रोमिला थापर का गुनाह इतना भर नहीं है कि वे एक परम्परागत भारतीय महिला सरीखी नहीं दिखती हैं. एक ऐसी महिला जो पहली नजर में ही किसी न किसी एंगल से निरुपा राय कामिनी कौशल या सुलोचना जैसी दयनीय भारतीय (दरअसल में हिन्दू) न दिखे बल्कि प्रिया राजवंश, सोनी राजदान या सिम्मी ग्रेवाल सी राजसी आत्मविश्वास, ठसक और चमक दमक वाली दिखे. वह किसी भी लिहाज से जेएनयू में बने रहने लायक आज के दौर में हो ही नहीं सकती. गुनाहों की देवी रोमिला थापर का एक बड़ा गुनाह यह भी है कि उन्होंने अगस्त 2018 की किसी तारीख में आज के दौर और राजकाज की तुलना आपातकाल से करते यह तक कह डाला था कि वह आपातकाल कम खतरनाक था.

इसी 30 नवंबर को रोमिला 88 की हो जाएंगी लेकिन मुमकिन है वे जन्मदिन जेएनयू में न मना पाएं क्योंकि उनकी विदाई की तैयारियां कम से कम कागजों में तो पूरी हो गई हैं क्रिकेट की भाषा में कहें तो मैच का फैसला तो हो चुका है बस औपचरिकताए शेष हैं.

मुमकिन है आप भी कई लोगों की तरह रोमिला थापर के बारे में वो सब न जानते हों जो कि अब जानना जरूरी हो गया है जिससे यह पता चले कि क्यों वे सत्ता पक्ष और भगवा खेमे के निशाने पर आ गई हैं. अब तो हालांकि 2014 से ही गईं थीं लेकिन उनका नंबर अब आया है जो उन्हें बेहद षड्यंत्रपूर्वक तरीके से जेएनयू के बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारियां पूरी कर ली गईं हैं. और यह सब बेमकसद नहीं है मकसद उन्हीं की जुबानी हम आगे समझेंगे.

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