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बर्गर से कम नुकसानदेह है समोसा!

अगर आपके सामने समोसा और बर्गर दोनों रख दिये जाएं, तो आप क्या उठाएंगे? दोनों के लिए ही मुंह में पानी भर आएगा, मगर डायट कौन्शेस लोग जहां दोनों से ही तौबा कर लेंगे, वहीं चटोरे लोग तो दोनों ही खा जाएंगे. समोसा और बर्गर दोनों जंक फूड की श्रेणी में आते हैं. दोनों ही अनहेल्दी माने जाते हैं. मगर सेंटर फौर साइंस एंड एनवायरनमेंट की रिपोर्ट मानें तो हमारा देसी समोसा बर्गर के मुकाबले कम नुकसानदेह होता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि समोसा बनाने के लिए मैदे से लेकर आलू तक ताजे ही इस्तेमाल किये जाते हैं और आपकी प्लेट तक पहुंचने से पहले ये लजीज स्पाइसी समोसा सीधा गर्म तेल से छनकर निकलता है. दूसरी ओर बर्गर बनाने के लिए प्रिजरवेटिव, ऐसिडिटी रेग्युलेटर, फ्रोजन पैटीज और मीट जैसी चीजों का इस्तेमाल होता है. रिपोर्ट के मुताबिक ताजा बने खाने में ऐसा कोई केमिकल मौजूद नहीं होता जैसा कि अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड में होता है. गौरतलब है कि सीएसई ने ‘बॉडी बर्डन’ नाम से यह रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसके अनुसार भारत में होने वाली कुल मौतों में से 61 फीसदी केवल लाइफस्टाइल और गैर संचारी रोगों (नॉन कम्युनिकेबल डिजीज) की वजह से होती हैं.

कहां से आया समोसा?

शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा जिसे समोसा न पसंद हो. लेकिन आपने कभी सोचा है कि आपका यह पसंदीदा स्नैक समोसा आया कहां से है? ज्यादातर लोग मानते हैं कि समोसा भारतीय पकवान है, लेकिन आपको यह जानकार हैरानी होगी कि समोसा विदेशी व्यंजन है. जी हां, समोसा मीलों की दूरी तय करके भारत पहुंचा है. कहते हैं कि 1526 में मुगल अपने साथ समोसा लेकर भारत आये. उनके खानपान की चीजों में समोसा स्नैक के रूप में होता था. 16वीं शताब्दी में लिखा गया मुगल दस्तावेज ‘आइन-ए-अकबरी’ में समोसे का जिक्र मिलता है. समोसा फारसी भाषा के ‘संबुश्क’ से निकला है और इसका जिक्र ग्यारहवीं सदी में फारसी इतिहासकार अबुल फजल बेहाकी के लेखन में भी मिलता है. उन्होंने गजनवी साम्राज्य के शाही दरबार में पेश की जाने वाली ‘नमकीन’ चीज का जिक्र किया है, जिसमें कीमा और सूखे मेवे भरे होते थे. मध्य एशिया का यह अल्प आहार दक्षिण एशिया के लोगों के दिलों पर राज करने लगा. ‘संबुश्क’ आज पूरे एशिया में अलग-अलग नाम और कई अवतारों में पाया जाता है.

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मोरक्को के इतिहासकार इब्न बतूता लिखते हैं – दिल्ली की सल्तनत के संबुश्क बहुत तीखे थे. वह छोटी-छोटी कचौड़ियों जैसे थे, जिनके अंदर कीमा, बादाम, पिस्ता और अखरोट भरा होता था और इसे पुलाव के तीसरे कोर्स के पहले सर्व किया जाता था. पहले जहां समोसे में मीट भरा जाता था, वहीं 16वीं सदी में पुर्तगालियों के भारत में बटाटाा यानी आलू लाने के बाद समोसे में आलू भरा जाने लगा. आज ट्रेडिशनल समोसे में मसला हुआ आलू, हरी मटर, हरी मिर्च और अन्य मसाले भरे जाते हैं. समोसा चटनी के साथ बेहद लजीज लगता है.

पूर्वी भारत में समोसे को सिंघाड़ा कहते हैं और इसे बनाने का तरीका मध्य भारत से थोड़ा अलग है. सिंघाड़े का साइज थोड़ा छोटा होता है. बंगाल की बात करें तो यहां समोसे के आटे में हींग जरूर मिलायी जाती है और उबले हुए आलू को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर भरा जाता है. वहीं दक्षिण भारत में समोसे में लोकल मसालों के साथ प्याज, गाजर, पत्तागोभी और करी पत्ते भरे जाते हैं. इस तरह विदेश से आये इस शाही पकवान समोसे का आज भारत के हर कोने में लुत्फ उठाया जा रहा है.

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ऐसे करें सही करियर का चुनाव

10 वीं पास कर छात्र 12 वीं में एडमिशन को लेकर बड़ी उलझन मे पड़ जाता है. क्योंकि उसे जब तक यह पूरी तरह पता भी  नहीं होता की आगे चल कर उसे करना क्या है. कौन सा फील्ड उस के लिये ठीक रहेगा. कई बार बच्चे अपने पेरेंट्स द्वारा चुना गया विषय अपना लेते हैं तो कभी अपने दोस्त की होड़ कर उनकी पसंद के विषय चुन लेते हैं और यही बात वो कौलेज में भी करते हैं जो कि उन्हें सही करियर के रस्ते से भटका देती है कभी कभी उनकी यही गलती उन्हें भरी पड़ जाती है. कई बार हम नौकरी कर तो रहे होते हैं लेकिन सिर्फ पैसो के लिये. क्योंकि जो काम कर रहे  होते हैं उस मे उनकी रूचि नहीं होती.

करियर का अर्थ

करियर का अर्थ है आपके मन की सन्तुष्टि. वो जौब या व्यवसाय  जिसे करके आपको  मन को सन्तुष्टि मिले. आपका मन उस काम से ऊबे नहीं बल्कि हर रोज कुछ नया करने का दिल करे. और आपका उस काम के प्रति उत्साह बना रहे . अगर ऐसा करियर हो तो आप अपने जीवन से बेहद खुश रहेंगे. आज हम आपको ऐसे ही कुछ टिप्स बता रहे हैं जिस के द्वारा आप अपना सही करियर चुनने मे सफल हो सकेंगे.

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अपनी दिलचस्पी को जानें

आपकी किस क्षेत्र  मे दिल चस्पी है पहले ये जान ले .कई लोगों को पेंटिंग का शौक होता है कुछ लोग नए नए एक्सपेरिमेंट करते रहते हैं तो कोई नेटवर्किंग का शौकीन होता है. ऐसे में करियर उसी चीज में चुने जिस में आपका शौक हो अपनी हौबीज को ध्यान मे रखते हुए ही अपने लिये करियर का चुनाव करना बहुत अच्छा रहता है. कई लोग अपनी हौबीज से ही अपना करियर बना लेते है, जिससे वो पूरी तरह  संतुस्ट भी रहते हैं.

किसी के दबाव में न आये

करियर के चयन के समय याद रखें कि आप किसी के दबाव में आकर चयन न करें. क्योंकि जिस चीज में आपकी रूचि न हो आप उसमे कभी सफलता  नहीं पा सकते.   कई बार छात्र अपने माता पिता  के दबाव में आकर गलत निर्णय  ले लेते हैं तो कई  दोस्तों के बहकावे  में आ जाते है. तो सुनो सब की, करो अपने मन की.. ‘जब निर्णय लेन का समय आय तो सुझाव सभी के लें. लेकिन करियर चुनते वक्त अपने मन की सुनें .

करियर कौंसलर से लें सलाह

अगर आप करियर को लेकर किसी प्रकार की दुविधा में  है तो जरूरी है कि आप किसी कौंसलर की मदद लें. इसके लिये कई मार्गदर्शन संस्थान खुली हुई है.  जिससे की आप करियर काउंसलर से बात करके करियर का चुनाव कैसे करें. इसके लिए सही सलाह पा सकते हैं . साथ ही आपको करियर विकल्प के बारे में भी पता चलेगा जो शायद आपकी जानकारी से भी बाहर होंगे . लेकिन सलाहकार सिर्फ सलाह दे सकते हैं. सही करियर का चुनाव आपको खुद ही करना होगा .

डर को करो खत्म

करियर को लेकर डरे नहीं. अगर आप सोचते हैं कि  जिस चीज को आप करना चाहते  हैं. उसमे मेंहनत बहुत है या संघर्ष बहुत ज्यादा करना होगा या आप उसमे कामयाब हो भी पाएंगे या  नहीं. डर इस बात का कि लोग क्या कहेंगे या फिर कम पैसों में गुजारा कैसे होगा. जिस दिन आप इस डर को निकाल देंगे. उस दिन आप अपने सपनों को पाने की पहली सीढ़ी पर चढ़ जाएंगे.

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इंटर्नशिप या स्वेच्छाकर्मी करें

जिस फील्ड मे आप जाना चाहते हैं. उस फील्ड के लोगों से बातचीत करें . उस के बारे मे  पूरी जानकारी लें, हो सके तो अगर आपको उस फील्ड मे पार्ट टाइम काम करने का मौका मिले  तो अवश्य करें. उस फील्ड से संबंधित कोई अभियान चल रहा हो तो उससे जुड़े  .जिससे आपको उस फील्ड में काम करने का अनुभव मिलेगा और आप समझ पाएंगे कि आप सही करियर चुन रहे हैं या नहीं.

मैं अपने पूरे करियर में फिल्म ‘‘दबंग’’को ही टर्निंग प्वाइंट मानता हूं: अरबाज खान

अभिनेता, निर्देशक, निर्माता और टौक शो संचालक अरबाज खान ने लगभग 24 वर्ष पहले यानी कि 1996 में फिल्म ‘‘दरार’’ से अपने अभिनय करियर की शुरूआत की थी. पहली फिल्म के साथ ही अरबाज खान ने इशारा कर दिया था कि वह लंबी रेस के घोड़े हैं. तब से अब तक वह कई यादगार फिल्मों में अभिनय करने के अलावा ‘दबंग’ फ्रेंचाइजी की तीन फिल्मों का निर्माण, ‘दबंग 2’ का निर्देशन, टौक शो का संचालन और वेब सीरीज ‘‘पौयजन’’ में अभिनय कर चुके हैं. इन दिनों वह 27 सितंबर को प्रदर्शित हो रही निर्माता महेंद्र सिंह नामदेव की क्राइम थ्रिलर फिल्म ‘‘मैं जरुर आउंगा’’ को लेकर चर्चा में है,जो कि पूर्णरूपेण स्विटजरलैंड में फिल्मायी गयी पहली भारतीय फिल्म है. इसके अलावा उन्होंने मलयालम सिनेमा में भी कदम रख दिया है.

प्रस्तुत है अरबाज खान के साथ हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश…

आपके 24 साल के करियर में टर्निंग प्वाइंट क्या रहे?

मैं अपने पूरे करियर में फिल्म ‘‘दबंग’’ को ही टर्निंग प्वाइंट मानता हूं. क्योंकि ‘दबंग’ मेरी लाइफ का टर्निंग प्वाइंट था. उसने मुझे ओवरनाइट सक्सेस, ओवरनाइट पहचान दिलायी. ‘दंबग’ से मेरे करियर व जिंदगी को बहुत कुछ मिला फिल्म ‘दबंग’ ने मुझे अभिनेता व निर्माता दोनो स्तर पर उंचाइयां प्रदान की. उससे पहले भी मुझे छोटी-छोटी सक्सेस मिलती रही हैं. उन सफलताओं को भी मैं हलके से नहीं लेता. जैसे ‘दरार’, ‘प्यार किया तो डरना क्या’, ‘फैशन’, ‘मालामाल वीकली’, ‘मां तुझे सलाम’ जैसी फिल्मों में भी मेरे अभिनय को सराहा गया. और यह फिल्में भी कैरियर के लिए माइलस्टोन साबित हुईं. अब फिल्म‘‘मैं जरुर आउंगा’’ से कुछ अन्य रिकार्ड बन सकते हैं.

24 साल के करियर में आपने तमाम किरदार निभाएं. ऐसे में फिल्म‘‘मैं जरुर आउंगा’’करने के लिए किस बात ने आपको इंस्पायर किया?

यह फिल्म और मेरा किरदार दोनों काफी अलग है. मैंने अब तक इस तरह का किरदार नहीं किया. वैसे ऐसा नहीं होता है कि आप अपने करियर के 20-25 साल में जब हर साल चार पांच फिल्में करेंगे और उन्हे मल्टीप्लाई कर लीजिए और किरदार एक दूसरे से मेल खाता हो. अब यह समझाना मुश्किल होता है कि आपने कितने अलग- अलग किरदार किए हैं. यदि किरदार में हल्का सा,  किसी छोटी सी चीज का प्रेजेंटेशन अलग हो, कुछ भी अलग हो, करेक्टर का न्यूयांएश भी अलग हो, तो भी वह अलग होता है. मसलन पुलिस का किरदार ले लीजिए. तो कितने एक्टरों ने तो अब तक कम से कम 15 फिल्मों में पुलिस का किरदार निभाया है. पर हर बार पुलिस वाला निभाने के बाद भी वह अलग पुलिस वाला ही होता है. अगर हम गैंगस्टर या विलेन का कैरेक्टर निभाते हैं, तो उसमें भी अंतर होता है. हम तो 50 बार हम विलेन निभा चुके होंगे. फिर भी हमारी फिल्मों के अंदर पर हर बार कुछ तो अलग होता ही है. कोई सरफिरा गुंडा, तो कोई गली का गुंडा होता है. फिर उसके अंदर डायलौगबाजी का कीड़ा रहता है. तो कई वेरीएशन होते हैं. इसे अलावा हम कलाकार पर निभर्र होता है कि हर बार उसे कैसे नयापन दें. इसी तरह एक बिजनेसमैन के कैरेक्टर में भी वेरीएशन होते हैं. बिजनेसमैन हल्का सा मिडिल एज आदमी है या आशिक है या कथानक में किस तरह हंसता या रोता है, या उसके साथ जो कुछ होता है, उस पर उसका रिएक्शन किस तरह का होता है. कहने का अर्थ यह है कि एक ही किरदार में हमें हर बार अलग अलग इमोशंस के साथ उसे निभाते हुए नयापन देना होता है. उसी बात ने मुझे उत्साहित किया. इस नजरिए से मैं दावा करता हूं कि मैंने हर बार कुछ नया किरदार निभाया है और इस फिल्म में भी नयापन है.

इसके अलावा कई बार ऐसा होता है कि जिन लोगों के साथ काम करने की आपकी चाहत होती है, उनके साथ जब काम करने का अवसर मिलता है, तो यह बात भी काम करने के लिए उत्साहित करती है. कई बार जिन सब्जेक्ट पर आप काम करना चाहते हैं, वैसा सब्जेक्ट सामने आ जाए, तो आप इंस्पायर होते हैं. कई बार फिल्म जहां फिल्मायी जानी है, वह लोकेशन इंस्पायर करती है. तो किसी भी फिल्म से जुड़ने के पीछे कई वजहें होती हैं. फिल्म‘‘मैं जरुर आउंगा’’ के कथानक, किरदार में मौजूद नए तरह के शेड्स और स्विटजरलैंड की लोकेशन ने मुझे  मुझे इस फिल्म से जुड़ने के लिए उकसाया.

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फिल्म‘‘मैं जरुर आउंगा’’को लेकर क्या कहना चाहेंगें?

जिन लोगों ने फिल्म का ट्रेलर देखा है, उन्हें अहसास हो चुका होगा कि ‘‘मैं जरुर आउंगा’’ क्राइम थ्रिलर फिल्म है, जिसमें रोमांस, अपराध, बदला और विश्वासघात के साथ रोमांचक कथा है. इसमें भूत का भूत हत्यारों से बदला लेने के लिए वापस आता है, तो डरावने और भयावह रहस्यों का तूफान उठाता है. स्विटजरलैंड की बर्फीली ठंडी सफेद पृष्ठभूमि इसे और अधिक डरावना बना देती है. इसमें कन्नड़ अभिनेत्री अंद्रिता रे के अलावा विकास वर्मा व गोविंद नामदेव भी हैं.

फिल्म ‘‘मैं जरुर आउंगा’’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे?

मैंने इसमें स्विट्जरलैंड में रह रहे एक प्रसिद्ध और सफल व्यवसायी यश मल्होत्रा का किरदार निभाया है. एक दिन यश की मुलाकात मौडल लिजा से होती है, दोनों में प्यार फिर शादी हो जाती है. उनका आनंदमय जीवन बीतने लगता है, मगर यश को इस बात का अहसास ही नहीं होता कि उसकी पत्नी लीजा के लिए उसका मौडलींग का करियर और उसका दोस्त व फोटोग्राफर पीटर ज्यादा मायने रखता है. हकीकत मे लिजा ने यश की संपत्ति देखकर ही शादी की थी. यश अपने जीवन व लिजा के साथ रिश्ते को मजबूती प्रदान करने के लिए एक बच्चा चाहते हैं, लेकिन लिजा मना कर देती है. एक दिन लिजा अपने मित्र व प्रेमी पीटर के साथ मिलकर यश की हत्या कर कब्रिस्तान में दफना देते हैं. पर सच कुछ और होता है. यश का भूत अब इन दोनों को परेशान करने लगता है. उधर यश का दोस्त व पुलिस अफसर शिव भी इनके पीछे पड़ गया है. इसके बाद क्या होता है, यह फिल्म देखने पर ही पता चलेगा.

बतौर निर्माता फिल्म ‘‘दबंग 3’’ की क्या स्थिति हैं? इसको लेकर क्या कहना पसंद करेंगें ?

फिल्म ‘‘दबंग 3’’ की शूटिंग खत्म हो चुकी है. हम 20 दिसंबर को इसे सिनेमाघरों में पहुंचाने के लिए प्रयासरत हैं. मैं फिल्म को लेकर उत्साहित हूं और हम सभी इसे बनाते हुए काफी मस्ती कर रहे हैं. मुझे पता है कि लोग इस फ्रैंचाइजी को पसंद करते हैं और उन्हें चुलबुल पांडे का किरदार लोगों को बहुत पसंद है. अगर लोग उत्साहित नहीं होते हैं, तो यह चिंता का कारण होगा.

फिल्म‘‘मैं जरुर आउंगा’’के बाद किस फिल्म में नजर आएंगे?

मैं मलयालम फिल्मों के उत्कृष्ट निर्देशक सिद्दिकी की मलयालम फिल्म ‘‘बिग ब्रदर’’ में एक आईपीएस अधिकारी का किरदार निभाते हुए मलयालम सिनेमा में कदम रखने जा रहा हूं. यह आईपीएस अफसर मूलतः उत्तर भारत से हैं. इसमें मुझे मलयालम सिनेमा के मोहनलाल सहित कई दिग्गज कलाकारों के साथ अभिनय करने का अवसर मिला है. सिद्दीकी में की कार्यशैली किसी भी फिल्म को एक बड़ी हिट बनाने में माहिर है.मुझे पता है कि उनकी फिल्म निर्माण की शैली और जिस तरह से वह अपनी फिल्म की पटकथा लिखते हैं, वह काबिले तारीफ है. उनकी फिल्मों से बहुत सारी भावनाएं जुड़ी होती हैं. इसके अलावा एक फिल्म ‘‘श्रीदेवी बंगलो’’ की है. यह फिल्म भी लंदन में फिल्मायी गयी है.

इन दिनों बौलीवुड के कई कलाकार दक्षिण भाषी फिल्मों में अभिनय कर सफलता बटोर रहे हैं?

इसकी मूल वजह यह है कि सिनेमा भाषा का मोहताज नही है, इस बात को हम अब तक समझ नहीं पाए थे. अब तो दक्षिण की फिल्मों का बौलीवुड में और बौलीवुड की फिल्मों का दक्षिण भारत में रीमेक भी हो रहा हैं. दूसरी बात हम सभी कलाकार क्षेत्रीय भाषाओं में काम कर रहे हैं, क्योंकि हर उद्योग भारतीय सिनेमा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

तो अब दूसरी भाषा की फिल्में करते रहेंगें?

जी हां! हालांकि मैं लंबे समय से अभिनय कर रहा हूं, फिर भी मलयालम सिनेमा में ‘‘बिग ब्रदर’’ मेरी पहली फिल्म है. मैं दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं का सिनेमा भी करना चाहता हूं.

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वेब सीरीज?

दो वेब सीरीज भी कर रहा हूं.अब तो फिल्में और वेब सीरीज की दुनिया एक साथ आगे बढ़ेगी.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: कार्तिक और कायरव ने बिताया क्वालिटी टाइम

स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  में आपको लगातार महाट्विस्ट देखने को मिल रहे है. फिलहाल इस शो की कहानी कार्तिक, कायरव, नायरा और अखिलेश के आसपास घुम रही है. पूरा गोयनका परिवार कायरव के जाने से दुखी है. दूसरी तरफ अखिलेश के फोन से सुरेखा परेशान होती है. इधर नायरा दादी और बड़ी दादी से माफी मांगती है दोनों उसे माफ करके गले लगा लेती हैं.

इधर कार्तिक अपने बेटे की याद में खोया रहता है और वो रात को ही सिंहानिया हाउस कायरव से मिलने पहुंच जाता है. उधर कायरव को भी नींद नहीं आती है, वो नायरा से छिपकर बेड से उठ जाता है. और कार्तिक को फोन करके कहता है कि वो आ जाए, उसे उसकी बहुत याद आ रही है. कार्तिक उससे कहता है कि वो यहीं है दरवाजे के बाहर. तभी कायरव गेट खोलता है और दोनों एक दूसरे को देखकर बहुत खुश होते हैं. दोनों दूसरे के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करते हैं.

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गोयनका हाउस में कार्तिक को न देखकर पूरे घर घरवाले परेशान हो रहे होते हैं. कार्तिक के पापा नायरा को फोन करते हैं तो नायरा को पता चलता है कि कायरव भी बेड पर नहीं है. नायरा बाहर आती है रूम से और कायरव को आवाज देती है उसकी आवाज सुनकर बाकी घरवाले भी सामने आ जाते हैं. वहां कार्तिक और कायरव को साथ सोता देखकर सभी हैरान रह जाते हैं.

उधर वेदिका, नायरा को फोन करती है और पूछती है कि क्या नायरा गोयनका हाउस है? इस पर वेदिका फोन काट देती है. तो दूसरी ओर बड़ी दादी वेदिका को फोन करके समझाने की कोशिश करती हैं लेकिन वेदिका उनकी बात भी नहीं समझना चाहती. अब देखना ये होगा कि अपकमिंग एपिसोड में इस शो की कहानी क्या मोड़ लेती है.

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‘मैं कुछ भी कर सकती हूं’ महिलाओं की पसंद को सशक्त बनाने का दे रहा है संदेश

औरत की मर्जी (एक महिला की सहमति या पसंद) जैसे वैकल्पिक नैरेटिव के जरिए लोकप्रिय टेलीविजन शो ‘मैं कुछ भी कर सकती हूं’ परिवार नियोजन के फैसले में महिलाओं के अधिकार के महत्व को उजागर कर रहा है और दंपत्ति के बीच बातचीत को प्रोत्साहित कर रहा है. शो ‘मैं कुछ भी कर सकती हूं’, पौपुलेशन फाउंडेशन औफ इंडिया (पीएफआई) द्वारा परिवार नियोजन और महिला सशक्तिकरण के मुद्दों पर लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने और व्यवहार में बदलाव लाने के लिए एक पहल है.

सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि आठ में से तीन भारतीय पुरुष मानते हैं कि गर्भनिरोधक एक महिला की जिम्मेदारी है. परिवार नियोजन का भार महिलाओं पर पड़ता है और समाज में प्रचलित सामाजिक मानदंडों के तहाता, महिलाओं के पास प्रजनन निर्णय नहीं होते हैं. परिवार और समाज के भीतर रवैये में बदलाव महिलाओं के प्रजनन संबंधी फैसलों में समान महत्व देगा, मसलन कब और कितने बच्चे हों. “औरत की मर्जी” की अवधारणा एक महिला की पसंद और गरिमा को बढ़ाने में योगदान करती है और उन्हें अपने जीवन के बारे में मजबूत निर्णय लेने में सक्षम बनाती है.

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उदाहरण के लिए, शो में औरत की मर्जी का इस्तेमाल इंजेक्टेबल गर्भ निरोधकों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए किया गया है, जो महिलाओं को स्वतंत्रता प्रदान करती है, क्योंकि इसका प्रत्येक खुराक उन्हें तीन महीने तक अवांछित गर्भधारण से बचाता है. पहले भी  ‘औरत की मर्जी का दिन’ का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें किसी एक खास दिन महिलाएं घरेलू कामों से मुक्त होती हैं और पुरुषों को घर और बच्चों की देखभाल करना होता है. पूनम मुत्तरेजा, कार्यकारी निदेशक, पीएफआई का कहना है, “एक समाज तभी स्वस्थ हो सकता है जब महिलाएं स्वस्थ और सशक्त हो. औरत की मर्जी को एक अवधारणा के रूप में लोकप्रिय बनाना हमें महिलाओं की पसंद और सहमति पर एक महत्वपूर्ण बातचीत शुरू करने की अनुमति देता है. यह न केवल परिवार नियोजन तक सीमित है, बल्कि शिक्षा, काम और घरेलू फैसलों जैसे अन्य पहलुओं के बारे में भी बात करती है.

शो ‘मैं कुछ भी कर सकती हूं’ पौपुलेशन फाउंडेशन औफ इंडिया की एक पहल है जो परिवार नियोजन और महिलाओं के सशक्तीकरण के मुद्दों पर लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने और व्यवहार को बदलने के लिए है. टेलीविजन कार्यक्रम के अलावा, इस शो में एक इंटरएक्टिव वायस रिस्पांस सिस्टम, सामुदायिक रेडियो, डिजिटल मीडिया और औन-ग्राउंड आउटरीच विस्तार भी शामिल हैं.

मैं कुछ भी कर सकती हूं एक युवा डौक्टर डा. स्नेहा माथुर की प्रेरक यात्रा के आसपास घूमती है, जो मुंबई में अपने आकर्षक कैरियर को छोड़ कर अपने गांव में काम करने का फैसला करती है. यह शो राष्ट्रीय प्रसारक दूरदर्शन के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक है, जिसे 13 भारतीय भाषाओं में कई रिपीट टेलीकास्ट और किया गया. इसे देश के 216 औल इंडिया रेडियो स्टेशनों पर प्रसारित किया गया. शो के तीसरे सीजन का निर्माण आरईसी फाउंडेशन और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के समर्थन से किया गया है.

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‘रंगदारी‘ के ‘क्रास एफआईआर’ से बलात्कार पीड़ित जेल में  

‘समरथ को नहीं दोष गोंसाई’ धार्मिक ग्रंथों में लिखी इस लाइन का मतलब होता है कि जो शक्तिशाली होता है उसका कोई दोष नहीं होता है. भारतीय जनता पार्टी के नेता इस लाइन का मतलब बहुत अच्छी तरह से जानते और समझते हैं. यही वजह है कि उनको अपने नेताओं में कोई दोष कभी नजर नही आता है. उन्नाव में भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर की बात हो या हिन्दूवादी नेता, रामजन्मभूमि आन्दोलन के पुरोधा, संत और पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद हो. अगर जनता या कोर्ट के दबाव में इन नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई करनी भी पड़ी तो उसके पहले बचाव का पूरा खाका तैयार कर लिया गया. पुलिस की जांच बलात्कार मामले में भले ही ना शुरू हुई हो रंगदारी मामले में पुलिस ने पूरे सबूत जुटाने और लड़की के खिलाफ पक्के सबूत होने की बात कही है.

चिन्मयानंद मामला इसका सीधा उदाहरण है. एलएलएम की कानूनी पढ़ाई करने वाली छात्रा ने जब स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ यौन षोषण और बलात्कार का आरोप लगाया तो सबसे पहले तो उसकी बात को पुलिस ने सुना नहीं. उल्टे लड़की के खिलाफ ही 5 करोड़ की रंगदारी मांगने का मुकदमा लिख कर जांच शुरू कर दी. पुलिस के न्याय ना पाने की हालत में लड़की ने उत्तर प्रदेश छोड़कर राजस्थान चली गई और सोशल मीडिया पर अपनी दास्तान सुनाई. इसके बाद जनता और कोर्ट ने मामले में लड़की का साथ दिया. तब लड़की ने दिल्ली में जाकर अपने साथ हुई घटना का मुकदमा लिखाया.

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सरकार ने कोर्ट के दबाव में स्पेशल इंवेस्टिीगेशन टीम एसआईटी ने जांच के बाद चिन्मयानंद को गिरफ्तार करने के साथ ही साथ लड़की के खिलाफ रंगदारी मामले में उसके 3 साथियों को पकड लिया. इसके कुछ दिन के बाद लड़की को भी जेल भेज दिया. लड़की को जेल भेजने की घटना के बाद पुलिस की नियत पर संदेह शुरू हो रहा है. लड़की को पकड़े जाने से साफ है कि पुलिस लड़की पर दबाव डाल का मामले को कमजोर करने के प्रयास में है. कानून के जानकार कहते हैं कि इस तरह की क्रास एफआईआर से विरोधी को कमजोर किया जाता है.

इस घटना से पता चलता है कि अगर सरकार आपके साथ है तो हर अपराध को आप अपने हिसाब से निपटा सकते है. उन्नाव कांड के बाद अब शाहजहापुर के चिन्मयानंद मामले में एक बार फिर से यह बात साबित होती नजर आ रही है. पूर्व केन्द्रीय मंत्री और स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ शोषण और बलात्कार मामले में मुकदमें लिखे जाने के पहले ही लड़की पर 5 करोड़ की रंगदारी मांगने का मुकदमा लिख लिया जाता है. जेल में रहने के बाद भी जांच के नाम पर स्वामी चिन्मयानंद को इलाज के लिये अस्पतालों में रखा जा रहा है.

चिन्मयानंद का रसूख कुलदीप सेंगर से ज्यादा प्रभावी है. वह रामजन्मभूमि आन्दोलन से जुड़े रहे है. केन्द्र में मंत्री रहने के साथ ही साथ संत समाज से आते है. संत समाज से आने के कारण वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भी करीबी रहे हैं. गोरखनाथ धाम के मंहत अवैद्यनाथ के साथ मंदिर आन्दोलन में काम किया है. ऐसे में जब उनके खिलाफ शिकायत करने वाली लड़की को रंगदारी के मामले में जेल भेजा जाता है तो घटना में साजिश की बू साफ दिखने लगती है. पीड़ित लड़की कहीं भाग कर नहीं जा रही कि जिसे पुलिस हिरासत में लेने की जरूरत पड़ गई. अपराध के जानने वाले जानते हैं कि पुलिस क्रास एफआईआर के दम पर पूरे मामले को कमजोर करने का प्रयास कर रही है.

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महंगी प्याज ने निकाले लोगों के आंसू

प्याज की आसमान छूती कीमतों ने आम आदमी की रसोई से इस सब्जी को गायब कर दिया. दिल्ली एनसीआर में प्याज की कीमत 80 रूपये प्रति किलो तक जा पहुंची है लेकिन हुकूमतों का इससे कोई नाता नहीं है. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा कि प्याज की कीमतें आसमान छू रही हों लेकिन हर बार ऐसा क्यों होता है यहां पर सवाल ये आ गया है. हालांकि सरकारें प्याज की बढ़ती कीमतों पर नकले कसने की तुरंत कोशिश में जुट जातीं हैं क्योंकि देश की आवाम ने कई सरकारों की गद्दी इसी वजह से छीन ली थी. इतिहास हमें सिखाता है. इसी इतिहास को देखते हुए राजनेता प्याज की दामों को कम करने की कवायद कर रहे हैं लेकिन इससे वो कुछ ही लोगों को लाभ पहुंचा सकते हैं. सबको नहीं. सरकार के पास न तो इतने स्टोर हैं कि हर व्यक्ति के पास आसानी से पहुंच सके न ही सरकार के पास किसी प्रकार की कोई व्यवस्था.

प्याज की ऐतिहासिकता पर हम चर्चा नीचे करेंगे लेकिन उससे पहले जरूरी है कि ये दाम बढ़ क्यों रहे हैं. इसके बाद कोई इसपर बात क्यों नहीं कर रहा है. हो सकता है खादी वालों के लिए इतने पैसे कोई मायने न रखते हों लेकिन ध्यान रहे गरीब की थाली में प्याज का तड़का लगते ही वो पांच सितारा होटल की नवरत्न थाली में तब्दील हो जाती है. देश में इस पर कोई खास चर्चा सुनने को नहीं मिल रही बस इतना ही सुनाई आ रहा है कि प्याज महंगी हो गई है. क्यों का जवाब भी दिलचस्प आता है कि हर साल बारिश के बाद ऐसा होता है. फेसबुकिया और व्हाट्सपिया ज्ञान से खुदा ही बचाए. यहां हर खेमे की अपनी एक अलग ही कहानी है. अब हम आते हैं सीधे फैक्ट्स पर.

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राजधानी दिल्ली सहित देश के दूसरे हिस्सों में प्याज की ऊंची कीमतों ने लोगों को रुलाना शुरू कर दिया है. देश के अधिकांश हिस्सों में प्याज का खुदरा भाव 70 से 80 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच चुका है. ऐसे में केंद्र सरकार प्याज व्यापारियों के भंडारण की सीमा तय करने पर विचार कर रही है.

देश के सबसे बड़े प्याज के बाजार लासलगांव (महाराष्ट्र) में इस समय प्याज पिछले 4 साल में सबसे महंगी हो गई है. मौजूदा समय में होलसेल में प्याज की कीमत 4500 रुपए प्रति क्विंटल है. यहां ध्यान देने वाली बात है कि पिछली बार 16 सितंबर 2015 को प्याज 4300 रुपए प्रति क्विंटल हुई थी और 22 अगस्त 2015 को प्याज ने 5700 रुपए प्रति क्विंकल का ऑल टाइम हाई का रिकौर्ड बनाया था. आपको बता दें कि होलसेल मार्केट में जब कीमतें इस लेवल पर पहुंच गई थीं, तो रिटेल बाजार में प्याज की कीमतें 80 रुपए प्रति किलो तक जा पहुंची थीं. एक बार फिर से रिटेल बाजार में प्याज की कीमतें 70-80 रुपए प्रति किलो हो गई हैं.

प्याज के दाम बढ़ने के दो प्रमुख कारण होते हैं पहला तो मौसम और दूसरा कालाबाजारी. सरकारें मौसम पर तो काबू नहीं पा सकती लेकिन कालाबाजारी रोकी जा सकती हैं. मौसम विभाग के अनुसार प्याज उत्पादन वाले अहम राज्यों खासकर महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भारी बारिश की वजह से प्याज की सप्लाई पर असर पड़ा है, जिसकी वजह से कीमतें बढ़ गई हैं. इस बात में कोई दोराय नहीं है कि मौसमी आपदाओं के कारण ही प्याज के दामों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन ये कहना भी बेमानी है कि केवल यही एक कारण है.

आगे आने वाले त्योहारी सीजने को देखते हुए थोक व्यापारियों ने प्याज की सप्लाई बाजार में रोक दी है. इन व्यापारियों ने ये ऐसे वक्त किया है जबकि ज्यादातर राज्यों में भारी बारिश की वजह से किसान फसल ही नहीं काट पाया. जब नई फसल बाजार में आई ही नहीं और ऊपर से इन बड़े व्यापारियों ने स्टौक को जाम कर दिया. ऐसे में दाम बढ़ने को लाजिमी है. आलू और प्याज की कालाबाजारी सबसे ज्यादा होती है. ये दोनों सब्जियों के बिना रसोई अधूरी होती है और दूसरी बात की ये काफी दिनों तक टिक जाती हैं. हम देखते हैं कि कभी-कभी प्याज के दाम इतने गिर जाते हैं कि किसानों को उनकी लागत भी नहीं मिलती. आखिरकार इतनी अनिश्चता क्यों. सरकार को कालाबाजारी के खिलाफ कठोर कदम उठाने चाहिए.

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दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में प्याज की कीमतों को काबू में रखने के लिए केंद्र सरकार सस्ते प्याज मुहैया करा रही है. इसके लिए नाफेड और NCCF जैसी एजेंसियों के जरिए 22 रुपए प्रति किलो और मदर डेयरी के जरिए 23.90 रुपए प्रति किलो के भाव पर प्याज बेची जा रही है. आपको बता दें कि केंद्र के पास करीब 56 हजार टन का स्टौक है, जिसमें से 16 हजार टन बिक चुका है. सिर्फ दिल्ली में ही रोजाना करीब 200 टन प्याज सरकारी स्टौक से खत्म हो जाता है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में कीमतों को बढ़ने से सरकार कैसे रोकती है.

जानिए, कैसे बनाएं बेहतर रिज्यूमे

अगर आप नौकरी की तलाश मे हैं तो जरा ठहरे! क्योंकि उसके लिये जरूरी है एक बेहतर रिज्यूमे का होना. कहीं भी आप जौब के लिए जाते हैं तो नियुक्ता  आप से पहले आपका रिज्यूमे ही देखता है और उसके बाद वो आपके बारे में  राय बनाता है. रिज्यूमे आपका पहला इम्प्रेशन होता  है. कई लोग रिज्यूमे बनाते तो हैं  लेकिन वही पुराने तरीके से . आज कल नए ट्रेंड का दौर  है हर चीज में समय समय पर बदलाव होते रहे है तो रिज्यूमे भी इस प्रतिस्पद्धा मे पीछे क्यों रहे.  इसमे भी एक्सपर्ट्स द्वारा बदलाव होते रहे है. जरूरी है की रिज्यूमे बनाते वक्त आप अपडेट रहे और इन बातों का रखें ख्याल .

ज्यादा  लम्बा  न  बनाये  

नियोक्ता आपकी सीवी पर सिर्फ 6 सेकेंड खर्च करता है. इसमें ही उसे समझ आ जाता है कि इस पर आगे बढ़ना है या नहीं. आपके लिए इसी छह सेकेंड का महत्व है. अपने रिज्यूमे को पढ़ने में आसान बनायें.कम शब्दों मे ज्यादा जानकारी देते हुए अपने रिज्यूमे को बनाये . ज्यादा लम्बा रिज्यूमे उबाऊ लगता है अगर आप यह सोचते है की लम्बे रिज्यूमे से आप ज्यादा टेलेंटेड दिखते है तो यह बिलकुल गलत है . सीधा, सटीक रिज्यूमे इंटरव्यू लेने वाले के लिए पढ़ना भी आसान  होता है और वह आपके बारे मे आपकी महत्वपूर्ण जानकारी हासिल कर पाता है.

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व्याकरण की गलती न करें

अधिकतर लोग  रिज्यूमे मे व्याकरण व स्पेलिंग की गलतियां कर बैठते है तो  उससे बचे क्यों की नियुक्ता आपकी छोटी छोटी गलतियों को ही देखते है और यही गलतियां आपके इंटरव्यू से पहले ही आपकी छवि उनकी नज़रों मे खराब कर देती हैं . कहीं भी रिज्यूमे भेजने से पहले खुद भी चेक करें और हो सके तो किसी और को भी एक बार दिखा दे .

फौण्ट व साइज का रखें ख्याल

रिज्यूमे बनाते समय साइज ऐसा ले जो पढ़ने मे सुविधाजनक हो अगर आप ज्यादा छोटा लिखते है तो वो समझ नहीं आता या बड़ा लिखते है तो वो भद्दा  नज़र आता है वैसे स्टैण्डर्ड साइज 12 -13  व  फॉण्ट  टाइम्स न्यू रोमन को स्टैण्डर्ड माना जाता है.

अनुभव और योग्यता

अगर आप फ्रेशर है तो अपनी  योग्यता  को तवज्जो देते हुए अपने शौक ,और एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी मे पारंगत होने के प्रमाण  दें. यदि आप अनुभवी हैं तो अपनी जौब डिस्क्रिप्शन के हिसाब से रिज्यूमे को लुभवना बनाये  15 -20  साल का अनुभव है तो पहले  10  साल के  अनुभव की एक ही लाइन मे उसकी जानकारी दें. अपना फोन नंबर ,मेल ,वेबसाइट और लिंक्ड इन प्रोफाइल की जानकारी शेयर जरूर करें.  जिससे की नियुक्ता आपसे सम्पर्क कर सके .

झूठ का सहारा न लें

जौब पाने के लिये झूठ बोलने की गलती न करे. आपकी ये एक गलती आपका करियर  खराब कर सकती है कोई भी झूठा  सर्टिफिकेट या फ़र्ज़ी सैलेरी स्लिप आपको भारी  नुकसान पहुंचा सकती है यहां  तक की आप पर क्रिमिनल केस बनाकर  सलाखों के पीछे भी डाला जा सकता है आपके कागजों में गलती आपके करियर मे रोड़ा बन सकती है व आपका भविष्य भी खराब कर सकती है.

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पति पत्नी का परायापन: भाग 2

पति पत्नी का परायापन: भाग 1

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आखिरी भाग

शैली को एकटक देखते हुए उस ने कहा, ‘‘शैली, मैं चाहता तो नहीं हूं कि तुम कहीं काम करो, लेकिन हालात को देखते हुए तुम से नौकरी करने के लिए कहना पड़ रहा है. अगर तुम्हें नौकरी करनी ही है तो कहीं पास में ही नौकरी तलाश करो.’’

पति को चिंतित देख शैली ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘तुम मेरी चिंता मत करो, अपना अच्छाबुरा मैं अच्छी तरह जानती हूं.’’

इस के बाद वह अगले दिन से ही अपने लिए नौकरी की तलाश में जुट गई. थोड़ी कोशिश के बाद उसे एक बिल्डर के यहां नौकरी मिल गई. अब वह भी नौकरी पर जाने लगी. पत्नी के नौकरी करने से पंकज की आर्थिक स्थिति ठीक होने लगी. पैसे आए तो दोनों के चेहरों पर खुशी की लाली थिरकने लगी.

कुछ महीने तक तो पंकज के घर में सब कुछ ठीक था, परंतु एक साल गुजरने के बाद शैली के रंगढंग में काफी कुछ बदलाव आ गया. उस के रहनसहन और पहनावे को देख कर लगता था कि वह मौडर्न घराने से ताल्लुक रखती है.

औफिस से घर आने में वह कई बार लेट भी हो जाती थी. पंकज ने इस दौरान महसूस किया था कि शैली की चालढाल अब वैसी नहीं रही जैसी पहले थी. अब उस के पास महंगा मोबाइल फोन आ गया था, जिस पर वह हमेशा व्यस्त रहती थी.

एक दिन पंकज शैली के मोबाइल का वाट्सऐप देख रहा था. उसे वहां कुछ ऐसे फोटो देखने को मिले, जिस में वह एक अपरिचित आदमी के साथ काफी खुश नजर आ रही थी. उस फोटो के बारे में पूछने के लिए पंकज ने शैली को अपने पास बुलाया तो उस के चेहरे की रंगत उड़ गई.

वह कहने लगी कि यह औफिस में ही काम करने वाला व्यक्ति है. मगर पंकज को उस की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. इस के बाद उन दोनों के बीच किसी न किसी बात को ले कर नोकझोंक होने लगी. अब तक पंकज को पूरी तरह यकीन हो गया था कि शैली फोटो में जिस व्यक्ति के साथ है, उस से उस के अवैध संबंध होंगे.

एक दिन तो हद ही हो गई. उस रात शैली देर से घर लौटी थी. पंकज ने उस पर आरोप लगाया कि वह अपने प्रेमी के साथ गुलछर्रे उड़ा रही होगी, तभी घर आने में देर हो गई. पंकज ने उस समय उसे काफी भलाबुरा कहा था. शैली भी कहां चुप रहने वाली थी. उस ने भी कह दिया कि तुम मेरे ऊपर इतना शक करते हो तो मुझे तलाक दे दो. मेरी तुम्हारे साथ अब नहीं निभ सकती.

शैली की बात सुन कर पंकज सन्न रह गया. उसे उम्मीद नहीं थी कि शैली कभी उसे छोड़ कर सदा के लिए उस से दूर जाने का इरादा बना लेगी. लड़झगड़ कर उस रात दोनों सो गए. लेकिन उस दिन के बाद शैली हर 2-4 दिनों के बाद पंकज से तलाक ले कर अलग रहने पर दबाव बनाने लगी.

दरअसल, शैली जहां नौकरी करती थी, उस की बगल में सेक्टर-82 निवासी सुरेश सिधवानी की दुकान थी. सुरेश सिधवानी मूलरूप से राजस्थान का रहने वाला था. वह शादीशुदा था लेकिन अपनी पत्नी से अधिक शैली को प्यार करता था. जब उस की पत्नी को शैली के साथ उस के अवैध संबंधों की जानकारी हुई तो उस ने उसे रोकने की कोशिश की.

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लेकिन सुरेश सिधवानी के सिर पर शैली के इश्क का भूल चढ़ा था, इसलिए उस ने पत्नी की बात एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल दी. आखिर वह सुरेश को छोड़ कर चली गई.

पत्नी के घर छोड़ चले जाने के बाद सुरेश ने शैली को अपने पति से तलाक लेने पर जोर डालना शुरू कर दिया, ताकि दोनों हमेशा के लिए एक हो कर रह सकें. लेकिन पंकज मिश्रा इस के लिए राजी नहीं हुआ. उसे अपने बेटे और खानदान की इज्जत अधिक प्यारी थी.

जब शैली को लगा कि पंकज उसे तलाक नहीं देगा तब उस ने सुरेश से कहा, ‘‘सुरेश, अगर तुम मुझे सच में प्यार करते हो और हमेशा के लिए अपना बनाना चाहते हो तो पहले पंकज को खत्म करना होगा.’’

सुरेश भी यही चाहता था, इसलिए उस ने कहा कि तुम अब परेशान मत होना, मैं इस का इंतजाम कर दूंगा.

सुरेश सिधवानी के पास नगला चरणजीतदास का रहने वाला मोटर मैकेनिक इंद्रजीत आता रहता था. वह उस का विश्वासपात्र भी था. सुरेश ने पंकज की हत्या के बारे में उस से बात की. साथ ही यह भी कहा कि इस काम के एवज में वह उसे 10 लाख रुपए देगा.

इतनी बड़ी रकम के लालच में इंद्रजीत तैयार हो गया. उस ने पंकज की हत्या करने के लिए 50 हजार रुपए की पेशगी भी ले ली.

पंकज की हत्या करने की सुपारी लेने के बाद इंद्रजीत इस काम के लिए अपने दोस्त ककराला फेज-2 निवासी मोनू से मिला. उस ने मोनू से सारी बात तय कर के उसे .32 बोर की एक पिस्तौल तथा 3 गोलियां सौंप दीं.

मोनू ने गेझा, नोएडा निवासी अपने दोस्त सूरज तंवर को अपने साथ लिया. इस के बाद वे सभी पंकज की रेकी करने लगे. उन्होंने पता लगा लिया कि पंकज अपनी ड्यूटी के लिए किस रास्ते से आताजाता है. पूरी योजना बनाने के बाद 20 जून, 2019 को ये लोग पंकज का पीछा करने लगे. जैसे ही पंकज एक सुनसान जगह पर पहुंचा तो उसे रोकने के बाद गोली मार दी, जिस से घटनास्थल पर ही पंकज की मृत्यु हो गई.

पुलिस ने उन दोनों से पूछताछ के बाद इंद्रजीत, मोनू और सूरज को भी गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर वारदात में इस्तेमाल पिस्तौल और बिना नंबर प्लेट वाली मोटरसाइकिल भी बरामद हो गई.

थानाप्रभारी भुवनेश कुमार ने पंकज हत्याकांड के पांचों आरोपियों सुरेश सिधवानी, शैली मिश्रा, इंद्रजीत, मोनू और सूरज तंवर को गौतमबुद्धनगर की अदालत में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

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सूरज तंवर की उम्र 19 साल है और वह गेझा गांव के स्कूल में 12वीं का छात्र है. वह अपनी गर्लफ्रैंड की जरूरतों को पूरा करने के लालच में इस हत्याकांड में शामिल हुआ था. पंकज की हत्या और शैली मिश्रा के जेल चले जाने के बाद पंकज का 7 वर्षीय बेटा अपने चाचा के पास था.

पहला विद्रोही: भाग 2- अनुपम ने आश्रम से दूर क्या देखा?

‘‘मैं एक अबला और उस पर भी शूद्रा, भला आप को क्या चुनौती दे सकती हूं. परंतु मैं ने जो भी कहा है वह यथार्थ है, नभ में चमकते इस चंद्रमा की तरह,’’ कहते हुए उस ने आकाश में चमकते चंद्रमा को इंगित किया.

‘‘नहीं, गुर्णवी, तुम ने पृषघ्र को केवल चाहा है, प्रेम किया है. उस की शक्ति और बाह्य रूप को देखा है, उस के अंतर्मन को नहीं जाना. आओ, तुम्हें विश्वास दिला दूं,’’ कहते हुए पृषघ्र ने उस का हाथ पकड़ा और झटके से उठा कर अपने बाईर्ं ओर चट्टान पर खड़ा कर लिया.

‘‘सुनो, दसों दिशाओे, दिग्पालो और पंचभूतात्माओ, सभी मेरी घोषणा सुनो. मैं वैवस्वत मनु का पुत्र, कुमार पृषघ्र आज से, इसी क्षण से इस गुर्णवी (जूती) को, जो शूद्री (अछूत कन्या) है, शूद्रता से मुक्त करता हूं. इस का नाम अब से गुणमाला होगा,’’ कुमार की यह घोषणा रात्रि के अंधकार में गूंज उठी.

परंतु यह घोषणा गुणमाला को प्रसन्न न कर सकी. वह वसिष्ठ के भय से आतंकित हो, स्थिर नेत्रों से पृषघ्र को देखती रह गई.

‘‘चलो, गुणमाला, तुम्हें तुम्हारे आवास पर पहुंचा दूं,’’ कुमार ने उस की कटि में अपनी दीर्घ भुजा डाल कर कहा, ‘‘अब तुम निश्ंिचत और प्रसन्न रहो. मेरी शिक्षा पूर्ण होने पर यथासमय हम विवाह करेंगे. तुम राजरानी बनोगी,’’ पृषघ्र ने हथेली से उस का चेहरा थपथपा दिया.

उस मृगनयनी के अश्रु छलक गए.

कुमार पृषघ्र की घोषणा वायुमंडल में गूंजती हुई ऋषिवर वसिष्ठ तक भी पहुंची. वे विचलित हो गए. वसिष्ठ गुणमाला के बुद्धिकौशल और अनुपम रूपराशि के जादू से परिचित थे. उन्हें लगा, धरती पैरों तले खिसक रही है और वे शून्य में गिरते चले जा रहे हैं, कहीं ठौर नहीं मिल रहा है.

एकाएक वे सावधान हो कर बैठ गए, ‘कुछ करना ही होगा. यह युवक संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था को नष्ट कर देगा,’ वे सोचते रहे, ‘हो सकता है, पृषघ्र उस से विवाह भी करना चाहे. तब तो ब्राह्मणों का समाज में वर्चस्व ही समाप्त हो जाएगा क्योंकि वर्चस्व की सारी शक्तियां क्षत्रियों के बल पर ही तो आश्रित हैं. यदि शूद्र स्त्रियां क्षत्रियों के हृदय मार्ग से हो कर महलों में प्रवेश कर गईं तो राजा और राजनीति दोनों ही ब्राह्मणों के हाथों से चली जाएंगी. और जिस दिन ऐसा होगा, इन के सारे घाव हरे हो जाएंगे…और फिर…फिर…’ भयानक बदले के एहसास से वे कांप उठे.

प्रात: हवन आदि के पश्चात ऋषि वसिष्ठ ने सभी शिष्यों की उपस्थिति में पृषघ्र से कठोर स्वर में पूछा, ‘‘तुम ने कल रात क्या अनर्थ किया, जानते हो?’’

‘‘क्या अनर्थ किया है?’’ शांत स्वर में उस ने प्रतिप्रश्न किया.

‘‘भोले मत बनो कुमार, तुम ने एक शूद्र कन्या को उस की शूद्रता से मुक्त किया है. तुम पतित हो रहे हो.’’

‘‘मैं पतित हो रहा हूं, पर कैसे? एक नारी को शूद्रता की दासता से मुक्त करने से मैं पतित कैसे हो गया, गुरुदेव?’’ पृषघ्र का स्वर अत्यंत नम्र था.

‘‘तुम ऐसा नहीं कर सकते. ऐसा करने से एक क्रम बन सकता है जो हमारी सामाजिक व्यवस्था को छिन्न- भिन्न कर देगा,’’ वसिष्ठ कठोर स्वर में बोले.

‘‘यह कैसी सामाजिक व्यवस्था है गुरुदेव, जिस में मानव ही मानव को हेयदृष्टि से देखता है, उस का शोषण और तिरस्कार करता है. इस व्यवस्था को बदलना होगा.’’

‘‘किसी भी बदलाव के लिए न तो तुम अधिकृत हो और न ही सक्षम. यह कार्य हम ऋषियों की अनुमति के बगैर नहीं हो सकता. तुम होते कौन हो?’’ गुरु वसिष्ठ क्रोधित होने लगे.

‘‘क्षमा करें, गुरुदेव मैं यह कार्य प्रारंभ कर चुका हूं. जैसे प्रकृति अपने परिवर्तन के लिए किसी की मोहताज नहीं होती वैसे ही मैं ने भी शुरुआत की है,’’ पृषघ्र बोला.

‘‘तुम उद्दंड हो रहे हो,’’ क्रोधावेश में वसिष्ठ बोले, ‘‘आज तुम ने उस शूद्री को मुक्त करने की बात की है और कल उस से विवाह भी कर सकते हो.’’

‘‘हां, गुरुदेव, शिक्षा पूर्ण होते ही मैं उसे अपनी अर्धांगिनी बनाऊंगा,’’ पृषघ्र ने शांत भाव से उत्तर दिया.

वसिष्ठ की आशंका सच निकली. ‘कल को तो यह समस्त शूद्र जाति को सवर्णों में सम्मिलित कर देगा. क्रोध से यह मानने वाला नहीं लगता. कोई युक्ति करनी होगी,’ उन्होंने विचार किया.

‘‘तुम क्या कह रहे हो, पुत्र? तुम उस से विवाह भी करोगे, यह कैसे हो सकता है? तुम जानते हो, एक शूद्री से उत्पन्न की हुई जारज संतान तुम्हारी उत्तराधिकारी नहीं हो सकेगी. उसे कोई मान्यता नहीं देगा. तुम राजवंशी हो और वह एक छोटे कुल की स्त्री,’’ वसिष्ठ ने कोमल स्वर में समझाने का प्रयास किया.

‘‘नहीं, गुरुदेव, छोटे या घटिया तो कर्म होते हैं, कोई कुल नहीं…और स्त्री तो धरती है. धरती की कोई जाति नहीं होती. वह तो बीज (पुरुष) है, जो विभिन्न किस्मों में उगता है. इस में धरती का कोई दोष नहीं होता. दोषी तो बीज होता है.’’

‘‘तुम मुझे ही पढ़ाने लगे हो. स्मरण रखो, तुम इस गुरुकुल में विद्या अध्ययन के लिए आए हो, गुरु को पढ़ाने नहीं,’’ वसिष्ठ खीज कर बोले.

‘‘स्मरण है, गुरुदेव.’’

‘‘तो फिर अब से तुम उस युवती से नहीं मिलोगे और यहां रहते न तो कोई और घोषणा करोगे और न ही किसी को कोई वचन दोगे.’’

‘‘तो क्या अपना वचन मिथ्या हो जाने दूं. यह संसार मुझ पर थूकेगा नहीं?’’

‘‘तुम आखिर चाहते क्या हो? क्या तुम्हें मनमानी करने दूं? क्या तुम मुझे सामाजिक व्यवस्था का पाठ पढ़ाना चाहते हो?’’ वसिष्ठ ने झल्ला कर पूछा.

‘‘मैं आप के पास पढ़ने आया हूं, गुरुदेव,’’ पृषघ्र करबद्ध हो कर बोला, ‘‘मैं एक ऐसे समाज की रचना करना चाहता हूं जिस में चारों वर्णों के लोग एक ही ‘मनुष्य वर्ण’ के नाम से जाने जाएं. न कोई ऊंचा हो न कोई नीचा. कोई वर्ण भेद न हो…सर्वत्र समभाव हो. इस में आप मेरे मार्गदर्शक बनें.’’

सुन कर वृद्ध ऋषि सकते में आ गए. उन्होंने समझ लिया कि बहस से इस युवक को परास्त नहीं किया जा सकेगा. यह दृढ़निश्चयी है. इस का कुछ करना होगा. सोचते हुए उन्होंने आग्नेय नेत्रों से पृषघ्र को देखा और बगैर उत्तर दिए वहां से चल दिए.

आकाश में बादलों की भयंकर गर्जना के साथ वर्षा वेगवती हो रही थी. ऋषि वसिष्ठ ने उसी दिन से पृषघ्र को गोशाला का कार्य सौंप दिया था. भारी वर्षा के कारण 3 दिन से पशुओं के लिए घास की व्यवस्था नहीं हुई थी. गोवंश भूखा ही था. स्वयं पृषघ्र का आश्रम से बाहर जाना प्रतिबंधित था. उस ने सुना था कि आश्रम में 2-3 दिन से सूखी लकड़ी न होने से पाकशाला भी ठंडी ही है. उसे भी अन्न का दाना नहीं मिला था.

संध्या होतेहोते गहन अंधकार छा गया. गोशाला में जगहजगह पानी टपक रहा था. बड़ी कठिनाई से थोड़ा स्थान खोज कर वह बैठ सका. भूखी गायों का रंभाना उसे भारी पीड़ा दे रहा था. संतोष था तो केवल यही कि वह स्वयं भी निराहार था. उस की इच्छा हुई कि गोशाला की छत तोड़ कर उसी की घास पशुओं को खिला दे, परंतु यह संभव नहीं था.

बैठेबैठे ही पृषघ्र को नींद के झोंके आने लगे थे. वह कब सो गया, स्वयं भी न जान सका. अर्द्धरात्रि में गोवंश के रंभाने की आवाज से उस की नींद खुली. गहन अंधकार था. पानी अभी भी बरस रहा था. एकाएक वह कुछ समझ न पाया. अंधकार में दृष्टि फाड़ कर देखने का प्रयास किया, तभी एक गर्जना से वह चौंक पड़ा.

गोशाला में सिंह घुस आया था. वह तुरंत अपनी तलवार तान कर खड़ा हो गया और सावधानी से गायों की ओर बढ़ा. 2-3 गाएं सींगों की सहायता से सिंह से जान बचाने को प्रयासरत थीं. पृषघ्र ने निकट पहुंच कर बिजली की फुरती से सिंह पर भरपूर वार किया. वनराज पृषघ्र से भी फुरतीला निकला और एक गाय की गरदन कट गई. सिंह तेजी से निकल कर भाग गया.

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