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बहू हो या बेटी : भाग 2

‘‘बेटा, जरूर इस के दिल को कोई सदमा लगा होगा, वक्त का मरहम इस के जख्म भर देगा. देख लेना, यह बिलकुल ठीक हो जाएगी.’’

‘‘तो करो न ठीक,’’ आदित्य व्यंग्य कसता, ‘‘आखिर कब तक ठीक होगी यह, कुछ मियाद भी तो होगी.’’

‘‘तू देखता रह, एक दिन सबकुछ ठीक हो जाएगा…पहले घर में बच्चे के रूप में खुशियां तो आने दे,’’ शारदा का विश्वास कम नहीं होता था.

पूरे घर में एक शारदा ही ऐसी थीं जो हिना के पक्ष में थीं, बाकी लोग तो हिना के नाम से ही बिदकने लगे थे.

शारदा अपने हाथों से फल काट कर हिना को खिलातीं, जूस पिलातीं, दवाएं पिलातीं, उस के पास बैठ कर स्नेह दिखातीं.

प्यार से तो पत्थर भी पिघल जाता है, फिर हिना ठहरी छुईमुई सी लड़की.

‘‘मांजी, आप मेरे लिए इतना सब क्यों कर रही हैं,’’ एक दिन पत्थर के ढेर से पानी का स्रोत फूट पड़ा.

हिना को सामान्य ढंग से बातें करते देख शारदा खुश हो उठीं, ‘‘बहू, तुम मुझ से खुल कर बातें करो, मैं यही तो चाहती हूं.’’

हिना उठ कर बैठ गई, ‘‘मैं अपनी जिम्मेदारियां ठीक से नहीं निभा पा रही हूं.’’

‘‘तुम मां बनने वाली हो, ऐसी हालत में कोई भी औरत काम नहीं कर सकती. सभी को आराम चाहिए, फिर मैं हूं न. मैं तुम्हारे बच्चे को नहलाऊंगी, मालिश करूंगी, उस के लिए छोटेछोटे कपडे़ सिलूंगी.’’

हिना अपने पेट में पलते नवजात शिशु की हलचल को महसूस कर के सपनों में खो जाती, और कभी शारदा से बच्चे के बारे में तरहतरह के प्रश्न पूछती रहती.

‘‘हिना ठीक हो रही है. देखो, मैं कहती थी न…’’ शारदा उत्साह से भरी हुई सब से कहती रहतीं.

आदित्य भी अब कुछ राहत महसूस कर रहा था और हिना के पास बैठ कर प्यार जताता रहता.

एक शाम आदित्य हिना के लिए जामुन खरीद कर लाया तो शारदा का ध्यान जामुन वाले कागज के लिफाफे की तरफ आकर्षित हुआ.

‘‘देखो, इस कागज पर बनी तसवीर हिना से कितनी मिलतीजुलती है.’’

आदित्य के अलावा घर के अन्य लोग भी उस तसवीर की तरफ आकर्षित हुए.

‘‘हां, सचमुच, यह तो दूसरी हिना लग रही है, जैसे हिना की ही जुड़वां बहन हो, क्यों हिना, तुम भी तो कुछ बोलो.’’

हिना का चेहरा उदास हो उठा, उस की आंखें डबडबा आईं, ‘‘हां, यह मेरी ही तसवीर है.’’

‘‘तुम्हारी?’’ घर के लोग आश्चर्य से भर उठे.

‘‘मैं ने कुछ समय मौडलिंग की थी. पैसा और शौक पूरा करने के लिए यह काम मुझे बुरा नहीं लगा था, पर आप लोग मेरी इस गलती को माफ कर देना.’’

‘‘तुम ने मौडलिंग की, पर मौडल बनना आसान तो नहीं है?’’

‘‘मैं अपने कालिज के ब्यूटी कांटेस्ट में प्रथम चुनी गई थी. फिर…’’

‘‘फिर क्या?’’ शारदा ने उस का उत्साह बढ़ाया, ‘‘बहू, तुम ब्यूटी क्वीन चुनी गईं, यह बात तो हम सब के लिए गर्व की है, न कि छिपाने की.’’

‘‘फिर इस कंपनी वालों ने खुद ही मुझ से कांटेक्ट कर के मुझे अपनी वस्तुओं के विज्ञापनों में लिया था,’’ इतना बताने के बाद हिना हिचकियां भर कर रोने लगी.

काफी देर बाद वह शांत हुई तो बोली, ‘‘मुझे एक फिल्म में सह अभिनेत्री की भूमिका भी मिली थी, पर मेरे पिताजी व ताऊजी को यह सब पसंद नहीं आया.’’

अब हिना की बिगड़ी मानसिकता का रहस्य शारदा के सामने आने लगा था.

हिना ने बताया कि उस के रूढि़वादी घर वालों ने न सिर्फ उसे घर में बंद रखा बल्कि कई बार उसे मारापीटा भी गया और उस के फोन सुनने पर भी पाबंदी लगा दी गई थी.

शारदा के मन में हिना के प्रति वात्सल्य उमड़ पड़ा था.

हिना के मौडलिंग की बात खुल जाने से उस के मन का बोझ हलका हो गया था. वह बोली, ‘‘मांजी, मुझे डर था कि आप लोग यह सबकुछ जान कर मुझे गलत समझने लगेंगे.’’

‘‘ऐसा क्यों सोचा तुम ने?’’

‘‘लोग मौडलिंग के पेशे को अच्छी नजर से नहीं देखते और ऐसी लड़की को चरित्रहीन समझने लगते हैं. फिर उस लड़की का नाम कई पुरुषों के साथ जोड़ दिया जाता है, मेरे साथ भी यही हुआ था.’’

‘‘बेटी, सभी लोग एक जैसे नहीं हुआ करते. आजकल तुम खुश रहा करो. खुश रहोगी तो तुम्हारा बच्चा भी खूबसूरत व निरोग पैदा होगा.’’

शारदा का स्नेह पा कर हिना अपने को धन्य समझ रही थी कि आज के समय में मां की तरह ध्यान रखने वाली सास भी है, वरना उस ने तो सास के बारे में कुछ और ही सुन रखा था.

नियत समय पर हिना ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया तो घर में खुशियों की शहनाई गूंज उठी.

हिना बेटे की किलकारियों में खो गई. पूरे दिन बच्चे के इतने काम थे कि उस के अलावा और कुछ सोचने की उसे फुरसत ही नहीं थी.

एक दिन शारदा की इस बात ने घर में विस्फोट जैसा वातावरण बना दिया कि हिना धारावाहिक में काम करेगी. पारस, मेरी सहेली के पति हैं और वह एक पारिवारिक धारावाहिक बना रहे हैं. उन्होंने हिना को कई बार देखा है और मेरे सामने प्रस्ताव रखा है कि आदर्श बहू की भूमिका वह हिना को देना चाहते हैं.

‘‘मां, तुम यह क्या कह रही हो. हिना को धारावाहिक में काम दिलवाओगी, वह कहावत भूल गईं कि औरत को खूंटे से बांध कर रखना चाहिए. एक बार औरत के कदम घर से बाहर निकल जाएं तो घर में लौटना कठिन रहता है,’’ आदित्य आक्रोश से उबल रहा था.

शारदा भी क्रोध से भर उठीं, ‘‘क्या मैं औरत नहीं हूं? पति के मरने के बाद मैं ने घर से बाहर जा कर सैकड़ों जिम्मेदारियां पूरी की हैं. मां बन कर तुम्हें जन्म दिया और बाप बन कर पाला है. सैकड़ों कष्ट झेले, पैसा कमाने को छोटीछोटी नौकरियां कीं, कठिन परिश्रम किया, तो क्या मैं ने अपना घर उजाड़ लिया? पुरुष तो सभी जगहों पर होते हैं, रूबी ताई भी तो दफ्तर में नौकरी कर रही है, क्या उस ने अपना घर उजाड़ लिया है. फिर हिना के बारे में ही ऐसा क्यों सोचा जा रहा है?

‘‘अगर तुम हिना को खूंटे से ही बांधना चाहते हो तो पहले मुझे बांधो, रूबी को बांधो. हिना का यही दोष है न कि वह सामान्य से कुछ अधिक ही खूबसूरत है, पर यह उस का दोष नहीं है. अरे, कोई खूबसूरत चीज है तो लोगों की नजरें उस तरफ उठेंगी ही.’’

शारदा के तर्कों के आगे सभी की जुबान पर ताले लग गए थे.

हिना शारदा की गोद में मुंह छिपा कर रो रही थी. फिर अपने आंसुओं को पोंछ कर बोली, ‘‘मां, तुम सचमुच मेरे लिए मेरा आदर्श ही नहीं बल्कि मां भी हो.’’

एक दिन जब हिना का धारावाहिक टेलीविजन पर प्रसारित हुआ तो उस के अभिनय की सभी ने तारीफ की और बधाइयां मिलने लगीं.

हिना उत्तर देती, ‘‘बधाई की पात्र तो मेरी सास हैं, उन्हीं ने मुझे डिप्रेशन से मुक्ति दिलाई और एक नया सम्मान से भरा जीवन दिया.’’

शारदा सिर्फ मुसकरा कर रह जातीं, ‘‘बहू हो या बेटी, दोनों ही एक हैं. दोनों के प्रति एक ही प्रकार से फर्ज निभाना चाहिए.’’

सीप में बंद मोती : भाग 2

सब चले गए तो अरुणा बिखरा घर सहेजने लगी और आलोक आरामकुरसी पर पसर गया. उस ने कनखियों से अरुणा को देखा, क्या सचमुच उसे  सुघड़ और बहुत अच्छी पत्नी मिली है? क्या सचमुच उस के दोस्तों को उस के जीवन पर रश्क है? उस के मन में अंतर्द्वंद्व सा चल रहा था. उसे अरुणा पर दया सी आई. 2 माह होने को हैं. उस ने अरुणा को कहीं घुमाया भी नहीं है. कभी घूमने निकलते भी हैं तो रात को.

अरुणा ने हैरानी से उसे देखा और फिर खामोशी से तैयार होने चल पड़ी.  थोड़ी देर में ही वह तैयार हो कर आ गई. जब वे नरेश के घर पहुंचे तो अंदर से जोरजोेर से आती आवाज से चौंक कर दरवाजे पर ही रुक गए. नरेश चीख रहा था, ‘‘यह घर है या नरक, मेरे जरूरी कागज तक तुम संभाल कर नहीं रख सकतीं. मुन्ने ने सब फाड़ दिए हैं. कैसी जाहिल औरत हो, कौन तुम्हें पढ़ीलिखी कहेगा?’’

‘‘जाहिल हो तुम,’’ सोनिया का तीखा स्वर गूंजा, ‘‘मैं तुम्हारी नौकरानी नहीं हूं जो तुम्हारा बिखरा सामान ही सारा दिन सहेजती रहूं.’’

बाहर खड़े अरुणा और आलोक संकुचित से हो उठे. ऐसे हालात में वे कैसे अंदर जाएं, समझ नहीं पा रहे थे. फिर आलोक ने  गला खंखार कर दरवाजे पर लगी घंटी बजाई. दरवाजा सोनिया ने खोला. बिखरे बाल, मटमैली सी सलवटों वाली साड़ी और  मेकअपविहीन चेहरे  में वह काफी फूहड़ और भद्दी लग रही थी. आलोक ने हैरानी से सोनिया को देखा. सोनिया संभल कर बोली, ‘‘आइए… आइए, आलोकजी,’’ और वह अरुणा का हाथ थाम कर अंदर ले आई.

उन्हें सामने देख नरेश झेंप सा गया और वह सोफे पर बिखरे कागजों  को समेट कर बोला, ‘‘आओ…आओ, आलोक, आज कैसे रास्ता भूल गए?’’

आलोक और अरुणा सोफे पर बैठ गए. आलोक ने नजरें घुमा कर देखा, सारी बैठक अस्तव्यस्त थी. बच्चों के खिलौने, पत्रिकाएं, अखबार, कपड़े इधरउधर पड़े थे. हालांकि नरेश के घर आलोक पहले भी आता था, पर अरुणा के आने के बाद वह पहली बार यहां आया था. इन 2 माह में ही अरुणा  के कारण व्यवस्थित रूप से सजेधजे घर में रहने से उसे नरेश का घर बड़ा ही बिखरा और अस्तव्यस्त लग रहा  था.

अनजाने ही वह सोनिया और अरुणा की तुलना करने लगा. सोनिया नरेश से किस तरह जबान लड़ा रही थी. घर भी कितना गंदा रखा हुआ है. स्वयं भी किस कदर फूहड़ सी बनी हुई है. क्या फायदा ऐसे मेकअप और लीपापोती का जिस के उतरते ही औरत कलईर् उतरे बरतन सी बेरंग, बेरौनक नजर आए.

इस  के विपरीत अरुणा कितनी सभ्य और सुसंस्कृत है. उस के साथ कितनी शालीनता से बात करती है. अपने सांवले रंग पर फबने वाले हलके रंग के कपड़े कितने सलीके से पहन कर जैसे हमेशा तैयार सी रहती है. घर भी कितना साफ रखती है. लोग जब उस के घर की तारीफ करते हैं तब गर्व से उस का सीना  भी फूल जाता है.

तभी सोनिया चाय और एक प्लेट में भुजिया लाई तो नरेश बोला, ‘‘अरे, आलोक और उस की पत्नी पहली बार घर आए हैं, कुछ खातिर करो.’’

‘‘अब घर में तो कुछ है नहीं. आप झटपट जा कर बाजार  से ले आओ.’’

‘‘नहीं…नहीं,’’ आलोक बोला, ‘‘इस समय कुछ खाने की इच्छा भी नहीं है,’’ मन ही मन वह सोच रहा था, अरुणा मेहमानों के सामने हमेशा कोई न कोई घर की बनी हुई चीज अवश्य रखती है. जो खाता है, तारीफ किए बिना नहीं रहता. कुछ देर बैठ कर आलोक और अरुणा ने उन से विदा ली. बाहर आ कर आलोक बोला, ‘‘रास्ते में विवेक का घर भी पड़ता है. जरा उस के यहां भी हाजिरी लगा लें.’’

चलतेचलते उस ने अरुणा का हाथ अपने हाथों में ले लिया. अरुणा हैरानी से उसे देखने लगी. सदा उस की उपेक्षा करने वाले पति का यह अप्रत्याशित व्यवहार उस की समझ में नहीं आया.

विवेक के घर जब वे पहुंचे तो दरवाजा खटखटाने पर तौलिए से हाथ पोंछता विवेक रसोई  से निकला और उन्हें  देख कर शर्मिंदा सा हो कर बोला, ‘‘अरे वाह, आज तो जाने सूरज कहां से निकला जो तुम  लोग हमारे घर आए हो.’’

विवेक  के घर का भी वही हाल था.  बैठक इस तरह से अस्तव्यस्त थी  जैसे  अभी तूफान आ कर गुजरा हो. विवेक पत्रिकाएं समेटता हुआ बोला, ‘‘आप लोग बैठो, मैं चाय बनाता हूं. नीलम तो लेडीज क्लब गई हुईर् है.’’

पत्नी क्लब में पति रसोई में. आलोक को मन ही मन हंसी आ गई. तभी अरुणा खड़े हो कर बोली, ‘‘आप बैठिए भाई साहब, मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ कह कर अरुणा रसोई में चली गई.

तभी विवेक का 1 साल का बेटा भी उठ कर रोने लगा. विवेक उसे हिलाडुला कर चुप कराने का प्रयास करने लगा.

कुछ ही देर में अरुणा ट्रे में चाय और दूध की बोतल ले आई और बोली, ‘‘आप लोग चाय पीजिए, मैं मुन्ने  को दूध पिलाती हूं,’’ और विवेक के न न करते भी उस ने मुन्ने को अपनी गोद में लिटा लिया और बोतल से दूध पिलाने लगी. विवेक धीमे स्वर में आलोक से बोला, ‘‘यार, बीवी हो तो तुम्हारे जैसी, दूसरों  का घर भी कितनी अच्छी तरह संभाल लिया. एक हमारी मेम साहब हैं, अपना घर भी नहीं संभाल सकतीं. घर आओ तो पता चलता है किट्टी पार्टी  में गई हैं या क्लब में. मुन्ना आया के भरोसे रहता है.’’

उस दिन आलोक देर रात तक सो नहीं सका. वह सोच में निमग्न था. उसे तो अपनी पत्नी के सांवले रंग पर शिकायत थी पर यहां तो उस के दोस्तों को अपनी गोरीचिट्टी बीवियों से हर बात पर शिकायत है.

इतवार के दिन सभी दोस्तों ने आलोक की शादी की खुशी में पिकनिक का आयोजन  किया था. विवेक, राजेश, नरेश, विपिन सभी शरीक थे इस पिकनिक में.

खानेपीने का सामान आलोक के दोस्त लाए थे. आलोक को उन्होंने कुछ भी लाने से मना कर दिया था, पर फिर भी अरुणा ने मसालेदार छोले बना लिए  थे. सभी छोलों को  चटकारे लेले कर खा रहे थे. आलोक हैरानी से देख रहा था कि अरुणा ही सब के आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी. सोनिया उस से बुनाई डालना सीख रही थी तो नीलम उस  के घने लंबे बालों का राज पूछ रही थी. राजेश की पत्नी लीना उस से मसालेदार छोले बनाने की विधि पूछ रही थी. तभी विवेक बोला, ‘‘अरुणा भाभी, चाय तो आप के हाथ की ही पिएंगे. उस दिन आप की बनाई चाय का स्वाद अभी तक जबान पर है.’’

लीना, सोनिया, नीलम आदि ताश खेलने लगीं और अरुणा स्टोव जला कर चाय बनाने लगी. विवेक भी उस का हाथ बंटाने लगा. चाय की चुसकियों के साथ एक बार फिर  अरुणा की तारीफ शुरू हो गई. चाय खत्म होते ही विवेक बोला, ‘‘अब अरुणा भाभी एक गाना सुनाएंगी.’’

‘‘मैं…मैं…यह आप क्या कह रहे हैं, भाई साहब?’’

‘‘ठीक कह रहा हूं,’’ विवेक बोला, ‘‘आप बेध्यानी में चाय बनाते समय गुनगुना रही थीं. मैं ने पीछे से सुन लिया था. अब कोईर् बहाना नहीं चलेगा. आप को गाना ही पड़ेगा.’’

‘‘हां…हां…’’ सब समवेत स्वर में बोले. मजबूरन अरुणा को गाने के लिए हां भरनी पड़ी. उस ने एक गाना गाना शुरू कर दिया. झील का खामोश किनारा उस की मीठी आवाज से गूंज उठा. सभी मंत्रमुग्ध से उस का गाना सुन रहे थे. आलोक भी हैरान था. अरुणा इतना अच्छा गा लेती है, उस ने कभी सोचा भी नहीं था. बड़े ही मीठे स्वर में वह गा रही थी. गाना खत्म हुआ तो सब ने तालियां बजाईं. अरुणा संकुचित हो उठी. आलोक गहराई से अरुणा को देख रहा था.

उसे लगा अरुणा इतनी सांवली नहीं  है जितनी वह सोचता है. उस की आंखें काफी बड़ी और भावपूर्ण हैं. गठा हुआ बदन, सदा मुसकराते से होंठ एक खास किस्म की शालीनता से भरा हुआ व्यक्तित्च. वह तो सब से अलग है. उस की आंखों पर अब तक जाने कौन सा परदा पड़ा हुआ था जिस के आरपार वह देख नहीं पा रहा था. उस की गहराई में तो गया ही नहीं था जहां अरुणा अपने इस रूपगुण के साथ मौजूद थी, सीप में बंद मोती की तरह.

एक उस के सांवले रंग की ही आड़ ले कर बाकी सभी गुणों को वह अब तक नजरअंदाज करता रहा था. अगर गोरा रंग ही खुशी और सुखमय वैवाहिक जीवन का आधार होता तो उस के दोस्त शायद खुशियों के सैलाब में डूबे होते, पर ऐसा कहां है?

पिकनिक के बाद थकेहारे शाम को वे  घर लौटे तो आलोक क ो अपेक्षाकृत प्रसन्न और मुखर देख कर अरुणा विस्मित सी थी. घर में खामोशी की चादर ओढ़ने  वाला आलोक  आज खुल कर बोल रहा था. कुछ हिम्मत कर के अरुणा बोली, ‘‘क्या बात है? आज आप काफी प्रसन्न नजर आ रहे हैं.’’

‘‘हां, आज मुझे सीप में बंद मोती मिला है,’’ और उस ने अरुणा को बाहुपाश में बांध लिया.

मातृत्व का अमृत : भाग 2

आज विभा, विनोद की दूसरी पत्नी बन कर उस के घर जा रही थी. उस की आंखों से आंसुओं का सागर उमड़ रहा था. किंतु इन आंसुओं का औचित्य समझ पाना उस के बस की बात नहीं थी. यह आंसू अपने उस घर से विदाई के थे जहां से वह 11 साल पहले ही विदा की जा चुकी थी या एक विधवा की बदकिस्मती के, विभा स्वयं नहीं जानती थी.

विभा अपने अतीत में खोई हुई थी कि तभी मां ने उसे झकझोरा और कहा, ‘‘विभा बेटा, तुम्हारी विदाई का समय हो गया है.’’

विभा अब तक विनोद से नहीं मिली थी. उसे केवल इतना बताया गया था कि विनोद पेशे से एक सर्जन है, उस की पहली पत्नी की मृत्यु कुछ समय पहले हुई थी और विनोद के 2 बच्चे हैं. प्रांजल जो 8 वर्ष का है और परिधि 6 वर्ष की है. घर में विनोद और बच्चों के अलावा मातापिता हैं.

विभा इस शादी से खुश नहीं थी पर विदाई के बाद ससुराल पहुंचते ही जब प्रांजल और परिधि ने उसे ‘नई मम्मी’ कह कर पुकारा तो वह गद्गद हो गई. मातृत्व क्या होता है, उसे यह खुशी नसीब नहीं हुई थी मगर प्रांजल और परिधि के एक छोटे से उच्चारण ने उस के भीतर दबी हुई ममता को जागृत कर दिया. उस के सासससुर का व्यवहार बेहद करुणा- मयी और विनम्र था.

विनोद से अब तक उस की भेंट नहीं हुई थी. विभा कमरे में काफी देर तक उस की प्रतीक्षा करती रही और इंतजार करतेकरते कब उस की आंख लग गई उसे पता नहीं चला. शायद विनोद ने उसे जगाना भी ठीक नहीं समझा.

विभा में नईनवेली दुलहनों जैसे नाजनखरे नहीं थे इसलिए विवाह के अगले दिन से ही घर का सारा काम उस ने अपने हाथों में ले लिया. सुबह जल्दी उठ कर अपना पूजापाठ समाप्त कर के पहले वह अपने सासससुर को चाय बना कर देती, फिर नाश्ता तैयार करती, विनोद को नर्स्ंिग होम और बच्चों को स्कूल भेज कर वह अपने विद्यालय जाती.

दोपहर को विद्यालय से आते ही बच्चे उसे घेर लेते. पहले तो उन्हें खाना खिला कर विभा उन का होमवर्क पूरा करवाती और फिर उन के साथ खूब खेलती. अब प्रांजल और परिधि उसे ‘नई मम्मी’ के बजाय ‘मम्मी’ कह कर पुकारने लगे थे. बच्चों के साथ विभा ने अपने सासससुर का भी दिल जीत लिया था.

विनोद देर रात घर आता तब तक विभा सो चुकी होती थी. विनोद के साथ विभा की जो बातें होतीं वे केवल औपचारिकता भर ही थीं. विवाह को दिन ही नहीं महीनों बीत गए थे पर जीवनसाथी के रूप में दोनों को एकदूसरे के विचार जानने का मौका ही नहीं मिला था.

विनोद का व्यवहार घर वालों के प्रति बहुत असहज था. माना वह घर पर कम रहता था मगर जितनी देर रहता उतनी देर भी न तो बच्चों से और न ही मांबाबूजी से वह खुल कर बातें करता था. विभा ने उन सब के बीच एक अजीब सी दूरी का अनुभव किया और वह शंकित हो गई. वह मांबाबूजी से सीधे कुछ भी कहना नहीं चाहती थी मगर विनोद से कहना भी ठीक नहीं था.

एक दिन विभा घर पर ही थी और बच्चे विनोद के साथ कहीं गए थे. विभा ने अवसर पा कर मांजी से पूछ ही लिया, ‘‘मांजी, मैं जब से इस घर में आई हूं उन्होंने कभी मुझ से बात नहीं की और मुझे उन का व्यवहार भी बहुत अजीब लगता है. मुझे कहना तो नहीं चाहिए, मगर लगता है आप लोगों के बीच कोई समस्या…?’’

विभा की बात काटते हुए मांजी बोलीं, ‘‘बेटा, विनोद इस विवाह से…’’

विभा चौंक पड़ी, ‘‘खुश नहीं हैं, क्या?’’

‘‘देखो बेटा, सुनैना और प्रभात को हम ने पहले ही बता दिया था कि विनोद न तो तुम से शादी करना चाहता है और न ही वह तुम्हें पत्नी के रूप में स्वीकार कर पाएगा. विनोद खुद को तुम्हारा अपराधी समझता है,’’ मांजी ने उत्तर दिया.

बाबूजी ने अपनी चुप्पी तोड़ी और बोले, ‘‘बहू, तुम जानती हो कि हमारी बहू ‘पायल’ की मृत्यु एक कार एक्सीडेंट में हुई थी. उस में विनोद भी बुरी तरह घायल हो गया था. उस का काफी खून बह चुका था. आपरेशन के समय उसे खून चढ़ाया गया और यही विनोद की बदकिस्मती थी.’’

‘‘मगर बाबूजी, उस आपरेशन से हमारे रिश्ते का क्या संबंध?’’ विभा अभी भी सकते में थी.

‘‘विनोद के आपरेशन से कुछ समय बाद उसे पता चला कि जो खून उसे चढ़ाया गया था वह एचआईवी पौजीटिव था,’’ कहतेकहते बाबूजी का गला रुंध गया.

विभा खुद को ठगा सा महसूस कर रही थी. वह सुनैना को दोष नहीं दे सकती थी मगर जो विश्वासघात भाई हो कर प्रभात ने उस के साथ किया, उस से वह सोचने को विवश हो गई थी कि क्या विधवा पुनर्विवाह का औचित्य यही है कि उस का प्रयोग केवल अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए किया जाता है. आज वह एक सधवा हो कर भी खुद को विधवा ही महसूस कर रही है.

बाबूजी ने विभा के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहना शुरू किया, ‘‘विनोद के सीडी फोर सेल्स का स्तर अब धीरेधीरे कम होने लगा है. हम बूढ़े हो चुके हैं. विनोद को कुछ हो गया तो हम बूढ़े तो वैसे ही खत्म हो जाएंगे. हम ने सोचा कि हमारे बाद इन फूल से बच्चों को कौन संभालेगा? क्या होगा इन का? यही सोच कर हम ने विनोद का विवाह जबरन तुम्हारे साथ करवाया ताकि इन बच्चों को संभालने वाला कोई तो हो,’’ इतना कह कर बाबूजी कमरे से बाहर निकल गए.

अपने को संभालते हुए मांजी बोलीं, ‘‘बेटी, तुम्हें लग रहा होगा कि हम लोगों ने अपने निजी स्वार्थ के लिए तुम्हारा जीवन बरबाद कर दिया. निर्णय अब तुम्हें ही लेना है. हो सके तो हमें क्षमा कर देना.’’

निरुत्तर खड़ी विभा वहां से भाग निकलना चाहती थी और जा कर प्रभात, मां व बाबूजी से पूछना चाहती थी कि क्या विधवा होना उस का कुसूर है? आज वह दोराहे पर खड़ी थी.

तभी प्रांजल और परिधि स्कूल से आते ही उस से लिपट गए और अपनी स्कूल की दिनचर्या बताबता कर उस की गोद में झूलने लगे. बच्चों का स्पर्श पाते ही विभा की मानो सारी उलझनें सुलझ गई थीं.

उस की नियति लिखी जा चुकी थी. वह विनोद के समर्पण, मांबाबूजी के प्रेम और अपने मातृत्व के सामने नतमस्तक हो गई, फिर प्रांजल और परिधि ने विभा के आंसू पोंछे और उस से लिपट गए. आज सबकुछ खो कर भी विभा ने मातृत्व का अमृत पा लिया था. उसे अपना आज और आने वाला कल साफ नजर आने लगा था.

हुमा कुरेशी ने दो दिन नेपाल में ‘सेव द चिल्ड्रन‘ के बच्चों के साथ बिताया

जब ‘‘गैंग औफ वासेपुर’,‘एक थी डायन’, ‘डेढ़ इश्किया’,‘बदलापुर’ सहित कई हिंदी फिल्मों में अभिनय कर अपनी एक अलग पहचान बनाने के बाद हौलीवुड फिल्म ‘‘वासराय हाउस’’ में अभिनय कर उन्होंने अपने अभिनय को नाए आयाम दिए. वेब सीरीज ‘लैला’ करके तो वह विश्व स्तर पर एक उल्लेखनीय भारतीय प्रतिभा के रूप में उभरी. और देश को गौरवान्वित करने का भी काम किया. इन दिनों वह हौलीवुड निर्देशक जैक सैंडर के साथ फिल्म ‘‘आर्मी आफ द डेड’’ में हौलीवुड के कलाकारों के संग काम कर रही हैं.

एक तरफ वह अभिनय में नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं, तो दूसरी तरफ वह बच्चों के लिए नियमित समाज सेवा के काम करती रहती है. इसी के चलते हुमा कुरैशी पिछले दिनों पड़ोसी देश नेपाल में एक परोपकारी कार्य करती हुई नजर आयीं. वेब सीरीज ‘लैला’ के बाद हुमा कुरेशी ने पड़ोसी देश नेपाल के दूरदराज के हिस्सों की यात्रा की, जिसमें ग्लोबल नौन प्रौफिटेबल और्गनाइजेशन ‘सेव द चिल्ड्रन‘ भी शामिल था.

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huma-qureshi

यह संस्था दुनिया की अग्रणी स्वतंत्र बाल अधिकार के लिए काम करने वाली एनजीओ है, जो प्रत्येक बच्चे को उज्ज्वल भविष्य के लिए सर्वोत्तम अवसर प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है. इस संस्था  के साथ करीबी से जुड़े होने की वजह से हुमा नेपाल गयीं और उन बच्चों के साथ बातचीत की. अभिनेत्री ने उन बच्चों के साथ समय बिताया, जो सप्तरी और राजबिराज में ईसीसीडी (प्रारंभिक बचपन देखभाल और विकास) कार्यक्रमों में नामांकित थे. हुमा ने इस मुलाकात को दिल को छू लेने वाला बना दिया, क्योंकि न सिर्फ वह बच्चों के साथ खेलीं और बातचीत की, बल्कि उनके साथ तस्वीरें भी खिंचवायीं. इतना ही नहीं शाम को वह उनके साथ नेपाली गानों पर जमकर नाची.

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हुमा कुरेशी कहती हैं- ‘‘मेरी दो  दिनों की नेपाल यात्रा और इस यात्रा के दौरान बच्चों को बचाने के लिए किए गए अद्भुत काम को देखना एक अविश्वसनीय अनुभव रहा. प्रोग्राम्स और स्कौलरशिप इन खूबसूरत बच्चों की जिंदगी में बड़े बदलाव ला रहे है. मैं खुद को बहुत धन्य महसूस कर रही हूं कि मुझे यह अनुभव करने का मौका मिला. यह मौका देने के लिए मैं ‘सेव द चिल्ड्रन‘ और कैथरीन की बहुत बहुत आभारी हूं. मैं ‘सेव द चिल्ड्रन‘ के लिए आधिकारिक तौर पर योगदान देने का और इंतजार नहीं कर सकती.

लीची की सफल बागबानी

डा. अरविंद कुमार, डा. ऋषिपाल

भारत में लीची का उत्पादन  विश्व में दूसरे स्थान पर है. लीची के फल पोषक तत्त्वों से भरपूर और स्फूर्ति देने वाले होते हैं. इस के फल में शर्करा  की मात्रा 11 फीसदी, प्रोटीन 0.7 फीसदी, खनिज पदार्थ 0.7 फीसदी और वसा 0.3 फीसदी होती है.

लीची के फल से कई तरह के शरबत व जैम, नैक्टर कार्बोनेटैड पेय व डब्बाबंद उत्पाद बनाए जा सकते हैं. लीची नट फल को सुखा कर बनाया जाता है, जो कि बड़े ही चाव से खाया जाता है. लीची के कच्चे और खट्टे फलों को सुखा कर खटाई के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है.

साल 2018-19 में भारत में लीची का रकबा 93,000 हेक्टेयर व उत्पादन 7,11,000 मिलियन टन हुआ. देश में लीची की बागबानी खासतौर से उत्तर बिहार, देहरादून की घाटी, उत्तर प्रदेश के तराई वाले इलाके और झारखंड के छोटा नागपुर इलाके में की जाती है.

लीची के फल अपने मनमोहक रंग, स्वाद और गुणवत्ता के चलते भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया में अपना खास पहचान बनाए हुए हैं. लीची के सफल उत्पादन के लिए मुनासिब किस्मों का चयन बेहतर कृषि तकनीक व पौध संरक्षक के तरीकों को अपना कर किसान मुनाफा ले सकते हैं.

जमीन और आबोहवा : लीची की बागबानी सभी तरह की मिट्टी, जिस में पानी के निकलने के इंतजाम वाली बलुई दोमट मिट्टी सब से कारगर पाई गई है. इस का पीएच मान 6.0 से 7.6 के बीच हो.

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लीची के सफल उत्पादन के लिए नम या आर्द्र उपोष्ण जलवायु का होना जरूरी है. बारिश आमतौर पर 100-140 सैंटीमीटर पालारहित भूभाग व तापमान 15-30 डिगरी सैंटीग्रेड में पौधों की वानस्पतिक बढ़वार अच्छी होती है.

फलों की तुड़ाई के समय उच्च तापमान 30 डिगरी सैंटीग्रेड से ले कर 40 डिगरी सैंटीग्रेड और आपेक्षित आर्द्रता 84 फीसदी फायदेमंद है.

लीची की उन्नत किस्मों की सिफारिश : अर्ली बेदाना, शाही, त्रिकोलिया, अझोली, अर्ली लार्जरेड, कलकतिया, रोज सैंटेड, मुजफ्फरपुर, अर्ली सीडलैस, देहरादून, चाइना, स्वर्ण?रूपा, सीएचईएस 2, कस्बा, पूर्वी वगैरह इस की उन्नत किस्में हैं.

लीची की खासमखास

किस्मों का खुलासा

कलकतिया : इस किस्म के फल बड़े, लुभावने व फलों के गुच्छे घने लगते?हैं. इस के फल रसभरे और स्वाद से भरे होते हैं.

देहरादून : यह लगातार फल देने वाली किस्म है. इस के फल लुभावने रंग वाले होते हैं. इस के फल मीठे, नरम, रसभरे और स्वाद होते हैं.

शाही : इस किस्म के फल गोल व गहरे लाल रंग वाले होते?हैं. फल में गूदे की मात्रा ज्यादा होती है. इस किस्म के फल में खुशबू आती है. इस किस्म के 15-20 साल के पौधे से 100-120 किलाग्राम उपज हर साल हासिल की जा सकती है.

त्रिकोलिया : फल गोल व लाल रंग के होते?हैं. फलों का वजन 14.5 ग्राम होता है, जिस में 11.4 ग्राम खाने योग्य गूदा पाया जाता है. पूरी तरह विकसित एक पेड़ से 90-110 किलोग्राम फल हर साल मिल जाते?हैं.

रोज सैंटेड : इस किस्म के फलों में गुलाब जैसी खुशबू आती?है और फल फटने की समस्या देखी गई है. पूरी तरह विकसित पौधे से 90-100 किलोग्राम फल लिया जा सकता है.

अर्ली बेदाना : फलों में बीज बहुत ही?छोटा होता है. इस किस्म के फलों का वजन 18.4 ग्राम होता है. इस में 14.3 ग्राम गूदा पाया जाता है.

चाइना: फल बड़े ही नुकीले शंक्वाकार और चटकने की समस्या से मुक्त होते हैं. फलों का रंग गहरा लाल व गूदे की मात्रा अधिक होने के कारण इस की अत्यधिक मांग है. एक?बड़े पेड़ से 120-150 किलोग्राम उपज हर साल मिल जाती है.

स्वर्ण रूपा : इस किस्म के फल देरी से पकते?हैं. यह फल चटकने की समस्या से मुक्त होते हैं. फल लुभावने, गहरे गुलाबी रंग, जिन में बीज का आकार छोटा होता है. फल का गूदा अधिक जायकेदार व मीठा होता है.

सीएचईएस 2 : फल शंक्वाकार और गहरे लाल रंग व फलों का वजन 20-22 ग्राम व 15-20 फलों के गुच्छे में आते हैं.

कस्बा : फल बड़े यानी तकरीबन 20.2 ग्राम, गूदे की मात्रा अधिक व फल चटकने की समस्या से मुक्त होते हैं. इस किस्म के फल अलगअलग मंजरी पर आते हैं.

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पूर्वी : फल छोटे और फलत अधिक होती है. एक बड़े पेड़ से तकरीबन 80-100 किलोग्राम फल की उपज हर साल मिल जाती है.

पौध तैयार करना : वैसे तो गूटी, भेंट कलम, दाब कलम, मुकुलन व बीज द्वारा पौधे तैयार कर सकते हैं, लेकिन व्यावसायिक खेती के लिए गूटी विधि द्वारा तैयार पौधों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

गूटी द्वारा पौध तैयार करने के लिए जूनजुलाई माह में चुनी हुई डाली पर शीर्ष से 40-50 सैंटीमीटर पहले गांठ के पास

2 सैंटीमीटर की छाल उतार कर छल्ला बना देते हैं. छल्ले के ऊपरी सिरे पर 1,000 पीपीएमआई बीए के पेस्ट का लेप लगा कर छल्ले को नम मौस घास से ढक कर 400 गेज की पौलीथिन का टुकड़ा लपेट कर सुतली से बांध देना चाहिए.

गूटी बांधने के तकरीबन 2 माह के अंदर जड़ें पूरी तरह से निकल आती हैं. इस समय डाली की तकरीबन आधी पत्तियों को निकाल कर व उसे मुख्य पौध से काट कर नर्सरी में कम छायादार जगह पर लगा देना चाहिए. इस प्रकार गूटी बांधने से जड़ें अच्छी निकलती हैं और पौध स्थापना अच्छी होती है.

पौध रोपण : लीची का पूरा विकसित पेड़ आकार में बड़ा होता है इसलिए इसे तकरीबन 10×10 मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए.

लीची के पौधे की रोपाई से पहले खेत में लाइन बना कर पेड़ लगाने की जगह तय कर लेते हैं. इस के बाद निशान लगी जगह पर अप्रैलमई महीने में 90×90×90 सैंटीमीटर आकार के गड्ढे खोद कर मिट्टी को अच्छी तरह फैला देना चाहिए.

बारिश शुरू होते ही जून महीने में 2-3 टोकरी 25-30 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद, 2 किलोग्राम करंज या नीम की खली, 1.0 किलोग्राम हड्डी का चूरा या सिंगल सुपर फास्फेट व 50 ग्राम हेप्टाक्लोर या 20 ग्राम थीमेट 10 जी को खेत की ऊपरी सतह की मिट्टी में अच्छी तरह मिला कर गड्ढे भर देने चाहिए.

बारिश में गड्ढे की मिट्टी दब जाने के बाद उस के बीच में खुरपी की मदद से पौधों की पिंडी के आकार की जगह बना कर पौधा लगा देना चाहिए.

पौधा लगाने के बाद उस के पास की मिट्टी को ठीक से दबा कर और एक थाला बना कर 2-3 बालटी यानी 25-30 लिटर पानी उस में डाल देना चाहिए.

सिंचाई: लीची के सफल उत्पादन के लिए मिट्टी में मुनासिब नमी का रहना बेहद जरूरी है. इस के लिए जल संरक्षण व मल्चिंग का इस्तेमाल लाभदायक माना जाता है.

लीची के पौधों में फल पकने के 6 हफ्ते पहले अप्रैल के शुरू में पानी की कमी से फल की बढ़वार रुक जाती है और फल चटकने लगते?हैं इसलिए अप्रैल व मई माह में 2-3 दिनों के फासले पर हलकी सिंचाई करने से लीची के फलों में गूदे का विकास अच्छा और फल चटकने की समस्या कम हो जाती?है.

पेड़ों की कटाईछंटाई?: शुरू के 3-4 सालों की अवांछित शाखाओं को निकाल कर पौधों को तय आकार देना चाहिए. जमीन से तकरीबन आधा मीटर दूरी तक की शाखाओं को निकाल देना चाहिए ताकि मुख्य तने का सही विकास हो सके.

उस के बाद में 3-4 मुख्य शाखाओं को बढ़ने देना चाहिए जिस से पेड़ का आकार सुडौल, ढांचा मजबूत व फसल अच्छी आती है.

फलों को तोड़ते समय 10 सैंटीमीटर लंबी टहनी को तोड़ देना चाहिए, जिस से अगले साल स्वस्थ शाखाएं निकलती हैं और फसल अच्छी आती है.

अंत:फसल करें : लीची के पेड़ पूरी तरह तैयार होने में तकरीबन 15-16 साल का समय लगता है, इसलिए लीची के पौधों के बीच की खाली पड़ी जमीन का इस्तेमाल दूसरे फलदार पौधों व दलहनी फसलों या सब्जियों को लगा कर किया जा सकता है.

इस के अलावा मिट्टी की उर्वराशक्ति में भी काफी इजाफा होता है. लीची के बाग में अमरूद, शरीफा व पपीता जैसे फल के पेड़ लगाए जा सकते हैं.

फूल और फल: गूटी द्वारा तैयार लीची के पौधों में 4-5 सालों के बाद फूल व फल आना शुरू हो जाता है. फूल आने के समय से तकरीबन 2 माह पहले पौधों में सिंचाई बंद करने से मंजर बहुत ही बढि़या आते हैं.

लीची में परागण मधुमक्खियों द्वारा होता है इसलिए फूल आने के समय कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल न करें वरना फलों पर बुरा असर पड़ेगा.

लीची में मुख्य रूप से नर, मादा व उभयलिंगी फूल आते हैं, जिन में से केवल मादा व उभयलिंगी फूलों में ही फल बनते?हैं इसलिए अधिक फलन के लिए मादा फूलों का परागण जरूरी होता है.

फलों का फटना : फल विकसित होने के समय मिट्टी में नमी की कमी और तेज गरम हवाओं से फल अधिक फटते हैं. आमतौर पर जल्दी पकने वाली किस्मों में फल चटकने की समस्या देर से पकने वाली किस्मों की अपेक्षा अधिक पाई जाती है. इस के लिए वायुरोधी पेड़ों को बाग के चारों तरफ लगाएं और फरवरी माह में पौधों के नीचे मल्चिंग करें.

मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए अप्रैल महीने के पहले हफ्ते से फलों के पकने और उन की तुड़ाई तक बाग की हलकी सिंचाई करते रहनी चाहिए और पौधों पर पानी का छिड़काव करें.

अप्रैल माह में पौधों पर 10 पीपीएम एनएए और 0.4 फीसदी बोरेक्स के छिड़काव से फलों के फटने की समस्या कम हो जाती है.

फलों का झड़ना?: जमीन में नाइट्रोजन व पानी की कमी और गरम व तेज हवाओं के चलते लीची के फल छोटी अवस्था में ही झड़ने लगते?हैं. फल लगने के बाद जमीन में नाइट्रोजन व पानी की कमी न होने दें और जरूरत पड़ने पर एनएए (प्लैनाफिक्स) के 100 पीपीएम घोल का छिड़काव करें.

लीची के खास कीट

लीची फल बेधक व टहनी बेधक : इस कीट के लार्वा नई कोपलों की मुलायम टहनियों के भीतरी भाग को खाते हैं. नतीजतन, ग्रसित टहनियों में फूल व फलन ठीक से नहीं होता है. इस के प्रकोप से फल झड़ जाते हैं.

नियंत्रण : फल के लौंग आकार होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल कीटनाशक का छिड़काव 0.5-0.7 मिलीलिटर या नोवाल्यूरान 10 ईसी 1.5 मिलीलिटर नामक कीटनाशक का 2 छिड़काव 10-15 दिनों के फासले पर करें.

लीची की मकड़ी : इस कीट के नवजात और वयस्क दोनों ही नई कोपलों, पत्तियों, पुष्पक्रमों व फलों से लगातार रस चूसते हैं.

इस के लक्षण शुरू में निचली सतह पर धूसर रंग के मखमली सतह के रूप में बनते हैं. परिणामस्वरूप प्रकाश संश्लेषण की क्रिया रुक जाती है.

नियंत्रण: जुलाई माह में क्लोरफेनापार 10 ईसी या प्रोपरगाइट 57 ईसी मकड़ीनाशक कैमिकल का 3 मिलीलिटर की दर से 15 दिनों के अंतराल पर 2 बार छिड़काव करना चाहिए.

लीची का बग : इस जाति के अर्भक व वयस्क दोनों ही नुकसान पहुंचाते?हैं. ये मुलायम पत्तियों, टहनियों व फलों का रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं.

रोकथाम : मिली बग अगर पौधे पर चढ़ गए हों तो क्लोरोपाइरीफास या मिथाइल डेमेटान या इमिडाक्लोप्रिड या रोगोर 0.08 फीसदी का छिड़काव करें.

नीबू का काला एफिड : कीटों द्वारा कोशिका रस चूस लिए जाने के कारण पत्तियां, कलियां और फूल मुरझा जाते हैं. इस के साथसाथ यह कीट एक किस्म के विषाणुओं को भी फैलाता है.

रोकथाम : इस कीट की रोकथाम के लिए औक्सीडिमेटान मिथाइल या फिर डाईमिथोएट के 0.03 या इमिडाक्लोप्रिड 17 एसएल घोल का छिड़काव करें.

लीची के प्रमुख रोग

पत्ती मंजर और फल झुलसा : इस रोग की शुरुआत पत्तियों के आखिरी सिरे पर ऊतकों के सूखने से होती है. इस के रोग कारक मंजरों को झुलसा देते हैं, जिस से प्रभावित मंजरों में कोई फल नहीं लग पाते.?

रोकथाम : इस रोग पर नियंत्रण करने के लिए थायोफेनेट मिथाइल 75 डब्लूपी 2 ग्राम प्रति लिटर या डाईफेनोकोनाजोल

25 ईसी 1 मिलीलिटर प्रति लिटर या एजोक्सीस्ट्रोबिन 250 एससी 0.8 मिलीलिटर प्रति लिटर के घोल का छिड़काव करने से कुछ हद तक काबू पाया जा सकता है.

श्याम वर्ण यानी एंथ्रेक्नोज : यह फलों के साथसाथ पत्तियों और टहनियों को भी प्रभावित कर सकते हैं. फलों के छिलकों पर छोटेछोटे 0.2-0.4 सैंटीमीटर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं.

रोग की अधिक तीव्रता की स्थिति में काले धब्बों का फैलाव फल के छिलकों पर आधे हिस्से तक हो सकता है.

रोकथाम : इस रोग की तीव्रता ज्यादा होने पर रोकथाम के लिए थायोफेनेट मिथाइल 75 डब्लूपी 2 ग्राम प्रति लिटर या डाईफेनोकोनाजोल 25 ईसी 1 मिलीलिटर प्रति लिटर के घोल का छिड़काव करें.

म्लानि या उकटा रोग : यह रोग पत्तियों के हलके पीले होने के साथसाथ मुरझाने से शुरू होती है जो क्रमिक उत्तरोत्तर बढ़ती हुई 4-5 दिनों में पेड़ को पूरी तरह सुखा देती है. जड़ों और फ्लोएम ऊतकों पर कुछ भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में जाइलम ऊतकों में भी फैल जाते?हैं. इस की वजह से पानी का बहाव रुक जाता है.

रोकथाम : हैक्साकोनाजोल 5 एससी 1 मिलीलिटर प्रति लिटर या कार्बंडाजिम 50 डब्लूपी 2 ग्राम प्रति लिटर से पेड़ के सक्रिय जड़ क्षेत्र को भिगोएं.

फल विगलन : इस रोग के फैलने से छिलका मुलायम और फल सड़ने लगते हैं. प्रभावित फलों के छिलके भूरे से काले रंग के हो जाते हैं. सड़े हुए भाग पर फफूंद दिखने लगती है. फल फटने के बाद विगलन रोग जनकों के माइसिलियम फटे हुए भाग में पहुंच जाते हैं.

रोकथाम : फल तुड़ाई के 15-20 दिन पहले पेडों पर कार्बंडाजिम 50 डब्लूपी 2 ग्राम प्रति लिटर या थायोफेनेट मिथाइल 50 डब्लूपी 2 ग्राम प्रति लिटर या एजोक्सीस्ट्रोबिन 23 एससी 1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के घोल का छिड़काव करें.

उपज : लीची से प्रति पेड़ औसतन 1.5 से 2.0 क्विंटल उपज मिल जाती है. एक हेक्टेयर में तकरीबन 150 से 200 क्विंटल उपज मिल जाती है.

भीड़ में अकेली होती औरत

अवंतिका को शुरू से ही नौकरी करने का शौक था. ग्रैजुएशन के बाद ही उस ने एक औफिस में काम शुरू कर दिया था. वह बहुत क्रिएटिव भी थी. पेंटिंग बनाना, डांस, गाना, मिमिक्री, बागबानी करना उस के शौक थे और इन खूबियों के चलते उस का एक बड़ा फ्रैंड्स गु्रप भी था. छुट्टी वाले दिन पूरा ग्रुप कहीं घूमने निकल जाता था. फिल्म देखता, पिकनिक मनाता या किसी एक सहेली के घर इकट्ठा हो कर दुनियाजहान की बातों में मशगूल रहता था.

मगर शादी के 4 साल के अंदर ही अवंतिका बेहद अकेली, उदास और चिड़चिड़ी हो गई है. अब वह सुबह 9 बजे औफिस के लिए निकलती है, शाम को 7 बजे घर पहुंचती है और लौट कर उस के आगे ढेरों काम मुंह बाए खड़े रहते हैं.

अवंतिका के पास समय ही नहीं होता है किसी से कोई बात करने का. अगर होता भी है तो सोचती है कि किस से क्या बोले, क्या बताए? इतने सालों में भी कोई उस को पूरी तरह जान नहीं पाया है. पति भी नहीं.

अवंतिका अपने छोटे से शहर से महानगर में ब्याह कर आई थी. उस का नौकरी करना उस की ससुराल वालों को खूब भाया था, क्योंकि बड़े शहर में पतिपत्नी दोनों कमाएं तभी घरगृहस्थी ठीक से चल पाती है. इसलिए पहली बार में ही रिश्ते के लिए ‘हां’ हो गई थी. वह जिस औफिस में काम करती थी, उस की ब्रांच यहां भी थी, इसलिए उस का ट्रांसफर भी आसानी से हो गया. मगर शादी के बाद उस पर दोहरी जिम्मेदारी आन पड़ी थी. ससुराल में सिर्फ उस की कमाई ही माने रखती थी, उस के गुणों के बारे में तो कभी किसी ने जानने की कोशिश भी नहीं की. यहां आ कर उस की सहेलियां भी छूट गईं. सारे शौक जैसे किसी गहरी कब्र में दफन हो गए.

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घरऔफिस के काम के बीच वह कब चकरघिन्नी बन कर रह गई, पता ही नहीं चला. शादी से पहले हर वक्त हंसतीखिलखिलाती, चहकती रहने वाली अवंतिका अब एक चलतीफिरती लाश बन कर रह गई है. घड़ी की सूईयों पर भागती जिंदगी, अकेली और उदास.

यह कहानी अकेली अवंतिका की नहीं है, यह कहानी देश की उन तमाम महिलाओं की है, जो घरऔफिस की दोहरी जिम्मेदारी उठाते हुए भीड़ के बीच अकेली पड़ गई हैं. मन की बातें किसी से साझा न कर पाने के कारण वे लगातार तनाव में रहती हैं. यही वजह है कि कामकाजी औरतों में स्ट्रैस, हार्ट अटैक, ब्लडप्रैशर, डायबिटीज, थायराइड जैसी बीमारियां उन औरतों के मुकाबले ज्यादा दिख रही हैं, जो अनब्याही हैं, घर पर रहती हैं, जिन के पास अपने शौक पूरे करने के लिए पैसा भी है, समय भी और सहेलियां भी.

दूसरों की कमाई पर नहीं जीना चाहती औरतें ऐसा नहीं है कि औरतें आदमियों की कमाई पर जीना चाहती हैं या उन की कमाई उड़ाने का उन्हें शौक होता है. ऐसा कतई नहीं है. आज ज्यादातर पढ़ीलिखी महिलाएं अपनी शैक्षिक योग्यताओं को बरबाद नहीं होने देना चाहती हैं. वे अच्छी से अच्छी नौकरी पाना चाहती हैं ताकि जहां एक ओर वे अपने ज्ञान और क्षमताओं का उपयोग समाज के हित में कर सकें, वहीं आर्थिक रूप से सक्षम हो कर अपने पारिवारिक स्टेटस में भी बढ़ोतरी करें.

आज कोई भी नौकरीपेशा औरत अपनी नौकरी छोड़ कर घर नहीं बैठना चाहती है. लेकिन नौकरी के साथसाथ घर, बच्चों और परिवार की जिम्मेदारी जो सिर्फ उसी के कंधों पर डाली जाती है, उस ने उसे बिलकुल अकेला कर दिया है. उस से उस का वक्तछीन कर उस की जिंदगी में सूनापन भर दिया है. दोहरी जिम्मेदारी ढोतेढोते वह कब बुढ़ापे की सीढि़यां चढ़ जाती है, उसे पता ही नहीं चलता.

अवंतिका का ही उदाहरण देखें तो औफिस से घर लौटने के बाद वह रिलैक्स होने के बजाय बच्चे की जरूरतें पूरी करने में लग जाती है. पति को समय पर चाय देनी है, सासससुर को खाना देना है, बरतन मांजने हैं, सुबह के लिए कपड़े प्रैस करने हैं, ऐसे न जाने कितने काम वह रात के बारह बजे तक तेजी से निबटाती है और उस के बाद थकान से भरी जब बिस्तर पर जाती है तो पति की शारीरिक जरूरत पूरी करना भी उस की ही जिम्मेदारी है, जिस के लिए वह मना नहीं कर पाती है.

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वहीं उस का पति जो लगभग उसी के साथसाथ घर लौटता है, घर लौट कर रिलैक्स फील करता है, क्योंकि बाथरूम से हाथमुंह धो कर जब बाहर निकलता है तो मेज पर उसे गरमगरम चाय का कप मिलता है और साथ में नाश्ता भी. इस के बाद वह आराम से ड्राइंगरूम में बैठ कर अपने मातापिता के साथ गप्पें मारता है, टीवी देखता है, दोस्तों के साथ फोन पर बातें करता है या अपने बच्चे के साथ खेलता है. यह सब कर के वह अपनी थकान दूर कर रहा होता है. अगले दिन के लिए खुद को तरोताजा कर रहा होता है. उसे बनाबनाया खाना मिलता है. सुबह की बैड टी मिलती है. प्रैस किए कपड़े मिलते हैं. करीने से पैक किया लंच बौक्स मिलता है. इन में से किसी भी काम में उस की कोई भागीदारी नहीं होती.

और अवंतिका? वह घर आ कर रिलैक्स होने के बजाय घर के कामों में खप कर अपनी थकान बढ़ा रही होती है. घरऔफिस की दोहरी भूमिका निभातेनिभाते वह लगातार तनाव में रहती है. यही तनाव और थकान दोनों आगे चल कर गंभीर बीमारियों में बदल जाता है.

घरेलू औरत भी अकेली है

ऐसा नहीं है कि घरऔफिस की दोहरी भूमिका निभाने वाली महिलाएं ही अकेली हैं, घर में रहने वाली महिलाएं भी आज अकेलेपन का दंश झेल रही हैं. पहले संयुक्त परिवार होते थे. घर में सास, ननद, जेठानी, देवरानी और ढेर सारे बच्चों के बीच हंसीठिठोली करते हुए औरतें खुश रहती थीं. घर का काम भी मिलबांट कर हो जाता था. मगर अब ज्यादातर परिवार एकल हो रहे हैं. ज्यादा से ज्यादा लड़के के मातापिता ही साथ रहते हैं. ऐसे में बूढ़ी होती सास से घर का काम करवाना ज्यादातर बहुओं को ठीक नहीं लगता. वे खुद ही सारा काम निबटा लेती हैं.

मध्यवर्गीय परिवार की बहुओं पर पारिवारिक और सामाजिक बंधन भी खूब होते हैं. ऐसे परिवारों में बहुओं का अकेले घर से बाहर निकलना, पड़ोसियों के साथ हिलनामिलना अथवा सहेलियों के साथ सैरसपाटा निषेध होता है. जिन घरों में सासबहू के संबंध ठीक नहीं होते, वहां तो दोनों ही महिलाएं समस्याएं झेलती हैं. आपसी तनाव के चलते दोनों के बीच बातचीत भी ज्यादातर बंद रहती है. ऐसे घरों में तो सास भी अकेली है और बहू भी अकेली.

कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो लड़की शादी से पहले पूरी आजादी से घूमतीफिरती थी, अपनी सहेलियों में बैठ कर मन की बातें करती थी, वह शादी के बाद चारदीवारी में घिर कर अकेली रह जाती है. पति और सासससुर की सेवा करना ही उस का एकमात्र काम रह जाता है. शादी के बाद लड़कों के दोस्त तो वैसे ही बने रहते हैं. आएदिन घर में भी धमक पड़ते हैं, लेकिन लड़की की सहेलियां छूट जाती हैं. उस की मांबहनें सबकुछ छूट जाता है. सास के साथ तो हिंदुस्तानी बहुओं की बातचीत सिर्फ ‘हां मांजी’ और ‘नहीं मांजी’ तक ही सीमित रहती है, तो फिर कहां और किस से कहे घरेलू औरत भी अपने मन की बात?

अकेलेपन का दंश सहने को क्यों मजबूर

स्त्री शिक्षा में बढ़ोतरी होना और महिलाओं का अपने पैरों पर खड़ा होना किसी भी देश और समाज की प्रगति का सूचक है. मगर इस के साथसाथ परिवार और समाज में कुछ चीजों और नियमों में बदलाव आना भी बहुत जरूरी है, जो भारतीय समाज और परिवारों में कतई नहीं आया है. यही कारण है कि आज पढ़ीलिखी महिला जहां दोहरी भूमिका में पिस रही हैं, वहीं वे दुनिया की इस भीड़ में बिलकुल तनहा भी हो गई हैं.

पश्चिमी देशों में जहां औरतमर्द शिक्षा का स्तर एक है. दोनों ही शिक्षा प्राप्ति के बाद नौकरी करते हैं, वहीं शादी के बाद लड़का और लड़की दोनों ही अपनेअपने मातापिता का घर छोड़ कर अपना अलग घर बसाते हैं, जहां वे दोनों ही घर के समस्त कार्यों में बराबर की भूमिका अदा करते हैं. मगर भारतीय परिवारों में कामकाजी औरत की कमाई तो सब ऐंजौय करते हैं, मगर उस के साथ घर के कामों में हाथ कोई भी नहीं बंटाता. पतियों को तो घर का काम करना जैसे उन की इज्जत गंवाना हो जाता है. हाय, लोग क्या कहेंगे?

सासससुर की मानसिकता भी यही होती है कि औफिस से आ कर किचन में काम करना बहू का काम है, उन के बेटे का नहीं. ऐसे में बहू के अंदर खीज, तनाव और नफरत के भाव ही पैदा हो सकते हैं, खुशी के तो कतई नहीं.

आज जरूरत है लड़कों की परवरिश के तरीके बदलने की और यह काम भी औरत ही कर सकती है. अगर वह चाहती है कि उस की आने वाली पीढि़यां खुश रहें, उस की बेटियांबहुएं खुश रहें तो अपनी बेटियों को किचन का काम सिखाने से पहले अपने बेटों को घर का सारा काम सिखाएं.

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आप की एक छोटी सी पहल आधी आबादी के लिए मुक्ति का द्वार खोलेगी. यही एकमात्र तरीका है जिस से औरत को अकेलेपन के दंश से मुक्ति मिल सकेगी.

एक नई पहल : भाग 2

एक कर्कश सी आवाज तभी मेरे कानों में पड़ी और मेरी तंद्रा भंग हुई. मानो मैं नींद से जागी थी. किसी ने दरवाजे की घंटी बजाई थी. मैं ने कितनी बार अपने पति को कहा है कि इस बेल की आवाज मुझे बिलकुल पसंद नहीं है और जब कोई इसे देर तक बजाता है तो मन करता है बेल उखाड़ कर फेंक दूं.

गुस्से से दरवाजा खोलने गई. बेटी कोचिंग कर के वापस आई थी.

‘‘मिट्ठी, कितनी बार कहा है न कि एक बार बेल बजा कर छोड़ दिया करो. मैं बहरी नहीं हूं. एक बार में ही सुन लेती हूं.’’

‘‘ममा, मैं 10 मिनट से दरवाजे पर खड़ी हूं, पर आप ने घंटी नहीं सुनी और आप जरा अपना फोन देखिए, कितनी मिस काल मैं ने दरवाजे पर खडे़खडे़ दी हैं, आप ने फोन नहीं उठाया और अपने ही किए फोन की घंटी मैं दरवाजे के बाहर खड़ीखड़ी सुनती रही, क्या सो गई थीं आप?’’

अगले दिन बेटी के कोचिंग जाने के बाद मैं ताला लगा कर पार्क की ओर चल दी और अपने बैठने के लिए मैं ने वही बैंच चुनी जिस पर आंटी अकेली बैठी थीं. पसीना पोंछ कर मैं ने उन की ओर देखा तो वह पूछ बैठीं, ‘‘पहली बार सैर करने आई हो शायद.’’

मैं ने ‘हां’ में गर्दन हिला दी.

‘‘2-4 दिन ऐसे ही थकान लगेगी, पसीना आएगा, फिर आदत पड़ जाएगी,’’ आंटी मानो मेरी थकान भरी सांसों को थामने की कोशिश कर रही थीं.

मैं ने भी बात को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से पूछा, ‘‘आप रोज आती हैं?’’

‘‘हां बेटी,’’ उन का छोटा सा उत्तर सुन कर मैं ने कहा, ‘‘मैं तो बहुत कोशिश करती हूं पर आंटी समय नहीं मिलता. आप कैसे नियमित रूप से आ जाती हैं.’’

‘‘तुम्हें समय नहीं मिलता और मेरे पास समय की कमी नहीं,’’ कहते हुए आंटी खिलखिला पड़ीं. तब तक मैं दोबारा सैर करने के लिए तैयार हो चुकी थी. मैं जैसे ही उठी, देखा सामने से अंकल आ रहे थे. यह सोच कर मैं वहां से चल दी कि आज के लिए इतना ही काफी है.

अब मेरा यह नियम ही हो गया था. रोज की मुलाकात व बातचीत में यह पता चला कि आंटी यानी मिसेज सुमेधा कंसल सरकारी स्कूल की रिटायर्ड प्रिंसिपल हैं. बच्चे अपनीअपनी गृहस्थी में मगन हैं. एक दिन मैं ने पूछा भी था, ‘‘आंटी, जब आप प्रिंसिपल रह चुकी हैं तो आप अपने नातीपोतों को पढ़ा सकती हैं, आप के समय का सदुपयोग भी हो जाएगा.’’

एक फीकी सी हंसी के साथ आंटी बोलीं, ‘‘बेटी दूसरे शहर में रहती है. बेटे के भी एक ही बेटा है और वह देहरादून में पढ़ता है. होस्टल में रहता है. बेटा और बहू दोनों ही मुझे हर सुखसुविधा देते हैं, मानसम्मान भी रखते हैं लेकिन अपने- अपने कैरियर की ऊंचाइयां पाने में व्यस्त हैं. घर पर मैं बस, अकेली…’’

‘‘तो आंटी कोई सोशल सर्विस या अन्य कोई ऐसा काम जो आप को रुचिकर लगे, क्यों नहीं करतीं?’’

‘‘मैं जैसी सोशल सर्विस करना चाहती हूं वह बच्चों को पसंद नहीं है और ऊंची शानशौकत वाली सोशल सर्विस मैं कर नहीं सकती. हां, मुझे कविता और कहानियां लिखना रुचिकर लगता है और वह मैं लिखती हूं. लेकिन यह शाम का समय घर में अकेले नहीं बीतता…कोई तो बात करने के लिए चाहिए…नहीं तो हम बोलना ही भूल जाएंगे और हमारी भाषा समाप्त हो जाएगी. हां, अगर तुम्हारे अंकलजी होते तो…’’

‘‘अभी अंकलजी आप को लेने नहीं आएंगे क्या?’’ मैं ने अनजान बनते हुए पूछा.

‘‘नहीं बेटा, जिन्हें तुम रोज मेरे साथ बात करते देखती हो वह भी मेरी ही तरह अकेले हैं. मेरे पति तो 20 वर्ष पहले ही गुजर चुके हैं. उन के जाने के बाद भी अकेलापन था लेकिन वह वक्त तो बच्चों को पालने और नौकरी करने में जैसेतैसे बीत गया और शर्माजी, जो अभी आने ही वाले होंगे, वह भी अपनी जीवन संगिनी को 7-8 वर्ष पहले खो चुके हैं.

‘‘शर्माजी तो मुझ से ज्यादा अकेले हैं. मेरी बहू जूही मेरे बहुत करीब है, फिर फोन पर हर तीसरे दिन बेटी से भी बात हो जाती है लेकिन वह तो मर्द हैं न, बहुओं से ज्यादा घुलमिल नहीं पाते, बेटों के पास फुर्सत नहीं है. ऐसा नहीं कि बहूबेटे उन का खयाल नहीं रखते लेकिन आज सब अपने में व्यस्त हैं. नौकरीपेशा बहुएं 24 घंटे तो हाथ बांधे नहीं खड़ी रह सकतीं न और नौकरीपेशा ही क्यों, घर में रहने वाली बहुएं भी ऐसा कहां कर सकती हैं…यद्यपि इनसान ऐसा करना चाहता है लेकिन वक्त है कि वह हम सब को अपनी उंगली पर नचाता रहता है.

‘‘जैसे बच्चे, बच्चों की संगत में, जवान, जवानों के साथ, ऐसे ही हम बूढे़ बूढ़ों की संगत में खुश रहते हैं. बच्चों के साथ कभी हमें बच्चा बनना पड़ता है, अच्छा लगता है, लेकिन मन की बात तो किसी हमउम्र से ही शेयर की जा सकती है. बस, शर्माजी हैं, आते हैं…साझा दुख साझा सुख…कुछ इधर की कुछ उधर की…और फिर अगले दिन मिलने की उम्मीद में पूरे 24 घंटे बीत जाते हैं.’’

तभी सामने से शर्माजी आते दिखाई दिए. मैं उठ कर चलने लगी. आज सुमेधाजी ने मुझे रोक लिया.

‘‘इन से मिलिए. ये हैं, मिसेज मालिनी अग्रवाल, यहीं सामने के फ्लैट में रहती हैं और बेटा, ये हैं मि. शर्मा… रिटायर्ड अंडर सेके्रटरी.’’ हम दोनों में नमस्ते का आदानप्रदान हुआ और मैं वहां से चल दी.

अजब गजब: 100 किलोग्राम सोने के सिक्का का बना रहस्य

‘दबिग मैपल लीफ’ नाम का शुद्ध सोने का यह सिक्का दुनिया का सब से बड़ा सिक्का था. 99.999 शुद्धता वाले इस सिक्के को सन 1982 में रौयल कनेडियन मिंट (सिक्के बनाने का कारखाना) ने बनाया था, जिस में क्वीन एलिजाबेथ (द्वितीय) की फोटो उकेरी गई थी. इस सिक्के की वैल्यू 30 करोड़, 38 लाख से भी ज्यादा थी. 53 सेंटीमीटर के इस सिक्के को एक अज्ञात संग्रहकर्ता से ले कर जर्मनी के बोड म्यूजियम में रखा गया था.

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इस सिक्के पर उकेरी गई क्वीन एलिजाबेथ (द्वितीय) की तसवीर कनाडा के आर्टिस्ट सुजाना ब्लंट ने बनाई थी, जबकि दूसरी ओर एक बड़ी मैपल लीफ की फोटो बनी थी. सन 2007 में बिग मैपल लीफ नाम के इस गोल्ड के सिक्के को गिनीज बुक और वर्ल्ड रिकौर्ड में दुनिया के सब से बडे़ सिक्के के रूप में दर्ज किया गया. इस सिक्के को ले कर दुनिया भर के लोगों में काफी कौतूहल रहा. संभवत: इसी वजह से यह चोरों की नजर में आ गया.

जांच के दौरान पुलिस ने चारों अभियुक्तों  को तो गिरफ्तार कर लिया, लेकिन सिक्का नहीं मिल सका.हां, बरामदगी के नाम पर पुलिस को गोल्ड डस्ट जरूर मिली, जिस से अनुमान लगाया गया कि चोरों ने सिक्के को पिघला कर ठिकाने लगाया होगा. सिक्का चुराने वाले चारों का ट्रायल चल रहा है. हाल ही में इस केस की सुनवाई हुई है.

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आटा, डाटा और नाटा

दोस्तो, आज पूंजीपति और सर्वहारा के बीच का संघर्ष गौण हो गया है या कि सर्वहारा वर्ग पूंजीपतियों से लड़तेलड़ते मौन हो गया है. इसीलिए, समाज में समता लाने वाले वादियों ने भी सर्वहारा के लिए लड़ना छोड़ सर्वहारा के चंदे की उगाही से शोषण की समतावादी मिलें स्थापित कर ली हैं.

आज संघर्ष अगर किसी के बीच में है तो बस आटे और डाटे के. अब वे हम से डाटे के हथियार से हमारा आटा छीन रहे हैं. हम से समाज का नाता छीन रहे हैं. हम से हमारा नाता छीन रहे हैं. आज जबजब डाटे का दांव लग रहा है, वह आटे को पछाड़ने में जुटा है. आटे को लताड़ने में जुटा है. और बेचारा आटा, एकबार फिर पूंजीपतियों के हाथों नए तरीके से लुटा है. अपना मुंह ताकता.

मैं अंधी आंखों से भी बिन संजय के देख रहा हूं कि आज डाटा मंदमंद मुसकराते हुए हम से हमारा आटा छीन रहा है. हर वर्ग आटा छोड़ डाटे के पीछे यों भाग रहा है जैसे उस के पांव बहुत पीछे छूट चुके हैं. पर वह फिर भी डाटे के पीछे यों भागे जा रहा है कि…

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मेरी पूछो तो मैं बिन आटे के हफ्तों जी सकता हूं मजे से, पर बिन डाटे के मुझे कोई एक पल भी जीने को कहे तो मेरा जीना दूभर हो जाए.

कल पता नहीं क्या हुआ कि मुझे पता ही न चला कि कब मेरा डाटा खत्म हो गया. मैं परेशान. मैं ने अपनी परेशानी में अपने पुरखे तक परेशान कर डाले. डाटा खत्म होने पर मेरा दिमाग सुन्न हो गया. लगा, ज्यों मेरी रंगों का लहू जम गया हो जैसे. पूरे बदन में एकाएक सुन्नगी छाने लगी. चेहरे पर तो पैदा होते ही मुर्दनी आ डटी थी. आंखों के सामने अंधेरा होने लगा.

मुझे लगा कि अब मेरी अंतिम घड़ी नजदीक आ गई हो जैसे. मैं ने मन ही मन डाटे वाली सब से सस्ती कंपनी का ध्यान किया तो कंपनी की कृपा मुझ पर बरसी और एकाएक कहीं से डाटादान करने वाले सज्जन आ पहुंचे. उन्होंने मुसकराते हुए हौटस्पौट पर अपने डाटे से मुझे जोड़ा, तो मेरी बंद होती सांसें फिर से चलनी शुरू हुईं. कोई माने या न, पर आज की तारीख में नेत्रदान से अधिक महत्त्व डाटादान का है, डाटाप्रेमियो.

जिधर देखो, उधरइच हर नामी कंपनी के आटे पर हर मामूली से मामूली कंपनी का डाटा भारी है. आटा बेचारा भूखे पेटों का मुंह ताक रहा है. बाजार में बोरियों में पड़ापड़ा धूल फांक रहा है. पर सब आटा छोड़, डाटे के पीछे बदहवास दौड़ रहे हैं. जो भी है बस, डाटाडाटा चिल्ला रहा है.

हवा पानी के बदले आज का जीव डाटा पी रहा है, डाटा पहन रहा है, डाटा खा रहा है. वह सुबह उठते डी डाटे से फेसवाश करता है, रात को डाटे को अपने दामन से चिपकाए अपनी आभासी दुनिया में जीभर विचरता है. सुबह उस के पास डाटा बचा हो, तो जीभर खुश होता है. जब डाटा न बचा हो, तो सब के साथ होने के बाद भी अपने को समाज में नितांत अकेला पा दहाड़ें मारमार कर रोता है.

जिधर देखो, डाटा का जादू हर समाज के सिर चढ़ कर बोल रहा है. जिस के पास मोबाइल भी नहीं, वह आटा गूंधने को उस में पानी के बदले डाटा घोल रहा है. डाटे ने हर जीवअजीव को पगला दिया है. वह डाटे के सिवा कोई बात करना ही नहीं चाहता. वह कम पैसे में अधिक डाटा कहां मिलेगा, इस से अधिक कुछ सुनना ही नहीं चाहता. जिन की टांगें जवाब दे चुकी हैं, वे भी डाटे की स्पीड की टांगों पर दौड़ कर भवसागर पार होना चाहते हैं.

आज जीव को जल नहीं चाहिए. क्योंकि आज जल जीवन नहीं, डाटा ही जीवन है. आज के जीव को वायु नहीं चाहिए. क्योंकि आज वायु जीवन नहीं, आज डाटा ही जीवन है. आज के जीव की सांसें वायु पर नहीं, डाटे की स्पीड पर निर्भर करती हैं. आज के जीव को अग्नि नहीं चाहिए. क्योंकि अग्नि में वह तेज नहीं जो डाटे में है. आज के जीव को आकाश नहीं चाहिए. आकाश में वह खुलापन नहीं जो डाटा उसे देता है. आज के जीव को चाहिए तो, बस, डाटा. जो उसे जितना अधिक डाटाडाटा का भगवान मुहैया करवाए, वह उसी का मुरीद हो जाए.

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आज हमें चाहिए तो बस डाटा, डाटा, डाटा. जो हमें जितना अधिक डाटाडाटा का मेहरबान मुहैया करवाए, हर तबका उसी का मुरीद हो जाए.

बेहतर जीवन जीने के लिए आज प्यार गौण हो गया है. बेहतर जीवन के लिए आज मनुहार मौन हो गया है. जिस के पास जितनी हाई स्पीड वाला सिम, वह उतना ही फास्ट. डाटा का न कोई धर्म, डाटा की न कोई कास्ट. जय हो धर्मनिर्पेक्ष डाटा…

क्या करें जब नौबत हो तलाक की

अपने वैवाहिक जीवन से असंतुष्ट हो कर तलाक ले लेना बेशक उस समय किसी बंधन से मुक्त होना लगे, पर उस के बाद जीवन आसान हो जाएगा या जीवन में फिर से खुशियां लौट आएंगी, ऐसा सोचना भी एक भूल ही है. इसलिए डाइवोर्स लेने का निर्णय लेने से पहले उस के बाद पैदा होने वाली स्थितियों पर विचार करना निहायत आवश्यक है.

अगर आप डाइवोर्स लेने के बारे में सोच रही हैं, तो यह तो तय है कि आप के और आप के साथी के बीच कुछ गलत हुआ है या फिर छोटीछोटी बातें इतनी बड़ी हो गई हैं कि आप को लगने लगा है कि अब साथ रहना मुमकिन नहीं. ये बातें विचारों के बीच टकराव उत्पन्न होने से ले कर विवाहेतर संबंधों तक से जुड़ी हो सकती हैं या फिर बच्चों की परवरिश या आर्थिक परेशानियों से उपजी भी हो सकती हैं. यानी ये छोटेछोटे झगड़े समय के साथ न सिर्फ युगल के बीच फासला बढ़ाते जाते हैं वरन उन्हें अलग हो जाने के लिए भी मजबूर कर देते हैं.

ऐडजस्ट न कर पाने या मानसिक तौर पर डिस्टर्ब फील करने के कारण अलग हो जाना बेशक एक आसान रास्ता लगे, पर उस के लिए जिन कानूनी, सामाजिक और भावनात्मक परेशानियों का सामना करना पड़ता है, वे भी कम दुखदायी नहीं होती हैं. अगर युगल शादी को यातना मानते हैं, तो उस से छुटकारा पाने के लिए भी कम यातनाएं नहीं सहनी पड़तीं.

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मूल्यांकन करें

डाइवोर्स लेने से पहले ये सोचें कि वे कौन सी बातें हैं जो आप को परेशान कर रही हैं. हो सकता है उन्हें सुधारा जा सके. फिर यह निश्चित करें कि क्या वास्तव में आप उन में बदलाव लाना चाहती हैं? अपने विवाह के साथसाथ आप को अपना भी मूल्यांकन करना होगा कि क्या आप इस विवाह को बचाना चाहती हैं? डाइवोर्स की ओर कदम बढ़ाने से पहले खुद से यह अवश्य पूछें कि क्या जो असंतुष्टि की भावना आप के अंदर पल रही है वह कुछ समय के लिए है, जो समय के साथ दूर हो जाएगी? तलाक देने के बाद क्या आप फिर से एक नए संबंध में जुड़ने को तैयार हैं? आप के बच्चे पर इस का क्या असर पड़ेगा और क्या वह इस निर्णय में आप के साथ है?

कुछ लोग इसलिए अलग होते हैं, क्योंकि वे बहुत जल्दी शादी के बंधन में बंध गए थे और बाद में उन्हें एहसास हुआ कि वे एकदूसरे के लिए बने ही नहीं हैं. कुछ दशकों तक साथ रहते हैं और बच्चों के सैटल हो जाने के बाद उन्हें लगता है कि अब साथ रहना कोई मजबूरी नहीं है और वे अलग हो जाते हैं.

सब से अहम कारण होता है साथी को धोखा देना. कुछ युगलों को लगता है कि अब उन के बीच प्यार नहीं रहा है. पैसे और विचारों में मतभेद होने की वजह से हमेशा झगड़ते रहते हैं. कुछ युगलों को लगता है कि उन्हें जीवन से कुछ और चाहिए. वे अब रिश्ते के साथ और समझौता नहीं कर सकते हैं.

सीनियर क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट डा. भावना बर्मी के अनुसार, ‘‘तलाक की बढ़ती दर का मुख्य कारण है प्रोफैशनल स्तर पर औरत और पुरुष दोनों की लगातार बढ़ती महत्त्वाकांक्षाएं, जिन की वजह से उन की प्राथमिकताएं परिवार व संबंधों से हट कर कैरियर पर टिक गई हैं. आपस में बात करने तक का भी उन के पास टाइम नहीं है. वे काम और परिवार के बीच संतुलन नहीं बैठा पा रहे हैं. दोनों की आर्थिक आजादी ने उन की एकदूसरे पर निर्भरता कम कर दी है. सहने की शक्ति कम हो जाना मैट्रो शहरों में बढ़ते तलाक की सब से बड़ी वजह है. तलाक लेते समय यह पता होना चाहिए कि उन की जिंदगी आपस में बंधी है और इस की टूटन दोनों को ही बिखराव की राह पर ला सकती है. सामाजिक अलगाव भी उत्पन्न होने की संभावना इस से बहुत बढ़ जाती है.’’

क्या आप बदलाव के लिए तैयार हैं

आप का डाइवोर्स लेने का कारण, साथ बीता समय, आप की संपत्ति, बच्चे सब चीजें आप के निर्णय के लिए माने रखती हैं. लेकिन सब से अहम है यह समझना कि आप उसे किस तरह हैंडल करेंगी. इस की वजह से जिंदगी में होने वाले बदलावों का सामना करने को क्या आप तैयार हैं? डाइवोर्स जीवन का एक महत्त्वपूर्ण मोड़ होता है, जिस के बाद आने वाले बदलाव सुखदायी या दुखदायी दोनों ही हो सकते हैं. इसलिए सोचसमझ कर ही इस का फैसला लेना चाहिए. हो सकता है कि मैरिज काउंसलर से मिलने के बाद आप अपना इरादा छोड़ दें.

तलाक का अर्थ ही है बदलाव और यह समझ लें कि किसी भी तरह के बदलाव का सामना करना आसान नहीं होता है. कई बार मन पीछे की तरफ भी देखता है, क्योंकि नए ढंग से जिंदगी की शुरुआत करते समय जब दिक्कतें आती हैं, तो मन बीती जिंदगी को याद कर अपराधबोध से भी भर जाता है. आप को खुद पर भरोसा रखना होगा कि आप किसी भी तरह की मुश्किल का सामना कर लेंगी और आप का निर्णय सही था.

लिस्ट बनाएं

तलाक लेने के कारणों की एक लिस्ट बनाएं. अपने रिश्ते के अच्छे व बुरे दोनों पक्षों के बारे में लिखें. अपने पार्टनर को किसी विलेन के दर्जे में न रखें, क्योंकि कमियां तो आप में भी होंगी. डाइवोर्स लेने के बाद सफल व सुखद जीवन जीने के लिए सोच को पौजिटिव रखना निहायत जरूरी है. यह मान कर चलें कि दोनों की ही गलतियों की वजह से आज अलग हो जाने की नौबत आई है. इसलिए अपने क्रोध और दर्द से एक रचनात्मक ढंग से निबटें.

डाइवोर्स के बाद आप को एक सपोर्ट सिस्टम की जरूरत पड़ेगी, जिस के कंधे पर सिर रख कर आप रो सकें. अपने मित्रों व रिश्तेदारों से सपोर्ट लेने से हिचकिचाएं नहीं. अगर आवश्यकता महसूस करें तो थेरैपिस्ट के पास जाएं और अपने इमोशंस शेयर करें ताकि आप को स्ट्रैस न हो.

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सोच व्यावहारिक रखें

तलाक के बाद सब से बड़ी समस्या फाइनैंस की आती है. अगर आप कमाती हैं, तो भी पैसे से जुड़ी दिक्कतें बनी रहती हैं. अध्ययनों से यह बात सामने आई हैं कि जो औरतें

डाइवोर्स की पीड़ा सहती हैं, उन के जीवनस्तर में 30% गिरावट आ जाती है और पुरुषों के जीवनस्तर में 10%. चाहे औरत इस अलगाव के लिए कितना भी तैयार क्यों न हो, वह आर्थिक स्तर पर अपने को अक्षम ही महसूस करती है.

बेहतर होगा कि अपनी भावनाओं के बस में हो कर डाइवोर्स लेने के बजाय एक व्यावहारिक सोच रखते हुए यह कदम उठाएं. इस से होने वाले लाभ से ज्यादा हानि पर गौर करें. अगर आप आत्मनिर्भर नहीं है तो जाहिर है कि बाद में आप को किसी और पर निर्भर होना पड़ेगा और इस तरह आप के आत्मसम्मान को चोट पहुंचेगी.

डाइवोर्स का बच्चों पर गहरा असर पड़ता है, क्योंकि उन के लिए तो मातापिता दोनों ही महत्त्वपूर्ण होते हैं. अलगाव से उन के विश्वास को चोट पहुंचती है और कभीकभी तो वे भटक भी जाते हैं. अकेला अभिवक अपनी ही परेशानियों में ग्रस्त रहने के कारण उन पर सही ध्यान नहीं दे पाता.

कुछ प्रश्न खुद से पूछें

क्या अपने साथी के प्रति अभी भी आप के मन में भावनाएं हैं? मगर ऐसा है तो एक बार रिश्ते को बचाने की कोशिश की जा सकती है.

क्या आप इसलिए साथ रह रहे हैं, क्योंकि समाज का दबाव है वरना हर समय झगड़ते ही रहते हैं?

आप क्या सचमुच तलाक चाहती हैं या सिर्फ यह धमकी है? केवल क्रोध प्रकट करने या इस तरह साथी को इमोशनली ब्लैकमेल करने के लिए ही तो आप यह कदम उठाना चाहतीं. इस तरह संबंध और बिगड़ेंगे ही.

क्या आप शारीरिक, मानसिक, आर्थिक व भावनात्मक रूप से इस के लिए तैयार हैं? क्या आप ने इस के नकारात्मक परिणामों के बारे में सोच लिया है? तलाक आप के साधनों में कमी कर सकता है, जिस से आप के कई सपने भी टूट सकते हैं.

क्या आप के पास कोई सपोर्ट सिस्टम है? क्या आप बच्चों को समझा पाने व उन की तकलीफ दूर करने में सक्षम हैं?

क्या आप कैरियर और अपनी निजी जिंदगी में बैलेंस कर पाएंगी?

डाइवोर्स लेने के बाद आप को नए अनुभवों, नए रिश्तों व चीजों को नए रूप में लेने के लिए अपने को तैयार करना होगा. अपने जीवन को पुन: गढ़ना होगा. अगर आप यह सोच कर बैठी हैं कि दूसरी शादी करने से आप की सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी, आप की समस्याओं का समाधान हो जाएगा तो इस भ्रम से बाहर निकलें, क्योंकि दूसरी शादी सफल हो, इस की क्या गारंटी है. जरूरी नहीं कि इस बार परफैक्ट साथी मिले.

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