अगर किसी के दिमाग में आम लोगों के प्रति जन्म से ही घृणा भरी हो और दुर्भाग्य से उसे तमाम व्यवहारिक बातों की जानकारी या समझ भी न हो तो यह स्थिति उसे ‘करेले में नीम’ चढ़ने वाली बना देती है. 11 फरवरी 2020 को सुबह 10:30 बजे के आसपास जैसे ही दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजों का रूझान करीब-करीब स्थिर हुआ और यह माना जाने लगा कि तीसरी बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी जबरदस्त बहुमत हासिल करने जा रही है, उसी समय से सोशल मीडिया में दिल्ली के मतदाताओं के लिए लोगों की घृणा और खिसियाहट उबलने लगी. कहा जाने लगा कि दिल्ली के मतदाता भिखारी हैं, मुफ्तखोर हैं. उन्होंने अरविंद केजरीवाल को तीसरी बार इसलिए बहुमत से चुनाव जिताया है; क्योंकि उन्हें हराम की सुविधाओं की लत लग गई है. सोशल मीडिया में जुगुप्सा और व्यंग्य से बिलबिलाती ऐसी पोस्टों की बाढ़ आ गई. इनका सिलसिला इन पंक्तियों के लिखे जाने तक भी जारी है.
सवाल है क्या ऐसा है ? क्या दिल्ली के आम मतदाताओं का मत हासिल करने के लिए आम आदमी पार्टी ने उन्हें मुफ्तखोरी की लत लगा दी है ? गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने उन गरीब लोगों के बिजली के बिलों को जिनकी मासिक खपत 200 यूनिट से कम है, शून्य कर दिया है. साथ ही महिलाओं को बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा दी है और हर दिल्लीवासी को महीने में 20,000 लीटर पानी बिल्कुल फ्री में उपलब्ध कराया है. सबसे पहले तो यह जान लें कि यह सुविधाओं को पाने के लिए गरीब होना कोई शर्त नहीं है. कोई भी व्यक्ति चाहे वह दिल्ली की झुग्ग्यिों में रहता हो या सर्वाधिक पाश कालोनी में रहता हो. वह इन सुविधाओं को हासिल कर सकता है.
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शर्त बस यही है कि 200 यूनिट बिजली मुफ्त में पाने के लिए घर के बिजली के बिल को 200 यूनिट तक ही सीमित रखना होगा. अगर बिल 201 यूनिट हो गया तो पूरा भुगतान करना होगा. इसी तरह दिल्ली की कोई भी महिला बसों में मुफ्त यात्रा कर सकती है. बस का कंडक्टर उसे इनकम सर्टिफिकेट दिखाने को नहीं कहेगा. यही बात हर महीने 20,000 लीटर पानी के खपत पर भी लागू होती हैं अगर ग्रेटर कैलाश या अकबर रोड जैसे पाश इलाके का कोई रहिवासी महीने में 20,000 लीटर पानी खर्च करता है तो उससे इसलिए पानी का बिल नहीं वसूला जायेगा क्योंकि वह पाश कालोनी में रहता है या कि अमीर है.
इसलिए सोशल मीडिया में मुफ्तखोरी का जहर उगल रहे लोग यही बात गलत कह रहे हैं कि दिल्ली में गरीब लोगों का वोट हासिल करने के लिए उन्हें मुफ्त में सुविधाएं दी जा रही है. ये सुविधाएं हर व्यक्ति को दी जा रही हैं. अब इन सुविधाओं के चलते राज्य के खजानों को खाली करने वाले आरोपों पर आते हैं. वास्तव में इस देश में कई किस्म की गलतफहमियां बहुत गहराई तक फैलायी गई हैं, उन्हीं में से एक यह भी है कि टैक्स सिर्फ अमीर आदमी देता है और गरीब आदमी, अमीर आदमी के दिये गये टैक्स में अपनी काहिली के चलते सिर्फ ऐश करता है. यह उतना ही बड़ा झूठ है, जितना बड़ा झूठ यह कि गणेश जी दूध पीते हैं.
सोशल मीडिया में बड़े पैमाने पर लोग भले यह माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हो कि केजरीवाल ने वोट पाने के लिए गरीब आदमियों के लिए दिल्ली के खजाने को दोनों हाथ से लुटा दिया है. जबकि यकीन मानिए दिल्ली के आम लोगों को अगर सरकार ने कल्याणकारी राज्य की कुछ सुविधाएं दी हैं तो इन्हें अमीर लोगों के हिस्से से नहीं छीना गया बल्कि इसके लिए इन्होंने भी बकायदा भुगतान किया है. वास्तव में दिल्ली के लोगों उपलब्ध करायी गई ये सुविधाएं राज्य के मौजूदा संसाधनों का ईमानदारी से किया गया स्मार्ट प्रबंधन भर है. जिस वजह से दिल्ली में गरीब लोगों को भी थोड़ी सी सुविधाएं हासिल हो गई हैं. लेकिन आम आदमी ने इन सुविधाओं के बदले पहले ही कई गुना ज्यादा कीमत चुका दी है.
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इसे यूं भी समझ सकते हैं हिन्दुस्तान में औसतन हर व्यक्ति साल में करीब 77,000 रुपये या इससे ज्यादा की विभिन्न तरह की खरीदारियां करता है. साल 2017-18 के एवरेज कंज्यूमर स्पेंडिंग डाटा को देखें तो पता चलता है कि देश का आम से आम आदमी भी औसतन 77085 रूपये की खरीदारी करता है. यह देश के औसत उपभोक्ता का खर्च है. चूंकि दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय देश के बाकी राज्यों से ज्यादा है तो यहां प्रति उपभोक्ता प्रतिवर्ष इससे भी ज्यादा करता होगा. अब किसी भी उत्पाद में लगे सभी तरह के करों की गणना करें तो हर उत्पाद अपनी वास्तविक लागत से करीब 42 फीसदी महंगा बेचा जाता है.
इसमें हम सिर्फ 20 प्रतिशत के विभिन्न छिपे हुए कर मान लें तो एक आम से आम भारतीय जो एक पैसे का प्रत्यक्ष कर नहीं देता, वह भी हर साल करीब 15000 का टैक्स चुकाता है. जबकि केजरीवाल सरकार की सभी सब्सिडी मिलकर भी साल में हर दिल्ली वासी के खाते 3000 रूपये की भी नहीं बनती. अब समझिये कि दिल्ली सरकार देती है कि लेती है ? दरअसल दूसरी सरकारें इतना भी नहीं देतीं तो लोगों को लगता है कि केजरीवाल लुटा रहा है. जबकि सच्चाई यह है, जिसकी पुष्टि कैग करता है कि दिल्ली सरकार देश की अकेली सरकार है जो 3000 करोड़ रूपये के सरप्लस में है.
दरअसल शोषण भी एक आत्मघाती नशा होता है, जिसमें कभी-कभी शोषित को भी खूब मजा आता है. दो साल पहले एक सर्वे में यह बात उजागर हुई कि 93 फीसदी महिलाएं पतियों के हाथ से मार खाकर खुश रहती हैं. उन्हें यह सहज स्वाभाविक लगता है. यही बात यहां लागू होती है दूसरी सरकारें पूरा टैक्स कलेक्शन खुद ही घोट जाती हैं तो लोगों को लगता है यह केजरीवाल सरकार ऐसा क्यों नहीं कर रही. इसी का प्रलाप कल से हो रहा है.