आप का मकान रहने लायक नहीं रह गया है, तो जांचपरख करने के बाद आप के पास 2 रास्ते होते हैं, पहला कि आप मकान ढहा दें और इसे फिर से बनवाएं या फिर आप इसी मकान की मरम्मत करवा लें. प्रत्यक्षतौर पर मकान ढहा कर फिर से बनवाना, मरम्मत करवाने से ज्यादा मुश्किल काम है. कुछ ऐसा ही होता है पतिपत्नी के रिश्ते में भी, जब लगता है कि रिश्ता बेहद खराब हो चुका है और आगे निभाना मुश्किल हो रहा है. ऐसे में तलाक का खयाल बड़ी तेजी से जेहन में उभरता है. परिजन, पड़ोसी, दोस्त सभी यही सलाह देने लगते हैं कि नहीं निभ रही, तो तलाक ले लो. लगता है कि बस यही एक चारा है शांति पाने का कि रिश्ते को ही खत्म कर दिया जाए. प्यार का खूबसूरत मकां, जो इतने जतन से बनाया था, उसे ढहा दिया जाए. मगर सच पूछिए तो यह आसान नहीं है.

तलाक लेने का फैसला और उसे मानने तक का दौर बहुत मुश्किल होता है. हर किसी के लिए और खासतौर पर महिलाओं के लिए इसे संभालना आसान नहीं होता. तलाक का बुरा असर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर तो पड़ता ही है, आर्थिक और समाजिक रूप से भी इंसान बहुत टूट जाता है, बहुत कमजोर हो जाता है. तलाक लेने का फैसला आसान नहीं होता.

फिर भी आजकल जिस तेजी से छोटीछोटी सी बात पर तलाक हो रहे हैं, वह आश्चर्यजनक है. कमजोर पड़ते जा रहे रिश्तों पर ठंडे दिमाग से सोचनेविचारने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट तेजी से टूट रहे सामाजिक ढांचे पर कई बार चिंता जाहिर कर चुका है. जिस तरह 498 ए यानी दहेज प्रताड़ना कानून के दुरुपयोग पर कोर्ट की चिंता बनी हुई है, उसी तरह दिनबदिन अदालतों में बढ़ते तलाक के मामलों पर भी उस की कई टिप्पणियां मीडिया में आ चुकी हैं.

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