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फेस्टिवल स्पेशल 2019: ऐसे बनाएं ब्रैड फ्रूटी बरफी

त्योहारों का सीजन चल रहा है. इसमें आप कोई खास डिश बनाना चाहती हैं तो ब्रैड फ्रूटी बरफी जरूर बनाएं. यह डिश बनाने में भी आसान है. तो चलिए जानते हैं इस खास डिश की रेसिपी.

सामग्री

ब्रैडक्रंब्स (2 कप)

दूध (1 कप)

मलाई या क्रीम (2 बड़े चम्मच)

चीनी (1/2 कप)

कटा हुआ सेब  (1)

कटा हुआ केला ( 1)

घी (3 बड़े चम्मच)

मक्खन  (1 बड़ा चम्मच)

चीनी  (11/2 बड़े चम्मच)

थोड़े से अनार के दाने (सजाने के लिए)

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बनाने की विधि

कड़ाही में 2 बड़े चम्मच मक्खन और 1 बड़ा चम्मच घी गरम कर ब्रैडक्रंब्स भूनें.

हलका भूरा होने पर चीनी, दूध व मलाई डाल कर चलाएं.

जब यह कड़ाही छोड़ने लगे तो आंच से उतार लें.

पाई डिश में एक परत इस की लगा कर छोड़ दें.

एक पैन में 1 बड़े चम्मच मक्खन में सेब, केला व चीनी डाल कर पकाएं.

चीनी के पिघलने व सेब को हलका क्रंच रखने तक पकाएं.

अब इसे ब्रैड की परत पर लगाएं.

इस के ऊपर ब्रैड की दूसरी परत लगाएं.

अनार के दानों से सजाएं. ठंडा होने पर काटें व सर्व करें.

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7 सहेलियों का खूबसूरत घर

35-40 साल पहले उत्तर प्रदेश के गांवों में आंचलिक कहानियों का खूब बोलबाला था. घर के कामकाज से निपट कर घर की बड़ीबूढ़ी महिलाएं किशोरावस्था की ओर छलांग लगाते बच्चों को कहानियां सुनाया करती थीं, जो बड़ी खट्टीमीठी होती थीं.

मसलन शैतान बच्चों को थोड़ी खट्टी कड़वी यानी भूतप्रेत, चुड़ैल और राक्षसों की कहानियां और अच्छे बच्चों को राजारानी, जंगली जानवरों, आदूगर और परियों की कहानियां. बच्चे सबसे ज्यादा परियों की कहानियां पसंद करते थे. इन्हीं कहानियों में एक कहानी 7 परियों की भी थी, जो आपस में सहेलियां थीं.

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बाद में 1982 में दिलीप कुमार, शम्मी कपूर, पद्मिनी कोल्हापुरे और संजय दत्त स्टारर एक फिल्म आई थी ‘विधाता’. इस फिल्म में एक गाना था ‘सात सहेलियां खड़ीखड़ी, परियां बुझाएं घड़ीघड़ी.’ द्विअर्थी बोल को ले कर उस समय इस गाने का विरोध भी हुआ था. संभवत: यह गाना 7 परियों वाली कहानी से प्रेरित था, जिस में थोड़ा सा अश्लीलता का छौंक लगा दिया गया था.

यहां हम 7 सहेलियों की अलग तरह की कहानी बता रहे हैं, जो आज के जमाने के हिसाब की हैं. ये 7 सहेलियां न तो अलौकिक हैं और न भारतीय, बल्कि चीन की हैं. इन की सोच या चिंता भी हालफिहाल की नहीं, भविष्य की है.

इन सातों सहेलियों ने सन 2008 में मजाकमजाक में तय किया था कि रिटायरमेंट के बाद साथसाथ रहेंगी. हालांकि उस वक्त सब ने इसे मजाक में लिया गया फैसला ही माना था.

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लेकिन अपनी पक्की दोस्ती के मद्देनजर अब इन सहेलियों ने तय किया है कि अपने एंजौयमेंट के लिए 30 साल तक इंतजार क्यों करें. बुढ़ापे में साथ रहने से आज जैसी फीलिंग नहीं आएगी. इसलिए सातों ने मिल कर 4 करोड़ रुपए में 7535 वर्गफुट का एक खूबसूरत तिमंजिला घर खरीदा है. इस शानदार घर में नीचे लिविंग एरिया है और ऊपर सातों के अलगअलग बैडरूम हैं.

खास बात यह है कि इन सातों फ्रैंड्स में से एक कुकिंग करती है, एक गार्डनिंग और तीसरी मेडिसिन की जानकार है. इन सहेलियों की कहानी सभी के लिए प्रेरणादायक है. वजह यह कि हम सब भविष्य के लिए प्लान तो बना लेते हैं, लेकिन पर्याप्त भविष्य निधि न होने के कारण वह पूरा नहीं हो पाता.

एक औनलाइन सर्वे के अनुसार, लोग हर महीने जितना चायकौफी पर खर्च करते हैं, उस से बहुत कम या बिलकुल भी रिटायरमेंट के लिए सेविंग नहीं करते.

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बांस कई लाइलाज बीमारियों की दवा

भारतवर्ष में बांस तकरीबन 11.4 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र पर अपना दबदबा रखता है. यह विश्व का सब से जल्दी बढ़ने वाला घास कुल का सब से लंबा पौधा है जो कि गे्रमिनी (पोएसी) परिवार का सदस्य है. इस की लंबाई अलगअलग हालात में अलगअलग हो सकती?है और कुछ की लंबाई सिर्फ 30 सैंटीमीटर होती है तो कुछ की 40 मीटर तक भी हो सकती है. इस के तने का व्यास 1 मिलीमीटर से 30 सैंटीमीटर तक होता है.

दुनियाभर में इस की 1,250 प्रजातियां पाई जाती हैं. इन में से 129 प्रजातियां भारत में ही मिलती हैं और इन में से 98 प्रजातियां तो सिर्फ उत्तरपूर्वी क्षेत्रों जैसे मणिपुर, असम, मिजोरम, त्रिपुरा वगैरह राज्यों में पाई जाती?हैं.

बंबू शब्द कन्नड़ शब्द बांबू से ही पैदा हुआ है. चीन में इसे झू नाम से जाना जाता है. वहां सदियों से इस की कटाई चल रही?है, फिर भी वहां बांस के 36 घने जंगल हैं. इन का कुल क्षेत्र 4-7 मिलियन हेक्टेयर में है जोकि चीन के वन क्षेत्र का 3-5 फीसदी है.

चीन के साथसाथ दूसरे देशों में भी इस का इस्तेमाल घर बनाने, फर्नीचर बनाने, बरतन बनाने, सजावटी सामान बनाने, पेपर और रस्सी बनाने और जानवरों को इस के पत्तों को खिलाने में उपयोग में लाया जाता है. बांस की नई कोपलों यानी तनों से झारखंड, बिहार, ओडि़सा और छत्तीसगढ़ राज्यों में बहुत ही लजीज खाना बनाया, खाया और बेचा जाता है. इन के नए तनों को?छीलने से जो श्राव या तरल मिलता है, इस का इस्तेमाल तमाम तरह की बीमारियों के इलाज में होता है. बांस औषधीय गुणों से भरपूर है. यह दवा बनाने के काम भी आता है.

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औषधीय गुण का इस्तेमाल

प्राचीन काल से ही चीन में अनेक रोगों जैसे तेज बुखार, ज्यादा गरमी होने पर नाक से खून बहना, उलटी होना, ठंड लग जाना, कफ हटाना वगैरह के इलाज में इस का इस्तेमाल किया जाता रहा?है.

बांस से बना तबाशीर यानी सिलिका का इस्तेमाल बच्चों में होने वाले मिरगी व बुखार ठीक करने के लिए किया जाता है. तबाशीर का उपयोग पसीना, ठंड, गरमी से राहत और कफ को खत्म करने के लिए भी किया जाता है.

बांस का इस्तेमाल त्वचा की खूबसूरती बनाए रखने में भी किया जाता है. बांस से निकलने वाला रस या स्राव में प्रचुर मात्रा में सिलिका पाया जाता?है जो कि हमारी त्वचा और बालों को सेहतमंद बनाता है. बांस का महीन चूर्ण जो पाउडर की तरह बहुत ही मुलायम होता है और संवेदनशील त्वचा, बालों के प्रयोग के लिए मुफीद होता है.

बांस से बना नमक भी कई तरह से इस्तेमाल में लाया जाता है, पर इसे बनाने में बहुत से बांस को हाई टैंपरेचर यानी बहुत ज्यादा तापमान 850-1500 डिगरी सैंटीग्रेड पर कई बार जलाया जाता है. इस तरह बांस पिघल कर बैगनी रंग में बदल जाता है. इस बांस के साथ तैयार नमक को नहाने वाला साबुन बनाने, चेहरे की सुंदरता बढ़ाने वाले पदार्थ बनाने, टूथपेस्ट बनाने, बिसकुट बनाने, अंगों की सफाई करने वाले घोल बनाने वगैरह में किया जाता?है.

काले बांस यानी फाइलोस्टाइकस निगरा में सिलिका की मात्रा ज्यादा होती है. इस वजह से यह बहुत मजबूत होता है. इस काले बांस की निचली गांठों में सिलिका प्रचुरता में होती है, जिसे तबाशीर कहते हैं.

चीनी भाषा में इसे तीयांन झूं हुआंग कहते हैं. बहुत सी दवाएं त्वचा रोग और तेज बुखार से संबंधित इस से बनाई जाती हैं.

बांस की कुछ प्रजातियां जैसे कि फाइलोस्टाइकस हेनोनिस जो कि कोरिया में विशेष रूप से पाई जाती हैं, में औषधीय गुण कूटकूट कर भरा है. अत्यधिक लार का निकलना, सांस संबंधी बीमारी, हेमोस्टेटिस, फुसफुसीय बीमारी, ज्यादा संक्रमण होने वगैरह को रोकने में यह अत्यधिक उपयोगी है.

बांस के तबाशीर का इस्तेमाल सूजन दूर करने, फेफड़ों के ठीक से काम करने में भी किया जाता है. बांस का पौधा भी कई बीमारियों जैसे ज्वरनाशक, पसीने से संबंधित, मूत्रवर्धक, मन को शांत रखने में, उलटी (वमन) करने में, कफ दूर करने में और जीवाणु (बैक्टीरिया) के संक्रमण को रोकने में कारगर है. यह खासतौर से आयुर्वेदिक टौनिक बनाने में भी इस्तेमाल होता है जो कि पूरे शरीर की सुरक्षा करता है.

शीतोप्लादि चूर्ण, जिस का इस्तेमाल कफ, ठंड का प्रकोप, दमा और सांस संबंधी बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता है, को बनाने में 8 भाग बांस का तबाशीर, 4 भाग गोल मिर्च यानी काली मिर्च, 2 भाग इलायची और 1?भाग दालचीनी का इस्तेमाल होता है.

बांस की कुछ दूसरी प्रजातियां जिन का उपयोग फेफड़ों की सूजन दूर करने और बच्चों में होने वाली ऐंठन को दूर करने वगैरह के इलाज में किया जाता है. कफ और गरमी के चलते होने वाली ऐंठन के उपचार के लिए और ऐसे कफ, जिसे निकालना मुश्किल है, के इलाज के लिए किया जाता है.

पत्तों का इस्तेमाल

बांस के पत्तों का इस्तेमाल छाती और सिर में लगने वाली ठंड से बचाव के लिए होता है. इसे मूत्रवर्धक और ज्वरनाशक के लिए भी अच्छी दवा मानी जाती है.

बांस के पत्तों को खिलाने से दस्त ठीक हो जाते?हैं. बंबू मोसो प्रजाति के पत्तों का इस्तेमाल गठिया का दर्द कम या खत्म करने के लिए किया जाता है. बांस का पत्ता यानी लोपोथेरम बांस की छीलन के साथ मिला कर पेट की गरमी दूर करने या शीतलन के लिए किया जाता है. इस के अलावा बांस के पत्तों का इस्तेमाल पेचिश, दस्त वगैरह और पेट से संबंधित बीमारियों को दूर करने में किया जाता है.

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तने का औषधीय इस्तेमाल

बांस के तने का इस्तेमाल कफनाशक व ज्वरनाशक रोगरोधी कूवत बढ़ाने व दवा बनाने के काम आता है. ऐसे बांस की कुछ किस्में हैं, बौना बांस (लोपोथेरी ग्रेसिलिस) बांस के तने का इस्तेमाल खून के बहाव को रोकने के लिए दवा बनाने में किया जाता?है.

बंबू पाम वैसे तो एक सजावटी पौधे के रूप में विश्व में प्रसिद्ध है, किंतु इस के कई औषधीय गुण भी हैं. यह बांस मूल रूप से चीन का पौधा है.

बांस के तने का रस (जूस) बहुत सी बीमारियों के इलाज में किया जाता?है, जैसे रोगरोधी कूवत बढ़ाने, मूत्रवर्धक, कैटरल, कफनाशक व दिमागी संबंधी संक्रमणों के लिए दवा बनाने में उपयोगी होता है, वहीं मोसो बांस के तने का इस्तेमाल मितली और खट्टी डकार की रोकथाम के लिए किया जाता?है. बांस की छाल का इस्तेमाल वमनरोधी यानी उलटी रोकने की दवा बनाने में किया जाता है.

 जड़ का औषधीय इस्तेमाल

बांस की जड़ों से भी कई दवाएं बनाई जाती हैं, जैसे कि शारीरिक द्रव्यों के स्राव को रोकना, खून के बहाव की जांच करना वगैरह. इस की जड़ों का इस्तेमाल पागल कुत्तों के काटने से होने वाली मुख्य बीमारी रेबीज में कारगर है. कुछ अलग तरह की असाधारण बीमारी जैसे बेचैनी, बुखार, नींद न आना, चिंता से छुटकारा पाने के लिए इस की जड़ों का काढ़े के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

बांस के औषधीय गुणों के बारे में पर्यावरणविद, वन अनुसंधानकर्ताओं और किसानों का ध्यान बांस के विभिन्न भागों पर अधिक जोर देने के लिए है.

बांस सिर्फ इमारती लकड़ी नहीं है, बल्कि कई असाध्य व लाइलाज बीमारियों के निदान के गुण अपने अंदर भरपूर मात्रा में समेटे हुए?है, जिस पर काफी शोध की जरूरत है.

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अंधेरे उजाले : भाग 1

सुदेश अपनी पत्नी तनवी के साथ एक होटल में ठहरा था. होटल के अपने कमरे में टीवी पर समाचार देख वह एकदम परेशान हो उठा. राजस्थान अचानक गुर्जरों की आरक्षण की मांग को ले कर दहक उठा था. वहां की आग गुड़गांव, फरीदाबाद, गाजियाबाद, दनकौर, दादरी, मथुरा, आगरा आदि में फैल गई थी.

वे दोनों बच्चों को घर पर नौकरानी के भरोसे छोड़ कर आए थे. तनवी दिल्ली अपने अर्थशास्त्र के शोध से संबंधित कुछ जरूरी किताबें लेने आई थी. सुदेश उस की मदद को संग आया था. 1-2 दिन में किताबें खरीद कर वे लोग घर वापस लौटने वाले थे लेकिन तभी गुर्जरों का यह आंदोलन छिड़ गया.

अपनी कार से उन्हें वापस लौटना था. रास्ते में नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद का हाईवे पड़ेगा. वाहनों में आगजनी, बसों की तोड़फोड़, रेल की पटरियां उखाड़ना, हिंसा, मारपीट, गोलीबारी, लंबेलंबे जाम…क्या मुसीबत है. बच्चों की चिंता ने दोनों को परेशान कर दिया. उन के लिए अब जल्दी से जल्दी घर पहुंचना जरूरी है.

‘‘क्या होता जा रहा है इस देश को? अपनी मांग मनवाने का यह कौन सा तरीका निकाल लिया लोगों ने?’’ तनवी के स्वर में घबराहट थी.

वोटों की राजनीति, जातिवाद, लोकतंत्र के नाम पर चल रहा ढोंगतंत्र, आरक्षण, गरीबी, बेरोजगारी, बढ़ती आबादी आदि ऐसे मुद्दे थे जिन पर चाहता तो सुदेश घंटों भाषण दे सकता था पर इस वक्त वह अवसर नहीं था. इस वक्त तो उन की पहली जरूरत किसी तरह होटल से सामान समेट कर कार में ठूंस, घर पहुंचना था. उन्हें अपने बच्चों की चिंता लगातार सताए जा रही थी.

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फोन पर दोनों बच्चों, वैभव और शुभा से तनवी और सुदेश ने बात कर के हालचाल पूछ लिए थे. नौकरानी से भी बात हो गई थी पर नौकरानी ने यह भी कह दिया था कि साहब, दिल्ली का झगड़ा इधर शहर में भी फैल सकता है… हालांकि अपनी सड़क पर पुलिस वाले गश्त लगा रहे हैं…पर लोगों का क्या भरोसा साहब…

आदमी का आदमी पर से विश्वास ही उठ गया. कैसा विचित्र समय आ गया है. हम सब अपनी विश्वसनीयता खो बैठे हैं. किसी को किसी पर भरोसा नहीं रह गया. कब कौन आदमी हमारे साथ गड़बड़ कर दे, हमें हमेशा यह भय लगा रहता है.

सामान पैक कर गाड़ी में रखा और वे दोनों दिल्ली से एक तरह से भाग लिए ताकि किसी तरह जल्दी से जल्दी घर पहुंचें.

बच्चों की चिंता के कारण सुदेश गाड़ी को तेज रफ्तार से चला रहा था. तनवी खिड़की से बाहर के दृश्य देख रही थी और वह तनवी को देख कर अपने अतीत के बारे में सोचने लगा.

शहर में हो रही एक गोष्ठी में सुदेश मुख्य वक्ता था. गोष्ठी के बाद जलपान के वक्त अनूप उसे पकड़ कर एक युवती के निकट ले गया और बोला, ‘सुदेश, इन से मिलो…मिस तनवी…यहां के प्रसिद्ध महिला महाविद्यालय में अर्थशास्त्र की जानीमानी प्रवक्ता हैं.’

‘मिस’ शब्द से चौंका था सुदेश, एक पढ़ीलिखी, प्रतिष्ठित पद वाली ठीकठाक रंगरूप की युवती का इस उम्र तक ‘मिस’ रहना, इस समाज में मिसफिट होने जैसा लगता है. अब तक मिस ही क्यों? मिसेज क्यों नहीं? यह सवाल सुदेश के दिमाग में कौंध गया था.

‘और मिस तनवी, ये हैं मिस्टर सुदेश कुमार…यहां के महाविद्यालय में समाज- शास्त्र के जानेमाने प्राध्यापक, जातिवाद के घनघोर आलोचक….अखबारों में दलितों, पिछड़ों और गरीबों के जबरदस्त पक्षधर… इस कारण जाति से ब्राह्मण होने के बावजूद लोग इन की पैदाइश को ले कर संदेह जाहिर करते हैं और कहते हैं, जरूर कहीं कुछ गड़बड़ है वरना इन्हें किसी हरिजन परिवार में ही पैदा होना चाहिए था.’

अनूप की बातों पर सुदेश का ध्यान नहीं था पर ‘कुमार’ शब्द उस ने जिस तरह तनवी के सामने खास जोर दे कर उच्चारित किया था उस से वह सोच में पड़ गया था.

अनूप ने कहा, ‘है तो यह अशिष्टता पर मिस तनवी की उम्र 28-29 साल, मिजाज तेजतर्रार, स्वभाव खरा, नकचढ़ा…टूटना मंजूर, झुकना असंभव. इन की विवाह की शर्तें हैं…कास्ट एंड रिलीजन नो बार. पति की हाइट एंड वेट नो च्वाइस. कांप्लेक्शन मस्ट बी फेयर, हायली क्वालीफाइड…सेलरी 5 अंकों में. नेचर एडजस्टेबल. स्मार्ट बट नाट फ्लर्ट. नजरिया आधुनिक, तर्कसंगत, बीवी को जो पांव की जूती न समझे, बराबर की हैसियत और हक दे. दकियानूस और अंधविश्वासी न हो.

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अनूप लगातार जिस लहजे में बोले जा रहा था उस से सुदेश को एकदम हंसी आ गई थी और तनवी सहम सी गई थी, ‘अनूपजी, आप पत्रकार लोगों से मैं झगड़ तो सकती नहीं क्योंकि आज झगडं़ूगी, कल आप अखबार में खिंचाई कर के मेरे नाम में पलीता लगा देंगे, तिल होगा तो ताड़ बता कर शहर भर में बदनाम कर देंगे…पर जिस सुदेशजी से मैं पहली बार मिल रही हूं, उन के सामने मेरी इस तरह बखिया उधेड़ना कहां की भलमनसाहत है?’

‘यह मेरी भलमनसाहत नहीं मैडम, आप से रिश्तेदारी निभाना है…असल में आप दोनों का मामला मैं फिट करवाना चाहता हूं…वह नल और दमयंती का किस्सा तो आप ने सुना ही होगा…बेचारे हंस को दोनों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभानी पड़ी थी…आजकल हंस तो कहीं रह नहीं गए कि नल और दमयंती की जोड़ी बनवा दें. अब तो हम कौए ही रह गए हैं जो यह भूमिका निभा रहे हैं.

‘आप जानती हैं, मेरी शादी हो चुकी है, वरना मैं ही आप से शादी कर लेता…कम से कम एक बंधी हुई रकम कमाने वाली बीवी तो मुझे मिलती. अपने नसीब में तो घरेलू औरत लिखी थी…और अपन ठहरे पत्रकार…कलम घसीट कर जिंदगी घसीटने वाले…हर वक्त हलचल और थ्रिल की दुनिया में रहने वाले पर अपनी निजी जिंदगी एकदम रुटीन, बासी…न कोई रोमांस न रोमांच, न थ्रिल न व्रिल. सिर्फ ड्रिल…लेफ्टराइट, लेफ्ट- राइट करते रहो, कभी यहां कभी वहां, कभी इस की खबर कभी उस की खबर…दूसरों की खबरें छापने वाले हम लोग अपनी खबर से बेखबर रहते हैं.’

बाद में अनूप ने तनवी के बारे में बहुत कुछ टुकड़ोंटुकड़ों में सुदेश को बताया था और उस से ही वह प्रभावित हुआ था. तनवी उसे काफी दबंग, समझदार, बोल्ड युवती लगी थी, एक ऐसी युवती जो एक बार फैसला सोचसमझ कर ले तो फिर उस से वापस न लौटे. सुदेश को ढुलमुल, कमजोर दिमाग की, पढ़ीलिखी होने के बावजूद बेकार के रीतिरिवाजों में फंसी रहने वाली अंधविश्वासी लड़कियां एकदम गंवार और जाहिल लगती थीं, जिन के साथ जिंदगी को सहजता से जीना उसे बहुत कठिन लगता था, इसी कारण उस ने तमाम रिश्ते ठुकराए भी थे. तनवी उसे कई मानों में अपने मन के अनुकूल लगी थी, हालांकि उस के मन में एक दुविधा हमेशा रही थी कि ऐसी दबंग युवती पतिपत्नी के रिश्ते को अहमियत देगी या नहीं? उसे निभाने की सही कोशिश करेगी या नहीं? विवाह एक समझौता होता है, उस में अनेक उतारचढ़ाव आते हैं, जिन्हें बुद्धिमानी से सहन करते हुए बाधाओं को पार करना पड़ता है.

दीवाली 2019: प्रदूषण के बाद बच्चों का कैसे रखें ख्याल

दिल्ली में किए गए एक अध्ययन से  यह खुलासा हुआ कि दीवाली के मौके पर दिल्ली के अस्पतालों में पटाखों से जख्म के मामले शहर की एक लाख की आबादी पर एक के हिसाब से आते हैं. इस अनुपात से हम यह सोचने पर मजबूर हुए कि पटाखों से बचना कितना महत्वपूर्ण है.

दीवाली पर अपने बच्चों को लेकर कैसी सावधानियां बरतनी चाहिए.

दीवाली करीब है और इसके साथ पटाखों का त्हायोर आने ही वाला है. अगर आप चाहते हैं कि बच्चे इस त्योहार का आनंद लें तो कुछ अच्छे काम करें और दीवाली मनाने की अपनी योजना इसी अनुसार बनाएं.

इस बारे में बता रहे है, क्लिनिक ऐप्प के सीईओ श्री सतकाम दिव्य.

अगर घर पर आपके कोई बच्चा है जो इस बार पहली दीवाली देखेगा तो यह साल और विशेष बन जाता है. इसलिए, दीवाली पर जो सबसे पहली सावधानी बरती जानी है वह है है पटाखे चलाने के समय ध्यान रखना.

जो आप को किसी भी दुर्घटना से बचने में सहायता करेंगी और इस प्रकाश पर्व में आपको किसी भी तरह की घटना को रोकने में सहायता मिलेगी.

बच्चों के साथ दीवाली की योजना बनाने के लिए

नवजात और छोटे बच्चों को दीवाली के शोर के बीच अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है. अगर आप पटाखे चला रहे हैं, दीया जला रहे हैं या फिर लाइट लगा रखी है तो सतर्क और सावधान रहें. पटाखों और दीयों से प्रदूषण भी होता है. इसलिए बच्चे का ख्याल रखना जरूरी है. यहां कुछ ऐसे उपाय बताए जा रहे हैं जिससे आप अपने बच्चे के साथ अच्छी दीवाली मना सकते हैं.

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इस मौके के लिए नियमित चीजों की योजना बनाइए

छोटे बच्चों को उनकी दिनचर्या की आदत रहती है. इसलिए वे चाहते हैं कि उनके काम उसी क्रम में चलते रहें और उनके सामान ठीक से रहें. इससे वे खुश और शांत रहते हैं. त्यौहार का अपना कार्यक्रम बनाने में इन बातों का ख्याल रखें और देखें कि दीवाली के कारण आपकी व्यवस्तता या किसी अन्य काम के कारण वे ना अलग महसूस करें और ना ही उपेक्षित रहें. वैसे भी कोई अभिभावक नहीं चाहता कि उसका बच्चा रोए. उल्टे हर कोई चाहता है कि बच्चे की मुस्कुराती तस्वीर मिले.

तेज आवाज वाले पटाखों से बचिए

पटाखें बच्चे के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं और जरा सी भी लापरवाह या चूक खतरनाक हो सकती है. इसलिए शोर करने वाले पटाखों से दीवाली मनाने की बजाय आप शोर मुक्त पटाखे चला सकते हैं जो आपके बच्चों को खुश कर देगा और उन्हें पसंद आएगा. इस तरह वे पटाखों से डरने की बजाय खुश रहेंगे.

सूती कपड़े पहनिए

यह एक महत्वपूर्ण जानकारी है जो हर किसी के लिए है, सिर्फ बच्चों के लिए नहीं. हम समझते हैं कि दीवाली के दौरान आप सर्वश्रेष्ठ दिखना चाहते हैं और नए कपड़े पहनना चाहते हैं. नए कपड़े अक्सर सिल्क या सिंथेटिक होते हैं. दीवाली पर इस बात का ध्यान रकिए और अगर आप पटाखे चला रहे हैं या आपके आस-पास दीये जल रहे हैं तो कोशिश कीजिए कि कपड़े सूती हों और लहराने वाले न हों बल्कि उन्हें संभाल कर भी रखिए.

उपरोक्त उपायों के अलावा त्यौहार के समय हरेक अभिभावक और बच्चे को इसका पालन करना चाहिए.

दीवाली के समय पटाखे चलाने में बच्चों के लिए क्या करें और क्या नहीं करें

  • हल्के छोटे पटाखे छत या खुली जगह में चलाएं.
  • अपने बच्चों को आरामदेह कपड़े पहनाएं न कि कसे हुए.
  • पटाखे चलाते समय रॉकेट को बोतल में और चक्री को समतल सतह पर रखें.
  • प्राथमिक उपचार के लिए किट और पानी की भरी बाल्टी तैयार रखिए.
  • एक बार में एक ही पटाखा चलाइए.
  • सुनिश्चित कीजिए कि बच्चे बड़ों की मौजूदगी में पटाखे चलाएं.
  • पटाखे चलाते समय ज्वलनशील चीजें दूर कर दें.
  • अपने पैरों को ढंग कर रखने के लिए  जूते पहनिए.

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क्या नहीं करें

  • पटाखें संकरी या छोटी जगह पर न चलाएं ताकि दुर्घटनाएं न हों.
  • नायलौन, सिल्क या सिंथेटिक कपड़े पहनने से बचें और जो पहने उसे संभाल कर रखे.
  • पटाखे दियासलाई से न जलाएं बल्कि मोमबत्ती का उपयोग करें और पटाखे के पास रखकर भाग लें.
  • पटाखों का चुनाव आयु के लिहाज से करें.
  • बच्चे मांगे तो भी उन्हें खतरनाक पटाखे न दें.
  • रौकेट को बोतल में रखे बिना न चलाएं.
  • तारों या पेड़ के नीचे पटाखें न चलाएं.
  • पटाखा न चले तो नजदीक न जाएं. इंतजार के बाद ही आगे बढ़ें.
  • पटाखों के मामले में खेल न करें ना उन्हें मजाक में लें. एक साथ दो-तीन पटाखे न चलाएं.
  • पटाखे या जलने वाली चीज को पास में या जेब में न रखें.
  • पटाखे हाथ में रखकर न चलाएं.
  • जलते हुए पटाखे दूसरों पर या पेड़ों पर न फेंके.

हम उम्मीद करते हैं  अब आपको आईडिया हो गया होगा कि दीवाली पर कैसी सावधानियां बरतनी चाहिए और बच्चों का ख्याल कैसे रखना है. इस बार दीवाली में और आने वाले वर्षों में इन बातों का ख्याल रखें.

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हमेशा अपने बच्चे की सुरक्षा के बारे में पहले सोचे और कोई भी योजना उसके बाद बनाएं. अगर कोई शंका हो तो ऑनलाइन रिसर्च कर लें इससे काफी सहायता मिल जाएगी. त्यौहार के दौरान बच्चों को संभालने और उनकी सुरक्षा के लिए दोनों अभिभावकों को समान जिम्मेदारी लेनी चाहिए. इस तरह किसी भी समय बच्चे पर किसी ना किसी की नजर रहेगी ही. इस तरह काम करने पर त्यौहार तनाव नहीं देते हैं उल्टे तनाव कम करने का काम करते हैं और आपकी व्यस्त तथा नीरस दिनचर्या से कुछ अलग करने का मौका मिलता है. इस साल सुरक्षित और भरपूर दीवाली मनाएं

बाउंसर : भाग 1

रेलवे स्टेशन के गर्भ से नाल की तरह निकल कर पतली सी कमर सा नेताजी सुभाष मार्ग दुलकी चाल से चलता शहर के बीचोंबीच से गुजरने वाले जीटी रोड को जिस स्थान पर लंबवत क्रौस करता आगे बढ़ जाता है, वह शहर के व्यस्ततम चौराहे में तबदील हो गया है-प्रेमचंद चौक. चौक के ऐन केंद्र में कलात्मकता से तराशा, फूलपौधों की क्यारियों से सजा छोटा सा वृत्ताकार उपवन है. उपवन के मध्य में छहफुटिया वेदी के ऊपर ब्लैकस्टोन पर उकेरी मुंशी प्रेमचंद की स्कंध प्रतिमा.

स्टेशन से जीटी रोड तक के पतले, ऊबड़खाबड़ नेताजी सुभाष मार्ग के सहारेसहारे दोनों ओर ग्रामीण कसबाई परिवेश से कदमताल मिलाते सब्जियों, फल, जूस, सस्ते रैडिमेड वस्त्र, पुरानी पत्रिकाओं, सैक्स साहित्य और मर्दानगी की जड़ीबूड़ी बेचते फुटकर विक्रेताओं की छोटीछोटी गुमटियां व ठेलों की कतारें सजी हुई थीं. स्टेशन वाले इसी मार्ग के कसबाई कुरुक्षेत्र में झुमकी भी किसी दुर्दांत योद्धा की तरह भीख की तलवार भांजती सारे दिन एक छोर से दूसरे छोर तक मंडराती रहती. 9 साल की कच्ची उम्र. दुबलीपतली, मरगिल्ली काया. मटमैला रंग. दयनीयता औैर निरीहता का रोगन पुता मासूम चेहरा.

झुमकी ने स्टेशन के कंगूरे पर टंगी घड़ी की ओर तिरछी निगाहों से देखा, ढाई बज रहे थे. अयं, ढाई बज गए? इतनी जल्दी? वाह, झुमकी मन ही मन मुसकराई. ढाई बज गए और अभी तक भूख का एहसास ही नहीं हुआ. कभीकभी ऐसा हो जाता है, ड्यूटी में वह इस कदर मगन हो जाती है कि उसे भूख की सुध ही नहीं रहती.

खैर, अब घर लौटने का समय हो गया है. वहां जो भी रूखासूखा मां ने बना कर रखा होगा, जल्दीजल्दी उसे पेट के अंदर पहुंचाएगी. उस ने लौटने के लिए कदम आगे बढ़ा दिए. 4 बजे वापस फिर ड्यूटी पर लौटना भी तो है.

दोपहर के वक्त बाजार में आवाजाही कम हो जाती है. अधिकांश ठेले और गुमटियां खालीखाली थीं. चलते हुए उस ने फ्रौक की जेब में हाथ डाल कर सिक्कों को टटोला. चेहरे पर आश्वस्ति की चमक बिखर गई. उड़ती नजरों से बाबा प्रेमचंद का धन्यवाद अदा किया- सब आप ही का प्रताप है, महाराज.

तभी, पांडेजी के ठेले पर एक ग्राहक दिख गया. उस की आंखों में फुरती ठुंस गई. आम का खरीदार, संभ्रांत वेशभूषा. झुमकी तेजतेज चल कर ठेले के पास तक आ गई और एक दूरी बना कर उस पल का इंतजार करने लगी जब ग्राहक आम ले चुकने के बाद भुगतान करने के लिए जेब से पर्स निकालेगा. इंतजार के उन्हीं कुछ बेचैन क्षणों के दौरान नजरें ठेले के एक कोने में रखे कुछेक आमों पर जा पड़ीं जो लगभग खराब हो चुके थे. इन का रंग काला पड़ गया था. त्वचा पिलपिली हो चुकी थी. ये भद्र लोगों के खाने लायक नहीं रह गए थे. पांडेजी इन आमों को संभवतया इस उम्मीद में रखे हुए थे कि कोई निम्नवर्ग का कोलियरी मजदूर या श्रमिक ग्राहक ऐसा मिल ही जाएगा जो इन्हें खरीद ले. इस तरह तो भरपाई हो सकेगी क्षति की.

झुमकी की नजरें इन पिलपिले आमों पर चिपक गईं. पहले ऐसा हो चुका है कि काफी इंतजार के बाद भी जब ऐसे बेकार से आमों के ग्राहक नहीं मिल पाते तो पांडेजी खुद ही इन्हें झुमकी को दे देते. देते हुए उन के अंदाज में शाही ठुनक घुली होती, ‘तू भी क्या याद करेगी कि कोई दिलदार पांडे मिले थे.’

झुमकी ने इन आमों का खूब करीबी से मुआयना किया. अब कोई नहीं खरीदने वाला इन्हें. न हो तो ग्राहक के विदा हो जाने के बाद वह खुद ही पांडेजी से इन आमों को मांग लेगी. आम पा जाने की क्षणिक सी उम्मीद जगते ही आंखों में एकमुश्त जुगनुओं की चमक भर गई. इन की पिलपिली, काली त्वचा को और भीतर से रिस कर आती कसैली बू को अनदेखा कर दिया जाए तो ये आम ‘पके और गोरे’ लंगड़ा आमों जैसी ही तृप्ति देते हैं. उस के कंठ से तृप्ति की किलकारी निकलतेनिकलते बची.

ग्राहक को आम तोले जा चुके थे. उस ने जेब से पर्स निकाला और पांडेजी को पैसे देने लगा. उसी क्षण झुमकी लपक कर ग्राहक के पास जा पहुंची और छोटी सी हथेली को उस के आगे फैला दिया.

‘‘क्या है रे?’’ ग्राहक ने उस को ऊपर से नीचे तक निहारा. निहारने में दुत्कार नहीं, सहानुभूति का पुट घुला था, ‘‘भीख चाहिए?’’

झुमकी ने हां में सिर हिला दिया. हथेली फैला देने का मतलब नहीं समझ में आ रहा है हुजूर को.

‘‘ठीक है,’’ ग्राहक भी संभवतया फुरसत में था. उस से चुहल करने में मजा लेने लगा, ‘‘बोल, भीख में पैसे चाहिए या आम?’’

आम की बात सुन कर झुमकी के मन में लालसा फुफकार उठी. दिल जोरजोर से धड़कने लगा. कल्पना में आम का रसीला स्वाद उतर आया. उस ने डरते हुए तर्जनी उठा कर ठेले के कोने में पड़े परित्यक्त आमों की ओर संकेत कर दिया.

‘मुंह से बोल न रे, छोरी.’ ग्राहक हंसा, ‘क्या गूंगी की तरह इशारे में बतिया रही है.’’

झुमकी चुप रही.

‘‘अरे बोल न, क्या लेगी-आम या पैसे?’’

झुमकी ने फिर भी मौन साधे रखा और डरती हुई पहले की तरह ही उन आमों की ओर संकेत कर दिया.

‘‘जब तक मुंह से नहीं बोलेगी, कुछ नहीं देंगे,’’ ग्राहक झुंझला उठा. झुमकी सहम गई. ऐसे क्षणों में जबान तालू से चिपक जाती है तो वह क्या करे भला? चाह कर भी बोल नहीं फूट रहे थे. सो, फिर से मौनी बाबा की तरह वही संकेत.

‘‘धत तेरे की,’’ ग्राहक फनफनाते हुए दमक पड़ा, ‘‘सरकार ससुर दलितों, गरीबों और अन्त्यजों की पूजाआरती उतारने में बावली हुई जा रही है. उन्हें हक और जमीर के लिए लड़ने को उकसा रही है. पकड़पकड़ कर जबरदस्ती सरकारी कुरसियों पर बैठा रही है. इ छोरी है कि सरकार बहादुर की नाक कटवाने पर तुली हुई है, हुंह. अरे, अब तो अपना रवैया बदल तू लोग. रिरियाना छोड़ कर हक से मांगना सीख.’’

‘‘हां रे झुमकी, साहब ठीक ही तो कह रहे हैं. मुंह से बोल दे न, आम चाहिए या पैसा,’’ पांडेजी उसे प्रोत्साहित करते हुए हिनहिना दिए. ग्राहक की बेतरतीब टिप्पणियों से झुमकी का दिमाग झनझना उठा. क्षणभर में संन्यासी मोड़ वाले स्कूल के पास का ‘सर्व शिक्षा अभियान’ का बोर्ड और बोर्ड में चित्रित खिलखिलाते बच्चे आंखों के आगे आ गए. ग्राहक या तो सनकी है या अत्यधिक वाचाल. क्या इस को पता नहीं कि सरकार बहादुर की गरीबोंदलितों के पक्ष में की जा रही सारी पूजाआरती सिर्फ कागजकलम पर हवाहवाई हो कर रह जाती है.

‘‘हम तो चले पांडेजी,’’ ग्राहक खीझता हुआ आम वाले लिफाफे को उठा कर चलने को मुड़ गया. झुमकी धक से रह गई. सिर पर चिरकाल से पड़ी कुंठा औ लाचारगी की भारीभरकम शिला को पूरा जोर लगा कर थोड़ा सा खिसकाया तो कंठ की फांक से एक महीन किंकियाहट गुगली की तरह उछल कर बाहर आई, ‘आम…’ अधमरी बेजान सी आवाज. ग्राहक वापस दुकान पर आ गया. उस के होंठों पर विजयी मुसकान चस्पा हो गई, ‘‘यह हुई न बात.’’

‘‘दोष इन लोगों का भी नहीं न है साहेब,’’ पांडेजी मुसकराए, ‘‘सदियों से चली आ रही स्थिति को बदलने में वक्त तो लगेगा ही.’’

ग्राहक ने अपने लिफाफे से एक आम निकाल कर उस की ओर बढ़ा दिया, ‘‘ले, खा ले.’’

ग्राहक के बढ़े हाथ को देख कर झुमकी स्तब्ध रह गई. ताजा और साबुत लंगड़ा आम दे रहा है ग्राहक बाबू. मजाक तो नहीं कर रहा? एक पल के लिए मौन रखने के बाद इनकार में सिर हिलाते हुए उस ने तर्जनी से उन परित्यक्त आमों की ओर संकेतकर दिया.

‘‘छी…’’ ग्राहक खिलखिला कर हंस पड़ा, अरे, ‘‘पूरे समकालीन साहित्य के दलित स्त्री विमर्श की नायिका है तू. बदबूदार आम तुझे शोभा देंगे? न, न, ये ले ले.’’

ग्राहक की व्यंग्योक्ति में चुटकीभर हंसी पांडेजी भी मिलाए बिना नहीं रह सके. झुमकी ने फिर भी इनकार में सिर हिला दिया. तर्जनी उन्हीं आमों की तरफ उठी रही, मुंह से बोल न फूटे.

‘‘अजीब खब्ती लड़की है रे तू,’’ ग्राहक झुंझला उठा. झुमकी का रिरियाना और ऐसी शैली में बतियाना ग्राहक की खीझ को बढ़ा रहा था. उसे उम्मीद थी कि अच्छा आम पा कर लड़की एकदम से खिल उठेगी. पर यहां तो वही मुरगे की डेढ़ टांग. झिड़की में पुचकार का छौंक डालते हुए फनफनाया, ‘‘अरे हम अपनी मरजी से न दे रहे हैं यह आम. इतनीइतनी सरकारी योजनाएं, इतनेइतने फंड, इतनेइतने अनुदान…सारी कवायदें तुम लोगों को ऊपर उठाने के लिए ही न हो रही हैं? इन सरकारी कवायदों में एक छोटा सा सहयोग हमारा भी, बस.’’

झुमकी कभी आम को और कभी ग्राहक के चेहरे को टुकुरटुकुर  ताकती रही. आंखों में भय सिमटा हुआ था. भीतर के बिखरेदरके साहस को केंद्रीभूत करती आखिरकार मिमियायी, ‘‘नहीं सर, इ आम नहीं, ऊ वाला आम दे दो.’’

‘‘क्यों? जब हम खुद दे रहे हैं तो लेने में क्या हर्ज है रे, अयं?’’

‘‘हम भिखारी हैं, सर. अच्छा आम हमारे तकदीर में नहीं लिखा. ऊहे आम ठीक लगता है.’’ पूरे एपिसोड में पहली बार लड़की के मुंह से इतना लंबा वाक्य फूटा था.

‘‘देखा पांडेजी?’’

‘‘एक बात है, सर,’’ हथेली पर खैनी मसलते हुए पांडेजी ने कहा, ‘दलितों के लिए सरकारी सारे अनुदान, योजना वगैरावगैरा राजधानी से ऐसे कार्टून में भर कर लादान किया जाता है जिस के तल में बड़ा सा छेद बना होता. सारा कुछ ससुर रस्ते में ही रिस जाता है और कार्टून जब इन लोगन के दरवाजे आ कर लगता है तो पूरा का पूरा छूछा. हा, हा, हा.’’

 

दिल्ली में 3 दिवसीय 26वें परफेक्ट हैल्थ मेला की शुरुआत

हार्ट केयर फाउंडेशन का यह अनूठा मेला स्वास्थ्य विभाग दिल्ली सरकार, भारतीय खेल प्राधिकरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार के सहयोग से आयोजित किया गया हैं, जिसमें चिकित्सा की विभिन्न पद्धतियां एक साथ उपलब्ध हैं.

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार के सहयोग से मेले में 30 से अधिक वैज्ञानिक भाग लेंगे जो अध्यापकों, स्कूली बच्चों और आम जनता को चमत्कारों के पीछे छिपे विज्ञान और कम क़ीमत में बच्चों को शिक्षित करने के सरल तरीक़े बताए गए. इसके अतिरिक्त खगोल विज्ञान के कुछ पहलुओं का भी सजीव चित्रण किया गया .

अंसल यूनिवर्सिटी स्वास्थ्य के क्षेत्र में उपलब्ध अनेक संभावनाओं के विषय में जानकारी दी गई.  हार्ट केयर फाउंडेशन दिल्ली रेड क्रौस सोसायटी के साथ मिलकर बेसिक कार्डियेक लाइफ़ स्पोर्ट सर्टिफिकेट प्रोग्राम की शुरूआत की गई. मेले में शहर के अनेक गणमान्य अतिथि और नामी डौक्टर्स ने शिरकत की.

मेले में आने वाले मरीज़ों में से कुछ मरीज मुफ्त एंजियोग्राफी, दिल के आपरेशन और आंखों के आपरेशन के लिए चयनित किया गया.

देश की दो महत्वपूर्ण योजनाओं – आयुष्मान भारत और मोहल्ला क्लीनिक के विषय में जानकारी दी गई.

मेले में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को पेट के कीड़े मारने की दवा – एलबेन्डाजोल व विटामिन डी 60000 I.u. का सैशे मुफ़्त दिया गया. साथ ही साल में एक बार कीड़े की दवा और महीने में एक बार विटामिन डी लेने की सलाह दी गई. मेला प्लास्टिक मुक्त किया गया और इसमें सुरक्षित पेयजल की व्यवस्था की गई . प्रतिभागी स्कूली बच्चों को पौष्टिक अल्पाहार उपलब्ध कराया गया . स्कूली छात्राओं को मुफ़्त सेनेटरी नैपकिन वितरित किए गए. सेनेटरी नैपकिन वेंडिग मशीन और उनके निस्तारण के लिए भट्टी जानकारी के लिए मेले में उपलब्ध की गई.

कपड़ा मंत्रालय, भारत सरकार से समर्थित लगभग 180 कारीगर अपनी हस्तकला और हथकरघा के कौशल को प्रदर्शित किया गया .

मेले में वायु प्रदूषण और इनडोर प्रदूषण को विशेष महत्व दिया गया. मेले में अनेक कार्यशालाओं का आयोजन किया गया. जिसमें मच्छरों को पहचानना, उन्हें पकड़ना या मारने के तरीक़े, माहवारी के दौरान साफ सफाई, नकली दवाओं व खाने-पीने की वस्तुओं में मिलावट की पहचान, नृत्य और अभिनय की कार्यशालाओं का भी आयोजन किया गया.

मेले में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए क़ानूनी सलाह का प्रावधान भी किया गया. जिसमें मरीज अपने अधिकारों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. साथ ही समेरिटन ला पर 100 प्रश्नों की एक विशिष्ट पत्रिका का विमोचन भी किया गया.

फैसला इक नई सुबह का : भाग 4

रात में सोते समय वह फिर समीर के बारे में सोचने लगी. कितना प्यारा परिवार है समीर का. उस के बेटेबहू कितना मान देते हैं उसे? कितना प्यारा पोता है उस का? मेरा पोता भी तो लगभग इतना ही बड़ा हो गया होगा. पर उस ने तो सिर्फ तसवीरों में ही अपनी बहू और पोते को देखा है. कितनी बार कहा सार्थक से कि इंडिया आ जाओ, पर वह तो सब भुला बैठा है. काश, अपनी मां की तसल्ली के लिए ही एक बार आ जाता तो वह अपने पोते और बहू को जी भर कर देख लेती और उन पर अपनी ममता लुटाती. लेकिन उस का बेटा तो बहुत निष्ठुर हो चुका है. एक गहरी आह निकली उस के दिल से.

समीर की खुशहाली देख कर शायद उसे अपनी बदहाली और साफ दिखाई देने लगी थी. परंतु अब वह समीर से ज्यादा मिलना नहीं चाहती थी क्योंकि रोजरोज बेटी से झूठ बोल कर इस तरह किसी व्यक्ति से मिलना उसे सही नहीं लग रहा था, भले ही वह उस का दोस्त ही क्यों न हो. बेटी से मिलवाए भी तो क्या कह कर, आखिर बेटीदामाद उस के बारे में क्या सोचेंगे. वैसे भी उसे पता था कि स्वार्थ व लालच में अंधे हो चुके उस के बच्चों को उस से जुड़े किसी भी संबंध में खोट ही नजर आएगी. पर समीर को मना कैसे करे, समझ नहीं आ रहा था, क्योंकि उस का दिल तो बच्चों जैसा साफ था. मानसी अजीब सी उधेड़बुन में फंस चुकी थी.

सुबह उठ कर वह फिर रोजमर्रा के काम में लग गई. 10-11 बजे मोबाइल बजा, देखा तो समीर का कौल था. अच्छा हुआ साइलैंट पर था, नहीं तो बेटी के सवाल शुरू हो जाते. उस ने समीर का फोन नहीं उठाया. इस कशमकश में पूरा दिन व्यतीत हो गया. शाम को बेटीदामाद को चायनाश्ता दे कर खुद भी चाय पीने बैठी ही थी कि दरवाजे पर हुई दस्तक से उस का मन घबरा उठा, आखिर वही हुआ जिस का डर था. समीर को दरवाजे पर खड़े देख उस का हलक सूख गया, ‘‘अरे, आओ, समीर,’’ उस ने बड़ी कठिनता से मुंह से शब्द निकाले. समीर ने खुद ही अपना परिचय दे दिया. उस के बाद मुसकराते हुए उसे अपने पास बैठाया. और बड़ी ही सहजता से उस ने मानसी के संग अपने विवाह की इच्छा व्यक्त कर दी. यह बात सुनते ही मानसी चौंक पड़ी. कुछ बोल पाती, उस से पहले ही समीर ने कहा, ‘‘वह जो भी फैसला ले, सोचसमझ कर ले. मानसी का कोई भी फैसला उसे मान्य होगा.’’ कुछ देर चली बातचीत के दौरान उस की बेटी और दामाद का व्यवहार समीर के प्रति बेहद रूखा रहा.

समीर के जाते ही बेटी ने उसे आड़े हाथों लिया और यहां तक कह दिया, ‘‘मां क्या यही गुल खिलाने के लिए आप दिल्ली से लखनऊ आई थीं. अब तो आप को मां कहने में भी मुझे शर्म आ रही है.’’ दामाद ने कहा कुछ नहीं, लेकिन उस के हावभाव ही उसे आहत करने के लिए काफी थे. अपने कमरे में आ कर मानसी फूटफूट कर रोने लगी. बिना कुछ भी किए उसे उन अपनों द्वारा जलील किया जा रहा था, जिन के लिए अपनी पूरी जिंदगी उस ने दांव पर लगा दी थी. उस का मन आज चीत्कार उठा. उसे समीर पर भी क्रोध आ रहा था कि उस ने ऐसा सोचा भी कैसे? इतनी जल्दी ये सब. अभी कलपरसों ही मिले हैं, उस से बिना पूछे, बिना बताए समीर ने खुद ही ऐसा निर्णय कैसे ले लिया? लेकिन वह यह भी जानती थी कि उस की परेशानियां और परिस्थिति देख कर ही समीर ने ऐसा निर्णय लिया होगा.

वह उसे अच्छे से जानती थी. बिना किसी लागलपेट के वह अपनी बात सामने वाले के पास ऐसे ही रखता था. स्थिति बद से बदतर होती जा रही थी. उस की जिंदगी ने कई झंझावत देखे थे, परंतु आज उस के चरित्र की मानप्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई थी. उस ने अपने मन को संयत करने की भरपूर कोशिश की, लेकिन आज हुए इस अपमान पर पहली बार उस का मन उसी से विद्रोह कर बैठा. ‘क्या उस का जन्म केवल त्याग और बलिदान के लिए ही हुआ है, क्या उस का अपना कोई वजूद नहीं है, सिवा एक पत्नी, बहू और मां बनने के? जीवन की एकरसता को वह आज तक ढोती चली आई, महज अपना समय मान कर. क्या सिर्फ इसलिए कि ये बच्चे आगे चल कर उसे इस तरह धिक्कारें. आखिर उस की गलती ही क्या है? क्या कुछ भी कहने से पहले बेटी और दामाद को उस से इस बात की पूरी जानकारी नहीं लेनी चाहिए थी? क्या उस की बेटी ने उसे इतना ही जाना है? लेकिन वह भी किस के व्यवहार पर आंसू बहा रही है.

‘अरे, यह तो वही बेटी है, जिस ने अपनी मां को अपने घर की नौकरानी समझा है. उस से किसी भी तरह की इज्जत की उम्मीद करना मूर्खता ही तो है. जो मां को दो रोटी भी जायदाद हासिल करने के लालच से खिला रही हो, वह उस की बेटी तो नहीं हो सकती. अब वह समझ गई कि दूसरों से इज्जत चाहिए तो पहले उसे स्वयं अपनी इज्जत करना सीखना होगा अन्यथा ये सब इसी तरह चलता रहेगा.’ कुछ सोच कर वह उठी. घड़ी ने रात के 9 बजाए. बाहर हौल में आई तो बेटीदामाद नहीं थे. हालात के मुताबिक, खाना बनने का तो कोई सवाल नहीं था, शायद इसीलिए खाना खाने बाहर गए हों. शांतमन से उस ने बहुत सोचा, हां, समीर ने यह जानबूझ कर किया है. अगर वह उस से इस बात का जिक्र भी करता तो वह कभी राजी नहीं होती. खुद ही साफ शब्दों में इनकार कर देती और अपने बच्चों की इस घिनौनी प्रतिक्रिया से भी अनजान ही रहती. फिर शायद अपने लिए जीने की उस की इच्छा भी कभी बलवती न होती. उस के मन का आईना साफ हो सके, इसीलिए समीर ने उस के ऊपर जमी धूल को झटकने की कोशिश की है.

अभी उस की जिंदगी खत्म नहीं हुई है. अब से वह सिर्फ अपनी खुशी के लिए जिएगी.

मानसी ने मुसकरा कर जिंदगी को गले लगाने का निश्चय कर समीर को फोन किया. उठ कर किचन में आई. भूख से आंतें कुलबुला रही थी. हलकाफुलका कुछ बना कर खाया, और चैन से सो गई. सुबह उठी तो मन बहुत हलका था. उस का प्रिय गीत उस के होंठों पर अनायास ही आ गया, ‘हम ने देखी है इन आंखों की महकती खूशबू, हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्जाम न दो…’ गुनगुनाते हुए तैयार होने लगी इस बात से बेफिक्र की बाहर उस की बेटी व दामाद उस के हाथ की चाय का इंतजार कर रहे हैं. दरवाजे की घंटी बजी, मानसी ने दरवाजा खोला. बाहर समीर खड़े थे. मानसी ने मुसकराकर उन का अभिवादन किया और भीतर बुला कर एक बार फिर से ?उन का परिचय अपनी बेटी व दामाद से करवाया, ‘‘ये हैं तुम्हारे होने वाले पापा, हम ने आज ही शादी करने का फैसला लिया है. आना चाहो तो तुम भी आमंत्रित हो.’’ बिना यह देखे कि उस में अचानक आए इस परिवर्तन से बेटी और दामाद के चेहरे पर क्या भाव उपजे हैं, मानसी समीर का हाथ थाम उस के साथ चल पड़ी अपनी जिंदगी की नई सुबह की ओर…

बैकुंठ : भाग 3

‘‘अरे भैया, बताया नहीं कि सैम भी साथ है,’’ वह पैर छूने को झुकी.

‘‘नीचे झुक सैम, तेरे सिर तक तो चाची का हाथ भी नहीं जा रहा, कितना लंबा हो गया तू, दाढ़ीमूंछ वाला, चाची के बगैर शादी भी कर डाली. हिंदी समझ आ रही है कि भूल गया. फोर्थ स्टैंडर्ड में था जब तू विदेश गया था.’’ रैमचो की मुसकराते हुए बात सुनती हुई मालती प्यार से उन्हें अंदर ले आई.

‘‘कहां है श्याम, अभी सो ही रहा है?’’ तभी पूजा की घंटी सुनाई दी, ‘‘ओह, तो यह अभी तक बिलकुल वैसा ही है. सुबहशाम डेढ़ घंटे पूजापाठ, जरा भी नहीं बदला,’’ वे सोफे पर आराम से बैठ गए. सैम भी उन के पास ही बैठ कर अचरज से घर में जगहजगह सजे देवीदेवताओं के पोस्टर, कलैंडर देख रहा था.

‘‘स्टें्रज पा, आई रिमैंबर अ लिटिल सैम एज बिफोर,’’ संकल्प बोला.

‘‘वाह भैया, इतने सालों बाद दर्शन दिए,’’ श्यामाचरण पैर छूने को झुके तो रैमचो ने उन्हें बीच में ही रोक लिया, ‘‘इतनी पूजापाठ के बाद आया है, कहांकहां से घूम कर आ रहे इन जूतों को हाथ लगा कर तू अपवित्र नहीं हो जाएगा,’’ कह कर वे मुसकराए.

‘‘बदल जा श्याम, अपना जीवन तो यों ही पूजापाठ में निकाल दिया, अब बच्चों की तो सोच, उन्हें जमाने के साथ बढ़ने दे. इतने सालों बाद भी न घर में कोई चेंज देख रहा हूं न तुझ में,’’ उन्होंने उस के पीले कुरते व पीले टीके की ओर इशारा किया, ‘‘इन सब में दिमाग व समय खपाने से अच्छा है अपने काम में दिमाग लगा और किताबें पढ़, नौलेज बढ़ा. आज की टैक्नोलौजी समझ, सिविल कोर्ट का लौयर है तो हाईकोर्ट का लौयर बनने की सोच. कैसे रहता है तू, मेरा तो दम घुटता है यहां.’’

भतीजे संकल्प के गले लग कर श्यामाचरण नीची निगाहें किए हुए बैठ गए. चुपचाप बड़े भाई की बातें सुनने के अलावा उन के पास चारा न था. संकल्प अंदर सब देखता, याद करता. सब को सोता देख, उठ कर चाची के पास किचन में पहुंच गया और उन के साथ नाश्ता उठा कर बाहर ले आया.

‘‘अरे, बच्चों को उठा दिया होता. क्षितिज और पल्लवी तो उठ गए होंगे. बहू को इतना तो होश रहना चाहिए कि घर में कोई आया हुआ है, यह क्या तरीका है,’’ पांचों उंगलियों में अंगूठी पहने हाथ को सोफे पर मारा था श्यामाचरण ने.

‘‘और तुम्हारा क्या तरीका है, बेटी या बहू के लिए कोई सभ्य व्यक्ति ऐसे बात करता है?’’ उन्होंने चाय का कप उठाते, श्याम को देखते हुए पूछा. आज बड़े दिनों बाद बडे़ भैया श्याम की क्लास ले रहे थे, मालती मन ही मन मुसकराईर्.

‘‘कोई नहीं, अभी संकल्प ने ही सब को उठा दिया और सब से मिल भी लिया, सभी आ ही रहे हैं, रात को देर में सोए थे. उन को मालूम कहां भैया लोगों के आने का. उठ गए हैं, आते ही होंगे, सब को जाना भी है,’’ मालती ने बताया.

रैमचो को 2 बजे कौन्फ्रैंस में पहुंचना था. सो, सब के साथ मनपसंद नाश्ता करने लगे, ‘‘अब तुम भी आ जाओ, मालती बेटा.’’

‘‘आप लोग नाश्ता कीजिए, भैया, मेरा तो आज करवाचौथ का व्रत है,’’ वह भैया की लाई पेस्ट्री प्लेट में लगा कर ले आई थी.

‘‘लो बीपी रहता है न तुम्हारा, व्रत का क्या मतलब? पहले भी मना कर चुका हूं, जो हालत इस ने तुम्हारी कर रखी है, इस से पहले चली जाओगी.’’ दक्ष, मम्मी के लिए प्लेट ला…श्याम, घबरा मत, तेरी हैल्थ की केयर रखना इस का काम है और वह बखूबी करती है. तू खुद अपना भी खयाल रख और इस का भी. शशि ने तो व्रत कभी नहीं रखा, फिर भी सुहागन मरी न, मैं जिंदा हूं अभी भी. दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है, तू वहीं अटका हुआ है और सब को अटका रखा है. भगवान को मानता है तो कुछ उस पर भी छोड़ दे. अपनी कारगुजारी क्यों करने लगता है.’’

दक्ष प्लेट ले आया तो रैमचो ने खुद  लगा कर प्लेट मालती को थमा दी. ‘‘जी भैया,’’ उस ने श्याम को देखा जो सिर झुकाए अच्छे बच्चे की तरह चुपचाप खाए जा रहे थे. भैया को टालने का साहस उस में भी न था, वह खाने लगी.

‘‘पेस्ट्री कैसी लगी बच्चो? श्याम तू तो लेगा नहीं, धर्म भ्रष्ट हो जाएगा तेरा, पर सोनाक्षीपल्लवी तुम लोग तो लो या फिर तुम्हारा भी धर्म…कौन सी पढ़ाई की है. आज के जमाने में. चलो, उठाओ जल्दीजल्दी. इन सब बातों से कुछ नहीं होता. गूगल कैसे यूज करते हो तुम सब, मैडिसन कैसेकैसे बनती हैं, कभी पढ़ा है? कुछ करना है अपने भगवान के लिए तो अच्छे आदमी बनो जो अपने साथ दूसरों का भी भला करें, बिना लौजिक के ढकोसले वाले हिपोक्रेट पाखंडी नहीं. अब जल्दी सब अपनी प्लेट खत्म करो, फिर तुम्हारे गिफ्ट दिखाता हूं,’’ वे मुसकराए.

‘‘मेरे लिए क्या लाए, बड़े पापा,’’ दक्ष ने अपनी प्लेट सब से पहले साफ कर संकल्प से धीरे से पूछा था, तो उस ने भी मुसकरा कर धीरे से कहा, ‘‘सरप्राइज.’’

नाश्ते के बाद रैमचो ने अपना बैग खोला, सब के लिए कोई न कोई गिफ्ट था. ‘‘श्याम इस बार अपना यह पुराना टाइपराइटर मेरे सामने फेंकेगा, लैपटौप तेरे लिए है. अब की बार किसी और को नहीं देगा. दक्ष बेटे के लिए टैबलेट. सोनाक्षी बेटा, इधर आओ, तुम्हारे लिए यह नोटबुक. पल्लवी और मालती के लिए स्मार्टफोन हैं. अब बच गया क्षितिज, तो यह लेटैस्ट म्यूजिकप्लेयर विद वायरलैस हैडफोन फौर यू, माय बौय.’’

‘‘अरे, ग्रेट बड़े पापा, मैं सोच ही रहा था नया लेने की, थैंक्यू.’’

‘‘थैंक्यूवैंक्यू छोड़ो, अब लैपटौप को कैसे इस्तेमाल करना है, यह पापा को सिखाना तुम्हारी जिम्मेदारी है. श्याम, अभी संकल्प तुम्हें सब बता देगा, बैठो उस के साथ, देखो, कितना ईजी है. और हां, अब तुम लोग अपनेअपने काम पर जाने की तैयारी करो, शाम को  फिर मिलेंगे.’’

सुबह की पूजा जल्दी के मारे अधूरी रह गई तो श्यामाचरण ने राधे महाराज को शुद्धि का उपाय करने के लिए बुलाया. रैमचो ने यह सब सुन लिया था. महाराज का चक्कर अभी भी चल रहा है, अगली जेनरेशन में भी सुपर्स्टिशन का वायरस डालेगा, कुछ करता हूं. उस ने ठान लिया.

10 बजे राधे महाराज आ गए.

‘‘नमस्ते महाराज, पहचाना,’’ रैमचो ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘काहे नहीं, बड़े यजमान, कई वर्षों बाद देख रहा हूं.’’

‘‘यह बताइए कि लोगों को बेवकूफ बना कर कब तक अपना परिवार पालोगे. अपने बच्चों को यही सब सिखाएंगे तो वे औरों की तरह कैसे आगे बढ़ेंगे, पढ़ेंगे? क्या आप नहीं चाहते कि वे बढ़ें?’’  रैमचो ने स्पष्टतौर पर कह दिया.

पंडितजी सकपका गए, ‘‘मतबल?’’

‘‘महाराजजी, मतलब तो सही बोल नहीं रहे. मंत्र कितना सही बोलते होंगे. कुछ मंत्रों के अर्थ मैं मालती बहू से पहले ही जान चुका हूं. आप जानते हैं, जो हम ऐसे कह सकते हैं उस से क्या अलग है मंत्रों में? पुण्य मिलते बैकुंठ जाते आप में से या आप के पूर्वजों में से किसी ने किसी को देखा है या बस, सुना ही सुना है?’’

‘‘नहीं, यजमान, पुरखों से सुनते आ रहे हैं. पूजा, हवन, दोष निवारण की हम तो बस परिपाटी चलाए जा रहे हैं. सच कहूं तो यजमानों के डर और खुशी का लाभ उठाते हैं हम पंडित लोग. बुरा लगता है, भगवान से क्षमा भी मांगते हैं इस के लिए. परिवार का पेट भी तो पालना है, यजमान. हम और कुछ तो जानते नहीं, और ज्यादा पढ़ेलिखे भी नहीं.’’ राधे महाराज यह सब बोलने के बाद पछताने लगे कि गलती से मुंह से सच निकल गया.

इन 6 खूबसूरत बौलीवुड एक्ट्रेसेस के डिंपल वाली स्माईल के दीवाने है हजारों

फिल्मी सितारों के व्यक्तित्व में कुछ खास बात होती है. वे अपने व्यक्तित्व और आकर्षण से सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं. स्क्रीन पर महज अपनी मौजूदगी से ही वे आपको मंत्रमुग्ध कर देते हैं. उनकी ब्यूटी और बाहरी लुक्स के विपरीत एक और ऐसी चीज़ होती है जो आपके ध्यान को उनकी ओर ले जाती है. जी हां हम बात कर रहे है बौलीवुड की उन एक्ट्रेसेस की जिनके हंसने से गालों पर पड़ने वाले डिंपल मामूली से गढ्ढे होते है पर चेहरे की खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देते है.

हम आपको 6 ऐसी एक्ट्रेस के बारे में बताएंगे. जो अपने डिम्पलज से सभी का दिल जीत रहीं हैं. जब एक्ट्रेसेस के डिंपल की बातों हो तो सबसे पहले प्रीति जिंटा का नाम ही सामने आता है. उनकी डिंपल वाली स्माईल को कोई कैसे भूल सकता है.

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प्रीति जिंटा

आपको एक साबुन का मशहूर एड तो जरूर याद होगा जिसमें एक खूबसूरत लड़की मस्ती में झरने में नहा रही होती है. जिसके हसने से गालों पर पड़ते डिंपल उसको और भी खूबसूरत दिखा रहे होते है जी हां हम बात कर रहे है डिंपल गर्ल प्रीति जिंटा की. जिनके इस एड ने उनको डिंपल गर्ल के रूप में फेमस कर दिया था. इस एड के बाद प्रीति जिंटा ने अपनी एक्टिंग के बल पर बौलीवुड में अपनी एक खास जगह बनाई है. लेकिन उनको अब भी डिंपल गर्ल के रूप में ही जाना जाता है उनके डिंपल ने उनकी खूबसूरती में चार-चांद लगा कर उनकी और बेहतर लुक दिया है.

पिछले साल इंडिया टुडे कौनक्लेव ईस्ट में जब रेपिड फायर राउंड में प्रीति जी जिंटा से पूछा गया कि यदि उन पर बायोपिक बनी वे किस एक्‍ट्रेस को अपने रोल में देखना पसंद करेंगी ? तो प्र‍ीति ने आलिया भट्ट का नाम लिया और कहा कि वे उनके रोल को सही तरीके से करेंगी क्योंकि उनके गाल पर भी डिम्पल पड़ते हैं.

प्रीति ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 1998 की फिल्म दिल से की फिर फिल्म सोल्जर में फिर दिखीं. फिल्म क्या कहना में कुवारी मां की भूमिका के किरदार के लिए प्रीति को खूब सराहा गया. उन्हें इस रोल के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ नई अदाकारा का अवार्ड दिया गया. प्रीति जिंटा इन दोनों फिल्मों से दूर हैं. साल 2016 में जेन गुडएनफ संग शादी रचाने के बाद प्रीती का समय विदेश में अपने परिवार संग बीतता है. लेकिन सोशल मीडिया पर एक्ट‍िव रहने वाली प्रीति जिंटा अपने फिटनेस वीडियो शेयर करती रहती हैं.

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दीपिका पादुकोण

डिंपल गर्ल के रूप मे भला हम दीपिका को कैसे भूल सकते है अपनी हर एक अदा से दीवाना बनाने वाली दीपिका का डिंपल उनको खास पहचान देता है उनकी कोई भी फ़ोटो है हर फोटो में डिंपल उनको बेस्ट लुक देता है तभी तो सभी उनके लुक्स के दीवाने हैं. आपको बात दे , दीपिका ने हाल ही में अपने रीसेंट ऐड-फोटोशूट की तस्वीर अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर की थी. बिहाइंड द सीन पिक्चर में दीपिका कैजुअल कपड़ों में मुस्कुराती दिखाई दे रही हैं. तस्वीर में उनका डिंपल साफ दिखाई दे रहा है. दीपिका ने इसे #BTS (बिहाइंड द सीन) कैप्शन दिया है. दीपिका की इस फोटो पर उनके पति रणवीर ने कौमेंट किया है हेलो डिंपल, हम फिर मिल गए इसके साथ उन्होंने किस का सिंबल भी बनाया है.

इस समय दीपिका पादुकोण अपनी अपकमिंग फिल्म छपाक में एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल के रोल में नजर आएंगी. इस फिल्म को मेघना गुलजार बना रही हैं.

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सुरभि ज्योति

सीरियल नागिन 3 में बेला का रोल प्ले करने वाली सुरभि ज्योति अपनी डिंपल वाली स्माइल के लिए भी जानी जाती है.

इनकी एक्टिंग के तो सब दीवाने है ही लेकिन इनके डिंपल वाले चीक्स के भी दीवाने कम नही हैं. डिंपल गर्ल सुरभि ज्योति ने अपने टीवी करियर की शुरुआत सीरियल कुबूल है से की थी. सुरभि का नाम टीवी इंडस्ट्री की स्टाइलिश एक्ट्रेसेज़ की लिस्ट में भी शामिल है. औनस्क्रीन ही नहीं औफस्क्रीन भी सुरभि अपने आपको काफी मेंटेन करके रखती हैं. आए दिन वह सोशल अकाउंड पर ग्लैमर्स तस्वीरें शेयर करती है जिसमें न केवल उनका बेस्ट वेस्टर्न व ट्रेडीशनल लुक उनके फैंस को देखने को मिलता है.

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बिपाशा बासू

फेमस बंगाली एक्ट्रेस विपाशा बसु अपनी मस्त अदाओं और अपनी बोल्ड एक्टिंग से सभी को अपना दीवाना बनाये हुए है ही साथ ही उनकी डिंपल वाली स्माईल भी बहुत कातिलाना है उनके गालो पर पड़ने वाला डिंपल उनकी हौटनेस को और भी बढ़ा देता है.

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आलिया भट्ट

बौलीवुड की क्यूटेस्ट एक्ट्रेस की बात की जाए तो हम सभी के जेहन में आलिया भट्ट का नाम आता है कम उम्र में सफलता की सीढ़ियां चढ़ने वाली आलिया की स्माईल को सभी ने नोटिस किया उनके गालों पर भी एक छोटा सा डिंपल पड़ता है जो उनकी मासूमियत को और स्वीट बना देता हैं.

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हिना खान

खूबसूरती की एक और मिसाल है हिना खान. आपने देखा होगा जब हिना हसती है तो उनके गालों पर भी गड्ढे पड़ते है और उनके गालों पर पड़ने वाले डिम्पल ही उनकी सुंदरता को और बढ़ाते हैं. हिना जितनी ग्लैमरस अपने शो में दिखती हैं, उतनी ही हौट रीयल लाइफ में भी है. सोशल मीडिया पर हिना खूब एक्टिव हैं. इसलिए उनकी फैन फौलोइंग भी काफी अच्छी है. सोशल मीडिया पर वह अपनी हौट तस्वीरें, विडियो शेयर करना नहीं भूलती हैं. अपने शो कसौटी जिंदगी की- 2 को छोड़ने के बाद हिना अपने फिल्मी कमिटमेंट्स को लेकर काफी बिजी चल रही हैं. उन्होंने फिल्म लाइन्स, विश लिस्ट और कंट्री औफ ब्लाइट की शूटिंग पूरी कर ली है. इसके अलावा उन्होंने डायरेक्टर महेश भट्ट की फिल्म हैक्ड के फर्स्ट शेड्यूल को खत्म कर लिया है. टीवी और फिल्मी दुनिया के बाद अब हिना डिजिटल प्लेटफॉर्म पर डेब्यू करने जा रही हैं. खबर के मुताबिक वह हंगामा प्ले की अपकमिंग वेब सीरीज डैमेज्ड 2 में मुख्य भूमिका निभाती नजर आएंगी. इसमें वह एक्टर अध्यन सुमन के साथ काम करती दिखेंगी. इस वेब सीरीज के लिए दोनों ने शूटिंग शुरू कर दी है. कुछ दिन पहले हिना ने अपने इंस्टाग्राम पर सेट से कुछ फोटो शेयर की थी जिसमें वह, अध्ययन सुमन और क्रू मेंबर्स के साथ नजर आ रही हैं डैमेज्ड हंगामा प्ले की पहली वेबसीरीज थी और इसमें अमृता खानविलकर ने सीरियल किलर का रोल प्ले किया था. यह देश का पहला साइकोलौजिकल ड्रामा वेब शो था और इसमें अमृता के परफॉर्मेंस को खूब तारीफ मिली थी. अब देखना है कि डैमेज्ड 2 में हिना खान क्या कमाल दिखा पाती हैं.

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