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उफान पर धर्मव्यवस्था

देश की धार्मिक व्यवस्था चाहे सुदृढ़ हो गई हो पर आर्थिक व्यवस्था चरमराने लगी है. यज्ञों और हवनों की सरकार की देन नोटबंदी, जीएसटी और कैशलैस सारे देश को फकीर बनाने में तुले हैं. कहने को चाहे हम अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते हुए कहते रहें कि हम विश्वगुरु हैं, हम ढोल बजाते रहें कि हम दुनिया की सब से तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था हैं.

हम असल में दुनिया की सब से तेज गति से बढ़ने वाली धर्मव्यवस्था हैं. यहां मंदिर, मठ, आश्रम, तीर्थ, आरतियों, मूर्तियों की भरमार हो रही है. पूरा आम चुनाव धर्म पर लड़ा गया है. मोदी के हिंदुत्व का जवाब देने के लिए दूसरी पार्टियों को भी धर्म को मानने का नाटक करना पड़ा.

हम इतिहास से सीखने को तैयार नहीं हैं कि धर्म ने हमेशा लड़ाई सिखाई है. पौराणिक कहानियां देवताओं और दस्युओं की लड़ाइयों से भरी हैं. रामायण में भाइयों में लड़ाई का माहौल है जिस कारण राम को न केवल राजगद्दी नहीं मिली,

14 साल देश से बाहर जाना भी पड़ा. महाभारत में भी भाइयों की लड़ाइयां हैं. ग्रंथों में कहीं देश निर्माण की बात नहीं है, कहीं आम जनता के सुख की बात नहीं. सारा माहौल ऋषियों, मुनियों और राजाओं के झगड़ों का रहा है.

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भारत ने 1947 से पहले कम आर्थिक उन्नति नहीं की थी. उसी समय तो देशभर में रेलों का जाल बिछा, शहर विकसित हो गए थे. उन दिनों धर्मव्यवस्था कमजोर थी और ब्रिटिशों के राज के बावजूद लोग 1857 से पहले से ज्यादा खुश थे.

आज हमारी सारी जिंदगी पश्चिम एशिया के मुसलिम देशों की तरह धर्म के आदेशों के चारों ओर घूम रही है. उस संत ने यह कहा, उस साध्वी ने यह किया, उस ने जनेऊ पहना, उस ने आरती की, वहां मंदिर बना, वहां मूर्ति बनी, वहां तीर्थयात्रा होगी, वहां पाठ होगा, मीडिया इन्हीं बातों से भरा रहता है.

नतीजा यह है कि पिछले दशकों के थोड़े से लाभ भी हाथ से फिसलते नजर आ रहे हैं. भवन निर्माण उद्योग का भट्ठा बैठ गया है. बैंक कंगाल होने लगे हैं. कर चोरों को पकड़ने के लिए नाजीनुमा कानूनों की आड़ में राजनीतिक उल्लू सीधे किए जा रहे हैं. कर आजकल आफत बन गए हैं. नेता धार्मिक दुपट्टे पहने नजर आ रहे हैं, कामकाज वाले कपड़े नहीं.

बड़ी कंपनियों के दीवाले निकल रहे हैं. जो चल रही हैं वे प्रमुख आचार्य के निकट होने के कारण, जो दान में धर्मभीरुओं से वसूला पैसा उन्हें दे रहा है.

आम आदमी, आम युवा, आम किसान, आम व्यापारी, आम गृहिणी आज परेशान है. स्थिति यह है कि खाली पेट, बस, हरहर महादेव, जय राम, जय राधे करते रहो.

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इन्का सभ्यता : खुलना बाकी हैं कई रहस्य

यह आज तक पता नहीं चल पाया है कि बोझा ढोने वाले जीवों, पहियों और लोहे के औजारों के बिना इन्का सभ्यता ने कई टन वजनी पत्थरों को निर्माणस्थल तक कैसे पहुंचाया होगा? क्या कोई सभ्यता किसी लिपि और लेखन कला के बिना शीर्ष ऊंचाइयों को छू सकती है? जवाब होगा नहीं. लेकिन एक ऐसी सभ्यता भी थी जो न पहिए को जानती थी, न ही मेहराबों को. फिर भी इस सभ्यता ने निर्माण क्षेत्र में जो ऊंचाइयां हासिल कीं, वह देखने लायक तो है ही, लोग आज भी यह समझ नहीं पाते कि आखिर भवन निर्माण की मामूली जानकारी के बावजूद इस सभ्यता ने निर्माण के क्षेत्र में इतनी ऊंचाइयों को कैसे छुआ.

आज इन्काओं का बनाया हुआ शहर माचू-पिच्चू इतिहासकारों के बीच एक रहस्य बना हुआ है. इस शहर को जिन 2 पहाडि़यों के बीच में बसाया गया, वह यहां की उरुबंबा नदी के ऊपर स्थित है. यहां पर इन्काओं ने सैकड़ों विशाल घर, दालान और मंदिरों का निर्माण किया. यह सभ्यता स्पेनी लुटेरों की वजह से अचानक ही समाप्त हो गई और इस के करीब 500 साल बाद 1911 में अमेरिकी पुरातत्ववेत्ता हिराम बिंघम ने इसे खोजा.

यह आज तक पता नहीं चल पाया है कि बोझा ढोने वाले जीवों, पहियों और लोहे के औजारों के बिना इन्का सभ्यता ने कई टन वजनी पत्थरों को निर्माणस्थल तक कैसे पहुंचाया होगा? उन के पास पत्थर की बनी हथौडि़यां, तांबे की छेनी, तांबे व लकड़ी के बने सब्बल और पौधों के रेशों से बनी रस्सियों के अलावा कोई अन्य औजार नहीं था.

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यह आज भी रहस्य ही है कि इन लोगों ने विशाल ग्रेनाइट चट्टानों को कैसे काटा होगा और गहरी खाइयों से होते हुए इन्हें किस तरह पहाडि़यों तक पहुंचाया होगा. ये सभी पत्थर बिना किसी सीमेंट आदि के एकदूसरे पर इस तरह से जमाए गए हैं कि 2 पत्थरों के बीच एक सुई तक नहीं घुसाई जा सकती.

इन्का राजधानी का प्रहरी बना शाकसाहुआमान किला ऐसे पत्थरों से बना है, जो बहुआयामी हैं और हर पत्थर का वजन 300 टन से कम नहीं है. इन पत्थरों को घंटों घिसा गया, तब जा कर किनारे नोकदार से चिकने हुए हैं. ये काम किस कदर मेहनत वाला रहा होगा, कल्पना की जा सकती है.

इन्का सभ्यता ने जो कुछ भी सीखा, उसे उन सभ्यताओं से सीखा जो उन से काफी पहले यहां पर बसी थीं. यहीं पर 300 ईसवी में एक ऐसी सभ्यता ने जन्म लिया, जिस ने विशाल पिरामिडों का निर्माण किया. इन में से कुछ पिरामिड मिट्टी की 14 करोड़ ईंटों से बनाए गए हैं.

यहां पर चीनी मिट्टी से बने कई बरतन भी मिले हैं जो 1500 साल तक पुराने हैं. इन में से किसी पर भिखारी, किसी पर संभ्रांत व्यक्तियों तो किसी पर उन कैदियों के चित्र बने हैं, जिन की नाक काट दी गई थी. यहीं पर कुछ ही दूर स्थित है शहर तियाहुआनाको, जो कभी टिरिकाका झील के किनारे बसा था. समय था 600 से 1100 ईसवी. आश्चर्य की बात यह है कि इस पूरे शहर को समुद्र से 4300 मीटर की ऊंचाई पर बसाया गया. उस समय का सब से रईस और विशाल शहर था चिमौर. आज भी इस शहर के सुंदर अवशेष देखे जा सकते हैं.इन्काओं के पास अपनी कोई मुद्रा भी नहीं थी. व्यापार सिर्फ वस्तुओं के आदानप्रदान पर निर्भर था. सोने को सूरज का पसीना माना जाता था और इस का प्रयोग सिर्फ राजा ही करता था, वह भी धार्मिक अनुष्ठानों में.

पुरातत्त्ववेत्ता आज भी समझ नहीं पाते हैं कि इन्का सभ्यता में कला का कौशल कहां से आया. जब इस की पड़ताल की गई तो पता चला कि इस सभ्यता पर विश्व के कई स्थानों पर उभरी सभ्यता का प्रभाव पड़ा. कुछ बरतनों पर पूर्वी एशिया का प्रभाव स्पष्ट झलकता है.

अगर पेरू के लोग अटलांटिक महासागर के पार उभरी सभ्यताओं के संपर्क में थे तो ये लिखित भाषा और पहियों की पहचान रखते होंगे. ये भी समझ नहीं आता कि धुन निकालने वाली पाइपों से ये कैसे धुन निकालते थे. जैसी पाइप इन्का के पास थीं, ठीक वैसी ही पाइपें दक्षिण अमेरिका के अलावा अफ्रीका व अरब सभ्यताओं में भी मिलती हैं.

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इस जगह पर मिली नाज्का लाइंस भी बड़ा रहस्य है. पेरू के दक्षिणी इलाके में मिलने वाली इन रेखाओं को केवल हवाई जहाज से ही देखा जा सकता है. कुछ लाइनों को 1400 साल पहले बनाया गया था. इन की खोज 1939 में की जा सकी. यूएफओ यानी उड़नतश्तरियों को मानने वालों का कहना है कि ये लकीरें कभी उड़नतश्तरियों को धरती पर उतरने के लिए मार्गदर्शक का काम करती रही होंगी.

जहां तक इन्का सभ्यता के उद्भव की बात है तो वह खुद रहस्यों के घेरे में है. इन के सम्राटों का मानना था कि वे सूर्य की संतान हैं. इन्का बेहद मेहनती भी थे और अपने प्रयासों से इन्होंने विशाल साम्राज्य की स्थापना भी की. आम जनता में हर किसी को कोई विशेष काम दिया जाता था. फसल को मंदिर, राज्य व आमजन में बांटा जाता था.

राजा ही लोगों को बताता था कि कौन सी फसल बोई जाए, क्या पहना जाए. झूठ बोलना, आलस्य और परस्त्री पर नजर रखने की सजा मौत थी.

समाचार को कुछ लोग, जिन्हें चस्की कहते थे, दौड़दौड़ कर पूरे राज्य में फैलाते थे. आज भी इन्का सभ्यता पर शोध जारी है और नई चौंकाने वाली जानकारियां सामने आती रहती हैं.

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गरबा स्पेशल 2019 : ऐसे बनाएं आलू का हलवा

आज आपको आलू हलवा बनाने की रेसिपी बताते है. जी हां जो आप  गरबा के दौरान  बना सकती हैं. ये स्वीट हलवा बनाने में भी काफी आसान है और इसे बनाने में भी समय काफी कम लगता है. तो चलिए झट से बताते हैं आलू हलवा बनाने की रेसिपी.

सामग्री :

4 आलू (उबला हुआ)

शक्कर (02 बड़े चम्मच)

देशी घी  (02 बड़े चम्मच)

बादाम  (01 बड़ा चम्मच, कटे हुए)

किशमिश (01 बड़ा चम्मच)

काजू (01 बड़ा चम्मच, कटे हुए)

इलाइची पाउडर ( 01 छोटा चम्मच)

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बनाने की विधि :

इसे बनाने के लिए सबसे पहले उबले हुए आलुओं को छीलकर अच्छी तरह से मैश कर लें या फिर कद्दूकस कर लें.

अब एक कढ़ाही में देशी घी डालकर गरम करें. घी गरम होने पर उसमें मैश किये हुए आलू डालें और अच्छी तरह से भून लें.

इसके बाद कड़ाही में शक्कर, कतरे हुए काजू बादाम और किशमिश व इलाइची पाउडर डालें और 02 मिनट तक चलाते हुए पकाएं.

मिश्रण को चम्मच से बराबर चलाते रहें, नहीं तो कढ़ाही में नीचे की ओर जल जाएगा. 2 मिनट बाद गैस बंद कर दें.

लीजिए आपकी आलू हलवा बनाने की विधि कम्‍प्‍लीट हुई.

अब आपका आलू का हलवा तैयार है और इसे सर्विंग बाउल में निकालें और गरमा गरम सर्व करें.

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ताकि प्राकृतिक संतुलन बना रहे

वीगन यानी वैजिटेरियन व्यवसायों में अब काफी अवसर पैदा हो रहे हैं. बस थोड़े धैर्य और थोड़ी लगन की जरूरत है, जो वैसे भी हर व्यवसाय में जरूरी है.

फैशन के क्षेत्र में वीगन होने का मतलब यह नहीं कि आप स्टाइल की कुरबानी दे दें. आजकल बहुत सा हाई फैशन सामान रिसाइकल पौलिएस्टर से बन सकता है. जानवरों को मारे बिना जूते, बैल्ट, पर्स आदि हजारों में औनलाइन और औफलाइन दुकानों में बिक रहे हैं. जूतों में लगने वाला गोंद भी अब जरूरी नहीं कि जानवरों से आए या जानवरों पर टैस्ट किया जाए.

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वीगन बाजार

नई दिल्ली में 3 साप्ताहिक और्गेनिक मार्केट लगती हैं और कोई भी इन्हें शुरू कर पैसा कमा सकता है. वहां बीज, पौधे, सब्जियां, तेल, चीज, विनेगर, चाय, साबुन, कौस्मैटिक प्रौडक्ट्स भी बिक सकते हैं और वहीं बैठ कर खाने का स्टाल भी लगवाया जा सकता है. आस्ट्रेलिया के शहर सिडनी में एक बड़ा वीगन मेला लगता है.

आजकल वीगन बेकरियों के दीवाने भी कम नहीं हैं, जहां हर तरह की और्गेनिक मिठाई मिले, चौकलेट हों, कैरेमल हों, मार्शमैलो हों, मफिन और डोनट हों, इतना सामान हो कि गिफ्ट बास्केट बन सके. लेकिन इस तरह का व्यवसाय शुरू करना है तो अपने सप्लायर्स को सावधानी से चुनना होगा. पाम औयल की जगह कोकोनट औयल इस्तेमाल हो, मिठास के लिए गन्ने का रस या कोकोनट की चीनी हो सकती है. ये सब बिना डोनेटिक मोडिफाइड हो सकते हैं, जिन का पर्यावरण पर असर नहीं पड़ता.

लोगों की पसंद

व्यवसाय चलाने के लिए एक बुटीक टाइप शौप खोली जा सकती है जिस में सिर्फ तेल, घी, मक्खन हों. इस के साथ औलिव औयल, चिया बीज, काजू, बादाम, दूध, मेपल सिरप, सूरजमुखी तेल, पारंपरिक पोशाकें आदि भी बेची जा सकती हैं.

लोग अब ऐसा खाना पसंद करने लगे हैं जो मीट जैसी दिखने वाली चीजों में बना हो ताकि लोग मीट प्रोडक्ट्स की जगह वीगन बनें. अगर आप कैफे शुरू कर रहे हैं तो प्लास्टिक का इस्तेमाल न करें. मोटे सादे कपड़े के नैपकिन अब बेचे जा सकते हैं जो स्टाइलिश भी हैं और सौफ्ट भी और जिन में हानिकारक कैमिकल रंग नहीं हैं. रिसाइकल पेपर पर कापीकिताबों की भी भारी मांग है. यहां तक कि गाड़ी में खराब हुआ वनस्पति तेल तक इस्तेमाल करने की तकनीक उपलब्ध है.

वीगन ब्यूटीपार्लर खोले जा सकते हैं जहां बिना पैट्रो प्रोडक्ट्स से बनी क्रीम, लोशन, शैंपू, स्किन केयर सामान इस्तेमाल किया जा सकता है, जो प्रकृति के लिए भी अच्छा है और ग्राहकों के लिए भी. इन से ज्यादा से ऐलर्जी भी नहीं होती.

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प्रकृति प्रेमियों के लिए बहुत सी ऐसी चीजें बन रही हैं और बनाई जा सकती हैं जिन से प्राकृतिक संतुलन बना रहे. मेरे मंत्रालय में ऐसा बहुत कुछ इस्तेमाल हो रहा है और लोग खुश हैं.

निशान : भाग 1

उस दिन शन्नो ताई के आने के बाद सब के चेहरों पर फिर से उम्मीद की किरण चमकने लगी थी. ऐसा होता भी क्यों नहीं, आखिर ताई 2 साल बाद घर की बेटी मासूमी के लिए इतना अच्छा रिश्ता जो लाई थीं. लड़के ने इंजीनियरिंग और एम.बी.ए. की डिगरी ली हुई थी. 2 साल विदेश में रह कर पैसा भी खूब कमाया हुआ था. उस की 32 साल की उम्र मासूमी की 28 साल की उम्र के हिसाब से अधिक भी नहीं थी. खानदान भी उस का अच्छा था. रिश्ता लड़के वालों की तरफ से आया था, सो मना करने की गुंजाइश ही नहीं थी. सब से बड़ी बात तो यह थी कि जिस कारण से मासूमी का विवाह नहीं हो पा रहा था वह समस्या अब 2 साल से सामने नहीं आई थी.

हर मातापिता की तरह मासूमी के मातापिता भी चाहते थे कि बेटी को वे खूब धूमधाम से विदा कर ससुराल भेज सकें. फिर भी उस का विवाह नहीं हो पा रहा था. 2 भाइयों की इकलौती बहन, खातापीता घर और कम बोलने व सरल स्वभाव वाली मासूमी घर के कामों में निपुण थी. खूबसूरत लड़की के लिए रिश्तों की भी कमी नहीं थी पर समस्या तब आती थी जब कहीं उस के रिश्ते की बात चलती थी.

पहले दोचार दिन तो मासूमी ठीक रहती थी पर जैसे ही रिश्ता पक्का होने की बात होती उसे दौरा सा पड़ जाता था. उस की हालत अजीब सी हो जाती, हाथपैर ठंडे पड़ जाते, शरीर कांपने लगता और होंठ नीले पड़ जाते थे. वह फटी सी आंखों से बस, देखती रह जाती और जबान पथरा जाती थी. सब पूछने की कोशिश कर के हार जाते थे कि मासूमी, कुछ तो बोल, तेरी ऐसी हालत क्यों हो जाती है. तू कुछ बता तो सही. पर मासूमी की जबान पर जैसे ताला सा पड़ा रहता. बस, कभीकभी चीख उठती थी, ‘नहीं, नहीं, मुझे बचा लो. मैं मर जाऊंगी. नहीं करनी मुझे शादी.’ और फिर रिश्ते वालों को मना कर दिया जाता.

शुरूशुरू में तो उस की हालत को परिवार वालों ने छिपाए रखा. सो रिश्ते आते रहे और वही समस्या सामने आती रही पर धीरेधीरे यह बात रिश्तेदारों और फिर बाहर वालों को भी पता चल गई. तरहतरह की बातें होने लगीं. कोई हमदर्दी दिखाने के साथ उसे तांत्रिकों के पास ले जाने की सलाह देता तो कोई साधुसंतों का आशीर्वाद दिलाने को कहता और कोई डाक्टरों को दिखाने की बात करता, पर कोई बीमारी होती तो उस का इलाज होता न.

एक दिन मौसी से बूआजी ने कह भी दिया, ‘‘मुझे तो दाल में काला लगता है. चाहे कोई माने न माने, मुझे तो लग रहा है कि लड़की कहीं दिल लगा बैठी है और शर्म के मारे मांबाप के सामने मुंह नहीं खोल पा रही है वरना ऐसा क्या हो गया कि इतने अच्छेअच्छे घरों के रिश्ते ठुकरा रही है. अरे, यह जहां कहेगी हम इस का रिश्ता कर देंगे. कम से कम यह आएदिन की परेशानी तो हटे.’’

‘‘हां, दीदी, लगता तो मुझे भी कुछ ऐसा ही है, लेकिन उस समय उस की हालत देखी नहीं जाती. रिश्ते का क्या, कहीं न कहीं हो ही जाएगा. इकलौती भांजी है मेरी, कुछ तो रास्ता खोजना ही पड़ेगा,’’ मौसी दुख से कहतीं.

और फिर जब मौसी ने एक दिन बातों ही बातों में बड़े लाड़ के साथ मासूमी के मन की बात जाननी चाही तो उस की आंखें फटी की फटी रह गईं, जैसे दुनिया का सब से बड़ा दोष उस के सिर मढ़ दिया गया हो. काफी देर बाद संभल कर बोली, ‘‘मौसी, आप ने ऐसा सोचा भी कैसे? क्या आप को मैं ऐसी लगती हूं कि इतना बड़ा कदम उठा सकूं?’’

‘‘नहीं बेटा, यह कोई गुनाह या अपराध नहीं है. हम तो बस, तेरे मन की बात जान कर तेरी मदद करना चाहते हैं, तेरा घर बसाना चाहते हैं.’’

‘‘क्या कहूं मौसी, मैं तो खुद हैरान हूं कि रिश्ते की बात चलते ही जाने मुझे क्या हो जाता है. बस, यह समझ लीजिए कि मुझे शादी के नाम से नफरत है. मैं सारी जिंदगी शादी नहीं करूंगी,’’ मासूमी सिर झुकाए कहती रही और फिर सच में वह 18 से 28 साल की हो गई पर उस ने शादी के लिए हां नहीं की.

हालांकि कई बार मासूमी को विवाह की अहमियत का एहसास होता था कि मातापिता नहीं रहेंगे, भाई शादी के बाद अपने घरपरिवार में व्यस्त हो जाएंगे तो उसे कौन सहारा देगा. उसे भी शादी कर के घर बसा लेना चाहिए. उस की सखीसहेलियों के विवाह हो चुके थे और कितनों के तो बच्चे भी हो गए हैं.

अब इतने लंबे समय के बाद इस उम्र में उस के लिए इतना अच्छा रिश्ता आया था. सब को यही उम्मीद थी कि अब इतना समय गुजरने के बाद वह समझदार हो गई होगी और सोचसमझ कर फैसला लेगी पर मासूमी ने फिर मना कर दिया था. पूरे हफ्ते तो इसी उधेड़बुन में लगी रही और आखिर में उसे यही लगा कि विवाह का रिश्ता संभालने में वह असफल रहेगी.

उस रात वह जी भर कर रोई. इन सब बातों में उस का दोष सिर्फ इतना ही था कि उसे लगता था कि वह किसी की जिंदगी में शामिल हो कर उसे कोई खुशी देने के लायक नहीं है. रात भर अनेक विचार उस के दिमाग में आतेजाते रहे और सुबह उसे फिर दौरा पड़ गया था.

मां ने मासूमी के सिर में नारियल के तेल की मालिश की थी. उसे बादाम का दूध पिलाया था. दोनों भाई बारबार उसे आ कर देख जाते थे. पिता उस के बराबर में सिर झुकाए बैठे सोच रहे थे कि आखिर क्या दुख है मेरी बेटी को? कोई कमी नहीं है. सब लोग इसे इतना प्यार करते हैं, फिर कौन सा दुख है जो इसे अंदर ही अंदर खाए जा रहा है? पर मासूमी के होंठों पर फैली उस फीकी मुसकान का राज कोई नहीं समझ सका जिस ने उस के अस्तित्व को ही टुकडे़टुकड़े कर दिया था.

मासूमी ने बहुत कोशिश की थी खुद को बहलाने की, अकेली जिंदगी के कड़वे सच का आईना खुद को दिखाने की, लेकिन हर बार मायूसी ही उस के हाथ लगी थी. बिस्तर पर लेटी आंखें छत पर जमाए वह अतीत की गलियों से गुजर रही थी कि भाई राकेश की आवाज पर ध्यान गया, जिस ने गुस्से में पहले गमले को ठोकर मारी फिर अंदर आ कर मां से बोला, ‘‘मां, आप पापा को समझा दीजिए. उन्हें कुछ तो सोचना चाहिए कि वे कहां बोल रहे हैं. हमें कहीं भी डांटना, गाली देना शुरू कर देते हैं. हमारी इज्जत का उन्हें तनिक भी खयाल नहीं है. अब हम बच्चे तो नहीं रहे न.’’

बंजर भूमि में ऐसे गेंदा उगाएं

महात्मा ज्योतिबा फुले विश्वविद्यालय, बरेली, उत्तर प्रदेश में सहायक प्रोफैसर डाक्टर शिखा सक्सेना ने बंजर भूमि में गेंदा उगा कर एक नई मिसाल पेश की है. वैसे, बंजर जमीन में हैवी मैटल्स जैसे कैल्शियम, जस्ता, क्रोमियम आर्सेनिक, सीसा वगैरह पाए जाते हैं, जो मानव शरीर में विभिन्न रोगों को पैदा करने की विशेष कूवत रखते हैं.

डाक्टर शिखा सक्सेना ने ऐसी बंजर जमीन में जिस में आर्सेनिक व सीसा जैसे हैवी मैटल्स मौजूद थे, उस में गेंदा उगा कर पीएचडी की डिगरी हासिल की है. इस का दूसरा प्रमुख फायदा यह होता है कि जमीन में सुधार होता है,क्योंकि गेंदे की फसल बंजर जमीन के आर्सेनिक व सीसा को सोख लेती?है. गेंदा उगाने की वैज्ञानिक विधि सीख कर किसान अपनी बंजर जमीन में गेंदा की फसल उगा कर फायदा ले सकते हैं.

खेत की तैयारी : पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें. उस के बाद 2 जूताई हैरो या कल्टीवेटर से आरपार करें. यदि खेत में भूमिगत कीटों की समस्या हो तो 50 किलोग्राम नीम की खली खेत में जरूर डालें. आखिरी जुताई के बाद पाटा जरूर लगाएं. खेत के चारों ओर मेंड़ जरूर बनाएं ताकि बारिश का पानी जमीन द्वारा सोख लिया जाए.

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खाद और उर्वरक : पौधों से अधिक पुष्प उत्पादन के लिए मिट्टी जांच के मुताबिक ही खाद व उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए. यदि किसी कारणवश मिट्टी जांच न हो सके तो उस स्थिति में गोबर की खाद व उर्वरकों का इस्तेमाल इस तरह करना चाहिए:

गोबर की खाद 10-15 टन, नाइट्रोजन 120 किलोग्राम, फास्फोरस 80 किलोग्राम, पोटाश 80 किलोग्राम.

गोबर की खाद को पहली जुताई से पहले ही खेत में बिखेर देना चाहिए. साथ ही, फास्फोरस, पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा का मिश्रण बना कर आखिरी जुताई के समय जमीन में डालनी चाहिए. नाइट्रोजन की बाकी बची मात्रा को 2 भागों में विभाजित कर के डालना चाहिए. पहली खुराक रोपाई के 20 दिन बाद और दूसरी खुराक रोपाई के 40 दिन बाद देनी चाहिए.

पौधों की अधिक बढ़ोतरी

व फूलों की अच्छी उपज के लिए वानस्पतिक बढ़ोतरी के समय 15 दिनों के अंतराल पर 0.2 फीसदी यूरिया के 2 पर्णीय छिड़काव करने चाहिए.

प्रवर्धन : आमतौर पर किसान गेंदे को बीज द्वारा प्रवर्धित करते हैं? क्योंकि बीज द्वारा प्रवर्धित पौधे प्रबल, सेहतमंद होते हैं और खेत में अच्छी तरह जम जाते हैं. बढ़ोतरी व पुष्पण में एकरूपता लाने के लिए कुछ किसान इसे कलमों द्वारा भी प्रवर्धित करते हैं.

बीज प्रवर्धन : गेंदे के बीज आमतौर पर 18-30 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर अंकुरित होते हैं. नर्सरी की क्यारियों में गोबर की खाद डाल कर भलीभांति मिला देनी चाहिए. नर्सरी की क्यारी सुविधाजनक आकार की बनानी चाहिए. एक हेक्टेयर के लिए रोपाई तैयार करने के लिए 800 ग्राम बीज पर्याप्त हैं.

नर्सरी में बोने से पहले बीज को कैप्टाफ या बाविस्टिन से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए ताकि फसल की फफूंदीजनित रोगों से सुरक्षा हो सके. बीज बोने के बाद उन्हें गोबर की खाद की पतली परत से ढक देना चाहिए. इस के बाद हर रोज केन के द्वारा हलका पानी दिया जाना चाहिए.

साल में 3 बाद गेंदे की फसल उगाई जा सकती है. ग्रीष्मकालीन फसल के लिए जनवरी के मध्य से फरवरी के मध्य तक नर्सरी में बोआई की जा सकती है. शरदकालीन फसल के लिए सितंबर के मध्य से अक्तूबर के मध्य तक बोआई की जा सकती है, जबकि बारिश की फसल के लिए मध्य जून से मध्य जुलाई तक बोआई की जा सकती है.

नर्सरी में बीज बोने के 25-30 दिन बाद पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है.

कलमों द्वारा प्रवर्धन : पैतृक समरूप पौधों के उत्पादन के लिए गेंदे की कलमों द्वारा भी प्रवर्धित किया जा सकता है. कलमें 6-10 सैंटीमीटर लंबाई की होनी चाहिए.

पौध रोपण : रोपाई के समय पौध सेहतमंद हो, 6-10 सैंटीमीटर लंबी और 3-4 लाइनों वाली होनी चाहिए. गेंदे की प्रजाति के मुताबिक लाइन व पौध की दूरी 30 से 45 सैंटीमीटर रखनी चाहिए. यह दूरी व्यावसायिक खेती के लिए बेहतर पाई गई है.

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उन्नत किस्में ही उगाएं : गेंदे की अनेक किस्में उपलब्ध हैं, जो पौधों की ऊंचाई, विकास की आदत, पुष्प की आकृति और आकार में भिन्न होती हैं. ज्यादातर किसान गेंदे की लोकल किस्मों की खेती करते?हैं, जिस की वजह से उन्हें निम्न गुणवत्ता वाली कम उपज हासिल होती है, इसलिए उन्हें उन्नत किस्में ही उगानी चाहिए.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली और दूसरे संस्थानों द्वारा गेंदे की व्यावसायिक खेती के लिए निम्नलिखित अच्छी उपज देने वाली किस्में विकसित की गई हैं:

शीर्ष कर्तन: गेंदे के पौधों में शीर्ष कर्तन कक्षवर्ती शाखाओं को प्रोत्साहित करने के लिए किया जाता है, ताकि फूलों की तादाद व उत्पादन को बढ़ाया जा सके. पर ज्यादातर किसान इस काम को नहीं करते हैं. ज्यादा उत्पादन हासिल करने के लिए गेंदे की दोनों प्रजातियों का शीर्ष कर्तन अवश्य करना चाहिए.

अफ्रीकन गेंदे की शिखाग्र वर्चस्व के कारण पौधे बहुत कम शाखाओं के साथ लंबे व दुबले हो जाते हैं. ऐसे पौधे ढह जाने के लिए संवेदनशील होते हैं और पुष्प उत्पादन कम हो जाता है, इसलिए शीर्ष कर्तन जरूर करना चाहिए ताकि उच्च उपज मिल सके.

शीर्ष कर्तन पुष्पण को थोड़ा बिलवित करता है, पर पुष्प उत्पादन में सुधार होता है. रोपाई के 40 दिन बाद शीर्ष कर्तन करना एक समान पुष्पण व उपज के लिए सर्वोत्तम पाया गया है. फ्रैंच गेंदे में शीर्ष कर्तन की जरूरत नहीं होती है.

सिंचाई व जल निकास

अच्छी बढ़वार और पुष्पण के सभी चरणों के दौरान जमीन में सही नमी रखना बहुत जरूरी है क्योंकि नमी की कमी में पौधे सूख जाते हैं और फलियां भी ठीक से पनप नहीं पाती हैं.

गेंदे की प्रजातियां मिट्टी व मौसम पर निर्भर करती हैं. गरमी में गरम हवाएं पौधे

के सूखने की अहम वजह मानी जाती हैं इसलिए पौधों को वायुमंडलीय परिस्थितियों के मुताबिक सिंचित किया जाना चाहिए.

सर्दियों में फसल को 6-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जरूरत होती है, जबकि बारिश में फसल में सिंचाई बारिश के ऊपर निर्भर करती है. यदि काफी लंबे समय तक बरसात न हो तो जरूरत के मुताबिक खेत में सिंचाई करनी चाहिए.

यदि किसी कारणवश गेंदे की फसल में फालतू पानी जमा हो जाए तो उसे तुरंत निकालने की व्यवस्था करनी चाहिए अन्यथा फसल के मरने की आशंका रहती है.

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पौध संरक्षण उपाय

खरपतवार नियंत्रण: गेंदे की फसल में विभिन्न प्रकार के खरपतवार उग आते हैं, जो फसल के साथ नमी व पोषक तत्त्वों के लिए होड़ करते हैं. इस के चलते फसल की बढ़वार, विकास व उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है इसलिए उन की रोकथाम के लिए जरूरत के मुताबिक निराईगुड़ाई करनी चाहिए. पूरी फसल के दौरान 5-6 बार निराईगुड़ाई की जरूरत होती है.

कीट नियंत्रण

लाल मकड़ी घुन: यह कीट पुराने पौधों पर हमला करता है. इस के चलते रोगग्रस्त पौधे धूलमय यानी झिल्लीदार दिखाई देते हैं. इस कीट की रोकथाम के लिए डायकोफोल के 0.1 फीसदी घोल का छिड़काव करना चाहिए.

पत्ता कुदकड : यह कीट पत्तियों और तनों का रस चूसता है, जिस के चलते संक्रमित भाग कुपोषित या लटकते हुए दिखाई देते हैं. इस कीट की रोकथाम के लिए मेटासिस्टाक्स के 0.2 फीसदी घोल का छिड़काव करना चाहिए.

बालों वाली सूंड़ी : गेंदे की शुरुआती अवस्था में यह सूंड़ी पत्तों को खाती?है और बाद में पुष्प वृंतों के अर-पुष्पकों को खा कर नुकसान पहुंचाती है. इस कीट की रोकथाम के लिए नुवान के 0.2 फीसदी घोल का पर्णीय छिड़काव करना चाहिए.

रोग नियंत्रण

पौध विगलन : यह एक फफूंदीजनित रोग है. इस के चलते पत्तियों के रोग छिद्रों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं, जिस से अंकुर मुरझा जाते हैं, उदय के बाद अंकुरों के कौलर पर भूरे रंग के विगलित धब्बे एक विकराल रूप ले लेते?हैं जो नर्सरी के पतन का कारण बनते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए बाविस्टिन के 0.2 फीसदी घोल का छिड़काव करना चाहिए.

पुष्पकलिका विगलन : यह भी एक फफूंदीजनित रोग है. इस रोग की शुरुआती अवस्था में पुष्प क्रम या युवा कलिकाओं पर प्रकट होता है. गंभीर संक्रमण की अवस्था में कलियां सूखी व सड़ी हुई दिखाई देती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए डाइथेन एम 45 के 0.3 फीसदी घोल का छिड़काव करना चाहिए.

जड़ तालन : यह रोग कई प्रकार की फफूंदियों (राइजोक्टोनिया सोलानी, स्क्लेरोसियम रोल्फ साई, पिथियम ओल्टिमम, फाइटोप्थोरा क्रिप्टोजिया) द्वारा फैलता?है. जड़ में रोग का पहला लक्षण दिखाई देते ही जड़

सड़ जाती है, पत्तियां झड़ जाती हैं और बाद में पौधा मर जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए कार्बंडाजिम और मेटालाक्सिल से मिट्टी को उपचारित करना चाहिए.

फूलों की तुड़ाई : गेंदे के फूलों की तुड़ाई सही समय पर करना बेहद जरूरी?है. फूलों की तोड़ाई उस समय करनी चाहिए जब वे पूरी तरह से खिल जाएं.

तुड़ाई के बाद प्रौद्योगिकी

* पूरी तरह विकसित फूलों की सुबहशाम को ही तुड़ाई करें.

* तुड़ाई के बाद फूलों को कुछ समय के लिए पानी में डालें.

* तुड़ाई के बाद फूलों को जरूरत के मुताबिक छोटीबड़ी टोकरियों में रखें या पानी सूखने के बाद फूलों को 200 ग्राम कूवत वाली पौलीथिन की थैलियों में पैक करें.

* 1-2 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान व 80-90 फीसदी नमी होने पर ही भंडारित करें.

उपज

गेंदे की उपज कई बातों पर निर्भर करती?है जिन में जमीन की उर्वराशक्ति, उगाई जाने वाली किस्म और फसल की सही देखभाल प्रमुख?हैं. यदि बताई गई विधि से गेंदे की खेती की जाए तो प्रति हेक्टेयर 8-10 क्विंटल ताजा फूल मिल जाते हैं.

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रातों का खेल: भाग 1

भाग:1

घटना 10 जून, 2019 की है. इंदौर साइबर सेल के एसपी जितेंद्र सिंह ने साइबर सेल के अफसरों और कुछ सहकर्मियों को अपने केबिन में बुला कर इंदौर के किसी क्षेत्र में छापा डालने के बारे में बताया. छापेमारी में कोई चूक न हो इस के लिए हर पुलिसकर्मी की शंका और उस के समाधान के बारे में 4 घंटे तक मीटिंग चली. इस के बाद एसपी जितेंद्र सिंह के निर्देश पर रात लगभग साढ़े 12 बजे 2 टीमें बनाई गईं.

इन टीमों में एसआई राशिद खान, आमोद राठौर, संजय चौधरी, विनोद राठौर, रीना चौहान, पूजा मुबेल, अंबाराम प्रधान व सिपाही आनंद, दिनेश, रमेश, विजय विकास, राकेश और राहुल को शामिल किया गया. इन टीमों को सी 21 माल के पीछे स्थित टारगेट पर धावा बोलना था. समय तय कर दिया गया था.

मामला काफी गंभीर था, इसलिए टीमों के रवाना होने के बाद पुलिस अधीक्षक जितेंद्र सिंह बैकअप देने के लिए औफिस में ही बैठे रहे. उन्हें भेजी गई टीमों से मिलने वाली सूचनाओं का इंतजार करना था. साइबर एसपी जितेंद्र सिंह को 25 दिन पहले सी 21 माल के पीछे स्थित प्लाजा प्लेटनेम के 2 तलों पर संदिग्ध गतिविधियां संचालित होने की जानकारी मिली थी.

एसआई राशिद खान ने जो सूचना जुटाई थी, उस के अनुसार प्लेटनेम में 2 औफिस रात को 11 बजे खुलते थे और सुबह होते ही बंद हो जाते थे. लगभग सौ सवा सौ युवकयुवतियां रात 11 बजे औफिस में जाते थे. इस के बाद सुबह तक के लिए शटर बंद हो जाता था. वहां क्या होता है, इस का किसी को पता नहीं था. हां, इतना आभास जरूर था कि वहां जो भी होता है, वह कानून के दायरे के बाहर है.

एसपी जितेंद्र सिंह ने इस संबंध में जो जानकारी जुटाई, उस में पता चला कि संदिग्ध औफिस के मालिक पिनकेल डिम व श्रीराम एनक्लेव में रहने वाले जावेद मेनन और राहिल अब्बासी हैं, जो रईसी की जिंदगी जी रहे हैं. ये लोग क्या काम करते हैं, इस की जानकारी किसी को नहीं थी.

एसपी जितेंद्र सिंह को सब से बड़ी बात यह पता चली कि इन औफिसों में काम करने वाले युवकयुवतियों में 80 प्रतिशत से अधिक भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से हैं.

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जावेद ने इन लोगों को आसपास के इलाकों में किराए पर फ्लैट ले क र दे रखे थे. पूर्वोत्तर के नागरिक आसानी से इंदौर के लोगों में घुलमिल नहीं सकते थे, इसलिए साफ था कि ऐसे कर्मचारियों का चुनाव आमतौर पर तभी किया जाता है, जब संबंधित व्यक्ति अपने कार्यकलाप को गुप्त रखने की मंशा रखता हो.

एसपी जितेंद्र सिंह इस बात को अच्छी तरह समझते थे, इसलिए दबिश देने पर आपराधिक गतिविधियों का खुलासा हो सकता था. एसपी साहब ने इस मामले की सूचना पुलिस महानिदेशक पुरुषोत्तम शर्मा, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक राजेश गुप्ता व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अशोक अवस्थी को पहले दे दी थी. अब उन्हें परिणाम का इंतजार था.

उस समय रात का 1 बजा था, जब एसआई राशिद खान की टीम ने सी 21 माल के पीछे स्थित टारगेट के दरवाजे पर दस्तक दी. कुछ देर के इंतजार के बाद शटर उठाया गया तो एसआई राशिद खान पूरी टीम के साथ धड़धड़ाते हुए अंदर दाखिल हो गए. औफिस में अंदर रखी करीब 20-22 टेबलों पर 60-70 कंप्यूटरों की स्क्रीन चमक रही थीं.

110-112 के आसपास युवकयुवतियां एक ही स्थान पर मौजूद थे. उस दिन किसी महिला कर्मचारी का जन्मदिन था, इसलिए औफिस का मालिक जावेद मेनन भी वहां मौजूद था. उस ने युवती का जन्मदिन सेलिब्रेट करने के लिए खुद ही केक मंगवाया था.

पुलिस को आया देख वहां मौजूद सभी कर्मचारी घबरा गए. राशिद खान की टीम ने उन्हें केक काटने का समय दिया. इस के बाद वहां चल रहे कंप्यूटरों की जानकारी खंगाली गई तो टीम की आंखें फटी रह गईं. वास्तव में वहां की 2 मंजिलों पर 2 ऐसे कालसेंटर चल रहे थे, जो इंदौर में बैठ कर हाइटेक तरीके से अमेरिकी नागरिकों को ठगने का काम करते थे.

कालसेंटर के मालिक जावेद मेनन ने पहले तो पुलिस को अपने द्वारा किए जा रहे काम को लीगल ठहराने की कोशिश करते हुए वहां से खिसकने की सोची, लेकिन साइबर सेल की सतर्कता से उसे ऐसा मौका नहीं मिला.

इस दौरान हुए खुलासे की जानकारी मिलने पर एसपी जितेंद्र सिंह खुद भी मौके पर पहुंच गए. उन के पहुंचने के बाद देर रात शुरू हुई काररवाई अगले दिन सुबह तक चली. इस काररवाई में जावेद मेनन और उस के राइट हैंड शाहरुख के साथ 8 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिन में पूर्वोत्तर राज्यों की रहने वाली लड़कियां भी शामिल थीं.

पुलिस टीम ने कालसेंटर से 60 कंप्यूटर, 70 मोबाइल फोन, सर्वर और अन्य गैजेट्स तथा लगभग 10 लाख अमेरिकी नागरिकों का डाटा बरामद किया.

गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में स्थिति साफ होने पर उन के खिलाफ 468, 467, 471, 420, 120बी, आईपीसी और 66 डी आईटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया.

गिरफ्तार किए गए सभी 78 युवकयुवतियों को 2 चार्टर्ड बसों में भर कर अदालत ले जाया गया और उन्हें अदालत के सामने पेश किया गया, जहां से पुलिस ने पूछताछ के लिए जावेद मेनन, भाविल प्रजापति और शाहरुख मेनन को रिमांड पर ले लिया, जबकि नगालैंड, मेघालय, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा सहित 10 राज्यों के रहने वाले 75 युवकयुवतियों को जेल भेज दिया गया.

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जावेद मेनन, भाविल प्रजापति और शाहरुख मेनन से पूछताछ के बाद उन के औफिस दिव्या त्रिस्टल, प्लैटिनम प्लाजा, घर पिनेकल डीम और श्रीराम एनक्लेव में छापा मारा गया. करीब 5 घंटे की तलाशी के बाद पुलिस ने वहां से फरजीवाड़े से संबंधित ढेरों सामग्री जब्त की.

इस के बाद पूछताछ में तीनों आरोपियों ने जो बताया, उस के आधार पर पता चला कि जावेद मेनन और उस का दोस्त राहिल अब्बासी मूलरूप से अहमदाबाद के रहने वाले थे. दोनों 2018 में इंदौर आए थे. यहां उन्होंने बीपीओ कंपनी की आड़ में कालसेंटर शुरू किए.

इंदौर में दोनों ने जिस कंपनी के नाम से किराए पर इमारतें लीं, वे विपिन उपाध्याय के नाम से रजिस्टर्ड हैं. जबकि इस के वास्तविक मालिक जावेद और राहिल हैं. कंपनी विपिन के नाम थी, इसलिए इस कंपनी के नाम से ही किराए का एग्रीमेंट किया गया था.

विपिन को पूरी बात की जानकारी थी. इस के बदले वह जावेद और राहिल से अपना नाम इस्तेमाल करने का करीब 1 लाख रुपए महीना किराया लेता था.

जावेद और राहिल काफी शातिर दिमाग थे. दोनों जानते थे कि स्थानीय स्तर पर ठगी का कारोबार ज्यादा दिन नहीं चल पाएगा, इसलिए फरजी कालसेंटर के जनक माने जाने वाले सागर ठक्कर उर्फ शग्गी से प्रेरणा ले कर दोनों ने द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्युरिटी एडमिनिस्ट्रेशन के नाम पर अमेरिकी नागरिकों को ठगने की योजना बनाई. उन्होंने पहले अहमदाबाद, फिर पुणे में कुछ समय तक ठगी का कारोबार करने के बाद इंदौर का रुख किया.

इंदौर में दोनों 2018 से इस तरह के 2 कालसेंटर चला रहे थे. इस काम के लिए उन्होंने काफी हाइटेक उपकरण जमा कर रखे थे. अमेरिकी नागरिकों को झांसा देने के लिए जावेद ने पूर्वोत्तर राज्यों के युवकयुवतियों को नौकरी देने के नाम पर अपने साथ जोड़ लिया था. इस के 2 कारण थे, पहला तो यह कि इन राज्यों के युवकों की अंगरेजी भाषा पर अच्छी पकड़ होती है. दूसरे उन का अंगरेजी बोलने का लहजा अमेरिकी लहजे से काफी मिलताजुलता होता है.

इंदौर में जावेद और राहिल के 2 कालसेंटरों से जो 75 से ज्यादा युवकयुवती पकड़े गए, उन्हें जावेद रहनेखाने के खर्च के अलावा 22 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन देता था. सभी के रहने के लिए इंदौर की महंगी कालोनियों में 30 हजार रुपए प्रतिमाह किराए पर फ्लैट लिए गए थे. युवकयुवतियों को एक साथ रहने की सुविधा दी गई थी.

चूंकि ठगी अमेरिकी नागरिकों से की जाती थी, इसलिए जावेद का कालसेंटर रात 10 बजे खुलता था. वजह यह कि जब भारत में रात के 10 बजे होते हैं, तब अमेरिका में सुबह के लगभग 11 बजे का समय होता है. रात के 10 बजे शटर उठा कर सभी कर्मचारियों को अंदर कर शटर बंद कर दिया जाता था. जिस के बाद असली खेल शुरू होता था.

क्रमश:

कहानी सौजन्य: मनोहर कहानी

जानें, क्यों होते है डैंड्रफ ?

रोजमर्रा की कई ऐसी परेशानियां होती हैं. जिन पर हम ध्यान नहीं दे पाते और हमारी यही लापरवाही आगे चलकर हमारे लिये परेशानी का सबब बन जाती है. ऐसी ही एक परेशानी है हमारे सिर में होने वाली रुसी जो हमें किसी के भी सामने शर्मिंदगी महसूस करा देती है. अपने लिये वक्त न निकलना, सही पौष्टिक आहार न लेना, विटामिन, मिनरल्स की कमी होना ऐसे कई कारण है. जिनकी वजह से हमे इस परेशानी से दो चार होना पड़ता है.

यह समस्या अधिकतर सर्दियों में होती है. आज की जीवनशैली में 75% लोग रुसी की समस्या से परेशान हैं. इससे बाल भी जल्दी सफेद होते है व कमजोर हो जाते है. जिस कारण बाल झड़ने लगते हैं. रुसी होने के कई कारण होते है जैसे-

रुसी के कारण

त्वचा का रुखा व बेजान होना: अगर हमारे बालों में खुश्की या खारिश की समस्या होती है या हमारे सिर की त्वचा बहुत ही ज्यादा खुश्क, रूखी व बैजान होती है तो रुसी की समस्या का होना लाजमी है.

इम्यून सिस्टम मे गड़बड़ी होना: अगर कोई व्यक्ति एग्जिमा रोग से पीड़ित है तो भी सिर की त्वचा रूखी दिखाई देती है व इम्यून सिस्टम का सही प्रकार से काम न करना भी इसका एक प्रमुख कारण है.

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पौष्टिक तत्वों और जल की कमी: जो लोग बहुत कम मात्रा मे पानी का सेवन करते हैं. उनके अंदर यह समस्या ज्यादा देखी जाती है अथवा तला भुना व तीखा भोजन खाने वालों में पौष्टिक तत्वों की कमी पायी जाती है. पौष्टिक तत्वों की कमी के कारण भी रुसी हो जाती है. सही पौस्टिक आहार न लेने से सिर में ही नहीं बल्कि त्वचा में कहीं भी खुश्की जैसी समस्या से परेशानी हो सकती है.

हार्ड शैम्पू का प्रयोग: कई लोगों की आदत होती है कि हर बार अलग अलग शैम्पू का इस्तेमाल करते हैं, जिससे उनकी त्वचा पर असर पड़ता है. शैम्पू में कई तरह के केमिकल्स होते हैं जो त्वचा में रुसी का कारण भी बन जाते है. इसलिये रुसी से परेशान लोगों को माइल्ड और हर्बल शैम्पू का प्रयोग करना ही ठीक रहता है.

बालों का औयली होना

बालों में हमेशा तेल लगाए रहने से सिर की त्वचा चिपचपी हो जाती है. जिस कारण सिर में गंदगी भी जमा होने लगती है. यही गंदगी रुसी का कारण भी बन जाती है और बाल भी कमजोर होकर टूटने लगते हैं. देखा गया है कि जो लोग ज्यादा तला भुना खाना खाते हैं उनके बाल बहुत ही औयली हो जाते हैं. जिस कारण रुसी हो जाती है.

गर्म पानी का प्रयोग

सर्दियों में अधिकतर सभी लोग नहाने मे गरम पानी का प्रयोग करते हैं व गर्म स्कार्फ का भी प्रयोग करते हैं जिस कारण सिर को पर्याप्त मात्रा में हवा भी नहीं मिल पाती और रुसी की समस्या हो जाती है.

बारिश का मौसम

बरसात के मौसम मे चिपचिपाहट बनी रहती है. नमी बने रहने की वजह से यह समस्या हो जाती है अगर बारिश का पानी सिर पर गिरता है तो कीटाणुओं का भी खतरा बढ़ जाता है जिस कारण रुसी हो जाती है.

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जानिए, किस फिल्म से ग्यारह साल बाद एक साथ गुरमीत और देबिना करेंगे वापसी

‘‘कैकवाक’’ और ‘‘सीजंस ग्रीटिंग्स’’ के लेखक व निर्देशक राम कमल मुखर्जी अब अपनी चैथी हिंदी फिल्म ‘‘शुभो बिजौय’’ का निर्देशन करने जा रहे हैं. जिसमें ग्यारह साल बाद निजी जीवन के दंपति गुरमीत चौधरी और देबिना बनर्जी की रोमांटिक किरदार में वापसी होने वाली है. यह जोड़ी इससे पहले 2008 के लोकप्रिय धार्मिक सीरियल ‘‘रामायण’’ में एक साथ नजर आयी थी. अरित्रा दास, बिल्विस कपाड़िया और गौरव डागा द्वारा बनाई जाने वाली इस फिल्म की शूटिंग क्रिसमस से पहले मुंबई में की जाएगी.

फिल्म ‘‘शुभो बिजौय’’ की कहानी एक फैशन फोटोग्राफर शुभो के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अंधा हो जाता है, जबकि उसकी सुपरमौडल पत्नी बिजौय को कैंसर हो जाता है. फिल्म इन दो जोड़ों और उनकी यात्रा की एक भावनात्मक कहानी है.

राम कमल मुखर्जी कहते हैं, ‘‘हमारी फिल्म की कहानी हेनरी की ‘द गिफ्ट औफ मैगी’ से प्रेरित है, जो मेरे स्कूल के दिनों से ही मेरी पसंदीदा लघु कहानी रही है. लेकिन हमने अपनी फिल्म में वास्तविक जीवन की एक घटना को शामिल किया है, जो कहानी में एक बिल्कुल अलग पहलू लाती है.‘‘

निर्देशक राम कमल मुखर्जी आगे कहते हैं- ‘‘मैं अपनी पहली फिल्म ‘केकवाक’के प्रचार के दौरान लंदन में गुरमीत व देबिना से मिला था.उस वक्त हमने एक साथ काम करने की बात कही थी.’’

गुरमीत चौधरी कहते हैं-‘‘मैंने ‘केकवाक’ देख रखी थी. इसलिए मुझे पता था कि राम कमल भावनाओं को परदे पर बेहतरीन तरीके से उकेरने में माहिर हैं. जब उन्होंने मुझे इस फिल्म की कहानी सुनायी, तो मैं उछल पड़ा था. मुझे लगा कि यह फिल्म जरुर की जानी चाहिए.’’

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‘‘कलर्स’’ चैनल के सीरियल ‘‘विषः ए पौयजनस स्टारी’’ में नजर आ रही देबिना बनर्जी इस फिल्म को लेकर अति उत्साहित हैं. वह कहती हैं- ‘‘हमें ‘रामायण’ के दिनों से ही एक साथ परदे पर आने के प्रस्ताव मिलते रहे है. पर अब तक हमने कई प्रस्ताव ठुकराए हैं. हम दोनों एक साथ ऐसी फिल्म करना चाहते थे, जो हमें एक अभिनेता के रूप में उत्साहित करे. अब मैं इस फिल्म के अपने लुक पर काम कर रही हूं. क्योंकि एक सुपरमौडल के कैंसर रोगी होने से उनकी शारीरिक बनावट में काफी बदलाव आएगा. मैं बहुत जल्द कैंसर रोगियों के साथ एक कार्यशाला का हिस्सा बनने वाली हूं.’’

देबिना और गुरमीत पहली बार एक बंगाली जोड़े की भूमिका निभाते हुए दिखाई देंगे. देबिना बंगाली हैं, मगर गुरमीत मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर के रहने वाले हैं. गुरमीत कहते हैं- ‘‘मैं किसी तरह कोलकाता से जुड़ा हुआ महसूस करता हूं, वहां के लोग और भोजन शहर को जीवंत बनाते हैं. मुझे लगता है कि कोलकाता साहित्य का शहर है. इस कहानी को सुनकर मुझे हमारी बंगाली शैली की शादी याद आ गयी. उम्मीद है कि फिल्म में राम कमल कुछ बंगाली जादू पैदा करेंगे.‘’

जबकि फिल्म निर्माण कंपनी ‘‘एसौरटेड मोशन पिक्चर्स’’ की  अरित्रा दास कहती हैं- ‘‘मैं हमेशा से एक रोमांटिक फिल्म बनाना चाहती थी. मैं शाहरुख खान और आमिर खान की फिल्में देखकर बड़ी हुई हूं. उन्होंने रोमांटिक हीरो के रूप में पर्दे पर जादू किया है. इन दिनों हम शैली में अधिक और भावनाओं में बहुत कम ध्यान दे रहे हैं. राम कमल दा एक संवेदनशील निर्देशक होने के नाते रिश्तों का पता लगाना पसंद करते हैं. यह फिल्म हाल के दिनों में बन रही फिल्मों से एकदम अलग होगी.’’

जबकि दूसरे निर्माता गौरव डागा कहते हैं-‘‘गुरमीत और देबीना के प्रशंसक काफी हैं. ‘रामायण’ के बाद उन्हें पर्दे पर एक रोमांटिक जोड़ी के रूप में लोग उन्हें देखना चाहते हैं.”

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यह एक रोमांटिक फिल्म है, इसलिए फिल्म निर्माता इसे 2020 में वेलेनटाइन डे के अवसर पर सिनेमाघरों में पहुंचाना चाहते हैं.

हनी ट्रैप: छत्तीसगढ़ में भी एक ‘चिड़िया’ पकड़ी गई

छत्तीसगढ़  रायपुर में अश्लील वीडियो रिकौर्ड कर ब्लैकमेलिंग  प्रकरण में पुलिस ने बड़ा खुलासा किया है. 29 वर्षीय प्रीति  फेसबुक से दोस्ती कर अपने प्रेम जाल में फंसाकर 1 करोड़ से अधिक की नकदी और चार पहिया वाहन कारोबारी को ब्लैकमेलिंग कर वसूल चुकी थी.  छत्तीसगढ़ के कोरिया के मनेद्रगढ़ की रहने वाली डेंटल कौलेज से ड्राप आउट छात्रा प्रीति तिवारी को गिरफ्तार किया गया है. पुलिस ने एक दिन की रिमांड पर भी लिया है. उसके पास से 1 नग ब्रेज़ा कार, 1 हुंडई, सोने की ज्वेलरी समेत 47 लाख 50 हजार रुपए का मशरूका पुलिस ने जब्त किया गया है. एडिशनल एसपी प्रफुल्ल ठाकुर के अनुसार यह मामला भोपाल के बहुचर्चित हनी ट्रैप से बिलकुल अलग केस है, उससे इसके कोई लेना देना भी नहीं है. पुलिस का कहना कि पूछताछ में पता चला है कि आरोपी युवती बेहद शातिर है. इसके साथ और लोगों के  जुड़े होने की आशंका है.

सेक्स के लिए  बाध्य करती थी!

रायपुर में पुलिस द्वारा पकड़ी गई प्रीति नामक युवती के संबंध में पुलिस बताती है कि वो युवक को सेक्स करने के लिए उत्प्रेरित करती  और कहती  कि शिकार उसे संतुष्ट करें. दबाव में आकर युवक युवती के साथ एक-दो बार सेक्स करता रहा. लेकिन इसी बीच खुफिया कैमरे में युवती अश्लील वीडियो बना लेती है. फिर बाद में वीडियो दिखाकर उसे सेक्स केस में फंसा देने और समाज में बदनाम करने की धमकी देकर पैसे वसूलती है. ब्लैकमेल कर उससे करोड़ों रुपए उगाही की. बाद में उसे डरा धमका कर मुंबई औऱ जगदलपुर घुमाने भी लेकर गई.

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पुलिस सूत्रों  के मुताबिक 2012 में फेसबुक के जरिए प्रीति तिवारी ने कारोबारी चेतन शाह से चैट कर दोस्ती किया और उसका विश्वास जीत लिया. कुछ दिनों की दोस्ती के बाद वह चेतन से मिलने रायपुर भी आई. फिर इसके बाद कभी रायपुर कभी बिलासपुर में मुलाकात होती रही. इस बीच युवती के परिवार वाले राजधानी रायपुर में शिफ्ट हो गए. अपने खूबसूरती की जाल में फंसाने की कोशिश करती है. युवक को अपने जाल में फंसाकर उससे प्यार करने की बात कहती है. पुलिस के अनुसार यह अपने आप में एक अजीबोगरीब मामला प्रकाश में आया है आरोपी के खिलाफ शिकायत होने पर इसकी जांच की गई और तथ्यों के आधार पर आरोपी युवती को पुलिस हिरासत में लेकर खुलासा किया गया है.

ब्लैक मेल की लंबी दास्तां

इतना ही नहीं प्यार का इजहार करते हुए प्रीति द्वारा शादी करने की बात युवक से कही जाती  है. लेकिन युवक आपने आप को शादी शुदा बताकर शादी करने से इंकार कर देता है तब प्रीति ने चेतन को फोन से एस एम एस  कर ब्लैकमेल कर पैसों की मांग शुरू कर दी. पुलिस में रिपोर्ट, सामाजिक भय व परिवार न टूटे इस कारण से अपने बैंक से पैसा निकालकर व्यापारी दोस्तों से, रिश्तेदारों से उधार लेकर, करीब 90 लाख नकद रूपए युवक ने युवती को दिए. मकान बेचकर उसने जो रकम दोस्तों से उधार लेकर दी थी, उधारी की रकम दोस्तों को वापस की. धमकी देकर एसएमएस के माध्यम से की वह विदेश चली जायेगी, वीजा बनवाने के नाम से, कभी विदेश में आने वाले पढ़ाई के खर्च के नाम से बड़ी-बड़ी रकम 30 लाख, 11 लाख, 3 लाख, 11 लाख, 20 लाख, 12 लाख, 3 लाख यानी कुल 46 लाख ब्लैगमेल कर लिए. फिर से खाते में 17 हजार, 15 हजार, 1 हजार, 23 हजार, 20 हजार, 25 हजार, 20 हजार, 20 हजार, 30 हजार, 30 हजार, 15 हजार, 15 हजार, 10 हजार कर कुल मिलाकर 1 करोड़ 38लाख 51 हजार रुपए ब्लैकमेल कर लिए औऱ क्रेटा कार भी युवती ले ली.

पुलिस ने मामले में आरोपी प्रीति तिवारी को गिरफ्तार कर लिया है. उसके साथ देने वालों की जांच चल रही है. आरोपिया के पास से 1 नग ब्रेज़ा कार, 1 हुंडई कार, सोने की ज्वेलरी समेत 47 लाख 50 हजार रुपए का मशरूका जब्त किया है. फिलहाल पुलिस पूरे मामले की जांच चल रही है.

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