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विंटर स्पेशल : घर पर ही इन 5 तरीको से करें स्किन की देखभाल

सर्दियों आते ही आपकी स्किन रूखी होने लगती है. इस मौसम में कोल्‍ड क्रीम लगाने के बाद स्किन हाइड्रेट तो दिखती है पर इससे कई बार स्किन पर ब्‍लैकहेड्स ज्‍यादा दिखने लगते हैं. स्किन पर नेचुरल ग्‍लो नहीं रहता. इस मौसमे में स्किन की देखभाल करने की ज्यादा जरूरत होती है. त्वचा में नमी बनाए रखने से रूखापन महसूस नहीं होता है.

तो आईए बताते है, सर्दियों में घर पर आप कैसे स्किन की देखभाल कर सकते हैं.

  1. घर पर बनाएं स्क्रब

अगर आप स्क्रब का इस्तेलाम करते हैं तो मार्केट से खरीदकर नहीं बल्कि घर भी स्क्रब बनाएं और उसका इस्तेमाल करें.

2. पानी खूब पीएं

ठंड का मौसम त्वचा को रूखा कर देता है और साथ ही साथ आपकी त्वचा को अंदरूनी नुकसान भी पहुंचाता है. त्वचा में नमी बनाए रखने व इसे स्वस्थ रखने के लिए खूब पानी पीएं. यह शरीर की अशुद्धियों को भी बाहर निकाल देती है.

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  1. मौइस्चराइज करना न भूलें

सर्दियों के मौसम में त्वचा अपनी नमी खो देती है. इसलिए जरूरी है कि उसकी नमी बरकरार रखी जाए. चमकती त्वचा के लिए मौइस्चरौइजिंग जरूरी है. अतिरिक्त देखभाल और कंडिशनिंग आपको सर्दियों का मुकाबला करने के लिए तैयार करता है.

  1. त्वचा पर उबटन लगाएं

साबुन, त्‍वचा को ड्राई कर सकते हैं. सर्दियों के मौसम में इससे स्किन और ज्‍यादा ड्राई हो जाती है. आप घर उबटन बनाकर इसका प्रयोग कर सकते हैं. उबटन से डेड स्किन सेल्‍स निकलते हैं और साथ ही चेहरे को पोषण भी मिलता है.

5.  बादाम के तेल का करें प्रयोग

रात को सोते समय बादाम का तेल लगाएं लगाएं. सुबह उठने पर आप पाएंगे कि त्वचा में अब भी मौस्‍चर है. स्किन को इससे पोषण मिल सकता और आपकी स्किन ग्लो करने लग जाती है.

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6. नहाने में बरतें सावधानी

ठंड में अक्‍सर लोग तेज गर्म पानी से नहा लेते हैं. इससे स्किन में ड्राईनेस काफी बढ़ जाती है. इसलिए हमेशा गुनगुने पानी से नहांए. नहाने के तुरंत बाद स्किन पर कोई मौस्‍चराइजर लगाएं.

दूसरी चोट

इस मल्टीनैशनल कंपनी पर यह दूसरी चोट है. इस से पहले भी एक बार यह कंपनी बिखर सी चुकी है. उस समय कंपनी की एक खूबसूरत कामगार स्नेहा ने अपने बौस पर आरोप लगाया था कि वे कई सालों से उस का यौन शोषण करते आ रहे हैं. उस के साथ सोने के लिए जबरदस्ती करते आ रहे हैं और यह सब बिना शादी की बात किए.

ऐसा नहीं था कि स्नेहा केवल खूबसूरत ही थी, काबिल नहीं. उस ने बीटैक के बाद एमटैक कर रखा था और वह अपने काम में भी माहिर थी. वह बहुत ही शोख, खुशमिजाज और बेबाक थी. उस ने अपनी कड़ी मेहनत से कंपनी को केवल देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी कामयाबी दिलवाई थी.

इस तरह स्नेहा खुद भी तरक्की करती गई थी. उस का पैकेज भी दिनोंदिन मोटा होता जा रहा था. वह बहुत खुश थी. चिडि़या की तरह हरदम चहचहाती रहती थी. उस के आगे अच्छेअच्छे टिक नहीं पाते थे.

पर अचानक स्नेहा बहुत उदास रहने लगी थी. इतनी उदास कि उस से अब छोटेछोटे टारगेट भी पूरे नहीं होते थे.

इसी डिप्रैशन में स्नेहा ने यह कदम उठाया था. वह शायद यह कदम उठाती नहीं, पर एक लड़की सबकुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन अपने प्यार में साझेदारी कभी नहीं.

जी हां, स्नेहा की कंपनी में वैसे तो तमाम खूबसूरत लड़कियां थीं, पर हाल ही में एक नई भरती हुई थी. वह अच्छी पढ़ीलिखी और ट्रेंड लड़की थी. साथ ही, वह बहुत खूबसूरत भी थी. उस ने खूबसूरती और आकर्षण में स्नेहा को बहुत पीछे छोड़ दिया था.

इसी के चलते वह लड़की बौस की खास हो गई थी. बौस दिनरात उसे आगेपीछे लगाए रहते थे. स्नेहा यह सब देख कर कुढ़ रही थी. पलपल उस का खून जल रहा था.

आखिरकार स्नेहा ने एतराज किया, ‘‘सर, यह सब ठीक नहीं है.’’

‘‘क्या… क्या ठीक नहीं है?’’ बौस ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘आप अपना वादा भूल बैठे हैं.’’

‘‘कौन सा वादा?’’

‘‘मुझ से शादी करने का…’’

‘‘पागल हो गई हो तुम… मैं ने तुम से ऐसा वादा कब किया…? आजकल तुम बहुत बहकीबहकी बातें कर रही हो.’’

‘‘मैं बहक गई हूं या आप? दिनरात उस के साथ रंगरलियां मनाते रहते…’’

बौस ने अपना तेवर बदला, ‘‘देखो स्नेहा, मैं तुम से आज भी उतनी ही मुहब्बत करता

हूं जितनी कल करता था… इतनी छोटीछोटी बातों पर ध्यान

मत दो… तुम कहां से कहां पहुंच

गई हो. अच्छा पैकेज मिल रहा है तुम्हें.’’

‘‘आज मैं जोकुछ भी हूं, अपनी मेहनत से हूं.’’

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‘‘यही तो मैं कह रहा हूं… स्नेहा, तुम समझने की कोशिश करो… मैं किस से मिल रहा हूं… क्या कर रहा हूं, क्या नहीं, इस पर ध्यान मत दो… मैं जोकुछ भी करता हूं वह सब कंपनी की भलाई के लिए करता हूं… तुम्हारी तरक्की में कोई बाधा आए तो मुझ से शिकायत करो… खुद भी जिंदगी का मजा लो और दूसरों को भी लेने दो.’’

पर स्नेहा नहीं मानी. उस ने साफतौर पर बौस से कह दिया, ‘‘मुझे कुछ नहीं पता… मैं बस यही चाहती हूं कि आप वर्षा को अपने करीब न आने दें.’’

‘‘स्नेहा, तुम्हारी समझ पर मुझे अफसोस हो रहा है. तुम एक मौडर्न लड़की हो, अपने पैरों पर खड़ी हो. तुम्हें इस तरह की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए.’’

‘‘आप मुझे 3 बार हिदायत दे चुके हैं कि मैं इन छोटीछोटी बातों पर ध्यान न दूं… मेरे लिए यह छोटी बात नहीं है… आप उस वर्षा को इतनी अहमियत न दें, नहीं तो…

‘‘नहीं तो क्या…?’’

‘‘नहीं तो मैं चीखचीख कर कहूंगी कि आप पिछले कई सालों से मेरी बोटीबोटी नोचते रहे हो…’’

बौस अपना सब्र खो बैठे, ‘‘जाओ, जो करना चाहती हो करो… चीखोचिल्लाओ, मीडिया को बुलाओ.’’

स्नेहा ने ऐसा ही किया. सुबह अखबार के पन्ने स्नेहा के बौस की करतूतों से रंगे पड़े थे. टैलीविजन चैनल मसाला लगालगा कर कवरेज को परोस रहे थे.

यह मामला बहुत आगे तक गया. कोर्टकचहरी से होता हुआ नारी संगठनों तक. इसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि सभी सकते में आ गए. वह यह कि वर्षा का खून हो गया. वर्षा का खून क्यों हुआ? किस ने कराया? यह राज, राज ही रहा. हां, कानाफूसी होती रही कि वर्षा पेट से थी और यह बच्चा बौस का नहीं, कंपनी के बड़े मालिक का था.

इस सारे मामले से उबरने में कंपनी को एड़ीचोटी एक करनी पड़ी. किसी तरह स्नेहा शांत हुई. हां, स्नेहा के बौस की बरखास्तगी पहले ही हो चुकी थी.

कंपनी ने राहत की सांस ली. उसने एक नोटीफिकेशन जारी किया कि कंपनी में काम कर रही सारी लड़कियां और औरतें जींसटौप जैसे मौडर्न कपड़े न पहन कर आएं.

कंपनी के नोटीफिकेशन में मर्दों के लिए भी हिदायतें थीं. उन्हें भी मौडर्न कपड़े पहनने से गुरेज करने को कहा गया. जींसपैंट और टाइट टीशर्ट पहनने की मनाही की गई.

इन निर्देशों का पालन भी हुआ, फिर भी मर्दऔरतों के बीच पनप रहे प्यार के किस्सों की भनक ऊपर तक पहुंच गई.

एक बार फिर एक अजीबोगरीब फैसला लिया गया. वह यह कि धीरेधीरे कंपनी से लेडीज स्टाफ को हटाया जाने लगा. गुपचुप तरीके से 1-2 कर के जबतब उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाने लगा. किसीकिसी को कहीं और शिफ्ट किया जाने लगा.

दूसरी तरफ लड़कियों की जगह कंपनी में लड़कों की बहाली की जाने लगी. इस का एक अच्छा नतीजा यह रहा कि इस कंपनी में तमाम बेरोजगार लड़कों की बहाली हो गई.

इस कंपनी की देखादेखी दूसरी मल्टीनैशनल कंपनियों ने भी यही कदम उठाया. इस तरह देखते ही देखते नौजवान बेरोजगारों की तादाद कम होने लगी. उन्हें अच्छा इनसैंटिव मिलने लगा. बेरोजगारों के बेरौनक चेहरों पर रौनक आने लगी.

पहले इस कंपनी की किसी ब्रांच में जाते तो रिसैप्शन पर मुसकराती हुई, लुभाती हुई, आप का स्वागत करती हुई लड़कियां ही मिलती थीं. उन के जनाना सैंट और मेकअप से रोमरोम में सिहरन पैदा हो जाती थी. नजर दौड़ाते तो चारों तरफ लेडीज चेहरे ही नजर आते. कुछ कंप्यूटर और लैपटौप से चिपके, कुछ इधरउधर आतेजाते.

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पर अब मामला उलटा था. अब रिसैप्शन पर मुसकराते हुए नौजवानों से सामना होता. ऐसेऐसे नौजवान जिन्हें देख कर लोग दंग रह जाते. कुछ तगड़े, कुछ सींक से पतले. कुछ के लंबेलंबे बाल बिलकुल लड़कियों जैसे और कुछ के बहुत ही छोटेछोटे, बेतरतीब बिखरे हुए.

इन नौजवानों की कड़ी मेहनत और हुनर से अब यह कंपनी अपने पिछले गम भुला कर धीरेधीरे तरक्की के रास्ते पर थी. नौजवानों ने दिनरात एक कर के, सुबह

10 बजे से ले कर रात 10 बजे तक कंप्यूटर में घुसघुस कर योजनाएं बनाबना कर और हवाईजहाज से उड़ानें भरभर कर एक बार फिर कंपनी में जान डाल दी थी.

इसी बीच एक बार फिर कंपनी को दूसरी चोट लगी. कंपनी के एक नौजवान ने अपने बौस पर आरोप लगाया कि वे पिछले 2 सालों से उस का यौन शोषण करते आ रहे हैं.

उस नौजवान के बौस भी खुल कर सामने आ गए. वे कहने लगे, ‘‘हां, हम दोनों के बीच ऐसा होता रहा है… पर यह सब हमारी रजामंदी से होता रहा?है.’’

बौस ने उस नौजवान को बुला कर समझाया भी, ‘‘यह कैसी नादानी है?’’

‘‘नादानी… नादानी तो आप कर रहे हैं सर.’’

‘‘मैं?’’

‘‘हां, और कौन? आप अपना वादा भूल रहे हैं.’’

‘‘कैसा वादा?’’

‘‘मेरे साथ जीनेमरने का… मुझ से शादी करने का.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या?’’

‘‘दिमाग तो आप का खराब हो गया है, जो आप मुझ से नहीं, एक लड़की से शादी करने जा रहे हैं.’’

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किन्नरों का धार्मिक अखाड़ा

किन्नर को आमतौर पर ‘हिजड़ा’ कह कर संबोधित किया जाता है. अपने चालचलन, हावभाव और परिधानों के कारण ये आसानी से पहचान में आ जाते हैं. बच्चे के जन्म के बाद या विवाह समारोह के बाद लोगों के घरों में ये नाचगाना करते हैं और उन परिवारों को आशीर्वाद देते हैं. ये अपनी जीविका चलाने के लिए उन परिवारों से रुपए, कपड़े और जेवर की मांग करते हैं. देश के लोग अंधविश्वासी हैं ही और इसीलिए उन के श्राप के डर से उन की मांग पूरी कर देते हैं.

शिक्षित जनता के मन में यह अंधविश्वास फैला हुआ है कि यदि बुधवार को किन्नर लोग यदि किसी को आशीर्वाद देते हैं, तो उस का समय बलवान हो जाता है.

हकीकत यह है कि किन्नर अपराध जगत से जुड़े होते हैं. ये लूटपाट में भी शामिल होते हैं. कई बार तो ये लड़कों को जबरदस्ती उठा कर उन के साथ अमानवीय व्यवहार कर के उन्हें हिजड़ा बना देते हैं. ट्रेन, बस, ट्रैफिक सिग्नल पर या शादीब्याह में मनचाही रकम न मिलने पर अभद्रता और गुंडागर्दी करते भी देखे जाते हैं.

हालांकि, वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि किन्नर देश के नागरिक हैं, इन्हें समाज में सामान्य नागरिकों के मुकाबले विशेष स्थान मिलना चाहिए. इन्हें तीसरे लिंग के रूप में पहचान दे दी गई है. किन्नरों को जन्म प्रमाणपत्र, राशनकार्ड, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसैंस में तीसरे लिंग के तौर पर पहचान हासिल करने का अधिकार मिल गया है.

किन्नरों को हम सब अपने से दोयम स्तर के समझते आए हैं. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हालिया आयोजित कुंभ मेले के दौरान मैं वहां गई. मेले के प्रांगण में किन्नर अखाड़े का भव्य बैनर देख मैं चौंक उठी. पंडाल के अंदर प्रवेश करते ही यहांवहां सजीधजी किन्नरों की चहलपहल थी. पंडाल में खासी भीड़ व रौनक थी.

सुंदर साडि़यों, मेकअप, जेवरों से सजीधजी 2 किन्नर कुरसी पर बैठी हुई थीं. उन के पास थाली रखी हुई थी, उस में लोग भेंटस्वरूप रुपए डाल रहे थे. किन्नर साध्वी अपने माथे पर पीले चंदन से त्रिपुंड का तिलक लगाए हुए थी, बीच में बड़ी सी बिंदी भी लगाए हुई थी. वह भक्तों से एक रुपए का सिक्का मांगती थी और उस सिक्के को अपने दातों से दबाने के बाद थाली में रखे हुए चावल (अक्षत) के कुछ दानों के साथ प्रसाद के रूप में उन्हें देती और हरे कपड़े में लपेट कर पूजास्थल में रखने को कहती थी. भक्त उन के साथ अपनी फोटो खिंचवा कर, उन के पैर छू कर आशीर्वाद ले रहे थे.

?किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर और मुखिया लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के पास रोज शाम 5 बजे से 10 बजे तक भक्तों का तांता लगा रहता था.

गद्दी पर बैठी ‘मां’ यानी महामंडलेश्वर नीचे दरी पर बैठे भक्तों से उन की समस्याएं पूछ रही थी. उन की बगल में एक स्टील की थाली में अक्षत और एक रुपए के सिक्के रखे थे. वह अपने भक्तों को प्रसाद में यही देती थी. सिक्के समाप्त होते ही लोग अपनेअपने पर्स में सिक्के तलाशने लगते.

वह पहले एलजीबीटीक्यू के अधिकारों के लिए काम करती थी. अब वह ‘महामंडलेश्वर’ के पद पर आसीन है, इसलिए ‘जय महाकाल’ बोल रही थी. इन धंधों में ज्यादा पैसा है न.

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किन्नर व महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने पीच कलर की सिल्क की साड़ी, कुहनी तक बांहों की गुलाबी चोली, माथे पर त्रिपुंड का तिलक, बीच में बड़ी सी बिंदी, गले में सोने का हार और साथ में छोटेबड़े रुद्राक्ष की कई मालाएं पहने हुई थी.

टेबल पर दानपेटी रखी थी. दानपेटी के कांच के अंदर से रुपए झांक रहे थे. दूसरी टेबल पर कई तरह के फल जैसे संतरा, अमरूद, केला, अंगूर आदि रखे हुए थे.

भीड़ में बैठे हुए लोग बेसब्री से अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. एक व्यक्ति महामंडलेश्वर के पैरों पर लोट रहा था. किन्नर साध्वी ने उसे एक रुपए का सिक्का और चावल के दाने दिए. भक्त को इसे अपने घर के एक विशेष स्थान पर रखना होगा.

प्रसाद पाने वाले के चेहरे पर विश्वास की मुसकान थी. मानो, इस के द्वारा उस की सारी मुश्किलें समाप्त हो जाएंगी. वहां से जाने से पहले भक्त किन्नर साध्वी के साथ सैल्फी फोटो लेने लगा. साध्वी मुसकरा कर अपनी फोटो देखने लगी कि फोटो अच्छी आई है या नहीं.

लोग आ रहे थे, पैर छू कर जा रहे थे. वहां रखी थाली में लोग दक्षिणा भी रख रहे थे. 100 रुपए के नोट ज्यादा थे, 50 और 500 के भी थे. 10-20 रुपए के नोट भी नजर आ रहे थे. जिस की जैसी सामर्थ्य है, वैसी उस की दक्षिणा है. साध्वी नोटों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रही थी. तभी एक बूढ़ी अम्मा आगे बढ़ीं और साध्वी के पैर छू कर, धीमे स्वर में कुछ अपनी व्यथा कहने लगीं. उस ने उठ कर अम्मा को अपने गले से लगाया, शायद कोई पुरानी पहचान थी. वह मेज से एक केला उठा कर प्रसाद के रूप में दे कर बोली, ‘रात को खिला देना.’ फिर वही सैल्फी और फोटो सैशन.

इसी बीच, मैं ने देखा कि एक लड़का और एक लड़की बैठे हुए थे. नाम पूछने पर अपना नाम भी बताया. सर्दी के कारण वे दोनों मोटी जैकेट पहने हुए थे. वेशभूषा से संपन्न परिवार के प्रतीत हो रहे थे. पूछने पर कि ‘यहां क्यों आए हो?’ वे बोले, ‘आशीर्वाद लेने.’ लड़का ब्राह्मण और लड़की ठाकुर, दोनों आपस में प्यार करते थे. लेकिन घरवाले

शादी के लिए राजी नहीं थे. दोनों ‘महामंडलेश्वर’ के पैरों पर एक मिनट तक अपना सिर रखे रहे. लड़की ने धीमी आवाज में अपनी व्यथा महामंडलेश्वर को सुनाई. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे.

महामंडलेश्वर टिश्यूपेपर से लड़की के आंसू पोंछ कर बोली, ‘‘मेरी तरफ देखो, तुम्हें कुदरत ने बहुत ही सुंदर रूप दिया, सुंदर आंखें दी हैं.’’ टिश्यूपेपर के कोने में काजल लग गया था. दोनों जाने लगे तो वह लड़के से बोली, ‘‘इस की देखभाल करो.’’ और लड़की को टिश्यूपेपर देते हुए बोली, ‘‘यह तुम्हारा ऊतक है, इसे अपने पास रखो.’’

अब वे दोनों उस टिश्यूपेपर को लकी मान कर संभाल कर रखेंगे, यह उन का अंधविश्वास है.

किन्नर साध्वी उठ कर अंदर चली गई. थोड़ी देर बाद एक किन्नर औरतों के पास आ कर बोली, ‘‘केवल बहन लोगों को आना है, भाई लोगों को नहीं. जिन के बच्चे नहीं हैं उन की गोद भरी जाएगी.’’

मैं सब देख रही थी. वहां बैठी गुलाबी साड़ी में संभ्रांत परिवार की महिला बोली, ‘‘शादी के 4 साल बीत गए, कोई बच्चा नहीं हुआ. इन का आशीर्वाद बहुत असरदार होता है. इसीलिए इन के दरबार में हाजिरी लगाने आई हूं.’’

लोगों के मन में यह धारणा और विश्वास है कि किन्नरों का आशीर्वाद असरकारी होता है. लोग यहां यह उम्मीद ले कर आते हैं कि जो काम डाक्टर नहीं कर पाए, वह इन के आशीर्वाद से हो जाएगा.

हालांकि, वास्तविकता यह है कि लोग तो जाने कब से किन्नरों का आशीर्वाद ले रहे हैं, तब भी किन्नरों को इज्जत नसीब नहीं होती. वे आज भी दुत्कारे और दुरदुराए जाते हैं.

क्या यहां आने वाले लोग प्रेम और आशीर्वाद से परे किन्नरों को अपने बराबर समझेंगे? मेरे मन में यह जिज्ञासा थी.

‘महामंडलेश्वर’ के आते ही फिर वही सिलसिला- भक्त, प्रसाद और सैल्फी या फोटो सैशन. दूसरी प्लेट भी लाई गई, उस में कुछ विशेष प्रसाद था- ‘रुद्राक्ष’.

‘औफिस वाले’ अर्थात भक्तों का खास तबका यानी ऊंचे ओहदे वाले अधिकारी या पैसे वाले लोग अपनी झिझक, अपना सारा ईगो किनारे रख कर यहां आते हैं. अपना दुख, तकलीफ बयान कर रोते हैं. यहां कोई व्यक्तिगत कोना नहीं है, जो कुछ भी होता है, वह सब के सामने होता है. जो भी यहां आया है, कुछ न कुछ मन में कामना, इच्छा या हसरत ले कर आया है.

इस बीच, एक विशिष्ट महिला आई, महामंडलेश्वर के सीने से लग कर फूटफूट कर रोने लगी. महामंडलेश्वर ने उसे चुप नहीं कराया, उसे रो लेने दिया. उस महिला के हाथ में कई तरह की चूडि़यां थीं, सोने की, लाख की आदि. किन्नर साध्वी ने थाल में से फल

उठा कर उस महिला को प्रसादस्वरूप दिया, ‘‘घर के मंदिर में रखना, सब ठीक हो जाएगा.’’

आशीर्वाद, दक्षिणा, फोटो, वही क्रम चालू था. महिला दक्षिणा रखना भूल गई थी, लौट कर आई और दक्षिणा की थाली में 2,000 रुपए का नोट रखा. महामंडलेश्वर बोली, ‘‘इस का क्या काम है? बस, प्रेम बनाए रखो.’’

इस बीच, एक कलाकार भक्त ने उस का पोर्ट्रेट बना कर भेंट किया. चित्र में उन का हाथ आशीर्वाद देते हुए दिखाई पड़ रहा था. पोर्ट्रेट काफी सुंदर बना हुआ था.

थाली से सिक्के खत्म हो गए, फिर से सिक्के थाली में रख दिए गए. 2 छोटे बच्चे आए थे. किन्नर साध्वी बच्चों को दुलारने लगी. वे बच्चे काफी देर से अपनी मां से डांट खा रहे थे, लेकिन अब बहुत खुश दिखाई पड़ रहे थे.

2 युवक आए, तो मैं ने यों ही उन से पूछ लिया, ‘‘कहां से आए हो?’’

‘‘गुजरात से, मोरारी बापू का भक्त हूं. एक साल पहले बापू ने किन्नर कथा की थी. तब से मैं इन का भी भक्त बन गया हूं.’’

महामंडलेश्वर बोली, ‘‘मोरारी बापू तो हम लोगों के लिए पितातुल्य हैं. गुजरात तो मेरा पीहर है.’’ वहां से

आए लोगों के साथ वह गुजराती में बातें करने लगी.

कोई बड़ी महिला अफसर आई. उन के साथ बौडीगार्ड्स भी थे. साथ में,

2 गाडि़यों में भर कर लोग उन के साथ आए थे. वह अफसर उस के पैरों के पास बैठ कर फूटफूट कर रो रही थी.

महामंडलेश्वर ने उस की समस्या पूछी, फिर बोली, ‘‘तुम चिंता मत करो, तुम्हारा बौस मेरा दोस्त है. तुम्हारा काम हो जाएगा. कल दोपहर में आना. समझ लो, काम हो गया.’’

अफसर की आंखों में काम हो जाने की चमक थी.

एक प्रौढ़ अम्मा अपनी बहू के साथ खड़ी थीं, बोलीं, ‘‘आशीर्वाद दो, 3 बेटियां हैं.’’

उस प्रौढ़ा की बहू पढ़ीलिखी संपन्न परिवार की दिखाई पड़ रही थी. वह रो रही थी.

साध्वी बोली, ‘‘जो अंदर धड़क रहा है, उसे दुनिया में आने दो. बेटियां तो बहुत प्यारी होती हैं और वे बहुत सुख देती हैं. जो आप के पास नहीं है, उस के लिए रो रहे हो. जो है उस का सम्मान करो.’’

आरती का थाल आया. किन्नर साध्वी स्वयं भक्तों के माथे पर ज्योति की लौ की गरमी छुआ रही थी. एक लड़की काले लिबास में थी.

‘‘काले रंग के कपड़े मत पहना करो,’’ उस के माथे पर आशीर्वाद दे कर साध्वी बोली, ‘‘बुधवार को हवन होता है, फिर आना. बुध भारी है तुम्हारा, किन्नर दान करना होगा. हरा सुहाग का जोड़ा, हरा फल, हरी मिठाई ले कर बुधवार को आना.’’

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कुछ टीनएज लड़के खड़े थे. उन में एक गोरा सा लड़का काली जैकेट पहने हुआ था. उस की ओर इशारा कर के साध्वी बोली, ‘‘तुम्हारी गर्लफ्रैंड कौन सी है?’’

छोटी की तरफ इशारा कर के लड़का शरमा गया, दूसरे जोर से हंस पड़े. वह फिर बोली, ‘‘कहां से आए?’’

‘‘पटियाला से,’’ लड़के ने जवाब दिया.

‘‘छोरी नहीं मानेगी, उस से प्यार से बात करो.’’

कह कर साध्वी अंदर गई है और हाथ में एक सुंदर सी साड़ी ले कर आई. फिर बोली, ‘‘छोरी, यह तुम्हारे लिए है. शादी हो जाए, तो पहन कर आना.’’

इस बीच, मैं देखसुन रही थी कि कोई वीडियो कौल आई है, ‘‘मां, मेरे भाई को आशीर्वाद दो. कल उस का पेपर है.’’

अलगअलग भक्त, अलगअलग प्रसाद.

मैं देख रही थी कि लोग किन्नर साध्वी को पसंद करते हैं, मानो वे सम्मोहित हो गए हों.

यह बात तो तय है कि महामंडलेश्वर बन कर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी और साध्वी किन्नर अखाड़े को एंजौय कर रही थीं. आस्था को सिर टिकाने के लिए रीतिरिवाज का सहारा चाहिए. वे भी लोगों के बीच आस्था फैला रही थीं. कहावत को चरितार्थ कर रही थीं, ‘जो रोगिया को भावै, सो वैधा फरमावै. यही कर रही थी किन्नर साध्वी और महामंडलेश्वर किन्नर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी.’

मेरे मन में लौजिक कुलबुलाया. मन में सवाल उठा कि एक पढ़ालिखा, शिक्षित समाज भी यहां आशीर्वाद के लिए पंक्तिद्ध हो कर इंतजार में खड़ा दिखाई दे रहा है.

यह विचार करने का विषय है कि यह लोगों का अंधविश्वास है, विश्वास है या उन की आस्था. आप तर्क के आईने से इस आस्था को नहीं परख सकते. आप स्वयं अपनी राह चुन सकते हैं. लेकिन दूसरा क्या चुनता है, यह आप कैसे तय कर सकते हैं. तब तक, जब तक वह किसी को नुकसान नहीं पहुंचा रहा.

जो कुछ भी देखा, वह लोगों के मन का विश्वास था या अंधविश्वास उन के प्रति, जो स्वयं वंचित हैं, उपेक्षित हैं, जिन्हें समाज कभी मांगने वाला, तो कभी अपराधी नाम से संबोधित करता है. उन के आशीर्वाद से लोगों की मनोवांछित मनोकामना के पूरी होने का विश्वास देख आश्यर्चचकित थी.

किन्नर अखाड़े में दिनभर में किन्नरों के क्रियाकलाप, व्यवहार व कार्यों को देख उन के प्रति मन में संवेदना उपजी थी, तो 21वीं सदी में जनमानस की आस्था और उस के अंधविश्वास को देख हतप्रभ व असमंजस अनुभव कर रही थी.

मैं 34 वर्षीय महिला हूं. मेरे पूरे चेहरे पर बाल निकलने लगे हैं. मैं क्या करूं ?

सवाल
मैं 34 वर्षीय महिला हूं और 1 साल पहले तक मेरी त्वचा बहुत साफ थी. थोड़े दिनों पहले मैं ने नोटिस किया कि मेरे चेहरे पर एकदो बाल हैं और अब तो पूरे चेहरे पर बाल उग आए हैं जिस से अब मुझे न तो अपने चेहरे पर हाथ लगाना अच्छा लगता है और न ही शीशे में चेहरा देखना. धीरेधीरे मेरा कौन्फिडैंस भी खत्म होता जा रहा है. आप मुझे इस का सही ट्रीटमैंट बताएं?

जवाब
कहते हैं चेहरे की खूबसूरती पर ही पहली नजर आ कर टिकती है और आप का उसी चेहरे पर बालों की ग्रोथ के होने से परेशान होना लाजिमी है. ऐसे में आप उन्हें निकलवाने के लिए वैक्स वगैरह का सहारा बिलकुल न लें, क्योंकि उस से ग्रोथ और बढ़ती है.

आप स्त्री विशेषज्ञ को दिखाएं क्योंकि ऐसा अकसर हार्मोंस का बैलेंस बिगड़ने से होता है और वे जरूरी टैस्ट के जरिए दवाइयों के माध्यम से उन्हें बैलेंस करने की कोशिश करेंगी जिस से धीरधीरे बालों की ग्रोथ अपनेआप कम होने लगेगी.

दूसरा रास्ता है कि आप लेजर ट्रीटमैंट भी करवा सकती हैं. इस से आप का खोया कौन्फिडैंस वापस लौट सकेगा. लेकिन यह सब डाक्टर की सलाह के अनुसार ही करें.

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यूं हटाएं चेहरे से अनचाहे बाल

क्या आपके चेहरे पर भी बहुत अधिक बाल हैं? ऐसे बाल जो आपके चेहरे की खूबसूरती को कम कर देते हैं? अब आपको घबराने की जरूरत नहीं है. ज्यादातर लड़कियों को चेहरे पर बालों की समस्या होती है और कई बार यह समस्या उनके आत्मविश्वास को कम कर देती है. अक्सर ऐसा तनाव की वजह से होता है, तो कई बार अनुवांशिक या हॉर्मोनल असंतुलन के चलते भी चेहरे पर बाल निकल आते हैं.

हर बार चेहरे पर ब्लीच कराने से चेहरे की रौनक चली जाती है और बार-बार वैक्सिंग कराना भी इस समास्या का सही समाधान नहीं है. पर अगर चेहरे पर मौजूद बालों का रंग हल्का हो जाए तो? ऐसे कई घरेलू उपाय हैं जिन्हें अपनाकर आप अपने चेहरे के बालों का रंग हल्का कर सकती हैं. रंग हल्का हो जाने की वजह से वे कम नजर आएंगे और उतने बुरे भी नहीं लगेंगे.

1. संतरे के छिलके और दही का पेस्ट

संतरे का छिलका त्वचा के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है. इसके इस्तेमाल से चेहरे पर निखार आता है. साथ ही चेहरे पर मौजूद बाल भी हल्के हो जाते हैं. अगर आपको और बेहतर परिणम चाहिए तो संतरे के छिलके में थोड़ी दही और नींबू के रस की कुछ बूंदें मिला लीजिए. इस पेस्ट को हर रोज लगाने से चेहरे पर निखार आएगा, कील-मुंहासों की समस्या दूर हो जाएगी और सबसे बड़ी बात, चेहरे पर मौजूद बालों का रंग हल्का हो जाएगा.

2. पपीते और हल्दी का पेस्ट

पपीता एक नेचुरल ब्लीच है जो चेहरे की रंगत साफ करने के साथ ही चेहरे पर मौजूद बालों को भी हल्का करता है. आप चाहें तो पपीते में चुटकीभर हल्दी भी मिला सकते हैं. इस पेस्ट से हर रोज कुछ देर मसाज करें और फिर 20 मिनट के लिए यूं ही छोड़ दें. फिर चेहरा साफ कर लें. कुछ ही दिनों में चेहरे पर मौजूद बाल हल्के हो जाएंगे.

3. नींबू का रस और शहद

अगर आपको अपने चेहरे पर मौजूद बालों का रंग हल्का करना है और रंगत निखारनी है तो शहद और नींबू के रस को मिलाकर लगाने का उपाय आपके लिए बहुत फायदेमंद रहेगा. हर रोज इस मिश्रण को चेहरे पर लगाकर 10 मिनट के लिए छोड़ दें. कुछ ही दिनों में आपको फर्क नजर आने लगेगा.

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लव ऐट ट्रैफिक सिगनल -भाग 2: एक अनोखी प्रेम कहानी

पहले दिन का प्रोग्राम खत्म कर हम दोनों अपने रूम में आ गए और डिनर रूम में ही मंगवा लिया था. थोड़ी देर तक दूसरे दिन के प्रोग्राम पर कुछ बातें हुईं और हम अपनेअपने बैड पर जो गिरे तो सुबह ही आंखें खुलीं. जल्दीजल्दी तैयार हो दोनों नीचे हौल में गए जहां यह कार्यक्रम चल रहा था. डैलीगेट्स के आने से पहले पहुंचना था हमें.

इस दिन का प्रोग्राम भी संतोषजनक और उत्साहवर्धक रहा था. हमें कुछ स्पौट और्डर भी मिले, तो कुछ ने अपने देश लौट कर और्डर देने का आश्वासन दिया. शोभना आज गहरे नीले रंग के सूट में और निखर रही थी. वह सभी डैलीगेट्स को एकएक कर कंपनी की ओर से गिफ्ट पैकेट दे कर विदा कर रही थी.

प्रोग्राम समाप्त हुआ तो दोनों अपने रूम में आ गए थे. मैं ने पूछा कि विश्वविख्यात दुबई मौल घूमने का इरादा है तो वह बोली, ‘‘मुझे अकसर ज्यादा देर तक खड़े रहने से दोनों पैरों में घुटनों के नीचे भयंकर दर्द हो जाता है. मैं तो डर रही थी कि कहीं बीच में ही प्रोग्राम छोड़ कर न आना पड़े. अमित, आज का दर्द बरदाश्त नहीं हो रहा. जल्दी में दवा भी लाना भूल गई हूं. और सिर भी दर्द से फटा जा रहा है. प्लीज, मुझे यहीं आराम करने दो, तुम घूम आओ.’’

हालांकि थका तो मैं भी था, अंदर से मेरी भी इच्छा बस आराम करने की थी. मैं ने कहा, ‘‘मैं बाहर जा रहा हूं. दरवाजा बंद कर ‘डौंट डिस्टर्ब’ बोर्ड लगा दूंगा. तब तक तुम थोड़ा आराम कर लो.’’

मैं थोड़ी ही देर में होटल लौट आया था. थोड़ी दूर पर एक दवा दुकान से पेनकिलर, स्प्रे और सिरदर्द वाला बाम खरीद लाया था. धीरे से दरवाजा खोल कर अंदर गया. शोभना नींद में भी दर्द से कराह रही थी. मैं ने धीरे से उस के दोनों पैर सीधे किए. तब तक उस की नींद खुल गई थी. उस ने कहा, ‘‘क्या कर रहे हो?’’

मैं ने थोड़ा हंसते हुए कहा, ‘‘अभी तो कुछ किया ही नहीं, करने जा रहा हूं?’’

तभी उस ने सिरहाने पड़े टेबल से फोन उठा कर कहा, ‘‘मैं होटल मैनेजर को बुलाने जा रही हूं.’’

मैं ने पौकेट से दोनों दवाइयां निकाल कर उसे दिखाते हुए कहा, ‘‘पागल मत बनो. 2 रातों से तुम्हारे बगल के बैड पर सो रहा हूं. मेरे बारे में तुम्हारी यही धारणा है. लाओ अपने पैर दो. स्प्रे कर देता हूं, तुरंत आराम मिलेगा.’’

मैं ने उस के दोनों पैरों पर स्प्रे किया और एक टैबलेट भी खाने को दी.

स्प्रे से कुछ मिनटों में उसे राहत

मिली होगी, सोच कर पूछा, ‘‘कुछ आराम मिला?’’

उस के चेहरे पर कुछ शर्मिंदगी झलक रही थी. वह बोली, ‘‘सौरी अमित. मैं नींद में थी और तुम ने अचानक मेरी टांगें खींचीं तो मैं डर गई. माफ कर दो. पैरों का दर्द तो कम हो रहा है पर सिर अभी भी फटा जा रहा है.’’

मैं सिरदर्द वाला बाम ले कर उस के ललाट पर लगाने जा रहा था तो उस ने मेरे हाथ पकड़ कर रोकते हुए कहा, ‘‘अब और शर्मिंदा नहीं करो. मुझे दो, मैं खुद लगा लूंगी.’’

मैं ने लगभग आदेश देने वाले लहजे में चुपचाप लेटे रहने को कहा और बाम लगाने लगा. वह मेरी ओर विचित्र नजरों से देख रही थी और पता नहीं उसे क्या सूझा, मुझे खींच कर सीने से लगा लिया. हम कुछ पल ऐसे ही रहे थे, फिर मैं ने उस के गाल पर एक चुंबन जड़ दिया. इस पर वह मुझे दूर हटाते हुए बोली, ‘‘मैं ने इस की अनुमति नहीं दी थी.’’

मैं भी बोला ‘‘मैं ने भी तुम्हें सीने से लगने की इजाजत नहीं दी थी.’’

इस बार हम दोनों ही एकसाथ हंस पड़े थे. अगले दिन हम दुबई मौल, अटलांटिस और बुर्ज खलीफा घूमने गए. ये सभी अत्यंत सुंदर व बेमिसाल लगे थे. इसी दिन शाम की फ्लाइट से दोनों हैदराबाद लौट आए हैं. फ्लाइट में उस ने बताया कि पिछले 3 दिन उस की जिंदगी के सब से हसीं दिन रहे हैं. मेरी मां आने वाली हैं, हो सकता है मुझे कोई ब्रेकिंग न्यूज सुनाएं.

इधर 2 दिनों से शोभना नहीं दिखी पर फोन पर बातें हो रही थीं. मन बेचैन हो रहा है उस से मिलने को. शायद उस से प्यार करने लगा था. मैं ने उसे फोन कर मिलने को कहा तो वह बोली कि उस की मां आई हुई हैं. उन्होंने मुझे शाम को घर पर बुलाया है. इस के पहले हम कभी एकदूसरे के घर नहीं गए थे. शाम को शोभना के घर गया तो पहले तो मां से परिचय कराया और उन से मेरी तारीफ करने लगी.

वह चाय और स्नैक्स ले कर आई तो तीनों साथ बैठे थे. मां ने मेरा पूरा नाम और परिवार के बारे में पूछा तो मैं ने कहा कि मेरा नाम अमित रजक है और मेरे मातापिता नहीं हैं. उन्होंने अपना नाम मनोरमा पांडे बताया और कहा कि शोभना के पिता तो बचपन में ही गुजर गए थे. उन्होंने अकेले ही बेटी का पालनपोषण किया है. फिर अचानक पूछ बैठीं, ‘‘तुम्हारे पूर्वज क्या धोबी का काम करते थे?’’

उन का यह प्रश्न तो मुझे बेतुका लगा ही था, मैं ने शोभना की ओर देखा तो वह भी नाराज दिखी थी. खैर, मैं ने कहा, ‘‘आंटी, जहां तक मुझे याद है मेरे दादा तक ने तो ऐसा काम नहीं किया है. दादाजी और पिताजी दोनों ही सरकारी दफ्तर में चपरासी थे और मेरे लिए इस में शर्म की कोई बात नहीं है. और आंटी…’’

शोभना ने मेरी बात बीच में काटते हुए मां से कहा, ‘‘हम ब्राह्मण हैं तो हमारे भी दादापरदादा जजमानों के यहां सत्यानारायण पूजा बांचते होंगे न, मां?  और मैं तो ब्राह्मण हो कर भी मांसाहारी हूं?’’

मैं मां को नमस्कार कर वहां से चल पड़ा. शोभना नीचे तक छोड़ने आई थी. उस ने मुझ से मां के व्यवहार के लिए माफी मांगी. मैं अपने फ्लैट में वापस आ गया था.

दूसरे दिन शोभना ने फोन कर शाम को हुसैन सागर लेक पर मिलने को कहा. हुसैन सागर हैदराबाद की आनबानशान है. वहां शाम को अच्छी रौनक और चहलपहल रहती है. एक तरफ एक लाइन से खेलकूद, बोटिंग का इंतजाम है तो दूसरी ओर खानेपीने के स्टौल्स. और इस बड़ी लेक के बीच में गौतम बुद्घ की विशाल मूर्ति खड़ी है.

शोभना इस बार भी पहले पहुंच गई थी. हम दोनों भीड़ से थोड़ा अलग लेक के किनारे जा बैठे थे. शोभना ने कहा कि उसे मां से ऐसे व्यवहार की आशा नहीं थी.

मैं ने जब पूछा कि मां को जातपात की बात क्यों सूझी, तो उस ने कहा, ‘‘अमित, सच कहूं तो मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं. मैं ने मां को बता दिया है कि मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. पर दुख की बात यह है कि

सिर्फ जातपात के अंधविश्वास के चलते उन्हें यह स्वीकार नहीं है. मैं तो तुम्हारा पूरा नाम तुम्हारे गले में लटके आईडी पर बारबार पढ़ चुकी हूं.’’

इतना कह उस ने मेरा हाथ पकड़ कर रोते हुए कहा, ‘‘मैं दोराहे पर खड़ी हूं, तुम्हें चुनूं या मां को. मां ने साफ कहा है कि किसी एक को चुनो. बचपन में ही पिताजी की मौत के बाद मां ने अकेले दम पर मुझे पालपोस कर बड़ा किया, पढ़ायालिखाया. अब बुढ़ापे में उन्हें अकेले भी नहीं छोड़ सकती. तुम ही कुछ सुझाव दो.’’

मैं ने कहा, ‘‘शोभना, प्यार तो मैं भी तुम से करता हूं, यह अलग बात है कि मैं पहल नहीं कर सका. तुम्हें मां का साथ देना चाहिए. हर प्यार की मंजिल शादी पर आ कर खत्म हो, यह जरूरी नहीं. जिंदगी में प्यार से भी जरूरी कई काम हैं. तुम निसंकोच मां के साथ रहो. तुम भरोसा करो मुझ पर, मुझे इस बात का कोई दुख न होगा.’’

‘‘जितना प्यार और सुकून थोड़ी देर के लिए ही सही, दुबई में मुझे तुम से मिला है उस की बराबरी आजीवन कोई न कर सकेगा.’’

इतना कह वह मेरे सीने से लग कर रोने लगी और बोली, ‘‘बस, आखिरी बार सीने से लगा रही हूं अपने पहले प्यार को.’’

मैं ने उसे समझाया और अलग करते

हुए कहा, ‘‘बस, इतना समझ लेना हमारा प्यार उसी रैड सिगनल पर रुका रहा. उसे ग्रीन सिगनल नहीं मिला.’’ और दोनों जुदा हो गए.

सही कौमेडी फिल्म चुनना मेरे लिए चुनौती होती है : अनिल कपूर

अपने अलग अभिनय और अंदाज की वजह से चर्चित अनिल कपूर की शख्सीयत से कोई अनजान नहीं. उन्होंने हौलीवुड और बौलीवुड में अपनी एक अलग छवि बनाई है. उन्होंने हर शैली में काम किया है और आज भी अपने अभिनय से दर्शकों को चकित कर रहे हैं. कौमेडी हो या कुछ सीरियस, हर अंदाज में वे फिट बैठते हैं. हंसमुख और विनम्र स्वभाव के अनिल कपूर अभिनय करना और खुश रहना पसंद करते हैं और यही उन की फिटनैस का राज है. जीवन एक है और इस में उतारचढ़ाव का आना वे स्वाभाविक मानते हैं. फिल्म ‘पागलपंती’ में उन्होंने कौमिक भूमिका निभाई है जिसे ले कर वे बहुत खुश हैं. पर यहां तक पहुंचना उन के लिए आसान नहीं था.

अनिल कपूर से जब यह पूछा गया कि उन पर फिल्म की सफलता और असफलता का प्रभाव कितना रहता है व फिल्म की सफलता में अच्छी कहानी का होना कितना जरूरी होता है, तो वे कहते हैं, ‘‘कोई भी कलाकार शुरू में छोटा काम कर धीरेधीरे बड़े रोल कर स्टार बनता है. लेकिन, यहां यह सम झना जरूरी है कि कलाकार से अधिक उस की भूमिका हिट होती है जिसे लोग पसंद करते हैं. यह बात हर कलाकार को समझ में आनी चाहिए. इस का उदहारण अमिताभ बच्चन हैं जो अभी तक पौपुलर हैं. मेरी भी यही सोच रही है.

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‘‘मैं ने 17 साल से काम करना शुरू किया है और जो भी कहानी या किरदार सही हो उस में मैं काम करता हूं. पर सही कौमेडी फिल्म को चुनना मेरे लिए एक चुनौती होती है क्योंकि अगर मैं ने सही कौमेडी को नहीं चुना तो वह मेरे लिए ट्रेजिडी बन सकती है. कौमेडी को सही स्तर तक ले जाने के लिए बहुत कम फासला होता है और वह सब के बस की बात नहीं होती.’’

पहले की फिल्मों में कलाकार और निर्देशक के बीच में एक गहरा संबंध होता था जिस से कई बार कलाकार संबंधों की वजह से भी फिल्में साइन कर लेते थे. पर अब यह पूरी तरह प्रोफैशनल हो चुका है. इन बातों पर आप कितना ध्यान देते हैं? इस पर वे बताते हैं, ‘‘मैं बहुत अधिक बदल नहीं सकता. पुराना स्वभाव बीच आ ही जाता है. एक रिश्ता, एक इमोशन अपनेआप ही निर्मातानिर्देशक के साथ आ जाता है. मैं एक आत्मविश्वासी इंसान हूं और बहुत अधिक किसी विषय पर नहीं सोचता. इसलिए फिल्म न चलने पर भी घबराहट नहीं होती.’’

अनिल अपनी फिटनैस के लिए बहुत मशहूर हैं. इस फिटनैस का राज व अपने अंदर सकारात्मकता को कैसे बनाए रखते हैं, इस बात को वे इस प्रकार जाहिर करते हैं, ‘‘मैं नियमित वर्कआउट करता हूं. किसी प्रकार का नशा मैं नहीं करता. मु झे दक्षिण भारतीय व्यंजन में स्टीम्ड इडली बहुत पसंद है, क्योंकि यह बहुत पौष्टिक भोजन है. इस के अलावा मेरे लिए मेरे कैरियर और लाइफ का हर दिन नया होता है. सुबह उठ कर मैं जिंदा हूं और काम कर रहा हूं, यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात होती है.

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‘‘जीवन में उतारचढ़ाव और तनाव को मैं अधिक समय तक अपने पास रहने नहीं देता. आधे से एक घंटे में उस का कोई सौल्यूशन निकाल ही लेता हूं. हर इंसान के जीवन में ऐसी परिस्थितियों से निकलने का एक नुस्खा होता है, जो उस व्यक्ति को खुद ही खोज कर निकालना होता है. इस के साथसाथ पौजिटिव लोगों के सान्निध्य में रहने की कोशिश करता हूं. इस के लिए परिवार, दोस्तों और काम का सही होना जरूरी है.’’

बातों के दौरान अनिल अपने बच्चों की खुद से लगातार तुलना किए जाने के विषय में कहते हैं, ‘‘असल में यहां तक पहुंचने में मैं ने भी बहुत पापड़ बेले हैं. बहुत उतारचढ़ाव से गुजरा हूं. मैं ने बहुत मेहनत की है. मु झे अच्छा नहीं लगता जब मेरे बच्चों की तुलना मेरे साथ की जाती है. उन्हें इंडस्ट्री में आए कुछ ही साल हुए हैं. अनुभव से ही काम में परिपक्वता आती है. पहले मु झे भी फिल्म न चलने, मेरे लिए मीडिया का कुछ लिख देना खराब लगता था. पहले मैं आज जैसा पौजिटिव सोच नहीं पाता था. समय के साथसाथ सम झदारी बढ़ी है.’’

अनिल कपूर की प्रोड्यूस की गई फिल्म ‘गांधी माय फादर’ नहीं चली. ऐसे में उन्होंने खुद को कैसे संभाला, इस पर अनिल यों जवाब देते हैं, ‘‘मैं ने वह फिल्म बहुत ही मेहनत से बनाई थी. दर्शकों ने उसे पसंद नहीं किया. पर उसे 2 अवार्ड मिले. टीम के सब लोग फिल्म के न चलने से परेशान थे, पर मैं अधिक घबराया नहीं क्योंकि उस समय मैं फिल्म ‘स्लमडौग मिलियनेयर’ की शूटिंग कर रहा था. उस में मैं ने बहुत कम काम किया, पर फिल्म औस्कर में चली गई. मु झे एक मोरल बूस्ट मिला.

‘‘फिल्म ‘गांधी माय फादर’ की असफलता में मुझे ‘स्लमडौग मिलियनेयर’ की सफलता हासिल हुई और मैं ने बहुत कम दाम में अपनी फिल्म को हौल तक जाने दिया जिस से मेरा तनाव कम हो गया. जीवन में कई ऐसी स्थितियां आती हैं और आप उन से गुजर कर बहुत सारी बातें सीखते हैं.’’

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आखिर में अपने राजनीति में आने को ले कर अनिल कपूर कहते हैं, ‘‘नहीं, राजनीति का मु झे कोई शौक अभी नहीं है. मैं अपने परिवार, दोस्तों और काम के साथ बहुत खुश हूं. लेकिन, कल क्या होने वाला है, यह आज बताना संभव नहीं.’’

हिना खान ने शेयर की ब्लैक एंड व्हाइट ड्रेस में फोटोज, फैंस ने दिया ये रिएक्शन

एक्ट्रेसहै हिना खान अपने फैशनेबल अंदाज के लिए ज्यादा चर्चा में रहती है. अक्सर हिना सोशल मीडिया पर फोटोज शेयर करती है. आपको बता दें, हाल ही में हिना ने कुछ तस्वीरें शेयर की है. इन तस्वीरों को शेयर करते हुए हिना खुद को हौट बताई हैं. हिना ब्लैक एंड व्हाईट ड्रेस में नजर आ रही हैं.

हिना के इन तस्वीरों को फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. बेशक हिना इस ब्लैक एंड व्हाईट ड्रेस में बहुत खूबसूरत नजर आ रही हैं.

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कमेंट बौक्स में हिना के लिए फैंस ने बेहद खूबसूरत एक्ट्रेस लिखा है तो कई फैंस ने हार्ट वाली इमोजी पोस्ट की है.

हिना ने  अपने कैरियर की शुरूआत सीरियल से की थी. हिना सीरियल से काफी पौपुलर हुई.  वे  कई रियलिटी शोज का भी हिस्सा रह चुकी हैं.

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अब वे अपनी अपकमिंग फिल्म हैक्ड को लेकर खबरों में बनीं हुई हैं. यह एक थ्रिलर फिल्म है. इस फिल्म में हिना मैगजीन एडिटर का किरदार में नजर आएंगी. यह फिल्म 2020 में रिलीज होगी.

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दबे पांव दबोचता मीठा दानव

माया एक कामकाजी महिला है. सुबह 6 बजे शुरू होने वाली उस की दिनचर्र्या रात 11 बजे तक घड़ी की सुइयों के साथ तालमेल बैठाती हुई चलती है. सब का खयाल रखने वाली माया को खुद अपना खयाल रखने का वक्त नहीं मिलता. कभी नाश्ता छूट जाता है तो कभी लंच नहीं कर पाती. रात का खाना भी अकसर लेट हो जाता है. लगातार बनी रहने वाली थकान को वह काम के बोझ से उत्पन्न हुई कमजोरी समझती रही. मगर जब उस का वजन तेजी से गिरने लगा तब डाक्टर की सलाह से उस ने ब्लडशुगर की जांच करवाई और उसे अपनी थकान का असली कारण समझ आया.

रजनी पिछले एक माह से योनिमार्ग के संक्रमण से जूझ रही थी. संकोची रजनी पहले तो घर में ही दादीनानी के बताए नुस्खे आजमाती रही, फिर बात बिगड़ती देख महल्ले में खुले मैडिकल स्टोर के कैमिस्ट से दवा ले आई. मगर बात उस से भी नहीं बनी. तब झिझकते हुए उस ने स्त्रीरोग विशेषज्ञ से मिल कर अपनी समस्या का जिक्र किया. अनुभवी डाक्टर तुरंत कारण समझ गई और उस ने रजनी से ब्लडशुगर की जांच करवाने के लिए कहा. अगले दिन जांच रिपोर्ट में उस ने पाया कि रजनी के ब्लड में शुगर का लैवल काफी बढ़ा हुआ था.

डाक्टर ने उसे आवश्यक दवाएं देते हुए मौर्निंग वाक और ऐक्सरसाइज करने की सलाह दी और 15 दिनों बाद उसे फिर से शुगर की जांच करवाने को कहा. अब जा कर रजनी को अपनी परेशानी से मुक्ति मिली. मगर दवाएं तो अस्थायी समाधान थीं रजनी की समस्या का. अपनी डायबिटीज को नियंत्रण में रखने के लिए उसे मौर्निंग वाक नियमित जारी रखनी होगी. रजनी तय नहीं कर पा रही थी कि सुबह के व्यस्त घंटों में वह खुद के लिए समय कैसे निकाल सकेगी.

माया और रजनी की तरह भारत की करोड़ों महिलाएं इस समस्या से जूझ रही हैं. यदि यह कहा जाए कि यह बीमारी धीरेधीरे एक महामारी का रूप लेती जा रही है तो गलत नहीं होगा. तनाव, मोटापा, शारीरिक श्रम की कमी, अनियमित दिनचर्या और खानपान की गलत आदतें जहां इस के लिए जिम्मेदार मानी जा सकती हैं, वहीं कई मामलों में यह आनुवंशिक भी होती है.

लेख में ब्लडशुगर के प्रकार, उस के लक्षण, उस के कारणनिवारण, परहेज और खानपान से संबंधित कोई चर्चा नहीं की जा रही क्योंकि संचार माध्यमों और इंटरनैट की सुगम व सहज उपलब्धता ने यह सब बहुत ही आसान बना दिया है. सभी जानकारियां सब को एक क्लिक पर ही उपलब्ध हो जाती हैं.

महिलाओं की उस सहज प्रवृत्ति की इस लेख में चर्चा की जा रही है जिस के चलते महिलाएं अपनेआप को देखभाल के मामले में सब से पीछे रखती हैं. रजनी और माया ही नहीं, बल्कि लगभग हर महिला, फिर चाहे वह कामकाजी हो या घरेलू, हमेशा पतिबच्चों और अन्य परिजनों का तो बेहतर खयाल रखती है मगर स्वयं अपने मामले में कोताही बरत जाती है.

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तनाव में रहती महिलाएं

कामकाजी महिलाओं में इस समस्या का एक बड़ा कारण है तनाव. बरसों पहले जब महिलाएं मुख्य रूप से घर के भीतर की जिम्मेदारियां ही संभाला करती थीं तब वे अपेक्षाकृत तनाव से दूर रहा करती थीं. हालांकि, खुद की बेहतर देखभाल वे तब भी नहीं किया करती थीं.

आज महिलाएं जब घर के साथसाथ बाहर की जिम्मेदारियां भी संभालने में लगी हुई हैं, उन के मानसिक तनाव के स्तर में अप्रत्याशित रूप से बढ़ोतरी हुई है. किसी भी पारिवारिक सदस्य से जुड़ी किसी भी व्यवस्था में हुई चूक के लिए वे अपनेआप को जिम्मेदार ठहरा लेती हैं और अनावश्यक तनाव पाल लेती हैं. उन की इसी सहज प्रवृत्ति का लाभ बाहर वाले भी उठा लेते हैं.

अकसर औफिस में भी उन्हें कई ऐसी बातों के लिए दोषी ठहरा दिया जाता है जो सीधेसीधे उन से जुड़ी ही नहीं होतीं. फिर भी वे उस की सहज जिम्मेदारी ओढ़ कर अपनेआप को परेशानी में डाल लेती हैं.

पीढि़यों से चलते आए उन के संस्कार उन की रगों में खून की तरह बहते हैं और वे लाख कोशिश कर के भी अपनेआप को इस प्रवृत्ति से आजाद नहीं कर पातीं. वे चाह कर भी खुद को खास नहीं समझ पातीं. उन्हें तो यह घुट्टी में ही पिलाया जाता है कि उन का जन्म घरपरिवार की देखभाल के लिए ही हुआ है. ऐसे में क्या परिवार के पुरुष सदस्यों की यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि अपनेआप को भूल कर उन की सेवासहायता करने वाली महिला विशेषकर अपनी पत्नी को वे खास महसूस करवाएं?

पुरुष रखें खयाल

पुरुषों का ऐसा बहुत ही कम प्रतिशत है जिस का ध्यान अपनी पत्नी की पीड़ा की तरफ जाता है. बातचीत करने पर पाया गया कि लगभग हर पुरुष यही कहता है – ‘जब सारा घर पत्नी के हवाले कर दिया तो फिर अलग से खास क्या करना?’ मगर, यहीं चूक हो जाती है. पूरे परिवार की फिक्र करने वाली महिला अपनेआप पर कभी खर्च नहीं करती और स्वास्थ्य के नाम पर तो बिलकुल भी नहीं. उस के मन में कहीं न कहीं यह चाह रहती है कि कभी तो पति भी उस का खयाल रखे, कभी तो वह भी उस की तकलीफ को महसूस करे जैसे वह सब की तकलीफ महसूस करती है.

यदि पत्नी मधुमेह से परेशान है तो कुछ तरीके हैं जिन की मदद से उसे यह एहसास करवाया जा सकता है कि वह घर की धुरी है और पूरे परिवार को उस की खास जरूरत है –

सुबहसुबह की चाय यदि पति उसे अपने हाथों से बना कर पिलाए, तो वह फीकी चाय भी पूरे दिन उस के मन में मिठास घोले रहती है.

पत्नी मौर्निंग वाक पर नहीं जा पाती क्योंकि यही वक्त होता है जब उसे बच्चों के लिए स्कूल टिफिन बनाना होता है और उन्हें स्कूल के लिए तैयार करना होता है. ऐसे में यदि पति उस की थोड़ी सी मदद कर दे तो उसे स्वयं के लिए वक्त निकालना आसान हो जाता है.

पति को समयसमय पर चैक करते रहना चाहिए कि पत्नी की आवश्यक दवाओं का पूरा स्टौक घर में है या नहीं.

किसी काम को करने से यदि मना किया जाए तो मन में उसे बारबार करने की तीव्र लालसा उत्पन्न होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. यानी, यदि पत्नी के मन में मीठा खाने की इच्छा हो तो कभीकभी शुगरफ्री मिठाई ला कर उसे सरप्राइज दिया जा सकता है.

पत्नी कामकाजी हो या घरेलू, यदि पति उस की छोटी सी मदद भी करे तो यह उस के लिए बड़ीबड़ी खुशियों का सबब बन जाती है.

पति को चाहिए कि औफिस जाते समय देख ले कि पत्नी के टिफिन में पौष्टिक खाना है या नहीं. हो सके तो लंचटाइम में फोन कर के सुनिश्चित कर ले कि उस ने वक्त पर खाना खा लिया है, क्योंकि डायबिटीज के मरीजों के लिए सही वक्त पर भोजन करना बहुत जरूरी होता है.

कभीकभी फल और हरी सब्जियां पत्नी को मनुहार कर के खिलाइए, फिर देखिए कैसे उस के चेहरे की रौनक बढ़ जाती है.

रात को खाने के बाद उसे अपने साथ टहलाने ले कर जाइए, पत्नी के साथसाथ आप का भी स्वास्थ्य ठीक रहेगा और आप दोनों को एकदूसरे के साथ बिताने के लिए क्वालिटी टाइम भी मिलेगा.

पत्नी की ब्लडशुगर और अन्य जांच करवाने के लिए नियमित रूप से पति को स्वयं उस के साथ जाना चाहिए और उस का रिकौर्ड भी संभाल कर रखना चाहिए.

कभी पत्नी का साथ देने के लिए अपना चटपटा खानानाश्ता छोड़ कर जौ, चने की रोटी और दलिया खा कर देखिए, एक अनूठा स्वाद भर जाएगा जिंदगी में.

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डायबिटीज के रोगियों को डाक्टर द्वारा खुश और तनाव से दूर रहने की सलाह दी जाती है. उपरोक्त तरीकों से यदि पत्नी की मदद की जाए, उस का साथ दिया जाए और उस का खयाल रखा जाए तो उसे महामारी सी लगने वाली यह बीमारी डराएगी नहीं, बल्कि वह पूरी हिम्मत के साथ उस का सामना करेगी. पति की एक छोटी सी पहल उसे खुश कर देगी, उस की उदास जिंदगी में रंग भर देगी. और जब पत्नी खुश रहेगी तो कहने की जरूरत नहीं कि आप का पूरा परिवार खुश और स्वस्थ रहेगा.

बच्चों के लिए ब्रेकफास्ट में बनाएं मटरगाजर सैंडविच

आज आपको बताते हैं मटरगाजर सैंडविच बनाने की रेसिपी. आप बच्चों के लिए ये रेसिपी ब्रेकफास्ट में बना सकती है और ये हेल्दी डिश भी है.  इसे बनाना  काफी आसान है. तो चलिए जानते हैं इसे कैसे बनाएं.

सामग्री

1/2 चम्मच पिसी हुई काली मिर्च

5 लौंग और बारीक कटा हुआ लहसुन

1 चम्मच रिफाइन्ड औइल

मटर-गाजर सैंडविच बनाने की वि​धि

1 कप उबले मटर

आधा चम्मच चाट मसाला पाउडर

स्वादानुसार नमक

2 कटी हुई हरी मिर्च

4 चम्मच मेयोनीज

1/4 चम्मच घिसा हुआ गाजर

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बनाने की विधि

सबसे पहले पैन में 1 चम्मच कुकिंग औइल गर्म करें.

तेल गर्म होने पर उसमें कटी हुई हरी मिर्च और लहसुन डाल दें.

कुछ देर उसे चलाएं और अब इसमें उबले मटर और घिसे हुए गाजर डालें और चलाते रहें.

इसके पक जाने पर इसमें काली मिर्च, चाट मसाला और नमक डालें.

इस ब्रेड की स्लाइस लें और उसपर अपने स्वाद के अनुसार मेयोनीज लगाएं.

अब ब्रेड पर वेजिटेबल मिक्सचर रखें.

इसपर घिसा हुआ पनीर छिड़क दें.

इसके ऊपर ब्रेड की दूसरी स्लाइस रखें और इसे टोस्टर में सेक लें.

जानें, कैसे बनाएं काजू और मटर की करी

घर में उगाएं सब्जियां

अच्छी सेहत के लिए खाने में रोजाना ताजा फलसब्जियां खानी चाहिए, पर तेजी से बढ़ती महंगाई की वजह से फल और सब्जियों के दाम भी आसमान छूने लगे हैं. इस के चलते हमारी खुराक में रोज फलसब्जियों की कमी होती जा रही है. बाजार में मिलने वाली सब्जियों व फलों में खतरनाक कैमिकलों व रंगों के इस्तेमाल की कहानी भी हमें आएदिन सुनने को मिलती है.

वैज्ञानिकों के मुताबिक, हमें पर्याप्त पोषण के लिए रोजाना 300 ग्राम सब्जियां खानी चाहिए, जबकि अभी हम महज 50 ग्राम सब्जियां ही ले पा रहे हैं. इस से बचने का सब से अच्छा उपाय है कि हम अपनी जरूरतों के मुताबिक कुछ फलसब्जियां खुद उगाएं. इस से न केवल सेहत सुधरेगी, बल्कि हमें बाजार के मुकाबले अच्छी और साफसुथरी फलसब्जियां भी खाने को मिलेंगी. तजरबों से यह बात साबित हो चुकी है कि पौधों के उगाने व उन की देखभाल करने से हमारा तनाव कम होता है और खुशी मिलती है.

बढ़ती हुई आबादी ने खेती की जमीन को काफी कम किया है. शहरों में तेजी से आबादी बढ़ी  है, जिस से लोगों के रहने की जगह में भी कमी होने लगी है. बहुमंजिला इमारतों व शहरी आवासों में फलसब्जियों को उगाने के लिए जरा भी जगह नहीं मिल पा रही है.

अब हमें गमलों, बालकनी, आंगन, बरामदा, लटकने वाली टोकरियों या घरों की छतों पर, जहां कहीं भी खुली धूप और हवा मिल सकती हो और पानी की सहूलियत हो, पौधे उगाने की तकनीक का सहारा लेना चाहिए. अगर आप ने थोड़ी सी भी सावधानी बरती, तो आसानी से कम जगह में पौधे उगा कर किचन गार्डन का आनंद उठा सकते हैं.

कैसी हो जगह : आप अपने घर या आसपास की कोई भी खाली जगह, जो खुली हो, का चुनाव कर सकते हैं. पौधों के लिए सुबह की धूप बहुत जरूरी होती है. साथ ही, उस जगह पर पानी देने और ज्यादा पानी को निकालने की सहूलियत होनी चाहिए. ऐसी जगहों में घर के आंगन, छत, बालकनी, खिड़कियों के किनारे वगैरह शामिल हो सकते हैं.

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पौधे लगाने की तैयारी : अगर पौधों को छत पर सीधे लगाना है, तो मिट्टी की परत 25-30 सैंटीमीटर मोटी होनी चाहिए.

छत पर मिट्टी डालने से पहले नीचे पौलीथिन की मोटी तह बना कर चारों ओर ईंटों से दबा दें, ताकि पानी और सीलन से छत महफूज रहे. उपजाऊ मिट्टी में सड़ी गोबर की खाद व बालू मिला कर अच्छी तरह तह बना दें.

गमलों में पौधे लगाने के लिए : पौधों के आकार व फसल के मुताबिक ही गमलों के आकार का चुनाव किया जाना चाहिए. पपीते जैसे बड़े पौधों के लिए कम से कम 75 सैंटीमीटर ऊंचे और 45 सैंटीमीटर चौड़े ड्रम को इस्तेमाल में लाना चाहिए. टमाटर, मिर्च जैसे पौधों के लिए 30×45 सैंटीमीटर आकार वाले मिट्टी के गमले अच्छे होते हैं.

सीमेंट या प्लास्टिक के गमलों से बचना चाहिए. गमलों के अलावा लकड़ी या स्टील के चौड़े बौक्स, ड्रम, प्लास्टिक के बड़े डब्बे या जूट की छोटी बोरियों में मिट्टी भर कर भी पौधों को लगाया जा सकता है.

मिट्टी डालने से पहले गमले या डब्बों में नीचे की सतह पर छेद बना कर पत्थर के टुकड़ों से ढक देना चाहिए. पौध लगाने से पहले हमें मिट्टी में सड़ी गोबर की खाद व बालू, मिट्टी के बराबर अनुपात में मिला कर भर लेना चाहिए. नीम की खली, पत्ती व जानवरों की खाद या वर्मी कंपोस्ट का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

पौधों का चुनाव : छत पर बगिया में पौधे लगाते समय मौसम, धूप व जगह वगैरह पर खासा ध्यान दिया जाना चाहिए. कम धूप वाली जगह या छायादार जगह पर पत्तीदार व जड़ वाली सब्जियां जैसे पालक, धनिया, पुदीना, मेथी, मूली वगैरह लगाई जा सकती है, जबकि फल देने वाले पौधे जैसे टमाटर, बैगन, मिर्च, शिमला मिर्च, सेम, स्ट्राबेरी, पपीता, केला, रसभरी और नीबू खुले व अच्छी धूप वाली जगह में लगाए जाने चाहिए. छत या गमलों के लिए फसलों की खास किस्मों का चुनाव करना चाहिए.

देखभाल : शुरू में पौधों को एकदूसरे के नजदीक लगाना चाहिए और बाद में घने पौधों में उचित दूरी बनाने के लिए बीच से कमजोर और बीमार पौधों को निकाल देना चाहिए.

बेल या फैलने वाले पौधों जैसे लौकी, तुरई, करेला, सेम वगैरह को सहारा दे कर ऊपर या दीवार पर चढ़ाना चाहिए. टमाटर, बैगन, मिर्च को भी सहारा दे कर ऊपर ले जाना चाहिए और पौधों को नीचे फैलने से रोकना चाहिए. समयसमय पर पौधों में हलका पानी देते रहना चाहिए.

छत पर व गमलों में पौधों का रंग पीला पड़ना एक आम समस्या है. अकसर धूप की कमी और पानी की अधिकता से पौधे पीले पड़ते हैं. अगर गमलों में उग रहे पौधों को पर्याप्त धूप न मिल रही हो, तो उन्हें दिन में खुली धूप में रखें. बाद में उन्हें अंदर करें.

पौधों की खुराक के लिए वर्मी कंपोस्ट, जैविक खाद, गोबर की खाद वगैरह को समयसमय पर पौधों में डालते रहें या फिर उसे मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें. अच्छे पोषण के लिए पानी में घुलने वाले एनपीके की उचित मात्रा भी दी जा सकती है.

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