Download App

 क्या कूल हैं ये : भाग 2

40-45 उम्र का अच्छाखासा आदमी लग रहा था. पहले ही दिन पूरा इतिहास जान लिया मैं ने उस का… भारत में कहां का रहने वाला है, परिवार में 2 बड़े बच्चे हैं और कौनकौन है, वगैरहवगैरह.

बेटा हतप्रभ, ‘‘ममा, इतने वक्त में हमें नहीं पता यह कहां का है और आप ने इतनी जल्दी इस की 7 पुश्तें खंगाल डालीं.’’

‘‘ममा लेखिका जो हैं,’’ समर ने चुटकी ली.

मैं दोनों की चुटकियों को अनसुना कर पूरण को खाना बनाते देख रही थी. ‘‘ऐसे क्या बना रहे हो तुम. ऐसे कोई सब्जी बनती है?’’ कुकिंग का बेहद शौक है मु झे. जैसातैसा नहीं खा सकती. इसलिए कामवालों का बनाया खाना पसंद नहीं आता. भारत में आशा के अलावा आउट हाउस में एक परिवार रहता है. इसलिए आशा और सविता के रहतेकाम करने की जरूरत भले ही न पड़े, पर खाना बनाना मेरा प्रिय शगल था. वह मैं किसी पर नहीं छोड़ती हूं.

‘‘तुम ने गैस बंद क्यों कर दी? अभी तो सब्जी भुनी भी नहीं है, पूरण. ऐसा ही खाना खिलाते हो बच्चों को?’’

‘‘अरे ममा, चलो,’’ बेटा मु झे हंस कर खींचते हुए बोला, ‘‘आप को पूरण का बनाया खाना पसंद नहीं आएगा तो बाहर से और्डर कर दूंगा, यहां भारतीय खाना जितना अच्छा और फ्रैश मिलता है, उतना तो भारत में भी नहीं मिलता.’’

मजबूरी में मैं बेटे के साथ आ गई. लेकिन दिल कर रहा था, अभी के अभी इसे पूरी कुकिंग सिखा दूं कि ऐसा खाना खाते हैं मेरे बच्चे.

लेकिन पूरण का बनाया खाना 4-5 दिनों तक खाने की जरूरत ही नहीं पड़ी क्योंकि शुक्रवार और शनिवार 2 दिन छुट्टी के थे और उस के बाद भी बच्चों ने कुछ दिनों की छुट्टी ले ली थी. घर से एक बार निकले हम चारों, रात एकडेढ़ बजे से पहले घर नहीं आ पाते थे.

जैसे उम्र का और रिश्ते का अंतर ही नहीं रह गया था चारों में. कितनी शिकायतें हैं आज के समय में इस नई पीढ़ी से सब को. पर इस कूल जनरेशन के रंग में रंग जाओ, तो लगता है जैसे अपनी उम्र से कई साल पीछे लौट गए. कुछ भी याद नहीं रह रहा था. उन्हीं के जैसी बातें, मस्ती, कहकहे और ताकत भी… पता नहीं कहां से आ गई थी. न बच्चे सोच रहे थे कि वे हमें सुबह 11 बजे से रात 11 बजे तक चला रहे हैं और न हम सोच रहे थे. न समय का ध्यान था और न डेट याद रह रही थी.

लग रहा था जैसे चारों दोस्त होस्टल में रह रहे हैं. और सब से बढ़ कर तो घर में मुश्किल से 3-4 साल पहले आई हमारी प्यारी बहू इशिता, उस के साथ महसूस ही नहीं हो रहा था कि वह कभी हम से जुदा भी थी. घूमने जाते तो वह कभी एक बड़ा कप आइसक्रीम ला कर सब को बारीबारी से खिलाती रहती तो कभी कोल्डडिं्रक ला कर सब को पिलाती. वह जूठे तक का परहेज न करती हमारे साथ. उसे देख कर लगता जैसे यहीं जन्म लिया हो उस ने. उस के आचरण से उस के संस्कार भी साफ दिखाई देते और महसूस करा देते कि जब मातापिता तबीयत से बेटी का पालनपोषण करते हैं तो बेटियां भी ऐसे ही प्यार से  2 घरों को जोड़ देती हैं.

छुट्टियां खत्म हो गई थीं और अब कल से बच्चों को औफिस जाना था, इसलिए आज जल्दी वापस आ गए थे. डिनर और्डर कर रहा था रिषभ, मैं बीच में बोल पड़ी, ‘‘चपाती और्डर करने की जरूरत नहीं, रिषभ, मैं बना लूंगी.’’

‘‘क्यों बना लेंगी, ममा. कोई जरूरत नहीं बनाने की,’’ इशिता बोली.

‘‘इसलिए, क्योंकि चपाती तो घरवाली ही अच्छी होती है,’’ मैं किचन की तरफ जाते हुए बोली और बच्चों की बात अनसुना कर चपाती बनाने लगी. डिनर आ गया था. इशिता ने टेबल पर लगा दिया. बच्चे टेबल पर बैठ गए थे और समर वौशरूम में. मैं ने चपाती बना कर बच्चों को दी और फिर गरम चपाती समर की प्लेट में भी रख दी. समर इतनी देर में भी बाहर नहीं आए. मैं तबतक दूसरी गरम चपाती बना कर ले आई थी. समर की प्लेट की चपाती अपनी प्लेट में रख कर मैं ने दूसरी गरम चपाती समर की प्लेट में डाल दी. तब तक समर भी आ गए.

‘‘ये क्या, ममा?’’ रिषभ आश्चर्य से मेरे क्रियाकलाप देखते हुए बोला, ‘‘ऐसा क्यों किया आप ने?’’

‘‘वह वाली थोड़ी ठंडी हो गई थी न,’’ मैं व्यस्त भाव से बोली. रिषभ आश्चर्यचकित हो बोला, ‘‘ठंडी हो गई थी, सिर्फ 2 मिनट में? पापा, वैसे काफी बिगड़ी आदतें हैं आप की.’’ और फिर अर्थपूर्ण मुसकराहट से वह इशिता को देख कर हंसने लगा.

समर खिसिया कर खाना खाने लगे, ‘‘असल में घर में सविता गरमगरम चपाती बना कर लाती है न, तो आदत पड़ गई.’’

पर मेरा मन बल्लियां उछलने को कर रहा था. जो बात वर्षों नहीं बोल पाई थी उस बात को रिषभ ने क्या मजे से कह दिया था. आज के पति कितने कूल हैं. उन्हें फर्क नहीं पड़ता. वे सबकुछ प्लेट में किचन से एकसाथ डाल कर खा लेते हैं. प्लेट न मिलने पर पेपर प्लेट में भी खा लेते हैं. प्रौपर डिनर, लंच न मिले तो बर्गर, मैगी या औमलेटब्रैड से भी पेट भर लेते हैं. ‘सब ठीक है’ के अंदाज में मजे से जीते हैं. खूब कमाते हैं और खूब खर्च करते हैं. पतिपत्नी दोस्तों जैसे रहते हैं. मिलजुल कर कोई भी काम कर लेते हैं.

एक हमारा जमाना था कि मायके तक जाना मुश्किल था. नौकरी करना तो और भी मुश्किल था. ‘खाना कौन बनाएगा?’ जैसी एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या थी पतियों की, जिस से पार पाना कठिन ही नहीं, नामुमकिन था बीवियों का. नाश्ते, लंच, डिनर में बाकायदा पूरी टेबल सजती थी. पत्नी का टैलेंट गया बक्से में और आधी जिंदगी किचन में. मैं मन ही मन हंसहंस कर लोटपोट हुई जा रही थी.

बच्चों को बड़ों से कुछ सीखना चाहिए. पर मेरी सम झ से तो आज के समय में पापाओं को अपने बेटों से सही तरीके से पति बनना सीखना चाहिए. समर बहुत गंभीरता से खाना खा रहे थे और इशिता व रिषभ आंखोंआंखों ही में चुहलबाजी में मस्त थे. मैं मन ही मन इस प्यारी जोड़ी का प्यार देख आनंद से सराबोर हो रही थी.

दूसरे दिन दोनों बच्चे औफिस चले गए. जब इशिता जाने लगी तो मैं उसे लिफ्ट तक जाते देखती रही. बेटी नहीं है मेरी और मैं घर से किसी लड़की को पहली बार यों चुस्तदुरुस्त, स्मार्ट ड्रैस में औफिस जाते देख हुलसिक हो रही थी. इन बच्चियों का साथ दो, सपोर्ट दो, उड़ने दो इन्हें खुले गगन में. इन के पंख मत नोचो. बहुतकुछ कर सकती हैं ये. आज परिवार भी तो कितने छोटे हो गए हैं. किचन में 4 रोटियां बनाना ही तो जीवन में सबकुछ नहीं है.

सही कहता है रिषभ, ‘ममा, आज के समय में अगर बीवी घर पर रहेगी तो घर थोड़ा और ज्यादा सुंदर व व्यवस्थित हो जाएगा. लेकिन यह सब एक लड़की के सपने टूटने की कीमत पर ही होगा न,’ कितनी सम झ है उसे. कितनी बड़ी बात कह गया. दोनों मिल कर फटाफट कई काम कर डालते हैं, एकदूसरे की मुंडी से मुंडी मिला कर कई प्रोग्राम बना डालते हैं और ढेर सारी शौपिंग करने में भी हाथ नहीं हिचकिचाते उन के.

ठीक तो है, पतिपत्नी में आपसी सम झ होनी चाहिए. चाहे फिर पत्नी बाहर काम करे या घर में रहे. सोचती हुई मैं किचन की अलमारियां खोलखोल कर देखने लगी. ‘आज सारी की सारी ठीक कर डालूंगी,’ मैं बड़बड़ाई.

‘‘क्या?’’ समर पास से गुजरे, ‘‘जो ठीक करना है, बाद में करना. पहले कुछ भूख शांत कर दो.’’

‘‘क्या कहा?’’ मैं ने त्योरियां चढ़ा लीं.

‘‘नहींनहीं, पेट की भई. तुम तो हर समय गलत ही सम झ जाती हो.’’ मेरी चढ़ी त्योरियां देख, समर भाग खड़े हुए.

लंच से निबट कर मैं अपने अभियान में जुट गई. एकएक कर सारी अलमारियां व्यवस्थित कर डालीं. फालतू सामान बाहर कर दिया. इन्हीं कामों में शाम हो गई. तब तक रिषभ औफिस से आ गया. मैं किचन में फैले समान के अंबार के बीच बैठी थी.

‘‘यह क्या, ममा, बहुत शौक है आप को काम करने का. यहां भी शुरू हो गईं.’’

‘‘नहीं, देख रही थी कुछ सामान डबल है. कुछ 3-4 डब्बों में रखा है पीछे. शायद, तुम्हें पता नहीं है, वही सब ठीक किया. कुछ खराब भी हो गया, इसलिए बाहर निकाल दिया. अब कुछ खाएगा तू?’’

‘‘नहीं, वह सब मैं खुद कर लूंगा. आप और पापा के लिए भी कुछ बना देता हूं,’’ कह कर रिषभ ने फ्रीजर से कुछ स्नैक्स निकाल कर ओवन में गरम कर के, उन में अपनी कुछ कलाकारी दिखा कर, प्लेट में सजा कर टेबल पर रख दिया. तब तक सबकुछ समेट कर मैं भी आ गई.

तभी घंटी बज गई. इशिता आ गई थी. मैं ने दरवाजा खोला और इशिता को दोनों बांहों में समेट लिया. ‘‘आ गई मेरी गुडि़या.’’ समर ने भी लपेट लिया उसे. इशिता  झूठीमूठी गुमानभरी नजरें रिषभ पर डालती हुई बोली, ‘‘आप को भी किया था ऐसा प्यार? मु झे देखो, कितना प्यार करते हैं ममापापा.’’

‘‘इधर आओ,’’ रिषभ भी हंसता हुआ उसे खींच कर ले गया और अलमारियां दिखाता हुआ बोला, ‘‘जब मैं आया तो ममा यह सब कर रही थीं. मु झे प्यार कहां से करतीं.’’

दोनों ऐसी चुहल कर रहे थे कि हृदय हर्षित हो गया. इशिता बैग एक तरफ रख कर कोल्ड कौफी बना लाई और हम चारों बैठ कर खानेपीने लगे. मैं सोच रही थी कि कितने मजे से लेते हैं ये युवा जिंदगी को. औफिस से आए हैं दोनों, मैं कुछ बना कर देती, उलटा उन्हीं का बनाया हुआ खा रहे हैं. जब हम इस उम्र में थे तो पति लोग औफिस से ऐसे आते थे जैसे पहाड़ तोड़ कर आए हों. ये दोनों ऐसे आए हैं जैसे बैडमिंटन खेल कर आए हों.

हालांकि पता है मुझे कि दोनों पर नौकरियों का तनाव हावी रहता है. पर आजकल के युवा इन तनावों को भूल कर मनोरंजन करना भी खूब जानते हैं. रिश्तेदारों व पड़ोसियों के तानों में उल झ कर, उन की परवाह कर और तनाव नहीं पालना चाहता आज का युवा वर्ग. बस, शायद इसीलिए बदनाम रहता है. जो इन के रंग में रंग गया वह जिंदगी का लुत्फ उठा लेता है. वरना, रुकने का नाम तो जिंदगी नहीं.

NEW YEAR RESOLUTION : इन 7 कामों से बनाएं नये साल को खास

नया साल दस्तक दे चुका है और हम बड़े जोर शोर से उसका स्वागत कर रहे हैं . नया साल नयी जोश और उमंग लेकर तो आता ही है साथ में कुछ बीते साल की कुछ चिंता और परेशानी भी ले आता है जिसे हमने लापरवाही और आलस्य में अनदेखा किया होता है . हर नये साल के साथ कुछ न कुछ खास करना चाहिए जिससे हमारी जिंदगी और बेहतर हो सकें . कुछ ऐसी बातें जिसकी हम सबको सख्त जरूरत और साथ ही मांग भी होती है . साल दर साल कुछ न नया करते रहने से हम बेहतरीन जिंदगी जी सकते हैं . आइए इस साल के साथ अपने लिए कुछ नया करने का वादा करते हैं और साथ ही उसे रोज निभाने का भी…

1. सबसे पहली जगह हम सबको अपनी सेहत को देनी चाहिए . अपनी बौडी टाइप के हिसाब से योग, एक्सरसाइज, जिम, वाक में से कुछ भी चुन सकते हैं . अगर कोई स्वास्थ्य समस्या है तो डौक्टर के निर्देशानुसार ही रुटीन फौलो करें . अगर कुछ परहेज करना है तो उसकी आदत भी धीरे धीरे डाल ले तो बढ़ती उम्र में भी जिंदगी का आनंद ले पाएंगे .

2. दूसरी जगह बुरी आदतों को छोड़ने के लिए रखे . कुछ भी ऐसा जिसका असर आप पर या परिवार पर नकारात्मक पड़ता हो, एल्कोहल, स्मोकिंग या कुछ भी.. अगर जरूरत पड़े तो इसके लिए काउंसलर की भी सहायता लेने से न हिचकिचाए.

ये भी पढ़ें- कैसे कंट्रोल करें बच्चों का टैंट्रम

3. कुछ न कुछ नया सीखने की चाहत भी रखनी चाहिए . कुछ भी नया सीखे, पढ़े या फिर यात्रा करें जो भी आपको पसंद हो, अकेले या फिर परिवार के साथ जैसे आप एंजौय कर पाते हैं . कुछ नया सीखते रहने से नयी ऊर्जा बनी रहती है .  राइटिंग, सिंगिंग, म्यूजिक, इंस्ट्रूमेंट कुछ भी सीख सकते हैं और अगर बेहतर कर पा रहे हैं तो पार्ट टाइम प्रोफेशन भी बना सकते हैं .

4. बेहतर भविष्य के लिए कुछ पैसे जमा करने की आदत भी इस साल के रेजोलूशन में डाले . अपनी आय के हिसाब से गुल्लक या अकाउंट में इसे जमा कर सकते हैं .

5. नौकरी या व्यवसाय की बेहतरी के अवसर की तलाश को भी अपनी लिस्ट में जरूर जगह दे, इसके लिए अगर कोई स्किल्स डिवेलप करने की जरूरत पड़े तो भी पीछे न हटे . चाहे नौकरी हो या व्यवसाय खुद को औनलाइन रजिस्टर्ड करें और वक्त वक़्त पर अपडेट भी करती रहे .

6. कुछ वक़्त परिवार, बच्चे, बुजुर्ग के लिए निकालने के बारें में सोचे, इससे न केवल आपका परिवार खुश रहेगा बल्कि आपका स्ट्रेस लेवल भी कम होगा . अगर घर में बच्चे हो तो कुछ देर उनके साथ जरूर खेले इससे आपको नयी स्फूर्ति मिलेगी .

7.  अगर स्टूडेंट है या किसी प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं तो पहले ही दिन से शेड्यूल तय कर ले और हर दिन अपने ध्येय को पूरा करें . दिन का टार्गेट पूरा करने के बाद कोई अन्य कार्य करें . पढ़ाई के साथ म्यूजिक, योग/वाक और ग्रुप डिस्कशन को जरूर शामिल करें ताकि स्ट्रेस न होने पाए.

ये भी पढ़ें- मायके में न जाएं ससुराल के राज

8. नए साल के रेजोलूशन में पर्यावरण संरक्षण और सोशल वर्क कर लिए दे.. घर में, आसपास या जहां खाली पेड़ पौधे लगाए, बच्चों को भी साथ रखे.. समय समय पर खाद पानी देते रहें . मोहल्ले, कॉलोनी या कोई भी जरूरतमंद दिखे तो उसकी मदद जरूर करें.. इससे बच्चों में भी दयालुता की भावना विकसित होगी जो अच्छे समाज के निर्माण के लिए अत्यंत आवश्यक है .

इन सभी बिंदुओं में से जो भी रेजोल्शयून आपके बे‍हतर जिंदगी के लिए जरूरी है.. उसे चुने और पूरा करने का समय जरूर निकाले.. शुरू शुरू में आदत में लाने के लिए थोड़ी मेहनत करनी होगी लेकिन रुटीन में आ जाने के बाद आपके लिए बहुत आसान होगा.. आइए थोड़ा समय अपने लिए निकालते हैं और आने वाला साल बेहतर बनाते हैं .

मलाइका अरोड़ा का नए साल का स्वागत करने का हौट अंदाज

नए साल का स्वागत हर कोई अपने तरीके से कर रहा है लेकिन बौलीवुड सितारों की बात ही कुछ और होती है कुछ विदेश जा कर नए साल का मजा ले रहे  हैं तो कोई इंडिया में रह कर जश्न मना रहा है. साल 2020 के स्वागत के लिए बौलीवुड की हौट एक्ट्रेस मलाइका अरोड़ा अपने परिवार संग गोवा में न्यू ईयर सेलिब्रेट कर रही हैं. इस मौके पर उनका साथ देने के लिए अर्जुन गोवा पहुंचे हैं.

आपको बता दे नए साल के स्वागत के लिए मलाइका अरोड़ा  अपनी बहन अमृता अरोड़ा, उनके पति शकील और कुछ खास दोस्तों के साथ गोवा पहुंची हैं. गोवा में नए साल की पार्टी की कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं.

इनमें सब मस्ती-घमाल करते नजर आ रहे हैं. मलाइका ने इंंस्टाग्राम पर कुछ तस्वीरें शेयर की हैं. इनमें मलाइका और अमृता दोनों बहनें खास पोज देती नजर आ रही हैं.

ये भी पढ़ें- अजीबोगरीब ड्रेस के कारण दीपिका पादुकोण सोशल मीडिया पर हो रही है

View this post on Instagram

Sun,star,light,happiness…….2020✨

A post shared by Malaika Arora (@malaikaaroraofficial) on

अमृता ने अपने इंस्टाग्राम पर इस तस्वीर को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा, ”गोवा टाइम्स.” तस्वीरों में मलाइका हमेशा की तरह बेहद हौट एंड स्टाइलिश नजर आ रही हैं. उन्होंने ब्लैक कलर की ब्रालेट के साथ मैटेलिक पैंट पहनी है, जिसके साथ उन्होंने अमेरिकल हैडगियर लगाया हुआ है.

मलाइका ने सोशल मीडिया पर दो फोटो शेयर की हैं. इसमें पहली फोटो में वे परिवार संग नजर आ रही हैं. वहीं, दूसरी फोटो में अर्जुन कपूर  को किस करती नजर आ रही हैं.

View this post on Instagram

Happy new year ♥️♥️

A post shared by Malaika Arora (@malaikaaroraofficial) on

फोटो शेयर करते हुए मलाइका लिखती है, सूरज, सितारे, लाइट और खुशी, 2020.  कुछ ही समय में मलाइका की इस फोटो को लाखों लोग लाइक कर चुके हैं.

ये भी पढ़ें- अलविदा 2019 : इस साल शादी के बंधन में बंधीं छोटे पर्दे की ये 6 जोड़ियां

इससे पहले अर्जुन कपूर ने अपने फैंस को नए साल की बधाई देते हुए एक फोटो शेयर की थी जिसमें उन्होंने लिखा था कि 2019 आपने मुझे काफी कुछ सिखाया, जिंदगी तमाम उतार-चढ़ाव से भरी हुई है इस बात को याद दिलाया. मैं दुनिया की सैर पर गया, जिंदगी को जिया, हंसा, रोया, कुछ बेहद ही बेहतरीन यादें रहीं, कुछ ऐसी भी रहीं जिससे दिल दुखा. निजी तौर पर नए दशक में प्रवेश करने को लेकर मैं रोमांचित हूं. साल 2010 की शुरुआत में मैं दुनिया के लिए अंजान था, मेरे सामने कुछ खास मौके भी नहीं थे. आज इस दशक की समाप्ति पर मैं अपने 14वें फिल्म की शूटिंग कर रहा हूं.

अजीबोगरीब ड्रेस के कारण दीपिका पादुकोण सोशल मीडिया पर हो रही है ट्रोल

बौलीवुड की फेमस एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण अपनी खूबसूरती के साथ अपनी ड्रेसिंग सेंस के लिए  जानी जाती है लेकिन इस बार दीपिका अपनी  ड्रेस की वजह से ट्रोल का शिकार हो रही  है. लेकिन कुछ को उनका ये ड्रेसिंग सेंस पसंद आ रहा है.

आपको बता दे इस दिनों दीपिका पादुकोण अपनी मोस्ट अवेटेड फिल्म ‘छपाक’  के प्रमोशन के लिए बहुत बिजी हैं.  हाल ही में दीपिका पादुकोण को जुहू में फिल्म को प्रमोट करते देखा गया, लेकिन दीपिका अपनी ड्रेस की वजह से ट्रोल हो गई हैं. सोशल मीडिया पर उनकी फोटोज तेजी से वायरल हो गई हैं और उस पर लोग खूब कमेंट्स कर रहे हैं.

बौलीवुड की सबसे स्टाइलिश फैशन डीवाज में गिनी जाने वाली दीपिका पादुकोण है ने ब्लू कलर की डेनिम जीन्स के साथ व्हाइट कलर की लौन्ग शर्ट पहनी है. इसके ऊपर उन्होंने ब्लैक कलर का कोर्सेट पहना हुआ है. दीपिका ने ब्लैक कलर की अजीब सी हील्स भी पहनी है, जिस पर रिबन लगे हुए हैं. उन्हें इस लुक के लिए खूब ट्रोल किया जा रहा है.

हमेशा स्टाइल में रहने वाली दीपिका ने शायद जल्दबाजी में ये ड्रेस पहनी या फिर पति रणवीर के अजीबोगरीब ड्रेसिंग सेंस का असर हो गया है जो ऐसा पहन कर घर से बाहर निकल गई. सोशल मीडिया दीपिका की ये तस्वीरें खूब वायरल हो रही हैं.

coment

दीपिका पादुकोण के इस फोटो को देकर लोग रिएक्ट कर रहे हैं. कहा जा रहा है कि दीपिका का अब तक का सबसे डिजास्टर ड्रेस है. किसी ने कहा- ‘दीपिका इस ड्रेस में खुद ही कंफर्टेबल फील नहीं कर रही है, जूतों में भी नहीं चल पा रही है.’

एक यूजर ने कहा, उन्हें अपने कपड़ों का ध्यान रखना चाहिए. तो किसी ने कहा- ‘दीपिका क्या सच में, ऐसे कपड़े में सब्जी लेने भी कोई नहीं जाता.’

एक अन्य यूजर ने लिखा- अरे इसे अंदर पहनते हैं बाहर से नहीं. तो किसी ने कहा- अरे यार दीपू ये क्या पहन लिया तुमने? ऐसे में दीपिका को ट्रोल करने वाले लोगों को जवाब देने के लिए दीपिका सपोर्टर्स आगे आए.

दीपिका के फैंस कहने लगे- दीपिका आपका पहनावा बाकी लोगों से बिलकुलअलग है. इस वजह से लोग आपसे जलते हैं. तो किसी ने कहा- दीपिका पादुकोण तुम कुछ भी पहनती हो वह अजूबी बन जाता है परफेक्ट स्टाइल स्टेटमेंट.

छोटी सरदारनी: खतरे में पड़ेगी सरब की जान, क्या साथ आएंगी मेहर और हरलीन

कलर्स के शो ‘छोटी सरदारनी’ में मेहर के पास अपने बच्चे या सरब और परम के बीच में से किसी एक को चुनने के लिए बहुत कम दिन बचे हैं. तो वहीं हरलीन और सरब के बीच भी मेहर के कारण दूरियां खत्म होने का नाम ही नही ले रही हैं. आइए अब आपको बताते हैं क्या होगा शो में आने वाला नया ट्विस्ट…

सरब ने किया बटवारे का फैसला

अब तक आपने देखा कि मेहर के बच्चे के नाम प्रौपटी करने से गुस्से में हरलीन, सरब को दो रास्ते देती है कि वह घर छोड़कर चली जाएगी या फिर घर का बटवारा होगा, लेकिन सरब दोनों बातों के लिए नही मानता. तो रौबी सरब को कहता है कि घर और प्रौपर्टी को बेच दे. वहीं मेहर इस पूरे मामले में चुप्पी बनाए रखती है.

sarab

ये भी पढ़ें- शुभारंभ : रानी के परिवार पर लगेगा चोरी का इल्जाम, क्या टूट जाएगी शादी ?

मेहर को कंस्ट्रक्शन साइट पर ले जाएगा सरब

आज के एपिसोड में आप देखेंगे कि सरब, मेहर को कंस्ट्रक्शन साइट पर लेकर जाएगा. जहां वो मेहर को बताएगा कि वो गरीबों के लिए एक अस्पताल बनवाना चाहता है जो उसके पिताजी का सपना था.

मेहर को गोद में उठा लेगा सरब

harleen

मेहर की प्रेग्नेंसी को देखते हुए सरब परेशान होता है, इसीलिए वह मेहर को गोद में उठा लेता है ताकि उसे सीढ़ियों पर चलने में कोई तकलीफ ना हो.

खतरे में पड़ेगी सरब की जान

meher

कंस्ट्रक्शन साइट पर सरब का पैर फिसल जाएगा और वो ऊंचाई से नीचे गिर जाएगा, जिससे उसकी जान खतरे में पड़ जाएगी. सरब की ये हालत देख मेहर और हरलीन बुरी तरह घबरा जाएंगी.

ये भी पढ़ें- छोटी सरदारनी : नए साल में देखना ना भूलें मेहर और सरब का फिल्मी अवतार

अब सवाल ये है कि क्या सरब को बचाने के लिए मेहर और हरलीन अपने गिले-शिकवे भुलाकर एक साथ आएंगी? जानने के लिए देखते रहिए ‘छोटी सरदारनी’, सोमवार से शनिवार, रात 7:30 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

मन भाया मंगेतर : भाग 2

मन भाया मंगेतर : भाग 1

अब आगे पढ़ें

35 वर्षीय समाधान पाषाणकर पुणे में रहता था और वहां की एक फाइनैंस कंपनी में नौकरी करता था. उस की शादी हो चुकी थी. उस की पत्नी बैंक में नौकरी करती थी. उस के 2 बच्चे भी थे.

जब तक समाधान प्रमोद पाटनकर और दीप्ति के यहां रहा, तब तक दोनों ने मिल कर समाधान का बहुत ध्यान रखा, जिस में दीप्ति की भूमिका कुछ अधिक थी.

4-5 दिन रहने के बाद जब वह वापस पुणे जाने लगा तो उस ने प्रमोद पाटनकर और दीप्ति का आभार प्रकट किया. प्रमोद पाटनकर और दीप्ति ने औपचारिकता के नाते उस के आभार का उत्तर देते हुए कहा कि घर उस का ही है, कभी भी आ जा सकता है.

अंधे को और क्या चाहिए, सिर्फ 2 आंखें. प्रमोद पाटनकर और दीप्ति का मन टटोलने के बाद समाधान को मानो उस की मुंहमांगी मुराद मिल गई थी. 4-5 दिनों तक दीप्ति के परिवार के साथ रह कर समाधान के दिल में दीप्ति का तनमन पाने के लिए एक अजीब सी चाह बन गई थी.

वह उस का सामीप्य पाने के लिए अकसर किसी न किसी बहाने मुंबई आता और प्रमोद पाटनकर के घर को अपना आशियाना बना कर दीप्ति के ज्यादा से ज्यादा पास रहने की कोशिश करता.

दीप्ति भी कोई बच्ची नहीं थी, वह समाधान के हावभाव की भाषा अच्छी तरह समझती थी. वैसे भी प्रमोद से पहले दीप्ति की शादी उसी से होने वाली थी. समाधान अकसर हंसीमजाक करते हुए ठंडी आहें भर कर कहता, ‘‘दीप्ति, तुम्हारा घर मुझे अपने घर जैसा लगता है. मेरे आने पर तुम अपने काम से छुट्टी ले कर मेरा कितना ख्याल रखती हो.’’

‘‘यह भी तो तुम्हारा ही घर है.’’ दीप्ति ने उस के प्रश्न का उत्तर उसी के शब्दों में दिया.

‘‘यह घर मेरा कहां है, यह तो तुम्हारे पति का है. लेकिन तुम मुझे अपनी जैसी लगती हो, इसलिए मैं यहां आ जाता हूं.’’ समाधान ने कहा तो दीप्ति के गालों पर लाली उतर आई. लेकिन वह बोली कुछ नहीं.

उस की इस खामोशी को समाधान ने ही तोड़ा, ‘‘दीप्ति, बताओ तुम मुझे क्या समझती हो. वक्त साथ देता तो आज तुम मेरी पत्नी होतीं, लेकिन तुम मेरे नसीब में नहीं थीं.’’

‘‘अब बोलने से क्या फायदा,जो होना था हो गया. पत्नी तो अच्छी है न?’’ दीप्ति ने कहा.

‘‘हां, लेकिन तुम्हारी जैसी नहीं है,’’ ठंडी आह भरते हुए समाधान बोला, ‘‘दीप्ति एक बात कहूं, अगर तुम मानो तो. अभी भी वक्त है. हम दोनों एक हो सकते हैं.’’

समाधान ने दीप्ति को अपनी बातों से कुछ इस तरह प्रभावित किया कि वह अपने आप को संभाल नहीं पाई और 10-12 साल के अपने सुखी दांपत्य को दांव पर लगा दिया. वह पति के प्रति वफादारी भूल कर समाधान की बाहों में आ गिरी. एक बार जब मर्यादा की कडि़यां टूटीं तो फिर टूटती ही चली गईं.

समय अपनी गति से भाग रहा था. दीप्ति और समाधान के बीच बने अवैध संबंध 4 साल बीत जाने के बाद भी प्रमोद पाटनकर की नजरों से छिपे रहे. इस बीच दीप्ति एक बेटी की मां बन गई, जिस का नामकरण प्रमोद पाटनकर ने बड़ी धूमधाम से किया था.

अंतत: एक दिन दीप्ति और समाधान के रिश्ते की सच्चाई प्रमोद के सामने आ गई. दरअसल, एक दिन प्रमोद जब दीप्ति से मिलने उस के स्कूल गया तो दीप्ति स्कूल में नहीं मिली. पता चला कि उस दिन वह स्कूल आई ही नहीं थी.

शाम को प्रमोद जब घर पहुंचा तो उस ने दीप्ति से स्कूल से अनुपस्थित होने के बारे में पूछा. दीप्ति तबीयत खराब होने का बहाना बना कर बात को टाल गई. इस के बाद वह सावधान हो गई और उस ने समाधान को भी सतर्क कर दिया.

समाधान के पास पैसों की कमी नहीं थी. अब वह जब भी दीप्ति से मिलने मुंबई आता तो उस के घर न जा कर किसी होटल में ठहरता था. मौका देख दीप्ति किसी पार्टी में जाने या फिर सहेलियों से मिलने के बहाने समाधान के पास पहुंच जाती थी. लेकिन यह खेल भी ज्यादा दिनों तक नहीं चला.

घटना से लगभग एक माह पहले दीप्ति का मोबाइल प्रमोद के हाथ लग गया. प्रमोद ने उस के फोन का वाट्सऐप चैक किया तो उस में उसे समाधान के साथ हुई चैटिंग मिल गई. उस दिन भी समाधान ने दीप्ति को चर्चगेट, मुंबई के एक होटल में बुलाया था.

ये भी पढ़ें- हनी ट्रैप का रुख गांवों की ओर : भाग 2

बनसंवर कर दीप्ति जब घर से बाहर गई और शाम तक नहीं लौटी तो प्रमोद ने उसे आड़े हाथों लिया. प्रमोद ने उस के मैसेज और उस का पीछा करने की बातें उस से कहीं तो दीप्ति के होश उड़ गए. अब वह झूठ नहीं बोल सकती थी. स्थिति को संभालने के लिए दीप्ति ने पति से माफी मांगी और दोबारा समाधान से न मिलने की कसम खाई

प्रमोद ने उसे माफ भी कर दिया. लेकिन घनिष्ठ संबंधों में ऐसे कसमेवादों का कोई महत्त्व नहीं होता. दीप्ति को भी प्रमोद की  अपेक्षा समाधान ज्यादा पसंद था. इसलिए वह पति को अपने प्यार के रास्ते का कांटा समझने लगी. इस कांटे को वह हमेशा के लिए खत्म करना चाहती थी. इस बारे में उस ने समाधान से बात की तो वह भी तैयार हो गया. अपनी योजना के अनुसार, घटना के एक सप्ताह पहले समाधान ने दीप्ति को 2 बार नींद की गोलियां ला कर दीं.

दीप्ति ने प्रमोद पाटनकर को 2 बार 10-10 गोलियां चाय में मिला कर दीं. लेकिन प्रमोद पर उन का असर नहीं हुआ. तीसरी बार घटना के एक दिन पहले समाधान ने नींद की 20 गोलियां दीप्ति को ला कर दीं और सभी गोलियां एक साथ देने के लिए कह दिया.

शाम साढ़े 7 बजे औफिस से लौटने के बाद दीप्ति ने पति प्रमोद पाटनकर के साथ वैसा ही किया, जैसा कि समाधान ने उसे कहा था. उस ने नींद की 20 गोलियां चाय में घोल कर पति को दे दीं.

आधापौना घंटा बाद जब प्रमोद पाटनकर पर नींद की गोलियों का पूरा असर हो गया तो दीप्ति ने समाधान पाषाणकर को फोन कर अपने घर बुला लिया.

समाधान आधे घंटे में दीप्ति के फ्लैट पर पहुंच गया. फिर दोनों ने मिल कर बैड पर गहरी नींद में पडे़ प्रमोद पाटनकर को मौत के घाट उतार दिया. दीप्ति ने कस कर पति के पैर पकड़े और समाधान ने उस के गले में रस्सी डाल कर कस दी.

प्रमोद की हत्या के बाद दोनों ने शव को बैड से उठा कर फर्श पर डाला और उसी बैड पर तनमन की प्यास बुझाई. इस के बाद दीप्ति अपने मायके चली गई थी, जबकि समाधान पुलिस की जांच को गुमराह करने के प्रयास में जुट गया था. उस ने अपने होंठों पर लिपस्टिक लगा कर मेज पर रखे चाय के एक खाली कप पर होंठ से लिपस्टिक का निशान बना दिया था.

फिर अलमारी का सामान निकाल कर उस ने पूरे फ्लैट में फैला कर प्रमोद पाटनकर के बिस्तर के नीचे कंडोम का पैकेट रख दिया. इस के बाद वह उस का मोबाइल फोन व जेब में रखे 3 हजार रुपए निकाल कर ले गया.

समाधान पाषाणकर के जाने के कुछ समय बाद दीप्ति पाटनकर अपने फ्लैट पर लौट आई और चीखनेचिल्लाने लगी.

ये भी पढ़ें- एक लड़की ऐसी भी : भाग 3

दीप्ति से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने समाधान पाषाणकर को भी गोरेगांव के एक लौज से गिरफ्तार कर लिया.

समाधान पाषाणकर और दीप्ति पाटनकर से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने थाना नवघर में दोनों के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 201, 328 और 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर के दोनों को थाणे की तलौजा जेल भेज दिया. मामले की आगे की जांच असिस्टेंट इंसपेक्टर साहेब पोटे कर रहे थे.

वर्कप्लेस में विविध ड्रैस कोड देगा आप को नई सोच

27 वर्षीया कोमल एक बड़ी कंपनी में प्रोडक्ट मैनेजर है. मुंबई की लोकल ट्रेन में प्रतिदिन सफर करती है. ड्रैस कोड पर उस के विचार पूछने पर कहती है, ‘‘हमारी जनरेशन फैशन ट्रैंड्स फौलो करना चाहती है, कपड़ों का चयन निजी फ्रीडम व निजी सोच पर निर्भर करता है. कितना बोरिंग हो जाएगा जब  सब पूरे दिन रोज एक ही तरह के कपड़ों में दिखेंगे. अपने दोस्तों से कोई लुकिंग गुड नहीं सुन पाएगा.

‘‘अपनी पसंद के कपड़ों को न पहनने से हमारी असली पसंद दिखेगी नहीं. कलीग्स को जानना, सम झना जरा मुश्किल होगा. यह मैं नहीं हूं, यह मेरा स्टाइल नहीं है, लोग कैसे मु झे सम झेंगे जब मैं अपनी पसंद के कपड़े पहन कर खुद को ऐक्सप्रैस कर ही नहीं पा रही हूं.’’

जो पीढ़ी सत्यता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, राइट टू सैल्फ ऐक्सप्रैशन पर चल रही है, उस का पर्सनल स्टाइल उस के लिए खासा माने रखता है. आज की पीढ़ी ओवरनाइट स्टार्टअप की सफलता, मनपसंद कपड़े पहने बड़ी हुई है. उस ने साबित किया है कि फायदेमंद बिजनैस के लिए आप को कल के किसी सीईओ की तरह दिखना जरूरी नहीं है. यह पीढ़ी यह मानती है कि जो आप पहनते हो और जो आप करते हो, दोनों चीजें जुड़ी नहीं हैं. क्रौप टौप पहने कोई लड़की आप की बौस हो, यह भी हो सकता है.

26 वर्षीया आर्किटैक्ट उलरा का कहना है, ‘‘हमारी लाइफ पर सामाजिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक मूवमैंट्स हावी होने की कोशिश करते आए हैं. पर सफलता हमारे लिए कुछ और है. चाहे हमारे पास कम पैसे हों, चिंता ज्यादा हो, धुंधला भविष्य हो, पर लगातार कनैक्टिविटी के इस समय में जहां औफिस हर जगह हो सकता है, हम अपने कपड़ों पर किसी भी तरह का नियम लागू नहीं करना चाहते. 8-9 घंटे काम करना होता है, सो, हमें आरामदायक, मनपसंद कपड़े पहन कर खुद का भी अस्तित्व महसूस करने का हक है.

‘‘ड्रैस कोड रखना दूसरे लोगों के कपड़ों को कंट्रोल करने की कोशिश है. अधिकतर औरतों के शरीर और इच्छाओं को पुरुष द्वारा ही कंट्रोल करने की कोशिश रहती है.’’

ये भी पढ़ें- चिकित्सा का बाजारीकरण

कंपनी के स्टैंडर्ड्स

ड्रैस कोड कंपनी के स्टैंडर्ड्स हैं जो देखने में तो काफी अच्छे लगते हैं पर सचाई अलग है. कभीकभी अलगअलग ड्रैस कोड भी होते हैं, जैसे महिलाएं ओपन टो सैंडल्स पहन सकती हैं, पुरुष नहीं.

पुरुषों को पैंट्स पहनना जरूरी है पर महिलाएं क्रौप्ड या कैप्री स्टाइल पैंट्स या स्कर्ट्स पहन सकती हैं.

पुरुषों के बाल छोटे होने चाहिए, जबकि महिलाओं के बालों पर कोई रोक नहीं है.

पुरुषों को कान में कुछ नहीं पहनना है, जबकि महिलाएं मल्टीपल इयररिंग्स पहन सकती हैं.

नई नौकरी ढूंढ़ रहे 61 फीसदी लोगों ने कहा कि जिस कंपनी में ड्रैस कोड था, उस का उन्हें नैगेटिव परसैप्शन था.

वर्कर्स की राय

स्टौर्मलाइन की स्टडी के अनुसार, यूके वर्कर्स कहते हैं कि अगर ड्रैस कोड नहीं होता तो वे ज्यादा प्रोडक्टिव फील करते हैं और ज्यादा अच्छी तरह तैयार होना पसंद करते हैं. 78 फीसदी ने कहा कि भले ही ड्रैस कोड न हो, वे अच्छी तरह तैयार होने की कोशिश करते हैं और वर्क क्लौथ्स के बीच अंतर रखते हैं. 91 फीसदी ने कहा कि  ड्रैस कोड न हो तो वे जो भी जानते हैं, उस की क्वालिटी और कंडीशन को फील करते हैं और वे कपड़ों पर ज्यादा खर्च करते हैं.

68 फीसदी ने कहा कि वे कोई अच्छा काम करने के लिए किसी वैल ड्रैस्ड कलीग पर यकीन करेंगे बजाय उस के जिस ने ड्रैसिंग में कोई एफर्ट न किया हो. इस का मतलब हमें इंप्रैस करने के लिए तैयार होना चाहते हैं. पर हम परकोई यह न थोपे कि हम क्या पहनें. 61 फीसदी का कहना है कि जब डै्रस डाउन फ्राइडे को ड्रैस कोड से रिलैक्स होते हैं तो उन का काम में ज्यादा मन लगता है.

एंप्लौयर्स को अपने लोगों पर ट्रस्ट करना चाहिए. उन्हें वह पहनने देना चाहिए जो उन्हें पसंद है. वे यह सलाह दे सकते हैं कि औफिस में क्या नहीं पहनना है. पर यह नियम बनाना कि यही पहनना है, काफी पैट्रोनाइजिंग है. पर आप को इस बात का भी ध्यान रखना है कि भले ही आप को अपनी आरामदायक रिप्ड जींस कैजुअल ड्रैस लगती हो पर आप को अपने औफिस में यह कभी नहीं पहननी चाहिए. स्टीव जौब्स और मार्क जुकरबर्ग अपनी कैजुअल वर्क यूनिफौर्म्स के लिए जाने जाते हैं, स्टीव काली, टर्टलनेक और मार्क ग्रे टीशर्ट और हूडी के लिए. पर आप यह कैसे पता करेंगे कि आप कैजुअल और अनप्रोफैशनल के बीच सही जगह पर हैं?

ये भी पढ़ें- अलविदा 2019 : अंतरिक्ष की दुनिया में खास रहा यह साल

क्या न पहनें

फेयरफील्ड यूनिवर्सिटी में कैरियर प्लानिंग की एसोसिएट डायरैक्टर स्टीफेन गेलो स्टूडैंट्स को ग्रेजुएशन के बाद वर्कफोर्स में जाने के लिए तैयार करती हैं. उन के अनुसार, कैजुअल ड्रैस कोड में भी औफिस में ये कभी नहीं पहनने चाहिए –

लैगिंग्स और जिम के कपड़े कभी न पहनें.

कभी भी गंदी, फेडेड और होल्स वाली जींस न पहनें. यदि टांग का कोई भी पार्ट जींस में दिख रहा है, तो उसे औफिस में न पहनें.

अपने औफिस के कपड़ों के आइडिया के लिए अपने बौस के कपड़े देखें. मु झे क्या पहनना चाहिए, इस के लिए अपने बौस को ही गाइड बना लें. यदि वे बिजनैस कैजुअल पहनते हैं, तो आप भी सूट पहन लें. यदि वे बहुत कैजुअल पहनते हैं, तो आप के रास्ते खुले हैं.

भले ही गरमी हो, अपने कालेज की स्वेट शर्ट पहन कर औफिस न जाएं. आप ने किस कालेज में पढ़ाई की, किसी को मतलब नहीं है, न आज की बात है यह. अपने कालेज के आरामदायक कपड़े घर पर ही रख कर जाएं. अपनी कोजी कालेज हूडी को आराम के समय के लिए ही रहने दें.

भले ही औफिस कितना कैजुअल हो, या आप सुबह कितनी जल्दी में थे, ढंग से तैयार हो कर निकलें. जो आप पहनते हैं, आप की पर्सनैलिटी का पार्ट होता है. यदि आप सिलवटें पड़े हुए गंदे कपड़े पहनते हैं तो आप अपने बारे में कुछ गलत ही बता रहे होते हैं.

वे कंपनियां जो कैजुअल ड्रैस कोड को सपोर्ट करती हैं, अपने एंप्लौइज को पौजिटिव सिग्नल्स भेजती हैं कि वे निजता को पसंद करती हैं. एंप्लौइज के लिए भी यह सम झना जरूरी है कि अपने एंप्लौयर के बिजनैस कैजुअल ड्रैस कोड का पालन करना है और रिलैक्स्ड कोड का मतलब, अस्तव्यस्त, गंदे कपड़े नहीं हैं. फ्लिपफलौप्स और फटी हुई जींस ड्रैस डाउन फ्राइडे के लिए भी अनुचित है.

ये भी पढ़ें- अलविदा 2019 : इस साल देश में क्या हुआ नया ? 

 क्या कूल हैं ये : भाग 1

आज की युवा पीढ़ी वक्त के साथ चलना जानती है, समस्याओं को परे रख जिंदगी का लुत्फ कैसे उठाते हैं, यह मैं बेटेबहू को देख अभिभूत हो रही थी. हम ने भी उन के साथ कदमताल मिला कर जीने का जो सुख लिया, जबां से क्या बयां करूं.

प्लेन लैंडिंग की घोषणा हुई तो मैं ने भी अपनी बैल्ट चैक कर ली. मुसकरा कर समर की तरफ देखा. वे भी उत्सुकता से बाहर देख रहे थे. मैं भी खिड़की से बाहर नजर गड़ा कर प्लेन लैंडिंग का मजा लेने लगी.

एक महीने के लिए बेटेबहू के पास दुबई आए थे. बच्चों से मिलने की उत्सुकता व दुबई दर्शन दोनों ही उत्तेजनाओं से मनमस्तिष्क प्रफुल्लित हो रहा था. एयरपोर्ट की औपचारिकताओं से निबट कर सामान की ट्रौली ले कर बाहर आए तो रिषभ प्रतीक्षारत खड़ा था. बेटे को देख कर मन खुशी से भर उठा. लगभग 6 महीने बाद उसे देख रहे थे. सामान की ट्रौली छोड़, दोनों जा कर बेटे से लिपट गए.

‘‘इशिता कहां है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘वह घर में आप के स्वागत की तैयारी कर रही है,’’ रिषभ मुसकरा कर कार का दरवाजा खोलते हुए बोला.

‘‘स्वागत की तैयारी?’’ समर चौंक कर बोले.

‘‘हां पापा, आज शुक्रवार है न, छुट्टी के दिन क्लीनर आता है, तो इशिता सफाई करवा रही है.’’

‘सफाई करवाने का दिन भी फिक्स होता है बच्चों का यहां,’ मैं कार में बैठ कर सोच रही थी, ‘हफ्ते में एक दिन होती है न. अपने देश की तरह थोड़े ही, रोज घिसघिस कर पोंछा लगाती है आशा.’

थोड़ी देर में रिषभ की कार सड़क पर हवा से बातें कर रही थी. सुंदर चमचमाती 6 से 8 लेन की सड़कें, दोनों तरफ नयनाभिराम दृश्य और कार में बजते मेरे मनपसंद गीत… मैं ने आराम से सिर पीछे सीट पर टिका दिया.

‘‘मम्मी, गाने पसंद आए न आप को. सारे पुराने हैं आप की पसंद के,’’ मैं थोड़ा चौंकी कि यह कब कहा मैं ने कि मु झे सिर्फ पुराने गाने ही पसंद हैं. पर बच्चे अंदाजा लगा लेते हैं. मांबाप हैं, तो थोड़ी पुरानी चीजें ही पसंद करेंगे. मैं मन ही मन मुसकराई.

120-130 की स्पीड से दौड़ती कार आधे घंटे में घर पहुंच गई. डिसकवरी गार्डन में फ्लैट था. दुबई जैसे रेगिस्तान के समुद्र में इतनी हरीभरी कालोनी देख कर मन प्रसन्न हो गया. मात्र 5 मंजिल ऊंचे फ्लैट बहुत बड़े एरिया में कई स्ट्रीट में बंटे हुए थे. मैं सोच रही थी कि इतना सामान ऊपर कैसे जाएगा पर बिल्ंिडग के दूसरे रास्ते से आराम से सामान ड्रैग कर अंदर प्रवेश कर गए हम. वहां सीढि़यों के बजाय स्लोप बना हुआ था. किसी भी अच्छी सोसाइटी की ही तरह वहां भी मुख्य दरवाजे पर बिना एंट्री कार्ड को टच करे बिल्ंिडग के अंदर प्रवेश नहीं कर सकते. जैसे ही अंदर प्रवेश किया, अंधेरे कौरिडोर की लाइट्स जगमगाने लगीं. सभीकुछ औटोमैटिक था.

ये भी पढ़ें- बिहाइंड द बार्स : भाग 6

फ्लैट के दरवाजे पर पहुंच कर घंटी बजाने पर इशिता जैसे प्रतीक्षारत ही बैठी थी. क्षणभर में ही दरवाजा खुल गया और हम दोनों उस से भी लिपट गए. जान है हमारी इशिता. उस की भोली सूरत व मीठी बातें सुन कर तो जैसे लुत्फ ही आ जाता है जीने का. चमकता साफसुथरा फ्लैट देख कर दिल खुश हो गया. बच्चों की छोटी, प्यारी सी गृहस्थी उन के सुखी दांपत्य जीवन की कहानी बिना कहे भी बयान कर रही थी. प्रेमविवाह किया था दोनों ने.

दुबई का समय भारतीय समय से  डेढ़ घंटा पीछे है. इसलिए अभी  वहां पर दो ही बज रहे थे. बैडरूम में जा कर, सामान इधरउधर रख कर आराम से बिस्तर पर पसर गए.

‘‘ममा, खाना लगा दूं?’’ इशिता ने पूछा.

‘‘खा लेंगे अभी,’’ मैं ने इशिता को पास खींच लिया.

शुक्रवार और शनिवार दुबई में छुट्टी होती है. इसलिए बच्चे आराम वाले मूड में थे. ‘‘पापा, खाना खा कर थोड़ा रैस्ट कर लीजिए. फिर बाहर चलते हैं,’’ रिषभ बोला.

शाम को हम चारों बाहर गए. चारों तरफ जगमगाती रोशनी में नहाया दुबई, समतल सड़कों पर फिसलती कारें और मेरा मनपसंद संगीत…कार में बैठने का लुत्फ आ जाता है.

‘‘रिषभ, आज तेरी कार में बैठी हूं. याद है न, जब मैं ड्राइव करती थी और तू बैठता था,’’ मैं रिषभ को छेड़ते हुए बोली.

‘‘हां ममा, याद है, बहुत बैठा हूं आप की बगल में. आजकल तो काफी कहानियां छप रही हैं आप की. मेरी रौयल्टी तो अब तक खूब जमा हो गई होगी,’’ रिषभ बचपन वाला लाड़ लड़ाता हुआ बोला.

‘‘हां, हां, इस बार तेरी पूरी रौयल्टी दे कर जाऊंगी,’’ मैं हंसते हुए बोली. रिषभ जब छोटा था तो मेरी हर कहानी के छपने पर 20 रुपए लेता था. उस के बचपन की वह मधुर सी याद जेहन को पुलकित कर गई. आज कितना बड़ा हो गया रिषभ. तब मैं उसे संभालती थी, अब वह हमें संभालने वाला हो गया.

‘‘रिषभ, तु झे याद है, तू मु झे बचपन में मेरे जन्मदिन पर अपनी पौकेटमनी से पेपर और पेन ला कर दिया करता था लिखने के लिए. मु झे तेरी वह आदत अंदर तक छू जाती थी.’’

‘‘हां, याद है. पता नहीं कैसे सोच लेता था उस समय ऐसा कि आप लिखती हैं तो पेपरपेन से ही खुश होंगी,’’ रिषभ ड्राइव करते हुए पुरानी यादों में लौटते हुए बोला.

‘‘और अब बड़े हो कर तू ने ममा को लैपटौप ला कर दे दिया,’’ समर ठहाका मारते हुए बोले.

इशिता भी हंस पड़ी. रिषभ ने हंसते हुए कार धीमी की. हम अपने गंतव्य तक पहुंच गए थे. घूमघाम कर रात पता नहीं कितने बजे तक घर पहुंचे. हमें समय भी पता नहीं चल रहा था. खाने में भी काफी कुछ खा चुके थे, इसलिए डिनर करने का किसी का मन नहीं था. रोशनी से दमकते दुबई ने तो जैसे दिनरात का फर्क ही भुला दिया था.

घर पहुंच कर, चेंज कर मैं लौबी में आ गई. तीनों बैठे थे. मैं बोली, ‘‘खूब थक गए हैं, चाय पीते हैं. इशिता, तू पिएगी?’’

ये भी पढ़ें- माध्यम : भाग 2

‘‘ममा, चाय?’’ इशिता चौंक कर अपनी बड़ीबड़ी आंखें  झपकती मेरी तरफ देख कर आश्चर्य से बोली. अब चौंकने की बारी मेरी थी, कुछ गलत बात तो नहीं कह दी.

‘‘अच्छा, अगर आप का पीने का मन है तो मैं बना देती हूं,’’ इशिता उठ कर रसोई की तरफ जाते हुए बोली.

‘‘ममा, पता भी है, क्या टाइम हो रहा है, रात का डेढ़ बज रहा है. और भारत में इस समय 3 बज रहे होंगे. चाय पियोगे आप इस समय,’’ रिषभ हंसता हुआ बोला.

मैं ने घबरा कर मोबाइल देखा. घड़ी तो भारतीय समय बता रही थी. पर मोबाइल दोनों समय बता रहा था. ‘‘ओह, मु झे तो यहां की चकाचौंध भरी रोशनी में दिनरात का फर्क ही नहीं पता चल पा रहा.’’

तीनों को मुसकराते देख, मैं उन्हें घूरती हुई बैडरूम की तरफ भाग गई. इतने घंटे की नींद कम हो गई थी मेरी. सुबह मेरी नींद भारतीय समय के अनुसार खुल गई. लेकिन दुबई का समय डेढ़ घंटा पीछे होने की वजह से बच्चे तो गहन निद्रा में थे. समर भी अलटपलट कर फिर सो रहे थे. दिल कर रहा था खूब खटरपटर कर सब को जगा दूं. पर, मन मसोस कर सोई रही.

खाना बनाने के लिए कुक आता था. विदेशों में वैसे तो काम करने वालों की सुविधा भारत जैसी नहीं रहती, पर दुबई में इतनी दिक्कत नहीं है. वहां पर एशियन देशों से गए कामगार घर में काम करने के लिए मिल जाते हैं. वहां की मूल आबादी तो 12-13 प्रतिशत ही है, बाकी आबादी तो यहां पर दूसरे देशों से आए हुए लोगों की ही है. यहां पर घरों में काम करने वाले स्त्रीपुरुष, अधिकतर हिंदुस्तानी, पाकिस्तानी, बंगलादेशी और श्रीलंका के ही होते हैं. कई अन्य देशों की महिलाएं बच्चों की नैनी के रूप में यहां पर अपनी सेवाएं देती हैं.

ये भी पढ़ें-  तरक्की

अपने देशों में कुछ भी उपद्रव मचाएं पर यहां सब बहुत ही नियमसंयम से रहते हैं. टूटीफूटी इंग्लिश बोलतेबोलते अच्छी इंग्लिश बोलना सीख जाते हैं. घर में काम करने वाले भी इंग्लिश बोलते हैं पर अपनी भाषा भी बोलते हैं. जो बहुत सालों से रह रहे हैं, वे कोईकोई तो अरबी बोलना भी सीख जाते हैं.

‘‘ममा, यह पूरण है,’’ शाम को बेटे ने कुक से मिलवाया, ‘‘वैसे तो यह हमारे औफिस से आने के बाद आता है पर आजकल जल्दी आ कर खाना बना देगा ताकि औफिस से आ कर हम बाहर जा सकें.’’

लिव इन रिलेशनशिप : नैतिकता Vs जरूरत

लिव इन रिलेशनशिप, जो मूलतः पश्चिमी देशों का चलन है. अब भारत में भी तेजी से चलन में आ रहा है . लिव इन महानगरों में शौक में कम जरूरत पर ज्यादा आधारित होता है. लिव इन का साधारण सा मतलब है कि बालिग हो चुके लड़के और लड़की सहमति के आधार पर एक साथ एक छत के नीचे रह सकते हैं, जहां संबंध उनकी मर्जी पर ही बिना शादी के बंधन में बंधे होते हैं .

अगर पारम्परिक भारत की नजर से देखा जाए तो अनुचित और गलत शुरुआत लगती है. मगर इसे महानगरों के सन्दर्भ में देखे तो अब भागमभाग जिंदगी में ऐसे रिश्ते एक जरूरत से बन गए हैं. शहरों में नौकरी और पढ़ाई के लिए आए युवक/युवतियों की जरूरतें ज्यादा और पैसे कम होते हैं जहां आसानी से वो अपने मेल पार्टनर के साथ किराये के साथ हर खर्चे को बांट सकती है .

लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोग कई बार विवाह भी करते हैं . इसके साथ एक और परंपरा खासकर फिल्मी जगत में चल पड़ी है कि शादी से पहले लिव इन में रहकर एक दूसरे को जानने समझने की, बहुत हद तक ठीक भी है मगर लिव इन में रहने के बाद समझ बूझ कर शादी करने पर भी आपका पार्टनर से शादी चल पाएगी इस बात की कोई गारंटी नहीं होती है.

जरूरी है बच्चों की रिस्पैक्ट का ध्यान रखना

जरूरत से शुरू हुए ऐसे रिश्ते अब मौज मस्ती और शारीरिक जरूरत को पूरा करने का एक जरिया भी बन चुके हैं. इसमें शारीरिक हिंसा और यौन उत्पीड़न जैसे अपराध भी जन्म लेने लगे हैं . सहमति से साथ आए दो लोग किसी भी छोटी सी बात पर असहमति होने पर आरोप प्रत्यारोप तक बात आ पहुंचती है .

ऐसे रिश्ते की नाजुकता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ कानून भी बनाए हैं ताकि सामाजिक अव्यवस्था न फैले. कभी कभी ऐसा भी होता है कि लड़के या लड़की में से किसी भी एक का भावनात्मक लगाव ज्यादा होता है और वो साथ रहना या शादी करना चाहते हैं मगर दूसरा किसी भी बंधन में आने से इंकार करता है तो उस समय एक के लिए स्थिति बहुत विकट हो जाती है या कई बार लोग शादी की बात करके लिव इन रिलेशनशिप में रहने को राजी करते हैं और अपनी यौन इच्छा पूरी करने के बाद छोड़ कर निकलने में गुरेज नहीं करते वजह साफ है कि कोई सामाजिक या कानूनी बंधन नहीं है इसलिए भी कानूनी संरक्षण जरूरी बन जाता है लिव इन रिश्तों पर भी.

ये भी पढ़ें- आखिर क्यों होती है कपल्स में अक्सर तकरार

आइए कुछ कानूनी पहलुओं पर भी नज़र डालते हैं जो कोर्ट द्वारा तय किए गए हैं –

1. लिव इन रिलेशनशिप में घरेलू हिंसा से संरक्षण प्राप्त है मतलब अगर लिव इन पार्टनर मार पीट करता है तो आप कानूनी सहायता ले सकती है .

2. अगर लिव इन से बच्चे का जन्म हो जाता है तो उसे पिता की सम्पत्ति से सभी जायज अधिकार प्राप्त होंगे. हां मगर लड़की को कानूनी रूप से पत्नी का दर्जा नहीं दिया जाएगा. लड़का या लड़की दोनों को ही अपनी शादी करने का अधिकार है.  बच्चा किसके साथ रहेगा ये दोनों मिलकर तय कर सकते हैं या कोर्ट भी जा सकते हैं .

3. लड़की भी गुजारा भत्ता की मांग कर सकती है ये तब तक मिलेगा जब तक लड़की कहीं और शादी नहीं कर लेती या लड़के की मृत्यु हो जाने की स्थिति में भी गुजारा भत्ता बंद हो जाएगा.. लड़के की सम्पत्ति में लड़की दावा नहीं कर सकती .

4. अगर आप विदेश में लिव इन में रह रहे हैं या विदेशी व्यक्ति के साथ रह रहे हैं तो कानूनी संरक्षण भी वही का स्थानीय कानून से ही मिलेगा .

ध्यान रहे कि आपके लिव इन पार्टनर का बालिग होना बहुत जरूरी है मतलब लड़की 18 साल और लड़का 21 साल.. अन्यथा आप को कानूनी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है..

अगर लिव इन रिलेशनशिप में रहने का फैसला लेते हैं तो लड़की और लड़के दोनों को चाहिए कि वो अपनी अपनी priority तय कर ले . एक दूसरे का प्राथमिकता भी चेक कर लें और भविष्य के लिहाज से भी तय कर लें कि शादी के बंधन में बंधना है या नहीं.. स्पष्ट रूप से ये बात एक दूसरे के सामने रखे. शादी के वादे के बाद लिव इन रिलेशनशिप में रहकर शादी से मुकरने पर भी आप पर कानूनी रूप से कार्रवाई हो सकती है. इस बात का हमेशा ख्याल रखे. बाकी सभी रिश्तों की तरह लिव इन भी समाज का चलन बनता जा रहा है तो उसे एक स्वस्थ्य रिश्ते की तरह ही निभाने की बात होनी चाहिए.

ये भी पढ़ें- भूलकर भी न कहें ये 9 बातें अपने बच्चों से

मैं 25 वर्षीय लड़की हूं मेरी शादी हो रही है , मेरा स्तन ढ़ीला है मुझे डर लग रहा है?

सवाल 

मैं 25 वर्षीया वर्किंग गर्ल हूं. मेरी सुंदरता, अच्छी कदकाठी व खासी लंबाई लोगों को आकर्षित भी करती है लेकिन मेरे स्तन छोटे एवं लटके हुए हैं. अगले महीने मेरी शादी होने वाली है. मु झे डर है कि मेरे होने वाले पति को शायद यह अच्छा न लगे. मैं स्तनों का आकार बढ़ाने और इन्हें सुडौल करने के लिए क्या करूं?

ये भी पढ़ें- मेरे प्रेमी की शादी हो गई है लेकिन हम एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकते, क्या करें?

जवाब

ये भी पढ़ें- मेरी पत्नी मेरे भाई को अपना बेटा समझ मां समान प्यार देती है और वह मुझसे ज्यादा उसके साथ रहती है, मैं क्या करूं?

व्यायाम या मालिश करने से स्तनों के माप में कोई परिवर्तन नहीं होता, ये सिर्फ स्तन के आसपास की मांसपेशियों को मजबूत करते हैं. पूर्णतया अर्धगोलाकार स्तन केवल औपरेशन या दूसरी तकनीकों द्वारा ही प्राप्त किए जा सकते हैं.

जहां तक आप की बात है, आप बेकार की चिंता कर रही हैं. महिला के स्तन के आकार का सैक्स के प्रति रुचि और यौनिक आनंद यानी अंतरसंबंध बनाने में आनंद लेने या देने की क्षमता से कोई संबंध नहीं होता है. आप की यौनिकता यानी सैक्सुअलिटी केवल आप के शरीर के कुछ हिस्सों तक ही सीमित नहीं है. आप का पूरा शरीर आप के आकार, रंग, आकृति और वजन पर ध्यान दिए बिना भी यौनिक है. अपने पूरे शरीर का आनंद लें. चिंतामुक्त विवाह उपरांत सैक्स को पूरी तरह एंजौय करें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें