आदरणीय प्रधानमंत्रीजी,

नमस्कार,

वैसे तो हम आप से खासे नाराज हैं कि आप ने हमारी नाक में नकेल डालने की कोशिश उसी दिन से शुरू कर दी है जिस दिन से हम ने आप को जितवा कर कुरसी पर बिठाया है. परंतु साहब, हम भी किसी से कम नहीं. हम भी दफ्तरों में 20-22 साल से जमे हुए इज्जत से खा रहे हैं. क्या मजाल जो किसी की अनामिका तक हमारी ओर उठी हो.

समाज में हमारी ऐसी इज्जत है कि भगवान तक हमारी इज्जत देख हम से ईर्ष्या करता है. वह सोचता है कि मैं सरकारी कर्मचारी क्यों न हुआ, भगवान क्यों हो गया.  यह हमारा बरसों पुराना अनुभव है कि हमें बदलने का दावा करने वाला 4 दिन के बाद खुद ही बदलता रहा है. देखिए साहब, आप हमें परेशान करने के लिए स्टेटमैंट पर स्टेटमैंट दिए जा रहे हैं. कभी आप के मंत्री हमारे दफ्तरों में हम से पहले आ कर हमारी गैरहाजिरी लगा देते हैं तो कभी हम से छुट्टी देने को कहते हैं. पर अब हम भी हाथ पर हाथ धरे नहीं रहने वाले. वैसे भी मत पूछो, हम आजकल महंगाई के कारण कितने परेशान चल रहे हैं.

ये भी पढ़ें-चापलूसै शक्ति कलियुगे

अब आप ने जोश में आ एक और स्टेटमैंट दे मारा है. इस के चलते हर विभाग के हर तबके के कर्मचारियों के हाथपांव फूल गए हैं. आप तो जो मन करे, कह देते हो पर झेलना तो आप की नीतियों को जनता तक पहुंचाने वाले हम कर्मचारियों को पड़ रहा है न. अब आप से ही पूछते हैं कि हम ने क्या सिर पर कफन बांध चुनावी ड्यूटी इसीलिए दी थी?

अरे साहब, देश के प्रधानमंत्री हो तो इस का मतलब यह कतई नहीं कि जनता को खुश करने के लिए जो मन में आया, कह दिया.  जनता को बहकाने के लिए कुछ भी कहिए, चलेगा, पर हमारे सम्मान को ठेस मत पहुंचाइए, प्लीज. हमारे पास सम्मान और जोड़े हुए सामान के सिवा तीसरा कुछ नहीं. कुछ कहने से पहले जरा सोच तो लिया करो कि आप के कहे का कहां, क्या असर होने वाला है. आप के पास दल है तो हमारे पास बेचारा दिल.

अब आप ने फरमाया है कि आप न खाने देंगे और न खाएंगे. अब आप से हम पूछते हैं, जिस बंदे को सरकारी नौकरी में लगते ही खाने की आदत बन जाए, जो सरकारी नौकरी में खाने के लिए ही आए, उसे आप क्या खाने से रोक पाएंगे? हमारा तो इतिहास ही खाने का रहा है, हुजूर. और जो आप ने किसी तरह हमें खाने से रोक ही लिया तो क्या हम बिन खाए जिंदा रह पाएंगे?

ये भी पढ़ें-फेकबुक से मुझे बचाओ

अगर आप के द्वारा खाने से हम पर लगी रोक के कारण हमें कुछ हो गया न, तो देख लेना, हमारा परिवार आप को कभी माफ नहीं करेगा. आप को कभी वोट नहीं देगा.  आप से पहले भी सरकार थी. उन्होंने कभी हमारे खाने पर कोई आपत्ति नहीं की. बल्कि वे तो हमें खाने के एक से एक सुनहरे मौके देते रहे. भगवान उन की आत्मा को शांति दे.

अरे साहब, हम ने तो नौकरी तक नोट दे कर ली है. अब नौकरी में लगा दिए पैसे पूरे नहीं करेंगे तो क्या करेंगे? यहां पर सब नोट देखते हैं, लियाकत नहीं. जिन के पास नोट नहीं, केवल लियाकत है, वे बेचारे तो रेहडि़यों पर अपनी लियाकत की डिगरियां लटकाए कमेटी वालों को हफ्ता देते चाट बेच रहे हैं. कोरी लियाकत से यहां आज की डेट में कुछ नहीं मिलता. नोट है तो सपोर्ट है.

आप नहीं खाएंगे, अच्छी बात है. पर हमें तो कम से कम खाने से मत रोको. आप के आगेपीछे कोई नहीं. तो हम क्या करें साहब. हमारे आगेपीछे तो बीसियों जिंदा, सैकड़ों मरे हैं और वे हर जगह कहते फिरते हैं कि उन का रिश्तेदार माल महकमे में अपने से ऊंची कुरसी पर बैठता है. इतनी ऊंची कुरसी पर कि भगवान को भी भक्त के कंधों पर चढ़ उस से बात करनी पड़ती है.

ये भी पढ़ें-शुभारंभ : पार्ट 3

यहां तो अपने कुछ अग्रज इस बात के हिमायती हैं कि खाओ, पर खाने न दो. यह तो मेरी महानता है कि मैं खाता नहीं, पर दोनों आंखें बंद कर उन को खाने जरूर देता हूं. सच कहूं, एक अरसा पहले मैं ने भी आप वाला प्रयोग किया था कि मैं न खाऊंगा, न खाने दूंगा. पता है तब क्या हुआ था मेरे साथ? चलो आप को बता ही देता हूं. तब खाने वालों ने मिल कर मुझे ही शहर के बाहरी क्षेत्र में पटकवा दिया था. बड़ी मुश्किल से अपना तबादला रुकवा पाया था मैं. तब एक समझदार ने नसीहत देते हुए कहा था कि न खाना अच्छी बात है पर खाने से रोकना घोर पाप. उस के बाद मैं ने आगे कसम खाई थी कि मर जाऊं जो किसी को खाने से रोकूं, नरक मिले जो किसी को खाते हुए देख औब्जैक्शन करूं.

इधर, मेरे दफ्तर के कुछ ऐसे ईमानदार हैं कि किसी का भी प्रोग्राम हो, कोई भी प्रोग्राम हो, निसंकोच लंच हंसते हुए खा ही जाते हैं. 5 रुपए की चाय मुफ्त में पी ही जाते हैं. और मैं हूं कि शान से, पूरे आत्मसम्मान से उन की थाली में माल परोसता रहता हूं. इसलिए हे मेरे प्रधानमंत्रीजी, सबकुछ कीजिए, पर हमें खाने से मत रोकिए. हम नहीं खाएंगे तो आप कैसे अपने तय किए लक्ष्य पाएंगे? देश के विकास के लिए हमारा खाना बहुत जरूरी है. हमें खाने से रोकना समुद्र पर बांध बनाने जैसा है. हम खानदानी खाने वाले नहीं खाएंगे तो देश के विकास की सारी फाइलें अलमारी में रखीरखी सड़ जाएंगी, जनाब. मुझे जो आप को बताना था, बता दिया. शेष आप की इच्छा. सरकार आप की, नाव आप की. हम तो केवल उसे बहाने वाले बंदे हैं जी.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...