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बच्चा चोरी की अफवाह

लेखक: मदन कोथुनियां

बेगुनाहों पर भीड़ का वहशीपन

बच्चा चोरी के मामले में भीड़ और उस के हमलों का पैटर्न देखें तो पता चलता है कि यह भीड़, दरअसल, उसी भीड़ की एक छिटकी हुई परत है जो कुछ वर्षों पहले गौरक्षा और लवजिहाद के नाम पर अल्पसंख्यकों व दलितों पर टूटी थी.

एक देश के रूप में यह पहली बार नहीं है कि भारत का सिर शर्म से झुक रहा है लेकिन एक भीषण डर और हैरानी जरूर पहली बार है. और इस की वजह है भीड़तंत्र का उभार, पीटपीट कर मार डालने वाली नफरत और बातबेबात भड़क उठती हिंसा.

जनवरी 2019 से ले कर जुलाई 2019 तक बच्चा चोरी की अफवाह के बाद भीड़ की हिंसा के 69 मामले सामने आए हैं. जिन में 33 लोगों को भीड़ ने मार डाला और करीब 100 को घायल किया. हालात की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महज 2 माह (जुलाईअगस्त) में 16 लोग मारे गए.

जुलाई में पहले 6 दिनों में भीड़ की हिंसा के 9 मामले हुए और 11 लोग मारे गए. इस तरह सिर्फ अफवाहों से बेगुनाहों की जानें जा रही हैं. मार्च 2014 से मार्च 2019 तक सरकार के मुताबिक देश के 9 राज्यों में विभिन्न वजहों से हुई मौब लिंचिग के 140 मामलों में 68 लोग मारे गए और 200 से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए गए. लेकिन गैरआधिकारिक आंकड़े इस से कहीं ज्यादा संख्या बता रहे हैं.

सरकार के आंकडे़ बताते हैं कि बच्चा चोरी की वारदातों का अफवाहों से कोई संबंध नहीं है. जिस राज्य में बच्चा चोरी की वास्तविक वारदातें ज्यादा हुई हैं वहां अफवाहों से पैदा हिंसा या मरने वालों की संख्या अपेक्षाकृत उतनी नहीं है, जितनी कि उन इलाकों में जहां सिर्फ अफवाहों ने भीड़ को उकसाया.

मिसाल के लिए कर्नाटक के जिस इलाके में पिछले दिनों जिस युवा इंजीनियर को जान गंवानी पड़ी, वहां तो ऐसी कोई वारदात हुई ही नहीं थी, फिर भी वहां पर भीड़ जमा हो गई.

इन अफवाहों के पीछे सिर्फ भय या आशंका का हाथ नहीं है, ये एक अधिक खूंखार और घिनौनी साजिश का हिस्सा जान पड़ती है. इन में स्वार्थ, लालच, प्रतिहिंसा और किन्हीं आगे के खतरनाक मंसूबों की पूर्ति की बू आती है.

लोकतंत्र को कुचलने पर आमादा यह भीड़तंत्र अदृश्य रूप से फैल रहा है. बच्चा हो या बीफ शक में या अफवाह में या किसी भी तरह की अन्य संदिग्ध स्थिति बना कर भीड़ किसी को भी घेर सकती है और जान से मार सकती है.

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चरम पर बच्चा चोरी की अफवाह

देश के कई राज्यों से बच्चा चोरी की खबरें या अफवाहें जोर पकड़ रही हैं. राजस्थान, मध्य प्रदेश से ले कर छत्तीसगढ़, बिहार व उत्तर प्रदेश के कई शहरों में लोग कानून अपने हाथ में ले रहे हैं. वे बच्चा चोरी की अफवाहों या खबरों के बाद महिलाओं व युवकों को बच्चा चोर होने के शक में पीट रहे हैं.

हालांकि विभिन्न प्रदेशों की पुलिस ने बाकायदा इस बात का ऐलान किया हुआ है कि कुछ लोग बच्चा चोरी की अफवाह फैला रहे हैं. यह सब गलत है, ऐसा कुछ नहीं हो रहा है. किसी भी अफवाह पर कानून अपने हाथ में न लें. यदि संशय होता है तो थानाचौकी पुलिस को सूचित करें. लेकिन इस अपील का असर होता दिख नहीं रहा और बच्चा चोरों के शक में लोगों की पिटाई का सिलसिला जारी है.

दरअसल, पुलिस और प्रशासन के सामने आए जब तक के ज्यादातर मामलों में भीड़ के हाथ कोई भी ऐसा शख्स नहीं लगा है जो वाकई बच्चा चोर हो. यह सिर्फ सोशल मीडिया और एकदूसरे के मुंह से सुनासुनाई बात के आधार पर फैली अफवाह है जिस के आधार पर लोगों को सतर्क जरूर हो जाना चाहिए.

राजस्थान, बेगुनाह हुए शिकार

राजस्थान में इन दिनों भीड़ कानून अपने हाथ मे ले रही है. अफवाहों की वजह से लोग उग्र हो जाते हैं और दहशत में लोगों को अगर अपराधी की थोड़ी भी आशंका लगती है तो भीड़ उस पर टूट पड़ती है और बिना कोई कारण जाने कानून हाथ में ले कर फैसला कर देती है.

इन मामलों में बच्चा चोरी की घटना की अफवाह सब से अधिक फैलती है. हालांकि, अन्य मामलों में भी भीड़ काफी दहशत फैला रही है.

हाल के दिनों में बांसवाड़ा, डूंगरपुर, सवाईमाधोपुर, भरतपुर, अलवर के बानसूर और उदयपुर में भी ऐसे मामले सामने आए हैं. बांसवाड़ा में तो स्वांग बना कर अपना पेट पालने वाले बहुरुपियों को बच्चा चोर समझ कर लोगों ने पीट तक दिया. वहीं, डूंगरपुर के बिछीवाड़ा में फेरी लगाने वाली महिला को बच्चा चोर समझ कर लोगों ने मारा.

सोशल मीडिया पर भी इस तरह की खबरें तेजी से फैल रही हैं. सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल करते हुए बच्चा चोर बता कर अलर्ट रहने की अपील की जा रही है. इन अफवाहों के चलते कई बेगुनाह भीड़ का शिकार बन रहे हैं.

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पिछले एकदो महीने के दौरान प्रदेश के कई जिलों से ऐसी दर्जनों घटनाओं की खबरें आई हैं जिन में भीड़ ने बच्चा चोरी का आरोप लगाते हुए अनजान लोगों को पीटना शुरू कर दिया. ऐसी पिटाई में कई लोगों की जानें जा चुकी हैं. ऐसी अफवाहों के संबंध में अब तक करीब सौ मामले दर्ज किए जा चुके हैं और दर्जनों लोगों को गिरफ्तार भी किया जा चुका है.

जयपुर जिले की बस्सी तहसील के एक गांव में एक जने की इसी संदेह में पिटाई के दौरान मौत हो गई. बच्चा चोरी के शक में भीड़ ने एक मंदबुद्धि व्यक्ति को पीटपीट कर मार डाला. अपने घर के बाहर सो रही महिला ने इस व्यक्ति पर अपने 4 साला बच्चे को छीन कर भागने का आरोप लगाया. शोर सुन कर भीड़ इकट्ठा हुई. 30 वर्षीय उस मंदबुद्धि व्यक्ति की पीटने के दौरान मौत हो गई.

उस के अगले ही दिन जयपुर जिले के ही आमेर इलाके में भी इसी संदेह के चलते एक व्यक्ति को पकड़ कर लोगों ने पीटना शुरू किया और फिर बाद में उस की भी मौत हो गई.

जयपुर के सब से निकट के गंवई इलाकों में एक हफ्ते के भीतर बच्चा चोरी के शक में 3 लोगों की पीटपीट कर हत्या की जा चुकी है, जबकि बच्चा चोरी के आरोप में लोगों को पकड़ने, पीटने और फिर पुलिस के हवाले करने की करीब डेढ़ दर्जन घटनाएं हो चुकी हैं.

राजस्थान के अलवर जिले में तो बच्चा चोरी करने वाले गिरोह की आशंका में ग्रामीणों ने स्वास्थ्य विभाग की टीम को ही बंधक बना लिया. यही नहीं, भीड़ ने पुलिस को भी दौड़ाते हुए पथराव कर दिया, जिस में दारोगा, सिपाही समेत 3 लोग घायल हो गए. बाद में पहुंची टीम ने सभी स्वास्थ्यकर्मियों को ग्रामीणों के बंधन से मुक्त कराया.

अलवर जिले के बानसूर थाना इलाके के गांव बुटेरी में टोल नाका पर एक संदिग्ध युवक को ग्रामीणों ने पकड़ लिया. बच्चा चोर की अफवाहों के साथ ही उस पर लोग टूट पड़े और लाठीडंडों से पिटाई कर दी.

दरअसल, एक शख्स साबी नदी की पुलिया के नीचे छिपा था, जिसे लोगों ने बच्चा चोर समझा. जब लोगों ने उसे देखा तो वह भागने लगा. नदी में से उसे पकड़ कर टोल नाका के कमरे में बंद कर दिया गया. साथ ही उस की पिटाई की.

जब लोगों ने उसे पुलिस के हवाले किया तो पूछताछ में पता चला कि वह शख्स बिहार का रहने वाला है जो ढाबे पर काम करता है. जिस के बाद पुलिस ने ऐसी अफवाहों से सतर्क रहने की अपील की.

वहीं उदयपुर के गोगुंदा थाना क्षेत्र में एक युवक को बच्चा चोर समझा गया और गांव वालों ने उस की पिटाई कर दी. हालांकि, बाद में पता चला कि वह एक फाइनैंस कंपनी का कर्मचारी है. वइ फाइनैंस कंपनी का पैसा वसूलने के लिए गांव आया था. लेकिन किसी ने उस के खिलाफ बच्चा चोरी की अफवाह फैला दी. जिस के बाद ग्रामीणों ने उसे पकड़ लिया.

ग्रामीणों ने उस की खूब पिटाई की. इतने में ही उस ने कर्मचारी होने का सुबूत देने की गुजारिश की और अपने मैनेजर से बात करवाई. तब लोगों ने उसे छोड़ा. पीडि़त ने गोगुंदा थाने में अज्ञात युवकों पर मामला दर्ज करवाया है.

वहीं, जोधपुर के प्रताप नगर इलाके में पानी की टंकी के पास एक व्यक्ति को बस्ती के लोगों ने बच्चा चोरी करने के संदेह में पकड़ लिया और उस की पिटाई कर दी. बताया जाता है कि एकलव्य भील बस्ती में तैयब खान के घर में खेल रही बच्ची के अपहरण का प्रयास किया गया, लेकिन उसे रंगेहाथों पकड़ लिया गया और उस की धुनाई कर दी. बाद में उसे पुलिस को सौंपा गया. अब पुलिस मामले की जांच कर रही है.

जोधपुर के भीतरी इलाके बकरा मंडी में 2 युवकों को बच्चा चोर समझ कर क्षेत्रवासियों ने मारमार कर अधमरा कर दिया. इस के बाद दोनों संदिग्धों को पुलिस थाने लाया गया, जहां पर पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि दोनों ही भिखारी हैं, जो भीख मांग कर अपना पेट भरते हैं.

इन दोनों की शक्लसूरत से क्षेत्रवासियों को लगा कि ये बच्चा चोर गैंग के सदस्य हैं और इलाके से बच्चा चोरी कर ले जाएंगे. पीडि़तों ने बताया कि उन से कुछ लोगों ने पूछताछ की और इस बीच कुछ लोगों ने मारपीट करनी शुरू कर दी.

दिल्ली में भी पिटे बेगुनाह

देशभर में बच्चा चोरी की अफवाहें इस कदर फैल गई हैं कि पुलिस के लिए इन से निबटना चुनौती बन गई है. बात चाहे राजस्थान की हो, उत्तर प्रदेश या फिर हरियाणा की, बच्चा चोरी की अफवाहें सभी जगह लगातार फैल रही हैं.

अखबारों के बीच बच्चा चोरी की यह अफवाह अब देश की राजधानी दिल्ली तक भी पहुंच चुकी है.

दिल्ली एनसीआर में ताजा मामला सामने आया है. ग्रेटर नोएडा के कुलेसरा गांव में अपने बच्चों को साथ ले जा रहे पिता को ही भीड़ ने बच्चा चोर की अफवाह फैला कर पीट डाला. मामला 31 अगस्त का है. कुलेसरा गांव में अपने और साले के 4 बच्चों को कार में बैठा कर ले जा रहे व्यक्ति को लोगों ने बच्चा चोर समझ कर बुरी तरह पीट दिया. घायल को बाद में एक अस्पताल में भरती कराया गया. सूचना पर जब तक पुलिस पहुंची, तब तक आरोपी फरार हो चुके थे. हालांकि पूछताछ के बाद पुलिस ने 3 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है.

दरअसल, जेवर गांव निवासी किशन राजमिस्त्री का काम करता है. किशन अपने 2 बच्चों और साले के 2 बच्चों को कार में बैठा कर कुलेसरा गांव में अपने रिश्तेदार से मिलने गया था. बच्चों ने सड़क पर दुकान देख कर समोसा खाने की जिद की. किशन बच्चों को कार में छोड़ कर दुकान पर समोसा लेने चला गया. वह सड़क पर खड़ा हो कर अपने बच्चों को कार में समोसा पकड़ा ही रहा था कि कुछ लोगों ने उसे बच्चा चोर समझ कर जम कर पिटाई कर दी.

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अफवाह की ही वजह से पिछले दिनों दिल्ली के हर्ष विहार इलाके में भी एक गर्भवती महिला को बेरहमी से पीटा गया. जिस महिला को लोग बच्चा चोर समझ कर पीट रहे थे. वह बोल तक नहीं  सकती थी.

भीड़ का वहशीपन इस बात से समझा जा सकता है कि जब महिला ने इशारे से पानी मांगा तो पानी देने के बजाय कुछ लोग उसे मारने के लिए लाठी ले आए. पीडि़त महिला अपनी ससुराल से कुछ दिनों से लापता थी. महिला के साथ मारपीट का वीडिया जब उस के परिवार वालों ने देखा तो उन के होश उड़ गए.

वीडियो सामने आने के बाद महिला के घर वालों ने पुलिस में मामला दर्ज कराया, जिस के 4 दिनों बाद पीडि़त महिला दिल्ली के हर्ष विहार थाने में मिली.

अफवाहें साजिश का हिस्सा

अफवाहों का फैलना और फिर उन की वजह से हिंसा होना कोई नई बात नहीं है. इस से पहले भी विभिन्न तरीकों की अफवाहें उड़ती रही हैं और उन से शांति व्यवस्था भंग होती रही है. मुंहनोचवा, चोटीकटवा जैसी अफवाहें फैल चुकी हैं और देखते ही देखते इन्होंने देशभर को अपने गिरफ्त में ले लिया था.

कुछ समाजशास्त्री ऐसी अफवाहों के पीछे सोशल मीडिया को भी जिम्मेदार मानते हैं, लेकिन यह भी सही है कि जब सोशल मीडिया नहीं था, ऐसी अफवाहें तब भी तेजी से फैलती थीं. करीब एक दशक पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश के तमाम इलाकों में ‘मुंहनोचवा’ जैसी अफवाह लोग अभी भी नहीं भूले हैं.

राजस्थान विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र पढ़ाने वाले राजकुमार करनाणी कहते हैं, ‘‘सवाल यह है कि यदि ऐसी अफवाहें किसी षड़यंत्र का हिस्सा हैं तो आखिर उस से फायदा किसे है? दरअसल, ऐसा कुछ माहौल कहीं न कहीं से बनाया जाता है और फिर उस से जुड़ी बातों को लोग ऐसी अफवाहों से जोड़ने लगते हैं.

‘‘बच्चा चोरी में भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है. महल्ले में या गांव में किसी अनजान व्यक्ति या महिला के पास बच्चा दिखा तो लोग उसे चोर ही समझने लग रहे हैं. पहले ऐसा नहीं था. लेकिन जब से अफवाह उड़ रही है, लोग आशंकित होने लगे हैं.’’

बहरहाल, पुलिस इन अफवाहों और इन की वजह से होने वाली घटनाओं को रोकने के लिए कड़ी मशक्कत कर रही है. लेकिन यह भी सही है कि इसे रोकना सिर्फ पुलिस के हाथ में नहीं है. सोशल मीडिया के दौर में जब तक अफवाहों से लोग खुद दूर नहीं रहेंगे, तब तक इसे रोक पाना मुमकिन नहीं है.

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पुलिस की चेतावनी

अफवाहों की वजह से भीड़ की हिंसा इस कदर भयावह होती जा रही है कि राजस्थान के डीजीपी को अपील जारी करनी पड़ी. पुलिस महानिदेशक ने कहा,‘‘लोग ऐसी अफवाहों पर ध्यान न दें और किसी आशंका की स्थिति में सीधे पुलिस को सूचना दें. अफवाह फैलाने वालों पर कड़ी कार्यवाही होगी और उन के खिलाफ रासुका भी लगाया जा सकता है.’’

वहीं, जिलों की पुलिस इन अफवाहों को रोकने और भीड़ हिंसा से आम और अनजान लोेगों को बचाने में कड़ी मशक्कत कर रही है. कहीं लाउडस्पीकर से लोगों को सावधान करने की अपील जारी की जा रही है तो कहीं पुलिस वाले खुद यह जिम्मा संभाले हुए हैं. मंदिरमसजिदों से भी ऐलान कराया जा रहा है कि बच्चा चोरी की घटनाएं सिर्फ अफवाह हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है.

राज्य के डीजीपी के मुताबिक, अब तक की जांच में किसी भी घटना में बच्चा चोरी की पुष्टि नहीं हुई है. उन्होंने बताया कि अब तक ऐसी अफवाहों में शामिल 82 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है और कई लोगों से पूछताछ की जा रही है.

इस मामले में एडीजे, क्राइम, बी एल सोनी ने बताया कि इस मामले में पुलिस अधीक्षकों को कार्यवाही करने के निर्देश देने के साथ ही लोगों में जागरूकता लाने के प्रयास किए जा रहे हैं. ऐसे गिरोह के लोगों की कोई जानकारी मिलती है तो व्यक्ति को उसे पुलिस के साथ शेयर करना चाहिए. ऐसे मामलों में सत्यता होने पर पुलिस कार्यवाही करेगी.

सांसों में घुलता जहर

यह माना जाता था कि वायु प्रदूषण के कारण सिर्फ सांस के रोग ही होते हैं, मगर नई रिसर्च कहती है कि वायु प्रदूषण हमारे शरीर के सभी महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुंचाता है. यह कैंसर, मस्तिष्क सम्बन्धी रोग, त्वचा सम्बन्धी रोग, फेफड़े और किडनी से जुड़े रोगों के लिए उत्तरदायी है. जिस तेजी से भारत में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है, आने वाले वक्त में यह सरकार के सामने बड़ी चुनौती बन कर खड़ा होगा. भारत दुनिया के उन देशों में से एक है जहां वायु प्रदूषण उच्चतम स्तर पर है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार दुनिया के 20 प्रदूषित शहरों में 13 भारत में हैं. भारत में हर साल करीब 11 लाख लोगों की मौत होती है और उसका कारण चौंकाने वाला है. इनमें से ज्यादातर मौतें सांस लेने से हो रही हैं. यूएस की दो संस्थानों ने मिलकर दुनिया भर में प्रदूषण से मरने वालों पर स्टडी की है. इस अध्ययन में पाया गया है कि वायुप्रदूषण से सबसे ज्यादा लोग भारत और चीन में मरते हैं. भारत की हालत चीन से भी गम्भीर है. स्टडी के मुताबिक चीन में प्रदूषण से मरने वालों की संख्या 2005 के बाद नहीं बढ़ी है, लेकिन भारत में यह आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. वायु प्रदूषण मृत्युदर को बढ़ाने वाली विभिन्न घातक बीमारियों जैसे कि फेफड़े के विभिन्न विकारों और फेफड़े के कैंसर के प्रसार में योगदान दे रहा है. हमारी सांस के साथ हवा में व्याप्त जहरीले सूक्ष्म कण शरीर में घुस कर कैंसर, पर्किन्सन, दिल का दौरा, सांस की तकलीफ, खांसी, आंखों की जलन, एजर्ली, दमा जैसे रोग पैदा कर रहे हैं. प्रदूषित वायु सांस के माध्यम से शरीर में घुसकर दिल, फेफड़े और मस्तिष्क की कोशिकाओं में पहुंच कर उन्हें क्षति पहुंचाती है.

फेफड़ों के रोग

वायु प्रदूषण से अस्थमा और क्रोनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज बढ़ती है, जिनमें क्रोनिक ब्रौन्काइटिस और एम्परसेमा जैसे रोग शामिल हैं. हवा में मौजूद एलर्जी और रासायनिक तत्व अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, त्वचा रोग, सीओपीडी, आंखों में जलन उत्पन्न करते हैं. बच्चों में फेफड़ों के रोगों का प्रमुख कारण वायु प्रदूषण ही है. इसके अलावा कई प्रकार की एलर्जी से भी लोग परेशान हो रहे हैं.

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कैंसर

वायु प्रदूषण से फेफड़ों के कैंसर का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ गया है. प्रदूषित हवा से अस्थमा जैसे फेफड़ों के रोग बूढ़े और जवान सभी में देखे जा रहे हैं. तेजी से बढ़ता प्रदूषण फेफड़ों में कैंसर के फैलने का मुख्य कारक है. अध्ययनों से यह पता चला है कि वायु प्रदूषण, फेफड़ों के कैंसर और विभिन्न हृदय रोगों के बीच एक गहरा सम्बन्ध है. यद्यपि धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर के सबसे बड़े कारणों में से एक माना जाता है, लेकिन बहुत से लोग अपने आसपास के वातावरण में मौजूद प्रदूषण के कारण कैंसर का शिकार हो गये हैं. प्रदूषित हवा के कारण सांस लेने में दिक्कत होती है. हमारे देश मे फेफड़े के कैंसर, ट्यूमर और तपेदिक के प्रकोप में तेजी से वृद्धि के प्रमुख कारणों में धूम्रपान और वायु प्रदूषण शामिल है. फ्रिज से निकलने वाली  क्लोरोफ्लोराकार्बन गैस पर्यावरण में ओजोन की सतह को नुकसान पहुंचा रही है, जिससे त्वचा कैंसर – मेलेबोमा का खतरा काफी बढ़ गया है.

हृदय रोग

लम्बे समय तक कार्बन मोनोऑक्साइड, नाट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड के सम्पर्क में रहने से दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है. यह खतरा जनसंख्या के 0.6 से 4.5 प्रतिशत तक को प्रभावित कर सकता है. छाती में दर्द, कफ, सांस लेने में दिक्कत, सांस लेते वक्त आवाज निकलना और गले का दर्द भी दूषित हवा में सांस लेने का लक्षण हो सकता है. वायु प्रदूषण का सम्बन्ध कोरोनरी स्ट्रोक में वृद्धि की घटनाओं के साथ भी जुड़ा हुआ है.

मस्तिष्क विकार

वायु प्रदूषण मस्तिष्क के कामकाज को प्रभावित करता है. इससे पहले वायु प्रदूषण को दिल और सांस के रोगों के लिए जिम्मेदार माना जाता था, लेकिन नये शोध में दस लाख मस्तिष्क टिश्यू में लाखों चुम्बकीय पल्प कण पाये गये हैं, जो मस्तिष्क को दीर्घकालिक नुकसान पहुंचा सकते हैं. जब अल्जाइमर रोग से पीड़ित रोगियों के मस्तिष्क की जांच की गयी तो डॉक्टरों ने पाया कि वायु प्रदूषण से घिरे रोगियों के दिमाग में मैग्नेटाइट के मौजूद होने की मात्रा ज्यादा है. यह वायु प्रदूषण के कारण है.

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गर्भवती महिलाओं को खतरा

स्त्रीरोग विशेषज्ञ के अनुसार यदि गर्भवती महिलाएं प्रदूषित हवा में अपना जीवन बिताती हैं तो उनमें मस्तिष्क की विकृति, अस्थमा, टीबी जैसे रोग तो पनपते ही हैं, उनके होने वाले बच्चे में मस्तिष्क का विकास भी ठीक से नहीं होता. लगातार प्रदूषित हवा में सांस लेने वाली गर्भवती का बच्चा पेट में ही मर सकता है. डौक्टरों के मुताबिक ऐसी महिलाओं के बच्चों में निमोनिया आम है और उनमें बीमारियों से लड़ने की शक्ति भी बहुत कम हो जाती है.

मेथी की खेती और बोआई यंत्र

भारत में राजस्थान और गुजरात मेथी पैदा करने वाले खास राज्य हैं. 80 फीसदी से ज्यादा मेथी का उत्पादन राजस्थान में होता है. मेथी की फसल मुख्यतया रबी मौसम में की जाती है, लेकिन दक्षिण भारत में इस की खेती बारिश के मौसम में की जाती है. मेथी का उपयोग हरी सब्जी, भोजन, दवा, सौंदर्य प्रसाधन वगैरह में किया जाता है.

मेथी के बीज खासतौर पर सब्जी व अचार में मसाले के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं. तमाम बीमारियों के इलाज में भी मेथी का देशी दवाओं में इस्तेमाल किया जाता है. यदि किसान मेथी की खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें, तो इस की फसल से अच्छी उपज हासिल की जा सकती है.

मेथी की अच्छी बढ़वार और उपज के लिए ठंडी जलवायु की जरूरत होती?है. इस फसल में कुछ हद तक पाला सहन करने की कूवत होती है. वातावरण में ज्यादा नमी होने या बादलों के घिरे रहने से सफेद चूर्णी, चैंपा जैसे रोगों का खतरा रहता है.

जमीन का चयन : वैसे तो अच्छे जल निकास वाली और अच्छी पैदावार के लिए सभी तरह की मिट्टी में मेथी की फसल को उगाया जा सकता है, लेकिन दोमट व बलुई दोमट मिट्टी में मेथी की पैदावार अच्छी मिलती है.

खेत की तैयारी : मेथी की फसल के लिए खेत को अच्छी तरह तैयार करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और बाद में 2-3 जुताइयां देशी हल या हैरो से करनी चाहिए. इस के बाद पाटा लगाने से मिट्टी को बारीक व एकसार करना चाहिए.

बोआई के समय खेत में नमी रहनी चाहिए, ताकि सही अंकुरण हो सके. अगर खेत में दीमक की समस्या हो तो पाटा लगाने से पहले खेत में क्विनालफास (1.5 फीसदी) या मिथाइल पैराथियान (2 फीसदी चूर्ण) 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देना चाहिए.

उन्नत किस्में : मेथी की फसल से अच्छी पैदावार हासिल करने के लिए उन्नत किस्मों को बोना चाहिए. अच्छी उपज देने वाली कुछ खास किस्में जैसे हिसार सोनाली, हिसार सुवर्णा, हिसार मुक्ता, एएफजी 1, 2 व 3, आरएमटी 1 व 143, राजेंद्र क्रांति, को 1 और पूसा कसूरी, पूसा अर्ली बंचिंग वगैरह खास हैं.

बोआई का उचित समय : आमतौर पर उत्तरी मैदानों में इसे अक्तूबर से नवंबर माह में बोया जाता है. देरी से बोआई करने पर कीट व रोगों का खतरा बढ़ जाता है व पैदावार भी कम मिलती है, जबकि पहाड़ी इलाकों में इस की खेती मार्च से मई माह में की जाती है. दक्षिण भारत, विशेषकर कर्नाटक, आंध्र प्रदेश व तमिलनाडु में यह फसल रबी व खरीफ दोनों मौसमों में उगाई जाती है.

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बीज दर : सामान्य मेथी की खेती के लिए बीज दर 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखनी चाहिए. बोआई करने से पहले खराब बीजों को?छांट कर अलग निकाल देना चाहिए.

बीजोपचार : बीज को थाइरम या बाविस्टिन 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के बोने से बीजजनित रोगों से बचा जा सकता है.

मेथी की बोआई से पहले बीजों को सही उपचार देने के बाद राइजोबियम कल्चर द्वारा उपचारित करना फायदेमंद रहता है.

बोआई की विधि : मेथी की बोआई छिटकवां विधि या लाइनों में की जाती है. छिटकवां विधि से बीज को समतल क्यारियों में समान रूप से बिखेर कर उन को हाथ या रेक द्वारा मिट्टी में मिला दिया जाता है.

छिटकवां विधि किसानों द्वारा अपनाई जा रही पुरानी विधि है. इस तरीके से बोआई करने में बीज ज्यादा लगता है और फसल के बीच की जाने वाली निराईगुड़ाई में भी परेशानी होती?है.

वहीं, इस के उलट लाइनों में बोआई करना सुविधाजनक रहता है. इस विधि में निराईगुड़ाई और कटाई करने में आसानी रहती है. बोआई 20 से 25 सैंटीमीटर की दूरी पर कतारों में करनी चाहिए. इस में पौधे से पौधे की दूरी 4-5 सैंटीमीटर रखनी चाहिए.

खाद और उर्वरक : खेत में मिट्टी जांच के नतीजों के आधार पर खाद और उर्वरक की मात्रा को तय करना चाहिए. आमतौर पर मेथी की अच्छी पैदावार के लिए बोआई के तकरीबन 3 हफ्ते पहले एक हेक्टेयर खेत में औसतन 10 से 15 टन सड़ी गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद डाल देनी चाहिए, वहीं सामान्य उर्वरता वाली जमीन के लिए प्रति हेक्टेयर 25 से 35 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 से 25 किलोग्राम फास्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश की पूरी मात्रा खेत में बोआई से पहले डाल देनी चाहिए.

सिंचाई प्रबंधन : यदि बोआई की शुरुआती अवस्था में नमी की कमी महसूस हो तो बोआई के तुरंत बाद एक हलकी सिंचाई की जा सकती है वरना पहली सिंचाई 4-6 पत्तियां आने पर ही करें. सर्दी के दिनों में 2 सिंचाइयों का अंतर 15 से 25 दिन (मौसम व मिट्टी के मुताबिक) और गरमी के दिनों में 10 से 15 दिन का अंतर रखना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण : खेत को खरपतार से मुक्त रख कर मेथी की अच्छी फसल लेने के लिए कम से कम 2 निराईगुड़ाई, पहली बोआई के 30 से 35 दिन बाद और दूसरी 60 से 65 दिन बाद जरूर करनी चाहिए, जिस से मिट्टी खुली बनी रहे और उस में हवा अच्छी तरह आजा सके.

खरपतवार की रोकथाम के लिए कैमिकल दवा का छिड़काव बहुत सोचसमझ कर करना चाहिए. अगर जरूरी हो तो किसी कृषि माहिर से सलाह ले कर ही खरपतवारनाशक का इस्तेमाल करें.

रोग व उस की रोकथाम : छाछया रोग मेथी में शुरुआती अवस्था में पत्तियों पर सफेद चूर्णिल पुंज दिखाई पड़ सकते हैं, जो रोग के बढ़ने पर पूरे पौधे को सफेद चूर्ण के आवरण से ढक देते हैं. बीज की उपज और आकार पर इस का बुरा असर पड़ता है.

रोकथाम के लिए बोआई के 60 या 75 दिन बाद नीम आधारित घोल (अजादिरैक्टिन की मात्रा 2 मिलीलिटर प्रति लिटर) पानी के साथ मिला कर छिड़काव करें. जरूरत होने पर 15 दिन बाद दोबारा छिड़काव किया जा सकता है. चूर्णी फफूंद से संरक्षण के लिए नीम का तेल 10 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के घोल से छिड़काव (पहले कीट प्रकोप दिखने पर और दूसरा 15 दिन के बाद) करें.

मृदुरोमिल फफूंद : मेथी में इस रोग के बढ़ने पर पत्तियां पीली पड़ कर गिरने लगती?हैं और पौधे की बढ़वार रुक जाती है. इस रोग में पौधा मर भी सकता है.

इस रोग पर नियंत्रण के लिए किसी भी फफूंदनाशी जैसे फाइटोलान, नीली कौपर या डाईफोलटान के 0.2 फीसदी सांद्रता वाले 400 से 500 लिटर घोल का प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए. जरूरत पड़ने पर 10 से 15 दिन बाद यही छिड़काव दोहराया जा सकता है.

जड़ गलन : यह मेथी का मृदाजनित रोग है. इस रोग में पत्तियां पीली पड़ कर सूखना शुरू होती हैं और आखिर में पूरा पौधा सूख जाता है. फलियां बनने के बाद इन के लक्षण देर से नजर आते हैं. इस से बचाव के लिए बीज को किसी फफूंदनाशी जैसे थाइरम या कैप्टान द्वारा उपचारित कर के बोआई करनी चाहिए. सही फसल चक्र अपनाना, गरमी में जुताई करना वगैरह ऐसे रोग को कम करने में सहायक होते हैं.

फसल कटाई : अक्तूबर माह में बोई गई फसल की 5 बार व नवंबर माह में बोई गई फसल की 4 बार कटाई करें. उस के बाद फसल को बीज के लिए छोड़ देना चाहिए वरना बीज नहीं बनेगा.

मेथी की पहली कटाई बोआई के 30 दिन बाद करें, फिर 15 दिन के अंतराल पर कटाई करते रहें. दाने के लिए उगाई गई मेथी की फसल के पौधों के?ऊपर की पत्तियां पीली होने पर बीज के लिए कटाई करें. फल पूरी तरह सूखने पर बीज निकाल कर और सुखा कर साफ कर लें और भंडारण कर लें.

 पूसा शक्त्तिचालित बीज बोने का यंत्र

बीज बोने का यह यंत्र छोटे और सीमांत किसानों के लिए अच्छा है. इस यंत्र को पहाड़ी इलाकों में बीज बोने के लिए काफी इस्तेमाल किया जा सकता है. इस यंत्र में 3 हौर्सपावर का इंजन लगा?है. इसे स्टार्ट करने के लिए पैट्रोल का इस्तेमाल किया जाता है. स्टार्ट होने के बाद उसे आप मिट्टी के तेल या डीजल से भी चला सकते हैं. इस के काम करने की कूवत 0.15 हेक्टेयर प्रति घंटा है.

इस यंत्र का कुल वजन तकरीबन 98 किलोग्राम है. इस यंत्र से बीज भी कम लगता है और समय की भी बचत होती है जिस से अच्छी पैदावार मिलती है.

चूंकि लाइन में बोआई की जाती है इसलिए फसल में पनपने वाले खरपतवारों को भी बहुत ही आसानी से निकाला जा सकता है. निराईगुड़ाई करने में आसानी रहती?है. इस यंत्र में बीज बोने के लिए कूंड़ की गहराई कम या ज्यादा भी की जा सकती है.

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खुशबूदार फसल कसूरी मेथी

कसूरी सुगंधित मेथी है. इस के पौधों की ऊंचाई तकरीबन 46 से 56 सैंटीमीटर तक होती?है. इस की बढ़वार धीमी और पत्तियां छोटे आकार की गुच्छे में होती हैं. पत्तियों का रंग हलका हरा होता है. फूल चमकदार नारंगी पीले रंग के आते हैं. फली का आकार 2-3 सैंटीमीटर और आकृति हंसिए जैसी होती है. बीज अपेक्षाकृत छोटे होते हैं.

भारत में कसूरी मेथी की खेती कुमारगंज, फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) और नागौर (राजस्थान) में अधिक क्षेत्र में की जाती है. आज नागौर दुनियाभर में सब से अधिक कसूरी मेथी उगाने वाला जिला बन गया है. अच्छी सुगंधित मेथी नागौर जिले से ही आती है और यहीं पर यह कारोबारी रूप में पैदा की जाती है और इसी वजह से यह मारवाड़ी मेथी के नाम से भी जानी जाती है.

कसूरी मेथी की अच्छी उपज के लिए हलकी मिट्टी में कम व भारी मिट्टी में अधिक जुताई कर के खेत को तैयार करना चाहिए.

उन्नत किस्में : कसूरी मेथी की प्रचलित किस्में पूसा कसूरी व नागौरी या मारवाड़ी मेथी हैं.

बोआई का समय : कसूरी मेथी की बोआई के लिए सही समय 15 अक्तूबर से 15 नवंबर माह है. अगर कसूरी मेथी को बीज के लिए उगाना?है तो इसे सितंबर से नवंबर माह तक बोया जा सकता है.

बीज दर : छिटकवां विधि से कसूरी मेथी की बीज दर 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और कतार विधि से 30 से 35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है.

बीजोपचार : कसूरी मेथी की अच्छी उपज लेने के लिए बीजोपचार जरूरी?है. एक दिन पहले पानी में भिगोने पर जमाव में बढ़ोतरी होती है. 50 से 100 पीपीएम साइकोसिल घोल में भिगोने से जमाव में बढ़ोतरी और अच्छी बढ़वार होती है. बोने से पहले राइजोबियम कल्चर से बीज को जरूर शोधित करें.

बोआई का अंतराल व विधि : कसूरी मेथी बोने की 2 विधियां प्रचलित हैं:

छिटकवां विधि : इस में सुविधानुसार क्यारियां बनाई जाती हैं, फिर बीजों को एकसमान रूप से छिटक कर मिट्टी से हलकाहलका ढक देते हैं.

कतार विधि : इस विधि में 20 से 25 सैंटीमीटर की दूरी पर कतारों में बोआई करते हैं. पौधे से पौधे की दूरी 5 से 8 सैंटीमीटर रखी जाती है, जबकि बीज की गहराई 2-3 सैंटीमीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.

सिंचाई : कसूरी मेथी की बोआई के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए. इस के बाद 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. फूल और बीज बनते समय मिट्टी में सही नमी होनी चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण : कसूरी मेथी की खेती मुख्यत: पत्तियों की कटाई के लिए की जाती है. बोआई के 15 दिन बाद और पत्तियों की कटाई करने से पहले खरपतवारों को हाथ से निकाल देना चाहिए.

गरबा स्पेशल 2019 : साबूदाना पूरी

आज हम आपके लिए लेकर आए हैं साबूतदाना पूरी रेसिपी.  इसे आप फेस्टिवल के दिनों में बनाकर अपने परिवार और दोस्तों को खिला सकते हैं.

सामग्री

एक कटोरी साबूदाना (भीगा हुआ)

1 कटोरी सिंघाड़े का आटा

दो उबले आलू

दो बारीक कटी हरी मिर्च

थोड़ा-सा हरा धनिया बारीक कटा हुआ

सेंधा नमक

काली मिर्च पावडर

थोड़ा-सा तेल

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बनाने की वि​धि

आलू को मैश कर सिंघाड़े के आटे में मिला लें. बाकी सभी वस्तुएं भी आटे में डालकर अच्छी तरह मिला लें.

थोड़ा पानी डालकर आटे जैसा गूंथ लें. अब हाथ पर पानी लगाकर छोटी-छोटी लोई तोड़कर पूड़ी का आकार दें.

अब तवे को चिकना करें. पूरी को इस पर पराठे जैसा तल लें.

जब पूरी अच्छी तरह सिंक जाए तो इसे दही के साथ पेश करें.

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लिव इन रिलेशनशिप: नफा या नुकसान

भारतीय संस्कृति में विवाह को एक संस्कार यानी जीवन जीने का तरीका माना गया है. लेकिन बदलते समय के साथ जीवन जीने का यह तरीका बदल रहा है और वे लोग जो बिना किसी रिश्ते में बंधे जिंदगी जीने का मजा लेना चाहते हैं वे विवाह का विकल्प लिव इन रिलेशनशिप में तलाश रहे हैं.

लिव इन रिलेशनशिप की वकालत करने वाले कहते है कि इसमें जिम्मेदारियों के अभाव में लाइफ टेंशन फ्री होती है, लिव इन पार्टनर अपना-अपना खर्च खुद उठाते है, कमरे के बेड से लेकर खाने-पीने की चीजों तक में दोनों फिफ्टी-फिफ्टी के भागीदार होते हैं. ज़िन्दगी भर किसी एक के साथ बंधे रहने की मजबूरी नहीं होती.

जब आपको लगे कि आप एक दूसरे के साथ खुश नहीं है आप एक दुसरे को टाटा बाय-बाय कह सकते हैं यानी आप बिना किसी झंझट के पार्टनर बदल सकते हैं. इस रिश्ते में कोई बंदिशें नहीं होती है. आप जब मर्ज़ी घर आइये, जिसके साथ मर्ज़ी घूमिये कोई रोकटोक नहीं, कोई पूछने वाला नहीं.

लिव इन उन लोगों को खासा आकर्षित करता है जो वैवाहिक जीवन तो पसंद करते हैं लेकिन उससे जुड़ी जिम्मेदारियों से मुक्त रहना चाहते हैं. जिम्मेदारियों के बिना ‘शेयरिंग और केयरिंग’ के रिश्ते का यह नया कॉन्सेप्ट युवाओं को बेहद रास आ रहा है. काम या पढ़ाई के लिए घर से दूर रह रहे युवाओं के बीच लिव इन रिलेशन खासा लोकप्रिय हो रहा है क्योंकि घर से दूर अनजाने शहर में यह रिश्ता युवाओं को भावनात्मक सपोर्ट देता है.

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बढ़ती मंहगाई की चलते ऐसे जोड़ों को बड़े शहरों में लिव इन में रहने के कई फायदे होते हैं. खर्चे शेयर होने के साथ एक दुसरे का साथ भी मिल जाता है. अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर अपनी मोहर लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिश्ते को पाप या अपराध मानने की बजाय पुरुषों के साथ रह रही महिलाओं और उनके बच्चों को कानूनी संरक्षण देने का रास्ता निकाले जाने की पहल भी की है.

यह तो हुआ इस रिश्ते का खुशनुमा पहलू लेकिन बिना बंधन के इस रिश्ते का एक दर्दनाक पहलू भी है जिससे अधिकांश युवा अनजान हैं जो पत्रकार पूजा तिवारी और प्रत्यूषा के मौत के मामले में साफतौर पर सामने आया है.

जहाँ प्यार, सेक्स,  शक और धोखे ने किसी को जान देने पर मजबूर कर दिया. माना कि इस रिश्ते में कोई दायित्व नहीं होता. आप बिना किसी बंधन के एक दुसरे के साथ रहते हैं लेकिन जब दो लोग एक दुसरे के साथ रहने लगते है तो वे एक दुसरे के साथ भावनात्मक रूप से भी जुड़ते है और इस जुड़ाव में वे एक दुसरे से अपेक्षाएं भी रखने लगते है लेकिन जब दोनों पार्टनर्स में से कोई भी एक सामने वाली की फीलिंग्स की अनदेखी करता है तो भावनात्मक रूप से कमजोर साथी इसे धोखा समझता है और कुछ न कर पाने की स्थिति में तनाव और डिप्रेशन का शिकार हो जाता है और बिना बंधन का यह रिश्ता  दर्दनाक बन जाता है.

इस रिश्ते का सबसे नकारात्मक पहलू यह होता है कि लिव इन में रहने वाले इन जोड़ों का अपने परिवार या दोस्तों से कोई कनेक्शन नहीं होता जिसके चलते उनके बीच अनबन या लड़ाई होने पर सुलह समझौता कराने वाला कोई अपना नहीं होता.

जैसा कि प्रत्युषा के मामले में भी सामने आया. हाल में ही हुआ पत्रकार पूजा तिवारी आत्महत्या प्रकरण भी इसी बिना बंधन के रिश्ते का एक भयावह परिणाम है. हाल के दिनों में लिव इन के साथ यौन शोषण, धोखाधड़ी और घरेलू हिंसा के मामलों में काफी इजाफा हुआ है ऐसे में आज़ादी की चाह रखने वाले युवाओं को लिव इन रिश्ता थोड़े समय के लिए भले ही मौज मस्ती और खुलेपन का एहसास देता हो लेकिन पूजा हो या प्रत्यूषा,  इनकी डेथ मिस्ट्री से जुड़ा लिव-इन का सच खतरनाक संकेत दे रहा है जिस से युवाओं को सबक लेने की ज़रुरत है.

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‘बिग बौस 13’: लड़कियों को शेयर करना पड़ेगा लड़कों के साथ बेड

कलर्स चैनल पर प्रसारित होने वाला रियलिटी शो ‘बिग बौस सीजन 13’ का आगाज हो चुका है.  इस बार ‘शो’ का कौन्सेप्ट काफी अलग है. वैसे आपको बता दें इस बार जब बिग बौस लौन्च हुआ तो ज्यादा देर कौन्टेस्टेंट से डांस नहीं करवाया गया. सीधा कौंटस्टेंट को दर्शकों से मिलवा दिया गया. जी हां, ‘बिग बौस 13’ के घर में इस बार 5 लड़के हैं.  और खास बात यह है कि इस बार बिग बौस के घर में काम पहले दिन ही काम बांट दिए गए हैं.

इस सीजन की खास बात ये है कि लड़कियों को जो काम दिया गया है, उनके पास ये औप्शन भी है कि वो इन 5 में से किसी भी एक लड़के को अपने मदद के लिए चुन सकती हैं. अधिकतर लड़कियों ने सिद्धार्थ शुक्ला को ही अपने काम के लिए पार्टनर चुना.  जिन्हें एक भी काम के लिए पार्टनर नहीं चुना गया है, वो हैं अनु मलिक के भाई अबु मलिक.

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‘बिग बौस 13’  के  लिए एक खास रूल बनाया गया है.  चलिए बताते है आपको. तो इस बार सलमान खान ने पहले ही दिन सभी लड़कियों को अपना बीएफएफ यानी ‘बेड फ्रेंड फौरएवरट यानी बेड पार्टनर चुनना था. लड़कियों को चुनते वक्त ये नहीं पता था कि सामने वाला लड़का है या लड़की. लेकिन जब बैंड लेकर लड़कियां अंदर घुसी तो पता चला कि आपस में किसी लड़की को बेड नहीं शेयर करना है बल्कि लड़की को जिनके साथ बेड शेयर करना है वो लड़के होंगे. जी हां, इस बार लड़कियों को लड़कों के साथ बेड शेयर करना पड़ सकता है.

आपको बता दें, वैसे अब तक सिर्फ दो कंटेस्टेंट का नाम सामने आया है जिन्हें बेड शेयर करना है. वो हैं सिद्धार्थ शुक्ला और रश्मि देसाई. दोनों इससे पहले कलर्स के सीरियल में पति-पत्नी के रोल में थे, रश्मि को जब ये बात पता चली कि उन्हें सिद्धार्थ के साथ बेड शेयर करना है वो असहज हो गईं. अपकमिंग एपिसोड में देखना दिलचस्प होगा कि आगे क्या होने वाला है.

इस शो में कंटेस्टेंट के तौर पर कोएना मित्रा, आरती सिंह, दलजीत कौर, पारस छाबड़ा, आसिम रियाज, अबु मलिक, सिद्धार्थ डे, रश्मि देसाई देवोलीना भट्टाचार्जी, सिद्धार्थ शुक्ला जैसे सितारें प्रतिभागी है.

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बिहार में बाढ़ : कुदरत के कहर पर सियासी घमासान

बिहार के पटना स्थित कंकङबाग के एक कालोनी में पिछले 4 दिनों से रामसरूप अपने परिवार को दो जून का खाना नहीं दे पा रहा. उस की 4 साल की बेटी है जो बारिश में भीग कर बीमार हो चुकी है पर पास में पैसे नहीं हैं. और तो और अपनी बेटी को अस्पताल ले जाने पर भी आफत है. पूरा पटना डूबा पङा है और अधिकतर अस्पतालों के अंदर भी पानी जमा है.

रामसरूप एक गुमटी में चाय की दुकान चलाता है मगर यह गुमटी लगातार हो रही बारिश में कहां गया उसे खुद पता नहीं.

राजधानी पटना की पौश कालोनी राजेंद्र नगर की एक तसवीर तो सोशल मीडिया में खूब वायरल है, जिस में एक बुजुर्ग अपनी बुजुर्ग पत्नी को ठेले पर कुरसी पर बैठा कर सुरक्षित स्थान की तलाश में है.

हाल ही में पटना से लौटे आम आदमी पार्टी नेता मृत्युंजय श्रीवास्तव ने बताया,”बिहार में बङा ही हृदयविदारक दृश्य है और पटना की हालत तो बेहद खराब. कम आमदनी वाले लोग जो मजदूरी कर पेट पालते हैं, उन्हें न तो खाना मिल पा रहा न साफ पानी. पटना जंक्शन पर पानी जमा है और ट्रेनों की आवागमन भी प्रभावित है.”

उन्होंने बताया,”वहां घोर अव्यवस्था है और सुध लेने वाला कोई नहीं.”

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कुदरत का कहर

“इस असमय बारिश ने पिछले 40 साल का रिकौर्ड तोङ दिया है. 1976 में भी इतने बेकार हालात नहीं थे,” यह कहना है बिहार जदयू के प्रदेश महासचिव इंजी. शंभूशरण का.

उन्होंने बताया कि लगातार बारिश से बिहार के कई जिलों में बाढ की स्थिति बन गई है. लगातार हो रही इस भारी बारिश की वजह से 15 जिलों में रेड अलर्ट घोषित किया गया है. जिलों में स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों को फिलहाल बंद कर दिया गया है. बिहार के अधिकतर भूभाग में पानी है और खेत डूब चुके हैं. फसल खराब हो गई है और इंसान के साथसाथ जानवरों तक का जीना मुहाल बन चुका है.”

लाखों लोग प्रभावित

उधर राज्य के आपदा प्रबंधन ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया,”लगातार बारिश से राज्य के लाखों लोग प्रभावित हैं. प्रभावित इलाकों में बोट चलाए जा रहे हैं और लोगों को बोट व ट्रैक्टरों से सुरक्षित स्थानों पर ले जाया जा रहा है.”

इस असमय बारिश ने राजधानी पटना सहित सहरसा, सुपौल,अररिया, फारबिसगंज, जोगबनी, पुर्णियां, कटिहार आदि जिलों में अभी भी अलर्ट जारी किया गया है भारी बारिश की चेतावनी जारी की गई है.

अकेले राजधानी पटना में 36 बोट, 75 ट्रैक्टर चला कर 26 हजार से अधिक लोगों को ररैस्क्यू कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है.

पटना शहर में तो कहीं कहीं 8 फीट तक पानी जमा हो चुका है और पहली मंजिल पूरी तरह डूब चुका है.

इस कुदरती कहर से अब तक 29 लोगों की मौत हो चुकी है.

सीएम की आपात बैठक पर सियासी घमासान

इस बीच बिहार में आपात स्थिति को देखते हुए सीएम नीतीश कुमार ने आपदा प्रबंधन विभाग के साथ बैठक की और कई जिलों के डीएम से वीडियो कौन्फ्रेंसिंग के जरीए हालात की जानकारी तो ली पर मीडिया से बातचीत में सीएम के एक बयान से सियासी विपक्षी पार्टियों ने उन्हें निशाने पर ले कर खूब खिंचाई की है. विपक्ष आरोप लगा रहे हैं कि एक तरफ पूरे बिहार में हाहाकार मचा है, लेकिन नीतीश कुमार ने सिवाए कुछ करने के इसे प्राकृतिक आपदा बता कर पल्ला झाङ लिया.

राष्ट्रीय जनता दल के नेता व पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने नीतीश सरकार की आलोचना की है और उचित प्रबंधन न करने पर सरकार को आङे हाथों लिया है.

विपक्ष के इस आरोप के पीछे कुछ सचाई भी है क्योंकि बिहार में पिछले 10 सालों से अधिक जदयू और भाजपा के गठबंधन में सरकार रही है. अभी भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं और भाजपा के साथ गठबंधन में सरकार चल रही है. इस सरकार में भाजपा के विधायक को भी मंत्री बनाया गया है.

हालांकि इस से पहले नीतीश कुमार की पार्टी जदयू लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिल कर बिहार में सरकार बनाई थी पर बाद में अधिक समय तक यह गठबंधन चली नहीं और टूट गई. तब नीतीश कुमार ने भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई थी.

हालांकि इस से पहले की पटकथा स्वयं नीतीश कुमार ने ही लिखी थी और अपने कई भाषणों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़े थे. कुमार ने तब भी बिहार की जनता को सुरक्षा, संरक्षा और तरक्की दिलाने की बात कही थी पर उस के बाद न तो बिहार की स्थिति सुधरी, न रोजगार बढे और न ही गांवोंशहरों का विकास हुआ.

रहीसही कसर बारिश और बाढ पूरी कर देता है. इस आपदा में बिहार के तमाम जगहों के साथ राजधानी पटना भी झील में तब्दील हो चुका है.

जलमग्न है कई इलाके

दिक्कत तो यह कि पटना के कई अस्पतालों में भी पानी भर चुका है और नालंदा मेडिकल कालेज एवं अस्पताल में जलजमाव होने से मरीजों का पलायन भी शुरू हो गया है. मरीजों को ले जाने के लिए स्ट्रैचर पानी में पूरी तरह डूबा नजर आया, तो वहीं पटना के बहादुरपुर, भूतनाथ रोड, आर ब्लौक स्टेशन रोड आदि जगहों में सड़कों पर पानी लग जाने से यातायात व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है. जलजमाव से नाले का गंदा पानी और कचड़ा सड़कों पर आ गया है.

इस बारिश ने पटना नगर निगम की सफाई व्यवस्था की भी पोल खोल कर रख दी है. पर सचाई यह भी है कि नालों में जमा कचरा पानी का निकासी नहीं होने देते और प्रदूषण फैलाते हैं. सरकार ने हालांकि जागरूकता अभियान चला कर लोगों से प्लास्टिक के कचरे को नालियों व सङकों पर न फेंकने की अपील पहले भी की है पर शहरी आबादी बढने और उचित मास्टरप्लान न होने की वजह से यह कचरा अब किसी भी शहर के लिए खतरा बन चुका है.

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बाढ़ और बालू का इतिहास

यों, बिहार में बाढ आमतौर पर नेपाल से पानी छोङे जाने और बिहार का शोक कोसी नदी के असमय मार्ग परिवर्तन से भी आती है पर इस समय राज्य के अधिकतर हिस्सों में बारिश इतनी अधिक हो रही है कि कई नदियां उफान पर हैं और कई छोटेबड़े बांध को तोङ कर पानी गांवोंशहरों में घुस गया है.

वैसे बिहार और बाढ पर राजनीति भी खूब होती रही है और हर सरकार जनता से यह वादा करती है कि बेतरतीब और कमजोर बांधों को मजबूत बनाया जाएगा, शहरों में पानी का निस्तारण उचित ढंग से किया जाएगा पर होता जमीनी रूप से कुछ भी नहीं.

सरकार की नींद भी तब तक नहीं खुलती जब तक राज्य की जनता बरबादी को झेलते मौत के गाल में समा न जाती हो. तब भी सिर्फ राज्य और केंद्र के मंत्री सिर्फ दौरा कर के और चंद घोषणाओं की झड़ी लगा कर वादों का पिटारा लिए वापस चले जाते हैं पर जमीनी तौर पर होता कुछ नहीं. बिहार में बाढ़ नेपाल द्वारा छोङे गए पानी की वजह से भी आती है पर इस दिशा पर भी कभी कोई ठोस पहल नहीं की गई है.

मौसम विभाग का अलर्ट

अब मौसम विभाग ने राज्य में अगले 48 घंटे में भारी बारिश का अनुमान जताया है और प्रशासन को अलर्ट कर दिया गया है. भागलपुर में भारी बारिश की संभावना जताई जा रही है. बताया जाता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भारी बारिश के मद्देनजर प्रभावित जिलों के जिलाधिकारियों से वीडियो कौन्फ्रेंसिंग कर हालात का जायजा लेंगे. इधर, राजधानी में बारिश के कारण पटना यूनिवर्सिटी में होने वाली प्रवेश परीक्षा स्थगित कर दी गई है. इस के अलावा बीएड, पीएचडी की परीक्षा भी रद्द कर दी गई है. साथ ही शहर में होने वाली प्रतियोगिताओं को भी अगली सूचना तक के लिए रद्द कर दिया गया है.

हेल्पलाइन नंबर जारी

सरकार ने राजधानी पटना का हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया है-

राजेंद्र नगर : 947319129 या 9006192686, एसडीआरएफ अधिकारी : 9110099313, कदमकुआं : 8210286544 या 9431295882, एसडीआरएफ अधिकारी : 9801598289, पत्रकार नगर :  7992297183, एनडीआरएफ अधिकारी : 9973910810, कंकड़बाग  : 6203674823, एसडीआरएफ अधिकारी : 8541908006, पटना सिटी  : 7903331869

रिलेशनशिप को ग्रांटेड मानकर नही चलना चाहिए: ऐली अवराम

स्वीडिश अभिनेत्री मारिया ग्रानलुंड की बेटी और स्वीडिश अदाकारा ऐली अवराम ने 2012 में मुंबई पहुंचते ही  मनीष पौल के साथ कौमेडी फिल्म ‘‘मिकी वायरस’’ में नजर आयी थी, तो उनकी संवाद अदाएगी से किसी को अहसास नहीं हुआ था कि वह भारतीय नहीं, बल्कि स्वीडन की रहने वाली स्वीडिष अदाकारा हैं. ऐली अवराम ने अपनी पहली ही फिल्म से लोगों को अपनी आकर्षक सुंदरता और संवाद अदायगी से प्रभावित कर लिया था. उसके बाद ‘‘बिग बौस सीजन 7’’ ने रातों रात स्टार बना दिया. बहरहाल, अब तो उनकी गिनती एक बेहतरीन व सफल बौलीवुड अदाकारा के रूप में होने लगी है. महज सात वर्ष के करियर में वह सिर्फ हिंदी भाषी फिल्मों तक ही सीमित नही है, बल्कि तमिल व कन्नड़ भाषा का सिनेमा भी कर रही हैं. इन दिनों वह तीस सितंबर से ‘‘औल्ट बालाजी’’और ‘‘जी 5’’ पर एक साथ स्ट्रीमिंग होने वाली वेब सीरीज ‘‘वर्डिक्ट आफ स्टेट वर्सेस नानावटी’’ को लेकर चर्चा में हैं, जिसमें उन्होंने सिल्विया नानावटी का किरदार निभाया है.

हाल ही में ऐली अवराम से हिंदी भाषा में उनके बौलीवुड व भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम के अलावा उनके करियर को लेकर एक्सक्लूसिव बातचीत हुई…

आप स्वीडन से हैं. आपकी मम्मी अभिनेत्री और आपके पिता संगीतकार हैं. दोनों में से किसने आपको सबसे ज्यादा इंस्पायर किया? और किस बात के लिए किया है?

मुझे लगता है कि मेरी मां ने मुझे इंस्पायर किया है. क्योंकि वह बहुत ही ज्यादा आर्टिस्टिक हैं. यूं तो मेरे पिता भी आर्टिस्टिक हैं, पर मेरी मं कुछ ज्यादा ही आर्टिस्टिक हैं. वह अभिनेत्री हैं. वह गाती भी हैं. कहानी सुनाती/स्टोरी ट्रेलर हैं. वह डांस भी करती हैं. उनको सब कुछ आता है. मेरे हिसाब से मुझे लगता है कि जब मैं बच्ची थी, तो मैंने शायद अपनी मां को यह सब करते हुए देखा और उनसे प्रभावित हुई. इतना प्रभावित हुई कि यह सब मुझे भी अच्छा लगने लगा. शायद मैंने अपनी मौम को बहुत कौपी भी किया है. जब मैं छोटी थी, तो कभी मैंने मौम के कपड़े ले लिए, मैंने उनकी शौल्स वगैरह कुछ ले ली, उससे मैंने कुछ बनाया और मैं गार्डन में खेलने लगती थी. मैं खुद का प्ले/नाटक बनाती थी. मैं गाना गाने लगी थी. मैं गार्डेन में नृत्य कर रही थी. मैं खेलती थी कि अभी मैं प्रिंसेस हूं. उसके बाद मैंने एक काला कपड़ा डाला और बोला कि अभी मैं व्हिच/भूत हूं. तो मैंने अपनी खुद की ही कई मनगढंत कहानी बनायी. यह सब कुछ मुझे लगता है कि मुझे मेरी मौम से विरासत में मिला. उनके कई नाटक मैंने देखा. अपनी मां को काम करते देखकर मैंने उसे अपने अंदर एक्सप्लोर किया. जब मेरी मां थिएटर करती थी, तब मुझे अच्छा लगता था.

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कभी भी आपकी मम्मी ने आपके अभिनय को देखकर कुछ कमेंट किया?

जी हां!! अभी जैसे मेरा यह वेब सीरीज ‘वर्डिक्ट आफ स्टेट वर्सेस नानावटी’ का ट्रेलर देखा है, यह उनको बहुत बहुत अच्छा लगा. मतलब वह बहुत प्राउड फील कर रही हैं. मुझे संजीदा अभिनय करते हुए देखना उन्हें बहुत अच्छा लगता है.

आपने स्वीडन में भी नृत्य व अभिनय किया. वहां पर थिएटर व फिल्मों में अभिनय किया. तो फिर बौलीवुड से जुड़ने की बात आपके दिमाग में कैसे आयी? किस बात ने आपको बौलीवुड से जुड़ने के लिए इंस्पायर किया?

मेरे अंदर जाने अनजाने बौलीवुड के प्रति लगाव तो पांच साल की उम्र में ही हो गया था. वास्तव में  जब मैं 5 साल की थी, तब मैंने टीवी पर एक बौलीवुड गाना देखा था. वह गाना कौन सा था, यह याद नही है. मुझे बस इतना याद है कि सब लोग एक बस के ऊपर खड़े होकर नाच गा रहे थे. और मुझे यह बहुत अच्छा लगा था. मुझे अच्छे से याद है कि मुझे बहुत अच्छा लगा, मतलब बौलीवुड से प्यार हो गया. शायद इसका जुड़ाव मेरे गार्डेन में नाचने, गाने, अभिनय करने से रहा हो. क्योंकि मुझे ऐसा फील हुआ कि यह लोग भी तो वही कर रहे हैं, जो मैं अपने गार्डेन में करती हूं. तो वहां से बौलीवुड प्रेम मेरे अंदर पनपा. मैंने अपने माता पिता से पूछा था यह क्या है? तो उन्होंने बताया था कि इसको बौलीवुड यानी भारत/इंडिया का सिनेमा कहा जाता है. उसी दिन से मैंने बौलीवुड और इंडिया के बारे में सोचना शुरू कर दिया था. फिर मेरी समझ में आया कि भारत एक देश है, जो कि हमारे देश से काफी दूर है. धीरे धीरे मेरे अंदर इंडिया जाने और बौलीवुड में काम करने की इच्छा पैदा हुई.

वक्त बीता. मैंने मेरे टीनएज में फिर से टीवी में बौलीवुड फिल्में देंखी, उस समय जब मैंने फिल्म ‘देवदास’ देखी, तो मुझे इस फिल्म से इतना प्यार हुआ कि मैंने अपने माता पिता से कह दिया कि मुझे अपनी जिंदगी में इसी तरह की फिल्म में काम करना है. मेरे पिता ने कहा कि ठीक है, पर पहले पढ़ाई करनी चाहिए. तो मैंने स्नातक तक की पढ़ाई की.

स्वीडन से बौलीवुड में आना कैसे हुआ? शायद 2012 में आप मुंबई आयी थीं?

वह एक लंबी कहानी है.पहले जब मैं टीनएज थी, तो मैंने डिसाइड किया कि मुझे बौलीवुड डांस सीखना है. तब मैंने पता लगाना शुरू किया. पूरे दो साल के बाद मुझे स्वीडन में एक अच्छा ‘डांस क्लास’ मिला. जहां पर  बौलीवुड डांस सिखाया जाता था.

स्वीडन में?

जी हां! स्वीडन में बौलीवुड डांस क्लास में मैंने एडमीशन लिया. मैंने डांस सीखना शुरू किया. कुछ दिन बाद मैंने अखबार में पढ़ा कि एक बौलीवुड डांस का शो होना है, जिसके लिए औडीशन हो रहे हैं. मैं वहां गयी. औडीशन दिया और मैं उसका हिस्सा बन गयी. हमारे डांस ग्रुप का नाम था- ‘‘परदेसी डांस ग्रुप.’’

तो उसके शो हुए होंगे?

जी हां! मैंने स्वीडन में एक नही कई शो किए. सभी ने मेरे बौलीवुड डांस की तारीफ की. वैसे भी डांस तो मेरी हौबी रही है. मेरे स्कूल में भी था. उस वक्त मैं सोचती थी कि जब मैं ग्रेजुएशन पूरा कर लूंगी, तब बौलीवुड जाने की कोशिश करुंगी. और ‘स्टाकहोम युनिविर्सिटी से ग्रेजुएशन पूरा होते ही मैंने देवनागरी सीखा. मैंने स्वीडन में ‘स्टाकहोम युनिविर्सिटी’ से ही देवनागरी भाषा की पढ़ाई की. मैंने सोचा कि यदि मुझे भारत जाना है, तो मुझे देवनागरी में लिखना व पढ़ना आना चाहिए. क्योंकि भारत में तो लोग देवनागरी में ही लिखते पढ़ते हैं. तो खुद की तैयारी अच्छी होनी चाहिए. मैंने पहले पूरी तैयारी की. मुझे जेब खर्च के लिए मिलने वाले पैसे बचाए. मुंबई में कहां रूकना है, पासपोर्ट बनवाया, हवाई जहाज की टिकट निकाला, फिर अपने माता पिता से भारत आने के लिए राजी किया. मुझे इंडिया जाना है, इस बात से दोनों बहुत डरे हुए थे. उनके मन में कई सवाल थे. वह अपनी बेटी को कैसे छोड़ेंगे? वैसे भी मेरे पिता बचपन से बहुत कड़क थे. मतलब अकेले बाहर जाना मना था. पिक्चर देखना भी मना था.

तो फिर आपने बौलीवुड फिल्में कैसे देखी?

हमें अकेले या दोस्त/सहेलियों के संग फिल्म देखने की इजाजत नहीं थी. पर हम अपने माता पिता के साथ फिल्म देखने जाते थे. वहां भी रात में अकेले या दोस्तों के साथ घर से बाहर जाना खतरनाक है. खैर, जैसा कि मैंने बताया कि मैंने अपने बलबूते पर भारत आने की सारी तैयारी की. गूगल पर इंडिया के बारे में जानकारी ली. मुंबई में रह रहे पारिवारिक दोस्तों से संपर्क किया. जब मैंने अपने पिता को अपनी सारी तैयारी के बारे में बताया, मैंने उन्हें टिकट दिखायी, मुंबई में कहां रंहूगी, उसकी जानकारी दी. तब उनको मुझे पर गर्व हुआ. और इंडिया आने की इजाजत मिल गयी.

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बौलीवुड के अपने अब तक के करियर को किस तरह से देखती हैं?

जन्म से 22 साल की उम्र तक स्टाकहोम, स्वीडन में रहने, स्वीडिष नागरिक होते हुए स्वीडन थिएटर व फिल्म में अभिनय करने के बाद जब मैंने 2012 में बौलीवुड में कदम रखा, तो बौलीवुड ने जिस तरह से खुले हाथों मेरा स्वागत किया, मुझे स्वीकार किया, उससे मै अभिभूत हूं. पर आज जिस मुकाम पर भी हूं, उसमें मेरी कड़ी मेहनत और प्रतिभा का भी योगदान है. मेहनत की बदौलत बौलीवुड में मैं अपनी पहचान बनाने में सफल हो सकी. किसी ने भी वास्तव में मेरी मदद नहीं की. पर सलमान खान की आभारी हूं कि उन्होंने मुझे शो में शुक्रवार और शनिवार को आने के लिए शो में स्वीकार किया. तब कई लोगों ने मुझे देखा. झगड़ालू किस्म की न होने के चलते मैं शो में कम नजर आती थी. मगर अच्छी फिल्में व किरददार निभाने के मौके मिले. अब ‘वर्डिक्ट आफ स्टेट वर्सेस नानावटी’ किया है.

भारत आने से पहले आप हिंदी और बौलीवुड डांस सीख रही थीं. यहां आने पर उसका फायदा मिला?

जी हां! मुझे ऐसा लगता है. पर मैंने स्वीडन में रहकर सिर्फ देवनागरी लिखना व पढ़ना सीखा था. हिंदी भाषा तो मैंने मुंबई आकर सीखी. मगर स्वीडन मे मैंने जो न्त्य सीखा था, उसका फायदा जरुर मिला. क्योंकि हर बार जब मैं एक नए कोरियोग्राफर/ नृत्य निर्देशक के साथ काम करती हूं, तो वह यही कहते हैं कि, ‘आप तो बहुत जल्दी डांस के स्टेप्स पकड़ लेती हैं. ’फिर चाहे वह स्टेप साउथ इंडियन स्टाइल, पंजाबी स्टाइल, मराठी स्टाइल, मौडर्न स्टाइल या क्लासिक स्टाइल का क्यों न हो. इसकी मूल वजह यह है कि मैंने स्वीडन मे बौलीवुड, देसी,बैले वगैरह कई तरह के नृत्य करना सीखा था. तेा जब आपका डांस का बेस/आधर मजबूत हो, तो सब तरह के डांस करना आसान हो जाता है. इतना ही नहीं जब मैं स्वीडन में थी, तो वक्त मेरे ट्रेनर ने भी कई बार कहा था कि,‘तुम बहुत अच्छी डांसर हो, बहुत जल्दी स्टेप्स पकड़ लेती हो.’ देखिए, रिदम वगैरह तो हर डांस में चाहिए.

वेब सीरीज‘‘वर्डिक्ट आफ स्टेट वर्सेस नानावटी’’ करने की वजह?

इसमे मैंने सिल्विया नानावटी का किरदार निभाया है. यह वेब सीरीज पूर्णरूपेण नारी प्रधान वेब सीरीज है. यह एक भावपूर्ण भूमिका है. सिल्विया नानावटी के किरदार में बहुत सारी परतें हैं. सिल्विया युवा है, शादीशुदा है, और एक मां और दर्शकों को उसके बुढ़ापे में भी उसे देखने को मिलता है. कलाकार को हर दिन इस तरह की चुनौतीपूर्ण व एक ही भूमिका में कई रंग निभाने वाली भूमिका नहीं मिलती है. मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकि इसमें बहुत ही सकारात्मक तरीके से इस युवा महिला और उसकी भावनाओं को दिखा रहा है. यह सिर्फ एक सुंदर चेहरा नहीं है, इस वेब सीरीज में महिला के दृष्टिकोण से कहानी पेश की जा रही है. जी हां, इसमें सिल्विया के दृष्टिकोण से 1959 की सत्य कथा को पेश किया गया है. यह फिल्म कहती है कि किसी भी औरत को लेकर किसी को भी जजमेंटल नही होना चाहिए.

इसी कथा पर अक्षय कुमार की फिल्म ‘‘रूस्तम’’ आयी थी?

यह फिल्म बहुत अलग थी. इसमें युवा महिला सिल्विया के नजरिए को व्यक्त नहीं किया गया. जबकि बड़ा मामला है, और इसलिए महिलाओं पर उंगली उठाना आसान है. वह अपने पति के लिए कैसे लड़ी, यह जानना जरुरी है. उसने अपने पति को धोखा दिया, लेकिन हमें उसके फैसले के कारण और परिस्थितियों को जानने की जरूरत है. उसने सुनिश्चित किया कि वह अपने पति और उसके परिवार के साथ वापस रहे. तो यह एक मजबूत महिला की अद्भुत कहानी है.

आप भी एक औरत हैं. अब आपने वेब सीरीज में सिल्विया का किरदार निभाया, वह भी औरत है. तो आपने सिल्विया को क्या समझा? या आप उसे क्या कहना चाहेंगी?

मेरे हिसाब से सिल्विया बहुत ही वलनरेबल औरत है. मेंटली बहुत स्ट्रौंग है. वह बहुत साहसी भी है. वह एक ऐसी औरत है, जिस अपनी जिंदगी जीनी है. वह अपनी जिंदगी स्वतंत्रता के साथ अपने दिल से जीना चाहती है. उसे समाज की परवाह नही है. उसे जो लगता है,  वही वह सही मानती है. सिल्विया संजीदा और खूबसूरत है. सिल्विया काव्य है. मैं समझ गई कि कहानी सुनने के बाद की दोनों ने अपने आप को माफ किया है. और अपने रिश्ते को आगे बढ़ाया है. बहुत से लोग ऐसा भी कहते हैं कि सिल्विया ने बाद में अपने पति के लिए इतनी लड़ाई इसलिए लड़ी, क्योंकि अब वह अपने पति के अलावा कहीं और जा नहीं सकती थी. उसका प्रेमी मर चुका था. अब उसकी जिंदगी में उसके पति के अलावा कोई बचा नहीं था. फिर उसके अपने बच्चे भी थे. तो अब पति के अलावा उसका कोई सहारा नहीं था. मगर इस तरह की बातें करने वाले लोग भूल जाते हैं कि अगर ऐसा था, तो जब पूरा परिवार कनाडा चला गया था, तब भी सिल्विया तलाक ले सकती थी. लेकिन उसने ऐसा किया नहीं. वह पूरी जिंदगी पति के साथ रह गई. इससे यही बात उभर कर आती है कि उसने पति से भी सच में प्यार किया है, पति ने भी उससे प्यार किया है. मगर रिलेशनशिप में कभी गलती होती है. कभी कभी एक दूसरे को भूल जाते हैं,कभी एक दूसरे को ग्रांटेड मानकर चलते है. जबकि रिलेशनशिप में हमेशा गिव एंड टेक होता है. फिर यहां तो अकेलेपन का भी मसला रहा. क्योंकि पति तो ज्यादातर समय उसके साथ रहता नही था.

क्या आप मानती हैं कि रिलेशनशिप में ग्रांटेड नहीं होना चाहिए?

जी नहीं…जिंदगी में रिश्ता इतना बड़ा होता है कि इसे कभी भी ग्रांटेड नहीं लेना चाहिए. एक पेड़ व फूल को हर दिन आपको पानी देना चाहिए, अन्यथा वह मर/मुरझा जाएगा.

मान लीजिए सिल्विया, आज की औरतों की तरह कामकाजी औरत होती, तो उसका प्रस्पैक्टिव बदल जाता? उसका निर्णय कुछ और होता?

आपके कहने का अर्थ यह हुआ कि सिल्विया अगर एक कामकाजी और आत्मनिर्भर व स्वतंत्र औरत होती तो अपने पति का केस न लड़ती. तो गलत. मेरे हिसाब से वह लड़ेगी. क्योंकि जब वह लोग कनाडा रहने जाते हैं, तब भी तलाक नही लेती.उ न दोनों के बीच सच्चा प्यार है. वह दोनो बहुत यंग थे,जब मिले थे. फिर उन्होंने शादी की. तीन बच्चे हैं. जिसको बहुत प्यार करते हैं. सेल्विया सच में एक परिवार चाहती थी. पर हालात ऐसे हुए कि पति के अक्सर घर से बाहर रहने का पति के दोस्त ने फायदा उठाया. अकेली औरत के भी अपने अहसास तो होते ही है, तो सिल्विया ने भी महसूस किया. पर इसके यह मायने नही है कि उसने अपने पति को प्यार करना बंद कर दिया.

अकेलापन दूर करने के लिए साथी ढूढ़ा और उससे प्यार हो गया ?

जी हां..ऐसा ही हुआ होगा.

जब आपके पास किसी फिल्म का औफर आता है, तो आप किस बात को प्रिफरेंस देती है?

सबसे पहले स्क्रिप्ट व अपने किरदार को सुनती हूं.फिर अपने अंदर के इंस्टीट्यूशन को सुनती हूं.

किस तरह के किरदार निभाना चाहती हैं?

एक्शन प्रधान सशक्त किरदार निभाना चाहती हूं. जबकि मेरी मां को लगता है कि मैं संजीदा किरदार ज्यादा अच्छे से निभा सकती हूं.

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आपने बौलीवुड में हिंदी फिल्में की. अब साउथ में तमिल व कन्नड भाषा की भी फिल्में की. क्या यह भाषाएं भी सीखी है?

नहीं.. मगर संवाद रटे और उनका अनुवाद कराकर भाव को समझा. मैं अपनी साउथ में अपनी कन्नड़ भाषा की फिल्म ‘बटरफ्लाय’ को लेकर बहुत उत्साहित हूं. क्योंकि वहां काम करना बहुत मुश्किल था. कन्नड़ भाषा में ‘बटरफ्लाय’ मेरी पहली फिल्म है. यह हिंदी फिल्म ‘क्वीन’ का वहां की भाषा में रीमेक है. फिल्म के प्रदर्शन के बाद पता चलेगा कि मैंने अभिनय कैसा किया है. दर्शकों का रिस्पांस क्या होता है. हां! इस फिल्म को करते हुए मैंने इंज्वाय किया.

‘‘बटरफ्लाय’ में विदेशी भाषा के भी संवाद?

जी हां! मैं इस फिल्म में कन्नड़, फ्रेंच व अंग्रेजी भाषा में बात करते नजर आउंगी. जब मुझे फ्रेंच बोलने का मौका मिला,तो बहुत अच्छा लगा.

इसके बाद क्या?

वेब सीरीज ‘इनसाइड एज 2’ में नजर आउंगी. दो फिल्में तथा एक अन्य वेब सीरीज भी है, पर इनके बारे में समय आने पर बताउंगी.

आपको लिखने का शौक हैं?

जी हां! मैं कविताएं लिखती हूं. जिनमें मेरे गहरे विचार होते हैं. जिंदगी के बारे में लिखती हूं. जिंदगी की मीनिंग के बारे में लिखती हूं. अलग-अलग इमोशंस के बारे में लिखती हूं. मेरे दिमाग में जो आता है, उसे पन्नें पर उतार देती हूं. मैं ज्यादा सोचती भी नहीं हूं. मैं बस लिखती हूं और उसके बाद मैं पढ़ती हूं कि क्या लिखा है.

अब तक कितनी कविताएं लिखी?

मुझे याद ही नहीं. पर मैं टीन एज से लिख रही हूं. मेरे पिता ने कहा है कि मुझे एक किताब बनानी चाहिए. मैं अपनी लिखी कहानियों को किताब के रूप में लाने की तैयारी कर रही हूं.

अब स्वीडन की कितनी याद आती है?

हर दिन बहुत याद आती है.

इंडिया में बौलीवुड के अलावा और क्या खास आपको पसंद है?

वैसे तो बहुत सारी चीजें हैं. यहां का कल्चर बहुत ही रोचक है. यह देश अपने आप में बहुत एक्साटिक है. फेस्टिवल बहुत ही कलरफुल है. बहुत फन. बहुत सारे लोग आपकी मदद करते हैं. खासकर गांव के लोगों में बहुत ज्यादा अपनापन मिलता है. जो मुझे बहुत अच्छा लगता है.

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क्या आपका भी बच्चा बिस्तर गीला करता है ?

कितना बड़ा हो गया /बड़ी हो गयी है. कितने कपड़े गीले करेगा/करेगी. ऐसी ही कुछ और बातें उन बच्चों को सुनने को मिलती है, जो बिस्तर पर पेशाब करते हैं. लेकिन मातापिता की डांट का बच्चे पर असर नहीं पड़ता क्योंकि वजह उनका आलसीपन नहीं बल्कि कुछ और है. अगर आपका बच्चा 6 साल की उम्र के बाद भी बिस्तर पर पेशाब करता है तो जरूरी है की उसे बाल रोग विषेशज्ञ को दिखाएं.

क्योंकि ये उनके अंदर किसी बीमारी का भी संकेत हो सकता है लगभग 70 % बच्चे इस समस्या से परेशान हैं. पांच साल की उम्र तक करीब 85 फीसदी बच्चे पेशाब पर नियंत्रण करना सीख जाते हैं. लड़कियों की तुलना में लड़कों में 12 साल की उम्र तक बिस्तर गीला करने की प्रवृति ज्यादा होती है.

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कारण

  1. बच्चों में आर्जीनीन वैसोप्रेसिन हार्मोन का स्तर नींद में नीचे चला जाता है, जो किडनी के द्वारा मूत्र निर्माण की प्रक्रिया को धीमा कर देता है. चूंकि नींद में इस हार्मोन का स्तर नीचे चला जाता है, इसलिए मूत्र निर्माण की प्रक्रिया तेज हो जाती है और मूत्राशय तेजी से भर जाता है. और इसी कारण बच्चा बिस्तर मे पेशाब कर देता है.

2. कब्ज या अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऔर्डर की वजह से भी बच्चे को बिस्तर में पेशाब करने की आदत हो सकती है.

3. जो बच्चा अधिक तनाव व डर में रहता है उनके अंदर भी यह समस्या हो सकती है.

4. बच्चे के यूरीन ट्रैक में संक्रमण, कम उम्र में मधुमेह, शरीर की बनावट में असंतुलन, नर्वस सिस्टम से संबंधित कोई समस्या से भी यह समस्या उतपन्न हो सकती है.

5. एक रिसर्च के मुताबिक यह आदत अनुवांशिक भी हो सकती है. जिन बच्चों के माता पिता भी बचपन मे बिस्तर गीला किया करते थे. उन के बच्चों में यह समस्या ज्यादा पायी जाती है.

6. आजकल ज्यादातर माताएं बच्चों को नैप्पीज पहना कर रखती हैं जिस कारण उन में पेशाब आने की प्रक्रिया को महसूस करना नहीं सिख पाते. जिस कारण थोड़ा बड़े होने के बाद भी उनके अंदर ये परेशानी बनी रहती और बिस्तर मे पेशाब कर देते हैं.

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क्या हैं उपाय

  • रोज सोने से पहले बच्चे को बाथरूम जाने की आदत डालें व रात में एक बार उसे पेशाब के लिये लेकर जाएं.
  • बच्चे को रात मे तरल पदार्थ कम दे.
  • गुड़, आजवाइन और काले तिल को मिला लें. रोज सुबह एक चम्मच इस मिश्रण को एक गिलास दूध में मिलाकर बच्चे को पिलाएं.
  • आंवले के गूदे में थोड़ी  काली मिर्च पाउडर मिलाकर बच्चे को सोने से पहले दें.
  • रात को सोने से पहले 2-3 छुहारे खिलाएं.
  • बच्चे को प्रतिदिन दो अखरोट व 10-12 किशमिश के दाने 15-20 दिनों तक खिलाएं.
  • जो माताएं बच्चे को नैप्पीज पहनाती हैं. उन्हें नैपी पहनने से पहले पेशाब कराएं व खोलने के बाद भी पेशाब के लिये लेकर जाएं.

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डेटिंग टिप्स: लड़कियां जरूर करती हैं ये 4 काम

कहा जाता है कि जब बात रिलेशनशिप की हो तो लड़कियों का दिमाग बहुत ज्यादा चलता हैं और वे हर पहलू पर नजर रखती हैं. ऐसा ही कुछ होता है जब वे किसी लड़के के साथ पहली डेट पर जा रही होती हैं.

जी हां, लड़कियां डेट पर जाने से पहले लड़कों के बारे में पूरी जानकारी निकालने की कोशिश करती हैं और इसके लिए कई तरीके निकलती हैं. तो आइये हम बताते हैं आपको कि किस तरह लडकियां डेट पर जाने से पहले ही लड़कों के बारे में जानकारी लेती हैं.

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  1. फैमिली बैकग्राउंड चैक करना

इसके साथ ही वो लड़के के फैमिली बैकग्राउंड के बारे में भी पता करती है कि लड़का कैसे परिवार से है. उसकी फैमिली इमेज कैसी है, क्या बिजनेस है आदि.

2. सोशल मीडिया अकांउट चेक करना

लड़कियां पहली डेट से पहले लड़के का सोशल मीडिया अकाउंट जरूर चेक करती हैं, ताकि उन्हें पता चल सके कि लड़का और उसकी सोसायटी कैसी हैं.

3. पसंद-नापसंद जानना

लड़कियां डेट पर जाने से पहले लड़के की पसंद-नापसंद जानने की कोशिश करती है. ताकि वह लड़के को इंप्रैस कर सके.

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4. अफेयर के बारे में

लड़कियां ये जानने को खास उत्सुक रहती हैं कि उसे डेट करने से पहले लड़के के कितने अफेयर रहे हैं. कहीं लड़के की इमेज प्लेबौय टाइप तो नहीं है, जो समय आने पर उसका दिल तोड़ दे.

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