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फिल्म समीक्षाः ‘सैरा नरसिम्हा रेड्डी’

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः राम चरण

निर्देशकः सुरेंद्र रेड्डी

संगीतकारः अमित त्रिवेदी

कलाकारः चिरंजीवी, सुदीप, अमिताभ बच्चन, विजय सेतुपथी, जगपथी बाबू, नयनतारा, तमन्ना, रवि किशन, निहारिका कोनोडिया, ब्रम्हानंदम, रघु बाबू, राम चरण, अनुष्का शेट्टी

अवधिः दो घंटे 51 मिनट

दो अक्टूबर को महात्मा गांधी की 150 वीं जंयती पर फिल्मकार सुरेंद्र रेड्डी देशभक्ति के तड़के से भरपूर बायोग्राफिकल एपिक एक्शन फिल्म ‘‘सैरा नरसिम्हा रेड्डी’’ लेकर आए है. जो कि आंध्रप्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उयालवाड़ा नरसिम्हा रेड्डी सैरा के जीवन पर एक भव्य एक्शन फिल्म हैं. फिल्म मूलतः तेलुगु भाषा में है, पर हिंदी,  कन्नड़,  मलयालम और तमिल में डब करके प्रदर्शित किया गया है. फिल्म में कितना इतिहास है और कितनी कल्पना इसका दावा तो नहीं किया गया है. मगर एक काल खंड विशेष की बेहतरीन एक्शन फिल्म है.

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कहानी:

आंध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानी उयालवाड़ा नरसिम्हा रेड्डी के जीवन पर आधारित एक काल्पनिक कहानी है. कहानी शुरू होती है 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम से. जब झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के बचे हुए चालिस सैनिक अंग्रजों से युद्ध करने से मना करते हैं, तब झांसी की रानी लक्ष्मीबाई (अनुष्का शेट्टी) अपने सैनिकों व सेनापति से स्वतंत्रता के लिए युद्ध लड़ने के लिए कहते हुए दस साल पहले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दक्षिण भारत के इनाड़ू के उयालवाडा नरसिम्हा रेड्डी (चिरंजीवी) की कहानी सुनाती हैं. आंध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र के पहलदार हैं, जो अपनी प्रजा और अपनी पत्नी सिद्धम्मा (नयनतारा),  अपनी मां (लक्ष्मी गोपालस्वामी) के साथ खुशी से रहते थे. उन दिनों वहां पर 71 छोटे छोटे राज्यों का समूह था और हर राज्य का मुखिया पहलदार कहा जाता था. उसी समय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी व्यवसाय के लिए भारत आई थी, लेकिन जल्द ही भारतीय लोगों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया और भारतीय संसाधनों को लूट कर अपने देश ले जाने लगे.

इधर सैरा नरसिम्हा रेड्डी बचपन में छह साल की उम्र से ही वह पहाड़ी के मंदिर का कार्तिक पूर्णिमा पर दिया जलाने जाने गलते है. बचपन में ही गुरू गोसाई वेनकना (अमिताभ बच्चन) ने सैरा को ऐसी शिक्षा दी है, कि अब उनका मुकाबला करने की शक्ति किसी में नही है. युवावस्था में पहुंचते ही जब नरसिम्हा रेड्डी अंग्रजों के अत्याचारों के साक्षी होते हैं, तो वह उग्र हो जाते हैं. और अकेले ही अंग्रजों के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजा देते हैं. दूसरे पहलदार उनका साथ नही देते हैं. उधर मंदिर मे नाचने गाने वाली लक्ष्मी (तमन्ना) को वह अपना नाम देते हुए उसे मंगलसूत्र पहना देते हैं, पर उससे कहते हैं कि वह अपनी इस कला का उपयोग लोगों के अंदर आजादी के लिए लड़ने की भावना भरने के लिए करे. इधर घर पहुंचने पर पता चलता है कि बचपन में एक खास परिस्थिति के चलते उनका व्याह सिद्धमा (नयनतारा)से हुआ था.

पर अग्रेजों के बढ़ते अत्याचार से लड़ने के लिए सैरा अपने सिंहासन, पत्नी और मां को छोड़ देते हैं. धीरे धीर अन्य क्षेत्र के पहलदार वीरा रेड्डी (जगपति बाबू), अवुकु राजू (सुदीप), राजा पंडी (विजय सेतुपति) भी सैरा नरसिम्हा रेड्डी के साथ हो जाते हैं. सैरा का ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह शुरू होता है. कई मोड़ आते हैं. अंग्रेज फूट डालो, राज करो की नीति का सहारा लेते हैं. उधर सैरा भी बराबर चैकन्ना रहता है और अपने अंदर के गद्दारों को भी खत्म करता रहता है. अंग्रेज लगातार परास्त होते रहते हैं. पर एक दिन अंग्रेजों की बातों में आकर वीरा रेड्डी (जगपति बाबू) ही सैरा नरसिम्हा रेड्डी को पकड़वा देते हैं. परिणामतः सैरा नरसिम्हा रेड्डी शहीद हो जाते हैं.

निर्देशनः

बतौर लेखक व निर्देशक सुरेंद्र रेड्डी ने बेहतरीन कला कौशल का परिचय दिया है. मगर फिल्म कुछ ज्यादा ही लंबी हो गयी है. इसे एडीटिंग टेबल पर कसने की जरुरत थी. इंटरवल तक दर्शक टकटकी लगाकर फिल्म देखता रहते हैं. मगर इंटरवल के बाद पूरे 45 मिनट तक बहुत कुछ सामान्य सा होता है और दर्शक महसूस करने लगते हैं कि निर्देशक ने फिल्म पर से पकड़ खो दी. सैरा नरसिम्हा की वीरता दिख चुका. इन 45 मिनट में गाना भी ठूंसा लगता है. लेकिन उसके बाद फिल्म जिस चरमोत्कर्ष पर जाती है, वह कमाल का है. फिल्म के कुछ संवाद काफी अच्छे बन पड़े हैं.

फिल्म के एकशन दृश्य काफी बेहतरीन व प्रभावशाली है. पहली बार इसमें एक्शन व युद्ध कौषल के कुछ अनोखे दृश्य पेश किए गए हैं. इंटरवल के बाद तमन्ना भाटिया का अंग्रेजों के सामने आत्मघाती नृत्य रोंगटे खड़ा कर देता है. यह दृश्य लेखक व निर्देशक की कुशाग्र बुद्धि का परिचायक है. मगर फिल्म का क्लायमेक्स जरुरत से ज्यादा मैलोड्ामा वाला हो गया है.देषभक्ति को उकेरने के नाम पर भी क्लाइमेक्स को लंबा खींचा गया है. दर्शक को फिल्म याद रह जाती है, मगर यह भी सच है कि फिल्मकार ने सिनेमाई स्वतंत्रता का भरपूर उपयोग करते हुए इसे मैलोड्रामा ज्यादा बना दिया.

फिल्म की पटकथा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि फिल्मकार ने दिखाया है कि सैरा नरसिम्हा रेड्डी को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ हर बार जीत इसलिए मिलती है, क्योंकि वह दुश्मन से लड़ने के अलावा भीतरघाट करने वाले अपनों की भी पहचान करते रहते हैं. मसलन-बासी रेड्डी (रवि किशन), सैरा नरसिम्हा रेड्डी के साथ होते हुए भी ईस्ट इंडिया कंपनी से मिले हुए हैं और एक दिन वे सैरा नरसिम्हा रेड्डी के पूरे परिवार को खत्म करने की योजना बनाते है, पर सैरा को पता चल जाता है और बासी रेड्डी को मौत की सजा मिलती है.

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फिल्म के कैमरामैन आर रथनावेलु की जितनी तारीफ की जाए ,उतनी कम है.विज्युअल इफेक्ट्स भी अच्छे हैं.

कुल मिलाकर फिल्म एक ऐसी देश प्रेम की कहानी को जीवंत करती है, जो अपने देश और अपने लोगों के लिए, अपने देश और उनके बलिदानों के लिए सैरा के जुनून के बारे में बात करती है. यह एक कहानी है कि कैसे योद्धा ने अपने जीवन और यहां तक कि मृत्यु के साथ भविष्य को बदल दिया.

अभिनयः

चिरंजीवी ने पहली बार कास्ट्यूम ड्रामा वाली फिल्म की है. अपनी बेहतरीन अभिनय क्षमता के बल पर वे सैरा नरसिम्हा रेड्डी को जीवंत करने में सफल रहे हैं. 64 साल की उम्र में उन्होंने इस किरदार को न्यायसंगत तरीके से परदे पर उतारने के लिए अपना दिल और आत्मा लगा दिया. किचा सुदीप की प्रतिभा को जाया किया गया है. नयनतारा के हिस्से करने को कुछ रहा ही नहीं. तमन्ना भाटिया के नृत्य लोगों को याद रह जाते हैं. चिरंजीवी के गुरू की छोटी मेहमान भूमिका में अमिताभ बच्च्न ने उत्कृष्ट अभिनय किया है.

जल्द ही निपटा लें जरूरी काम, 11 दिन बंद रहेंगे बैंक

अक्टूबर का महीना शुरू हो चुका है और इसके साथ ही Festive Season की शुरूआत भी हो चुकी है. दो बड़े त्योहार दशहरा और दिवाली इसी महीने में हैं. जिसके लिए आपको ढेर सारी तैयारी भी करनी होगी. इसलिए बैंक से पैसा निकालने के साथ जरूरी काम भी जल्द ही निबटा लें, क्योंकि अक्टूबर में लगभग 11 दिन बैंक बंद रहेंगे. हालांकि ATM मशीन से भी आप पैसे निकाल सकते हैं लेकिन त्योहार के चलते कभी-कभी यह भी खाली हो जाता है. ऐसे में कैश की कमी त्योहार का मजा किरकिरा कर सकती है.

तीन दिन लगातार बंद रहेंगे बैंक

छुट्टियों की बात करें तो इसकी शुरूआत दो अक्टूबर से ही हो रही है. यहां हम आपको छुट्टियों (Bank Holidays) के बारे में पूरी जानकारी दे रहे हैं. दो अक्टूबर को बैंक बंद रहेंगे क्योंकि इस दिन गांधी जयंती है. वहीं छ:, सात और आठ अक्टूबर को भी बैंक नहीं खुलेंगे. कारण यह है कि 6 को Sunday है और 7 को नवमी. वहीं 8 अक्टूबर को दशहरे की छुट्टी  होगी. इस वजह से आपको परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.

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दिवाली में भी चार दिन की छुट्टी

दशहरे के बाद 12 (दूसरे शनिवार) और 26 अक्टूबर (चौथे शनिवार) को भी बैंक बंद रहेंगे. चूंकि दूसरे और चौथे शनिवार को बैंक बंद रहते हैं इसलिए इन दोनों दिन भी कोई काम नहीं होगा. इसके अलावा 13 व 20 अक्टूबर को रविवार है तो जाहिर सी बात है बैंक में काम तो होगा नहीं. यही नहीं अब बारी है दिवाली की छुट्टी की, जी हां दिवाली (Diwali 2019) पर चार दिनों तक बैंक बंद रहेंगे यानी इन दिनों तो आपका कोई काम होने से रहा. वो इसलिए क्योंकि 26 को चौथा शनिवार, 27 को दिवाली (रविवार), 28 को गोवर्धन पूजा तो 29 अक्टूबर को भैया दूज है.

नवंबर में भी लगातार तीन दिन बंद रहेंगे बंद

अभी तक तो हम अक्टूबर की बात कर रहे थे. अब बात करते हैं नवंबर की छुट्टियों की. दरअसल, 9 नवंबर को दूसरा शनिवार तो 10 को रविवार है वहीं 11 नवंबर को गुरूनानक जयंती है. हालांकि 11 को छुट्टी है या नहीं यह भी तक क्लीयर नहीं है. साथ ही ये छुट्टियां हर राज्य के हिसाब से अलग-अलग भी हो सकती हैं.

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मीरा नायर की ‘ए सूटेबल ब्वाय’ सीरीज से जुड़ा इन एक्टर्स का नाम

‘‘मानसून वेडिंग’’,‘‘द नेमसेक’’, ‘‘कतवे की रानी’’ जैसी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराही जा चुकी फिल्मों की सर्जक मीरा नार अब ‘‘बीबीसी वन’’ के लिए छ: एपीसोड वाली वेब सीरीज ‘‘ए सूटेबल ब्वाय’’ की शूटिंग शुरू कर चुकी हैं, जो कि विक्रम सेठ के अंतर्राष्ट्रीय बेस्टसेलर उपन्यास का स्क्रीन रूपांतरण होगा. इसकी पटकथा पुरस्कृत ब्रिटिश पटकथा लेखक एंड्रयू डेविस ने लिखी है. मीरा नायर की इस वेब सीरीज में तान्या मानिकतला, ईशान खट्टर, तब्बू, रसिका दुगल, नमित दास, गगन देव रायार, दानेश रजवी और मिखाइल सेन और महेश कक्कड़ जैसे कलाकार होंगे.

‘‘ए सूटेबल ब्वाय’’ की कहानी 1951 में उत्तर भारत के एक विश्वविद्यालय की उत्साही छात्रा लता के उत्तर भारत में आने की कहानी है. जब देश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बना रहा है. किस तरह लता की मां उसके लिए पति को खोजने के लिए दृढ़ है- ‘ए सूटेबल ब्वाय.’ लेकिन परिवार के कर्तव्य और रोमांस की उत्तेजना के बीच फंसी हुई लता, अपने आप ही प्यार और आत्म-खोज की महाकाव्य यात्रा पर निकल पड़ती है.

वेब सीरीज ‘‘ए सूटेबल ब्वाय’’ में लता की भूमिका में नवोदित अभिनेत्री तान्या मानिकतला तथा मान कपूर के किरदार में ईशान खट्टर हैं. जबकि सायदा बाई के किरदार में तब्बू हैं. इसके अलावा ‘मंटो’ और ‘मिर्जापुर’ फेम रसिका दुगल ने इसमें लता की बहन सविता का किरदार निभा रही हैं, जो कि अरेंज मैरिज के पारंपरिक रास्ते पर चलती है. सविता और उनके पति प्राण (गगन देव रौय) लता के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. क्योंकि उनका गहरा बंधन प्यार और इच्छा के बारे में उनके अपने विचारों को प्रश्न बनाता है.

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इस कहानी में सुंदर छात्र और स्टार क्रिकेटर कबीर (दानेश रजवी), विलक्षण कवि अमित (मिखाइल सेन) और महत्वाकांक्षी व आत्मविश्वासी  हरीश (नमित दास) किसी न सिकी मोड़ पर लता के संग विवाह के इच्छुक नजर आएंगे.

लता की मां श्रीमती रूपा मेहरा की भूमिका में माहिरा कक्कड़ नजर आएंगी, जो कि ‘आरेंज द न्यू ब्लैक’, ‘द ब्लैकलिस्ट’, ‘न्यू एम्स्टर्डम’, ‘द बिग सी एंड लौ एंड और्डर’ जैसे अमरीकन शो में अभिनय कर चुकी हैं. वह अमेरिका में थिएटर और टीवी में काम कर रही है, पर ‘ए सूटेबल ब्वाय’ के लिए भारत लौटी हैं.

सविता के किरदार को निभा रही अभिनेत्री रसिका दुगल कहती हैं- ‘मैं हमेशा मीरा नायर की फिल्मों से मंत्रमुग्ध रही हूं. अपने फ्रेम में हर व्यक्ति का ध्यान, उसके काम में संवेदनशीलता, सौम्यता और मस्ती ने मुझे उसकी फिल्मों को बार-बार देखने के लिए प्रेरित किया. वर्षों बाद, जब मुझे एक फिल्म समारोह में न्यूयार्क में मीरा से मिलने का मौका मिला, तो मैंने समझा कि उनकी फिल्मों में मजा कहां से आता है. वह एक दयालु और जीवंत व्यक्ति हैं. उनके साथ काम करना मेरी बकेट लिस्ट में रहा है. ‘ए सूटेबल ब्वाय‘ के साथ जुड़ना मेरे लिए खुशी की बात है.’’

हरेश के किरदार को निभाने वाले नमित दास कहते हैं- ‘‘मेरे लिए ‘ए सूटेबल ब्वाय’ एक ड्रीम प्रोजेक्ट्स में से एक है, जो कोई भी अभिनेता करना चाहेगा. इसमें मैंने इस दुनिया में मेरे पसंदीदा किरदार हरेश खन्ना को निभाया है,जिसे जीनियस विक्रम सेठ ने रचा है.महत्वाकांक्षी हरेश के किरदार में गहराई के साथ कई  परतें हैं,जिसे निभाना बहुत दिलचस्प है. मीरा के साथ मेरा जुड़ाव ‘मॉनसून वेडिंग’के समय से है.मैं वास्तव में उनका आभारी हूं.”

प्राण का किरदार निभा रहे अभिनेता गगन देव रायर कहते हैं- ‘‘मैं बहुत उत्साहित हूं कि मेरी पहली बड़ी स्क्रीन भूमिका मीरा नायर के साथ है और मुझे वास्तव में उम्मीद है कि मैं प्राण कपूर के अपने सपने को पूरा करने में सक्षम हूं. उन्हें कम आंकना आसान है, लेकिन वास्तव में एक बहुत ही दयालु, मजाकिया और बुद्धिमान व्यक्ति है, जिसे सभी से प्यार है.‘‘

कबीर के किरदार को निभा रहे दानेश रजवी ने कहते हैं- ‘‘मीरा नायर और इस तरह के एक प्रतिबद्ध कलाकार और चालक दल के साथ काम करना प्राणपोषक रहा है. यह मेरी पहली बड़ी वेब सीरीज है, जो कि मेरे लिए सीखने की एक महान प्रक्रिया रही है. मेरा किरदार कबीर अपने विश्वविद्यालय में एक स्पोर्ट्स स्टार होने के साथ-साथ लता के सक्सेसर्स और प्यार और जीवन के प्रति उनके भावुक,आवेगी दृष्टिकोण के कारण कुछ ऐसा है, जिसे मैं अच्छी तरह से चित्रित कर रहा हूं. ‘‘

अमित के किरदार को निभा रहे कलाकार मिखाइल सेन कहते हैं- ‘‘मीरा के साथ काम करने का अवसर पाकर मैं खुद को धन्य महसूस करता हूं. कलाकार और क्रू कमाल के हैं! यह बहुत ही शानदार और हिस्सा है. जब मैंने कुछ साल पहले किताब पढ़ी, तो मुझे इसके कई पात्रों से प्यार हो गया और अमित उनमें से एक था. वह विशेष रूप से मेरे साथ रहा क्योंकि वह रहस्यपूर्ण और पेचीदा है. वास्तव में इसे जीवन में लाने के लिए उत्साहित हूं.”

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श्रीमती रूपा मेहरा के किरदार को निभा रही अभिनेत्री माहिरा कक्कड़ कहती हैं- ‘‘रूपा मेहरा एक ऐसी महिला है, जिसमें धैर्य है, जिसमें भावनाओं का गहरा कुआं है. खासकर जब यह उसके परिवार की बात आती है. वह मुझे उन कई महिलाओं की याद दिलाती है, जिन्हें मैं अपनी मां और मां में जानती थी. दादी मां की पीढ़ियां. उनका घर जाना एक उपहार है और महिलाओं को एक श्रद्धांजलि की तरह महसूस करता है, जिन्हें इतनी आसानी से खारिज किया जा सकता था, क्योंकि उनकी चिंताएं उनके परिवार का कल्याण थीं. मैंने पहली बार मीरा नायर जी की कुछ फिल्में देखीं हैं. मुझे उनके साथ ‘मौनसून वेडिंग’ में काम करने का सौभाग्य मिला था.’’

इस छ: भाग की वेब सीरीज के कार्यकारी निर्माता एंड्रयू डेविस, मीरा नायर और विक्रम सेठ हैं. बीबीसी स्टूडियो द्वारा वितरित की जाने वाली वेब सीरीज ‘‘ए सूटेबल ब्वाय’ को लखनऊ और महेश्वर सहित पूरे भारत में कई स्थानों पर फिल्माया जाएगा.

‘बिग बौस 13’: अमीषा पटेल ने घर में मारी धमाकेदार एंट्री, टास्क जीतने की लगी होड़

छोटे पर्दे का मशहूर रियलिटी शो ‘बिग बौस 13’ का आगाज हो चुका है. इस शो का पहला एपिसोड  ही काफी मनोरंजक रहा. जहां एक तरफ पहले ही दिन प्रतिभागियों ने खूब मस्ती धमाल मचाया तो वहीं दूसरी तरफ उनका दूसरा रूप देखने को मिल रहा है. तो आइए आपको बताते हैं, इस धमाकेदार शो में क्या क्या हो रहा है.

‘बिग बौस 13’ के इस सीजन में काफी नए नए बदलाव देखने को मिल रहे हैं. जी हां इस सीजन में काफी कुछ बदल चुका है. जो इससे पहले  बिग बौस के किसी भी सीजन में नही हुआ था. यही वजह है कि इस बार दर्शक “बिग बौस 13” को लेकर काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं. अब भला दर्शकों का उत्साहित होना तो बनता है क्योंकि इस बार तो घर में जाने से पहले ही सदस्यों ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था और  इनका यह सिलसिला अभी भी रुका नहीं है.

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आपको बता दें, ‘बिग बौस 13’ के इस सीजन में पहले दिन की शुरूआत ‘अमीशा पटेल’ के गाने कहो न प्यार है… से हुई. जिसके कुछ समय बाद ही अमीशा पटेल ने घर में धमाकेदार एंट्री मारी. सारे कंटेस्टेंट अमीशा को इस तरह से घर में देखकर काफी हैरान नजर आए. अमीशा ने आते ही बताया कि, वह बिग बौस के घर की मालकिन है और जो भी वह कहेगी, सभी सदस्यों को उनका कहा मानना ही पड़ेगा.

तो दूसरी ओर घर में राशन नहीं था. सभी लोगों ने अमीशा पटेल से राशन की मांग की. वैसे घर में कोई भी चीज आसानी से तो नहीं मिलने वाली. यही वजह है कि, राशन के लिए अमीशा पटेल ने घर की सभी जोड़ियों को एक टास्क करने के लिए कहा जिसमें सबको अपने मुंह से सामान उठा कर दूसरे सदस्य को देना था. घर के सभी लोगों को ऐसा करते देखना काफी मजेदार था.

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तो वहीं दूसरी तरफ सिद्धार्थ शुक्ला और रश्मि देसाई के बीच भी  नोक- झोक देखने को मिली. इन दोनों का रिएक्शन खुल कर सामने नहीं आया है लेकिन इन दोनों के नोक-झोक से इतना तो साफ है कि, दोनों को एक ही बेड शेयर करने में काफी परेशानी है. ऐसे में अपकमिंग एपिसोड्स में देखना दिलचस्प होगा कि इन दोनों के बीच में आखिर होता क्या है.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: कार्तिक ने नायरा को भेजा कायरव की कस्टडी का नोटिस!

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  में  हाई वोल्टेज ड्रामा चल रहा है. जी हां आपने पिछले एपिसोड में देखा कि वेदिका को नायरा सुसाइड करने से बचाती है, उसके बाद नायरा से वेदिका पूछती है कि मैं क्या करूं?  मुझे लगा था मैं कार्तिक पत्नी हूं. पर तुम्हारे आने के बाद मैं कुछ भी नहीं रही.

ये सारी बातें सुनने के बाद नायरा, वेदिका को तलाक के पेपर्स पकड़ाती है. जिसे देखकर वेदिका दंग रह जाती है और नायरा को ‘थैंक यू’ बोलती है.  इसके अलावा वो नायरा को सौरी भी बोलती है.

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इसके बाद वहां नायरा अस्पताल जाती है और वो उन्हें कायरव का फिटनेस सर्टिफिकेट बनाने को कहती है, जिससे वो कायरव को बाहर ले सके. इसके बाद हौस्पिटल वालों ने कार्तिक को भी कायरव को फिटनेस सर्टिफिकेट मेल कर दिया, जिसमें ये लिखा होता है कि कायरव अब शहर से बाहर जा सकता है.

उधर नायरा कार्तिक को फोन करती है और कायरव के बारे में बताना चाहती है. लेकिन कार्तिक फोन नहीं उठाता है. वो मेल चेक करता है और उसके होश उड़ जाते हैं, बाकी घरवाले भी मेल देखते हैं. सब नायरा पर बहुत गुस्सा करते हैं.

तो दूसरी ओर कार्तिक गुस्से में घर से बाहर निकलता है. और उधर नायरा का भेजा डिवोर्स लेटर भी मिल जाता है, वो बहुत गुस्से में गाड़ी निकालता है और चला जाता है. नायरा अपने घरवालों से कहती है कि वो इस बार कायरव को छिपकर नहीं ले जाएगी बल्कि कार्तिक को बताकर ले जाएगी.

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अपकमिंग एपिसोड में आप ये देखेंगे कि कार्तिक, नायरा को डिवोर्स पेपर के जवाब में लीगल नोटिस देता है और कहता है कि अब हम डिवोर्स का केस के साथ-साथ बच्चे की कस्टडी का केस भी लड़ेंगे.

रातों का खेल: भाग 2

रातों का खेल: भाग 1

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आखिरी भाग

लीड जैक इंफोकाम और सर्वर के माध्यम से एक साथ 10 हजार अमेरिकी नागरिकों को वायस मैसेज भेजा जाता था. मैसेज द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन अधिकारी की तरफ से भेजा जाता था, जिस में कभी कर चोरी तो कभी उन की गाड़ी के आपराधिक मामले में इस्तेमाल किए जाने की रिपोर्ट से संबंधित वायस मैसेज होता था. इस के अलावा ऐसे ही कई दूसरे मामलों में उन के खिलाफ शिकायत मिलने की बात कह कर एक टोल फ्री नंबर पर कौन्टैक्ट करने को कहा जाता था.

वायस मैसेज भेजने वाली नौर्थ ईस्ट की लड़कियां इस लहजे में मैसेज देती थीं कि कोई भी अमेरिकी नागरिक उस के अंगरेजी बोलने के लहजे से यह नहीं सोच सकता था कि वह किसी भारतीय लड़की की आवाज है.

इस के लिए मैजिक जैक डिवाइस का उपयोग किया जाता था. मैजिक जैक एक ऐसी डिवाइस है जिसे कंप्यूटर व लैंडलाइन फोन से कनेक्ट कर विदेशों में काल कर सकते हैं. इस से विदेश में बैठे व्यक्ति के फोन पर फेक नंबर डिसप्ले होता है. यह वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकाल (वीओआईपी) के प्लेटफार्म पर चलती है. इस से अमेरिका और कनाडा में काल कर सकते हैं और रिसीव भी कर सकते हैं.

एसपी जितेंद्र सिंह के अनुसार ठगी का कारोबार 3 स्तर पर पूरा होता था. ऊपर बताया गया काम डायलर का होता था. इस के बाद काम शुरू होता था ब्रौडकास्टर का. जिन 10 हजार अमेरिकी नागरिकों को फरजी तौर पर द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन अधिकारी की ओर से नियम तोड़ने या किसी अपराध से जुड़े होने की शिकायत मिलने का फरजी वायस मैसेज भेजा जाता था, उन में से कुछ ऐसे भी होते थे जिन्होंने कभी न कभी अपने देश का कोई कानून तोड़ा होता था.

इस से ऐसे लोग और कुछ दूसरे लोग डर जाने के कारण मैसेज में दिए गए नंबर पर फोन करते थे. इन काल को ब्रौडकास्टर रिसीव करता था, जो प्राय: नार्थ ईस्ट की कोई युवती होती थी.

आमतौर पर ऐसे लोगों द्वारा किए जाने वाले संभावित सवालों का अनुमान उन्हें पहले से ही होता था, इसलिए ब्रौडकास्टर युवती सामने वाले को कुछ इस तरह संतुष्ट कर देती थी कि अच्छाभला आदमी भी खुद को अपराधी समझने लगता था. जब कोई अमेरिकी जाल में फंस जाता था, तो उस के काल को तीसरी स्टेज पर बैठने वाले क्लोजर को ट्रांसफर कर दिया जाता था.

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यह क्लोजर पहले तो विजिलेंस अधिकारी बन कर अमेरिकी लैंग्वेज में कठोर काररवाई के लिए धमकाता था, फिर उसे सेटलमेंट के मोड पर ला कर गिफ्ट कार्ड, वायर ट्रांसफर, बिटकौइन और एकाउंट टू एकाउंट ट्रांजैक्शन के औप्शन दे कर डौलर ट्रांसफर के लिए तैयार कर लेता था.

इस के बाद गिफ्ट कार्ड के जरिए अमेरिकी खातों में डौलर में रकम जमा करवा कर उसे हवाला के माध्यम से भारत मंगा कर जावेद और राहिल खुद रख लेते थे. हवाला से रकम भेजने वाला 40 प्रतिशत अपना हिस्सा काट कर शेष रकम जावेद को सौंप देता था.

एसपी जितेंद्र सिंह के अनुसार यह गिरोह रोज रात को कालसेंटर खुलते ही एक साथ नए 10 हजार अमेरिकी लोगों को फरजी वायस मैसेज भेजने के बाद फंसने वाले लोगों से लगभग 3 से 5 हजार डौलर यानी लगभग 3 लाख की ठगी कर सुबह औफिस बंद कर अपने घर चले जाते थे.

अनुमान है कि जावेद और राहिल के गिरोह ने अब तक लगभग 20 हजार से अधिक अमेरिकी नागरिकों से अरबों रुपए ठगे होंगे. उस के पास 10 लाख दूसरे अमेरिकी नागरिकों का डाटा भी मिला, जिन्हें ठगी के निशाने पर लिया जाना था.

गिरोह का दूसरा मास्टरमाइंड राहिल छापेमारी की रात अहमदाबाद गया हुआ था, इसलिए वह पुलिस की पकड़ से बच गया जिस की तलाश की जा रही है. राहिल के अलावा संतोष, मिनेश, सिद्धार्थ, घनश्याम तथा अंकित उर्फ सन्नी चौहान को भी पुलिस तलाश रही है, जो इस फरजी कालसेंटर को 12 से 14 रुपए प्रति अमेरिकी नागरिक का डाटा उपलब्ध कराते थे.

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कहानी सौजन्य: मनोहर कहानी

निशान : भाग 2

मां ने हड़बड़ाते हुए रसोई से आ कर राकेश की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा तो उस ने मन की भड़ास निकाल दी. 16 साल का राकेश मां से अपने पिता के व्यवहार की शिकायत कर रहा था और मां मौके की नजाकत भांप कर बेटे को समझा रही थीं.

‘‘बेटा, मैं तुम्हारे पापा से बात करूंगी कि इस बात का ध्यान रखें. वैसे बेटा, तुम यह तो समझते ही हो कि वे तुम से कितना प्यार करते हैं. तुम्हारी हर फरमाइश भी पूरी करते हैं. अब गुस्सा आता है तो वे खुद को रोक नहीं पाते. यही कमी है उन में कि जराजरा सी बात पर गुस्सा करना उन की आदत बन गई है. तुम उसे दिल पर मत लिया करो.’’

‘‘रहने दो मां, पापा को हमारी फिक्र कहां, कभी भी, कहीं भी हमारी बेइज्जती कर देते हैं. दोस्तों के सामने ही कुछ भी कह देते हैं. तब यह कौन देख रहा है कि वे हमें कितना प्यार करते हैं. लोग तो हमारा मजाक बनाते ही हैं.’’

राकेश अभी भी गुस्से से भनभना रहा था और उस की मां सरला माथा पकड़ कर बैठ गई थीं, ‘‘मैं क्या करूं, तुम लोग तो मुझे सुना कर चले जाते हो पर मैं किस से कहूं? तुम क्या जानो, अगर तुम्हारे पिता के पास कड़वे बोल न होते तो दुख किस बात का था. उन की जबान ने मेरे दिल पर जो घाव लगा रखे हैं वे अभी तक भरे नहीं और आज तुम लोग भी उस का निशाना बनने लगे हो. मैं तो पराई बेटी थी, उन का साथ निभाना था, सो सब झेल गई पर तुम तो हमारे बुढ़ापे की लाठी हो, तुम्हारा साथ छूट गया तो बुढ़ापा काटना मुश्किल हो जाएगा. काश, मैं उन्हें समझा सकती.’’

तभी परदे के पीछे सहमी खड़ी मासूमी धड़कते दिल से मां से पूछने लगी, ‘‘मां, क्या हुआ, भैया को गुस्सा क्यों आ रहा था?’’

‘‘नहीं बेटा, कोई बात नहीं, तुम्हारे पापा ने उसे डांट दिया था न, इसीलिए कुछ नाराज था.’’

‘‘मां, आप पापा से कुछ मत कहना. बेकार में झगड़ा शुरू हो जाएगा,’’ डर से पीली पड़ी मासूमी ने धीरे से कहा.

‘‘तू बैठ एक तरफ,’’ पहले से ही भरी बैठी सरला ने कहा, ‘‘उन से बात नहीं करूंगी तो जवान बेटों को भी गंवा बैठूंगी. क्या कर लेंगे? चीखेंगे, चिल्लाएंगे, ज्यादा से ज्यादा मार डालेंगे न, देखूंगी मैं भी, आज तो फैसला होने ही दे. उन्हें सुधरना ही पड़ेगा.’’

सरला जब से ब्याह कर आई थीं उन्होंने सुख महसूस नहीं किया था. वैसे तो घर में पैसे की कमी नहीं थी, न ही सुरेशजी का चरित्र खराब था. बस, कमी थी तो यही कि उन की जबान पर उन का नियंत्रण नहीं था. जराजरा सी बात पर टोकना और गुस्सा करना उन की सब से बड़ी कमी थी और इसी कमी ने सरला को मानसिक रूप से बीमार कर दिया था.

वे तो यह सब सहतेसहते थक चुकी थीं, अब बच्चे पिता की तानाशाही के शिकार होने लगे हैं. बच्चों को बाहर खेलने में देर हो जाती तो वहीं से गालियां देते और पीटते घर लाते, उन के पढ़ने के समय कोई मेहमान आ जाता तो सब को एक कमरे में बंद कर यह कहते हुए बाहर से ताला लगा देते, ‘‘हरामजादो, इधर ताकझांक कर के समय बरबाद किया तो टांगें तोड़ दूंगा. 1 घंटे बाद सब से सुनूंगा कि तुम लोगों ने क्या पढ़ा है? चुपचाप पढ़ाई में मन लगाओ.’’

उधर सरला उस डांट का असर कम करने के लिए बच्चों से नरम व्यवहार करतीं और कई बार उन की गलत मांगों को भी चुपचाप पूरा कर देती थीं. पर आज तो उन्होंने सोच रखा था कि वे सुरेशजी को समझा कर ही रहेंगी कि जब बाप का जूता बेटे के पैर में आने लगे तो उस से दोस्त जैसा व्यवहार करना चाहिए. वरना कल औलाद ने पलट कर जवाब दे दिया तो क्या इज्जत रह जाएगी. औलाद भी हाथ से जाएगी और पछतावे के सिवा कुछ नहीं मिलेगा.

अपने विचारों में सरला ऐसी डूबीं कि पता ही नहीं चला कि कब सुरेशजी घर आ गए. घर अंधेरे में डूबा था. उन्होंने खुद बत्ती जलाई और उन की जबान चलने लगी :

‘‘किस के बाप के मरने का मातम मनाया जा रहा है, जो रात तक बत्ती भी नहीं जलाई गई. मासूमी, कहां है, तू ही यह काम कर दिया कर, इन गधों को तो कुछ होश ही नहीं रहता.’’

फिर उन्होंने तिरछी नजरों से सरला को देखा, ‘‘और तुम, तुम्हें किसी काम का होश है या नहीं? चायपानी भी पिलाओगी या नहीं? मासूमी, तू ही पानी ले आ.’’

उधर मासूमी मां की आड़ में छिपी थी. उस का दिल आज होने वाले झगड़े के डर से कांप रहा था. फिर भी उस ने किसी तरह पिता को पानी ला कर दिया. पानी पीते उन्होंने मासूमी से पूछा, ‘‘इन रानी साहिबा को क्या हुआ?’’

मासूमी के मुंह से बोल नहीं फूटे तो हाथ के इशारे से मना किया, ‘‘पता नहीं.’’

‘‘वे दोनों नवाबजादे कहां हैं?’’

‘‘पापा, बड़े भैया का आज मैच था. वे अभी नहीं आए हैं और छोटे किसी दोस्त के यहां नोट्स लेने गए हैं,’’ किसी अनिष्ट की आशंका मन में पाले मासूमी डरतेडरते कह रही थी.

‘‘हूं, ये सूअर की औलाद सोचते हैं कि बल्ला घुमाघुमा कर सचिन तेंदुलकर बन जाएंगे और दूसरा नोट्स का बहाना कर कहीं आवारागर्दी कर रहा है, सब जानता हूं,’’ सुरेशजी की आंखें शोले बरसाने को तैयार थीं.

बस, इसी अंदाज पर सरला कुढ़ कर रह जाती थीं. उन की आत्मा तब और छलनी हो जाती जब बच्चे पिता की इस ज्यादती का दोष भी उन के सिर मढ़ देते कि मां, अगर आप ने शुरू से पिताजी को टोका होता या उन का विरोध किया होता तो आज यह नौबत ही नहीं आती. मगर वे बच्चों को कैसे समझातीं, यहां तो पति के विरोध में बोलने का मतलब होता है कुलटा, कुलक्षिणी कहलाना.

वे तब उस इनसान की पत्नी बन कर आई थीं जब पुरुष अपनी पत्नियों को किसी काबिल नहीं समझते थे घर में उन की कोई अहमियत नहीं होती थी, न ही बच्चों के सामने उन की इज्जत की जाती थी. वरना सरला यह कहां चाहती थीं कि पितापुत्र का सामना लड़ाईझगड़े के सिलसिले में हो और इसीलिए सरला ने खुद बहुत संयम से काम ले कर पितापुत्र के बीच सेतु बनने की कोशिश की थी.

उन्होंने तो जैसेतैसे अपना समय निकाल दिया था पर अब नया खून बगावत का रास्ता अपनाने को मचल रहा था और इसी के चलते घर के हालात कब बिगड़ जाएं, कुछ भरोसा नहीं था और इन सब बातों का सब से बुरा असर मासूमी पर पड़ रहा था.

मासूमी मां की हमदर्द थी तो पिता से भी उसे बहुत स्नेह था, लेकिन जबतब घर में होने वाली चखचख उस को मानसिक रूप से बीमार करने लगी थी. स्कूल जाती तो हर समय यह डर हावी रहता कि कहीं पिताजी अचानक घर न आ गए हों क्योंकि राकेश भाई अकसर स्कूल से गायब रहते थे…और घर में रहते तो तेज आवाज में गाने सुनते थे…इन दोनों बातों से पिता बुरी तरह चिढ़ते थे.

मां राकेश को समझातीं तो वह अनसुनी कर देता. उसे पता था कि पिता ही मां की बातों पर ध्यान नहीं देते हैं इसलिए उन का क्या है बड़बड़ करती ही रहेंगी. ऐसे में किसी अनहोनी की आशंका मासूमी के मन को सहमाए रखती और स्कूल से घर आते ही उस का पहला प्रश्न होता, ‘मां, पापा तो नहीं आ गए? भैया स्कूल गए थे या नहीं? पापा ने प्रकाश भाई को क्रिकेट खेलते तो नहीं पकड़ा? दोनों भाइयों में झगड़ा तो नहीं हुआ?’

मां उसे परेशानी में देखतीं तो कह देती थीं, ‘क्यों तू हर समय इन्हीं चिंताओं में जीती है. अरे, घर है तो लड़ाई झगड़े होंगे ही. तुझे तो बहुत शांत होना चाहिए, पता नहीं तुझे आगे कैसा घरवर मिले.’

मगर मासूमी खुद को इन बातों से दूर नहीं रख पाती और हर समय तनावग्रस्त रहतेरहते ही वह स्कूल से कालेज में आ गई थी और आज फिर वह दिन आ गया था जो किसी आने वाले तूफान का संकेत दे रहा था.

सर्वे नमंति सुखिन

चाहे इंसान हो, शहर हो, सड़क हो, या फिर कोई स्थान हो, नाम बदलने का फैशन चल पड़ा है. भई, नाम बदलने वालों को लगता है कि वहां की या उस की तस्वीर या फिर दशा बदल जाएगी. पर ऐसा होता है क्या?

आखिर और क्या तरीका हो सकता था इन के जीवन को आसान बनाने का. यदि इन के लिए सार्वजनिक स्थानों, कार्यालयों आदि मैं रैंप बनवाया जाए, व्हीलचेयर की व्यवस्था की जाए, चलिष्णु सीढि़यां लगाई जाएं, बैटरीचालित गाड़ी का प्रबंध किया जाए, तो उस में कितना खर्च होगा. कितना परिश्रम लगेगा.

यदि अंगदान को प्रोत्साहन कर उन्हें वांछित अंग उपलब्ध करवाया जाए या फिर शोध व अनुसंधान के जरिए उन के लिए आवश्यक यंत्र बना कर या विकास कर उपलब्ध करवाया जाए तो यह काफी कष्टकर व खर्चीला होगा. फिर उन्हें वह संतुष्टि नहीं मिलेगी जो दिव्यांग जैसे दिव्य नाम प्राप्त होने से मिली. सो, और कुछ करने की अपेक्षा प्यारा सा, न्यारा सा नाम दे देना ही उचित होगा.

तो कुछ और करने से बेहतर है कि इस तरह के वंचित लोगों को खूबसूरत सा प्रभावी नाम दे दें. और हम ऐसा करते भी आए हैं. विकलांगों को पहले डिफरैंटली एबल्ड या स्पैशली एबल्ड का नाम दिया गया और अब दिव्यांग. हो सकता है आगे चल कर इस से भी तड़कभड़क वाला, इस से भी गरिमामय कोईर् नाम दे दिया जाए.

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किसानों को अन्नदाता का नाम और दर्जा दिया जाता रहा है. भले ही वे खुद अन्न के लिए तरसते रहें. भले ही वे अपने ही उपजाए अन्न को फलों को, सब्जियों को कौडि़यों के दाम बेच कर उसे पाने के लिए, खाने के लिए तरसें. अन्नदाता नाम का ही प्रभाव है कि हमारे अधिकांश किसान आत्महत्या नहीं कर रहे हैं. और यह कम बड़ी उपलब्धि नहीं है. हो सकता है आने वाले दिनों में यह समाचार छपा करे कि आज इतने किसानों ने आत्महत्या नहीं की.

हरिजन नामकरण मात्र मिल जाने से भी विशेष वर्गों को राहत मिली है. भले ही आज भी इन में से कुछ सिर पर मैला ढोने को बाध्य हों पर नाम तो ऐसा मिला है कि ये प्रकृति के साक्षात करीबी माने जा सकते हैं, फिर आम आदमी की बात ही क्या है.

किसी मशहूर लेखक ने दरिद्रनारायण नाम दे कर दरिद्रों को नारायण का दर्जा दे दिया था. दरिद्रतारूपी घाव पर नारायण नाम रूपी मरहम अपनेआप में कितना सुखद एहसास रहा होगा, यह सोचने की बात है.

इसी प्रकार हम सोचविचार कर दबेकुचले, वंचित लोगों को खूबसूरत सा चमत्कारिक नाम दे सकते हैं. बेरोजगारों को अमरबेल कहें तो कैसा रहेगा? जिस प्रकार अमरबेल बगैर जड़ के, बगैर जमीन के भी फैलती रहती है उसी प्रकार बेरोजगार युवकयुवती भी बगैर किसी रोजगार के जीवन के मैदान में डटे रहते हैं और कल की उम्मीद से सटे रहते हैं.

बेघर लोगों को भी इसी प्रकार का नाम दिया जा सकता है. विस्थापित हो कर अपने ही देश में शरणार्थी का जीवन जीने वालों को, बगैर अपराध सिद्ध हुए कारावास में रहने वालों को, दंगापीडि़तों को कोई प्यारा सा नाम दे दिया जाए. बलात्कार पीडि़त लड़की को तो निर्भया नाम दे भी दिया गया है. कोई और भी नाम दिया गया था उसे. शायद दामिनी, पर निर्भया नाम ज्यादा मशहूर हुआ. इतना मात्र उस के और उस के परिवार को राहत देने के लिए काफी नहीं होगा क्या? इसी प्रकार इस तरह की पीडि़त अन्य महिलाओं को भी यही या ऐसा ही कुछ नाम दे दिया जाए.

साइबर अपराधियों द्वारा लूटी गई जनता को कोई अच्छा सा नाम दिया जाए ताकि उसे बेहतरीन एहसास का आनंद मिले. आखिर मोबाइल सेवाप्रदाताओं पर रेवड़ी की भांति सिम वितरण पर रोक क्यों लगाई जाए? क्यों उन्हें केवाईसी नियमों के सही अनुपालन के लिए, केवाईसी के नवीकरण के लिए और उन के सिम का दुरुपयोग होने पर दंडित करने की कल्पना भी मन में लाई जाए?

आखिर ये बड़े स्वामियों के स्वामित्व में होते हैं. वैसे, कानून की नजर में सब बराबर होते हैं. फिर जौर्ज औरवैल ने कहा भी है, ‘औल आर इक्वल बट सम आर मोर इक्वल दैन अदर्स.’ तो ये भी मोर इक्वल हैं.

बात सिर्फ मनुष्यों की नहीं है, स्थानों, सड़कों आदि के नाम भी इसी प्रकार से बदले जा रहे हैं. कहीं  मेन रोड को महात्मा गांधी रोड कहा जा रहा है तो कहीं किसी चौक का नाम किसी शहीद के नाम पर रखा जा रहा है. सड़क को दुरुस्त करने के स्थान पर उसे प्यारा सा देशभक्ति से ओतप्रोत नाम देना ज्यादा श्रेयस्कर होगा. यह बात अलग है कि अधिकांश लोग उस सड़क को पुराने नाम से ही जानते हैं. नया देशभक्ति से ओतप्रोत नाम, बस, फाइलों में ही दबा रहता है.

कहींकहीं तो पूरे शहर का नाम ही बदल दिया जा रहा है. अब शहर को सुव्यवस्थित बनाने में, प्रदूषणमुक्त करने में काफी झमेला है. नया नाम, भले ही वह शहर का पूर्व में रह चुका हो, दे देना ज्यादा आसान है. इस से वर्तमान, गौरवमय अतीत की तरह लगने लगता है.

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इतना ही नहीं, नाम रखने का एक नया फैशन चल पड़ा है. इस फैशन में नाम हिंदी शब्द का होते हुए भी हिंदी नहीं होता. उदाहरण के लिए नीति आयोग को ले लें. नीति वैसे तो हिंदी शब्द है, पर वास्तव में यह इंग्लिश शब्दों का संक्षिप्त रूप है-नैशनल इंस्टिट्यूट फौर ट्रांस्फौर्मिंग इंडिया. इसी प्रकार उदय को ले लें. यह भी इंग्लिश शब्दों का संक्षिप्त रूप है, उज्ज्वल डिस्कौम एश्युरैंस योजना. और फिर इस में डिस्कौम भी अपनेआप में डिस्ट्रिब्यूशन कंपनी का संक्षिप्त रूप है. आखिर इतने नवोन्मेषी नाम हम खोज रहे हैं तो इस का लाभ तो होगा ही.

सो, दे दो प्यारा सा नाम, बस हो गया अपना काम, और बात खत्म.

एक सवाल : भाग 1

शीना और समीर दोनों ही किसी कौमन दोस्त के विवाह में आए थे. जब उस दोस्त ने उन्हें मिलवाया तो वे एकदूसरे से बहुत प्रभावित हुए. वैसे तो यह उन की पहली मुलाकात थी, लेकिन दोनों ही जानीमानी हस्तियां थीं. रोज अखबारों में फोटो और इंटरव्यू आते रहते थे दोनों के. सो, ऐसा भी नहीं था कि कुछ जानना बाकी हो.

समीर सिर्फ व्यवसायी ही नहीं, बल्कि देश की राजनीतिक पार्टी का सदस्य भी था. उधर, शीना बड़ी बिजनैस वूमन थी. अच्छे दिमाग की ही नहीं, खूबसूरती की भी धनी. सो, दोनों का आंखोंआंखों में प्यार होना स्वाभाविक था. दोस्त की शादी में ही दोनों ने खूब मजे किए और दिल में मीठी यादें लिए अपनेअपने घरों को चल दिए.

शीना सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपने बिजनैस का विस्तार कर रही थी. नाम, पैसा और ऊपर से हुस्न. भला ऐसे में कौन उस का दीवाना न हो जाए. सो, समीर ने उस से अपनी मुलाकातें बढ़ाईं. शीना को भी उस से एतराज नहीं था. अपने पति की मृत्यु के बाद वह भी तो कितनी अकेली सी हो गईर् थी. ऐसे में मन किसी न किसी के प्यार की चाहत तो रखता ही है. और सिर्फ मन ही नहीं, तन की प्यास भी तो सताती है.

शीना भी समीर को मन ही मन चाहने लगी थी. बातों बातों में मालूम हुआ समीर भी शादीशुदा है लेकिन उस का पहली पत्नी से तलाक हो चुका था. दोनों अभी अर्ली थर्टीज में थे.

कई दिनों बाद समीर अपने व्यवसाय के सिलसिले में आस्ट्रेलिया गया और शीना भी उस वक्त वहीं किसी जरूरी मीटिंग के लिए गईर् थी.

दोनों को मिलने का जैसे फिर एक बहाना मिल गया. समीर अपना काम खत्म कर जब शीना से उस के होटल में डिनर पर मिला तो उस ने अपने मन की बात शीना से कह ही डाली, ‘‘शीना, आज जिंदगी के जिस पड़ाव पर तुम और मैं हूं, क्या ऐसा नहीं लगता कि कुदरत ने हमें एकदूसरे के लिए बनाया है? क्यों न हम दोनों विवाह के बंधन में बंध जाएं?’’

शीना को लगा समीर ठीक ही तो कह रहा है. उसे भी तो पुरुष के सहारे की जरूरत है. सो, उस ने समीर को इस रिश्ते की रजामंदी दे दी.

बस, फिर क्या था, दोनों ने भारत लौट कर दोस्तों को बुला कर अपने प्यार को दुनिया के साथ साझा किया और साथ ही विवाह की घोषणा भी. रातोंरात सारे जहां में उन का प्यार दुनिया की सब से बड़ी खबर बन गया था. सारे विश्व में फैले उन के सहयोगी उन्हें बधाइयां दे रहे थे. दोनों ने ट्विटर पर अपने दोस्तों व फौलोअर्स की बधाइयां स्वीकारते हुए धन्यवाद किया.

बस, अगले ही महीने दोनों ने शादी की रस्म भी पूरी कर ली. हनीमून के लिए मौरिशस का प्लान तो पहले ही बना रखा था, सो, विवाह के अगले दिन ही हनीमून को रवाना हो गए.

शीना कहने लगी, ‘‘समीर, जीवन में सबकुछ तो था, शायद एक तुम्हारी ही कमी थी. और वह कमी अब पूरी हो गई है. ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मैं दुनिया की सब से खुशहाल औरत हूं.’’

समीर ने भी अपना मन शीना के सामने खोल कर रख दिया था, बोला, ‘‘सेम हियर शीना, तुम बिन जिंदगी अधूरीअधूरी सी थी.’’

दोनों ने अपने हनीमून के फोटो इंस्टाग्राम पर शेयर किए. इतनी सुंदर तसवीरें थीं कि शायद कोई भी न माने कि यह उन दोनों का दूसरा विवाह था. शायद ईर्ष्या भी होने लगे उन तसवीरों को देख कर.

खैर, हनीमून खत्म हुआ और दोनों भारत लौट आए. और फिर से अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए. दोनों खूब पैसा कमा रहे थे. पैसे के साथ नाम और शोहरत भी. 2 वर्ष बीते, शीना ने एक बेटे को जन्म दिया. अब ऐसा लग रहा था जैसे उन का परिवार पूरा हो गया हो.

शीना अपनी जिंदगी में भरपूर खुशियां समेट रही थी और अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाती जा रही थी. समीर और उस के विवाह के 10 वर्ष कैसे बीत गए, उन्हें कुछ मालूम ही न हुआ. बेटा भी होस्टल में पढ़ने के लिए चला गया था.

समीर अब व्यवसाय से ज्यादा राजनीति में सक्रिय हो गया था. एकदो बार किसी घोटाले में फंस भी गया. लेकिन, उस ने सारा पैसा शीना के अकाउंट में जमा किया था, जिस से बारबार बच जाता. वैसे तो शीना इन घोटालों को खूब सम?ाती थी लेकिन अकसर व्यवसाय में थोड़ाबहुत तो इधरउधर होता ही है. इसलिए उसे भी कुछ फर्क नहीं पड़ता था.

शौकीनमिजाज समीर जनता के पैसों से अपने सारे शौक पूरे कर रहा था. साथ में शीना भी. अब वे स्पोर्ट्स टीम के मालिक भी बन चुके थे. कभी दोनों साथ में रेसकोर्स में, तो कभी स्पोर्ट्स टीम को चीयर्स करते नजर आते थे. दोनों को साथ मौजमस्ती करते देख भला किस की नीयत खराब न हो जाए.

अंधेरे आसमान में चांदनी फैलाने वाले चांद में भी कभी तो ग्रहण लगता ही है. शीना को अपने पति के रंगढंग कुछ बदलेबदले लगने लगे थे. उसे लगने लगा कि आजकल समीर पहले की तरह उसे दिल से नहीं चाहता है. जैसे, वह उस के साथ हो तो भी उस का मन कहीं और होता है. वैसे तो वह 50 वर्ष की उम्र पार कर रहा था, लेकिन दौलतमंद लोग अपने जीवन को जीभर कर जी लेना चाहते हैं. उन के शौक तो हर दिन बढ़ते जाते हैं और साथ ही साथ, वे उन्हें पूरा भी कर ही लेते हैं.

शीना को महसूस होने लगा था कि अब समीर उस से दूरियां बनाने लगा है. न तो वह पहले की तरह उसे वक्त देता है और न ही उस की तारीफ करता है. जहां शीना को देख समीर के चेहरे पर मुसकराहट खिल जाती थी वहीं अब वह काम का बहाना कर उस से नजरें तक नहीं मिलाना चाहता था. वह समझने लगी थी कि जरूर समीर के जीवन में कोई और औरत आई है.

अब वह उस की ज्यादा से ज्यादा खबर रखने लगी थी. जैसे, बैंक अकाउंट में कितने पैसे हैं, वह कहां और कितने पैसे खर्च कर रहा है आदि. इस बार जब शीना के बिजनैस अकाउंट से समीर ने कुछ पैसे निकालने चाहे तो उस ने समीर को साफ न कह दिया. वह बोली, ‘‘समीर, तुम्हारी मौजमस्ती के लिए नहीं कमाती मैं. तुम्हारे पास मेरे लिए फुरसत के दो क्षण नहीं, अकेले मौजमस्ती के लिए वक्त है? अगर ऐसा ही है तो वह मौजमस्ती तुम अपने पैसों से करो.’’

गरबा स्पेशल 2019 : ऐसे सजाएं अपने नाखूनों को

सजे हुए और खूबसूरत नाखून आपकी पर्सनालिटी में निखार लाने के साथ ही साथ आपकी सुंदरता में भी चार चांद लगा देती है. आज आपको नेल आर्ट के बारे में कुछ खास टिप्स बताते हैं.

इन टिप्स को अपनाकर आप  आसानी से अपने नाखूनों को सजा सकती है. गरबा के लिए ये नेल आर्ट जरूर ट्राई करें. आपके नेल्स को स्मार्ट लुक मिलेगा.

 नेल आर्ट टिप्स

नेल आर्ट से पहले अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोएं. नाखूनों को भी साफ करें और पांच मिनट रुकें, जबतक नाखून पूरी तरह से सूख न जाए. अब न्‍यूड पिंक नेल पौलिश लें और उसे लगाने से पहले शेक कर लें, जिससे आपको उसका सही रंग मिल सके.

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इस नेल पौलिश की एक कोट अपने नाखूनों पर ऊपर से नीचे की ओर लगाएं. अगर शेड बहुत ही लाइट है तो एक कोट और लगा सकती हैं. अब नेल पौलिश को अच्‍छी तरह से सूखने दें.

अब एक डार्क ब्‍लू रंग की नेल पौलिश लें. इस नेल आर्ट में नीले रंग को नाखून की टिप पर लगाया जाता है, यानी की सबसे आखिर और नीचे की ओर.

ब्‍लू नेल पौलिश को उसी शेप में लगाइये, जिस शेप में आपके नाखून कटे हुए हों. अगर नाखून चौकोर आकार में कटे हैं, तो ब्‍लू कलर को उसी तरह लगाइये. ध्‍यान रहे की पिंक वाली नेल पौलिश पर ब्‍लू नेल पौलिश न चढ़े. जब नेल पौलिश लगा लें तो उसे पांच मिनट तक अच्‍छे से सूखने के लिये छोड़ दें. अब लास्‍ट में एक गोल्‍डन नेल आर्ट डिजाइन ले कर अपने हाथ की रिंग फिंगर के नाखून में बड़ी ही सफाई से चिपका दें. लीजिये अब आपके नाखूनों पर नेल आर्ट बन गई.

आप इस तरह से कई अलग अलग कलर के नेल पौलिश का इस्तेमाल कर सकती हैं. आप काले रंग के नेल पौलिश को अपने नाखून पर लगाकर उसके ऊपर सिल्वर कलर की नेलपौलिश का एक कोट लगा सकती हैं. आप चाहें तो उसके ऊपर बाजार में मिलने वाले रेडीमेड डिजाइन भी चिपकाकर अपने नाखून को सुन्दर बना सकती हैं.

इसके अलावा अपने रिंग फिंगर में एक छोटा सा छेद करके आप घूंघरू पहन सकती हैं. आप अपने नाखून पर बाजार में मिलने वाले स्टीकर चिपकाकर भी अपने नाखून को सुन्दर बना सकती हैं.

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आप किसी भी दो कलर के नेल पौलिश को नाखून के आधे आधे हिस्से पर लगाकर सजा सकती हैं. आप चाहें तो उससे फूल पत्ती आदि डिजाइन बनाकर भी अपने नाखून को सजा सकती हैं और खूबसूरत बना सकती हैं.

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