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आ गया जिलेटिन का शाकाहारी पर्याय

खाने की दुनिया में बहुत कुछ नया हो रहा है जो थोड़ा ऐक्साइटिंग है तो थोड़ा पृथ्वी को बचाने वाला भी. पशुओं को मारे बिना मीट बनाने की प्रक्रिया चालू हो रही है. लैबों में पैदा सैल्स को कई गुना कर के असली स्वाद वाला मीट बन सकता है. इस से लाखों पशुओं को सिर्फ मार कर मीट के लिए पैदा नहीं किया जाएगा और वे पृथ्वी पर बोझ नहीं बनेंगे. इसी तरह बिना पशुओं का दूध बनने जा रहा है, जिस का गुण और स्वाद असली दूध की तरह होगा. चिकन भी ऐसा ही होगा.

यही जिलेटिन के साथ होगा. जिलेटिन पशुओं की हड्डियों से बनता है और दवाओं के कैप्सूलों में इस्तेमाल होता है. पेट में जाने पर जिलेटिन पानी में घुल जाता है और दवा अपना काम शुरू कर देती है. जो वैजीटेरियन हैं वे कैप्सूल नहीं लेना चाहते और वैजिटेरियन कैप्सूलों की मांग बन रही है.

दवा कंपनियों का कहना है कि वैजिटेरियन कैप्सूल महंगे होंगे. फिलहाल चुनावों के कारण यह काम टल गया है. जिलेटिन खाने में डलता है और मीठी गोलियों, केकों, मार्शमैलो आदि में भराव का भी काम करता है और वसा यानी फैट की कमी को भी पूरा करता है. रबड़ की तरह का जो स्वाद बहुत सी खाने की चीजों में आता है वह जिलेटिन के कारण ही है.

जिलेटिन का फूड में इस्तेमाल असल में जिलेटिन का इस्तेमाल फूड इंडस्ट्री में फार्मा इंडस्ट्री से ज्यादा होता है.

इसे वैजिटेरियन खाने में भी डाल दिया जाता है जबकि यह सूअर, गाय, मछली की खाल व हड्डियों को गला कर ही बनाया जाता है.

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होने को तो जिलेटिन के वैजिटेरियन पर्याय हैं पर इस्तेमाल करने वाले उत्पादकों के लिए महंगे और प्रोसैस करने में मुश्किल हैं. अब जैलजेन नाम की कंपनी पशु मुक्त जिलेटिन टाइप का कैमिकल बना रही है जो खाने, दवाओं, कौस्मैटिक्स में इस्तेमाल हो सकता है. डा. निक ओजुनोव और डा. एलैक्स लोरेस्टानी मौलिक्यूलर बायोलौजिस्ट हैं और सिंथैटिक बायोलौजी पर काम करते हुए उन्होंने सोचा कि जैसा इंसुलिन के लिए हुआ कि सुअर के भगनाशय से निकली इंसुलिन की जगह कृत्रिम इंसुलिन बना लिया गया, वही काम जिलेटिन के लिए क्यों नहीं हो सकता.

पशु मुक्त जिलेटिन

जैलजेन जिस का नाम लैलटोर है अब जिलेटिन के उत्पादन को पशु मुक्त बनाने में लग गई है. ये लोग बिना पशु मारे सैल्स से बैक्टीरिया को मल्टीप्लाई कर के जिलेटिन बना रहे हैं. वैजिटेरियन उत्पादों की दुनियाभर में मांग बढ़ रही है और उस के पीछे धार्मिक कारण तो हैं ही, पर्यावरण संतुलन भी है.

पशुओं से बनने वाला मीट, स्किन, दूसरे कैमिकल प्रकृति पर भारी पड़ते हैं. पशु बेहद पानी, जगह, कैमिकल, दवाएं इस्तेमाल करते हैं और अब ये मार दिए जाते हैं. मारने के बाद बचे कूड़े के निबटान में भी बड़ी समस्याएं हैं और गरीब देशों में इस कूड़े को ऐसे ही ढेरों में फेंक दिया जाता है जहां से बदबू और बीमारियां

फैलती हैं. जो भारतीय उत्पादक इन से संपर्क करना चाहते हैं.  अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्थित यह कंपनी पर्यावरण संरक्षण में बड़ा सहयोग दे रही है.

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बहू का रिवीलिंग लिबास क्या करें सास

सुशीला का विवाह 30 साल पहले एक गांव में हुआ था. उन दिनों को याद करते हुए वह अकसर सोचती कि उस ने गांव में कितनी कठिनाइयों का सामना किया. उस की सास उसे हर समय घूंघट निकाले रखने को कहती. पढ़ीलिखी सुशीला के लिए ऐसा करना बहुत मुश्किल था. जब विवाह के कुछ समय बाद उस के पति नौकरी के सिलसिले में शहर आ गए तो उसे राहत की सांस मिली. पहले लंबा घूंघट छूटा और फिर अपने आसपास वालों की देखादेखी साड़ी की जगह सूट पहनना शुरू हो गया. सूट उसे साड़ी के मुकाबले आरामदायक और सुविधाजनक लगता. कुछ समय बाद सूट से दुपट्टा भी गायब हो गया.

अब जब कभी उस की सास गांव से उस के पास रहने आती तो वह उस के कपड़ों को देख कर खूब मुंह बनाती और बारबार ताने मारती. ‘‘क्या जमाना आ गया है. बहुओं ने लाजशरम बिलकुल छोड़ रखी है… नंगे सिर, बिना दुपट्टे परकटी बन घूम रही है. हमारा पल्लू आज भी सिर से नीचे नहीं गया. मेरी सास मुझे यों देखती तो मार ही डालती.’’

ऐसी तानाकशी से दुखी सुशीला मुंह बंद कर के रह जाती और सास के वापस जाने के दिन गिनती. उस वक्त सुशीला सोचा करती कि वह अपनी बहू के साथ कभी ऐसा नहीं करेगी.

धीरेधीरे समय बदला. सुशीला के बच्चे बड़े हुए. उस की बेटी जींस पहनती तो उसे बुरा नहीं लगता. उसे लगता कि वह समय के साथ बदल गई है और अपनी सास की तरह दकियानूसी नहीं है. उस के बेटे की मुंबई में अच्छी नौकरी लगी. वहीं एक सहकर्मी से प्यार हुआ और दोनों ने परिवार की रजामंदी से शादी कर ली.

सुशीला के पति का देहांत हो गया था, इसलिए वह भी बेटेबहू के साथ मुंबई रहने आ गई. शादी के शुरूशुरू में बहू ने एक आदर्श बहू वाले पारंपरिक कपड़े पहने, मगर धीरेधीरे वह उन्हीं पुराने सुविधाजनक कपड़ों में रहने लगी जो शादी से पहले पहना करती थी जैसे कैप्री, शौर्ट्स, विदाउट स्लीव और औफ शोल्डर टौप, मिडीज आदि. मगर सुशीला को बहू का ऐसा रिवीलिंग पहनावा अखरने लगा.

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वह बहू को अकसर टोकने लगी, ‘‘शादी के बाद भी कोई ऐसे कपड़े पहनता है भला?’’

एक दिन तो हद हो गई जब बहूबेटे दोनों एक पार्टी में जा रहे थे. बहू ने औफशौल्डर टौप और स्कर्ट पहन लिया. उस दिन सुशीला भड़क उठी, ‘‘तुम लोगों के ज्यादा पर निकल आए हैं… बिलकुल नंगापन मचा रखा है. मैं भी कभी बहू थी, मगर हमारी क्या मजाल थी जो अपने सासससुर के सामने ऐसे कपड़े पहन लेते. मेरी सास मुझे ऐसा देखती तो मार ही डालती.’’

यह सुन कर सुशीला का बेटा बोला, ‘‘अरे मम्मी यह तो सेम वही डायलौग है न जो दादी आप को सुनाया करती थीं. आप ने यह हमें कितनी बार बताया है.’’

यह सुन कर सुशीला को एक झटका लगा कि अरे हां, सही तो है मेरी सास मुझे सूट पहनने पर ऐसे ही तो ताने मारा करती थी. मगर सूट अलग बात थी. उस में शरीर ढका रहता है. मगर बहू के कपड़े… इन्हें कैसे बरदाश्त करूं?

जो सुशीला की स्थिति है, वही आजकल की बहुत सी सासों की है. उन की सोच में बदलाव तो आ रहे हैं, मगर उतनी तेजी से नहीं जितनी तेजी से नई पीढ़ी आगे बढ़ रही है. दोनों पीढि़यों की गति में बहुत अंतर है. सामान्यतया बहू जब भी कुछ ऐसा पहनती है जो सास को अशोभनीय लगता है तो वह तुरंत मुंह बनाते हुए अपने जमाने में पहुंच जाती है और कहती है कि अरे, हमारे जमाने में तो ऐसा नहीं होता था. उन की इस प्रतिक्रिया के कारण सासबहू का रिश्ता तनावपूर्ण रहता है और बहू सास से अलग रहने के मौके ढूंढ़ती है. ऐसा न हो, इस के लिए कुछ बातों को समझना जरूरी है.

बदलाव को स्वीकारें

एक बहुत प्रसिद्ध कहावत है कि परिवर्तन संसार का नियम है. संसार में रोज कुछ न कुछ परिवर्तन हो रहे हैं. जलवायु में, सुविधाओं में, तकनीक में, रहनसहन में, रिश्तों में… हर जगह कुछ भी पहले जैसा नहीं है और न ही हो सकता है. यही बात पहनावे की भी है. पीढ़ीदरपीढ़ी लोगों के खासकर महिलाओं के पहनावे में परिवर्तन होता आ रहा है और आगे भी होता रहेगा. समय के बदलते दौर की नब्ज पकड़ें और उसे स्वीकार कर अपनी सोच को लचीला बनाएं.

रिवीलिंग का यदि शाब्दिक अर्थ पकड़ें तो वह ‘राहत’ या ‘सुविधाजनक’ होता है. सुविधा की परिभाषा सब के लिए अलगअलग है. सुशीला की सास को उस का सूट पहनना पसंद नहीं था जबकि वह उस के लिए सुविधाजनक था. इसी तरह सुशीला को बहू का कैप्री, स्लीवलैस टौप, मिडीज पहनना पसंद नहीं है, जबकि बहू को ये ड्रैस सुविधाजनक लगती हैं. सास यानी सुशीला को समझना चाहिए कि बहू अपनी सुविधानुसार कपड़े पहनेगी उन की सोच के हिसाब से नहीं. और यदि दबाव में पहन भी लिए तो यह ज्यादा दिन तक नहीं चलेगा. बेहतर है सुशीला अपने दृष्टिकोण में बदलाव करे ताकि दोनों के बीच फालतू का तनाव न पैदा हो.

कोई भी पहनावा अच्छा या बुरा नहीं होता. उसे अच्छा या बुरा हमारी सोच बनाती है. हम उसे जिस नजरिए से देख रहे हैं वह नजरिया उस पहनावे की परिभाषा तय करता है. जैसे तीखा खाने वाले के सामने सादा भोजन रख दिया जाए तो वह बकवास बताएगा और सादा खाने वाले के सामने तीखा भोजन रख दिया जाए तो वह उस की बुराई करेगा. जरा सोचिए, क्या आज आप स्वयं अपनी पुरानी पीढ़ी के पहनावे को पहन रहे हैं? पुरुषों की धोतियां, महिलाओं के घूंघट लगभग गायब हो चुके हैं. इसी तरह आजकल की बहुएं अपने समय के अनुसार कपड़े पहन रही हैं.

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न बनें टिपिकल सास

जब कोई मां अपने पढ़ेलिखे बेटे के लिए बहू ढूंढ़ती है तो उस की चाहत होती है उस की बहू भी आधुनिक और पढ़ीलिखी हो जो उस के बेटे के साथ कदम से कदम मिला कर चल सके. मगर जब रहनसहन और पहनावे की बात आती है तो वह वही टिपिकल सास बन जाती है, जो चाहती है उस की बहू उस की सोच के हिसाब से चले. जो उसे अच्छा नहीं लगता वह न पहने. मगर ऐसा नहीं होता. आप को यह समझना जरूरी है कि आप की बहू एक आत्मनिर्भर व्यक्तित्व है. उस की अपनी सोच, अपनी पसंदनापसंद है. वह

आप के आदर की वजह से आप की बात मान सकती है, मगर आप अपनी सोच उस पर थोप नहीं सकतीं.

यदि आप को बहू की रिवीलिंग ड्रैस पर कोई आपत्ति है और आप यह बात उस तक पहुंचाना चाहती हैं तो इस तरह से कहें कि उसे बुरा भी न लगे और आप भी अपनी बात कह पाएं. लेकिन क्या पहनना है क्या नहीं, इस का निर्णय उसी पर छोड़ देना चाहिए.

रमा की बहू एक फैमिली फंक्शन में जाने के लिए औफशौल्डर गाउन पहन कर तैयार हो रही थी. जहां उन्हें जाना था वहां का माहौल रूढि़वादी था. रमा ने जब उसे देखा तो पहले उस की बहुत तारीफ करते हुए बोलीं, ‘‘अरे, वाह बहू, आज तो तुम गजब ढा रही हो. बहुत ही सुंदर लग रही हो, मगर आज जहां यह पार्टी है उन लोगों का नजरिया थोड़ा पुराना है. हो सकता है उन्हें तुम्हारा यह आधुनिक पहनावा अच्छा न लगे, वे तुम पर कुछ कमैंट करें. और मेरी प्यारी बहू के लिए कोई उलटासीधा बोलेगा तो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा, इसलिए मैं चाहूंगी कि तुम कोई पारंपरिक डै्रस पहन लो. लेकिन

मैं तुम्हें फोर्स नहीं करूंगी, जैसा तुम्हें सही लगे तुम करो.’’

बहू ने सास की प्यार से कही गई बात को सुना और तुरंत चेंज करने के लिए तैयार हो गई.

बहू को बदलने के बजाय सास ही जमाने की नब्ज पकड़ कर अपने पहनावे में बदलाव ले आए. टिपटौप बहू के साथ वह भी आधुनिक बन जाए. वह बहू के साथ जींसशर्ट पहन कर कदम से कदम मिला कर चले और 2 पीढि़यों का भेद ही मिटा दे. लगेगा जैसे उम्र आगे बढ़ने के बजाय पीछे जा रही है और आप स्वयं को आउटडेटेड भी महसूस नहीं करेगी.

आजकल की लड़कियां आजकल चलने वाले कपड़े ही पहनेंगी. सिर्फ इसलिए कि उन की शादी आप के बेटे से हो गई, उन की सोच, उन का व्यक्तित्व और पसंद बदल नहीं जाएगी. बेहतर है, आप उन्हें अपना पहनावा चुनने की और पहनने की आजादी दें. उन पर कोई दबाव न बनाएं. यदि आप को उन का पहनावा पसंद आ रहा है तो खुल कर तारीफ करें और यदि नहीं आ रहा है तो मुंह बनाने या ताने मारने जैसी छोटी हरकतें तो बिलकुल न करें. वह आप की बहू है, उसे उस की पसंदनापसंद के साथ पूरे प्यार से स्वीकार करें. यह कदम आप के रिश्तों में मिठास घोल देगा.

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ऐसे करें तिल की खेती

खरीफ का मौसम तिलहन की खेती के लिए विशेष महत्त्व रखता है. इस में मूंगफली, सोयाबीन व तिल की खेती का खास स्थान है. इस सीजन में बोई जाने वाली तिलहन फसलों का खाने के तेल के अलावा और भी कई तरीकों से प्रयोग किया जाता है. मूंगफली को भून कर खाने के अलावा या उस के दानों का विभिन्न मिठाइयों में प्रयोग किया जाता है. इसी तरह सोयाबीन को सब्जी या आटे के रूप में प्रयोग किया जाता है.

लेकिन इन सभी तिलहन वाली फसलों में तिल की खेती का खास महत्त्व है. तिल से न केवल तेल निकाला जाता है, बल्कि इस से भी कई तरह की मिठाइयां बनाई जाती हैं.

तिल की 2 प्रजातियां होती हैं, काला तिल व सफेद तिल. तिल का प्रयोग विभिन्न त्योहारों में भी किया जाता है. यह खासा महंगा भी होता है.

खरीफ सीजन की सब से खास तिलहनी फसल के रूप में तिल की बोआई बलुई, बलुई दोमट व मैदानी इलाकों की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है. उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों में तिल की बोआई अकसर सहफसली खेती के रूप में अरहर, ज्वार या बाजरा के साथ भी की जाती है.

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तिल की बोआई से पहले खेत की 2 बार जुताई कल्टीवेटर या रोटावेटर से कर देनी चाहिए, जिस से खेत के खरपतवार नष्ट हो जाएं. इस के बाद जून के दूसरे सप्ताह में जुताई किए गए खेत में गोबर की खाद मिट्टी में मिला देनी चाहिए. फिर जून के आखिरी हफ्ते से जुलाई के आखिरी हफ्ते के बीच में तिल के

3 से 4 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से 200 ग्राम कार्बंडाजिम या 50 ग्राम थीरम से उपचारित कर के बोआई करनी चाहिए. बोआई के समय यह ध्यान देना चाहिए कि बीज ज्यादा गहराई में न जाने पाए.

उर्वरकों का इस्तेमाल : तिल की खेती में उर्वरकों का इस्तेमाल करने से पहले किसानों को मिट्टी जांच जरूर करा लेनी चाहिए. इस से फसल में खादों की संतुलित मात्रा का इस्तेमाल करने में आसानी होती है.

वैसे, तिल की बोआई के समय 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 15 किलोग्राम फास्फोरस व 12.50 किलोग्राम गंधक का प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. निराईगुड़ाई के समय 12.50 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिए. अगर तिल की खेती राकड (बंजर) जमीन में की गई हो तो

15 किलोग्राम पोटाश की मात्रा का प्रयोग भी प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए. निराईगुड़ाई व सिंचाई : तिल की फसल में खरपतवार नियंत्रण बेहद जरूरी है, क्योंकि खरपतवार होने से तिल का उत्पादन घट जाता?है. बोआई के 20 दिनों के भीतर पहली निराईगुड़ाई करनी चाहिए. इस के बाद 35 दिनों के भीतर दूसरी बार फसल की निराईगुड़ाई करनी चाहिए. फसल में ज्यादा खरपतवार होने पर एलाक्लोर 50 ईसी का 1.25 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के 3 दिनों के भीतर छिड़काव कर देना चाहिए.

चूंकि तिल बारिश की फसल है इसलिए इसे सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती?है. अगर तिल की फसल में 50 फीसदी तक फली आ गई हों और बारिश न हुई हो तो फसल की 1 सिंचाई कर देनी चाहिए.

फसल सुरक्षा: बरसात में तिल की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट के रूप में पत्ती लपेटक व फलीबेधक का प्रकोप ज्यादा होता है. तिल में सूंडि़यों के रूप में लगने वाले कीट पत्तियों में जाली बना कर पत्तियों व फलियों को खा जाते हैं. ऐसे में क्पिनालफास 25 ईजी का 1.5 लिटर प्रति हेक्टेयर या मिथाइल पैराथियान के 2 फीसदी चूर्ण का 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

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तिल में लगने वाले रोगों में फाइलोडी रोग खास है. इस रोग से फूल गुच्छेदार हो कर खराब हो जाते हैं. इस रोग का कारण फुदका कीट होता है. तिल की फसल को फाइलोडी रोग से बचाने के लिए बोआई 10 जुलाई से 20 जुलाई के बीच करना ज्यादा सही होता है. फाइलोडी रोग से बचने के लिए फोरेट 10 जी को 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में बोआई के समय ही मिला देना चाहिए. फसल में इस रोग का प्रकोप हो जाने पर मिथाइल ओ डिमेटान 25 ईसी का 1 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

तिल की फसल में फाइटोफ्थेरा रोग लगने से पत्तियां तेजी से झुलस जाती हैं, जिस का सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है. इस रोग की रोकथाम के लिए 3 किलोग्राम कौपर औक्सीक्लोराइड या 2.5 किलोग्राम मैंकोजेब का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

फसल की कटाई व भंडारण : तिल की फसल की कटाई का समय आमतौर पर अक्तूबर से नवंबर माह के बीच होता है. जब पौधों की पत्तियां सूख कर गिर जाएं और फसल की कलियां सूखने लगें, तब फसल की कटाई कर लेनी चाहिए और फलियों को डंडे से पीट कर दानों को साफ कर अलग कर लेना चाहिए. फिर अलग किए गए दानों को 4 घंटे धूप में सुखा कर बोरे में भर कर सूखी जगह पर भंडारण करना चाहिए.

लाभ : तिल का औसत उत्पादन 8-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पाया गया है, जिस में 1 हेक्टेयर खेत में तकरीबन 6,000 से 8,000 रुपए की लागत आती है. इस आधार पर वर्तमान बाजार भाव को देखते हुए 80 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से औसतन 10 क्विंटल से 80,000 रुपए की आमदनी होती है.

अगर लागत को निकाल दिया जाए तो 4 माह की फसल से किसान को 72,000 रुपए का शुद्ध लाभ होता है इसलिए कोई भी किसान तिल की खेती को नकदी फसल के रूप में कर के अच्छा मुनाफा कमा सकता है.

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सेहतमंद रहना है तो लाइफस्टाइल बदलें

आज का युवा औसतन पूरे दिन में लगभग दस से चौदह घंटे मोबाइल फोन, टीवी, कम्प्यूटर, टैबलेट जैसे इलेक्ट्रौनिक डिवाइस के साथ समय बिताता है. इन इलेक्ट्रौनिक चीजों के लगातार इस्तेमाल से सेहत पर बुरा असर पड़ता है. मानसिक तनाव बढ़ने से कई रोग शरीर को घेर लेते हैं. यही वजह है कि आजकल युवाओं में तनाव, डिप्रेशन, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां बढ़ रही है. डौक्टर कहते हैं अगर इलेक्ट्रानिक चीजों के साथ बिताए जा रहे समय को कसरत करने, पढ़ने लिखने, म्यूजिक सुनने जैसी चीजों में खर्च किया जाए तो इससे आपका दिन व्यर्थ नहीं जाएगा और सेहत पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा. सुखी और स्वस्थ रहने के लिए अपने लाइफस्टाइल में थोड़ा सा बदलाव लाएं और देखें कि नतीजे कितने सुखद होते हैं.

लंबी वाक पर जाएं

आप रोज के कई घंटे अपनी सीट पर बैठकर कम्प्यूटर के सामने बिताते हैं, इससे शरीर तो सुस्त पड़ता ही है, साथ ही दिमाग पर भी तनाव बढ़ जाता है. इसलिए ये जरूरी है कि काम से अलग रोज कुछ समय आप वाकिंग को दें. पैदल चलने से हृदय सुचारू रूप से काम करता है जिससे ज्यादा खून और औक्सीजन दिमाग सहित पूरे शरीर में पहुंचता है और आप तरोताजा फील करते हैं.

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संगीत सुनें

मोबाइल और टीवी पर समय व्यर्थ करने से बेहतर है कि आप वह टाइम म्यूजिक सुनने में बिताएं. एक अध्ययन के मुताबिक संगीत सभी तरह के कामों को बेहतर बना देता है. संगीत की धुन दिमाग में तरंगे पैदा करती है जो आपके मूड को ठीक करती है, आपको ऊर्जा देती है, सकारात्मकता और एकाग्रता बढ़ाती है.

एक काम पूरा होने के बाद दूसरा शुरू करें

दिन का सदुपयोग करने का एक तरीका यह भी है कि आप तब तक कोई दूसरा काम शुरू न करें जब तक पहला काम खत्म न हो जाए. एक ही समय पर कई अधूरे टास्क लेने से समय और क्षमता की बर्बादी ही होती है. इसके लिए सबसे बेहतर तरीका है कि रोज अपने कार्यों की लिस्ट बनाएं, जो सबसे मुश्किल से शुरू होकर सबसे आसान पर खत्म होती हो.

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जल्दी उठना शुरू करें

सुबह जल्दी उठना दिन को बेहतर बनाने का सबसे अच्छा उपाय है. इससे आप अपने पूरे दिन को प्लान कर सकते हैं. अपने वर्किंग आवर्स शुरू होने से दो-तीन घंटा पहले उठने से पूरा दिन व्यवस्थित रहता है और किसी भी काम को लेकर हड़बड़ी नहीं होती है. इससे आप हमेशा तनावमुक्त बने रहते हैं.

न कहना सीखें

विशेषज्ञों का माना है कि अगर आप औफिस में हर काम को ‘हां’  कहकर उसे करने की कोशिश करेंगे तो सिर्फ अपना बोझ ही बढ़ाएंगे. इनकार करना, आपकी कमजोरी नहीं दर्शाता है, बल्कि यह अपने काम को प्राथमिकता देने की प्रक्रिया है. इससे आप सही समय पर सही मौकों को चुनते हैं. इसलिए बौस की नजर में अच्छा बनने के लिए फालतू के कामों के लिए ‘हां’  कहने से बचें और वह काम करें जो ज्यादा जरूरी हैं.

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GARBA SPECIAL 2019: देर तक टिकेगा आपका मेकअप

अगर आप गरबा में जाने वाली हैं तो आपको अपने मेकअप का खास ख्याल रखना होगा. क्योंकि गरबा में देर रात तक आपको डांडिया भी तो खेलनी होगी. बेशक आप चाहती होंगी कि आपका लुक फ्रेश रहे और आपके चेहरे पर निखार रहे. आज हम आपको बताते हैं  गरबा में जाने के लिए आप कैसे मेकअप करें.

गरबा में जाने के लिए ऐसे करें मेकअप

  1. चेहरे को फ्रेश और नेचुरल लुक देने के लिए सबसे पहले कंसीलर का इस्‍तेमाल करें. फाउंडेशन से पहले चेहरे पर कंसीलर लगाने से मेकअप लंबे समय तक चलता है और चेहरे पर फाउंडेशन अच्छी तरह से लगता है.

2. कंसीलर लगाने के बाद अपनी स्किन के कलर का फाउंडेशन अप्लाई करें. फाउंडेशन लगाने के लिए ब्रश का इस्तेमाल करें.

3. इसके बाद चेहरे पर पाउडर लगाएं. इससे आपका फाउंडेशन अच्छी तरह सेट हो जाएगा.

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4. आपकी आंखें आपके चेहरे की पहचान होती है, इसलिए इनका मेकअप करते समय खास ख्‍याल रखें. सबसे पहले लाइट कलर के फाउंडेशन से बेस तैयार कर लें. इसके बाद हल्‍के ग्रे कलर की आईलाइनर पेंसिल से ऊपर से नीचे की ओर लाइनर लगाएं. बाद में इसे उंगलियों की सहायता से स्‍मज कर दें. इससे स्‍मोकी लुक आ जाता है. इसके बाद मसकारा लगाएं.

5. अपने लिप्‍स को सुंदर और बोल्‍ड दिखाने के लिए सबसे पहले लिप्‍स पर कंसीलर लगाएं. उसके बाद जिस कलर की लिपस्टिक आप लगाने जा रही हैं, उसी कलर के लिपलाइनर से होठों की आउटलाइनिंग करें. ऐसा करने से आपके लिप्‍स बहुत आकर्षक लगेंगे और आपकी लिपस्टिक लंबे समय तक टिकी रहेगी.

6. अगर चेहरे की खूबसूरती को निखारना चाहती हैं, तो लिप्‍स पर डार्क कलर की लिपस्टिक लगाएं और चेहरे का मेकअप हल्‍का रखें.

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अजब गजब: चूहा पकड़ने का संदेश मिलेगा आपके फोन पर

आपको अपने स्‍मार्टफोन पर चूहा पकड़ने का संदेश देखने को मिल सकता है. एक कंपनी के कुछ तेइंजीनियर्स ने चूहा पकड़ने की एक ऐसी मशीन बना डाली है, जो चूहा पकड़ने के फौरन बाद आपके स्‍मार्टफोन पर संदेश भेज देगी.

अब वाईफाई का कुछ ज्‍यादा ही इस्‍तेमाल होने लगा है, तभी तो ये कंपनी वाईफाई से संबद्ध चूहा पकड़ने की मशीन लेकर बाजार में आ गई है.  हाल ही में इस कंपनी ने एक ऐसा माउस ट्रैप किट खोजा है, जिसमें लगी है खास वाईफाई डिवाइस, जो ठीक उसी समय अपने मालिक के स्‍मार्टफोन पर एक संदेश भेजती है, जैसे ही कोई चूहा इस ट्रैप में फंस जाता है. अगर आपके भी घर में चूहों ने आतंक फैला रखा है तो आप भी इस माउस ट्रैप का इस्तेमाल कर सकते हैं.

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इस माउस ट्रैप टूल में लगी है एक मोशन सेंसर डिवाइस जो चूहे और मशीन दोनों की गतिविधि ट्रैक करती है. सबसे मजेदार बात तो यह है कि इस माउस ट्रैप का मोशन सेंसर बिल्‍कुल चीज जैसा नजर आता है. इसीलिए हर चूहा खुश हो जाता है और उसे खाने के लिए दौड़ पड़ता है, लेकिन जैसे ही वो इस ट्रैप में फंसता है, वैसे ही यह मोशन सेंसर संब‍ंधित व्‍यक्ति के स्‍मार्टफोन ऐप पर एक नोटिफिकेशन भेजता है कि आपका एक शिकार पकड़ा गया है.

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क्यों फूट फूट कर रोईं राखी सावंत, वायरल हुआ ये वीडियो

कौन्ट्रोवर्सी क्वीन और एक्ट्रेस राखी सावंत पिछले काफी समय से अपनी शादी को लेकर सुर्खियों में बनी हुई हैं. अब एक बार फिर से राखी ने एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया है. जी हां, इस वीडियो ने सबको हैरान कर दिया है. राखी के इस वीडियो को देखने के बाद ये अंदाजा लगाया जा रहा है कि राखी की शादीशुदा जिंदगी में कुछ परेशानी आ गई है.

वीडियो को देखने के बाद यूजर्स कमेंट कर रहे हैं कि क्या उनकी शादी खतरे में हैं या फिर एक बार राखी न्यूज में बने रहने के लिए ऐसा कर रही हैं. इसके साथ ही कुछ लोगों का कहना है कि ये राखी का पब्लिसी स्टंट है.

आपको राखी के इस वीडियो के बारे में बताते है, इस वीडियो में राखी बुरी तरह से रोती और परेशान दिखाई दे रही हैं. इसके साथ ही वीडियो में आप देख सकते हैं कि राखी कहती हैं,  तुम जो बोलोगे मैं करूंगी जो बोलोगे सुनूंगी, लेकिन हमें इग्नोर मत करो यार. मैं नहीं रह सकती हूं. आपको मेरे ऊपर जरा भी तरस नहीं आता है ना. मैं आपको बहुत प्यार करती हूं.

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इसके साथ ही राखी ने कुछ और वीडियोज भी पोस्ट किए हैं जिनमें वो अपने पति रितेश को लेकर बातें करती दिखाई दे रही हैं. आपको बता दें कि कुछ ही समय पहले राखी ने सोशल मीडिया पर ब्राइडल लुक में अपनी तस्वीरें पोस्ट की थीं. पहले तो वायरल होने के बाद राखी ने कहा है कि एक फोटोशूट था. लेकिन बाद में जब राखी के चूड़े पर लिखा रितेश नाम भी सामने आया तो राखी ने कुबूल किया कि उन्होंने बिजनेसमैन रितेश के साथ शादी कर ली है जो विदेश में रहते हैं. राखी के काम की बात करें तो राखी हाल ही में रिलीज हुए गाने ‘छप्पन छुरी’ में जबरदस्त डांस करती दिखाई दी हैं.

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भारती सिंह का मोटापा बना पहचान

भारती सिंह ने बतौर एक प्रतियोगी अपने करियर की शुरुआत की थी और आज वो एक होस्ट और जज के रूप में कार्य कर रही हैं. किसी भी मध्यम परिवार की लड़की के लिए इस ऊंचाई तक पहुंचना बहुत ही संघर्ष भरा रहा. लेकिन भारती सिंह ने अपनी मेहनत के बल पर आज टी.वी की दुनिया में एक ऐसा  मुकाम हासिल किया. जहां पर पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं. आज उनका नाम भारत के मशहूर कौमेडियन में गिना जाता है.

मोटापा बना पहचान

क्या आपको पता है. आज सबको हंसाने वाली भारती कभी मोटापे की वजह से रात भर रोया करती थी. आज वो अपनी कामयाबी का श्रेय अपनी मां के साथ मोटापे को भी देती है. आज उनकी कौमेडी के साथ मोटापा भी उनकी खास पहचान बन गया है.

एकमात्र सफल महिला कौमेडियन

अगर आज बात की जाए महिला स्टैंड अप कौमेडियन की तो सभी की जुबां पर सिर्फ भारती सिंह का ही नाम आता है. 2016 में फ़ोर्ब्स मैगजीन ने टौप 100 कौमेडियंस की लिस्ट जारी की थी, जिसमें भारती सिंह को 98वीं रेंक मिली थी. भारती सिंह हमारे देश की प्रतिभाशाली स्टैंड-अप कौमेडियन में से एक हैं. भारती ने अपने करियर में एक लंबा सफर तय किया है. इन्होने बहुत से सफल टीवी शो और बौलीवुड/पंजाबी फिल्मों में कौमेडी के साथ अभिनय किया है.

कम उम्र में उठा पिता का साया

भारती सिंह का जन्म मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था, तीन भाई-बहन हैं. भारती सिंह जब 2 साल की थी तब उनके पिता की मौत हो गई थी. पिताजी से जुडी यादें उनके जहन में नहीं है. मां ने दोबारा शादी करने की बजाय बच्चों के लिए स्ट्रगल का रास्ता चुना. भारती सिंह का बचपन गरीबी में बीता.

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प्रतिभाशाली रहीं

भारती सिंह कौमेडियन होने से पहले कालेज टाइम में राइफल शूटिंग गोल्ड मेडलिस्ट भी थी. स्कूल और कौलेज में भारती सिंह शूटिंग और तीरंदाजी किया करती थी. उनका सपना था कि वो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करें, लेकिन उनका परिवार कोचिंग सहित अन्य खर्चे उठा पाने में असमर्थ था. हालांकि, पंजाब के लिए भारती ने कई मैडल जीते, जिनकी वजह से एजुकेशन फ्री हो गई. भारती सिंह ने पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी से हिस्ट्री में एमए किया.

ऐसे हासिल किया मुकाम

बचपन में ही पिता का साया सिर से उठने से परिवार में आर्थिक तंगी की कमी थी, इसलिए भारती सिंह ने एक्टिंग कैरियर को चुना. जब करियर बनाने के लिए अमृतसर से मुंबई आई तो उनके रिश्तेदार शक करते थे. जब वो स्टेज पर कौमेडी करती तो वे मजाक बनाते थे. लेकिन अब वही लोग अपने बच्चों का मुंबई में करियर बनाने के लिए उनसे सलाह लेते हैं. भारती सिंह के करियर ने टीवी शो ‘ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज’ सीजन-4 से पकड़ी, इस शो में भर्ती रनर अप रही. इसके बाद भारती सिंह ने स्टेज शो के अलावा बहुत से कौमेडी शो किए. वर्तमान में खतरा-खतरा-खतरा शो कर रही हैं जिसमें उनके पति हर्ष भी उनके साथ है. खतरों के खिलाडी सीजन-9 में भी दोनों ने भाग लिया था.

भारती सिंह के करियर की शुरुआत

साल 2008 में भारती सिंह ने अपने करियर की शुरुआत बतौर एक कौमेडियन ही की थी. बतौर एक प्रतियोगी इन्होंने कौमेडी शो ‘द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज’ में भाग लिया था. इस रियलिटी शो में भारती ने अपनी कौमेडी के जरिए सबको हंसाया था. हालांकि की वो इस शो की विजता नहीं रही थी. लेकिन इस शो ने उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल दी थी. ये शो उनके आगे के करियर के लिए काफी मददगार साबित हुआ था. ‘द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज’ शो को करने के बाद भारती ने कौमेडी सर्कस में भाग लिया था और इस शो में भी उनकी कौमेडी की खूब तारीफ की गई थी. इस शो के हर सीजन में भारती को देखा गया था और भारती काफी लंबे समय तक इस शो का भाग बनी रही थी.

डांस शो का भी हिस्सा रहीं

कौमेडी सर्कस में काम करने के बाद भारती ने साल 2012 में झलक दिखला जा के पांचवे सीजन में बतौर एक प्रतियोगी भाग लिया था. इस शो में भारती को डांस करते हुए देखा गया था. हालांकि इस शो में भारती विजेता नहीं रही थी. लेकिन उनके डांस को लोगों द्वारा काफी पसंद किया गया था. इस शो के बाद भारती सिंह ने एक और डांस शो में हिस्सा लिया था और उस शो का नाम नच बलिए था.

भारती सिंह का प्यार और शादी का सफर

भारती सिंह ने साल 2017 में अपने बौयफ्रेंड हर्ष लिंबियाशिया के साथ विवाह किया. भारती सिंह के पति हर्ष लिंबियाशिया गुजराती परिवार से होने के साथ टी.वी की दुनिया से है और वो एक लेखक के रूप में काम कर रहे है वो उम्र में भारती से छोटे हैं. इन दोनों की मुलाकात एक प्रसिद्ध कॉमेडी शो के दौरान हुई थी और हर्ष इस शो में बतौर एक लेखक के रूप में कार्य करते थे. इस कॉमेडी शो के दौरान शुरू हुई इनकी दोस्ती  कब प्यार में बदल गई और इन दोनों ने सगाई कर ली. सगाई करने के कुछ महीनों के बाद  दोनों ने गोवा में इन्होंने शादी भी कर ली थी.

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इंटरव्यू: कहीं आपके रिजेक्शन का कारण सौफ्ट स्किल्स तो नहीं ?

हर विधार्थी यही सोचता है की पढ़ाई खत्म होते  ही हमारी जौब लग जाये लेकिन कभी कभी अच्छी क्वालिफिक्शन होने के बावजूद हमें इंटरव्यू के दौरान रिजेक्शन का सामना करना पड़ता है जिसका कारण हमारी डिग्री ,कौलेज या इंस्टिट्यूट मे कमी नहीं, बल्कि कमी होती है हमारे अंदर सौफ्ट स्किल्स की . दरअसल जौब के लिये आपके सौफ्ट स्किल्स को भी परखा जाता है. जब आप इंटरव्यू के लिये जाते है तो सामने बैठे इंटरव्यू लेने वालो में से एक आपके  हाव भाव, बैठने का तरीका, कमरे  में प्रवेश  और  निकास का तरीका, बोलने के तरीके पर भी गौर करता है .  आपकी प्रोफेशनल  व पर्सनल लाइफ दोनों के लिए जरूरी है की आपके अंदर ये सौफ्ट स्किल्स हों .

बौडी लैंग्वेज

आपकी बौडी लैंग्वेज से आपके व्यक्तित्व का पता चलता है अधिकतर सभी लोग बौडी लैंग्वेज के सही तरीके के बारे मे जानते हैं लेकिन अपनाते कुछ लोग ही है. आपकी अच्छी बौडी लैंग्वेज  दूसरे व्यक्ति को अपनी और सकारात्मक रूप से आकर्षित करती है .

आई कांटेक्ट

हमारी आंखें बोलती है ये तो सभी ने सुना होगा, बहुतों ने आजमाया भी होगा. जब भी आप किसी से बात  करते हैं तो जरूरी है की सामने वाले से आंख मिला कर बात करे. ये आपके अंदर के  आत्म विश्वास को  झलकाता  है और सामने वाले  को प्रभावित भी  करता है .

कम्युनिकेशन स्किल

हमारे संवाद का  तरीका हमारे करियर व हमारी निजी ज़िंदगी मे बहुत अहमियत रखता है .फिर वो चाहे आपके सहकर्मी हो या वरिष्ठ अधिकारी आपके संवाद से ही आपके व्यक्तित्व का पता चलता  है किस जगह किस टोन मे बात करनी है, किस तरह की बात करनी है, व आपके शब्दों  का उच्चारण सही है या नहीं इस बात का  खास ध्यान रखें . और अगर आप सही है तो अपने पक्ष को पूरे आत्म विश्वास से दुसरों के सामने रखे. यह आपकी सकारात्मक छवि को दर्शाता है .

ध्यान से सुने

जब आप किसी से बात करते हैं तो उसकी बातों को ध्यान से सुने, जिससे की  आप उनकी बात का जवाब दें  व अपने विचार उनके सामने रख सकें और  आप उनसे दोबारा बात कर सके.

मोटिवेटर

अगर आप  घर मे हो या औफिस मे अपने सहकर्मियों को हमेशा प्रोत्साहित करें और उनके सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिये उन्हें प्रेरित करें.

अगर आप दूसरों के साथ सकरात्मक रवैया रखते  हैं तो हर कोई आप से बात करने के लिये उत्साहित होगा व आपसे बात कर के उनका मन हल्का होगा. और हो सकता है कि आप उनकी परेशानी को सुलझाने मे मददगार बन सकें .

डेलिगेशन (काम बाटें )

अगर आप एक फार्म मे  उच्च पद पर है या आपके काम के साथ कई और लोग जुड़े हुए है तो जरूरी है कि आप काम को अकेले न निबटाने की सोचे बल्कि अपने सहकर्मियों मे बाटें, जिससे की सभी मिल कर काम भी कर सकें और वो भी कुछ नया सिख पाएं . इससे  एकता भी बनी रहती है व आप भी दूसरे काम पर  ध्यान दे सकते हैं.

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महापुरुष : भाग 2

राजकुमार ने तब गौतम से अपने मन की इच्छा जाहिर की. वे उमा का हाथ गौतम के हाथ में थमाने की सोच रहे थे. उन्होंने कहा था कि अगर गौतम चाहे तो वे उस के मातापिता से बात करने के लिए दिल्ली जाने को तैयार थे.

सुन कर गौतम ने बस यही कहा, ‘आप के घर नाता जोड़ कर मैं अपने जीवन को धन्य समझूंगा. पिताजी और माताजी की यही जिद है कि जब तक मेरी छोटी बहन के हाथ पीले नहीं कर देंगे, तब तक मेरी शादी की सोचेंगे भी नहीं,’ उस ने बात को टालने के लिए कहा, ‘वैसे मेरी हार्दिक इच्छा है कि विदेश जा कर ऊंची शिक्षा प्राप्त करूं, पर आप तो जानते ही हैं कि मेरे एम.एससी. में इतने अच्छे अंक तो आए नहीं कि आर्थिक सहायता मिल जाए.’

‘तुम ने कहा क्यों नहीं. मेरा एक जिगरी दोस्त न्यूयार्क में प्रोफेसर है. अगर मैं उस को लिख दूं तो वह मेरी बात टालेगा नहीं,’ रामकुमार ने कहा.

‘आप मुझे उमाजी का फोटो दे दीजिए, मातापिता को भेज दूंगा. उन से मुझे अनुमति तो लेनी ही होगी. पर वे कभी भी न नहीं करेंगे,’ गौतम ने कहा.

रामकुमार खुशीखुशी घर के अंदर गए. लगता था, जैसे वहां खुशी की लहर दौड़ गई थी. कुछ ही देर में वे अपनी पत्नी के साथ उमा का फोटो ले कर आ गए. उमा तो लाजवश कमरे में नहीं आई. उस की मां ने एक डब्बे में कुछ मिठाई गौतम के लिए रख दी. पतिपत्नी अत्यंत स्नेह भरी नजरों से गौतम को देख रहे थे.

अपने कमरे में पहुंचते ही गौतम ने न्यूयार्क के उस विश्वविद्यालय को प्रवेशपत्र और आर्थिक सहायता के लिए फार्म भेजने के लिए लिखा. दिल्ली जाने से पहले वह एक बार और उमा के घर गया. कुछ समय के लिए उन लोगों ने गौतम और उमा को कमरे में अकेला छोड़ दिया था, परंतु दोनों ही शरमाते रहे.

गौतम जब दिल्ली से वापस आया तो रामकुमार ने उसे विभाग में पहुंचते ही अपने कमरे में बुलाया. गौतम ने उन्हें बताया कि मातापिता दोनों ही राजी थे, इस रिश्ते के लिए. परंतु छोटी बहन की शादी से पहले इस बारे में कुछ भी जिक्र नहीं करना चाहते थे.

गौतम के मातापिता की रजामंदी के बाद तो गौतम का उमा के घर आनाजाना और भी बढ़ गया. उस ने जब एक दिन उमा से सिनेमा चलने के लिए कहा तो वह टाल गई. इन्हीं दिनों न्यूयार्क से फार्म आ गया, जो उस ने तुरंत भर कर भेज दिया. रामकुमार ने अपने दोस्त को न्यूयार्क पत्र लिखा और गौतम की अत्यधिक तारीफ और सिफारिश की.

3 महीने प्रतीक्षा करने के पश्चात वह पत्र न्यूयार्क से आया, जिस की गौतम कल्पना किया करता था. उस को पीएच.डी. में प्रवेश और समुचित आर्थिक सहायता मिल गई थी. वह रामकुमार का आभारी था. उन की सिफारिश के बिना उस को यह आर्थिक सहायता कभी न मिल पाती.

गौतम की छोटी बहन का रिश्ता बनारस में हो गया था. शादी 5 महीने बाद तय हुई. गौतम ने उमा को समझाया कि बस 1 साल की ही तो बात है. अगले साल वह शादी करने भारत आएगा और उस को दुलहन बना कर ले जाएगा.

कुछ ही महीने में गौतम न्यूयार्क आ गया. यहां उसे वह विश्वविद्यालय ज्यादा अच्छा न लगा. इधरउधर दौड़धूप कर के उसे न्यूयार्क में ही दूसरे विश्वविद्यालय में प्रवेश व आर्थिक सहायता मिल गई.

उमा के 2-3 पत्र आए थे, पर गौतम व्यस्तता के कारण उत्तर भी न दे पाया. जब पिताजी का पत्र आया तो उमा का चेहरा उस की आंखों के सामने नाचने लगा. पिताजी ने लिखा था कि रामकुमार दिल्ली किसी काम से आए थे तो उन से भी मिलने आ गए. पिताजी को समझ में नहीं आया कि उन की कौन सी बेटी की शादी बनारस में तय हुई थी.

उन्होंने लिखा था कि अपनी शादी का जिक्र करने के लिए उसे इतना शरमाने की क्या आवश्यकता थी.

गौतम ने पिताजी को लिख भेजा कि मैं उमा से शादी करने का कभी इच्छुक नहीं था. आप रामकुमार को साफसाफ लिख दें कि यह रिश्ता आप को बिलकुल भी मंजूर नहीं है. उन के यहां के किसी को भी अमेरिका में मुझ से पत्रव्यवहार करने की कोई आवश्यकता नहीं.

गौतम के पिताजी ने वही किया जो उन के पुत्र ने लिखा था. वे अपने बेटे की चाल समझ गए थे. वे बेचारे करते भी क्या.

उन का बेटा उन के हाथ से निकल चुका था. गौतम के पास उमा की तरफ से 2-3 पत्र और आए. एक पत्र रामकुमार का भी आया. उन पत्रों को बिना पढ़े ही उस ने फाड़ कर फेंक दिया था.

पीएच.डी. करने के बाद गौतम शादी करवाने भारत गया और एक बहुत ही सुंदर लड़की को पत्नी के रूप में पा कर अपना जीवन सफल समझने लगा. उस के बाद उस ने शायद ही कभी रामकुमार और उमा के बारे में सोचा हो. उमा का तो शायद खयाल कभी आया भी हो, पर उस की याद को अतीत के गहरे गर्त में ही दफना देना उस ने उचित समझा था.

उस दिन रवि ने गौतम की पुरानी स्मृतियों को झकझोर दिया था. प्रोफेसर गौतम सारी रात उमा के बारे में सोचते रहे कि उस बेचारी ने उन का क्या बिगाड़ा था. रामकुमार के एहसान का उस ने कैसे बदला चुकाया था. इन्हीं सब बातों में उलझे, प्रोफेसर को नींद ने आ घेरा.

ठक…ठक की आवाज के साथ विभाग की सचिव सिसिल 9 बजे प्रोफेसर के कमरे में ही आई तो उन की निंद्रा टूटी और वे अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गए. प्रोफेसर ने उस को रवि के फ्लैट का फोन नंबर पता करने को कहा.

कुछ ही मिनटों बाद सिसिल ने उन्हें रवि का फोन नंबर ला कर दिया. प्रोफेसर ने रवि को फोन मिलाया. सवेरेसवेरे प्रोफेसर का फोन पा कर रवि चौंक गया, ‘‘मैं तुम्हें इसलिए फोन कर रहा हूं कि तुम यहां पर पीएच.डी. के लिए आर्थिक सहायता की चिंता मत करो. मैं इस विश्वविद्यालय में ही भरसक कोशिश कर के तुम्हें सहायता दिलवा दूंगा.’’

रवि को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. वह धीरे से बोला, ‘‘धन्यवाद… बहुतबहुत धन्यवाद.’’

‘‘बरसों पहले तुम्हारे नानाजी ने मुझ पर बहुत उपकार किया था. उस का बदला तो मैं इस जीवन में कभी नहीं चुका पाऊंगा पर उस उपकार का बोझ भी इस संसार से नहीं ले जा पाऊंगा. तुम्हारी कुछ मदद कर के मेरा कुछ बोझ हलका हो जाएगा,’’ कहने के बाद प्रोफेसर गौतम ने फोन बंद कर दिया.

रवि कुछ देर तक रिसीवर थामे रहा. फिर पेन और कागज निकाल कर अपनी मां को पत्र लिखने लगा.

आदरणीय माताजी,

आप से कभी सुना था कि इस संसार में महापुरुष भी होते हैं परंतु मुझे विश्वास नहीं होता था.

लेकिन अब मुझे यकीन हो गया है कि दूसरों की निस्वार्थ सहायता करने वाले महापुरुष अब भी इस दुनिया में मौजूद हैं. मेरे लिए प्रोफेसर गौतम एक ऐसे ही महापुरुष की तरह हैं. उन्होंने मुझे आर्थिक सहायता दिलवाने का पूरापूरा विश्वास दिलाया है.

प्रोफेसर गौतम बरसों पहले कानपुर में नानाजी के विभाग में ही काम करते थे. उन दिनों कभी शायद आप की भी उन से मुलाकात हुई होगी…

आप का रवि

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