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वासना की कब्र पर

कानपुर नगर के थाना नर्वल के थाना प्रभारी रामऔतार को कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि नरौरा गांव के राजेश कुरील ने अपनी पत्नी तथा उस के आशिक की हत्या कर दी है. दोनों की लाशें उसी के घर में पड़ी हैं. सुबहसुबह डबल मर्डर की सूचना पा कर थाना प्रभारी विचलित हो उठे.

हालांकि कंट्रोल रूप से यह सूचना जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी मिल गई थी, फिर भी थाना प्रभारी ने घटना स्थल पर रवाना होने से पहले यह जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. यह बात 11 अक्तूबर, 2019 की है.

थाना नर्वल से नरौरा गांव 7 किलोमीटर दूर था पुलिस आधे घंटे में घटनास्थल पर पहुंच गई. थानाप्रभारी जब राजेश के घर पहुंचे तो वहां सन्नाटा पसरा था. लग ही नहीं रहा था कि गांव में डबल मर्डर हुआ है. पासपड़ोस के लोग पुलिस देख कर सकते में थे और अपने घरों से बाहर झांक रहे थे. हेडकांस्टेबल रामसिंह ने राजेश के घर का दरवाजा थपथपाया तो उस ने ही दरवाजा खोला. वह पुलिस को देख बोला, ‘‘साहब, मैं ने ही आप को फोन किया था.’’

थानाप्रभारी जब पुलिस टीम के साथ घर के अंदर गए तो घर के आंगन में खून से लथपथ 2 लाशें पड़ी थीं. एक लाश युवक की थी जबकि दूसरी युवती की थी. दोनों को चाकू से गोदा गया था और गरदन रेती गई थी. कमरे से ले कर आंगन तक खून ही खून फैला था. देखने से ऐसा लग रहा था कि युवक को कमरे से घसीट कर आंगन तक लाया गया था.

युवक की उम्र 24-25 साल थी जबकि युवती की उम्र लगभग 35 वर्ष थी. दोनें की लाशें अर्धनग्नावस्था में थीं. युवक कच्छा बनियान पहने था, जबकि युवती पेटीकोट ब्लाउज में थी. ब्लाउज के हुक खुले थे. दोनों लाशों के बीच खून से सना चाकू भी पड़ा था. पुलिस ने चाकू अपने कब्जे में ले लिया.

थाना प्रभारी रामऔतार ने इस बारे में राजेश से पूछा तो उस ने बताया कि मृतका उस की पत्नी सुनीता है और मृतक मनीष है, जो औंग थाने के गलाथा गांव का रहने वाला है. रिश्ते में वह उस का फुफेरा भाई है. राजेश अपना जुर्म स्वीकार कर रहा था. थाना प्रभारी ने राजेश को हिरसत में ले लिया और मनीष के घर वालों को उस की मौत की सूचना भेज दी. सुनीता के मायके वालों को राजेश ने ही अपने मोबाइल से खबर दे दी थी.

राजेश का पिता मौजीलाल कुरील पास के ही मकान में रहता था. उसे इस मामले की जानकारी पुलिस के आने के बाद ही मिली थी. बेटे के इस कृत्य से वह बदहवास था. वह कभी राजेश को तो कभी उस के बच्चों को निहार रहा था.

राजेश के 2 बेटे मुकेश, सनी तथा एक बेटी कंचन थी. जब मातापिता ने बच्चों का खयाल रखना छोड़ दिया था तब बच्चों की देखभाल मौजीलाल करने लगा था. घटना के वक्त बच्चे उसी के घर में थे. तीनों बच्चे मां की मौत पर फूटफूट कर रो रहे थे.

अब तक दोहरे हत्याकांड की खबर नरौरा गांव में ही नहीं बल्कि आसपास के गांवों में भी फैल गई थी. अत: थोड़ी देर में घटना स्थल पर देखने वालों की भीड़ जुट गई. मनीष के घरवाले भी आ गए थे और वह उस की लाश के पास फूटफूट कर रो रहे थे. लेकिन सुनीता के मायके से कोई नहीं आया था. उस के भाई अरविंद ने आने से साफ मना कर दिया था.

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उसी दौरान एसएसपी अनंतदेव तिवारी तथा प्रद्युम्न सिंह आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. उन्होंने मृतक मनीष के पिता कल्लू से पूछताछ की. कल्लू ने बताया कि मनीष के चचेरे भाई राजे का तिलक था. मनीष वैन से अपने मामा मौजीलाल व गोरे लाल को लेने नरौरा आया था. राजेश ने मनीष की हत्या क्यों की, इस का उसे कुछ पता नहीं.

पुलिस अधिकारियों ने कमरे का निरीक्षण किया तो जमीन पर बिछे बिस्तर पर खून के दाग थे. कमरे से ले कर आंगन तक खून फैला था. कमरे की खूंटी पर पैंटकमीज टंगी थी. पूछने पर कल्लू ने बताया कि वह पैंटकमीज मनीष की है.

पुलिस ने पैंटकमीज की जेबें खंगाली तो कमीज की जेब से ड्राइविंग लाइसेंस तथा पैंट की जेब से मृतक का पर्स तथा वैन की चाबी मिली. यह सामान पुलिस अधिकारियों ने कल्लू को सौंप दिया. कमरे से 2 मोबाइल फोन भी मिले जिस में एक सुनीता का था और दूसरा मनीष का. दोनों मोबाइल फोन पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिए.

फोरैंसिक टीम का काम निपट जाने के बाद पुलिस ने दोनों शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिए.

आरोपी राजेश कुरील को हिरासत में ले कर पुलिस थाने लौट गई. एसएसपी अनंतदेव तिवारी की मौजूदगी में थानाप्रभारी रामऔतार ने डबल मर्डर के संबंध में राजेश से पूछताछ की तो वह फफक पड़ा, ‘‘साहब, मेरी पत्नी सुनिता और मनीष के अवैध संबंधों की चर्चा घरपरिवार में ही नहीं बल्कि पूरे गांव में आम हो चुकी थी. मैं कई दिनों से घुटघुट कर जी रहा था. पत्नी से विरोध करता तो वह मारपीट और झगड़े पर उतारू हो जाती थी.

‘‘कई बार मन में आत्महत्या का विचार भी आया, लेकिन बच्चों की वजह से ऐसा नहीं किया. मना करने के बावजूद मनीष घर आया और रात में रुक गया. देर रात दोनों को रंगरलियां मनाते देख मेरे सिर पर खून सवार हो गया. विरोध करने पर दोनों मेरे ऊपर ही टूट पड़े. इस के बाद मैं ने झल्लाहट में और खुद को बचाने के लिए दोनों को चाकू मार दिए, फिर दोनों की गरदन रेत कर हत्या कर दी.’’

‘‘वे 2 थे और तुम अकेले. फिर दोनों की हत्या कैसे की, कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारा साथ किसी और ने दिया हो?’’ एसएसपी साहब ने सवाल किया.

‘‘नहीं साहब, मेरे साथ दूसरा कोई नहीं था. दरअसल मनीष ज्यादा नशे में था. इसलिए जब मैं ने उसे कमर पर लात जमाई तो वह लड़खड़ा कर जमीन पर गिर पड़ा. उस के बाद मैं ने उस पर चाकू से वार किया और उसे कमरे से घसीट कर आंगन में लाया. फिर उस की गरदन रेत दी. सुनीता उसे बचाने आई तो मैं ने उस पर भी वार कर दिया और चाकू से गरदन रेत दी.’’ राजेश ने पूरी बात एसएसपी को बता दी.

इस के बाद थाना प्रभारी रामऔतार ने मृतक मनीष के पिता कल्लू की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत राजेश कुरील के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस जांच में इस दोहरे हत्याकांड के पीछे एक ऐसी औरत की कहानी प्रकाश में आई, जिस ने शरीर सुख के लिए अपना ही घर उजाड़ दिया.

उत्तर प्रदेश के कानपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर नर्वल थाने के अंतर्गत एक गांव है रायपुर. बाबूराम कुरील अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी रन्नो के अलावा 2 बेटियां अनीता, सुनीता तथा एक बेटा अरविंद था.

बाबूराम मनरेगा में मजदूरी करता था. उसी से उस के परिवार का भरणपोषण होता था. उस ने बड़ी बेटी अनीता का विवाह कर दिया था.

अनीता से 3 साल छोटी सुनीता थी. वह बचपन से ही चंचल स्वभाव की थी. सुनीता के युवा होते ही बाबूराम उस की शादी के लिए चिंतित रहने लगा. दौड़धूप और रिश्ते नातेदारो के सहयोग से उसे राजेश पसंद आ गया.

राजेश के पिता मौजीलाल कुरील नरौरा गांव के रहने वाले थे. परिवार में पत्नी चंद्रावती के अलावा 2 बेटियां आशा, बरखा तथा बेटा राजेश था. मौजीलाल के पास 5 बीघा खेती की जमीन थी. राजेश पिता के कृषि कार्य में हाथ बंटाता था. राजेश, ज्यादा पढ़ालिखा तो नहीं था, लेकिन शरीर से हष्टपुष्ट था.

मौजीलाल अपनी दोनों बेटियों की शादी कर चुका था. राजेश अभी कुंवारा था. बाबूराम कुरील जब उस के पास सुनीता का रिश्ता ले कर आया तो मौजीलाल ने स्वीकार कर लिया.

अंतत: 7 जून, 2008 को राजेश के साथ सुनीता का विवाह हो गया. कुछ ही दिनों में सुनीता ससुराल के माहौल में रम गई. ससुराल में उसे सभी ने खूब प्यार दिया. शादी के एक साल बाद ही सुनीता एक बेटे की मां बन गई.

बेटे के जन्म के बाद ससुराल में सुनीता का मान और भी बढ़ गया था. सास चंद्रावती तथा ससुर मौजीलाल फूले नहीं समा रहे थे. इसी हंसीखुशी के साथ सुनीता और राजेश के गृहस्थी की गाड़ी चल रही थी. बाद में सुनीता एक बेटी और एक बेटे की मां बनी.

राजेश एक मामूली किसान था. 3 बच्चों के जन्म के बाद उस के परिवार का खर्च बढ़ गया था. इसलिए वह पहले से ज्यादा मेहनत करने लगा. वह सुबह को पिता के साथ खेत पर चला जाता और शाम ढले घर लौटता. उस समय राजेश इतना थका होता था कि खाना खाने के बाद उसे केवल बिस्तर ही सूझता था.

दूसरी ओर सुनीता की हसरतें जवान थीं. 3 बच्चों को जन्म देने के बावजूद उस का जिस्म कसा हुआ था. हर रात वह पति का प्यार चाहती थी, लेकिन राजेश उस की भावनाओं को नहीं समझता था.

जैसेतैसे दिन बीत रहे थे. सुनीता तन की शांति के लिए घर के बाहर ताकझांक करने लगी थी. दरअसल सुनीता का दिन तो कामकाज और बच्चों के कोलाहल में कट जाता था लेकिन रात काटे नहीं कटती थी. अंतत: उस की नजरें अपने से 10 साल छोटे कुंवारे मनीष पर टिक गईं.

मनीष के पिता कल्लू कुरील, फतेहपुर जनपद के औंग थाने के गांव गलाथा में रहते थे. उस के परिवार में पत्नी रामप्यारी के अलावा 5 बेटे, 2 बेटियां थीं. कल्लू के पास खेती की 8 बीघा जमीन थी जिस में अच्छी पैदावार होती थी. खेती के अलावा वह गल्ले का करोबार भी करता था. इस व्यापार में उस के बेटे भी उस का हाथ बंटाते थे. कुल मिला कर कल्लू की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

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कल्लू की संतानों में मनीष सब से छोटा था. मनीष का मन न तो पढ़ाई में लगा और न ही खेती के काम में. आठवीं पास करने के बाद उस ने ड्राइवरी सीख ली और अपने दोस्त की टैंपों चलाने लगा. जब हाथ साफ हो गया तब उस ने पिता पर दबाव बना कर वैन खरीद ली और उसे चलाने लगा. वह कानपुर फतेहपुर के बीच वैन से सवारियां ढोने लगा. इस काम में उसे अच्छी कमाई होती थी.

चूंकि मनीष की मां रामप्यारी राजेश की बुआ थी, इस नाते राजेश और मनीष फुफेरे भाई थे. सुनीता जब ब्याह कर ससुराल आई थी तब मनीष केवल 12 साल का था. लेकिन अब वह 22 साल का गबरू जवान हो गया था.

मनीष का सुनीता के घर आनाजाना लगा रहता था. दोनों के बीच देवरभाभी का रिश्ता था इसलिए उन के बीच हंसीमजाक भी होती रहती थी. सुनीता ने मनीष के बारे में सोचा तो वह उसे अच्छा लगा. अत: उस का रुझान मनीष की ओर हो गया.

अब मनीष जब भी घर आता सुनीता जानबूझ कर अपने सुघड अंगों का प्रदर्शन करती. कुंआरा मनीष उन्हें ललचाई नजरों से देखता. सुनीता समझ गई कि मनीष पर उस के रूप का जादू चल गया है.

उन्हीं दिनों एक रोज मनीष आया तो सुनीता से नजरें मिलते ही वह मुसकराया, सुनीता के होंठों पर भी मुसकान खिल गई. कुछ देर बाद सुनीता चाय बना कर लाई और दोनों बैठ कर चाय पीने लगे. उस समय घर में दोनों अकेले थे. चाय पीते समय मनीष सुनीता को बड़े गौर से देख रहा था. सुनीता ने उसे गहरी नजरों से देखा, ‘‘मनीष तुम मुझे इतना घूर कर क्यों देख रहे हो?’’

‘‘भाभी तुम हो ही इतनी खूबसूरत.’’ मनीष ने कहा तो सुनीता मुसकराई, ‘‘मनीष, मैं कुंवारी लड़की नहीं हूं, शादीशुदा और 3 बच्चों की मां हूं.’’

‘‘जानता हूं भाभी. पर तुम मेरे लिए कुंवारी जैसी ही हो.’’ कहते हुए मनीष ने सुनीता को अपनी बांहों में जकड़ लिया और चुंबनों की झड़ी लगा दी.

सुनीता ने नारी सुलभ नखरा किया, ‘‘मनीष छोड़ो मुझे. यह पाप है.’’

‘‘कोई पाप नहीं है भाभी. हम दोनों की जरूरत एक ही है. पापपुण्य को भूल जाओ.’’

सुनीता तो पहले से ही मनीष का साथ चाहती थी. उस का विरोध केवल बनावटी था. लिहाजा सुनीता ने भी मनीष के गले में बाहें डाल दीं. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. उस दिन के बाद देवरभाभी की पापलीला शुरू हो गई.

मनीष को जवान तथा मदमस्त कर देने वाली सुनीता का साथ मिला तो वह उस का दीवाना बन गया. दूसरी तरफ सुनीता भी कुंवारे मनीष से खुश थी. पति से ऐसा सुख उसे कभी नहीं मिला था. अत: सुनीता ने मनीष को ही अपना सबकुछ मान लिया.

मनीष वैन ले कर नरौरा गांव आता. वैन को वह सड़क किनारे खड़ा कर सुनीता से मिलने पहुंच जाता. उस से मिल कर वह वापस लौट जाता. मनीष के आने की खबर घरवालों को कभी लगती तो कभी नहीं लगती थी. चूंकि मनीष, मौजीलाल का भांजा था. अत: उसे तथा उस की पत्नी चंद्रावती को उस के वहां आने पर कोई एतराज न था.

लेकिन एक रोज दोनों की चोरी पकड़ी गई. उस रोज मनीष आया और सुनीता से छेड़छाड़ करने लगा. तभी अचानक सुनीता की सास चंद्रावती आ गई. उस ने दोनों को अश्लील हरकत करते देख दिया. चंद्रावती ने बहू की शिकायत पति व बेटे से कर दी. मौजीलाल ने सुनीता को फटकार लगाई, ‘‘बहू, तुम्हें मर्यादा में रहना चाहिए. तुम इस घर की इज्जत हो. आइंदा इस बात का खयाल रखना.’’

सास की शिकायत और ससुर की नसीहत सुनीता को नागवार लगी. वह तुनक गई और घर में कलह करने लगी. वह कभी खाना बनाती तो कभी सिर दर्द का बहाना बना लेती. बच्चे भूख से बिलबिलाते तो वह उन की पिटाई करने लगती.

पति समझाने की कोशिश करता तो वह उस पर भी बरस पड़ती, ‘‘दिन भर साफसफाई करूं, खाना बनाऊं, बच्चों को पालूं और फिर ऊपर से बदचलनी का तमगा. कान खोल कर सुन लो, कि अब मैं सासससुर के साथ नहीं रह पाउंगी. तुम्हें मेरे साथ अलग रहना होगा.’’

राजेश में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह पिता से अलग रहने की बात कह सके. लेकिन जब मौजीलाल को बहू के त्रियाचरित्र और अलग रहने की बात पता चली तो उन्होंने देर नहीं की और वह पत्नी के साथ दूसरे मकान में रहने लगे.

सासससुर ने एक तरह से सुनीता से नाता ही तोड़ लिया. सुनीता के बच्चे दादीदादा से हिलेमिले थे, अत: उन का समय उन्हीं के घर बीतता था. रात को तीनों बच्चे दादीदादा के घर ही सो जाते थे. सासससुर के अलग हो जाने के बाद सुनीता पूरी तरह स्वच्छंद हो गई. अब उसे मनीष से मिलने पर रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. मनीष, ज्यादातर ऐसे समय में आता जब राजेश घर के बाहर होता या फिर खेत पर काम करता होता और बच्चे भी स्कूल में होते.

मनीष वैन चालक था. वह स्वयं तो शराब पीता ही था, उस ने राजेश को भी शराब की आदत डाल दी थी. शराब के बहाने अब मनीष वहां देर शाम आने लगा. आते ही राजेश के साथ महफिल जमती फिर खाना खा कर मनीष कभी चला जाता तो कभी रात में वहीं रुक जाता था. चूंकि राजेश को मुफ्त में शराब पीने को मिलती थी, इसलिए वह मनीष के रुकने पर एतराज नहीं करता था.

एक शाम मनीष हाथ में शराब की बोतल थामे सुनीता के घर पहुंचा तो पता चला राजेश पहले से नशे में धुत है. वह कस्बा नर्वल गया था, वहीं से पी कर लौटा था. आते ही वह चारपाई पर पसर गया था. मनीष का मन खुशी से उछल पड़ा. सुनीता और मनीष ने खाना खाया फिर कुछ देर बाद हसरतें पूरी करने के लिए पीछे वाले कमरे में पहुंच गए.

इधर देर रात राजेश की नींद टूटी तो उस ने देखा सुनीता अपने बिस्तर पर नहीं है. आधे घंटे तक सुनीता नहीं आई तो राजेश का माथा ठनका. वह पत्नी को ढूंढने निकला तो सुनीता पीछे वाले कमरे में मनीष के साथ थी. दोनों को आपत्तिजनक अवस्था में देख कर राजेश का खून खौल गया.

राजेश को आया देख कर मनीष तो भाग गया, पर सुनीता कहां जाती. राजेश ने सुनीता को कमरे में ले जा कर उस का मुंह दबा कर राजेश ने उसे खूब पीटा. मुंह दबा होने के कारण सुनीता चीखचिल्ला भी नहीं सकी. जब वह अधमरी हो गई तब राजेश ने उसे छोड़ दिया. मौके की नजाकत समझ कर सुनीता ने भी राजेश से माफी मांग ली. बच्चों की खातिर राजेश ने उसे माफ कर दिया.

अब राजेश और मनीष के बीच दरार पड़ गई थी. दोनों ने साथ खानापीना छोड़ दिया था. राजेश ने मनीष के घर आने पर भी प्रतिबंध लगा दिया. सुनीता को ले कर दोनों में झगड़ा बढ़ा तो रिश्ते भी सार्वजनिक हो गए.

गांव के लोग ही नहीं बल्कि नातेरिश्तेदार भी जान गए थे कि मनीष और सुनीता के बीच नाजायज रिश्ता है. राजेश की चारे तरफ बदनामी होने लगी थी. राजेश ने मनीष की शिकायत बुआफूफा से भी की लेकिन मनीष पर कोई असर न पड़ा.

मनीष और सुनीता एक दूसरे के इस कदर दीवाने थे कि मिलन को बेकरार रहते थे. मनीष ने सुनीता को एक मोबाइल फोन दे रखा था. इसी मोबाइल से सुनीता मनीष से बात करती और मौका मिलते ही मनीष को मिलने के लिए बुला लेती. मिलने के दौरान वे सतर्कता बरतते थे.

सतर्कता के बावजूद एक दोपहर राजेश ने सुनीता को मनीष की बाहों में मचलते देख लिया. उस ने सुनीता पर हाथ उठाया, तभी मनीष ने राजेश का हाथ पकड़ कर मरोड़ दिया और बोला, ‘‘खबरदार जो भाभी पर हाथ उठाया. तुम ने जो देखा उसे भूल जाओ. हम दोनों के बीच बाधा मत बनो. इसी में तुम्हारी भलाई है.’’

धमकी देने के बाद मनीष चला गया. उस के बाद राजेश फिर से पत्नी को पीटने के लिए लपका. तब सुनीता भी पति से भिड़ गई और बोली, ‘‘मारपीट कर तुम मुझे चोट तो पहुंचा सकते हो, लेकिन मनीष के मिलने से नहीं रोक पाओगे. अपनी सेहत दुरुस्त रखना चाहते हो तो हमारे रास्ते में न आओ.’’

मनीष और सुनीता की धमकी से राजेश को लगा कि उन दोनों के इरादे नेक नहीं हैं. वह दोनों उस की जान के दुश्मन बन सकते हैं. इसलिए वह कानपुर शहर गया और अपनी जान माल की हिफाजत के लिए एक तेजधार वाला चाकू खरीद लाया. इस के बाद वह सुनीता पर कड़ी निगरानी रखने लगा.

इस का परिणाम यह हुआ कि सुनीता सितंबर के प्रथम सप्ताह में अपने प्रेमी मनीष के साथ भाग गई. राजेश गुप्त रूप से पत्नी की खोज करता रहा. आखिर वह बुआफूफा की शरण में गया. फूफा कल्लू के प्रयास से 2 दिन बाद सुनीता वापस घर आ गई.

राजेश ने बच्चों की वजह से सुनीता से कुछ नहीं कहा और उसे घर में रख लिया. सुनीता को न पति की फिक्र थी और न ही बच्चों की. बच्चे भी मां से कन्नी काटने लगे थे. वह ज्यादा समय दादादादी के घर ही बिताते थे और रात को वहीं सो जाते थे. सुनीता खुद तो खापी लेती थी, लेकिन पति को तरसाती थी. ऐसे में राजेश ज्यादातर बाहर ही खातापीता था.

राजेश अब सुनीता की हर गतिविधि पर नजर रखने लगा था. काम छोड़ कर वह बीचबीच में किसी बहाने घर आ जाता था. सुनीता सब समझ रही थी, धीरेधीरे एक महीना बीत गया. सुनीता और मनीष की मुलाकात नहीं हो सकी. उन की मोबाइल पर तो बात हो जाती थी लेकिन राजेश की दिन रात की कड़ी निगरानी से उन्हें मौका नहीं मिल पा रहा था. आखिर एक दिन उन्हें यह मौका मिल ही गया.

12 अक्तूबर, 2019 को मनीष के चचेरे भाई राजे का तिलक था. मनीष के पिता कल्लू ने उस से कहा कि वह नरौरा जा कर मामामामी को ले आए. पिता के अनुरोध पर मनीष वैन ले कर 11 अक्तूबर की रात 11 बजे नरौरा गांव पहुंचा. उस ने अपनी वैन सड़क किनारे खड़ी कर दी और फिर सुनीता से मोबाइल पर बात की. दरअसल मनीष वह रात सुनीता के साथ गुजारना चाहता था.

उस ने सोचा था कि सुबह मामामी को ले कर अपने गांव लौट जाएगा. फोन पर सुनीता ने मनीष को जानकारी दी कि राजेश घर पर है पर वह बाहर वाले कमरे में गहरी नींद में सो रहा है. इस जानकारी पर मनीष ने सुनीता से कहा कि वह दरवाज खोल कर रखे. चंद मिनट में वह दरवाजे पर पहुंच रहा है. रात के सन्नाटे में मनीष, सुनीता के दरवाजे पर पहुंचा.

सुनीता उस के आने का ही इंतजार कर रही थी. उस के पहुंचते ही सुनीता ने उसे घर के अंदर कर के दरवाजा बंद कर दिया. सुनीता, मनीष को ले कर पीछे वाले कमरे में पहुंची. मनीष ने अपने कपड़े उतार कर खूंटी पर टांग दिए और मोबाइल फोन स्टूल पर रख दिया. इस के बाद वह जमीन पर बिछे बिस्तर पर सुनीता के साथ लेट गया और जिस्म की प्यास बुझाने लगा.

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इधर आधी रात के बाद राजेश लघुशंका के लिए कमरे से बाहर आया तो उसे पीछे वाले कमरे में खुसरफुसर सुनाई दी. वह दवे पांव कमरे के बाहर पहुंचा और खिड़की से झांक कर देखा. वहां का दृश्य देख उस की आंखों में खून उतर आया.

कमरे के अंदर सुनीता और मनीष आपत्तिजनक स्थिति में थे. वह वापस अपने कमरे में आया और चाकू ले कर पुन: उस कमरे में पहुंच गया जहां मनीष और सुनीता देह सुख भोग रहे थे.

उस ने मनीष और सुनीता को धिक्कारा तो दोनों उठ खड़े हुए. गुस्से में राजेश ने मनीष की कमर पर लात जमाई तो वह नशे में होने के कारण लड़खड़ा कर गिर पड़ा. उसी समय राजेश ने उस पर चाकू से हमला कर दिया.

प्रेमी की जान खतरे में देख कर सुनीता पति से भिड़ गई. तब उस ने सुनीता को परे ढकेल दिया. चाकू के हमले से घायल मनीष को राजेश उस के सिर के बाल पकड़ कर घसीटता हुआ आंगन में लाया और चाकू से मनीष की गरदन रेत दी.

प्रेमी की मौत से सुनीता घबरा गई. वह अपनी जान बचा कर दरवाजे की ओर भागी. लेकिन राजेश पर तो खून सवार था. उस ने लपक कर सुनीता को पकड़ लिया और बोला, ‘‘भागकर कहां जाएगी बदचलन.

आज मैं तुझे भी सबक सिखा कर ही दम लूंगा’’ कहते हुए राजेश ने सुनीता पर चाकू से हमला कर दिया. उस ने उस के शरीर पर कई वार किए, फिर चाकू से उस की गरदन रेत दी. खून से सना चाकू उस ने लाशों के बीच फेंक दिया, फिर वह लाशों को काफी देर कर टुकुरटुकुर देखता रहा.

सुबह 4 बजे राजेश वारदात की सूचना देने ग्राम प्रधान इस्लामुलहक के घर पहुंचा. उस ने दरवाजा पीटा, लेकिन जब किसी ने दरवाजा नहीं खोला तब उस ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे दी. कंट्रोल रूप की सूचना पर नर्वल थानाप्रभारी रामऔतार घटना स्थल पर पहुंचे.

13 अक्तूबर, 2019 को थाना नर्वल पुलिस ने अभियुक्त राजेश कुरील को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट जे.एन. पारासर की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

घर पर ऐसे बनाएं तवा कुलचा

तवा कुलचा पंजाबी रेसिपी है. ये छोले के साथ बेहद टेस्‍टी लगते हैं. आप अपने घर में आसानी से कुलचा नान बना सकती हैं. तो फिर सोच क्‍या रहे हैं, झटपट तवा कुलचा बनाने की रेसिपी ट्राइ्र करें.

सामग्री :

– मैदा (200 ग्राम)

– दही  (1/4 कप)

– शक्कर ( 01 छोटा चम्मच)

– बेकिंग सोडा ( 1/4 छोटा चम्मच)

– कसूरी मेथी ( 02 बड़े चम्मच)

– हरा धनिया ( 02 बड़े चम्मच कतरा हुआ)

– तेल (02 बड़े चम्मच)

नमक ( स्वादानुसार)

बनाने की विधि :

– सबसे पहले मैदा को छान लें, उसके बाद उसमें दही, शक्कर, बेकिंग सोडा, नमक, और तेल डाल कर अच्छी तरह से मिला लें.

– इसके बाद उसे गुनगुने पानी से चपाती के आटे से थोड़ा नरम गूंथ लें, ध्यान रहे आटा एकदम मुलायम और चिकना गुंथना चाहिए, तभी कुलचे अच्छे बन पाएंगे.

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– अब हाथ में थोड़ा सा तेल लगाकर आटे में लगा दें और उसे किसी गहरे बर्तन में करके गीले कपड़े से ढक  दें और किसी गरम स्थान पर 4-5 घंटे (ठंडा मौसम होने पर आटे को 11-12 घंटे के लिए रखें) के लिए रख दें.

– इतने समय के बाद आटा थोड सा फूल जाएगा और यदि आटा ठीक तरह से न फूला हो, तो समझ जाएं कि अभी वह कुलचे के लिए तैयार नहीं है और उसे कुछ और समय के लिए रखने की ज़रूरत है.

– फूले हुए आटे को लेकर उसे दबा-दबा कर चिकना कर लें और फिर उसे लगभग 10 लोइयों में बांट लें. अब तवा को आग पर रखें और उसे गरम करें.

– गरम होने पर तवा पर हल्का सा तेल लगा दें. उसके बाद आटे की एक लोई लेकर उसमें हल्का सा मैदा   लगाएं और बेलन की सहायता से 1/2 सेमी0 की मोटाई में बेल लें.

– बेलने के बाद लगभग आधा छोटा चम्मच कसूरी मैथी और थोड़ी सी कटी धनिया उसपर डालें और हाथ से दबा दें.

– उसके बाद कसूरी मेथी वाली सतह को ऊपर करते हुये कुलचे को तवे पर डाल दें.

– जब कुलचा थोडा सा फूलने लगे, तो उसे पलट दें.

– जब कुलचे की दूसरी सतह भी हल्की सी सेंक जाए जाए, तो उसकी एक सतह पर थोड़ा सा घी लगाएं और उसे सेंक लें.

– इसी तरह दूसरी सतह को भी घी लगा कर सेंकें और सेंकने पर कुल्चा हल्का ब्राउन चित्तीदार हो जाएगा.

– लीजिए आपकी तवा कुलचा बनाने की विधि कम्‍प्‍लीट हुई, अब आपका अमृतसरी कुलचा  तैयार है.

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फिल्म देख कर रची अनूठी साजिश

28 नवंबर, 2017 की सुबह 8 बजे के करीब सुधाकर किसी काम से बाहर गया हुआ था. स्वाति बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर के उन के लंच बौक्स में खाना रख रही थी. उसे खुद भी अस्पताल जाना था, इसलिए वह सारे काम जल्दीजल्दी निपटा रही थी. जब वह लंच बौक्स तैयार कर के बच्चों के बैग में रख रही थी, तभी उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी.

स्वाति ने मोबाइल उठा कर स्क्रीन पर नजर डाली तो डिसप्ले हो रहा नंबर बिना नाम का था. मतलब फोन किसी अपरिचित का था. उस ने फोन रिसीव कर के जैसे ही हैलो कहा, दूसरी ओर से किसी पुरुष की दमदार आवाज आई, ‘‘यह नंबर सुधाकर रेड्डी का है?’’

‘‘जी, यह उन्हीं का नंबर है. मैं उन की पत्नी बोल रही हूं. आप कौन हैं और उन से क्या काम है? वह अभी बाहर गए हुए हैं. घर आते ही उन्हें बता दूंगी.’’ स्वाति ने कहा.

‘बताने की कोई जरूरत नहीं है. वह मेरे परिचितों में हैं.’’ दूसरी ओर से हड़बड़ाई आवाज में कहा गया.

‘‘फिर फोन क्यों किया?’’ स्वाति ने पूछा.

‘‘भाभीजी, कालोपुर कालोनी के पास किसी ने सुधाकर पर तेजाब फेंक कर उसे घायल कर दिया है.’’

‘‘क्याऽऽ?’’ सुन कर स्वाति घबरा गई. फोन काट कर वह कालोपुर कालोनी की ओर भागी. वहां पहुंच कर उस ने देखा तो पति सड़क किनारे घायल पड़ा तड़प रहा था. उस ने फोन कर के यह जानकारी सास को दी. इस के बाद तो घर में ही नहीं, रिश्तेदारी में भी कोहराम मच गया.

थोड़ी देर में सभी वहां पहुंच गए. सुधाकर को जिला अस्पताल ले जाया गया, वहां के डाक्टरों ने उस की हालत देख कर हैदराबाद रेफर कर दिया. स्वाति पति सुधाकर को ले कर हैदराबाद पहुंची, जहां उसे जानेमाने अपोलो अस्पताल में भरती कराया गया. दूसरी ओर सुधाकर के भाई ने थाना नगरकुरनूल में उस पर हुए हमले की अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

सुधाकर रेड्डी का चेहरा और सीना तेजाब से बुरी तरह से झुलस गया था. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस उस का बयान लेने अस्पताल पहुंची. लेकिन वह बयान देने की स्थिति में नहीं था.

पुलिस अपनी जरूरी काररवाई कर के चली गई. पुलिस के जाने के बाद स्वाति ने सासससुर को फोन कर के बताया कि डाक्टरों ने चेहरे के दागों को मिटाने के लिए उस के चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी करने की सलाह दी है. इस के लिए घर वालों ने हामी भर दी. उन्होंने कहा कि जैसा डाक्टर कहते हैं, वह करे. सर्जरी में जो भी खर्च आएगा, वे देने को तैयार हैं. पैसे की कोई चिंता न करे, बस सुधाकर किसी भी तरह स्वस्थ हो जाए.

सुधाकर का चेहरा तेजाब से बुरी तरह विकृत हो गया था और सूजा हुआ था. एकबारगी देख कर उसे कोई भी नहीं पहचान सकता था. लेकिन जब से वह इलाज के लिए अस्पताल में भरती हुआ था, तब से अजीबअजीब हरकतें कर रहा था. नातेरिश्तेदार उसे देखने आ रहे थे. लेकिन वह उन में से बहुतों को पहचान नहीं पा रहा था. यह देख कर घर वाले और रिश्तेदार हैरान थे कि उस की याद्दाश्त को क्या हो गया है? वह किसी को पहचान क्यों नहीं पा रहा है? कहीं सुधाकर की जगह वह कोई बहुरूपिया तो नहीं है.

आखिर घर वालों ने यह सोच कर संतोष कर लिया कि यह उन का वहम भी हो सकता है. संभव है, इस हादसे का उस के दिमाग पर गहरा असर हुआ हो, जिस की वजह से वह अजीबगरीब हरकतें कर रहा है. इस के बाद उन लोगों ने उस की हरकतों पर ध्यान देना बंद कर दिया. कोई रिश्तेदार कुछ कहता तो वह कह देते कि हादसे की वजह से शायद इस की याद्दाश्त चली गई है. स्वाति हर समय अस्पताल में पति के साथ मौजूद रहती थी.

8 दिसंबर, 2017 को स्वाति सुधाकर की देखरेख के लिए एक रिश्तेदार को छोड़ कर किसी काम के लिए बाहर चली गई. रिश्तेदार भरोसे का था, इसलिए वह निश्चिंत थी. मरीजों को खाना अस्पताल से ही मिलता था और रोजाना अलगअलग खाना दिया जाता था. उस दिन नाश्ते में मटन सूप था. खाना देने वाला बौय मटन सूप ले कर आया और उसे सुधाकर को पीने को दिया तो वह नाराज हो कर बोला, ‘‘तुम्हें पता होना चाहिए कि मैं शुद्ध शाकाहारी हूं. मांसमछली खाने की कौन कहे, मैं छूता तक नहीं.’’

सुधाकर की यह बात सुन कर रिश्तेदार चौंका. वह सोच में पड़ गया कि ऐसा कैसे हो सकता है. सुधाकर तो मांसाहारी खाना खाता था. मटन सूप तो उसे खूब पसंद था. फिर उस ने मना क्यों किया. उस की अजीब हरकतों को ले कर सब वैसे ही परेशान थे, इस बात ने उन की परेशानी और बढ़ा दी.

अस्पताल में मटन सूप न पीने पर हुआ शक

यह बात उस रिश्तेदार के दिमाग में खटकी लेकिन उस ने कुछ कहा नहीं. थोड़ी देर में स्वाति आई तो उस ने यह बात उस से भी नहीं कही. बिना कुछ कहे ही वह चला गया. उस रिश्तेदार ने यह बात स्वाति से भले ही नहीं कही, लेकिन सुधाकर के पिता को जरूर बता दी. साथ ही उन से पूछा भी, ‘‘सुधाकर तो मांसमछली का बड़ा शौकीन था, उस ने यह सब खाना कब से छोड़ दिया था? अस्पताल में उसे मटन सूप पीने को दिया गया तो वह चिल्लाने लगा कि वह मांसाहारी नहीं शाकाहारी है.’’

इस बात ने सुधाकर के पिता को भी हैरान कर दिया. वह भी सोच में पड़ गए. इस की वजह थी सुधाकर की अजीब हरकतें. वह सोच ही रहे थे कि क्या करें, तभी उसी दिन दोपहर किसी ने फोन कर के उन्हें जो बताया, उसे सुन कर वह हैरान रह गए. सहसा उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ.

उस आदमी ने उन्हें बताया कि अस्पताल में भरती जिस आदमी के इलाज पर वह लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं, वह उन का बेटा एम. सुधाकर रेड्डी नहीं, बल्कि एक तरह से उन का दुश्मन है. वह सुधाकर की हत्या कर के उस की जगह लेने की कोशिश कर रहा है.

यह जान कर सुधाकर के पिता परेशान हो उठे कि यह हो क्या रहा है, ऐसा कैसे हो सकता है. कोई आदमी किसी की हत्या कर के उस की जगह कैसे ले सकता है. यह सब सोच कर वह चिंतित हो उठे. इस तरह उन के सामने 2 चीजें आ गईं, जिन से उन्हें शंका हुई.

सुधाकर जब से अस्पताल में भरती हुआ था, तब से उस का बातव्यवहार, चालचलन और हावभाव काफी बदलाबदला सा लग रहा था. कभीकभी घर वालों को उस पर शक तो होता था कि वह उन का बेटा सुधाकर नहीं है, लेकिन उन के पास कोई सबूत नहीं था. लेकिन जब ये 2 बातें उन के सामने आईं तो उन का शक यकीन में बदल गया.

उन्होंने यह बात पत्नी को बताई तो पत्नी ने कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? यह कोई फिल्म थोड़े ही है कि कोई किसी की हत्या कर के उस की जगह ले ले.’’

सुधाकर के पिता ने पत्नी को इस बात के लिए राजी किया कि क्यों न हकीकत का पता लगाया जाए कि वह हमारा बेटा सुधाकर ही है या कोई और, जो बेटे के रूप में उस की जगह लेना चाहता है. पत्नी राजी हो गईं तो वह कुछ रिश्तेदारों को ले कर अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने रिश्तेदारों के सामने खड़ा कर के सुधाकर से पूछा कि ये हमारे कौन रिश्तेदार हैं, कहां रहते हैं, इन का नाम क्या है?

यह पूछने पर सुधाकर एकदम से हड़बड़ा गया. वह चूंकि उन रिश्तेदारों को पहचानता ही नहीं था तो क्या बताता. वह चुप रहा तो सुधाकर के मातापिता जहां परेशान हो उठे, वहीं स्वाति भी परेशान हुई. वह इधरउधर की बातें करने लगी.

अब सुधाकर के घर वालों को पूरा विश्वास हो गया कि दाल में कुछ काला जरूर है. सुधाकर का भाई प्रभाकर पिता के साथ थाना नगरकुरनूल गया और थानाप्रभारी श्रीनिवास राव को सारी बात बता कर सच्चाई का पता लगाने का आग्रह किया.

आधार कार्ड से खुली पोल

मामला हैरान करने वाला था. श्रीनिवास राव ने उन्हें आश्वासन दे कर घर भेज दिया. वह भी सोच में पड़ गए, क्योंकि ऐसा मामला उन की जिंदगी में पहली बार सामने आया था. उन्होंने एसपी एस. कमलेश्वर को पूरी बात बताई. वह भी हैरान रह गए. यह मामला किसी सस्पेंस फिल्म जैसा पेचीदा था. जिस व्यक्ति को खुद घर वाले नहीं पहचान पा रहे थे, उसे दूसरा कोई कैसे पहचान सकता था.

एसपी एस. कमलेश्वर ने औफिस में मीटिंग बुलाई, जिस में एडीशनल एसपी जे. चेनायाह, एएसपी लक्ष्मीनारायण और थानाप्रभारी श्रीनिवास राव शामिल हुए.

मीटिंग से पहले श्रीनिवास राव ने सुधाकर के पिता से उस की पहचान से संबंधित जरूरी जानकारी के अलावा आधार कार्ड, पैनकार्ड तथा वोटर आईडी वगैरह ले लिया था.

पुलिस अधिकारियों के सामने चुनौती यह थी कि अस्पताल में जिस आदमी का इलाज चल रहा था, वह सुधाकर रेड्डी नहीं था तो कौन था? इस की पहचान कैसे की जाए. एस. कमलेश्वर ने सुधाकर की पहचान के सारे प्रमाण अपने पास मंगवा लिए थे. 2-3 घंटे चली बैठक में काफी माथापच्ची के बाद पुलिस अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सुधाकर रेड्डी की पहचान आधार कार्ड के माध्यम से की जाए, क्योंकि उस में फिंगरप्रिंट होते हैं, जो दूसरे से कभी नहीं मिलेंगे.

थानाप्रभारी श्रीनिवास राव मीटिंग से सीधे अस्पताल पहुंचे और जब सुधाकर रेड्डी का अंगूठा रख कर उस का आधार खोला गया तो सुधाकर का आधार कार्ड खुलने के बजाय किसी सी. राजेश रेड्डी का आधार कार्ड खुल गया. इस से पूरा मामला साफ हो गया.

श्रीनिवास राव ने यह बात एसपी एस. कमलेश्वर को बताई तो वह भी समझ गए कि अस्पताल में भरती युवक एम. सुधाकर रेड्डी नहीं बल्कि उस की जगह राजेश रेड्डी इलाज करा रहा है. अब यह पता लगाना जरूरी हो गया था कि राजेश रेड्डी कौन है और सुधाकर रेड्डी की जगह अस्पताल में क्यों भरती है. अगर वह राजेश रेड्डी है तो सुधाकर रेड्डी कहां है? साथ ही यह भी कि स्वाति उस अजनबी को सुधाकर रेड्डी यानी अपना पति बता कर उस का इलाज क्यों करा रही है?

एसपी एस. कमलेश्वर ने थानाप्रभारी श्रीनिवास को आदेश दिया कि स्वाति और राजेश को किसी तरह का कोई शक हो, इस से पहले स्वाति को हिरासत में ले कर पूछताछ करो और राजेश के कमरे के बाहर पुलिस का पहरा बैठा दो.

10 दिसंबर, 2017 की सुबह महिला पुलिस की मदद से स्वाति को हिरासत में ले लिया गया और राजेश के कमरे के बाहर पुलिस का पहरा बैठा दिया गया, जिस से वह भाग न सके. स्वाति को थाना नगरकुरनूल लाया गया, जहां उस से पूछताछ शुरू हुई. स्वाति कोई क्रिमिनल तो थी नहीं, जो पूछताछ में पुलिस को छकाती. पूछताछ में उस ने जल्दी ही सारी सच्चाई उगल दी.

उस ने बताया कि अस्पताल में भरती युवक उस का पति एम. सुधाकर रेड्डी नहीं बल्कि प्रेमी सी. राजेश रेड्डी है. प्रेमी के साथ मिल कर उस ने सुधाकर की 26 नवंबर की सुबह हत्या कर के उस की लाश को वहां से 150 किलोमीटर दूर जिला महबूबनगर के मैसन्ना जंगल में ले जा कर जला दिया था.

उस ने पुलिस को सुधाकर की हत्या से ले कर राजेश के तेजाब से झुलस कर अस्पताल में भरती होने तक की जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर पुलिस हैरान रह गई. स्वाति ने पुलिस को सुधाकर की हत्या और राजेश के तेजाब से झुलस कर अस्पताल में भरती होने की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

32 वर्षीय एम. सुधाकर रेड्डी मेहनती आदमी था, उस का भरापूरा परिवार था. वह नगरकुरनूल की पौश कालोनी कोलापुर में पत्नी एम. स्वाति रेड्डी और 2 बच्चों आशीष और मिली के साथ किराए के मकान में रहता था. जबकि उस के मांबाप छोटे बेटे प्रभाकर के साथ गांव में रहते थे. सुधाकर पत्थर तोड़ने वाले एक यूनिट में नौकरी करता था. उसे वहां से अच्छाखासा पैसा मिलता था. नौकरी की वजह से उसे ज्यादातर घर से बाहर रहना पड़ता था. स्वाति एक प्राइवेट अस्पताल में नर्स थी.

स्वाति जवान और खूबसूरत थी. उस के दिल में कुछ अरमान थे. उन्हीं के सहारे वह जी रही थी. पति काम की वजह से अकसर बाहर ही रहता था. पति के बिना स्वाति को बिस्तर काटने को दौड़ता था. उस की रातें करवटें बदलते हुए बीतती थीं. पति घर आता तो स्वाति उस से मन की पीड़ा कहती, सुधाकर पत्नी की पीड़ा को समझता था, लेकिन वह चाह कर भी उस की इच्छा पूरी नहीं कर पाता था. वह नौकरी की दुहाई दे कर उसे समझाता. स्वाति पति की विवशता समझती थी, लेकिन वह मन का क्या करती, जो उस के काबू में नहीं था.

पहली ही मुलाकात में राजेश रेड्डी को दे बैठी दिल

स्वाति नर्स थी. अस्पताल के काम से उसे दूसरे अस्पतालों में फिजियोथेरैपिस्ट से मिलने जाना पड़ता था. बात 2 साल पहले की है. वह अस्पताल की ओर से एक प्राइवेट अस्पताल के फिजियोथेरैपिस्ट से मिलने गई थी. वहीं उस की मुलाकात सी. राजेश रेड्डी से हुई. उसे देख कर वह चौंकी, क्योंकि उस का चेहरामोहरा और कदकाठी उस के पति सुधाकर से काफी मेल खा रहा था.

एकबारगी उसे देख कर कोई भी उस में और सुधाकर में फर्क नहीं कर सकता था. इसी पहली मुलाकात में स्वाति उस की मुरीद हो गई. स्वाति सुंदर तो थी ही, राजेश ने भी पहली मुलाकात में ही उसे अपने दिल की मलिका बना लिया. स्वाति अपना काम कर के चली तो आई लेकिन दिल राजेश के पास ही छोड़ आई.

इस के बाद किसी न किसी बहाने दोनों की मुलाकातें होने लगीं. इन्हीं मुलाकातों ने उन दोनों को एकदूसरे से प्यार करने को मजबूर कर दिया. राजेश की शादी नहीं हुई थी, जबकि स्वाति शादीशुदा थी. उस के 2 बच्चे भी थे. लेकिन अब यह सब कोई मायने नहीं रखते थे. राजेश की पर्सनैलिटी पर स्वाति इस तरह मर मिटी कि उसे न पति का खयाल रहा, न बच्चों का.

राजेश रेड्डी अपने मांबाप और भाई के साथ कोलापुर में रहता था. उस का परिवार काफी संपन्न था. मांबाप उसे पढ़ालिखा कर डाक्टर बनाना चाहते थे. राजेश मांबाप के सपनों को पूरा करने के लिए जीजान से जुटा भी रहा, लेकिन वह डाक्टर नहीं बन सका. हां, फिजियोथेरैपिस्ट जरूर बन गया. पढ़ाई पूरी करने के बाद उसे एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी मिल गई थी, वहीं उस की मुलाकात स्वाति से हुई थी.

स्वाति और राजेश का प्यार दिनोंदिन बढ़ता गया. एक ऐसा समय भी आया जब वे एकदूसरे को देखे बिना नहीं रह पाते थे. उन के बीच की सारी दूरियां मिट चुकी थीं. मर्यादाओं को तोड़ कर वे कब के जिस्म के बंधन में बंध गए थे. स्वाति को राजेश के जिस्म की खुशबू सुधाकर के जिस्म से ज्यादा अच्छी लग रही थी. अब उसे पति से ज्यादा प्रेमी प्यारा लगने लगा था.

स्वाति के संबंध पतिपत्नी की तरह बन गए थे. स्वाति का हाल तो यह था कि वह राजेश की एक दिन की जुदाई भी बरदाश्त नहीं कर पा रही थी. पति जितने दिन बाहर रहता, स्वाति उसे साथ रखती थी. बच्चे छोटे थे, इसलिए वे कुछ भी नहीं जानसमझ पा रहे थे. स्वाति राजेश से कहने लगी थी कि वह उस से शादी कर के उसे सुधाकर से मुक्ति दिलाए. 2 सालों तक दोनों के प्यार की किसी को भनक तक नहीं लग पाई थी.

स्वाति चाहती तो सुधाकर से तलाक ले कर राजेश से शादी कर सकती थी लेकिन न जाने क्यों उसे लगता था कि सुधाकर के जीते जी ऐसा नहीं हो पाएगा. उसे लगता था कि राजेश से तभी शादी कर पाएगी, जब सुधाकर रास्ते से हट जाए.

यही सोच कर स्वाति राजेश के साथ मिल कर सुधाकर को रास्ते से हटाने की योजना बनाने लगी. लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था. सुधाकर को ठिकाने लगाना तो आसान था, लेकिन खुद बचाना भी जरूरी था. वे दोनों इस के लिए आपराधिक धारावाहिक और इसी तरह की फिल्में देखने लगे. आखिर उन्हें श्रुति हसन की सुपरहिट फिल्म ‘येवाडु’ से सुधाकर को रास्ते से हटाने का आइडिया मिल गया.

इस फिल्म में दिखाया गया था कि पत्नी प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या कर देती है और बाद में प्लास्टिक सर्जरी के जरिए प्रेमी का चेहरा पति जैसा करा देती है. उस के बाद प्रेमी पति की प्रेमिका के साथ उसी के घर में रहने लगता है. कुछ दिनों बाद दोनों वह शहर छोड़ कर दूसरे शहर में रहने चले जाते हैं.

जैसा फिल्म में देखा था, स्वाति और राजेश ने तय किया कि वे भी ऐसा ही करेंगे. सुधाकर की हत्या कर के बाद में प्लास्टिक सर्जरी के जरिए राजेश का चेहरा सुधाकर जैसा बनवा दिया जाएगा. उस के बाद दोनों पतिपत्नी की तरह साथ रहेंगे. इस से किसी को शक भी नहीं होगा. कुछ दिनों बाद वे यह शहर छोड़ कर पुणे जा कर बस जाएंगे.

सुधाकर के पास कार और स्कूटर दोनों थे. कभी वह नौकरी पर कार से जाता था तो कभी स्कूटर से. 21 नवंबर को वह स्कूटर से ड्यूटी पर गया था. उस के जाने के बाद स्वाति ने फोन कर के राजेश को बुला लिया और कार से उस के साथ घूमने निकल गई.

संयोग से सुधाकर के चचेरे भाई ने उसे राजेश के साथ कार में जाते देख लिया. वह राजेश को पहचानता नहीं था, इसलिए उस ने भाभी को किसी अजनबी के साथ जाने की बात सुधाकर को फोन कर के बता दी.

प्रेमी को ले कर पति से हुआ झगड़ा

सुधाकर चिंता में पड़ गया कि पत्नी किस के साथ घूम रही है. उसे गुस्सा भी आया. यह बात उसे परेशान कर रही थी. उस का मन नौकरी पर नहीं लगा तो वह घर वापस आ गया. तब तक स्वाति घर नहीं आई थी. जब वह आई तो राजेश को ले कर पतिपत्नी में खूब झगड़ा हुआ. सुधाकर राजेश के बारे में पूछता रहा लेकिन स्वाति ने कुछ नहीं बताया. ऐसा 3 दिनों तक चलता रहा.

स्वाति ने राजेश से कह दिया कि उस की वजह से 3 दिनों से घर में लड़ाईझगड़ा हो रहा है. उन के संबंधों के बारे में किसी और को पता चले, उस के पहले ही सुधाकर को रास्ते से हटा दिया जाए. राजेश स्वाति की बात मान कर उस का साथ देने को तैयार हो गया.

25 नवंबर को राजेश मां से विजयवाड़ा जाने की बात कह कर घर से निकला और सीधे स्वाति के घर जा पहुंचा. उस समय सुधाकर कहीं गया हुआ था.

स्वाति ने राजेश को घर में ही बैड के नीचे छिपा दिया. उस दिन भी स्वाति और सुधाकर में खूब झगड़ा हुआ था, लेकिन स्वाति ने यह नहीं बताया था कि राजेश कौन है और उस का उस से क्या संबंध है. इसी वजह से घर में खाना तक नहीं पका था. स्वाति ने राजेश को घर में छिपा तो लिया था, लेकिन उसे डर लग रहा था कि अगर राजेश के घर में होने की खबर सुधाकर को हो गई तो कयामत आ जाएगी.

बहरहाल, किसी तरह रात कट गई. 26 नवंबर की सुबह 4 बजे के आसपास स्वाति जागी. दबे पांव बिस्तर से उतर कर उस ने बैड के नीचे छिपे राजेश को उठाया. इस के बाद पर्स से एनेस्थेसिया का इंजेक्शन निकाला और राजेश की मदद से सुधाकर की गरदन में लगा दिया. सुधाकर बेहोश हो गया.

इस के बाद राजेश ने उस के मुंह पर तकिया रख कर तब तक दबाए रखा, जब तक कि उस की मौत नहीं हो गई. उसे हिलाडुला कर देखा गया तो उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई. वह मर चुका था. लाश को उन्होंने कार में रखा और उसे 150 किलोमीटर दूर महबूबनगर के मैसन्ना जंगल में ले गए. जंगल में बीचोबीच लाश जला कर वे लौट आए.

स्वाति और राजेश खुश थे कि उन्होंने रास्ते का कांटा हटा दिया है. अब उन्हें कोई रोकनेटोकने वाला या लड़ाईझगड़ा करने वाला नहीं बचा. साजिश का पहला पायदान वे चढ़ चुके थे. अब दूसरी साजिश को अंजाम देना था.

योजनानुसार प्रेमी के ऊपर खुद फेंका तेजाब

27 नवंबर की सुबह स्वाति और राजेश शहर के एक प्राइवेट अस्पताल पहुंचे, जहां सर्जरी की सुविधा उपलब्ध थी. दोनों ने वहां पता किया कि 30 प्रतिशत तक जले मरीज की सर्जरी पर कितना खर्च आता है. वहां उन्हें बताया गया कि इस तरह के मरीज पर 3 से 5 लाख रुपए का खर्च आ सकता है.

दोनों घर लौट आए और आगे क्या और कैसे करना है, इस की रूपरेखा तैयार की. स्वाति और राजेश ने तय किया कि अगली सुबह कालोनी के बाहर सुनसान जगह पर दूसरी घटना को अंजाम दिया जाएगा.

28 नवंबर की सुबह साढ़े 7 बजे स्वाति ने बच्चों को स्कूल भेज दिया और राजेश को ले कर कालोनी के बाहर सुनसान जगह पर पहुंच गई. योजना के अनुसार, स्वाति और राजेश पहले गले मिले, उस के बाद साथ लाए तेजाब को स्वाति ने राजेश के चेहरे पर फेंक दिया. चेहरे के साथ उस की गरदन भी झुलस गई. प्रेमी की पीड़ा से स्वाति को काफी दुख पहुंचा, लेकिन ऐसा करना उस की मजबूरी थी. क्योंकि अब राजेश को सुधाकर बनवाना था. योजना को अंजाम दे कर वह घर लौट आई.

घर पहुंच कर स्वाति ने त्रियाचरित्र रचते हुए सासससुर को फोन कर के बताया कि सुधाकर के ऊपर किसी ने तेजाब फेंक दिया है. वह उसे ले कर अस्पताल जा रही है. सासससुर के अस्पताल पहुंचने तक राजेश के चेहरे पर मरहमपट्टी हो चुकी थी. चेहरा पट्टी से ढका होने के कारण वे उसे पहचान नहीं सके.

लेकिन शारीरिक बनावट और कदकाठी देख कर उन्हें संदेह तो हुआ, पर उस समय वे कुछ कह नहीं सके. राजेश को सुधाकर बना कर अस्पताल लाने वाली स्वाति ने सासससुर को अपनी बातों में कुछ इस तरह उलझाए रखा कि उन्हें राजेश को सुधाकर मानने के लिए विवश होना पड़ा.

सुधाकर पर हुए तेजाब के हमले की जांच पुलिस कर रही थी. इस जांच में पुलिस को कोलापुर कालोनी के पास लगे सीसीटीवी कैमरे से इस हमले की फुटेज मिल गई. उस फुटेज में साफ दिख रहा था कि स्वाति राजेश के साथ कालोनी के बाहर हंसहंस कर बातें करते हुए टहल रही थी. दोनों गले मिले और उस के बाद स्वाति ने बोतल का तेजाब राजेश के चेहरे पर फेंक दिया. राजेश तेजाब की जलन से वहीं बैठ कर छटपटाने लगा, जबकि स्वाति घर चली गई. इस के बाद क्या हुआ, कहानी के शुरू में ही उल्लेख किया जा चुका है.

स्वाति द्वारा रची गई साजिश का परदाफाश हो गया था. प्रेमी को पति का रूप दे कर जीवन भर साथ रहने का उस का सपना टूट चुका था. दूसरी ओर राजेश की मां बेटे को ले कर परेशान थी. वह शादी में विजयवाड़ा जाने की बात कह कर निकला था. कई दिन बीत जाने के बाद भी वह घर नहीं लौटा था. उसे किसी अनहोनी की आशंका होने लगी थी, क्योंकि राजेश से फोन पर भी बात नहीं हो पा रही थी.

प्रेमी को पति बनाने की ख्वाहिश रह गई अधूरी

बेटे को ले कर परेशान राजेश की मां ने स्वाति से कई बार पूछा था, लेकिन उस ने उन्हें कुछ नहीं बताया था. दरअसल, उन्हें राजेश और स्वाति के संबंधों के बारे में पता था. राजेश ने ही मां को उस के बारे में बताया था. इसलिए वह स्वाति से राजेश के बारे में बारबार पूछ रही थीं. जब उन्हें सच्चाई का पता चला तो वह इतनी शर्मिंदा हुई कि राजेश के कहने पर भी उन्होंने उसे उस के हाल पर छोड़ दिया.

स्वाति और राजेश की साजिश का खुलासा होने के बाद 10 दिसंबर, 2017 को पुलिस ने एम. सुधाकर रेड्डी की हत्या के आरोप में उस की पत्नी एम. स्वाति रेड्डी को गिरफ्तार कर लिया था. सी. राजेश रेड्डी का अभी इलाज चल रहा था, इसलिए पुलिस ने उसे फिलहाल गिरफ्तार नहीं किया. पूछताछ में उस ने भी सुधाकर की हत्या का अपना अपराध कबूल कर लिया था.

राजेश के इलाज का खर्च 5 लाख आया था, जिस में से सुधाकर के मांबाप ने बेटा समझ कर डेढ़ लाख रुपए अस्पताल में जमा करा दिए थे. सच्चाई का पता चलने के बाद बाकी रकम उन्होंने जमा नहीं की. अब बाकी पैसे राजेश से मांगे जा रहे थे. पुलिस को उस के स्वस्थ होने का इंतजार था ताकि स्वस्थ होते ही उसे गिरफ्तार किया जा सके.

पुलिस ने एम. सुधाकर रेड्डी की हत्या के आरोप में स्वाति और राजेश के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था. स्वाति जेल में बंद है, जबकि राजेश का अभी इलाज चल रहा था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कौन-सा गिफ्ट है बच्चों के लिए परफेक्ट

अक्सर देखा गया है कि माता-पिता अपने बच्चों को खुश करने या किसी खास मौके पर गिफ्ट देना पसंद करते हैं. माता-पिता के मन में यही ख्याल आता है कि बच्चे को कपडे या खिलौने गिफ्ट में दिया जाए, जबकि उन्हें कुछ ऐसा गिफ्ट दिया जाना चाहिए जो उन्हें पसंद तो आए ही साथ में उनकी नौलेज भी बढ़ाए.

जी हां, ऐसे कई गिफ्ट हैं, जो आप बच्चों को दे सकते हैं और उनका ज्ञान बढाने में उनकी मदद कर सकते हैं. तो आइये जानते हैं ऐसे ही कुछ गिफ्ट्स के बारे में.

नौलेज बढ़ाने के लिए

अगर आप चाहते हैं बच्चों को कुछ अच्छा सीखने को मिले तो आप उनके लिए खिलौनों की बजाए म्यूजियम, साइंस एग्जिबिशन, एम्यूजमेंट पार्क आदि की टिकट खरीदें और उन्हें वहां ले जाकर वहां की नई चीजों के बारे में जानकारी दें. कुछ नया देखकर वे खुश भी होगें और उनकी नौलेज भी बढ़ेगी.

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पौधे गिफ्ट करें

अगर आप बच्चों को पौधे गिफ्ट करेंगे तो वे पर्यावरण के प्रति जागरूक होगें. उन्हें यह पौधा घर के आंगन या बालकनी में खुद लगाने और उसकी देखरेख के लिए कहें. इसे बढ़ता देख कर उन्हें खुशी भी होगी.

शौक के अनुसार गिफ्ट दें

बच्चों को हमेशा उनके शौक के हिसाब से गिफ्ट दें. अगर उन्हें ड्रॉइंग-पेंटिंग या म्यूजिक का शौक है तो उन्हें खिलौने की जगह कलर बॉक्स, डॉइंग पेपर, उसका पसंदीदा गिटार, माउथ ऑर्गन आदि गिफ्ट करें. जिससे उनकी क्रिएटीविटी बढ़ेगी और उनकी आगे जाकर काम भी आएगी.

यादों को बनाएं रखने के लिए

इसकी बचपन की यादों को आगे जाकर तरोताजा रखने के लिए उन्हें एक एल्बम जरूर गिफ्ट करें. उन्हें इसमें अपनी नई-पुरानी फोटोज लगाने के लिए बोलें. जिसे उसे बड़ा होकर देख कर खुशी मिलेगी.

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त्वचा को खूबसूरत बनाने के लिए अपनाएं ये खास टिप्स

खूबसूरती किस को अच्छी नहीं लगती. आज कल हर कोई खूबसूरत दिखना चाहता है. चाहे महिला हो या पुरुष. मुस्कुराता व दमकता हुआ चेहरा हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है और वहीं बेजान और उदास दिखने वाले चेहरे की ओर कोई नजर भी नहीं डालता. खूबसूरती के लिये जरूरी है की अपनी त्वचा का पूरा ध्यान रखा जाये लेकिन हर कोई ऐसा कर नहीं पाता किसी के पास समय का आभाव है तो कोई महंगे प्रोडक्ट्स के कारण. तो आज हम आपकी परशानियों को समझते हुए कुछ घरेलू नुस्खे बता रहे हैं जो कि आपके बजट में भी फिट रहेंगे व खूबसूरती बढ़ाने में ज्यादा समय भी नहीं लगेगा.

आलू है बड़े काम की चीज

आलू वैसे तो सभी सब्जियों मे डलकर स्वाद को बढ़ा देता है लेकिन आलू  हमारी त्वचा के लिये भी बहुत लाभदायक होता है आप सोच रहे होंगे  कैसे? तो हम आपको बता रहे हैं.

एक बड़ा चम्मच आलू का पेस्ट बनाये. अब इसमें एक बड़ा चम्मच दही मिलाइए. तैयार हुए पेस्ट को करीब आधे धंटे के लिए रख दीजिए. अब चेहरे पर इस पेस्ट को लगाएं. यह आपकी त्वचा  को तरोताजा कर स्किन को टाइट बनाने में मदद करेगा.

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आलू और हल्दी का फेसपैक त्वचा की रंगत को निखारने में मदद करता है आधे आलू को घिस लें और इसमें एक चुटकी हल्दी मिलाकर चेहरे पर लगाकर आधे घंटे के लिए छोड़ दें. अब आप अपने फेस को नार्मल पानी से साफ कर लें. आपके चेहरे  की रंगत मे निखार आने लगेगा.

गुलाब जल और खीरे के जूस से चमकाए त्वचा

गुलाब जल और खीरे का जूस एस्ट्रिंजेंट का काम करते हैं. गुलाब जल त्वचा का पीएच लेवल सामान्य रखता है. इसके अलावा इसमें एंटी बैक्टीरियल गुण मौजूद होते हैं. खीरे के साथ गुलाब जल का मिश्रण रोमछिद्रों को प्रभावशाली तरीके से छोटा करता है. गुलाब जल और खीरे के जूस को मिलाकर चेहरे पर लगाएं और पंद्रह मिनट बाद ठंडे पानी से धो लें. इससे त्वचा के रोमछिद्र को ठीक करता हैं व त्वचा चमक उठेगी.

करेला व हल्दी

करेला खाने मे कड़वा लगता हैं लेकिन हमारी सेहत के लिये बहुत गुणकारी होता हैं .हल्दी को सालों से बतौर फेस पैक इस्तेमाल किया जा रहा है. अगर आप इसे करेले के साथ इस्तेमाल करती हैं तो इससे आपको एक क्लीन स्किन मिलती है. इस फेस पैक को बनाने के लिए करेले व नीम के पत्तों को पीसकर उसमें हल्दी मिलाएं और उसे चेहरे पर लगाएं. करीब दस से पंद्रह मिनट बाद स्किन धो दें. यह फेस पैक त्वचा में निखार तो लाता है ही, साथ ही मुंहासे, दाग−धब्बे व खुजली आदि के इलाज में भी कारगर साबित होता है.

सरीन से रूखी त्वचा को कहे बाई बाई

सर्दियों मे रूखी त्वचा और फटे होठो से सभी परेशान रहते हैं. ऐसे में ग्लिसरीन त्वचा के लिए एक बेहतरीन मौइश्चराइजर है. रोजाना त्वचा  पर  ग्लिसरीन का इस्तेमाल करने से त्वचा  हाइड्रेटेड, सौफ्ट और फ्रेश रहती है. ग्लिसरीन मे नीबू का रस व गुलाब जल मिला कर लगाएं आपकी त्वचा फटेगी भी नहीं और कोमल बनी रहेगी.

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ऐसे बनाएं मिर्ची वड़ा

अगर आपको तीखा और मसालेदार खाना पसंद है तो आपको मिर्ची वड़ा बहुत पसंद आएगा. तीखा खाने के लिए आप इस रेसिपी को जरूर ट्राई करें.

सामग्री

बेसन- 1 कप

तेल- आधा कप

हल्दी- चुटकी भर

आलू- 2 (उबला हुआ)

लाल मिर्च पाउडर- चुटकी भर

हरी मिर्च- 8

धनिया पत्ता- थोड़ा सा (बारीक कटा हुआ)

नमक- सवादानुसार

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बनाने की विधि

सबसे पहले सभी मिर्चों को बीच से काटें, उसके बीज निकालकर मिर्च को अलग रख दें.

अब उबले हुए आलू को छीलकर अच्छी तरह से मैश कर लें.

इसमें लाल मिर्च पाउडर, नमक और धनिया पत्ती मिलाकर अच्छी तरह से मिक्स कर लें.

फिर बेसन में हल्दी और नमक डालें और पानी डालकर गाढ़ा बैटर तैयार कर लें.

अब बीच से कटी हुई हरी मिर्च के अंदर आलू का मिश्रण भर दें और उसे बेसन के मिश्रण में डिप करें.

एक कढ़ाई में तेल गर्म करें और बेसन में लिपटी हुई मिर्चों को तेल में सुनहरा होने तक डीप फ्राई करें.

मिर्ची वड़ा तैयार है. इसे हरी चटनी के साथ सर्व करें.

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छोटी सरदारनी वेलेंटाइन स्पेशल: जानें परदे के पीछे कैसी है मेहर और सरब की बौंडिंग

कलर्स के शो, ‘छोटी सरदारनी’ में मेहर और सरब की जोड़ी फैंस को काफी पसंद आ रही है. परदे पर दोनों एक-दूसरे से जुड़ी हर बात बिना बोले समझ जाते हैं. वहीं परदे के पीछे की बात करें तो मेहर और सरब की बौंडिंग बिल्कुल अलग है. मेहर और सरब अक्सर सेट पर मस्ती करते हुए नजर आते हैं. हाल ही वेलेंटाइन डे के मौके पर हमने दोनों से सवाल-जवाब के जरिए उनकी बौंडिंग कितनी मजबूत है, इसके बारे में पता लगाया. पेश है मेहर और सरब के इंटरव्यू की कुछ खास बातें…

एक दूसरे के बारे में कितना जानते हैं मेहर और सरब

जब हमने मेहर और सरब से उनके परदे के पीछे तालमेल के बारे में पता लगाने के लिए एक टेस्ट किया तो उनके मजेदार जवाब मिले. टेस्ट में एक दूसरे की पसंद-नापसंद के बारे में दोनों ने परफेक्ट जवाब दिए.

मेहर और सरब को जब हमने फेवरेट फूड के बारे में पूछा तो दोनों ने एक-दूसरे की पसंद बिल्कुल सही बताई.

इसी के साथ जब हमने मेहर और सरब से उनकी पसंदीदा जगह के बारे में पूछा तो दोनों ने एक जैसा जवाब दिया, जिससे पता चलता है कि उनकी पसंद कितनी मिलती-जुलती है.

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एक दूसरे के साथ कम्फरटेबल महसूस करते हैं मेहर और सरब

जब सरब और मेहर से पूछा गया कि एक्टिंग के तौर पर शुरूआत से अब तक उनकी बौंडिंग में कितना बदलाव आया है तो सरब यानी अविनेश रेखी ने बताया, ”मेहर शुरू में कम्फरटेबल महसूस नहीं करती थीं. लेकिन जैसे-जैसे साथ में सीन्स करते रहे हम दोनों एक-दूसरे के साथ कम्फरटेबल महसूस करने लगे.” वहीं मेहर यानी निमृत कौर आहलूवालिया ने बताया, ”शो के शुरूआत में मैं और सरब एक दूसरे को सिर्फ काम के मामले में जानते थे, लेकिन अब हम बहुत अच्छे दोस्त बन गए हैं.”

औनस्क्रीन बौंडिंग दिखाने के लिए औफस्क्रीन क्या खास करते हैं मेहर और सरब

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अविनेश और निमृत की औनस्क्रीन केमेस्ट्री को लेकर खास तैयारी के सवाल पर दोनों एक्टर्स का कहना था कि वह मेहनत और आपसी समझ से परदे पर अपनी केमेस्ट्री दिखाते हैं.

परम के होने से मेहर और सरब की औफस्क्रीन कैमेस्ट्री पर क्या पड़ता है फर्क 

 

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परम के साथ शूटिंग करने के अनुभव को शेयर करते हुए अविनेश और निमृत ने बताया कि परम शूटिंग के दौरान धैर्य और अपनी मासूमियत से सीन को पूरा करने में साथ देता है, जिससे हमारी बौंडिंग मजबूत होती जा रही है.

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मेहर और सरब की जोड़ी को फैंस ने बहुत सराहा है और आगे भी सराहते रहेंगें. वहीं अब देखना ये है कि क्या मेहर और सरब की ये औनस्क्रीन दोस्ती कभी प्यार में बदलेगी? जानने के लिए देखना ना भूलें ‘छोटी सरदारनी’, सोमवार से शनिवार, रात 7:30 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

मुन्नी बदनाम हुई

यौवनावस्था में कदम रखने वाली मुन्नी के स्वभाव का बचपना न जाने कब मोहित के प्यार में खो गया, खुद उसे ही नहीं पता चला. मोहित व कविता के बीच आखिर ऐसा क्या हुआ कि वह पूरी तरह से टूट गई और खुद की नजरों में ही गिर गई.

‘‘मम्मी, मेरा लंच बौक्स,’’ कविता चिल्लाती हुई रसोईघर में घुसी.

‘‘तैयार है, तू खुद लेटलतीफ है, देर से उठती है और सारे घर को सिर पर उठा लेती है. यह अच्छी बात नहीं है.’’

‘‘बस, मम्मी, हो गया. अब दो भी मेरा लंच बौक्स. कल से जल्दी उठूंगी,’’ कविता अपनी मम्मी की तरफ देखते हुए बोली.

उस की मम्मी भी उस पर ऊपरी मन से गुस्सा करती थीं. उन्हें पता है कि कविता नहीं सुधरने वाली. उस का यह रोज का काम है.

कविता ने प्यार जताने के लिए मम्मी को गले लगाया और बोली,

‘‘बाय मम्मी.’’

‘‘बाय बेटा, पेपर अच्छे से करना.’’

कविता की मां नम्रता अपने रोजमर्रा के काम निबटाने में व्यस्त हो गईं. कविता के घर में उस के मातापिता, 1 भाई, दादादादी, ताऊताई व उन की 2 बेटियां रहते हैं. कविता अपने घर में सब से छोटी है और सब की लाड़ली है. सब उस से बहुत प्यार करते हैं. प्यार में सब उसे मुन्नी कहते हैं.

कविता 17 साल की एक सुंदर लड़की थी. उस का भराभरा सा सुडौल शरीर और चंचल स्वभाव सहज किसी को भी आकर्षित करने लायक था. उस को गांव में सभी प्यार से मुन्नी बुलाते थे. यौवनावस्था में कदम रखने वाली मुन्नी के स्वभाव में अभी तक बचपना था. उस की 12वीं कक्षा की वार्षिक परीक्षाएं चल रही थीं. पेपर देने के लिए उसे अपने गांव से 18 किलोमीटर दूर कसबे के उच्च माध्यमिक विद्यालय में जाना पड़ता था.

गांव से कसबे में जाना उस में रोमांच पैदा कर देता. उसे लगता कि जैसे वह आजाद हो गई हो. वह अपने बालों में क्लिप लगा कर, गले में सफेद रंग की माला, माथे पर छोटी सी बिंदी लगा कर, विद्यालय की ड्रैस में बहुत ही आकर्षक और सुंदर लगती.

एक दिन उस की सहेलियां उस का इंतजार कर रही थीं. उस के पहुंचते ही सभी उस पर गुस्सा करने लगीं.

‘‘मुन्नी की बच्ची, आज फिर लेट,’’ मीनू बोली.

‘‘कल से हम तेरा इंतजार नहीं करेंगे, अभीअभी दूसरी बस भी निकल गई,’’ सुजाता ने भी डांटा.

‘‘सौरी, लेट हो गई पर तुम टैंशन मत लो. मैं हूं न,’’ मुन्नी बोली, ‘‘लो, बस भी आ गई. बस स्टैंड से स्कूल तक आटो का खर्चा मेरा.’’

बस रुकी, सभी लड़कियां और अन्य लोग बस में चढ़ गए. बस में मुन्नी व उस की सहेलियों की चटरपटर सभी का ध्यान अपनी ओर खींच रही थी.

लड़के मुन्नी को देख कर किसी न किसी बहाने उसे छूने के लिए बेताब रहते थे. मुन्नी को लड़कों का घूरना बाहर से तो अच्छा न लगता पर अंदर से वह खुश होती और अपनी सुंदरता का घमंड करती.

बस कसबे में पहुंची, सभी यात्री उतरे. वहां खड़े छिछोरे, आवारा लड़के, लड़कियों का झुंड देख कर तरहतरह की फब्तियां कसने लगे.

मुन्नी ने अपनी एक सहेली का हाथ खींचा, ‘‘चल, आटो ले कर आते हैं. तुम सभी यहीं इंतजार करना,’’ वे आटो ले कर आईं और सब उस में बैठ कर समय पर स्कूल पहुंच गईं.

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विद्यालय के गेट के पास कई आउटसाइडर और छात्र खड़े थे. वे सभी आती हुई लड़कियों के ग्रुप की तरफ देख रहे थे. लड़कियां उन को अनदेखा कर के अंदर चली गईं. अंदर बहुत चहलपहल थी. सभी छात्र इधरउधर चहलकदमी कर रहे थे. कुछ अपने रोल नंबर नोटिसबोर्ड पर देख रहे थे, कुछ किताबें पढ़ रहे थे और कुछ कमरों की तरफ जा रहे थे.

‘‘हाय, एवरीबडी,’’ एक लड़का उन की तरफ आते हुए बोला.

‘‘हाय, अविनाश,’’ कविता बोली.

‘‘रोल नंबर देख लिया क्या?’’ अविनाश ने पूछा.

‘‘नहीं, अभी नहीं.’’

‘‘सभी अपने रोल नंबर दो, मैं देखता हूं, किस रूम में है तुम्हारी सीट,’’ अविनाश ने सब के रोल नंबर ले लिए.

सभी लड़कियां पेड़ के नीचे खडे़ हो कर अविनाश का इंतजार करते हुए बातें करने लगीं.

‘‘यह लो, तुम्हारा रोल नंबर रूम नं. 4 में और बाकी सभी का रूम नं. 5 में है,’’ अविनाश ने आ कर बताया.

‘‘ओह, मेरा रोल नंबर तुम सब के साथ नहीं आया,’’ कविता निराश हो कर बोली.

सभी एकदूसरे को पेपर के लिए शुभकामनाएं बोल कर अपनेअपने कमरे की तरफ लपकीं. कविता के कमरे में कुछ छात्र उसी विद्यालय के और कुछ उस के विद्यालय के थे. उस के पास ही मोहित नाम का लड़का बैठा था.

पेपरों के दौरान मोहित से उस की हैलोहाय शुरू हुई. मोहित कसबे के मशहूर वकील का इकलौता लड़का था. वह बहुत स्मार्ट और अमीर घर का था. उस पर उस के विद्यालय की कई लड़कियां मरती थीं पर वह किसी को भाव नहीं देता था. पेपरों के दौरान उसे कविता सब से अलग और अच्छी लगी.

कविता को मोहित का बात करना अच्छा लगता. पहली बार उसे भी कोई लड़का अच्छा लगा था. मोहित रोज किसी न किसी बहाने से कविता के ग्रुप से बात करता. सभी को उस का बात करना अच्छा लगता.

अंतिम पेपर के दिन मोहित ने कविता को एक खत और एक फूल दिया. कविता कुछ समझ नहीं पाई, ‘‘मोहित, क्या है यह?’’

‘‘घर जा कर पढ़ना, सब पता लग जाएगा. पर देखो, मेरे ऊपर गुस्सा मत करना. इस में जो लिखा है, सब सच है,’’ मोहित प्यार से बोला.

कविता ने लड़कियों की नजर बचा कर वह पत्र बैग में डाला और बस का इंतजार कर रही सहेलियों के पास पहुंच गई.

‘‘अरे कविता, बड़ी देर कर दी, पेपर कैसा हुआ?’’

‘‘अच्छा हुआ, मम्मी का दिया परांठा खाने में देर हो गई.’’

‘‘मोहित क्या कह रहा था?’’

‘‘कुछ नहीं, ऐसे ही पूछ रहा था

कि इस के बाद किस कालेज में ऐडमिशन लोगी? मैं ने कहा द्रोणाचार्य कालेज में.’’

‘‘वह कहां लेगा?’’ लड़कियों ने पूछा.

‘‘मुझे क्या पता, मैं ने ज्यादा बात नहीं की,’’ कविता बोली और तभी सामने बस रुकी. लड़कियां बस की तरफ भागीं, कविता ने पीछे मुड़ कर देखा. मोहित पेड़ के नीचे बैठा उसी को देख रहा था. मोहित ने हाथ उठा कर बाय का इशारा किया, पर कविता ने सिर झुकाया और बस में चढ़ गई. उस के मन में पत्र को ले कर उत्सुकता थी. पूरे रास्ते उस ने ज्यादा कुछ नहीं कहा, बस कुछ सोचती रही.

‘‘भैया रोकना,’’ लड़कियां बोलीं.

कंडक्टर ने सीटी बजाई. बस रुकी और सभी लड़कियां उतर गईं.

‘‘अच्छा, डेढ़ महीने बाद जाएंगे, ऐडमिशन लेने कालेज में. फोन पर बता देंगे कि कितने बजे जाना है.’’

इस के साथ ही सभी एकदूसरे को बाय कर के अपनेअपने घर की तरफ चले गए.

कविता के घर में घुसते ही, ‘‘मुन्नी बेटा, पेपर कैसा हुआ?’’ मम्मी ने पूछा.

‘‘बहुत अच्छा. मम्मी, भूख लगी है, खाना दो.’’

‘‘ठीक है, तुम हाथमुंह धो लो. मैं खाना गरम कर के परोसती हूं.’’

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खाना खा कर कविता सीधे अपने कमरे में चली गई, दरवाजा बंद किया और जल्दी से चिट्ठी निकाल कर पढ़ने लगी :

‘डियर कविता,

जब से तुम्हें देखा है, मुझे नींद नहीं आती. तुम से मिलने का मन करता है. तुम बहुत अच्छी हो. क्या तुम मुझ से दोस्ती करोगी? मेरा नं. 9813000××× है. मुझे फोन करना. मेरी बातों का बुरा मत मानना. पर यह सच है, मुझे तुम से प्यार हो

गया है. तुम्हारे फोन का बेसब्री से इंतजार करूंगा.

बाय, टेक केयर.’

कविता का रोमरोम सिहर उठा पत्र को पढ़तेपढ़ते. वह खुश भी हुई साथ में उसे एक अनजाना सा भय भी लगा. उसे भी मोहित अच्छा लगा था. वह साधारण परिवार से थी और मोहित कसबे के जानेमाने वकील का बेटा था. उन की अपनी गाडि़यां, बंगला और दादा की थोक की 2 दुकानें थीं और बहुत सारे नौकरचाकर.

कविता को अपने ऊपर बहुत गुमान हुआ कि कसबे की फैशनेबल लड़कियों में मोहित को वह पसंद आई. वह खुश थी. कविता ने शाम को किसी बहाने अपनी ताई से फोन मांगा.

‘‘बड़ी मम्मी, मीनू को फोन करना है, आप का फोन कहां है?’’

‘‘अंदर कमरे में रखा है, ले ले.’’

उस की ताई अपनी बेटी नीता और संगीता को साथ ले कर बाहर चली गईं. कविता ने छत पर जा कर मोहित का नंबर मिलाया.

‘‘हैलो,’’ कविता धीरे से बोली.

‘‘हैलो, कविता,’’ मोहित की आवाज में उत्साह छलक रहा था.

‘‘तुम ने कैसे पहचाना कि कविता का फोन है?’’

‘‘मुझे पता लग जाता है. मैं तुम्हारे फोन का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. बड़ी देर लगा दी सोचने में, फिर क्या सोचा?’’

‘‘मुझे डर लग रहा है.’’

‘‘अरे, सिर्फ दोस्ती करनी है और तुम्हें डर लग रहा है? बोलो भी अब.’’

‘‘ठीक है, मुझे मंजूर है,’’ कविता ने इतना कहते ही फोन काट दिया. उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. उसे मोहित की आवाज से शरीर में कुछ अजीब सा एहसास, सिहरन सी महसूस हुई.

उस के बाद हर पल वह मोहित के बारे में न जाने क्याक्या सोचती रही.

उधर मोहित का भी ऐसा ही हाल था. रात ठीक 12 बजे उस ने कविता के नंबर पर फोन किया, ‘‘हैलो.’’

दूसरी तरफ कविता के ताऊजी ने नींद से उठ कर हड़बड़ाहट के साथ फोन उठाया और बोले, ‘‘हैलो.’’

आवाज सुनते ही दूसरी तरफ से फोन कट हो गया.

‘‘शायद किसी से रौंग नंबर लग गया होगा,’’ ताऊजी बड़बड़ाए और सो गए.

दूसरे दिन कविता की मौसी के घर में जागरण था. वह सुबह ही वहां  अपनी बहनों के साथ चली गई. सारा दिन उन्होंने जागरण की तैयारियों में मौसी की सहायता की और पूरी रात जागरण चला. बीचबीच में उस का ध्यान मोहित की तरफ जा रहा था.

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अगले दिन सुबह उठते ही उस ने मौसी का फोन लिया और छत पर जा कर मोहित को फोन किया.

‘‘हैलो, मोहित.’’

‘‘अरे कहां रह गईं तुम? हद है यार, एक फोन तक नहीं कर सकती थीं क्या? कहां थीं तुम?’’ मोहित बोलता गया.

‘‘मोहित, मैं ने फोन तो किया.’’

‘‘क्या खाक किया? मैं ने मंगलवार को तुम्हारे नंबर पर फोन किया था, शायद तुम्हारे पापा ने फोन उठाया था.’’

‘‘क्या…’’ कविता के मुंह से चीख सी निकल पड़ी.

‘‘कब किया तुम ने बेवकूफ, वह मेरे ताऊजी का फोन है. दूसरी बार मत करना, तुम मुझे मरवाओगे.’’

‘‘कविता, अपना नंबर दो,’’ मोहित बोला.

‘‘मेरा नंबर, मेरे पास तो फोन ही नहीं है.’’

‘‘ओह,’’ मोहित के मुंह से निकला, ‘‘क्या तुम आज कसबे में आ सकती हो?’’

‘‘क्यों?’’

‘‘आ सकती हो क्या?’’ वह बिना उत्तर दिए बोला.

कविता सोचने लगी फिर बोली, ‘‘आज तो नहीं पर कल आ सकती हूं.’’

‘‘ठीक है, राजू चाय वाले के ढाबे के बाहर सुबह 9 बजे मिलना, ठीक है?’’

‘‘ठीक है,’’ कविता बोली.

कविता ने यह सोचते हुए रात गुजारी कि मोहित को क्या काम होगा. उस का भी मोहित से मिलने का बहुत मन था. सुबह उठ कर कविता ने मम्मी से कहा, ‘‘मम्मी, मुझे मेहंदी और अपना कुछ सामान लाना है, मुझे पैसे दे देना. मैं 8.30 बजे की बस में जाऊंगी.’’

‘‘पापा से मांग ले जितने की जरूरत है और घर जल्दी आ जाना.’’

‘‘ठीक है.’’

तैयार हो कर कविता बड़ी देर तक शीशे के आगे खुद को निहारती रही. उस ने सफेद रंग का सूट पहना, बालों को खुला छोड़ा, पर्स लिया और बस पकड़ कर राजू के सामने उतर गई. 9 बज कर 10 मिनट हो चुके थे पर मोहित कहीं नहीं दिख रहा था. तभी उसे कार का हौर्न सुनाई दिया. देखा, मोहित कार चला रहा था और उस ने ढाबे से थोड़ा आगे कार रोक दी.

मोहित ने दरवाजा खोला, ‘‘कविता, बैठो.’’

कविता निसंकोच बैठ गई, ‘‘और कैसी हो?’’

‘‘ठीक हूं, तुम कैसे हो?’’

‘‘मैं ठीक नहीं हूं,’’ मोहित ने मुसकरा कर कहा तो कविता शरमा सी गई.

‘‘कविता, तुम्हारे लिए कुछ है, यह बैग उठाओ और खोलो.’’

‘‘क्या है?’’

‘‘खोलो और खुद ही देख लो,’’ कविता ने बैग खोला. उस में मोबाइल फोन था.

‘‘फोन, पर मैं इसे नहीं रख सकती, मम्मीपापा गुस्सा करेंगे.’’

‘‘मम्मीपापा को बताने को कौन कह रहा है. छिपा कर रखना. मैं रात को फोन किया करूंगा.’’

कविता ने ज्यादा नानुकुर नहीं की. वह बहुत खुश थी. मोहित के साथ वाली सीट पर बैठेबैठे कविता के सिर में झुरझुरी हो रही थी. उसे लग रहा था जैसे वह पिघल रही है.

‘‘मोहित, कार को वापस बस स्टैंड ले चलो, मुझे घर जाना है, रात को बात करेंगे.’’

‘‘जल्दी क्या है, थोड़ी देर बाद

चली जाना.’’

‘‘नहीं, मम्मी गुस्सा करेंगी.’’

मोहित ने कविता के मुंह पर गिरे बालों को गाड़ी चलातेचलाते अपने हाथ से पीछे किया. अब तो कविता का बुरा हाल था. मोहित का स्पर्श उसे अंदर तक करंट लगा गया. वह कुछ नहीं बोल सकी. मोहित ने उस की झुकी नजरें और शर्माता चेहरा देखा. उसे वह बहुत ही अच्छी लग रही थी. उस ने उसे बस स्टौप तक छोड़ा.

दोनों ने मुसकरा कर एकदूसरे से विदा ली.

अब दोनों के बीच फोन का दौर शुरू हो गया. 2 महीने कब बीत गए, उन्हें पता ही नहीं चला. घर में कविता के फोन की किसी को खबर तक न हुई. दोनों रातभर बातें करते. कालेज में ऐडमिशन शुरू हो गए थे. कविता और उस की बाकी सहेलियों ने भी ऐडमिशन ले लिए थे.

काफी दिनों बाद दोनों मिलने वाले थे, रोज फोन पर बात करने के बाद भी उन को एकदूसरे से मिलनेदेखने की ललक थी. कविता और मीनू ने साइंस और बाकी सहेलियों ने कौमर्स. मोहित ने भी साइंस में ऐडमिशन लिया. कुछ दिनों बाद मीनू की घर में गिरने से टांग की हड्डी टूट गई. वह 2 महीने कालेज न जा सकी. इस बात का फायदा कविता और मोहित ने पूरापूरा उठाया. मोहित कार ले कर आता. दोनों कालेज से बंक मार कर घूमने चले जाते. उम्र के इस मोड़ पर दोनों को बहकने में देर न लगी. कविता, मोहित पर खुद से ज्यादा यकीन करने लगी थी.

समय बीतता गया. एक दिन मोहित उस को घुमाने ऐसी जगह ले गया जहां जंगल था. दोनों गाड़ी से उतरे और फिर मोहित ने उस की पीठ पर हाथ रखा. कविता को करंट सा लगा, साथ में कुछ अच्छा भी लगा. वह मोहित पर विश्वास करती थी. मोहित उस के शरीर के विभिन्न हिस्सों को छूने लगा. अब तो हद हो गई. फिर मोहित ने कुछ ऐसा किया कि कविता ने कहा, ‘‘मोहित, ऐसा न करो प्लीज.’’

‘‘कुछ नहीं होगा, कविता मेरा विश्वास करो, मैं सिर्फ तुम्हीं से शादी करूंगा. क्या तुम्हें मेरा भरोसा नहीं?’’

कविता मोहित के गले लग गई. शायद दोनों के कदम बहकने के लिए इतना काफी था. दोनों का जीवन बदल गया. ऐसी मुलाकातों का सिलसिला चलता रहा. अब तो मोहित उसे होटलों में ले कर जाता. 3 साल तक यह सिलसिला चलता रहा. अब वे एकदूसरे के बिना रह नहीं पाते थे.

मोहित के मांबाप को कविता पसंद थी और वे दोनों की शादी के लिए राजी हो गए. वे मोहित की खुशी में खुश थे. दोनों को अब कोई डर न रहा.

कुछ समय के बाद मोहित का लैपटौप खराब हो गया. उस ने उसे चंडीगढ़ भेजा. कुछ दिनों में उस का लैपटौप ठीक हो गया. मोहित के पापा ने उसे ला की पढ़ाई करने के लिए चंडीगढ़ भेजने का निर्णय लिया. कविता का मन दुखी हो गया तो मोहित ने कहा कि तुम भी चल पड़ो. उन्होंने झूठमूठ की जौब का बहाना बनाया. कविता ने जैसेतैसे अपने मम्मीपापा को मना लिया. उस के परिवार ने पहले तो आनाकानी की फिर सैलरी पैकेज अच्छा देख कर भेजने की स्वीकृति दे दी. वहां दोनों साथ रहने लगे. इसी दौरान एक दिन मोहित के कालेज में एक लड़के ने उसे टौंट मारी, ‘‘यार, तुम तो बहुत छिपेरुस्तम निकले. क्या मजे लिए, कौन है यह लड़की, हमें भी मिलाओ कभी.’’

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मोहित समझ न सका कौन सी लड़की की बात उस का दोस्त कर रहा है. उस ने अपनी भौंहें सिकोड़ते हुए पूछा,

‘‘कौन लड़की?’’

‘‘वही लड़की जिस के साथ तुम…’’

‘‘अरे, क्यों मसखरी कर रहा है. कोई लड़कीवड़की नहीं. तू भी न, ऐसे ही बोले जा रहा है.’’

‘‘अच्छा, तो यह कौन है, निकुल के फोन में?’’ कविता और मोहित के एमएमएस का पूरा जखीरा था. उस के पैरों तले जमीन खिसक गई.

उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘यह तुम्हें कहां से मिला?’’

निकुल ने कहा, ‘‘यार, यह कालेज के हर एक लड़के के पास है और सुनने में आया है कि दिल्ली, चंडीगढ़, मंडी में इस की बहुत डिमांड है.’’

मोहित का हाल देखने लायक था. वह पसीने से तरबतर हो गया. पसीना पोंछ कर वह जैसेतैसे कालेज से निकला और सीधा कविता के पास गया. सारी बातें सुन कर कविता रोने लगी कि अब क्या होगा. मोहित ने कहा कि फिक्र मत करो. मैं तुम से ही शादी करूंगा लेकिन अब यहां रहना ठीक नहीं. दोनों ने घर वापस जाने का मन बनाया. दोनों ने अपनाअपना सामान पैक किया और घर से निकल पड़े. कविता बहुत डरी हुई थी.

यह क्या हो गया. फिर पता चला जहां लैपटौप ठीक करने को दिया था वहां से उन के ये कारनामे लीक हुए थे. पर अब क्या किया जा सकता था. घर जा कर मोहित ने शादी का प्रस्ताव रखा. सभी खुशी से रिश्ता ले कर कविता के घर गए. बात पक्की हुई, शादी की तारीख तय हुई लेकिन उन के प्यार को शायद उन की अपनी ही नजर लग गई. 2 दिन बाद वह मार्केट में खड़ा था, उस का दोस्त मुकेश लपक कर उस के पास आया और बोला, ‘‘मोहित, यार, भाभी के साथ शादी के पहले काफी मस्ती की तू ने.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘भोले मियां, तुम्हारा मस्ती भरा एमएमएस सारे कसबे के लड़कों के फोन में पहुंच चुका है.’’

मोहित को अब एहसास हुआ कि सभी उस की तरफ अजीब सी नजरों से क्यों देख रहे थे. मोहित के पिता तक बात पहुंची, उन्होंने शादी से मना कर दिया. फिर भी मोहित अपनी बात पर अडिग था. उस ने कविता से कोर्ट मैरिज कर ली पर अब वे कहीं आजा नहीं सकते थे. सभी ने उन का मजाक उड़ाया. उसे अपना भविष्य अंधकारमय होता दिख रहा था और कुछ ही दिनों में उस ने कविता से तलाक ले लिया.

कविता न घर की रही न घाट की, क्योंकि वह न घर जा सकती थी और न कहीं और. उस ने अपनी खुशियों के महल को स्वयं धराशायी होते देखा. वह पूरी तरह से टूट गई और खुद की नजरों से गिर गई. वह खुद को ऐसी सजा देना चाहती थी कि वह हर दिन एक मौत

मरे क्योंकि उसे प्यार करने वाला मोहित भी उस के पास न था. उस ने सोचा, लड़कों का क्या जाता है, बदनाम तो लड़कियां होती हैं. लड़के तो इतना होने पर भी सिर उठा कर चलते हैं पर लड़कियां कहां जाएं. उन को समाज जीने नहीं देता.

कविता की एक गलती से उस के परिवार की बहुत बदनामी हुई.

कई दिनों तक उस के मातापिता घर से बाहर नहीं निकले. कई बड़ेबुजुर्गों ने उन्हें समझाया, हिम्मत दी तब कहीं जा कर वे घर से बाहर निकले. जिन की कविता के परिवार वालों से नहीं बनती थी वे अपने घरों में ‘मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए…’ गाना जोरजोर से बजाते थे. पर अब कविता का परिवार करता भी तो क्या. उन की बच्ची की एक गलती ने उन्हें अंदर तक तोड़ कर रख दिया था. और लोग धीरेधीरे यह बात भूल से गए.

2 करोड़ की प्रेमिका

उस दिन नए साल का पहला दिन था यानी 1 जनवरी, 2018. लोग नए साल का स्वागत कर रहे थे. सूरत के कामरेज थानाक्षेत्र के टिंबा गांव का करोड़पति प्रीतेश पटेल भी अपने दोस्तों के साथ नए साल के आगमन की खुशियां मना रहा था. उस के खास दोस्तों में सब से महत्त्वपूर्ण थी मुंबई की मौडल और बार डांसर ज्योति सुरजीत सिंह उर्फ निशा ज्योति. कभी मौडल रह चुकी ज्योति मुंबई की मशहूर बार डांसर बन गई थी. प्रीतेश और ज्योति दोनों एकदूसरे को प्यार करते थे.

प्रीतेश पटेल के निमंत्रण पर ज्योति, उस का ड्राइवर संदीप सिंह और संदीप की पत्नी निकिता सिंह मुंबई से टिंबा घूमने आए थे. उन के आगमन से प्रीतेश बेहद खुश था, क्योंकि उस की प्रेयसी ज्योति पहली बार उस के घर आई थी.

स्वागत और खातिदारी के बाद प्रीतेश पटेल ने उन लोगों को अपनी केले की खेती दिखाने को कहा तो वे खुशीखुशी तैयार हो गए. उस समय दिन के 11 बजे थे. प्रीतेश की केले की फसल कई एकड़ में थी. केले के व्यवसाय से ही वह करोड़पति बना था.

दोस्तों के तैयार होने के बाद प्रीतेश ने घूमने जाने के लिए अपनी सफेद रंग की कार निकाली. उस ने ड्राइविंग सीट संभाली तो ज्योति उस के साथ आगे की सीट पर बैठ गई, जबकि संदीप और उस की पत्नी निकिता पीछे की सीट पर बैठे. कच्ची सड़क से होते हुए वे कुछ ही देर में खेतों पर पहुंच गए.

खेतों पर पहुंच कर प्रीतेश ने संदीप और निकिता को वहीं उतार दिया. ज्योति को उस ने यह कह कर कार से नीचे नहीं उतरने दिया कि थोड़ा आगे जा कर मोड़ से कार टर्न कर के लाएगा.

कार जैसे ही मोेड़ से टर्न हुई, ज्योति के मुंह से एक दर्दनाक चीख निकली. उस की चीख सुन कर संदीप और निकिता हैरान रह गए. दोनों उस दिशा की ओर लपके, जिधर से चीखें आई थीं. मोड़ के पास पहुंच कर अचानक दोनों के पांव जड़ हो गए.

वहां का हृदयविदारक दृश्य देख कर दोनों के मुंह से चीख निकल गई. कार एक ओर खड़ी थी, जबकि केले के खेत में बैठे प्रीतेश के हाथों में केला काटने वाला हंसिया था, जो खून में डूबा था. उस के कपड़े भी खून से तर थे. ज्योति का सिर धड़ से अलग पड़ा था. मतलब प्रीतेश ने धारदार हंसिया से ज्योति की हत्या कर दी थी. दोनों की चीख सुन कर प्रीतेश उन की ओर लपका तो डर के मारे संदीप और निकिता की घिग्घी बंध गई और वे वहां से उल्टे पांव भाग खड़े हुए. दोनों सीधे कामरेज थाना जा कर रुके.

थाने के पीआई किरण सिंह चुड़ासमा दफ्तर में  मौजूद थे. हांफते हुए संदीप और निकिता ने उन के कक्ष मे प्रवेश किया तो उन्होंने सामने पड़ी कुर्सियों की ओर इशारा कर के बैठने को कहा. थानेदार चुड़ासमा समझ गए थे कि दोनों जरूर किसी बड़ी मुसीबत में हैं और दौड़ कर वहां पहुंचे हैं. थानेदार किरण सिंह ने संदीप की ओर मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘हां, बताइए क्या बात है और इस तरह हांफ क्यों रहे हैं?’’

‘सर, मैं संदीप सिंह हूं और यह मेरी पत्नी निकिता. हम पंजाब के भटिंडा के रहने वाले हैं और अपनी मालकिन ज्योति के साथ मुंबई घूमने आए थे.’’ संदीप ने अपना परिचय दिया.

‘‘आगे बताइए?’’

‘‘27 दिसंबर, 2017 को ज्योति मैडम के बौयफ्रैंड प्रीतेश का जन्मदिन था. मुंबई घूमने के बाद 31 दिसंबर की रात प्रीतेश साहब हमें अपने गांव टिंबा घुमाने लाए. आज सुबह वह हमें अपनी कार में बिठा कर अपने केले के खेत दिखाने ले गए. खेत में पहुंचने के बाद उन्होंने मुझे और निकिता को कार से नीचे उतार दिया.’’ इस के बाद संदीप ने किरण सिंह चुड़ासमा को ज्योति के हत्या की बात बता दी.

हकीकत जान कर थानाप्रभारी चुड़ासमा भी हैरत में रह गए

ज्योति की हत्या की बात सुन कर थानेदार चुड़ासमा कुर्सी छोड़ कर खड़े हो गए और पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. घटनास्थल थाने से करीब 7-8 किलोमीटर दूर था. अचानक गांव में पुलिस को आया देख कर गांव वाले हैरान रह गए. वे समझ नहीं पाए कि अचानक ऐसा क्या हो गया, जो पुलिस आई है.

पुलिस की जीप गांव के बाहर रुक गई. जीप से उतर कर पुलिस सीधे केले के खेतों की ओर बढ़ी, जहां ज्योति की सिर कटी लाश पड़ी थी. पुलिस के पीछेपीछे गांव वाले भी आ गए थे. केले के खेत में पड़ी सिरकटी लाश देख कर गांव वाले हैरान रह गए. घटनास्थल से थोड़ी दूरी पर आड़ीतिरछी स्विफ्ट कार खड़ी थी.

मृतक लड़की गांव या आसपास के इलाके की नहीं थी. चेहरेमोहरे और पहनावे से वह किसी बडे़ घर की लग रही थी. लाश देख कर पुलिस भी हैरत में रह गई. इसी बीच पुलिस को सूचना मिली कि एक युवक जिस के कपड़े खून से सने हैं, वह गांव की ओर भागा जा रहा है. इस सूचना पर विश्वास कर के थानेदार किरण सिंह चुड़ासमा जीप ले कर गांव की ओर रवाना हुए. सफेद रंग की टीशर्ट और काली पैंट पहने एक युवक गांव से शहर की ओर भाग रहा था.

पुलिस की जीप देख कर उस की चाल तेज हो गई. युवक को भागते देख पुलिस ने उसे दौड़ा कर धर दबोचा. उस की सफेद टीशर्ट सामने से खून से सनी थी. पुलिस उस युवक को पकड़ कर थाने ले आई. लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया गया था. पुलिस ने मौके से मिली खून सनी हंसिया और खून सनी मिट्टी को बतौर साक्ष्य कब्जे में ले लिया था.

कड़ाई से पूछताछ करने पर युवक ने अपना नाम प्रीतेश पटेल बताया. उस ने बताया कि उसी ने धारदार हंसिया से अपनी पे्रमिका ज्योति सुरजीत सिंह उर्फ निशा ज्योति का कत्ल किया है. उस ने कत्ल की वजह उस के द्वारा की गई बेवफाई को बताया. बाद में उस ने पूरी घटना तफ्सील से बयान की.

22 वर्षीया ज्योति सुरजीत सिंह उर्फ निशा ज्योति मूलरूप से पंजाब के बठिंडा की रहने वाली थी. खूबसूरत ज्योति मौडल बनना चाहती थी. मांबाप भी बेटी का सपना पूरा करने के लिए तैयार थे. इंटरमीडिएट तक पढ़ाई कर के ज्योति ने पढ़ाई छोड़ दी और मौडल बनने के लिए मायानगरी मुंबई चली गई.

ज्योति ने मुंबई में अपने एक परिचित के घर रह कर मौडलिंग की दुनिया में पांव जमाने की कोशिश की, लेकिन उसे मनचाही सफलता नहीं मिली. फिर भी ज्योति ने हिम्मत नहीं हारी.

मौडलिंग की दुनिया से निराश ज्योति एक बार में डांस का काम करने लगी. उसे भीमराव रोड स्थित एक बार में डांसर की नौकरी मिल गई थी. कमसिन ज्योति की अदाओं ने लोगों पर ऐसा जादू चलाया कि उस की एक थिरकन पर नोटों की बरसात होने लगती. इस के बाद उस ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.

प्रीतेश अमीर बाप का बेटा था, पैसे के नशे में डूबा हुआ

गांव टिंबा के रहने वाले 30 वर्षीय प्रीतेश पटेल के पिता विदेश में रह कर नौकरी करते थे. विदेश की कमाई से ही उन्होंने करोड़ों की संपत्ति अर्जित की थी. गांव में प्रीतेश का जलवा था, उस के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. वह मांबाप का एकलौता बेटा था. मातापिता का जो कुछ भी था, उसी का था. इसलिए वह यारदोस्तों पर पानी की तरह पैसा बहाता था.

प्रीतेश शादीशुदा था. प्रीतेश के पिता जब भी विदेश से सूरत आते थे, उन्हें मुंबई एयरपोर्ट पर उतरना पड़ता था. मुंबई से प्रीतेश उन्हें अपनी स्विफ्ट डिजायर कार से टिंबा ले आता था. जब वह विदेश वापस जाते तब भी वह उन्हें मुंबई एयरपोर्ट तक छोड़ने जाता था.

प्रीतेश जब भी पिता को मुंबई पहुंचाने जाता, मनोरंजन के लिए बार डांस क्लब जरूर जाता. जब पहली बार उस ने स्टेज पर थिरकती ज्योति को देखा तो उस की कमसिन जवानी उस की आंखों में बस गई. छरहरे बदन की खूबसूरत ज्योति रंगीन रोशनी की लहरों के बीच किसी हूर सी लग रही थी. वह पहली ही नजर में प्रीतेश के दिल की गहराइयों में उतर गई. उस दिन तो वह घर वापस लौट आया, लेकिन उस दिन के बाद ज्योति के दीदार के लिए वह बुरी तरह छटपटाने लगा. सोतेजागते, उठतेबैठते उस की आंखों के सामने ज्योति का सलोना चेहरा नाचता रहता था.

प्रीतेश ज्योति के दीदार के लिए अकसर मुंबई आनेजाने लगा. वह बार में बैठा ज्योति को अपलक निहारता रहता. उस पर पानी की तरह पैसा बहाता. इस बीच ज्योति की निगाह जब भी प्रीतेश से टकराती, वह दांतों तले होंठ दबा कर मुसकरा देती. ज्योति कई दिनों से देख रही थी कि वह जब भी आता है तो उसे आशिकी भरी निगाहों से निहारता है.

ज्योति की कातिल निगाहों से घायल प्रीतेश पटेल ने बार डांसर का नाम पता किया. उस के बाद प्रीतेश ज्योति तक पहुंच गया. धीरेधीरे दोनों में परिचय हुआ. यह परिचय पहले दोस्ती में बदला, फिर यह दोस्ती प्यार में बदल गई. प्रीतेश जब मुंबई आता, ज्योति से जरूर मिलता. यही नहीं उस पर लाखों रुपए उड़ा देता.

महत्वाकांक्षी ज्योति बार डांसर थी. उसे किसी की भावनाओं से कोई सरोकार नहीं था. उस का दीनईमान केवल पैसा था. वह इतना पैसा कमाना चाहती थी कि जीवन ठाठ से गुजरे. प्रीतेश के रूप में उसे सोने का अंडा देने वाली मुर्गी मिल गई थी. वह जो भी फरमाइश करती, प्रीतेश उसे पूरी करने से पीछे नहीं हटता.

ज्योति और प्रीतेश को मिलते और एकदूसरे से प्यार करते करीब डेढ़ साल बीत गया. वह शादीशुदा था, यह अलग बात है. हालांकि उस ने ज्योति से कुछ नहीं छिपाया था. ज्योति को उस के शादीशुदा होने से कोई ऐतराज भी नहीं था. प्रीतेश की हकीकत जान कर पीछे हटने के बजाय वह उस पर और भी ज्यादा मरमिटने लगी थी.

प्रीतेश और ज्योति की प्रेम कहानी

एक दिन प्रीतेश ज्योति से मिलने मुंबई गया था. वह उसे ले कर काफी संजीदा था. उसे ले कर कई दिनों से उस के मन में एक सवाल उथलपुथल मचा रहा था. सवाल था उसे अपनी बनाने का. मौका देख कर आखिर उस ने अपने मन की बात ज्योति से कह दी, ‘‘ज्योति, तुम्हें लेकर मेरे मन में कई दिनों से एक सवाल उथलपुथल मचाए हुए है. मैं अपने मन की बात कह कर मन हल्का करना चाहता हूं.’’

‘‘तो कह डालो, मना किस ने किया है. मन की बात मन में रखने से मन और दिल दोनों पर बोझ बढ़ता है. समझे मिस्टर लल्लू.’’ ज्योति अदा के साथ बोली.

‘‘पता नहीं, मुझे ले कर तुम्हारे मन में कैसी फीलिंग होती है, पर मैं तुम्हें ले कर एकदम संजीदा हूं.’’ कहतेकहते प्रीतेश गंभीर हो गया.

‘‘यह तो तुम्हारी बातों से ही झलकता है. अब बता भी दो प्रीतेश, तुम क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘मैं तुम से शादी करना चाहता हूं ज्योति. जब से तुम्हें देखा है, मेरी रातों की नींद और दिन का चैन सब हराम हो गया है. मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकता.’’ हिम्मत जुटा कर प्रीतेश ने अपने मन की बात कह दी. उस की बात सुन कर ज्योति गंभीर हो गई.

वह कुछ नहीं बोली तो प्रीतेश ने आगे कहा, ‘‘जितना तुम से दूर जाने के बारे में सोचता हूं, उतना ही खुद को तुम्हारे करीब पाता हूं.’’ प्रीतेश की यह बात सीधे ज्योति के दिल में घर कर गई.

‘‘दोबारा ऐसा मत कहना.’’ ज्योति ने प्रीतेश के होंठों पर अंगुली रख दी, फिर बोली, ‘‘मैं भी तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकती प्रीतेश. बहुत प्यार करती हूं तुम से. लेकिन क्या है कि हमारे रास्ते में एक बाधा है.’’ ज्योति उस की आंखों में झांकते हुए बोली.

‘कैसी बाधा?’’

‘‘तुम यह भूल रहे हो कि घर में तुम्हारी पत्नी भी है. उस के रहते हम दोनों कभी एक नहीं हो सकते. उस का क्या करोगे तुम?’’

प्रीतेश ज्योति का चेहरा दोनों हाथों में समेट कर बोला, ‘‘तुम शादी करने के लिए तैयार हो तो मैं उसे तलाक दे दूंगा.’’

‘‘सच में तुम ऐसा कर सकते हो?’’

‘‘तुम्हें मेरी बातों पर यकीन नहीं है.’’

‘पूरा यकीन है. तुम जो कहते हो उसे करते भी हो. तुम्हारी यही अदा तो मुझे भा गई थी, जो तुम से दिल लगा बैठी.’’

‘‘वैसे भी वाइफ को मेरे और तुम्हारे रिश्तों के बारे में पता चल चुका है. इसे ले कर घर में हम दोनों के बीच आए दिन झगड़े होते हैं. मैं ने उसे साफ कह दिया है कि मैं तुम्हें तलाक दे कर ज्योति से शादी कर लूंगा.’’

‘‘तो ठीक है. बात जब यहां तक पहुंच चुकी है तो मैं तुम से शादी करने के लिए तैयार हूं. पर एक शर्त है?’’

‘‘कैसी शर्त?’’

‘‘यही कि तुम पहले उसे तलाक दोगे. फिर मैं तुम से शादी करूंगी.’’

‘‘ठीक है, मुझे तुम्हारी यह शर्त मंजूर है. मैं पत्नी से तलाक ले कर ही तुम से शादी करूंगा. लेकिन मेरी भी एक शर्त है, जिसे तुम्हें मानना होगा.’’

‘‘कैसी शर्त?’’

‘‘यही कि तुम्हें बार डांसर की नौकरी छोड़नी होगी.’’

‘‘मेरे खर्चे कैसे चलेंगे?’’ कहते हुए ज्योति चिंतित दिखाई दी.

‘‘उस की चिंता तुम्हें करने की जरूरत नहीं है. मैं तुम्हारा पूरा खर्चा उठाऊंगा.’’

‘‘मैं तैयार हूं.’’ ज्योति ने उत्साह से कहा.

उस के बाद दोनों भविष्य की योजनाओं पर घंटों बातें करते रहे. उस के बाद प्रीतेश मुंबई से अपने घर लौट आया. ज्योति को ले कर प्रीतेश और उस की पत्नी के वैवाहिक जीवन में वाकई खटास आ चुकी थी. इसे ले कर दोनों के बीच रोजरोज झगडे़ होते थे. प्रीतेश की पत्नी को यह कतई मंजूर नहीं था कि उस के सिंदूर का बंटवारा हो. वह प्रीतेश पर ज्योति से रिश्ते तोड़ने के लिए दबाव डालती रहती थी. यह बात प्रीतेश को पसंद नहीं थी, इसलिए उस ने पत्नी को तलाक देने का फैसला कर लिया था.

ज्योति की बेवफाई ने तोड़ दिया प्रीतेश को

दूसरी ओर ज्योति मुंबई छोड़ कर बठिंडा स्थित अपने घर लौट आई. ज्योति के मुंबई से बठिंडा लौट जाने के बाद प्रीतेश ने उसे बतौर तोहफा बठिंडा में 2 करोड़ रुपए का एक आलीशान फ्लैट खरीद कर दिया. उस फ्लैट में सुखसुविधाएं के सारे साधन थे. यह जनवरी, 2017 की बात है.

अपने पति और ज्योति के संबंधों की बात प्रीतेश की पत्नी से छिपी नहीं थी. जब उसे पति की इस हरकत के बारे में पता चला तो वह आगबबूला हो गई. किसी भी पत्नी के लिए यह बरदाश्त के बाहर की बात थी. इसे ले कर पतिपत्नी के बीच खूब झगड़े होने लगे. इस झगड़े से आजिज आ कर वह प्रीतेश को छोड़ कर हमेशाहमेशा के लिए अपने मायके चली गई.

प्रीतेश यही चाहता भी था, वह ज्योति से शादी कर के उसे अपने घर में रख सके. वह अपने मकसद में कामयाब हो गया था. अंतत: जुलाई, 2017 में उस ने पत्नी को तलाक दे दिया. अब उस के रास्ते का कांटा हमेशाहमेशा के लिए निकल गया था.

कहते हैं, जब मनुष्य के विनाश की भूमिका बंधती है तो उस की बुद्धि काम करना बंद कर देती है. प्रीतेश के साथ भी यही हुआ. पत्नी को तलाक देने के बाद प्रीतेश 6 महीने घर नहीं आया. वह मुंबई में यहांवहां दोस्तों के घर रह कर समय बिताता रहा. बीचबीच में ज्योति प्रीतेश से मिलने बठिंडा से मुंबई आती और कुछ समय उस के साथ बिता कर वापस बठिंडा लौट जाती.

इस बीच प्रीतेश ने महसूस किया कि ज्योति में काफी बदलाव आ गया है. अब उस में पहले जैसा प्यार नहीं झलकता. यह देख प्रीतेश का माथा ठनका. उस ने सोचा कि कहीं ज्योति ने अपना इरादा तो नहीं बदल दिया. जबकि उस की वजह से ही उस ने अपनी बसीबसाई गृहस्थी में आग लगा दी थी.

प्रीतेश ने ज्योति पर जो शक किया था, वह गलत नहीं था. जब उसे पता चला कि ज्योति ने उसे अंधेरे में रख कर धोखा दिया है तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. ज्योति बठिंडा के रहने वाले गौरव भट्टी से प्यार करने लगी थी. यह बात उस ने प्रीतेश से छिपा ली थी. लेकिन प्रीतेश को कहीं से यह पता चल गया. प्रीतेश ने ज्योति को समझाया कि वह जो कर रही है, ठीक नहीं है. उसे बरबाद कर के वह चैन से नहीं रह सकेगी.

ज्योति ने प्रीतेश के सामने यह मान लिया कि उस के गौरव भट्टी से मधुर संबंध बन गए हैं, पर वह चिंता न करे. कुछ महीनों में वह गौरव से संबंध तोड़ लेगी और हमेशाहमेशा के लिए उस के पास आ जाएगी. लेकिन प्रीतेश इस के लिए तैयार नहीं था. वह चाहता था कि ज्योति गौरव से तुरंत रिश्ता खत्म कर ले और उस के पास आ जाए. दूसरी ओर ज्योति उसे आश्वासन पर आश्वासन दिए जा रही थी. वह प्रीतेश से दूर हो कर गौरव के करीब जा चुकी थी.

गौरव प्रीतेश से भी अमीर बाप का बेटा था. ज्योति यह बात अच्छी तरह जान चुकी थी कि प्रीतेश के पास ज्यादा कुछ नहीं बचा है, इसलिए उस ने उस से मुंह मोड़ लिया था. प्रीतेश को यह बात सहन नहीं हुई. उस ने ज्योति से इस धोखे और छल का बदला लेने की ठान ली. 27 दिसंबर, 2017 को प्रीतेश पटेल का जन्मदिन था. उस ने ज्योति को फोन कर के उसे जन्मदिन की पार्टी में मुंबई आने को कहा तो उस ने मुंबई आने के लिए हां कर दी.

27 दिसंबर को ज्योति अपने ड्राइवर संदीप सिंह और उस की पत्नी निकिता के साथ बठिंडा से कार से मुंबई पहुंची. प्रीतेश मुंबई में ही एक होटल में ठहरा था. चारों ने होटल में ही धूमधाम से प्रीतेश के जन्मदिन की पार्टी का लुत्फ लिया.

इस पार्टी में प्रीतेश ने करीब 3 लाख रुपए खर्च किए. उस ने ज्योति को कई तोहफे भी खरीद कर दिए. 4 दिनों तक सब मुंबई में रुके रहे. 31 दिसंबर, 2017 को प्रीतेश ने ज्योति से अपने गांव टिंबा चलने को कहा तो ज्योति तैयार हो गई. उसी रात चारों मुंबई से सूरत के लिए रवाना हो गए. उसी रात वे टिंबा पहुंच गए.

अगले दिन नए साल का पहला दिन था, यानी 1 जनवरी, 2018. प्रीतेश बहुत खुश था. उस की खुशी का कारण यह था कि उस का प्यार यानी ज्योति पहली बार टिंबा स्थित उस के घर आई थी. सुबह को प्रीतेश ने ज्योति से कहा कि वह उन लोगों को अपनी केले की खेती दिखा कर लाएगा. इस के लिए तीनों तैयार हो गए.

प्रीतेश ने अपनी सफेद रंग की कार निकाली और उन तीनों को अपनी केले की खेती दिखाने ले गया. केले के खेतों पर पहुंच कर प्रीतेश ने ज्योति के ड्राइवर संदीप सिंह और उस की पत्नी निकिता को खेतों के पास उतार दिया और कार ले कर आगे बढ़ गया. दरअसल, प्रीतेश ने महसूस किया था कि पिछले 4 दिनों से ज्योति भले ही उस के साथ थी, लेकिन उस से बातें कम करती थी और मोबाइल पर चैटिंग ज्यादा.

जिसे प्यार किया उसी के खून से रंग लिए हाथ

वह जिस से चैटिंग कर रही थी, वह गौरव भट्टी ही था. प्रीतेश उसे चैटिंग करने से मना करता था, पर ज्योति उस की बातों पर ध्यान नहीं दे रही थी. उस ने ज्योति को समझाया था कि वह गौरव से बात न करें और उस से रिश्ता तोड़ ले. इस पर ज्योति ने वही जवाब दिया, जो पहले दे चुकी थी कि 2 महीने बाद उस से रिश्ते खत्म कर लेगी.

यह सुन कर प्रीतेश का माथा गरम हो गया. उस ने गुस्से में कहा,‘‘ज्योति, तुम्हारे प्यार में मैं ने सब कुछ लुटा दिया. तुम्हारे लिए मैं ने 2 करोड़ रुपए पानी की तरह बहा दिए. पत्नी से तलाक तक ले लिया, जबकि तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा किया. मुझे बरबाद कर के अब तुम किसी और की बनने की सोच रही हो, यह अच्छी बात नहीं है. या तो तुम मेरी बात मान लो और उस से दूर हो जाओ, नहीं तो मैं तुम्हें जान से मार दूंगा.’’

प्रीतेश ने कार में जाते हुए भी प्रीति को समझाया. लेकिन बारबार समझाने के बावजूद कार में बैठी ज्योति मोबाइल पर चैटिंग में जुटी थी. उस ने प्रीतेश की बातें अनसुनी कर दी थी.

इस से प्रीतेश के सब्र का बांध टूट गया. उस ने आव देखा न ताव, उसे कार से खींच कर बाहर निकाला. फिर उसे केले के खेत में ले गया और जमीन पर पटक दिया. वहीं केले काटने वाला धारदार हंसिया पड़ा था. खेत में मजदूर काम कर रहे थे, लेकिन कुछ देर के लिए वे कहीं चले गए थे.

गुस्से में प्रीतेश ने हंसिया उठाया और उस की गर्दन पर जोरदार प्रहार किया. ज्योति का सिर धड़ से अलग हो गया. वह जमीन पर गिर कर शांत हो गई. जब तक उस का गुस्सा ठंडा हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. जिस पर वह जान छिड़कता था, उसी के खून से उस ने अपने हाथ रंग लिए थे.

अब उसे जेल की सलाखें नजर आ रही थीं. पुलिस से बचने के लिए प्रीतेश मौके से भागने लगा, लेकिन वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

कथा लिखे जाने तक वह जेल में बंद था. अपने किए पर उसे मलाल था कि उस के हाथों 2 गुनाह हो गए. पत्नी भी छोड़ कर चली गई और प्रेमिका ने भी धोखा दे दिया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधार

सोशल मीडिया में मुफ्तखोरी का ढिंढोरा कितनी हकीकत कितना फसाना ?

अगर किसी के दिमाग में आम लोगों के प्रति जन्म से ही घृणा भरी हो और दुर्भाग्य से उसे तमाम व्यवहारिक बातों की जानकारी या समझ भी न हो तो यह स्थिति उसे ‘करेले में नीम’ चढ़ने वाली बना देती है. 11 फरवरी 2020 को सुबह 10:30 बजे के आसपास जैसे ही दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजों का रूझान करीब-करीब स्थिर हुआ और यह माना जाने लगा कि तीसरी बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी जबरदस्त बहुमत हासिल करने जा रही है, उसी समय से सोशल मीडिया में दिल्ली के मतदाताओं के लिए लोगों की घृणा और खिसियाहट उबलने लगी. कहा जाने लगा कि दिल्ली के मतदाता भिखारी हैं, मुफ्तखोर हैं. उन्होंने अरविंद केजरीवाल को तीसरी बार इसलिए बहुमत से चुनाव जिताया है; क्योंकि उन्हें हराम की सुविधाओं की लत लग गई है. सोशल मीडिया में जुगुप्सा और व्यंग्य से बिलबिलाती ऐसी पोस्टों की बाढ़ आ गई. इनका सिलसिला इन पंक्तियों के लिखे जाने तक भी जारी है.

सवाल है क्या ऐसा है ? क्या दिल्ली के आम मतदाताओं का मत हासिल करने के लिए आम आदमी पार्टी ने उन्हें मुफ्तखोरी की लत लगा दी है ? गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने उन गरीब लोगों के बिजली के बिलों को जिनकी मासिक खपत 200 यूनिट से कम है, शून्य कर दिया है. साथ ही महिलाओं को बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा दी है और हर दिल्लीवासी को महीने में 20,000 लीटर पानी बिल्कुल फ्री में उपलब्ध कराया है. सबसे पहले तो यह जान लें कि यह सुविधाओं को पाने के लिए गरीब होना कोई शर्त नहीं है. कोई भी व्यक्ति चाहे वह दिल्ली की झुग्ग्यिों में रहता हो या सर्वाधिक पाश कालोनी में रहता हो. वह इन सुविधाओं को हासिल कर सकता है.

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शर्त बस यही है कि 200 यूनिट बिजली मुफ्त में पाने के लिए घर के बिजली के बिल को 200 यूनिट तक ही सीमित रखना होगा. अगर बिल 201 यूनिट हो गया तो पूरा भुगतान करना होगा. इसी तरह दिल्ली की कोई भी महिला बसों में मुफ्त यात्रा कर सकती है. बस का कंडक्टर उसे इनकम सर्टिफिकेट दिखाने को नहीं कहेगा. यही बात हर महीने 20,000 लीटर पानी के खपत पर भी लागू होती हैं अगर ग्रेटर कैलाश या अकबर रोड जैसे पाश इलाके का कोई रहिवासी महीने में 20,000 लीटर पानी खर्च करता है तो उससे इसलिए पानी का बिल नहीं वसूला जायेगा क्योंकि वह पाश कालोनी में रहता है या कि अमीर है.

इसलिए सोशल मीडिया में मुफ्तखोरी का जहर उगल रहे लोग यही बात गलत कह रहे हैं कि दिल्ली में गरीब लोगों का वोट हासिल करने के लिए उन्हें मुफ्त में सुविधाएं दी जा रही है. ये सुविधाएं हर व्यक्ति को दी जा रही हैं. अब इन सुविधाओं के चलते राज्य के खजानों को खाली करने वाले आरोपों पर आते हैं. वास्तव में इस देश में कई किस्म की गलतफहमियां बहुत गहराई तक फैलायी गई हैं, उन्हीं में से एक यह भी है कि टैक्स सिर्फ अमीर आदमी देता है और गरीब आदमी, अमीर आदमी के दिये गये टैक्स में अपनी काहिली के चलते सिर्फ ऐश करता है. यह उतना ही बड़ा झूठ है, जितना बड़ा झूठ यह कि गणेश जी दूध पीते हैं.

सोशल मीडिया में बड़े पैमाने पर लोग भले यह माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हो कि केजरीवाल ने वोट पाने के लिए गरीब आदमियों के लिए दिल्ली के खजाने को दोनों हाथ से लुटा दिया है. जबकि यकीन मानिए दिल्ली के आम लोगों को अगर सरकार ने कल्याणकारी राज्य की कुछ सुविधाएं दी हैं तो इन्हें अमीर लोगों के हिस्से से नहीं छीना गया बल्कि इसके लिए इन्होंने भी बकायदा भुगतान किया है. वास्तव में दिल्ली के लोगों उपलब्ध करायी गई ये सुविधाएं राज्य के मौजूदा संसाधनों का ईमानदारी से किया गया स्मार्ट प्रबंधन भर है. जिस वजह से दिल्ली में गरीब लोगों को भी थोड़ी सी सुविधाएं हासिल हो गई हैं. लेकिन आम आदमी ने इन सुविधाओं के बदले पहले ही कई गुना ज्यादा कीमत चुका दी है.

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इसे यूं भी समझ सकते हैं हिन्दुस्तान में औसतन हर व्यक्ति साल में करीब 77,000 रुपये या इससे ज्यादा की विभिन्न तरह की खरीदारियां करता है. साल 2017-18 के एवरेज कंज्यूमर स्पेंडिंग डाटा को देखें तो पता चलता है कि देश का आम से आम आदमी भी औसतन 77085 रूपये की खरीदारी करता है. यह देश के औसत उपभोक्ता का खर्च है. चूंकि दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय देश के बाकी राज्यों से ज्यादा है तो यहां प्रति उपभोक्ता प्रतिवर्ष इससे भी ज्यादा करता होगा. अब किसी भी उत्पाद में लगे सभी तरह के करों की गणना करें तो हर उत्पाद अपनी वास्तविक लागत से करीब 42 फीसदी महंगा बेचा जाता है.

इसमें हम सिर्फ 20 प्रतिशत के विभिन्न छिपे हुए कर मान लें तो एक आम से आम भारतीय जो एक पैसे का प्रत्यक्ष कर नहीं देता, वह भी हर साल करीब 15000 का टैक्स चुकाता है. जबकि केजरीवाल सरकार की सभी सब्सिडी मिलकर भी साल में हर दिल्ली वासी के खाते 3000 रूपये की भी नहीं बनती. अब समझिये कि दिल्ली सरकार देती है कि लेती है ? दरअसल दूसरी सरकारें इतना भी नहीं देतीं तो लोगों को लगता है कि केजरीवाल लुटा रहा है. जबकि सच्चाई यह है, जिसकी पुष्टि कैग करता है कि दिल्ली सरकार देश की अकेली सरकार है जो 3000 करोड़ रूपये के सरप्लस में है.

दरअसल शोषण भी एक आत्मघाती नशा होता है, जिसमें कभी-कभी शोषित को भी खूब मजा आता है. दो साल पहले एक सर्वे में यह बात उजागर हुई कि 93 फीसदी महिलाएं पतियों के हाथ से मार खाकर खुश रहती हैं. उन्हें यह सहज स्वाभाविक लगता है. यही बात यहां लागू होती है दूसरी सरकारें पूरा टैक्स कलेक्शन खुद ही घोट जाती हैं तो लोगों को लगता है यह केजरीवाल सरकार ऐसा क्यों नहीं कर रही. इसी का प्रलाप कल से हो रहा है.

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