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शुभारंभ : रानी के परिवार पर लगेगा चोरी का इल्जाम, क्या टूट जाएगी शादी ?

कलर्स के शो “शुभारंभ” में अब तक आपने देखा कि राजा-रानी अपनी शादी को लेकर काफी खुश नजर आ रहे हैं. लेकिन कीर्तिदा शादी में रुकावट डालने के लिए नई चाल चलती है और रानी के कुंडली में दोष बताती है. यहाँ तक की, वह रानी की शादी गली के कुते से कराने को कह देती है, जिससे कुंडली दोष दूर हो जाए. लेकिन रानी की सूझ-बूझ से ये विपत्ती भी दूर हो जाती है. आइए बताते हैं, क्या होने वाला है शो में आगे.

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 कीर्तिदा ने लगाया रानी के परिवार पर चोरी का इल्जाम

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कीर्तिदा इस बार ऐसा षडयंत्र रचती है कि शादी बस टूट ही जाये. कीर्तिदा खानदान का पुश्तैनी ज़ेवर, जिसे पोची कहते है, उसे रानी के घर  भिजवाते वक्त नकली पोची से बदल देती है और चोरी का घिनौना इल्जाम रानी के परिवार पर लगा देती है.

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रानी को पहुँचता है गहरा आघात

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अपने परिवार पर ऐसे इल्जाम लगते देख, रानी का दिल टूट जाता है. लेकिन अब देखना ये है कि राजा-रानी का प्यार इस मुश्किल इम्तेहान को पार कर पाएगा या फिर कीर्तिदा की चालों में फंस कर दम तोड़ देगा? जानने के लिए देखते रहिए शुभारंभ, सोमवार से शुक्रवार रात 9 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

मन भाया मंगेतर : भाग 1

दीप्ति और प्रमोद पाटनकर की अच्छीभली गृहस्थी थी, दोनों खूब खुश और सुखी थे. लेकिन जब दीप्ति का पूर्व मंगेतर मेहमान बन कर घर आया तो उस ने दीप्ति की ऐसी सोच बदली कि वह…

प्रमोद अनंत पाटनकर भारतीय जीवन बीमा निगम में अधिकारी थे. वह अपने परिवार के साथ ठाणे के उपनगर मीरा भायंदर स्थित शिवदर्शन सोसायटी में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी दीप्ति पाटनकर के अलावा लगभग 4 साल की एक बेटी थी. इस छोटे से परिवार में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी.

बात 15 जुलाई, 2019 की है. उस समय रात के करीब 11 बजे थे. दीप्ति की बेटी ननिहाल में थी. दीप्ति बेटी से मिल कर अपने फ्लैट पर लौटी तो दरवाजा बंद था. कई बार डोरबैल बजाने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो उस ने पर्स में रखी दूसरी चाबी से दरवाजा खोला. उस ने अंदर जा कर देखा तो वहां का नजारा देख मुंह से चीख निकल गई. उस के पति प्रमोद अनंत पाटनकर की लाश फर्श पर पड़ी थी. उस के चीखनेचिल्लाने की आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग आ गए. उन सभी के मन में यह जिज्ञासा थी कि पता नहीं प्रमोदजी के फ्लैट में क्या हो गया. लोग फ्लैट के अंदर पहुंचे तो बैडरूम के फर्श पर प्रमोद पाटनकर की लाश देख कर स्तब्ध रह गए. फ्लैट का सारा सामान बिखरा पड़ा था. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि यह सब कैसे हो गया.

दीप्ति ने उस समय अपने आप को किसी तरह संभाला और मामले की जानकारी करीब ही रहने वाले अपने पिता भानुदास भावेकर को दी. बेटी के फ्लैट में घटी घटना के बारे में सुन कर वह अवाक रह गए. उन्होंने रोतीबिलखती बेटी दीप्ति को धीरज बंधाया, फिर मामले की जानकारी स्थानीय नवघर थाने में दे दी साथ ही अपने परिवार के साथ दीप्ति के फ्लैट पर पहुंच गए.

हत्या की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी रामभाल सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. उन्होंने यह सूचना बड़े अधिकारियों के अलावा पुलिस कंट्रोल रूम व फोरैंसिक टीम को भी दे दी थी.

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घटनास्थल थाने से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर था, इसलिए पुलिस टीम 10 मिनट में वहां पहुंच गई. थानाप्रभारी जब घटनास्थल पर पहुंचे तब तक वहां सोसायटी के काफी लोग जमा हो चुके थे.

वह फ्लैट के अंदर गए, तो उन्हें कमरे में बैड के पास फर्श पर एक आदमी की लाश पड़ी मिली. लाश के पास बैठी एक महिला जोरजोर से रो रही थी. पता चला कि रोने वाली महिला का नाम दीप्ति है और लाश उस के पति प्रमोद अनंत पाटनकर की है.

थानाप्रभारी रामभाल सिंह ने लाश का निरीक्षण किया तो मृतक के गले पर निशान मिला, जिसे देख कर लग रहा था कि मृतक की हत्या गला घोंट कर की गई है. खुली अलमारी और पूरे फ्लैट में फैले सामान से स्पष्ट था कि वारदात शायद लूटपाट के इरादे से की गई होगी.

पुलिस ने जब प्रमोद पाटनकर की पत्नी दीप्ति से पूछताछ की तो उस ने बताया कि पति के आने के पहले वह अपनी बेटी से मिलने मायके चली गई थी. रात 11 बजे जब वह घर लौटी तो कई बार डोरबैल बजाने और आवाज देने के बाद भी फ्लैट का दरवाजा नहीं खुला, तब उस ने अपने पास मौजूद डुप्लीकेट चाबी से दरवाजा खोला. वह फ्लैट में गई तो उस की चीख निकल गई.

थानाप्रभारी रामभाल सिंह मौके की जांच कर ही रहे थे कि सूचना पा कर के थाणे के एसपी (ग्रामीण) शिवाजी राठौड़, डीएसपी शांताराम वलवी भी वहां पहुंच गए. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी थी.

पहले फोरैंसिक टीम ने मौके से सबूत जुटाए. फिर पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. काररवाई निपट जाने के बाद थानाप्रभारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए बोरीवली के भगवती अस्पताल भेज दी. इस के साथ ही थाना नवघर में कत्ल की वारदात दर्ज कर ली गई.

वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ने कमरे का बारीकी से निरीक्षण किया. कमरे में रखी टेबल पर चाय के 2 खाली कप रखे मिले. जिन में से एक पर लिपस्टिक का निशान था. इस के अलावा बैड की चादर सिकुड़ी हुई थी और तकिए के नीचे कंडोम का पैकेट रखा था.

यह सब देख कर पुलिस ने अनुमान लगाया कि वहां आई महिला प्रमोद की जानपहचान की रही होगी. उसी ने मौका देख कर इस घटना को अंजाम दिया होगा. वह कौन थी, यह जांच का विषय था.

थानाप्रभारी ने थाने लौट कर इस घटना पर गंभीरता से विचारविमर्श करने के बाद जांच की जिम्मेदारी असिस्टेंट इंसपेक्टर साहेब पोटे को सौंप दी. दीप्ति का बयान दर्ज करने के बाद जांच अधिकारी पोटे केस की जांच में जुट गए. सब से पहले वह यह जानना चाहते थे कि फ्लैट में आने वाली वह महिला कौन थी, जिस के होंठों की लिपस्टिक चाय के कप पर लगी थी. वह महिला मृतक की जेब से नकदी व मोबाइल फोन भी ले गई थी.

इसी बीच पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई, रिपोर्ट में बताया गया कि प्रमोद पाटनकर की चाय में काफी मात्रा में नींद की गोलियां मिलाई गई थीं, इस के बाद उन की गला घोंट कर हत्या कर दी गई. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को इस मामले में किसी गहरे षडयंत्र की बू आने लगी.

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जांच अधिकारी ने एक बार फिर घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद दीप्ति पाटनकर से विस्तृत पूछताछ की तो उन्हें दीप्ति के बयानों पर शक हो गया.

लेकिन मामला एक प्रतिष्ठित परिवार से संबंधित होने की वजह से उन्होंने बिना सबूत के हाथ डालना ठीक नहीं समझा. वह दीप्ति की कुंडली खंगालने में जुट गए. इस मामले में उन्हें कामयाबी मिल गई.

43 वर्षीय प्रमोद पाटनकर महाराष्ट्र के जिला रायगढ़ के रहने वाले थे. अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद वह रोजीरोटी की तलाश में मुंबई आ गए थे. मुंबई में छोटामोटा काम करते हुए वह सरकारी नौकरी पाने की तैयारी करते रहे. कुछ दिनों बाद उन्हें भारतीय जीवन बीमा निगम में एक अधिकारी के पद पर नौकरी मिल गई.

नौकरी लगने के बाद प्रमोद के घर वालों ने उन का रिश्ता मीरा रोड के रहने वाले भानुदास भावेकर की बेटी दीप्ति भावेकर से तय कर दिया.

दीप्ति के घर वालों ने इस के पहले उस के लिए अपने संबंधी के लड़के समाधान पाषाणकर को देख रखा था. दीप्ति को भी समाधान बहुत पसंद था. दोनों साथ में मिलतेजुलते भी थे. लेकिन दीप्ति के परिवार वालों को समाधान पाषाणकर की तुलना में प्रमोद पाटनकर सही लगा. इसलिए उन्होंने  दीप्ति की शादी प्रमोद के साथ कर दी.

परिवार और समाज के दबाव में दीप्ति को भी समाधान को भूलने के लिए मजबूर होना पड़ा. दीप्ति भावेकर मुंबई कालेज से एमबीए करने के बाद गोरेगांव के एक सरकारी स्कूल में शिक्षक की नौकरी करती थी, जहां उसे 25 हजार रुपए सैलरी मिलती थी.

शादी के बाद प्रमोद मीरा भायंदर स्थित शिवदर्शन सोसायटी के फ्लैट में पत्नी के साथ रहने लगे. प्रमोद और दीप्ति की अच्छीखासी सैलरी थी. उन्हें किसी भी तरह का आर्थिक अभाव नहीं था.

पतिपत्नी दोनों सुबह काम पर तो एक साथ निकलते, लेकिन लौटते अलगअलग समय पर थे. दीप्ति दोपहर के बाद घर आ जाया करती थी, जबकि प्रमोद शाम को. जिस प्यार और हंसीखुशी से उन दोनों का दांपत्य जीवन चल रहा था, वह आगे बढ़ते समय को मंजूर नहीं था.

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सन 2014 में समाधान पाषाणकर मुंबई की एक कंपनी के काम से मुंबई आया तो ठहरने के मकसद से दीप्ति के फ्लैट पर पहुंच गया. दीप्ति ने उस का दिल खोल कर स्वागत किया. समाधान दीप्ति की बुआ का बेटा था. दीप्ति उस के साथ बीते दिनों की जिन यादों को भुला चुकी थी, वह फिर ताजा हो गई थीं.

5 टिप्स : सर्दियों में ऐसे करें अपनी खूबसूरती की देखभाल

त्वचा की देखभाल वैसे तो हर मौसम में करनी होती है लेकिन सर्दियों में त्वचा का रूखा सूखा और बेजान होना एक बड़ी समस्या होती है

यहां हम आपको  आसान टिप्स बता रहे हैं जिससे हर वक्त आप खिली खिली नजर आएंगी.

1- चेहरे को हमेशा ठंडे पानी से धोए और नहाने के लिए गुनगुना पानी ही ले. नहाने के तुरंत बाद कोई अच्छा माश्चराइजर लगाए या नहाने के कुछ देर पहले नारियल के तेल से मसाज भी कर सकते हैं . सनस्क्रीन का इस्तेमाल जरूर करें . इसके अलावा नमी बरकरार रखने के लिए गुलाबजल और गिलसरीन मिलाकर एक बोतल में रख दे इसे सोने से पहले चेहरे और हाथ पैरों में लगाए .

2- होठों के लिप बाम या जेल दिन में दो से तीन बार लगाए..  लिपस्टिक लगाने से पहले कोई वैसलीन जेल थोड़ी देर पहले लगा ले .

3- बालों में धोने से दो घंटे पहले औयलिंग जरूर करें.. नारियल का तेल सर्दियों के लिए बेहतर होता है और चाहे तो उसमें थोड़ा नीबू भी मिला ले .

4-सर्दियों में पपीता, केला आसानी से मिलने वाला फल है इसे खाने के साथ साथ चेहरे पर लगा सकते हैं . पके पपीता का एक टुकड़ा, आधा केला और थोड़ा शहद मिलाकर अच्छे से मैश कर ले और चेहरे तथा शरीर के अन्य भागों पर लगा ले, सूखने पर ठंडे पानी से धो ले . पपीते और केले में एंटी आक्सीडेंट, विटामिन ए और अन्य पोषक तत्व होते हैं . ये नमी के साथ साथ एंटी एजिंग का भी काम करते हैं.

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5- इस मौसम में पैरों का भी खयाल रखे.. एड़ियों को स्क्रब से रगड़ कर साफ करें, सोते समय वैसलीन लगाए, साथ ही मोजे पहन कर रखे . घुटने, कोहनी और अन्य सूखी दिखने वाली जगहों पर अलग से दो तीन बार कोई अच्छा क्रीम या मलाई लगा सकती है .

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इन सबके साथ ही हर दिन थोड़ा थोड़ा एक्सरसाइज या वाक भी रूटीन में शामिल करें ताकि आप एक्टिव रहे और एक्स्ट्रा कैलोरीज बर्न होती रहे.. ज्यादा ठंड तो घर के अंदर ही योग बेहतर विकल्प है.. बच्चों को भी खेलने दे बस खेलते समय अच्छे से कपड़े पहनाएं.. धूप निकलने पर सुबह 10 से 15 मिनट जरूर बैठे जिससे विटामिन डी मिलेगा जो हड्डियों को मजबूत बनाता है.. अगर घर में बच्चे है तो उन्हें सुबह की धूप जरूर दिलाए और हो सके तो धूप में ही तेल की मसाज करें .

इस तरह आप सभी चिंताओं से मुक्त सर्दियों का खुशनुमा मौसम इंजौय कर पाएंगी .

परीक्षा के समय बच्चों का ऐसे रखें ध्यान

परीक्षा का समय आते ही बच्चों के साथ साथ अभिभावक भी ज्यादा चिंतित दिखने लगते हैं. बदलते समय के साथ बच्चे पढ़ाई से ज्यादा समय मोबाइल गेम और इंटरनेट की दुनिया पर बिताने लगे हैं. थोड़ा सा खाली वक़्त और हाथ में मोबाइल.. उस पर से जब वक़्त परीक्षा का हो तो अभिभावक के लिए खुद परीक्षा की घड़ी आन पड़ती है कि कैसे बच्चों को पढ़ाई के लिए बैठाया जा सके और उनका मन भी लगा रहे.

1- परीक्षा के समय से कुछ पहले बच्चों को सुबह उठ कर 1 घंटे पढ़ने की आदत डाले और सुबह के ब्रेकफास्ट में कुछ भी उनका मनपसन्द तैयार करें, खाने के लिए जो इनरजेटिक भी हो और इसकी तैयारी रात से ही कर लें.

जब सुबह उठकर पढ़ने की आदत रहेगी तो परीक्षा के समय भी रात का पढ़ा हुआ आराम से दोहराया जा सकेगा.

2- परीक्षा का शेड्यूल तय होते ही उसी हिसाब से टाइम टेबल बना ले, किस विषय कितना पढ़ना है और कौन सा विषय की तैयारी हो चुकी है, ये सब बच्चों से डिस्कस करके टाइम टेबल तय कर ले और पढ़ाई के दौरान थोड़ा खेलने को भी दे ताकि बच्चे बोर न हो . अगर ट्यूटर पढ़ाता हो तो उनसे शेड्यूल बनाए और उनका पढ़ाया हुआ खुद revise भी कराए ताकि पढ़ाई के संबध में बच्चे से आपकी बात भी होती रही.

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3- पढ़ाई के समय बच्चों के खाने पीने का भी खास ध्यान रखें. हेल्दी और हल्का फूड ही खाने को दें ताकि बच्चे को सुस्ती न आए. अगर बच्चा मैगी या पास्ता की मांग करता है तो उसमें सीजनल सब्जियों को डाले.

पानी भी बराबर पिलाती रहे और  लिक्विड डायट में जूस, सूप दिया जा सकता हैं.

4. बच्चों की परीक्षा के समय थोड़ा खुद को भी अनुशासन में रखे, अगर आप वर्किंग वुमन है तो थोड़ा जल्दी आने की कोशिश करें और सोने से पहले उनके पढ़े हुए पर थोड़ा डिस्कस करें और अगर घरेलू महिला है और खुद पढ़ा सकती है तो खुद ही पढ़ाए, इससे ट्यूशन के पैसे तो बचेंगे ही साथ ही बच्चों से ज्यादा कनेक्ट हो पाएंगी.

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प्रेम ऋण : भाग 2

किसी प्रकार लड़खड़ाती हुई वह अपने कमरे में लौटी. वह अपनी ही बहन से ईर्ष्या करेगी यह अंशुल और मां ने सोच भी कैसे लिया. मेज पर सिर टिका कर कुछ क्षण बैठी रही वह. न चाहते हुए भी आंखों में आंसू आ गए. तभी अपने कंधे पर किसी का स्पर्श पा कर चौंक उठी वह.

‘‘नवीन भैया? कब आए आप? आजकल तो आप प्रतिदिन देर से आते हैं. रहते कहां हैं आप?’’

‘‘मैं, अशोक और राजन एकसाथ पढ़ाई करते हैं अशोक के यहां. वैसे भी घर में इतना तनाव रहता है कि घर में घुसने के लिए बड़ा साहस जुटाना पड़ता है,’’ नवीन ने एक सांस में ही पारुल के हर प्रश्न का उत्तर दे दिया.

‘‘भूख लगी होगी, कुछ खाने को लाऊं क्या?’’

‘‘नहीं, मैं खुद ले लूंगा. तुम्हारी कल परीक्षा है, पढ़ाई करो. पर पहले मेरी एक बात सुन लो. तुम्हारे पास अद्भुत सौंदर्य न सही, पर जो है वह रेगिस्तान की तपती रेत में भी ठंडी हवा के स्पर्श जैसा आभास दे जाता है. इन सब जलीकटी बातों को एक कान से सुनो और दूसरे से निकाल दो और सबकुछ भूल कर परीक्षा की तैयारी में जुट जाओ,’’ पारुल के सिर पर हाथ फेर कर नवीन कमरे से बाहर निकल गया.

अगले दिन परीक्षा के बाद पारुल तानिया के साथ लौट रही थी तो अंशुल को अशीम के साथ उस की बाइक पर आते देख हैरान रह गई.

‘‘अशीम के पीछे अंशुल ही बैठी थी न,’’ तानिया ने पूछ लिया.

‘‘हां, शायद…’’

‘‘शायद क्या, शतप्रतिशत वही थी. जीवन का आनंद उठाना तो कोई तुम्हारी बहन अंशुल से सीखे. एक से विवाह कर रही है तो दूसरे से प्रेम की पींगें बढ़ा रही है. क्या किस्मत है भौंरे उस के चारों ओर मंडराते ही रहते हैं,’’ तानिया हंसी थी.

‘‘तानिया, वह मेरी बहन है. उस के बारे में यह अनर्गल प्रलाप मैं सह नहीं सकती.’’

‘‘तो फिर समझाती क्यों नहीं अपनी बहन को? कहीं लड़के वालों को भनक लग गई तो पता नहीं क्या कर बैठें,’’ तानिया सपाट स्वर में बोल पारुल को उस के घर पर छोड़ कर फुर्र हो गई थी.

पारुल घर में घुसी तो विचारमग्न थी. तानिया उस की घनिष्ठ मित्र है अत: अंशुल के बारे में अपनी बात उस के मुंह पर कहने का साहस जुटा सकी. पर उस के जैसे न जाने कितने यही बातें पीठ पीछे करते होंगे. चिंता की रेखाएं उस के माथे पर उभर आईं.

सुजाता बैठक में श्रीमती प्रसाद के साथ बातचीत में व्यस्त थीं.

‘‘कैसा हुआ पेपर?’’ उन्होंने पारुल को देखते ही पूछा.

‘‘ठीक ही हुआ, मां,’’ पारुल अनमने स्वर में बोली.

‘‘ठीक मतलब? अच्छा नहीं हुआ क्या?’’

‘‘बहुत अच्छा हुआ, मां. आप तो व्यर्थ ही चिंता करने लगती हैं.’’

‘‘यह मेरी छोटी बेटी है पारुल. इसे भी याद रखिएगा. अंशुल के बाद इस का भी विवाह करना है,’’ सुजाता ने श्रीमती प्रसाद से कहा.

‘‘मैं जानती हूं,’’ श्रीमती प्रसाद मुसकराई थीं.

‘‘पारुल, 2 कप चाय तो बना ला बेटी,’’ सुजाताजी ने आदेश दिया था.

‘‘हां, यह ठीक है. एक बात बताऊं सुजाता?’’ श्रीमती प्रसाद रहस्यमय अंदाज में बोली थीं.

‘‘हां, बताइए न.’’

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‘‘मैं तो लड़की के हाथ की चाय पी कर ही उस के गुणों को परख लेती हूं.’’

‘‘क्यों नहीं, यदि कोई लड़की चाय भी ठीक से न बना सके तो और कोई कार्य ठीक से करने की क्षमता उस में क्या ही होगी,’’ सुजाताजी ने उन की हां में हां मिलाई थी.

‘ओफ, जाने कहां से चले आते हैं यह बिचौलिए. स्वयं को बड़ा गुणों का पारखी समझते हैं,’ पारुल चाय देने के बाद अपने कक्ष में जा कर बड़बड़ा रही थी.

‘‘माना कि लड़के वालों की कोई मांग नहीं है पर आप को तो उन के स्तर के अनुरूप ही विवाह करना पड़ेगा. अंशुल के भविष्य का प्रश्न है यह तो,’’ उधर श्रीमती प्रसाद सुजाताजी से कह रही थीं.

‘‘कैसी बातें करती हैं आप? हम क्या अपनी तरफ से कोई कोरकसर छोड़ेंगे? आप ने हर वस्तु और व्यक्ति के बारे में सूचना दे ही दी है. सारा कार्य आप की इच्छानुसार ही होगा,’’ सुजाताजी ने आश्वासन दिया.

श्रीमती प्रसाद कुछ देर में चली गई थीं. केवल सुजाताजी अकेली बैठी रह गईं.

‘‘इस विवाह का खर्च तो बढ़ता ही जा रहा है. समझ में नहीं आ रहा कि इतना पैसा कहां से आएगा,’’ वह मानो स्वयं से ही बात कर रही थीं. तभी उन के पति वीरेन बाबू कार्यालय से लौटे थे.

‘‘घर में बेटी की शादी है पर आप को तो कोई फर्क नहीं पड़ता. आप की दिनचर्या तो ज्यों की त्यों है. सारा भार तो मेरे कंधों पर है,’’ सुजाताजी ने थोड़ा नाराजगी भरे स्वर में कहा.

‘‘क्या कहूं, तुम्हें तो मेरे सहयोग की आवश्यकता ही नहीं पड़ती. मेरा किया कार्य तुम्हें पसंद भी तो नहीं आता,’’ वीरेन बाबू बोले थे.

‘‘आप को कार्य करने को कौन कह रहा है. पर कभी साथ बैठ कर विचारविमर्श तो किया कीजिए. हर चीज कितनी महंगी है आजकल. सबकुछ श्रीमती प्रसाद की इच्छानुसार हो रहा है. पर हम कर तो अपनी बेटी के लिए ही रहे हैं न. अब तक 15 लाख से ऊपर खर्च हो चुका है और विवाह संपन्न होने तक इतना ही और लग जाएगा.’’

‘‘पर इतना पैसा आएगा कहां से,’’ वीरेन बाबू चौंक कर बोले, ‘‘जब वर पक्ष की कोई मांग नहीं है तो जितनी चादर है उतने ही पैर फैलाओ,’’ वीरेन बाबू ने सुझाव दिया था.

‘‘मांग हो या न हो, हमें तो उन के स्तर का विवाह करना है कि नहीं. मैं साफ कहे देती हूं, मेरी बेटी का विवाह बड़ी धूमधाम से होगा,’’ सुजाताजी ने घोषणा की थी और वीरेन बाबू चुप रह गए थे. वह नहीं चाहते थे कि बात आगे बढ़े और घर में कोहराम मच जाए. वह शायद कुछ और कहते कि तभी धमाकेदार ढंग से अंशुल ने घर में प्रवेश किया.

‘‘कहां थीं अब तक? मैं ने कहा था न शौपिंग के लिए जाना था. श्रीमती प्रसाद आई थीं. तुम्हारे बारे में पूछ रही थीं.’’

‘‘आज मैं बहुत व्यस्त थी, मां. पुस्तकालय में काफी समय निकल गया. उस के बाद मंजुला के जन्मदिन की पार्टी थी. मैं तो वहां से भी जल्दी ही निकल आई,’’ सुजाताजी के प्रश्न का ऊटपटांग सा उत्तर दे कर अंशुल अपने कमरे में आई थी.

‘‘आइए भगिनीश्री, कौन से पुस्तकालय में थीं आप अब तक?’’ पारुल उसे देखते ही मुसकाई थी.

‘‘क्या कहना चाह रही हो तुम? इस तरह व्यंग्य करने का मतलब क्या है?’’

‘‘मैं व्यंग्य छोड़ कर सीधे मतलब की बात पर आती हूं. आज पूरे दिन अशीम के साथ नहीं थीं आप?’’

‘‘तो? अशीम मेरा मित्र है. उस के साथ एक दिन बिता लिया तो क्या हो गया?’’

‘‘अशीम केवल मित्र है, दीदी? मैं तो सोचती थी कि आप उस के प्रेम में आकंठ डूबी हुई हैं और किसी और के बारे में सोचेंगी भी नहीं. पर आप तो प्रशांत बाबू की मर्सीडीज देख कर सबकुछ भूल गईं.’’

‘‘कालिज का प्रेम समय बिताने के लिए होता है. मैं इस बारे में पूर्णतया व्यावहारिक हूं. अशीम अभी पीएच.डी. कर रहा है. 4-5 वर्ष बाद कहीं नौकरी करेगा. उस की प्रतीक्षा करते हुए मेरी तो आंखें पथरा जाएंगी. घर ढंग से चलाने के लिए मुझे भी 9 से 5 की चक्की में पिसना पड़ेगा. मैं उन भावुक मूर्खों में से नहीं हूं जो प्रेम के नाम पर अपना जीवन बरबाद कर देते हैं.’’

‘‘आप का हर तर्क सिरमाथे पर, लेकिन आप से इतनी अपेक्षा तो की ही जा सकती है कि आप अशीम को सब साफसाफ बता दें और उस के साथ प्यार की पींगें बढ़ाना बंद कर दें. फिर प्रशांतजी का परिवार इसी शहर में रहता है. किसी को भनक लग गई तो…’’

‘‘किसी को भनक नहीं लगने वाली. तुम्हीं बताओ, मांपापा को आज तक कुछ पता चला क्या? हां, इस के लिए मैं तुम्हारी आभारी हूं. पर मैं इस उपकार का बदला अवश्य चुकाऊंगी.’’

‘‘अंशुल दीदी, तुम इस सीमा तक गिर जाओगी मैं ने सोचा भी नहीं था,’’ पारुल बोझिल स्वर में बोली.

‘‘यदि अपने हितों की रक्षा करने को नीचे गिरना कहते हैं तो मैं पाताल तक भी जाने को तैयार हूं. तुम चाहती हो कि मैं अशीम को सब साफसाफ बता दूं, पर जरा सोचो कि जब सारे शहर को मेरे विवाह के संबंध में पता है पर केवल अशीम अनभिज्ञ है तो क्या यह मेरा दोष है?’’

‘‘पता नहीं दीदी, पर कहीं कुछ ठीक नहीं लग रहा है.’’

‘‘व्यर्थ की चिंता में नहीं घुला करते मेरी प्यारी बहन, अभी तो तुम्हारे खानेखेलने के दिन हैं. क्यों ऊंचे आदर्शों के चक्कर में उलझती हो. अशीम को मैं सबकुछ बता दूंगी पर जरा सलीके से. अपने प्रेमी को मैं अधर में तो नहीं छोड़ सकती,’’ अंशुल ने अपने चिरपरिचित अंदाज में कहा.

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पारुल चुप रह गई थी. वह भली प्रकार जानती थी कि अंशुल से बहस का कोई लाभ नहीं था. उस ने अपने अगले प्रश्नपत्र की तैयारी प्रारंभ कर दी.

परीक्षा और विवाह की तैयारियों के बीच समय पंख लगा कर उड़ चला था. सुजाताजी ने अपनी लाड़ली के विवाह में दिल खोल कर पैसा लुटाया था. वीरेन बाबू को न चाहते हुए भी उन का साथ देना पड़ा था. अंशुल की विदाई के बाद कई माह से चल रहा तूफान मानो थम सा गया था. पारुल ने सहेलियों के साथ नाचनेगाने और फिर रोने में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था. पर अब सूने घर में कहीं कुछ करने को नहीं बचा था.

धीरेधीरे उस ने स्वयं को व्यवस्थित करना प्रारंभ किया था. पर एक दिन अचानक ही अशीम का संदेश पा कर वह चौंक गई थी. अशीम ने उसे कौफी हाउस में मिलने के लिए बुलाया था.

अशीम से पारुल को सच्ची सहानुभूति थी. अत: वह नियत समय पर उस से मिलने पहुंची थी.

‘‘पता नहीं बात कहां से प्रारंभ करूं,’’ अशीम कौफी और कटलेट्स का आर्डर देने के बाद बोला.

‘‘कहिए न क्या कहना है?’’ पारुल आश्चर्यचकित स्वर में बोली.

‘‘विवाह से 4-5 दिन पहले अंशुल ने मुझे सबकुछ बता दिया था.’’

‘‘क्या?’’

‘‘यही कि मातापिता का मन रखने के लिए उसे इस विवाह के लिए तैयार होना पड़ा.’’

‘‘अच्छा, और क्या कहा उस ने?’’

‘‘वह कह रही थी कि उस के विवाह के लिए मातापिता को काफी कर्ज लेना पड़ा. घर तक गिरवी रखना पड़ा. वह मुझ से विनती करने लगी, उस का वह स्वर मैं अभी तक भूला नहीं हूं.’’

‘‘पर ऐसा क्या कहा अंशुल दीदी ने?’’

‘‘वह चाहती है कि मैं तुम से विवाह कर लूं जिस से कि तुम्हारे मातापिता को चिंता से मुक्ति मिल जाए. और भी बहुत कुछ कह रही थी वह,’’ अशीम ने हिचकिचाते हुए बात पूरी की.

कुछ देर तक दोनों के बीच निस्तब्धता पसरी रही. कपप्लेटों पर चम्मचों के स्वर ही उस शांति को भंग कर रहे थे.

‘तो यह उपकार किया है अंशुल ने,’ पारुल सोच रही थी.

‘‘अशीमजी, मैं आप का बहुत सम्मान करती हूं. सच कहूं तो आप मेरे आदर्श रहे हैं. आप की तरह ही पीएच.डी. करने के लिए मैं ने एम.एससी. के प्रथम वर्ष में जीतोड़ परिश्रम किया और विश्वविद्यालय में प्रथम रही. इस वर्ष भी मुझे ऐसी ही आशा है. आप के मन में अंशुल दीदी का क्या स्थान था मैं नहीं जानती पर निश्चय ही आप ‘पैर का जूता’ नहीं हैं कि एक बहन को ठीक नहीं आया तो दूसरी ने पहन लिया,’’ सीधेसपाट स्वर में बोल कर पारुल चुप हो गई थी.

‘‘आज तुम ने मेरे मन का बोझ हलका कर दिया, पारुल. तुम्हारे पास अंशुल जैसा रूपरंग न सही पर तुम्हारे व्यक्तित्व में एक अनोखा तेज है जिस की अंशुल चाह कर भी बराबरी नहीं कर सकती.’’

‘‘यही बात मैं आप के संबंध में भी कह सकती हूं. आप एक सुदृढ़ व्यक्तित्व के स्वामी हैं. इन छोटीमोटी घटनाओं से आप सहज ही विचलित नहीं होते. आप के लिए एक सुनहरा भविष्य बांहें पसारे खड़ा है,’’ पारुल ने कहा तो अशीम खिलखिला कर हंस पड़ा.

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‘‘हम दोनों एकदूसरे के इतने बड़े प्रशंसक हैं यह तो मैं ने कभी सोचा ही नहीं था. तुम से मिल कर और बातें कर के अच्छा लगा,’’ अशीम बोला और दोनों उठ खड़े हुए.

प्रेम ऋण : भाग 1अपने घर की ओर जाते हुए पारुल देर तक यही सोचती रही कि अशीम को ठुकरा कर अंशुल ने अच्छा किया या बुरा? पर इस प्रश्न का उत्तर तो केवल समय ही दे सकता है.

चिकित्सा का बाजारीकरण

जब शारीरिक रूप से व्यक्ति की तकलीफ बढ़ जाती है तब वह निदान के लिए पूरे विश्वास के साथ अस्पताल की ओर रुख करता है. लेकिन, पैसे बनाने के चक्कर में डाक्टर ही मरीज की जिंदगी से खिलवाड़ करने लगे तो? चिकित्सा के बाजारीकरण में आज ऐसा ही हो रहा है.

रमा को बहुत दिनों से कमरदर्द हो रहा था. पेनकिलर खा कर वह काम करती रहती. जब औफिस आनाजाना भी दूभर होने लगा और सीढि़यां चढ़नाउतरना मुश्किल हो गया तो एक अस्पताल में दिखाने गई. डाक्टर ने तुरंत ऐडमिट होने की सलाह दी. एक्सरे किया गया. डाक्टर ने कहा कि कुछ डाउट्स हैं और उन्हें क्लीयर करने के लिए एमआरआई कराना जरूरी है. इस के लिए दूसरी पैथोलौजी लैब में जाना था जहां ले जाने और ले आने की जिम्मेदारी अस्पताल की थी. एमआरआई के लिए 17 हजार रुपए वसूले गए.

रिपोर्ट आने पर डाक्टर तरहतरह के सवाल करने लगे. वे बोले, ‘‘कुछ गांठें दिख रही हैं. सीरियस मामला है. अभी हम कुछ नहीं कह सकते. पैट स्कैन करवाना पड़ेगा.’’ यह 23 हजार रुपए में होता था.

रमा बुरी तरह से डर गई थी. अस्पताल से तो छुट्टी दे दी गई. पैट स्कैन करवाया गया तो वहीं के डाक्टर ने कहा कि आप किसी औनकोलौजिस्ट से जा कर मिलें. कैंसर के लक्षण हैं और पूरे शरीर में गांठें हैं.

रमा और उस के पति व बेटा, व नातेरिश्तेदार, जिन्होंने भी यह बात सुनी, सकते में आ गए. इस बीच यह भी पता चला कि जिस अस्पताल ने उस पैथ लैब में भेजा था, उस के साथ कमीशन तय था और वह भी बड़ी मात्रा में. लगभग 10-12 हजार रुपए.

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फिर शुरू हुआ डाक्टरों के पास जाने का दर्दनाक सिलसिला. रमा पहले एक अस्पताल में गई जहां औनकोलौजिस्ट ने कहा कि उन्हें तो ब्रेस्ट कैंसर लग रहा है जबकि वहां एक भी लम्प नहीं था. मैमोग्राफी कराई गई जो ठीक थी, पर फिर भी अल्ट्रासाउंड किया गया. सब ठीक था तो उन्होंने कहा कि बायोप्सी करेंगे. सैकंड ओपिनियन के लिए उसी दिन रमा एक दूसरे प्राइवेट अस्पताल में गई. वहां के सीनियर डाक्टर ने कहा कि लास्ट स्टेज है, तुरंत ऐडमिट हो जाएं. ब्रेस्ट रिमूव करेंगे. मैमोग्राफी की रिपोर्ट को हम नहीं मानते.

रमा वहां से चली आई पर उस के बाद यह पता लगाने के लिए कि कहां का कैंसर है, बायोप्सी, एंडोस्कोपी सब हुई. 6 महीनों तक वह घूमती रही. फिर जा कर पता लगा कि उस की हड्डियां कमजोर हो गई हैं और उन में इंफैक्शन हो गया है जिस की वजह से दर्द रहता है. एक साल दवाई खाने के बाद वह बिलकुल ठीक हो गई.

इस बीच, उस ने डाक्टरों के मनमाने टैस्ट कराना, इमोशनली मरीजों से खेलना और उन्हें डरा कर टैस्ट कराते जाना सब देखा. डाक्टरों के लिए जरूरी होता है कि वे महीने में इतने टैस्ट कराएं. इस के हिसाब से उन्हें फिर महीने में ऐक्स्ट्रा कमीशन मिलता है. अपना पैसा बनाने के लिए डाक्टर मरीज को अपने चंगुल में फंसाने की बाबत कई पैतरे चलते हैं. रमा का अब डाक्टरों पर से भरोसा उठ गया है.

वसूली का जरिया बना इलाज

कुछ समय पहले एक फिल्म आई थी ‘गब्बर रिटर्न्स’ और फिर फिल्म ‘लाल रंग’. ये फिल्में अस्पतालों में होने वाले करप्शन की कहानी उजागर करती हैं. ‘गब्बर रिटर्न्स’ में दिखाया गया था कि अस्पताल पैसा कमाने के लिए इलाज करने को किस तरह एक व्यवसाय के रूप में इस्तेमाल करता है. अस्पतालों के डाक्टरों को रोगियों के जीवन या मौत से सरोकार नहीं होता. हौस्पिटल मैनेजमैंट के भारी दबाव में डाक्टर काम करते हैं. अस्पतालों के बिजनैस में पैसा लगाने वाले बड़े पूंजीपति या राजनेता होते हैं या उन के संबंध बड़े राजनेताओं से होते हैं इसलिए उन्हें डर नहीं होता.

एक डाक्टर मित्र जो पांचसितारा अस्पताल में काम करते थे, ने बताया कि उन के यहां हरेक को महीने का कोटा पूरा करना होता है कि कितने लैबोरेटरी टैस्ट, कितने स्कैन, कितने अल्ट्रासाउंड करवाने हैं. ऐसे में कुछ अनावश्यक टैस्ट करवाने ही पड़ते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि बात केवल कोटे की नहीं, अगर बहुत से टैस्ट व दवाएं न हों, तो लोग मानते ही नहीं कि डाक्टर अच्छे हैं.

उपभोक्तावाद के प्रभाव से अब चिकित्सा संस्थान भी अछूते नहीं रहे. आज के समय में स्वास्थ्य क्षेत्र को सब से मुनाफे वाले व्यापार के तौर पर देखा जाता है. लेकिन यह मुनाफा क्षेत्र अब लूट और शोषण का क्षेत्र बनने की ओर अग्रसर है, या यह कहें कि लूट का जरिया बन चुका है. हर कोई स्वस्थ रहना चाहता है और इस के लिए जितने चाहे पैसे खर्च करने को तत्पर रहता है.

हमारे देश में इन दिनों मध्य व उच्च श्रेणी के निजी नर्सिंगहोम व निजी अस्पतालों से ले कर बहुआयामी विशेषता रखने वाले मल्टी स्पैशलिटी हौस्पिटल्स की बाढ़ सी आई हुई है. दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र व गुजरात जैसे आर्थिक रूप से संपन्न राज्यों से ले कर ओडिशा, बिहार व बंगाल जैसे राज्यों तक में भी ऐसे बहुसुविधा उपलब्ध करवाने वाले अस्पतालों को देखा जा सकता है.

हजारों करोड़ रुपए की लागत से शुरू होने वाले इन अस्पतालों को संचालित करने वाला व्यक्ति या इस से संबंधित गु्रप कोई साधारण व्यक्ति या गु्रप नहीं हो सकता. निश्चित रूप से ऐसे अस्पताल न केवल धनाढ्य लोगों द्वारा खोले जाते हैं बल्कि इन के रसूख भी काफी ऊपर तक होते हैं. इतना ही नहीं, बड़े से बड़े राजनेताओं व अफसरशाही से जुड़े लोगों का इलाज करतेकरते साधारण अथवा मध्य या उच्चमध्य श्रेणी के मरीजों की परवा करना या न करना ऐसे अस्पतालों के लिए कोई माने नहीं रखता.

यदि ऐसे कई बड़े अस्पतालों की वैबसाइटें खोल कर देखें या इन अस्पतालों के भुक्तभोगी मरीजों द्वारा सा झे किए गए उन के अनुभवों पर नजर डालें तो आप को ऐसे अस्पतालों की वास्तविकता व इन विशाल गगनचुंबी इमारतों के पीछे का भयानक सच पढ़ने को मिल जाएगा.

पिछले दिनों मनीश गोयल नामक एक नवयुवक ने दिल्ली के शालीमार बाग स्थित एक अस्पताल के अपने अनुभव को सोशल मीडिया पर एक वीडियो द्वारा सा झा किया. उस ने बताया कि 19 जून, 2017 को उन के रिश्तेदार को बाईपास सर्जरी के बाद डिस्चार्ज किया जाना था. अस्पताल से उस औपरेशन का पैकेज बाईपास सर्जरी की फीस के साथ 2 लाख 2 हजार रुपए में तय हुआ था. हालांकि, मरीज अभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पा रहा था तथा उस के परिजन अस्पताल के इलाज से संतुष्ट नहीं थे और मरीज को अन्यत्र स्थानांतरित करना चाह रहे थे. यह जान कर अस्पताल ने 5 लाख 61 हजार रुपए का बिल मरीज के घरवालों को पकड़ा दिया.

किसी कारणवश 19 जून के बाद मरीज ने अपना इलाज इसी अस्पताल में एक सप्ताह और कराया. अब एक सप्ताह के बाद हौस्टिपल ने उन्हें नया बिल 11 लाख 37 हजार रुपए का पेश कर दिया. मनीष गोयल के अनुसार, नैफ्रो के डाक्टर माथुर की डेली विजिट के नाम पर बिल में पैसे मांगे गए जबकि डाक्टर माथुर 3 दिनों में केवल एक बार आते थे. परंतु अस्पताल ने उन के विजिट के पैसे एक दिन में 2 बार की विजिट की दर से लगाए.

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क्या इस प्रकार के अस्पताल इलाज के लिए कम, मरीजों को लूटने व उन्हें कंगाल करने की नीयत से ज्यादा खोले गए हैं? डाक्टरों का मकसद केवल पैसा कमाना ही रह गया है, चाहे वह सही इलाज कर के या गलत इलाज कर के वसूला जाए.

नब्ज नहीं, जेब देखी जाती है

भारत में बड़े अस्पतालों की बढ़ती संख्या का समाचार इन दिनों न केवल समूचे दक्षिण एशियाई देशों में, बल्कि अफ्रीका तथा यूरोपीय देशों में भी फैल चुका है. स्वयं इन अस्पतालों का प्रचारतंत्र इस की अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि करने में सक्रिय रहता है. इसीलिए पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका, बंगलादेश तथा अरब देशों के तमाम संपन्न मरीज भारत की ओर खिंचे चले आते हैं. और ये अस्पताल इन्हीं बेबस लोगों की मजबूरी का फायदा उठा कर उन से मनचाहे पैसे वसूलते रहते हैं. आज रोगी की हैसियत अनुसार ही डाक्टर दवा तय करता है.

तमाम तरह के टैस्ट और टैस्ट के बाद एडवांस टैस्ट तो यही कहानी कहते हैं. हालांकि इस बात से असहमत नहीं हुआ जा सकता है कि इन पैथोलौजी टैस्ट से मरीज के रोग का सहीसही इलाज करना आसान हो गया है लेकिन अगर डाक्टर अनुभवी है तो वह रोग को तत्काल पकड़ लेगा और अगर बहुत जटिल हुआ तो एकाध टैस्ट से ही वह रोग को सम झ लेगा. वहीं, सारे टैस्ट और अल्ट्रासाउंड के बाद भी डाक्टर रोग न पकड़ पाए और विशेषज्ञों की बैठक बुलवाए, तो उस का खर्च भी मरीज देगा.

क्या है समाधान

समाधान के लिए सरकार के भरोसे बैठना बेकार है. इस का सिर्फ एक समाधान है कि समाज और समाज के लोगों द्वारा मिल कर खुद के चिकित्सा संस्थान शुरू किए जाएं. दवाओं से ले कर जांचों तक के केंद्र खुद समाज द्वारा संचालित किए जाएं. अगर समाज के लोग मिल कर मंदिर, मसजिद, चर्च और गुरुद्वारे चला सकते हैं तो इसी तरह वे इकट्ठे हो कर अस्पताल और चिकित्सा संस्थान भी चला सकते हैं.

डाक्टर अरुण गदरे और डाक्टर अभय शुक्ल अपनी किताब ‘डिसेंटिंग डायग्नोसिस’ में लिखते हैं कि स्वास्थ्य सेवाएं देना किसी सामान को बेचने जैसा नहीं है. डाक्टर और मरीज का रिश्ता खास होता है, जहां डाक्टर मरीज की ओर से कई फैसले लेता है. स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले अस्पताल मैडिकल क्लीनिक कंज्यूमर प्रोटैक्शन एक्ट के अंदर आते हैं. अगर डाक्टर की लापरवाही का मामला हो या सेवाओं को ले कर कोई शिकायत हो, तो उपभोक्ता हर्जाने के लिए उपभोक्ता अदालत जा सकते हैं.

?सभी मरीजों को जानकारी दी जानी चाहिए कि उन को क्या बीमारी है और इलाज का क्या नतीजा निकलेगा. साथ ही, मरीज को इलाज पर खर्च, उस के फायदे और नुकसान व इलाज के विकल्पों के बारे  में बताया जाना चाहिए. अगर अस्पताल एक पुस्तिका के माध्यम से मरीजों को इलाज, जांच आदि के खर्च के बारे में बताए तो यह अच्छी बात होगी. इस से मरीज के परिवार को इलाज पर होने वाले खर्च को सम झने में मदद मिलेगी.

कोई भी अस्पताल मरीज को उस के मैडिकल रिकौर्ड या रिपोर्ट देने से मना नहीं कर सकता. इन रिकौर्ड्स में डायग्नौस्टिक टैस्ट, डाक्टर या विशेषज्ञ की राय, अस्पताल में भरती होने का कारण आदि शामिल होते हैं. डिस्चार्ज के समय मरीज को एक डिस्चार्ज कार्ड दिया जाना चाहिए जिस में भरती के समय मरीज की स्थिति, लैब टैस्ट के नतीजे, अस्पताल में भरती के दौरान इलाज, डिस्चार्ज के बाद इलाज, क्या कोई दवा लेनी है या नहीं लेनी है, क्या सावधानियां बरतनी हैं, क्या जांच के लिए वापस डाक्टर के पास जाना है, इन सब बातों का जिक्र होना चाहिए.

कई लोगों की यह आम शिकायत है कि जब किसी अस्पताल में डाक्टर उन्हें दवा की परची देता है तो कहता है कि अस्पताल की ही दुकान से दवा खरीदें या फिर अस्पताल में ही डायग्नौस्टिक टैस्ट करवाएं. अस्पताल ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि यह उपभोक्ता के अधिकारों का हनन है. उपभोक्ता को आजादी है कि वह टैस्ट जहां से चाहे, वहीं से करवाए.

मैडिकल काउंसिल औफ इंडिया की नीति के मुताबिक, जहां तक संभव हो, डाक्टर को दवाई का वैज्ञानिक (जेनेरिक) नाम इस्तेमाल करना चाहिए, न कि किसी कंपनी का ब्रैंड नेम.

किसी डाक्टर के खिलाफ अगर कोई शिकायत हो तो उपभोक्ता अदालत जाने से पहले यह ध्यान में रखना चाहिए कि उस डाक्टर के खिलाफ उसी विशेषज्ञता वाले किसी अन्य डाक्टर का पत्र हो जिस में शिकायत की पुष्टि की गई हो. बिना ऐसे प्रमाणपत्र के आप ऐसी शिकायत करने के लिए जाएंगे तो उपभोक्ता अदालत में दर्ज होने में परेशानी हो सकती है.

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कमीशन का खेल रोकना जरूरी

सरकार ने सरकारी अस्पतालों में जांच और एक्सरे की सुविधा फ्री करने का निर्णय इसीलिए लिया था कि गरीब मरीजों और जरूरतमंदों को न भटकना पड़े. जिस के बाद तेजी से सरकारी अस्पतालों में जांच कराने के लिए मरीजों की लाइन लग गई. इस के बाद तो डाक्टरों ने सरकारी जांचों की गुणवत्ता पर ही सवालिया निशान लगा दिया.

अगर कमीशन का सिस्टम बंद कर दिया जाए तो मरीजों के लिए जांचें काफी सस्ती हो जाएंगी. सब से ज्यादा असर रेडियोडायग्नोसिस पर पड़ेगा. एमआरआई, सीटीस्कैन, अल्ट्रासाउंड के रेट्स 50 से 70 फीसदी तक कम हो जाएंगे. जबकि पैथोलौजी की जांचें भी 15 से 30 फीसदी तक कम हो जाएंगी. शायद इसी कमीशन के लिए ही अकसर सरकारी हो या प्राइवेट, सभी डाक्टर अकसर किसी विशेष पैथोलौजी सैंटर की परची पर जांच लिखते हैं. इस का सीधा सा मतलब है कि उस से उन का कमीशन सैट है.

प्राइवेट चिकित्सा संस्थानों की लूट को सम झना आसान नहीं है, क्योंकि इन की हर कार्यविधि बेहद और्गेनाइज्ड होती है. हर कार्य सैटिंग के जरिए होता है और यह सैटिंग मानवीय सुविधाओं के लिए न हो कर सिर्फ और सिर्फ मुनाफे के लिए होती है.

अस्पतालों और डाक्टरों द्वारा चिकित्सकीय जांच और दवाएं ज्यादातर वहीं की लिखी जाती हैं जहां उन की पहले से ही सैटिंग होती है. इस में पीडि़त के फायदे के बजाय डाक्टर, अस्पताल और कंपनियां अपने मुनाफे को प्राथमिकता पर रखती हैं.

कैसे कंट्रोल करें बच्चों का टैंट्रम

दिल्ली में रहने वाली 2 एनर्जेटिक और स्मार्ट बच्चों की मां प्रिया कहती है , ‘कभीकभी मुझे भी बच्चों के टैंट्रम का सामना करना पड़ता है. कई दफा वे कुछ अनावश्यक मांग रखते हैं. उन्हें पूरा न किया जाए तो भड़क उठते हैं. इसी तरह भूखे होने या नींद पूरी न होने पर भी उन के टैंट्रम हाई हो जाते हैं.’

बच्चों का टेंपर टैंट्रम प्रायः पैरंट्स के तनाव ,चिंता या फ्रस्ट्रेशन की वजह बनता है. बच्चों के टैंट्रम को काबू में लाना आसान नहीं होता.

टैंट्रम क्या है

टैंट्रम यानी एकाएक गुस्से से भड़क उठना. बच्चों का टैंट्रम किसी भी रूप में जाहिर हो सकता है जैसे गुस्सा, फ्रस्ट्रेशन, रोना ,चिल्लाना, चीजें तोड़ना ,जमीन पर लोटना,भागना आदि. कुछ बच्चे सांस रोकने, वोमिट करने या फिर एकदम से आवेश में आने जैसी हरकते भी करते हैं.

मुख्य रूप से 1 से 3 साल की उम्र के बच्चों में टैंट्रम की समस्या ज्यादा देखी जाती है. क्यों कि इस उम्र में बच्चों की सोशल और इमोशनल स्किल्स डेवलप होने शुरू ही होते हैं. उन के पास बड़ी इमोशंस एक्सप्रेस करने के लिए शब्द नहीं होते. वे अधिक आजादी चाहते हैं मगर पैरेंट्स से दूर होने से घबराते भी हैं. ऐसे में वे रास्ता ढूंढ रहे होते हैं जिस के जरिए अपने आसपास की दुनिया को बदलने का प्रयास कर सकें और अपनी मरजी चला सके.

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कुछ बातें जो बच्चों के टैंट्रम की मुख्य वजह बनती है

  • टेंपरामेंट – जो बच्चे जल्दी अपसेट होते हैं उन में टैंट्रम का खतरा भी अधिक होता है.
  • स्ट्रेस – तनाव , भूख ,थकावट आदि.
  • कुछ खास परिस्थितियां जो बच्चों को पसंद नहीं ,जैसे कोई उन के खिलौने उठा कर भाग जाए.
  • स्ट्रांग इमोशंस -डर ,चिंता ,गुस्सा ,शक आदि.

देखा जाए तो टैंट्रम बच्चों की विकास प्रक्रिया का एक स्वाभाविक हिस्सा है और इस से बचा नहीं जा सकता. मगर प्रयास किए जाए तो इस पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है. ध्यान रखें प्रत्येक बच्चा दूसरे से जुदा होता है. टैंट्रम पर काबू पाने के लिए एक बच्चे पर अपनाया गया ट्रिक संभव है कि दूसरे बच्चे पर फिट न बैठे.

8 तरीकें जिन से आप इस समस्या से निजात पा सकते हैं.

  1. बच्चों को व्यस्त रखें : यदि बच्चे बोरियत महसूस कर रहे हैं तो संभव है कि वे अपनी खीज और चिड़चिड़ाहट किसी न किसी रूप में बाहर निकाले और बेवजह रोनाचिल्लाना शुरू कर दे. इसलिए जरूरी है कि आप उन्हें व्यस्त रखें. उन्हें छोटीछोटी रोचक गतिविधियों में बांधे रखे या फिर दूसरे बच्चों को उन के साथ खेलने के लिए बुला ले. इस से उन पर काबू पाया जा सकता है.
  2. कारण समझाने का प्रयास करें: जब बच्चा किसी बात की जिद करे और पूरा न होने पर चिढ़ जाए तो उसी वक्त उसे समझाने का प्रयास करें कि उस की बात न मानने की वजह क्या है. मगर यदि बच्चे का टेम्पर टैंट्रम पूरे उफान पर हो तो उस वक्त उसे कुछ भी न कहें.

मिसेज़ शुक्ला बताती है कि मेरी 7 साल की बच्ची एक दिन गुड़िया खरीद देने की जिद करने लगी जब कि हम उस वक्त एक मेडिकल शॉप पर थे और मेरे पास ज्यादा रुपए भी नहीं थे. मेरे द्वारा गुड़िया के लिए न करते ही वह जोर से चिल्लाने लगी. मैं ने उसे चुप कराया और पूरे धैर्य के साथ पास बिठा कर प्यार से समझाया कि इस वक्त मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं है. फिर मैं ने उसे 2 चॉइस देते हुए कहा कि या तो यहां से निकलने के बाद सलून जा कर अपने बालों को खूबसूरत कट दिला लो या नई गुड़िया ले लो.
मेरी बेटी को अहसास हो गया कि उस की मरजी ही चलेगी. मम्मी वही करेंगी जैसा करने को मैं कहूँगी. बस उस ने 2 सेकंड सोचा और फिर बड़ी समझदारी से सलून जाने को तैयार हो गई. इस तरह मुझे अपनी बेटी के साथ कोई जबरदस्ती नहीं करनी पड़ी और उस ने खुद ही गुड़िया लेने का विचार छोड़ दिया.

जाहिर है किसी बात के लिए सीधा न कहने के बजाय बच्चे को विस्तार से उस फैसले की वजह समझानी चाहिए. इस से बच्चे को बात समझ में आ जाएगी और उस का ईगो भी हर्ट नहीं होगा.

  1. लंबी सांस लेने को कहें: एक बार आप का बच्चा अपना टैंट्रम दिखाना शुरू कर दे तो तुरंत उस के साथ एक एक्सरसाइज करना आरंभ करें. आप उसे अपने पास बिठा कर गहरीगहरी सांस लेने को कहे. ऐसा करने से उस का इमोशनल रिएक्शन धीमा पड़ जाएगा. यदि वह ऐसा करने को तैयार नहीं होता तो आप खुद ही ऐसा कर के देखिए. डीप ब्रीदिंग आप को अपने इमोशंस पर कंट्रोल रखने में मदद करेगा. रिसर्च बताते हैं कि आप इस तरह के उपाय कर के अपने पल्स और ब्रीद रेट पर काबू पाया जा सकता है. इस से आप स्ट्रेस में नहीं आएंगे.
  2. सजा न दें: सब से बड़ी गलती जो पैरंट्स करते हैं वह है बच्चा टैंट्रम दिखा रहा हो तो उसे सजा देना. यह तरीका काम नहीं करता. ऐसे में पैरेंट्स अक्सर सोचने लगते हैं कि या तो उन के बच्चे के साथ कुछ गलत है या फिर खुद उन की पेंरेंटिंग में ही दोष है. जब कि ऐसा कुछ नहीं होता. खुद को थोड़ा शांत रखें, अपने पार्टनर से इस बारे में डिस्कशन करें और फिर कोई रास्ता निकालें.
  3. उन्हें शांत कराने का प्रयास न करें: टैंट्रम दिखा रहे बच्चों को इग्नोर करें जब तक कि वे खुद के लिए खतरा पैदा न कर रहे हों. उस कमरे से बाहर निकल जाए. यदि बच्चा गुस्से में हिटिंग , बाईटिंग ,किकिंग जैसी क्रियाएं करने लगे या चीज़ें उठा कर फेंके तो तुरंत उसे उस जगह से हटा दें. उन्हें अहसास दिलाएं कि उस के द्वारा दूसरों को तकलीफ देने या चीजें तोड़ने जैसा व्यवहार स्वीकार नहीं किया जाएगा. जहां तक हो सके आप उस की हरकतों पर कोई प्रतिक्रिया न दें या फिर संभव हो तो मुस्कुरा दे. इस से उसे एहसास होगा कि ऐसी एक्टिविटीज द्वारा अपनी बात मनवाने का उस का प्रयास असरकारी नहीं है.
  4. अपने बच्चे को थोड़ा स्पेस दें: ‘द डिसिप्लिन मिरेकल’ की ऑथर लिंडा पर्सन के मुताबिक़ कभीकभी बच्चा अपना गुस्सा बाहर निकालना चाहता है. उसे ऐसा करने दे.
    अपनी फीलिंग्स बाहर निकाल कर बच्चा तनाव मुक्त हो सकेगा.
  5. गिव अ बिग हग: कई दफा टैंट्रम दिखा रहे बच्चे को एक बिग, फर्म हग देना ही पर्याप्त होता है. उसे बिना कुछ कहे बस देर तक हग करें. इस से बच्चा खुद को सुरक्षित महसूस करता है और उसे एहसास होता है कि आप उस की केयर कर रहे हैं.
  6. भूख और दूसरी छोटीछोटी बातें: थकावट और भूख बच्चों के टैंट्रम के 2 सब से बड़े ट्रिगर्स होते हैं. इसलिए समय पर बच्चों को भोजन जरूर कराएं और पर्याप्त नींद लेने दें. समय पर दूध और पानी वगैरह पिलाएं. उन के कम्फर्ट का ख्याल रखें.

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बिहाइंड द बार्स : भाग 6

जेल  नं. तीन में नोरा के बेटे की वजह से आजकल रौनक लगी रहती है. पांच महीने बीत चुके हैं, एडबर्ड अब घुटने-घुटने चलने की कोशिश करने लगा है. उसके साथ कुसुम और मृणालिनी भी दिन भर घोड़ी बनी रहती हैं. जब वह घुटने-घुटने दौड़ते थक जाता है तो बैरक के फर्श पर बिछे कम्बल पर इधर से उधर लुुढ़कियां खाने लगता है. बैरक में नोरा, मृणालिनी और कुसुम उसकी तीन-तीन माएं हो गयी हैं और बाकी बैरकों की कैदी औरतें कोई दादी, कोई चाची, कोई मामी, कोई बुआ बनी हुई हैं. दिन भर वह सबकी गोद में उछलता-खिलखिलाता रहता है.

नोरा का रोना-कलपना अब काफी कम हो गया है, बेटे के साथ उसके दिन जेल की सलाखों के बीच हंसी-खुशी बीतने लगे हैं, लेकिन रात घिरते ही वह अक्सर सोच में डूब जाती है. उसे अपना हैदराबाद वाला घर याद आता है, जहां उसने शादी के बाद कुछ सालों तक एक खुशहाल जिन्दगी जी थी. पता नहीं वह घर बंद पड़ा है, या उसमें कोई रह रहा है? वह डरती कि कहीं किसी ने उस घर पर कब्जा न कर लिया हो. ऐसा हुआ तो वह क्या करेगी? कहां जाएगी? जेल से छूटने के बाद वह घर ही उसका एकमात्र ठिकाना है. उसे अपना पति फ्रेडरिक बहुत याद आता है. ससुर और देवर याद आते हैं. पता नहीं सब कहां हैं? कोई उसकी खोज-खबर लेने आज तक क्यों नहीं आया? क्या किसी को पता भी है कि वह इस जेल में कैद है? वह कोकीन उसके बैग में कब और कहां से आया, यह आज तक नोरा के लिए एक पहेली है. क्या फे्रडरिक ने वह पैकेट उसके बैग में रखा था? क्या उसने जानबूझ कर उसे ड्रग पैडलर बनाया था? मेरठ में फ्रेडरिक के जिस दोस्त हेनरी से नोरा को मिलना था, वह कौन था? फ्रेडरिक ने इससे पहले कभी इस दोस्त के बारे में नोरा को नहीं बताया था. क्या हेनरी कोई ड्रग व्यापारी था? क्या हेनरी को पता था कि नोरा अपने साथ ड्रग की खेप ला रही है? क्या फ्रेडरिक ने हेनरी को बताया था कि नोरा के बैग में ड्रग है? तो क्या हेनरी बहाने से वह पैकेट उस बैग से निकालने वाला था? तो क्या नोरा को मकान दिखाने की बात सिर्फ एक बहाना थी? या हेनरी सचमुच उसे कोई मकान दिखाने वाला था? क्या फ्रेडरिक और  नोरा सचमुच मेरठ शिफ्ट होने वाले थे? आखिर हेनरी और फ्रेडरिक ने अपने फोन बंद क्यों कर लिये थे? क्या उन दोनों को पता चल गया था कि मैं पुलिस के हत्थे चढ़ गयी हूं? क्या फ्रेडरिक इंपोर्ट-एक्सपोर्ट का काम नहीं करता, बल्कि एक ड्रग तस्कर है? क्या उसका प्यारा पति एक ड्रग तस्कर है? सोचते-सोचते नोरा का दिमाग झनझनाने लगता है. कभी-कभी यह सवाल उसे सारी-सारी रात सोने नहीं देते हैं. वह सारी-सारी रात रोती रहती है. उसे अपने बच्चे एडबर्ड के भविष्य की चिंता सताती है. वह इन सलाखों के बीच बड़ा होगा, यहां का रूखा-सूखा भोजन खाएगा, जेल के स्कूल में पढ़ेगा, इन अपराधी औरतों के बच्चों के साथ खेलेगा, यही उसके साथी होंगे, ऐसे में उसका क्या भविष्य होगा? पता नहीं नोरा को कब तक इस जेल में रहना है? कभी-कभी नोरा सोचती थी कि जब वह जेल से छूट कर अपने घर हैदराबाद जाएगी तो पता नहीं उसका पति फ्रेडरिक उसे वहां मिलेगा या नहीं? वह सोचती कि कहीं इतनी बड़ी दुनिया में वह बिल्कुल अकेली तो नहीं रह गयी है? उसके पास उसके किसी सवाल का जवाब नहीं है.

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मृणालिनी नोरा की तकलीफों से वाकिफ है. बच्चे के भविष्य को लेकर वह उसके डर और चिन्ता को भी बखूबी समझती है. उसे पता है अगर नोरा को जल्दी यहां से बाहर नहीं निकाला गया, तो वह और उसका बच्चा इस माहौल से बुरी तरह प्रभावित हो जाएंगे. यहां अपराध में लिप्त औरतों का जमावड़ा है, गंदी गालियों का साम्राज्य है, मारपीट, धूर्तता, अश्लीलता, चोरी चकारी के बीच बच्चे का भविष्य कैसे उज्जवल हो सकता है? वह फ्रेडरिक को लताड़ती है, जिसने आज तक नोरा की खोज-खबर नहीं ली. मृणालिनी फ्रेडरिक को गालियां देती है तो नोरा को बुरा भी लगता है, लेकिन वह सच ही तो कहती है.

मृणालिनी अनुभवी औरत है. अपराध की दुनिया से बहुत गहरा रिश्ता रहा है उसका, वह मर्दों की नीचता और धोखे को परखने में माहिर है. नोरा भले अपने पति फ्रेडरिक को बहुत प्यार करती हो, मगर मृणालिनी की नजर में वह एक धूर्त और नीच आदमी ही है, जिसने एक निर्दोष और भोली लड़की को अपने धंधे में इस्तेमाल करके उसे उस हालत में कालकोठरी तक पहुंचा दिया, जब वह उसके बच्चे की मां बनने वाली थी. वह तो इतना नीच है कि इतने लम्बे वक्त में उसने एक बार भी नोरा से मुलाकात करने की कोशिश नहीं की. अधम से अधम व्यक्ति भी इस हालत में अपनी पत्नी से किसी न किसी बहाने सम्पर्क करने की कोशिश जरूर करता है. चाहे पेशी के दौरान अदालत में ही बहाने से पहुंचता, मगर फ्रेडरिक कभी नहीं आया.

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मृणालिनी के दिल में फ्रेडरिक के लिए बेहद नफरत थी. हां, वह निर्दोष नोरा और उसके बच्चे को इन सलाखों से बाहर निकालना चाहती थी. वह दिल से उनकी मदद करना चाहती थी, मगर मेरठ जेल में उसे कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिल रहा था, जिसकी मदद से वह हैदराबाद में नोरा के घर और फ्रेडरिक के बारे में कुछ पता करवा सके. वैसे नोरा के दिये बयानों के आधार पर फ्रेडरिक और उसके दोस्त हेनरी को पुलिस भी तलाश रही थी, मगर अब तक उनका कोई सुराग नहीं लगा था.

जानिए, कैसे बचाएं बालों को पतला होने से

बालों का झड़ना ही समस्या नहीं है, बल्कि उन का पतला हो जाना भी एक बड़ी समस्या है और यह पुरुष और महिला दोनों की उम्र हो जाने पर होती है, लेकिन यही समस्या अगर कम उम्र में होने लगे, तो चिंता का विषय बन जाता है. अधिकतर पुरुष बालों के झड़ने की समस्या से परेशान होते हैं, जबकि ज्यादातर महिलाएं हेयर लौस से. हेयर लौस का अर्थ है बालों का पतला होना, क्योंकि हेयर थिनिंग से बालों का वौल्यूम धीरेधीरे घटता जाता है. इस से प्रत्येक बाल के व्यास में धीरेधीरे कमी आ जाती है. हालांकि यह प्रक्रिया बहुत धीमे होती है. लेकिन कुछ ही दिनों में बालों का करीब 15% वौल्यूम घट जाता है, क्योंकि झड़े बालों की जगह मजबूत बाल नहीं उग पाते. अगर बालों को झड़ने या पतला होने से रोका न जाए तो समस्या दिनबदिन गंभीर होती जाती है.

इस बारे में ओजोन ग्रुप की हेयर ऐक्सपर्ट डा. उमा सिंह बताती हैं, ‘‘हेयर थिनिंग की समस्या अधिकतर बालों को सही पोषक तत्वों के न मिलने, हारमोनल बदलाव होने, मानसिक तनाव के बढ़ने और मैटोबोलिक असंतुलन की वजह से होती है. ऐंड्रोजोनिक थिनिंग जो अधिकतर पुरुष हारमोंस होते हैं, जेनेटिकली यह जन्म के बाद से निर्धारित होते हैं. लेकिन अगर किसी महिला में ये हारमोंस थोड़े से भी हों, तो ये हेयर फौलिकल को मजबूत करने में असमर्थ होते हैं, जिस से बाल पतले हो कर आसानी से झड़ने लगते हैं.’’

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उचित पोषण जरूरी

बालों के पतला होने में हेयर कलरिंग, हाईलाइटिंग आदि सभी जिम्मेदार होते हैं. बारबार ऐसी चीजों के प्रयोग से स्कैल्प की सतह कमजोर हो जाती है, जिस से बाल झड़ते हैं. ऐसे में अगर किसी ने बालों के साथ इस तरह के प्रयोग किए हैं तो उसे अपने बालों का खास ध्यान रखने की जरूरत होती है.

हेयर थिनिंग में मानसिक तनाव का काफी योगदान होता है इसलिए महिलाएं हों या पुरुष सभी को इस से बचना चाहिए ताकि बालों का वौल्यूम ठीक रहे. इसे ठीक करने के कई उपाय आजकल बाजार में उपलब्ध हैं, जिन्हें डाक्टर की सलाह के बिना नहीं अपनाना चाहिए.

अगर बात करें खानपान की तो पोषण युक्त आहार बालों के लिए हमेशा जरूरी है, जिस में विटामिंस और मिनरल्स अधिक मात्रा में हों. मौसमी और ताजा फल, सब्जियां, अंकुरित दालें, अंडे, सूखा मेवा आदि सभी संतुलित मात्रा में खाने चाहिए ताकि बालों की जड़ें मजबूत रहें और हमेशा नए बाल उगने में आसानी हो. इस के अलावा नियमित वर्कआउट, सही मात्रा में पानी पीना, नींद पूरी करना आदि सब आप की दिनचर्या में शामिल होना चाहिए. इन सब के बाद भी अगर आप के बाल झड़ते हों तो तुरंत ऐक्सपर्ट की सलाह लें.

पुरुषों में अधिक समस्या

महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा कम गंजेपन की शिकार क्यों होती हैं? पूछे जाने पर डा. उमा बताती हैं, महिलाओं को अगर बाल झड़ने की शिकायत होती है, तो वे शारीरिक और भावनात्मक रूप से परेशान हो जाती हैं. इतना ही नहीं, उन की सैल्फ ऐस्टीम भी कम हो जाती है. इस से उन के अंदर असुरक्षा की भावना अधिक होती है, ऐसे में वे इसे रोकने का प्रयास करती रहती हैं. पुरुषों में गंजेपन की वजह उन के हारमोंस और जीन्स हैं, जिस से उन के बाल झड़ जाते हैं. अत: बालों की सतह को हमेशा हर्बल उत्पाद से साफ रखें, जिस में औयल, शैंपू, कंडीशनर और हेयर सीरम का बहुत बड़ा सहयोग होता है. इस से स्कैल्प की कमजोर सतह को बल मिलता है और नए बालों के मजबूत होने के साथसाथ वौल्यूम भी बढ़ता है.

बालों को सही वौल्यूम और स्ट्रैंथ देने के लिए सही खानपान और लाइफस्टाइल का पालन करना जरूरी है ताकि बाल अगर अपनी मजबूती खोते भी हैं, तो सही खानपान से दोबारा ठीक हो जाएं. इस के लिए आप घर पर भी ये नुसखे अपना सकती हैं.

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– 2-3 बड़े चम्मच मेथी के दोनों को रात भर भिगोए रखें. सुबह उन का पेस्ट बना लें. उसे बालों और स्कैल्प पर लगा लें. 30 मिनट लगाए रखने के बाद बालों को गुनगुने पानी से धो लें.

– 1 बड़ा चम्मच आंवले के चूर्ण को 2 बड़े चम्मच नारियल के तेल में मिला कर आंच पर गरम कर छान लें. इस मिक्सचर से स्कैल्प की मसाज करें. इसे रात भर लगाए रखें. सुबह शैंपू कर लें.

– अपनी स्कैल्प की हमेशा कोल्ड प्रैस्सड कैस्टर औयल से मसाज करें, इस से बालों की थिकनैस बढ़ती है. यह औयल बालों के झड़ने को भी कम करता है.

– अंडे की सफेदी को दही में मिला कर पैक बना कर बालों में लगाएं. इस से बालों को प्रोटीन मिलता है.

माध्यम : भाग 2

‘तू आ गई, बेटी. अब कोई चिंता नहीं. तेरे बिना तो यह घर खाने को दौड़ता है, मैं बिस्तर पर पड़ गई. घर के रंगढंग ही बिगड़ गए,’ मां ने उदास स्वर में कहा.

काश, मेरी सास होतीं उस समय और देख पातीं उन लोगों के मुख पर उभरती संतुष्टि, कृतज्ञता तथा संकटमुक्ति की अनुभूति को.

‘‘मीना, क्या बात है? आज तो शाम से तुम गौतम बुद्ध हो गई हो. एकदम समाधिस्थ, चिंतन में डूबी.’’

प्रदीप ने मेरे दोनों कंधे पकड़ कर झकझोर दिया. मैं अतीत की गलियों से लौट कर, वर्तमान के राजपथ पर आ गई. हां, मैं सचमुच खो गई थी. 3 विकल्प थे मेरे सामने. 2 में बेईमानी, संवेदनशून्यता और क्रूरता थी.

अनायास मैं ने दोपहर को बंबई से आया पत्र प्रदीप की ओर बढ़ा दिया. उलझे हुए हावभाव का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने मुझ से पत्र लिया और गौर से पढ़ने लगे. मेरी दृष्टि प्रदीप के मुख पर टिकी थी. कुछ पल पूर्व की प्रफुल्लता उन के चेहरे से काफूर हो गई और उस का स्थान ले लिया, चिंता, ऊहापोह, उलझन और उदासी ने.

पत्र पढ़ कर प्रदीप ने मेरी तरफ याचक दृष्टि से ताका और बोले, ‘‘यह तो सब गड़बड़ हो गया. अब क्या करना है?

‘‘सीमा की ससुराल वाले भी कमाल के लोग हैं. मायके में इतनी परेशानी है. पर उन्हें तो अपने बेटे के इम्तिहान और बेटी के जापे की चिंता है, बहू की मां चाहे मरे या जिए, उन की बला से.’’

‘‘प्रदीप, हर सास ऐसे ही सोचती है. याद है, पिछले साल, आप का औरंगाबाद तबादला होने से पहले मेरे घर से चिट्ठी आई थी.’’

‘‘मैं ने तुम्हें भेजा था.’’

‘‘हां, प्रदीप. आप ने समझदारी से काम लिया था. पर मैं ने आप को एक बात नहीं बताई.’’

‘‘क्या?’’

‘‘मांजी ने मुझ से बड़ी कड़वी बातें कही थीं. उन्होंने कहा था कि जो लड़कियां बातबेबात मायके दौड़ती हैं, उन का अपना घर कभी सुखी नहीं रह सकता. लड़की की मां, बेटी की समस्याओं के लिए ससुराल वालों की आलोचना करती है, लड़की को भड़काती है. ससुराल वालों के प्रति उन के मन में वितृष्णा उत्पन्न करती है. फल यह होता है कि लड़की अपने घर जा कर स्थापित नहीं हो पाती.’’

‘‘मीना, उस को छोड़ो. अब बताओ, क्या करना है?’’ प्रदीप ने पूछा.

‘‘करना क्या है? हमें कल सुबह ही बंबई रवाना होना है.’’

‘‘और छुट्टी का क्या होगा?’’

‘‘प्रदीप, घूमनेफिरने के लिए पूरी जिंदगी पड़ी है. हम मांजी को बीमार और पिताजी तथा भैया को इस संकट में छोड़ कर सैरसपाटे के लिए कैसे जा सकते हैं? मायका हो या पति का घर, बच्चों तथा बहूबेटी का मांबाप, सासससुर की सेवा करना प्रथम कर्तव्य है.’’

‘‘और यह जो सामान बंधा हुआ है, उस का क्या होगा?’’

‘‘उसे भी बंबई लिए चलते हैं.’’

प्रदीप ने मेरी ओर अनुराग भरी दृष्टि डाली. क्या उस में केवल स्नेह था? नहीं, उस में प्रशंसा, गर्व, खुशी और संतोष सब का संगम था.

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अगले दिन दोपहर बाद करीब साढ़े 3 बजे हम लोग बंबई पहुंच गए. अचानक बिना किसी पूर्व सूचना के हमें आया देख कर मां, पिताजी और छोटे भैया के चेहरों पर सूर्योदय के बाद की सी चमक आ गई. वे कितने खुश, मुग्ध और चिंतारहित से लगने लगे थे.

मैं ने मांजी की दशा देखी तो अपने निर्णय की बुद्धिमत्ता का विचार आत्मतुष्टि उत्पन्न कर गया. वास्तव में वह काफी तकलीफ में थीं. साथ ही घर पूरी तरह से अस्तव्यस्त हो चुका था.

‘‘बहू आ गई. अब कोई चिंता नहीं,’’ यह थी पिताजी की प्रतिक्रिया. उन्होंने चैन की सांस ली.

‘‘भाभी, आप अचानक कैसे आ गईं?’’ मेरे देवर ने घोर आश्चर्य से पूछा.

‘‘बहू, तुम लोग तो दक्षिण भारत की यात्रा पर जाने वाले थे?’’ मांजी ने पूछा.

‘‘हां, मांजी. पर मातापिता की सेवा तो हम सब का प्रथम कर्तव्य है. आप की दुर्घटना की सूचना पा कर हम सैरसपाटे के लिए कैसे जा सकते थे?’’

मांजी कुछ नहीं बोलीं. केवल उन की आंखों में नमी उभर आई.

हमारे आगमन से घर में नवजीवन का संचार हो गया. मैं ने आते ही घर के संचालन की बागडोर संभाल ली. सफाई, धुलाई, रसोईघर का काम, खाना बनाना, मांजी की सेवा और समयसमय पर उन को दवा तथा खानपान देना.

3-4 दिन में ही घर का कायाकल्प हो गया.

चौथे दिन मांजी के मुख से निकल ही गया, ‘‘घर को पुरुष नहीं, औरत ही चला सकती है, चाहे वह बहू हो या बेटी.’’

मैं क्या कहती? शब्दों में नहीं, गरदन को हिला कर मैं ने मांजी के कथन से अपनी सहमति प्रकट कर दी.

‘‘सीमा की ससुराल वाले बड़े मतलबी और स्वार्थी हैं. जोत रखा होगा मेरी बेटी को. 4 दिन पहले ननद के बेटी हुई है. जच्चा का कितना काम फैल जाता है. सास की निर्दयता तो देखो, उसे इतना भी खयाल नहीं कि बहू की मां की टांग टूट गई है और घर पर कोई नहीं है देखभाल करने वाला…’’

मांजी की भुनभुनाहट सुन कर मुझे अंदर से खुशी हुई. इनसान पर जब बीतती है तब उसे पता चलता है. पिछले वर्ष मांजी को क्या हुआ? तब वह सास थीं और आज? केवल मां.

7वें दिन एक अप्रत्याशित घटना घटी. शाम के 7 बजे अचानक, बिना किसी पूर्व सूचना के सीमा आ धमकी. साथ में था अशोक, उस का पति.

घर में खुशी की धूम मच गई. मांजी की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले. बेटी और दामाद का अनायास आगमन निश्चित रूप से अभूतपूर्व सुख का क्षण था.

हमें देख कर वे दोनों चौंके. उन्होंने हमारे वहां होने की कल्पना तक नहीं की थी.

‘‘चिट्ठी पा कर दौड़े चले आए बेचारे. 1 सप्ताह से बहू ऐसी सेवा कर रही है कि बस पूछो मत,’’ मांजी के स्वर में सच्ची प्रशंसा थी.

‘‘भाभी, कितनी छुट्टियां बची हैं तुम्हारी?’’ सीमा ने पूछा.

‘‘यही 8-10 दिन,’’ मैं ने एक दीर्घ निश्वास छोड़ कर कहा.

‘‘ठीक है. कल खिसको यहां से. अब मैं संभालती हूं यह मोरचा,’’ सीमा बोली.

‘‘पर अब आरक्षण वगैरह कैसे मिलेगा?’’ प्रदीप के स्वर में निराशा?थी.

‘‘भैया, मतलब तो छुट्टी और सैरसपाटे से है. दक्षिण नहीं जा सकते तो गोआ चले जाओ. बसें जाती हैं. वहां ठहरने के लिए जगह मिल ही जाएगी. कैलनगूट तट की सुनहरी बालू में अर्धनग्न लेट कर मस्ती मारो,’’ सीमा एक सांस में कह गई.

प्रदीप ने मेरी तरफ देखा और मैं ने उस की तरफ.

‘‘हां, बहू. अब सीमा आ गई है. तुम लोग कल चले जाओ. क्यों छुट्टियां बरबाद करते हो,’’ कह कर मांजी ने सीमा से पूछा, ‘‘क्यों री, तेरी सास ने तुझे कैसे छोड़ दिया?’’

‘‘पिताजी की चिट्ठी पढ़ कर उन्होंने खुद कहा कि मैं तुरंत बंबई जाऊं. उन्होंने तो पहले भी मना नहीं किया था. वह तो मुझे ही कहने का साहस नहीं हुआ. इन के इम्तिहान, मंजू बहनजी का जापा और फिर यह भी आप को देखने के लिए चिंतित हो गए.’’

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मांजी के मुख पर रुपहली आभा बिखर गई. वह भावातिरेक से कांपने लगीं फिर कुछ क्षण बाद बोलीं, ‘‘सचमुच, मेरे बच्चे और संबंधी इतने उदार, कृपालु और प्रेमी हैं. कितना खयाल रखते हैं हमारा.’’

‘‘बहू,’’ मांजी ने मुझे संबोधित कर के कहा, ‘‘6 मास पूर्व के अपने आचरण पर मैं लज्जित हूं. पहले जमाने में परिवार के अंदर लड़कियों की सेना होती थी. एक गई तो दूसरी उस का स्थान ले लेती थी. पर आज? हम दो, हमारे दो. एकमात्र लड़की चली जाए तो बहुत खलता है. उस पर वह हारीबीमारी, सुखदुख में काम न आए तो बड़ा भावनात्मक कष्ट होता?है,’’ कह कर मांजी ने थकान के कारण आंखें बंद कर लीं.

‘‘आप आराम कीजिए, मांजी,’’ कह कर हम सब बगल के कमरे में चले गए और गप्पें मारने लगे.

मुझे अपने निर्णय पर संतोष था. साथ ही अगले दिन गोआ जाने का मन में उत्साह था. संभवत: मेरे लिए सब से ज्यादा गौरव की बात थी, मेरे अपने घर में मानवीय संबंधों के आधारभूत मूल्यों की पुन: स्थापना…शायद इस का माध्यम मैं ही थी.

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