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घर पर बनाएं सब्जियों की तहरी

सब्जियों की तहरी सब्जियों में मसालों को एक साथ मिलाकर बनाई गई लाजवाब डिश है. यह उत्तर भारत में काफी लोकप्रिय है.डिनर पार्टी में भी आप इसे सर्व कर सकते हैं.

1 कप चावल

2 गाजर

10 बीन्स

1/2 कप दही

2 टी स्पून पीली मिर्च पाउडर

1 टी स्पून हल्दी पाउडर

8-10 हरी मिर्च, कटा हुआ

3 टी स्पून अदरक, कटा हुआ

1 टी स्पून हरी इलाइची पाउडर

1 टी स्पून जावित्री पाउडर

1/2 कप क्रीम

2 आलू

100 ग्राम ताजी मटर

1 टेबल स्पून सरसों का तेल

2 टी स्पून जीरा

2 टी स्पून लहसुन का पेस्ट

1/2 कप कसूरी मेथी

नमक (स्वादानुसार)

पानी (आवश्यकतानुसार)

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बनाने की वि​धि

चावल को दोगुने पानी में 20 मिनट के लिए भिगो दें.

गाजर, बीन्स और आलू को ​छीलकर छोटे और तिरछे टुकड़ों में काट लें.

एक पैन में पानी उबाल लें, इसमें नमक, आलू, गाजर, मटर और बीन्स को डालकर हल्का ब्लांच कर लें. एक बार जब यह उबल जाए तो इन्हें ठंडे पानी से धो लें.

एक बर्तन में सरसों का तेल डालकर गर्म करें, इसमें जीरा, लहसुन पेस्ट, कसूरी मेथी के पत्ते डालकर भूनें.

पानी डालकर इसे एक मिनट के लिए पकाएं और इसमें सब्जियां और नमक डालें फिर कुछ देर के लिए पकाएं.

अब इसमें दही, पीली मिर्च, हल्दी पाउडर डालकर 5 से 10 मिनट के लिए पकाएं और पानी डालें और कुछ देर इसे उबलने दें.

इसमें हरी मिर्च, अदरक, इलाइची पाउडर, जावित्री पाउडर और चावल डालें.

इसे अच्छे से चलाएं और आंच को धीमा कर दें और ढक कर इसे कुछ देर पकने दें.

एक बार जब चावल पक जाए तो इसमें क्रीम डालकर भूनें और इसे गर्मागर्म सर्व करें.

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काम के बीच लें झपकी

कोई व्यक्ति 24 घंटे चुस्त नहीं रह सकता. कम से कम 8 घंटे की नींद शरीर और दिमाग को ऊर्जावान बनाए रखने के लिए बहुत ही जरूरी है, मगर दिन में काम के दौरान महसूस होने वाली छोटीछोटी नींद को भी हरगिज नजरअंदाज न करें.

अकसर औफिस में लंच के बाद आलस्य या नींद हावी हो जाती है. ऐसे में कुछ काम करते ही नहीं सूझता. बारबार आंखें बंद हो जाती हैं. मन करता है कि कोई एकांत कोना मिल जाए जहां कुछ देर की झपकी ले जी जाए. वैज्ञानिक इसी झपकी को पौवर नैप कहते हैं, जिसे ले लेना बहुत जरूरी है. इस से आप का काम बिलकुल भी प्रभावित नहीं होता है, बल्कि पौवर नैप लेने के बाद आप दोगुनी ऊर्जा के साथ तेजी से अपना काम निबटा सकते हैं.

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आप को फिर से तरोताजा करने वाली पौवर नैप जरूरत के अनुसार 10 मिनट, 20 मिनट या फिर एक घंटा तक की हो सकती है. आदर्श पौवर नैप 20 मिनट की मानी जाती है. लगातार 8 घंटे काम करने के दौरान कुछ देर के लिए ली गई एक पौवर नैप आप को दोबारा रीचार्ज कर देती है और आप बेहतर तरीके से काम कर पाते हैं.

इंसान पूरे दिन में 2 बार ऐसा महसूस करता है कि उसे नींद आ रही है. यह मानव शरीर का स्वभाव है. आप चाहें भी तो इसे रोक नहीं सकते. दिन में ली गई एक झपकी वास्तव में पूरी रात की नींद के बराबर आप को एनर्जी देती है.

अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार,

26 मिनट तक कौकपिट में सोने वाला पायलट बाकी पायलटों की तुलना में 54 प्रतिशत सतर्क और नौकरी के प्रदर्शन में 34 प्रतिशत ज्यादा बेहतर देखा गया है. नासा में नींद के विशेषज्ञों ने नैप के प्रभावों पर शोध करने पर पाया कि नैप लेने से व्यक्ति के मूड, सतर्कता और प्रदर्शन में काफी सुधार होता है.

10 मिनट की झपकी आप को पूरी रात की नींद जैसा फ्रैश महसूस करवा सकती है. आप 10 से 20 मिनट के बीच ली गई पौवर नैप से बिना सोए रातभर की नींद जैसा फायदा उठा सकते हैं. खास बात यह है कि 10 मिनट की झपकी लेने से मांसपेशियों के बनने से ले कर याददाश्त के मजबूत होने तक में सहायता मिलती है.

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दोपहर के वक्त लंच के बाद 20 से 30 मिनट की पौवर नैप सब से अच्छी है, मगर ज्यादा नींद आती हो, तो भी एक घंटे से ज्यादा नहीं सोना चाहिए, वरना आप के शरीर की जैविक घड़ी प्रभावित हो जाएगी और रात की नींद में खलल पड़ेगा.

नैप के लिए शांत कोना ढूंढ़ें

पौवर नैप से अधिकतम लाभ पाने के लिए आप को एक शांतिपूर्ण, ठंडी और आरामदायक जगह ढूंढ़नी चाहिए, जहां दूसरे लोग आप को परेशान न करें. औफिस में कौन्फ्रैंस रूम का कोना हो या कार पार्किंग स्थल, 10 से 15 मिनट यहां खामोशी से आंख बंद कर के बिताए जा सकते हैं. लगभग 30 प्रतिशत कौर्पोरेट औफिस में लंच के बाद एम्प्लाइज को आधा घंटे का वक्त पौवर नैप के लिए दिया जाता है. इस से उन के काम की गति और क्षमता में बढ़ोतरी होती है.

अगर आप किसी स्कूलकालेज में पढ़ाते हैं, तो वहां की लाइब्रेरी इस काम के लिए सब से बेहतर जगह है. वहां शांति और खाली जगह होती है. आप सड़क पर जा रहे हों और आप को झपकी लगी हो तो किसी पार्किंग स्थल पर कार खड़ी कर के 10-15 मिनट की झपकी ले लेनी चाहिए.

अकसर देखा गया है कि कार ड्राइव करने वाले लोग नींद आने पर तंबाकूगुटका का सेवन नींद भगाने के लिए करते हैं, जो सेहत के लिए बहुत खतरनाक है. बेहतर है कि नींद आने पर किसी सेफ जगह पर गाड़ी खड़ी कर के झपकी मार ली जाए. इस से नींद तो भागती ही है, शरीर और दिमाग पहले से अधिक ऊर्जा महसूस करने लगते हैं.

कम रोशनी का स्थान चुनें

पौवर नैप लेते वक्त लाइट औफ कर दें. बेहतर हो कि आप कोई अंधेरा कमरा चुनें ताकि आंख बंद करते ही आप को नींद आ जाए. अंधेरा होने से आप की आंखों की मांसपेशियों को आराम मिलेगा और दिमागी तनाव भी दूर होगा. यदि अंधेरा स्थान उपलब्ध न हो तो आप स्लीपमास्क या धूप का चश्मा आंखों पर चढ़ा लें और आराम से सो जाएं. इस के अलावा जिस जगह आप पौवर नैप लें, वह स्थान बहुत गरम या बहुत ठंडा नहीं होना चाहिए. आप की नैपिंग आरामदायक हो, इसलिए एक शीतल लेकिन आरामदायक जगह तलाश करिए.

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शांतिदायक संगीत सुनें

रिलैक्सिंग म्यूजिक आप के दिमाग को सही स्थिति में ला सकता है. यदि आप अपनी कार में पौवर नैप ले रहे हैं, तो कोई हलका संगीत लगा लें, इस से नींद अच्छी आती है. अगर आप काम की वजह से ज्यादा तनाव में हैं और आंख बंद करने पर भी आप को नींद नहीं आती है तो कुछ व्यायाम करें. आंख बंद कर के एक से सौ तक गिनती गिनें या कोई मनपसंद गीत गुनगुनाएं. इस के बाद आप को जल्द ही नींद आ जाएगी और जागने पर दिमाग तनावमुक्त महसूस होगा.

नैप की अवधि

आप खुद तय करें कि आप कितनी देर तक नैप लेना चाहते हैं. एक पौवर नैप 10 से 30 मिनट के बीच की होनी चाहिए. वैसे तो, छोटे और लंबी नैप्स भी विभिन्न लाभ प्रदान कर सकती हैं. आप का शरीर खुद आप को बता देगा कि आप को कितनी देर तक नैप लेनी है. बस उस समयसीमा का पालन आप हर दिन समान रूप से करें. यदि आप के पास अधिक समय नहीं है, लेकिन आप इतनी नींद में हैं कि आप जो कुछ भी कर रहे हैं, उसे जारी नहीं रख पा रहे हैं, तो 2 से 5 मिनट की नैप, जिसे ‘नैनो नैप’ कहा जाता है, लें. यह आप को नींद से निबटने में मदद कर सकती है.

5 से 20 मिनट के लिए नैप आप की सतर्कता, स्टैमिना, और मोटरपरफौर्मेंस बढ़ाने के लिए बहुत अच्छी होती है. इन नैप्स को ‘मिनी-नैप्स’ के रूप में जाना जाता है. 20 मिनट की नींद बहुत आदर्श नैप मानी जाती है. एक पौवरनैप मस्तिष्क को अपने शौर्टटर्म मैमोरी में एकत्रित अनावश्यक जानकारी से छुटकारा पाने में भी मदद करती है और मसलमैमोरी में सुधार भी लाती है. 20 मिनट की पौवर नैप से आप के नर्वस सिस्टम में मौजूद इलैक्ट्रिकल सिग्नल्स आप को अधिक आराम किया हुआ और सतर्क महसूस कराने के अलावा आप के मसलमैमोरी में शामिल न्यूरौन्स के बीच के संबंध को मजबूत भी करती है, जिस से आप का मस्तिष्क तेजी से और अधिक सटीक तरीके से काम करने लगता है. यदि आप बहुत से महत्त्वपूर्ण तथ्यों को याद करने की कोशिश कर रहे हैं, उदाहरणस्वरूप किसी परीक्षा के लिए, तो पावर नैप लेनी विशेषरूप से उपयोगी हो सकती है.

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पौवर नैप से पहले कौफी पिएं

यह बात अजीब लग सकती है कि पौवर नैप से पहले कौफी पिएं क्योंकि कौफी का इस्तेमाल नींद को दूर भगाने के लिए किया जाता है. परंतु 20 मिनट की पौवर नैप लेने से पहले अगर आप कौफी का एक प्याला पी लेते हैं तो यह कौफी आप के शरीर में तुरंत अवशोषित नहीं होती है.

कौफी पहले आहार नाल से गुजरती है और फिर शरीर में अवशोषित होने में उसे 45 मिनट का वक्त लगता है. इस दौरान आप 20-25 मिनट की पौवर नैप ले लें तो जागने के बाद शरीर में मौजूद कौफी आप को और ज्यादा ताजगी से भर देगी और आप दोगुनी ऊर्जा के साथ अपने काम का संचालन कर सकते हैं. इस प्रयोग से आप 7 से 8 घंटे तक बिना रुके काम कर सकते हैं.

एक लड़की ऐसी भी : भाग 1

किसी लड़के से लड़की को और लड़की को लड़के से प्यार होना स्वाभाविक होता है. काजल ने हरिमोहन से प्यार कर के कोई गुनाह नहीं किया था. लेकिन प्यार की मंजिल तक पहुंचने के लिए उस ने जो किया, वह गुनाह था.

आखिर काजल ने…

उस दिन तारीख थी 10 सितंबर, 2019 और समय था शाम के करीब 5 बजे का. गोरखपुर जिले के चौरीचौरा के ओमनगर में रहने वाले शिक्षक अनिल कुमार पांडेय विद्यालय से थकेमांदे घर लौटे थे. बड़ी बेटी सुमन पिता के लिए चायनाश्ते का इंतजाम करने लगी.

नाश्ता कर के अनिल आराम करने के लिए अपने कमरे में चले गए. तभी उन के वाट्सऐप पर एक मैसेज और कई फोटो आए. मैसेज में लिखा था, ‘मैं ने तुम्हारी बेटी से बदला ले लिया है. उस की हत्या कर के लाश ऐसी जगह फेंक दी है कि तुम सात जन्मों तक भी नहीं ढूंढ पाओगे.’

अनिल पांडेय सोचने लगे कि यह भद्दा मजाक किस ने किया है. लेकिन जब उन्होंने मैसेज के साथ आए फोटो को ध्यान से देखा तो वह सन्न रह गए. उन के हाथ से मोबाइल छूटतेछूटते बचा. जो 3-4 फोटो वाट्सऐप पर आए थे, वे उन की दूसरे नंबर की बेटी काजल के थे.

फोटो देखने से साफ पता चल रहा था कि किसी ने काजल की हत्या कर के लाश जंगल में कहीं फेंक दी है. उस के सिर से खून निकल रहा था. मुंह और दोनों पैर किसी कपड़े से बंधे थे. उस के दोनों हाथ भी पीछे की ओर बंधे हुए थे.

हड़बड़ाए से अनिल मोबाइल ले कर पत्नी के पास पहुंचे. बच्चों को आवाज दे कर अपने पास बुलाया. उस समय उन के चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी और सांसों की रफ्तार तेज हो चली थी. पत्नी ने उन की इस हालत के बारे में पूछा तो उन्होंने पत्नी की ओर मोबाइल फोन बढ़ा दिया.

पत्नी और बच्चों ने जब वाट्सऐप पर काजल की लाश की फोटो देखीं तो उन की आंखें फटी रह गईं और मुंह से चीख निकल गई.

घर में रोनापीटना शुरू हो गया. अनिल पांडेय के घर में अचानक रोना सुन कर पासपड़ोस के लोग भी उन के यहां पहुंच गए. जब उन्हें पता चला कि काजल की हत्या हो गई है, तो सभी के चेहरों पर दुख की छाया उतर आई.

पड़ोसियों ने पांडेयजी को सुझाया कि यह पुलिस केस है, इसलिए पुलिस को यह सूचना दे देनी चाहिए ताकि वे काजल की लाश का पता लगा सकें.

उन की सलाह पर अनिल पांडेय पड़ोसियों के साथ चौरीचौरा थाने पहुंच गए. उस समय शाम के करीब 7 बज रहे थे. थानाप्रभारी नीरज राय थाने में मौजूद थे. अनिल पांडेय ने सारी जानकारी थानाप्रभारी को दे दी.

थानाप्रभारी ने वाट्सऐप पर आई तसवीरों को गौर से देखा. इस के बाद उन्होंने अनिल पांडेय से पूछा कि उन्हें किसी पर कोई शक है? तब अनिल पांडेय ने पड़ोस में रहने वाले 3 युवकों के नाम बता दिए, जिन पर उन्हें शक था. उन्होंने बताया कि इन से उन का पिछले कई महीनों से विवाद चल रहा था. विवाद के चलते उन युवकों ने धमकी दी थी कि वे उन के परिवार वालों की हत्या कर देंगे.

थानाप्रभारी नीरज राय ने बिना समय गंवाए अनिल पांडेय की निशानदेही पर तीनों युवकों को उन के घरों से हिरासत में ले लिया और पूछताछ के लिए थाने ले आए. तीनों युवक पांडेयजी के पड़ोसी थे.

पुलिस ने तीनों युवकों से पूरी रात सख्ती से पूछताछ की. पूछताछ के दौरान कोई ऐसी वजह निकल कर सामने नहीं आई जिस से यह साबित होता कि काजल की हत्या उन्हीं तीन युवकों ने की है. तब पुलिस ने उन्हें कड़ी हिदायत दे कर छोड़ दिया.

अगले दिन सुबह अनिल पांडेय यह पता लगाने थाने पहुंचे कि उन तीनों ने किस वजह से बेटी की हत्या की थी, उन्होंने क्या बताया? थानाप्रभारी नीरज राय ने अनिल को बताया कि युवकों से काजल की हत्या की कोई ऐसी बात नहीं पता चल सकी, जिस से उन की संलिप्तता दिखती. फिलहाल उन्हें हिदायत दे कर छोड़ दिया गया है. यह सुन कर अनिल पांडेय मायूस हो गए.

इसी बीच पुलिस को कहीं से एक चौंकाने वाली खबर मिली. सूचना यह थी कि बीते दिन 2 युवकों को काजल का अपहरण करते देखा गया था.

इस जानकारी के बाद अनिल पांडेय ने भोपा बाजार चौराहा स्थित एक मोबाइल दुकानदार अनूप जायसवाल और उस के कर्मचारी विजय पाठक पर अपहरण कर बेटी की हत्या किए जाने की नामजद तहरीर थानाप्रभारी को दे दी. इस के पीछे एक खास वजह थी.

अनिल पांडेय ने बताया कि काजल और विजय पाठक के बीच कई दिनों से किसी बात को ले कर गहरा विवाद चल रहा था. संभव है उसी विवाद के चलते विजय और दुकानदार ने मिल कर बेटी का अपहरण किया हो और उस की हत्या कर लाश जंगल में फेंक दी हो. अनिल पांडेय की इस बात में थानाप्रभारी को दम नजर आ रहा था.

अनिल पांडेय की इस तहरीर पर पुलिस ने विजय पाठक और दुकान मालिक अनूप जायसवाल के खिलाफ अपहरण और हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने दोनों को भोपा बाजार स्थित मोबाइल की दुकान से हिरासत में ले लिया.

काजल की हत्या की सूचना थानाप्रभारी ने एसएसपी डा. सुनील गुप्ता, सीओ (चौरीचौरा) सुमित शुक्ला को पहले ही दे दी थी और वह उन्हीं अधिकारियों के दिशानिर्देश पर फूंकफूंक कर कदम रख रहे थे.

दुकान मालिक अनूप जायसवाल ने पूछताछ में बताया कि काजल को दुकान पर काम करने के लिए विजय पाठक ले कर आया था. वह मेहनती लड़की थी. इस से ज्यादा वह काजल के बारे में कुछ नहीं बता सका.

विजय ने पुलिस को बताया कि वह पांडेय जी के पड़ोस में रहता है. इस वजह से उन के परिवार को अच्छी तरह जानता है. कुछ दिनों पहले काजल ने उस से कहा था कि वह कोई नौकरी करना चाहती है. इस पर उस ने अपने दुकान मालिक से बात कर के काजल को उसी की दुकान पर नौकरी दिला दी थी.

कुछ दिनों बाद काजल की बड़ी बहन सीमा ने भी काम करने की इच्छा जाहिर की और कहा कि जहां काजल काम करती है, उसी दुकान पर उस की भी नौकरी लगवा दे. जब इस बात की जानकारी काजल को हुई, तो वह मुझ से झगड़ने लगी थी.

उस ने कहा था कि उस की बहन को यहां नौकरी पर न रखवाए, नहीं तो इस का अंजाम बहुत बुरा होगा. इसी बात को ले कर उस के और मेरे बीच मतभेद हो गया था. इस बारे में चाहें तो आप सीमा से पूछ लें. पुलिस ने सीमा से पूछताछ की तो उस ने भी विजय की बातों का समर्थन किया.

इस से एक बात तो तय हो गई थी कि विजय पाठक जो कह रहा था, वह सच था. लेकिन काजल की लाश वाली तसवीर झुठलाई नहीं जा सकती थी.

इस सब से पुलिस इस सोच में फंस कर रह गई कि काजल की हत्या अनूप और विजय ने नहीं की तो फिर किस ने की? आखिर यह माजरा है क्या. हत्या की गुत्थी को कैसे सुलझाया जाए. सोचविचार के बाद पुलिस ने कानूनी काररवाई कर के अनूप जायसवाल और विजय को हिरासत में ले लिया. पुलिस ने दोनों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

घटना के तीसरे दिन यानी 12 सितंबर, 2019 को सीओ सुमित शुक्ला ने थानाप्रभारी नीरज राय और स्वाट टीम के प्रभारी के साथ अपने कार्यालय में एक मीटिंग की. मीटिंग में तय हुआ कि काजल हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के लिए काजल के मोबाइल फोन की घटना से 15 दिनों पहले तक की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की जाए. घटना के खुलासे के लिए काल डिटेल्स ही आखिरी सहारा थीं.

‘छोटी सरदारनी’ और ‘विद्या’ महासंगम: इनकी जिंदगी में कौन सा नया मोड़ लाएगा चुलबुल पांडे

कलर्स के शो ‘छोटी सरदारनी’ और ‘विद्या’  में आज रात होने वाले महासंगम में फैंस के लिए कई दिलचस्प ट्विस्ट आने वाले हैं. जहां सरब के दोस्त चुलबुल पांडे यानी की सुपरस्टार सलमान खान नजर आएंगे तो वहीं मेहर की जिंदगी से जुड़ा एक खुलासा भी इस महासंगम में होने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा इस महासंगम एपिसोड में खास…

चुलबुल पांडे का होगा शो में स्वागत

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छोटी सरदारनी और विद्या के इस महासंगम में सरब के खास दोस्त चुलबुल पांडे की एंट्री एक अनोखे अंदाज में होगी.

विद्या और छोटी सरदारनी का महासंगम

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विद्या की इंग्लिश टीचर बनने की कहानी में जिस तरह विवेक ने विद्या का साथ दिया है, इससे इन दोनों का रिश्ता और मजबूत हो गया है. विद्या और विवेक के बीच कुछ खास है लेकिन विद्या को इसका एहसास नही है. अब जानना ये है कि क्या टिप देंगे इन दोनों को चुलबुल पांडे उर्फ सलमान खान .

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परम होगा एक्साइटेड

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सरब अपने खास दोस्त चुलबुल पांडे का पार्टी में वेलकम करेगा और कहेगा कि परम और मेहर उनके बहुत बड़े फैन है.

मेहर की जिंदगी से जुड़ा खुलासा करेंगे चुलबुल पांडे

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इस खास एपिसोड में आप देखेंगे कि चुलबुल पांडे की एंट्री होने के साथ मेहर की जिंदगी से जुड़ा खुलासा करेंगे, जिसके बाद पूरा गिल परिवार हैरान होता हुआ नजर आएगा.

डांस का लगेगा तड़का

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छोटी सरदारनी और विद्या के किरदार चुलबुल पांडे यानी सलमान खान के साथ ‘हुड़-हुड़ दबंग’ और ‘मुन्ना बदनाम’ सौंग्स पर डांस करते हुए नजर आएंगे.

 

 

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अब देखना ये है कि मेहर की जिंदगी से जुड़े कौनसे बड़े राज का खुलासा करने वाले हैं चुलबुल पांडे, जिससे मेहर, परम और सरब की जिंदगी में आएगा नया मोड़. इसी के साथ विद्या और विवेक को चुलबुल पांडे कौन सी एडवाइस देंगे. इस धमाकेदार महासंगम का हिस्सा बनने के लिए देखना ना भूलें ‘छोटी सरदारनी और विद्या महासंगम स्पेशल’ आज रात 7:00 से 8:00 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

लगातार 3 फिल्मों में छाने वाली इस एक्ट्रेस के लिए ये साल रहा खास

बौलीवुड एक्ट्रेस भूमि पेडनेकर इस साल खूब कामयाबी बटोर रही है. उनके लिए साल 2019 खास रहा इस साल भूमि  एक के बाद एक लगातार 3 हिट फिल्मों की हैट्रिक लगा चुकीं है. भूमि की ये फिल्में हैं, ‘बाला’, ‘सांड की आंख’ और ‘पति पत्नी और वो’. तीनों ही फिल्मो को दर्शकों को जमकर प्यार मिल रहा है हिंदी सिनेमा में दशकों बाद ऐसा हुआ है कि किसी हीरोइन की तीन फिल्में एक ही समय सिनेमाघरों में हिट चल रही हैं.

आपको बता दे भूमि की अब तक कुल सात फिल्में रिलीज हुई हैं और इनमें से छह हिट रही हैं. अपनी हर फिल्म में एक अलग किरदार निभा कर फैंस के दिल में खास जगह बना ली है इन दिनों भूमि के फिल्म पति पत्नी और वो में निभाए गए एक मॉडर्न बीवी के किरदार को लोग काफी पसंद कर रहे है है, इससे पहले फिल्म बाला  में और सांड की आंख में भी भूमि ने किरदार के हिसाब से अपने लुक्स में बदलाव करके दर्शकों को चौंकाया था.

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हिंदी सिनेमा में करियर की शुरूआत में ही ऐसी कामयाबी पाने वाली वह पहली अभिनेत्री बन चुकी हैं. दरअसल हिंदी सिनेमा में दशकों बाद ऐसा हुआ है कि किसी हीरोइन की तीन फिल्में एक ही समय सिनेमाघरों में सफलता के साथ चल रही हैं. भूमि की ये फिल्में हैं, ‘बाला’, ‘सांड की आंख’ और ‘पति पत्नी और वो’. तीनों ही फिल्मो को दर्शकों को जमकर प्यार मिला था

इन दिनों भूमि के फिल्म ‘पति पत्नी और वो’ में निभाए गए एक मौडर्न वाइफ के किरदार की खूब तारीफ हो रही है, इससे पहले फिल्म ‘बाला’ में उन्होंने एक डार्क स्कीन वाली लड़की का किरदार निभाया था जिसे समाज में रंग के चलते बेइज्जती का सामना करना होता है. और वही फिल्म ‘सांड की आंख’ में शूटर दादी बनीं नज़र आई थीं. भूमि ने अलग किरदार के हिसाब से अपने लुक्स और एक्टिंग में बदलाव करके अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ दिए.भूमि पेडनेकर के लिए ये साल खास रहा.

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ब्रेकफास्ट में बनाएं टेस्टी आलू कटलेट

हर किसी के लिए सुबह का नाश्ता बहुत जरूरी होता है और अगर नाश्ता मनपसंद हो तो पूरा दिन बन जाता है. इसीलिए आज हम आपको आलू और ब्रेड की रेसिपी बताएंगे, जिससे आपकी फैमिली को एक अच्छा और टेस्टी ब्रेकफास्ट दे पाएंगी.

सामग्री

– मैश किए हुए 2 आलू उबले

– 2 ब्रेड स्लाइस

– 1 छोटा बारीक कटा प्याज

– 1 बारीक कटी हरी मिर्च

– 1/4 चम्मच लाल मिर्च पाउडर

– 1/3 -छोटी चम्मच चाट मसाला

– 1/4 चम्मच आमचूर पाउडर

– स्वादानुसार नमक

– तलने के लिए तेल

– आवश्यकतानुसार हरा धनिया बारीक कटा

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बनाने का तरीका

-पहले आलू उबालकर छील लें.

-और ब्रेड की स्लाइस के किनारे कट कर लें.

-अब एक बर्तन में आलू लेकर प्याज, अमचूर, नमक, लाल मिर्च पाउडर, हरी मिर्च, चाट मसाला और हरा धनिया बारीक कटा डाल कर अच्छे से मिला लें.

– एक प्लेट में पानी लें और ब्रेड को पानी में डूबा कर जल्दी से निकाल लें. हल्के हाथों से ब्रेड को दबा कर पानी निकाल लें.

-अब ब्रेड में आलू का तैयार मसाला भर दें और किसी भी आकार में बना लें.

-इसके बाद एक कड़ाई में तेल गरम करके सभी कटलेट को तल लें. और फैमिली को हरी चटनी या टोमैटो सौस के साथ परोसें.

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बंदूक : जान बचाने का नहीं, जान लेने का हथियार

मार्च 2018 में 20 लाख से ज्यादा अमेरिकी लोग ‘नो वौयलैंस’ स्लोगन के साथ सड़कों पर उतरे. वे यह मांग कर रहे थे कि बंदूकों को ले कर अमेरिकी नीति में पूरी तरह से परिवर्तन हो ताकि गोलीबारी से होने वाली हिंसा पर रोक लग सके. दरअसल, अमेरिका में जिस तरह से बहुत आसानी से हर किसी को बंदूक उपलब्ध है, वे इस के खिलाफ थे.

लेकिन, इस का मतलब यह नहीं है कि अमेरिका में सभी लोग बंदूकों के खिलाफ हैं. सच बात तो यह है कि बंदूक को ले कर अमेरिकी नागरिक बंटे हुए हैं और पिछले दशक से इस पर अमेरिका में जबरदस्त बहस हो रही है. कुछ सालों में अमेरिका में बंदूक से 2 दर्जन से ज्यादा गोलीबारी की घटनाएं हुई हैं, जिन में गोलीबारी करने वाले न तो आपराधिक इतिहास वाले थे और न ही प्रोफैशनल बंदूकबाज. ये तो साधारण छात्र थे, बेरोजगार नौजवान थे या परिस्थितियों से परेशान हो कर चिड़चिड़े हो गए सामान्य नागरिक थे. बंदूक की सहज उपलब्धता के कारण हाल की तमाम घटनाओं में ऐसे लोगों ने सैकड़ों लोगों की जानें ले ली हैं.

साल 1999 से साल 2018 तक अमेरिका में गोलीबारी की 38 से ज्यादा घटनाएं हुई हैं, जिन में 500 से ज्यादा लोगों की जानें गई हैं. गोलीबारी में 2,000 से ज्यादा लोग बुरी तरह घायल भी हुए हैं. यही वजह है कि पिछले कुछ सालों से अमेरिका में यह जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है कि बंदूक पाने का लाइसैंस जो मौजूदा समय में बेहद आसानी से मिल जाता है, उसे ऐसे ही बनाए रखा जाए या उसे पाना जटिल बना दिया जाए.

हालांकि सिर्फ अमेरिका में ही बंदूक से होने वाली हत्याएं बड़ा सिरदर्द नहीं हैं, बल्कि करीबकरीब दुनिया के हर देश में पिछले एक दशक के दौरान बंदूक एक बड़ी समस्या बन कर उभरी है. यही वजह है कि पूरी दुनिया में बंदूकों को ले कर बहस बहुत तेज हुई है. इस की औपचारिक शुरुआत 2009-10 में तब हुई थी जब संयुक्तराष्ट्र की मादक पदार्थ और अपराध शाखा ने हथियारों का सामाजिक विश्लेषण प्रस्तुत करने का निर्णय लिया और इस के गंभीर निष्कर्ष दुनिया के सामने नमूदार हुए. तभी से बंदूक के हाहाकारी किस्से हर तरफ सुनाई दे रहे हैं. यहां तक कि अब तो यह चिंता पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों में भी की जाने लगी है. वहां आलूप्याज की तरह हथियारों की न सिर्फ आम दुकानें हैं बल्कि वहां कुटीर उद्योग की तरह हथियार बनाने का काम होता भी है. विशेषकर क्लासीनोफ, राइफलें जो वैसे 75,000 रुपए से ऊपर की होती हैं, अफगानिस्तान में 3,000 से 5,000 रुपए के बीच आसानी से मिल जाती हैं.

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अमेरिका दुनिया के उन 6 देशों में से एक है जहां हर साल बंदूक से होने वाली कुल वैश्विक मौतों में से 50 फीसदी मौतें होती हैं. अमेरिका के साथ 5 और देश जो बंदूक से होने वाली हत्याओं के जबदरस्त शिकार हैं, उन में हैं ब्राजील, मैक्सिको, कोलंबिया, वेनेजुएला और ग्वाटेमाला. साल 2016 में इन देशों में बंदूक से होने वाली हत्याएं अमेरिका सहित इस प्रकार हैं- 43,200 ब्राजील, 37,200 अमेरिका, 15,400 मैक्सिको, 13,300 कोलंबिया, 12,800 वेनेजुएला और 5,090 ग्वाटेमाला.

हैरानी की बात यह है कि इन 6 देशों की आबादी कुल मिला कर दुनिया की आबादी की महज 10 फीसदी है. लेकिन जहां तक बंदूक से होने वाली हत्याओं का सवाल है, तो दुनिया में हर साल जितने लोग बंदूक से होने वाली हिंसा का शिकार होते हैं, उन में ये 50 फीसदी हैं. संयुक्तराष्ट्र ने जब से हथियारों को ले कर गंभीर अध्ययन और विश्लेषण का सिलसिला शुरू किया है तब से हर गुजरते साल इस के भयावह किस्सों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है.

दुनिया का शायद ही कोई ऐसा देश हो जहां बंदूकप्रेम न मौजूद हो. यहां तक कि जिन देशों में बाकी किसी किस्म की प्रगति नहीं हुई, जैसे अंगोला, हैती, इरीट्रिया, सेनेगल, कांगो आदि, वहां भी सब से बड़ा नशा बंदूक का ही है.

हालांकि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और मध्यपूर्व के देशों की तरह हम होश संभालते ही बंदूक के खिलौने से वास्तविक दुनिया में खेलने के शौकीन नहीं हैं फिर भी शादीब्याह हो, मुंडनछेदन हो या कोई भी खुशी का समारोह, हम चाहते हैं एकदो बंदूक के फायर तो हो ही जाएं. इस से आसपास वाले लोगों को हमारी हैसियत बड़ी दिखती है. शायद यह देश में मुगलिया शानोशौकत का हैंगओवर है. वैसे हमारे यहां यह बीमारी विशेषतौर पर उत्तर भारत में ही है और उस में भी सब से ज्यादा इस बीमारी से ग्रस्त उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश,  झारखंड, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के लोग हैं.

लेकिन इस का मतलब यह भी नहीं है कि बंदूक को ले कर शेष भारत में कोई ललक ही नहीं है. दुनिया में मौजूद कुल 85 करोड़ 70 लाख बंदूकें, जिन में करीब 85 फीसदी सिविलियन लोगों के पास हैं, अकेले अमेरिका में ही 39 करोड़ 3 लाख बंदूकें हैं, जो कि दुनिया में कुल सिविलियन बंदूकों का 46 फीसदी है. जबकि, भारत में 4 करोड़ से ज्यादा बंदूकें हैं, लेकिन, जहां तक लाइसैंस की बात है, तो लाइसैंसी बंदूकें महज 26 लाख के आसपास हैं. पहले उन की संख्या ज्यादा थी, लेकिन पिछले कुछ सालों से सरकार बंदूकों के लाइसैंस रद्द कर रही है या लोगों को इस के लिए प्रोत्साहित नहीं कर रही है, इस वजह से कमी आई है.

भारतीयों का बंदूकप्रेम

भारतीय लोग भी न सिर्फ बड़े पैमाने पर बंदूकों से लगाव रखते हैं बल्कि इस बंदूकप्रेम के कारण हमारे यहां भी बड़े पैमाने पर हर साल बंदूक से लोगों की जानें जाती हैं. हालांकि हमारे यहां बंदूक का लाइसैंस आसानी से नहीं मिलता लेकिन इसे पाने के लिए लोग अपनी सारी हैसियत, अपने सारे संपर्कों को  झोंक देते हैं.

खैर, बंदूक हासिल जैसे भी होती हो, इस की व्यापकता दुनिया के कोनेकोने तक है. नैशनल क्राइम ब्यूरो रिकौर्ड्स औफ इंडिया के मुताबिक, हर तीसरी हत्या बंदूक के जरिए होती है. इस से भी बड़ी बात यह है कि बंदूक से जितनी हत्याएं आपराधिक घटनाओंदुर्घटनाओं के चलते होती हैं, उस से कहीं ज्यादा लोग पुलिस व अर्द्धसुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ों आदि में मारे जाते हैं.

1999 में जब बंदूकों से होने वाली मौतों का आंकड़ा पहली बार पेश किया गया था तो यह 12,147 मौतों का था, यानी इतने लोगों की मौतें बंदूक के जरिए हुई थीं. मगर 2008 में किए गए एक सर्वेक्षण से यह राहत देने वाली बात सामने आई थी कि बंदूकों का इस्तेमाल शायद घट रहा है.

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अब यह मनोवैज्ञानिक सुरक्षा के लिए कहीं ज्यादा इस्तेमाल होती है. 2008 में बंदूक से मारे गए लोगों का आंकड़ा 6,219 था. लेकिन 2015 और 2016 में एक बार फिर से बंदूक से होने वाली मौतों के आंकड़ें में बढ़ोतरी हुई. 2017 में 28,653 लोगों की हत्या हुई. इन में 16 हजार से ज्यादा लोगों की हत्या बंदूक के जरिए यानी बंदूक के इस्तेमाल के चलते हुई है.

लेकिन बंदूक का सब से सिहरन कर देने वाला असर अमेरिका में दिखता है. वहां फैडरल ब्यूरो औफ इंवैस्टिगेशन (एफबीआई) के मुताबिक, साल 2001 से 2005 के बीच 47,500 लोगों की हत्याएं बंदूक के जरिए की गईं. वहीं अकेले साल 2016 में बंदूक द्वारा मारे गए अमेरिकियों की संख्या बढ़ कर 37,200 हो गई. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमेरिका में बंदूक किस तरह अपराधों की बढ़ोतरी में शामिल है. अमेरिका में हर 10 में से 8 लोगों की हत्या बंदूक की गोली से होती है. इस से भी खौफनाक आंकड़ा यह है कि पिछले डेढ़ दशकों में अमेरिका सहित विकसित देशों में किशोरों और बच्चों द्वारा सिरफिरे अंदाज में गोलीबारी की घटनाओं को अंजाम दिया गया था. गोलीबारी की घटनाओं में 170 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है.

अमेरिका में बच्चों तक में बंदूक से खूनी खेल खेलने की लत पड़ चुकी है. पिछले 2 दशकों में अमेरिका सहित तमाम पश्चिमी देशों के बच्चों में बड़ी तेजी से हिंसक प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिस के लिए समाजशास्त्रियों और बाल मनोवैज्ञानिकों का एक वर्ग यह कहता रहा है कि इस के लिए वीडियो गेम्स की लत और बच्चों द्वारा कंप्यूटर पर ज्यादा से ज्यादा बिताए गए वक्त की ऊब जिम्मेदार है. विशेषज्ञों का स्पष्ट रूप से मानना है कि बच्चे इसलिए हिंसक हो रहे हैं क्योंकि वे ज्यादा से ज्यादा वक्त कंप्यूटर पर बिताते हैं. इस दौरान वे अधिक से अधिक खूनी जंग वाले खेल खेलते हैं. इस कारण उन में ऐसे हिंसक खेलों के प्रति रु झान बढ़ रहा है. नतीजा यह है कि वे आदत से हिंसक और खूंखार हो रहे हैं.

लेकिन विशेषज्ञों का एक दूसरा वर्ग ऐसा भी है जो यह मानने को तैयार नहीं. उस के मुताबिक, बच्चों में वीडियो गेम खासतौर पर खौफनाक खूनखराबे से भरे गेम उन की मानसिक सजगता को बढ़ा रहे हैं. उन्हें इस दुर्दांत दुनिया में जीने और अपराध से बचे रहने के लिए होशियार कर रहे हैं. ये उन में खौफनाक हिंसक आदत नहीं पैदा कर रहे. हालांकि यह बहस शाश्वत है कि हिंसक वीडियो गेम बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति पैदा कर रहे हैं या उन में दिमागी सजगता बढ़ा रहे हैं, लेकिन यह संयोग देखने और डरने के लिए विवश कर देता है कि जैसेजैसे हिंसक वीडियो गेम्स का बाजार बढ़ रहा है वैसेवैसे अमेरिका जैसे देशों में सिरफिरी गोलीबारी की घटनाएं भी बढ़ रही हैं.

बंदूक की विडंबना देखिए कि उस का जहां ज्यादातर इस्तेमाल हत्याओं में हो रहा है, वहीं उसे आमतौर पर आत्मरक्षा के लिए लिया जाता है यानी जो बंदूकें जान बचाने के लिए खरीदी जाती हैं, वही जान लेने का सब से बड़ा सबब बन रही हैं. सब से बड़ी बात यह है कि बंदूक का इस्तेमाल सिर्फ दूसरे द्वारा जान लेने में नहीं हो रहा. खुद भी लोग अपनी जान बड़े पैमाने पर बंदूकों के जरिए ही ले रहे हैं. भारत में जितनी आत्महत्याएं हो रही हैं, उन में 30 फीसदी तक आत्महत्याएं अपनी ही बंदूक से अपनी जीवनलीला समाप्त कर देने वाली कहानियां हैं.

बंदूक के लिहाज से देश का सब से खतरनाक शहर मेरठ है. मेरठ के बाद दूसरे नंबर पर प्रयागराज आता है, फिर बिहार की राजधानी पटना. इस के बाद वाराणसी, कानपुर, आगरा, इंदौर और दिल्ली का नंबर आता है. इन तमाम शहरों में औसतन 5 में से 3 आत्महत्याएं अपनी ही बंदूक द्वारा की जाती हैं. इन शहरों की सूची में यह स्वाभाविक ही है कि किसी दक्षिण भारत के शहर का नाम नहीं है, क्योंकि बंदूक की संस्कृति, दरअसल, उत्तर भारत में ही अधिक मुखर है.

बंदूक की संस्कृति के लोकप्रिय होने का मतलब महज हिंसाप्रिय होने का सुबूत नहीं है बल्कि बंदूक की संस्कृति एकसाथ कई बातें बताती है. बंदूक की संस्कृति बताती है कि अभी आप कबीलाई मानसिकता से बाहर नहीं निकले. यह अकारण नहीं है कि उन तमाम देशों, जहां लोगों के दिलोदिमाग

में अपना वर्चस्व कायम करने की कबीलाई ललक होती है, बंदूक का वर्चस्व देखने को मिलता है. एशियाई देश इस बाबत खासतौर पर सब से आगे हैं. अफगानिस्तान और पाकिस्तान तो मानो बंदूक की संस्कृति के स्रोत हैं. वहां बंदूक के बिना लोग अपनेआप को असुरक्षित ही नहीं, अधूरा भी महसूस करते हैं जैसे इन दिनों महानगरों में मोबाइल के बिना जिंदगी कुछ थमीथमी, रुकीरुकी सी लगती है.

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 बंदूक का मनोविज्ञान

बंदूक हमारे मन की हिंसा को व्यावहारिक, विस्तार तो देती ही है, वह यह भी बताती है कि हम अपना वर्चस्व किसी भी कीमत पर करना चाहते हैं, चाहे इस के लिए दूसरे को नेस्तनाबूद ही क्यों न करना पड़े. बंदूक से प्यार हमारे दिलोदिमाग में मौजूद हमारी असुरक्षाबोध का भी प्रतीक है. यों लगता है कि बंदूक ले कर चलने वाले लोग काफी दुस्साहसी और निडर होते होंगे. पर नहीं, ऐसा नहीं है. वास्तव में बंदूक रखने वाले लोग उन लोगों के मुकाबले, जो बंदूक नहीं रखते, कहीं ज्यादा कमजोर, कहीं ज्यादा डरपोक होते हैं. यह अकारण नहीं है कि आमतौर पर जिस के घर में एक बंदूक है, वह एक से ज्यादा बंदूक हासिल करने की जुगाड़ में लगा रहता है. नेताओं के पास शायद इसीलिए कईकई हथियार होते हैं क्योंकि वे अपनेआप को सामान्य लोगों के मुकाबले कहीं ज्यादा असुरक्षित पाते हैं.

ज्यादा बंदूकें, ज्यादा मौतें : एक मिथ और दिमाग से निकाल दीजिए कि बंदूक हमारी रक्षा करती है, बंदूक हमें बचाती है. अगर ऐसा होता तो अफगानिस्तानी और पाकिस्तानी सब लोग सुरक्षित होते. क्योंकि वहां लोगों के पास अगर शतप्रतिशत नहीं तो 80 फीसदी से ज्यादा लोगों के पास बंदूकें हैं. चाहे वे खरीद कर हासिल की गई हों या खुद ही बना कर.

अफगानिस्तान और पाकिस्तान में बंदूकें बनाना कुटीर उद्योग की तरह है. बावजूद इस के, देखा जाए तो दुनिया में इंसान के लिए अगर सब से नारकीय देश हैं तो उन में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के नाम जरूर जुड़ते हैं. बल्कि, ये शीर्ष में रहते हैं. वहां के अनुभव बताते हैं कि बंदूक से लोग सुरक्षित नहीं, असुरक्षित ज्यादा होते हैं.

कराची दुनिया का वह महानगर है जहां घोषित तौर पर हर चौथे आदमी के पास कोई न कोई आग्नेयास्त्र है. अब जरा दूसरा आंकड़ा भी देखिए. कराची दुनिया का अकेला वह शहर है जहां सब से ज्यादा मौतें बंदूकों के जरिए होती हैं. अगर बंदूकें किसी को सुरक्षित रखतीं तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और वे तमाम देश, जहां व्रिदोह की स्थिति है, लोग कहीं ज्यादा सुरक्षित होते. पर ऐसा है नहीं.

बंदूकें जितनी ज्यादा होती हैं, मौतें उतनी ही ज्यादा होती हैं और सुरक्षा उतनी ही ज्यादा कमजोर होती है. राष्ट्रसंघ भारत में बढ़ती आत्महत्याओं से इसलिए भी चिंतित है क्योंकि हथियार, विशेषकर बंदूक के प्रति बढ़ता मोह, हताश, निराश और प्रतिस्पर्धा में पिछड़े लोगों को एक ही रास्ता दिखाता है, वह है आत्महत्या करने का रास्ता. इसलिए, बंदूक का निजी हाथों में पड़ना अच्छा संकेत नहीं है.

 बच्चे, बंदूक और इंटरनैट

2 दशकों में जैसेजैसे कंप्यूटर और इंटरनैट हमारी जिंदगी के अभिन्न हिस्से बने हैं, वैसेवैसे हमारी स्वाभाविक गतिविधियों में कमी आई है. सब से ज्यादा यह प्रभाव किशोरों और युवाओं की जीवनशैली में देखने को मिल रहा है. अमेरिका और यूरोप की तो बात ही छोड़ दें, हिंदुस्तान तक में महानगरों में किशोरों की घर से बाहर की गतिविधियां पिछले एक दशक में 20 से 70 फीसदी तक घटी हैं.

एक सर्वेक्षण से पता चला है कि पार्कों में खेलने जाने वाले बच्चों की संख्या पिछली सदी के 80 और 90 के दशकों के मुकाबले 40 फीसदी तक कम हो गई है. आउटडोर खेलों में किशोरों की रुचियां और भागीदारी दोनों घट रही हैं. दूसरी तरफ, पिछले एक दशक में कंप्यूटर पर बैठ कर वीडियो गेम खेलने या बेमतलब की चैटिंगशैटिंग में काफी ज्यादा वक्त जाया हो रहा है.

मुंबई की एक संस्था ने तो बाकायदा अपने सर्वेक्षण से यह साबित किया है कि अगर जल्द ही मांबाप इस बारे में सजग नहीं हुए तो 2020 के बाद की पीढ़ी घर से बाहर के यानी आउटडोर खेलों को भूल जाएगी. जैसे वन्यजीव अब महज कागजों और तसवीरों में बचे हैं वैसे बहुत सारे खेल कहीं यादों और किताबों में ही बचेंगे. गिल्लीडंडा जैसे खेल अब गांव में भी लगभग न के बराबर ही खेले जाते हैं.

सवाल है, क्या घर के बाहर की गतिविधियां घटने से किशोर हिंसक हो रहे हैं? भले कुछ विशेषज्ञ इस बात को न मानें और जिद करें कि आंकड़े ऐसा नहीं कह रहे, मगर यह महज आंकड़ों की बात नहीं है. हम अपने इर्दगिर्द इस सच को घटते देख सकते हैं.

मनोवैज्ञानिक कहते हैं, जब हम घर के बाहर होते हैं तो हम रिचार्ज होते हैं. जब हम शारीरिक गतिविधियां करते हैं तो हमारे शरीर से कईर् ऐसे हार्मोन जारी होते हैं जो हमें खुश रखते हैं, हमें सकारात्मक रखते हैं और हमें उत्साह से भरते हैं. वहीं दूसरी ओर जब हम लगातार बैठे रहते हैं, किसी एक चीज पर अपनेआप को फोकस रखते हैं तो हमारे शरीर में हार्मोन नहीं बनते, बल्कि ऊब पैदा होती है. यह ऊब हमें नकारात्मकता से भरती है क्योंकि हमें उस समय कोई चीज अच्छी नहीं लग रही होती.

लगातार एक जगह बैठे रहने से और कंप्यूटर की स्क्रीन पर नजर गड़ाए रखने से हम में आत्मविश्वास की कमी बढ़ती है, क्योंकि हमारी नजरें लगातार के ध्यान से थक रही होती हैं. थकी नजरें अच्छा और उत्साहपूर्ण सोच नहीं पाती हैं. चाहे वीडियो गेम हो या कंप्यूटर में बिताया गया यों ही वक्त, वह सही नहीं होता. कम से कम युवाओं और किशोरों के लिहाज से तो यह बिल्कुल ही सही नहीं होता क्योंकि उन की जिंदगी में अनुभवों की कमी होती है. इसलिए भी उन्हें घर के बाहर की गतिविधियों में अपनेआप को ज्यादा लगाना चाहिए क्योंकि घर के बाहर की गतिविधियां उन में उत्साह भरती हैं जिस से वे सकारात्मक रहते हैं.

क्या सच में जरूरी है शादी ?

हमेशा से समाज में शादी कर घर बसाने को युवाओं की जिम्मेदारी और जरुरत के रूप में देखा जाता रहा है. खास कर जो लड़कियां शादी नहीं करतीं उन्हें अजीब रिएक्शन दिए जाते हैं. लोग उन्हें डराना शुरू कर देते हैं कि आने वाले वक्त में तुम्हे अपने फैसले पर अफसोस होगा. मगर देखा जाए तो आज के समय में शादी उतना अनिवार्य नहीं जितना पहले था. आज लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हैं और खुद अपना ख्याल रख सकती हैं. आज उन्हें किसी सहारे की जरुरत नहीं.

  1. फाइनेंशियल सपोर्ट – आज के समय में लड़कियां काफी ऊंचे पदों पर पहुंच रही हैं. नाम और रुतबे के साथसाथ उन्हें अपने काम और काबिलियत की अच्छी कीमत भी मिल रही है. वे आर्थिक रूप से भी किसी पर निर्भर नहीं रहतीं. अपने बल पर अच्छी जिंदगी जी सकती हैं.

2. अकेलेपन का डर – अकेले होने और अकेलेपन में बहुत फर्क है. बहुत से शादीशुदा लोग भी अकेलेपन से बेहाल है. ये ऐसी घरेलू , सामाजिक महिलाएं होती हैं जिन के पति सुबह घर से निकलते हैं और देर रात वापस आते हैं. बच्चे थोड़े बड़े होते ही अपनी दुनिया में मशगूल हो जाते हैं. उन के लिए मां पुराने विचारों वाली पिछड़ी महिला होती है जिसे आज के समय की कोई बात पता नहीं होती. इसलिए बच्चे अपने हमउम्र दोस्तों या मोबाइल में वक्त बिताना ज्यादा पसंद करते हैं. वैसे भी स्कूल और ट्यूशन के बाद वे घर पर बहुत कम होते हैं. समय के साथ उन की जिंदगी में कोई खास भी आ चुका होता है और तब मां की उन की जिंदगी में बस यही अहमियत होती है कि घर आते ही उन्हें तरहतरह के स्वादिष्ट भोजन मिल जायेंगे. ऐसी महिलाएं पूरी जिंदगी अकेलेपन में गुजार देती है. उन के हाथ केवल रिमोट या बेलन ही रह जाता है. जब कि शादी न होने के बावजूद अच्छा करियर आप को आप को संतुष्टि और आत्मसम्मान देता है. आप अपनी इच्छा से फैसले ले पाती हैं, रूपए खर्च कर पाती हैं. जिंदगी अपने हिसाब से जी पाती हैं.

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3. मेंटल और साइकोलौजिकल हैप्पीनेस – सब के लिए खुशी का मतलब अलग होता है. यदि किसी लड़की को शादी के बजाय कैरियर या किसी और चीज में खुशी हासिल होती है तो उसे ऐसा करने से रोका क्यों जाता है?  उसे समाज का डर क्यों दिखाया जाता है? क्यों नहीं उसे अकेले रहने के लिए तैयार होने दिया जाता? क्यों नहीं उसे हौसला दिया जाता कि वह खुद को मजबूत साबित कर सके?

4. शारीरिक जरूरत – जिन के जीवन का कोई ऊंचा मकसद होता है उन के लिए शारीरिक जरूरत से ज्यादा महत्त्व अपने क्षेत्र में सफलता के नए पायदानों को छूना होता है. उन्हें नाम की की भूख होती है और इस के लिए वे पूरी तरह काम में डूब कर ख़ुशी हासिल करती हैं. जहां तक बात शारीरिक जरुरत की है तो जिसे इस की ख्वाहिश है वह लिव इन पार्टनर या बौयफ्रेंड के साथ भी इस आवश्यकता की पूर्ति कर लेती हैं. वैसे भी आज के समय में यह कोई बड़ी बात नहीं रह गई है.

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5.परिवार और बच्चों की जरूरत – जाहिर है जिन लड़कियों के लिए करियर महत्वपूर्ण है वे अपने काम से ही शादी कर लेती हैं और औफिस वाले व पूरा समाज ही इन का परिवार होता है. अक्सर ये सामजिक कामों में भी इन्वौल्व हो जाती हैं और इस तरह दूसरों की भलाई कर आत्मसंतुष्टि भी पाती हैं. उन के पास समय भी होता है और साधन भी जिन्हे वे जनकल्याण के कार्यों में लगा कर अपनी अलग पहचान बना पाती हैं.

अंत में हमारा यह कहना नहीं कि शादी न करना अच्छा है मगर यदि परिस्थिति वश या अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर किसी लड़की ने 40 की उम्र तक भी शादी न की हो या उम्र भर न करने का फैसला लिया हो तो उस के इस फैसले पर हजार सवाल उठाने या भविष्य का डर दिखाने के बजाय उस की इच्छा को मान देते हुए उसे समर्थन देना ही समाज का दायित्व होना चाहिए.

मेकअप टिप्स: 20 मिनट में ऐसे हो पार्टी के लिए तैयार

फ्रैंड की बर्थडे पार्टी में जाना हो लेकिन बिजी शैड्यूल के कारण पार्लर में जाने का टाइम न हो तो आप परेशान न हो बल्कि आप घर बैठे खुद को अपने हिसाब से मिनटों में बेहतर लुक दे कर अपने फ्रैंड्स के बीच सैंटर औफ अट्रैक्शन बन सकती हैं. जानिए इस संबंध में ब्यूटी ऐक्सपार्ट बुलबुल साहनी से.

मेकअप से पहले क्या करें

अगर आप अपने फेस पर इंस्टैंट ग्लो चाहती हैं तो मेकअप करने से 10 मिनट पहले आप अपने चेहरे पर दही अप्लाई करें. आप को बता दें कि दही ब्लीच का काम करता है. इस से स्किन ग्लोइंग दिखने के साथ मेकअप भी काफी अच्छा रिजल्ट देता है.

आप ग्लोइंग स्किन के लिए हफ्ते में 3 दिन दही में नीबू मिला कर या फिर दही में टमाटर मिला कर भी लगा सकती हैं. इस के बाद आप को मौइश्चराइजर लगाने की भी जरूरत महसूस नहीं होगी. यह प्राइमर का काम करता है.

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घर पर रखें  कौस्मैटिक प्रोडक्ट्स

कभी भी घर में पार्टी फंक्शन हो सकता है और ऐसे में हर बार पार्लर से तैयार होना संभव नहीं होता. इसलिए आप घर पर मेकअप किट जिस में क्रीम, कंसीलर, फाउंडेशन, ब्रश,कौम्पैक्ट, आईशैडो, काजल, लाइनर, ब्लशर, लिपस्टिक, लिप पैंसिल, हेयर ऐक्सैसरीज बिंदी, नेल पौलिश वगैरा ला कर रखें ताकि आप के लिए मिनटों में मेकअप करना आसान हो सके.

कैसे करें मेकअप

अगर स्किन ज्यादा ड्राई दिखेगी तो मेकअप इतना इफैक्टिड नहीं लगेगा इसलिए सब से पहले स्किन की ड्राईनैस को दूर करने के लिए चेहरे पर कोल्ड क्रीम अप्लाई करें. इस से स्किन की ड्राईनैस दूर होती है. फिर आंखों के नीचे कंसीलर अप्लाई करें. यह डार्क सर्किल्स को छुपाने का काम करता है. इस के बाद चेहरे पर अच्छे से फाउंडेशन लगाएं. गर्दन पर भी फाउंडेशन लगाना न भूलें. इस से नैचुरल स्किन टोन के साथ स्किन क्लीयर नजर आने लगती हैं. फिर जब बेस तैयार हो जाए तो उस के बाद ब्रश की मदद से कौंपैक्ट लगाएं. यह आप को परफैक्ट लुक देने का काम करेगा. ध्यान रखें कौम्पैक्ट हमेशा ऐंटी क्लौक वाइज ही लगाएं. इस से मेकअप ज्यादा देर तक स्टे रहता है.

फिर आईशैडो ले कर आई मेकअप करें. आजकल स्मोकी आइज का काफी क्रेज है तो आप डार्क कलर से स्मोकी आईज के साथ आईब्रो को भी उसी से डिफाइन कर के उस पर थोड़ा गिलटर लगाएं. इस के बाद आंखों के ऊपर अपनी पसंद के अनुसार पतला या मोटा लाइनर अप्लाई करें. फिर मसकारे के 3-4 कोट्स अप्लाई करें. ये आईलैशिज को घना दिखाने का काम करता है, अब काजल लगाएं. इस से आप की आंखें और खूबसूरत दिखेंगी.

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इस के बाद ब्लशर को नोज के पास से आईब्रो तक लगाएं और इसे अंगुलियों से अच्छे से मिलाएं. फिर ब्लशर के बाद हाईलाइटर लगाएं. इस से मेकअप थोड़ी देर बाद ग्लो करने लगता है. अब पेंसिल से लिप लाइन बनाएं और उस में लिपस्टिक अप्लाई करें. इस से लिपस्टिक फैलती नहीं है. आखिर में बालों को अपनी पसंद के हिसाब से लुक दें. आप खुले बाल भी रख सकती हैं या फिर अगर आप के बाल छोटे हैं तो आप पहले हलकी सी बैक कौंबिंग करें और बन बना कर पिन व डोनट से उसे अच्छे से कवर करें. आगे के बालों को प्रेसिंग से अच्छे से सैट करें. यह लुक आप के मेकअप व आउटफिट पर खूब जचेगा.

इस तरह मिनटों में आप खुद को पार्टी के लिए रैडी कर सकती हैं.

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