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अजब गजब: यहां पर व्हेल मछलियां गाती भी है!

वैज्ञानिकों के मुताबिक उत्तरी ध्रुवीय इलाके जैसे ग्रीनलैंड आदि के आसपास के समंदर में रहने वाली धनुषाकार सिर वाली व्‍हेल्‍स मछलियां समंदर में रहने वाली बाकी दूसरे जीवों के मुकाबले सबसे ज्‍यादा समय यानि करीब 200 साल तक जिंदा रहती हैं. ये मछलियां सभी समुद्री जीवों में सबसे ज्‍यादा सामाजिक होती हैं, तभी तो ये आपस में खूब बतियाती हैं. वैज्ञानिकों ने 2010 से लेकर 2014 तक समंदर में माइक्रोफोन लगाकर बकायदा इन मछलियों की तमाम आवाजें रिकार्ड की हैं. इस रिकौर्डिंग के दौरान ही वैज्ञानिकों ने जाना कि ये मछलियां तो सिर्फ बातें ही नहीं करतीं, बल्कि तरह तरह के गाने भी गाती हैं.

साल 2010 से लेकर 2014 के बीच वैज्ञानिकों के एक दल ने ग्रीनलैंड के आसपास के समुद्री इलाके में करीब 300 बोहेड व्‍हेल मछलियों पर रिसर्च की. इस दौरान अंडरवाटर माइक्रोफोन के द्वारा मछलियों की आवाजें भी रिकॉर्ड की गईं. पहले तो वैज्ञानिक सोच रहे थे, ये सिर्फ आपस में बातें कर रही हैं, लेकिन जैसे जैसे मछलियों की आवाजों का संग्रह बढ़ता गया, समझ आया कि ये मछलियों की बातचीत नहीं बल्कि उनकी गायकी की आवाजें हैं. वैज्ञानिकों ने नोटिस किया कि व्‍हेल की इन आवाजों में गायकी जैसे उतार चढ़ाव बहुत जबरदस्‍त के सुर हैं. समंदर में मछलियों की आवाजों की रिकॉर्डिंग के दौरान वैज्ञानिकों ने कुल 184 गाने रिकॉर्ड किए, जो अपने आप में नायाब खोज है.

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जर्नल बायोलॉजी में छपी रिसर्च के मुताबिक समंदर के भीतर ज्‍यादातर नर व्‍हेल ही ये गाने गाते हैं. कभी अपने नर साथियों को आवाज लगाने के लिए तो कभी मादा व्‍हेल को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए. गानों का ये संगीत बंसत से लेकर हल्‍की गर्मियों तक के मौसम में समंदर के भीतर हमेशा ही सुनाई देता है. इनमें से कुछ मछलियां गाती हैं शास्‍त्रीय तो कुछ गाती हैं जैज स्‍टाइल में. वॉशिंगटन यूनीवर्सिटी के ओशीनोग्राफर केट स्‍टैफोर्ड इस बारे में बताते हैं कि 12 से 16 मीटर आकार वाली हंपबैक व्‍हेल मछलियां समंदर के भीतर क्‍लासिकल म्‍यूजिक गाती हैं, वहीं उनसे कड़ी अधिक बड़ी यानि 18 मीटर तक आकार वाली बोहेड व्‍हेल जैज म्‍यूजिक गुनगुनाती हैं.

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खूबसूरत लमहे – भाग 1 : दो प्रेमियों के प्यार की कहानी

इंसान की जिंदगी के कुछ लमहे ऐसे भी होते हैं जिन्हें आजीवन भुला पाना संभव नहीं होता. शेखर ने कड़ी मेहनत कर के एक अच्छा मुकाम तो हासिल कर लिया, पर उस का प्यार उसे न मिल सका. शेखर इस नए शहर में जिंदगी की नई शुरुआत करने आ पहुंचा था. आईएएस पूरी करने के बाद उस की पत्नी की पोस्टिंग इसी शहर में हुई. वैसे भी अमृतसर आ कर वह काफी खुश था. इस शहर में वह पहली बार आया था, पर उसे ऐसा लगता कि वह अरसे से इस शहर को जानता है. आज वह बाजार की तरफ निकला ताकि अपनी जरूरत का सामान खरीद सके. अचानक एक डिपार्टमैंटल स्टोर में शेखर को एक जानापहचाना चेहरा नजर आया. हां, वह संगीता थी और साथ में था शायद उस का पति. शेखर गौर से उसे देखता रहा. संगीता शायद उसे देख नहीं पाई या फिर जानबूझ कर उस ने देख कर भी अनदेखी कर दी. वह जब तक संगीता के करीब पहुंचा, संगीता स्टोर से निकल कर अपनी कार में जा बैठी और चली गई. शेखर उसे देख कर अतीत में खो गया.

नयानया शहर, नया कालेज, शेखर के लिए सबकुछ अपरिचित और अजनबी था. वह क्लास में पीछे वाली बैंच पर बैठ गया. कालेज की चहलपहल उसे काफी अच्छी लगी. यहां तो पुस्तकें ही उस की साथी थीं. वह बस, मन में उठे भावों को कागज पर उतारता और स्वयं ही उन्हें पढ़ कर काफी खुश होता. कालेज के वार्षिक सम्मेलन में जब उस की कविता को प्रथम पुरस्कार मिला तो वह सब का चहेता बन गया. प्रोग्राम खत्म होते ही एक लड़की उस से आ कर बोली, ‘‘बधाई हो, तुम तो छिपे रुस्तम निकले… इतना अच्छा लिख लेते हो. तुम्हारी रचना काफी अच्छी लगी… इस की एक कौपी दोगे.’’

शेखर तब उस के आग्रह को टाल न सका. उस ने पहली बार गौर से उस की खूबसूरती को निहारा. गोरा रंग, गुलाबी गाल, मदभरे तथा मुसकराते अधर और सब से खूबसूरत लगीं उस की आंखें. उस की आंखें बिना काजल के ही कजरारी लगीं. आंखें शोख और शरारत भरी थीं. शेखर ने तो उस की खूबसूरती को शब्दों में कैद कर गीत का रूप दे डाला और संगीता की खिलखिलाहट ने उस के गीत को संगीत का रूप दे डाला, पर ये सब तो कालेज के सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा था. संगीता के स्वर में एक अजीब सी कशिश, एक अजीब सा जादू दिखा.

शेखर जीवन में हमेशा बहुत बड़े और सुनहरे सपने देखता रहता. पढ़ाई और लेखन बस 2 ही तो उस के साथी हैं. मध्यवर्गीय परिवार में पलाबढ़ा शेखर हमेशा यही सोचता कि खूब पढ़लिख कर एक काबिल इंसान बनूं और सब की झोली खुशियों से भर दूं. शेखर कालेज की लाइब्रेरी में बैठा अध्ययन कर रहा था. तभी संगीता उस के सामने आ कर बैठ गई. शेखर को यह ठीक नहीं लगा. उसे पढ़ाई के दौरान किसी का डिस्टर्ब करना अच्छा नहीं लगता था. संगीता का धीरेधीरे गुनगुनाना उसे अच्छा नहीं लगा. वह गुस्से से उठा और जोर से पुस्तक बंद कर चल पड़ा. तभी एक मधुर खिलखिलाहट उसे सुनाई पड़ी. पीछे मुड़ कर देखा तो संगीता शरारत भरी मुसकान हंस रही थी. गुस्सा तो कम हो गया पर अपने अहंकार में डूबा शेखर चला गया.

दूसरे दिन भी वह लाइब्रेरी में बैठा अपनी पढ़ाई कर रहा था, पर आज उस के मन में अजीब हलचल मची थी. उसे बारबार ऐसा आभास होता कि संगीता आ कर बैठेगी, बारबार उस की निगाहें दरवाजे की तरफ उठ जातीं. थोड़ी देर बाद संगीता आती दिखाई पड़ी पर आज वह किसी और टेबल पर बैठी. तब शेखर चाह कर भी कुछ न कर पाया, पर आज उस का मन पढ़ने में नहीं लगा. फिर उस ने उठ कर गुस्से में पुस्तक बंद कर दी.

वह लाइबे्ररी से उठ कर जाने लगा, लेकिन तभी संगीता उठ कर सामने आ गई और उसे घूरघूर कर ऊपर से नीचे तक निहारती रही और मुसकराती रही. यह देख कर शेखर का पारा चढ़ने लगा. संगीता तब बहुत ही सहज भाव से बोली, ‘‘सरस्वती का अपमान करना ठीक नहीं. जब पुस्तक की कद्र करोगे तभी तो मंजिल मिलेगी. मैं ईर्ष्या से नहीं मुसकराई बल्कि तुम्हारी नादानी पर मुझे हंसी आ जाती है. वैसे सदा मुसकराते रहना ही मेरी फितरत है.’’

फिर थोड़ा सीरियस हो कर उस ने आंखों में आंखें डाल कर इस कदर देखा कि शेखर चुपचाप पीछे खिसकता चला गया और संगीता आगे बढ़ती रही.

अंतत: शेखर दोबारा उसी बैंच पर बैठ गया और संगीता भी सामने बैठ गई. दोनों बस खामोश रहे. शेखर संगीता के इशारे पर पुस्तक खोल कर पढ़ने लगा और संगीता पुस्तक खोल कर मुसकराने लगी.

शेखर संगीता की समीपता भी चाहता और उसे उस से बात करने में घबराहट भी होती. कालेज के कुछ लोग संगीता की सुंदरता के इस कदर दीवाने थे कि शेखर उन्हें खटकने लगा. शेखर को उन की नफरत भरी नजरों से डर लगने लगा. वह कभीकभी सोचता कि क्या वह संगीता को कभी पा सकेगा या नहीं.

शेखर कालेज के गार्डन में अकेला बैठा विचारों में खोया था, तभी वहां संगीता आ पहुंची. वह एकदम करीब बैठ गई और उलाहने भरे स्वर में बोली, ‘‘मैं लाइबे्ररी का चक्कर लगा कर आ रही हूं, लगता है आज पढ़ने का नहीं लिखने का मूड है तभी गार्डन में आ कर बैठे हो.’’

शेखर जिस की याद में खोया था. उस का करीब आना उसे अच्छा लगा. संगीता ने तब बैग खोल कर टिफिन बौक्स निकाला और शरारती अंदाज में बोली, ‘‘आ मुंडे, आलू दे परांठे खाएं, तेरी तबीयत चंगी हो जाएगी.’’

जब मूड होता तो संगीता अपनी मातृभाषा पंजाबी बोलती. तब शेखर वाकई में खुल कर हंस पड़ा. उस के सामने जब संगीता ने टिफिन बौक्स खोला तो परांठों की महक सूंघ कर ही शेखर खुश हो गया.

दोनों ने जी भर कर परांठे खाए. परांठे खाने के बाद संगीता बोली, ‘‘चलो, अब लस्सी पिलाओ.’’

शेखर सकुचाते हुए बोला, ‘‘अभी क्लास शुरू होने वाली है, लस्सी कल पी लेंगे.’’

संगीता बेधड़क बोली, ‘‘बड़े कंजूस बाप के बेटे हो यार, लस्सी पीने का मन आज है और तुम अगले जन्म में पिलाने की बात करते हो. मेरी कुछ कद्र है कि नहीं. अभी यदि एक आवाज दूं तो लस्सी की दुकान से ले कर यहां तक लस्सी लिए लड़कों की लाइन लग जाए.’’

शेखर फिर मुसकरा कर रह गया. संगीता टिफिन बौक्स समेटती हुई बोली, ‘‘ठीक है, चलो मैं ही पिलाती हूं. मेरा बाप बड़े दिल वाला है. मिलिट्री औफिसर है. एक बार पर्स में हाथ डालते हैं और जितने नोट निकल आते हैं, वे मुझे दे देते हैं. किसी की इच्छा पूरी करना सीखो शेखर, बस किताबी कीड़ा बने रहते हो. लाइफ औलवेज नीड्स सम चेंज.’’

‘‘ठीक है, चलो पिलाता हूं लस्सी, अब भाषण देना बंद करो,’’ शेखर आग्रह भरे स्वर में बोला.

‘‘मुझे नहीं पीनी है अब लस्सी,’’ संगीता मुसकराते हुए बोली, ‘‘जिस ने पी तेरी लस्सी वह समझो फंसी, मैं तो नहीं ऐसी.’’

फिर कालेज कंपाउंड से निकल कर दोनों बाजार की ओर चल पड़े. चौक पर ही लस्सी की दुकान थी. कुरसी पर बैठते ही संगीता ने एक लस्सी का और्डर दिया. शेखर तब कुतुहल भरी दृष्टि से संगीता को निहारने लगा. संगीता ने टेबल पर सर्व किए गए लस्सी के गिलास को देख कर शेखर की तरफ देखा और जोर से हंस पड़ी.

शेखर धीरेधीरे उस की शोखी और शरारत से वाकिफ हो गया था. अत: वह लस्सी के गिलास को न देख कर दुकान की छत की ओर निहारने लगा. संगीता ने उस से चुटकी बजाते हुए कहा, ‘‘शेखर, लस्सी इधर टेबल पर है आसमान में नहीं है, ऊपर क्या देख रहे हो.’’

उस ने आवाज दे कर मैनेजर को बुलाया. उस के करीब आते ही वह उस पर बरस पड़ी, ‘‘इस टेबल पर कितने लोग बैठे हैं?’’

‘‘2,’’ मैनेजर ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

‘‘फिर लस्सी एक ही क्यों भेजी, तुम्हारे आदमी को समझ में नहीं आता है,’’ संगीता के तेवर गरम हो गए.

मैनेजर गरजते हुए बोला, ‘‘अरे, ओ मंजीते, तेरा ध्यान किधर है, कुड़ी द खयाल कर और एक लस्सी ला.’’

मंजीत कहना चाहता था कि मैडम ने एक ही और्डर दिया था, पर कह न सका और उसे काफी डांट पड़ी.

गैस चैम्बर बन रही दिल्ली

राजधानी दिल्ली और एनसीआर की हवा में लगातार जहर घुलता जा रहा है. एयर क्वॉलिटी इंडेक्स में पीएम 2.5 का स्तर 500 के पार पहुंच चुका है. इसका मतलब स्थिति बेहद गंभीर और आपातकाल वाली है. प्रदूषण की वजह से पूरे दिल्ली सहित पूरे उत्तर भारत के नीले आसमान पर कालिख पुत गयी है. उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित पैनल ने दिल्ली में जन स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा करते हुए तमाम निर्माण कार्यों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है. पर्यावरण प्रदूषण प्राधिकरण ने प्रदूषण की गम्भीर श्रेणी को देखते हुए पूरे ठंड के दौरान पटाखे फोड़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है. दिल्ली के स्कूल 5 नवम्बर तक बंद रहेंगे. इस बात की घोषणा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कर दी है. जहरीली हवा की वजह से जहां कई जगह ऑफिस की भी टाइमिंग बदल दी गयी हैं. वहीं, अन्य संस्थानों में उपस्थिति लगातार गिर रही है. अस्पतालों में मरीजों की संख्या में तीस फीसदी का इजाफा हुआ है, जिसमें से ज्यादातर सांस की तकलीफ, घुटन, आंखों में जलन और पानी आने जैसी समस्या से ग्रस्त हैं. एक हालिया रिसर्च यह बताती है कि हालात इतने खतरनाक हैं कि यह प्रदूषण आम आदमी की जिन्दगी के दस साल कम कर रहा है. सबसे बुरी हालत दिल्ली से सटे गाजियाबाद की है.

गाजियाबाद देश के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से एक है और सेंट्रल पलूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) की मानें तो ट्रैफिक जाम, धुआं और जमी हुई धूल वहां वायु प्रदूषण की मुख्य वजह है. शहर के 20 इलाके को चिह्नित किया है जहां धूल भरे प्रदूषण की स्थिति सबसे गंभीर है. लोगों का सांस लेने में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है, वहीं स्कूल जाने वाले नन्हें-नन्हें बच्चे खांसी और आंख में जलन के चलते परेशान हो रहे हैं. खतरनाक स्तर तक बढ़ चुका यह प्रदूषण मां बनने वाली महिलाओं और उनकी कोख में पल रहे शिशु के लिए बहुत नुकसानदेह साबित हो रहा है.

ग्रेडेड रिस्पौन्स ऐक्शन प्लान के रफ्तार पकड़ते ही विभिन्न एजेंसियों और विभागों को पानी का छिड़काव करने को कहा गया है. गाजियाबाद नगर निगम अपने 90 किलोमीटर के दायरे में पानी का छिड़काव करने के लिए जिम्मेदार है और साथ ही इसे 106 किलोमीटर के दायरे में मशीन से सफाई करानी है. लेकिन सरकारी सुस्ती ऐसी है कि कहीं भी ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है. कच्चे इलाके जैसे – नंदग्राम, लोनी के राशिद नगर, सिकरोड में भट्टा नंबर-5 रोड, विजय नगर बायपास और सिद्धार्थ विहार में पूरे दिन धूल उड़ती रहती है. ये इलाके धूल भरे प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन कालोनी के भीतर की सड़केंं होने के कारण सरकारी महकमे की नजर इधर कभी नहीं जाती है. वहीं, इंदिरापुरम और शास्त्री नगर के कुछ इलाकों में जहां कोई ग्रीन पेविंग नहीं हैं वहां धूल को किसी भी तरह नियंत्रित नहीं किया जा सकता है.

इरफान खान की फिल्म “मदारी” चाइना में होगी रिलीज 

चीन के फिल्म बाजार में बौलीवुड फिल्मों के प्रशंसक बढ़ते जा रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में चीन में लोगों ने बौलीवुड फिल्मों को बहुत पसंद किया और सराहा  है. दंगल, पैडमैन, टौयलेट- एक प्रेम कथा, अंधाधुंध और भी कई ऐसी फ़िल्में चीन के मार्केट में अपना दबदबा बना चुकी हैं. अब इरफान खान अभिनीत फिल्म मदारी जल्द ही चीनी सिनेमाघरों में धूम मचाने के लिए तैयार है.

मदन पालीवाल (मिराज ग्रुप के चेयरमैन), ब्राजील के उद्यमी धीरज मोरे, और मिराज ग्रुप के सोनल देशपांडे – सीओओ अपने पड़ोसी देश चीन में मदारी रिलीज़ करने जा रहे हैं. सोशल थ्रिलर फिल्म मदारी का निर्देशन निशिकांत कामत ने किया है और मदन पालीवाल, शैलेश सिंह, सुतापा सिकदार और शैलजा केजरीवाल इसके निर्माता रहे. फिल्म में मुख्य भूमिका में इरफान खान, विशेष बंसल, जिमी शेरगिल, तुषार डालवी और नितेश पांडे हैं.

मदन पालीवाल (मिराज ग्रुप के चेयरमैन) ने कहा, “मदारी एक वैश्विक मुद्दे पर बनाई गयी दिलचस्प कहानी है और ये कहीं-न-कहीं दुनिया-भर के आम आदमियों से जुड़ी है. हम बहुत खुश हैं कि चीन में बौलीवुड फिल्मों के लिए प्यार बढ़ रहा है और जल्द ही मदारी चीन के सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है.”

चीन में मदारी के रिलीज पर मदन पालीवाल, चेयरमैन मिराज समूह ने कहा कि ” फिल्म मदारी एक आम आदमी के बहुत ही रोचक कहानी है, ग्लोबल सब्जेक्ट पर आधारित है. हमें खुशी है कि यह चीन के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में रिलीज हो रही है.”

फिल्म मदारी एक सामाजिक थ्रिलर है. जब निर्मल (इरफान खान) अपने परिवार को सरकार के भ्रष्टाचार की वजह से एक आपदा में खो देता है, तो अपने सवालों के जवाब और बदला लेने निकल पड़ता है. फिल्म की शूटिंग नई दिल्ली, राजस्थान, देहरादून, शिमला और मुंबई में की गयी थी. काप एंटरटेनमेंट्स मदारी को चीन के सिनेमाघरों में रिलीज करने में प्रमुख भूमिका निभाई है.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ : कार्तिक से दूर भागते हुए कैरव का हुआ एक्सिडेंट

स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  में लगातार दर्शकों को टर्न एंड ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं. इस सीरियल से दर्शक काफी एंटरटेन कर रहे हैं.  शो के ट्रैक में कार्तिक का बर्थडे सेलिब्रेशन चल रहा है. इसी सब के बीच कार्तिक और नायरा के जिंदगी में एक नई घटना घटने वाली है. जी हां इस घटना से सीरीयल की कहानी एक नई मोड़ लेने वाली है.

दरअसल कैरव कार्तिक से दूर भागने की कोशिश करेगा. भागने के सीलसीले में ही कैरव रोड पर पहुंच जाएगा. ऐसे में उसका एक्सिडेंट हो जाएगा. तो इधर कार्तिक और नायरा उसके पास पहुंचेंगे. और कैरव को आईसीयू में भर्ती कराया जाएगा. कैरव के एक्सिडेंट से कार्तिक और नायरा बेहद दुखी होंगे. कार्तिक और नायारा के लाइफ में काफी सारी परेशानियां आ रही है. इन सब परेशानियों से दोनों कैसे बाहर निकलते हैं. अब ये तो अपकमिंग एपिसोड में ही पता चलेगा.

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वैसे कैरव को गलतफहमी हो गई है कि उसके मम्मी औप पापा हमेशा लड़ते रहते है, उनके बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा है. उसे लगता है कि कैरव यानी उसके पापा बहुत गंदे हैं, यहां तक की वह अपने पापा को आई हेट यू भी कह देगा और इसी के साथ तेजी से वहां भाग जाएगा. इसी बीच कैरव का एक्सिडेंट होगा.

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इस शो के अपकमिंग एपिसोड में देखना ये दिलचस्प होगा कि कैरव के एक्सिडेंट के बाद कार्तिक और नायरा के लाईफ में कैसे बदलाव आएंगे है और वो कैसे सामना करेंगे.

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‘छोटी सरदारनी’: क्या परम गेम का लास्ट राउंड जीत पाएगा ?

कलर्स चैनल पर प्रसारित होने वाला  पौपुलर सीरियल ‘छोटी सरदारनी’ में दर्शकों को लगातार धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं. जिससे दर्शक इस शो को बेहद पसंद कर रहे हैं. फिलहाल इस शो में काफी इंटरेस्टिंग ट्विस्ट एंड टर्न दिखाया जा रहा है. तो देर किस बात की झट से बताते हैं आपको इस शो के ट्विस्ट एंड टर्न को.

हाल ही में इस शो में ये दिखाया गया कि परम और आहिल की फैमिली के बीच कम्पटिशन चल रहा है. कम्पटिशन का पहला राउंड तो परम क्लियर कर लेता है. पर दूसरे राउंड में बच्चों को चलना होता है. तभी मेहर परम को केयरफुल रहने को कहती है.

परम सुरंग पार करता है, मेहर उसे निशाना पार करने के लिए भी कहती है. तभी परम निशाना पार करने की कोशिश करता है. सब परम को प्रोत्साहित करते हैं.

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इसी बीच कम्पटिशन में ऐलान किया जाता है कि  परम और आहिल कम्पटिशन के लास्ट राउंड की ओर बढ़ रहे हैं. यह एक वार लाइन है. तभी खुशी कहती है आहिल काफी हेल्दी है. परम इस खेल में हार जाएगा. अब देखना इस शो में देखना ये दिलचस्प होगा कि इस कम्पटिशन को  परम जीतेगा या आहिल ?

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किसके पास है महाराष्ट्र संकट का हल

बात हंसी ठिठोली के अंदाज में शुरू हुई थी जो वाकई अब गंभीर संकट की शक्ल लेती जा रही है, इस बार अभी तक तो न शिवसेना झुकने के मूड में दिख रही और न ही भाजपा जिससे यह रहस्य रोमांच गहराता जा रहा है कि महाराष्ट्र में आखिरकार सरकार कौन बनाएगा और कैसे बनाएगा क्योंकि किसी एक दल के पास 145 का आंकड़ा नहीं है. 24 अक्टूबर को जब विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे तब ऐसा लग रहा था कि थोड़ी सी नोकझोंक और कलह के बाद भाजपा शिवसेना गठबंधन सरकार बना ले जाएगा लेकिन एक हफ्ते से भी ज्यादा का  वक्त गुजरने के बाद भी कोई फैसला होता नहीं दिखाई दे रहा तो देश भर में उत्सुकता का माहौल है कि अब क्या होगा.

24 अक्टूबर के नतीजों में 288 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में भाजपा को सबसे ज्यादा 105 शिवसेना को 56 एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिली थीं. 29 सीटें निर्दलीय और दूसरे छोटे दलों के खाते में गईं थीं. बहुमत हालांकि गठबंधन को मिला था लेकिन पेंच तब फंसा जब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भाजपा को यह वादा याद दिलाया कि सौदा 50-50 का हुआ था और भाजपा को इसे पूरा करना चाहिए.

दीवाली तक तो भाजपा यही समझती और मानती रही कि उद्धव हमेशा की तरह धौंस दे रहे हैं और कोई दूसरा रास्ता निकलते न देख कुछ शर्तों पर सरकार बनाने राजी हो जाएंगे पर उद्धव ने कड़ा रुख दिखाया तो भाजपा भी झल्ला उठी कि किस किस की सुने और कहां कैसे सरकार बनाए. गौरतलब है कि हरियाणा में भी उसे महज 40 सीटों से तसल्ली कर नई नवेली जननायक जनता पार्टी से हाथ मिलना पड़ा था जो पहली बार में ही 10 सीटें ले गई थी . हरियाणा की गुत्थी तो जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को उप मुख्यमंत्री पद देने से सुलझ गई लेकिन महाराष्ट्र का पेंच इस बार कुछ ऐसा फंसा कि किसी भी तरीके से नहीं सुलझ रहा.

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पवार का रोल अहम

अब जब भाजपा भी अपनी जिद पर अड़ गई है कि उद्धव ठाकरे की धौंस धपट में नहीं आएगी तो एनसीपी मुखिया शरद पवार का रोल अहम हो चला है. जो आदतन खामोश हैं और अपने पत्ते नहीं खोल रहे. 50-50 फार्मूले के तहत शिवसेना ढाई साल के लिए अपना मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल में भी आधी हिस्सेदारी मांग रही है. वह भाजपा को अपना वादा याद दिलाने राम की भी दुहाई दे रही है लेकिन भाजपा कह रही है कि उसने ऐसा  कोई वादा नहीं किया था तो यह तय कर पाना भी मुश्किल हो रहा है कि असल में बेवफा कौन है.

दोनों खेमों से तरह तरह के आरोप प्रत्यारोप लग रहे हैं जिससे संकट और गहराता जा रहा है. लाख दावों के बाद भी भाजपा 145 तक नहीं पहुंचती दिखाई दे रही तो शिवसेना का तो उसके आसपास फटकना ही नामुमकिन है. अब सभी की निगाहें शरद पवार पर जा टिकी हैं कि वे क्या करेंगे. खामोशी से कलह का आनंद उठाते रहेंगे या 8 नवंबर के ठीक पहले लोकतन्त्र की दुहाई देते किसी एक खेमे को अंदर या बाहर से समर्थन देने की घोषणा कर असल हीरो बनकर उभरेंगे.

हालांकि हीरो तो वे तभी बन गए थे जब एनसीपी ने 54 का आंकड़ा छुआ था और सतारा लोकसभा का प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव जीतते भाजपा के राष्ट्रवाद, हिन्दुत्व, मंदिर निर्माण और कश्मीर से धारा 370 हटाने जैसे जज्बाती मुद्दों की हवा निकालकर रख दी थी. उनकी बदौलत कांग्रेस को भी उम्मीद से ज्यादा सीटें मिल गईं जो हाल फिलहाल महाराष्ट्र संकट पर भाजपा और शिवसेना की तरह ही उनका मुंह ताक रही है कि क्या करना है .

विकल्प कई हैं लेकिन सभी दल दूर की भी देख रहे हैं कि ये कितने टिकाऊ होंगे और कौन किसका कितना साथ दे पाएगा. सबसे आसान रास्ता तो यह है कि शरद पवार भाजपा का साथ बाहर से ही सही दे दें. जिससे सारा संकट एक झटके में दूर हो जाए लेकिन सैद्धान्तिक रूप से यह उनके लिए संभव नहीं क्योंकि यह वही भाजपा है जो चुनाव से पहले उन्हें घोटालेबाज बताकर गिरफ्तार करने तक मन बना चुकी थी और दूसरे वे अगर भाजपा का साथ किसी भी तरीके से देते हैं तो उनकी इमेज और साख पर एक स्थायी बट्टा लग जाएगा कि उन्होंने गिरफ्तारी से बचने उसूलों को ताक पर रख दिया.

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दूसरा रास्ता थोड़ा कठिन है कि शरद पवार शिवसेना को समर्थन दे दें जिसमे सैद्धान्तिक अड़चने अपेक्षाकृत कम हैं क्योंकि उद्धव ठाकरे साफ्ट कार्नर न केवल उनके प्रति बल्कि कांग्रेस के लिए भी दिखाते रहे हैं. उन्होंने कई बार सोनिया और राहुल गांधी की भी तारीफ कर भाजपा को खूब चिढ़ाया है. अगर शरद पवार कहेंगे तो सोनिया गांधी भी शिवसेना को समर्थन देने से हिचकिचाएंगी नहीं क्योंकि उनका मकसद भी भाजपा को कमजोर करना है.

ऐसा होना नामुमकिन नहीं है और यह बात भाजपा भी समझ रही है. लेकिन वह जिद्दी उद्धव ठाकरे के टूटने का इंतजार कर रही है और यही उद्धव भी कर रहे हैं कि भाजपा इस समीकरण से घबराकर उनकी बात मान ले.

एक तीसरा रास्ता जो हाल फिलहाल असंभव सा लगता है. वह, यह है कि कोई रास्ता न निकलते देख खुद उद्धव एनसीपी को मुख्यमंत्री पद की कुर्सी की पेशकश कर भाजपा को वाकई वादा खिलाफी का सबक सिखा दें जिससे सनद रहे. इसमें एकलौती अड़चन मंदिर मुद्दे पर मतभेद की है तो उद्धव कह सकते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सभी को मान्य होगा इसलिए इस पर अब राजनीति के कोई माने नहीं रह गए हैं.

कोई चौथा पांचवा रास्ता किसी को नजर भी नहीं आ रहा सिवाय इसके कि भाजपा शिवसेना में से कोई एक झुकते कांग्रेस और शरद पवार को और मजबूत होने से रोके ये दोनों ही दल अब अपने विधायकों को लेकर भी आशंकित हो चले हैं कि कहीं कुर्सी के लालच में वे थोक में दूसरे पाले में न चले जाएं.  अब देखना दिलचस्प होगा कि किसकी सब्र पहले टूटती है, अंदाजा भाजपा की सब्र टूटने का ज्यादा है क्योंकि सबसे बड़ा दल होने के बाद भी वह सरकार नहीं बना पाई तो उसे भविष्य में सौदेबाजी में हर जगह नुकसान उठाना पड़ेगा.

फिल्म रिव्यू : ‘‘उजड़ा चमन”

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः मंगत कुमार पाठक

निर्देशकः: अभिषेक पाठक

कलाकार: सनी सिंह, मानवी गगरू, सौरभ शुक्ला, ग्रुशा  कपूर, ऐश्वर्या सखूजा, करिश्मा शर्मा, अतुल कुमार

अवधि: दो घंटे

हीन ग्रथि से उबरने के साथ साथ इंसान की असली सुंदरता उसके लुक/शारीरिक बनावट पर नही बल्कि उसके अंतर्मन में निहित होती है, उसके स्वभाव में होती है. इस मुद्दे पर एक हीन ग्रथि के शिकार  तीस वर्षीय प्रोफेसर, जिसके सिर पर बहुत कम बाल है, की कहानी को हास्य के साथ पेश करने वाली फिल्म ‘‘उजड़ा चमन’’ फिल्मकार अभिषेक पाठक लेकर आए हैं. मगर वह बुरी तरह से असफल रहे हैं. फिल्म दस मिनट के लिए भी दर्शक को बांधकर नहीं रखती.

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कहानीः

2017 की सफल कन्नड़ फिल्म ‘‘ओंडू मोट्टेया कठे’’ की हिंदी रीमेक ‘उजड़ा चमन‘ की कहानी दिल्ली युनिवर्सिटी के हंसराज कौलेज में लेक्चरर/प्रोफेसर के रूप में कार्यरत 30 वर्षीय चमन कोहली (सनी सिंह) की दुःखद दास्तान है, जो कि सिर पर बहुत कम बाल यानी कि गंजा होने के कारण हर किसी के हंसी का पात्र बनते हैं. उनके विद्यार्थी भी कक्षा में उन्हें ‘उजड़ा चमन’ कह कर मजाक उड़ाते हैं. इसी समस्या के चलते उनकी शादी नहीं हो रही है, इससे चमन के पिता (अतुल कुमार) और माता (ग्रुशा कपूर) बहुत परेशान हैं. यह परेशानी तब और अधिक बढ़ जाती है जब एक ज्योतिषी गुरू जी (सौरभ शुक्ला) भविष्यवाणी कर देते हैं कि यदि 31 की उम्र से पहले चमन की शादी न हुई, तो वह संन्यासी हो जाएंगे. इसलिए चमन शादी के लिए लड़की तलाशने के लिए कई जुगाड़ लगाते हैं. टिंडर पर दोस्ती करना शुरू करते हैं. दूसरों की शादी में जाकर लड़कियों के आगे पीछे मंडराते हैं. अपने गंजेपन को छिपाने के लिए विग लगाने से लेकर ट्रांसप्लांट तक की सोचते हैं, लेकिन बात नहीं बनती. अचानक टिंडर के कारण उनकी मुलाकात एक मोटी लड़की अप्सरा (मानवी गगरू) से होती है. पर जब दोनो सामने आते हैं, तो कहानी किस तरह हिचकोले लेती है, वह तो फिल्म देखकर ही पता चलेगा.

लेखन:

फिल्मकार ने एक बेहतरीन विषय को चुना, मगर पटकथा व संवाद लेखक दानिश खान ‘बाल नहीं,  तो लड़की नहीं ‘पर ही दो घंटे तक इस तरह चिपके रहे कि दर्शक कहने लगा ‘कहा फंसाओ नाथ. ’इंटरवल से पहले गंजेपन के चलते मजाक के ही दृश्य हैं, जो कि जबरन ठूंसे गए नजर आते है. हंसराज हंस कालेज के अंदर के दृश्य, खासकर प्रिंसिपल के आफिस के अंदर का दृश्य इस कदर अविश्वसनीय और फूहड़ लगता है कि आम दर्शक को भी लेखक की सोच पर तरस आने लगता है. लेखक चमन के किरदार को भी सही ढंग से नहीं गढ़ पाए. वह कभी सभ्य व संवेदनशील लगते हैं, तो कभी बहुत गंदे नजर आते हैं. पिता व पुत्र के बीच के रिश्ते व संवाद भी फूहड़ता की सारी सीमाएं तोड़ते हैं. चमन के पिता ‘लड़का प्योर है’ व ‘वर्जिन है’ कई बार दोहराते हैं. जिसके कोई मायने नहीं.

निर्देशनः

कुछ वर्ष पहले अभिषेक पाठक ने पानी पर एक बेहतरीन डाक्यूमेंटरी फिल्म बनायी थी, जिसके के लिए उन्हे पुरस्कृत भी किया गया था. उस वक्त वह एक संजीदा निर्देशक रूप में उभरे थे. मगर ‘उजड़ा चमन’ देखकर यह अहसास नही होता उन्ही अभिषेक पाठक ने इसका निर्देशन किया है. निर्देशन में भी खामियां हैं. निर्देशकीय व लेखक की कमजोरी के चलते पूरी फिल्म में हीनग्रंथि की बात उभरकर आती ही नही है.

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अभिनयः

सनी सिंह की यह पहली फिल्म नहीं है. मगर पूरी फिल्म में वह एकदम सपाट चेहरा लिए ऐसे इंसान नजर आते हैं, जिसके अंदर किसी तरह की कोई भावना नही होती. वह इस फिल्म में सोलो हीरो बनकर आए हैं, पर वह इसका फायदा उठाते हुए बेहतरीन अदाकारी दिखाने का मौका खो बैठे. जबकि छोटे किरदार में मानवी गगरू अपनी छाप छोड़ जाती हैं. अतुल कुमार, ग्रुशा कपूर, गौरव अरोड़ा, करिश्मा शर्मा, ऐश्वर्या सखूजा, शारिब हाशमी ने ठीक ठाक काम किया है.

फेस्टिवल स्पेशल: ऐसे बनाएं पोटैटो पैनकेक

आज आपको पोटैटो पेनकेक बनाने की रेसिपी बता रहे हैं. इसे बनाना काफी आसान है. यह रेसिपि सबको पसंद आएगी. तो देर किस बात की झट से बताते हैं आपको पोटैटो पैनकेक की रेसिपी.

सामग्री

-2 कच्चे आलू

-1 उबला आलू

-1 प्याज कटा

-1-2 हरीमिर्चें कटी

-1/2 कप मैदा

-1/4 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर

– 2-3 बड़े चम्मच तेल

-नमक स्वादानुसार.

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बनाने की विधि

कच्चे आलुओं को छील कर कस लें. उबला आलू छील कर कस लें. एक बाउल में कसे आलू, मैदा, मिर्च व प्याज डाल कर पानी के साथ गाढ़ा बैटर बना लें. इस में नमक व बेकिंग पाउडर मिला कर फेंट लें. गरम तवे पर एक बड़े चम्मच से बैटर डाल कर फैला लें. दोनों तरफ तेल डाल कर सेंक लें. सौस के साथ गरमगरम परोसें.

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गलती पर गलती

जानकारी

गलतियां इंसान से ही होती हैं और वही उन गलतियों को सुधारता भी है. अगर उसे गलतियों को सुधारने का मौका ही न दिया जाए तो खामियाजा गलती करने वाले को ही भुगतना पड़ता है. बैंक या फाइनैंस कंपनियों में लेनदेन से संबंधित गलतियां होती रहती हैं. समय रहते उन गलतियों को सुधार भी लिया जाता है और अगर सुधार न हो पाए तो खामियाजा गलती करने वाले को अथवा बैंक को भोगना पड़ता है. बात चूंकि पैसे से जुड़ी होती है, इसलिए इस का असर भी व्यापक होता है.

ऐसी गलतियां हमारे देश में ही नहीं, विदेशों में भी होती हैं. हाल ही में अमेरिका के पेंसिलवेनिया में एक अलग तरह का मामला  सामने आया. हुआ यह कि बैंक की गलती से पेंसिलवेनिया के मोंटूर्सविले में रहने वाले रौबर्ट और टिफनी विलियम्स के खाते में 86.29 लाख रुपए (1,20,000 डौलर) ट्रांसफर हो गए.

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मजे की बात यह कि खाताधारकों ने अपने खाते से निकाल कर 77 लाख रुपए (1,07,000 डौलर) खर्च भी कर दिए. बैंक ने जब दंपति को गड़बड़ी की सूचना दी तो उन्होंने पैसे नहीं लौटाए. मजबूरी में बैंक को कोर्ट जाना पड़ा.

लिकमिंग मजिस्ट्रैट जिला कोर्ट में इस दंपति के खिलाफ चोरी का केस चल रहा है. केस की पहली सुनवाई बीते 9 सितंबर को हुई. सुनवाई में पतिपत्नी ने स्वीकार किया कि जो पैसा उन के खाते में आया, वह उन का नहीं था. पर वे उस में से 90 प्रतिशत खर्च कर चुके हैं.

टिफनी ने बताया कि खाते में आए पैसे से उन लोगों ने एक एसयूवी कार, एक कैंपर, और एक कार ट्रेलर खरीद लिया है. बाकी पैसा अन्य चीजों के बिल चुकाने में खर्च हो गया. उन्होंने एक दोस्त को 15000 डौलर उधार भी दिए.

टिफनी ने यह भी बताया कि जब बैंक ने उन्हें गड़बड़ी की बात बताई तो वे बैंक से रिपेमेंट एग्रीमेंट साइन करने को तैयार हो गईं. लेकिन बैंक ने उन से दोबारा संपर्क नहीं किया. पतिपत्नी ने कहा कि वे अभी पैसा लौटाने की स्थिति में नहीं हैं.

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