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अकेले होने का दर्द : भाग 3

‘‘दिल्ली हाट तक गई थी, थोड़ी देर हो गई. सामने की दुकान से कोई पानी देने तो नहीं आया था?’’

‘‘नहीं, अच्छा तो आप भीतर तो आइए…मेरे से एक बोतल पानी ले जाइए,’’ कहते हुए मैं वापस खाने की टेबल पर आ गई, ‘‘खाना खाएंगी न आंटी.’’

‘‘नहीं बेटा, आज मन नहीं है.’’

मैं ने पापा को उन का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘पापा, यह मीरा आंटी हैं. सामने के फ्लैट में रहती हैं. बेहद मिलनसार और केयरिंग भी. राहुल को जब भी कुछ नया खाने का मन करता है आंटी बना देती हैं.’’

‘‘अरे, बस बस,’’ कह कर वह सामने आ कर बैठ गईं. मैं ने उन की तरफ प्लेट सरकाते हुए कहा, ‘‘अच्छा, कुछ तो खा लीजिए. हमारा मन रखने के लिए ही सही,’’ और इसी के साथ उन की प्लेट में मैं ने थोड़े चावल और दाल डाल दी.

‘‘लगता है आप यहां अकेली रहती हैं?’’ पापा ने पूछा.

‘‘हां, पापा,’’ इन के पति आर्मी में हैं. वहां इन को साथ रहने की कोई सुविधा नहीं है,’’  राहुल ने कहा.

‘‘फिर तो आप को बड़ी मुश्किल होती होगी अकेले रहने में?’’

‘‘नहीं, अब तो आदत सी पड़ गई है,’’ आंटी बेहद उदासीनता से बोलीं, ‘‘बेटीदामाद भी कभीकभी आते रहते हैं, फिर जब कभी मन उचाट हो जाता है मैं उन से स्वयं मिलने चली जाती हूं.’’

‘‘पापा, इन की बेटीदामाद दोनों डाक्टर हैं और चेन्नई के अपोलो अस्पताल में काम करते हैं,’’ मैं ने कहा.

बातों का सिलसिला देर तक यों ही चलता रहा. जातेजाते आंटी बोलीं, ‘‘मैं सामने ही रहती हूं…किसी वस्तु की जरूरत हो तो बिना संकोच बता दीजिएगा.’’

‘‘आंटी, पापा को सुबह इंजेक्शन लगवाना है. किसी को जानती हैं आप, जो यहीं आ कर लगा सके.’’

‘‘अरे, इंजेक्शन तो मैं ही लगा दूंगी…बेटी ने इतना तो सिखा ही दिया है.’’

‘‘ठीक है आंटी, मैं सुबह इंजेक्शन भी ले आऊंगी और पट्टी भी,’’ कहते- कहते मैं भी उठ गई.

‘‘हां, बेटा, यह तो मेरा सौभाग्य होगा,’’ कह कर आंटी चली गईं.

शाम को मैं आफिस से आई और पापा का हालचाल पूछा. आज वह थोड़ा स्वस्थ लग रहे थे. कहने लगे, ‘‘सुबह इंजेक्शन और डे्रसिंग के बाद थोड़ा रिलैक्स अनुभव कर रहा हूं. फिर शाम को सामने पार्क में भी घूमने गया था.’’

मैं चाहती थी पापा कुछ दिन और यहां रहें. हर रोज कोई न कोई बहाना बना कर वह जतला देते थे कि वह वापस जाना चाहते हैं. यहां रहना उन के सिद्धांतों के खिलाफ है. मेरी शंका जितनी गहरी थी पर समाधान उतना ही कठिन.

मैं ने और राहुल ने भरसक प्रयत्न किया कि उन्हें यहीं पास में कोई और मकान ले देते हैं पर वह किसी भी तरह नहीं माने. फिर हम ने उन्हें इस बात के लिए मना लिया कि 1 महीने के बाद दीवाली आ रही है तब तक वह यहीं रहें. हमारी आशाओं के अनुकूल उन्होंने यह स्वीकार कर लिया था. मुझे थोड़ी सी तसल्ली हो गई.

उस दिन मैं और राहुल प्रगति मैदान जाने का मन बना रहे थे, जहां गृहसज्जा के सामान की प्रदर्शनी लगी हुई थी. मैं ने पापा को भी साथ चलने के लिए कहा. उन्होंने यह कह कर मना कर दिया कि मैं वहां जा कर क्या करूंगा.

‘‘पापा, आप साथ चलेंगे तो हमें अच्छा लगेगा. मानसी कई दिनों से माइक्रोवेव लेने का मन बना रही थी. आप रहेंगे तो राय बनी रहेगी,’’ राहुल ने विनती करते हुए कहा.

‘‘तुम्हारा मुझे इतना मान देने के लिए शुक्रिया बेटा…पर जा नहीं पाऊंगा, क्योंकि पार्क में आज इस कालोनी के बुजुर्गों की एक बैठक है.’’

हम दोनों ही वहां चले गए.

प्रगति मैदान से आने के बाद जैसे ही हम ने कार पार्क की कि मीरा आंटी के घर से डाक्टर अवस्थी को निकलते देखा. मैं एकदम घबरा गई और तेजी से जा कर पूछा, ‘‘डाक्टर साहब, क्या हुआ मीरा आंटी को? सब ठीक तो है न.’’

‘‘हां, अब सब ठीक है. उन के घर में किसी की तबीयत अचानक बिगड़ गई थी.’’

इस से पहले कि मैं कुछ सोच पाती, मीरा आंटी सामने से आती हुई बोलीं, ‘‘तुम्हारे पापा इधर हैं, तुम लोग अंदर आ जाओ.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ उन को?’’

‘‘दरअसल, तुम्हारे जाने के बाद उन्होंने मेरी घंटी बजा कर कहा था कि उन्हें बहुत घबराहट हो रही है. मैं थोड़ा घबरा गई थी. मैं उन्हें सहारा दे कर अपने यहां ले आई और डाक्टर को फोन कर दिया. उन का ब्लडप्रैशर बहुत बढ़ा हुआ था. शायद गैस हो रही होगी. अभी उन्हें सोने का इंजेक्शन और कुछ दवाइयां दी हैं,’’ कहते हुए उन्होंने मुझे वह परचा पकड़ा दिया.

‘‘आंटी, बुढ़ापा नहीं, पापा अकेलेपन का शिकार हैं,’’ कहतेकहते मैं पापा के पास ही बैठ गई, ‘‘62 साल की उम्र भी कोई बुढ़ापे की होती है.’’

राहुल जब तक अपने फ्लैट से फ्रेश हो कर आए आंटी ने चाय बना दी. मैं पुन: पापा की इस हालत से चिंतित थी और परेशान भी. वह पूरी रात हम ने उन के पास बैठ कर बिताई.

कुछ दिन और बीत गए. पापा अब फिर सामान्य हो गए थे. आंटी का हमारे घर निरंतर आनाजाना बना रहता था. हम पापा में फिर से उत्साह पैदा करने की कोशिश करते रहे. एक पल वह खुश हो जाते और दूसरे ही पल उदास और गंभीर.

रविवार को हम सवेरे बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे. बातोंबातों में राहुल ने आंटी का उदाहरण देते हुए कहा कि वह कितने मजे से जिंदगी काट रही हैं.

‘‘सचमुच वह बहुत ही भद्र और मिलनसार महिला हैं. इस उम्र में तो उन के पति को भी रिटायरमेंट ले लेना चाहिए. कब से वह अकेली जिंदगी जी रही हैं और आजकल के हालात देखते हुए एक अकेली औरत…’’ पापा बोले.

‘‘पापा, आप को एक बात बताऊं,’’ राहुल ने सारा संकोच त्याग कर कहा, ‘‘मैं ने पहले दिन आप से झूठ बोला था कि आंटी के पति आर्मी में हैं. दरअसल, उन के पति की मृत्यु 8 साल पहले हो चुकी है. तब उन की बेटी मेडिकल कालिज में पढ़ती थी. बड़ी मुश्किलों से आंटी ने उसे पढ़ाया है. पिछले ही साल उस की शादी की है.’’

‘‘ओह, यह तो बहुत बुरा हुआ. उन्होंने कभी बताया भी नहीं.’’

‘‘सभी लोगों को उन्होंने यही बता रखा है जो मैं ने आप को बताया था. एक अकेली औरत का सचमुच अकेला रहना कितना कठिन होता है, यह उन से पूछिए. इसलिए मैं जब भी आंटी को देखती हूं मुझे आप की चिंता होने लगती है. औरत होने के नाते वह तो अपना घर संभाल सकती हैं पर पुरुष नहीं. उन्हें सचमुच एक सहारे की जरूरत होती है. पापा, आप को लगता है कि आप यों अकेले जीवन बिता पाएंगे…मैं बेटी हूं आप की…मम्मी के बाद आप का ध्यान रखना मेरा फर्ज है…मेरा अधिकार भी है और कर्तव्य भी…मैं जो कह रही हूं आप समझ रहे हैं न पापा…मैं मीरा आंटी की बात कर रही हूं.’’

मैं अपनी बात कह चुकी थी. और अब पापा के चेहरे पर घिर आए भावों को पढ़ने की कोशिश करने लगी.

‘‘मानसी ठीक कह रही है, पापा,’’ राहुल बोले, ‘‘बहुत दिनों तक सोचने के बाद ही डरतेडरते हम ने आप से कहने की हिम्मत जुटाई है. बात अच्छी न लगे तो हमें माफ कर दीजिए.’’

‘‘बेटे, इस उम्र में शादी. मैं कैसे भूल पाऊंगा तुम्हारी मम्मी को, और फिर लोग क्या सोचेंगे,’’ पापा का स्वर किसी गहरे दुख में डूब गया.

‘‘पापा, लोग बुढ़ापे के लिए तो एकदूसरे का सहारा ढूंढ़ते हैं. इस उम्र में आप को कई बीमारियों ने आ घेरा है, उपेक्षित से हो कर रह गए हैं आप. अब जो हो गया उस पर हमारा जोर तो नहीं है. फिर लोगों से हमें क्या लेनादेना. आप दोनों तैयार हों तो हमें दुनिया से क्या लेना.’’

‘‘मीरा से भी तुम ने बात की है?’’ उन्होंने बेहद संजीदगी से पूछा.

‘‘हां, पापा, हम ने उन्हें भी मुश्किल से मनाया है. यदि आप तैयार हों तो…आप हमारा हमेशा ही भला चाहते रहे हैं. क्या आप चाहते हैं कि हम सदा आप के लिए चिंतित रहें. बहुत सी बातें आप छिपा भी जाते हैं. मैं पहले भी आप से इस बारे में बात करना चाहती थी मगर हर बार संकोच की दीवार सामने आ जाती थी.’’

वह कुछ असहज भी थे और असामान्य भी, किंतु जिस लाड़ भरी निगाहों से उन्होंने मुझे देखा, मुझे लगा मेरी यह हरकत उन्हें अच्छी लगी है.

‘‘पापा, प्लीज,’’ कह कर मैं उन के पास आ कर बैठ गई, ‘‘आप को सुखी देख कर हम लोग कितनी राहत महसूस करेंगे. यह मैं कैसे बताऊं . आप की ऐसी हालत देख कर मेरा जी भर आता है. मैं आप को बहुत प्यार करती हूं पापा,’’ कहतेकहते मैं रो पड़ी.

पापा धीरे से मुसकराए. शिष्टाचार के सभी बंधन तोड़ कर मैं उन से लिपट गई. महीनों से खोई हुई उन की हंसी वापस उन के चेहरे पर थी. उन का ठंडा मीठा स्पर्श आज अर्से बाद मुझे मिला था.

‘‘थैंक्स, पापा,’’ कहतेकहते मेरी आवाज आंसुओं के चलते भर्रा गई

अकेले होने का दर्द : भाग 1

मां की मौत के बाद पापा के अकेलेपन को मानसी बड़ी शिद्दत से महसूस कर रही थी. वह जानती थी कि वृद्धावस्था उम्र का वह पड़ाव होता है जब व्यक्ति को एक सहारे की जरूरत होती है. मानसी क्या अपने पापा के अकेलेपन का कोई हल ढूंढ़ पाई ?

वातावरण में औपचारिक रुदन का स्वर गहरा रहा था. पापा सफेद कुरतेपजामे और शाल में खड़े थे. सफेद रंग शांति का प्रतीक माना जाता है पर मेरे मन में सदा से ही इस रंग से चिढ़ सी थी. उस औरत ने समाज का क्या बिगाड़ा है जिस के पति के न होने पर उसे सारी उम्र सफेद वस्त्रों में लिपटी रहने के लिए बाध्य किया जाता है.

मेरे और पापा के साथ हमारे कई और रिश्तेदार कतारबद्ध खड़े थे. धीरेधीरे सभी लोग सिर झुकाए हमारे सामने से चले गए और पंडाल मरघट जैसे सन्नाटे में तबदील हो गया. हमारे दूरपास के रिश्तेनाते वाले भी वहां से चले गए. सभी के सहानुभूति भरे शब्द उन के साथ ही चले गए. कुछ अतिनिकट परिचितों के साथ हम अपने घर आ गए.

पापा मूक एवं निरीह प्राणी की तरह आए और अपने कमरे में चले गए. बाकी बचे परिजनों के साथ मैं ड्राइंगरूम में बैठ गई. कुछ औपचारिक बातों के बाद मैं किचन से चाय बनवा कर ले आई. एक गिलास में चाय डाल कर मैं पापा के पास गई. वह बिस्तर पर लेटे हुए सामने दीवार पर टंगी मम्मी की तसवीर को देखे जा रहे थे. उन की आंखों में आंसू थे.

‘‘पापा, चाय,’’ मैं ने कहा.

पापा ने मेरी तरफ देखा और पलकें झपका कर आंसू पोंछते हुए बोले, ‘‘थोड़ी देर के लिए मुझे अकेला छोड़ दो, मानसी.’’

उन की ऐसी हालत देख कर मेरे गले में रुकी हुई सिसकियां तेज हो गईं. मैं भी पापा को अपने मन की बात बता कर उन से अपना दुख बांटना चाहती थी, पर लगा था वह अपने ही दुख से उबर नहीं पा रहे हैं.

किसे मालूम था कि मम्मी, पापा को यों अकेला छोड़ कर इस संसार से प्र्रस्थान कर जाएंगी. इस हादसे के बाद तो पापा एकदम संज्ञाशून्य हो कर रह गए.

मैं ने अपनी छोटी बहन दीप्ति को अमेरिका में तत्काल समाचार दे दिया. पर समयाभाव के कारण मां के पार्थिव शरीर को वह कहां देख पाई थी. पापा इस दुख से उबरते भी कैसे. जिस के साथ उन्होंने जिंदगी के 40 वर्ष बिता दिए, मां का इस तरह बिना किसी बीमारी के मरना पापा कैसे भूल सकते थे. कई दिनों तक रोतेरोते क्रमश: रुदन तो समाप्त हो गया पर शोक शांत न हो सका.

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पापा की ऐसी हालत देख कर मैं ने धीरे से उन का दरवाजा बंद किया और वापस ड्राइंग- रूम में आ गई, जहां मेरे पति राहुल बैठे थे.

चाचाजी वहां बैठे हुए हलवाई, टैंट वाले, पंडितजी आदि का हिसाब करते जा रहे थे. मुझे देखते ही उन्होंने कहा, ‘‘आजकल छोटे से छोटे कार्य में भी इतना खर्च हो जाता है कि बस…’’ यह कहतेकहते उन्होंने राहुल को सारे बिल पकड़ा दिए. मैं ने राहुल को इशारे से सब का हिसाब चुकता करने को कहा. पापा अपने गम में इतने डूबे हुए थे कि उन से कुछ भी इस समय कहने का साहस मुझ में न था.

‘‘अच्छा, मानसी बिटिया, अब मैं चलता हूं. कोई काम हो तो बताना,’’ कहते हुए चाचाजी ने मुझे इस अंदाज से देखा कि मैं कोई दूसरा काम न कह दूं और उन के साथ ही कालोनी की 3-4 महिलाएं भी चल दीं.

मुझे इस बात से बेहद दुख हुआ कि मम्मी इतने वर्षों से सदा सब के सुखदुख में हमें भी नजरअंदाज कर उन का साथ देती थीं, लेकिन आज सभी ने उन के गुजरने के साथ ही अपने कर्तव्यों से भी इतिश्री मान ली थी.

शाम को खाने की मेज पर मैं ने राहुल से पूछा, ‘‘तुम्हारा क्या प्रोग्राम है अब?’’

‘‘मैं तो रात को ही वापस जाना चाहता हूं. तुम साथ नहीं चल रही हो क्या?’’ राहुल ने पूछा.

‘‘पापा को ऐसी हालत में छोड़ कर कैसे चली जाऊं,’’ मैं ने रोंआसी हो कर कहा, ‘‘लगता है ऐसे ही समय के लिए लोग बेटे की कामना करते हैं.’’

‘‘पापा को साथ क्यों नहीं ले चलतीं,’’ राहुल बोले, ‘‘थोड़ा उन के लिए भी चेंज हो जाएगा.’’

‘‘नहीं बेटा,’’ तब तक पापा अपने कमरे से आ चुके थे, ‘‘तुम लोग चले जाओ, मैं यहीं ठीक हूं.’’

‘‘पापा, आप को तो ठीक से खाना बनाना भी नहीं आता…मां होतीं तो…’’ और इतना कहतेकहते मैं रो पड़ी.

‘‘क्यों, महरी है न. तुम चिंता क्यों करती हो?’’

‘‘पापा, वह तो 9 बजे आती है. आप की बेड टी, अखबार, दूध, नहाने के कपड़े, दवाइयां कुछ भी तो आप को नहीं मालूम…आज तक आप ने किया हो तो पता होता.’’

‘‘उस ने मुझे इतना अपाहिज बना दिया था…पर अब क्या करूं? करना तो पडे़गा ही न…कुछ समझ में नहीं आएगा तो तुम से पूछ लूंगा,’’ कहतेकहते पापा ने मेरी तरफ देखा. उन का स्वर जरूरत से ज्यादा करुण था.

‘‘अब क्यों रुलाते हो, पापा,’’ कहते हुए मैं खाना छोड़ कर उन से लिपट गई.

मेरे सिर पर स्नेहिल स्पर्श तक सीमित होते हुए पापा ने कहा, ‘‘उसी ने अभी तक सारे परिवार को एकसूत्र में बांध कर रखा था. पंछी अपना नीड़ छोड़ कर उड़ चला और यह घोंसला भी एकदम वीराने सा हो गया…मैं क्या करूं,’’ कातरता झलक रही थी उन के स्वर में.

‘‘पापा, आप हिम्मत मत हारो, कुछ दिनों के लिए ही सही, हमारे साथ ही चलो न.’’

‘‘नहीं बेटे, जब अकेले जी नहीं पाऊंगा तो कह दूंगा,’’ फिर एक लंबी सांस लेते हुए बोले, ‘‘अभी तो यहां बहुत काम हैं, तुम्हारी मम्मी का इंश्योरेंस, बैंक अकाउंट, उन के फिक्स्ड डिपोजिट सभी को तो देखना पड़ेगा न.’’

‘‘जैसी आप की इच्छा, पापा,’’ कह कर राहुल अपने कमरे में चले गए.

अगले दिन महरी को सबकुछ सिलसिलेवार समझा कर मैं थोड़ी आश्वस्त हो गई. 2 दिन बाद… मेरी सुबह की ट्रेन थी. जाने से एक रात पहले मैं पापा के पास जा कर बोली, ‘‘पापा, कल सुबह आप मुझे छोड़ने नहीं जाएंगे. नहीं तो मैं जा नहीं पाऊंगी,’’ इतना कह मैं भरे कंठ से वहां से चली आई थी.

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सुबह जल्दीजल्दी उठी. तकिये के पास पापा के हाथ की लिखी चिट पड़ी थी, ‘जाने से पहले मुझे भी मत उठाना…मैं रह नहीं पाऊंगा. साथ ही 500 रुपए रखे हैं इन्हें स्वीकार कर लेना. वैसे भी यह सारे आडंबर तुम्हारी मां ही संभालती थी.’ मैं ही जानती हूं कि मैं ने वह घर कैसे छोड़ा था.

मैं हर रोज पापा को फोन करती. उन का हाल जानती, फिर महरी को हिदायतें देती. मैं अपनी सीमाएं भी जानती थी और दायरे भी. राहुल को मेरी किसी बात का बुरा न लगे इसलिए पापा से आफिस से ही बात करती. कभीकभी वह छोटीछोटी चीजों को ले कर परेशान हो जाते थे. ऊपर से सामान्य बने रहने के बावजूद मैं भांप जाती कि वह दिल से इस सत्य को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. वह वहां रहने के लिए विवश थे. उन की दुनिया उन्हीं के इर्दगिर्द सिमट कर रह गई थी..

अगले भाग में पढ़ें-  उन की जिंदगी उन के सिद्धांतों और समझौतों के बीच टिक कर रह गई.

‘वेलेंटाइन डे’ में कैसे बदली ‘एसिड अटैक’ की खुशियां

एसिड अटैक का शिकार हुई रूपाली ने कभी सोचा भी नहीं था कि उसके जीवन में वेलेंटाइन डे मनाने और कैडिल लाइट डिनर करने का मौका आयेगा. लखनऊ में होटल नोवाटेल ने रूपाली और उसके पति कुलदीप को 14 फरवरी के दिन कैडिल लाइट डिनर करने का मौका दिया तो रूपाली अपने जिंदगी में मिले दर्द को छिपा नहीं सकी. उत्तर प्रदेश के गाजीपुर की रहने वाली रूपाली के बचपन का नाम रेनू था. रेनू देखने में बहुत संदुर थी तो उसका नाम रूपाली रख दिया गया. रूपाली जब बडी हुई उसे फिल्मो में काम करने का शौक हुआ. उत्तर प्रदेश के पूर्वाचंल में भोजपुरी फिल्में बहुत बनती है. रूपाली को भी भोजपुरी फिल्म ‘दहेज प्रथा’ में काम करने आ अवसर मिल गया. रूपाली के सपने पूरे होने लगे. रूपाली को पता नहीं था कि यही उसके जीवन के सबसे दुख भरे दिन शुरू होने वाले है. फिल्म की शूटिंग शुरू हुई. तो वहां अजय नाम का कैमरामैन रूपाली पर फिदा हो गया. वह उससे शादी करने के सपने देखने लगा.

रूपाली इसके लिये तैयार नहीं थी. ऐसे में अजय ने रूपाली की मां से भी बात की. रूपाली की मां ने भी जब इससे इंकार कर दिया तो अजय ने धमकी दी कि ‘तुमको अपनी बेटी के चेहरे पर बहुत घमंड है. अब यह चेहरा घमंड लायक नहीं रहेगा’. फिल्म की शूटिंग के लिये जब रूपाली को बुलाया गया तो उसने कहा कि अगर अजय वहां होगा तो वह काम करने नहीं आयेगी. फिल्म वालों ने उसको भरोसा दिलाया कि अजय वहां नहीं होगा. इस बात पर रूपाली काम करने के लिये तैयार हुई. रूपाली को पता नहीं था कि वह साजिश का शिकार हो चुकी है. ज बवह फिल्म की शूटिंग करने पहुंची तो उसे अजय वहां दिखा. पर सभी ने कहा कि कोई बात नहीं तुम शूटिंग करो. शूटिंग के बाद जब आराम का समय हुआ तो खाना मिला. इस खाने में कुछ मिला था. जिसके खाने के बाद रूपाली गहरी नींद में सो गई. सोते में ही उस पर एसिड अटैक हुआ.

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दर्द से चीखती रूपाली को अच्छा इलाज नहीं मिला. बाद में टीवी के समाचार में देखने के बाद एक डाक्टर ने आगे बढ कर उसके इलाज में मदद की. रूपाली के लिये सबसे बुरी बात यह थी कि चेहरे के साथ उसकी आंखों में एसिड पड चुका था. वहां जख्म गहरा था. आंखों की रोशनी जाने का खतरा था. एक साल से अधिक का समय उसके इलाज में समय लगा. इलाज के बाद जब उसने अपने चेहरे को देखा तो उसका हौसला टूट चुका था. जिदंगी में निराशा आ चुकी थी. घर में सभी लोगों का व्यवहार रूपाली के खिलाफ था. ऐसिड अटैक के लिये उसको ही दोष दिया जा रहा था.

रूपाली को सबसे अधिक दुख देने वाले उसके पिता का व्यवहार था. पिता ने इलाज के समय मे भी डाक्टर को कहा था कि इसके जिंदा रहने से अच्छा है कि जहर दे कर मार दिया जाय. घर आने के बाद भी यही व्यवहार रहा. मां रूपाली का सहयोग करती थी. तब पिता ने उनके साथ झगडा किया और कहा कि अगर वह रूपाली के साथ रहेगी तो उसको तलाक दे देंगे. यह बात रूपाली को चुभ गई. रूपाली को उस समय काम करने के लिये शीरोज संस्था में मौका मिला वह गाजीपुर से लखनऊ आ गई. शीरोज में काम करने के दौरान ही रूपाली की मुलाकात कुलदीप से हुई. कुलदीप लखीमपुर का रहने वाला था और शीरोज में काम करता था. रूपाली और कुलदीप मेे पहले जानपहचान, दोस्ती, प्यार और फिर शादी हो गई. कुलदीप के परिवार वालों ने रूपाली केा स्वीकार कर लिया. रूपाली को 2 साल की बेटी दीपांशी भी है.

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होटल नोवाटेल के जनरल मैनेजर सुनील वर्मा ने जब रूपाली और कुलदीप को वेलेटाइन डे के दिन कैंडिल लाइट डिनर का टिकट दिया तो रूपाली ओर कुलदीप की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. रूपाली कहती है आज वह किसी के उपर बोझ नहीं है. अब परिवार के लोग उससे वापस जुड़ना चाहते है. वेलेंटाइन डे रूपाली और कुलदीप के जीवन की यादगार शाम बन गई है.

शुभारंभ: क्या कीर्तिदा-गुणवंत की चालों में आकर राजा छोड़ देगा अपनी ज़िम्मेदारियाँ?

कलर्स के शो, ‘शुभारंभ’ में रानी के समझाने पर राजा अपनी बिज़नेस से जुड़ी ज़िम्मेदारियों को संभालने में लग गया है, लेकिन राजा को भटकाने के लिए राजा के ताऊजी और ताईजी यानी गुणवंत और कीर्तिदा लगातार कोशिश कर रहे हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

वेलेंटाइन डे पर दुकान को सजाते हैं राजा-रानी

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अब तक आपने देखा कि राजा और रानी वेलेंटाइन डे के मौके पर दुकान में सजावट की तैयारियाँ पूरी करते हैं, लेकिन कुछ गुंडे आकर वेलेंटाइन डे की तैयारियों को यह कहकर बिगाड़ने की कोशिश करते हैं कि ये चीज़ें युवाओं को गुमराह करती हैं और भारतीय संस्कृति के खिलाफ हैं.

रानी करती है राजा की मदद

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रानी गुंडो में से एक को पहचान जाती है, जो कि उसके पड़ोस में रहता है. साथ ही रानी गुंडो को बेरोज़गारी को छिपाने के लिए भारतीय संस्कृति के रखवाले होने का ढोंग बताती है. यह सुनकर गुंडे सभी से माफी मांगकर निकल जाते हैं. इसी तरह रानी, राजा को इस मुसीबत से निकलने में मदद करती है.

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राजा के खिलाफ नई चाल चलते हैं कीर्तिदा-गुणवंत 

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दूसरी तरफ, कीर्तिदा-गुणवंत जानबूझ कर राजा की कुंडली में पितृदोष होने की बात करते हैं ताकि वह सुन ले. इसी बीच कीर्तिदा-गुणवंत ये भी कहते हैं कि इस पितृदोष के कारण अगले एक साल में बिज़नेस के मामले में राजा का भाग्य अच्छा नही है और उसको नुकसान झेलना पड़ सकता है, जिसके कारण वह अपनी ज़िम्मेदारियों को लेकर सोच में पड़ जाता है.

राजा को मिलेगा खास गिफ्ट

आज के एपिसोड में आप देखेंगे कि गुणवंत और कीर्तिदा, राजा को एक उपहार के तौर पर राजा के पिता धनवंत, की पुरानी डायरी देंगे, जिसे देखकर राजा इमोशनल हो जाएगा. साथ ही राजा को दुकान में एक नया डेस्क भी दिया जाएगा. तभी मेहुल बताएगा कि बैंक जाने के दौरान उनके पुराने और वफादार कर्मचारी नट्टू काका पर हमला हुआ है और वह गंभीर रूप से घायल हो गए हैं. लेकिन गुणवंत और कीर्तिदा इन सब की वजह राजा के पितृदोष को बताएंगे.

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राजा के वेलेंटाइन डे का आइडिया कामयाब होने पर गुणवंत और कीर्तिदा बौखला जाते हैं. अब देखना ये है कि क्या राजा को पितृदोष की चाल में फंसाकर कीर्तिदा और गुणवंत बिज़नेस से दूर कर पाएंगे? क्या रानी इन चालों से राजा को बचा पाएगी? जानने के लिए देखते रहिए शुभारंभ, सोमवार से शुक्रवार रात 9 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

शादी जो बनी बर्बादी

23 नवंबर, 2017 गुरुवार का दिन था. सुबह के यही कोई 10 बजे थे. महाराष्ट्र के अमरावती शहर के ओंकार मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी थी. मंदिर आनेजाने वाले लोगों की वजह से सड़कों पर भी काफी चहलपहल थी. 24 वर्षीया प्रतीक्षा भी अपनी सहेली श्रेया वायस्कर के साथ साईंबाबा के दर्शन कर के स्कूटी से खुशीखुशी अपने घर लौट रही थी.

दोनों सहेलियां आपस में बातें करते हुए अभी साईंनगर के वृंदावन कालोनी परिसर स्थित ठाकुलदार मालानी घर के सामने क्रौसिंग पर पहुंची थीं कि अचानक उन की स्कूटी के सामने एक दूसरी स्कूटी आ कर रुकी. जिस की वजह से दोनों सड़क पर गिरतेगिरते बचीं.

उस स्कूटी पर एक युवक सवार था. उसे इस तरह सामने आया देख कर प्रतीक्षा के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. डरीसहमी प्रतीक्षा ने एक बार श्रेया को देखा. वह उस लड़के को जानती थी. वह हिम्मत जुटा कर उस लड़के से बोली, ‘‘हटो मेरे सामने से, मेरा रास्ता छोड़ो. मुझे घर जाने के लिए देर हो रही है.’’

वह युवक उसे घूरने लगा. तभी प्रतीक्षा ने श्रेया से कहा, ‘‘श्रेया, यह सामने से नहीं हट रहा तो तुम अपनी स्कूटी साइड से निकाल कर चलो.’’

श्रेया वहां से निकल पाती, उस के पहले उस युवक ने श्रेया के नजदीक आ कर स्कूटी की चाबी निकालते हुए कहा, ‘‘प्रतीक्षा, आज मैं तुम्हें यह जान कर ही जाने दूंगा कि तुम मेरे साथ चलोगी या नहीं?’’

‘‘मैं तुम्हारे साथ क्यों चलूं?’’ प्रतीक्षा ने कहा.

‘‘क्योंकि तुम मेरी पत्नी हो. तुम ने मुझ से शादी की है.’’ युवक ने आवेश में आ कर कहा.

‘‘मैं कितनी बार कह चुकी हूं कि अब मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकती. तुम यह बात भूल जाओ कि मैं तुम्हारी पत्नी हूं. न मैं अब तुम से प्यार करती हूं और न पहले तुम से प्यार करती थी.’’ प्रतीक्षा ने सीधे जवाब दिया.

‘‘लेकिन मैं तुम्हें अभी भी पत्नी मानता हूं और प्यार भी करता हूं, इसलिए मैं कतई नहीं चाहूंगा कि तुम मुझ से दूर रहो. तुम्हें मेरे साथ चलना ही होगा. अगर आज तुम मेरे साथ नहीं चलोगी तो अच्छा नहीं होगा.’’ युवक ने धमकी दी.

प्रतीक्षा उस की इन बातों से परेशान हो गई. उस ने उसे समझाने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘तुम मेरी बात समझते क्यों नहीं. मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकती. फिर भी तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे, जो मेरे लिए अच्छा न हो.’’

‘‘प्रतीक्षा, मैं कुछ भी कर सकता हूं. तुम्हारे साथ न आने से अब मेरी जिंदगी में बचा ही क्या है. तुम्हारी वजह से मुझे थाने और कोर्टकचहरी के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. तुम ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा. मेरी जिंदगी तबाह कर के रख दी. भला मैं तुम्हें कैसे छोड़ सकता हूं.’’ इतना कह कर उस युवक ने जेब से एक चाकू निकाला. चाकू देख कर प्रतीक्षा और उस की सहेली श्रेया घबरा गईं. दोनों कुछ कर पातीं, उस के पहले ही उस ने प्रतीक्षा पर हमला कर दिया.

हमला होते वक्त मूकदर्शक बने लोग

प्रतीक्षा की मार्मिक चीखें वातावरण में गूंजने लगीं. वह जमीन पर गिर कर तड़पने लगी. इस पर भी उस युवक का गुस्सा शांत नहीं हुआ. वह उस पर तब तक वार करता रहा, जब तक कि वह शांत नहीं हो गई. सहेली पर हमला होने से श्रेया घबरा गई थी. वह प्रतीक्षा की मदद के लिए चीखतीचिल्लाती रही, पर मदद के लिए कोई नहीं आया. कुछ लोग वहां खड़े बस तमाशा देखते रहे. हमलावर को जब विश्वास हो गया कि प्रतीक्षा मर चुकी है तो वह बड़े आराम से अपनी स्कूटी ले कर फरार हो गया.

फिल्मी अंदाज में घटी इस घटना से डरीसहमी श्रेया ने घटना की खबर पुलिस कंट्रोल रूम के साथसाथ प्रतीक्षा के घर वालों को भी दे दी. चूंकि वह इलाका थाना राजापेठ के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना राजापेठ थाने को प्रसारित कर दी. थानाप्रभारी किशोर सूर्यवंशी ने इंसपेक्टर दुर्गेश तिवारी को आवश्यक पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर भेज दिया और अपने आला अधिकारियों को सूचना देने के बाद खुद भी घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

इंसपेक्टर दुर्गेश तिवारी के घटनास्थल पर पहुंचने से पहले मृतका के घर वाले वहां पहुंच चुके थे. उसी दौरान प्रैस फोटोग्राफर, फिंगरप्रिंट ब्यूरो की टीम भी वहां पहुंच गई. इंसपेक्टर दुर्गेश तिवारी ने प्रतीक्षा के घर वालों को सांत्वना दी कि हो सकता है प्रतीक्षा की सांसें चल रही हों. फिर वह प्रतीक्षा को अपनी कार में डाल कर नजदीक के डा. वोडे अस्पताल ले गए, पर डाक्टरों की टीम ने जांच के बाद प्रतीक्षा को मृत घोषित कर दिया.

दिनदहाड़े घटी इस घटना की खबर थोड़ी ही देर में सारे शहर में फैल गई. पूरे शहर में सनसनी सी फैल गई. घटना की जानकारी पा कर अमरावती शहर के पुलिस कमिश्नर दत्तात्रय मांडलिक, डीसीपी शशिकांत सातव घटनास्थल पर पहुंच गए. सभी अधिकारियों ने बारीकी से घटनास्थल का निरीक्षण कर थानाप्रभारी किशोर सूर्यवंशी को आवश्यक दिशानिर्देश दिए.

मृतका के घर वालों से बातचीत करने के बाद थानाप्रभारी ने इस हत्याकांड की जांच इंसपेक्टर दुर्गेश तिवारी को सौंप दी. उन्होंने सब से पहले प्रतीक्षा की सहेली का बयान दर्ज किया. क्योंकि वह उस समय प्रतीक्षा के साथ ही थी. सहेली श्रेया ने अपनी आंखों देखा हाल पुलिस को लिखवा दिया. उधर प्रतीक्षा के घर वालों ने पुलिस को बताया कि उन की बेटी की हत्या राहुल भड़ ने की है.

मां ने बताया हमलावर का नाम

प्रतीक्षा की मां मंगला ने पुलिस को बताया कि राहुल से प्रतीक्षा एकतरफा प्यार करता था. वह कई सालों से प्रतीक्षा के पीछे पड़ा था. वह उस से प्यार करने का दम भरता था और उसे अपनी पत्नी बताता था. अकसर वह उसे छेड़ता, परेशान करता और तरहतरह की धमकियां दिया करता था, जिस से प्रतीक्षा का कहीं अकेले आनाजाना मुश्किल हो गया था.

इस बात की शिकायत उन्होंने फ्रेजरपुरा गाडगेनगर और राजापेठ पुलिस थानों में भी की थी. लेकिन पुलिस ने उस के खिलाफ कोई कठोर काररवाई नहीं की, जिस से उस की हिम्मत बढ़ गई. यह उसी का नतीजा है.

लोगों को जब यह जानकारी मिली तो वे आक्रोशित हो कर सैकड़ों की संख्या में इकट्ठा हो कर थाना राजापेठ के सामने पहुंच गए और प्रतीक्षा के हत्यारे को अतिशीघ्र गिरफ्तार करने की मांग करने लगे.

मामले को तूल पकड़ते देख डीसीपी ने तफ्तीश का दायित्व खुद संभाला. उन्होंने लोगों को भरोसा दिलाया कि हत्यारे राहुल को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा. इस के बाद डीसीपी ने कई टीमें गठित कीं. पुलिस टीमें राहुल भड़ के सभी ठिकानों पर दबिश के लिए निकल गईं. पुलिस ने उस के दोस्तों, नातेरिश्तेदारों से पूछताछ की.

राहुल का जब पता नहीं चला तो उस के फोन की लोकेशन को ट्रेस किया जाने लगा. मोबाइल की लोकेशन के आधार पर पुलिस टीम ने उसे यवतमाल के मूर्तिजापुर रेलवे स्टेशन के पास से रात करीब 2 बजे गिरफ्तार कर लिया. जिस समय पुलिस टीम ने राहुल भड़ को गिरफ्तार किया था, उस समय उस की स्थिति काफी खराब थी. पुलिस उपचार के लिए उसे डाक्टर के पास ले गई.

जांच के बाद डाक्टर ने बताया कि राहुल ने कोई विषैली चीज खा ली है. यदि समय रहते उसे इलाज न मिला होता तो उस की जान जा सकती थी. बहरहाल राहुल भड़ की हालत सामान्य होने के बाद पुलिस उसे थाने ले आई.

पुलिस ने उस से प्रतीक्षा की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बड़ी आसानी से स्वीकार कर लिया कि प्रतीक्षा की हत्या उस ने मजबूरी में की थी. यदि वह उस की बात मान लेती तो यह करने की नौबत नहीं आती. पूछताछ के बाद उस की हत्या के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

कम उम्र में ही हो गया था दोनों को प्यार

26 वर्षीय राहुल भड़ अमरावती के गांव हंतोड़ा का रहने वाला था. उस के पिता बबनराव भड़ का गांव में ही एक छोटा सा कारोबार था. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी और 2 बेटे थे. बड़ा बेटा अकोला की एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करता था. राहुल परिवार में सब से छोटा था. घर वालों के लाड़प्यार में वह जिद्दी हो गया था.

लेकिन वह तेजतर्रार और महत्त्वाकांक्षी युवक था. वह पढ़ाई में होशियार था. सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री ले कर वह नौकरी करने के बजाय किसी ऐसे काम की तलाश में था, जिस में मोटी कमाई हो. वह नागपुर जा कर ठेकेदारी करने लगा था. परिवार में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन प्रतीक्षा को देखने के बाद वह उस का दीवाना हो गया था.

छावड़ा प्लांट अमरावती शहर की रहने वाली प्रतीक्षा के पिता मुरलीधर मेहत्रे धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे. परिवार में उन की पत्नी मंगला मेहत्रे के अलावा 2 बेटियां थीं. पिता की तरह दोनों बेटियां भी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं. सभी साईंबाबा के भक्त थे. गुरुवार को सभी साईंबाबा के मंदिर जरूर जाते थे. प्रतीक्षा पढ़ाई में भी होशियार थी. पहली कक्षा से ले कर एमएससी तक उस ने अच्छे अंकों से पास की थी. वह टीचर बनना चाहती थी. लेकिन उस का यह सपना अधूरा ही रह गया. उस का सपना पूरा होने से पहले ही उस पर राहुल भड़ की काली नजर पड़ गई.

सन 2010 में राहुल ने प्रतीक्षा को उस समय देखा था, जब वह अपने मामा राऊत के घर एक दावत में आया था. उस समय प्रतीक्षा सिर्फ 14 साल की थी. उस समय वह हाईस्कूल की परीक्षा पास कर चुकी थी. राहुल भड़ के मामा राऊत और प्रतीक्षा का परिवार एक ही सोसायटी में आमनेसामने रहता था.

हालांकि उस समय दोनों ही नादान और कमउम्र थे. लेकिन प्रतीक्षा का खूबसूरत चेहरा राहुल की निगाहों में समा गया था और प्रतीक्षा के करीब आने के लिए वह अकसर अपने मामा के यहां आनेजाने लगा था. जिस का उसे पूरापूरा फायदा भी मिला. धीरेधीरे वह प्रतीक्षा के करीब आ गया.

दोनों में जब अच्छी जानपहचान हो गई तो वे मिलनेजुलने लगे. दोनों के बीच जब घनिष्ठता बढ़ी तो समय निकाल कर इधरउधर घूमने भी लगे. राहुल प्रतीक्षा पर दिल खोल कर खर्च भी करने लगा था, जिस का नतीजा यह रहा कि प्रतीक्षा की राहुल के प्रति सहानुभूति बढ़ गई.

करीब 3 सालों तक दोनों की दोस्ती इसी तरह चलती रही. बाद में यह दोस्ती प्यार में बदल गई. उन्हें लगने लगा कि दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हैं.

वे अपने प्यार को एक नाम देना चाहते थे. उन्होंने विवाह करने का फैसला कर लिया. लेकिन यह निर्णय उन के लिए आसान नहीं था. खासकर प्रतीक्षा के लिए.

धार्मिक प्रवृत्ति के थे प्रतीक्षा के घर वाले

क्योंकि वह यह अच्छी तरह जानती थी कि उस का परिवार धर्म, रीतिरिवाज में बहुत ज्यादा विश्वास रखता है. उस के घर वाले उसे इस बात की इजाजत नहीं देंगे. यह बात उस ने राहुल को बताई. राहुल ने उसे समझाया कि यह सब गुजरे जमाने की बातें हैं. अब वक्त  के अनुसार सभी को बदल जाना चाहिए. यह बात प्रतीक्षा की समझ में आ गई और 10 अक्तूबर, 2013 को श्रीदेव महाराज यशोदानगर की सामाजिक संस्था के सहयोग से उस ने राहुल से शादी कर ली और नोटरी से इस का प्रमाणपत्र भी हासिल कर लिया.

विवाह के बाद राहुल भड़ ने सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री ले कर नागपुर में अपना ठेकेदारी का काम शुरू किया और प्रतीक्षा ने एमएससी की पढ़ाई पूरी कर ली. इस बीच समय निकाल कर दोनों मिलते भी रहे. लेकिन दोनों का यह सिलसिला अधिक दिनों नहीं चला. काफी सावधानियां बरतने के बावजूद भी उन का राज राज नहीं रहा.

प्रतीक्षा के परिवार वालों को जब इस बात की खबर हुई तो उन के पैरों के नीचे की जैसे जमीन खिसक गई. उन्हें अपनी बेटी प्रतीक्षा से इस की आशा नहीं थी. उन्हें मानसम्मान, मर्यादा समाज के बीच सब खत्म होता नजर आया.

वह उस का विवाह अपने समाज के युवक से कराना चाहते थे, लेकिन वह सब उन के लाड़प्यार की आंधी में तिनके की तरह उउ़ता हुआ दिखाई दिया. मामला काफी नाजुक और संवेदनशील था. प्रतीक्षा के पिता तथा मामा ने उसे अच्छी तरह समझाया और कहा कि उस की और राहुल की कुंडली में दोष है, इसलिए उस का राहुल से मिलना ठीक नहीं है.

शादी कर के भी राहुल से कर लिया किनारा

प्रतीक्षा ने अपने घर वालों की बात मान ली और उस ने राहुल से मिलनाजुलना और बातचीत करना बंद कर दिया. प्रतीक्षा को अपने उठाए गए कदम पर आत्मग्लानि महसूस हुई. इस बात की खबर जब राहुल को हुई तो उसे प्रतीक्षा के परिवार वालों पर बहुत गुस्सा आया.

एक दिन वह प्रतीक्षा के घर पहुंच गया और उसे साथ चलने के लिए कहने लगा. परिवार वालों ने विरोध किया तो उस ने उन्हें अपनी और प्रतीक्षा की शादी का प्रमाणपत्र दिखाते हुए कहा, ‘‘मैं ने प्रतीक्षा से विवाह किया है. इसे अपने साथ ले जाने के लिए मुझे कोई नहीं रोक सकता.’’

परिवार वालों ने जब राहुल की इन बातों का विरोध किया तो राहुल प्रतीक्षा और उस के परिवार वालों को धमकी देते हुए अपने शादी के प्रमाणपत्र को सोशल मीडिया पर डालने की धमकी दी. उस ने ऐसा कर भी दिया. इस से प्रतीक्षा और उस के घर वालों की बड़ी बदनामी हुई. प्रतीक्षा के पिता मुरलीधर ने थाने में राहुल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. यह मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है.

प्रतीक्षा के परिवार वालों के इस व्यवहार से राहुल और चिढ़ गया. अब राहुल उन्हें तरहतरह से परेशान करने के साथ धमकियां देने लगा. उस की धमकियों से परेशान हो कर मुरलीधर फ्रेजरपुरा पुलिस थाने में उस के खिलाफ 4 और गाड़गेनगर थाने में एक शिकायत दर्ज करवा दी. लेकिन राहुल के ऊपर इस का प्रभाव नहीं पड़ा, बल्कि उस के हौंसले और बढ़ गए.

उस ने प्रतीक्षा का बाहर आनाजाना मुश्किल कर दिया था. वह बारबार उसे धमकी देता था कि अगर वह उस की नहीं हो सकी तो किसी और की भी नहीं होगी. उस की इन धमकियों और किसी अनहोनी के भय से उन्होंने थाना राजापेठ में भी 22 नवंबर, 2017 को उस की शिकायत दर्ज करवा दी.

थाना राजापेठ पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए राहुल भड़ के खिलाफ शिकायत दर्ज कर ली. राजापेठ पुलिस उस पर कोई सख्त काररवाई करती, उस के पहले ही राहुल ने प्रतीक्षा के प्रति एक खतरनाक फैसला ले लिया और उसे दिनदहाड़े शहर के बीच मौत के घाट उतार दिया.

पश्चाताप में करनी चाही आत्महत्या

हुआ यह था कि अपने खिलाफ गाड़गेनगर और राजापेठ पुलिस थाने में शिकायत दर्ज होने की खबर पा कर वह बौखला उठा था. उसे इस बात का अहसास हो गया था कि अब बात नहीं बनेगी और न ही उसे प्रतीक्षा मिलेगी. उस ने तय कर लिया कि वह एक बार और प्रतीक्षा की राय जानेगा. यही सोच कर वह नागपुर से अमरावती पहुंच गया और प्रतीक्षा के बारे में रेकी करने लगा कि वह किस समय कहां जाती है और उस के साथ कौन जाता है.

उसे पता चला कि गुरुवार को वह साईंबाबा के मंदिर जरूर जाती है, इसलिए उस ने उस दिन योजना को अंजाम देने का फैसला कर लिया. 23 नवंबर, 2017 को सुबह 10 बजे के करीब प्रतीक्षा अपनी सहेली श्रेया के साथ साईं दर्शन कर के घर लौट रही थी, तभी उस ने रास्ता रोक लिया. जब प्रतीक्षा ने उस के साथ जाने से मना किया तो राहुल ने चाकू से गोद कर प्रतीक्षा की हत्या कर दी.

प्रतीक्षा की हत्या करने के बाद वह अपनी स्कूटी से बड़नेरा पुलिस थाने के अंतर्गत आने वाले रेलवे स्टेशन गया. वहां वह अपनी स्कूटी पार्किंग में खड़ी कर के नागपुर जाने वाली ट्रेन का टिकट लिया.

वह ट्रेन के आने का इंतजार करने लगा. लेकिन यहां उसे पुलिस का खतरा अधिक लग रहा था, इसलिए वह स्टेशन से बाहर आया और अपनी स्कूटी से सीधे यवतमाल के मुर्तिजापुर रेलवे स्टेशन पहुंचा और ट्रेन का इंतजार करने लगा.

ट्रेन का इंतजार करते हुए उसे अपने अपराध का आभास और आत्मग्लानि हुई. उसे लगा कि जब उस की प्रेमिका ही नहीं रही तो उस का भी जीना बेकार है. यह सोच कर वह स्टेशन से बाहर आया और एक दवा की दुकान से कीटनाशक खरीद लाया. फिर उस दवा को पी कर स्टेशन के एक कोने में जा कर अपनी मौत की प्रतीक्षा करने लगा. इस के पहले कि उसे मौत दबोच पाती, उसे खोजती पुलिस वहां पहुंच गई.

राहुल भड़ ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया था. पूछताछ करने के बाद इंसपेक्टर दुर्गेश तिवारी ने उस के खिलाफ मामला दर्ज कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

इस मामले की जांच पूरी होने के बाद अमरावती पुलिस कमिश्नर दत्तात्रय मंडलिक ने तत्काल प्रभाव से फ्रेजरपुरा पुलिस थाने के इंसपेक्टर राहुल अठावले, कांस्टेबल गौतम धुरंदर, ईशा खाड़े को निलंबित कर दिया. बाकी उन अधिकारियों के विरुद्ध जांच बैठा दी, जिन्होंने समय रहते काररवाई नहीं की थी.

इस मामले में गृहराज्यमंत्री रणजीत सिंह पाटिल ने मृतक के परिवार वालों से मिल कर उन्हें सांत्वना देते हुए दोषियों के खिलाफ कठोर काररवाई का भरोसा दिया.

अब इस फिल्म में नजर आएंगी हिना खान

छोटे पर्दे की मशहूर अभिनेत्री  Hina Khan इन दिनों लगातार अपने नए-नए वेब प्रोजेक्ट को पूरा करने में व्यस्त है. हिना खान अपने आदाकारी से छोटे पर्दे पर भी दर्शकों के बीच काफी मशहूर रही. अब ये एक्ट्रेस अपनी आने वाली वेब फिल्म में Kushal Tandon के साथ नजर आएंगी.

हिना और कुशाल आने वाली वेब फिल्म ‘अनलौक : द हौन्टेड एप’  में साथ नजर आने वाले हैं. इसका निर्देशन देबात्मा मंडल करेंगे. हाल ही में फिल्म का लोगो जारी किया गया, जिसमें एक एप नजर आ रहा है, जो आपकी दूषित इच्छाओं को पूरा करेगा.

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लोगों के बारे में बात करते हुए हिना ने कहा, “तकनीक बहुत तेजी से बदल रही है और इसकी पहुंच भी बहुत बढ़ रही है. ‘अनलौक : द हौन्टेड एप’  के साथ हम वेब की काली सच्चाई को दिखाएंगे, जिसके बारे में कई लोग नहीं जानते हैं. जी5 के साथ जुड़कर काफी खुश हूं और इस दिलचस्प फिल्म को लेकर काफी उत्साहित हूं.

हाल ही में हिना खान फिल्म हैक्ड में नजर आईं थीं. बौक्स औफिस पर इस फिल्म को मिला जुला रिस्पौंस मिला. इस फिल्म में हिना की एक्टिंग की तारिफ भी की गई. मगर कमाई के मामले में ये फिल्म बौक्स औफिस पर ज्यादा  नहीं चली.

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इस मशहूर टीवी एक्ट्रेस ने म्यूजिक वीडियो में किया डेब्यू

Star Plus का पौपुलर सीरियल Yeh Rishta Kya Kehlata Hai  की अभिनेत्री Shivangi Joshi को दर्शक काफी पसंद करते हैं और ये अपने किरदार से फैंस के दिलों पर राज करती है. जी हां, Nayra को इस शो के दर्शक खुब पसंद करते हैं. Shivangi Joshi को Mohsin Khan के साथ उनकी केमिस्ट्री को फैंस काफी पसंद करते हैं.

आपको बता दें, एक्ट्रेस ने निखिल डीसूजा के साथ म्यूजिक वीडियो के क्षेत्र में कदम रखा है. इस म्यूजिक वीडियो का टाइटल ‘आदतें’ है. गौरव डगांवकर ने वीडियो को कंपोज किया है, अनुराग बोहेमिया ने लिखा है.  जबकि वीडियो के बारे में बात करते हुए शिवांगी ने कहा, “इन दिनों म्यूजिक वीडियो की काफी होड़ है और शायद यही कारण है कि इसे लेकर मैं काफी चयनात्मक रही हूं.

शिवांगी ने आगे कहा कि मेरा म्यूजिक वीडियो अच्छा हो, आत्मा से जुड़ा हो और जिससे जुड़ाव महसूस हो. ‘आदतें’  लेटेस्ट म्यूजिक सीरीज ‘डबलमिंट फ्रेश टेक’ का हिस्सा है, जिसे मार्स व्रिग्ले ने म्यूजिक एंटरटेनमेंट कंपनी सौन्गफेस्ट के साथ मिलकर प्रस्तुत किया है.

हाल ही में अभिनेत्री ने अपने एक्टिंग करियर को लेकर एक बयान दिया है. अभिनेत्री का कहना है कि उन्हें एक्टिंग का करियर काफी पसंद है और इसके पीछे उनके फैंस का बहुत बड़ा हाथ है. अभिनय में उन्हें सबसे ज्यादा क्या पसंद है, यह पूछे जाने पर अभिनेत्री ने कहा, “वो चीज हमारे प्रशंसकों का प्यार है, जिससे हमें काफी संतोष मिलता है.

डिजिटल प्लेटफौर्मों से डरी सरकार

सरकार व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, टिकटौक जैसे औनलाइन डिजिटल प्लेटफौर्मों के पीछे पड़ी है कि उन पर डाली गई सामग्री का सोर्स पता चल जाए और अगर कोई गलत सामग्री हो, तो पोस्ट करने वाले को पकड़ा जा सके. यह तो साफ है कि डिजिटल पोस्ट प्लैटफौर्म युवाओं को अपनी बात कहने और अपनी कला दिखाने का अद्भुत मौका दे रहे हैं. अब तक मजमा जमा करना, महंगे इक्विपमैंट से वीडियो बनाना और किसी भी तरह जानेअनजाने लोगों को दिखाना या उन से कुछ कहना संभव नहीं था. चाय की दुकान पर 5-7 लोगों को दिखाने या बताने में क्या मजा है?

ऐसे प्लेटफौर्मों पर लोगों ने खुल कर कहना और दिखाना शुरू किया है. अगर गालियों, पौर्न की भरमार है तो नाच, चुटकुलों, नाटकों, अभिनय की भी. इन पर बंदिशें लगाने के पीछे सरकार का मतलब एक ही है. कोई बात जो सरकार के खिलाफ हो उसे कहने वाले को पकड़ा जा सके. किसी भी सरकारविरोधी बात को आतंक या देश की अखंडता के खिलाफ करार देना सरकार का बाएं हाथ का खेल है. एक बार मामला दर्ज हुआ नहीं कि कहनेकरने वाले को दिनों नहीं, सालों जेल में बंद करना बाएं हाथ का खेल है. पी चिदंबरम को 3 महीने तक बंद कर रखा गया बिना किसी ठोस आरोप के. शक के चलते सरकार किसी को भी बंद कर सकती है. यदि ये प्लेटफौर्म बंद हो गए तो देश एक बड़ी डिक्टेटरशिप में बदल जाएगा.

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सदियों तक राजाओं और धर्माधीशों ने अपने खिलाफ  झूठ तो क्या, सच बोलने वालों तक का मुंह बंद कराया है ताकि वे खुद अपने पक्ष में  झूठ का प्रचार पर प्रचार कर सकें. हर सरकार चाहती है कि उस की जयजयकार होती रहे. कोई सरकार नहीं चाहती कि सड़कों पर बने गड्ढे दिखाए जाएं, पुलिस वालों की पिटाई दिखाई जाए, भूखेनंगे बच्चे दिखाए जाएं, सरकारी आदमी रिश्वत लेते दिखाए जाएं, सरकारी ढहते मकान दिखाए जाएं. धर्माधीश नहीं चाहते कि उन की बलात्कार की करतूतें दिखाई या छापी जाएं. वे नहीं चाहते कि उन की अपार संपत्ति के बारे में आमजन को बताया जाए.

यही नहीं, स्कूलोंकालेजों में टीचर नहीं चाहते कि उन की गलत पढ़ाई को रिकौर्ड कर के वायरल किया जाए. वे रिश्वत के बल पर ऐडमिशन लेने के बारे में बात जगजाहिर नहीं होने देना चाहते. वे टीवी पर होने वाले कंपीटिशन, फिक्ंिसग के मामलों की रिकौर्डिंग जगजाहिर नहीं होने देना चाहते. कोचिंग वाले नकल के तरीकों के रहस्यों को वायरल नहीं होने देना चाहते.

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नैतिकता, अश्लीलता, पौर्न, डेटिंग, प्रौस्टिट्यूशन की आड़ ले कर सरकार इन प्लेटफौर्मों का नियंत्रण चाहती है जैसे उस का समाचारपत्र व टीवी चैनल पर है. ये प्लेटफौर्म चाहे जितने मुक्त हों, नई हवा ला ही रहे हैं. अब कोई भेडि़या किसी भेड़ की खाल में छिप नहीं सकता. सरकार एक बड़ी भेड़ है. वह नहीं चाहती कि उस के किसी भेडि़ए की भीतरी खाल की पोल खुले. अमित शाह, अजित डोभाल, बी एस येदियुरप्पा, एम के कनिमो झी, ए राजा जैसे नेताओं का परदाफाश इस तरह के प्लेटफौर्मों से हुआ था. सो, मौजूदा सरकार इन से भयभीत है कि कोई भी सरकारविरोधी बात वायरल हुई तो उस का दिल्ली का सिंहासन भी हौंगकौंग, इजिप्ट, ट्यूनीशिया के सिंहासनों की तरह ढह सकता है.

औयली स्किन के लिए 5 फेस पैक

तैलीय त्वचा वाली महिलाओं को कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है. त्वचा पर मौजूद अधिक तेल चेहरे को चिपचिपा बना देता हे, जिस से चेहरे पर कीलमुंहासे होने का डर बना रहता है, लेकिन अब इस डर को घर में बनाए जाने वाले फेस पैक, जिन्हें घरेलू फेस पैक के नाम से भी जानते हैं, का इस्तेमाल कर दूर किया जा सकता है.

डा. दीपाली भारद्वाज, त्वचा रोग विशेषज्ञा बताती हैं कि तैलीय त्वचा से परेशान बहुत सी महिलाएं उन के पास आती हैं, जो विभिन्न क्रीमों व अन्य चिकित्सीय उपचार ले चुकी होती हैं, लेकिन डा. दीपाली के मुताबिक घरेलू उपचार से बेहतर कोई इलाज नहीं.

निम्न घरेलू उपचारों का प्रयोग कर आप तैलीय त्वचा की परेशानियों से छुटकारा पा सकती हैं:

केला, शहद और लैमन फेस पैक

केला सेहत के लिए तो फायदेमंद होता ही है, साथ ही यह त्वचा से अतिरिक्त तेल निकालने में भी मदद करता है. केले के साथ शहद और नीबू भी कमाल के गुणों से भरपूर होते हैं. आप को अपने लिए फेस पैक बनाने के लिए बस इतना करना है कि एक केले को मैश कर उस में 1 चम्मच शहद और नीबू का रस मिला कर इस मिश्रण को चेहरे पर तब तक लगाए रखना है जब तक कि यह सूख न जाए. फिर चेहरे को कुनकुने पानी से धो लें.

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पपीता व लैमन फेस पैक

पपीता एक ऐसा फल है, जो कहीं भी आसानी से मिल जाता है. तैलीय त्वचा के लिए यह अद्भुत विकल्प है. पपीते का फेस पैक बनाने के लिए इसे अच्छी तरह मैश कर के इस में नीबू का रस मिलाएं और फिर करीब 20 मिनट तक चेहरे पर लगाए रखने के बाद चेहरे को ठंडे पानी से धो लें.

मुलतानी मिट्टी व गुलाबजल

तैलीय त्वचा के लिए मुलतानी मिट्टी किसी वरदान से कम नहीं है. यह एक प्रकार की औषधीय मिट्टी है. इस में गुलाबजल मिला कर चेहरे पर लगाने से त्वचा से औयल भी निकल जाता है और वह कोमल भी बन जाती है.

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ऐलोवेरा

ऐलोवेरा जहां पेट के लिए काफी फायदेमंद होता है वहीं यह तैलीय त्वचा के लिए भी काफी उपयोगी होता है. तैलीय त्वचा से छुटकारा पाने के लिए आप ऐलोवेरा में शहद मिला कर चेहरे पर लगाएं. यह फेस पैक यकीनन लाभकारी सिद्ध होगा.

अंडा

अंडा प्रोटीन, विटामिन और विभिन्न मिनरल्स से भरपूर होता है, जो त्वचा को पूरी तरह स्वस्थ रखने का काम करता है. औयली त्वचा से छुटकारा पाने के लिए इस फेस पैक को जरूर ट्राई करें. यह पैक बनाना बहुत आसान है. 1 चम्मच शहद में अंडे की सफेदी मिला कर चेहरे पर लगाएं. 8-10 मिनट लगा रहने के बाद चेहरे को धो लें.

सेहत के लिए फायदेमंद है मसाले

खाने में मसालो का अपना ही महत्व है, तो कुछ मसाले सेहत के लिए उपयोगी है.  सही मसाले आपके खाने के स्वाद को कई गुना बढ़ा देते हैं, ठीक वैसे ही मसालों की प्रकृति के बारे में सही जानकारी कई बीमारियों को आपसे कोसों दूर भगा सकती हैं. आप रोज जिन मसालों को उपयोग में लाती हैं, उनके फायदे अनेक हैं. तो चलिए जानते हैं सेहत के लिए कैसे फायदेमंद है मसाले.

हींग– बढ़ती ठंड के कारण आप भी कफ की शिकार हो गई हैं तो हींग को पानी में उबालें. पानी जब हल्का गर्म रहे तो उसे छानकर उस पानी को पिएं. कफ की समस्या में कमी आप खुद महसूस करेंगी. इसके अलावा गैस की समस्या के कारण अगर पेट दर्द हो रहा है तो हींग में हल्का-सा नमक मिलाएं और उसे खाएं. पेट दर्द की परेशानी दूर हो जाएगी.

तेजपत्ता – तेजपत्ता के तेज में एंटीफंगल और एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं और फंगल या बैक्टीरियल इंफेक्शन को दूर करने में यह कारगर होता है.

लाल मिर्च – लाल मिर्च में एंटीऔक्सिडेंट्स होते हैं. ये कोलेस्ट्रौल की बढ़ती मात्र पर अंकुश लगाते हैं और साथ ही कैलोरीज कम करने में भी मदद करते हैं.

 दालचीनी – यह शरीर में इंसुलिन के प्राकृतिक निर्माण को बढ़ावा देता है और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखता है.

लौंग – दांत या मसूढ़े में दर्द है तो मुंह में एक लौंग रख लें. दर्द में लाभ मिलेगा. सीने में दर्द, बुखार, पेट की परेशानियां और सर्दी-जुकाम में भी लौंग फायदेमंद साबित होता है.

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इलायची –  खीर या मिठाई आदि में आप इलायची के पाउडर का इस्तेमाल तो करती ही होंगी.  मुंह की बदबू दूर करने में इलायची कारगर है. इसके अलावा पेट की समस्याओं को भी यह दूर करती है. अगर डायबिटीज की समस्या है तो साबुत इलायची खाएं.

जीरा – जीरा आयरन का एक अच्छा स्रोत है और शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को मजबूत रखने में कारगर होता है. पेट खराब होने की स्थिति में पानी में जीरा उबालने के बाद उस पानी को छानकर पीने से लाभ मिलता है.

करी पत्ता –  रायते के स्वाद को बेहतर बनाने वाला करी पत्ता खून में शुगर की मात्रा को कम करने में भी मददगार है.

मेथी – अगर डायबिटीज की शिकार हैं तो हर दिन जरा-सी मेथी खाएं. असर जल्द ही महसूस करेंगी. इसके अलावा मेथी कोलेस्ट्रॉल कम करने में भी मददगार होती है.

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पीली सरसों – सरसों का तेल शरीर की मसाज में और बालों के सही विकास में उपयोगी माना जाता है. सरसों ओमेगा-3 फैटी एसिड का अच्छा स्नोत है. यह आयरन, जिंक, मैग्नीशियम, कैल्शियम और प्रोटीन से भी भरपूर होता है.

 काली मिर्च –  सर्दी-जुकाम और इंफेक्शन से बचाने के अलावा काली मिर्च मांसपेशियों के दर्द को दूर करने में भी कारगर होती है. काली मिर्च के इस्तेमाल से पाचन तंत्र से जुड़ी परेशानियों से भी छुटकारा पाया जा सकता है.

हल्दी – तमाम दवा खाने के बाद भी कफ से निजात नहीं मिल रही है तो हल्दीवाला दूध पिएं, फायदा मिलेगा. हल्दी त्वचा संबंधी परेशानियों को दूर करने में भी मददगार है. यह शरीर की रोगप्रतिरोधी क्षमता को मजबूत बनाती है, जिससे शरीर बीमारियों से लड़ने के लिए खुद को तैयार कर लेता है.

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