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सजा किसे मिली : भाग 1

नन्ही अल्पना के मातापिता के पास अपनी मासूम बेटी के लिए समय नहीं था. ऊपर से उन के द्वारा लगाई गई पाबंदियां थीं, सो अलग. अकेलेपन की शिकार अल्पना के बालमन में धीरेधीरे अपने मातापिता के प्रति नफरत के बीज अंकुरित होने लगे.

अल्पना की आंखें खुलीं तो खुद को अस्पताल के बेड पर पाया. मां फौरन उस के पास आ कर बोलीं, ‘‘कैसी है, बेटी. इतनी बड़ी बात तू ने मुझ से छिपाई… मैं मानती हूं कि अच्छी परवरिश न कर पाने के कारण तू अपने मातापिता को दोषी मानती है पर हैं तो हम तेरे मांबाप ही न…तुझे दुखी देख कर भला हम खुश कैसे रह सकते हैं…’’

‘‘प्लीज, आप इन से ज्यादा बातें मत कीजिए…इन्हें आराम की सख्त जरूरत है,’’ उसी समय राउंड पर आई डाक्टर ने मरीज से बातें करते देख कर कहा तथा नर्स को कुछ जरूरी हिदायत देती हुई चली गई.

अल्पना कुछ कह पाती उस से पहले ही नर्स आ गई तथा उस ने उस के मम्मीपापा से कहा, ‘‘इन की क्लीनिंग करनी है, कृपया थोड़ी देर के लिए आप लोग बाहर चले जाएं.’’

नर्स साफसफाई कर रही थी पर अल्पना के मन में उथलपुथल मची हुई थी. वह समझ नहीं पा रही कि उस से कब और कहां गलती हुई…उसे लगा कि मातापिता को दुख पहुंचाने के लिए ऐसा करतेकरते उस ने खुद के जीवन को दांव पर लगा दिया…अतीत की घटनाओं के खौफनाक मंजर उस की आंखों के सामने से

वह एक संपन्न परिवार से थी. मातापिता दोनों के नौकरी करने के कारण उसे उन का सुख नहीं मिल पाया था. जब उसे मां के हाथों का पालना चाहिए था तब दादी की गोद में उस ने आंखें खोलीं, बोलना और चलना सीखा. वह डेढ़ साल की थी कि दादी का साया उस के ऊपर से उठ गया. अब उसे ले कर मम्मीपापा में खींचतान चलने लगी, तब एक आया का प्रबंध किया गया.

एक दिन ममा ने आया को दूध में पानी मिला कर उसे पिलाते तथा बचा दूध स्वयं पीते देख लिया. उस की गलती पर उसे डांटा तो उस ने दूसरे दिन से आना ही बंद कर दिया…अब उस की समस्या उन के सामने फिर मुंहबाए खड़ी थी. दूसरी आया मिली तो वह पहली से भी ज्यादा तेज और चालाक निकली. उसे अकेला छोड़ कर वह अपने प्रेमी के साथ गप लड़ाती रहती…पता लगने पर ममा ने उसे भी निकाल दिया…

वह 2 साल की थी, फिर भी उस के जेहन में आज भी क्रेच की आया का बरताव अंकित है. उस के स्वयं खाना न खा पाने पर डांटना, झल्लाना, यहां तक कि मारना…पता नहीं और भी क्याक्या… दहशत इतनी थी कि जब भी मां उसे क्रेच में छोड़ने के लिए जातीं तो वह पहले से ही रोने लगती थी पर ममा को समय से आफिस पहुंचना होता था अत: उस के रोने की परवा न कर वह उसे आया को सौंप कर चली जाती थीं.

जब वह पढ़ने लायक हुई तब स्कूल में उस का नाम लिखवा दिया गया. स्कूल की छुट्टी होती तो कभी ममा तो कभी पापा उसे स्कूल से ला कर घर छोड़ देते तथा उस से कहते कि उन के अलावा कोई भी आए तो दरवाजा मत खोलना और न ही बाहर निकलना. देखने के लिए दरवाजे में आई पीस लगवा दिया था.

एक दिन वह पड़ोस में रहने वाले सोनू की आवाज सुन कर बाहर चली गई तथा खेलने लगी तभी ममा आ गईं. खुला घर तथा उसे बाहर खेलते देख वह क्रोधित हो गईं…दूसरे दिन से वह उसे बाहर से बंद कर के जाने लगीं…एक दिन उसे न जाने क्या सूझा कि घर की पूरी चीजें जो उस के दायरे में थीं, उस ने नीचे फेंक दीं…उस दिन उस की खूब पिटाई हुई और मम्मीपापा में भी जम कर झगड़ा हुआ.

ममा की परेशानी देख कर सोनू की मम्मी ने स्कूल के बाद उसे अपने घर छोड़ कर जाने के लिए कहा तो वह बहुत खुश हुई…साथ ही मम्मीपापा की समस्या भी हल हो गई. 4 साल ऐसे ही निकल गए. पर तभी सोनू के पापा का तबादला हो गया. फिर वही समस्या.

बड़ी होने के कारण अब उस के स्कूल का समय बढ़ गया था तथा अब वह पहले से भी ज्यादा समझदार हो गई थी. उस ने अपनी स्थिति से समझौता कर लिया था, ममा के आदेशानुसार वह उन के या पापा के आफिस से आने पर उन की आवाज सुन कर ही दरवाजा खोलती, किसी अन्य की आवाज पर नहीं. एकांत की विभीषिका उसे तब भी परेशान करती पर जैसेजैसे बड़ी होती गई उसे पढ़ाने और होमवर्क कराने को ले कर मम्मीपापा में तकरार होने लगी.

अभी वह 10 वर्ष की ही थी कि उसे बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया गया. वहां मम्मीपापा हर महीने उस से मिलने जाते, उस के लिए अच्छीअच्छी गिफ्ट लाते, पूरा दिन उस के साथ गुजारते पर शाम को उसे जब होस्टल छोड़ कर जाने लगते तो वह रो पड़ती थी. तब ममा आंखों में आंसू भर कर कहतीं, ‘बेटा, मजबूरी है. जो मैं कर रही हूं वह तेरे भविष्य के लिए ही तो कर रही हूं.’

वह उस समय समझ नहीं पाती थी कि यह कैसी मजबूरी है. सब के बच्चे अपने मम्मीपापा के पास रहते हैं फिर वह क्यों नहीं…पर धीरेधीरे वह अपनी हमउम्र साथियों के साथ घुलनेमिलने लगी क्योंकि सब कीव एक सी ही कहानी थी…वहां अधिकांशत: बच्चों को इसलिए होस्टल में डाला गया था क्योंकि किसी की मां नहीं थी तो किसी के घर का माहौल अच्छा नहीं था, किसी के मातापिता उस के मातापिता की तरह ही कामकाजी थे तो कोई अपने बच्चों के उन्नत भविष्य के लिए उन्हें वहां दाखिल करवा गए थे.

छुट्टी में घर जाती तो मम्मीपापा की व्यस्तता देख उसे लगता था कि इस से तो वह होस्टल में ही अच्छी थी. कम से कम वहां बात करने वाला कोई तो रहता है. धीरेधीरे उस के मन में विद्रोह पैदा होता गया. उसे मम्मीपापा स्वार्थी लगने लगे. जिन्होंने अपने स्वार्थ के लिए उसे पैदा तो कर दिया पर उस की जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहते.

आखिर एक बच्चे को अच्छे कपड़ों, अच्छे खिलौनों के साथसाथ और भी तो कुछ चाहिए, यह साधारण सी बात वह क्यों नहीं समझ पा रहे हैं या जानतेबूझते हुए भी समझना नहीं चाहते हैं. एक बार उस ने पूछ ही लिया, ‘मैं आप की ही बेटी हूं या आप कहीं से मुझे उठा तो नहीं लाए हैं.’

उस की मनोस्थिति समझे बिना ही ममा भड़क कर बोलीं, ‘कैसी बातें कर रही है…कौन तेरे मन में जहर घोल रहा है?’

मम्मा आशंकित मन से पापा की ओर देखने लगीं. पापा भी चुप कहां रहने वाले थे. बोल उठे, ‘शक क्यों नहीं करेगी. कभी प्यार के दो बोल बोले हैं. कभी उस के पास बैठ कर उस की समस्याएं जानने की कोशिश की है…तुम्हें तो बस, हर समय काम ही काम सूझता रहता है.’

‘तो तुम क्यों नहीं उस से समस्याएं पूछते…तुम भी तो उस के पिता हो. क्या बच्चे को पालने की सारी जिम्मेदारी मां को ही निभानी पड़ती है.’

दोनों में तकरार इतनी बढ़ी कि उस दिन घर में खाना ही नहीं बना. ममा गुस्से में चली गईं. लगभग 10 बजे पापा हाथ में दूध तथा ब्रैड ले कर आए और आग्रह से खाने के लिए कहने लगे पर उसे भूख कहां थी. मन की बात जबान पर आ ही गई, ‘पापा, अगर किसी को मेरी आवश्यकता नहीं थी तो मुझे इस दुनिया में ले कर ही क्यों आए? मेरी वजह से आप और ममा में झगड़ा होता है…मुझे कल ही होस्टल छोड़ दीजिए. मेरा यहां मन नहीं लगता.’

पापा ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘ऐसा नहीं कहते बेटा, यह तेरा घर है.’

‘घर, कैसा घर, पापा…मैं पूरे दिन अकेली रहती हूं. आप और ममा आते भी हैं तो सिर्फ अपनीअपनी समस्याएं ले कर. मेरे लिए आप दोनों के पास समय ही नहीं है.’

प्रेम तर्पण : भाग 1

डाक्टर ने जवाब दे दिया था, ‘‘माधव, हम से जितना बन पड़ा हम कर रहे हैं, लेकिन कृतिकाजी के स्वास्थ्य में कोईर् सुधार नहीं हो रहा है. एक दोस्त होने के नाते मेरी तुम्हें सलाह है कि अब इन्हें घर ले जाओ और इन की सेवा करो, क्योंकि समय नहीं है कृतिकाजी के पास. हमारे हाथ में जितना था हम कर चुके हैं.’’

डा. सुकेतु की बातें सुन कर माधव के पीले पड़े मुख पर बेचैनी छा गई. सबकुछ सुन्न सा समझने न समझने की अवस्था से परे माधव दीवार के सहारे टिक गया. डा. सुकेतु ने माधव के कंधे पर हाथ रख कर तसल्ली देते हुए फिर कहा, ‘‘हिम्मत रखो माधव, मेरी मानो तो अपने सगेसंबंधियों को बुला लो.’’ माधव बिना कुछ कहे बस आईसीयू के दरवाजे को घूरता रहा. कुछ देर बाद माधव को स्थिति का भान हुआ. उस ने अपनी डबडबाई आंखों को पोंछते हुए अपने सभी सगेसंबंधियों को कृतिका की स्थिति के बारे में सूचित कर दिया.

इधर, कृतिका की एकएक सांस हजारहजार बार टूटटूट कर बिखर रही थी. बची धड़कनें कृतिका के हृदय में आखिरी दस्तक दे कर जा रही थीं. पथराई आंखें और पीला पड़ता शरीर कृतिका की अंतिम वेला को धीरेधीरे उस तक सरका रहा था. कृतिका के भाई, भाभी, मौसी सभी परिवारजन रात तक दिल्ली पहुंच गए. कृतिका की हालत देख सभी का बुरा हाल था. माधव को ढाड़स बंधाते हुए कृतिका के भाई कुणाल ने कहा, ‘‘जीजाजी, हिम्मत रखिए, सब ठीक हो जाएगा.’’

तभी कृतिका को देखने डाक्टर विजिट पर आए. कुणाल और माधव भी वेटिंगरूम से कृतिका के आईसीयू वार्ड पहुंच गए. डा. सुकेतु ने कृतिका को देखा और माधव से कहा, ‘‘कोई सुधार नहीं है. स्थिति अब और गंभीर हो चली है, क्या सोचा माधव तुम ने ’’ ‘‘नहींनहीं सुकेतु, मैं एक छोटी सी किरण को भी नजरअंदाज नहीं कर सकता. तुम्हीं बताओ, मैं कैसे मान लूं कि कृतिका की सांसें खत्म हो रही हैं, वह मर रही है, नहीं वह यहीं रहेगी और उसे तुम्हें ठीक करना ही होगा. यदि तुम से न हो पा रहा हो तो हम दूसरे किसी बड़े अस्पताल में ले जाएंगे, लेकिन यह मत कहो कि कृतिका को घर ले जाओ, हम उसे मरने के लिए नहीं छोड़ सकते.’’

सुकेतु ने माधव के कंधे को सहलाते हुए कहा, ‘‘धीरज रखो, यहां जो इलाज हो रहा है वह बैस्ट है. कहीं भी ले जाओ, इस से बैस्ट कोई ट्रीटमैंट नहीं है और तुम चाहते हो कि कृतिकाजी यहीं रहेंगी, तो मैं एक डाक्टर होने के नाते नहीं, तुम्हारा दोस्त होने के नाते यह सलाह दे रहा हूं. डोंट वरी, टेक केयर, वी विल डू आवर बैस्ट.’’

माधव को कुणाल ने सहारा दिया और कहा, ‘‘जीजाजी, सब ठीक हो जाएगा, आप हिम्मत मत हारिए,’’ माधव निर्लिप्त सा जमीन पर मुंह गड़ाए बैठा रहा. 3 दिन हो गए, कृतिका की हालत जस की तस बनी हुई थी, सारे रिश्तेदार इकट्ठा हो चुके थे. सभी बुजुर्ग कृतिका के बीते दिनों को याद करते उस के स्वस्थ होने की कामना कर रहे थे कि अभी इस बच्ची की उम्र ही क्या है, इस को ठीक कर दो. देखो तो जिन के जाने की उम्र है वे भलेचंगे बैठे हैं और जिस के जीने के दिन हैं वह मौत की शैय्या पर पड़ी है. कृतिका की मौसी ने हिम्मत करते हुए माधव के कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘बेटा, दिल कड़ा करो, कृतिका को और कष्ट मत दो, उसे घर ले चलो.

‘‘माधव ने मौसी को तरेरते हुए कहा, ‘‘कैसी बातें करती हो मौसी, मैं उम्मीद कैसे छोड़ दूं.’’

तभी माधव की मां ने गुस्से में आ कर कहा, ‘‘क्यों मरे जाते हो मधु बेटा, जिसे जाना है जाने दो. वैसे भी कौन से सुख दिए हैं तुम्हें कृतिका ने जो तुम इतना दुख मना रहे हो,’’ वे धीरे से फुसफुसाते हुए बोलीं, ‘‘एक संतान तक तो दे न सकी.’’ माधव खीज पड़ा, ‘‘बस करो अम्मां, समझ भी रही हो कि क्या कह रही हो. वह कृतिका ही है जिस के कारण आज मैं यहां खड़ा हूं, सफल हूं, हर परेशानी को अपने सिर ओढ़ कर वह खड़ी रही मेरे लिए. मैं आप को ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता इसलिए आप चुप ही रहो बस.’’

कृतिका की मौसी यह सब देख कर सुबकते हुए बोलीं, ‘‘न जाने किस में प्राण अटके पड़े हैं, क्यों तेरी ये सांसों की डोर नहीं टूटती, देख तो लिया सब को और किस की अभिलाषा ने तेरी आत्मा को बंदी बना रखा है. अब खुद भी मुक्त हो बेटा और दूसरों को भी मुक्त कर, जा बेटा कृतिका जा.’’ माधव मौसी की बात सुन कर बाहर निकल गया. वह खुद से प्रश्न कर रहा था, ‘क्या सच में कृतिका के प्राण कहीं अटके हैं, उस की सांसें किसी का इंतजार कर रही हैं. अपनी अपलक खुली आंखों से वह किसे देखना चाहती है, सब तो यहीं हैं. क्या ऐसा हो सकता है

‘हो सकता है, क्यों नहीं, उस के चेहरे पर मैं ने सदैव उदासी ही तो देखी है. एक ऐसा दर्द उस की आंखों से छलकता था जिसे मैं ने कभी देखा ही नहीं, न ही कभी जानने की कोशिश ही की कि आखिर ये कैसी उदासी उस के मुख पर सदैव सोई रहती है, कौन से दर्द की हरारत उस की आंखों को पीला करती जा रही है, लेकिन कोईर् तो उस की इस पीड़ा का साझा होगा, मुझे जानना होगा,’ सोचता हुआ माधव गाड़ी उठा कर घर की ओर चल पड़ा. घर पहुंचते ही कृतिका के सारे कागजपत्र उलटपलट कर देख डाले, लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला. कुछ देर बैठा तो उसे कृतिका की वह डायरी याद आई जो उस ने कई बार कृतिका के पास देखी थी, एक पुराने बकसे में कृतिका की वह डायरी मिली. माधव का दिल जोरजोर से धड़क रहा था.

कृतिका का न जाने कौन सा दर्द उस के सामने आने वाला था. अपने डर को पीछे धकेल माधव ने थरथराते हाथों से डायरी खोली तो एक पन्ना उस के हाथों से आ चिपका. माधव ने पन्ने को पढ़ा तो सन्न रह गया. यह पत्र तो कृतिका ने उसी के लिए लिखा था :

फिल्म समीक्षाः ‘झलकी’

रेटिंगःढाई स्टार

निर्माताःब्रम्हानंद एस सिंह और आनंद चैहाण

निर्देशकः ब्रम्हानंद एस सिंह और तनवी जैन

कलाकारः बोमन ईरानी,तनिष्ठा चटर्जी, संजय सूरी, जौयसेन गुप्ता, दिव्या दत्ता, गोविंद नाम देव,यतिन कर्येकर, अखिलेंद्र मिश्रा, बचन पचेरा, बाल कलाकार आरती झा और गोरक्षा सकपाल व अन्य.

अवधिः 1 घंटा 59 मिनट

‘बचपन बचाओ’ का संदेश देने के लिए नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के कार्यों से प्रेरित होकर ब्रम्हानंद एस सिंह और तनवी जैन फिल्म ‘‘झलकी’’ लेकर आए हैं. निर्देशक ने एक बाल मजदूर जैसे अति गंभीर विषय पर अपनी तरफ से गंभीर प्रयास किया है, मगर विषयवस्तु को लेकर सीमित सोच के चलते फिल्म अपना प्रभाव छोड़ने में नाकाम रहती है.

कहानीः

फिल्म की कहानी गौरया नामक चिड़िया की एक पुरानी लोककथा के एनपीमेान मे काध्यम से शुरू होती है. गौरैया, जिसका एक दाना बांस की खोल में फंस जाता है, जिसे पाने के लिए वह बढ़ई, राजा, उसकी रानी, सांप,एक छड़ी, आग, समुद्र और एक हाथी तक गुहार लगाती है. हाथी तक पहुंचने से पहले सभी उसे भगा देते हैं. मगर जब हाथी उसकी मदद के लिए उसके साथ चलता है, तो सभी मदद के लिए तैयार हो जाते हैं और गौरैया को उसका दाना मिल जाता है.

फिर मूल कहानी शुरू होती है. कहानी है उत्तर प्रदेश के एक गांव से रामप्रसाद(गोविंद नामदेव) नियमित रूप से बच्चों को श्रम के लिए शहर में ले जाता है. इसके लिए वह बच्चों के गरीब माता पिता को एलईडी टार्च या एफएम रेडियो अथवा कुछ पैसे देकर उनकी भलाई का नाटक करता है. पर उसी गांव की एक नौ साल की लड़की झलकी( बेबी आरती झा) को रामप्रसाद पसंद नहीं. वह हर हाल में अपने छोटे भाई सात साल के बाबू (गोरक्षक सकपाल) को रामप्रसाद से बचाकर रखना चाहती है. पर हालात कुछ इस तरह बदलते है कि राम प्रसाद के साथ झलकी और उसका भाई बाबू मिर्जापुर शहर पहुंच जाते है, जहां रामप्रसाद बड़ी चालाकी से उसके भाई बाबू को बाल मजदूरी के लिए दूसरों के हाथ बेच देते हैं और झलकी को किसी अन्य के हाथ वेश्यावृत्ति के लिए बेचते हैं. झलकी अपने भाई बाबू से अलग हो जाती है, पर वह भागकर खुद को बचा लेती है. फिर वह अपने भाई बाबू की तलाष षुरू करती है. कारपेट बनाने वाली फैक्टरी के मालिक चकिया (अखिलेंद्र मिश्रा) के यहां बाबू कारपेट बनाने के काम में लग जाता है.

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अपने भाई बाबू की तलाश के लिए झलकी गौरैया की कहानी को याद कर अपने काम पर लग जाती है.उसे सबसे पहले रिक्श चालक रहीम चाचा (बचन पचेहरा) का साथ मिलता है. जलेबी बेचने वाले दुकानदार को सच पता है, पर वह कुछ बताने को तैयार नही. तब झलकी राजा यानी कि जिले के कलेक्टर संजय (संजय सूरी) के पास पहुंचती है, संजय उसे भगा देते हैं. तब वह नाटकीय तरीके से रानी यानी कि कलेक्टर की पत्नी  सुनीता (दिव्या दत्ता) से मिलती है. सुनीता उसे अपने घर ले जाकर अपने साथ रहने के लिए कहती है और आष्वस्त करती है कि वह जल्द उसके भाई को ढुंढ़वा देंगी.पर संजय ख्ुाद को असमथर्थ बताते हैं. रहीम चाचा की मदद से झलकी को यह पता चल जाता है कि उसके भाई बाबू से कारपेट बनाने वाली कंपनी के मालिक चकिया बाल मजदूरी करा रहे हैं. एक दिन जब वह छिपकर कंपनी के अंदर पहुंचती है तो वह कलेक्टर संजय के ज्यूनियर और एसडीएम अखिलेश(जौयसेन गुप्ता) को चकिया से घूस लेते देख लेती है. पर संजय चुप रहते हैं. उसके बाद नाटकीय तरीके से पत्रकार प्रीति व्यास (तनिष्ठा चटर्जी) और बच्चों को छुड़वाने काम कर रहे समाज सेवक (बोमन ईरानी) की मदद से झलकी अपने भाई व गांव के अन्य बच्चों का बाल मजदूरी से मुक्त कराकर अपने गांव पहुचती है.

कहानी खत्म होने के बाद कैलाश सत्यार्थी का लंबा चैड़ा भाषण और उनके द्वारा 86 हजार बच्चों को छुड़ाए जाने के दौरान के उनके कार्यां के वीडियो भी आते हैं.

लेखन व निर्देशनः

मूलतः डाक्यूमेंट्री फिल्मकार ब्रम्हानंद एस सिंह की बतौर निर्देशक यह पहली फीचर फिल्म है, जिसमें उनके साथ निर्देशन में सहयोगी के रूप में तनवी जैन भी जुड़ी हुई हैं. ब्रम्हानंद एस सिंह ने संगीतकार आर डी बर्मन और गजल गायक जगजीत सिंह लंबी डाक्यूमेंट्री बना चुके हैं. जिसका असर फिल्म में इंटरवल से पहले नजर आता है. इंटरवल से पहले जिस तरह से दृष्य व पार्श्व में गाने पिरोए गए हैं, उससे फीचर फिल्म् की बजाय डाक्यमेंट्री का अहसास होता है. इंटरवल के बाद घटनाक्रम घटित होते हैं. पर पटकथा में कुछ झोल के साथ निर्देशन में कुछ कमियां है. फिल्म बेवजह लंबी खींची गयी है.

फिल्म में बच्चो के यौन शोषण को भी बहुत हलके फुलके से दिखाया गया है. फिल्मकार के रूप में ब्रम्हानंद ने बाल मजदूरी के साथ जुड़े हर इंसान को बेनकाब करने का प्रयास किया है. फिल्म में भाई कही तलाश में जुटी झलकी के अंदर के गहरे डर का भी बेहतरीन चित्रण है. कालीन बुनाई के लघु उद्योग में किस तरह छोटे छोटे बच्चे काम कर रहे है और उन्हें किस हालात में रखा जाता है, उसका यथार्थ चित्रण है.मिर्जापुर में घरेलू उद्योगों की लंबी श्रृंखला में कालीन की बुनाई उद्योग है.जहां बाल तस्करी का नेक्सस बड़ा और शक्तिशाली है. मगर फिल्मकार ने इसका बहुत सतही चित्रण किया है.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो झलकी के किरदार में बाल कलाकार आरती झा अपने शानदार अभिनय से मन मोह लेती हैं. गोरक्षा सकपाल ने भी बाबू के किरदार के साथ न्याय किया है.यह दोनो भाई-बहन के रूप में एक अद्भुत, वास्तविक बंधन बनाते हैं.फिल्म में बेहतरीन कलाकारों की लंबी चैड़ी फौज है, मगर पटकथा लेखन व निर्देशकीय कमजोरी के चलते यह कलाकार बंधे से नजर आते हैं. कोई भी खुलकर अपनी प्रतिभा को सामने नहीं ला पाया.

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कैसे शुरु हुई दीपिका रणवीर की लव स्टोरी, ऐसी थी पहली मुलाकात

बौलीवुड के एक्टर रणवीर सिंह और एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण फिल्म इंडस्ट्री के सबसे पौपुलर और रोमांटिक कपल में उनकी जोड़ी शुमार है. जी हां, आज यानी 14 नवंबर को उनकी पहली मैरिज एनिवर्सरी है. इस मौके पर आपको इस दिलकश कपल की लव स्टोरी के बारे में बताते हैं. तो चलिए जानते है उनकी पहली मुलाकात कैसे हुई.

आपको बता दें, रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण कई फिल्मों में साथ काम किया है. जैसे: रामलीला, पद्मावत और बाजीराव मस्तानी.  इन दोनो की बहुत ही दिलचस्प लव स्टोरी है. क्या आप जानते हैं, ये दोनो पहली बार कब मिले थे. इनकी पहली मुलाकात जी सिने अवाडर्स में हुई थी. इस अवाडर्स  समारोह में रणवीर ने पहली बार दीपिका को सामने से देखा था और रणवीर का कहना है कि वह उन्हें देखते ही फिदा हो गए थे.

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दोनों को साथ में ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताने के लिए जरूरी था कि वे साथ में काम करे और इसके  लिए उन्हें ये मौका दिया  फिल्म निर्देशक संजय लीला भंसाली ने. फिल्म का नाम था “गोलियों की रासलीला – रामलीला”.

इस फिल्म में दोनों के बीच कमाल की कैमिस्ट्री देखने को मिली और इस तरह की खबरें आनी शुरू हो गईं कि दोनों के बीच कुछ चल रहा है. दोनों अपनी रिलेशनशिप को दुनिया की नजरों से बचाने की बहुत कोशिश कर रहे थे लेकिन इनकी तस्वीरें सब कुछ  बता  रही थीं.

खबर तो ये भी आई थी कि फिल्म “रामलीला” में एक रोमांटिक सीन के दौरान दोनों को किस करना था और निर्देशक के कट बोलने के बाद भी दोनों एक दूसरे को किस करते रहे.

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ब्रेकफास्ट में बनाएं बनाना पेस्ट्री

आज आपको बनाना पेस्ट्री बनाने की रेसिपी के बारे में बताते हैं. जो आप आसानी से ब्रेकफास्ट में बना सकते हैं. इसे बनाना भी बेहद आसान है. तो चलिए जानते हैं बनाना पेस्ट्री बनाने की रेसिपी.

सामग्री

– 2 केले

– 2 बड़े चम्मच नारियल पाउडर

– 2 बड़े चम्मच चीनी

– 10-12 किशमिश

– 1 कप मैदा

– 2 बड़े चम्मच मक्खन

– 1/2 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर

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बनाने की विधि

मैदे में बेकिंग पाउडर व मक्खन मिला कर गूंध लें.

एक पैन में चीनी पिघला कर केला, किशमिश व नारियल पाउडर मिला कर 1-2 मिनट पकाएं.

गुंधे मैदा के छोटेछोटे पेड़े बना कर बेल लें.

एक पूरी पर केले का मिश्रण रखें व दूसरी पूरी से ढक कर सील करें.

इस तरह सभी तैयार कर 1800 पर गरम ओवन में 8-10 मिनट तक बेक करें.

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पूजा हेगड़े हैं निर्देशकों की पहली पसंद

पूजा हेगड़े के टौलीवूड में फिल्मों की रिकौर्ड तोड़ सफलता के बाद, अब बौलीवुड में भी हाउसफुल 4 के बौक्स औफिस कलेक्शन के साथ उनकी सफल फिल्मों का रिकौर्ड बढ़ रहा है. दिलचस्प बात यह है कि दोनों इंडस्ट्री में काम करने के बाद भी पूजा टाइपकास्ट हुए बिना ही सफल हुई हैं.

चाहे वह ‘गद्दालकोंडा गणेश’ में श्रीदेवी जैसी गांव की लड़की हो या ‘हाउसफुल 4’ में लंदन की लड़की का किरदार, पूजा इसे बड़े ही आत्मविश्वास के साथ आसानी से परदे पर उतारती हैं.

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हाउसफुल 4 में हमें उनकी स्क्रीन प्रेज़ेंस, रेंज और कौमिक टाइमिंग देखने को मिली थी ऐसा ही किरदार एक बार फिर प्रभास के साथ आ रही उनकी अगली  फिल्म में देखने को मिलेगा जोकि एक लव स्टोरी पर आधारित है.

स्क्रिप्ट के चुनाव में माहिर पूजा को खासकर डायरेक्टर्स के निर्देशों पर चलने वाली एक्ट्रेस के तौर पर जाना जाता है – बहुमुखी, अच्छी तरह तैयारी करने वाली और अनुशासित. ऐसे में ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि फिल्म निर्माता बार-बार उन्हें अपनी फिल्मों के लिए साइन कर रहे हैं.

त्रिविक्रम ने उन्हें अपनी दो सबसे बड़ी फिल्मों – अरविंदा समेथा, एनटीआर जूनियर के साथ अपकमिंग फिल्म अला वैकुंठपुर्रामलू में लिया है. फिल्म निर्माता हरीश ने पूजा को डीजे और गद्दालकोंडा गणेश में कास्ट किया – दोनों ब्लौकबस्टर बन गए! यहां तक कि नाडियाडवाला ने हाउसफुल 4 के बाद उन्हें तीन-फिल्म डील के लिए साइन किया है.

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जैसा कि बौलीवुड दर्शकों को पूजा हेगड़े की अगली फिल्म का इंतज़ार है तो हम आपको बता दें कि वो पावर-पैक परफौर्मेंस के साथ लौटेंगी.

जानिए क्यों नहीं इस्तेमाल करना चाहिए हीटर-ब्लोवर

सर्दी अपनी चरम पर है. ऐसे में इससे बचने के लिए लोग हीटर ब्लोवर का खूब इस्तेमाल करते हैं. सर्द हवाओं से बचने के लिए ब्लोवर या हीटर का इस्तेमाल काफी आरामदायक होता है. पर क्या आपको पता है कि आपकी ये आदत कितनी खतरनाक हो सकती है? इस खबर में हम आपको हीटर में सोने से होने वाले नुकसान के बारे में बताएंगे.

  • जब आप कमरे में हीटर का प्रयोग करते हैं तो उसकी हवा से कमरे के अंदर की नमी खत्म हो जाती है. हवा खुश्क हो जाता है जिससे हमारी त्वचा में खिंचाव होता है. इससे एलर्जी का खतरा भी अदिक हो जाता है.
  • अगर आपके घर में छोटा बच्चा है तो आपको और ज्यादा सतर्क रहने की आवश्यकता है. हीटर या ब्लोवर से निकलने वाली हवा से खिंचाव होता है जो छोटे बच्चे के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है. इस हवा से बच्चों के जलने का खतरा भी रहता है.
  • जिन लोगों को सांस की परेशानी है उनके लिए भी ब्लोवर का इस्तेमाल खतरनाक हो सकता है. नमीरहित हवा के बीच सांस लेना सांस के मरीजों के लिए काफी मुश्किल होता है. इसलिए अस्थमा या त्वचा संबंधी बीमारी के मरीजों के लिए हीटर, ब्लोवर कतरनाक हो सकते हैं.
  • ब्लोवर वाले गर्म कमरे से जब आप अचानक ठंडी हवा में आ जाते हैं तो आपका शरीर तेजी से तापमान के बदलाव को झेलता है. कई बार शरीर इस अंतर को बर्दाश्त नहीं कर पाता तो हमें कई तरह की बीमारियां होने लगती हैं.
  • संबे समय तक हीटर में बैठने से शरीर के जलने का खतरा होता है. आपकी ये आदत आपमें कई तरह की त्वचा संबंधित बीमारियां पैदा कर सकती है.

पशुपालन : सरकारी योजनाओं का ले फायदा 

हमारे यहां कई गंवई इलाकों में पशुपालन खेती के साथसाथ किया जाने वाला काम है. कुछ लोग अपनी घरेलू जरूरतों को ध्यान में रखते हुए ही पशुपालन करते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने पशुपालन को बतौर डेरी कारोबार के रूप में अपनाया हुआ है.

यही डेरी कारोबार उन की आमदनी का एकमात्र जरीया है. लेकिन किसी भी काम को करने के लिए उस के बारे में सटीक जानकारी हो तो कारोबार मुनाफे का सौदा बनता है. कई दफा जानकारी की कमी में कारोबार करने वालों को नुकसान उठाना पड़ता है, इसलिए पशुपालन में पशुओं का रखरखाव, उन के खानपान में चारा, पानी वगैरह देने के अलावा घरेलू उपचार की सही जानकारी होनी चाहिए.

नया डेरी फार्म लगाने के लिए पहले या दूसरे ब्यांत के पशु जो कि ज्यादा से ज्यादा 20 या 25 दिन की ब्याई हुई ही खरीदनी चाहिए, क्योंकि ऐसे पशु अधिक समय तक दूध देते हैं.

इस के अलावा पशुओं की हर अवस्था जैसे गर्भकाल, प्रसवकाल और दूध काल वगैरह में समुचित देखभाल और प्रबंधन से ही किसी भी डेरी फार्म या डेरी उद्योग को कामयाब बनाया जा सकता है.

गांवों में पशुओं की देखभाल व खानपान, प्रबंधन का काम ज्यादातर महिलाएं ही करती हैं. इसलिए यह जरूरी भी है कि समयसमय पर महिलाओं को पशुओं की देखभाल और प्रबंधन के बारे में तकनीकी जानकारी प्रशिक्षण के माध्यम से देनी चाहिए ताकि पशु से ज्यादा से ज्यादा दूध ले सकें.

केंद्र सरकार द्वारा भी किसानों और पशुपालकों के लिए अनेक हितकारी योजनाएं समयसमय पर आती रहती हैं, उन की जानकारी ले कर भी फायदा उठाना चाहिए. इस तरह की जानकारी अखबारों, पत्रपत्रिकाओं, रेडियो, टीवी और कृषि विभागों द्वारा दी जाती है.

इस के अलावा कृषि मेलों में भी भरपूर जानकारी मिलती है. अपने नजदीक लगने वाले ऐसे आयोजनों में भी युवा महिला व किसानों को जाना चाहिए, जहां पर खेतीकिसानी व पशुपालन के अनेक विशेषज्ञ होते हैं जो आप को नईनई जानकारी देते हैं. खेती से जुड़ी सरकारी कंपनियां, प्राइवेट कंपनियां, बैंक वगैरह के अधिकारी मौजूद होते हैं. उन से भी आम लोगों को तमाम तरह की नई जानकारी मिलती है.

डेरी सब्सिडी स्कीम (नाबार्ड) की उद्यमिता विकास योजना (डीईडीएस) : केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना का खास मकसद देश में दूध के कारोबार को बढ़ावा देना है. पशुपालन योजना के तहत आधुनिक डेरी या डेरी फार्म खोल कर आम किसान अपनी आमदनी में इजाफा कर सकते हैं.

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इस योजना का फायदा किसान और पशुपालक दोनों ही ले सकते हैं. जो लोग डेरी कारोबार से जुड़े हैं, वह इस काम को और आगे बढ़ा सकते हैं और अनेक लोगों को रोजगार भी दे सकते हैं.

गंवई इलाकों के बेरोजगार नौजवान भी इस काराबार को शुरू कर सकते हैं. अगर आप को पशुपालन का तजरबा है तो अच्छा मुनाफा कमा सकते?हैं.

केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना के तहत डेरी कारोबार से फायदा उठाने के लिए गायपालन और भैंसपालन के लिए लोन दिया जाता है. इस में सरकार द्वारा 25 से 33 फीसदी तक सब्सिडी दी जाती है.

अगर आप 10 दुधारू पशुओं से डेरी की शुरुआत करना चाहते हैं और इस पर होने वाला खर्चा तकरीबन 7 लाख रुपए आता है तो केंद्र के कृषि मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही डीईडीएस योजना में आप को तकरीबन 1.75 लाख रुपए की सब्सिडी मिलेगी.

केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा यह सब्सिडी राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक यानी नाबार्ड के माध्यम से मुहैया कराई जाती है.

किस को कितनी सब्सिडी मिलेगी : डीईडीएस योजना के तहत आप को डेरी लगाने के लिए आमतौर पर 25 फीसदी की सब्सिडी मिलेगी. अगर आप अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से हैं, तो इस योजना के तहत आप को 33 फीसदी सब्सिडी दी जाएगी.

आप अगर राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक यानी नाबार्ड से डेरी खोलने के लिए लोन लेते हैं तो आप को कुछ नियमों का पालन करना होगा और अहम कागजात की जरूरत पड़ेगी. इस की जानकारी इस तरह से है:

* अगर आप के पास 2 से ज्यादा पशु हैं तो आप इस लोन के लिए आवेदन कर सकते हैं. अगर आप पहले से ही पशुपालन करते रहे हैं तो आप को लोन मिलने में भी आसानी होगी और लोन के लिए आवेदन करने के लिए आवेदनकर्ता की उम्र 18 साल से ज्यादा और 65 साल से कम होनी चाहिए.

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* अगर आप 2 से ले कर 10 पशु के साथ डेरी शुरू करना चाहते हैं तो प्रति 5 पशु के लिए 0.25 एकड़ जमीन चारे के लिए मुहैया होनी चाहिए. अगर आप के पास जमीन है तो अच्छी बात?है. अगर जमीन नहीं है तो आप किसी अन्य व्यक्ति की जमीन किराए पर ले कर यह काम शुरू कर सकते हैं. इस की जानकारी आप को बैंक को देनी होगी.

* आप जहां डेरी खोलना चाहते हैं, वहां का मूल निवास प्रमाणपत्र होना चाहिए.

क्याक्या कागजात जरूरी

* आवेदन फार्म (यह फार्म आप को औनलाइन इंटरनैट या फिर बैंक में मिल जाएगा).

* पहचान के लिए आधारकार्ड या वोटर आईडी कार्ड होना चाहिए.

* जिस बैंक में आप का अकाउंट है, उस बैंक की पासबुक होनी चाहिए.

* आप जहां डेरी खोलना चाहते हैं, वहां का मूल निवास प्रमाणपत्र होना चाहिए.

* आवेदन करने वाले व्यक्ति का पासपोर्ट साइज का फोटो भी चाहिए.

जरूरी कागजातों के अलावा आप को एक आवेदनपत्र देना होगा, जिस में यह लिखा होना चाहिए कि आप लोन क्यों ले रहे हैं. आप यह लोन कितने सालों में चुका देंगे? आप के पास कितने पशु हैं और फिलहाल इन से आप की कितनी आमदनी हो रही है, वगैरह.

इस तरह की जानकारी बैंक आप से मांगेगा, इसलिए ऐसे में आप को इन सवालों के जवाब की पहले से तैयारी कर लेनी चाहिए ताकि बाद में आप को किसी तरह की परेशानी न आए.

डेरी खोलने के लिए लोन का एप्लीकेशन फार्म लेते समय आप किसी भी बैंक कर्मचारी से सही जानकारी ले सकते हैं. बैंक कर्मचारी आप को बता देंगे, जैसे इस में कौनकौन से कागजात लगेंगे. आप को कितने दिन में यह लोन मिल सकता है वगैरह.

कैसे करें आवेदन : डेरी खोलने के लिए लोन कैसे मिलेगा? तो इस के लिए आप को अपने बैंक जाना है. वहां आप को एप्लीकेशन फार्म के साथ जरूरी कागजात नत्थी करने हैं.

इन सभी कागजातों के साथ आप को बैंक में इन्हें जमा करना है. यहां?बैंक कर्मचारी आप के लोन का आवेदन फार्म नाबार्ड यानी राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक में भेज देंगे.

आप चाहें तो अपने नजदीकी राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) जा कर लोन के लिए खुद भी फार्म जमा कर सकते?हैं. इस के बाद आप के दस्तावेज सत्यापन यानी वैरीफिकेशन के लिए राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक जाएंगे.

डौक्यूमैंट वेरीफाई होने के बाद आप को पूछताछ के लिए बैंक बुलाया जाएगा. आप द्वारा दिए गए जवाब से संतुष्ट होने पर ही आप को लोन मिल सकेगा, अन्यथा बैंक कर्मचारी आप के लोन को रिजैक्ट कर सकता है. ऐसे में यह जरूरी है, आप को उस के सवालों का सही जवाब देना होगा. उसे भरोसा दिलाना होगा कि आप को वाकई लोन की जरूरत?है.

डेरी फार्म कारोबार में होने वाला अनुमानित खर्च : अगर आप दूध देने वाले 10 पशुओं की डेरी खोलते हैं तो इस प्रोजैक्ट में तकरीबन 7 लाख रुपए की लागत आएगी.

डेरी उद्यमिता विकास योजना यानी डीईडीएस के तहत आप को इस में 1.75 लाख रुपए की सब्सिडी मिल जाएगी. तकरीबन सभी बैंक लोन देते समय अपने लोन की सुरक्षा के लिए आवेदनकर्ता से कुछ न कुछ गिरवी जरूर रखवाते हैं. इसे सिक्योरिटी डिपोजिट कहा जाता?है. इस के लिए आप से जमीन के कागजात या घर के ऐसे कागजात मांगे जाते?हैं, जिन की कीमत आप के लोन से?ज्यादा हो और जब आप का लोन चुकता हो जाता है तो वह कागजात आप को वापस मिल जाते हैं.

अन्य योजनाओं में भी सब्सिडी

दूध उत्पादन के लिए उपकरण पर सब्सिडी: डेरी उद्यमिता विकास योजना (डीईडीएस) के तहत दूध से बनने वाली अनेक चीजें (मिल्क प्रोडक्ट) बनाने की यूनिट शुरू करने के लिए भी सब्सिडी दी जाती है. इस योजना के तहत आप दूध उत्पाद की प्रोसैसिंग के लिए उपकरण खरीद सकते हैं. खरीदे गए उपकरण पर आप को 25 फीसदी तक की कैपिटल सब्सिडी मिल सकती है.

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अगर आप अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति में आते हैं तो आप को इस के लिए 33 फीसदी सब्सिडी मिल सकती है.

मिल्क कोल्ड स्टोरेज पर भी है सब्सिडी: इस योजना के तहत दूध और दूध से बने उत्पाद के संरक्षण के लिए कोल्ड स्टोरेज यूनिट शुरू कर सकते हैं. इस पर भी 33 फीसदी  सब्सिडी मिलेगी.

राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की तरफ से डेरी उद्यमिता विकास योजना के तहत पशु खरीदने, बछड़ापालन, वर्मी कंपोस्ट, डेरी लगाने, दूध शीतलन व अन्य कामों के लिए लघु एवं सीमांत किसानों समेत समूहों को प्राथमिकता दी जाती है.

प्रसवकाल में डेरी पशुओं की देखभाल

* पशुशाला में पशुओं के प्रसव के लिए अलग से प्रसवघर का इंतजाम करना चाहिए, जो कि साफसुथरा और हवादार होना चाहिए. फर्श को फिनाइल से धो कर सुखा लें. इस के बाद तुड़ी या पराली बिछा दें. फर्श ऊंचानीचा और फिसलने वाला यानी चिकना नहीं होना चाहिए. इस जगह में रोशनी का सही इंतजाम होना चाहिए.

* ब्याने से लगभग 10 दिन पहले पशु को प्रसवघर में बांधना शुरू कर दें. प्रसव के समय पशु के पास अधिक व्यक्तियों को खड़ा न होने दें और पशु के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ न करें.

* ब्याने के समय यदि पशु खड़ा है तो ध्यान रखें कि बच्चा जमीन पर जोर से न गिरे. जब बच्चा योनि द्वार से बाहर आने लगे तो हाथों द्वारा बाहर निकालने में मादा की मदद करें.

* प्रसव के दौरान मादा को तकलीफ होने लगे या बच्चे का कुछ भाग बाहर आ जाए और पूरा बच्चा बाहर न आए तो उसी समय पशु चिकित्सक की मदद लें. कोशिश करें कि प्रसव के समय पशु विशेषज्ञ आप की पहुंच में हो जिस से पशु को कोई समस्या होने पर उस की तुरंत मदद ली जा सके.

* प्रसव क्रिया शुरू होते ही पशु बेचैन हो जाता?है और योनि द्वार से तरल पदार्थ निकलना इस का मुख्य लक्षण?है.

* इस समय पानी की थैली बाहर निकलती?है जिसे अपनेआप ही फटने दें और छेड़छाड़ न करें. प्रसव के समय बच्चा पहले सामने के पैरों पर सिर टिकी अवस्था में बाहर आता है.

* प्रसव के बाद योनि द्वार पूंछ और पीछे के हिस्से को कुनकुने पानी में तैयार पोटैशियम परमैगनेट के घोल से साफ कर दें. पशु के पास गंदगी को तुरंत हटा दें.

* यदि प्रसव 4 घंटे में न हो तो पशु चिकित्सक की मदद लेनी चाहिए.

* अकसर जेर 5-6 घंटे में बाहर निकल जाता है. यदि जेर 13-14 घंटे तक न निकले तो पशु चिकित्सक को दिखाएं.

ऐसे शुरू हुआ अंधविश्वास का सिलसिला

कहीं दिखावे का स्वांग, कहीं डर से श्रद्धा, तो कहीं लकीर की फकीरी, कुल मिला कर यही हैं हम, हमारा समाज. जहां धर्मांधता के कारण पंडों, पुजारियों, पुरोहितों द्वारा पर्व, उत्सवों को भी नाना प्रकार के कर्मकांडों से जोड़ कर सत्य तथ्यों को नकारते हुए उन का मूलभूत आनंदमय स्वरूप नष्ट कर दिया गया, वहीं शुभ की लालसा और अनिष्ट की आशंका से उन के पालन को विवश साधारण जनमानस का भयभीत मन अंधविश्वासों में घिरता चला गया, क्योंकि हमारे धार्मिक ग्रंथ भी इसी बात की पुरजोर वकालत करते हैं कि ईश्वर के बारे में धार्मिक कार्यों पर कोई प्रश्नचिह्न नहीं लगाना, बात नहीं मानी तो नष्ट हो जाओगे. ‘…अथचेत्त्वमहंकारात्त् नश्रोष्यसि विनंगक्ष्यसि.’ (भा. गीता श्लोक 18/58), बस चुपचाप पालन करते जाना है. किसी अधर्मी के आगे बोलना नहीं. ‘…न च मां यो अभ्यसूयति.’ (भा. गीता श्लोक 18/67) सब धर्मों को छोड़ कर हमारी शरण आ जाओ. अपने धर्म की ओर खींचने की रट कि मैं सब पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूंगा.

सर्वधर्मान् परित्यज्य, माम एकं शरणं व्रज:।अहं त्वां सर्वपापेभ्योमोक्षयिष्यामि मा शुच:॥ (भा. गीताश्लोक 18/66).

ये सब क्या है? भगवान है तो सर्वशक्तिमान होगा न? उसे सब से बताने की क्या आवश्यकता थी. फिर उन्होंने अपना वचन सारी भाषाओं में क्यों नहीं लिखवा दिया? कंप्यूटर सौफ्टवेयर के जैसे उन के पास तो सारा ज्ञानविज्ञान तो हमेशा से ही है, पत्रों, पत्थरों पर क्यों लिखवाया? जो उन्हें नहीं मानते उन के आगे ये गीता के भगवान वचन कहनेपढ़ने को क्यों मना किया, उन के वचन तो कानों में पड़ते ही उन्हें पवित्र बन जाना था. फिर मना क्यों किया गया? सीधी सी बात है, वे तर्क मांगते और इन के पास कोई जवाब न होता और ढोल की पोल खुल जाती, सत्य सामने आ जाता. सत्य तथ्यों को नकारना, बिना कारण जाने कुछ भी मान लेना, मनवाना यहीं से शुरू हो गया.

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इस डर में नएनए अंधविश्वास जन्म लेते गए और अंधविश्वासी बढ़ते गए. एक ही बात मन की गहराई में बैठ गई कि यदि अकारण, बिना तर्क ऐसा करने से अच्छा और न करने से बुरा हो सकता है, तो हमारे व दूसरों के और क्रियाकलापों से भी बिना कारण अच्छाबुरा घट सकता है. बस शुरू हो गया अंधविश्वासों का सिलसिला. कभी क्रिकेट टीम की जीत के लिए, तो कभी ओलिंपिक मैडल के लिए अथवा नेताओं की चुनाव में जीत के लिए हवन कराए जाने लगते हैं. यदि इस सब से कुछ हो सकता तो बलात्कार, हत्याएं, दुर्घटनाएं रोकने के लिए धार्मिक भारत महान में कोई हवन क्यों नहीं होते? यह सोचने की बात है.

दिखाने का स्वांग

बिल्ली ने एक बार रास्ता काटा जैसी छोटी बात को अंधविश्वास बना डाला गया. डर इतना मन में बैठाया गया कि रास्ता ही बदल लिया या किसी और के गुजरने का इंतजार कर लेने में ही भलाई समझी. आगे आजमाने की हिम्मत ही नहीं दिखाई गई. डर इतना घर कर गया कि कभी ध्यान भी न गया कि अच्छा भी हुआ था कभी. अपना डर दूसरों में भी डालते चले गए. एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे, माउथ टु माउथ सब जगह बात फैला दी गई.

जितनी धर्मभीरुओं की संख्या बढ़ती है अंधविश्वास और अंधविश्वासियों की संख्या में उस से कहीं ज्यादा वृद्धि होती है. इसलिए सर्वप्रथम धर्म, दूसरे व्यक्ति का भीरु मन और दुर्बल हृदय मुख्य कारण हैं, जिस के फलस्वरूप अंधविश्वासी इस बहाने सत्य तथ्यों को सरलता से नकारने लगे.

एक और कारण है दिखावे का स्वांग जैसे कुछ जनधार्मिक कर्मकांडों में लिप्त रह कर जताते हैं कि वे बहुत ही धार्मिक हैं, इसलिए अधिक अच्छे, सच्चे और विश्वास के योग्य एक पवित्र आत्मा हैं. फिर भले ही वे लंगर, दान, पुण्य की आड़ में गोरखधंधा या काला धंधा खूब चलाते हों. दुनिया व कानून की आंख में धूल झोंकते हुए बेशुमार धनदौलत, नाम, सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेते हैं.

भ्रष्ट बड़ेबड़े नेता, टैक्स की चोरी करने वाली बड़ीबड़ी फिल्मी हस्तियां, बड़ी शान से अपने लावलश्कर और मीडिया की चकाचौंध के साथ मंदिरों में वीवीवीआईपी ट्रीटमैंट के मध्य, देवीदेवताओं का दर्शन, भारी दान, चैरिटी कर अपने को धार्मिक, पवित्र और नेक दिखाने का ढोंग करते हैं. क्या यह आंखें खोलने के लिए पर्याप्त नहीं? सच तो यह है कि हम सो नहीं रहे, सब जानतेबूझते आंखें बंद कर के पड़े हैं. सही तो है कि सोए हुए को जगाया जा सकता है जागे हुए को नहीं.

खुल चुकी है बाबाओं की असलियत

लकीर की फकीरी व परंपरा की दुहाई भी इस झूठ को अपनाने की वजह है. हमारे पूर्वज, बड़ेबूढ़े जो करते चले आ रहे हैं, आंख मूंद कर लकीर के फकीर बने हम भी उन का अनुसरण करते जा रहे हैं. ऐसा करना हम अपना कर्तव्य मानते हैं. उन के प्रति प्यारआदर दिखाने का एक तरीका समझते हैं. उन से कोई तर्क नहीं करते. बस मानते चले जाते हैं. कुछ संतुष्टि मिली, कुछ अच्छा लगने लगा, करतेकरते फिर विश्वास भी होने लगा, वैसे ही जैसे ताला बंद कर घूमने आराम से निकल जाते हैं कि अब घर सुरक्षित है. उन कर्मकांडों, अंधविश्वासों को मान कर, पालन कर हम अपनेआप को भविष्य के प्रति सुरक्षित सा अनुभव करने लगे. बस जैसा अपने बड़ों को देखा है वैसा बिना सोचेसमझे करते चले जा रहे हैं.

अशिक्षा, अज्ञानता और तर्क को नकारना भी एक बहुत बड़ा कारण है. ठीक है आज शिक्षा का बहुत तेजी से प्रसार हो रहा है. कुछ मस्तिष्क में क्यों, कैसे प्रश्न अंकुरित भी होने लगे हैं. व्यक्ति हर बात का पहले कारण जानना फिर मानना चाहता है. परंतु अभी भी हमारे देश की जनसंख्या 100% शिक्षित नहीं हो पाई है. मोबाइल, गाड़ी का प्रयोग तो करते हैं पर बाबाओं से चमत्कार की आशा में उन के पास जाना नहीं छोड़ते, उन के चंगुल में फंसते जाते हैं, सत्य साईं बाबा, आसाराम बाबू जैसे लोग कहां गए? उन की असलियत आज किसी से छिपी नहीं.

अशिक्षा है बड़ी वजह

दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं है, जिस का कारण न हो, तर्क न हो. नहीं जानते तो हमारी अशिक्षा, अज्ञानता ही है. दो और दो चार ही होंगे या तीन व एक चार ही होंगे यदि हम नहीं जानते तो हमारी अज्ञानता ही कही जाएगी. रातदिन कैसे होते हैं? नहीं मालूम तो कुछ भी मनगढं़त अटकलें लगा लें, जैसे कोई राक्षस रोज सूर्य को निगल जाता है या कुछ भी बेसिरपैर की कोई और कल्पना परंतु उन के पीछे का कारण.

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एक सच तो हमेशा से रहा है. हम ने ही देर से जाना. मोबाइल, टीवी डिश, गाड़ी का हो चाहे जहाज उड़ने का विज्ञान पहले भी था, हम ने ही देर से जाना. आज भी जाने कितनी कला, कितना विज्ञान दुनियाजहान में छिपा पड़ा है. हमें उस ओर अपना मस्तिष्क दौड़ाना है. मनगढ़ंत बातों से बचना है, जिस के लिए शिक्षा के साथसाथ ज्ञान का होना नितांत आवश्यक है.

अनपढ़ों की तो बात ही छोडि़ए पढ़ेलिखे भी अपनी बुद्धि तर्कविहीन बनाए बैठे हैं. बुद्धि लगा कर कुछ सोचनासमझना ही नहीं चाहते. पढ़ाई ढंग से की नहीं, घर से दही खा कर मंदिर में भगवान के दर्शन कर परीक्षा दे आए. परिणाम स्वयं ही बता देता है कि उन्हें यही मिलना चाहिए था.

अंधविश्वासों से घिरे वे पूर्णतया प्रसन्न भी नहीं रह पाते हैं. अतएव शिक्षा के साथसाथ जनजन को ज्ञान का प्रकाश सब से पहले अपने भीतर फैलाना होगा. सत्य जाने बिना कुछ नहीं मानना. कुछ है तो वास्तविकता क्या है? कैसे है? क्यों है? प्रयास करना है, इन के उत्तर जानने हैं, फिर कुछ मानना है. हमारा वास्तविक विकास और उत्थान वहीं से शुरू होगा.     

रसीली नहीं थी रशल कंवर: भाग 2

रसीली नहीं थी रशल कंवर: भाग 1

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आखिरी भाग

डूंगरदान के पड़ोस में ही मोहन सिंह राव का आनाजाना था. मोहन सिंह राव पुराना भीनमाल के नरता रोड पर रहता था. वह अपराधी प्रवृत्ति का रसिकमिजाज व्यक्ति था. उस की नजर रसाल कंवर पर पड़ी तो वह उस का दीवाना हो गया. मोहन सिंह ने इस के लिए ही डूंगरदान से दोस्ती की थी. इस के बाद वह उस के घर आनेजाने लगा.

मोहन सिंह रसाल कंवर से भी बड़ी चिकनीचुपड़ी बातें करता था. जब डूंगरदान मजदूरी करने चला जाता और उस के बच्चे स्कूल तो घर में रसाल कंवर अकेली रह जाती. ऐसे मौके पर मोहन सिंह उस के यहां आने लगा. मीठीमीठी बातों में रसाल को भी रस आने लगा. मोहन सिंह अच्छीखासी कदकाठी का युवक था.रसाल और मोहन के बीच धीरेधीरे नजदीकियां बढ़ने लगीं.

थोड़े दिनों के बाद दोनों के बीच अवैध संबंध कायम हो गए. इस के बाद रसाल कंवर उस की दीवानी हो गई. डूंगरदान हर रोज सुबह मजदूरी पर निकल जाता तो फिर शाम होने पर ही घर लौटता था.

रसाल और मोहन पूरे दिन रासलीला में लगे रहते. डूंगरदान की पीठ पीछे उस की ब्याहता कुलटा बन गई थी. दिन भर का साथ उन्हें कम लगने लगा था. मोहन चाहता था कि रसाल कंवर रात में भी उसी के साथ रहे, मगर यह संभव नहीं था. क्योंकि रात में पति घर पर होता था.

ऐसे में एक दिन मोहन सिंह ने रसाल कंवर से कहा, ‘‘रसाल, जीवन भर तुम्हारा साथ तो निभाऊंगा ही, साथ ही एक प्लौट भी तुम्हें ले कर दूंगा. लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम्हारे बदन को अब मेरे सिवा और कोई न छुए. तुम्हारे तनमन पर अब सिर्फ मेरा अधिकार है.’’

‘‘मैं हर पल तुम्हारा साथ निभाऊंगी.’’ रसाल कंवर ने प्रेमी की हां में हां मिलाते हुए कहा.

रसाल के दिलोदिमाग में यह बात गहराई तक उतर गई थी कि मोहन उसे बहुत चाहता है. वह उस पर जान छिड़कता है. रसाल भी पति को दरकिनार कर पूरी तरह से मोहन के रंग में रंग गई. इसलिए दोनों ने डूंगरदान को रास्ते से हटाने का मन बना लिया. लेकिन इस से पहले ही डूंगरदान को पता चल गया कि उस की गैरमौजूदगी में मोहन सिंह दिन भर उस के घर में पत्नी के पास बैठा रहता है.

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यह सुनते ही उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. गुस्से से भरा डूंगरदान घर आ कर चिल्ला कर पत्नी से बोला, ‘‘मेरी गैरमौजूदगी में मोहन यहां क्यों आता है, घंटों तक यहां क्या करता है? बताओ, तुम से उस का क्या संबंध है?’’ कहते हुए उस ने पत्नी का गला पकड़ लिया.

रसाल मिमियाते हुए बोली, ‘‘वह तुम्हारा दोस्त है और तुम्हें ही पूछने आता है. मेरा उस से कोई रिश्ता नहीं है. जरूर किसी ने तुम्हारे कान भरे हैं. हमारी गृहस्थी में कोई आग लगाना चाहता है. तुम्हारी कसम खा कर कहती हूं कि मोहन सिंह से मैं कह दूंगी कि वह अब घर कभी न आए.’’

पत्नी की यह बात सुन कर डूंगरदान को लगा कि शायद रसाल सच कह रही है. कोई जानबूझ कर उन की गृहस्थी तोड़ना चाहता है. डूंगरदान शरीफ व्यक्ति था. वह बीवी पर विश्वास कर बैठा. रसाल कंवर ने अपने प्रेमी मोहन को भी सचेत कर दिया कि किसी ने उस के पति को उस के बारे में बता दिया है. इसलिए अब सावधान रहना जरूरी है.

उधर डूंगरदान के मन में पत्नी को ले कर शक उत्पन्न तो हो ही गया था. इसलिए वह वक्तबेवक्त घर आने लगा. एक रोज डूंगरदान मजदूरी पर गया और 2 घंटे बाद घर लौट आया. घर का दरवाजा बंद था. खटखटाने पर थोड़ी देर बाद उस की पत्नी रसाल कंवर ने दरवाजा खोला. पति को अचानक सामने देख कर उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.

डूंगरदान की नजर कमरे में अंदर बैठे मोहन सिंह पर पड़ी तो वह आगबबूला हो गया. उस ने मोहन सिंह पर गालियों की बौछार कर दी. मोहन सिंह गालियां सुन कर वहां से चला गया. इस के बाद डूंगरदान ने पत्नी की लातघूंसों से खूब पिटाई की. रसाल लाख कहती रही कि मोहन सिंह 5 मिनट पहले ही आया था. मगर पति ने उस की एक न सुनी.

पत्नी के पैर बहक चुके थे. डूंगरदान सोचता था कि गलत रास्ते से पत्नी को वापस कैसे लौटाया जाए. वह इसी चिंता में रहने लगा. उस का किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था. वह चिड़चिड़ा भी हो गया था. बातबात पर उस का पत्नी से झगड़ा हो जाता था.

आखिर, रसाल कंवर पति से तंग आ गई. यह दुख उस ने अपने प्रेमी के सामने जाहिर कर दिया. तब दोनों ने तय कर लिया कि डूंगरदान को जितनी जल्दी हो सके, निपटा दिया जाए.

रसाल कंवर पति के खून से अपने हाथ रंगने को तैयार हो गई. मोहन सिंह ने योजना में अपने दोस्त मांगीलाल को भी शामिल कर लिया. मांगीलाल भीनमाल में ही रहता था.

साजिश के तहत रसाल और मोहन सिंह 12 जुलाई, 2019 को डूंगरदान को उपचार के बहाने बोलेरो गाड़ी में जालौर के राजकीय चिकित्सालय ले गए. मांगीलाल भी साथ था. वहां उस के नाम की परची कटाई. डाक्टर से चैकअप करवाया और वापस भीनमाल रवाना हो गए. रास्ते में मौका देख कर रसाल कंवर और मोहन सिंह ने डूंगरदान को मारपीट कर अधमरा कर दिया. फिर उस का गला दबा कर उसे मार डाला.

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इस के बाद डूंगरदान की लाश को ठिकाने लगाने के लिए बोलेरो में डाल कर बोरटा से लेदरमेर जाने वाले सुनसान कच्चे रास्ते पर ले गए, जिस के बाद डूंगरदान के शरीर पर पहने हुए कपड़े पैंटशर्ट उतार कर नग्न लाश वन विभाग की खाली पड़ी जमीन पर डाल कर रेत से दबा दी. उस के बाद वे भीनमाल लौट गए.

भीनमाल में रसाल कंवर ने आसपास के लोगों से कह दिया कि उस का पति जालौर अस्पताल चैकअप कराने गया था. मगर अब उस का कोई पता नहीं चल रहा. तब डूंगरदान की गुमशुदगी उस के रिश्तेदार शैतानदान चारण ने जालौर सिटी कोतवाली में दर्ज करा दी.

पुलिस पूछताछ में पता चला कि आरोपी मोहन सिंह आपराधिक प्रवृत्ति का है. उस ने अपने साले की बीवी की हत्या की थी. इन दिनों वह जमानत पर था. मोहन सिंह शादीशुदा था, मगर बीवी मायके में ही रहती थी. भीनमाल निवासी मांगीलाल उस का मित्र था. वारदात के बाद मांगीलाल फरार हो गया था.

थाना रामसीन के इंचार्ज छतरसिंह देवड़ा अवकाश से ड्यूटी लौट आए थे. उन्होंने भी रिमांड पर चल रहे रसाल कंवर और मोहन सिंह राव से पूछताछ की.

रिमांड अवधि समाप्त होने पर पुलिस ने 19 जुलाई, 2019 को दोनों आरोपियों रसाल कंवर और मोहन सिंह को फिर से कोर्ट में पेश कर दोबारा 2 दिन के रिमांड पर लिया और उन से पूछताछ कर कई सबूत जुटाए. उन की निशानदेही पर मृतक के कपड़े, वारदात में प्रयुक्त बोलेरो गाड़ी नंबर आरजे14यू बी7612 बरामद की गई. मृतक डूंगरदान के कपडे़ व चप्पलें रामसीन रोड बीएड कालेज के पास रेल पटरी के पास से बरामद कर ली गईं.

पूछताछ पूरी होने पर दोनों आरोपियों को 21 जुलाई, 2019 को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. पुलिस तीसरे आरोपी मांगीलाल माली को तलाश कर रही है.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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