Download App

पत्तेदार सलाद की उन्नत खेती

  लेखक: प्रदीप कुमार सैनी

यह फसल मुख्य रूप से जाड़ों में उगाई जाती है. अधिक ठंड में बहुत अच्छी बढ़वार होती है और तेजी से बढ़ती है. इस फसल को ज्यादातर व्यावसायिक रूप से पैदा करते हैं और फसल की कच्ची व बड़ी पत्तियों को बड़ेबड़े होटलों और घरों में मुख्य सलाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं, इसलिए इस फसल की पत्तियां सलाद के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं.

इस विदेशी फसल को विदेशों में भी उगाया जाता है. सलाद के सेवन से शरीर को अधिक मात्रा में खनिज पदार्थ और विटामिंस मिलते हैं. यह विटामिन ‘ए’ का मुख्य स्रोत है. इस के अलावा प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, कैल्शियम और विटामिन ‘ए’ और ‘सी’ दोनों ही मिलते हैं.

जमीन और जलवायु

सलाद की फसल के लिए ठंडे मौसम की जलवायु सब से उत्तम होती है. ज्यादा तापमान होने पर बीज बनने लगता है और पत्तियों का स्वाद बदल जाता है, इसलिए इस का तापमान 12 डिगरी सैंटीग्रेड से 15 डिगरी सैंटीग्रेड सही होता है.

बीज अंकुरण के लिए भी तापमान 20-25 डिगरी सैंटीग्रेड सब से अच्छा होता?है. 30 डिगरी सैंटीग्रेड से ज्यादा तापमान होने पर बीजों का अंकुरण सही नहीं हो पाता.

फसल के लिए उपजाऊ जमीन सब से अच्छी होती है. हलकी बलुई दोमट व मटियार दोमट मिट्टी सही होती है. जमीन में पानी रोकने की क्षमता होनी चाहिए, ताकि नमी लगातार बनी रहे. पीएच मान 5.8-6.5 के बीच की जमीन में अच्छा उत्पादन होता है.

खेती की तैयारी और खादउर्वरक

जमीन की 2-3 बार मिट्टी पलटने वाले हल या 3-4 देशी हल या ट्रैक्टर से जुताई करनी चाहिए. खेत को ढेलेरहित कर के भुरभुरा कर लेना अच्छा है. हर जुताई के बाद पाटा लगाना चाहिए.

सलाद के लिए खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद 15-20 ट्रौली प्रति हेक्टेयर डाल कर मिट्टी में मिला देनी चाहिए और कैमिकल उर्वरकों का इस्तेमाल इस तरह करना चाहिए कि नाइट्रोजन 120 किलोग्राम, 60 किलोग्राम फास्फेट और 80 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए.

खेत तैयार करते समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फेट व पोटाश की पूरी मात्रा को बोआई से पहले डालें. नाइट्रोजन की बाकी बची मात्रा को 2 बार में खड़ी फसल पर पत्तियों को 2-3 बार तोड़ने के बाद छिड़कना चाहिए. इस तरह से उपज अच्छी मिलती है.

बगीचों में 3-4 टोकरी देशी खाद डाल कर यूरिया 600 ग्राम, 300 ग्राम फास्फेट और 200 ग्राम पोटाश 8-10 वर्गमीटर में डालना चाहिए और यूरिया की आधी मात्रा फसल के बड़ी होने पर यानी 15-20 दिन के अंतराल से 2 बार में छिड़कना चाहिए.

ये भी पढ़ें- आम पौधे की खास रोपाई तकनीक

ध्यान रहे कि यूरिया की दूसरी मात्रा पत्तियों के तोड़ने के तुरंत बाद छिड़कनी चाहिए. इस तरह हरी पत्तियां बाद तक मिलती हैं और अधिक मिलती?हैं.

प्रमुख जातियां

सलाद की मुख्य जातियां, जिन को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा बोने की सिफारिश की जाती है क्योंकि इन प्रजातियों के इस्तेमाल से अधिक मात्रा में पत्तियां और मुलायम तना मिलता है:

ग्रेट लेकस, चाइनीज यलो, स्लोवाल्ट हैं.

 बोने का समय और दूरी

सलाद की बोआई के पहले पौधशाला में पौध तैयार करते हैं. जब पौध 5-6 हफ्ते की हो जाती है तो खेत में रोप दिया जाता है.

अगस्तसितंबर माह में बीज लगाते हैं और रोपाई सितंबरअक्तूबर माह में की जाती है. कतारों से कतारों की दूरी 30 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 25 सैंटीमीटर रखते हैं.

 बीज की मात्रा

बीज की मात्रा 500-600 ग्राम प्रति हेक्टेयर काफी है. बीज को पौधशाला में क्यारियां बना कर पौध तैयार करनी चाहिए और बड़ी पौध को लाइन में लगाना चाहिए.

 बीमारी और रोकथाम

पाउडरी मिल्ड्यू : इस रोग में सब से पहले पत्तियों पर हलके हरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. पत्तियों के निचले भाग में ये धब्बे ज्यादातर दिखते हैं. रोकथाम के लिए अगेती फसल बोनी चाहिए और रोगी पौधों को उखाड़ देना चाहिए. ज्यादा बीमारी होने पर फंजीसाइड का इस्तेमाल करना चाहिए.

मोजैक : ये रोग वायरस द्वारा फैलता है. इस का असर पौध पर ज्यादा होता है और पत्तियों पर इस का प्रकोप होता है. पत्ते व पौधे हलके पीले पड़ जाते हैं. नियंत्रण के लिए बीज को उपचारित कर के बोना चाहिए. रोगी पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिए.

ये भी पढ़ें- नर्सरी से राजाराम की बदली जिंदगी

 रोगों से बचाव

सलाद की फसल पर ज्यादा कीट नहीं लगते, लेकिन कभीकभार एफिड का हमला होता है जो कि ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. नियंत्रण के लिए जिन पौधों पर कीट लगे हों, उन्हें उखाड़ कर जला देना चाहिए. इन कीटों का अधिक हमला होने पर 0.1 फीसदी मैटासिस्टौक्स या मैलाथियान का घोल बना कर 10-10 दिन के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करना चािहए. इस के बाद इन कीटों का हमला रुक जाता है.

सावधान रहें कि दवा छिड़कने के बाद पत्तियों को ठीक तरह से धो कर इस्तेमाल में लाएं.

ये भी पढ़ें- अक्तूबर माह में करें खेती के खास काम

 सिंचाई व खरपतवार पर नियंत्रण

सलाद के खेत की सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए. इस के बाद 10-12 दिन के अंतर से सिंचाई करनी चाहिए. फसल में नमी का होना बहुत जरूरी है. सिंचाई के तुरंत बाद निकाईगुड़ाई करते हैं और घास व खरपतवारों को निकाल देना चाहिए.

सलाद की कटाई

सलाद की फसल जब बड़ी हो जाए तो जरूरत के मुताबिक मुलायम पत्तियों को तोड़ते रहना चाहिए जिस से कि पत्तियां कड़ी न होने पाएं. कड़ी पत्तियों में पोषक तत्त्वों की मात्रा कम हो जाती है और रेशे की मात्रा बढ़ जाती?है, इसलिए चाहिए कि तुड़ाई या कटाई का विशेष ध्यान रखें.

इस तरह से 2-3 दिन के अंतराल पर तुड़ाई करते रहना चाहिए. तुड़ाई या कटाई करते समय पत्तियों वाली शाखाओं को सावधानी से तोड़ना या काटना चाहिए. तुड़ाई हाथों से या कटाई तेज चाकू या हंसिया से करनी चाहिए.

पत्तियों की पैदावार

सलाद की पत्तियों की पैदावार 125-150 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और 600-700 बीज प्रति हेक्टेयर हासिल होती है.

प्राइवेट सैक्टर में भी नौकरियां कम

रेलवे भरती बोर्ड के अब तक के सब से बड़े भरती अभियान के तहत सी और डी ग्रेड की तकरीबन एक लाख नौकरियों के लिए आए 2 करोड़ नौजवानों के एप्लीकेशन फौर्म देश में बढ़ रही बेरोजगारी की तसवीर पेश करने के लिए काफी हैं.

इन आंकड़ों की भयावह सचाई यह है कि हाईस्कूल हायर सैकंडरी योग्यता के आधार पर मिलने वाली इन नौकरियों के लिए मास्टर डिगरी के साथसाथ पीएचडी डिगरीधारी बेरोजगारों ने भी आवेदन किया था.

राजग सरकार ने नौजवानों को हर साल 2 करोड़ रोजगार देने का चुनावी वादा जरूर किया था, पर इस वादे को निभाने में वह बुरी तरह नाकाम रही है.

सरकार के तकरीबन 5 साल के कार्यकाल में रोजगार के मोरचे पर लड़खड़ाहट साफ दिख रही है.

सरकार बेरोजगारी की समस्या का समाधान केवल जुमलेबाजी से कर के ओस की बूंदों से प्यास बुझाने की नामुमकिन कोशिश कर रही है. सरकारी आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो आज केंद्र और राज्य सरकारों के तकरीबन 29 लाख पद खाली हैं.

ये भी पढ़ें- नशाखोरी: सुरा प्रेम में अव्वल भारत

लाखों बेरोजगारों को रोजगार देने का सपना दिखाने वाली केंद्र सरकार और राज्य सरकारें पैसा बचाने के लिए इन पदों पर भरती नहीं कर रही है. ऐसे में हाल के दिनों में संसद में पास हुआ 10 फीसदी सवर्ण आरक्षण का कानून बेरोजगारों के साथ कैसे इंसाफ कर पाएगा?

सरकार के खजाने में नौकरियों के लिए पैसा नहीं है कि सरकार में बिठा कर उन्हें फालतू की नौकरी दे दे और उद्योगधंधे उस तरह पनप नहीं रहे हैं कि सारे बेरोजगारों को खपा लें.

आज बेरोजगारों की समस्या केवल सरकारी नौकरियों के कम होने की वजह से नहीं है, बल्कि प्राइवेट सैक्टर में कम होती नौकरियों की वजह से भी विकराल होती जा रही है.

प्राइवेट सैक्टर में रोजगार के मौके कम होने की सब से बड़ी वजह प्रोसैस आटोमेशन है. आज प्राइवेट कंपनियां भी अपने खर्चों को कम करने पर ज्यादा जोर दे रही हैं. नतीजतन, रोबोटिक प्रोसैस आटोमेशन के जरीए मानव श्रम का योगदान कम होता जा रहा है.

रोबोटिक प्रोसैस आटोमेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जो नित्य क्रियाओं को भी बिना इनसानी दखलअंदाजी के करने में सक्षम है, तो कम लोग ज्यादा काम कर पा रहे हैं इसलिए प्राइवेट सैक्टर में खासकर इन्फौर्मेशन टैक्नोलौजी में बड़े लैवल पर नौकरियों में छंटनी हो रही है.

नोटबंदीजीएसटी की मार

दरअसल, पिछले कुछ सालों के दौरान राजग सरकार की 2 चीजों ने व्यापारियों द्वारा धंधों और उद्योगों में पैसा लगाने पर रुकावट पैदा की है.

सरकार का हमारी जिंदगी में बढ़ता दखल इस का आम लोगों के साथ व्यापारी की जोखिम लेने की ताकत पर असर डालता है. आधार लिंकिंग की जरूरत, नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदमों से खरीदार और बाजार के सैंटीमैंट खराब हुए हैं. इस दौरान सरकार का खजाना खाली होने की वजह से खर्च पर आमदनी काफी कम हो गई है.

सरकार का जनहित के कामों में खर्च बाजार को एक सीमा तक रफ्तार देता है. इकोनौमी को निजी निवेश से रफ्तार मिलती है. पिछले कुछ सालों के दौरान निजी निवेश में इजाफा देखने को नहीं मिल रहा है.

साल 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद देश में नौकरियों में तो गिरावट आई ही है, साथ ही लघु और मझोले उद्योगों के मुनाफे में भी गिरावट आई है. यह बात अखिल भारतीय उत्पादक संघ के एक सर्वे में सामने आई है.

इस संघ ने देशभर में व्यापारियों और लघु व मझोले उद्यमों की 34,700 इकाइयों के सैंपलों की जांच की है. पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु, कर्नाटक, असम, महाराष्ट्र, हैदराबाद, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों में किए गए इस सर्वे में इस बात का खुलासा किया गया है कि ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्किल इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’, ‘स्टार्ट अप इंडिया’, ‘नोटबंदी’ और ‘जीएसटी’ जैसे कदमों, लघु और मझोले उद्योगों के नए वर्गीकरण और ओला, उबर, फ्लिपकार्ट व अमेजन जैसी विदेशी कंपनियों के व्यवसाय के बावजूद बेरोजगारी की दर तेजी से बढ़ रही है.

ये भी पढ़ें- अमेरिका में तेजी से बढ़ रही है नास्तिकता

एसोचैम यानी इंडस्ट्री ऐंड कौमर्स एसोसिएशन भी मानता है कि बी श्रेणी के बिजनैस स्कूलों को अपने छात्रों को रोजगार दिलाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

संगठन के मुताबिक, महंगी पढ़ाई करने के बावजूद भी महज 20 फीसदी छात्रों को ही रोजगार मिल पा रहा है.

बेरोजगारी के ताजा आंकड़ों को देखते हुए एसोचैम ने कहा कि नवंबर, 2016 में नोटबंदी के ऐलान, जीएसटी लागू होने के बाद कमजोर कारोबारी सोच और नई परियोजनाओं में गिरावट के चलते इन बिजनैस स्कूलों के छात्रों के लिए रोजगार के मौके कम हो रहे हैं.

एसोचैम के मुताबिक, बिजनैस स्कूलों और इंजीनियरिंग कालेजों के छात्रों को मिलने वाली तनख्वाह पेशकश में भी पिछले साल की तुलना में 40-45 फीसदी की कमी आई है.

आल इंडिया काउंसिल फौर टैक्निकल ऐजूकेशन के आंकड़ों के मुताबिक, 2016-17 के दौरान देश में 50 फीसदी से ज्यादा एमबीए ग्रेजुएटों को बाजार में नौकरी नहीं मिल सकी.

गौरतलब है कि देश में तकरीबन 5,000 एमबीए इंस्टीट्यूटों से 2016-17 के दौरान तकरीबन 2 लाख ग्रेजुएट निकले लेकिन इन में से ज्यादा के लिए जौब मार्केट में नौकरी मौजूद नहीं थी.

यही हाल बीते साल देश के इंजीनियरिंग कालेजों का रहा जिस के असर से इस साल इंजीनियरिंग कालेजों में दाखिले का दौर खत्म होने के बाद भी आधी से ज्यादा सीटें खाली रह गई हैं.

भाजपा के दिग्गज नेता और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रह चुके यशवंत सिन्हा के मुताबिक, नोटबंदी फेल होने व गलत तरीके से जीएसटी लागू करने से आज कारोबारियों के बीच खौफ का माहौल बन गया है.

लाखों लोग इस वक्त बेरोजगार हो गए हैं. औद्योगिक उत्पादन का बुरा हाल है, कृषि क्षेत्र परेशानी में है, बड़ी तादाद में रोजगार देने वाला मैन्यूफैक्चरिंग सैक्टर भी संकट में है.

सरकार ने यह काम लगता है पुरोहितों से पूछ कर यज्ञों की तरह करे हैं कि इन से कल्याण होगा, पर धनधान्य केवल साधुओं यानी सरकारी बाबुओं को मिला.

विदेशों में कम नौकरियां

विदेशों में भी नौकरियों के हाल अच्छे नहीं हैं क्योंकि हर देश आजकल वीजा संबंधी नियमों को मुश्किल बना कर नौजवानों की कामयाबी की राह में रोड़ा अटका रहे हैं.

दक्षिण अफ्रीका की एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम कर रहे मध्य प्रदेश के जितेंद्र दीक्षित बताते हैं कि टीसीएस, इंफोसिस, टैक महिंद्रा, विप्रो जैसी नामचीन भारतीय आईटी कंपनियों का तकरीबन 60 फीसदी राजस्व अमेरिका से आता है.

अमेरिकी सरकार द्वारा गैरप्रवासियों को 6 साल तक काम करने के लिए एच 1 बी वीजा जारी किया जाता है. अमेरिका में काम कर रहे कुल एच 1 बी वीजा धारकों में से 70 फीसदी भारतीय हैं.

अप्रैल, 2019 से अमेरिका की ट्रंप सरकार वीजा नियमों में बदलाव कर केवल अमेरिका और चीन जैसे देशों से उच्च शिक्षा वाले नौजवानों को ही यह वीजा जारी करने का नियम लागू करना चाहती है.

इस बदलाव से भारतीय इंजीनियर और कंपनियां तो प्रभावित होंगी ही, इस के अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी. ऐसे में भारतीय नौजवानों को विदेशों में मिलने वाली नौकरियों में छंटनी होना तय है.

ये भी पढ़ें- महिलाएं डर कर नहीं, खुल कर जियें : ललित अग्रवाल

वर्तमान हालत को देख कर यह नहीं लगता है कि केवल आरक्षण की बैसाखी का सहारे दे कर बेरोजगारी पर कंट्रोल पाया जा सकता है. केंद्र और राज्य सरकारों को वोट बैंक की राजनीति के बजाय अच्छी रोजगार नीतियां पैदा करने के मौके मुहैया कराने होंगे.

मेरा संसार : भाग 1

लेखक: अमिताभ श्रीवास्तव

प्यार की किश्ती में सवार मैं समझ नहीं पा रहा था कि मेरा साहिल कौन है, रचना या ज्योति? एक तरफ रचना जो सिर्फ अपने बारे में सोचती थी. दूसरी ओर ज्योति, जिस की दुनिया मुझ तक और मेरी बेटी तक सीमित थी.

आज पूरा एक साल गुजर गया. आज के दिन ही उस से मेरी बातें बंद हुई थीं. उन 2 लोगों की बातें बंद हुई थीं, जो बगैर बात किए एक दिन भी नहीं रह पाते थे. कारण सिर्फ यही था कि किसी ऐसी बात पर वह नाराज हुई जिस का आभास मुझे आज तक नहीं लग पाया. मैं पिछले साल की उस तारीख से ले कर आज तक इसी खोजबीन में लगा रहा कि आखिर ऐसा क्या घट गया कि जान छिड़कने वाली मुझ से अब बात करना भी पसंद नहीं करती?

कभीकभी तो मुझे यह भी लगता है कि शायद वह इसी बहाने मुझ से दूर रहना चाहती हो. वैसे भी उस की दुनिया अलग है और मेरी दुनिया अलग. मैं उस की दुनिया की तरह कभी ढल नहीं पाया. सीधासादा मेरा परिवेश है, किसी तरह का कोई मुखौटा पहन कर बनावटी जीवन जीना मुझे कभी नहीं आया. सच को हमेशा सच की तरह पेश किया और जीवन के यथार्थ को ठीक उसी तरह उकेरा, जिस तरह वह होता है.

यही बात उसे पसंद नहीं आती थी और यही मुझ से गलती हो जाती. वह चाहती है दिल बहलाने वाली बातें, उस के मन की तरह की जाने वाली हरकतें, चाहे वे झूठी ही क्यों न हों, चाहे जीवन के सत्य से वह कोसों दूर हों. यहीं मैं मात खा जाता रहा हूं. मैं अपने स्वभाव के आगे नतमस्तक हूं तो वह अपने स्वभाव को बदलना नहीं चाहती. विरोधाभास की यह रेखा हमारे प्रेम संबंधों में हमेशा आड़े आती रही है और पिछले वर्ष उस ने ऐसी दरार डाल दी कि अब सिर्फ यादें हैं और इंतजार है कि उस का कोई समाचार आ जाए.

जीवन को जीने और उस के धर्म को निभाने की मेरी प्रकृति है अत: उस की यादों को समेटे अपने जैविक व्यवहार में लीन हूं, फिर भी हृदय का एक कोना अपनी रिक्तता का आभास हमेशा देता रहता है. तभी तो फोन पर आने वाली हर काल ऐसी लगती हैं मानो उस ने ही फोन किया हो. यही नहीं हर एसएमएस की टोन मेरे दिल की धड़कन बढ़ा देती हैं, किंतु जब भी देखता हूं मोबाइल पर उस का नाम नहीं मिलता.

मेरी इस बेचैनी और बेबसी का रत्तीभर भी उसे ज्ञान नहीं होगा, यह मैं जानता हूं क्योंकि हर व्यक्ति सिर्फ अपने बारे में सोचता है और अपनी तरह के विचारों से अपना वातावरण तैयार करता है व उसी की तरह जीने की इच्छा रखता है. मेरे लिए मेरी सोच और मेरा व्यवहार ठीक है तो उस के लिए उस की सोच और उस का व्यवहार उत्तम है. यही एक कारण है हर संबंधों के बीच खाई पैदा करने का. दूरियां उसे समझने नहीं देतीं और मन में व्यर्थ विचारों की ऐसी पोटली बांध देती है जिस में व्यक्ति का कोरा प्रेममय हृदय भी मन मसोस कर पड़ा रह जाता है.

ये भी पढ़ें- वह बेमौत नहीं मरता

जहां जिद होती है, अहम होता है, गुस्सा होता है. ऐसे में बेचारा प्रेम नितांत अकेला सिर्फ इंतजार की आग में झुलसता रहता है, जिस की तपन का एहसास भी किसी को नहीं हो पाता. मेरी स्थिति ठीक इसी प्रकार है. इन 365 दिनों में एक दिन भी ऐसा नहीं गया जब उस की याद न आई हो, उस के फोन का इंतजार न किया हो. रोज उस से बात करने के लिए मैं अपने फोन के बटन दबाता हूं किंतु फिर नंबर को यह सोच कर डिलीट कर देता हूं कि जब मेरी बातें ही उसे दुख पहुंचाती हैं तो क्यों उस से बातों का सिलसिला दोबारा प्रारंभ करूं?

हालांकि मन उस से संपर्क करने को उतावला है. बावजूद उस के व्यवहार ने मेरी तमाम प्रेमशक्ति को संकुचित कर रख दिया है. मन सोचता है, आज जैसी भी वह है, कम से कम अपनी दुनिया में व्यस्त तो है, क्योंकि व्यस्त नहीं होती तो उस की जिद इतने दिन तक तो स्थिर नहीं रहती कि मुझ से वह कोई नाता ही न रखे. संभव है मेरी तरह वह भी सोचती हो, किंतु मुझे लगता है यदि वह मुझ जैसा सोचती तो शायद यह दिन कभी देखने में ही नहीं आता, क्योंकि मेरी सोच हमेशा लचीली रही है, तरल रही है, हर पात्र में ढलने जैसी रही है, पर अफसोस वह आज तक समझ नहीं पाई.

मई का सूरज आग उगल रहा है. इस सूनी दोपहर में मैं आज घर पर ही हूं. एक कमरा, एक किचन का छोटा सा घर और इस में मैं, मेरी बीवी और एक बच्ची. छोटा घर, छोटा परिवार. किंतु काम इतने कि हम तीनों एक समय मिलबैठ कर आराम से कभी बातें नहीं कर पाते. रोमी की तो शिकायत रहती है कि पापा का घर तो उन का आफिस है. मैं भी क्या करूं? कभी समझ नहीं पाया. चूंकि रोमी के स्कूल की छुट्टियां हैं तो उस की मां ज्योति उसे ले कर अपने मायके चली गई है.

ये भी पढ़ें- ऐसे ढोंगी बाबा यहां मिलेंगे!

पिछले कुछ वर्षों से ज्योति अपनी मां से मिलने नहीं जा पाई थी. मैं अकेला हूं. यदि गंभीरता से सोच कर देखूं तो लगता है कि वाकई मैं बहुत अकेला हूं, घर में सब के रहने और बाहर भीड़ में रहने के बावजूद. किंतु निरंतर व्यस्त रहने में उस अकेलेपन का भाव उपजता ही नहीं. बस, महसूस होता है तमाम उलझनों, समस्याओं को झेलते रहने और उस के समाधान में जुटे रहने की क्रियाओं के बीच, क्योंकि जिम्मेदारियों के साथ बाहरी दुनिया से लड़ना, हारना, जीतना मुझे ही तो है.

हत्यारी मां

शनिवार, 18 मई की आधी रात से ज्यादा बीत चुकी थी. कोटा के बोरखेड़ा इलाके की सरस्वती कालोनी में निस्तब्धता छाई थी जिसे रहरह कर भौंकते कुत्तों की आवाज भयावह बना रही थी. कालोनी की गली नंबर 4 गहरे अंधेरे में डूबी हुई थी. गली में स्ट्रीट लाइट्स थीं, लेकिन एक भी लाइट रोशन नहीं थी. गली के मोड़ पर स्थित मकान नंबर 17 पर लिखा था, शुभम कुंज. बरामदे से आ रही मैली रोशनी में नाम पढ़ पाना मुश्किल था.

इस दोमंजिले मकान में सामने प्रथम तल के हिस्से में पहले बरामदा था, जिस में मद्धिम सी लाइट जल रही थी. उस के बाद बेडरूम था, जिस में गहरा अंधेरा था.

बेडरूम में अलगअलग पलंग पर कैलाबाई, सीताराम और दीपिका सोए थे. दीपिका के पास उस का 5 महीने का बेटा शिवाय भी सोया था.

लगभग 3 बजे टौयलेट जाने के लिए उठे सीताराम ने लाइट जलाई तो उस का दिमाग झनझना कर रह गया. दीपिका की बगल में लेटा 5 महीने का बेटा शिवाय गायब था. जबकि दीपिका गहरी नींद में सो रही थी.

सीताराम को हैरानी हुई कि बच्चा गायब है और नींद में गाफिल दीपिका को पता तक नहीं कि बच्चा कहां है. सीताराम की समझ में नहीं आया कि 5 महीने का बच्चा कहां गया. उस ने चीखते हुए दीपिका और अपनी सास कैलाबाई को जगाया. दीपिका अलसाई सी उठी तो उस ने उसे झिंझोड़ते हुए पूछा, ‘‘शिवाय कहां है?’’

‘‘कहां है शिवाय?’’ दीपिका ने आंखें मलते हुए उसी का सवाल दोहराया तो सीताराम गुस्से से उबल पड़ा.

‘‘यही तो मैं तुम से पूछ रहा हूं. कहां है शिवाय?’’ सीताराम पत्नी पर बुरी तरह झल्लाया, ‘‘तुम उलटा मुझ से सवाल कर रही हो.’’

इधरउधर ताकती निरुत्तर दीपिका को सीताराम ने झिंझोड़ दिया, ‘‘अभी तक तुम्हारी खुमारी नहीं उतरी? मैं पूछ रहा हूं शिवाय कहां है? कहां है हमारा बच्चा?’’ इस के साथ ही सीताराम बिलख उठा.

इस के बाद दीपिका समझ गई कि बच्चा गायब है. उस ने रोतेरोते बिस्तर खंगाल लिया. जब शिवाय कहीं नजर नहीं आया तो उस की रुलाई फूट पड़ी, ‘‘मेरा लाल?’’

रात में चीखपुकार मची तो मकान में हड़कंप मच गया. मकान के पिछवाड़े रहने वाले किराएदार और निचले हिस्से में रहने वाले घर वाले भी ऊपर आ गए. जब उन लोगों को बात समझ में आई तो सभी हैरान रह गए कि 5 माह के बच्चे को कौन ले गया.

लोगों ने घर का कोनाकोना छान मारा तभी सीताराम को सास कैलाबाई की चीख सुनाई दी, ‘‘अरे बेटा, गजब हो गया.’’ आवाज छत से आई थी. सीताराम घर वालों के साथ छत पर गया. कैलाबाई बिलखती हुई पानी की टंकी तरफ इशारा कर रही थी, ‘‘अरे मुन्ना तो यहां पड़ा है.’’

बदहवास सीताराम पानी की टंकी की तरफ दौड़ा. टंकी का ढक्कन खुला हुआ था और शिवाय पानी में डूबा हुआ था. बच्चे को पानी में डूबा देख कर सीताराम के रोंगटे खड़े हो गए. गुस्से से पूरा बदन सुलग उठा.

ये भी पढ़ें- वाचाल औरत की फितरत

सीताराम ने जल्दी से बच्चे को टंकी से निकाला और अपने घर वालों के साथ जेके लान अस्पताल की तरफ दौड़ा. डाक्टरों ने बच्चे का इलाज शुरू किया भी. लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका. नि:संदेह मामला हत्या का था. मैडिको लीगल केस होने की वजह से डाक्टरों ने इस की इत्तला पुलिस को दे दी.

बोरखेड़ा के थानाप्रभारी हरेंद्र सोढ़ा सूचना मिलते ही छानबीन के लिए अस्पताल पहुंच गए. डाक्टरों ने संदेह व्यक्त किया कि बच्चे को संभवत: गला दबाने के बाद पानी की टंकी में डाला गया होगा.

इंसपेक्टर सोढ़ा बच्चे के शव को देख कर हैरान रह गए. 5 माह के बच्चे के साथ यह क्रूरतम अपराध था. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजना चाहा तो घर वाले अड़ गए. लेकिन सीआई सोढ़ा ने उन्हें समझाया कि मामला हत्या का है, इसलिए पोस्टमार्टम जरूरी है.

आखिरकार परिजन मान गए. पुलिस ने मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने के बाद शव घर वालों को सौंप दिया. पुलिस ने बच्चे के पिता सीताराम की रिपोर्ट पर हत्या का केस दर्ज कर लिया.

थानाप्रभारी सोढ़ा ने वारदात की सूचना उच्च अधिकारियों को दे दी और सुबह 6 बजे अस्पताल से सरस्वती कालोनी पहुंच गए. तब तक एडिशनल एसपी राजेश मील और सीओ अमृता दुहन भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे.

सूचना मिलने पर एसपी दीपक भार्गव भी घटनाक्रम पर आ गए. क्राइम टीम और डौग स्क्वायड को भी बुला लिया गया था. टीम के साथ आए फोटोग्राफर ने मृत बच्चे के विभिन्न कोणों से फोटो लिए.

प्रशिक्षित कुत्ते को शिवाय के कपड़े सुंघा कर छोड़ा गया तो वह ट्रेनर के साथ एक पलंग के चारों तरफ घूमा और कमरे से सीधा निकल कर छत पर जाने वाली सीढि़यों की तरफ दौड़ा. सीढि़यां चढ़ कर वह पानी की टंकी के पास पहुंच कर रुक गया.

फोरैंसिक टीम ने 11 जगह से फिंगरप्रिंट उठाए. सीताराम के पलंग के अलावा छत पर रखी टंकियों से भी फिंगर प्रिंट उठाए गए. मकान की छत पर 4 टंकियां थीं.

उन में 3 काले रंग की और एक सफेद रंग की थी. शिवाय को कमरे के ठीक ऊपर रखी सफेद रंग की टंकी में डुबोया गया था. साढ़े 5 सौ लीटर की यह टंकी 80 प्रतिशत भरी हुई थी.

पुलिस अधिकारियों ने मकान के बाहर और बरामदे में लगे 2 सीसीटीवी  कैमरों को भी देखा. लेकिन उस में कोई भी बाहरी शख्स दिखाई नहीं दिया. पुलिस इस मुददे पर संशय में ही रही कि कमरे की कुंडी भीतर से बंद थी या नहीं. बैडरूम का दरवाजा गैलरी की तरफ खुलता था. लगभग 4 फीट की गैलरी में बाथरूम और टौयलेट था.

पुलिस अधिकारियों ने झांक कर देखा, लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिस से यह आभास होता कि हत्यारा कहीं छिप कर बैठा रहा होगा. गैलरी से सीढि़यां नीचे भी जाती थीं और छत पर भी.

नीचे जाने वाली सीढि़यों पर उतरने के लिए दरवाजा खोलना पड़ता था. चूंकि कैमरों में कुछ नहीं मिला था, इस दरवाजे पर संदेह करना व्यर्थ था. छानबीन के दौरान पुलिस एक ही नतीजे पर पहुंची कि बैडरूम में दीपिका, सीताराम और कैलाबाई ही थे. यानी बाहर का कोई व्यक्ति नहीं आया था.

पुलिस ने मृत शिवाय की मौसी रत्ना गौड़ से पूछताछ की, जो ग्राउंड फ्लोर पर रहती थी. रत्ना गौड़ की बातों से कई चौंकाने वाली बातें पता चलीं. मसलन, शिवाय सीताराम दंपति का पहला बेटा नहीं था. उन के यहां शिवाय से पहले भी 2 संतानें हुई थीं, वह भी बेटे. रत्ना का कहना था पहले बेटे की मौत श्वास नली में दूध चले जाने से हुई और दूसरे बेटे के दिल में छेद था.

यही उस की मौत का कारण बना. रत्ना ने बताया कि 2 बच्चों की मौत के बाद दीपिका गुमसुम सी रहने लगी थी. रत्ना ने यह भी बताया कि उस का किसी से मिलनाजुलना भी नहीं के बराबर था.

सीताराम ने बताया कि उस की सास कैलाबाई गांव में रहती थीं. नाती को देखने और संभालने के लिए वह अकसर आती जाती रहती थीं. फिलहाल भी कैलाबाई इसीलिए आई हुई थीं. कैलाबाई भी उन के कमरे में भी सोई हुई थीं.

बातचीत करने के बाद पूरा परिवार 10 बजे सो गया था. रात 11 बजे उस की नींद खुली तो दीपिका बच्चे को दूध पिला रही थी. पत्नी को यह कह कर मैं फिर सो गया कि मुन्ने को डकार दिला कर सुलाना. लेकिन रात 3 बजे नींद खुली तो कहतेकहते… सीताराम की हिचकियां बंध गईं.

घटना के बाद से दीपिका रोरो कर बेहाल थी. ऐसी स्थिति में उस पर शक करना बेमानी था. ऐसे गमगीन माहौल में एडिशनल एसपी राजेश मील को पूछताछ करना उचित नहीं लगा.

कोटा के बोरखेड़ा थानांतर्गत एक कालोनी है- सरस्वती कालोनी. इस कालोनी की गली नंबर 4 में स्थित 17 नंबर का मकान ‘शुभम कुंज’ रविरत्न गौड़ का है. रविरत्न गौड़ अपनी पत्नी कैलाबाई के साथ अंता कस्बे में रहते हैं.

उन के इस मकान में 2 बेटियों के परिवार और 2 किराएदार यानी 4 परिवार रह रहे थे. रविरत्न गौड़ की छोटी बेटी दीपिका अपने पति सीताराम के साथ इस मकान की पहली मंजिल पर सामने के हिस्से में रहती थी. सीताराम शिक्षक था. उस की तैनाती ग्रामीण क्षेत्र में थी.

दीपिका कोटा के महाराव भीमसिंह अस्पताल में टेक्नीशियन के पद पर काम कर रही थी. मकान के ग्राउंड फ्लोर पर दीपिका की बहन रत्ना गौड़ अकेली रहती थी. रविरत्न गौड़ और उन की पत्नी कैलाबाई जब कोटा आते थे तो रत्ना वाले हिस्से में ठहरते थे.

यह संयोग ही था कि घटना वाली रात को कैलाबाई कोटा आई हुई थीं. रात में दीपिका और दामाद के साथ बातचीत करते हुए 10 बज गए तो वह उन्हीं के कमरे में सो गईं.

सीताराम और दीपिका का विवाह 16 साल पहले 2003 में हुआ था. इस बीच उन के 2 बच्चे हुए और काल कवलित हो गए. इस घटना के दौरान दीपिका मातृत्व अवकाश पर थी जो अब खत्म होने को था. उसे सोमवार 20 अगस्त को ड्यूटी जौइन करनी थी. दीपिका ने जिस तरह सोशल मीडिया पर बेटे शिवाय के फोटो शेयर किए थे, उस ने पुलिस को काफी प्रभावित किया.

पुलिस के लिए हैरानी की बात यह थी कि रविवार 19 मई को 5 माह के मासूम की हत्या की खबर सोशल मीडिया पर तो तेजी से फैली लेकिन कालोनी की गली नंबर 4 में किसी को इस बात की भनक तक नहीं लगी थी.

पुलिस के संदेह के दायरे में 3 व्यक्ति थे- सीताराम, दीपिका और कैलाबाई. तीनों के मृतक शिवाय से रक्त संबंध थे. लेकिन तफ्तीश  के दौरान पुलिस को एक के बाद एक मिली जानकारियां दीपिका की तरफ इशारा कर रही थीं.

पूछताछ के दौरान थानाप्रभारी सोढ़ा को सीताराम की एक बात कील की तरह चुभ रही थी कि पिछले एक महीने से दीपिका का व्यवहार अचानक बदल गया था.

ये भी पढ़ें- आखिरी सेल्फी : भाग 2

पता नहीं क्यों वह इस बात की रट लगाए हुए थी कि मेरी छुट्टियां खत्म हो रही है. ड्यूटी पर जाऊंगी तो शिवाय को कैसे संभालूंगी. सीताराम के आश्वस्त करने के बाद भी वह फिर उसी ढर्रे पर आ जाती थी.

सीताराम के इस बयान से पुलिस के संदेह को बल तो मिला, लेकिन इस की पुष्टि एक निजी अस्पताल के रिकौर्ड से हुई. रिकौर्ड के मुताबिक करीब 20 दिन पहले भी दीपिका ने शिवाय का गला घोंटने का प्रयास किया था.

तब शिवाय निजी अस्पताल में करीब एक सप्ताह तक भरती रहा था. इस बीच पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. मैडिकल बोर्ड में शामिल डाक्टरों के मुताबिक दुपट्टे से बच्चे का गला घोंटने का प्रयास किया गया था. लेकिन इस से उस की मौत नहीं हुई थी.

बाद में उसे पानी की टंकी में डाला गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शिवाय के गले पर नीले निशान पाए गए थे.

पुलिस अधिकारियों ने दीपिका के व्यवहार को ले कर महाराव भीम सिंह अस्पताल में उस के साथ काम करने वाले सहकर्मियों से भी बातचीत की. लगभग सभी की एक ही प्रतिक्रिया थी कि दीपिका न केवल व्यवहार कुशल थी बल्कि अपने काम के प्रति भी पूरी तरह समर्पित थी.

सहकर्मियों का यह भी कहना था कि उस के व्यवहार से ऐसा कभी नहीं लगा कि वह मानसिक रूप से परेशान थी. अलबत्ता उसे अस्पताल से घर ले जाने  और लाने वाले आटो चालक ने इतना जरूर कहा कि यह बेहद गुस्सैल थी.

गुस्सा आने पर वह कुछ भी भला बुरा कहने से नहीं चूकती थी. अलबत्ता कुल मिला कर वह ठीकठाक थी. सहकर्मियों से ले कर आटो चालक के उत्तर से पुलिस अधिकारी उलझन में पड़ गए. तभी एसपी दीपक भार्गव ने अपनी पैनी निगाहों से समस्या के समाधान के लिए जांच को नई दिशा दी.

भार्गव साहब ने जांचकर्ताओं से कहा कि दीपिका का मोबाइल खंगालो. मोबाइल में पता चलेगा कि वो क्या देखती थी, उस का रुझान किस तरफ था. एसपी भार्गव का कहना था कि किसी की मानसिक  स्थिति की जानकारी लेने के लिए मोबाइल सब से अच्छा साधन हो सकता है.

इस का नतीजा काम का साबित हुआ. दीपिका के मोबाइल से एक चौंकाने वाला रहस्योदघाटन हुआ. पता चला कि फुरसत के वक्त वह हौरर फिल्में देखती थीं. रात को सब के सो जाने के बाद हौरर फिल्म देखने के लिए उस की आंखें मोबाइल की स्क्रीन पर गड़ी रहती थीं. घटना की रात भी वह हौरर फिल्म देखने के बाद सोई थी.

एडिशनल एसपी राजेश मील ने जब यह बात एसपी साहब को बताई तो उन का कहना था यह भी एक तरह का नशा है. नशे की झोंक में अपराध का जुनून सवार होता है. तब आदमी वैसा ही कुछ करने को उतारू हो जाता है, जैसा देखता है. एसपी साहब ने कहा कि दीपिका से मनोवैज्ञानिक ढंग से पूछताछ करने की कोशिश करो.

एडिशनल एसपी राजेश मील की देखरेख में पुलिस अधिकारियों अमृता दुलहन और हरेंद्र सोढ़ा ने दीपिका, उस के पति सीताराम और कैलाबाई को सामने बिठा कर दीपिका से पूछताछ शुरू की तो वह पहले ही सवाल पर उबल पड़ी. उस ने सवाल के बदले सवाल किया कि कोई मां अपने बेटे को कैसे मार सकती है?

गुस्से से उफनती हुई दीपिका पुलिस पर आरोप लगाने पर तुल गई, ‘‘आप मुझे बेवजह फंसाने की कोशिश कर रहे हैं.’’

उस का गुस्सा यही नहीं थमा, उस ने पति सीताराम को भी लपेटे में ले कर कहा, ‘‘यह सब तुम्हारी करनी है. याद रखना मुझे फंसाओगे तो तुम भी नहीं बचोगे.’’ सीताराम दीपिका के तानों से स्तब्ध रह गया. उस के मुंह से बोल तक नहीं फूटे.

सीओ अमृता दुहन जैसा चाहती थीं वैसा ही हुआ. दीपिका का गुस्सा बुरी तरह उफान पर था. अमृता दुहन ने मौका देख सवाल किया तो तीर निशाने पर लगा. उन्होंने पूछा, ‘‘20 दिन पहले शिवाय को क्या हुआ था, जो तुम ने उसे एक निजी अस्पताल में दाखिल कराया था?’’

गुस्से में उफनती दीपिका की जैसे घिग्घी बंध गई. लोहा गरम था, अमृता दुहन ने उसे फिर निशाने पर लिया, ‘‘तुम हौरर फिल्में देखती हो? घटना की रात तुम ने जो फिल्म देखी, उस में क्या बताया गया था.’’

गुस्से के मारे दीपिका का चेहरा सुर्ख हो गया. वह तड़प कर पुलिस अधिकारियों की तरफ मुड़ी और जहरीले लहजे में चिल्ला कर बोली, ‘‘हां, मैं ने ही मार दिया शिवाय को, नहीं है मुझे बच्चे पसंद… बच्चा चाहे किसी का भी हो मुझे किसी का बच्चा नहीं सुहाता…?’’

ये भी पढ़ें- साली की चाल में जीजा हलाल

सीताराम और कैलाबाई के चेहरे सफेद पड़ चुके थे. जबकि पुलिस अधिकारियों के चेहरों पर मुसकराहट थी. पुलिस ने शनिवार एक जून को दीपिका को अदालत में पेश किया जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

पुलिस के अनुसार इस वारदात के बाद पहले 2 बच्चों की मौतें भी संदेह के दायरे में आ गई हैं. उन की जांच की जा रही है.

सौजन्य: मनोहर कहानियां

ऐसे बनाएं नूडल्स कटलेट

सामग्री

– 1 पैकेट नूडल्स

– 1 कप गोभी कसी

– 1/2 कप चीज

– 1 प्याज कटा

– 1-2 हरीमिर्चें

– 3 बड़े चम्मच कौर्नफ्लोर

– तलने के लिए तेल

– नमक स्वादानुसार.

ये भी पढ़ें- मीठीमीठी दीवाली : दीवाली के त्योहार में व्यंजनों की बहार

विधि

1 पैकेट नूडल्स बिना मसाले के उबाल लें. इस में गोभी, चीज, प्याज, नमक व हरीमिर्च डाल कर अच्छी तरह मिला कर आटा तैयार कर बराबर भागों में बांट लें. मनपसंद आकार दें. व फिर कौर्नफ्लोर से डस्ट कर गरम तेल में शैलो फ्राई करें.

ये भी पढ़ें- दीवाली 2019: घर पर बनाएं हांडी पनीर

जानिए क्यों नहीं करना चाहिए अपने बेस्ट फ्रैंड से प्यार

अक्सर हर किसी के लाइफ में कोई न कोई बेस्ट फ्रैंड होता ही है. हम अपनी सारी बातें बेस्ट फ्रैंड से शेयर करते हैं, और ज्यादा समय उसी के साथ बिताना चाहते हैं. ऐसे में अगर बेस्ट फ्रैंड अपोजिट सैक्स का हो तो प्यार होने की संभावना ज्यादा होती है. लेकिन ये कतई जरूरी नहीं है कि अगर आप अपने बेस्ट फ्रेंड से प्यार करते हैं तो वो भी आपसे प्यार करें.

ऐसे में आपका दिल तो दुखेगा ही और इसके साथ ही आपकी दोस्ती भी इफेक्ट होती है. तो चलिए जानते हैं, बेस्ट फ्रेंड से प्यार क्यों नहीं करना चाहिए.

प्यार के कारण दोस्ती में भी दरार पड़ सकती है –  प्यार के कारण दोस्ती में भी दरार पड़ सकती है. ऐसा जरूरी नहीं है कि जैसा आप अपने बेस्ट फ्रेंड के बारे में सोच रहे हैं,  वे भी आपको लेकर वैसा ही महसूस करें. हो सकता है, वह आपको केवल बेस्ट फ्रैंड मानता हो या मानती हो. और उन्हें किसी और से प्यार हो जाएं तो यह भी आपके लिए एक दुख का कारण बन सकता है. इससे आपकी आपकी दोस्ती भी खराब हो सकती है.

आपको सलाह देने वाला कोई नहीं रहेगा – अपने लाइफ के सबसे अच्छे सलाहकार को खो सकते हैं. अगर आप परेशान होते हैं तो आपको समझाने वाला आपका बेस्ट फ्रैंड आपसे दूर चला जाएगा. आप दोनों के बीच हुई समस्या को सुलझाने वाला भी कोई नहीं रहेगा जिसकी वजह से आपका झगड़ा लंबे समय तक चल सकता है.

दोस्ती फिर पहले की तरह नहीं रहेगी – किसी भी  रिश्ते में गांठ पड़ जाती हैं तो बहुत मुश्किल होता है उस गांठ को सुलझाने में. वैसे ही आपकी दोस्ती का भी रिश्ता है. तो अगर आपके दोस्ती  में गाठ पड़ती हैं तो  फिर आपके लिए बहुत कठिन होगा उसे ठीक करना.

जी हां अगर आप अपने बेस्ट फ्रेंड को गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड बनाने के बारे में सोच रहें हैं तो आपको सबसे पहले अपनी दोस्ती के बारे में सोचना चाहिए, क्योंकि प्यार की वजह से आप अपने बेस्ट फ्रैंड को खो सकते हैं.

हर दिन पैदल चलें, सेहतमंद रहें

जिंदगी की भागदौड़ में हम लोग इतना बिजी हो गए हैं कि चलना तक भूल गए हैं जबकि यही चलना हमारी सेहतमंद जिंदगी की कुंजी है. पर हो उल्टा रहा है. बाजार जाना है तो गाड़ी चाहिए. डौक्टर से मिलना है तो भी बिना गाड़ी के नहीं हिलेंगे चाहें 2-3 किलोमीटर ही क्यों न जाना हो.

हमारे इस आलस और रोजाना न चलने की गलत आदत की वजह से हम अनजाने में बड़ी बीमारियों को न्योता दे देते हैं. सांस फूलना, स्ट्रोक, डाइबिटीज और यहां तक कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारी भी केवल न चलने के चलते हमें अपनी चपेट में ले सकती है.

ये भी पढ़ें- सावधान! दवाओं से अबौर्शन कराना हो सकता है खतरनाक

रोजाना पैदल चलने की वजह से न सिर्फ आप अपना वजन घटा सकते हैं, बल्कि मसल्स को भी मजबूत बना सकते हैं. हड्डियों और जौइंट्स को मजबूत कर सकते हैं. साथ ही, यह कसरत करने से न सिर्फ बेचैनी और तनाव कम होता है बल्कि डिप्रेशन से बाहर निकलने में भी मदद मिलती है.

क्या आप को पता है कि केवल 20 से 30 मिनट की वौक से मौत का खतरा 20 प्रतिशत तक कम हो सकता है? इस के लिए आप को दिनभर जिम में पसीना बहाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि एक नई स्टडी में खुलासा हुआ है कि हर दिन सिर्फ औसतन 22 मिनट पैदल चल कर आप अपनी सेहत में काफी सुधार कर सकते हैं.

अमेरिकन जर्नल औफ प्रिवेंटिन मेडिसिन में छपी इस स्टडी के नतीजे बताते हैं कि जो लोग हर दिन कम से कम 20 से 30 मिनट की वौकिंग करते हैं उन की मौत का खतरा उन लोगों से 20 प्रतिशत कम हो जाता है जो इस मामले में आलस कर जाते हैं.

ये भी पढ़ें- पिए नींबू पानी और रहें स्वस्थ

इस स्टडी को पूरा होने में तकरीबन 13 साल का वक्त लगा. स्टडी के लेखक ने अपने निष्कर्ष में लिखा, ‘पैदल चलना अपने आप में एक पूरी कसरत है. इस के लिए किसी तरह के उपकरण या साजोसामान या ट्रेनिंग की जरूरत नहीं होती है और इसे किसी भी उम्र का व्यक्ति आसानी से कर सकता है.’

तो फिर देरी किस बात की. तैयार हो जाइए चलने के लिए. हम तो कहते हैं कि कमर कस लीजिए और रोजाना कुछ मिनट पैदल चल कर अपनी जिंदगी को बीमारियों से दूर भगाइए.

‘सोशल मीडिया’ हो गया ‘एंटी सोशल’

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के डीएम आशुतोष निरंजन ने ट्विटर पर अपने दीवाली संदेश में लिखा ‘यह दीवाली प्रदूषण मुक्त मनाने के साथ साथ लोगों से पटाखों की जगह दीपक से उजाला करके एक स्वस्थ वातावरण से दीपावली मनाने की अपील करता हं’.  डीएम बस्ती की यह अपील सोशल मीडिया पर विरोधी मत वाले लोगों के निशाने पर आ गई. सोशल मीडिया पर लोगों ने डीएम बस्ती को ‘ट्रोल’ किया जाने लगा. सोशल मीडिया पर उनको तमाम तरह की सलाह दी जाने लगी. किसी ने उनको दीवाली पर ज्ञान देने की जगह बस्ती जिले की समस्याओं पर ध्यान देने के लिये कहा. तो किसी ने ऐसे संदेश ईद पर देने के लिये कहा. डीएम साहब का मामला था होने के बाद भी उनको जबरदस्त ‘ट्रोल’ किया गया.

यह बात केवल डीएम बस्ती की नहीं है सोशल मीडिया पर ‘ईको फ्रेंडली’ दीवाली मनाने का संदेश देते सभी मैसेजों के साथ ऐसे ही ‘ट्रोल’  किया गया. सोशल मीडिया पर ‘ट्रोल’  करने वालों ने ईद, बकरीद, क्रिसमस और नये साल पर ऐसे संदेश देने की चुनौती देते कहा गया कि ‘सारे प्रदूषण रोकने का ठेका हिन्दू त्योहारों में ही क्यों लिया जाता है?’ वैसे उत्तर प्रदेश की सरकार ने इस दीवाली मिटटी के दिये जलाने की अपील की. सरकार ने प्रदूषण और पटाखों को लेकर कोई बड़ी मुहिम नहीं चलाई. सोशल मीडिया से अलग इस बार स्कूल और दूसरे आयोजनों में प्रदूषण रहित दीवाली मनाने की मुहिम फीकी दिखी.

प्रदूषण रहित दीवाली को सोशल मीडिया पर लोगों ने धर्म से जोड़ दिया. उत्तर प्रदेश में धर्म एक बड़ा मुददा बन गया है. धार्मिक मसले सोशल मीडिया पर इस कदर हावी है कि दीवाली का प्रदूषण इसके लिये कोई मायने नहीं रखता. सोशल मीडिया पर धर्म का कट्टरपन अभी पूरी तरह से हावी है. ऐसे में दीवाली पर प्रदूषण रोकने के लिये पटाखे ना छुड़ाने की अपील पूरी तरह से फीकी नजर आई. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में दीपोत्सव मनाया और 5 लाख 51 हजार दीप जलाकर विश्व रिकार्ड बनाया. इस अवसर पर 14 मठ मंदिरों को करीब डेढ़ लाख दीपों से रोशन किया. इस अवसर पर सरयू तट पर आतिशबाजी करने की तैयारी की.

असल में उत्तर प्रदेश में धर्म का प्रभाव छाया हुआ है. यहां पर तर्क को कोई मतलब नहीं रह जाता है. धार्मिक आयोजन सरकारी आयोजन की तरह हो गये है. उत्तर प्रदेश में धार्मिक मुददो पर वोटिंग होती है. धर्म के खिलाफ किसी भी तर्क को ऐसे दबाव जाता है जिससे वह बात दोबारा उभर कर सामने ना आ सके. ऐसे में धर्म के खिलाफ तर्क रखने वालों को बुरी तरह से ट्रोल किया जाता है. उनको गालियां दी जाती है. ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि आज उनको सुविधाभोगी जीवन विज्ञान की वजह से मिला है. धर्म और पूजा पाठ से अगर अगर बिजली, सड़क, आवास मिल सकते तो लोग फैक्ट्री और उद्योग धंधे क्यों लगाते ?

‘‘हाउसफुल 4’’: पैसे की बर्बादी

रेटिंग: एक स्टार

निर्माताः साजिद नाड़ियाडवाला और फौक्स स्टार स्टूडियो

निर्देशकः फरहाद सामजी

कलाकारः अक्षय कुमार, बौबी देओल, रितेश देशमुख, कृति सैनन, कृति खरबंदा,  पूजा हेगड़े, चंकी पांडे, रंजीत, नवाजुद्दीन सिद्दिकी, जौनी लीवर व अन्य.

अवधिः दो घंटे 26 मिनट

सफलतम फ्रेंचाइजी को बार बार भुनाना गलत नही है, मगर सफल फ्रेंचाइजी के नाम पर दर्शकों को मूर्ख बनाते हुए कुछ भी उल जलूल परोसना शर्मनाक है. हर फिल्म फिर चाहे वह सफल फ्रेंचाइजी ही क्यों न हो, का मकसद दर्शकों का स्वस्थ मनोरंजन करना होता है. मगर सफल फ्रेंचाइजी ‘हाउसफुल’ की नई प्रस्तुति ‘‘हाउसफल 4’’ खरी नही उतरती. इस हास्य फिल्म में वही पुरानी कहानी को अति घटिया संवादों के साथ पेश कर दिया गया है.

कहानीः

लंदन में नाई की दुकान चला रहे हैरी (अक्षय कुमार) अपनी भूलने की आदत के चलते खतरनाक माफिया डान माइकल (मनोज पाहवा) के पांच मिलियन डौलर्स को कपड़े समझकर वाशिंग मशीन में धो देते है. बस तभी से माइकल, हैरी और उसके दोस्तों मैक्स (बौबी देओल) और रौय (रितेश देशमुख) की जान के पीछे पड़ जाते हैं. पैसों का जुगाड़ करने के लिए यह तीनों मिलकर अरबपति ठकराल (रंजीत) की तीनों खूबसूरत बेटियों कृति (कृति सेनन),  नेहा (कृति खरबंदा) और पूजा (पूजा हेगड़े) से शादी करने की योजना बनाते हैं. ठकराल के गले में एक नंगी औरत की तस्वीर है और वह हमेशा तीन अर्धनग्न लड़कियों के कंधे पर अपना हाथ रखे नजर आते हैं. खैर, ठकराल भी इस शादी के लिए रजामंद हो जाते हैं. ठकराल की यह तीनों बेटियां डिस्टीनेशन वेडिंग करना चाहती हैं. इसके लिए ग्लोबल मैप को घुमाकर जगह तय की जाती है और यह जगह आती है भारत में स्थित सितमगढ़. पता चलता है कि 1419 में सितमगढ़ रियासत थी और उसी रियासत का एक किला है, जो कि अब होटल में तब्दील हो चुका है. होटल का मैनेजर( जौनी लीवर) और बेल ब्वाय पास्ता (चंकी पांडे) है.

ये भी पढ़ें- ‘कसौटी जिंदगी के 2’ : क्या शादी से पहले अपना बच्चा खो देगी प्रेरणा

शादी की रस्म के लिए जब यह सभी लंदन से भारत के सितमगढ़ पहुंचते हैं, तो हैरी को याद आता है कि वह आज से तकरीबन 600 पहले अर्थात 1419 में सितमगढ़ का राजकुमार बाला देव सिंह था. उसे यह बात उसका विश्वासपात्र नौकर पास्ता (चंकी पांडे) याद दिलाता है. फिर कहानी 600 साल पहले चली जाती है. जब हैरी उर्फ बाला के सिर पर बाल नही थे. और किस तरह शादी के दिन ही दुश्मनों की चाल के चलते वह सब मारे गए थे. अतीत की कहानी खत्म होते ही हैरी को अहसास होता है कि इस जन्म में वह और उसके दोस्त अपने पूर्व जन्म की प्रेमिकाओं की बजाय अपनी पूर्व जन्म की भाभियों से शादी करने जा रहे हैं, तो वह अपने दोस्तों और उनकी प्रेमिकाओं को याद दिलाता है कि कैसे कृति पिछले जन्म में राजकुमारी मधु, रौय नृत्य के गुरु बांगड़ू,  मैक्स राजकुमारी का अंगरक्षक धरमपुत्र थे और नेहा राजकुमारी मीना, जबकि नेहा राजकुमारी माला थी. अब सभी सितमगढ़ पहुंच गए हैं, तो बाकी किरदार भी पहुंचेंगे ही तो 600 साल पहले के गामा (राणा दुगुबत्ती) अब कव्वाल पप्पू रंगीला और राघवन (शरद केलकर) भी इस जन्म में सितमगढ़ आ पहुंचते हैं. फिर शुरू होती है पिछले जन्म की बदले की कहानी को पूरा करने का खेल पर अंततः प्रेम की ही जीत होती है.

निर्देशनः

फिल्म का कुछ हिस्सा साजिद खान ने निर्देशित किया था,  मगर ‘‘मी टू’’ में साजिद खान के फंसने के बाद असफल फिल्म ‘‘इंटरटेनमेंट’’ के निर्देशक फरहाद सामजी ने इसका निर्देशन किया. फिल्म में वही किरदारों की अदला बदली का अति पुराना फार्मुला उपयोग कर लोगों को जबरन हंसाने का प्रयास किया गया है, पर दर्शकों को हंसी बजाय रोना आता है. इसमें ‘माइंडलेस कौमेडी’ के साथ कई घटिया, अति सतही व बचकाने पंच भी डाले पिरोए गए हैं. फिल्म का क्लायमेक्स भी बचकाना है. फिल्म के संवाद तो बहुत ही ज्यादा वाहियात हैं. अफसोस की बात यह है कि इसे छह लेखकों की फौज ने मिलकर लिखा है.

‘‘माइंडलेस कौमेडी” की कल्पना की पराकास्ठा यह है कि क्लायमेक्स में अक्षय कुमार के पिछवाड़े चार चार चाकू लगे हैं, पर खून नहीं निकलता और वह आगे बढ़ते रहते हैं. मगर कुछ देर बाद वह चाकू गायब भी हो जाते हैं. इतना ही नही हर कलाकार अष्लील हाव भाव करते हुए दर्शकों को हंसाने का असफल प्रयास करते हैं.

600 साल पुराना सितमगढ़ का किला 600 साल बाद भी उसी स्थिति में है. वाह..फिल्मकार की क्या कल्पना है. दर्शक सिनेमाघर से निकलते समय ही कहता रहता है कि ‘कहां फंसायो नाथ.’ कुछ दर्शक तो यह भी कहते सुने गए कि इस तरह की फिल्म बनाते समय निर्माता व कलाकारों का शर्म नहीं आयी.

ये भी पढ़ें- ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: जल्द ही सबके सामने खुलेगा वेदिका का राज, क्या करेगी नायरा ?

अभिनयः

फिल्म देखकर अहसास होता है, जैसे कि हर कलाकार के बीच प्रतिस्पर्धा चल रही है कि कौन सबसे घटिया/वाहियात अभिनय कर सकते है. हीरोईनों के हिस्से करने के लिए कुछ खास रहा ही नहीं. छोटे से किरदार में नवाजुद्दीन सिद्दिकी और जौनी लीवर जरुर अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

फेसबुक की दोस्ती का जंजाल: भाग 2

फेसबुक की दोस्ती का जंजाल: भाग 1

अब आगे पढ़ें

आखिरी भाग

पति की बात सुन कर वह बहुत खुश हुई. इस के 5-6 दिन बाद सुनीता के मोबाइल पर अंजान नंबर से काल आई. उस ने काल रिसीव की तो एक शख्स ने कहा, ‘‘क्या आप सुनीता आर्य बोल रही हैं?’’

सुनीता ने ‘हां’ कहा तो वह बोला, ‘‘फिनलैंड में आप के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है, गंभीर आपराधिक धारा लगी है. अब आप को कई साल जेल में गुजारने होंगे.’’

यह सुन कर सुनीता कांपने लगी, डरतेडरते उस ने कहा, ‘‘मगर मेरा कुसूर क्या है?’’

‘‘आप ने डेविड सूर्ययन द्वारा स्मलिंग का सोना भारत मंगवाने का षड्यंत्र रचा, उसे जब्त कर किया गया है. डेविड ने आप का नाम बताया है. जल्द ही कस्टम विभाग की टीम आप की गिरफ्तारी के लिए आ रही है.’’

यह सुन कर सुनीता के हाथपांव फूल गए वह घबराते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ करो. मैं ने कोई गलती नहीं की है. मेरा कोई कसूर नहीं है.’’

उधर से आवाज आई, ‘‘मैडम, आप लोग सच्चे हो या झूठे यह तो यहां की अदालत ही तय करेगी. मगर, मुझे आप एक भली महिला जान पड़ती हैं. इसलिए यदि आप चाहें तो आप की कुछ मदद कर सकता हूं.’’

‘‘हां भैया, मदद करो.’’ सुनीता गिड़गिड़ाई.

‘‘तो सुनो, मैं तुम्हारा नाम आरोपियों की सूची से हटा दूंगा. लेकिन इस के एवज में 5 लाख रुपए देने होंगे, वह भी आज ही.’’

डरीसहमी सुनीता ने स्वीकार कर लिया और उसी दिन बताए गए बैंक अकाउंट में 5 लाख रुपए ट्रांसफर कर दिए. इस के बाद उस की जान में जान आई. वह सोचने लगी कि दोस्ती कर के वह कहां, किस जाल में फंस गई. यह फेसबुक की दोस्ती तो उसे बहुत महंगी पड़ गई.

इस बीच सुनीता को फिर फोन आया. उसे डरायाधमकाया गया और कहा गया कि ऊपर के अफसरों का मुंह भी बंद करना है इसलिए और पैसे भेजो. इस तरह सुनीता ने बताए गए बैंक खातों में धीरेधीरे 44 लाख रुपए जमा करा दिए.

अब वह डरीसहमी सी रहती, जाने क्या होगा, मामला खत्म हो जाएगा या फिर उसे जेल हो जाएगी. यह सोचसोच कर उस का स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा. आखिरकार एक दिन उस ने पति चैतूराम को सारी बातें बता दीं और सुबकसुबक कर रोने लगी.

ये भी पढ़ें- मिठाई कारोबार में आई बहार

पत्नी के कारनामे सुन चैतूराम की आंखें फटी की फटी रह गईं. उन्होंने पत्नी को आश्वासन दिया और कहा कि तुम ने इतने पैसे ट्रांसफर कर दिए और मुझे बताया तक नहीं.

चैतूराम पढ़ेलिखे शख्स थे. उन्होंने पत्नी को भरोसा देते हुए कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो. मैं कल ही एसपी साहब से मिलूंगा.’’

‘‘इस से तो मैं खुद ही फंस जाऊंगी, मेरा क्या होगा?’’ सुनीता घबराते हुए बोली.

‘‘तुम बिलकुल चिंता न करो, तुम्हें कुछ नहीं होगा.’’ पति ने समझाया.

दूसरे दिन चैतूराम राजनांदगांव के एसपी कमल लोचन कश्यप के पास पहुंचे और उन्हें पत्नी के साथ घटी घटना की सारी जानकारी बता दी. चैतूराम की बात सुन कर एसपी समझ गए कि उन के साथ साजिशन ठगी हुई है. उन्होंने चैतूराम से कहा कि तुम लोगों को ठगा गया है. इसलिए तुम अभी कोतवाली जाओ और मामले की रिपोर्ट लिखाओ.

एसपी साहब के निर्देश पर चैतूराम पत्नी सुनीता को ले कर पहली दिसंबर, 2018 को लालबाग पहुंचे और कोतवाली प्रभारी एलेक्जेंडर कीरो से मिल कर उन्हें पूरी वस्तुस्थिति से अवगत कराया. कोतवाली प्रभारी ने सुनीता की तरफ से अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 66 , 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर उन का बयान दर्ज किया.

उन्होंने चैतूराम को बताया कि यह मामला किसी कस्टम पुलिस का कतई नहीं है. अगर कोई कस्टम फ्रौड होता तो पहले हमारे पास जानकारी आती.

कोतवाल एलेक्जेंडर कीरो ने एसपी कमल लोचन कश्यप के निर्देश पर एक टीम बना कर इस केस की जांच शुरू कर दी. जांच टीम ने सबसे पहले उन फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई, जिन नंबरों से सुनीता के पास काल आई थी.

जांच टीम ने जांच आगे बढ़ते ही चौंकाने वाले तथ्य सामने आते चले गए. जिस फोन नंबर से सुनीता को ठगा गया था, पुलिस ने उस पर काल की तो वह बंद मिला.

जांच में पता चला कि वह सिम दिल्ली से अपडेट होता रहा है. इस से यह बात सामने आ चुकी थी कि इस अपराध के तार दिल्ली से जुड़े हुए हैं. जिस अकाउंट में सुनीता आर्य ने पैसे ट्रांसफर किए थे, पुलिस उन लोगों तक पहुंच गई. इस के बाद तो मामला खुली किताब की तरह उजागर होता चला गया.

ठगों का जो मोबाइल फोन बंद चल रहा था, वह चालू हो गया. पुलिस ने जब उस नंबर पर बात की तो पता चला कि वह फोन नंबर झारखंड के रांची में रमन्ना नाम के व्यक्ति के पास है. पुलिस टीम रमन्ना के पास पहुंच गई. उस ने बताया कि इस नंबर का सिम कार्ड उसे दिल्ली में रहने वाले नाइजीरियन युवक स्टेनली ने बेचा था.

रमन्ना की निशानदेही पर पुलिस टीम दिल्ली स्थित 25 फुटा रोड चाणक्य पैलेस, नाइजीरियन कालोनी पहुंच गई. दिल्ली पुलिस के सहयोग से किबी स्टेनली ओकवो और नवाकोर एमानुएल को हिरासत में ले लिया. दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर पुलिस टीम राजनांद गांव लौट आई.

एसपी कमललोचन कश्यप भी ठगों की गिरफ्तारी की सूचना पर कोतवाली पहुंच गए. उन की मौजूदगी में दोनों आरोपियों से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उन्होंने बताया कि ठगी की घटना को अंजाम देने के बाद वह उस फोन नंबर को किसी को बेच दिया करते थे.

ये भी पढ़ें- अब नहीं मिलेगा खाने पर डिस्काउंट

वे लोग पहले लोगों से फेसबुक पर दोस्ती करते थे, इस के बाद ज्वैलरी, मोबाइल फोन, महंगे गिफ्ट भेजने का झांसा दे कर उन से मोटी ठगी करते थे. पुलिस ने दोनों आरोपियों से लगभग 5 लाख रुपए भी बरामद करने में सफलता प्राप्त की. उन दोनों ने काफी रकम बीते 7 माह में अय्याशी में उड़ा दी थी.

इस के अलावा पुलिस ने भारतीय स्टेट बैंक से पत्र व्यवहार कर के संपूर्ण राशि जब्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी. पुलिस ने दोनों आरोपियों से पूछताछ कर उन्हें 19 अगस्त, 2019 को स्थानीय न्यायालय में पेश किया जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

कथा संकलन तक ये शातिर ठग जेल में बंद थे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें