दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 4 नवम्बर से ओड-ईवन नम्बर की गाड़ियों के अलग-अलग दिनों में सड़कों पर चलने का रूल फिर से लागू कर दिया है. पन्द्रह दिन तक यह नियम लागू रहेगा. वजह है वायु प्रदूषण. हर साल अक्टूबर-नवम्बर माह में एक ओर वायुमंडल में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है और दूसरी ओर अस्पतालों में सांस और दमे की बीमारियों से हांफते रोगियों की संख्या. दरअसल अक्टूबर-नवम्बर माह में दशहरा, दीवाली जैसे त्योहारों में पटाखों के इस्तेमाल से आकाश जहां धुएं से भर जाता है, वहीं इन्हीं दिनों में किसान अपने खेतों में परली यानी फसल की कटाई के बाद खेतों में बचे हुए अंश और कचरे को जलाते हैं, जिससे उत्पन्न धुआं वायु प्रदूषण को खतरनाक स्तर तक बढ़ा देता है. गाड़ियों और अन्य वाहनों का धुआं पहले ही वातावरण में होता है. ठंड और कोहरे की वजह से यह धुआं जल्दी साफ  नहीं हो पाता है और कई दिनों तक जमा रहता है. इसके कारण अस्थमा या दमे के रोगियों की हालत खराब हो जाती है. वहीं सांस की अन्य अनेक बीमारियां फैलने लगती हैं.

ठंड के मौसम में वायु प्रदूषण के कारण दमा यानी अस्थमा का अटैक और खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो बीते पांच सालों में अस्थमा की दवाइयों की बिक्री 43 फीसदी तक बढ़ गयी है. पिछले साल भी मरीजों की संख्या 15 प्रतिशत तक बढ़ गयी थी. विशेषज्ञों के अनुसार ठंड में प्रदूषणयुक्त सूखी हवा व वातावरण में वायरस की बढ़ोत्तरी से अस्थमा की समस्या ज्यादा गंभीर हो जाती है. ठंड के कारण सांस की नलियों में सूजन आ जाती है जिससे नलियां सिकुड़ जाती हैं, इसमें बलगम जमा होने से सांस लेने में दिक्कत पैदा होने लगती है.

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