लेखिका: रागिनी  झा

बुजुर्ग समाज का एक अहम हिस्सा हैं. लेकिन बहुत ही कम घर होंगे जहां उन की अवहेलना न की जाती हो, उन्हें नकारा न जाता हो. इस की वजह क्या है? इस की वजह स्वयं ये बुजुर्ग लोग हैं. जी हां, सुनने में जरूर खराब सा लगता है, लेकिन सचाई यही है.

आज के समय में जहां जिंदगी तेजी से दौड़ रही है वहीं इन लोगों के पुराने रूढि़ग्रस्त, दकियानूसी विचारों से लोगों को कितनी परेशानियों से जू झना पड़ता है, ये लोग नहीं जानते.

आइए, गौर करें उन कारणों पर जिन के चलते बुजुर्ग अपनी अवहेलना के शिकार होते है :

दकियानूसी विचार : मंगलवार है, आज यात्रा पर मत जाओ. आज गुरुवार है, बाल मत धोओ, कपड़े मत धोओ, किचन में जूते पहन कर मत जाओ आदि.

अब सोचिए, गुरुवार के दिन आप के औफिस की पार्टी है. सो, क्या आप गंदे बालों में ही पार्टी अटैंड करेंगे?

मंगलवार को आप का कहीं इंटरव्यू हैं. सो, क्या आप यात्रा के लिए नहीं निकलेंगे? जल्दी में आप को निकलना है, तो क्या जूते उतार कर आप अपना लंच पैक करने किचन में आएंगे?

ऐसे ही ढेरों कारण हो सकते हैं जिन के कारण उन की सोच के मुताबिक चलना संभव नहीं है. इस कारण से उन्हें आज की पीढ़ी से चिढ़ होती है. उन्हें ऐसा लगता है कि नई पीढ़ी उन को प्यार नहीं करती, इन को नकार रही है.

पुरानी मान्यताएं : समाज में मान्यता है कि बहू को हमेशा सिर ढक कर चलना चाहिए, परदे में रहना चाहिए. सुबह उठ कर रोज सासससुर के पैर छूने चाहिए. अगर वह ऐसा नहीं करती है तो उन्हें लगता है कि इस से उन की अवहेलना हो रही है.

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हमारे पड़ोस में एक औरत है. उस के चेहरे को आज तक उस के घर के लोगों के अलावा किसी और ने नहीं देखा होगा. बड़ा सा घूंघट उस के चेहरे पर होता है. रोज उठ कर वह अपने सासससुर के पैर छूती है. पुरानी सारी मान्यताएं वह निभा रही है. पर जब वह अपनी सास से लड़ाई करती है तो उस की कर्कश आवाज सुन कर महल्ले के सारे लोग उस के घर के बाहर इकट्ठा हो जाते हैं. आलम यह रहता है कि घूंघट तब भी उस के चेहरे पर होता है, आप उस का चेहरा नहीं देख सकते.

क्या उस के सासससुर उस घर में खुश रह सकते हैं? कभी नहीं. बुजुर्ग क्यों नहीं सम झते कि असली शर्म आंखों की होती है, असली इज्जत दिल से की जाती है. बाहरी किसी दिखावे से नहीं.

अपनेआप को काम से परे सम झना: बुजुर्ग होने का यह अर्थ नहीं कि आप अपने हाथपैर हिलाना बंद कर दें. ज्यादातर बुजुर्ग रिटायर होने के बाद यह सोचते हैं कि अब तो वे काम से रिटायर हो गए हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. हमारे हिंदी के प्रोफैसर 70 वर्ष से ऊपर के हो चुके हैं, परंतु अब भी वे अपनी खुशी के लिए पढ़ाते हैं. अब भी अध्ययन करते हैं. हम चाहे पढ़तेपढ़ते थक जाएं, लेकिन वे पढ़ातेपढ़ाते नहीं थकते. ऐसे ही आप का भी कोई शौक होगा जैसे पेंटिंग, कुकिंग या फिर ट्यूशन पढ़ाना वगैरह. वे सारे शौक अब आप इस खाली समय में पूरे कर सकते हैं.आप के पास इतना समय हो ही क्यों कि कोई आप की अवहेलना कर सके.

बेवजह की रोकटोक : बुजुर्गों की एक आदत होती है कि वे बेवजह की रोकटोक हर समय करते रहते हैं. ज्यादातर सासें अपनी बहुओं के हरेक काम में कुछ न कुछ बोलती रहती हैं. इस में इतना तेल क्यों डाल दिया, आज यह क्यों बनाया, इसे ऐसे नहीं करते, वैसे करते है और भी पता नहीं क्याक्या.

कामिनी के दादाजी को घर की स्त्रियों का घर से बाहर निकलना पसंद नहीं था. वे मुख्य दरवाजे पर ही बैठे रहते थे. जहां कोई महिला सदस्य निकली नहीं कि उसे डांटना शुरू. ऐसे में सभी स्त्रियां पीछे के दरवाजे से बाहर जाया करती थीं.

हुई न उन की अवहेलना. और फिर क्या फायदा ऐसी जिद की जिस की कोई तुक ही न हो.

किसी भी हाल में खुश न रहना : सुनीता की सास को खाने के बाद मीठा खाने की आदत थी. सुनीता रोज उन के लिए कभी थोड़ा सा हलवा या फिर दही में चीनी डाल कर उन्हें दे देती थी. एक दिन सुनीता ने थोड़ी सी खीर बना कर सास को खाने को दी.

सास ने खीर देखते ही कहा, ‘‘क्या मैं ही अकेलेअकेले खीर खाऊंगी और सब मेरा मुंह देखेंगे.’’

दूसरे दिन सुनीता ने सब के लिए सेवइयां बना दीं. यह देख कर सास बोली, ‘‘बचत का तो नाम ही नहीं जानती है, रोजरोज इतना खर्च. मेरे बेटे की तो अक्ल मारी गई थी जो इसे ब्याह कर लाया.’’

अब बताइए ऐसी हालत में कोई क्या कर सकता है. थोड़े दिनों तक तो सब ठीक रहता है ?पर उस के बाद चीखचिल्लाहट हो जाती है. ऐसी हालत में कोई भी इन की अवहेलना कर सकता है.

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प्रवचनकर्ताओं के भाषण : बुजुर्गों के ज्यादातर विचार प्रवचनकर्ताओं के भाषणों से प्रभावित होते हैं. आदर्श घर के नाम पर दिए गए भाषणों को सुन कर ये लोग आते हैं और वैसा ही घर में व्यवहार में लाने को कहते हैं जो कि वास्तविकता में बिलकुल भी संभव नहीं होता है.

कोई उन प्रवचनकर्ताओं से पूछे कि वे खुद अपनी जिंदगी में कितने आदशों को मानते हैं. वहीं, ज्यादातर प्रवचनकर्ताओं के ऊपर गंभीर से गंभीर आरोप होते हैं. बावजूद इस के लोग पागलों की तरह उन के दर्शन और भाषणों को सुनने जाते हैं.

उन्हें सुनने के बजाय बुजुर्ग अगर उतने समय में अपना कोई काम कर लें, तो ज्यादा अच्छा रहे.

जरूरत से ज्यादा बच्चों पर विश्वास: बहुत सारे मांबाप जीवित रहते ही अपनी सारी संपत्ति अपने बच्चों के नाम कर देते हैं. उन्हें विश्वास होता है कि उन के बच्चे उन के साथ कभी बुरा व्यवहार नहीं करेंगे. लेकिन, होता इस से बिलकुल उलटा है.

संपत्ति पाते ही बच्चे उन की अवहेलना करनी शुरू कर देते हैं. वे उन की तकलीफों, उन की जरूरतों की परवा नहीं करते. इसलिए आज के समय की मांग है कि भले ही बुजुर्ग अपनी वसीयत बना कर रख दें परंतु अपने जीतेजी अपनी संपत्ति किसी के नाम न करें.

अन्य कारण : और भी बहुत सी वजहें हैं जिन के कारण बुजुर्गों की अवहेलना होती है. ऐसा नहीं है कि आज की पीढ़ी सम झदार नहीं है, जब बुजुर्ग बीमार पड़ते हैं या जब उन्हें बच्चों की जरूरत होती है तो परिवार के सभी लोग उन की सेवा करते हैं.

बुजुर्गों को सम झना चाहिए कि आज का माहौल बहुत बदल चुका है. अगर आप मांसमछली नहीं खाते तो जरूरी नहीं कि जो बहू या दामाद आप के घर आएं वे भी शाकाहारी ही हों. वे अगर मांसमछली खाना चाहते हैं, तो उन्हें मत रोकिए. अगर बहू जींस पहनना चाहती है, तो उसे जींस पहनने दीजिए.

इसी तरह सिर्फ अपनी खुशी के लिए कि हमें अपनी आंखों से पोते की या पोती की शादी देखनी है, आप उन के मना करने के बावजूद उस उम्र में उस की शादी करवा देते हैं जबकि वे अपने कैरियर पर पूरा ध्यान दे रहे होते हैं. ऐसा कर के आप तो चंद लमहों की खुशी पा जाते हैं परंतु उन के लिए शादी पूरी जिंदगी का नासूर बन जाती है.

हरेक को अपना जीवन अपने ढंग से जीने का हक है. यह बात ये बुजुर्ग क्यों नहीं सम झते. संतानों के कुछ अपने सपने होते हैं. वे किसी खास लड़के या लड़की से शादी करना चाहते हैं, क्यों आप धर्म और जाति की खोखली मान्यताओं के कारण उन को एकदूसरे से शादी करने से रोकते हैं. याद रखिए, शादी उन्हें करनी है. आखिर उन्होंने कुछ देख कर ही एकसाथ जीवन बिताने का निर्णय लिया होगा. आप लोग क्यों उन के बीच में दीवार बनते हो. आज आप उन के सपनों और जज्बातों को नहीं सम झ रहे, हो सकता है कल वे आप की परवा न करें.

आप अपनी पूरी जिंदगी बिता चुके हैं, और आप की संतानें अपनी जिंदगी की शुरुआत कर रहे हैं. ये लोग आगे बढ़ना चाहते हैं, अपने जीवन में लीक से हट कर कुछ करना चाहते हैं. पर आप इन पर सौ तरह के अकुंश लगाते हैं. अगर ये गलती कर रहे हैं, तब आप इन्हें डांटेंगे, तो ये आप की बात ध्यान से सुनेंगे. लेकिन आप बिना किसी कारण के टोकाटोकी करेंगे तो ये  झुं झलाएंगे और हो सकता है आप की अवहेलना भी कर जाएं.

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