ज्यादातर लोगों का मानना है कि बिना पटाखों के दीवाली अधूरी होती है, लेकिन लोग यह नहीं समझते कि पटाखों से निकलने वाला धुआं न केवल हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी बहुत हानिकारक है. पटाखे में भरा बारूद अस्थमा के रोगियों के लिए जानलेवा होता है. सर्वोच्च न्यायालय ने अपने हाल के फैसले में पटाखों का प्रयोग करने की इजाजत दीवाली की रात आठ से दस बजे के बीच दी है. मात्र दो घंटे. लेकिन अदालत का फैसला मानने वाले कम ही हैं. दशहरे के बाद से ही देश में पटाखे जलने शुरू हो जाते हैं. प्रदूषण के कारण फेस्टिव सीजन का सारा मजा खत्म हो जाता है. बाजारों में लोग नाक पर मास्क और रूमाल बांधे नजर आते हैं. बच्चे और बुजुर्ग खांस-खांस कर परेशान होते हैं.

रोशनी का त्योहार दीवाली अपने साथ बहुत सारी खुशियां लेकर आता है, लेकिन दमा, सीओपीडी या एलर्जिक रहाइनिटिस से पीड़ित मरीजों की समस्या इन दिनों काफी बढ़ जाती है. दमा के मरीज या आम व्यक्तियों पर पटाखों के धुएं का असर काफी बुरा होता है. पटाखों में मौजूद छोटे-छोटे बारूद के कण सेहत पर बुरा असर डालते हैं, जिसका असर फेफड़ों पर पड़ता है. पटाखों के धुंए से फेफड़ों में सूजन आ सकती है, जिससे फेफड़े अपना काम ठीक से नहीं कर पाते और हालात यहां तक भी पहुंच सकते हैं कि आर्गेन फेलियर और मौत तक हो सकती है. ऐसे में दमा और सांस के मरीज धुएं से बचने की कोशिश करें.

पटाखों के धुएं की वजह से अस्थमा या दमा का अटैक आ सकता है. हानिकारक विषाक्त कणों के फेफड़ों में पहुंचने से ऐसा हो सकता है, जिससे व्यक्ति को जान का खतरा भी हो सकता है. ऐसे में जिन लोगों को सांस की समस्याएं हों, उन्हें अपने आप को प्रदूषित हवा से बचा कर रखना चाहिए.

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