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प्यार अपने से : भाग 2

गोपाल और रिया दोनों असलियत से अनजान थे. दोनों के मातापिता भी उन की प्रेम कहानी से वाकिफ नहीं थे. उन्होंने पढ़ाई के बाद अपना घर बसाने का सपना देख रखा था. साढ़े 4 साल बाद दोनों ने अपनी एमबीबीएस पूरी कर ली. आगे उसी कालेज में दोनों ने एक साल की इंटर्नशिप भी पूरी की.

रिया काफी समझदार थी. उस की शादी के लिए रिश्ते आने लगे, पर उस ने मना कर दिया और कहा कि अभी वह डाक्टरी में पोस्ट ग्रेजुएशन करेगी.

लक्ष्मी कुछ दिनों से बीमार चल रही थी. इसी बीच सोमेन भी हजारीबाग में थे. उस ने सोमेन से कहा, ‘‘बाबूजी, मेरा अब कोई ठिकाना नहीं है. आप गोपाल का खयाल रखेंगे?’’

सोमेन ने समझाते हुए कहा, ‘‘अब गोपाल समझदार डाक्टर बन चुका है. वह अपने पैरों पर खड़ा है. फिर भी उसे मेरी जरूरत हुई, तो मैं जरूर मदद करूंगा.’’

कुछ दिनों बाद ही लक्ष्मी की मौत हो गई.

गोपाल और रिया दोनों ने मैडिकल में पोस्ट ग्रैजुएशन का इम्तिहान दिया था. वे तो बीएचयू में पीजी करना चाहते थे, पर वहां उन्हें सीट नहीं मिली. दोनों को रांची मैडिकल कालेज आना पड़ा.

उन में प्रेम तो जरूर था, पर दोनों में से किसी ने भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया था. दोनों ने तय किया कि जब तक उन की शादी नहीं होती, इस प्यार को प्यार ही रहने दिया जाए.

रिया की मां संध्या ने एक दिन उस से कहा, ‘‘तुम्हारे लिए अच्छेअच्छे घरों से रिश्ते आ रहे हैं. तुम पोस्ट ग्रेजुएशन करते हुए भी शादी कर सकती हो. बहुत से लड़केलड़कियां ऐसा करते हैं.’’

रिया बोली, ‘‘करते होंगे, पर मैं नहीं करूंगी. मुझ से बिना पूछे शादी की बात भी मत चलाना.’’

‘‘क्यों? तुझे कोई लड़का पसंद है, तो बोल न?’’

‘‘हां, ऐसा ही समझो. पर अभी हम दोनों पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे रहे हैं. शादी की जल्दी किसी को भी नहीं है. पापा को भी बता देना.’’

संध्या ने कोई जवाब नहीं दिया. इसी बीच एक बार सोमेन के दोस्त ने उन्हें खबर दी कि उस ने रिया और गोपाल को एकसाथ सिनेमाघर से निकलते देखा है.

इस के कुछ ही दिनों बाद संध्या के रिश्ते के एक भाई ने बताया कि उस ने गोपाल और रिया को रैस्टौरैंट में लंच करते देखा है.

सोमेन ने अपनी पत्नी संध्या से कहा, ‘‘रिया और गोपाल दोनों को कई बार सिनेमाघर या होटल में साथ देखा गया है. उसे समझाओ कि उस के लिए अच्छे घरों से रिश्ते आ रहे हैं. सिर्फ उस के हां कहने की देरी है.’’

संध्या बोली, ‘‘रिया ने मुझे बताया था कि वह गोपाल से प्यार करती है.’’

सोमेन चौंक पड़े और बोले, ‘‘क्या? रिया और गोपाल? यह तो बिलकुल भी नहीं हो सकता.’’

अगले दिन सोमेन ने रिया से कहा, ‘‘बेटी, तेरे रिश्ते के लिए काफी अच्छे औफर हैं. तू जिस से बोलेगी, हम आगे बात करेंगे’’

रिया ने कहा, ‘‘पापा, मैं बहुत दिनों से सोच रही थी कि आप को बताऊं कि मैं और गोपाल एकदूसरे को चाहते हैं. मैं ने मम्मी को बताया भी था कि पीजी पूरा कर के मैं शादी करूंगी.’’

‘‘बेटी, कहां गोपाल और कहां तुम? उस से तुम्हारी शादी नहीं हो सकती, उसे भूल जाओ. अपनी जाति के अच्छे रिश्ते तुम्हारे सामने हैं.’’

‘‘पापा, हम दोनों पिछले 5 सालों से एकदूसरे को चाहते हैं. आखिर उस में क्या कमी है?’’

‘‘वह एक आदिवासी है और हम ऊंची जाति के शहरी लोग हैं.’’

‘‘पापा, आजकल यह जातपांत, ऊंचनीच नहीं देखते. गोपाल भी एक अच्छा डाक्टर है और उस से भी पहले बहुत नेक इनसान है.’’

सोमेन ने गरज कर कहा, ‘‘मैं बारबार तुम्हें मना कर रहा हूं… तुम समझती क्यों नहीं हो?’’

‘‘पापा, मैं ने भी गोपाल को वचन दिया है कि मैं शादी उसी से करूंगी.’’

उसी समय संध्या भी वहां आ गई और बोली, ‘‘अगर रिया गोपाल को इतना ही चाहती है, तो उस से शादी करने में क्या दिक्कत है? मुझे तो गोपाल में कोई कमी नहीं दिखती है.’’

सोमेन चिल्ला कर बोले, ‘‘मेरे जीतेजी यह शादी नहीं हो सकती. मैं तो कहूंगा कि मेरे मरने के बाद भी ऐसा नहीं करना. तुम लोगों को मेरी कसम.’’

रिया बोली, ‘‘ठीक है, मैं शादी ही नहीं करूंगी. तब तो आप खुश हो जाएंगे.’’

सोमेन बोले, ‘‘नहीं बेटी, तुझे शादीशुदा देख कर मुझे बेहद खुशी होगी. पर तू गोपाल से शादी करने की जिद छोड़ दे.’’

‘‘पापा, मैं ने आप की एक बात मान ली. मैं गोपाल को भूल जाऊंगी. परंतु आप भी मेरी एक बात मान लें, मुझे किसी और से शादी करने के लिए मजबूर नहीं करेंगे.’’

ये बातें फिलहाल यहीं रुक गईं. रात में संध्या ने पति सोमेन से पूछा, ‘‘क्या आप बेटी को खुश नहीं देखना चाहते हैं? आखिर गोपाल में क्या कमी है?’’

सोमेन ने कहा, ‘‘गोपाल में कोई कमी नहीं है. उस के आदिवासी होने पर भी मुझे कोई एतराज नहीं है. वह सभी तरह से अच्छा लड़का है, फिर भी…’’

रिया को नींद नहीं आ रही थी. वह भी बगल के कमरे में उन की बातें सुन रही थी. वह अपने कमरे से बाहर आई और पापा से बोली, ‘‘फिर भी क्या…? जब गोपाल में कोई कमी नहीं है, फिर आप की यह जिद बेमानी है.’’

सोमेन बोले, ‘‘मैं नहीं चाहता कि तेरी शादी गोपाल से हो.’’

‘‘नहीं पापा, आखिर आप के न चाहने की कोई तो ठोस वजह होनी चाहिए. आप प्लीज मुझे बताएं, आप को मेरी कसम. अगर कोई ऐसी वजह है, तो मैं खुद ही पीछे हट जाऊंगी. प्लीज, मुझे बताएं.’’

सोमेन बहुत घबरा उठे. उन को पसीना छूटने लगा. पसीना पोंछ कर अपनेआप को संभालते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यह शादी इसलिए नहीं हो सकती, क्योंकि…’’

वे बोल नहीं पा रहे थे, तो संध्या ने उन की पीठ सहलाते हुए उन को हिम्मत दी और कहा, ‘‘हां बोलिए आप, क्योंकि… क्या?’’

सोमेन बोले, ‘‘तो लो सुनो. यह शादी नहीं हो सकती है, क्योंकि गोपाल रिया का छोटा भाई है.

‘‘जब मैं हजारीबाग में अकेला रहता था, तब मुझ से यह भूल हो गई थी.’’

रिया और संध्या को काटो तो खून नहीं. दोनों हैरानी से सोमेन को देख रही थीं. रिया की आंखों से आंसू गिरने लगे. कुछ देर बाद वह सहज हुई और अपने कमरे में चली गई.

रात में ही उस ने गोपाल को फोन कर के कहा, ‘‘गोपाल, क्या तुम मुझ से सच्चा प्यार करते हो?’’

गोपाल बोला, ‘क्या इतनी रात गए यही पूछने के लिए फोन किया है?’

‘‘तुम ने सुना होगा कि प्यार सिर्फ पाने का नाम नहीं है, इस में कभी खोना भी पड़ता है.’’

गोपाल ने कहा, ‘हां, सुना तो है.’’

‘‘अगर यह सही है, तो तुम्हें मेरी एक बात माननी होगी. बोलो मानोगे?’’ रिया बोली.

गोपाल बोला, ‘यह कैसी बात कर रही हो आज? तुम्हारी हर जायज बात मैं मानूंगा.’

‘‘तो सुनो. बात बिलकुल जायज  है, पर मैं इस की कोई वजह नहीं बता सकती हूं और न ही तुम पूछोगे. ठीक है?’’

‘ठीक है, नहीं पूछूंगा. अब बताओ तो सही.’

रिया बोली, ‘‘हम दोनों की शादी नहीं हो सकती. यह बिलकुल भी मुमकिन नहीं है. वजह जायज है और जैसा कि मैं ने पहले ही कहा है कि वजह न मैं बता सकती हूं, न तुम पूछना कभी.’’

गोपाल ने पूछा, ‘तो क्या हमारा प्यार झूठा था?’

रिया बोली, ‘‘प्यार सच्चा है, पर याद करो, हम ने तय किया था कि शादी नहीं होने तक हमारा प्यार ‘अधूरा प्यार’ रहेगा. बस, यही समझ लो.

‘‘अब तुम कहीं भी शादी कर लो, पर मेरातुम्हारा साथ बना रहेगा और तुम चाहोगे भी तो भी मैं कभी भी तुम्हारे घर आ धमकूंगी,’’ इतना कह कर रिया ने फोन रख दिया.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: क्या कार्तिक अपने बेटे को बचा पाएगा ?

छोटे पर्दे का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में इन दिनों काफी इमोशनल ट्विस्ट एंड टर्न देखने को मिल रहे है. पिछले एपिसोड में आपने देखा कि कैरव अपने पापा से नफरत करने लगा है. कैरव को लगता है कि कार्तिक उसकी मम्मी से नफरत करता है.

इसी कारण वह कार्तिक से दूर जाने लगता है. तो उधर कार्तिक अपने बेटे के जन्मदिन के लिए एक शानदार पार्टी का आयोजन करता है. बर्थपार्टी के दौरान ही कैरव घर से भाग जाएगा और सड़क पर चला जाएगा.

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इसके बाद पूरे सिंघानिया परिवार में हाहाकार मच जाएगा.वैसे कैरव की इस हरकत ने कार्तिक और नायरा दोनों को ही हैरानी में डाल दिया है. शो के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि  कैरव अपने पापा से पहले की तरह प्यार कर पाएगा या नहीं.

या फिर कार्तिक और नायरा अपने बेटे की इस गलतफहमी को दूर करने के लिए एक साथ कोई बड़ा कदम उठाएं. फिलहाल दर्शक इस शो के ट्विस्ट एंड टर्न से भरपूर मनोरंजन कर रहे हैं.

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शायद यही सच है : भाग 4

कभीकभी परिस्थिति या अपरिहार्य कारणों से जो स्त्रीपुरुष अविवाहित रह जाते हैं वे ऊपरी तौर पर बेशक खुश रहने या सहज होने की बात करते हों लेकिन भीतर से अकेले, भयभीत, तनावग्रस्त व अवसाद से भरे रहते हैं. खासतौर पर अधेड़ावस्था उन्हें कुंठित, तनावग्रस्त व तुनकमिजाज बना देती है. असुरक्षा की भावना के चलते वे भीतर से भयभीत भी रहते हैं. जीवन में किस घड़ी कौन सी मुसीबत, दुर्घटना, बीमारी आ जाए क्या पता? उस समय उन की देखभाल कौन करेगा? इस तरह के सवाल उन्हें घेरे रहते हैं. ‘मनुष्य के जीवन में कई ऐसे अवसर आते हैं, कई ऐसे खुशी के मौके आते हैं जिन्हें वह किसी के संग बांटना चाहता है. दूर क्यों जाएं अपने दफ्तर की बातें, कोई दिलचस्प घटना या तनाव भी अपने साथी को बताते हैं, इस से मन हलका हो जाता है. मैं स्वयं अपने अकेलेपन को शिद्दत के साथ महसूस करता हूं. बेटे विदेश में बस गए हैं, अच्छी नौकरियां कर रहे हैं. पत्नी के निधन के बाद जिंदगी बोझिल सी लगती है. जितने समय कामकाज में व्यस्त रहता हूं जीवन सहज लगता है लेकिन जब काम से फारिग हो जाता हूं तो अकेले समय काटना बड़ी मुसीबत बन जाता है. पता नहीं आप ने इतना लंबा समय कैसे अकेले काट लिया? अच्छा, अब मैं चलता हूं. अपनी सेहत का खयाल रखना.’ अगले सप्ताह से भारती दफ्तर जाने लगी. मैनेजर साहब की बातों का उस पर इतना असर पड़ा कि अब सचमुच उसे अकेलापन काटने लगता. कभीकभी सोचती कि मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? मैं किस के लिए जी रही हूं? किस के लिए धन जमा कर रही हूं? अतीत का विश्लेषण करने पर महसूस होता शायद अपनी जिद, अडि़यल स्वभाव के कारण कुछ गलत फैसले ले कर अपने जीवन को एकाकी, रसहीन, उद्देश्यहीन बना लिया. मां मेरे सुखी जीवन के, खुशहाल परिवार के सपने देखतेदेखते दुनिया से बिदा हो गईं. मैं ने किसी की नहीं सुनी. केवल अपने कैरियर, अपनी इच्छाओं के बारे में ही सोचती रही. अपने निर्णय की गलती का एहसास अब हो रहा था.

कैसे काटेगी इतनी लंबी जिंदगी अकेले? और इसी के साथ भारती ने बंद आंखें खोलीं तो उस का वर्तमान उस के सामने था. वह सोफे से उठी और कपड़े बदल कर बोझिल मन से बिस्तर पर जा पड़ी और अतीत की उस कड़ी को अपने आज से जोड़ कर देखने लगी. एकाएक भारती के मन में विचार कौंधा कि कहीं मैनेजर साहब ने अप्रत्यक्ष रूप से मेरे सामने शादी का प्रस्ताव तो नहीं रखा था? दिल और दिमाग के बीच तर्कवितर्क होने लगा. दिल कहता कि इस में हर्ज ही क्या है…मैनेजर साहब इतने भले व नेक इनसान हैं कि उन के साथ जिंदगी बिताई जा सकती है. दिमाग कहता कि तुम अपनेआप ही सपने बुनने लगी हो. क्या उन्होंने तुम्हारे सामने कोई प्रस्ताव रखा? फिर इस उम्र में शादी करोगी तो लोग क्या कहेंगे…दिल कहता कि लोगों का क्या है, कहने दो. वैसे पुरुष तो 60 वर्ष की उम्र में भी शादी कर ले तो समाज विरोध नहीं करता, फिर मैं तो अभी 50 की हूं. रही बात प्रस्ताव की तो हो सकता है कि वे भी मन ही मन इस की योजना बना रहे हों. दिमाग कहता कि तुम निरंकुश, आजादी की हिमायती शादी के बंधन में स्वयं को बांध पाओगी, वह भी उस पुरुष के साथ जो लंबे समय तक अपने बीवीबच्चों के साथ खुशहाल जीवन जी चुका है. दिल कहता, अब तो उसे भी साथी की जरूरत है, सामंजस्य तो दोनों को ही बैठाना पड़ेगा. अगर मुझे शेष बची जिंदगी चैन के साथ बितानी है तो कुछ समझौते तो करने ही पड़ेंगे. जिद छोड़ कर दिमाग कहता, ‘अगर मैनेजर साहब के साथ पटरी न बैठ पाई तो क्या करोगी? दिल ने कहा, जब दोनों को एकदूसरे की जरूरत है तो पटरी बैठ ही जाएगी. अब तक मैं इस गलतफहमी में जी रही थी कि मैं अकेली जी सकती हूं, किसी के सहारे की मुझे जरूरत नहीं. पर अब मेरी चेतना जागृत हो चुकी है. जीवन में समझौते करने ही पड़ते हैं.’ भारती इंतजार करती रही लेकिन मैनेजर साहब की ओर से कोई प्रस्ताव, कोई पहल नहीं हुई. कुछ समय बीत गया. अब कुछ ही समय रह गया था मैनेजर साहब की अवकाश प्राप्ति में. भारती चाह रही थी उन की तरफ से बात शुरू हो, लेकिन उस के चाहने से क्या होना था.

एक दिन उन्होंने बातचीत के दौरान कह ही दिया, ‘‘मिस भारती, अब मैं तो 2-3 महीने में सेवानिवृत्त हो कर चला जाऊंगा. जाने से पहले…’’ ‘‘आप की भविष्य की क्या योजना है?’’ उन की बात को बीच में ही काटते हुए भारती ने पूछा. ‘‘उम्र के इस पड़ाव में अकेले रहना बहुत कष्टप्रद होता है. मैं ने काफी सोचविचार कर यह फैसला लिया है कि बेटों के पास चला जाऊंगा. कम से कम उन के परिवार, बच्चों के साथ एकाकीपन की समस्या तो नहीं रहेगी. जीवन में समझौते तो करने ही पड़ते हैं,’’ कहतेकहते वह कुछ मायूस हो गए. भारती को महसूस हुआ, मानो पाने से पहले ही उस का सबकुछ लुट गया हो. भीतर बेचैनी सी उठने लगी, रुलाई सी आने लगी. बड़ी कठिनाई से उस ने खुद को संयत किया. मैनेजर साहब ने उस का उतरा हुआ चेहरा देखा तो बोले, ‘‘क्या बात है, तुम बड़ी परेशान नजर आ रही हो?’’ बड़ी मुश्किल से खुद को संभालते हुए भारती झिझकते हुए बोली, ‘‘मैं…सोच रही थी…क्या ऐसा नहीं हो सकता कि दो अकेले मिल कर एक नई जिंदगी की शुरुआत कर लें.’’ मैनेजर साहब हैरानी से उछल पड़े, ‘‘भारती, यह तुम कह रही हो? क्या तुम ने अच्छी तरह सोचविचार कर लिया है? उम्र के ये 50-52 साल तुम ने अपनी मनमरजी से बिताए हैं. अब समझौते के साथ जीवन जीना तुम्हें स्वीकार होगा?’’ ‘‘मैं बहुत सोचविचार के बाद इस नतीजे पर पहुंची हूं कि अकेले जिंदगी काटनी किसी सजा से कम नहीं है. अब तक निरंकुश, स्वतंत्र, अपनी इच्छा से जिंदगी जीने को ही मैं आदर्श जीवन माने बैठी थी, पर जब जीवन की सचाइयों से वास्ता पड़ा तो मेरा मोहभंग हुआ. जीवन समझौतों का ही दूसरा नाम है, यह अब मेरी समझ में आया है और शायद यही सच भी है.’’ भारती के मुंह से यह सुनने के बाद मैनेजर साहब के चेहरे पर भी धीरेधीरे राहत के भाव उभरने लगे थे.

इश्क की फरियाद: भाग 2

इश्क की फरियाद: भाग 1

आखिरी भाग

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22 अप्रैल, 2019 की रात को गांव में सन्नाटा पसरा हआ था. लोग गरमी से बेहाल थे. कुछ तो घर के आंगन में तो कुछ अपनी छतों पर सोने का प्रयास कर रहे थे. निरूपमा भी घर के आंगन में पड़ी चारपाई पर अपने छोटे बेटे के साथ लेटी थी.

गरमी की वजह से उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी और बेचैनी से वह इधरउधर करवटें बदल रही थी. तभी उसे अचानक घर में किसी के कूदने की आहट सुनाई दी. धीरेधीरे वह काला साया उस की ओर बढ़ने लगा तो निरूपमा ने पहचानने की कोशिश करते हुए पूछा, ‘‘कौन?’’

निरूपमा की आवाज सुन कर काला साया कुछ क्षणों के लिए ठिठक गया. उस की खामोशी देख कर निरूपमा का माथा ठनका. उस ने सोचा कि वह मोहित ही होगा. उस ने पास आ कर देखा तो वह मोहित ही निकला.

उस रात मोहित काफी देर तक निरूपमा से मिन्नतें करता रहा कि वह एक बार उस की बात मान ले. किंतु निरूपमा ने उसे बुरी तरह डपट दिया. शोरशराबे से उस का पति आशाराम भी जाग गया. आशाराम ने भी मोहित को बहुत फटकारा. उस दिन मोहित को अत्यधिक विरोध सहना पड़ा, जिस से वह अपमानित हो कर तिलमिला गया.

मोहित अपनी बेइज्जती पर भलाबुरा कहता हुआ उलटे पैरों वापस लौट गया. लेकिन मोहित ने तय कर लिया था कि वह इस अपमान का बदला जरूर लेगा.

अगले दिन शाम के समय उस ने अपने भाई अंजनी, दोस्त अतुल रैदास और अब्दुल हसन को पूरी बात बताई और कहा कि वह आशाराम को रास्ते से हटाना चाहता है. भाई और दोनों दोस्तों ने उस का साथ देने की हामी भर दी.

इश्क के जुनून में अंधे मोहित ने निरूपमा का प्यार पाने के लिए अब कुचक्र रचना शुरू कर दिया. 24 अप्रैल, 2019 को शाम के वक्त आशाराम घर डलोना जाने वाली सवारियों का इंतजार कर रहा था. उसी समय मोहित अपने भाई अंजनी के साथ उस के टैंपो में आ कर बैठ गया. मोहित ने ड्राइविंग सीट पर बैठे आशाराम से पीछे वाली सीट पर आ कर बैठने को कहा.

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आशाराम मोहित साहू के पास बैठ कर बोला, ‘‘जरा सवारी ढूंढ लूं. तब तक तुम लोग बैठो, मैं अभी आता हूं.’’

‘‘नहीं यार, आज गाड़ी में कोई और नहीं चलेगा, हम तीनों ही चलेंगे. लो, पहले यह जाम पियो.’’ मोहित ने उस की तरफ शराब से भरा डिस्पोजेबल ग्लास बढ़ाते हुए कहा.

‘‘नहीं, मैं दिन में शराब नहीं पीता, सवारियों को ऐतराज होता है.’’ आशाराम टैंपो की पिछली सीट से उतरते हुए बोला.

‘‘नहीं, तुम्हें आज मेरे साथ बैठ कर तो पीनी ही पड़ेगी.’’ मोहित ने जोर देते हुए कहा.

कोई बखेड़ा खड़ा न हो जाए, यह सोच कर वह फिर पिछली सीट पर आ कर बैठ गया. पिछले दिनों हुई कहासुनी को नजरअंदाज कर के मोहित से गिलास ले कर एक ही सांस में पी गया.

इस के बाद मोहित ने उसे 2 पैग और पिलाए. मोहित आशाराम को देख कर भौचक्का रह गया. फिर उस ने अंजनी को पैसे देते हुए कहा, ‘‘ले भाई, अंगरेजी की एक बोतल और ले आ. अब हम लोग अतुल रैदास के कमरे पर चलेंगे, फिर वहीं बैठ कर पीएंगे.’’

अंजनी थोड़ी देर में दारू की बोतल ले आया. तब मोहित ने आशाराम से कहा, ‘‘अब तुम हम लोगों को अतुल रैदास के यहां छोड़ आओ, फिर अपने घर को चले जाना.’’

आशाराम उन से विवाद मोल नहीं लेना चाहता था. यही सोच कर वह उन दोनों के साथ गांव की ओर रवाना हो गया.

उस समय शाम के लगभग 7 बज चुके थे. जब वह घर नहीं पहुंचा तो उस के बडे़ बेटे सौरभ ने काल की. उस समय आशाराम ने उस से कहा था कि वह थोड़ी देर में घर आ जाएगा.

मोहित और उस के भाई अंजनी को अतुल रैदास के कमरे पर पहुंचाने के बाद जब आशाराम घर लौटने लगा तो मोहित ने आशाराम को रोक लिया और कहा कि अब हम लोग जम कर पिएंगे.

आशाराम मना नहीं कर सका. उन्होंने आशाराम को जम कर शराब पिलाई. जब वह नशे में धुत हो गया तब मोहित, अंजनी और अतुल ने आशाराम के गमछे से हाथपैर बांधने के बाद उस का गला घोंट कर हत्या कर दी.

इस के बाद उन्होंने चाकू से उस का गला रेत दिया. अब्दुल हसन भी वहां आ चुका था. अब्दुल हसन उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर का रहने वाला था. वहां रह कर वह मजदूरी करता था.

इन लोगों ने मिल कर आशाराम के शव को उसी के टैंपो में लाद कर कोराना गांव के पास बाकनाला पुल के नीचे जा कर फेंक दिया. तब तक काफी रात हो चुकी थी, जिस से लाश ठिकाने लगाते समय उन्हें किसी ने नहीं देखा.

उस का टैंपो उन्होंने अवस्थी फार्महाउस के पास खड़ा कर दिया था, जो बाद में पुलिस ने बरामद कर लिया था. सुबह होने पर लोगों ने आशाराम की लाश देखी तो पुलिस को सूचना दी गई.

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उन की निशानदेही पर पुलिस ने अतुल रैदास के कमरे से वह चाकू भी बरामद कर लिया, जिस से आशाराम का गला काटा गया था. मोहित साहू और अंजनी साहू से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

इस के बाद पुलिस अन्य आरोपियों की तलाश में जुट गई. इस के 3 दिन बाद ही अब्दुल हसन व अतुल रैदास को 30 अप्रैल, 2019 को गिरफ्तार कर लिया गया. इन्होंने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इन दोनों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने इन्हें भी जेल भेज दिया.

मातृसत्तात्मक समाज : जहां पुरुष प्रधान नहीं

पुरुषप्रधान समाज की गूंज के बीच धरती पर एक इलाका ऐसा भी है जहां स्त्रीप्रधान समाज है. धरती का वह इलाका कहीं और नहीं, बल्कि भारत में है. देश के पूर्वोत्तर राज्यों में से एक मेघालय में मातृसत्तात्मक समाज का रिवाज कायम है. ऐसा वहां की जनजातियों का नियम है.

मेघालय के अलावा देश के दूसरे सभी राज्यों में सामाजिक ढांचा पिताप्रधान है. आमतौर पर दुनियाभर के समाज पितृसत्तात्मक और पुरुषप्रधान होते हैं. मेघालय में खासी समाज की महिलाओं को जो सामाजिक अधिकार मिले हुए हैं, वैसे अधिकार देश के किसी दूसरे राज्य या समुदाय की महिलाओं को हासिल नहीं हैं. यह भी जान लें कि इस राज्य की प्राकृतिक सुंदरता विश्वव्यापी है.

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मेघालय की महिलाएं परिश्रम, सुंदरता, सरलता, सहजता और भोलेपन के लिए मशहूर हैं. खासी परिवार की सर्वेसर्वा घर की महिला होती है. खासी परिवार में सब से छोटी बेटी को विरासत का सब से ज्यादा हिस्सा मिलता है और उसी को मातापिता, अविवाहित भाईबहनों और संपत्ति की देखभाल करनी पड़ती है. छोटी बेटी को ‘खड्डोह’ कहा जाता है. वह एक ऐसी हस्ती बन जाती है जिस का घरपरिवार के हर सदस्य के लिए खुला रहता है. संपत्ति पर अधिकार मां की सब से छोटी बेटी का होता है. यह इस ‘खड्डोह’ पर निर्भर करता है कि वह अपनी मां की संपत्ति में से अपने भाईबहनों को दे या न दे.

मेघालय में मूलतया 3 जनजातियां निवास करती हैं- खासी, जयन्तिया और गारो. खासी और जयन्तिया समुदाय के मर्दऔरतों की शारीरिक बनावट गारो समुदाय से कुछ भिन्न है.

इस क्षेत्र में खासी और जयन्तिया जनजाति के लोग अधिक संख्या में हैं, जबकि गारो हिल्स जिले में गारो जनजाति की बहुलता है.

खासी समाज की एक हिंदी शिक्षिका व आकाशवाणी शिलौंग की नैमित्तिक उद्घोषिका शाइलिन खरपुरी ने बातचीत के दौरान बताया, ‘‘खासी समाज में महिला सर्वोपरि होती है और उस के निर्णय का सम्मान पुरुषों द्वारा किया जाता है. दहेज या किसी तरह का लेनेदन विवाह के समय नहीं होता है, जो इस समाज का सर्वश्रेष्ठ रिवाज माना जाता है. संतानें अपनी मां की उपाधि अपने नाम के साथ जोड़ती हैं.’’

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एक दूसरे सवाल के जवाब में खुरपुरी बताती हैं, ‘‘कुछ वर्षों पहले तक अस्पताल या विद्यालयों में सिर्फ मां का नाम पूछा जाता था, लेकिन अब मां के नाम के साथसाथ पिता का नाम भी पूछा जाता है.’’

इस राज्य में केंद्र या प्रदेश सरकार के कार्यालयों में ज्यादातर महिला कर्मचारियों को देखा जा सकता है. इस कारण यहां महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं. महिलाओं के लिए परदा या मात्र घर के कार्य में लगे रहना अनिवार्य नहीं है. यहां प्रेमविवाह का प्रचलन अधिक है. युवतियां अपनी पसंद का वर ढूंढ़ने के लिए स्वतंत्र हैं. बच्चों का पालनपोषण पतिपत्नी मिल कर करते हैं. चूंकि यह राज्य ईसाई बहुल है, इसलिए अधिकतर शादियां गिरजाघरों में धार्मिक रीति द्वारा संपन्न कराई जाती हैं.

खासी महिलाएं अपने पुरुष साथियों के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम करती हैं. नृत्य हो या संगीत, रेडियो हो या दूरदर्शन, घर हो या बाजार, मंच हो या सिनेमाघर, हर क्षेत्र में खासी महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अधिक संख्या में हैं. मेघालय की खासी महिलाएं हर वह काम करती हैं, जो आमतौर पर दुनियाभर में पुरुष करते हैं.

लेडी कीन कालेज की व्याख्याता डा. जीन एस डखार ने एक सवाल के जवाब में बताया, ‘‘यहां खासी समुदाय के पुरुषों को शादी के बाद पत्नी के साथ ससुराल में जा कर रहना पड़ता है. यहां पर पुरुष घर का सारा काम करते हैं, जबकि बाहर के सारे कामों की जिम्मेदारी महिलाओं पर होती है. यहां के बाजार में दुकानों में भी महिलाएं ही काम करती हैं. यहां मातृसत्तात्मक परंपरा है. इस के तहत सरनेम  (उपनाम) और संपत्ति मां द्वारा बेटी के नाम की जाती है. दुनिया में आमतौर पर बच्चे का नाम पिता से जुड़ा होता है, लेकिन इस समुदाय में ऐसा नहीं है.’’

शाइलिन वर्ष 2002 से एरीबेन प्रेस्बीटेरियन सैकंडरी स्कूल में हिंदी की शिक्षिका हैं. वे बताती हैं, ‘‘मेघालय राज्य के गारो हिल्स जिले और पश्चिम खासी हिल्स जिले के शेला क्षेत्र में यह प्रथा नहीं है. समय के साथसाथ प्रथाएं बदल रही हैं. लेकिन परंपराओं को कोई छोड़ना नहीं चाहता है, क्योंकि यह हमारी पहचान है.’’ शाइलिन आगे कहती हैं, ‘‘यहां मातृसत्तात्मक समाज होते हुए भी घर के शादीब्याह, जमीन की खरीदफरोख्त आदि का निर्णय मामा द्वारा ही लिया जाता है. हमारा यह रिवाज बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ का नारा बुलंद करता है.’’

खासी समाज में महिलाओं का स्थान सर्वोपरि है. ग्राम पंचायत से ले कर संसद भवन तक में मेघालय की महिलाएं हैं. आगाथा संगमा वर्षों तक ग्रामीण विकास राज्यमंत्री रही हैं. शिलौंग की अम्परीन लिंग्दोह मेघालय सरकार में शिक्षामंत्री रही हैं. मेघालय सरकार में रोशन वर्जरी गृह मंत्री हैं. मेघालय राज्य की महिलाएं अतिरिक्त उपायुक्त, न्यायाधीश, निदेशक, सचिव आदि कई पदों पर भी हैं. कला एवं संस्कृति विभाग में मैकडोर सिएम निदेशक पद पर हैं. लेडी कीन कालेज में डा. जीन एस डखार और सेंट औन्थोनीज कालेज में डा. फिल्मि का मारबनियांग हिंदी व्याख्याता के पद पर हैं.

काफी महिलाएं अपनेअपने स्वरोजगार में लगी हैं. केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार के विभिन्न कार्यालयों को सैकड़ों महिलाओं का योगदान मिल रहा है. मेघालय के प्रमुख इंग्लिश दैनिक शिलौंग टाइम्स के संपादक के पद पर पेटरिशिया मुखिम कार्यरत रहते हुए पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान दे रही हैं. काफी तादाद में महिलाएं अखबारों में संवाददाता के पद पर कार्य कर रही हैं. शिलौंग के अधिकांश विद्यालयों में प्राचार्य और शिक्षक के रूप में भी खासी महिलाएं हैं.

जहां तक मामला विरासत का है, आज की परिस्थितियां बदल रही हैं और ‘खड्डोह’ अपने अन्य भाईबहनों को भी मां की संपत्ति में से कुछ भाग देना स्वीकार कर रही हैं. वैसे, भाई तो अपने विवाह के बाद ससुराल चला जाता है. यदि भाई का तलाक हो जाता है तब दूसरा विवाह होने तक भाई अपनी मां और बहन के साथ ही रहता है. यदि उस का अपना घर होता है तो ऐसी परिस्थिति नहीं आती है.

मेघालय की महिलाओं में त्याग है, समर्पण है, निष्ठा है जोकि एक पुरुष को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती है और इस क्षेत्र में सत्य की शोधक मनोवृत्ति भी है. स्वार्थों से हट कर मानवीय कल्याणभाव से जुड़ी चेतना है, बुराइयों के विरुद्ध चुनौतीभरा अनुशासन है, करुणा से भरी मानवीय संवेदना है जो यहां आए सैलानियों को मंत्रमुग्ध करती है.

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यह एक ऐसा राज्य है जो अनायास ही सब का ध्यान आकृष्ट करता है. यही कारण है कि इस राज्य में महिलाएं अत्यंत सुरक्षित महसूस करती हैं. विगत 27 वर्षों से स्वयं लेखक का यह अनुभव रहा है कि यहां सड़कों पर चलती हुई महिलाओं को कोई भी व्यक्ति छेड़ता नहीं है और न किसी महिला के लिए अभद्र भाषा प्रयोग ही करता है. सुनसान सड़क हो या भीड़भाड़ का इलाका, हर जगह मेघालय में महिलाएं सुरक्षित हैं.

जानें क्या है कैंसर ट्रेन ?

पंजाब के भटिंडा से राजस्थान की बीकानेर जाने वाली ट्रेन को लोग कैंसर ट्रेन के नाम से बुलाते हैं. वजह है इस में सफर करने वाले यात्रियों में आधे से ज्यादा कैंसर पीडि़तों का होना. ये वे लोग हैं जो बदलती जीवनशैली, खानपान और खेतों में हो रहे अंधाधुंध पैस्टिसाइड के प्रयोग के कारण जानलेवा बीमारी के शिकार हुए हैं.

पंजाब खेती के मामले में भारत का अग्रणी राज्य है. आर्थिक स्थिति के मामले में भी यहां के किसान देश के शेष प्रदेशों से अच्छी स्थिति में हैं. मगर जानना ज्यादा दिलचस्प है, कि जिस खेती ने पंजाब को विशिष्ट स्थान दिलाया, उसी की बदौलत यहां से चलने वाली एक ट्रेन की पहचान बीमारी के नाम से होने लगी है. बीमारी भी वह जिस के नाम ही को मौत की गारंटी मान लिया जाता है.

किसी जमाने में कैंसर आम सुना जाने वाला नाम नहीं था. सुदूर शहरों से कभीकभी खबर आती कि किसी का देहांत हो गया जोकि सालभर से कैंसर से पीडि़त था. तब लोगों को जरा भी अनुमान न रहा होगा कि एक दिन यह बीमारी इतनी आम हो जाएगी कि गलीगली में इस के शिकार सहज ही घूमते मिल जाया करेंगे. अब वह दौर आ पहुंचा है.

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आलम यह है कि आज कैंसर का दायरा न तो शहरों तक सीमित है और न ही पंजाब तक, बल्कि यह पूरे भारत को चपेट में ले लेने के लिए बड़ी तेजी से बढ़ रहा है. स्थिति यह है कि पूरे भारतवर्ष में हर साल 7 लाख लोग कैंसर की चपेट में आ जाते हैं, और समय पर बीमारी की पहचान न होने के चलते या उचित इलाज के अभाव में ज्यादातर लोग जिंदगी की जंग हार जाते हैं.

आज से 20 साल पहले लोग बीमार भी होते थे और मरते भी थे. कभी बुखार, तो कभी कोई दूसरी बीमारी महामारी का रूप धारण कर के आती थी, लेकिन जल्द ही उस पर काबू पा लिया जाता था. फिर क्या वजह है कि कैंसर के मामले कम होने के बजाय बढ़ते जा रहे हैं? इस को सम झने के लिए मैं हिब्रु विश्वविद्यालय में इतिहास पढ़ाने वाले डा. युआल नोआ हरारी द्वारा मानव जीवन पर लिखित पुस्तक ‘सेपियन्स’ का एक उद्धरण पेश करना चाहूंगा, जोकि पुस्तक के पृष्ठ 11 पर दर्ज है. ‘इतिहास की प्रक्रिया को 3 महत्त्वपूर्ण क्रांतियों ने आकार दिया. संज्ञानात्मक क्रांति ने 70,000 साल पहले इतिहास को क्रियाशील किया.

कृषि क्रांति ने 12,000 साल पहले इसे तीव्र गति दी. वैज्ञानिक क्रांति सिर्फ 500 साल पहले शुरू हुई थी और यह शायद इतिहास को पूरी तरह खत्म कर सकती है.’

विज्ञान का दुरुप्रयोग

यह विज्ञान ही था जिस ने प्रकृति पर आश्रित मानव जीवन को इतना दिग्भ्रमित किया कि उन्नति के नाम पर हम ने जीवन की पद्धति ही बदल डाली. भोजन जीवन की प्राथमिक जरूरत है, और भोजन की थाली में जो अनाज, दालें और सब्जी शामिल हैं उन को उगा रहे किसान जानेअनजाने कितने घातक रसायनों का प्रयोग कर रहे हैं, इस की समझ उन को नहीं है.

मेरे गांव के पड़ोस वाले गांव के लोग सब्जी की खेती करते हैं, लेकिन आश्चर्य की बात यह कि वे अपनी उगाई सब्जी खुद नहीं खाते. इस अजीब विरोधाभास की मैं ने एक किसान से वजह पूछी, तो उस ने बताया ‘‘अरे, इस सब्जी को खाना मतलब सीधा मौत को दावत देना है.’’

मेरे अगले प्रश्न पर उस ने कई दवाओं के नाम गिनाए और बताया कि ये सारी दवाएं जीवन के लिए इतनी नुकसानदेह हैं कि इन का जरा भी अंश शरीर में चला जाए तो जीवन खतरे में आ जाए. ताज्जुब की बात यह है कि इन दवाओं के क्रयविक्रय और इस्तेमाल को ले कर कोई नियमकायदे ही नहीं अपनाए जाते.

पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हर गांव, हर गली में ऐसी दुकानें धड़ल्ले से व्यापार कर रही हैं जिन के संचालकों के पास न तो दवाओं में प्रयोग होने वाले रासायनिक यौगिक की जानकारी है और न ही इन के दुष्प्रभाव की सम झ. ऐसे में फसल में लगे रोग का उपचार किस प्रकार करते होंगे, इस का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है.

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पिछले 2 दशकों में जिस प्रकार खेती में पैस्टिसाइड का प्रयोग बढ़ा है इस से दवा निर्माताओं और विक्रेताओं के खूब वारेन्यारे हुए हैं. इसी के मद्देनजर पूरे कौर्पोरेट जगत का ध्यान इस तरफ आकर्षित हुआ. नतीजा यह कि देश में किसी भी दूसरी वस्तु के निर्माण में लगी कंपनियां पैस्टिसाइड का निर्माण कर रही हैं और मांग और पूर्ति के सिद्धांत को पलट दिया है.

मेरा भी मूल व्यवसाय खेती ही है, इसलिए बहुत से पैस्टिसाइड विक्रेताओं से मेरी जानपहचान है. मैं ने उन से पूरी वस्तुस्थिति जाननी चाही तो एक दवा विक्रेता ने बहुत गंभीर बात की. ‘‘कंपनी दवा बनाते वक्त उस की मात्रा निर्धारित कर देती है. उदाहरण के तौर पर मात्रा रखी 20 मिली लिटर प्रति एकड़, मगर कंपनी के रिप्रैजैंटेटिव अपना टार्गेट पूरा करने के लिए दुकानदार को बताएंगे 40 मिली लिटर प्रति एकड़. साथ में औफर देंगे कि अमुक मात्रा में दवा बेचने पर विदेश यात्रा. दुकानदार आगे किसानों को दवा देगा तो मात्रा बताएगा 60 मिली लिटर प्रति एकड़.’’

यह बात पता चली तो पैरोंतले से जमीन खिसक गई. जन स्वास्थ्य को ले कर सरकार ढेरों योजनाएं बनाती है मगर उन योजनाओं में उपरोक्त व्यवस्था के समाधान का कहीं जिक्र नहीं होता. यह तक पता करने की कोशिश नहीं की जाती कि जिन क्षेत्रों में कैंसर जैसी बीमारी महामारी का रूप ले चुकी है वहां अनाज और सब्जियों में किन रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है.

अगर समय रहते इस दिशा में उचित नियमकायदे नहीं बनाए गए तो एक समय ऐसा आएगा कि हर नागरिक कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का शिकार होगा.

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क्या आप जानते हैं, फेस पाउडर लगाने का सही तरीका

चेहरे पर स्‍टेप बाई स्‍टेप फेस पाउडर लगाना चाहिये जिससे वह आर्टिफीशियल ना लगे. फेस पाउडर लगाने से चेहरा रूखा और खुरदुरा लगने लगता है. ज्‍यादा फेस पाउडर के प्रयोग से चेहरे पर पिंपल आदि निकल आते हैं. आइये जानते हैं कि फेस पाउडर को किस प्रकार से चेहरे पर लगाया जाना चाहिए.

कैसे लगाएं फेस पाउडर

फेस पाउडर के सही रंग का चुनाव करें. फेस पाउडर भूरे और सफेद रंग में आते हैं. आपको फेस पाउडर अपनी स्‍किन टोन के रंग के हिसाब से चुनना चाहिये. अगर आप गोरी हैं और आपने सफेद रंग का फेस पाउडर चुन लिया तो आपका चेहरा काला दिखने लगेगा.

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मेकअप से पहले कैसे लगाएं सही बेस कंसीलर

अगर आप फेस पाउडर का प्रयोग कर रही हैं, तो कंसीलर का प्रयोग करना ना भूलें. हमेशा लूज पाउडर का प्रयोग करें और कम्‍पैक पाउडर का यूज ना करें.

नेचुरल लुक पाएं

ज्‍यादा मेकअप चेहरे का प्राकृतिकपन खो देता है. फेस पाउडर लगाने का सबसे अच्‍छा तरीका है कि आप उसे कम से कम ही लगाएं. पाउडर को हल्‍का सा गाल पर, थोड़ा सा ठुड्डी पर और चेहरे के टी जान पर लगाएं.

ब्‍लोटिंग पेपर का प्रयोग

चेहरे पर अगर ज्‍यादा पाउडर लग गया हो, तो उसे ब्‍लोटिंग पेपर से साफ करें. इससे आपक चेहरा मेकअप से भरा हुआ नहीं दिखेगा.

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सरसों की फसल: समय पर बोआई भरपूर कमाई

रबी फसलों में सरसों का खास स्थान है. देश के कई राज्य जैसे राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में यह फसल प्रमुखता से की जाती है, लेकिन राजस्थान में प्रमुख रूप से भरतपुर, सवाई माधोपुर, अलवर, करौली, कोटा, जयपुर, धौलपुर वगैरह जिलों में सरसों की खेती की जाती है. सरसों के बीज में तेल की मात्रा 30 से 48 फीसदी तक पाई जाती है.

जलवायु : सरसों की खेती शरद ऋतु में की जाती है. अच्छे उत्पादन के लिए 15 से 25 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान की जरूरत होती है.

मिट्टी: वैसे तो इस की खेती सभी तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन बलुई दोमट मिट्टी सर्वाधिक उपयुक्त होती है. यह फसल हलकी क्षारीयता को सहन कर सकती है, लेकिन अम्लीय मिट्टी नहीं होनी चाहिए.

सरसों की उन्नत किस्में : हर साल किसानों को बीज खरीदने की जरूरत नहीं?है क्योंकि बीज काफी महंगे आते हैं इसलिए जो बीज पिछले साल बोया था, अगर उस का उत्पादन या किसी किसान का उत्पादन बेहतरीन हो तो आप उस बीज की सफाई और ग्रेडिंग कर के उस में से रोगमुक्त और मोटे दानों को अलग करें और उसे बीजोपचार कर के बोएं तो भी अच्छे नतीजे मिलेंगे, लेकिन जिन के पास ऐसा बीज नहीं है, वो निम्न किस्मों के बीज बो सकते?हैं:

आरएच 30 : यह किस्म सिंचित व असिंचित दोनों ही हालात में गेहूं, चना व जौ के साथ खेती के लिए सही है.

टी 59 (वरुणा) : इस की उपज असिंचित हालात में 15 से 18 दिन प्रति हेक्टेयर होती है. इस में तेल की मात्रा 36 फीसदी होती है.

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पूसा बोल्ड : आशीर्वाद (आरके 01 से 03) : यह किस्म देरी से पकती है. यह किस्म बोआई के लिए 25 अक्तूबर से 15 नवंबर तक सही पाई गई है.

अरावली (आरएन 393) : यह किस्म सफेद रोली के लिए मध्यम प्रतिरोधी है.

एनआरसी एचबी 101 : भरतपुर से विकसित उन्नत किस्म है. इस का उत्पादन बहुत शानदार रहा है. सिंचित क्षेत्र के लिए यह बेहद उपयोगी किस्म है. इस किस्म का 20-22 क्विंटल उत्पादन प्रति हेक्टेयर तक दर्ज किया गया है.

एनआरसी डीआर 2 : इस का उत्पादन अपेक्षाकृत अच्छा है. इस का उत्पादन 22-26 क्विंटल तक दर्ज किया गया है.

आरएच 749 : इस का उत्पादन 24-26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक दर्ज किया गया है.

खेत की तैयारी

सरसों के लिए भुरभुरी मिट्टी की जरूरत होती?है. इसे खरीफ की कटाई के बाद एक गहरी जुताई करनी चाहिए और इस के बाद 3-4 बार देशी हल से जुताई करना लाभदायक होता है. नमी संरक्षण के लिए हमें पाटा लगाना चाहिए.

कीटों की रोकथाम

खेत में दीमक, चितकबरा व अन्य कीटों का प्रकोप अधिक हो तो नियंत्रण के लिए आखिरी जुताई के समय क्विनालफास 1.5 फीसदी चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिला देना चाहिए. साथ ही, उत्पादन बढ़ाने के लिए 2 से 3 किलोग्राम एजोटोबैक्टर व पीएसबी कल्चर की 50 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कल्चर में मिला कर अंतिम जुताई से पहले मिला दें.

सरसों की बोआई का समय

सरसों की बोआई के लिए सही तापमान 25 से 26 डिगरी सैंटीग्रेड तक रहता है. बारानी इलाकों में सरसों की बोआई  5 अक्तूबर से 25 अक्तूबर तक कर देनी चाहिए. सरसों की बोआई कतारों में करनी चाहिए. कतार से कतार की दूरी 45 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 20 सैंटीमीटर रखनी चाहिए. इस के लिए सीड ड्रिल मशीन का इस्तेमाल करना चाहिए. सिंचित इलाकों में बीज की गहराई 5 सैंटीमीटर तक रखी जाती है.

बीज दर : शुष्क क्षेत्र में 4 से 5 किलोग्राम और सिंचित क्षेत्र में 3-4 किलोग्राम बीज बोआई के लिए प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहता है.

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बीजोपचार

* जड़ सड़न रोग से बचाव के लिए बीज को बोने के पहले फफूंदनाशक वीटावैक्स, कैप्टान, सिक्सर, थिरम, प्रोवेक्स में से कोई एक 3 से 5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.

* कीटों से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूपी 10 मिलीलिटर प्रति किलोग्राम बीज की दर से उचारित करें.

* कीटनाशक उपचार के बाद एजोटोबैक्टर व फास्फोरस घोलक जीवाणु खाद दोनों की 5 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित कर के बोएं.

खाद उर्वरक प्रबंधन

सिंचित फसल के लिए 7 से 12 टन सड़ी गोबर की खाद, 175 किलोग्राम यूरिया, 250 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 50 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश और 200 किलोग्राम जिप्सम बोआई से पहले खेत में मिलाना चाहिए. यूरिया की आधी मात्रा बोआई के समय और बाकी आधी मात्रा पहली सिंचाई के फौरन बाद खेत में छिड़कनी चाहिए.

असिंचित इलाकों में बरसात से पहले 4 से 5 टन सड़ी गोबर की खाद, 87 किलोग्राम यूरिया, 125 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 33 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के समय खेत में डालें.

सिंचाई : पहली सिंचाई बोआई के 35 से 40 दिन बाद और दूसरी सिंचाई दाने बनने की अवस्था में करें.

खरपतवार नियंत्रण : सरसों के साथ अनेक प्रकार के खरपतवार उग आते हैं. इन के नियंत्रण के लिए फसल बोने के तीसरे हफ्ते के बाद से नियमित अंतराल पर 2 से 3 निराई करनी जरूरी हैं.

रासायनिक नियंत्रण के लिए अंकुरण पूर्व बोआई के तुरंत बाद खरपतवारनाशी पेंडीमिथेलीन 30 ईसी की 3.3 लिटर मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1,000 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए.

उत्पादन : अगर जलवायु अच्छी हो तो फसल रोग, कीट व खरपतवार मुक्त रहे और पूरी तरह से वैज्ञानिक दिशानिर्देशों के साथ खेती करें तो 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज ली जा सकती है. अधिक जानकारी के लिए किसान नजदीकी कृषि विभाग से संपर्क करें.

कैसे करें जिद्दी बच्चे को कंट्रोल  

पेरेंट्स के लिये छोटे बच्चों को संभालना बहुत बड़ी बात होती है और उसमे भी अगर बच्चा जिद्दी हो तो सोने पे सुहागा हो जाता है.  हर मां बाप यही सोचते हैं की उनका बच्चा बहुत समझदार हो, संस्कारी हो और सभी का आदर सत्कार करने वाला हो लेकिन कुछ पेरेंट्स की यह इच्छा दबी की दबी रह जाती है जब उन्हें एहसास होता है कि उनका बच्चा बहुत जिद्दी है. ऐसे बच्चों को वश मे कर पाना मील का पत्थर साबित होता है और जैसे जैसे वो बड़े होते जाते है, वैसे वैसे उनके व्यवहार में और भी बदलाव होता चला जाता है. कभी कभी यही जिद्द उन्हें  मानसिक रोग से पीड़ित तक बना देती है. कभी कभी तो उनके चक्कर में पेरेंट्स को ही लोगों की तीखी व कड़वी बातें सुनने को मिलती है. जैसे कि मां बाप ने जैसे संस्कार दिए हैं बच्चा वैसे ही तो सिख रहा है, मां बाप से बच्चे की परवरिश ठीक से नहीं की जा रही तभी बच्चा ऐसा है’. ऐसी बातों को सुनकर माता पिता और भी दुखी हो जाते हैं. अगर आपको लगता है कि आपका बच्चा जिद्दी है तो जरूरी है की आप अपनी रोजमर्रा की लाइफ में ये टिप्स अपनाएं. कुछ ही दिनों में आपको अपने बच्चे के अंदर बदलाव नजर आने लगेगा.

कैसे समझाए जिद्दी बच्चे को

गुस्सा न करें

जब बच्चा बहुत ज्यादा जिद्द करता है तो पेरेंट्स को गुस्सा आ ही जाता है ऐसे में उसको एक दो थप्पड़  भी लग जाते हैं. लेकिन यह बिल्कुल गलत है उस पर गुस्सा न करें बल्कि उसे प्यार से समझाएं क्योंकि जब किसी चीज के लिये मना किया जाता है तो उस काम को करने की इच्छा अधिक होती है.

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बात बात पर टोकें नहीं

हर छोटी छोटी बात पर टोकना पबन्दियां लगाना  बच्चो में हताशा  और असंतोष को जन्म देता है लेकिन इससे बचने के लिये उन्हें मन मुताबिक छूट भी नहीं दी जा सकती. इसलिए इससे बचने के लिये प्यार और अनुसासन की सीमा को तय करें.

बच्चे पर अपनी जिद न चलाएं

अगर आप अपनी बात मनवाने के लिए बच्चे से जिद करते हैं तो बच्चे मे जिद्दी होने की आदत आप ही से आती है. बच्चे पर अपनी पसंद नापसंद न थोपे. यदि आप उसे अपनी बात मनवाने के लिये मजबूर करते हैं तो उसमे नकारात्मकता बढ़ेगी और उसका बर्ताव अधिक उग्र व जिद्दी हो जाएगा.

बच्चे की हर बात न मानें

अगर आप बच्चे के बोलते  ही हर बात मान जाते हैं तो इससे वो आदी हो जाता है जिस कारन उसे लगता है कि जो वो मांगेगा वो उसे मिल ही जायेगा इसलिए बच्चे को न कहना भी सीखें. अपने बच्चे को एहसास कराएं कि हमेशा उसकी मनमर्जी नहीं चलेगी .

उसका ध्यान हटाएं

अगर आपका बच्चा किसी बात की ज़िद्द करता है तो उसका ध्यान उस चीज से हटा कर किसी और चीज में लगाए इससे उसकी ज़िद्द भी पूरी नहीं होगी और उसे नई चीज भी मिल जाएगी.

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फेस्टिवल 2019: ऐसे बनाएं लजीज मटर कुलचे

सामग्री:

सूखी मटर- 2 कप,

हरी मिर्च- 2 ,

प्याज- 1 कप,

टमाटर- 1 कप,

नींबू का रस- 1 टेबलस्पून,

अमचूर पाउडर- 1/2 टीस्पून,

चाट मसाला- 2 टेबलस्पून,

मीठा सोडा पाउडर- 3 चुटकी,

हल्दी पाउडर- 1/4 टीस्पून

नमक- स्वादानुसार

हरा धनिया- 1/2 कप

मैदा- 200 ग्राम

दही- 1/4 कप

बेकिंग सोडा- 1/4 टीस्पून

चीनी- 1 टीस्पून

कसूरी मेथी- 1 टीस्पून

हरा धनिया- 1 टीस्पून

नमक- स्वादानुसार

तेल- आवश्यकता अनुसार

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बनाने की विधि 

1- मटर कुलचा बनाने के लिए सबसे पहले दो कप सूखी मटर को पानी में डालकर 6-7 घंटों के लिए छोड़ दें. अब प्रेशर कुकर में पानी डाल कर इसमें मटर, तीन चुटकी में मीठा सोडा, आधा चम्मच हल्दी पाउडर व थोड़ा सा नमक मिलाकर उबाल लें.

2- अब मटर को चम्मच की मदद से मैश करें. अब इसमें एक कप कटा प्याज, कटी हरी मिर्च, एक कप टमाटर, दो टेबलस्पून चाट मसाला, आमचूर पाउडर व स्वादानुसार नमक डालकर अच्छे से मिक्स करें. अब इसमें नींबू का रस डालकर 5 मिनट तक धीमी आंच पर पकाएं.

3- अब इसे एक कटोरी में निकाल कर इसमें हरा धनिया मनाए मिलाएं.

4- कुलचा बनाने के लिए सबसे पहले एक बर्तन में 200 ग्राम मैदा ले ले. अब इसमें आधा कप दही, एक चम्मच चीनी, एक चम्मच बेकिंग सोडा, स्वादानुसार नमक व औयल डालकर दोनों हाथों से अच्छी तरह मिक्स करें.

5- अब गुनगुने पानी से मैदे को मुलायम आटे की तरह गूंथ ले. अब इसे मोटे तौलिये से कवर करके 5 घंटों के लिए रख दें.

6- अब आपको जितने कुलचे बनाने हैं मैदे कि उतनी बराबर लोई बनाकर बेलन से गोल गोल मोटा बेल लें. अब उसके ऊपर कसूरी मेथी व हरा धनिया डालकर हाथों से दबाए.

7- अब तवे को गैस पर रखकर गर्म करें . अब तवे पर औयल लगाकर कुलचे को तवे पर रख कर सेकें . जैसे ही कुल्चा फूलने लगे तो इसे दूसरी तरफ पलट कर सेक लें. इसी तरह सभी कुल्छे तैयार करें व एक कैस्ट्रोल में किचन पेपर बिछाकर रखते जाए.

8- लीजिए आपके मटर कुलचे बनकर तैयार है अब आप इसे गर्मागर्म सर्व करें.

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