अर्थराइटिस यानी गठिया को पहले बुढ़ापे का रोग माना जाता था. घुटने, कोहनी, कमर के जोड़ों में दर्द और चलने-फिरने में परेशानी कभी बुढ़ापे की निशानी कहलाती थी. डौक्टरों के मुताबिक जोड़ों के बीच का लिक्विड उम्र बढ़ने के साथ धीरे-धीरे खत्म होने लगता है, जिसके कारण शरीर में जोड़ों का लचीलापन खत्म होने लगता है, जिसे अर्थराइटिस करते हैं. जोड़ों का मूवमेंट प्रभावित होने से बूढ़े लोगों को अकड़न और दर्द महसूस होता है. साठ साल की उम्र के बाद ज्यादातर बुजुर्गों में गठिया के लक्षण दिखने लगते थे. लेकिन जैसे-जैसे हमारे खानपान और रहनसहन में बदलाव आ रहे हैं, अर्थराइटिस की समस्या सिर्फ बूढ़ों तक सीमित नहीं रह गयी है. अब गठिया का रोग जवान लोगों और बच्चों को भी अपना शिकार बना रहा है.
अट्ठाइस साल की आयुषी अपने औफिस की सीढ़ियां चढ़ने में परेशानी अनुभव करती है. उसका वजन 68 किलो है. मोटापे के कारण उसकी सांस भी फूलती है. मौल या मेट्रो स्टेशनों पर वह ज्यादातर लिफ्ट का इस्तेमाल करती है, लेकिन औफिस में लिफ्ट न होने के कारण उसे दूसरे माले पर जाने के लिए सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. यह थोड़ी सी सीढ़ियां भी उसकी जान की आफत हैं.
महानगरों में बदलती जीवनशैली, गलत खानपान, मोटापा, एक्सरसाइज की कमी, पैदल चलने में कोताही, ज्यादातर बैठे रहना ऐसे तमाम कारण हैं जो कम उम्र में ही इन्सान को अर्थराइटिस जैसी तकलीफदेह बीमारी की ओर ढकेल रहे हैं. अर्थराइटिस का सबसे अधिक प्रभाव घुटनों में और उसके बाद कूल्हे की हड्डियों में दिखायी देता है. अधिकतर लोग अपने बदन में दर्द और अकड़न महसूस करते हैं. कभी-कभी हाथों, कंधों और घुटनों में सूजन और दर्द भी रहता है. यही नहीं, रोग बढ़ने पर हाथ की उंगलियां तक मोड़ने में परेशानी होने लगती है.
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