खाने की दुनिया में बहुत कुछ नया हो रहा है जो थोड़ा ऐक्साइटिंग है तो थोड़ा पृथ्वी को बचाने वाला भी. पशुओं को मारे बिना मीट बनाने की प्रक्रिया चालू हो रही है. लैबों में पैदा सैल्स को कई गुना कर के असली स्वाद वाला मीट बन सकता है. इस से लाखों पशुओं को सिर्फ मार कर मीट के लिए पैदा नहीं किया जाएगा और वे पृथ्वी पर बोझ नहीं बनेंगे. इसी तरह बिना पशुओं का दूध बनने जा रहा है, जिस का गुण और स्वाद असली दूध की तरह होगा. चिकन भी ऐसा ही होगा.

यही जिलेटिन के साथ होगा. जिलेटिन पशुओं की हड्डियों से बनता है और दवाओं के कैप्सूलों में इस्तेमाल होता है. पेट में जाने पर जिलेटिन पानी में घुल जाता है और दवा अपना काम शुरू कर देती है. जो वैजीटेरियन हैं वे कैप्सूल नहीं लेना चाहते और वैजिटेरियन कैप्सूलों की मांग बन रही है.

दवा कंपनियों का कहना है कि वैजिटेरियन कैप्सूल महंगे होंगे. फिलहाल चुनावों के कारण यह काम टल गया है. जिलेटिन खाने में डलता है और मीठी गोलियों, केकों, मार्शमैलो आदि में भराव का भी काम करता है और वसा यानी फैट की कमी को भी पूरा करता है. रबड़ की तरह का जो स्वाद बहुत सी खाने की चीजों में आता है वह जिलेटिन के कारण ही है.

जिलेटिन का फूड में इस्तेमाल असल में जिलेटिन का इस्तेमाल फूड इंडस्ट्री में फार्मा इंडस्ट्री से ज्यादा होता है.

इसे वैजिटेरियन खाने में भी डाल दिया जाता है जबकि यह सूअर, गाय, मछली की खाल व हड्डियों को गला कर ही बनाया जाता है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...