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फेस्टिवल स्पेशल 2019: ऐसे बनाएं फूलगोभी करी

फेस्टिवल के दौरान एक बार जरूर ट्राई करें फूलगोभी करी. बहुत ही लाजवाब और जायकेदार है ये फूलगोभी करी.

सामग्री

250 ग्राम फूलगोभी

2 टमाटर

1 छोटा चम्मच सौंफ

1/2 छोटा चम्मच जीरा

2-3 कालीमिर्चें

1/4 छोटा चम्मच सोंठ पाउडर

1 छोटा चम्मच तिल

1 छोटा चम्मच सूखा नारियल

1 साबूत लालमिर्च

1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

1 हरी इलायची

1 लौंग

1 बड़ा चम्मच क्रीम

1 बड़ा चम्मच घी

थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

नमक स्वादानुसार

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बनाने की विधि

कड़ाही गरम कर जीरा, सौंफ, लौंग, कालीमिर्च, तिल, इलायची, सूखा नारियल व साबूत लालमिर्च भून लें. इस में हलदी, नमक, सोंठ पाउडर व धनिया पाउडर मिला कर पीस लें. कड़ाही में घी गरम कर मसाला भूनें.

टमाटर की प्यूरी कर डालें व भूनें. अब इस में गोभी के टुकड़े कर डालें और धीमी आंच पर ढक कर पकाएं. फिर क्रीम डालें. धनियापत्ती से सजा कर परोसें.

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-व्यंजन सहयोग : अनुपमा गुप्ता

डार्क अंडरआर्म्स से ऐसे पाएं छुटकारा

कई लोग पार्लर जाने के बजाय शेविंग करना पसंद करते है लेकिन लगातार शेविंग से स्किन डार्क होने लगती है. अंडरआर्म्स पर रेजर के इस्तेमाल से ऐसा हो जाता है लेकिन परेशान होने की जरूरत नहीं है.  आपको अंडरआर्म्स के कालेपन से छुटकारा पाने के लिए टिप्स बताते है, जो आपके लिए मददगार साबित हो सकता है.

औलिव औइल

एक चम्मच औलिव औइल में ब्राउन शुगर मिलाएं और इससे रोजाना एक्सफौलिएट करें. एक से दो मिनट तक स्क्रब करें और पांच मिनट तक ऐसे ही छोड़ दें. इसे गुनगुने पानी से धो दें, इसे हफ्ते में दो बार इस्तेमाल कर सकते हैं.

नींबू का रस

नींबू नैचरल ब्लीचिंग एजेंट है और यह रंग हल्का करने का काम करता है. आपको बस नहाने से पहले 2 से 3 मिनट तक डार्क एरिया पर नींबू का रस लगाकर रखना है. इसके बाद आप नहाकर मौइश्चराइजर लगा लें. आपको 7-10 दिनों में फर्क नजर आने लगेगा.

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आलू का रस

आलू भी नैचरल ब्लीच है जिससे अंडरआर्म्स का कलर हल्का होता है साथ में इचिंग से भी राहत मिलती है. आप आर्म्सपिट पर आलू की पतली स्लाइस रख सकती हैं या इसका जूस 10-15 मिनट के लिए लगा सकती हैं. जल्दी असर चाहिए तो एक दिन में दो बार लगाएं.

ऐलोवेरा

आप चाहें तो ऐलोवेरा प्लांट से जेल निकाल सकती हैं या मार्केट से जेल खरीद सकती हैं. आपको बस यह जेल अपनी अंडरआर्म्स पर लगाना है और 15 मिनट तक ऐसे ही छोड़ दें. इसके बाद इसे धो दें. यह नैचरल एक्सफॉलिएटर है जो कि डेड स्किन हटाता है, इसमें ऐंटीबैक्टीरयल प्रॉपर्टीज भी होती हैं.

आलू भी कालापन करेगा दूर

आलू में विटमिन ए, बी और सी प्रचूर मात्रा में होता है और आलू के इस्तेमाल से आपके अंडरआर्म्स की त्वचा का प्राकृतिक तरीके से ब्लीच हो सकता है. आलू का रस या आलू के टुकड़े आर्मपिट पर लगाने से स्किन में बने पैच और काले हो जाने की समस्या कुछ ही दिनों में ठीक हो जाती है. इसके अलावा आप आलू के रस और नींबू के रस को बराबर मात्रा में मिलाकर भी अंडरआर्म्स में लगा सकती हैं. इससे भी बेहतर नतीजे मिलेंगे.

बेसन और दही का पेस्ट

बेसन एक बेहतरीन स्क्रब है जो स्किन के डेड सेल को हटाकर स्किन टोन को एक समान करने में मदद करता है. दही में मौजूद लैक्टिक ऐसिड स्किन को कंडीशन करने के साथ ही उसे सौफ्ट भी बनाता है. बेसन और दही को मिलाकर पेस्ट बना लें और इसे आर्मपिट पर लगाएं. उसे सूखने के लिए छोड़ दें और फिर गुनगुने पानी से धो लें. कुछ ही दिनों में आर्मपिट की रंगत निखरने लगेगी.

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ट्रैक्टर में ईंधन बचाने के 10 नियम

ट्रैक्टर के रखरखाव और उस के इस्तेमाल के बारे में जानने के लिए ट्रैक्टर का मैन्युअल यानी ट्रैक्टर के साथ जो निर्देशिका पुस्तिका (बुकलैट) होती है, उसे ध्यान से पढ़ें और उस के मुताबिक ही ट्रैक्टर का इस्तेमाल करें.

जानकारों का मानना है कि खराब देखरेख में चलने वाला ट्रैक्टर ईंधन की 25 फीसदी तक अधिक खपत कर सकता है, इसलिए कुछ भी संदेह होने पर अपने ट्रैक्टर विक्रेता या मान्यताप्राप्त सर्विस स्टेशन से संपर्क करें.

हमेशा सही गियर में चलाएं ट्रैक्टर

  1. ट्रैक्टर को गलत गियर में चलाने से ईंधन की खपत 30 फीसदी तक बढ़ सकती है और खेत की जुताई जैसे काम में भी अच्छे नतीजे नहीं मिलते. इसलिए ट्रैक्टर की जरूरत (लोड) के हिसाब से गियर का इस्तेमाल करें.

2. अगर पहिए फिसलते हैं तो… खास हालात में काम करते समय अगर ट्रैक्टर के पहिए फिसलते हैं तो ढलुए लोहे के वजन से उन्हें फिसलने से बचाएं.

3. पहिए की फिसलन को कम से कम करने के लिए सही मात्रा में वजन का इस्तेमाल करें और खेत का काम खत्म होने के बाद ट्रैक्टर से वजन हटा दें.

4. डीजल का रिसाव रोकें : हर रोज अपने ट्रैक्टर की जांच करें कि कहीं डीजल का रिसाव तो नहीं हो रहा है. एक बूंद प्रति सैकंड डीजल रिसने से सालाना 2,000 लिटर का नुकसान हो सकता है इसलिए ईंधन की टंकी, ईंधन का पंप, फ्यूल इंडक्टर और ईंधन लाइनों के जोड़ों को जांचें.

5. इंजन बंद कर दें : अगर आप का टै्रक्टर चालू है और एक ही जगह खड़ा है तो  प्रति घंटा 1 लिटर से ज्यादा डीजल की खपत करता है इसलिए लंबे समय तक ट्रैक्टर को चालू न रखें.

वहीं दूसरी ओर बैटरी, डायनमो, सैल्फ स्ट्राटर को हमेशा बेहतर हालत में रखें ताकि आप का ट्रैक्टर तुरंत चालू हो सके.

6. घिसे टायर न करें इस्तेमाल : अगर ट्रैक्टर के टायर घिस गए हैं तो उन्हें बदल दें. घिसे हुए टायर से खींचने की ताकत घट जाती है. टायरों की सही देखभाल करें और टायरों को दोबारा लगाते समय तय करें कि सामने से देखने में ‘ङ्क’ ट्रेड प्वाइंट नीचे की ओर हो.

सड़क और खेत में काम करने के लिए ट्रायर में हवा के अलगअलग प्रैशर की जरूरत होती  है इसलिए काम के हिसाब से ही टायरों की हवा ठीक रखें. इस के लिए आप अपने ट्रैक्टर की बुकलैट देख सकते हैं या ट्रैक्टर विक्रेता से पूछ सकते हैं.

7. धूल से बचाव : ट्रैक्टर का इस्तेमाल ज्यादातर धूल वाली स्थिति में ही होता है इसलिए अच्छा एयर फिल्टर होना जरूरी?है.

रिसर्च के मुताबिक, बिना फिल्टर की गई हवा से सिलिंडर बोर सामान्य की तुलना में जल्दी खराब हो जाते हैं और पिस्टन रिंग भी जल्दी घिस जाते हैं इसलिए अच्छी क्वालिटी के ईंधन फिल्टर का इस्तेमाल करें और उन्हें जरूरत के हिसाब से बदलते रहें.

याद रखें, दोनों ईंधन फिल्टरों को एकसाथ कभी न बदलें. एयर फिल्टरों को नियमित रूप से साफ करें.

8. योजनाबद्ध तरीके से चलाएं खेत में ट्रैक्टर : ट्रैक्टर को खाली चलाना, बैक ट्रैकिंग और ज्यादा घुमावों को कम करने के लिए खेत की जुताई तय तरीके के हिसाब से करें.

ट्रैक्टर को अनावश्यक तरीके से न घुमाएं. लंबी दूरी ही तय करें और खेत को बाहरी चारों कोनों से जोतते हुए अंदर की ओर जुताई करते आएं. पहली जुताई सीधी और समानांतर होनी चाहिए.

9. क्या ट्रैक्टर धुआं ज्यादा देता है : ट्रैक्टर से ज्यादा धुआं निकलने से डीजल की बरबादी होती है. गलत गियर का इस्तेमाल करने से भी धुआं अधिक निकल सकता है. नोजल और फ्यूल इंजैक्टर पंप की जांच करें.

खराब फ्यूल इंजैक्टर से भी ईंधन की खपत 25 फीसदी तक बढ़ सकती है. अगर आप के ट्रैक्टर से धुआं निकलना जारी

रहता है तो इंजन की किसी अच्छे जानकार मेकैनिक से या मान्यताप्राप्त गैराज से उस की मरम्मत कराएं.

10. कूवत के अनुरूप करें इस्तेमाल : ट्रैक्टर में इंजन की हौर्सपावर के मुताबिक ही कृषि यंत्रों को जोड़ कर चलाएं. अगर कम पावर का ट्रैक्टर है और आप ने अधिक वजन वाला कृषि यंत्र इस्तेमाल किया है तो ट्रैक्टर पर अधिक लोड पड़ेगा जो ट्रैक्टर के इंजन के लिए नुकसानदायक है.

आजकल कृषि यंत्रों के साथ भी यह जानकारी दी जाती है कि इसे कितने हौर्सपावर के ट्रैक्टर के साथ इस्तेमाल कर सकते हैं.

औडीशन में मुझे पसंद किया गया, ‘मगर’ : शिवम भार्गव

चर्चित अदाकारा भूमि पेडनेकर और फिल्म‘‘घोस्ट‘‘ के हीरो शिवम भार्गव में समानता यह है कि दोनों ने अपने करियर की शुरूआत ‘‘यशराज फिल्मस’’ में बतौर सहायक कास्टिंग डायरेक्टर के रूप में की थी. ‘भूमि पेडणेकर’ को बतौर अभिनेत्री  यशराज फिल्मस की फिल्म ‘‘दम लगा के हाइसा’ मिल गयी. जबकि शिवम भार्गव को नए फिल्मकार की फिल्म ‘‘सिद्धार्थ’’  मिल गयी. फिल्म‘‘सिद्धार्थ ’’अब तक सिनेमाघरों में पहुंच नही पायी है. मगर इसी फिल्म को देखकर विक्रम भट्ट ने उन्हें अपनी फिल्म ‘‘घोस्ट’’ का हीरो बनाया. ये फिल्म 18 अक्टूबर को प्रदर्शित होने वाली है.

अभिनय को करियर बनाने की बात कब आपके दिमाग में आयी?

मैं लखनऊ के हजरतगंज इलाके का रहने वाला हूं. मेरे पिता लव भार्गव पोलीटीशियन हैं. वैसे मेरे पिता ने कुछ वर्ष पहले मुजफ्फर ली निर्देशित फिल्म ‘‘जौनसार’’ में अभिनय भी किया था. इसके अलावा हाल ही में मीरा नायर के निर्देशन में बीबीसी का एक शो भी किया है. तो मेरे खून में कहीं न कहीं अभिनय रहा है. सच कहूं तो मेरे पिता भी अभिनता ही बनना चाहते थे. पर उन्हें सही मौका नहीं मिला था. इसलिए उन्होंने मुझे बहुत सपोर्ट किया. मुझे भी बचपन से ही अभिनय करना था.पर उन्होंने कहा कि पहले पढ़ाई पूरी कर लो, तो मैंने मन लगाकर पढ़ाई की. मेरी उच्च शिक्षा पुणे में हुई. फिर मैंने इंग्लैंड जाकर मास्टर्स की डिग्री हासिल की. फिर 2010 के अंत में मैं मुंबई आया. तब से मुंबई में संघर्ष चल रहा है. मुंबई आने का मकसद फिल्मों में अभिनय करना ही था.

2010 से 2019 यानी कि नौ वर्ष हो गए. इन नौ वर्षो की आपकी यात्रा कैसी रही?

मुंबई पहुंचने के बाद एक डेढ़ साल तक मैंने ‘यशराज फिल्मस’ में बतौर कास्टिंग असिस्टेंट काम किया. ‘मेरे ब्रदर की दुल्हन’, ‘लेडीस वर्सेस रिक्की बहल’, ‘इश्कजादे’ सहित तीन चार फिल्मों में कलाकारों के चयन का काम किया. फिल्म की क्रेडिट में मेरा नाम था. उसके बाद मैंने खुद अपनी अभिनय प्रतिभा को निखारने के लिए एक्टिंग की ट्रेनिंग ली. वर्कशौप किया. नृत्य सीखा. फिर औडीशन देना शुरू किया. कई एड फिल्में की. मैंने मुकुंद मिश्रा के निर्देशन में एक फिल्म ‘‘सिद्धार्थ’’ की, इसमें मेरे साथ महेश भट्ट ने भी अभिनय किया है. उसके बाद मैंने कुछ वेब सीरीज की है. एक वेब सीरीज ‘‘द ट्रिप’’ बिंदास पर आयी. अब विक्रम भट्ट के निर्देशन में फिल्म ‘‘घोस्ट’’ की है, जो कि 18 अक्टूबर को रिलीज हो रही है.

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फिल्म ‘‘सिद्धार्थ’’को लेकर क्या कहेंगे?

यह फिल्म सिद्धार्थ नामक एक लड़के की यात्रा है. उसके साथ इतना कुछ होता है कि वह अल्कोहलिक बन जाता है. फिर उसकी जिंदगी में कई खराब चीजें होती हैं. फिर कैसे वह अपनी जिंदगी को संभालता है. इसी यात्रा के दौरान उसकी जिंदगी में मनाली में लामा के रूप में महेश भट्ट जी आते हैं. फिर कैसे सिद्धार्थ की अपनी जिंदगी में सब कुछ सही होता है.

फिल्म ‘‘सिद्धार्थ’’ कब रिलीज होगी?

इसकी जानकारी मुझे नही है.लंबे समय से निर्माता से मेरी कोई बात नहीं हो पायी है.

‘‘यशराज फिल्मस’’ में तो भूमि पेडणेकर भी असिस्टेंट कास्टिंग डायरेक्टर थीं?

जी हां! मैंने और भूमि ने मिलकर फिल्म ‘‘इशकजादे’’ की कास्टिंग की थी. हम लोग साथ में इलाहाबाद, लखनऊ व बरेली सहित कई जगह गए थे.

‘‘यशराज फिल्मस’’ ने भूमि पेडनेकर को अभिनय का मौका दिया?

सर, ऐसा नहीं है कि उन्होंने फिल्में दी. फिल्म तभी मिलती है, जब आप फिल्म की कहानी व किरदार में फिट बैठते हों. एक्टिंग भी सही करनी है. मैंने भी ‘यशराज फिल्मस’ में औडीशन दिए. औडीशन में मुझे पसंद किया गया. मगर निर्देशक के वीजन में सही नहीं उतरा. हर किरदार को लेकर निर्देशक का भी अपना एक विजन होता है. अगर मैं निर्देशक के विजन में फिट नहीं बैठ रहा, तो काम नहीं मिलेगा. यह उम्मीद करना कि वह मुझे जानते हैं या मैने इस कंपनी में बतौर असिस्टेंट कास्टिंग डायरेक्टर काम किया है, इसलिए वह मुझे फिल्म देंगे, गलत है. मैं तो कम से कम एक्सपेक्ट नहीं कर सकता. पर जिन्हें मेरा काम पसंद आएगा, वह मुझे बुलाकर काम देंगे. मसलन,विक्रम भट्ट साहब ने फिल्म ‘सिद्धार्थ’ में मेरा काम देखा था, उन्हें मेरा काम अच्छा लगा. तो उन्होंने मुझे बुलाकर फिल्म ‘‘घोस्ट’’ दी.

फिल्म‘‘घोस्ट’’क्या है..इसमें आप  क्या कर रहे हैं?

यह फिल्म लंदन के एक सत्यघटनाक्रम पर है. इसमें मैंने लंदन में रह रहे एक पोलीटीशियन करण खन्ना का किरदार निभाया है. जिनकी पत्नी का खून हो जाता है. इस घर में सिर्फ करण खन्ना ही रहते हैं, इसलिए उन्हें दोषी ठहराया जाता है. जबकि उसे एक भूत/आत्मा ने मारा है. तब उसका मुकदमा एक वकील लड़ती है, फिर बहुत कुछ घटित होता है.

फिल्म में आपका करण खन्ना का किरदार किस तरह से आगे बढ़ता है?

इस फिल्म की कहानी बहुत अच्छी है, जिसमें बहुत सारे ट्विस्ट एंड टर्न हैं. अमूमन जिस तरह के घटनाक्रम एक हौरर फिल्म में होते हैं. इसमें डराने वाले सारे एलीमेंट हैं. लेकिन हमारी कहानी में एक्चुअली में बहुत कुछ हो रहा है, जो आपको देख कर ही पता चलेगा.

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आपने जो वेब सीरीज की हैं, उनका क्या रिस्पांस मिला?

बहुत अच्छा रिस्पौन्स मिला. ‘द ट्रिप’ की कहानी व किरदार दोनों लोगों को बहुत पसंद आए. एक अन्य सीरीज ‘‘बौम्बस’’ में जो मेरा किरदार था, मेरे मतलब का ही था. इसमें फुटबौल के इर्द गिर्द कहानी थी.

इसके अलावा क्या कर रहे हैं?

सच तो यही है कि दो तीन फिल्मों को लेकर सिर्फ बातचीत हो रही है. तय कुछ भी नही है.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ : कस्टडी केस जीतने के लिए यह नई चाल चलेगी दामिनी मिश्रा

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  में दर्शकों को धमाकेदार ट्विस्ट और टर्न देखने को मिल रहे है. इस शो की सबसे खास टर्न की बात करे तो वो है नायरा और कार्तिक के बीच बढ़ती नजदिकीयां. जी हां नायरा और कार्तिक एक दूसरे के करीब आ रहे है. सीरियल का ये टर्न दर्शको को कुछ ज्यादा ही पसंद आ रहा है.

आनेवाले एपिसोड में इस शो की कहानी नयी मोड़ लेगी. कार्तिक की वकिल दामिनी मिश्रा कायरव की कस्टडी केस को किसी भी हालत में हारना नहीं चाहती है. इसके लिए वो नायरा के खिलाफ सबूत इकट्ठा करने के लिए गोवा जाने वाली है. इस सबूत से वो कोर्ट में ये दिखाने की कोशिश करती है  कि नायरा को वो बच्चा चाहिए ही नहीं था.

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वकील दामिनी मिश्रा को भी समझ आ गया है कि कार्तिक अपने बेटे की कस्टडी केस को लेकर भावुक हो रहा है. दामिनी मिश्रा को इस बात का खौफ रहता है कि अगर वो कस्टडी केस हार जाती है तो कोर्ट में उसकी इमेज खराब होगी. दामिनी मिश्रा इस कस्टडी केस को जीतने के लिए किसी भी हद तक जाना चाहती है.

पिछले एपिसोड में आपने देखा कि दामिनी ने ही कार्तिक और नायरा को किडनैप करवाया. और इतना ही नहीं उन गुंडों ने कार्तिक और नायरा को बेहोशी का इंजेक्शन भी दे दिया.  नशे की हालत में नायरा और कार्तिक अपनी पुरानी बातों को याद करने लगे और फिर इमोशनल हो गए थे और एक दूसरे के साथ रोमांटिक पल भी गुजारे. नशे के हालत में ही दोनों ने  फिर से शादी कर ली.

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अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि कार्तिक की वकिल दामिनी मिश्रा कस्टडी केस जीतने के लिए किस हद तक जाती है और वो अपनी गंदी चालों से कार्तिक नायरा को अलग कर पाती है या नहीं.

घर और घाट : भाग 2

एक बार दीदी शुरू में सपरिवार आई थीं. वह रात को 9 बजे पहुंचने वाली थीं. भला इतनी रात गए तक कौन उन लोगों के लिए इंतजार करता. मैं ने 8 बजे ही खाना लगा दिया था. आकाश कुछ बोलते, इस से पहले ही मैं ने सुना कर कह दिया, ‘9 बजे आने के लिए कहा है. फिर भी क्या भरोसा, कब तक आएं? आप खाना खा लो.’

वह न चाहते हुए भी खाने बैठ गए थे.

अभी खाना खत्म भी नहीं हुआ था कि दरवाजे की घंटी बजी. मैं बोली, ‘अब खाना खाते हुए तो मत उठो. पहले खाना खत्म कर लो फिर दरवाजा खोलना.’

खाना खा कर आकाश दरवाजा खोलने गए. मैं बरतन मांजने लगी. उधर न पहुंची तो 15 मिनट बाद ही दीदी रसोई में आ गईं और नमस्ते कर के लौट गईं. मैं ने उन सब का खाना लगा दिया.

दीदी ने हम से भी खाने को पूछा. फिर बोलीं, ‘इस देश में खाने की कमी नहीं है. हर चौराहे पर मिलता है. साथ न खाना था तो कह देते, हम खा कर आते.’

तो क्या मैं ने कहा था कि यहां आ कर खाएं या उन को किसी डाक्टर ने सलाह दी थी? मैं ने सिरदर्द का बहाना बनाया और ऊपर शयनकक्ष में चली गई. खुद ही निबटें अपने भाईजान से.

सुबह उठी तो दीदी चाय बना रही थीं, ‘क्या खालाजी का घर समझ रखा है, जो पूछने की भी जरूरत न समझी?’ मैं ने दीदी को लताड़ा, ‘आप ने क्या समझा था कि मैं आप को उठ कर चाय भी नहीं दूंगी.’

मेरी रसोई को अपनी रसोई समझा था. उस के बाद कभी दीदी को मेरी रसोई में घुसने की हिम्मत न हुई.

मैं ने दीदी को नहानेधोने के लिए 2 तौलिए दिए तो वह 2 बच्चों के लिए और मांग बैठीं. अपने घर में 4 तौलिए इस्तेमाल करें या 8, यहां एक दिन 2 तौलियों से काम नहीं चला सकती थीं? मैं ने एक पुराना सा तौलिया और दे दिया. आखिर मेरा घर है, जो चाहूंगी करूंगी.

उस के बावजूद कुछ ही दिनों बाद दीदी अचानक दोनों बच्चों के साथ मेरे यहां आ धमकीं. रात को देर तक आकाश से बातें करती रही थीं. वह पति महोदय से खटपट कर के आई थीं. मैं पूछ बैठी, ‘आप ने तो अपनी इच्छा से प्रेम विवाह किया था. फिर अब किस बात का रोना?’

दीदी से कुछ जवाब देते न बना.

मैं तो घबरा गई. कहीं दीदी जिंदगी भर मेरे घर डेरा न डाल लें. अगली सुबह आकाश दफ्तर गए और मैं सोती दीदी के पास ही पहुंच गई, ‘दीदी, वापस लौटने के बारे में क्या सोचा है?’

समझदार को इशारा काफी है. उन्होंने हमारे घर रह पति महोदय से बिलकुल बात न बढ़ाई. उसी दिन जीजाजी को फोन किया और शाम को वापस अपने घर लौट गईं. बस, समझ लीजिए तभी से उन का हमारे यहां आनाजाना कुछ खास नहीं रहा. हम ही उन के यहां साल में 2-3 दिन के लिए चले जाते थे. जाते भी क्यों न, वह बड़े आग्रह से बुलाती जो थीं. बुलातीं भी क्यों न, आखिर उन की पति से कम ही पटती थी. हम से भी नाता तोड़ लेतीं तो आड़े वक्त में कहां जातीं? कौन काम आता?

और फिर उन पर क्या जोर पड़ता था हमें बुलाने में. उन्होंने खाना बनाने को एक विधवा फुफेरी सास को साथ रखा हुआ था. घर की सफाई करने वाली अलग आती थी.

एक बार दीदी भारत गईं तो मेरे लिए मां ने उन के साथ कुछ सामान भेजा. जब मुझे सामान मिला तो उस में से एक कटहल के अचार का डब्बा गायब था, ‘दीदी, अचार चाहिए था तो आप कह देतीं, मैं आप के लिए भी मंगा देती. चोरी करना तो बहुत बुरी बात है.’

बाद में मां ने बताया कि अचार का डब्बा भेजने से रह गया था. बात आईगई हो चुकी थी, तो मैं ने फिर दीदी से कुछ कहने की जरूरत न समझी.

अभी पिछले दिनों दीदी फिर भारत गई थीं. उन्होंने लौट कर फोन किया, ‘लता, तुम्हारे मांबाबूजी से मिल कर आ रही हूं. सब मजे में हैं. मगर तुम्हारे लिए कुछ नहीं भेजा है.’

‘हां, मैं ने ही मां को मना कर दिया था कि हर ऐरेगैरे के हाथ कुछ न भेजा करें. फिर भी मां किसी न किसी के हाथों सामान भेजती रहती हैं. एक पार्सल तो पिछले 8 बरस से आ रहा है. एक 6 महीने बाद मिला था.’

खैर, जो हुआ सो हुआ. मैं अतीत को भूल कर वर्तमान के धरातल पर आ गई. मुझ को अकेले नींद नहीं आ रही थी. रात के 2 बज गए थे. एक तरफ आंसू नहीं थम रहे थे और दूसरी तरफ डर भी लग रहा था इतने बड़े घर में. भूख लग रही थी मगर…मैं अकेली थी…बिलकुल अकेली. शरीर टूट सा रहा था.

मैं मां को भारत ट्रंककाल करने लगी, ‘‘मां, आप कुछ दिनों के लिए अमेरिका आ जाइए. मैं आप का टिकट भेज देती हूं.’’

मां अपनी मजबूरी सुनाने लगीं. विरासत में मिला सुख कुछ भी तो काम नहीं आ रहा था. पति के मरते ही कुछ भी अपना न रहा था. 10 बरस बाद भी उस घर में न तो कोई अपनापन था, न ही देश में.

आकाश 1 लाख डालर छोड़ कर मरे थे. मैं एअर इंडिया को फोन करने लगी, ‘‘मैं वापस भारत जाना चाहती हूं. अपने घर.’’

भारत लौट कर पीहर पहुंची तो वहां कुछ और ही नजारा पाया. भाई की शादी हो चुकी थी, सो एक कमरा भाईभाभी का और दूसरे में मेरे मांबाबूजी. मेरा बैठक में सोने का प्रबंध कर दिया था. मेरा सामान मां के साथ. सुबह बिस्तर समेटते ऐसा लगता था, जैसे उस घर में मैं फालतू थी. मैं ने सोचा, ‘सहना शुरू किया तो जिंदगी भर सहती ही रहूंगी. ऐसी कोई गईगुजरी स्थिति मेरी भी नहीं है. आखिर 10 लाख रुपए ले कर लौटी हूं. चाहूं तो इन चारों को खरीद लूं.’

एक दिन भाभीजान फरमाने लगीं, ‘‘दीदी, पूरी तलवाने में मदद कर दो न, मैं बेलती जाती हूं.’’

आखिर भाभी ने मुझे समझ क्या रखा था…मैं नौकरानी बन कर आई थी क्या वहां? इतना पैसा था मेरे पास कि 10 नौकर रख देती. लेकिन बात बढ़ाने से क्या फायदा था. मैं कुछ भी नहीं बोली थी. मदद नहीं करनी थी, सो नहीं की.

खाना खाने के वक्त भाभी ने अपना खाना परोसा और खाने लगीं. मैं ने भी ले तो लिया, मगर वह बात मेरे मन को चुभ गई. जब मांबाबूजी ही सब बातों में चुपी लगाए थे तो भाभी तो मेरी छाती पर मूंग दलेंगी ही.

मैं ने कहा, ‘‘मेरे आने का तुम लोगों को इतना कष्ट हो रहा है तो मैं वापस चली जाती हूं. मेरे पास जितना पैसा है, मैं उतने में जिंदगी भर मजे से रहूंगी. न किसी से कहना, न सुनना.’’

कोई कुछ भी न बोला. मैं सन्नाटे में रह गई. मैं सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि मेरे मांबाबूजी ही इतने बेगाने हो जाएंगे. फिर ससुराल से ही क्या आशा करती.

घर छोड़ते हुए मेरे आंसू टपक पड़े. मैं फिर अकेली हो गई थी. बिलकुल अकेली. बिलकुल धोबी का कुत्ता बन कर रह गई, न घर की न घाट की.

फेस्टिवल स्पेशल 2019: इस दिवाली पर अपने पेट्स का भी रखें ध्यान

दिवाली का त्यौहार वैसे तो खुशियों का है लेकिन पटाखे की आवाज, धुएं और गंध से सबसे अधिक परेशान पालतू जानवर होते हैं, खासकर कुत्ते. वे तेज आवाज से घबराकर खाना छोड़ देते हैं. कहीं दुबककर बैठ जाते हैं. जो उनके शरीर के लिए मुश्किल भरा होता है.

दिवाली को मनाने के साथ-साथ पेट्स का भी ख्याल अवश्य करें ताकि आपकी खुशियां और अधिक हो. इस बारें में साउथ ईस्ट एशिया मार्स इंडिया के वाल्थम साइंटिफिक कम्युनिकेशन मैनेजर डा. कल्लाहल्ली उमेश कहती है कि दिवाली का समय पेट्स के लिए बहुत ही क्रूशियल समय होता है. जब वे समझ नहीं पाते हैं कि उन्हें करना क्या है. चारों तरफ रौशनी और आवाज उन्हें दुविधा में डाल देती है.

जैसा कि छोटे बच्चे को दिवाली के पटाखे और आवाज को समझने में समय लगता है, वैसे ही पेट्स को भी समझने में समय लगता है. खासकर अगर ‘पपी’ आपके घर में हो तो उसे अधिक सम्हालना पड़ता है. ऐसे में घर में रहने वाले लोगों को उसके इस डर को दूर भगाना पड़ता है. पेट्स को इन आवाजों से परिचय करवाने के लिए पहले से कुछ तैयारियां करनी पड़ती है.

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पेट्स को करायें आवाज से परिचय

टेप या रिकौर्ड से आवाज सुनाकर पेट्स को उस आवाज से परिचय करवाया जा सकता है.

आवाज को सुनाकर उसे कुछ मनपसंद खाना दिया जा सकता है ताकि उस आवाज से उसका ध्यान हट जाय

इस काम के लिए वेटेनरी डॉक्टर की सलाह भी लिया जा सकता है.

लेकिन अगर आपने ऐसा नहीं किया है तो पेट्स का खास ख्याल रखें, ताकि वह भी इस दिवाली में आपके साथ हो.

ऐसे करें अपने पेट्स का डर कम

पटाखे बजाने से पहले पेट्स को बाहर घूमा कर लायें.

घर की खिड़की और दरवाजे बंद रखें, पर्दा गिरा दें, ताकि रौशनी की चमक दिखायी न पड़े.

टीवी और रेडियो के वाल्यूम को थोड़ा ऊपर रखें जिससे उसे पटाखे की आवाज सुनाई न पड़े.

उसे अकेला न छोड़े बल्कि साथ में रखे और थोड़ी-थोड़ी देर बाद मनपसंद खाना दें

अगर वह अधिक सेंसिटिव है तो कानों थोड़ी रुई डाल दें.

उसे जहां बैठने की इच्छा हो उसे वही रहने दें, परेशान न करें

नेचुरल वातावरण बनाये रखने के लिए फूलों की सुगंध या लैवेंडर का छिड़काव करें

कुछ काम दिवाली को खुशनुमा बनाने के लिए कभी न करें

स्ट्रीट डौग्स के ऊपर पटाखे न फेकें, न ही उनके दुम में पटाखे बांधे, ये आपके लिए मजेदार हो सकती है पर उनके जान पर बन आती है, कई बार वे जल जाते हैं.

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पटाखों या फुलझड़ी से उन्हें डरायें नहीं, इससे डरकर वे ट्रैफिक के नीचे आकर मर सकते हैं.

अगर वे आहत हो गए हो तो उन्हें शरण दें और इलाज़ करवाएं.

वनभूमि पर कब्जा जमाने का परिणाम

जिस जमीन को ले कर सोनभद्र में सामूहिक नरसंहार हुआ, वह वनक्षेत्र की जमीन है, जिसे हेराफेरी कर के बेचा और खरीदा गया था. इस जमीन के चक्कर में दबंगों ने 10 लोगों को मौत के घाट उतार दिया. जबकि 25 लोग घायल हुए. हकीकत में इस नरसंहार का जिम्मेदार सरकारी अमला ही है.

उस दिन 2019 की तारीख थी 17 जुलाई. उत्तर प्रदेश के जिला सोनभद्र के घोरावल स्थित गांव उम्भापुरवा का हालहवाल कुछ बिगड़ा हुआ था. दरजनों ट्रैक्टर, जिन की ट्रौलियों में 300 से ज्यादा लोग भरे थे, 148 बीघा जमीन को घेरे खड़े थे. उन में गांव का प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर भी था, जिस के साथ आए कुछ दबंग हाथों में लाठीडंडे, भालाबल्लम, राइफल और बंदूक आदि हथियार लिए हुए थे.

दूसरी तरफ जब गांव वालों ने देखा कि दबंग उस 148 बीघा जमीन को जोतने आए हैं तो उन्होंने उन्हें खेत जोतने से रोकने का फैसला किया. वे लोग उन्हें रोकने के लिए आगे बढे़. गरमागरमी में बातचीत हुई, लेकिन दोनों ही तरफ के लोग अपनीअपनी जिद पर अड़े रहे. इस का नतीजा यह हुआ कि उन के बीच विवाद बढ़ गया.

ग्राम प्रधान के साथ आए लोगों ने गांव वालों पर हमला बोल दिया. लाठीडंडों से हुए हमले के बीचबीच में गोली चलने की आवाजें भी आने लगीं. गांव वाले बचने के लिए इधरउधर भागने लगे. कुछ लोग वहीं जमीन पर गिर पड़े. लगभग आधे घंटे तक नरसंहार चलता रहा.

उम्भापुरवा गांव सोनभद्र से 55-56 किलोमीटर दूर है. यहीं पर ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर ने 2 साल पहले करीब 90 बीघे जमीन  खरीदी थी. वह उसी जमीन पर कब्जा करने के लिए आया था. लेकिन स्थानीय लोगों ने उस का विरोध किया, जिस के बाद प्रधान के साथ आए लोगों ने आदिवासियों पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी.

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संघर्ष के दौरान असलहा से ले कर गंडासे तक चलने लगे. आदिवासियों के विरोध के बाद प्रधान के लोगों ने उन पर आधे घंटे तक गोलीबारी की.

इस के बाद मची भगदड़ में तमाम ग्रामीण जमीन पर गिर गए तो उन पर लाठियों से हमला शुरू कर दिया गया. वहां का दृश्य बहुत खौफनाक था. इस हमले में 10 लोगों की मौत हो गई. जबकि 25 लोग घायल हो गए थे. मृतकों में 3 महिलाएं और 7 पुरुष शामिल थे.

इस इलाके में गोंड और गुर्जर आदिवासी रहते हैं. गुर्जर लोग वहां दूध बेचने का काम करते हैं. यह इलाका जंगलों से घिरा है और यहां ज्यादातर वनभूमि है. सिंचाई का कोई साधन नहीं है, इसलिए लोग बारिश के मौसम में बरसात के पानी से वनभूमि पर मक्का और अरहर की खेती करते हैं. इस इलाके में वनभूमि पर कब्जे को ले कर अकसर झगड़ा होता रहता है.

घोरावल के उम्भापुरवा में खूनी जमीन की कहानी बहुत लंबी है. इस की शुरुआत सन 1940 से हुई थी. इस के पहले यहां की जमीन पर आदिवासी काबिज थे. वे लोग इस जमीन पर  बोआईजोताई करते थे. 17 दिसंबर, 1955 में मुजफ्फरपुर, बिहार के रहने वाले माहेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा ने आदर्श कोऔपरेटिव सोसाइटी बना कर यहां की 639 बीघा जमीन सोसाइटी के नाम करा ली थी.

इस के बाद माहेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर के 149 बीघा जमीन अपनी बेटी आशा मिश्रा के नाम करा दी. आशा मिश्रा के पति प्रभात कुमार मिश्रा एक आईएएस अफसर थे. यह काम राबर्ट्सगंज के तहसीलदार ने दबाव में आ कर किया था.

यही जमीन बाद में आशा मिश्रा की बेटी विनीता शर्मा उर्फ किरन कुमारी पत्नी भानु प्रसाद आईएएस, निवासी भागलपुर के नाम कर दी. जमीन परिवार के लोगों के नाम होती रही पर उस पर खेती का काम आदिवासी लोग ही करते रहे. जमीन से जो फसल पैदा होती थी, उस का पैसा आदिवासी आईएएस अधिकारी के परिवार को देते रहे.

17 अक्तूबर, 2017 को विनीता शर्मा ने जमीन गांव के ही प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर को बेच दी. तभी से ग्राम प्रधान यज्ञदत्त इस 148 बीघा जमीन पर कब्जा करने की योजना बना रहा था. इस जमीन के विवाद की जानकारी सभी जिम्मेदार लोगों को थी. यहां तक कि इस की शिकायत आईजीआरएस पोर्टल पर मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार से भी की गई थी. लेकिन ताज्जुब की बात यह कि बिना किसी तरह से निस्तारण के इस शिकायत को निस्तारित बता कर मामले को रफादफा कर दिया गया.

मूर्तिया के रहने वाले रामराज की शिकायत पर मार्च 2018 में अपर मुख्य सचिव राजस्व एवं आपदा विभाग और जुलाई 2018 में जिलाधिकारी सोनभद्र को नियमानुसार काररवाई के लिए यह मामला भेजा गया.

अगस्त 2018 में तहसीलदार की जांच आख्या प्रकरण के बाबत यह मामला न्यायालय सिविल जज सीनियर डिवीजन सोनभद्र के यहां विचाराधीन है. इस सिलसिले में दर्शाया गया कि वर्तमान में प्रशासनिक आधार पर इस मामले में किसी प्रकार की काररवाई किया जाना संभव नहीं है. इस के बाद यह निस्तारित दिखा गया.

7 अप्रैल, 2019 को राजकुमार ने शिकायत दर्ज कराई कि हमारी अरहर की फसल आदिवासियों ने काट ली. इस के बाद थाना घोरावल में 30 आदिवासियों के नाम मुकदमा लिखाया गया. जबकि आदिवासियों की शिकायत पर दूसरे पक्ष के खिलाफ कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई. नरसंहार के बाद अब ग्राम प्रधान यज्ञदत्त के बारे में छानबीन की जा रही है. उस के द्वारा कराए गए कामों की भी समीक्षा की जा रही है.

भूमि विवाद गुर्जर व गोंड जाति के बीच शुरू हुआ था, जो देखते ही देखते खूनी संघर्ष में बदल गया. गांव में लाशें बिछ गईं. घटना से पूरे जनपद में हड़कंप मच गया. सोनभद्र और मिर्जापुर ही नहीं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और देश की राजधानी दिल्ली तक हिल गई.

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गांव के लोग बताते हैं कि पुलिस को बुलाने के लिए 100 नंबर डायल करने के बाद भी पुलिस वहां बहुत देर से पहुंची थी. घटना के बाद पहुंची पुलिस ने घायलों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, घोरावल में भरती कराया. गंभीर रूप से घायल आधा दरजन लोगों को जिला अस्पताल भेजा गया.

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में जमीन पर कब्जे को ले कर हुए हत्याकांड में पुलिस ने मुख्य आरोपी ग्राम प्रधान यज्ञदत्त, उस के भाई और भतीजे समेत 26 लोगों को गिरफ्तार किया. इस मामले में पुलिस ने 28 लोगों के खिलाफ नामजद और 50 अज्ञात लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की, एसपी सलमान ताज पाटिल ने बताया कि फरार आरोपियों को जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

पुलिस ने बताया कि उस ने हत्याकांड में इस्तेमाल किए गए 2 हथियार भी बरामद कर लिए हैं. पुलिस ने गांव के लल्लू सिंह की तहरीर पर मुख्य आरोपी ग्राम प्रधान यज्ञदत्त और उस के भाइयों समेत सभी पर हत्या और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ओ.पी. सिंह को मामले पर नजर रखने का निर्देश दिया. योगी ने घटना को संज्ञान में लेते हुए मिर्जापुर के मंडलायुक्त तथा वाराणसी जोन के अपर पुलिस महानिदेशक को घटना के कारणों की संयुक्त रूप से जांच करने के निर्देश दिए.

सोनभद्र नरसंहार में जमीन के विवाद में प्रशासनिक लापरवाही और स्थानीय पुलिस की मिलीभगत भी सामने आई. 1955 से चल रहे जमीन के विवाद पर सरकार की नींद 10 लोगों की जान ले कर टूटी.

हत्या का आरोप भले ही प्रधान यज्ञदत्त के ऊपर है, पर सही मायने में हत्या में तहसील और थाना स्तर से ले कर जिला प्रशासन तक का हर अमला जिम्मेदार है. सोनभद्र हत्याकांड कोई अकेला मामला नहीं है. हर गांव में छोटेबड़े ऐसे मसले हैं, जो तहसील और प्रशासन की लापरवाही से ज्वालामुखी के मुहाने पर हैं.

सोनभद्र की घटना के बाद ही सही, अगर प्रशासन सचेत हो कर ऐसे मामलों को संज्ञान में ले कर तत्काल कदम उठाए तो ऐसे विवादों के रोका जा सकता है. जमीन से जुडे़ मामलों में थाना और तहसील विवाद को एकदूसरे पर टालते रहते हैं. ऐसे में नेताओं और दबंगों की पौ बारह रहती है और कमजोर आदमी अपनी ही जमीन पर कब्जा करने के लिए इधरउधर भटकता रहता है.

सोनभद्र में हुए जमीनी विवाद में 10 लोगों की जान जाने के बाद भी उत्तर प्रदेश सरकार तब जागी जब दिल्ली से कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने सोनभद्र में डेरा डाला और आदिवासी परिवारों से मिलने की बात पर अड़ गईं. प्रियंका को सोनभद्र जाने से रोक कर चुनार गढ़ किले में बने गेस्ट हाउस में रखा गया.

शुरुआत में प्रदेश सरकार ने मरने वालों को 5 लाख रुपए का मुआवजा देने की बात कही पर प्रियंका गांधी की मांग के बाद मुआवजे की रकम बढ़ा कर 20 लाख कर दी गई. साथ ही यह भी कि जमीन को वही लोग जोतेबोएं, यह भरोसा भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को देना पड़ा.

मुख्यमंत्री खुद पीडि़तों से मिलने गए. जानकार लोग मानते हैं कि प्रियंका के सोनभद्र मामले में सक्रिय होने के बाद भाजपा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही सक्रिय नहीं हुए, बल्कि अन्य दलों ने भी अपने नेताओं को सोनभद्र भेजा.

करीब 1200 की आबादी वाले उम्भापुरवा गांव के 125 घरों की बस्ती में टूटी सड़कें, तार के इंतजार में खड़े बिजली के खंभे बदहाली की कहानी बताते हैं. इस गांव के लोग सरकार की योजनाओं के पहुंचने का सालों से इंतजार कर रहे थे लेकिन 17 जुलाई को हुए नरसंहार के बाद यहां पहली बार शासन की योजनाएं पहुंचने लगीं.

63 साल से अधिक की कमलावती कहती हैं कि हमारी उम्र के लोगों को वृद्धावस्था पेंशन मिलती है लेकिन हमारा नाम काट दिया गया. हमें आज तक पेंशन का लाभ नहीं मिला. न ही किसी अन्य सरकारी  योजना का लाभ मिला. इस घटना के बाद लगे कैंप में अब फार्म भरवाया गया है.

इतने दिन तक तो हमें पता ही नहीं था कि सरकार की क्याक्या योजनाएं चलती हैं. राशनकार्ड तो बना था, लेकिन राशन नहीं मिलता था. इस नरसंहार में हम ने अपना बेटा खोया है. तब जा कर आवास आदि के लिए फार्म भरवाए गए हैं.

इसी गांव की रहने वाली मालती देवी कहती हैं कि पहले न तो गांव में बिजली थी और न ही किसी के पास पक्का मकान था. इतनी बड़ी बस्ती में महज एक पक्का मकान था. घटना के बाद आवास के लिए फार्म भरवाया गया है. राशन कार्ड भी बन गया. इलाज के लिए आयुष्मान भारत का कार्ड भी बना दिया गया.

मिर्जापुर जिले से अलग कर के 4 मार्च, 1989 को सोनभद्र को अलग जिला बनाया गया था. 6,788 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ यह उत्तर प्रदेश का दूसरा सब से बड़ा जिला माना जाता है. यहां जंगल सब से अधिक हैं. खाली पड़ी जमीनें बहुत पहले से नेताओं और अफसरों को अपनी तरफ आकर्षित करती रही हैं. सोनभद्र जिले के पश्चिमी में सोन नदी बहती है.

सोन नदी के नाम पर ही सोनभद्र बना है. सोनभद्र की पहाडि़यों में चूना पत्थर तथा कोयला मिलने के साथ इस क्षेत्र में पानी की बहुतायत होने के कारण यह औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित किया गया.

यहां पर देश की सब से बड़ी सीमेंट फैक्ट्रियां, बिजली घर (थर्मल तथा हाइड्रो) हिंडाल्को अल्युमिनियम कारखाना, आदित्य बिड़ला केमिकल, रिहंद बांध, चुर्क, डाला सीमेंट कारखाना, एनटीपीसी के अलावा कई सहायक इकाइयां एवं असंगठित उत्पादन केंद्र, विशेष रूप से स्टोन क्रशर इकाइयां भी स्थापित हुए हैं.

सोनभद्र का सलखन फौसिल पार्क दुनिया का सब से पुराना जीवाश्म पार्क है. जिसे देखने व घूमने के लिए पूरी दुनिया के लोग यहां आते हैं. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस जिले को भारत का स्विटजरलैंड बनाने का सपना देखा था. लेकिन बाद में इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. जिस से जवाहरलाल नेहरू का सपना सपना ही रह गया.

सोनभद्र में एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा वन भूमि पर अवैध रूप से नेता, अफसर और दबंग काबिज हैं. जिले में तैनात हुए अधिकतर अफसरों ने वन और राजस्व  विभाग कर्मियों की मिलीभगत से करोड़ों की जमीन अपने नाम कर ली.

पीढि़यों से जमीन जोत रहे वनवासियों का शोषण भी किसी से छिपा नहीं है. 5 साल पहले सन 2014 में वन विभाग के ही मुख्य वन संरक्षक (भू-अखिलेख एवं बंदोबस्त) ए.के. जैन ने यह रिपोर्ट दी थी कि पूरे मामले की सीबीआई जांच कराई जाए. लेकिन यह रिपोर्ट फाइलों में दबी रह गई.

इस रिपोर्ट के अनुसार सोनभद्र में जंगल की जमीन की लूट मची हुई है. यहां की जमीन अवैध रूप से बाहर से आए रसूखदारों या उन की संस्थाओं के नाम की जा चुकी है. यह प्रदेश की कुल वनभूमि का 6 प्रतिशत हिस्सा है.

इस पूरे मामले से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराने की सिफारिश भी की गई थी. रिपोर्ट के अनुसार, सोनभद्र में सन 1987 से ले कर अब तक एक लाख हेक्टेयर भूमि को अवैध रूप से गैर वन भूमि घोषित कर दिया गया है. जबकि भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा-4 के तहत यह जमीन वन भूमि घोषित की गई थी.

रिपोर्ट में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना इसे किसी व्यक्ति या प्रोजेक्ट के लिए नहीं दिया जा सकता. वन की जमीन को ले कर होने वाला खेल रुका नहीं है.

धीरेधीरे अवैध कब्जेदारों को असंक्रमणीय से संक्रमणीय भूमिधर अधिकार यानी जमीन एकदूसरे को बेचने के अधिकार भी दिए जा रहे हैं. यह वन संरक्षण अधिनियम 1980 का सरासर उल्लंघन है. 2009 में राज्य सरकार की ओर से उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी.

जिस में कहा गया था कि सोनभद्र में गैर वन भूमि घोषित करने में वन बंदोबस्त अधिकारी (एफएसओ) ने खुद को प्राप्त अधिकारों का दुरुपयोग कर के अनियमितता की है.

हालात का अंदाजा इस से लगा सकते हैं कि 4 दशक पहले सोनभद्र के रेनुकूट इलाके में 1,75,894.490 हेक्टेयर भूमि को धारा-4 के तहत लाया गया था. लेकिन इस में से मात्र 49,044.89 हेक्टेयर जमीन ही वन विभाग को पक्के तौर पर (धारा 20 के तहत) मिल सकी. यही हाल ओबरा व सोनभद्र वन प्रभाग और कैमूर वन्य जीव विहार क्षेत्र का है.

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ट्रांसजैंडर बंदिशों से आजादी की नई उड़ान

ट्रांसजैंडर आखिर है क्या? ऐसे लोग जो अपना लिंग बदलवा देते हैं ट्रांसजैंडर कहलाते हैं. एक ट्रांस महिला वह होती है जो पुरुष के रूप में पैदा होती है लेकिन महिला के रूप में पहचानी जाती है और एक ट्रांस पुरुष वह होता है जो महिला के रूप में पैदा होता है लेकिन पुरुष के रूप में पहचाना जाता है. इन की चालढाल, बात करने का लहजा, कपड़े पहनने का तरीका सब विपरीत लिंग की तरह होते हैं. ऐसे में ये लोग अपना जैंडर चेंज करवा लेते हैं.

ट्रांसजैंडर एलजीबीटी समूह का एक हिस्सा है. एलजीबीटी समलैंगिक लोगों का समूह है. समलैंगिकों को बोलचाल की भाषा में एलजीबीटी यानी लैस्बियन, गे, बाईसैक्सुअल और ट्रांसजैंडर कहते हैं.

ट्रांसजैंडर को मिली नई पहचान

हमारे देश में ऐसे बहुत से लोग हैं जो ट्रांसजैंडर हैं. लेकिन समाज में इन्हें मान्यता नहीं थी. इस डर से ये सामने आने से कतराते थे. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से ट्रांसजैंडर को पहचान मिलने के बाद ये कानूनी रूप से हमारे समाज का हिस्सा बन चुके हैं.

सेक्सोफोन का अनोखा आकर्षण

इस में दो राय नहीं है कि हमारे समाज में ट्रांसजैंडर को अपमानित किया जाता रहा. लेकिन जहां इन के लिए कोई जगह नहीं थी, आज उसी समाज में रह कर ये अपनी पहचान बना रहे हैं. इस पहचान में कई नाम जुड़े हैं जिन में से एक नाम सत्यश्री शर्मिला का भी है. 2018 में सत्यश्री शर्मिला भारत की पहली ट्रांसजैंडर वकील बनी थीं. ऐसे ही एक और नाम, जो ट्रांसजैंडर समुदाय के गर्व का प्रतीक बन कर उभरी हैं, जोयिता मंडल का है, जो देश की पहली ट्रांसजैंडर जज बनीं.

पृथिका याशिनी ने ट्रांसजैंडर के रूप में बखूबी सबइंस्पैक्टर का पद संभाला. इस के अलावा ट्रांसजैंडर समुदाय की पहली डौक्टरेट डिगरी हासिल करने वाली अक्काई पद्मशाली को 2016 में सम्मानित भी किया जा चुका है. वे सैक्सुअल माइनौरिटी ऐक्टिविस्ट हैं.

2009 की शुरुआत होते ही एक और ट्रांसजैंडर महिला अप्सरा रेड्डी को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने औल इंडिया महिला कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया है. वे ऐसी पहली ट्रांसजैंडर हैं जो महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव होंगी.

अब ये ट्रांसजैंडर उड़ान भर रहे हैं. इन्हें किसी का डर नहीं है. अब ये लोग खुद सामने आने को तैयार हैं. दिल्ली जैसे शहर में ये लोग आजाद हो कर घूमते हैं. सोशल मीडिया के जरिए हो या आमनेसामने, पत्रकार जब इन से बात करने की कोशिश करते हैं तो ये छिपते नहीं हैं बल्कि सामने आ कर हर सवाल का जवाब देते हैं.

परिवार और समाज

जब हम में कोई बदलाव होता है तो उस का सब से ज्यादा असर हमारे परिवार पर पड़ता है. बदलाव अच्छा हो या बुरा, समाज के सामने उस की प्रस्तुति हो ही जाती है. ऐसे में ट्रांसजैंडर जैसे बदलाव को कोई कैसे छिपा सकता है.

ऐसी कई कहानियां भी हैं जिन्होंने ट्रांसजैंडर की हकीकत और संघर्ष को दूसरों के लिए मिसाल बना दिया है. अगर बात हम अक्काई पद्मशाली की करें तो अक्काई का बचपन में नाम जगदीश था. मातापिता का लाड़ले बेटे जगदीश ने अपने अंदर एक अजीब सा बदलाव महसूस किया. जगदीश को लड़के से ज्यादा लड़कियों की चीजें पसंद आने लगीं. जगदीश अकसर अपनी बहन की फ्रौक, उस की चूडि़यां पहन कर बहुत खुश होता. मां ने उसे कई बार समझाया कि तुम लड़की नहीं, लड़के हो, इसलिए तुम्हें लड़कों की तरह रहना चाहिए. लेकिन जगदीश जब भी लड़कों के कपड़े पहनता, वह बहुत असहज महसूस करता था. जबकि अपनी बहन की तरह सजनेसंवरने में उसे बहुत खुशी महसूस होती. जब भी उस को मौका मिलता वह लड़की के कपड़े पहन कर तैयार हो जाता.

एक दिन मां ने उसे पकड़ लिया और उस दिन जगदीश की जम कर पिटाई की, उस के पापा ने भी उसे बहुत डांटा और चेतावनी दी कि अगर दोबारा लड़की के कपड़ों में नजर आए तो खैर नहीं. उसे लड़कियों के साथ खेलना पसंद था लेकिन मां उसे लड़कों के साथ खेलने को बोलतीं.

पापा एयरफोर्स में थे. उन का एक ही सपना था कि बेटा पढ़लिख कर सेना में जाए. बेटे के ऐसे व्यवहार को देख कर सब चिंतित थे. उन्हें लगा इसे कोई मानसिक बीमारी है. जब डाक्टर से भी बात नहीं बनी तो अंधविश्वास के नाम पर ओझापंडित के पास ले कर गए. लेकिन बेटे के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया.

जगदीश के जीवन में तनाव इतना बढ़ गया कि 12 वर्ष की उम्र में उस ने 2 बार आत्महत्या करने की कोशिश की. लेकिन घर वालों ने देख लिया और जगदीश की जान बच गई.

जगदीश ने घर वालों को समझाने की कोशिश की कि वह लड़के की तरह नहीं, बल्कि लड़की की तरह अपना जीवन जीना चाहता है. मगर घर वालों ने इनकार कर दिया. उस दिन वह समझ गया कि इस परिवार और समाज में उस की कोई जगह नहीं है. इस कारण उस ने 10वीं के बाद की पढ़ाई भी छोड़ दी. बाद में नौकरी भी की पर कुछ दिनों बाद नौकरी छूट गई.

इस बीच उस का संपर्क कुछ किन्नरों से हुआ. एक दिन वह किन्नरों की बस्ती में पहुंचा. वहीं से उस की शुरुआत जगदीश से अक्काई बनने की हुई. अक्काई बताती हैं कि बस्ती के लोगों ने उन से कहा कि तुम हमारी जैसी मत बनो. यहां पेट पालने के 2 ही विकल्प हैं, या तो भीख मांगो या सैक्स का धंधा करो. यह सुन कर अक्काई घबरा गई, पर वह जानती थी कि आम समाज उसे महिला के रूप में स्वीकार नहीं करेगा, इसलिए वह बस्ती में रहने आ गई. रोजीरोटी के लिए उन्हें भी एक सैक्सवर्कर की तरह धंधा करना पड़ा. कई बार वह पुलिस के हाथों भी पकड़ी गई. 4 साल तक उन्होंने अपना जीवन एक सैक्सवर्कर की तरह व्यतीत किया.

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धीरेधीरे अक्काई समझ गई कि सामाजिक भेदभाव की प्रताड़ना सिर्फ उन की दिक्कत नहीं है. देश में लाखों किन्नर और समलैंगिक लोग हैं, जो हर दिन प्रताड़ना सहने को मजबूर हैं. इस दौरान अक्काई एक संगठन से जुड़ी और समलैंगिक लोगों के बारे में अध्ययन करने लगी. साथ ही, उस ने इंग्लिश भाषा बोलना भी सीखा. 2012 में उस ने सैक्स सर्जरी करवाई और जगदीश से अक्काई बन गई. अक्काई जगहजगह लोगों को समलैंगिक लोगों के लिए जागरूक करने लगी. अक्काई पहली महिला ट्रांसजैंडर है जिस के नाम पर ड्राइविंग लाइसैंस जारी किया गया. अब अक्काई शादीशुदा है और उस ने अपने पुरुष साथी वसु से शादी की.

कई अवार्ड से सम्मानित

हमारे समाज में समलैंगिक लोगों के लिए अलग ही जगह है. जिन्हें हमेशा समाज से अलग रखा जाता है. स्कूल हो या कालेज, उन के साथ एकसमान व्यवहार अभी भी नहीं किया जाता. घरपरिवार के लोग इन से रिश्तेनाते तोड़ लेते हैं. ऐसे में ये बहुत अकेले हो जाते हैं. समाज में रहना इन के लिए मुश्किल होता है. समाज और घर वालों को यह समझना चाहिए कि यह कोई मानसिक बीमारी नहीं है बल्कि यह एक मानसिक व शारीरिक बदलाव है.

परिवार और समाज से अलग होने के बाद इन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इन्हें नौकरी में परेशानी होती है, जिस की वजह से इन्हें पेट पालने के लिए रोड पर उतरना पड़ जाता है. एक तरह जहां सरकार ट्रांसजैंडर और समलैंगिक समूह का सहयोग कर रही है वहीं दूसरी तरफ समाज में कुछ ऐसे लोग हैं जो इन्हें समाज में रहने की मंजूरी नहीं दे रहे. इन्हें किराए पर कमरे नहीं दिए जाते, पार्लर्स में इन्हें ब्यूटीशियन कस्टमर  बनाने से डरती हैं कि कहीं बाकी के कस्टमर आना न छोड़ दे. समाज इन्हें गालियां देता है, तो इन्हें भी उसी भाषा में बात करने की आदत हो जाती है जिस वजह से ये और भी बदनाम हो जाते हैं.

विज्ञान की मदद से लिंग परिवर्तन

आज के समय में कोई भी करवा सकता है. लड़का लड़की बन सकता है और लड़की लड़का बन सकती है. लिंग परिवर्तन में लड़का बनना थोड़ा मुश्किल है लेकिन लड़की बनना आसान है. ढाई साल में डाक्टर करीब 6 औपरेशन कर के लड़के को लड़की बना सकते हैं. लेकिन सैक्स चेंज करने के लिए मनोचिकित्सकों की मंजूरी जरूरी है.

मनोचिकित्सकों के ग्रीन सिग्नल के बाद डाक्टर हार्मोंस का डोज देना शुरू कर देते हैं. लिंग परिवर्तन में 6 औपरेशन करने होते हैं. इस का खर्चा 6-7 लाख रुपए तक आता है. ऐसे में इन्हें अपनी सेहत का खास ध्यान रखना पड़ता है. उम्रभर इन्हें सावधानी बरतनी पड़ती है, सपलीमैंट्स लेने पड़ते हैं.

समाज आज भी ऐसे लोगों को स्वीकार नहीं कर रहा. इस के बावजूद, लिंग परिवर्तन का क्रेज तेजी से बढ़ रहा है. सवाल यह है कि अपनी इच्छा से जैंडर चेंज करने के बाद ये खुश क्यों नहीं हैं? ऐसे कई केस हैं जिन में लिंग परिवर्तन के बाद युवक और युवती खुश नहीं हैं. सामाजिकतौर पर न उन्हें सम्मान दिया जाता है, न समाज में रहने की आजादी. सरकार के बदलाव के बाद अभी समाज में बदलाव आना शेष है. समाज में शुरुआत से ही असमानता रही है, जिस का विरोध करने के बाद भी नतीजा घूमफिर कर वहीं चला जाता है.

कुछ ट्रांसजैंडर समाज के भेदभाव, असमानता से परेशान हैं. लेकिन कुछ ट्रांसजैंडर ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने पार्टनर के लिए अपना जैंडर चेंज करवाया लेकिन अब वे अपने पार्टनर से ही खुश नहीं हैं. खुश न होने की वजह या तो उन का पार्टनर उन्हें छोड़ कर चले जाते हैं या वे सैक्सुअल रिलेशन से खुश नहीं हो पाते.

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कुछ बदल रहा है : भाग 1

लेखिका- अर्चना पैन्युली

बेटे की पसंद को स्वीकार करसुनीता जब भी भारत में रह रहे अपने बेटे से फोन पर उस की शादी की बात करती, वह टाल जाता. बेटे का कुंआरापन अब सुनीता को जबरदस्त अखरने लगा था. 6 फुट की उस की हृष्टपुष्ट काठी, 28 साल की जवान उम्र, ऊपर से नौकरी भी अच्छीखासी…ऐसे में ‘सिंगल’ बने रहने का भला क्या तात्पर्य.

कुछ माह पहले ही सुनीता ने भारत के कई अखबारों व वेबसाइट्स पर उस की शादी के लिए वैवाहिक विज्ञापन निकाला था. कई तरह के प्रस्ताव आ रहे थे. लड़की वाले चिट्ठियां, फोन व ईमेल्स से संपर्क कर रहे थे और अपनी लड़कियों के आकर्षक बायोडाटा भेज रहे थे.

भारत में अपने रिश्तेदारों से सुनीता की जब भी बात होती तो वह भी न जाने कितनी लड़कियां सुझा देते. यहां डेनमार्क में रह रहे कुछ भारतीय भी, जब उन्हें पता चलता कि उन का एक काबिल लड़का अविवाहित है, तो दबे शब्दों में अपनी लड़कियों का जिक्र करने लगते. मगर लड़का था कि किसी भी रिश्ते में कुछ रुचि ही नहीं लेता.

सुनीता की पिछली बार जब बेटे से फोन पर बात हुई तो उसे अल्टीमेटम दे डाला, ‘‘हम कुछ नहीं जानते. अगली बार जब हम भारत आएंगे तो मुझे शादी करनी पडे़ेगी, चाहे तू किसी से भी करे.’’

‘‘मां, मैं किसी विधवा से शादी कर सकता हूं? किसी बच्चे वाली अकेली औरत से शादी कर सकता हूं? किसी दूसरे धर्म की लड़की से शादी कर सकता हूं?’’ वह अजीबोगरीब सवाल पूछने लगा.

सुनीता का माथा ठनका, ‘‘यह तू कैसे सवाल पूछ रहा है? क्या तू वाकई किसी…’’

‘‘नहींनहीं, बस मजाक कर रहा हूं.’’

‘‘नहीं, बेटा बता… क्या तू किसी को पसंद करता है? हम इतने दकियानूसी नहीं हैं,’’ सुनीता ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘मां, जब आप यहां आओगे तो बताऊंगा,’’ वह बोला और झट से बात का रुख बदल दिया.

बेटे से बात खत्म करने के बाद भी सुनीता का ध्यान उसी की तरफ रहा. 10 साल हो गए थे उन्हें उस से अलग रहते हुए. वह तब 18 साल का था, पति की पोस्टिंग तेहरान में थी और उन्होंने उस को 12वीं के बाद तेहरान से भारत भेज दिया था, इंजीनियरिंग कोर्स करने के लिए. पति की विदेश मंत्रालय की नौकरी होने के कारण 3 पोस्टिंग उन्हें लगातार बाहर के देशों की मिलती रहीं. तबादले के इसी क्रम में वे तेहरान के बाद रोम गए, फिर रियाद गए और अब पिछले वर्ष कोपनहेगन आ गए थे.

इसी बीच बेटे ने हैदराबाद से इंजीनियरिंग की, पूना से एम.बी.ए. किया और 4 सालों से बंगलौर इन्फोसिस में नौकरी कर रहा था. बेटी को भी उन्होंने 3 साल पहले रियाद से हैदराबाद के उसी इंस्टीट्यूट से इंजीनियरिंग करने भेज दिया था, जहां से बेटे ने की थी. इस तरह शर्मा दंपती के दोनों बच्चे भारत में थे और वे विदेश में. बेटी अभी पढ़ रही थी इसलिए शर्मा दंपती चाहते थे कि बेटा शादी कर के अपनी गृहस्थी बसा ले तो वे बेटे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से स्वयं को मुक्त समझें.

सुनीता के पड़ोस में एक भारतीय शीतल श्रीनिवासन का परिवार रहता था. यद्यपि शीतल, सुनीता से उम्र में लगभग 12 साल छोटी थी पर उन के बीच दोस्ती अच्छी हो गई थी. इसीलिए शीतल से सुनीता अपने मन की सब बातें कर लेती थी. शीतल के सामने सुनीता अपने मन की शंका जाहिर करते हुए बोली कि बेटे ने आखिर ऐसे सवाल क्यों पूछे? कहीं वास्तव में वह किसी विधवा, बच्चे वाली को चाहता तो नहीं है. जब पिछली बार हम दिल्ली गए थे तो उस के आफिस से एक तलाकशुदा औरत का अकसर उसे फोन आता था. कहीं उस के साथ उस का कुछ चक्कर तो नहीं है.

शीतल का दिमाग बड़ा शातिर था. वह इंटरनेट पर भारत की खबरें पढ़पढ़ कर सुनीता को बताती कि भारत अब तेजी से बदल रहा है. सभी जवान लड़केलड़कियां गर्लफे्रंड बनाने लगे  हैं. डेटिंग, ब्रेकिंगअप व लव मैरिज आज वहां भी आम बात बनती जा रही है.

बेटे की बातें सुन कर सुनीता का मन इस कदर बेचैन था कि भारत जाने का जो कार्यक्र्रम 6 महीने बाद का था वह पति से जिद कर के 1 महीने बाद का करवा लिया. दिल्ली स्थित उन का पहाड़गंज का अपना घर तब ही खुलता था जब वे होम लीव पर भारत आते थे. उन का बेटा मनु अपनी नौकरी से महीने भर का अवकाश ले कर बंगलौर से  दिल्ली अपने मातापिता के स्वागत के लिए पहले ही पहुंच गया. मातापिता के आनेजाने की सुविधा के लिए उस ने किराए की एक कार का इंतजाम कर दिया.

कार ले कर उन्हें रिसीव करने मनु एअरपोर्ट आया. 1 साल बाद सुनीता बेटे से मिल रही थी. वह उस के गले लग गई. पूरे रास्ते, जब वह गाड़ी चला रहा था, पीछे की सीट पर ठीक उस के पीछे बैठी अपने दोनों हाथों से उस का कंधा पकडे़ रही. बेटे का यह स्पर्श सुनीता को एक सुकून दे रहा था.

घर पहुंच कर मनु ने कार पार्क की. डिक्की से मातापिता के बैग व सूटकेस निकाले और उन्हें थाम कर अपने घर की तरफ बढ़ गया, पीछेपीछे सुनीता व पंकज शर्मा थे. जैसे ही सुनीता घर में घुसी तो घर एकदम साफसुथरा व सुव्यवस्थित लगा. सुनीता पुलकित हो कर अपने बेटे से बोली, ‘‘मनु, यह तो अच्छा लगा कि तू ने हमारे घर पहुंचने से पहले ही घर की सफाई कर के रख दी.’’

‘‘उस ने की,’’ मनु बोला.

‘‘किस ने?’’

‘‘वह भी मेरे साथ बंगलौर से यहां आई है न.’’

‘‘कौन?’’ सुनीता अनजान बनते हुए बोली.

‘‘और कौन? इस की फ्रेंड जो है,’’ सुनीता के पति बीच में बोले.

‘‘उस का नाम सेंनली है मां.’’

सुनीता ने बेटे को भरपूर नजरों से देखा तो वह नजरें चुराते हुए बोला, ‘‘मां, वह यहां हौजखास में अपनी किसी सहेली के घर टिकी है. कल वह यहां आई थी. उसी ने यह घर ठीकठाक किया है.’’

‘‘कहां की है वह और जाति क्या है उस की?’’

‘‘मैं जातिपाति को नहीं मानता, मां. सेंनली क्रिश्चियन है और असम की है.’’

‘‘क्रिश्चियन, कहां मिली वह तुझे?’’

‘‘हैदराबाद में मेरे साथ इंजीनियरिंग करती थी.’’

‘‘इस का मतलब पिछले 10 सालों से तेरा उस से चक्कर है और तू ने कभी हमें बताया भी नहीं.’’

‘‘मां, हम एकदूसरे के प्रति कुछ समय से सीरियस हुए हैं और आप दोनों पहले भी उस से मिल चुके हैं. जब पापा की कुछ समय के लिए दिल्ली पोस्टिंग थी और मैं गरमियों की छुट्टियों में उसे ले कर घर आया हुआ था.’’

खैर, दूसरे दिन हैदराबाद से सुनीता की बेटी तुला भी दिल्ली पहुंच गई. दोनों बच्चे सान्निध्य में…इन क्षणों का सुनीता को बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता था. अगले रोज ही अपने बेटे को पीतमपुरा भाई के घर मां को लिवाने भेज दिया. मां भी उस के पास पहुंच गईं. मां और बच्चे….अगर विदेश में वह कुछ मिस करती थी तो अपने इन करीबी रिश्तों को.

सुनीता ने उन सब के बीच अपनी गृहस्थी ऐसे शुरू कर दी जैसे दिल्ली के अपने इस घर से वह कभी कहीं गई ही नहीं. हमेशा इस की चारदीवारी के भीतर ही बंधी रही.

2-3 दिन गुजरे तो सुनीता बेटे से बोली, ‘‘मनु, जहां कहीं की भी वह हो, जो कुछ भी उस का नाम हो, हमें उस से मिला तो सही. हम दरअसल इस बार उसी से मिलने यहां आए हैं.’’

‘‘वह भी आप लोगों से मिलने ही बंगलौर से यहां आई है,’’ कहते हुए मनु ने मोबाइल निकाला, सभी से थोड़ी दूर खिसक, एकांत में जा उस से कुछ बातें कीं और दूसरे दिन, दोपहर में सेंनली आ गई.

सुनीता को सब अच्छी तरह मालूम था कि सेंनली किस प्रदेश की है, किस जाति की है, मगर जब वह सामने आई तो उसे देख कर उन के दिल पर सांप लोट गया. उन्हें लगा जैसे चीन, जापान, थाईलैंड या कोरिया की कोई युवती उस के सामने आ गई है.

‘यह हिंदुस्तान भी कितना विचित्र देश है. कैसीकैसी शक्लसूरत व स्वर वाले लोग यहां रहते हैं,’ सुनीता मन ही मन बुदबुदाई.

‘‘जरनी कैसा…था?’’

वह बात भी कर रही थी तो टूटीफूटी हिंदी में….उफ.

‘‘तुम कहती हो कि तुम हिंदुस्तानी हो पर तुम्हें हिंदी तक ढंग से बोलनी नहीं आती,’’ सुनीता तल्खी से बोली.

वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘मनु से सीख तो रही हूं…’’

‘‘विदेश में कई भारतीयों के बच्चों को मैं ने देखा है. वे विदेश में जन्मे व पलेबढ़े हैं पर बहुत अच्छी हिंदी बोलते हैं. तुम अपने देश में रहते हुए भी ढंग से हिंदी बोलना नहीं जानतीं?’’

‘‘विदेश में जो भारतीय बच्चे हिंदी बोलते होंगे उन की मदर टंग हिंदी होगी. मेरी मदर टंग असमीज है.’’

सुनीता का बात करने का तरीका सेंनली को पसंद नहीं आया तो वह उन्हें उपेक्षित कर तुला व मनु की तरफ उन्मुख हो कर उन से अंगरेजी में बातें करने लगी. तीनों को आपस में फर्राटेदार अंगरेजी में बातें करते देख सुनीता को बड़ी कोफ्त हुई.

‘‘यह तुम लोग अंगरेजी में बात क्यों कर रहे हो?’’

‘‘मम्मी, समझा करो. सेंनली को हिंदी ढंग से नहीं आती,’’ तुला बोली.

‘‘मम्मी, तुम उन छोटेछोटे इसलामी व यूरोपीय देशों की तुलना भारत से मत करो, प्लीज,’’ मनु ने जबान खोली, ‘‘यहां लोग एक नहीं कई भाषाएं बोलते हैं. यहां कई जाति व धर्म के लोग रहते हैं. यहां कई तरह के रंग हैं.’’

सुनीता ने महसूस किया कि मनु को यों अपनी मां के साथ तर्क करते देख सेंनली के चेहरे पर एक भीनी मुसकान तैर गई थी.

बहरहाल, मनु व तुला सेंनली से बात करने में लगे थे और सुनीता के पति पंकज शर्मा हाथों में डिजिटल कैमरा पकड़े बेटे के साथ सेंनली का पोज बनाए तसवीरें खींचने में लगे थे.

सुनीता मौन साधे सोफे पर बैठी रही. मनु व तुला का सेंनली के साथ यों घनिष्ठता से बात करते, पति का उस की तसवीरें खींचना और मां का उसे चाय- पकौडे़ परोसना, सब सुनीता को बेहद अखर रहा था. सेेंनली को बहू स्वीकार करने को उस का मन गवाही नहीं दे रहा था.

खैर, चायनाश्ते के दौर के बाद सेंनली ने अपना पर्स उठाया और सोफे पर से उठ गई.

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