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एलोवेरा से आमदनी

एलोवेरा एक अफ्रीकी वनस्पति है. इस का वैज्ञानिक नाम एलो वार्बाडेंसिस है. यह देश के अलगअलग हिस्सों में अलगअलग नामों से जाना जाता है. इसे घृतकुमारी, घीकुंवार, ग्वारपाठा, कुमारी और एलोय सहित कुछ अन्य नामों से भी जानते?हैं. शुरुआत में लोग इसे अनउपयोगी जमीनों पर लगाते थे, मगर अब इस की व्यावसायिक खेती जोर पकड़ चुकी है. एलोवेरा की व्यावसायिक खेती का दायरा बढ़ने की खास वजह इस का औषधीय महत्त्व है. एलोवेरा को किसानों से बहुतराष्ट्रीय कंपनियां ऊंची कीमत पर खरीद रही हैं. तमाम आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं में इसे मुख्य रूप से इस्तेमाल किया जाता है. इस का इस्तेमाल चेहरे को चमकदार बनाने के अलावा पेट के रोगों, आंखों के रोगों और त्वचा के रोगों को?ठीक करने में किया जाता है. इसे सैंदर्य प्रसाधन सामग्रियां बनाने में भी बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है.

कैसा होता है एलोवेरा : एलोवेरा छोटे तने और मांसल पत्तियों वाला तकरीबन 1 मीटर तक का पौधा होता है. पत्तियों की नसों पर कांटे पाए जाते?हैं. इस में लाल और पीले रंग के फूल आते हैं.

कैसी हो मिट्टी : अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी जिस का पीएच मान 6.5 से 8.5 के बीच हो इस की खेती के लिए बेहतर होती है. वैसे इस की खेती चट्टानी, रेतीली, पथरीली समेत किसी भी तरह की जमीन में की जा सकती है.

कैसी हो आबोहवा : गरम और शुष्क जलवायु एलोवेरा की खेती के लिए सही होती है. जहां पर कम बारिश होती है और अधिक तापमान बरकरार रहता?है, वहां भी इस की खेती आसानी से की जा सकती है.

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रोपाई का समय : जहां पर सिंचाई की सुविधा मौजूद हो, वहां बरसात खत्म होने के बाद दिसंबरजनवरी व मईजून छोड़ कर कभी भी इस की रोपाई कर सकते?हैं.

खेत की तैयारी : सब से पहले खेत को समतल कर लें. फिर 2 बार जुताई करने के बाद पाटा लगा कर ऊपर उठी हुई क्यारियां बना कर रोपाई करें.

प्रजाति : अपने इलाके के मुताबिक प्रजाति का ही चयन करें. इस के लिए आप जिला उद्यान कार्यालय या कृषि विज्ञान केंद्र के उद्यान विशेषज्ञ से मिल सकते?हैं. वैसे केंद्रीय औषधि और सगंध पौध संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने सिम सीतल नाम की उन्नत प्रजाति विकसित की है, जिसे लगा सकते हैं.

रोपाई : 50 सेंटीमीटर लाइन से लाइन और 40 सेंटीमीटर पौध से की दूरी रखते हुए रोपाई करें.

खाद और उर्वरक : अच्छी पैदावार के लिए 5-10 टन खूब सड़ी हुई गोबर की खाद, वर्मी कंपोस्ट या कंपोस्ट का प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करना चाहिए. इस के अलावा 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश का प्रति हेक्टेयर हर साल इस्तेमाल करना चाहिए. नाइट्रोजन की मात्रा को 3 बार में दिया जाना चाहिए.

सिंचाई : रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करना बहुत जरूरी है. इस के बाद जरूरत के मुताबिक सिंचाई करनी चाहिए. वैसे बीचबीच सिंचाई करने से फसल की बढ़वार कई गुना बढ़ जाती है.

देखभाल : कुछ समस्याओं के अलावा एलोवेरा में कीड़ों और बीमारियों का कोई खास प्रकोप नहीं होता है. कई बार देखने में आता है कि बरसात के मौसम में पत्तियों पर फफूंद जनित सड़न और धब्बे पड़ जाते?हैं. इस की रोकथाम के लिए मैंकोजेब की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए. कई बार जमीन के अंदर तने और जड़ों को ग्रब कुतरकुतर कर नुकसान पहुंचाते रहते?हैं. इस की रोकथाम के लिए 60-70 किलोग्राम नीम की खली प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करनी चाहिए.

कटाई : तकरीबन 10-12 महीने बाद इस की पत्तियां कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं. बढ़त के मुताबिक नीचे की 2-3 पत्तियों की कटाई पहले करनी चाहिए. तकरीबन 2 महीने के बाद से परिपक्व हो चुकी 3-4 पत्तियों की कटाई करते रहना चाहिए.

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उपज : एलोवेरा की 50-60 टन ताजी पत्तियां प्रति हेक्टेयर हासिल हाती हैं, जिन से 35-40 फीसदी तक उपयोगी रस (बार्वेलोइन रहित) मिल जाता है. यदि इसे दूसरे साल के लिए भी छोड़ दिया जाए तो उत्पादन में 10-15 फीसदी की बढ़ोतरी पाई जाती है. वैसे असिंचित दशा में उत्पादन थोड़ा कम मिलता है. भंडारण : ताजी पत्तियों को कम तापमान में 1-2 दिनों तक रखा जा सकता है.

मुनाफा : एलोवेरा की खेती से होने वाली आय बाजार की समझ, मूल्य और खरीदार पर निर्भर होती है. फिर भी मोटे तौर पर इस से 1.5 लाख से 3 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर सालाना कमाए जा सकते हैं. इस की खेती करने से पहले मार्केटिंग के बारे में गहराई से जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए, ताकि बिक्री के लिए भटकना न पड़े और वाजिब कीमत भी मिल सके.

6 फैस्टिव लुक विद LIVA फैब्रिक

1. फैस्टिव गेट टु गेदर लुक

LIVA फैब्रिक से बनी श्री कुर्ती और ब्राड वेस्ट बेल्ड का कांबिनेशन आपको देगा स्टाइलिश और फैस्टिव गेट टु गेदर लुक.

2. दीवाली फैस्टिव लुक

LIVA फैब्रिक से बनी एलनी रेड कलर कुर्ते के साथ गोल्डन कलर के प्लाजो का टीमअप साथ ही बनारसी दुपट्टा आपको बना देगा फैस्टिव रेडी.

3. औफिस फैस्टिव लुक

LIVA फैब्रिक से बने गो कलर के पटियाला पेंट और कॉनट्रास्टिंग कलर की जैकेट आपके परफेक्ट औफिस फैस्टिव लुक को और निखारेगा.

4. आउटडोर फैस्टिव लुक

LIVA फैब्रिक से बने प्रिज्मा प्लाजो के साथ न्यूडल स्ट्रेप टॉप और ट्रेडिशनल दुपट्टा आपके आउटडोर फैस्टिव सेलिब्रेशन में स्टाइलिश लुक देगा.

5. क़ॉलेज फैस्टिव लुक

LIVA फैब्रिक से बने मोनिका के फ्लोरल स्टोल को मैचिंग कलर के शर्ट हेरम पेंट के साथ स्टाइलिश अंदाज में ड्रेप करें और बन जाये कॉलेज फैस्टिव रेडी.

LIVA फैस्टिव लुक कौन्टेस्ट 2019

अब आप भी अपना फेस्टिव लुक हमसे शेयर कर सकती हैं. चुने हुए 10 सबसे फैस्टिव फैशन लुक की विजेताओं को LIVA की ओर से दिया जाएगा शानदार गिफ्ट हैंपर. इस कौंटेस्ट का हिस्सा बनने के लिए बस आपको अपनी कोई भी फैस्टिव लुक वाली सेल्फी या फोटो हमें भेजना है.

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‘कसौटी जिंदगी के 2’ : क्या शादी से पहले अपना बच्चा खो देगी प्रेरणा

मशहूर सीरियल ‘कसौटी जिंदगी के 2’ में इन दिनों धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं. अब तक दर्शकों को मिस्टर बजाज और प्रेरणा के बीच ही इमोशनल ड्रामा देखने को मिल रहा था. फिलहाल इस शो के ट्रैक में  मिस्टर बजाज चले गए हैं. और प्रेरणा अनुराग के बीच सब कुछ ठीक हो रहा है.

प्रेरणा अनुराग शादी भी करने वाले हैं. सब घरवालें मिलकर इन दोनों की शादी की तैयारियों में जुट गए हैं. लेकिन इसी बीच एक धमाकेदार ट्विस्ट होने वाला है. जिसकी वजह से प्रेरणा और अनुराग एक बार फिर से दूर हो जाएंगे.

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जी हां, क्योंकि अनुराग अपनी याददाश्त खो देगा. अब आपको बताते हैं इस महाट्विस्ट के बारे में.  दरअसल, अनुराग अपने होने वाले बच्चे के बारे में जानकर बहुत खुश होगा. इस बात का जश्न मनाने के लिए वह प्रेरणा के साथ बाहर घूमने जाएगा. यह ट्रिप अनुराग की जिंदगी बदल देगी. ट्रिप से वापस के दौरान अनुराग और प्रेरणा का एक्सीडेंट होगा. एक्सीडेंट की वजह से अनुराग अपनी याददाश्त खो देगा.

आपको बता दें, कोमोलिका ने  अनुराग का एक्सीडेंट करवाया है. जैसे ही अनुराग की याददाश्त जाएगी, कोमोलिका की ये चाल सफल हो जाएगी.  तो उधर प्रेरणा की जिंदगी में तूफान आएगा क्योंकि, इस एक्सीडेंट में प्रेरणा अपने बच्चे को खो देगी. शो के अपकमिंग एपिसोड में धमाकेदार ट्विस्ट का सिलसिला जारी रहेगा.

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‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: जल्द ही सबके सामने खुलेगा वेदिका का राज, क्या करेगी नायरा ?

छोटे पर्दे का मशहूर शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में लगातार हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. आए दिन इस शो की कहानी में नए नए मोड़ आ रहे है.  आपको बता दें कि जल्द ही कार्तिक, नायरा और वेदिका के लव ट्रायंगल में जबरदस्त नया मोड़ आने वाला है. जी हां इस शो के अपकमिंग एपिसोड में वेदिका के एक्स हसबैंड का खुलासा सबके सामने होगा. अब तक वेदिका के पिछली जिंदगी के बारे में किसी को नहीं पता है.

वेदिका का ये राज किसी को नहीं पता है. दरअसल वेदिका का पास्ट भी रह चुका है. जी हां, जिसका खुलासा अब मेकर्स दर्शकों के सामने करने वाले है. वेदिका का यह राज नायरा और कार्तिक के साथ साथ दर्शकों को भी चौंकाने वाला है.

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इस शो में चल रहे ट्रैक के अनुसार गोयनका और सिंघानिया परिवार दशहरा सेलीब्रेशन की तैयारी में लगे हैं.  इस सेलिब्रेशन के दौरान एक सीक्रेट लेटर के माध्यम से वेदिका की एक्स हसबैंड की सच्चाई सबके सामने खुलेगी.  जिसके कारण वो परेशान हो जाएगी. क्योंकि वो कार्तिक को किसी भी हाल में  खोना नहीं चाहती है.

खबरों के अनुसार एक आदमी वेदिका का पीछा करेगा और उसे ब्लैकमेल करने की कोशिश भी करेगा. कार्तिक को भी नायरा के इस सच्चाई के बारे में जल्द ही पता चलेगा और वो चौंकाने वाला कदम उठाएगा. नायरा सबकुछ जानते हुए भी वेदिका की मदद करने की कोशिश करेगी. लेकिन देखना ये दिलचस्प होगा कि क्या वो वेदिका की मदद करने में सफल हो पाएगी.

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कम्मो : भाग 2

‘‘तुम्हारी किस्मत तो बहुत ही तेज है डियर, जो ऐसी जबरदस्त नौकरानी मिल गई. एकदम हीरोइन लगती है. अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो ऐसी मस्त नौकरानी से खूब मजे लेता. अरे भाई, हमारे पास रुपएपैसे की कमी नहीं है. हमारी औलादें खूब मजे में हैं. वे बढि़या नौकरी पर हैं. हम क्यों और किस के लिए कंजूसी करें? हमें भी तो अपनी बाकी जिंदगी हंसीखुशी और मजे में गुजारनी चाहिए.’’

राजेश ने कोई जवाब नहीं दिया. कुछ देर बाद कम्मो चाय के खाली बरतन उठाने आई तो मदनलाल उस की तरफ एकटक देखता रहा.

‘‘अच्छा राजेश डियर, मैं चलता हूं,’’ एक घंटे बाद मदनलाल बोला.

‘‘वापस दिल्ली कब जाना है?’’

‘‘शाम को ही लौट जाऊंगा. अगर तुम रात को कम्मो को यहीं रोक सको तो मैं भी रुक जाऊंगा.’’

‘‘यार, लगता है कि तुम मेरी नौकरानी को भगा कर ही रहोगे.’’

‘‘यह तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी, क्योंकि तुम जैसे इनसान बहुत कम हैं जो किसी की मजबूरी का फायदा नहीं उठाते. यह भी हो सकता है कि यह किसी दिन तुम्हारी मजबूरी का फायदा उठा ले.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘मैं क्या बताऊं, यह तो समय ही बताएगा,’’ मदनलाल ने कहा और हंसते हुए राजेश से विदा ली.

रात का खाना खा कर राजेश आराम कुरसी पर बैठे थे. उन के दिमाग में मदनलाल की बातें घूमने लगीं. उन की आंखों के सामने कम्मो का हंसतामुसकराता चेहरा, गदराया बदन, ब्लाउज से बाहर निकलते उभार आने लगे. दिल और दिमाग में अजीब सी बेचैनी होने लगी. वे आराम कुरसी पर सिर पकड़ कर बैठ गए.

कुछ देर बाद कम्मो ने कमरे में आ कर कहा, ‘‘क्या हुआ बाबूजी? लगता है, आप की तबीयत खराब है.’’

‘‘सिर में दर्द हो रहा है,’’ राजेश ने झूठ बोल दिया.

‘‘मैं आप का सिर दबा देती हूं. आप बिस्तर पर लेट जाइए. माथे पर बाम भी लगा देती हूं.’’

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राजेश बिस्तर पर लेट गए. कम्मो ने उन के माथे पर बाम लगाते हुए कहा, ‘‘बाबूजी, यह सिरदर्द ज्यादा सोचने से होता है, आप ज्यादा न सोचा कीजिए. भला आप को क्या कमी है? आप को किस बात की चिंता है? फिर इतना क्यों सोचते हैं आप?’’

राजेश के एक हाथ की उंगलियां कम्मो की कमर पर चलने लगीं.

‘‘बाबूजी, यह क्या कर रहे हैं आप?’’ कम्मो ने राजेश की ओर देखते हुए कहा.

‘‘कुछ नहीं कम्मो, आज मन बहुत बेचैन हो गया है,’’ राजेश ने धड़कते दिल से कम्मो को अपनी ओर खींच लिया. कम्मो ने मना नहीं किया.

कुछ देर बाद कम्मो ने कमरे से बाहर निकलते हुए कहा, ‘‘अच्छा बाबूजी, अब मैं चलती हूं.’’

‘‘ठीक है, जाओ,’’ राजेश ने कहा और बिस्तर पर लेटेलेटे वे बहुत देर तक उन पलों के बारे में सोचते रहे जो अभी कम्मो के साथ बिताए थे.

सुबह कम्मो आई तो एकदम नौर्मल थी. रात की घटना की कोई नाराजगी उस के चेहरे पर न थी.

यह देख राजेश को तसल्ली हुई कि कम्मो नाराज नहीं है.

एक रात कम्मो ने घर जाने से पहले राजेश के पास आ कर कहा, ‘‘बाबूजी, आप से एक बात कहनी थी.’’

‘‘हांहां, कहो.’’

‘‘पहले यह बताइए कि आप की तबीयत तो ठीक है न? कहो तो आप का सिर दबा दूं?’’ कम्मो ने राजेश की ओर देखा.

राजेश ने उसे अपनी तरफ खींच लिया. कुछ देर बाद कम्मो बिस्तर से उठ कर जाने लगी तो राजेश ने पूछा, ‘‘तुम कुछ कह रही थी न कम्मो?’’

‘‘हां बाबूजी, कमल फलों की रेहड़ी लगाना चाहता है. अगर आप कुछ मदद कर दें तो वह रेहड़ी लगा लेगा.’’

‘‘कितने रुपए में लग जाएगी रेहड़ी?’’

‘‘तकरीबन 15,000 रुपए…’’

‘‘ठीक है, कल ले जाना रुपए.’’

‘‘बाबूजी, आप बहुत अच्छे इनसान हैं,’’ कम्मो ने कहा और मुसकराते हुए चली गई.

एक महीने बाद काम करतेकरते कम्मो को अचानक उलटी हो गई.

राजेश ने कम्मो को बुला कर पूछा, ‘‘क्या बात है कम्मो? तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘बाबूजी लगता है कि मैं पेट से हो गई हूं. मुझे महीना भी नहीं हुआ है.’’

‘‘तुम डाक्टर से चैकअप कराओ. शाम को नर्सिंग होम में चली जाना. नर्सिंग होम से सीधे अपने घर पहुंच जाना. मुझे मोबाइल पर बता देना जैसा भी डाक्टर बताता है.’

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रात को राजेश को कम्मो ने सूचना दे दी कि वह पेट से हो गई है.

अगले दिन सुबह जब कम्मो काम करने आई तो राजेश ने उसे अपने कमरे में बुलाया.

कम्मो बोली, ‘‘बाबूजी, आप ने मेरे साथ संबंध बनाए तो उसी के चलते मैं पेट से हो गई हूं. अब मेरे पेट में आप का बच्चा पल रहा है.’’

‘‘कम्मो, यह तुम कैसे कह सकती हो कि यह मेरा ही बच्चा है, यह तुम्हारे पति का भी तो हो सकता है.’’

‘‘बाबूजी, कमल का पापा तो 3 महीने से मेरे पास आया ही नहीं, वह बीमार रहता है.’’

‘‘कम्मो, मेरा कहा मानोगी…’’

‘‘कहिए बाबूजी?’’

‘‘तुम अपना बच्चा गिरवा लो.’’

‘‘नहीं बाबूजी, मैं बच्चा नहीं गिराऊंगी. मैं हत्या नहीं कराऊंगी. चाहे यह बेटा हो या बेटी, मैं इसे पालपोस कर बड़ा करूंगी.

‘‘मेरा कहना मान लो कम्मो, तुम बच्चा गिरा दो.’’

‘‘नहीं बाबूजी, आप मुझे ऐसी सलाह न दें. इस के पैदा होने पर मैं सभी को बता दूंगी कि इस का पापा कौन है, क्योंकि इस की शक्ल आप से मिलेगी.’’

‘‘अगर मुझ से शक्ल न मिली तो…?’’

‘‘तो मैं इतनी भोली भी नहीं हूं जो चुपचाप बैठ जाऊंगी. मैं सब से पहले इस बच्चे का डीएनए टैस्ट कराऊंगी और मीडिया को बता दूंगी कि यह बच्चा भी आप की जायदाद का वारिस है,’’ कम्मो ने राजेश की ओर देखते हुए कहा. उस के चहरे पर मुसकान थी.

यह सुन कर राजेश को पसीना आ गया. वे तो कम्मो को बहुत भोली समझ रहे थे, पर यह तो जरूरत से ज्यादा समझदार व चालाक है. इस ने तो उसे ही जाल में फंसा दिया है.

राजेश ने कहा, ‘‘सुनो कम्मो, जो होना था हो गया. अब तुम यह बताओ कि इस मुसीबत से बचने के लिए मैं तुम्हें कितने रुपए दे दूं?’’

‘‘बाबूजी, मुझे आप पर तरस आता है. आप बस 5 लाख रुपए दे दो. मैं बच्चा गिरवा दूंगी.’’

‘‘5 लाख रुपए…? क्या कह रही हो तुम? पागल हो गई हो क्या?’’

‘‘बाबूजी, मैं नहीं उस रात तो आप पागल हो गए थे जिस का नतीजा मेरे पेट में पल रहा है.’’

‘‘मैं तुम्हें 5 लाख तो नहीं, 50,000 रुपए दे सकता हूं.’’

‘‘बाबूजी, आप की इज्जत और आप के इस बच्चे की कीमत महज 50,000 ही है क्या?’’

इस के बाद सौदेबाजी हुई और कम्मो 2 लाख रुपए लेने पर मान गई.

राजेश ने दोपहर को बैंक से 2 लाख रुपए निकाल कर कम्मो को दे दिए.

‘‘बाबूजी, मैं कल ही सफाई करा लूंगी. इस के बाद 5-7 दिन मुझे आराम भी करना पड़ेगा.’’

‘‘कोई बात नहीं, तुम अपने घर पर आराम कर लेना.’’

‘‘मैं किसी दूसरी कामवाली को

भेज दूंगी, ताकि आप को कोई परेशानी न हो.’’

‘‘तुम किसी को न भेजना. मैं कुछ दिन के लिए बेंगलुरु चला जाऊंगा अपने बेटे के पास,’’ राजेश ने कुढ़ते हुए कहा.

कम्मो चुपचाप काम में लग गई.

राजेश ठगे से कुरसी पर बैठ गए. उन को अपने किए पर पछतावा हो रहा था. अपनी इज्जत बचाने के लिए उन्हें 2 लाख रुपए देने पड़े. कम्मो ने उस रात की भरपूर कीमत वसूली है.

कुछ दिन बेटे के पास बेंगलुरु में रहने के बाद फिर वापस यहीं लौटना है. यहां लौट कर फिर अकेलापन घेर लेगा. अब तो इस अकेलेपन को दूर करने का कुछ न कुछ उपाय करना ही होगा.

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अगले दिन से ही राजेश ने अखबार व इंटरनैट पर ऐसे वैवाहिक विज्ञापन देखने शुरू कर दिए जिन में विधवा, छोड़ी गई व तलाकशुदा औरतों को जीवनसाथी की तलाश थी. उन को लग रहा था कि बाकी की जिंदगी अकेले बिना साथी के काटना बहुत मुश्किल होगा.

नशाखोरी: सुरा प्रेम में अव्वल भारत

सुरा प्रेम यानी शराब से लगाव में भारत का दर्जा दुनिया के दूसरे कई देशों से बहुत ऊपर है. दुनिया में हमारा खुशहाली सूचकांक गिर रहा है तो शराब की खपत के मामले में तेजी से आगे बढ़ रहा है. साल 2005 से साल 2016 के बीच इस की खपत दोगुनी हो चुकी थी.

मनोवैज्ञानिकों की रिसर्च बताती है कि किसी चीज की लत लग जाने से इनसान को दिमागी तनाव, असंतोष और हताशा होती है. हमें इस रिसर्च की वजहों की जांचपड़ताल खुशहाली के विश्व सूचकांक में करनी चाहिए. दुनिया के 155 देशों में हम नीचे खिसक कर 133वें पायदान पर आ गए हैं, जबकि एक साल पहले हमारी जगह 122वीं थी. अगर आम आदमी बेचैन और परेशान है तो जाहिर है कि वह राहत की तलाश में शराब जैसे नशे का आसान सहारा लेता है. लेकिन उस के लिए पैसा भी तो होना चाहिए.

भारत जैसे देश में, जहां राज्य सरकारें शाही खर्च पूरे करने के लिए शराब पर भारीभरकम टैक्स लगाती हों, ऐसे में सस्ती शराब गरीब के लिए वरदान जैसी बन जाती है. इसी कमजोरी का फायदा पैसे के लिए जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले लोग उठाते हैं. केंद्र सरकार मानती है कि हर साल 2 से 3 हजार लोग जहरीली शराब पीने से अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठते हैं.

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उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में एक बार फिर जहरीली व सस्ती शराब ने 110 से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुला दिया. यह तथाकथित शराब उत्तराखंड के पवित्र क्षेत्र हरिद्वार में बनी थी और एक पारिवारिक उत्सव के मौके पर वहां आए मेहमानों को परोसी गई थी.

कहने की जरूरत नहीं है कि हर थोड़े समय पर लगातार होने वाली ऐसी घटनाएं निकम्मे प्रशासन, भ्रष्टाचार और जनविरोधी नीतियों की ओर ध्यान दिलाती हैं, लेकिन हमदर्दी और दिखावटी कानूनी कार्यवाही वाले खोखले उपायों से आगे हम कभी जा ही नहीं पाते हैं. नतीजतन, मौत का यह ताडंव बदस्तूर जारी रहता है.

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसा ही हादसा साल 2015 में मुंबई के इलाके मालवणी में हुआ था, जिस में तकरीबन 106 मजदूर सस्ती शराब पीने से अपनी जान गंवा बैठे थे. अगर उसी इलाके में जा कर देखा जाए तो वहां अब भी उसी तरह सस्ती व नकली शराब बनते हुए मिल जाएगी.

निकम्मे प्रशासन और लचर कानून व्यवस्था की पोल खोलने वाले ऐसे हादसों के तत्काल बाद सरकारी मशीनरी छापे मारती है और तलाशी मुहिम चलाती है. ज्यादा कोशिश किए बिना

ही वह नकली जहरीली शराब बनाने वाले ठिकानों तक पहुंच जाती है और सैकड़ोंहजारों लिटर जानलेवा शराब बरबाद करने की तसवीरें ले कर वाहवाही के लिए जनता के सामने आ खड़ी होती हैं.

अंधाधुंध गिरफ्तारियों के साथ ही कुछ दिनों के लिए जहर के सौदागर ओझल हो जाते हैं और जैसे ही जनता का गुस्सा कम होने लगता है, वे फिर यह धंधा शुरू कर देते हैं.

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इस मामले में सब से जरूरी सवाल यह है कि सरकारें विभागीय जवाबदेही क्यों तय नहीं करती हैं? गैरकानूनी शराब के कारोबार पर निगरानी रखने के लिए सभी प्रदेशों में अलग विभाग काम कर रहे हैं. ऐसे हादसों के सामने आने पर

इन विभागों से न केवल जवाबतलब किया जाना चाहिए, बल्कि इस के लिए जवाबदेह अफसरों और मुलाजिमों पर सख्त कार्यवाही भी की जानी चाहिए. पर ऐसा होता नहीं है.

प्रशासन वाले शायद इन आंकड़ों से खुश हो जाते हैं कि दुनिया में शराब का सब से बड़ा उपभोक्ता और तीसरा आयातकर्ता भारत है.

हालांकि, देश में बहुत बड़े पैमाने पर कारखानों में शराब का उत्पादन होता है. ऐसे बड़े कारखानों की तादाद 10 है. इन में तैयार की जाने वाली शराब का

70 फीसदी देश में ही सुरा प्रेमियों द्वारा इस्तेमाल कर लिया जाता है, फिर भी ज्यादा सस्ता और आसान नशा मुहैया कराने के लिए शराब के नाम पर जहरीली चीजों से तैयार पेय का बेचा जाना आम बात है. ये पेय ही जानलेवा बन जाते हैं.

देश के 8 राज्य ऐसे हैं, जिन में ऐसे 70 फीसदी हादसों से लोगों को दोचार होना पड़ता है. इन में उत्तर प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना शामिल हैं.

ऐसी घटनाएं शराबबंदी वाले गुजरात में भी सामने आ चुकी हैं, हालांकि कारोबारी हितों को ध्यान में रखते हुए इन पर कोई सख्त कारगर कार्यवाही नहीं की गई है.

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड हादसों से जुड़ी जानकारी बताती है कि जिस जहरीले पेय को पीने से इतनी बड़ी तादाद में लोग मौत का शिकार बने, उस की कीमत सिर्फ 10 रुपए से शुरू हो कर 30 रुपए तक थी.

यहां यह तर्क दिया जा सकता है कि शराब पर सभी राज्य सरकारों को टैक्स की दरें घटानी चाहिए, लेकिन इस के खिलाफ एक दलील तो यह भी है कि शराब सस्ती होगी तो ज्यादा मात्रा में पीने की वजह से लोगों की सेहत से जुड़ी समस्याएं बढ़ेंगी.

दूसरी परेशानी पैसे की है. सभी राज्य सरकारें तकरीबन 20 फीसदी राजस्व शराब पर टैक्स से जुटाती?हैं.

जाहिर है, यह राजस्व का एक बड़ा जरीया है. यही वजह है कि शायद ही किसी राज्य का कोई ऐसा बजट आता हो, जिस में शराब पर टैक्स न बढ़ाए जाते हों.

राज्य सरकारों की इस पैसा बटोरू लालची नीति ने शराब इतनी महंगी कर दी है कि गरीब आदमी की उस तक पहुंच मुश्किल हो गई. इन हालात ने ही सस्ती शराब बनाने के लिए संगठित अपराधी गिरोहों को मौका दिया है.

ये गिरोह कई तरीकों से सस्ता नशा तैयार करते हैं. इन का तंत्र पूरी योजना बना कर काम करता है और निगरानी रखने वाले सरकारी अफसरों व मुलाजिमों के साथ भी उन की अच्छी दोस्ती बनी रहती है.

आबकारी विभाग को सस्ता नशा बनाने वालों और बेचने वालों की जानकारी होती है. सच तो यह है कि इस गैरकानूनी काम पर उन्हीं की सरपरस्ती है, वरना वे इतनी आसानी और कामयाबी से अपने आपराधिक कारोबार को चला ही नहीं सकते.

आमतौर पर शराब की 4 किस्में प्रचलित हैं. इन में पहली है ताड़ी या कच्ची शराब, जिसे अरक या अर्क, ठर्रा, फैनी वगैरह कई नामों से पुकारा जाता है.

दूसरी है देशी शराब, तीसरी बीयर और विदेशी कह कर सेवन की जाने वाली शराब और चौथे नंबर पर स्कौच या वाइन जैसी महंगी आयातित विदेशी शराब हैं.

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हम एक 5वीं किस्म भी रख सकते हैं जो गरीब बस्तियों या दूरदराज के गांवों में बिना कोशिश के मिल जाती है और जो सब से सस्ती लागत में तैयार

करने के लिए जहरीली चीजों से बनाई जाती है.

कच्ची शराब को ज्यादा नशीला बनाने की कोशिश में वह जहरीली हो जाती है. आमतौर पर इसे बनाने में गुड़, शीरा से लहन तैयार किया जाता है. लहन को मिट्टी में दबा दिया जाता है. इस में यूरिया और बेशरम बेल की पत्तियां डाली जाती हैं. ज्यादा नशीला बनाने के लिए इस में औक्सिटोसिन मिला दिया जाता है, जो थोड़ी भी मात्रा ज्यादा हो जाने पर मौत की वजह बनता है.

कुछ जगहों पर कच्ची शराब बनाने के लिए गुड़ में खमीर और यूरिया मिला कर इसे मिट्टी में दबा दिया जाता है. खमीर उठने पर इसे भट्ठी पर चढ़ा दिया जाता है. गरम होने के बाद जब भाप उठती है तो उस से शराब उतारी

जाती है.

इस के अलावा सड़े संतरे, उस के छिलके और सड़ेगले अंगूर से भी खमीर तैयार किया जाता है.

कच्ची शराब में औक्सिटोसिन और  यूरिया जैसे कैमिकल मिलाने की वजह से मिथाइल अलकोहल बन जाता है. इस की वजह से ही लोगों की मौत होती है.

मिथाइल अलकोहल के शरीर में जाते ही तेज रासायनिक क्रिया होने लगती है. इस का असर बढ़ने पर शरीर के अहम अंग जैसे जिगर, गुरदे, फेफड़े काम करना बंद करने लगते हैं. इस की वजह से कई बार तुरंत मौत हो जाती है.

खपत के लिहाज से देश में सब से पहला नाम आंध्र प्रदेश और तेलंगाना का है. वहां एक साल में औसत प्रति व्यक्ति 34.5 लिटर या हर हफ्ते 665 मिलीलिटर शराब इस्तेमाल की जाती है.

कीमती या सस्ती शराब का सीधा ताल्लुक पीने वाले की कमाई और उस के रहनसहन से होता है. शहर में कुछ बेहतर किस्म की और गांव में देशी शराब को प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है.

वैसे, फिलहाल भारत में गुजरात, बिहार, केरल, लक्षद्वीप, नागालैंड और मणिपुर में शराबबंदी है.

हाईवे पर शराब बिक्री बैन देश के हाईवे पर हर साल डेढ़ लाख लोगों की जान चली जाती है. इस की एक अहम वजह शराब के चलते होने वाले हादसों को माना जाता है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में कदम उठाते हुए नैशनल हाईवे पर बेची जाने वाली शराब के नियमों में सख्ती की है. इन रास्तों से कम से कम 220 मीटर दूर ही शराब की दुकानें खोली जा सकेंगी. पहले के आदेश में यह दूरी 500 मीटर तय की गई थी, लेकिन राज्य सरकारों और केंद्र की दलीलों के बाद इसे कम कर दिया गया है.

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उन का कहना था कि पहाड़ी क्षेत्रों में 500 मीटर के फासले पर पहाड़ आ ही जाएगा. इस बदलाव का फायदा सिक्किम, मेघालय, हिमाचल प्रदेश राज्यों को भी मिलेगा. इसी तरह का तर्क गोवा के मामले में पेश किया गया कि इतनी कम दूरी पर समुद्र हर जगह पर आ जाएगा. इस आधार पर वहां भी यह फासला घटा दिया गया.

अदालत से कुछ राज्यों ने यह गुहार भी लगाई गई कि वहां शराबबंदी लागू की जाए. इन में झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे राज्य शामिल हैं. एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि शराब की दुकानों का संचालन नहीं, नशे के कारोबार पर कंट्रोल करना सरकारों का काम है, इसलिए जो निगम या सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थान यह जिम्मेदारी निभा रहे हैं, उन को इस से हट जाना चाहिए.

फेसबुक की दोस्ती का जंजाल: भाग 1

भाग 1

छत्तीसगढ़ राज्य के जिला राजनांदगांव में एक कस्बा है पारा. इसी कस्बे की रहने वाली सुनीता आर्य प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में स्टाफ नर्स थी. उस ने हाल ही में सोशल मीडिया के फेसबुक की रंगीन दुनिया  में कदम रखा था. नएनए लोगों को फ्रैंड बनाना, उसे कल्पनालोक के सुनहरे संसार में पहुंचा देता था.

फेसबुक के अनोखे संसार ने उस की रगरग में रूमानियत भर दी थी. नित्य नएनए फेसबुक फ्रैंड बनते जा रहे थे. उस के फेसबुक फ्रैंड की संख्या बढ़ती जा रही थी. इसी दौरान उस के पास डेविड सूर्ययन नाम के एक युवक की फ्रैंड रिक्वेस्ट आई. सुनीता आर्य ने उस की प्रोफाइल देखी तो पता चला वह युवक लंदन का रहने वाला है.

सुनीता मन ही मन खुश हुई कि वह कितनी भाग्यशाली है जो उस के पास लंदन से फ्रैंड रिक्वेस्ट आई है. उस ने खुशीखुशी उस की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली.

सुनीता आर्य के पति चैतूराम सरकारी नौकरी में थे. शाम को जब वह घर आए तो सुनीता ने खुश होते हुए कहा, ‘‘आज तो कमाल हो गया.’’

चैतूराम ने उस की ओर देख कर पूछा, ‘‘क्या कमाल हो गया भई?’’

सुनीता बोली, ‘‘लंदन चलना है क्या?’’

पति ने आश्चर्य से सुनीता की ओर देख कर कहा, ‘‘लंदन? बात क्या है, बताओ तो?’’

सुनीता खिलखिला कर हंसती हुई बोली, ‘‘मेरी फेसबुक पर लंदन से फ्रैंड रिक्वेस्ट आई है. क्या नाम है उस का. हां, डेविड, मैं ने उसे अपना फ्रैंड बना लिया है.’’

‘‘तो क्या हो गया?’’ भौचक चैतूराम ने उस की ओर देखा.

‘‘तुम समझे नहीं, अब जब मैं ने लंदन के डेविड से दोस्ती कर ली है तो अगर वह भारत आया तो क्या हम से नहीं मिलेगा. क्या हम उस की खातिरदारी नहीं करेंगे. ऐसे ही अगर हम लंदन जाएं तो वहां कम से कम कोई एक पहचान वाला तो होगा. जो हमें सैरसपाटे करवाएगा है. तभी तो कह रही हूं कि लंदन चलना है क्या?’’

चैतूराम के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई. उन्होंने कहा, ‘‘चलो ठीक है, लंदन जाएं या न जाएं कम से कम, कोई तो है जो तुम्हें जानता है, लेकिन यह तो बताओ उस ने तुम्हें खोजा कैसे?’’

‘‘देखो जी फेसबुक का संसार बहुत बड़ा है, सारी दुनिया समाई है. इस में डेविड को भारत में कोई फ्रैंड चाहिए होगा. उसे हमारी प्रोफाइल अच्छी लगी होगी. उस ने मुझे फ्रैंड रिक्वेस्ट भेज दी और मैं ने भी उस की रिक्वेस्ट को सहर्ष स्वीकार कर लिया.’’

उस दिन के बाद सुनीता और डेविड सूर्ययन के बीच फेसबुक के माध्यम से बातें होने लगीं. डेविड सुनीता को बहनजी कहता था और उसे बड़े सम्मान के साथ अपनी भावनाओं से अवगत कराता था.

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डेविड सुनीता से कभी ताजमहल, कभी लाल किला और कभी चारमीनार के बारे में जानकारी लेता था. इस के अलावा वह स्वयं भी लंदन में घूमने लायक जगहों की जानकारी देता था. इस तरह से उन के बीच दोस्ती बढ़ती गई.

बाद में कभीकभी डेविड सुनीता को फोन भी कर लेता था. सुनीता आर्य फेसबुक की दुनिया में खोई हुई थी, तभी एक दिन अचानक उस के मोबाइल पर डेविड सूर्ययन का फोन आया,  ‘‘बहनजी, मैं डेविड सूर्ययन बोल रहा हूं.’’

‘‘हां बताइए कैसे हैं आप?’’ सुनीता बोली.

यह सुन कर डेविड ने कहा, ‘‘बहनजी, मैं ठीक हूं और इस वक्त फिनलैंड में हूं. यह बहुत खूबसूरत देश है. मैं यहां आया हूं तो सोचा, अपनी बहन के लिए कुछ गिफ्ट ले लूं.’’

‘‘अरे भैया, इस सब की क्या जरूरत है. तकल्लुफ मत करो.’’ सुनीता बोली.

‘‘मैं यहां परिवार के साथ घूमने आया हूं. बाजार में घूमते हुए मुझे आप की याद आई तो आप के लिए भी गिफ्ट खरीद रहा हूं. बस आप इस के लिए मना मत करना.’’ डेविड ने कहा.

उस की इस तरह अनुनयविनय पर सुनीता को मन ही मन खुशी हुई. बाद में उस ने पति को बताया, ‘‘सुनो जी, आज डेविड का फोन आया था. सोचो तो क्या कहा होगा, उस ने?’’

‘‘बताओ, क्या कहा है तुम्हारे लंदन वाले भैया ने.’’ चैतूराम बोले.

सुनीता ने खुशीखुशी बताया, ‘‘डेविड ने मेरे लिए बहुत सारे गिफ्ट खरीदे हैं वह सपरिवार फिनलैंड में है. हमें तो यह भी पता नहीं कि फिनलैंड है कहां?’’

‘‘फिनलैंड भी एक छोटा सा देश है. यह जो नोकिया मोबाइल है, वहीं का है. मगर मैं यह नहीं समझा कि गिफ्ट का क्या चक्कर है. भई. तुम्हें साफसाफ मना कर देना चाहिए था. वैसे भी किसी अजनबी दोस्त से गिफ्ट लेना, क्या अच्छी बात है.’’

‘‘मैं ने  मना किया, मगर उस ने कुछ ऐसा कहा कि मैं मना नहीं कर पाई, सोचा कहीं उस का दिल न टूट जाए.’’

पत्नी की बातें सुन और उस के हंसते मुसकराते चेहरे को देख कर चैतूराम अपने काम में व्यस्त हो गए.

दूसरे दिन मोबाइल की घंटी बजी तो सुनीता ने खुशीखुशी मोबाइल उठा कर देखा किस की काल है. नंबर अंजान था उस ने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘क्या आप मैडम सुनीता बोल रही हैं.’’

‘‘हां, मैं सुनीता आर्य ही बोल रहा हूं.’’

‘‘जी नमस्कार, मैं फिनलैंड से कस्टम औफिसर स्टेनली बोल रहा हूं.’’

‘‘हां कहिए… क्या बात है?’’ सुनीता ने पूछा.

‘‘यहां से आप के नाम पर भारत भेजे जा रहे सोने के गहने कस्टम ने जब्त किए हैं. हम ने काररवाई को रोक रखा है. अगर आप को सोने के गहने छुड़ाने हों तो कस्टम चार्ज चुकाना होगा.’’ उस ने बताया.

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‘‘कितना चार्ज है.’’ सुनीता ने पूछा. वह सोचने लगी कि डेविड सूर्ययन ने उस के लिए  सोने के महंगे गहने ले लिए होंगे और बेचारा कस्टम में फंस गया होगा.

‘‘मैडम, आप को 61,500 रुपए चुकाने होंगे. फिर यह गोल्ड ज्वैलरी आप को भेज दी जाएगी.’’ उस ने बताया. सुनीता बड़ी खुश हुई और तुरंत बैंक जा पहुंची. उस ने बताए गए बैंक अकाउंट में तुरंत 61,500 रुपए भिजवा दिए. सुनीता ने फोन कर के उसे अकाउंट में पैसे जमा कराने की जानकारी भी दे दी. तभी उस व्यक्ति ने सुनीता को धन्यवाद देते हुए ज्वैलरी कस्टम फ्री हो जाने का आश्वासन दिया.

लेकिन कई दिन बीत जाने के बावजूद जब उस के पास वह ज्वैलरी नहीं पहुंची तो उस ने आखिरकार एक दिन पति चैतूराम को बताया कि उस ने डेविड द्वारा भेजी गई ज्वैलरी कस्टम में पकडे़ जाने पर 61,500 रुपए का कस्टम चार्ज भेज दिया था. मगर अभी तक उस के पास वह ज्वैलरी नहीं पहुंची.

पत्नी की बातें सुन कर चैतूराम बोले, ‘‘विदेश से गिफ्ट आने में समय तो लगेगा. थोड़ा इंतजार करो. जब तुम ने इतनी कस्टम ड्यूटी दी है तो जरूर वह 4-5 लाख रुपए का गिफ्ट होगा.’’

क्रमश:

दीवाली स्पेशल : पटाखे जलाते समय इन 9 बातों का रखें ध्यान

दीवाली के त्योहार पर पटाखे जलाते समय सावधानी बरतनी बेहद जरूरी है, खासकर तब जब घर में बच्चे पटाखे फोड़ रहे हों. ऐसे में मातापिता यदि बच्चों के साथ न हों तो दुर्घटना कभी भी हो सकती है. लेकिन, अगर किसी तरह पटाखे फोड़ते वक्त शरीर का कोई हिस्सा जल जाए तो क्या करना चाहिए और क्या नहीं, बता रहे हैं दिल्ली स्थित विनायक स्किन ऐंड कौस्मेटोलौजी क्लिनिक के त्वचा विशेषज्ञ डा. विजय कुमार गर्ग.

  1. पटाखे जलाते समय शरीर का कोई हिस्सा जल जाए तो जल्द से जल्द क्या करना चाहिए, इस के लिए पहले यह जान लेना जरूरी है कि जलने का प्रकार क्या है. एक होता है माइनर बर्न जो छोटे साइज का बर्न है जिस से स्किन लाल पड़ जाती है या एकआधा छाला हो जाता है. इस तरह के माइनर बर्न्स में जल्द से जल्द ठंडे पानी में हाथ डाल देना चाहिए. इस से राहत मिलेगी.

2.  दूसरा, कोई भी एंटीसैप्टिक क्रीम लगा लेनी चाहिए. सिल्वर सल्फाडाइजीन एंटीसैप्टिक क्रीम है जो  साधारणतया इस्तेमाल किया जाने वाला ड्रग है. इसे जल्द ही लगाने से फायदा पहुंचता है.

4. कुछ लोग जले पर बरनौल, मेहंदी, टूथपेस्ट आदि लगा लेते हैं जोकि नहीं लगाना चाहिए. लोग बर्फ भी लगाते हैं जिसे लगाने में कोई बुराई तो नहीं है लेकिन पानी से जितना फायदा पहुंचता है उतना बर्फ से नहीं पहुंचता. बर्फ से रक्त का थक्का बन सकता है. हां, यदि उस बर्फ को किसी पौलिथीन में डाल कर सिंकाई की जाए तो फायदा है.

5. पानी और बर्फ से होता यह है कि जलने वाले स्थान पर जो रैडनेस है उस की इन्फ्लेमैंशन को ये दोनों कम करते हैं.

6. बच्चों में अकसर पटाखों से या तो हाथ जलता है या चेहरा. यदि ज्यादा जला है तो प्लास्टिक रैप से जले स्थान को कवर कर अस्पताल पहुंचा जाए और किसी क्वालिफाइड डाक्टर से ट्रीटमैंट कराया जाए. प्लास्टिक रैप से सैकंडरी इन्फैक्शन होने की संभावना कम हो जाती है.

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6. प्लास्टिक रैप जोकि आसानी से मैडिकल की दुकान पर मिल जाता है, घाव पर ढीला रैप करने से चिपकता नहीं है और इस से घाव के इन्फैक्टेड होने का खतरा भी कम हो जाता है.

7. यदि जलने का अनुपात बहुत ज्यादा है, बहुत सारे छाले हो गए हैं या स्किन काफी ज्यादा जल गई है तो जल्द से जल्द अस्पताल में  भरती कराने की सलाह है. क्योंकि एंटीबायोटिक तो चाहिए ही, पेनकिलर भी चाहिए, ये सब रोगी की मेजर जरूरत हैं.

8. एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जब पटाखों का धुआं आंखों में जाए और इरिटेशन होने लगे तो उसे भी ठंडे पानी से साफ कर लेना चाहिए. इस से फायदा मिलता है. चेहरे पर पटाखों के धुएं और धूल से होने वाली किसी भी तरह की एलर्जी को एवौएड करने के लिए साबुन और पानी से मुंह को अच्छी तरह धोएं. इस के अलावा कुछ न करें.

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9. स्किन जलने पर यदि छाला हो तो उसे फोड़ने की कोशिश न करें, वह एक से दो दिन में खुद ही बैठ जाएगा. छाले फोड़ने से स्किन ओपन हो जाती है और उस में इन्फैक्शन हो जाता है. कभीकभार जब छाला काफी बड़ा हो और उस में पानी भर जाए तो उसे फोड़ देने से पानी निकल जाता है और स्किन उस के ऊपर बैठ जाती है जिस से इन्फैक्शन के चांसेस कम होते हैं.

प्यार या समझौता : भाग 1

लेखिका- ममता परनामी

कहने को निखिल मुझ से बहुत प्यार करते हैं. सभी कहते हैं कि निखिल जैसा पति संयोग से मिलता है. घर में सभी सुखसुविधाएं हैं. मैं जो चाहती हूं वह मुझे मिल जाता है लेकिन लोग यह क्यों नहीं समझते कि मैं इनसान हूं. मुझे घर में सजी रखी वस्तुओं से ज्यादा छोटेछोटे खुशी के पलों की जरूरत है.

शादी के इतने साल बाद भी मुझे यह याद नहीं पड़ता कि कभी निखिल ने मेरे पास बैठ कर मेरा हाथ पकड़ कर यह पूछा हो कि मेघा, तुम खुश तो हो या मैं तुम्हें उतना समय नहीं दे पाता जितना मुझे देना चाहिए लेकिन फिर भी मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं.

निखिल और मुझ में हमेशा एक दूरी ही रही. मैं अपने उस दोस्त को निखिल में कभी नहीं देख पाई जो एक लड़की अपने पति में ढूंढ़ती है. मैं कभी अपने मन की बात निखिल से नहीं कह पाई. मुझे निखिल के रूप में हमसफर तो मिला लेकिन साथी कभी नहीं मिला. इतने अपनों के होते हुए भी आज मैं बिलकुल अकेली हूं. जिस रिश्ते में मैं ने प्यार की उम्मीद की थी, मेरे उसी रिश्ते में इतनी दूरी है कि एक समुद्र भी छोटा पड़ जाए.

मैं अपने इस रिश्ते को कभी प्यार का नाम नहीं दे पाई. मेरे लिए वह बस, एक समझौता ही बन कर रह गया जिसे मुझे निभाना था…चाहे घुटघुट कर ही सही.

मैं ने धीरेधीरे अपने हालात से समझौता करना सीख लिया था. अपने आसपास से छोटीछोटी खुशियों के पल समेट कर उन्हीं को अपने जीने की वजह बना लिया था. मैं ने इस के लिए एक स्कूल में नौकरी कर ली थी, जहां बच्चों की छोटीछोटी खुशियों में मैं अपनी खुशियां भी ढूंढ़ लेती थी. बच्चों की प्यारी और मासूमियत भरी बातें मुझे जीने का हौसला देती थीं.

किसी इनसान के पास अगर उस के अपनों का प्यार होता है तो वह बड़ी से बड़ी मुसीबत का सामना भी आसानी से कर लेता है, क्योंकि उसे पता होता है कि उस के अपने उस के साथ हैं. लेकिन उसी प्यार की कमी उसे अंदर से तोड़ देती है, बिखरने लगता है सबकुछ…मैं भी टूट कर बिखर रही थी लेकिन मेरे अंदर का टूटना व बिखरना किसी ने नहीं देखा.

जिंदगी का यह सफर सीधा चला जा रहा था कि अचानक उस में एक मोड़ आ गया और मेरी जिंदगी ने एक नई राह पर कदम रख दिया. मेरे दिल की सूखी जमीन पर जैसे कचनार के फूल खिलने लगे और उसी के साथ मेरे अरमान भी महकने लगे. स्कूल में एक नए टीचर समीर की नियुक्ति हुई. वह विचारों से जितने सुलझे थे उन का व्यक्तित्व भी उतना ही आकर्षक था. उन से बात कर के दिल को न केवल बहुत राहत मिलती थी बल्कि वक्त का भी एहसास नहीं रहता था. समीर कहा करते थे कि इनसान जो चाहता है उसे हासिल करने की हिम्मत खुद उस में होनी चाहिए.

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एक दिन बातों ही बातों में समीर ने पूछ लिया, ‘मेघा, तुम इतनी अलगअलग सी क्यों रहती हो? किसी से ज्यादा बात भी नहीं करती हो. क्यों तुम ने अपने अंदर की उस लड़की को कैद कर के रखा है, जो जीना चाहती है? क्या तुम्हारा दिल नहीं करता कि उड़ कर उस आसमान को छू लूं…एक बार अपने अंदर की उस लड़की को आजाद कर के देखो, जिंदगी कितनी खूबसूरत है.’

समीर की बातें सुनने के बाद मुझे लगने लगा था कि मेरा भी कुछ अस्तित्व है और मुझे भी अपनी जिंदगी खुशियों के साथ जीने का हक है. यों घुटघुट कर जीने के लिए मैं ने जन्म नहीं लिया है. इस तरह मुझे मेरे होने का एहसास दिया समीर ने और मुझे लगने लगा था जैसे मुझे वह दोस्त व साथी मिल गया है जिस की मुझे तलाश थी, जिसे मैं ने हमेशा निखिल में ढूंढ़ा लेकिन मुझे कभी नहीं मिला.

मैं फिर से सपने देखना चाहती थी लेकिन मन में एक डर था कि यह सही नहीं है. समीर की आंखों में एक कशिश थी जो मुझे मुझ से ही चुराती जा रही थी. उन की आंखों में डूब जाने का मन करता था और मैं कहीं न कहीं अपने को बचाने की कोशिश कर रही थी लेकिन असफल होती जा रही थी. मन कह रहा था कि सभी पिंजरे तोड़ कर खुले आकाश में उड़ जाऊं पर इस दुनिया की रस्मोरिवाज की बेडि़यां, जिन में मैं इस कदर जकड़ी हुई थी कि उन्हें तोड़ने की हिम्मत नहीं थी मुझ में.

मेरे अंदर एक द्वंद्व चल रहा था. दिल और दिमाग की लड़ाई में कभी दिल दिमाग पर हावी हो जाता तो कभी दिमाग दिल पर. कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं. समीर का बातें करतेकरते मेरे हाथ को पकड़ना, मुझे छूने की कोशिश करना, मुझे अच्छा लगता था. उन के कहे हर एक शब्द में मुझे अपनी जिंदगी आसान करने की राह नजर आती थी.

मेरा मन करने लगा था कि मैं दुनिया को उन की नजरों से देखूं, उन के कदमों से चल कर अपनी राहें चुन लूं. भुला दूं कि मेरी शादी हो चुकी है. पता नहीं वह सब क्या था जो मेरे अंदर चल रहा था. एक अजीब सी कशमकश थी. अपने अंदर की इस हलचल को छिपाने की मैं कोशिश करती रहती थी. डरती थी कि कहीं मेरे जज्बात मेरी आंखों में नजर न आ जाएं और कोई कुछ समझे, खासकर समीर को कुछ समझ में आए.

समीर जब भी मेरे सामने होते थे तो मन करता था कि उन्हें अपलक देखती रहूं और यों ही जिंदगी तमाम हो जाए. उन की आंखों में डूब जाने का मन करता था. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं और क्या न करूं. दिमाग कहता था कि मुझे समीर से दूरी बना कर रखनी चाहिए और दिल उन की ओर खिंचता ही जा रहा था. दिमाग कहता था कि नौकरी ही छोड़ दूं और दिल मेरे कदमों को खुद ब खुद उस राह पर डाल देता था जो समीर की तरफ जाती थी. बहुत सोचने के बाद मैं ने दिमाग की बात मानने में ही भलाई समझी और फैसला किया कि अपने बढ़ते कदमों को रोक लूंगी.

मैं ने समीर से कतराना शुरू कर दिया. अब मैं बस, काम की ही बात करती थी. समीर ने कई बार मुझ से बात करने की कोशिश की लेकिन मैं ने टाल दिया. वह परेशानी जो अब तक मैं ने अपने मन में छिपा रखी थी अब समीर की आंखों में दिखने लगी थी और मैं अपनेआप को यह कह कर समझाने लगी थी कि क्या हुआ अगर समीर मेरे पास नहीं हैं, कम से कम मेरे सामने तो हैं. क्या हुआ अगर हमसफर नहीं बन सकते, मगर वह मेरे साथ हमेशा रहेंगे मेरी यादों में…मेरे जीने के लिए तो इतना ही काफी है.

मैं अपने विचारों में खोई समीर से दूर, बहुत दूर जाने के मनसूबे बना रही थी कि अगले दिन समीर स्कूल नहीं आए. मेरी नजरें उन्हें ढूंढ़ रही थीं लेकिन किसी से पूछने की हिम्मत नहीं थी क्योंकि जब अपने मन में ही चोर हो तो सारी दुनिया ही थानेदार नजर आने लगती है. किसी तरह वह दिन बीता पर घर आने के बाद भी अजीब सी बेचैनी छाई हुई थी. अगले दिन भी समीर स्कूल नहीं आए और इसी तरह 4 दिन निकल गए. मेरी बेचैनी दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही थी फिर बहुत हिम्मत कर के सोचा कि फोन ही कर लेती हूं. कुछ तो पता चलेगा.

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मैं ने फोन किया तो उधर से सीमा ने फोन उठाया. मैं ने उस से पूछा, ‘‘अरे, सीमा तुम, कब आईं होस्टल से?’’

‘‘दीदी, मुझे तो आए 2 दिन हो गए,’’ सीमा ने बताया.

‘‘सब ठीक तो है न…समीरजी भी 4 दिन से स्कूल नहीं आ रहे हैं.’’

‘‘दीदी, इसीलिए तो मैं यहां आई हूं. भैया की तबीयत ठीक नहीं है. उन्हें बुखार है और मेरी बातों का उन पर कोई असर नहीं हो रहा. न तो ठीक से कुछ खा रहे हैं और न ही समय पर दवा ले रहे हैं. मैं तो कहकह कर थक गई. आप ही आ कर समझा दीजिए न.’’

दीवाली 2019: ऐसे मनाते हैं दीवाली बौलीवुड स्टार्स

क्या आप जानते हैं, आपके फेवरेट बौलीवुड स्टार्स दीवाली कैसे सेलिब्रेट करते हैं. तो चलिए आपको बताते हैं, बौलीवुड में कैसे दीवाली मनाई जाती है.

‘‘दिवाली पर आप पार्टियां करें, मिठाइयां बांटे, दोस्तों से मिले, हंसी मजाक कर खुशी बांटे..’’

शमा सिकंदर

मैं बहुत धार्मिक इंसान नहीं हूं. बल्कि मैं बहुत ही ज्यादा स्प्रिच्युअल इंसान हूं. मुझे लगता है कि इंसान को जो अच्छा लगे, उसे वही करना चाहिए. पटाखे वगैरह मुझे पसंद नहीं. वैसे भी दिवाली में जो पौलूशन/ प्रदूषण व गंदगी होती है, वह मेरी समझ से परे है. ऐसा दुनिया के किसी कोने में नहीं होता, जो हमारे यहां होता है. हम खुद अपने ही घर के अंदर इतना धुआं व गंदगी करते है, वह सही नही है. यह बात मुझे बहुत बुरी लगती है. इसकी बजाय आप पार्टियां करें, मिठाइयां बांटे, दोस्तों से मिले, हंसी मजाक कर खुशी मनाएं. यदि लड़की या कोई महिला सजना संवरना चाहती है, तेा जरुर करे. लेकिन अपने घर, सड़क व शहर में प्रदूषण से पूरे संसार का पर्यावरण खराब न करें. बढ़ते प्रदूषण के ही चलते  पूरी दुनिया में वातावरण खराब हो रहा है. दिवाली वाले दिन इतना धुंआ और प्रदूषण हो जाता है कि सांस लेने में तकलीफ होने लगती है. मुझे तो सांस लेने के लिए मास्क लगाना पड़ता है. इसके अलावा बेजुबान जानवर तो अपनी जिंदगी तक खो देते हैं. मेरे कितने दोस्तों ने अपने पालतू जानवरों को खोया है. दिवाली के दिन पटाखों की आवाज व धुएं के चलते जानवरों का दम घुट जाता है. इसका जिम्मेदार तो हम ही हैं ? तो हमें ही एक इंसान के तौर पर यह जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी कि भाई कोई भी त्यौहार हो, उसका मकसद बर्बादी नहीं होना चाहिए. उसका मकसद खुशी का माहौल बनाना और एक दूसरे से प्रेम मोहब्बत होना चाहिए.

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‘‘मुझे इस दिवाली कुछ नही करना है..’’

आथिया शेट्टी

इस दिवाली मुझे कुछ नहीं करना.पता नहीं क्यों? पर दिवाली का माहौल ही नहीं है. ऐसा लग रहा है कि कोई त्यौहार आ ही नहीं रहा. मुझे लगता है दिवाली में शोर शराबा नही होना चाहिए. पटाखे नहीं फोड़ने चाहिए. परिवार और फ्रेंड्स के साथ खाना खाना चाहिए.

‘‘इसमें रोशनी के साथ रंगोली के विभिन्न रंग भी होते हैं.’’

नील नितिन मुकेश

यह एक ऐसा त्यौहार है,जो पूरे परिवार को इकट्ठा करता है और खुशियां बांटता है.यह रंगीन और  उजाले के साथ एक माहौल से जोड़ देता है.इसमें रोषनी के साथ रंगोली के विभिन्न रंग भी होते हैं. दिवाली के दिन पूरा परिवार एक साथ इकट्ठा होता है. हम लोग एक साथ बहुत सारा समय बिताते हैं.हम लोग साथ मिलकर दिवाली का त्यौहार मनाते हैं.

‘‘मुझे दिवाली का इंतजार रहता है..’’

आलिया भट्ट

दिवाली रोशनी और उजाले का त्योहार है. मुझे रोशनी से ज्यादा प्यार है, तो हमें अपने घर को दीपों और फेयरी लाइट्स से सजाने के लिए अवसर का इंतजार रहता है. इसलिए मुझे दिवाली के त्योहार की उत्सुकता से प्रतीक्षा रहती है. मुझे अपने घर को डेकोरेटिव लाइट्स से सजाने का बहुत शौक है. जब रात के अंधेरे में पूरा घर लाइट्स से जगमग हो, तो बहुत सुंदर लगता है. घर की सफाई का काम तो मेरी मां ही करती हैं. मैं अपना वार्डरोब जरुर दिवाली से पहले संवार लेती हूं. दिवाली के दिन सुबह हम करण जौहर के आफिस में संपन्न होने वाली दिवाली की पूजा में शामिल होने के लिए जाते हैं. रात को दीवाली की पार्टी और गेट टुगेदर को इंज्वाय करती हूं. मैं पटाखे फोड़ने के सख्त खिलाफ हूं. मैं ठहरी पशु प्रेमी. पटाखों की आवाज से पशुओं को तकलीफ होती है. इसके अलावा पटाखे फोड़ने से निकलने वाला धुआं प्रदूषण फैलाता है, जिससे लोगों को सांस लेने में तकलीफ होती है.

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‘‘मुझे ताश के पत्ते खेलना नही आता..’’

अदा शर्मा

अभी तो मैं अपनी एक नवंबर को प्रदर्षित होने वाली फिल्म ‘‘बाय पास रोड’’ को प्रमोट कर रही हूं. उम्मीद करती हूं कि लोग मेरी फिल्म ‘‘बायपास रोड’’ को देखें. मेरी तरफ से यही दिवाली का तोहफा सभी के लिए होगा. पर दिवाली के त्योहार पर ताश के पत्ते का जुआ खेलना गलत है. मुझे ताश के कार्ड खेलना तो आता नहीं हैं. मैं पटाखे जलाती नहीं हूं. क्योंकि मुझे जानवरों से बहुत प्यार है. मैं हर इंसान से कहना चाहूंगी कि उन्हें पटाखे नहीं जलाना चाहिए. क्योंकि जानवरों को पटाखों से बहुत डर लगता है. उनके लिए यह बम की तरह होता है. पटाखों को फोड़ना गलत मानती हूं.’’

‘‘पटाखों से दूर..’’

एकता जैन

फिल्म अभिनेत्री और टिकटौक स्टार एकता जैन दिवाली के पर्व को लेकर कहती हैं- ‘‘यूं तो मुझे हर पर्व अच्छे लगते हैं. मगर दिवाली का पर्व मुझे कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता है. दिवाली से पहले घर की सफाई, उसके बाद पूजा पाठ करके मन की सफाई, और चारो तरफ दिए की रोशनी बहुत अच्छी लगती है. फिर इतने सारे पकवान, मिठाई का पूरा माहौल प्रसन्नचित कर देता है. मुझे यही बात सबसे अधिक आनंद प्रदान करती है. मगर मुझे पटाखे फोड़ना पसंद नहीं. इससे बहुत ज्यादा प्रदूषण होता है. जिससे हर इंसान और हर जानवर को तकलीफ होती है. मैं तो हर किसी से एक ही बात कहती हूं कि दिवाली में सिर्फ दिए जलाएं, पटाखे नहीं.

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