माया एक कामकाजी महिला है. सुबह 6 बजे शुरू होने वाली उस की दिनचर्र्या रात 11 बजे तक घड़ी की सुइयों के साथ तालमेल बैठाती हुई चलती है. सब का खयाल रखने वाली माया को खुद अपना खयाल रखने का वक्त नहीं मिलता. कभी नाश्ता छूट जाता है तो कभी लंच नहीं कर पाती. रात का खाना भी अकसर लेट हो जाता है. लगातार बनी रहने वाली थकान को वह काम के बोझ से उत्पन्न हुई कमजोरी समझती रही. मगर जब उस का वजन तेजी से गिरने लगा तब डाक्टर की सलाह से उस ने ब्लडशुगर की जांच करवाई और उसे अपनी थकान का असली कारण समझ आया.
रजनी पिछले एक माह से योनिमार्ग के संक्रमण से जूझ रही थी. संकोची रजनी पहले तो घर में ही दादीनानी के बताए नुस्खे आजमाती रही, फिर बात बिगड़ती देख महल्ले में खुले मैडिकल स्टोर के कैमिस्ट से दवा ले आई. मगर बात उस से भी नहीं बनी. तब झिझकते हुए उस ने स्त्रीरोग विशेषज्ञ से मिल कर अपनी समस्या का जिक्र किया. अनुभवी डाक्टर तुरंत कारण समझ गई और उस ने रजनी से ब्लडशुगर की जांच करवाने के लिए कहा. अगले दिन जांच रिपोर्ट में उस ने पाया कि रजनी के ब्लड में शुगर का लैवल काफी बढ़ा हुआ था.
डाक्टर ने उसे आवश्यक दवाएं देते हुए मौर्निंग वाक और ऐक्सरसाइज करने की सलाह दी और 15 दिनों बाद उसे फिर से शुगर की जांच करवाने को कहा. अब जा कर रजनी को अपनी परेशानी से मुक्ति मिली. मगर दवाएं तो अस्थायी समाधान थीं रजनी की समस्या का. अपनी डायबिटीज को नियंत्रण में रखने के लिए उसे मौर्निंग वाक नियमित जारी रखनी होगी. रजनी तय नहीं कर पा रही थी कि सुबह के व्यस्त घंटों में वह खुद के लिए समय कैसे निकाल सकेगी.
माया और रजनी की तरह भारत की करोड़ों महिलाएं इस समस्या से जूझ रही हैं. यदि यह कहा जाए कि यह बीमारी धीरेधीरे एक महामारी का रूप लेती जा रही है तो गलत नहीं होगा. तनाव, मोटापा, शारीरिक श्रम की कमी, अनियमित दिनचर्या और खानपान की गलत आदतें जहां इस के लिए जिम्मेदार मानी जा सकती हैं, वहीं कई मामलों में यह आनुवंशिक भी होती है.
लेख में ब्लडशुगर के प्रकार, उस के लक्षण, उस के कारणनिवारण, परहेज और खानपान से संबंधित कोई चर्चा नहीं की जा रही क्योंकि संचार माध्यमों और इंटरनैट की सुगम व सहज उपलब्धता ने यह सब बहुत ही आसान बना दिया है. सभी जानकारियां सब को एक क्लिक पर ही उपलब्ध हो जाती हैं.
महिलाओं की उस सहज प्रवृत्ति की इस लेख में चर्चा की जा रही है जिस के चलते महिलाएं अपनेआप को देखभाल के मामले में सब से पीछे रखती हैं. रजनी और माया ही नहीं, बल्कि लगभग हर महिला, फिर चाहे वह कामकाजी हो या घरेलू, हमेशा पतिबच्चों और अन्य परिजनों का तो बेहतर खयाल रखती है मगर स्वयं अपने मामले में कोताही बरत जाती है.
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तनाव में रहती महिलाएं
कामकाजी महिलाओं में इस समस्या का एक बड़ा कारण है तनाव. बरसों पहले जब महिलाएं मुख्य रूप से घर के भीतर की जिम्मेदारियां ही संभाला करती थीं तब वे अपेक्षाकृत तनाव से दूर रहा करती थीं. हालांकि, खुद की बेहतर देखभाल वे तब भी नहीं किया करती थीं.
आज महिलाएं जब घर के साथसाथ बाहर की जिम्मेदारियां भी संभालने में लगी हुई हैं, उन के मानसिक तनाव के स्तर में अप्रत्याशित रूप से बढ़ोतरी हुई है. किसी भी पारिवारिक सदस्य से जुड़ी किसी भी व्यवस्था में हुई चूक के लिए वे अपनेआप को जिम्मेदार ठहरा लेती हैं और अनावश्यक तनाव पाल लेती हैं. उन की इसी सहज प्रवृत्ति का लाभ बाहर वाले भी उठा लेते हैं.
अकसर औफिस में भी उन्हें कई ऐसी बातों के लिए दोषी ठहरा दिया जाता है जो सीधेसीधे उन से जुड़ी ही नहीं होतीं. फिर भी वे उस की सहज जिम्मेदारी ओढ़ कर अपनेआप को परेशानी में डाल लेती हैं.
पीढि़यों से चलते आए उन के संस्कार उन की रगों में खून की तरह बहते हैं और वे लाख कोशिश कर के भी अपनेआप को इस प्रवृत्ति से आजाद नहीं कर पातीं. वे चाह कर भी खुद को खास नहीं समझ पातीं. उन्हें तो यह घुट्टी में ही पिलाया जाता है कि उन का जन्म घरपरिवार की देखभाल के लिए ही हुआ है. ऐसे में क्या परिवार के पुरुष सदस्यों की यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि अपनेआप को भूल कर उन की सेवासहायता करने वाली महिला विशेषकर अपनी पत्नी को वे खास महसूस करवाएं?
पुरुष रखें खयाल
पुरुषों का ऐसा बहुत ही कम प्रतिशत है जिस का ध्यान अपनी पत्नी की पीड़ा की तरफ जाता है. बातचीत करने पर पाया गया कि लगभग हर पुरुष यही कहता है – ‘जब सारा घर पत्नी के हवाले कर दिया तो फिर अलग से खास क्या करना?’ मगर, यहीं चूक हो जाती है. पूरे परिवार की फिक्र करने वाली महिला अपनेआप पर कभी खर्च नहीं करती और स्वास्थ्य के नाम पर तो बिलकुल भी नहीं. उस के मन में कहीं न कहीं यह चाह रहती है कि कभी तो पति भी उस का खयाल रखे, कभी तो वह भी उस की तकलीफ को महसूस करे जैसे वह सब की तकलीफ महसूस करती है.
यदि पत्नी मधुमेह से परेशान है तो कुछ तरीके हैं जिन की मदद से उसे यह एहसास करवाया जा सकता है कि वह घर की धुरी है और पूरे परिवार को उस की खास जरूरत है –
सुबहसुबह की चाय यदि पति उसे अपने हाथों से बना कर पिलाए, तो वह फीकी चाय भी पूरे दिन उस के मन में मिठास घोले रहती है.
पत्नी मौर्निंग वाक पर नहीं जा पाती क्योंकि यही वक्त होता है जब उसे बच्चों के लिए स्कूल टिफिन बनाना होता है और उन्हें स्कूल के लिए तैयार करना होता है. ऐसे में यदि पति उस की थोड़ी सी मदद कर दे तो उसे स्वयं के लिए वक्त निकालना आसान हो जाता है.
पति को समयसमय पर चैक करते रहना चाहिए कि पत्नी की आवश्यक दवाओं का पूरा स्टौक घर में है या नहीं.
किसी काम को करने से यदि मना किया जाए तो मन में उसे बारबार करने की तीव्र लालसा उत्पन्न होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. यानी, यदि पत्नी के मन में मीठा खाने की इच्छा हो तो कभीकभी शुगरफ्री मिठाई ला कर उसे सरप्राइज दिया जा सकता है.
पत्नी कामकाजी हो या घरेलू, यदि पति उस की छोटी सी मदद भी करे तो यह उस के लिए बड़ीबड़ी खुशियों का सबब बन जाती है.
पति को चाहिए कि औफिस जाते समय देख ले कि पत्नी के टिफिन में पौष्टिक खाना है या नहीं. हो सके तो लंचटाइम में फोन कर के सुनिश्चित कर ले कि उस ने वक्त पर खाना खा लिया है, क्योंकि डायबिटीज के मरीजों के लिए सही वक्त पर भोजन करना बहुत जरूरी होता है.
कभीकभी फल और हरी सब्जियां पत्नी को मनुहार कर के खिलाइए, फिर देखिए कैसे उस के चेहरे की रौनक बढ़ जाती है.
रात को खाने के बाद उसे अपने साथ टहलाने ले कर जाइए, पत्नी के साथसाथ आप का भी स्वास्थ्य ठीक रहेगा और आप दोनों को एकदूसरे के साथ बिताने के लिए क्वालिटी टाइम भी मिलेगा.
पत्नी की ब्लडशुगर और अन्य जांच करवाने के लिए नियमित रूप से पति को स्वयं उस के साथ जाना चाहिए और उस का रिकौर्ड भी संभाल कर रखना चाहिए.
कभी पत्नी का साथ देने के लिए अपना चटपटा खानानाश्ता छोड़ कर जौ, चने की रोटी और दलिया खा कर देखिए, एक अनूठा स्वाद भर जाएगा जिंदगी में.
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डायबिटीज के रोगियों को डाक्टर द्वारा खुश और तनाव से दूर रहने की सलाह दी जाती है. उपरोक्त तरीकों से यदि पत्नी की मदद की जाए, उस का साथ दिया जाए और उस का खयाल रखा जाए तो उसे महामारी सी लगने वाली यह बीमारी डराएगी नहीं, बल्कि वह पूरी हिम्मत के साथ उस का सामना करेगी. पति की एक छोटी सी पहल उसे खुश कर देगी, उस की उदास जिंदगी में रंग भर देगी. और जब पत्नी खुश रहेगी तो कहने की जरूरत नहीं कि आप का पूरा परिवार खुश और स्वस्थ रहेगा.