एमडीआर ट्यूबरकुलोसिस यानी टीबी का जानलेवा विकराल रूप फेफड़े की साधारण टीबी के मरीजों को ठीक होते हुए भी देखा होगा पर एमडीआर टीबी का नाम या तो कभी आप ने सुना नहीं होगा या फिर हाल के कुछ सालों में यह नाम रिश्तेदार या मित्रों द्वारा सुनने में आया होगा. एमडीआर टीबी यानी दूसरे शब्दों में अगर कहें तो मौत का पैगाम, अगर समय रहते इस की विकरालता पर अंकुश नहीं लगाया गया.
एमडीआर टीबी की भयानकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक तरफ तो इस रोग से ग्रसित मरीज जीविकोपार्जन के लिए सर्वथा अयोग्य हो जाता है जिस से रोगी का घरपरिवार आर्थिक तंगी व बदहाली का शिकार हो जाता है, तो दूसरी तरफ रोगग्रस्त मरीज टीबी के इन्फैक्शन को तेज गति से फैलाने का स्त्रोत बन जाता है, जिस की वजह से घरपरिवार के सदस्य तो नजदीक होने की वजह से टीबी की चपेट में आते ही हैं, साथ ही साथ, उस के कार्यस्थल के सहकर्मी, नजदीकी मित्र व रिश्तेदार और पड़ोसी भी अनजाने में टीबी इन्फैक्शन के आक्रमण से बच नहीं पाते हैं.
सारी दुनिया में एक इकलौते इन्फैक्शन से होने वाली मौतों के कारणों में एड्स या एचआईवी के बाद ट्यूबरकुलोसिस का दूसरे नंबर पर स्थान है. आप चौंकिए नहीं, अपने भारतवर्ष में ही हर साल 15 लाख नए टीबी के मरीज बनते हैं और इन 15 लाख में तकरीबन एक लाख मरीज हर साल एमडीआर ट्यूबरकुलोसिस में परिवर्तित हो जाते हैं, और इन एक लाख एमडीआर टीबी के मरीजों में केवल 7 प्रतिशत ही अपना इलाज करवा पाते हैं. हर साल टीबी से मरने वालों की संख्या अपने देश में करीब 14 लाख है. इन मौतों में करीब दोतिहाई मौतों का जिम्मेदार एमडीआर ट्यूबरकुलोसिस है.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन





