दिल्ली में रहने वाली 2 एनर्जेटिक और स्मार्ट बच्चों की मां प्रिया कहती है , 'कभीकभी मुझे भी बच्चों के टैंट्रम का सामना करना पड़ता है. कई दफा वे कुछ अनावश्यक मांग रखते हैं. उन्हें पूरा न किया जाए तो भड़क उठते हैं. इसी तरह भूखे होने या नींद पूरी न होने पर भी उन के टैंट्रम हाई हो जाते हैं.'

बच्चों का टेंपर टैंट्रम प्रायः पैरंट्स के तनाव ,चिंता या फ्रस्ट्रेशन की वजह बनता है. बच्चों के टैंट्रम को काबू में लाना आसान नहीं होता.

टैंट्रम क्या है

टैंट्रम यानी एकाएक गुस्से से भड़क उठना. बच्चों का टैंट्रम किसी भी रूप में जाहिर हो सकता है जैसे गुस्सा, फ्रस्ट्रेशन, रोना ,चिल्लाना, चीजें तोड़ना ,जमीन पर लोटना,भागना आदि. कुछ बच्चे सांस रोकने, वोमिट करने या फिर एकदम से आवेश में आने जैसी हरकते भी करते हैं.

मुख्य रूप से 1 से 3 साल की उम्र के बच्चों में टैंट्रम की समस्या ज्यादा देखी जाती है. क्यों कि इस उम्र में बच्चों की सोशल और इमोशनल स्किल्स डेवलप होने शुरू ही होते हैं. उन के पास बड़ी इमोशंस एक्सप्रेस करने के लिए शब्द नहीं होते. वे अधिक आजादी चाहते हैं मगर पैरेंट्स से दूर होने से घबराते भी हैं. ऐसे में वे रास्ता ढूंढ रहे होते हैं जिस के जरिए अपने आसपास की दुनिया को बदलने का प्रयास कर सकें और अपनी मरजी चला सके.

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कुछ बातें जो बच्चों के टैंट्रम की मुख्य वजह बनती है

  • टेंपरामेंट - जो बच्चे जल्दी अपसेट होते हैं उन में टैंट्रम का खतरा भी अधिक होता है.
  • स्ट्रेस - तनाव , भूख ,थकावट आदि.
  • कुछ खास परिस्थितियां जो बच्चों को पसंद नहीं ,जैसे कोई उन के खिलौने उठा कर भाग जाए.
  • स्ट्रांग इमोशंस -डर ,चिंता ,गुस्सा ,शक आदि.

देखा जाए तो टैंट्रम बच्चों की विकास प्रक्रिया का एक स्वाभाविक हिस्सा है और इस से बचा नहीं जा सकता. मगर प्रयास किए जाए तो इस पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है. ध्यान रखें प्रत्येक बच्चा दूसरे से जुदा होता है. टैंट्रम पर काबू पाने के लिए एक बच्चे पर अपनाया गया ट्रिक संभव है कि दूसरे बच्चे पर फिट न बैठे.

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