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जीजा पर भारी ब्लैकमेलर साली: भाग 1

शर्मा आटो गैराज में काम करने वाला उत्तम कृष्ण करीब 11 बजे जब गैराज पर पहुंचा तो शटर गिरा हुआ मिला. उसे आश्चर्य हुआ, क्योंकि गैराज के मालिक जितेंद्र शर्मा रोजाना 9 बजे ही गैराज खोल देते थे. उत्तम कृष्ण इस गेराज में एक साल से काम कर रहा था, लेकिन उसे सुबह को कभी भी गैराज बंद नहीं मिला था.

जितेंद्र को कभी आने में देर हो जाती तो वह उत्तम को फोन पर सूचना दे कर गैराज खोलने के लिए बोल देते थे. उत्तम सोच रहा था कि जितेंद्र अभी तक क्यों नहीं आए. वह गैराज के बाहर ही उन के आने का इंतजार करने लगा. तभी उत्तम का ध्यान दुकान पर लगने वाले तालों पर गया तो वह चौंका शटर के दोनों ताले खुले थे.

उत्तम ने आगे बढ़ कर शटर ऊपर उठा दिया. उस की नजर गैराज के अंदर गई तो उस की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. जितेंद्र शर्मा का शव दुकान के अंदर लगे लोहे के पिलर पर रस्सी के फंदे से झूल रहा था.

अपने मालिक की लाश लटकते देख कर उत्तम के मुंह से चीख निकल गई. उस के चीखने की आवाज सुन कर आसपास के दुकानदार जमा हो गए. घटना की सूचना थाना नीलगंगा के टीआई संजय मंडलोई को दे दी गई.

धन्नालाल की जिस चाल में शर्मा गैराज था, वह इलाका थाना नीलगंगा में आता था. कुछ ही देर में टीआई संजय मंडलोई एसआई जयंत सिंह डामोर, प्रवीण पाठक आदि के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने जरूरी जांच के बाद शव को फंदे से उतारा और प्राथमिक काररवाई के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस ने गैराज की तलाशी ली तो वहां 5 पेज का एक सुसाइड नोट मिला. सुसाइड नोट के 3 पेजों पर जितेंद्र ने देवास में रहने वाली अपनी चचेरी साली का जिक्र किया था. सुसाइड नोट के हिसाब से जितेंद्र शर्मा ने चचेरी साली की ब्लैकमेलिंग से तंग आ कर आत्महत्या की थी.

जितेंद्र ने अपने सुसाइड नोट के एक पेज पर पत्नी शोभा को मायके जा कर रहने व दूसरी शादी करने की सलाह दी थी. पुलिस ने सुसाइड नोट हैंडराइटिंग की जांच के लिए एक्सपर्ट के पास भेज दिया. सुसाइड नोट में साली का जिक्र आया था, इसलिए पुलिस ने पूछताछ के लिए देवास में रहने वाली जितेंद्र की साली के बारे में पता किया तो वह घर से लापता मिली.

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उज्जैन के एसपी सचिन अतुलकर के निर्देश पर टीआई संजय मंडलोई ने जांच की जिम्मेदारी एसआई जयंत सिंह डामोर को सौंप दी. मृतक का क्रियाकर्म हो जाने के बाद जांच शुरू करते हुए एसआई डामोर ने मृतक की पत्नी शोभा से पूछताछ की. उस ने अपने पति द्वारा चचेरी बहन पर लगाए आरोपों को सच बताया.

शोभा ने पुलिस को यह भी बताया कि घटना से एक दिन पहले जितेंद्र ने अदिति शर्मा के साथ अपने संबंध और उस के द्वारा ब्लैकमेल करने की बात उसे तथा अपने पिता को बताई थी. जिस पर हम ने उन्हें काफी समझाया था, लेकिन इस के बावजूद उन्होंने ऐसा कदम उठा लिया.

मृतक के पिता ने भी माना कि जितेंद्र अदिति शर्मा द्वारा ब्लैकमेल किए जाने से परेशान था. उन्होंने उसे समझाया था कि सब ठीक हो जाएगा.

पुलिस ने अदिति शर्मा की तलाश में अपने मुखबिर सक्रिय कर दिए थे. घटना के लगभग 10 दिन बाद अदिति शर्मा के देवास में होने की जानकारी मिली तो पुलिस की एक टीम ने वहां जा कर उसे गिरफ्तार कर लिया.

लेकिन तब तक अदिति शर्मा ने इस मामले में हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत ले ली थी, इसलिए थाने में उस के बयान दर्ज करने के बाद पुलिस ने उसे जाने दिया. जिस के बाद पूरी कहानी इस प्रकार से सामने आई—

उज्जैन निवासी लक्ष्मण शर्मा कारों के पुराने मैकेनिक हैं. पिता के साथ काम सीखने के बाद जितेंद्र उर्फ जीतू ने महापौर निवास के सामने अपना अलग गैराज खोल लिया था. 26 नवंबर, 2015 को जितेंद्र की शादी देवास की रहने वाली शोभा से हुई थी. शादी के कुछ समय बाद जितेंद्र सेठी नगर में किराए का मकान ले कर अपने परिवार से अलग रहने लगा था.

कुछ साल पहले जितेंद्र की पत्नी का परिवार देवास छोड़ कर गुजरात वापस चला गया. जितेंद्र की चचेरी साली अदिति शर्मा (24) देवास की एक निजी कंपनी में नौकरी करती थी, इसलिए परिवार के साथ न रह कर वह देवास में ही किराए के मकान में रहने लगी थी.

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धान की कटाई और भंडारण

दुनिया में भारत धान की पैदावार करने में चीन के बाद दूसरा सब से बड़ा देश है. देश में लगभग 50 फीसदी से ज्यादा  लोग चावल का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन धान की कटाई से ले कर उस का सही ढंग से रखरखाव करने तक लगभग 10 फीसदी धान का नुकसान किसानों को होता है. इस की सब से बड़ी वजह किसानों को सही जानकारी न होना है.

फसल की कटाई और इस के बाद होने वाले नुकसान को कम करने की जरूरत आज के समय में पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बेहद जरूरी है.

आमतौर पर देखा जाता है कि कटाई, मड़ाई, सुखाना और फिर फसल को रखने के दौरान नुकसान ज्यादा होता है. इस नुकसान से बचने के लिए वैज्ञानिक तरीके अपनाना जरूरी है. इन्हीं कुछ तरीकों के बारे में हम आप को बता रहे हैं, जिस से आप की मेहनत की कमाई बेकार न जाए.

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धान की कटाई

धान की कटाई किसान खुद करते हैं या फिर मजदूरी दे कर फसल को कटवाते हैं. इस के अलावा अब कई तरह की मशीनें भी लोगों के पास आ गई हैं, जिन से फसल कटवाना और भी आसान हो गया है. मशीनों से काम करने पर समय भी काफी कम लगता है.  रीपर, कंबाइन व हारवेस्टर वगैरह ऐसी ही मशीनें हैं. मजदूरों से फसल की कटाई कराने में इसलिए ज्यादा समय लगता है, क्योंकि मजदूर धान की कटाई पारंपरिक तरीके यानी हंसिया से करते हैं. इस में ज्यादा समय लगता है, लेकिन फायदा भी ज्यादा होता है.

हंसिया से कटाई करने में फसल का काफी कम नुकसान होता है और धान का पुआल भी किसानों को मिल जाता है, जो पशुओं को खिलाने के काम आता है. इस के अलावा ईंधन और कैमिकल बनाने में पुआल का इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही, पुआल बेच कर किसान अपनी आय भी बढ़ा सकते हैं. लेकिन हंसिया से कटाई कराने में काफी समय लगता है, जिस से कटाई का खर्च ज्यादा आता है.

मशीनों में रीपर और ट्रैक्टर से चलने वाला यंत्र कंबाइन का इस्तेमाल धान की कटाई में किया जाता है. मशीन धान काट कर लाइन में लगा देती है, जिसे बाद में इकट्ठा करने में आसानी रहती है. कंबाइन यंत्र से धान की कटाई जमीन से काफी ऊपर से की जाती है और कटाई के साथसाथ मड़ाई और ओसाई भी हो जाती है. कटाई की कंबाइन मशीनें कई तरह की आती हैं, कुछ सस्ती और कुछ महंगी भी. कंबाइन से धान की कटाई में पुआल का नुकसान होता है और काफी धान टूट भी जाता है.

धान टूटने से किसानों को उस की सही कीमत नहीं मिल पाती, जिस से बाजार कीमत से कम में धान बेचना किसानों की मजबूरी बन जाती है, लेकिन कंबाइन यंत्र से कटाई काफी जल्दी होती है, जिस से समय की बचत होती है और लागत भी कम आती है.

धान की मड़ाई

धान कीबालियों यानी पुआल से बीजों को अलग करना मड़ाई कहलाता है. मड़ाई का काम मजदूरों, पशुओं और मशीनों से भी किया जाता है. मड़ाई का काम फसल कटाई के बाद जितनी जल्दी हो सके कर लेना चाहिए. मजदूरों द्वारा मड़ाई लकड़ी या लोहे के पाइप से की जाती है. 2-3 बार लकड़ी या लोहे से कूटने से धान के बीज पौधों से अलग हो जाते हैं.

मड़ाई के लिए तारों से बने ड्रम का भी इस्तेमाल होता है. धान के पौधों को ड्रम पर इस तरह रखा जाता है कि बालियां तार को छूती रहें और ड्रम को पैर से घुमाया जाता है.

इस तरीके से मजदूरों की मड़ाई क्षमता बढ़ जाती है. मड़ाई का काम बैलों से भी किया जाता है. धान की बालियों को जमीन पर फैलाया जाता है और इस के ऊपर बैलों को घुमाया जाता है. उन के पैर के दबाव से धान पौधों से अलग हो जाता है.

इस के अलावा थ्रेशर से भी धान की मड़ाई की जाती है. मड़ाई में किसी वजह से देरी हो रही हो, तो धान का बंडल बना कर सूखी और छायादार जगह पर रखना चाहिए.

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ओसाई

मड़ाई के बाद धान के बीजों के साथ भूसा, धूल के कण और पुआल के टुकड़े रह जाते हैं. इसे हटाने के लिए धान की ओसाई की जाती है. ओसाई का काम उस समय भी किया जाता है, जब हवा चल रही हो. यदि हवा बंद हो जाए, तब 2 लोग चादर को तेजी के साथ झलते हैं, जिस से हवा निकलती है और ओसाई हो जाती है.

आजकल बाजार में ओसाई के लिए बिना बिजली के बड़े पंखे आते हैं, जिन्हें हाथों से चलाया जाता है और ओसाई हो जाती है.

धान की सुखाई

धान की कटाई 20-22 फीसदी नमी रहने पर की जाती है, लेकिन इतनी नमी में धान को रखा नहीं जा सकता है और न ही मिलिंग की जा सकती है. इसलिए धान की नमी कम करना बहुत जरूरी है. इस के लिए धान को पहले धूप में रख कर सुखाया जाता है. इस के लिए घर की छतों के फर्श, चटाई, तिरपाल, प्लास्टिक शीट वगैरह पर फैला कर कई दिनों तक धान के बीजों को सुखाया जाता है. धान को ज्यादा तेज धूप में नहीं सुखाना चाहिए. सुखाने के लिए सीमेंट के फर्श और तिरपाल का इस्तेमाल करना चाहिए.

कटाई के बाद जितनी जल्दी हो सके, धान को सुखा लेना जरूरी है.

सुखाते समय धान को पक्षियों, चूहों और कीटपतंगों से बचाना चाहिए, क्योंकि इस से काफी नुकसान हो जाता है.

धान का भंडारण

घर में पूरे साल धान मौजूद रहे, इस के लिए जरूरी है कि उसे रखने के लिए घर में अच्छी व्यवस्था हो. भंडारण के पहले धान में नमी की मात्रा देख लेनी चाहिए. यदि आप को अधिक समय के लिए भंडारण करना है, तो नमी की मात्रा 12 फीसदी और कम समय के लिए 14 फीसदी होनी चाहिए.

भंडारण से पहले या बाद में धान का कीटों से बचाव करना भी जरूरी है. भंडारण के लिए कई तरह के ड्रम या कोठी इस्तेमाल किए जाते हैं. ये मिट्टी, लकड़ी, बांस, जूट की बोरियों, ईंटों व कपड़े वगैरह से बनाए जाते हैं, लेकिन इस तकनीक से ज्यादा समय तक भंडारण करना संभव नहीं है, क्योंकि इन में हवा जाने की कोई जगह नहीं होती.

ज्यादा समय तक भंडारण के लिए पूसा कोठी, धात्विक बिन व साइलो वगैरह का इस्तेमाल किया जा सकता है. फसल खराब न हो, इस के लिए समयसमय पर ऐसा बंदोबस्त करना चाहिए, जिस से कि हवा आतीजाती रहे वरना धान खराब हो सकता है.

कटाई के समय इन बातों का रखें ध्यान

*     फसल की कटाई उचित नमी और सही समय पर ही करनी चाहिए. धान की कटाई के लिए 20-22 फीसदी नमी सही रहती है. इस से ज्यादा नमी होने पर चावल कम मिलता है और कच्चे, टूटे और कम गुणवत्ता वाले दाने ज्यादा मात्रा में होते हैं. कम नमी होने पर कटाई करने से मिलिंग के दौरान धान टूट कर गिरने लगता है.

* फसल की कटाई देर से करने पर फसल जमीन पर गिर सकती है, जिस से चूहों, चिडि़यों और कीटों से फसल को नुकसान हो सकता है.

* यदि खेत में पानी भरा हो तो कटाई से 7-10 दिन पहले पानी निकाल देना चाहिए, जिस से कटाई आसानी से हो सके.

* कटाई के समय धान की सभी बालियों को एक दिशा में रखना चाहिए ताकि मड़ाई में दिक्कत न हो.

* कटाई के बाद धान को बारिश और ओस से बचाना चाहिए.

* कटाई के बाद धान को ज्यादा सुखाने से बचना चाहिए.

* धान की किस्मों के अनुसार कटाई करवानी चाहिए, जैसे अगेती किस्में 110-115 दिनों बाद, मध्यम किस्में 120-130 दिनों बाद और देर से पकने वाली किस्में लगभग 130 दिनों के बाद काटने लायक हो जाती हैं.

मशीनों से करें धान की कटाई

बीसीएस आटोमैटिड रीपर (स्वचालित) : यह रीपर फसल की कटाई करने के साथसाथ उस के बंडल भी बनाती है जिस से मजदूरों की काफी बचत हो जाती है. इस रीपर से धान, सोयाबीन, धनिया, हरा चारा वगैरह भी काट सकते?हैं.

इस यंत्र में 10 हार्सपावर का इंजन लगा होता है और यह मशीन एक घंटे में तकरीबन एक एकड़ फसल को काट कर उस के बंडल भी साथसाथ बांध देती?है. इतने काम में ईंधन खपत एक लिटर प्रति एकड़ होती है.

इस मशीन को चलाना आसान है. इस पर एक ही आदमी बैठ कर आराम से फसल काट सकता है. इस में कुल 5 गियर होते हैं जिस में 4 गियर आगे और एक गियर पीछे के लिए होता है.

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इस के अलावा बीसीएस कंपनी का ट्रैक्टर चालित रीपर बाइंडर भी आता है जिस की कुछ अधिक कीमत है. ये यंत्र सभी छोटेबड़े शहरों में मिल सकते हैं. ज्यादा जानकारी के लिए आप बीसीएस कृषि यंत्र निर्माता कंपनी के मोबाइल फोन नंबर 09872874743/09872874745 पर बात कर सकते हैं.

कामको पावर रीपर : इस के 2 मौडल उपलब्ध हैं. पहला मौडल केआर 120 एच, जिस की अनुमानित कीमत 1 लाख, 15 हजार है और दूसरा मौडल केआर 120 एम है, जिस की अनुमानित कीमत 1 लाख, 10 हजार है. इन्हें पैट्रोल व डीजल दोनों से चलाया जा सकता है और पैट्रोल से ईंधन खपत 800 मिलीलिटर प्रति घंटा है. डीजल से चलाने पर ईंधन की खपत अधिक होती है. यह 2 घंटे में 1 एकड़ फसल की कटाई करता?है. यह जमीन से 5 सैंटीमीटर से 25 सैंटीमीटर की ऊंचाई तक 1.2 मीटर की चौड़ाई में फसल की कटाई करता है.

अशोका रीपर बाइंडर : इस यंत्र को 35 एचपी से 40 एचपी के ट्रैक्टर के साथ आसानी से जोड़ कर चलाया जाता है और 3 घंटे में 1 हेक्टेयर फसल की कटाई के साथसाथ बंधाई भी करता है. इस यंत्र में हाइड्रोलिक सिस्टम होने के कारण इस को अपनी सुविधानुसार ऊपरनीचे किया जा सकता है. मशीन को ट्रैक्टर के साथ जोड़ने के बाद कटाई करते समय 5 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार तक चलाया जा सकता है.

भारत रीपर : इस के अलावा भारत इंडस्टियल कोऔपरेशन का भारत रीपर, जिन का फोन नंबर 0136-224075, मोबाइल नंबर 9814069075 पर बात कर के आप अधिक जानकारी ले सकते हैं.

सरदार रीपर : अनेक फसलों की कटाई करने वाला इन का मल्टीक्रौप सुपर डीलक्स मौडल 841 है. ज्यादा जानकारी के लिए आप मोबाइल फोन नंबर 9814447143 पर बात कर सकते हैं.

इन कृषि यंत्र निर्माताओं के अलावा अनेक लोग ऐसे यंत्र बना रहे?हैं जिन में गुरु पावर रीपर, किसान क्राफ्ट, लोहन पावर रिपर वगैरह?हैं. इस के अलावा आप अपने नजदीकी कृषि यंत्र विक्रेता या नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से भी रीपर से जुड़ी जानकारी ले सकते हैं.

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फेस्टिवल स्पेशल : ऐसे बनाएं फ्राइड कौर्न रेसिपी

फेस्टिवल सीजन चल रहा है और ऐसे में अगर आप कुछ स्पेशल डिश ट्राई करना चाहते हैं तो फ्राइड कौर्न आसानी से बना सकते हैं. जो बनाने में भी काफी आसान है और खाने में भी टेस्टी है. तो चलिए जानते हैं, फ्राइड कौर्न बनाने की रेसिपी.

सामग्री

1 साबुत नमक

1 किलोग्राम अमेरिकी मकई

2 लीटर दूध

250 ग्राम चीज क्यूब्स

300 ग्राम मकई का आटा

1 किलोग्राम क्रीम स्टाइल स्वीट कॉर्न

150 ग्राम चीनी

200 ग्राम कद्दूकस की हुई गाजर

स्वादानुसार नमक

1 किलोग्राम पैंको ब्रेडक्रंब

रिफाइंड औइल

200 ग्राम सभी आटा

150 मिली लीटर पानी

2 गाजर

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बनाने की वि​धि

सबसे पहले एक ब्लेंडर लें और इसमें अमेरिकन मकई, कौर्न, कौर्न क्रीम, चीज, पानी, चीनी, दूध, नमक और गाजर डालें और फिर से पूरे मिश्रण को फेंट लें.

अब एक कड़ाही में कुछ रिफाइंड तेल गर्म करें. जब तेल अच्छी तरह गर्म हो जाए तो तैयार मिक्चर को कड़ाही में डालकर मध्यम आंच पर गर्म करें. अब इसमें कौर्न फ्लोर डालकर इसे एकदम गाढ़ा होने तक पकाते रहें,

एक ट्रे या प्लेट को थोड़ा-सा घी या बटर लगाकर उसे चिकना कर लें. अब इस ट्रे में पका हुआ मिश्रण फैलाएं. इसे चम्मच की मदद से एकसार कर दें और ठंडा होने पर करीब एक इंच के साइज में पीस काटें.

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जब मां बाप करें बच्चों पर हिंसा

दिल्ली के दक्षिणपुरी इलाके में हाल ही में इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटना सामने आई. दरअसल, बच्ची के रोने से परेशान हो कर सौतेले पिता ने 3 साल की मासूम बेटी को गरम चिमटे से जला दिया. अफसोस की बात यह है कि इस काम में बच्ची की सगी मां सोनिया ने पति का साथ दिया. पड़ोसियों ने बच्ची के रोने की आवाज सुन कर चाइल्ड हैल्पलाइन में फोन कर दिया और आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया. बच्ची के साथ इस तरह के जुल्म करीब 4 माह से हो रहे थे. जब भी वह रोती, उस का सौतेला बाप उस के साथ ऐसे ही मारपीट करता था.

मौत की वजह बनी घरेलू हिंसा

10 सितंबर को दिल्ली में 21 दिन की बेटी की हत्या करने के आरोप में पिता को गिरफ्तार किया गया. दिल्ली के द्वारका के बिंदापुर क्षेत्र में एक कारोबारी व्यक्ति ने पत्नी से  झगड़ा करने के बाद 21 दिन की बेटी की हत्या कर दी. आरोपी ने पहले अपनी बेटी का गला घोटा, फिर उसे पानी की टंकी में डुबो दिया. बच्ची की 23 वर्षीया मां ने पुलिस में अपने पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. युवती द्वारा दर्ज शिकायत के मुताबिक, वह शुक्रवार को मायके जाने की योजना बना रही थी. बच्ची का जन्म 16 अगस्त को हुआ था. मुकेश इस बात को ले कर खुश नहीं था. वह बच्ची को छत पर ले कर गया और दरवाजा बंद कर इस घटना को अंजाम दिया.

20 जुलाई को मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में एक व्यक्ति ने शराब के नशे में अपनी डेढ़ वर्षीया मासूम बेटी की हत्या कर दी. वारदात को आरोपी की बड़ी बेटी ने देखा. पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया. युवक की पत्नी उस वक्त अस्पताल में भरती थी. रात के समय जब वह घर आया तो उस की छोटी बेटी रो रही थी. तब उस ने म झली बेटी को पीटा और छोटी बेटी को सिर के बल पटक दिया जिस से उस की मौत हो गई.

पिता ने किया यौन उत्पीड़न

18 अगस्त को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में रिश्तों को शर्मसार करने वाली घटना सामने आई. वहां एक ऐसे आरोपी को गिरफ्तार किया गया जिस पर अपनी बेटी से 2 साल तक रेप करने और बाद में उस की हत्या करने का आरोप है. आरोपी की पत्नी का निधन 15 साल पहले हो गया था. पीडि़ता की उम्र 19 साल थी.

बेटी के यौन उत्पीड़न का यह कोई पहला मामला नहीं है. इस से पहले देश की राजधानी दिल्ली से सटे गुरुग्राम में एक युवक को अपनी 8 साल की बेटी के साथ कई महीनों तक रेप करने के मामले में गिरफ्तार किया गया था. लड़की पिछले कुछ दिनों से सामान्य व्यवहार नहीं कर रही थी. जब पड़ोसियों ने उस से पूछताछ की तो उस ने यौन उत्पीड़न के बारे में बताया.

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बेरहम पिता

मार्च में बिहार के कंकड़बाग की एक बच्ची का वीडियो वायरल हुआ था जिस में 5 साल की बच्ची का पिता कभी उसे थप्पड़ मारता है, कभी उस के कंधे तक के बालों को मुट्ठी में भींच कर उस का सिर पटक देता है, तो कभी लात से मारता है.

बच्ची लगातार मार खा रही है. लेकिन एक बार भी अपने घावों को सहला नहीं रही. उस के मुंह से एक बार भी आह सुनने को नहीं मिली. उलटा, वह बारबार माफी मांग रही है, ‘‘पापा, हम से गलती हो गई. हम अपनी कसम खाते हैं कि कभी भी जन्मदिन मनाने के लिए नहीं कहेंगे. हम साइकिल नहीं मांगेंगे. हम को माफ कर दीजिए.’’

जैसे ही वीडियो वायरल हुआ, कंकड़बाग पुलिस ने इस शख्स को तुरंत हिरासत में ले लिया. बच्ची का नाम जयश्री है और पिता का नाम कृष्णा मुक्तिबोध है.

राजस्थान का वीडियो

राजस्थान के राजसमंद जिले में देवगढ़ थाना के तहत आने वाले फूंकिया के थड़ गांव से एक वीडियो वायरल हुआ जिस में 2 मासूम बच्चों को उन का पिता सिर्फ इसलिए खूंटी से बांध कर पीटता है क्योंकि मना करने के बावजूद बच्चे मिट्टी खाते थे और जहांतहां गंदगी कर बैठते थे. बच्चों के चाचा ने वीडियो बनाया और वायरल कर दिया. मामले पर पुलिस कार्रवाई हुई. बच्चों को पीटने वाला पिता गिरफ्तार हुआ. वीडियो बनाने वाले चाचा पर भी कार्रवाई की गई. इस वीडियो को देख कर कोई भी सिहर उठेगा.

ऐसे मामले एकदो नहीं, बल्कि हजारों की संख्या में हैं. पूरे देश में बच्चे घरेलू हिंसा के शिकार होते रहे हैं. दीगर बात यह है कि इस का कोई औफिशियल आंकड़ा तब ही रिकौर्ड होता है जब शिकायत होती है. ज्यादातर घरों में लोगों को ही अंदाजा नहीं कि बच्चे जानेअनजाने किस तरह घरेलू हिंसा का शिकार हो रहे हैं. बच्चों के प्रति मारपीट, उन की उपेक्षा, उदासीनता और अनदेखी, समय न दे पाना, अपेक्षाओं का बो झ, धमकाना जैसी बातें आम हैं. मानसिक प्रताड़ना और घरेलू हिंसा के ऐसे मामले बच्चों के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं. कुछ मामलों में नौबत जान से हाथ धोने की आ जाती है.

यूनिसेफ की रिपोर्ट कहती है कि दुनियाभर में करीब 13 करोड़ बच्चे अपने आसपास बुलिंग यानी बड़े मजबूत बच्चों की धौंसबाजी व मारपीट या दादागीरी का सामना करते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, हर 7 मिनट में दुनिया में कहीं न कहीं एक किशोर को हिंसा के कारण अपनी जान गंवानी पड़ती है. ऐसी मौतों की वजह  झगड़ों के बाद हुई हिंसा होती है.

21वीं शताब्दी के पहले 16 सालों (वर्ष 2001 से 2016 तक) में भारत में 1,09,065 बच्चों ने आत्महत्या की. 1,53,701 बच्चों के साथ बलात्कार हुआ. 2,49,383 बच्चों का अपहरण हुआ. कहने को हम विकास कर रहे हैं लेकिन हमारे इसी समाज में स्कूली परीक्षा में असफल होने के कारण 34,525 बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं. ये महज वे मामले हैं जो दर्ज हुए हैं. इन से कई गुना ज्यादा घरेलू हिंसा, बलात्कार और शोषण के मामले तो दर्ज ही नहीं होते हैं.

बच्चों का उत्पीड़न है खतरनाक

आमतौर पर माना जाता है कि बच्चों को अनजान लोगों से खतरा हो सकता है जबकि अभिभावक और रिश्तेदारों के पास उन्हें सुरक्षा मिलती है. पर हमेशा ऐसा ही हो यह जरूरी नहीं. अभिभावक, देखभाल करने वाला शख्स, ट्यूशन देने वाले टीचर या फिर बड़े भाईबहन और रिश्तेदार, इन में से कोई भी बच्चों के साथ बदसलूकी यानी बाल उत्पीड़न कर उन्हें ऐसी चोट दे सकता है जो बच्चों के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक सेहत और व्यक्तित्व के विकास में बाधक बन सकती है. ऐसी वजहें बच्चे की मृत्यु का कारण भी बन सकती हैं. बच्चों के साथ इस तरह के उत्पीड़न कई तरह के हो सकते हैं.

शारीरिक उत्पीड़न का अर्थ उन हिंसक क्रियाओं से है जिस में बच्चे को शारीरिक चोट पहुंचाने, उस के किसी अंग को काटने, जलाने, तोड़ने या फिर उन्हें जहर दे कर मारने का प्रयास किया जाता है. ऐसा जानबू झ कर या अनजाने में भी किया जा सकता है. इन की वजह से बच्चे को चोट पहुंच सकती है, खून बह सकता है या फिर वह गंभीर रूप से बीमार या घायल हो सकता है.

भावनात्मक उत्पीड़न का अर्थ है अभिभावक या देखरेख करने वाले शख्स द्वारा बच्चे को नकार दिया जाना, बुरा व्यवहार करना, प्रेम से वंचित रखना, देखभाल न करना और बातबेबात अपमान किया जाना आदि. बच्चे को डरावनी सजा देना, गालियां देना, दोष मढ़ना, छोटा महसूस कराना, हिंसक बनने पर मजबूर करना जैसी बातें भी इसी में शामिल हैं. इन की वजह से बच्चा मानसिक रूप से बीमार हो सकता है. उस का व्यक्तित्व प्रभावित हो सकता है और उस के अंदर हीनभावना विकसित हो सकती है.

बाल यौन उत्पीड़न का मतलब यौन दुर्भावना से प्रेरित हो कर बच्चे को तकलीफ पहुंचाना और शारीरिक शोषण करना है. बचपन में यदि इस तरह की घटना होती है तो बच्चा ताउम्र सामान्य जीवन नहीं जी पाता. लंबे समय तक ऐसी तकलीफों से उपजा अवसाद बच्चे में अलगाव और खुद को खत्म कर डालने की भावनाएं पैदा कर सकता है. यौन संक्रमण, एड्स या अनचाहा गर्भ बाल यौन उत्पीड़न के खतरनाक परिणाम हैं.

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महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अध्ययन चाइल्ड एब्यूज इन इंडिया के मुताबिक, भारत में 53.22 फीसदी बच्चों के साथ एक या एक से ज्यादा तरह का यौन दुर्व्यवहार और उत्पीड़न हुआ है.

बाल विवाह भी अभिभावक द्वारा बच्चों पर किए जाने वाले उत्पीड़न का एक रूप है. भारत के बहुत से हिस्सों में 12-14 साल या उस से भी कम उम्र की लड़कियों का ब्याह कर दिया जाता है. इस से पहले कि वे शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से विकसित हो सकें मांबाप उन्हें ससुराल भेज देते हैं. कम उम्र में शादी होने से बहुत सी लड़कियां अपने सारे अधिकारों से, विद्यालय जाने से वंचित हो जाती हैं.

अवहेलना करने का मतलब है जब अभिभावक साधनसंपन्न होने के बावजूद अपने बच्चे की शारीरिक व भावनात्मक जरूरतों को पूरा करने में असफल रहते हैं या फिर उन के द्वारा ध्यान न देने की वजह से बच्चा किसी दुर्घटना का शिकार हो जाता है.

सिर्फ अपेक्षाओं और प्रतियोगिताओं का बो झ ही नहीं सहते, हमारे बच्चे समाज के अंधविश्वास के भी शिकार हैं. मसलन, राजस्थान में बच्चों को होने वाली निमोनिया जैसी बीमारियों का इलाज उन को गरम सलाखों से दाग कर किया जाता है. भीलवाड़ा और राजसमंद में ऐसे कई मामले हो चुके हैं. बनेड़ा में 2 साल की मासूम बच्ची पुष्पा को निमोनिया होने पर इतना दागा गया कि दर्द से तड़पते हुए उस की सांसें टूट गईं. 3 महीने की परी को निमोनिया हुआ तो उस के शरीर में आधा दर्जन जगहों पर गरम सलाखें चिपका दी गईं.

शारीरिक हिंसा

कई दफा हिंसा से मौत का खतरा तो नहीं होता मगर बच्चे की सेहत, उस के विकास या आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है. हिटिंग, किकिंग, बीटिंग, बाइटिंग, बर्न्स, पौइजनिंग आदि द्वारा बच्चों को तकलीफ पहुंचाई जाती है. एक्सट्रीम केसेस में इस तरह की हिंसाएं बच्चे की मौत, अपंगता या फिर गंभीर चोटों के रूप में सामने आ सकती हैं. ये उन की मानसिक सेहत और विकास को भी प्रभावित कर सकती हैं.

चाहें या न चाहें, अकसर हमें गुस्सा आ ही जाता है और अकसर इसे हम अपने बच्चों पर निकालते हैं. गुस्सा भले ही उन पर आ रहा हो या नहीं, पर हाथ उठाने में देर नहीं लगती. कभी बच्चे पर अंकुश लगाने के लिहाज से तो कभी कम नंबर लाने पर, कभी उस की किसी मांग को पूरी कर पाने में असमर्थ होने पर तो कभी घरबाहर के तनावों की वजह से हम अपने बच्चे की पिटाई शुरू कर देते हैं. पर क्या आप जानते हैं कि इस का असर क्या होता है?

कई शोध बताते हैं कि अभिभावकों का मारनापीटना बच्चों के आत्मविश्वास पर असर डालता है, उन में हिंसा की भावना को जन्म देता है और डिप्रैशन पैदा करता है. चाइल्ड साइकोलौजिस्ट्स के मुताबिक, बच्चे, जो घर में शारीरिक, मानसिक प्रताड़ना के शिकार होते हैं, आगे चल कर आत्मविश्वास की कमी और कमजोर निर्णय क्षमता के साथ बड़े होते हैं. परिवार के साथ उन की दूरी इतनी बढ़ जाती है कि वे समाज में नए अपराधी की शक्ल में सामने आने लगते हैं.

14 साल के सोनू को जब गुस्सा आता है तो वह अपना आपा खो देता है. कभी दीवार पर हाथ मारता है तो कभी सिर. कभी सामने वाले पर बुरी तरह चीखनेचिल्लाने लगता है तो कभी हाथ में जो भी चीज है, जमीन पर दे मारता है. स्कूल और पासपड़ोस से सोनू की शिकायतें आने लगीं तो घरवाले चिंतित हो उठे.

घरवाले यह नहीं सम झ पा रहे थे कि सोनू के ऐसे बरताव के लिए वे खुद जिम्मेदार हैं. घरवालों ने उस के साथ बचपन में जैसा व्यवहार किया वही बरताव अधिक उग्र रूप में सोनू का स्वभाव बन गया था. घरवालों ने शुरू में कभी भी उस के गुस्से को गंभीरता से नहीं लिया. उस की सीमाएं और गुस्से के खतरे से उस को आगाह नहीं किया. न ही वे अपने बरताव में बदलाव लाए. नतीजा, अब सोनू का स्वभाव समाज में स्वीकार नहीं किया जा रहा.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चों के हिंसक बरताव की वजह घरों में हिंसा देखना भी है. जिस में पति का पत्नी को पीटना या मातापिता का बच्चों को मारना शामिल हैं. पहले वे अपने से छोटों पर हिंसा करते हैं. वयस्क हो जाने पर वे पत्नी पर और बाद में कभीकभी कमजोर हो गए मांबाप के साथ भी हिंसा कर डालते हैं.

अकसर हिंसा कर के आप बच्चे से अपनी बात मनवाते कम हैं, अपना नुकसान ज्यादा करते हैं. आप का मानसिक सुकून तो खोता ही है, बच्चे के व्यक्तित्व पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. बच्चों को प्यार से सम झाया जा सकता है और उस का असर अच्छा रहता है.

कई बार अभिभावक बात मनवाने के लिए हिंसा का इस्तेमाल करते हैं. वे बच्चों को बातबेबात थप्पड़ मार देते हैं. सब के आगे उन्हें डपट देते हैं. ऐसा होने पर बच्चों के मन में यह धारणा घर कर जाती है कि हिंसा का इस्तेमाल सही है.

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सख्त रवैया क्यों

देखा जाए तो किसी भी घर में बच्चे आंखों के तारे होते हैं. लेकिन ज्यादा लाड़प्यार में बच्चे बिगड़ते हैं, यह थ्योरी बच्चों के प्रति सख्त रवैया भी लाती है. कहना न मानने पर डांटफटकार और मारपीट का चलन भी आम है. डिजिटल और सोशल मीडिया के दौर में, वैसे भी, बच्चे एकाकी जीवन जी रहे हैं. अभिभावक बच्चों को अपना समय नहीं दे पाते. एकल परिवारों की वजह से दादादादी तो घर में होते नहीं जो पीछे से बच्चे को संभाल लें, भाईबहन भी आजकल मुश्किल से होते हैं या नहीं भी होते. ऐसे में अकेला बच्चा घर में बैठ कर क्या करेगा. उस का भटकना संभव है. मगर इस वजह से वह कुछ गलती करता है तो क्या उसे मारनापीटना उचित है?

वैसे सवाल उठता है कि जिन घरों में रोजाना 4 बार पूजा होती है, समयसमय पर गीतापाठ, माता की चौकी, जागरण, मंदिरों के फेरे लगते हैं, वहां भी बच्चे सुरक्षित नहीं हैं. ये सब उदाहरण इन घरों के हैं जो न नास्तिक हैं, न धर्मविरोधी. ये पूजापाठी परिवार हैं, प्रवचन सुनते हैं, फिर भी धर्म का परिवार चलाने में जरा भी योगदान नहीं. ये कैसे संस्कार हैं जिन के गुणगान हम करते रहते हैं?

जहां तक बात एजुकेशन सिस्टम की है तो कहना गलत न होगा कि नर्सरी क्लास से जो कंपीटिशन का दौर शुरू होता है वह अंत तक बना रहता है. बस्तों का बो झ ऐसा मानो बच्चे पूरा स्कूल कंधे पर लिए घूम रहे हों. स्कूल से छूटे तो कोचिंग की टैंशन शुरू. हर 2 माह पर एग्जाम और उस एग्जाम में बेहतरीन करने का दबाव ताकि बच्चे का भविष्य संवर सके. बच्चा हमारी खींची लकीर पर न चले तो हम नाराज और हिंसक हो उठते हैं. लेकिन, अभिभावक के रूप में हम कभी बच्चों की बेचैनी नहीं सम झते.

क्या मांबाप होने की जिम्मेदारी का मतलब बच्चों के साथ मारपीट का अधिकार है? अपनी उम्मीदों की गठरी हम अपने बच्चों के सिर रख कर क्यों चलते हैं? हमारी यह आस होती है कि हमारा बच्चा हमारी सारी उम्मीदों पर खरा उतरे. वह हमारे अधूरे सपनों को पूरा करे और इस के लिए छुटपन से ही हम उसे अनुशासन में रखने लगते हैं. अभिभावक अमीर हों, मध्यवर्ग के हों या फिर गरीब, तीनों वर्गों के लोग बच्चों के साथ हिंसा करते हैं भले ही तरीका अलगअलग क्यों न हो.

भविष्य की फिक्र में हम यह भूल रहे हैं कि बच्चों की जिंदगी में यह दौर दोबारा नहीं आएगा. बच्चों को ले कर समाज का नजरिया भी जरा अजीब है. हम ने अच्छी परवरिश का पैमाना सिर्फ बड़े स्कूल, हाई परसैंटेज और कामयाबी तक सीमित कर रखा है. यह कहा जाता है कि परवरिश बच्चों का भविष्य तय करती है. तो क्या बच्चों में बढ़ते अपराध या आत्महत्या के बढ़ते मामलों के लिए हम अपनी जिम्मेदारी से बच जाएंगे?

हिंसक होने की मूल वजह

यदि अभिभावक ने खुद बचपन में हिंसा का सामना किया हो, तो बड़े हो कर वे बच्चों पर हाथ उठाते हैं. कुछ अभिभावक अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाते. वे अभिभावक बच्चों की ज्यादा पिटाई करते हैं जिन का सैल्फएस्टीम लो होता है. कुछ अभिभावक खुद मानसिक रोगी होते हैं और अल्कोहल या ड्रग्स का सेवन करते हैं. सामान्यतया वे ही इस तरह की हरकतें करते हैं. जो एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स के चक्कर में होते हैं, वे भी ऐसी हरकतें करते हैं. आर्थिक समस्याएं होने पर भी मांबाप अपनी  झल्लाहट बच्चों पर उतारते हैं.

बच्चों की पिटाई की जाए या नहीं

स्वीडन पहला यूरोपीय देश बना जहां बच्चों को मारनापीटना गैरकानूनी है. साल 2013 में फ्रांस की एक अदालत ने फैसला दिया था कि एक आदमी ने अपने 9 साल के बेटे को पीटने में ज्यादती कर दी है. उस ने पीटने से पहले अपने बेटे की कमीज उतरवा दी थी. उस पर 500 यूरो का जुर्माना लगाया गया. लेकिन इस फैसले से देश 2 भागों में बंट गया.

फ्रांस में बच्चों की पिटाई का इतिहास काफी पुराना है. कहा जाता है कि फ्रांसीसी राजा लुइस तेरहवें को एक साल की उम्र से पिता के आदेश पर लगातार पीटा जाता रहा था.

अन्य यूरोपीय देशों की तरह फ्रांस में भी बच्चों के खिलाफ हिंसा को अपराध बना दिया गया है. लेकिन, यह अभिभावकों को अपने बच्चों को हलके हाथ से अनुशासित करने का अधिकार भी देता है.

यह ‘हलके हाथ’ से अनुशासित करना क्या है और आपराधिक हिंसा क्या है, यह तय करने का अधिकार अदालतों को है, जिस से अकसर विवाद होते रहे हैं. हालांकि, ब्रिटेन और फ्रांस में हुए एक सर्वे में बच्चों को पीटने पर कानूनी प्रतिबंध के परिणाम करीबकरीब एकजैसे थे. हाल में ब्रिटेन में सर्वे में शामिल 69 फीसदी लोग इस के खिलाफ थे, वहीं फ्रांस में 67 फीसदी लोग इस के विरोध में थे.

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अब समय आ गया है कि हम इस पर गंभीरता से विचार करें कि क्या सचमुच संस्कार और शिक्षा थोपने की आड़ में चाहेअनचाहे हम बच्चों के साथ अन्याय कर जाते हैं.

मोबाइल फोन से बच्चों की आंखे हो रही हैं टेढ़ी

“मेरा बेटा  टेक्निकल इंजीनियर बनेगा वो मोबाइल फोन पर फोटो गैलरी, म्यूजिक सभी चीजें आसानी से चला लेता है वो महज तीन साल का है ” ये कहते हुए मां को बड़ा गर्व होता है और फ़ोन बेटे के हाथ में थमा देती है.

क्या आप भी ऐसा ही कर रही हैं, यदि हां तो जरा ठहरिये क्योंकि आप उसका भविष्य संवार नहीं बल्कि बिगाड़ रही हैं. क्योंकि मोबाइल फोन की लत उनकी आंखों के लिये घातक साबित हो सकती हैं. एक  रिसर्च के दौरान पाया गया है कि स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वाले बच्चो में आई स्ट्रोक और आंखें टेढ़ी होने का खतरा बढ़ जाता है. दुनिया भर में दो करोड़ से भी ज्यादा लोग इससे पीड़ित हैं.

क्या होता है आई स्ट्रोक

जिस तरह दिमाग में स्ट्रोक होता है उसी तरह आई स्ट्रोक होता है. इसमें रक्त का संचार रुक जाता है और रेटिना तक नहीं पहुंच पाता जिस कारण आई स्ट्रोक होता है. रेटिना ऊतकों की एक पतली परत है, जो देखने में मदद करती है. रक्त का संचार अवरुद्ध होने से रेटिना को पर्याप्त मात्रा में औक्सीजन नहीं मिल पाता. जिस  वजह से कुछ मिनटों या घंटों में कोशिकाएं मरने लगती हैं. आई स्ट्रोक से दृष्टि काफी कमजोर हो जाती है या कभी कभी पूरी तरह दिखना भी बंद  हो जाता है.

लगातार बढ़ रहा है चश्मे का नंबर

मोबाइल फोन, लैपटौप और टैब पर लगातार नजरे गढ़ाए रहने से बच्चों की आंखों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है. जिस कारण बच्चों की दूर की नजर कमजोर हो रही हैं.
बच्चे टीवी,फोन देखते समय पलके नहीं झपकाते और एक टक देखते रहते हैं. जिस वजह से उनकी आंखों से पानी आने लगता है. लगातार नजदीक से देखने के कारण आंखों पर जोर पड़ता है. आंखों में रूखापन आने लगता है और धीरे धीरे उनकी नजर  कमजोर व आंखें टेढ़ी होने लगती हैं.

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आंखें हो रही है कमजोर

चिकित्सकों का मानना है कि आंखें दूर और नजदीक की चीजें देखने में भी सक्षम होती हैं. लगातार नजदीक का देखने से बच्चों की आंखें नजदीक की चीजें देखने की आदी हो रही हैं. इससे दूर की नजर कमजोर हो रही हैं. बच्चों को इन इलेक्ट्रौनिक उपकरणों की चपेट में आने से बचाने के लिए उन्हें रोजाना कम से कम एक घंटा बाहर के लिए बिताने को प्रोत्साहित करना चाहिए.

कैसे करें बचाव

बच्चे को दिन भर में महज एक घंटा ही टीवी या कभी कभी फोन देखने को दें हो सके तो फोन को पूरी तरह दूर ही रखें.

बच्चों के सामने पेरेंट्स भी फोन का प्रयोग कम ही करें.

आंखें शरीर का बेहद कोमल अंग हैं इसलिए इनकी सही से देखभाल करना जरूरी है. सुबह उठने और रात को सोने से पहले बंद आंखों पर पानी के छींटे मारें. इससे आंखों को आराम मिलेगा.

लगातार कंप्यूटर पर काम करने के बाद दूर नजर दें और पांच से 10 सेंकेंड के लिए आंखें बंद करें.व  पलकें पूरी झपकाएं.

जलन होने और पानी बहने की स्थिति में आखों को मलें नहीं बल्कि नजदीकी नेत्ररोग विशेषज्ञ से जांच करवाएं.

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तो क्या मुंबई डूब जाएगी

अमेरिका की एजेंसी क्लाइमेट सेंट्रल की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि समुद्र का बढ़ता जलस्तर वर्ष 2050 तक पूर्व में अनुमानित संख्या से तीन गुना अधिक आबादी को प्रभावित कर सकता है. इसकी वजह से भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई पूरी तरह जलसमाधि ले सकती है. न्यू जर्सी स्थित क्लाइमेट सेंट्रल नाम की इस विज्ञान संस्था का कहना है कि समुद्र के बढ़ते जल स्तर, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, कार्बन डाई औक्साइड के तीव्र उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन की वजह से देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर भारी खतरा मंडरा रहा है और आने वाले तीस-चालीस सालों में शहर के अधिकांश हिस्सों के समुद्र में समा जाने के खतरे से इन्कार नहीं किया जा सकता है. नए शोध के अनुसार, वर्तमान में लगभग 150 मिलियन लोग ऐसी भूमि पर रह रहे हैं जो मध्य शताब्दी तक हाई टाइड की जद में होगा. नये अनुमान के मुताबिक अगर कार्बन डाई औक्साइड के उत्सर्जन में कटौती नहीं की गयी तो भारत में 2050 तक कोलकाता, मुंबई, नवी मुंबई जैसे शहर जलमग्न हो सकते हैं. यह परेशानी इसलिए भी उत्पन्न हो रही है क्योंकि विकास परियोजनाओं की प्लानिंग के समय क्लाइमेट चेंज को ध्यान में नहीं रखा जाता है. मुंबई में कोस्टल रोड, शिवाजी स्मारक जैसे प्राजेक्ट पर बड़ा खतरा मंडरा है, यहां तक कि वहां अंडरग्राउंड मेट्रो भी सुरक्षित नहीं है. मुंबई के निचले किनारे को सबसे पहले और सबसे ज्यादा खतरा है. शहर का ज्यादातर दक्षिणी हिस्सा 2050 तक साल में कम से कम एक बार प्रोजेक्टेड हाई टाइड लाइन से नीचे जा सकता है. प्रोजेक्टेड हाई टाइड लाइन तटीय भूमि पर वह निशान होता है जहां सबसे उच्च ज्वार साल में एक बार पहुंचता है. गौरतलब है कि क्लाइमेट चेंज की वजह से 20वीं शताब्दी में ही समुद्र का जलस्तर 11 से 16 सेमी तक बढ़ गया है. अगर कार्बन उत्सर्जन में तत्काल कटौती नहीं की गयी तो इस सदी के अंत तक यह जलस्तर 0.5 मीटर तक और बढ़ सकता है.

पिछली स्टडी में मुंबई में इतने बड़े स्तर पर खतरा नहीं दिखाया गया था. शुरुआती रिसर्च में शहर की नदियों के आस-पास के इलाके, ठाणे, भिवंडी, और मीरा-भायंदर के क्षेत्रों में ही बाढ़ का खतरा बताया गया था, लेकिन क्लाइमेट सेंट्रल द्वारा किये गये नये अध्ययन से पता चलता है कि समुद्र के बढ़ते जल-स्तर से अगले 30 साल में शहर के अधिकांश हिस्सों में साल-दर-साल बाढ़ आएगी.

मुंबई ही नहीं बल्कि ओडिशा के पारादीप और घंटेश्वर जैसे तटीय इलाकों में रहने वाले करीब 5 लाख लोगों की आबादी भी वर्ष 2050 तक तटीय बाढ़ की जद में आ जाएगी. वहीं केरल के अलापुझा और कोट्टायम जैसे जिलों को 2050 तक तटीय बाढ़ जैसी आपदाओं का सामना करना पड़ेगा. पिछली साल आयी बाढ़ ने केरल में 1.4 करोड़ लोगों को प्रभावित किया था. तमिलनाडु के तटीय इलाके भी बाढ़ और बढ़ते समुद्री जलस्तर से अछूते नहीं रहेंगे. इसमें चेन्नई, थिरवल्लूर, कांचीपुरम प्रमुख हैं. अकेले चेन्नई में 70 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं, जिन्होंने हाल ही में बाढ़ और सूखे दोनों ही समस्याओं का सामना किया है. समुद्री जलस्तर के बढ़ने से 2050 तक भारत के तटीय क्षेत्रों में रहने वाले करीब साढ़े तीन करोड़ लोगों का जीवन बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित होगा.

वियतनाम भी भारी खतरे में

रिपोर्ट के अनुसार, आठ एशियाई देशों – चीन, बांग्लादेश, भारत, वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस और जापान में रह रहे 70 फीसदी से अधिक लोगों पर बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है. चीन का कमर्शल हब शंघाई के भी पानी में बहने का खतरा है. अनुमान है कि शंघाई और इसके आसपास बसे शहर समुद्र के बढ़ते जलस्तर का सामना नहीं कर पाएंगे. थाइलैंड की राजधानी बैंकाक का अधिकांश हिस्सा जलमग्न हो जाएगा. दुनिया के तटीय शहरों में करीब 15 करोड़ लोग उन जगहों पर रह रहे हैं, जो सदी के मध्य में समुद्र की लहरों के नीचे होंगी. इन शहरों में सबसे ज्यादा खतरा दक्षिणी वियतनाम को है. दक्षिणी वियतनाम की करीब एक चौथाई जनसंख्या यानी करीब 2 करोड़ लोग साल 2050 तक बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित होंगे. यहां का आर्थिक केन्द्र माने जाने वाला शहर हो शी मिन्ह पूरी तरह समुद्र में समा जाएगा. रिसर्च में सलाह दी गयी है कि इन देशों को अपने नागरिकों को आंतरिक हिस्सों में बसाना शुरू कर देना चाहिए. इस प्रक्रिया में अब देर नहीं होनी चाहिए.

अजब गजब: तेज बर्फबारी में भालू ने बचाया बच्चे को

आमतौर पर भालू को खतरनाक जानवर माना जाता है, लेकिन भालू हर समय खतरनाक नहीं होता. हाल ही में अमेरिका में एक भालू की ऐसी दयालुता सामने आई कि लोग आश्चर्य में रह गए.

हुआ यह कि अमेरिका के उत्तरी कैरोलिना का रहने वाला 3 वर्षीय कैसी हाथवे अपने 2 भाईबहनों के साथ दादी के घर के पीछे खेल रहा था.

तभी अचानक मौसम ने रुख बदला और भीषण बर्फबारी शुरू हो गई. मौसम खराब होने पर कैसी के भाईबहन तो आ गए, लेकिन वह कहीं गुम हो गया.

घर वाले करीब एक घंटे तक उसे इधरउधर खोजते रहे. जब वह नहीं मिला तो उन्होंने पुलिस को इस की जानकारी दी. 2 दिनों तक दरजनों राहतकर्मियों ओर स्वयंसेवकों ने बच्चे को तलाशा. इतना ही नहीं, एफबीआई ने ड्रोन के माध्यम से उस इलाके में सर्च अभियान भी चलाया, लेकिन बच्चे का पता नहीं लग सका.

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इस सर्चिंग के दौरान ही खून जमाने वाली सर्दी और बारिश शुरू हो गई, जिस से एक हजार एकड़ के इस क्षेत्र में तलाशी अभियान को रोकना पड़ा.

2 दिन बीत जाने के बावजूद भी कैसी हाथवे के न मिलने पर उस के मातापिता बहुत परेशान थे. तीसरे दिन की रात के समय गांव वालों ने किसी छोटे बच्चे के रोने की आवाज सुनी. वह मां को पुकार रहा था. गांव वालों ने यह जानकारी पुलिस को दी. इस के बाद उस इलाके की तलाशी ली गई.

पिछले 2 दिनों तक भालू ने ही उसे सुरक्षित रखा. बहरहाल कैसी हाथवे के मातापिता और अन्य लोग ऐसे खराब मौसम में भी उस के सुरक्षित रहने को किसी चमत्कार से कम नहीं मान रहे.

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‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: जानें, क्यों वेदिका की वजह से और करीब आएंगे कार्तिक और नायरा

स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. फिलहाल कहानी का एंगल नायरा, कार्तिक और वेदिका के इर्द गिर्द घुम रहा है. जिससे इस शो में काफी ट्विस्ट एंड टर्न आ रहे हैं. इस टर्न से दर्शक खुब एंटरटेन कर रहे होंगे. तो चलिए जानते हैं इस शो के ट्विस्ट एंड टर्न के बारे में.

इस शो में वेदिक काफी टाइम से नजर नहीं आ रही थी. जिस वजह से नायरा और कार्तिक करीब भी आने लगे हैं. उनके रोमांस को फैंस काफी पसंद कर रहे थे. लेकिन अब वेदिका फिर से शो में वापसी करने जा रही है. जी हां, वेदिका गोयंका परिवार में वापसी करने जा रही है. वैसे वेदिका गोयंका परिवार से गायब क्यों हुई थी?  इसकी असली वजह आने वाले एपिसोड में ही पता चलेगा.

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लेकिन शो की कहानी के अनुसार अंदाजा लगाया जा सकता है कि वेदिका अपने अतित को छुपाने के लिए शो से कुछ दिनों के लिए गायब हो गई थी. बता दें कि जब वेदिका, नायारा और कार्तिक को एक साथ देखेगी तो बेहद गुस्सा करेगी. वह नायरा और कार्तिक को दूर करने के लिए हर कोशिश करेगी. वह नायरा को गोयंका परिवार से दूर जाने के लिए कहेगी तभी वहां कार्तिक आएगा और वेदिका को इस बदतमीजी के लिए खरी खोटी सुनाएगा.

वेदिका की बात सुनकर नायरा बहुत दुखी होगी. नायरा को दुखी देखकर कार्तिक  भी हर्ट होगा. इसी बात को लेकर कार्तिक और वेदिका के बीच लड़ाई शुरु हो जाएगी. अब इस शो के अपकमिंग एपिसोड में देखना ये दिलचस्प होगा वेदिका के मिसबिहेव के कारण कार्तिक और उससे अलग रहने की कोशिश करेगा. जिससे कार्तिक नायरा के और करीब होगा.

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सरकार का रुख

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी कर ली है और फैसले को सुरक्षित रख लिया है. देश की सर्वोच्च अदालत के 5 जज अयोध्या का मामला सुल झाने में लगे रहे और 5 जज कश्मीर का मामला. ये दोनों मामले कट्टर हिंदुओं द्वारा पैदा की हुई समस्याओं की देन हैं. और दोनों समस्याएं हिंदू बनाम मुसलिम भेद की उपज हैं. दोनों में धर्मों के कठमुल्लों के हित लगे हैं. भक्तों के आर्थिक विकास, सुखी जीवन और सुरक्षित माहौल से इस तरह की समस्याओं का कोई लेनादेना नहीं.

अगर अयोध्या में राममंदिर बन जाता है तो आम हिंदू को रत्तीभर फर्क नहीं पड़ेगा. उस के लिए तो चप्पेचप्पे पर नए मंदिर हर रोज बन रहे हैं. मुसलमानों को यह नुकसान होगा कि उन की नाक थोड़ी और नीची हो जाएगी. सदियों तक पूरे भारत पर राज करने वाले उन के धर्म के लोगों के पास भारत की मुख्य भूमि में धार्मिक राज नहीं रह पाएगा, हालांकि 1947 के पहले के मुसलमान आज भी पाकिस्तान, बंगलादेश में राज कर ही रहे हैं चाहे कैसा भी हो.

कश्मीर का मामला भी ऐसा ही है. 370 और 35 ए अनुच्छेदों में छेड़छाड़ से पहले भी कश्मीर भारत का ही हिस्सा था और कुछ अलगाववादी हल्ला मचा रहे थे तो वह वैसा ही था जैसा माओवादी छत्तीसगढ़ आदि में करते हैं या पंजाब में खालिस्तानी समर्थकों ने किया था. उलटे, अब कश्मीर कई सालों तक शांत न रह पाएगा क्योंकि जो किया गया है वह सम झौते से नहीं, जबरन किया गया है.

जिस देश की पूरी नहीं तो चौथाई शक्ति हजारों साल पुरानी खींची गई लकीरों को बचाने में लगी रहे, वह कभी नए युग का देश नहीं बन पाएगा. पश्चिमी यूरोप, अमेरिका ने 300 साल पहले और जापान व चीन ने बाद में पुरातनपंथी सोच के लबादे उतार फेंके थे और तभी वे उन्नति कर पाए थे. हम पुराने मामले जमीन में से उखाड़ रहे हैं क्योंकि इन से हमारे पंडेपुजारियों के हित बंधे हैं.

मुसलमानों को छोटा दिखाना है तो सब से आगे पंडितों की फौज खड़ी होती है जो धार्मिक कर्मकांडों, तीर्थों, कुंभों, मंदिरों, आश्रमों, रात्रिजागरणों से मोटा पैसा कमा रही है. पंडित सिद्ध करने में लगे हैं कि पाखंडभरे हिंदू धर्म के कारण अगर 2,000 साल हिंदू गुलाम रहा है तो क्या, आज वह उसी 2,000 साल के पहले वाले भारत में लौटना चाहता है जब राजाओं का कर्म जनता की सेवा करना नहीं, ऋषियोंमुनियों की रक्षा करना या भाइयों से मतभेद सुलटाना ही था. सारी पौराणिक कथाएं, रामायण, महाभारत उन्हीं के इर्दगिर्द घूमती हैं. और आज हम फिर उसी युग में लौट रहे हैं.

अदालत में इन विवादों को ले जा कर अदालत का समय खराब किया गया है और आम लोगों की समस्याओं की सुनवाइयों को रोक दिया गया है. अदालतें वैसे भी बकाया मुकदमों के अंबार से कराह रही हैं, ऊपर से धर्मजनित मामले आने लगे हैं.

अगर देश में जम कर आर्थिक मंदी छाने लगी है तो इसीलिए कि शासकों और जनता का पहला लक्ष्य हिंदू धार्मिक पंडेपुजारियों को दमखम देना और उन्हें शासन तक पहुंचाना हो गया है, जैसा पौराणिक कथाओं में दर्शाया जाता था. शासक धार्मिक हित के फैसले लेते हैं, जनहित के नहीं. कश्मीर और अयोध्या के मामले किसी करवट भी बैठें, न उन से सड़कें बनेंगी, न बीमारियां दूर होंगी और न ही छतें पक्की होंगी.

फिल्म ‘बायपास रोड’ मेरी तकदीर में लिखी थी : अदा शर्मा

बहुमुखी प्रतिभा की धनी अदा शर्मा कभी चर्चित एथलीट थीं. वह नृत्य में भी माहिर हैं.पियानो बहुत अच्छा बजाती है. संगीत में भी उनकी रूचि रही है. पर इन दिनों वह सिर्फ अभिनय तक सीमित होकर रह गयी हैं. वह हिंदी फिल्मों के अलावा दक्षिण भारतीय फिल्मों में भी अभिनय कर रही हैं. इन दिनों वह नमन नितिन मुकेश निर्देशित हिंदी फिल्म ‘‘बायपास रोड’’ को लेकर अति उत्साहित हैं. आठ नवंबर को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘‘बायपास रोड’’ में अदा शर्मा के साथ नील नितिन मुकेश, गुल पनाग, रजित कपूर, शमा सिकंदर जैसे कलाकार भी हैं.

प्रस्तुत है अदा शर्मा के साथ हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश.    

2008 से यदि आपके कैरियर को देखा जाए तो 11 साल का कैरियर है. कैसे देखती हैं?

11 साल का नहीं, मैं सोचती हूं 100 साल का है. क्योंकि मेरी पहली फिल्म का नाम ‘1920’ है. अब 2019 चल रहा है. तो मुझे 100 साल की इंडस्ट्री मिली है. मुझे लगता है यह यात्रा काफी एक्साइटेड रहा. क्योंकि मैंने शुरुआत भी हौरर से किया था. काफी भाषाओं में काम किया है. काफी जोनर में काम किया है. बहुत अच्छा सफर रहा है.

जब आप दूसरी भाषाओं में काम करती है, जिस तरह से आपने शुरुआत भी दूसरी भाषाओं से किया था, तो किस तरह की तकलीफ आती है?

वास्तव में मैं भाषा को सीख लेती हूं.जिससे एक्सप्रेशंस देना सरल हो़ जाता है. फिर संवाद रटने की जरूरत नहीं होती है. आप अपना पूरा ध्यान अभिनय पर लगा सकते हैं. पर अगर नई भाषा में पहली फिल्म है, तो यह मेरे लिए भाषा की तकलीफ नहीं बल्कि चुनौती होती है. क्योंकि हिंदी या इंग्लिश में हो तो हम लोग कंफर्टेबल है. पर अगर दूसरी कोई भाषा है, तो हम लोग कंफर्टेबल नहीं होते हैं, पर सीख लेते हैं. इस एक चुनौती के चलते मुझे काम करने में मजा आता है.

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11 साल के कैरियर में आपने हौरर फिल्में ज्यादा कर ली है?

नहीं.. हकीकत में मैंने सिर्फ एक ही हौरर फिल्म की है. दक्षिण भारत में मैंने छह रोमांटिक फिल्में की है. फिर एक्शन फिल्में की. ‘कमांडो 2’ भी एक्शन फिल्म थी. मैं सिनेमा को भाषाओं के कारण विभाजित नहीं करती हूं. यदि टोटल किया जाए, तो मैंने रोमांटिक और कमर्शियल फिल्में ज्यादा की हैं.

आपको लगता है कि बौलीवुड की बजाय दक्षिण में आपको ज्यादा अच्छे किरदार निभाने के मौके मिल रहे हैं?

अब तो बौलीवुड में भी काफी अच्छे किरदार मिल रहे हैं. मुझे लगता है कि ‘कमांडो 2’ में भावना रेड्डी का जो करेक्टर था, वह बहुत अलग किस्म का था. वैसा ही अब ‘कमांडो 3’ है. मुझे लगता है, जब मैं कुछ अलग करती हूं, तो लोगों को हमेशा पसंद आता है. इसीलिए मैं हमेशा कुछ अलग करना चाहती हूं. अभी मैं हिंदी में एक फिल्म ‘मैन टू मैन’ कर रही हूं, जिसमें मैने पुरुष का किरदार निभाया है. यह प्रौपर कमर्शियल लव स्टोरी है. एक लड़का, एक लड़की से प्यार करता है और उससे शादी करता है. पर शादी के बाद उसे पता चलता है कि वह लड़की नहीं लड़का है. तो मुझे लगता है कि अब तक इस तरह का किरदार किसी ने भी नहीं किया है. मैं बहुत ही एक्साइटेड हूं कि लोग मुझे अलग अलग किरदार के लिए याद कर रहे हैं.

जब आपको फिल्म ‘‘मैन टू मैन’’ का औफर आया था. तब आपके दिमाग में पहली बात क्या आई थी?

बहुत खुश थी कि निर्देशक ने इस चुनौतीपूर्ण किरदार के लिए मेरे बारे में सोचा. यह बहुत ही अलग किस्म का किरदार है, जिसे अब तक किसी ने किया नहीं है. मुझे खुशी है कि मैं एक ऐसी उभरती कलाकार हूं, जो अलग -अलग तरह के किरदार कर रही है. मेरे लिए तो यह बहुत ही खुशी की बात है.

मैन टू मैन’’के किरदार के लिए आपने मेकअप थोड़ा अलग किया है?

इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी. पर मुझे लगता है कि मेरी मूंछे वाली फोटो ज्यादा आई है, जो कि लोगों को काफी पसंद आ रही हैं. पर आपको फिल्म देखना पड़ेगा पर हां यह जरूर है कि एकदम अलग रोल है.

फिल्म‘‘बायपास रोड’’क्या है?

यह थ्रिलर जौनर की फिल्म है. मुझे लगता है कि अब तक इस तरह की फिल्म नही बनी है. कहानी काफी रोचक है.

इस फिल्म को करने के लिए किस बात ने इंस्पायर किया किया?

पहली बात तो मैं हर फिल्म इंस्टीट्यूशनली चुनती हूं. दूसरी बात यह फिल्म मेरी तकदीर में लिखी हुई थी. जब मुझे इस फिल्म का औफर मिला, उस वक्त मेरे पास इसकी शूटिंग के लिए तारीखें नहीं थी. लेकिन नील नितिन मुकेश और निर्देशक नमन ने तारीखे एडजस्ट की. मुझे बीच बीच में ‘कमांडो 3’ की शूटिंग के लिए लंदन जाना पड़ता था. जब मैं वापस आती थी, तब इस फिल्म की शूटिंग करती थी. इस तरह मैंने इस फिल्म की शूटिंग की. मैं तो नील व नमन की बहुत बहुत शुक्रगुजार हूं.

अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगी ?

मैं बहुत ज्यादा नहीं बता सकती हूं. क्योंकि यह एक थ्रिलर फिल्म के साथ ही रहस्य का भी इसमें पुट है. पर मेरा किरदार बहुत मस्तीखोर हैं. जब मेरा किरदार नील के किरदार की जिंदगी में आती है, तो पूरी कहानी बदल जाती है.

क्या आपके किरदार की वजह से  फिल्म की कहानी में मोड़ आता है?

वह तो नहीं बता सकती हूं.क्योंकि वही सस्पेंस है. यदि आपने सारा रहस्य उजागर कर दिया, तो फिर फिल्म देखने का मजा चला जाएगा. मैं उम्मीद करती हूं कि सभी लोग यह फिल्म जाकर देखें.

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हौरर हो या थ्रिलर हो, दोनों में एक अलग तरह का रोमांच होता है. कलाकार के तौर पर जब आप किरदार चुनती हैं, तो क्या आप यह सोचती है कि आपका किरदार ऐसा क्या करेगा कि रोमांच पैदा होगा?

नहीं..हमें जो किरदार निभाना होता है, वह जौनर के हिसाब से तय नही होता. यदि रोमांटिक फिल्म है, तो कलाकार उसी तरह से निर्णय लेता है. पर एक्शन फिल्मों में जोनर के हिसाब से नहीं होता.

आप नृत्य में माहिर हैं. आप पियानों बहुत अच्छा बजा लेती हैं. ऐसे में आपने कभी फिल्मों में पार्श्वगायन करने के बारे में नहीं सोचा?

सिर्फ सोचा ही नहीं बल्कि मैंने दक्षिण भारत की फिल्म ‘‘चार्ली चैप्लिन’’ में प्रभु देवा के साथ एक गीत गाया है. गाने के बोल है- ‘‘आई वांट टू मैरी यू..’’ यह गाना गोवा के बीच पर मुझ पर ही फिल्माया गया है. मैं बहुत लकी हूं कि मुझे प्रभु देवा के साथ डांस करने का मौका मिला.

फिल्म ‘‘चार्ली चैप्लिन 2’’ कौमेडी फिल्म है या नहीं ?

हिंदी की सफल फिल्म ‘‘नो इंट्री’’ का दक्षिण की तमिल भाषा में रीमेक है. ‘चार्ली चैप्लिन 2’  जो है, वह सिक्वल है. इस तरह यह एक हास्य फिल्म है. फिल्म रिलीज हो चुकी है.

गाने को कैसा रिस्पौन्स मिला?

बहुत अच्छा रिस्पांस मिला.

पर हिंदी फिल्मों में नहीं गा रही है?

मुझे नहीं पता.. मुझे लगता है कि मुझे पहले एक्टिंग पर सारा ध्यान देना चाहिए. जहां तक गायन व न्त्य का सवाल है, तो मैं बहुत इंज्वाय करती हूं. लेकिन फिलहाल मेरा पूरा फोकस एक्टिंग पर है. मैं बहुत इंज्वाय करती हूं.

पर आप सिंगल गाने गा सकती हैं ?

ऐसा संभव नही है. क्योंकि इन दिनों मेरा अभिनय कैरियर काफी अच्छा जा रहा है. फिल्म की शूटिंग और प्रमोशन से वक्त ही नहीं मिलता कि मैं गीत संगीत के बारे में कुछ सोच सकूं. इस वर्ष मेरी लगातार तीन फिल्में ‘बार्यपास रोड’,‘कमांडो 3’ और ‘मैन टू मैन’ रिलीज हो रही है. कुछ दिन पहले ही मेरी वेब सीरीज ‘‘हौलीडे’’  प्रदर्शित हुई, जिसका बहुत अच्छा रिस्पांस मिला. इन सबके बीच में मैं गायन के बारे में नहीं सोच पा रही हूं.

‘‘कमांडो 3’’ में आपका भावना का किरदार किस तरह से आगे बढ़ा है?

देखिए,फिल्म ‘‘कमांडो 2’’ में हमने प्रयोग करते हुए भावना रेड्डी का किरदार किया था. जो कि अलग तरह की हीरोइन थी. वह क्रेजी व फनी थी. जबकि हीरोईन बहुत कम फनी होती हैं. हास्य की सिच्युएशन हीरोईन के उपर होती है. मगर फिल्म ‘‘कमांडो 2’’ में भावना रेड्डी फनी लड़की थी. जिसका रिस्पौंस बहुत अच्छा मिला था. तो अब ‘‘कमांडो 3’’ में हम उसके साथ खेल रहे हैं. वही किरदार है. काफी सोफिस्टीकेटेड, कूल है. पर इस बार बहुत सारे एक्शन भी करती है. ‘कमांडो 3’ में मुझे एक्शन करते देखना मजेदार होगा.

‘‘कमांडो 3’’ की कहानी तो लंदन पहुंच गयी?

जी हां!! मुझे पता नहीं आपको बताना चाहिए या नहीं, पर फिल्म की कहानी लंदन की है.

सोशल मीडिया पर आप कितना सक्रिय रहती है?

मैं तो बहुत ज्यादा सक्रिय रहती हूं. मेरी राय में सोशल मीडिया बहुत अच्छी चीज है. इस माध्यम के चलते हम अपने प्रशंसकों को दिखा सकते हैं कि हम निजी जिंदगी में कैसे हैं. क्योंकि फिल्म में तो उस फिल्म का किरदार होते हैं. फिल्म में हम खुद क्या हैं, यह नहीं दिखा पाते. इसलिए भी मेरे हिसाब से यह बहुत अच्छा माध्यम है. मैं जैसी हूं, वैसी ही सोशल मीडिया पर नजर आती हूं.

क्या सोशल मीडिया पर जो आपके फौलोअर्स हैं, वह आपकी फिल्म के प्रदर्शित होने पर बौक्स औफिस पर असर डालते हैं?

मैं उस तरह के ट्रांजैक्शन की तरह सोशल मीडिया को नहीं सोचती हूं. मुझे लगता है कि जो मेरे प्रशंसक हैं, या जो मेरी फिल्म देखना पसंद करते हैं, वह फिल्म देखने सिनेमाघर में आएंगे. आखिर हर दिन मेरी फिल्म प्रदर्शित नहीं होती है. ऐसे में अगर मैं सोशल मीडिया पर हर दिन क्या कर रहे हैं, उसके बारे में नही लिखेंगे, तो क्या लिखेंगे? हम हर दिन फिल्म प्रमोशन को लेकर बात नहीं कर सकते. इसलिए मैं तो निजी जिंदगी की हर छोटी बड़ी बात सोशल मीडिया पर पोस्ट करती रहती हूं. यह करते समय मैं यह नहीं सोचती कि सोशल मीडिया पर मेरी पोस्ट को लाइक करने वाला मेरी फिल्म देखने सिनेमाघर जरुर आएगा. मेरा मानना है कि सोशल मीडिया भी मनोरंजन का साधन है. अपनी बात कह सके का माध्यम है. ऐसे में लाभ हानि की बात नही सोची जा सकती.

आपका फिटनेस मंत्रा क्या है?

मैं हमेशा खुश रहने की कोशिश करती हूं. मैं हर चीज को इज्वाय करती हूं. जिंदगी में जितना हो सकता है, उतना सकारात्मक रहने की कोशिश करती हूं. मुझे लगता है कि यही सबसे अच्छा फिटनेस मंत्रा है कि अपने माइंड को फिट रखें. बौडी फौलो करेगी.

कभी आप राज्य स्तर की एथलीट थीं. अब उसका क्या..?

सच यह है कि मैंने सब कुछ किया. मैंने स्कूल के समय में 100 व 200 मीटर की दौड़ लगाई. मुझे लगता है कि अगर आप सीरियसली कर रहे हैं, तो हर दिन प्रैक्टिस करना बहुत जरूरी होता है. अगर आप एथलिट हैं, तो हर दिन दौड़ने की प्रैक्टिस करनी चाहिए. जब मैं रेसिंग करती थी, तब मैं हमेशा फर्स्ट आना चाहती थी. उस वक्त मैं बाकायदा ट्रेनिंग भी लेती थी. पर अब अभिनय में इस कदर व्यस्त हूं कि दौड़ने के लिए वक्त ही नही मिलता.

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कोई वेब सीरीज कर रही है?

जी हां! बहुत जल्द ‘‘हौलीडे-सीजन 2’’ आएगी.

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