं दिल्ली से हूं, तो यह भाषा मेरे दिल के काफी करीब है. मैं पंजाबी अच्छी बोल लेता हूं. इसी तरह मुझे हिंदी व उर्दू मिश्रित फिल्म ‘‘मजाज’’ करने का अवसर मिला.

ये भी पढ़ें- अब कंगना रनौत के एक्स बौयफ्रेंड के साथ काम करेंगी हिना खान

जब आपने रितुपर्णो घोष और अपर्णा सेन के बुलावे पर बांगला फिल्मों की तरफ रुख किया, उन दिनों बौलीवुड में तो मसाला फिल्में ही बन रहीं थी ?

जी हां! आपने एकदम सच कहा. उन दिनों बौलीवुड में जिस तरह की फिल्में बन रही थीं, उनमें कंटेंट का घोर अभाव था. मुझे मेरी पसंद का काम नहीं मिल रहा था. बौलीवुड की फिल्मों में कहानी हेाती ही नहीं थी. हर फिल्म में 8 गाने और सारे मसाले भर दिए जाते थे. ऐसे वक्त में बांगला फिल्मों में काम करना बहुत रोचक अनुभव रहा. मैंने बंगला में जो फिल्में कीं, उनके विषय बहुत रीजनल व देसीपना लिए हुए थे. उसके कंटेंट पर उन दिनों बौलीवुड में फिल्म का बनना बनना असंभव था. मेरी बंगला फिल्मों के नाम याद कर लीजिए. ‘मोनर मानुष’, ‘भोरेर अलो’, ‘इति मृणालिनी’, ‘पांच अध्याय’ जैसी फिल्में बौलीवुड में कभी नहीं बन सकती.

बंगला फिल्में करने के बाद जब आपने एक बार फिर बौलीवुड की कमर्शियल फिल्में करने के लिए मुड़े तो ‘हेट स्टोरी थ्री’ की. आपको नहीं लगा कि आप एक बार फिर गलत जगह फंस गए हैं?

नहीं..बिल्कुल नही. देखिए, मैंने ‘हेट स्टोरी थ्री’ उस  फिल्म  निर्माता के साथ की, जिसने मुझे सबसे पहले फिल्म ‘ तुम बिन’ में काम करने का मौका दिया था. ऐसे इंसान को ना बोलना गलत हो जाता. जिसने मुझे बौलीवुड में सफल फिल्म दी और मेरा करियर आगे बढ़ा, उनके साथ तो मैं हमेशा काम करना चाहूंगा. इंसान के तौर पर भी व कलाकार के तौर पर भी मैं उन्हें मना नहीं कर सकता. यदि मैंने ‘पिंजर’ और ‘तुम बिन’ ना की होती, तो मेरी यात्रा यहां तक न पहुंचती.

बौलीवुड में जो बदलाव आ रहे हैं, आपके अनुसार उसकी वजहें क्या हैं?

सबसे बड़ी वजह डिजिटलाइजेशन है. जबसे तकनिक बदली है, तब से फिल्म बनाना आसान हो गया है. दूसरी सबसे बड़ी वजह सोशल मीडिया है. सोशल मीडिया के चलते 30 सेकंड के वीडियो पर भी कोई भी इंसान सात मिलियन फौलोअर्स पा जाता है. जिसके सात मिलियन फौलोवर्स हों, वह स्टार बन जाता है. ऐसे लोगों को फिल्मकार, सीरियल के निर्देशक, वेब सीरीज के निर्देशक व चैनल वाले बुला कर काम दे रहे हैं. मजेदार बात यह है कि हमारे जैसे कलाकार जो दस बीस वर्ष से काम करते आ रहे हैं, उनके दस हजार फौलोअर्स भी नहीं हैं. सोशल मीडिया के चलते 30 सेकंड का वीडियो स्टार बना देता है. पर मैं एक बात कहना चाहूंगा कि सोशल मीडिया के चलते इस तरह की जो सफलता मिल रही है, वह कितनी टिकाऊ है, मुझे नहीं पता. मुझे शक है. लेकिन आज की तारीख में लोगों ने कलाकार को काम देने का मापदंड सोशल मीडिया के फौलोअर्स की संख्या को बना रखा है. जिस कलाकार के सोशल मीडिया पर जितने अधिक फौलोवर्स होंगे, उसे उतनी ही आसानी से फिल्म या सीरियल या वेब सीरीज में अभिनय करने का अवसर मिलेगा. फिर चाहे आपने कभी अभिनय न किया हो, महज कुछ सेकंड का वीडियो बनाने के लिए ही कुछ सेकंड अभिनय किया हो, पर लोग बुलाकर फिल्म देंगे.

फिल्म ‘‘लिटिल बेबी’’ को लेकर क्या कहेंगें?

फिल्म नाम के अनुरूप पिता व पुत्री के रिश्ते की संजीदगी को चित्रित करती है. यह फिल्म एक पिता और उसकी 19 साल की कहानी है. पीढ़ियों के अंतराल यानी कि जनरेशन गैप की कहानी है. इसकी कहानी से मैने रिलेट किया. निजी जीवन में मैं शादीशुदा नहीं हूं. मेरे अपने बच्चे नहीं हैं. लेकिन मेरे घर में भतीजे, भांजे,  भतीजियां व भांजियां सहित कई बच्चे हैं. मैं देखता हूं कि यह बच्चे पूरे दिन मोबाइल से चिपके रहते हैं. मोबाइल एक ऐसा यंत्र बन गया है, जिसके बिना गुजारा नहीं. आज का बच्चा दिन भर मोबाइल पर गेम खेलेगा, व्हाट्सएप पर बकवास करेगा, सेल्फी खींचेगा, इंस्टाग्राम पर फोटोग्राफ डालता रहेगा. यह बच्चे घर से बाहर निकल कर दोस्तों से भी नहीं मिलते हैं, ना खेलते हैं. पढ़ाई पर भी ध्यान नही देते हैं. इन्हें देखकर मैं अक्सर सोचता हूं कि यह सब एक दिन दीमाग बीमार का शिकार न हो जाए. उत्तराखंड में देहरादून और आसपास के इलाकों में इसे फिल्माया गया है.

फिल्म में आपकी भूमिका?

इसमें मैंने एक पुलिस अफसर दुष्यंत की भूमिका निभायी है, जो कि एक बेटी का पिता है. उसकी बेटी का नाम साशा है. वह अपने कड़क स्वभाव के साथ अपनी बेटी की परवरिश करके उसे आगे ले जाना चाहता है. पर एक मुकाम पर दोनों में तकरार होती है.

आप ‘वेब सीरीज’ भी कर रहे हैं?

जी हां! आल्ट बालाजी की वेब सीरीज ‘कोल्ड लस्सी चिकन मसाला’ की है. जो कि ‘जी 5’ पर है. इस वेब सीरीज को प्रदीप सरकार के साथ काम करने के लिए की है. मैंने प्रदीप सरकार जी के साथ 1996 में एक विज्ञापन फिल्म की थी. उसके बाद हमारी मुलाकात होती रहीं, पर हम एक साथ कोई काम नहीं कर पाए. अब मौका सामने आया, तो मैंने लपक लिया. प्रदीप दा के साथ काम करने का अपना एक अलग मजा है. मैंने तो स्क्रिप्ट भी नहीं देखी थी. मैंने कह दिया था कि दादा आप हैं, तो मैं काम करूंगा. इन दिनों तो बहुत वेब सीरीज बन रही हैं. यह ऐसा राक्षस है, जो हमेशा भूखा रहेगा. इतना कंटेंट परोसा जा रहा है कि आप सोच नहीं सकते हैं. लोग देख रहे हैं. पर रेवेन्यू कहां से आएगी? किसी को नहीं पता.

ये भी पढ़ें- Naagin 4: मौनी और सुरभि के बाद एकता को नहीं मिल रही परफेक्ट ‘नागिन’

इसके अलावा क्या कर रहे हैं?

एक फिल्म ‘‘श्री देवी बंगलो’’ की शूटिंग कर ली है. दो अन्य फिल्मों के लिए हामी भरी है. दोनों के कौंसेप्ट मुझे पसंद आए.

आपने निर्माता या निर्देशक..?

आजकल हर किसी को लगता है कि हर कलाकार की अपनी प्रोडक्शन कंपनी होनी चाहिए. पर मुझे कभी नहीं लगा कि मेरा अपना प्रोडक्शन हाउस हो. मैं अपना समय पढ़ने में या अच्छी फिल्में देखने में व्यतीत करता हूं. इसलिए मैं दूसरों की देखा देखी किसी भी दौड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहता.

मोहब्बत के दुश्मन: भाग 2

मोहब्बत के दुश्मन: भाग 1

अब आगे पढ़ें- 

आखिरी भाग

पूजा के धौलपुर से आने के बाद गांव में पंचायत भी हुई थी, जिस में दोनों के मिलने पर पाबंदी लगा दी गई थी. लेकिन प्रेमी युगल ने पंचायत का फरमान नहीं माना. घर वालों की बंदिशों के बाद भी पूजा छिपछिप कर श्यामवीर से मिलती रही.

26 जून, 2019 को श्यामवीर धौलपुर से गांव आया हुआ था. उस के छोटे भाई कान्हा ने पुलिस को बताया कि रात को भाई उस के साथ पशुओं के बाड़े के बाहर सो रहा था. रात लगभग 11 बजे उस के मोबाइल पर फोन आया. फोन सुन कर बिस्तर से उठ कर चला गया.

कान्हा के मुताबिक, उस ने सोचा कि कोई काम होगा इसलिए भाई कहीं चला गया होगा. इसलिए वह सो गया. श्यामवीर के गांव में आते ही पूजा के परिजन सतर्क हो गए थे. उन्हें लगता था कि पाबंदी के बाद भी पूजा श्यामवीर से बात करती है.

26 जून की रात 11 बजे पूजा ने ही श्यामवीर को फोन किया था. योजना के अनुसार दोनों पूजा के घर के पास चरी के एक खेत में मिले. प्रेमी को देखते ही पूजा उस के सीने से लग गई. उस ने श्यामवीर से कहा कि वह उसे अपने साथ ले जाए. अब वह घर वालों की पाबंदी बरदाश्त नहीं कर सकती.

हमारी जातियां अलग होने से मेरे परिवार वाले शुरू से ही हमारी शादी का विरोध कर रहे हैं. अब वह उस से एक पल भी दूर नहीं रह सकती. श्यामवीर ने पूजा को समझाया, ‘‘कुछ दिन की बात है, तुम्हारे बालिग होते ही मैं तुम्हें अपने साथ ले जा कर शादी कर लूंगा. फिर हम दोनों को कोई अलग नहीं कर सकेगा.’’

घटना के बाद पुलिस ने पूजा की मां मुनीश व बड़ी बहन रूमिका को हिरासत में ले लिया था. इस के बाद पुलिस ने ताबड़तोड़ दबिश दे कर पूजा के पिता मोहनलाल, भाई कमल तथा चाचा रामनिवास को भी गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों ने पुलिस के सामने प्रेमी युगल की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद पूजा ने पिता मोहनलाल ने दोनों की हत्या की वारदात की कहानी बयां करते हुए बताया कि श्यामवीर और पूजा को कई बार साथ छोड़ने को समझा चुके थे. दोनों को कई बार बात करते हुए भी पकड़ा गया. हर बार उन्हें हिदायत दे कर छोड़ दिया गया, लेकिन दोनों नहीं माने.

रात डेढ़ बजे पूजा के पिता मोहनलाल की आंखें खुलीं तो देखा, पूजा बिस्तर पर नहीं थी. घर वाले उस पर पैनी नजर रख रहे थे. घर में उस की तलाश की गई. लेकिन वह नहीं मिली.

पिता ने सोचा कि पहले की तरह श्यामवीर के साथ न चली गई हो. रात में ही घर वालों को जगा कर यह बात बताई गई. इस के बाद पूरा परिवार पूजा की तलाश में जुट गया.

ये भी पढ़ें- सेक्स स्कैंडल में नेता अधिकारी

दोनों घर से कुछ दूरी पर चरी के खेत में मिल गए तो दोनों को पकड़ लिया गया. इसी बीच पूजा की मां मुनीशा और बड़ी बहन रूमिका भी वहां आ गईं. पूजा को श्यामवीर के साथ देख क्रोधित घर वालों ने उसे पीटना शुरू कर दिया.

पूजा ने उसे बचाने की कोशिश की. घर वालों के सामने दोनों ने कहा कि हम साथ रहना चाहते हैं. साथ नहीं रहने दिया गया, तो जान दे देंगे. यह सुन कर घर वालों का खून खौलने लगा. श्यामवीर को भागने का मौका भी दिया गया, लेकिन वह अकेला जाने को तैयार नहीं था. इस के बाद दोनों की जम कर पिटाई की गई.

दोनों ने एक साथ भागने का प्रयास भी किया लेकिन उन के चंगुल से न छूट सके. पूजा के परिजनों ने श्यामवीर को लाठीडंडों से जम कर पीटा. उसे गिरा कर उस का मुंह जमीन में दबाया, कुछ लोग उस के ऊपर बैठ गए और उस की हत्या कर दी.

पूजा श्यामवीर को छोड़ने के लिए चीखती रही, लेकिन सुनसान इलाके में उस की चीख सुनने वाला कोई नहीं था. पूजा की आंखों के सामने ही उस के प्रेमी की हत्या कर दी गई. पूजा ने उन्हें हत्या करते देख लिया था. उन्होंने उस से पूछा कि वह क्या चाहती है, इस पर वह चीखने लगी, ‘‘अब मेरी दुनिया उजड़ गई है. मैं जिंदा नहीं रहना चाहती.’’

यह सुन कर बड़ी बहन रूमिका ने नाखूनों से उस का चेहरा नोंच लिया.  पिता ने बताया कि पूजा अगर दूसरी जगह शादी करने को तैयार हो जाती तो उसे छोड़ देते. उस के इनकार करने पर दुपट्टे से उस का भी गला घोंट दिया गया.

दोनों की हत्या के बाद उन के शव ठिकाने लगाने की तैयारी थी, लेकिन तब तक सुबह हो चुकी थी. इसलिए उन की लाशों को नाले के पास खेतों में डाल दिया गया.

दोनों की हत्या के बाद पिता व भाई घर में ताला लगा कर फरार हो गए. जाने से पहले कमल ने अपने फोन से रूमिका से 100 नंबर पर फोन कराया. उस ने अपना नाम रूमिका कुशवाहा बताते हुए पुलिस को जानकारी दी कि उस की बहन पूजा को गांव का ही रहने वाला श्यामवीर तोमर जबरदस्ती अपने साथ ले जा रहा था. गांव वालों ने दोनों को पकड़ लिया है और दोनों को पीट रहे हैं.

यह जानकारी दे कर वह अपने घर वालों को निर्दोष साबित करने के साथ ही पुलिस को गुमराह करना चाहती थी. जबकि हकीकत यह थी कि तब तक दोनों की हत्या की जा चुकी थी.

जिस समय पुलिस घटनास्थल पर पहुंची, उस समय श्यामवीर का शरीर ठंडा पड़ चुका था और हाथपैर अकड़ गए थे. जबकि पूजा का शरीर गरम था. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि पहले श्यामवीर की और बाद में पूजा की हत्या की गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी पूजा के घर वालों के कथन की पुष्टि हुई कि श्यामवीर की मौत पिटाई और पूजा की पिटाई व गला घोंटने से हुई थी.

प्रेमी श्यामवीर और प्रेमिका पूजा की प्रेम कहानी भले ही 2 साल की थी, लेकिन वे मौत के मुंह तक साथसाथ जाने की कसम खा चुके थे. बुधवार की रात को पूजा के घर वालों ने उन की हत्या से पहले दोनों को बैठा कर एकदूसरे का साथ छोड़ने को कहा था. जान से मारने की धमकी भी दी थी. मगर वे जुदा होने को तैयार नहीं हुए थे.

प्रेमी युगल की हत्या के मुकदमे में 6 नामजद हैं. पुलिस को आशंका है कि घटना में इस से अधिक लोग शामिल थे. घर वाले बेटी की प्रेम कहानी से अपने आप को अपमानित महसूस कर रहे थे. उन्हें लग रहा था कि बेटी ने बिरादरी में उन की नाक कटा दी है. उन के सिर पर खून सवार था.

एसपी देहात (पश्चिम) रवि कुमार ने बताया कि आरोपी पुलिस को गुमराह कर रहे थे. पहले बता रहे थे कि सिर्फ 2 ही लोग खेत में गए थे. लगातार पूछताछ में यह खुलासा हुआ कि हत्या के समय आधा दरजन से अधिक लोग खेत में मौजूद थे.

औनर किलिंग में शुक्रवार को पुलिस ने पूजा के पिता मोहनलाल, मां मुनीशा, भाई कमल, बहन रूमिका, चाचा रामनिवास को गिरफ्तार कर के न्यायालय के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

ये भी पढ़ें- मर्यादा की हद से आगे: भाग 2

पुलिस चचेरे भाई हरेंद्र और ओमवीर की तलाश कर रही है. इस दोहरे मर्डर की विवेचना थाना खैरागढ़ के प्रभारी इंसपेक्टर जसवीर सिंह कर रहे हैं. पुलिस फरार चचेरे भाइयों की सरगरमी से तलाश कर रही थी.

जातिवाद के कारण एक प्रेम कहानी ने 2 परिवार तबाह कर दिए. दोनों परिवारों में जानी दुश्मनी हो गई अलग. अब जरूरत है अंतरजातीय विवाह करने वाले जोड़ों के पक्ष में एक अभियान चलाने की. यह शुरुआत कैसे होगी, यह भी प्रेम विवाह का विरोध करने वालों को तय करना होगा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानी

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें